Story in hindi

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मैं हैरान हो गया ‘खिचड़ी’ शब्द को ले कर. उस मैसेज का मतलब था उन सरकारी स्कूलों से जिन में सरकार द्वारा मिड डे मील योजना लागू है और जिन में बच्चे केवल खिचड़ी खाने के लिए जाते हैं, पढ़ने के लिए नहीं.
खैर, वह तो मैसेज था खिचड़ी को ले कर, पर हकीकत पर ध्यान दिया जाए तो यह विचार आम लोगों की सोच से भी जुड़ा हो सकता है. सरकार करना कुछ और चाहती है, पर समाज में कुछ और मैसेज जाता है. सरकार तो बच्चों की पढ़ाई के साथसाथ उन के पोषण लैवल में सुधार करना चाहती है, पर कुछ लोगों की सोच ही बड़ी अजीब है.
उसी सोच के लोगों के घोर असर से मेरा घर भी बच न सका. मैं एक दिन जब औफिस से घर आया, तो मेरी पत्नी ने अपनी खिचड़ी अलग पकाई हुई थी. वह बोली, ‘‘आप ईशान को प्राइवेट स्कूल में क्यों नहीं डाल देते?’’
आप जरा सोचिए कि ईशान अभी 2 साल का ही है और उस की पढ़ाई की चिंता मेरी धर्मपत्नी को हो गई है, वह भी प्राइवेट स्कूल में.
अपने देश में स्कूलों पर सरकारी शब्द का ठप्पा लग जाने से न जाने क्यों लोगों को चिढ़ हो जाती है. सरकारी नौकरी तो सब करना चाहते हैं, पर सरकारी स्कूल में कोई अपने बच्चों को पढ़ाना नहीं चाहता है. जैसे प्यार तो सभी करना चाहते हैं या लिव इन रिलेशन में तो सभी रहना चाहते हैं, पर शादी के नाम से ही आज की तथाकथित नौजवान पीढ़ी को चिढ़ हो जाती है.
मैं ने दूसरे दिन ही एक प्राइवेट प्ले स्कूल में अपने लाड़ले को भरती करवा दिया था. वहां पर बच्चों के लिए खेलने का पार्क, स्विमिंग पूल व मनोरंजन की ढेर सारी सुविधाएं थीं. 15,000 रुपए तत्काल दे कर यह रस्म पूरी की गई थी. हर महीने 500 रुपए की स्कूल फीस और वैन का किराया 800 रुपए तय था.
रोजाना बच्चे के लिए अलग रंग का यूनिफौर्म, निर्देशित नाश्ता व और भी बहुत सारी गतिविधियां थीं.
2 साल बाद ईशान को प्ले स्कूल से निकाल रहा था, तो मैं ने यह महसूस किया कि यह तो सचमुच प्ले स्कूल था, जो आज तक ईशान एबीसीडी भी पूरी तरह नहीं सीख पाया था.
ईशान जरा सा बड़ा हुआ और मैं जन्म प्रमाणपत्र ले कर प्राइवेट स्कूलों के चक्कर लगाने लगा था. एक स्कूल के बाद दूसरा, फिर तीसरा.
मुझे इस बात का थोड़ा सा भी इल्म नहीं था कि अभी ईशान तो एबीसीडी या कखगघ ही सीखेगा, तो इतने हाईप्रोफाइल स्कूल की क्या जरूरत? पर मैं गलत था. आजकल की इंगलिश मिक्स खिचड़ी भाषा की संस्कृति लोगों के दिलोदिमाग पर छा गई थी, शायद यही जरूरत थी.
पूरे शहर को छान मारने के बाद मेरी तलाश खत्म हो गई. एक प्राइवेट स्कूल ही हाथ लगा. मैं बहुत ही लकी था कि मेरा ईशान सरकारी स्कूल में न पढ़ कर एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ेगा.
एडमिशन के लिए बच्चे का रिटर्न टैस्ट, इंटरव्यू व मम्मीपापा का भी इंटरव्यू (वह भी इंगलिश में) की खानापूरी के बाद एडमिशन हो गया.
तकरीबन 70,000 रुपए दे कर एडमिशन की रस्म निभा दी थी. मुझे एक स्लिप मिली, जिस पर कुछ जरूरी तारीखें लिखी थीं, जैसे किताबें कब मिलेंगी, कब स्कूल की यूनिफौर्म मिलेगी, कितने रुपए लगेंगे और कब से स्कूल खुलेगा वगैरह.
मेरे ऊपर तकरीबन 10,000 से 12,000 रुपए का और धक्का था और इस के अलावा हर महीने स्कूल फीस व बस किराया, कुलमिला कर तकरीबन 5,000 रुपए की और चपत थी.
वह दिन अब आ गया था, जब स्कूल की किताबें व यूनिफौर्म मिलने वाली थी. मैं दिए गए समय पर पहुंच गया था. जितना बजट स्कूल की स्लिप यानी नोटिस में था, उतना ही मैं इंतजाम कर के गया था, पर उस धक्के से जरा सा कुछ बड़ा धक्का था यानी 2,000 रुपए की और चपत लग गई थी, पर फिर भी मैं बहुत ही खुश था, क्योंकि अब मेरी और मेरी पत्नी की खिचड़ी एक थी.
यूनिफौर्म, किताबें, कोट, टाई, बैल्ट व बैज पा कर मेरी पत्नी बहुत ही ज्यादा खुश थी, क्योंकि पड़ोसी के बच्चे उस से ज्यादा अच्छे स्कूल में नहीं थे.
मेरी धर्मपत्नी पड़ोसी के बच्चों को मुंह चिढ़ा रही थी अपने बच्चे का एडमिशन ऐसे स्कूल में करा कर. यह बड़े ही गर्व की बात थी कि मैं अपने ईशान को सरकारी स्कूल में न पढ़ा कर प्राइवेट स्कूल में पढ़ा रहा था, जहां मुफ्त की किताबें, यूनिफौर्म, जूतेमोजे, स्कूल बैग, साइकिल, लैपटौप, स्कौलरशिप, महीने की फीस और खिचड़ी (तहरी) भी नहीं मिलती थी.
एक दिन बड़े गौर से देख रहा था कि स्कूल की हर चीजों पर स्कूल का नाम लिखा था. शर्ट, पैंट, कोट, टाई, बैज, बैग, कौपीकिताबों के ऊपर प्लास्टिक का कवर, नेम स्लिम यहां तक कि मोजे तक पर भी स्कूल का नाम ही लिखा था.
मैं तो सोच रहा था कि शायद अंडरवियर, बनियान पर भी स्कूल का नाम जरूरी न कर दिया जाए, पर गनीमत थी कि वे दायरे से बाहर थे.
स्कूल खुलने के साथ ईशान को रोज कोई न कोई एक नोटिस मिल जाया करता था. एक दिन एक नोटिस मिला जैसे कोई मैगा माल का बंपर औफर हो. नोटिस में लिखा हुआ था कि आप पूरे साल की फीस अगर एक बार में देते हैं, तो ट्यूशन फीस में एक महीने का डिस्काउंट मिल जाएगा.
मैं बहुत ही पसोपेश में था कि यह मैगा माल का औफर है या स्कूल. एक ही बार में तकरीबन 60,000 रुपए देना मुमकिन न हो पाया और न ही बंपर औफर का फायदा ले पाया.
कुछ दिन बाद ही पैरेंटटीचर मीटिंग का त्योहार आ गया. स्कूल को बहुत ही करीने से सजाया गया था.
पैरेंटटीचर मीटिंग में जब मैं गया, तो अपने बच्चे ईशान का तिमाही रिपोर्टकार्ड देखने को बोला गया, फिर टीचर से बात करने का मौका मिला. नंबर तो कोई खास नहीं आए थे.
मैं ने इस की शिकायत की, तो वे बोलने लगीं, ‘‘यह पढ़ता ही नहीं है. मैं सिलेबस देती हूं, तो बस उसी की प्रैक्टिस कराया करें. घर पर आप खुद पढ़ाएं. ऐसा नहीं है तो हो सके तो कोई ट्यूटर रख लें. आप तो देख ही रहे हैं कि कितना कंपीटिशन है.’’
सालभर तक त्योहारों का सिलसिला रुका नहीं. स्पोर्ट्स डे, एनुअल डे, पीटीएम डे, फेट डे, आर्ट गैलरी डे और बहुत सारे डे के बाद फिर रीएडमिशन डे भी आ गया, जिस में उसी स्कूल में दोबारा एडमिशन की जरूरत थी. इस में तकरीबन 20,000 रुपए का और हलका धक्का नहीं, एक छोटा हार्ट अटैक लगने वाला था. फिर भी इतना सब झेलने के बाद उस स्कूल में बने रहने के लिए हम खिचड़ी (शादी में होने वाली एक रस्म) खाने को मजबूर थे, क्योंकि सोसाइटी की बात थी.
कुछ दिन पहले ही मेरे ह्वाट्सएप पर एक कार्टून मैसेज आया था. टीचर के सामने एक बच्चा ले कर बाप खड़ा है और कुछ संदेश छपा है. टीचर बोलती?है, ‘सबकुछ स्कूल से मिलेगा, जैसे किताबें, यूनिफौर्म, जूते, टाईबैल्ट, स्पोर्ट्स यूनिफौर्म और स्कूल बैग भी.’
इस पर बाप ने पूछा, ‘और ऐजूकेशन…?’
टीचर ने जवाब दिया, ‘इस के लिए तो ट्यूशन है.’
यह कार्टून तो एक मजाकभर था, पर हकीकत से ज्यादा दूर न था. अब तो प्राइवेट स्कूल केवल मैगा माल बन कर रह गए?हैं और पढ़ाईलिखाई के लिए घर पर ट्यूशन लेना जरूरी हो गया है.
एक दिन किसी काम से मुझे स्कूल जाने का मौका मिला. मैं ने देखा कि रिसैप्शन पर खिचड़ी बाल लिए एक सुंदर महिला बैठी हुई थीं. उन्हीं के ऊपर की दीवार पर एक बड़े से सुनहरे फ्रेम में व्यापार कर के फौर्म की प्रतिलिपि टंगी हुई थी.
मैं सोच में पड़ गया कि यह तो सचमुच व्यापार है, जिस में प्राइवेट स्कूल (सोसाइटी के तहत) चाहे जितना मनमानी कमा लें, पर स्कूल की इनकम पर कोई टैक्स नहीं था.
हमें इस समस्या से उबरने की जरूरत है. क्या सचमुच सोच में बदलाव की जरूरत है? मैं ने सुना है कि दिल्ली के प्राइवेट स्कूलों से नाम कटा कर अभिभावक सरकारी स्कूलों में अपने बच्चे को भरती कर रहे हैं. दिल्ली सरकार की अच्छी सोच का ही नतीजा है. पूरे देश में जयजयकार हो रही है. दिल्ली स्कूल मौडल बन गया है.
दिल्ली सरकार ने दिल्ली में एक कोशिशभर की है, दिल्ली में अभीअभी ‘सुपर थर्टी’ के गुरु आनंद कुमार देख कर आए और बोले भी कि अगर ऐसा रहा तो सुपर थर्टी की जरूरत न पड़ेगी. अब तो दिल्ली में आनंद कुमार की दुकान खुलने की कोई उम्मीद न थी.
यकीन मानिए, अभी भी अपने देश की सब से बड़ी यूनिवर्सिटी, टैक्निकल ऐजूकेशन कालेज, सब से अच्छे कालेज, नवोदय विद्यालय, नेतरहाट विद्यालय मौडल व सिमुलतला स्कूल सरकारी ही हैं. अगर अभी भी यकीन नहीं आता तो जेएनयू, आईआईटी, सरकारी मैडिकल कालेज या नेतरहाट जैसे स्कूलों में दाखिला करा कर देख सकते हैं.
पर हमारी शिक्षा नीति में न जाने कहां से खिचड़ी पक गई कि आम जनमानस को क्यों यह लगने लगता है कि प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाई अच्छी होती है और सरकारी स्कूलों में खराब. मतलब यह कि हमें अपनी सोच में बदलाव लाने की जरूरत है. नई शिक्षा नीति, टीचर का वेतन सुधार, योग्य टीचर की कमी व टीचर भरती करने के तरीके में सुधार करना होगा.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डिस्कवरी चैनल पर आए ‘मैन वर्सेस वाइल्ड’ के प्रोग्राम में बीयर ग्रिल को एक इंटरव्यू दिया था. उस में उन्होंने खुद बोला था कि वे एक सरकारी स्कूल में पढ़े हैं. जरा सोचिए, सरकारी स्कूलों का कितना मान बढ़ जाता है, जब पता चलता है कि सरकारी स्कूल में पढ़ा आदमी प्रधानमंत्री है.
आप समझ रहे हैं न कि केंद्र सरकार और राज्य सरकार को खिचड़ी हो कर काम करना होगा, सरकारी योजनाओं को बीरबल की खिचड़ी नहीं बनाना होगा. शिक्षा का बजट किसी भी दूसरी योजनाओं से ज्यादा रखना होगा.
खिचड़ी (मिड डे मील योजना में तय सूची) की क्वालिटी, अच्छे स्कूल भवन, बिजली सप्लाई, पीने का साफ पानी, शौचालय, पंखे, टेबलकुरसी, टीचरों की कमी पूरी करना, प्रशिक्षित टीचर, खेल मैदान, लाइब्रेरी, प्रयोगशाला के साथसाथ और भी बहुत सारी सुविधाओं को ध्यान में रखना होगा.
यह संदेश भी देना होगा कि सरकारी स्कूल ही हैं, जो हमारे देश की जड़ (यानी गांवगांव में) में हैं और यही स्कूल हमारे पूरे देश को महान बना रहे हैं, जो पूरी दुनिया में एक मिसाल है.
जब मेरा देश इस तरह के सरकारी स्कूल में पढ़ेगा, तभी तो विश्व गुरु बन पाएगा.
रात के 9 बज रहे थे. गुजरात के गांधीनगर के पीथापुर में स्वामिनारायण गौशाला के बाहर एक बच्चे के तेज रोने की आवाज सुन कर गौशाला के कर्मचारी बाहर आए. देखा गौशाला के गेट के बाहर सड़क पर एक मासूम रो रहा है. बच्चे के आसपास कोई नहीं था.
मासूम पैरों से अभी चल भी नहीं पाता था. एक कर्मचारी ने बच्चे को गोद में उठाने के बाद उसे चुप कराने की कोशिश की और उस के मांबाप की तलाश आसपास की गई. लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. रात के अंधेरे में वहां कोई नहीं दिखाई दिया.
गौशाला के कर्मचारी बच्चे को ले कर अंदर आ गए. रात में ही गांधीनगर पुलिस को इस की सूचना दी गई. इस बीच जानकारी होने पर आसपास के लोग एकत्र हो गए. जिस ने भी यह बात सुनी, वही दांतों तले अंगुली दबाने लगा. सभी बच्चे के पत्थर दिल मांबाप को कोस रहे थे. पुलिस ने भी उस समय अपने स्तर से छानबीन की लेकिन कुछ पता नहीं चला.
बच्चा 10-11 महीने का था. वह अभी अपने पैरों से चल भी नहीं सकता था. इस समय इस मासूम को मां के आंचल में होना चाहिए था, लेकिन वह रात के अंध्ेरे में सड़क पर लावारिस हालत में था.
पुलिस ने उस मासूम को क्षेत्र की पार्षद दीप्ति पटेल के सुपुर्द कर दिया और सुबह बच्चे के बारे में जानकारी जुटाने की बात कही. दीप्ति पटेल ने मासूम को अपने पास रखा और रात में उसे खिलायापिलाया और पूरा ध्यान रखा.
यह बात 8 अक्तूबर, 2021 की है. पुलिस सुबह बच्चे को मैडिकल चैकअप के लिए सिविल अस्पताल ले गई. जहां जांच के बाद बच्चे को स्वस्थ बताया गया.
सोशल मीडिया पर जिस किसी ने इस खबर को पढ़ा व देखा, वह सन्न रह गया. जितने मुंह उतनी बातें. कोई इतना बेदर्द कैसे हो सकता है, जो अपने कलेजे के टुकड़े को रात के अंधेरे में इस तरह गौशाला के बाहर सड़क पर लावारिस छोड़ गया. उस मां के साथ ऐसी क्या मजबूरी थी, जो उसे कलेजे पर पत्थर रख कर यह काम करना पड़ा.
दूसरे दिन 9 अक्तूबर को अखबारों में जब मासूम की फोटो सहित समाचार छपा तो हर किसी का कलेजा फट रहा था. बात गुजरात के गृहमंत्री हर्ष सांगवी के कानों तक पहुंची. गृहमंत्री भी अस्पताल पहुंचे और बच्चे के बारे में जानकारी की. बच्चे को गोदी में ले कर दुलारा. उन्होंने पुलिस अधिकारियों को बच्चे के मांबाप का शीघ्र पता लगाने के निर्देश दिए.
50 पुलिसकर्मी जुटे जांच में गांधीनगर के एसपी मयूर चावड़ा ने बच्चे के परिजनों का पता लगाने के लिए 50 पुलिसकर्मियों की 7 टीमें लगा दीं.
पुलिस ने गौशाला के बाहर लगे एक सीसीटीवी कैमरे की फुटेज को चैक किया. फुटेज में रात 9 बज कर 20 मिनट पर एक व्यक्ति बच्चे को गोद में ले कर आता हुआ दिखाई दे रहा था. वह बच्चे को गौशाला के गेट के बाहर सड़क पर छोड़ कर तेजी से भागता हुआ अंधेरे में गायब हो गया. इस पर पुलिस ने गौशाला आनेजाने वाले रास्तों पर लगे सीसीटीवी कैमरों को चैक करने का निर्णय लिया.
पुलिस ने लगभग 150 सीसीटीवी कैमरों को चैक किया. आखिर पुलिस की मेहनत रंग लाई. एक फुटेज में एक सैंट्रो कार दिखाई दे रही थी. कार में एक व्यक्ति इसी बच्चे के साथ बैठा हुआ गौशाला की ओर जाता दिखाई दे रहा था.
यहीं से पुलिस को कार का नंबर भी मिल गया. तब पुलिस ने इस कार के रजिस्ट्रेशन नंबर से कार के मालिक का पता किया.
पता चला कि यह सैंट्रो कार सचिन दीक्षित के नाम रजिस्टर्ड है. 30 साल के सचिन का पता अहमदाबाद का लिखा हुआ था. पुलिस पते पर पहुंची तो पता चला कि सचिन दीक्षित अहमदाबाद में नहीं बल्कि अब गांधीनगर में रहता है.
पुलिस जब गांधीनगर स्थित सचिन के घर पहुंची तो वहां ताला लगा हुआ था. तब तक पुलिस को सचिन का मोबाइल नंबर मिल गया था. पुलिस ने सचिन के मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया.
इस से पता चला कि सचिन राजस्थान के कोटा के आसपास है. सचिन की लोकेशन मिलते ही पुलिस ने सचिन को फोन कर बच्चा मिलने के बारे में जानकारी दी. इस पर सचिन ने पुलिस को बताया कि वह बच्चा उसी का है और उस का नाम शिवांश है.
रविवार 10 अक्तूबर, 2021 की सुबह राजस्थान पुलिस की मदद से कोटा में ही सचिन को रोक कर हिरासत में ले लिया गया. जिस समय सचिन को हिरासत में लिया गया, उस समय वह अपनी पत्नी अनुराधा और 3 साल के बेटे तथा अपने मातापिता के साथ था. वह फुटेज में दिखाई दे रही उसी सैंट्रो कार से दशहरा मनाने उत्तर प्रदेश जा रहा था.
गुजरात पुलिस व क्राइम ब्रांच ने 11 अक्तूबर को राजस्थान पहुंचने के बाद जब सचिन से बच्चे को गौशाला के बाहर लावारिस छोड़ने की वजह पूछी. इस पर सचिन ने चुप्पी साथ ली.
इस के बाद पत्नी अनुराधा से पुलिस ने पूछा, ‘‘आप ने अपने बेटे को रात में सड़क पर क्यों छोड़ा?’’
यह सुन कर अनुराधा हैरान रह गई. उस ने पुलिस को बताया कि उस का 3 साल का एक ही बेटा है, जो इस समय उस के साथ है.
पुलिस ने अनुराधा को शिवांश की फोटो दिखाई तो उस ने पहचानने से इंकार कर दिया. उस ने बताया कि वह इस बच्चे को पहली बार देख रही है वह उसे नहीं जानती.
सचिन कह रहा था कि 10 महीने का शिवांश उस का बेटा है और उसी ने उसे गौशाला के बाहर छोड़ा था. जबकि उस की पत्नी इस बात से इंकार कर रही थी. पुलिस उलझन में पड़ गई. पुलिस ने एक बार फिर सचिन से पूछताछ करने का फैसला किया.
सचिन से लंबी पूछताछ के बाद गांधीनगर पुलिस ने बड़ोदरा पुलिस को फोन किया और एक घर का पता बताया. इस मकान पर पहुंच कर उस की किचन में रखे बैग की तलाशी लेने को कहा.
गांधीनगर पुलिस के कहने पर बड़ोदरा पुलिस बताए गए मकान जो बड़ोदरा में जी-102 दर्शनम ओएसिस सोसायटी में स्थित था, पर पहुंची.
सीढि़यां चढ़ कर पुलिस जब उस फ्लैट पर पहुंची तो ताला लगा था. पुलिस ताला तोड़ कर किचन में दाखिल हुई. वहां सचमुच एक बैग रखा हुआ मिला.
पुलिस ने जब बैग को खोला तो उस में एक महिला की लाश मिली. लाश देखते ही पुलिस हैरान रह गई. बैग में बंद होने के कारण लाश से दुर्गंध आ रही थी. बड़ोदरा पुलिस ने तत्काल गांधीनगर पुलिस को बताया कि बैग में 27-28 साल की एक महिला की लाश है.
पुलिस के सामने प्रश्न था कि बैग में बंद महिला कौन थी? उस की हत्या कब और क्यों की गई थी? लाश की भनक सचिन को कैसे लगी?
अब पुलिस ने इस हत्या के बारे में सचिन से कड़ाई से पूछताछ की. आखिर पुलिस ने सचिन से सच उगलवा ही लिया. सचिन ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया. जो कहानी सामने आई, उसे सुन कर पुलिस भी हैरान रह गई. इस घटना का 24 घंटे में ही पुलिस ने कड़ी मेहनत कर परदाफाश कर दिया था.
गांधीनगर के एसपी मयूर चावड़ा ने प्रैस कौन्फ्रैंस में बताया कि मृतका सचिन की प्रेमिका थी. दोनों लिवइन रिलेशन में रह रहे थे. उन का एक बच्चा शिवांश था.
प्रेमिका शादी करने के लिए सचिन पर जोर दे रही थी. उस से व बच्चे से छुटकारा पाने के लिए सचिन ने षडयंत्र रच इस कृत्य को अंजाम दिया था.
लेकिन तीसरी आंख से वह अपने गुनाह को छिपा नहीं सका. आखिर पुलिस की 7 टीमों ने दिनरात मेहनत कर बेरहम गुनहगार को गिरफ्तार कर लिया था.
पत्नी अनुराधा को अपने पति सचिन के गुमनाम रिश्ते के बारे में कुछ पता नहीं था. उसे नहीं मालूम था कि पति की प्रेमिका व उस से बेटा भी है. यह बात तो उसे घटनाक्रम के सामने आने के बाद पता चली.
सचिन 3 साल से इस राज को अपनी पत्नी से छिपाए हुए था. उस ने अपनी पत्नी को भी इस बात की भनक तक नहीं लगने दी कि उस की कोई प्रेमिका और उस से पैदा कोई बच्चा भी है.प्रेमिका की हत्या करने और जिगर के टुकड़े को रात के अंधेरे में सड़क पर छोड़ने की जो कहानी सामने आई, वह चौंकाने वाली थी—
4 साल पहले सचिन दीक्षित के मातापिता ने उस की शादी अनुराधा के साथ कर दी थी. इस समय अनुराधा के 3 साल का एक बेटा है. सचिन गांधीनगर की एक कंपनी में असिस्टेंट मैनेजर के पद पर कार्यरत था.
वर्ष 2018 में अहमदाबाद के एक शोरूम में उस की मुलाकात हिना पेथाणी उर्फ मेहंदी नाम की युवती से हुई. हिना मूलरूप से जूनागढ़ जिले के केशोद की रहने वाली थी. उस की मां की मौत हो चुकी थी. मां की मौत के बाद पिता महबूब पेथाणी ने दूसरी शादी कर ली. इस के बाद हिना अपने मौसामौसी के साथ अहमदाबाद में आ कर उन के साथ रहने लगी थी.
हिना उसी शोरूम में काम करती थी. धीरेधीरे दोनों के बीच मुलाकातें बढ़ने लगीं. इन मुलाकातों के चलते दोनों एकदूसरे को दिल दे बैठे. दोनों दिलोजान से एकदूसरे को प्यार करने लगे. इस के बाद साल 2019 में दोनों लिवइन रिलेशन में रहने लगे.
लिवइन रिलेशन के दौरान साल 2020 में शिवांश पैदा हुआ, जो घटना के समय लगभग 10 महीने का था. घटना से 2 महीने पहले सचिन का बड़ोदरा ट्रांसफर हो गया. तब सचिन ने दर्शनम ओएसिस सोसायटी में एक फ्लैट किराए पर ले लिया.
वह इसी फ्लैट में हिना और बेटे शिवांश के साथ रहने लगा. सचिन सप्ताह में 5 दिन बच्चे व प्रेमिका हिना के साथ तथा 2 दिन शनिवार और रविवार को गांधीनगर में मातापिता व पत्नी अनुराधा के साथ रहता था.
पिछले 3 साल से सब कुछ ठीक चल रहा था. पिछले कुछ दिनों से हिना शादी करने के लिए सचिन पर दबाव डाल रही थी. सचिन कोई न कोई बहाना बना कर टालमटोल कर देता था.
8 अक्तूबर की दोपहर सचिन ने हिना को बताया कि वह एक सप्ताह के लिए अपने घर गांधीनगर मातापिता के पास जा रहा है. वहां से सभी लोग दशहरा मनाने के लिए उत्तर प्रदेश जाएंगे.
यह बात हिना को नागवार गुजरी. उस ने सचिन को दशहरा मनाने के लिए जाने से मना करते हुए अपने साथ ही रहने की बात कही. उस ने सचिन से कहा, ‘‘हम लोग लिवइन रिलेशन में कब तक रहेंगे? अब तो हमारे एक बेटा भी हो चुका है. तुम जल्द ही पत्नी अनुराधा को तलाक दे दो, ताकि हम जल्द शादी कर सकें.’’
इस बात को ले कर दोनों के बीच सुबहसुबह झगड़ा हुआ. शाम के समय भी दोनों में फिर से झगड़ा हुआ. हिना शादी के लिए सचिन पर दबाव डाल रही थी. वहीं सचिन उस से शादी करने से आनाकानी करने के साथ ही परिवार के साथ दशहरा मनाने के लिए जाने की बात कह रहा था.
बात बढ़ गई. दोनों के बीच कहासुनी, फिर हाथापाई हुई. गुस्से में सचिन ने हिना का गला दबा कर उस की हत्या कर दी. इस के बाद घर में ही रखे एक सूटकेस में उस की लाश ठूंस कर भर दी और सूटकेस को किचन में रख दिया.
उस समय रात घिर आई थी. सचिन ने घर को ताला लगाया और बेटे शिवांश को ले कर अपनी सैंट्रो कार से निकल गया. सचिन सीधे गांधीनगर पहुंचा. प्रेमिका की हत्या कर परिवार के साथ सामान्य हो गया सचिन.
वह गांधीनगर के पीथापुर की स्वामिनारायण गौशाला को जानता था, क्योंकि वह गांधीनगर में रहने के दौरान इसी गौशाला से दूध, घी लेने जाता था. सचिन रात में उसी गौशाला के पास पहुंचा. उस समय रात होने से सड़क सुनसान थी.
गौशाला से कुछ दूरी पर उस ने अपनी कार खड़ी कर दी. फिर मासूम बेटे शिवांश को गोद में ले कर वह दबेपांव गौशाला के गेट पर पहुंचा. उस समय रात के 9 बज कर 20 मिनट का समय था. उस ने शिवांश को गौशाला के गेट के सामने सड़क पर बैठाया और तेजी से उलटे पांव अपनी कार में बैठ कर रफूचक्कर हो गया.
सचिन अपनी प्रेमिका की हत्या करने और अपने बच्चे को लावारिस छोड़ने के बाद अपने घर पहुंचा और पत्नी, बच्चे व मातापिता के साथ सैंट्रो कार से दशहरा मनाने के लिए उत्तर प्रदेश के लिए निकल पड़ा.
सचिन अपने परिवार में ऐसा व्यवहार कर रहा था कि कुछ हुआ ही नहीं है. उस ने अपनी पत्नी व मातापिता पर भी कुछ जाहिर नहीं होने दिया.
जानकारी होने पर गांधीनगर पुलिस ने कोटा में सचिन को गिरफ्तार कर लिया. संतान प्राप्ति के लिए लोग देवीदेवताओं की पूजा करते हैं. लेकिन एक पत्थरदिल पिता की जो शर्मनाक करतूत सामने आई, उस से मजबूत दिल वाले भी कांप गए.
उस ने पहले उस की मां का कत्ल किया और फिर अपने ही मासूम बेटे से छुटकारा पाने के लिए रात के अंधेरे में सुनसान सड़क पर छोड़ दिया. आवारा कुत्ते या अन्य कोई हिंसक पशु उसे कोई नुकसान पहुंचाता, उस से पहले ही वह सुरक्षित हाथों में पहुंच गया.
जांच के दौरान सचिन के पड़ोसियों ने बताया कि सचिन के घर का दरवाजा केवल कचरा वाले के लिए खुलता था. सभी उन्हें पतिपत्नी समझते थे. शिवांश का जन्म 10 दिसंबर, 2020 को अहमदाबाद के बोपल स्थित एक अस्पताल में हुआ था.
मृतका के पिता महबूब पेथानी सोमवार 11 अक्तूबर को एसएसजी हौस्पिटल में बेटी का शव लेने पहुंचे.
सचिन के खिलाफ बड़ोदरा के बापोद थाने में हत्या की रिपोर्ट गांधीनगर के इंसपेक्टर की शिकायत पर दर्ज की गई. जिस की जांच बापोद के थानाप्रभारी यू.जे. जोशी कर रहे हैं. जबकि सचिन पर पहले ही अपहरण भादंवि की धारा 363 और बच्चे को छोड़ने की धारा 317 के तहत मामला दर्ज है.
गांधीनगर पुलिस ने आरोपी सचिन को 11 अक्तूबर को न्यायालय के समक्ष पेश किया. जहां से उसे 14 अक्तूबर तक पुलिस रिमांड पर भेज दिया गया.
गांधीनगर के पुलिस उपाधीक्षक एम.के. राणा के अनुसार सोमवार को अदालत में पेश किए जाने से पहले फोरैंसिक साइंस लैबोरेटरी के विशेषज्ञों ने आरोपी सचिन के फिंगरप्रिंट व नाखूनों के नमूने के साथ ही डीएनए का नमूना लिए, ताकि पता लगाया जा सके कि वह बच्चे का पिता है या नहीं. इस के अलावा अन्य फोरैंसिक एविडेंस जुटाने का कार्य किया गया. शिवांश को फिलहाल शिशुगृह में रखा गया है.
10 दिसंबर, 2021 को शिशुगृह में शिवांश का पहला जन्मदिन मनाया गया. इस अवसर पर बच्चे से केक भी कटवाया गया.
सचिन ने अपना हंसताखेलता परिवार उजाड़ने के साथ ही एक मासूम की जिंदगी दांव पर लगा दी. बच्चे से मां की गोद उस का आंचल और बचपन छीन लिया. उस मासूम को इस की कीमत ताउम्र चुकानी पड़ेगी.
इंसानियत को शर्मसार करने और 2 नावों में सवार होने पर सचिन को आखिर डूबना तो था ही. अब अपने कृत्यों के लिए उसे सलाखों के पीछे जिंदगी बितानी होगी.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
विमी के यहां से लौटते ही अचला ने अपने 2 कमरों के फ्लैट का हर कोने से निरीक्षण कर डाला था.विमी का फ्लैट भी तो इतना ही बड़ा है पर कितना खूबसूरत और करीने का लगता है.
छोटी सी डाइनिंग टेबल, बेडरूम में सजा हुआ सनमाइका का डबलबेड, खिड़कियों पर झूलते भारी परदे कितने अच्छे लगते हैं. उसे भी अपने घर में कुछ तबदीली तो करनी ही होगी. फर्नीचर के नाम पर घर में पड़ी मामूली कुरसियां और खाने के लिए बरामदे में रखी तिपाई को देखते हुए उस ने निश्चय कर ही डाला था. चाहे अशोक कुछ भी कहे पर घर की आवश्यक वस्तुएं वह खुद खरीदेगी. लेकिन कैसे? यहीं पर उस के सारे मनसूबे टूट जाते थे.
तनख्वाह कटपिट कर मिली 1 हजार रुपए. उस में से 400 रुपए फ्लैट का किराया, दूध, राशन. सबकुछ इतना नपातुला कि 10-20 रुपए बचाना भी मुश्किल. क्या छोड़े, क्या जोड़े? अचला का सिर भारी हो चला था.
कालेज में गृह विज्ञान उस का प्रिय विषय था. गृहसज्जा में तो उस की विशेष रुचि थी. तब कितनी कल्पनाएं थीं उस के मन में. जब अपना एक घर होगा, तब वह उसे हर कोने से निखारेगी. पर अब…
उस दिन उस ने सजावट के लिए 2 मूर्तियां लेनी चाही थीं, पर कीमत सुनते ही हैरान रह गई, 500 रुपए.
अशोक धीमे से मुसकरा कर बोला था, ‘‘चलो, आगे बढ़ते हैं, यह तो महानगर है. यहां पानी के गिलास पर भी पैसे खर्च होते हैं, समझीं?’’
तब वह कुछ लजा गई थी. हंसी खुद पर भी आई थी.
उसे याद है, शादी से पहले यह सुन कर कि पति एक बड़ी फर्म में है, हजार रुपए तनख्वाह है, बढि़या फ्लैट है. सबकुछ मन को कितना गुदगुदा गया था. महानगर की वैभवशाली जिंदगी के स्वप्न आंखों में झिलमिला गए थे.
‘तू बड़ी भाग्यवान है, अची,’ सखियों ने छेड़ा था और वह मधुर कल्पनाओं में डूबती चली गई थी.
शादी में जो कुछ भारी सामान मिला था, उसे अशोक ने जिद कर के घर पर ही रखवा दिया था. उस ने बड़े शालीन भाव से कहा था, ‘‘इतना सब कहां ढोते रहेंगे, यहीं रहने दो. अंजु के विवाह में काम आ जाएगा. मां कहां तक खरीदेंगी. यही मदद सही.’’
सास की कृतज्ञ दृष्टि तब कुछ सजल हो आई थी. अचला को भी यही ठीक लगा था. वहां उसे कमी ही क्या है? सब नए सिरे से खरीद लेगी.
पर पति के घर आने के बाद उस के कोमल स्वप्न यथार्थ के कठोर धरातल से टकरा कर बिखरने लगे थे.
अशोक की व्यस्त दिनचर्या थी. सुबह 8 बजे निकलता तो शाम को 7 बजे ही घर लौटता. 2 कमरों में इधरउधर चहलकदमी करते हुए अचला को पूरा दिन बिताना पड़ता था. उस पूरे दिन में वह अनेक नईनई कल्पनाओं में डूबी रहती. इच्छाएं उमड़ पड़तीं. इस मामूली चारपाई के बदले यहां आधुनिक डिजाइन का डबलबेड हो, डनलप का गद्दा, ड्राइंगरूम में एक छोटा सा दीवान, जिस पर मखमली कुशन हो. रसोईघर के लिए गैस का चूल्हा तो अति आवश्यक है, स्टोव कितना असुविधा- जनक है. फिर वह बजट भी जोड़ने लगती थी, ‘कम से कम 5 हजार तो चाहिए ही इन सब के लिए, कहां से आएंगे?’
अपनी इन इच्छाओं की पूर्ति के लिए उस ने मन ही मन बहुत कुछ सोचा. फिर एक दिन अशोक से बोली, ‘‘सुनो, दिन भर घर पर बैठीबैठी बोर होती रहती हूं. कहीं नौकरी कर लूं तो कैसा रहे? दोचार महीने में ही हम अपना फ्लैट सारी सुखसुविधाओं से सज्जित कर लेंगे.’’
पर अशोक उसी प्रकार अविचलित भाव से अखबार पर नजर गड़ाए रहा. बोला कुछ नहीं.
‘‘तुम ने सुना नहीं क्या? मैं क्या दीवार से बोल रही हूं?’’ अचला का स्वर तिक्त हो गया था.
‘‘सब सुन लिया. पर क्या नौकरी मिलनी इतनी आसान है? 300-400 रुपए की मिल भी गई तो 100-50 तो आनेजाने में ही खर्च हो जाएंगे. फिर जब पस्त हो कर शाम को घर लौटोगी तो यह ताजे फूल सा खिला चेहरा चार दिन में ही कुम्हलाया नजर आने लगेगा.’’
अशोक ने अखबार हटा कर एक भाषण झाड़ डाला.
सुन कर अचला का चेहरा बुझ गया. वह चुपचाप सब्जी काटती रही. अशोक ने ही उसे मनाने के खयाल से फिर कहा, ‘‘फिर ऐसी जरूरत भी क्या है तुम्हें नौकरी की? छोटी सी हमारी गृहस्थी, उस के लिए जीतोड़ मेहनत करने को मैं तो हूं ही. फिर कम से कम कुछ दिन तो सुखचैन से रहो. अभी इतना तो सुकून है मुझे कि 8-10 घंटे की मशक्कत के बाद घर लौटता हूं तो तुम सजीसंवरी इंतजार करती मिलती हो. तुम्हें देख कर सारी थकान मिट जाती है. क्या इतनी खुशी भी तुम अब छीन लेना चाहती हो?’’
अशोक ने धीरे से अचला का हाथ थाम कर आगे फिर कहा, ‘‘बोलो, क्या झूठ कहा है मैं ने?’’
तब अचला को लगा कि उस के मन में कुछ पिघलने लगा है. वह अपना सिर अशोक के कंधों पर रख कर मधुर स्वर में बोली, ‘‘पर तुम यह क्यों नहीं सोचते कि मैं दिन भर कितनी बोर हो जाती हूं? 6 दिन तुम अपने काम में व्यस्त रहते हो, रविवार को कह देते हो कि आज तो आराम का दिन है. मेरा क्या जी नहीं होता कहीं घूमनेफिरने का?’’
‘‘अच्छा, तो वादा रहा, इस बार तुम्हें इतना घुमाऊंगा कि तुम घूमघूम कर थक जाओ. बस, अब तो खुश?’’
अचला हंस पड़ी. उस के कदम तेजी से रसोईघर की तरफ मुड़ गए. बातचीत में वह भूल गई थी कि स्टोव पर दूध रखा है.
‘ठीक है, न सही नौकरी. जब अशोक को बोनस के रुपए मिलेंगे तब वह एक ही झोंक में सब खरीद लेगी,’ यह सोच कर उस ने अपने मन को समझा लिया था.
तभी अशोक ने उसे आश्चर्य में डालते हुए कहा, ‘‘जानती हो, इस बार हम शादी की पहली वर्षगांठ कहां मनाएंगे?’’
‘‘कहां?’’ उस ने जिज्ञासा प्रकट की.
‘‘मसूरी में,’’ जवाब देते हुए अशोक ने कहा.
‘‘क्या सच कह रहे हो?’’ अचला ने कौतूहल भरे स्वर में पूछा.
‘‘और क्या झूठ कह रहा हूं? मुझे अब तक याद है कि हनीमून के लिए जब हम मसूरी नहीं जा पाए थे तो तुम्हारा मन उखड़ गया था. यद्यपि तुम ने मुंह से कुछ कहा नहीं था, तो भी मैं ने समझ लिया था. पर अब हम शादी के उन दिनों की याद फिर से ताजा करेंगे.’’
कह कर अशोक शरारत से मुसकरा दिया. अचला नईनवेली वधू की तरह लाज की लालिमा में डूब गई.
‘‘पर खर्चा?’’ वह कुछ क्षणों बाद बोली.
‘‘बस, शर्त यही है कि तुम खर्चे की बात नहीं करोगी. यह खर्चा, वह खर्चा… साल भर यही सब सुनतेसुनते मैं तंग आ गया हूं. अब कुछ क्षण तो ऐसे आएं जब हम रुपएपैसों की चिंता न कर बस एकदूसरे को देखें, जिंदगी के अन्य पहलुओं पर विचार करें.’’
‘‘ठीक है, पर तुम तनख्वाह के रुपए मत…’’
‘‘हां, बाबा, सारी तनख्वाह तुम्हें मिल जाएगी,’’ अशोक ने दोटूक निर्णय दिया.
अचला का मन एकदम हलका हो गया. अब इस बंधीबंधाई जिंदगी में बदलाव आएगा. बर्फ…पहाड़…एकदूसरे की बांहों में बांहें डाले वे जिंदगी की सारी परेशानियों से दूर कहीं अनोखी दुनिया में खो जाएंगे. स्वप्न फिर सजने लगे थे.
रेलगाड़ी का आरक्षण अशोक ने पहले से ही करा लिया था. सफर सुखद रहा. अचला को लगा, जैसे शादी अभी हुई है. पहली बार वे लोग हनीमून के लिए जा रहे हैं. रास्ते के मनोरम दृश्य, ऊंचे पहाड़, झरने…सबकुछ कितना रोमांचक था.
उन्होंने देहरादून से टैक्सी ले ली थी. होटल में कमरा पहले से ही बुक था. इसलिए उन्हें मालूम ही नहीं हुआ कि वे इतना लंबा सफर कर के आए हैं. कमरे में पहुंचते ही अचला ने खिड़की के शीशों से झांका. घाटी में सिमटा शहर, नीलीश्वेत पहाडि़यां, घने वृक्ष बड़े सुहावने दिख रहे थे. तब तक बैरा चाय की ट्रे रख गया.
‘‘खाना खा लो, फिर घूमने चलेंगे,’’ अशोक ने कहा और चाय खत्म कर के वह भी उस पहाड़ी सौंदर्य को मुग्ध दृष्टि से देखने लगा.
खाना भी कितना स्वादिष्ठ था. अचला हर व्यंजन की जी खोल कर तारीफ करती रही. फिर वे दोनों ऊंचीनीची पहाडि़यां चढ़ते, हंसी और ठिठोली के बीच एकदूसरे का हाथ थामे आगे बढ़ते, कलकल करते झरने और सुखद रमणीय दृश्य देखते हुए काफी दूर चले गए. फिर थोड़ी देर दम लेने के लिए एक ऊंची चट्टान पर कुछ क्षणों के लिए बैठ गए.
‘‘सच, मैं बहुत खुश हूं, बहुत…’’
‘‘हूं,’’ अशोक उस की बिखरी लटों को संवारता रहा.
‘‘पर, एक बात तो तुम ने बताई ही नहीं,’’ अचला को कुछ याद आया.
‘‘क्या?’’ अशोक ने पूछा.
‘‘खर्चने को इतना पैसा कहां से आया? होटल भी काफी महंगा लगता है. किराया, खानापीना और घूमना, यह सब…’’
‘‘तुम्हें पसंद तो आया. खर्च की चिंता क्यों है?’’
‘‘बताओ न. क्यों छिपा रहे हो?’’
‘‘तुम्हें मैं ने बताया नहीं था. असल में बोनस के रुपए मिले थे.’’
‘‘क्या? बोनस के रुपए?’’ अचला बुरी तरह चौंक गई, ‘‘पर तुम तो कह रहे थे…’’ कहतेकहते उस का स्वर लड़खड़ा गया.
‘‘हां, 2 महीने पहले ही मिल गए थे. पर तुम इतना क्यों सोच रही हो? आराम से घूमोफिरो. बोनस के रुपए तो होते ही इसलिए हैं.’’
अचला चुप थी. उस के कदम तो अशोक के साथ चल रहे थे, पर मन कहीं दूर, बहुत दूर उड़ गया था. उस की आंखों में घूम रहा था वही 2 कमरों का फ्लैट. उस में पड़ी साधारण सी कुरसियां, मामूली फर्नीचर. ओफ, कितना सोचा था उस ने…बोनस के रुपए आएंगे तो वह घर की साजसज्जा का सब सामान खरीदेगी. दोढाई हजार में तो आसानी से पूरा घर सज्जित हो सकता था. पर अशोक ने सब यों ही उड़ा डाला. उसे खीज आने लगी अशोक पर.
अशोक ने कई बार टोका, ‘‘क्या सोच रही हो? यह देखो, बर्फ से ढकी पहाडि़यां. यही तो यहां की खासीयत है. जानती हो, इसीलिए मसूरी को पहाड़ों की रानी कहा जाता है.’’
पर अचला कुछ भी नहीं सुन पा रही थी. वह विचारों में डूबी थी, ‘अशोक ने उस के साथ यह धोखा क्यों किया? यदि वहीं कह देता कि बोनस के रुपयों से घूमने जा रहे हैं तो वह वहीं मना कर देती.’ उस का मन उखड़ता जा रहा था.
रात को भी वही खाना था, दिन में जिस की उस ने जी खोल कर तारीफ की थी. पर अब सब एकदम बेस्वाद लग रहा था. वह सोचने लगी, ‘बेमतलब कितना खर्च कर दिया. 100 रुपए रोज का कमरा, 40 रुपए में एक समय का खाना. इस से अच्छा तो वह घर पर ही बना लेती है. इस में है क्या. ढंग के मसाले तक तो सब्जी में पड़े नहीं हैं.’ उसे अब हर चीज में नुक्स नजर आने लगा था.
‘‘देखो, अब खर्च तो हो ही गया, क्यों इतना सोचती हो? रुपए और कमा लेंगे. अब जब घूमने निकले हैं तो पूरा आनंद लो.’’
रात देर तक अशोक उसे मनाता रहा था. पर वह मुंह फेरे लेटी रही. मन उखड़ गया था. उस का बस चलता तो उसी क्षण उड़ कर वापस चली जाती.
गुदगुदे बिस्तर पर पासपास लेटे हुए भी वे एकदूसरे से कितनी दूर थे. क्षण भर में ही सारा माहौल बदल गया. सुबह भी अशोक ने उसे मनाने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘चलो, घूम आएं. तुम्हारी तबीयत बहल जाएगी.’’
‘‘कह दिया न, मुझे अब यहां नहीं रहना है. तुम जो भी रुपए वापस मिल सकें ले लो और चलो.’’
‘‘क्या बेवकूफों की तरह बातें कर रही हो. कमरा पहले से ही बुक हो गया है. किराया अग्रिम दिया जा चुका है. अब बहुत किफायत होगी भी तो खानेपीने की होगी. क्यों सारा मूड चौपट करने पर तुली हो?’’ अशोक के सब्र का बांध टूटने लगा था.
पर अचला चाह कर भी अब सहज नहीं हो पा रही थी. वे पहाडि़यां, बर्फ, झरने, जिन्हें देखते ही वह उमंगों से भर उठी थी, अब सब निरर्थक लग रहे थे. क्यों हो गया ऐसा? शायद उस के सोचने- समझने की दृष्टि ही बदल गई थी.
‘‘ठीक है, तुम यही चाहती हो तो रात की बस से लौट चलेंगे. अब आइंदा कभी तुम्हें यह कहने की जरूरत नहीं है कि घूमने चलो. सारा मूड बिगाड़ कर रख दिया.’’
दिन भर में अशोक भी चिड़चिड़ा गया. अचला उसी तरह अनमनी सी सामान समेटती रही.
‘‘अरे, इतनी जल्दी चल दिए आप लोग?’’ पास वाले कमरे के दंपती विस्मित हो कर बोले.
पर बिना कोई जवाब दिए, अपना हैंडबैग कंधे पर लटकाए अचला आगे बढ़ती चली गई. अटैची थामे अशोक उस के पीछे था. बस तैयार खड़ी मिली. अटैची सीट पर रख अशोक धम से बैठ गया.
देहरादून पहुंच कर वे दूसरी बस में बैठ गए. अशोक को काफी देर से खयाल आया कि गुस्से में उस ने शाम का खाना भी नहीं खाया था. उस ने घड़ी देखी, 1 बज रहा था. नींद में आंखें जल रही थीं. पर सोने की इच्छा नहीं थी, वह खिड़की पर बांह रख सिर हथेलियों पर टिकाए या तो सो गया था या सोने का बहाना कर रहा था.
आते समय कितना चाव था. पर अब पूरी रात क्षण भर के लिए भी वे सो नहीं पाए थे. दोनों ही सबकुछ भूल कर अपनेअपने खयालों में गमगीन थे. इस तरह वे परस्पर कटेकटे से घर पहुंचे.
सुबह अशोक का उतरा हुआ पीला चेहरा देख कर अचला सहम गई थी. शायद वह बहुत गुस्से में था. उसे अब अपने किए पर कुछ ग्लानि अनुभव हुई. उस समय तो गुस्से में उस की सोचनेसमझने की शक्ति ही लुप्त हो गई थी. पर अब लग रहा था कि जो कुछ हुआ, ठीक नहीं हुआ. कम से कम अशोक का ही खयाल रख कर उसे सहज हो जाना चाहिए था. कितने उत्साह से उस ने घूमने का प्रोग्राम बनाया था.
कमरे में घुसते ही थकान ने शरीर को तोड़ डाला था, कुरसी पर धम से गिर कर वह कुछ भूल गई थी. कुछ देर बाद ही खयाल आया कि अशोक ने रात भर से बात नहीं की है. कहीं बिना कुछ खाए आफिस न चला गया हो, फिर उठी ही थी कि देखा अशोक चाय बना लाया है.
‘‘उठो, चाय पियोगी तो थकान दूर हो जाएगी,’’ कहते हुए अशोक ने धीरे से उस की ठुड्डी उठाई.
अपने प्रति अशोक के इस विनम्र प्यार को देख वह सबकुछ भूल कर उस के कंधे पर सिर रख कर सिसक पड़ी, ‘‘मुझे माफ कर दो. पता नहीं क्या हो जाता है.’’
‘‘अरे, यह क्या, गलती तो मेरी ही थी. यदि मुझे पता होता कि तुम्हें घर की चीजों का इतना अधिक शौक है तो घूमने का प्रोग्राम ही नहीं बनाते. अब ध्यान रखूंगा.’’
अशोक का स्नेह भरा स्वर उसे नहलाता चला गया. अपने 2 कमरों का घर आज उसे सारे सुखसाधनों से भरापूरा प्रतीत हो रहा था. वह सोचने लगी, ‘सबकुछ तो है उस के पास. इतना अधिक प्यार करने वाला, उस के सारे गुनाहों को भुला कर इतने स्नेह से मनाने वाला विशाल हृदय का पति पा कर भी वह अब तक बेकार दुखी होती रही है.’
‘‘नहीं, अब कुछ नहीं चाहिए मुझे. कुछ भी नहीं…’’ उस के होंठ बुदबुदा उठे. फिर अशोक के कंधे पर सिर रखे वह सुखद अनुभीति में खो गई.
राकेश ने कार रोकी और उतर कर सलोनी के घर का दरवाजा खटखटाया.
सलोनी ने दरवाजा खोलते ही कहा, ‘‘नमस्ते जीजाजी.’’
‘‘नमस्ते…’’ राकेश ने आंगन में घुसते हुए कहा, ‘‘क्या हाल है सलोनी?’’
‘‘बस, आप का ही खयाल दिल में है,’’ मुसकराते हुए सलोनी ने कहा.
कमरे में आ कर एक कुरसी पर बैठते हुए राकेश ने पूछा, ‘‘मामीजी दिखाई नहीं दे रही हैं… कहीं गई हैं क्या?’’
‘‘कल पास के एक गांव में गई थीं. वे एक घंटे में आ जाएंगी. कुछ देर पहले मां का फोन आया था. आप बैठो, तब तक मैं आप के लिए चाय बना देती हूं.’’
‘‘राजन तो स्कूल गया होगा?’’
‘‘हां, वह भी 2 बजे तक आ जाएगा,’’ कहते हुए सलोनी जाने लगी.
‘‘सुनो सलोनी…’’
‘‘हां, कहो?’’ सलोनी ने राकेश की तरफ देखते हुए कहा.
राकेश ने उठ कर सलोनी को अपनी बांहों में भर कर चूम लिया.
सलोनी ने कोई विरोध नहीं किया. कुछ देर बाद वह रसोई में चाय बनाने चली गई.
राकेश खुशी के मारे कुरसी पर बैठ गया.
राकेश की उम्र 35 साल थी. सांवला रंग, तीखे नैननक्श. वह यमुनानगर में अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी बबीता, 2 बेटे 8 साला राजू और 5 साला दीपू थे. राकेश प्रोपर्टी डीलर था.
सलोनी बबीता के दूर के रिश्ते के मामा की बेटी थी. वह जगतपुरा गांव में रहती थी. उस के पिताजी की 2 साल पहले खेत में सांप के काटने से मौत हो गई थी. परिवार में मां और छोटा भाई राजन थे. राजन 10वीं जमात में पढ़ रहा था. गांव में उन की जमीन थी. फसल से ठीकठाक गुजारा हो रहा था.
सलोनी को पता भी न चला कि कब राकेश उस के प्रति खिंच गया था.
एक दिन तो राकेश ने उस से कह दिया था, ‘सलोनी, तुम बहुत खूबसूरत हो. तुम्हारी आंखें देख कर मुझे नशा हो जाता है. दिल करता है कि हर समय तुम्हें अपने साथ रखूं.’
‘मुझे अपने साथ रखोगे तो बबीता दीदी को कब टाइम दोगे?’
‘उसे तो कई साल से टाइम दे रहा हूं. तुम मेरी जिंदगी में देर से आई हो. अगर पहले आती तो अपना बना लेता.’
‘बहुत अच्छे सपने देखते हो आप…’
‘मैं इस सपने को सच करना चाहता हूं.’
‘कैसे?’
‘यही तो समझ में नहीं आ रहा है अभी.’
इस के बाद सलोनी भी राकेश की ओर खिंचती चली गई. वह देखती थी कि राकेश की बहुत बड़ी कोठियां हैं. 2 कारें हैं. धनदौलत की कमी नहीं है. बबीता तो सीधीसादी है. वह घर में ही रहना ज्यादा पसंद करती है. अगर वह बबीता की जगह पर होती तो राकेश के साथ खूब घूमतीफिरती और ऐश करती.
राकेश जब चंडीगढ़ जाता तो सलोनी के साथ कभीकभी राजन को भी साथ ले जाता था. जब राजन साथ होता तो वे केवल घूमतेफिरते व खरीदारी करते थे.
जब कभी राकेश अकेली सलोनी को ले कर चंडीगढ़ जाता तो वे दोनों किसी छोटे होटल में कुछ घंटे के लिए रुकते थे. वहां राकेश उस से जिस्मानी रिश्ता बनाता था. इस के बाद सलोनी को कुछ खरीदारी कराता और शाम तक वे वापस लौट आते.
बबीता व राकेश के बीच कई बार सलोनी को ले कर बहस हुई, झगड़ा हुआ, पर नतीजा कुछ नहीं निकला. राकेश व सलोनी उसी तरह मिलते रहे.
एक दिन बबीता ने सलोनी को फोन कर दिया था, ‘सलोनी, तुझे शर्म नहीं आती जो अपनी बहन का घर उजाड़ रही है. कभी भी चंडीगढ़ चली जाती है घूमने के लिए.’
‘मैं अपने जीजा की साली हूं. साली आधी घरवाली होती है. आधी घरवाली जीजा के साथ नहीं जाएगी तो फिर किस के साथ जाएगी?’
‘आधी नहीं तू तो पूरी घरवाली बनने की सोच रही है.’
‘दीदी, मेरी ऐसी किस्मत कहां? और हां, मैं जीजाजी को बुलाने नहीं जाती, वे ही आते हैं मेरे पास. तुम उन को रोक लो न,’ सलोनी ने कहा था.
सलोनी की मां भी यह सब जानती थीं. पर वे मना नहीं करती थीं क्योंकि राकेश सलोनी पर खूब रुपए खर्च कर रहा था.
सलोनी कमरे में चाय व खाने का कुछ सामान ले कर लौटी.
चाय पीते हुए राकेश ने कहा, ‘‘चंडीगढ़ जा रहा हूं. एक पार्टी से बात करनी है. मैं ने सोचा कि तुम्हें भी अपने साथ ले चलूं.’’
‘‘आप ने फोन भी नहीं किया अपने आने का.’’
‘‘मैं ने सोचा था कि आज फोन न कर के तुम्हें सरप्राइज दूंगा.’’
‘‘तो मिल गया न सरप्राइज. मां भी नहीं हैं. सूना घर छोड़ कर मैं कैसे जाऊंगी?’’
‘‘कोई बात नहीं, मैं मामीजी के आने का इंतजार कर लेता हूं. मुझे कौन सी जल्दी है. तुम जरा मामीजी को फोन मिलाओ.’’
सलोनी ने फोन मिलाया. घंटी तो जाती रही, पर कोई जवाब नहीं मिला.
‘‘पता नहीं, मां फोन क्यों नहीं उठा रही?हैं,’’ सलोनी ने कहा.
‘‘कोई बात नहीं. मैं थोड़ी देर बाद चला जाऊंगा. अब चंडीगढ़ तुम्हारे बिना जाने को मन नहीं करता. अगर तुम आज न जा पाई तो 2 दिन बाद चलेंगे,’’ राकेश ने सलोनी की ओर देखते हुए कहा.
कुछ देर बाद सलोनी की मां आ गईं. वे राकेश को देख कर बहुत खुश हुईं और बोलीं, ‘‘और क्या हाल है बेटा? बच्चे कैसे हैं? बबीता कैसी है? कभी उसे भी साथ ले आया करो.’’
‘‘वह तो कहीं आनाजाना ही पसंद नहीं करती मामीजी.’’
‘‘पता नहीं, कैसी आदत है बबीता की,’’ कह कर मामी ने मुंह बिचकाया.
‘‘मामीजी, मैं चंडीगढ़ जा रहा हूं. सलोनी को भी साथ ले जा रहा हूं.’’
‘‘ठीक है बेटा. शाम को जल्दी आ जाना. सलोनी तुम्हारी बहुत तारीफ करती है कि मेरे जीजाजी बहुत अच्छे हैं. वे मेरा बहुत ध्यान रखते हैं.’’
‘‘सलोनी भी तो किसी से कम नहीं है,’’ राकेश ने मुसकरा कर कहा.
कुछ देर बाद राकेश सलोनी के साथ चंडीगढ़ पहुंच गया. एक होटल में कुछ घंटे मस्ती करने के बाद वे रोज गार्डन और उस के बाद झील पहुंच गए.
‘‘शाम हो चुकी है. वापस नहीं चलना है क्या?’’ सलोनी ने झील के किनारे बैठे हुए कहा.
‘‘जाने का मन नहीं कर रहा है.’’
‘‘क्या सारी रात यहीं बैठे रहोगे?’’
‘‘सलोनी के साथ तो मैं कहीं भी सारी उम्र रह सकता हूं.’’
‘‘बबीता दीदी से यह सब कह कर देखना.’
‘‘उस का नाम ले कर क्यों मजा खराब करती हो. सोचता हूं कि मैं हमेशा के लिए उसे रास्ते से हटवा दूं. दूसरा रास्ता है कि उस से तलाक ले लूं. उस के बाद हम दोनों खूब मजे की जिंदगी जिएंगे,’’ राकेश ने सलोनी का हाथ अपने हाथों में पकड़ कर कहा.
‘‘पहला रास्ता तो बहुत खतरनाक है. पुलिस को पता चल जाएगा और हम मजे करने के बजाय जेल में चक्की पीसेंगे.
‘‘बबीता से तलाक ले कर पीछा छुड़ा लो. वैसे भी वह तुम्हारे जैसे इनसान के गले में मरा हुआ सांप है,’’ सलोनी ने कहा.
अब सलोनी मन ही मन खुश हो रही थी कि बबीता से तलाक हो जाने पर राकेश उसे अपनी पत्नी बना लेगा. वह कोठी, कार और जायदाद की मालकिन बन कर खूब ऐश करेगी.
एक रैस्टोरैंट से खाना खा कर जब राकेश व सलोनी कार से चले तो रात के 8 बज रहे थे. राकेश ने बबीता व सलोनी की मां को मोबाइल फोन पर सूचना दे दी थी कि वे 2 घंटे में पहुंच रहे हैं.
रात के 12 बज गए. राकेश व सलोनी घर नहीं पहुंचे तो मां को चिंता हुई. मां ने सलोनी के मोबाइल फोन का नंबर मिलाया. ‘फोन पहुंच से बाहर है’ सुनाई दिया. राकेश का नंबर मिलाया तब भी यही सुनाई दिया.
कुछ देर बाद बबीता का फोन आया, ‘‘मामीजी, राकेश अभी तक चंडीगढ़ से नहीं लौटे हैं. वे आप के पास सलोनी के साथ आए हैं क्या? उन दोनों का फोन भी नहीं लग रहा है. मुझे तो बड़ी घबराहट हो रही?है.’’
‘‘घबराहट तो मुझे भी हो रही है बबीता. चंडीगढ़ से यहां आने में 2 घंटे भी नहीं लगते. सोचती हूं कि कहीं जाम में न फंस गए हों, क्योंकि आजकल पता नहीं कब जाम लग जाए. हो सकता है कि वे कुछ देर बाद आ जाएं,’’ मामी ने कहा.
‘पता नहीं क्यों मुझे बहुत डर लग रहा है. कहीं कुछ अनहोनी न हो गई हो.’
‘‘डर मत बबीता, सब ठीक ही होगा,’’ मामी ने कहा जबकि उन का दिल भी बैठा जा रहा था.
पूरी रात आंखोंआंखों में कट गई, पर राकेश व सलोनी वापस घर नहीं लौटे.
सुबह पूरे गांव में यह खबर आग की तरह फैल गई कि कल दोपहर सलोनी और राकेश चंडीगढ़ गए थे. रात लौटने की सूचना दे कर भी नहीं लौटे. उन का कुछ पता नहीं चल रहा है.
बबीता व मामी के साथ 3-4 पड़ोसी थाने पहुंचे और पुलिस को मामले की जानकारी दी. पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज कर ली.
पुलिस इंस्पैक्टर ने बताया, ‘‘रात चंडीगढ़ से यहां तक कोई हादसा नहीं हुआ है. यह भी हो सकता है कि वे दोनों कहीं और चले गए हों.
‘‘खैर, मामले की जांच की जाएगी. आप को कोई बात पता चले या कोई फोन आए तो हमें जरूर सूचना देना.’’
वे सभी थाने से लौट आए.
दिन बीतते चले गए, पर उन दोनों का कुछ पता नहीं चल सका.
जितने मुंह उतनी बातें. वे दोनों तो एकदूसरे के बिना रह नहीं सकते थे. वे तो चंडीगढ़ मजे करने के लिए जाते थे. राकेश का बस चलता तो सलोनी को दूसरी पत्नी बना कर घर में ही रख लेता. सलोनी तो उस की रखैल बनने को भी तैयार थी. सलोनी की मां ने तो आंखें मूंद ली थीं, क्योंकि घर में माल जो आ रहा था. नहीं तो वे अब तक सलोनी की शादी न करा देतीं.
2 महीने बीत जाने के बाद भी जब राकेश व सलोनी का कुछ पता नहीं चला तो सभी ने यह समझ लिया कि वे दोनों किसी दूसरे शहर में जा कर पतिपत्नी की तरह रह रहे होंगे. अब वे यहां कभी नहीं आएंगे.
एक साल बाद…
उस इलाके की 2 लेन की सड़क को चौड़ा कर के 4 लेन के बनाए जाने का प्रदेश सरकार की ओर से आदेश आया तो बहुत तेजी से काम शुरू हो गया.
2 साल बाद…
एक दिन सड़क किनारे मशीन द्वारा जमीन की खुदाई करने का काम चल रहा था तो अचानक मशीन में कुछ फंस गया. देखा तो वह एक सफेद रंग की कार थी जिस का सिर्फ ढांचा ही रह गया था. उस कार में 2 नरकंकाल भी थे. कार की नंबर प्लेट बिलकुल साफसाफ पढ़ी जा रही थी.
देखने वालों की भीड़ लग गई. पुलिस को पता चला तो पुलिस इंस्पैक्टर व कुछ पुलिस वाले भी वहां पहुंच गए. कार की प्लेट का नंबर पढ़ा तो पता चला कि वह कार राकेश की थी. वे 2 नरकंकाल राकेश व सलोनी के थे. बबीता, सलोनी की मां व भाई भी वहां पहुंच गए. वे तीनों रो रहे थे.
पुलिस इंस्पैक्टर के मुताबिक, उस रात राकेश व सलोनी कार से लौट रहे होंगे. पहले उस जगह सड़क के किनारे बहुत दूर तक दलदल थी. हो सकता है कि कार चलाते समय नींद में या किसी को बचाते हुए या किसी दूसरी वजह से उन की कार इस दलदल में जा गिरी. सुबह तक कार दलदल में पूरी तरह समा गई. किसी को पता भी नहीं चला. धीरेधीरे यह दलदल सूख गया. उन दोनों की कार में ही मौत हो गई.
अगर सड़क न बनती तो किसी को कभी पता भी न चलता कि वे दोनों अब इस दुनिया में नहीं हैं. दोनों के परिवारों को हमेशा यह उम्मीद रहती कि शायद कभी वे लौट कर आ जाएं. पर अब सभी को असलियत का पता चल गया है कि वे दोनों लौट कर घर क्यों नहीं आए.
अब बबीता व सलोनी की मां के सामने सब्र करने के अलावा कुछ नहीं बचा था.
शाहिदा ने मोबाइल फोन पर फेसबुक में झांका कि कुछ नया तो नहीं और फिर कुलसुम को दिखाया कि वह अपनी डीपी में कैसी लग रही है. इस के बाद वह बोली, ‘‘हां कुलसुम, कल जो लड़का तुम्हें मैट्रीमोनियल साइट के मारफत मिला था और उस के घर वाले आए थे, उस में क्या हुआ?’’
‘‘और तो सब ठीक है शाहिदा आंटी,’’ कुलसुम बोली, ‘‘जरा एक अड़चन है.’’
‘‘कैसी अड़चन?’’ कुलसुम ने मोबाइल बंद किया और फिर गला साफ करते हुए बोली, ‘‘आंटी, यों तो लड़का खातेपीते घर का है, हैल्दी भी है और एमएनसी में नौकरी भी है, लेकिन…’’
कुलसुम कुछ कहतेकहते रुक गई, तो शाहिदा ने ही बात आगे बढ़ाई, ‘‘क्या चालचलन ठीक नहीं है?’’
‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. लड़का बहुत शरीफ है. पर एक तो पापा का हाथ तंग है और लड़का तलाकशुदा है. पहली से उस का 3-4 साल का बच्चा भी है. कस्टडी तो मां के पास है, पर हर हफ्ते एक रात के लिए आता है, इसलिए जरा हिचकिचाहट हो रही है.’’
इस बार शाहिदा उठी और खिड़की के बाहर खड़ी हो कर कुछ सोचने लगी. फिर आ कर बोली, ‘‘देखो कुलसुम, तुम पैसों की परवाह मत करो. पापा को कहो कि जितनी रकम चाहिए, मुझ से ले लें. धीरेधीरे अदा कर देना. और तलाकशुदा जैसी जरा सी बात के लिए अच्छे लड़के को मत ठुकराओ. बच्चे को एक और मां का प्यार दे कर अपने पति का दिल जीतो.’’
कुलसुम ने शाहिदा की ओर देखा और बोली, ‘‘शाहिदा आंटी, एक सवाल पूछूं?’’
शाहिदा ने एक सवालिया निगाह से देखा, तो कुलसुम ने कहा, ‘‘माफ करें, मेरा सवाल आप की निजी जिंदगी से जुड़ा है. आप किसी भी लड़की की शादी कराने में बहुत ज्यादा दिलचस्पी लेती हैं, रुपएपैसों की मदद भी करती हैं. मेरी कई सहेलियों के साथ आप ने ऐसा किया है. लेकिन मालदार और अच्छी नौकरी के बावजूद भी आप कुंआरी रह गईं, ऐसा क्यों हुआ?’’
अचानक अधेड़ उम्र की शाहिदा की आंखें छलछला आईं. कुलसुम को लगा कि शायद उस ने यह सब पूछ कर अच्छा नहीं किया. वह उठते हुए बोली, ‘‘आंटी माफ करना, शायद मैं कुछ गलत पूछ गई. आप का दिल दुखाने का मेरा इरादा कतई नहीं था.’’
‘‘नहींनहीं, बैठो कुलसुम. मैं आज तुम्हें सबकुछ बताऊंगी,’’ शाहिदा एक टिशू से आंखें पोंछती हुई बोलीं, ‘‘मैं अपने अमीर मांबाप की एकलौती लड़की थी. लाड़प्यार से पलने की वजह से और अमीर घराना होने से थोड़ा गुमान मुझ में भी आ गया था.
‘‘जब मैं 15 साल की हुई, तो मैं ने पाया कि चौकीदार का जवान लड़का, जो देखने में भलाचंगा था, मेरी तरफ खिंचने लगा था और एक दिन मौका पा कर उस ने मेरा हाथ पकड़ कर कहा था, ‘शाहिदा, मैं आप को दिलोजान से चाहता हूं. मैं आप के लिए कुछ भी कर सकता हूं.’
‘‘मैं ने फुरती से अपना हाथ छुड़ा कर एक चांटा उस के गाल पर मारा और कहा, ‘तो डूब मर चुल्लू भर पानी में. अपनी औकात देखी है. हमारे टुकड़ों पर पलने वाला हम पर ही डोरे डाल रहा है.’
‘‘वह बेचारा फिर कभी दिखाई नहीं दिया. अपनी जिंदगी में आए प्यार के इस पाले इजहार को मैं बिलकुल भूल गई. जब मैं 19 साल की हुई, तो रिश्ते के एक चाचा ने अपने बेटे से मेरा निकाह करने की बात चलाई. उन के बेटे में कोई कमी नहीं थी. हां, यह बात जरूर थी कि वे हमारी बराबरी के नहीं थे. फिर लड़का मामूली किरानी था. मुझ पर उन दिनों एमबीए करने का भूत सवार था.
‘‘उन की बात सुन कर अम्मी भी भड़क उठी थीं, ‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यह कहने की. कम से कम अपनी औकात तो देखी होती. फिर आप के साहबजादे करते क्या हैं, किरानीगीरी. मेरी बेटी के 12वीं में 95 परसैंट मार्क्स आए थे. वैसे भी, ऐसी हैसियत के तो हमारे यहां नौकरचाकर हैं. जितनी तनख्वाह आप के बेटे को मिलती होगी, उतने की तो आज भी शाहिदा एक पोशाक पहन कर फाड़ डालती है. अगर अच्छी नौकरी मिल गई तो न जाने क्या होगा.’
‘‘वे लोग मुंह लटकाए वापस चले गए. अम्मी की बातें मुझे बहुत अच्छी लगी थीं. मैं ने मन में सोचा कि अच्छा फटकारा. चले आए थे मुंह उठा कर.
‘‘तीसरी बार एक अच्छे घर से रिश्ता आया. उस समय मैं 25 साल की हो चुकी थी. लड़के वाले हमारी टक्कर के तो न थे, लेकिन फिर भी अच्छे पैसे वाले थे. लड़का भी ठीक था. पर एक सरकारी कंपनी में इंजीनियर था. उस के पिता का कहना था कि हम बरात में बाजा नहीं लाएंगे. शोरशराबों से क्या होता है? वे समाज सुधारक थे और शादीब्याह सीधी तरह करने वाले थे.
‘‘इस बार मेरे अब्बा भड़क गए थे, ‘अमा लड़की ब्याहने आना चाहते हो या मातमपुर्सी करने. दुनिया के लोग बेवकूफ हैं, जो इतनी धूमधाम से शादियां करते हैं?’
‘‘मैं भी एक ग्रेट इंडियन वैडिंग चाहती थी, जिस में खूब धूमधड़ाम हो.
‘‘बहरहाल, बात बनी नहीं और वह रिश्ता भी इनकार कर दिया गया. अगला रिश्ता भी इनकार कर दिया गया. यह रिश्ता भी एक अच्छे घराने से आया था. लड़के ने मुझ से कहा कि पापा को कहो कि कोई सामान न दें. मेरी बचत, उस की बचत और दहेज के सामान की बचत से 1 करोड़ हो जाएंगे और वह स्टार्टअप शुरू करेगा. हम बराबर के पार्टनर तो होंगे ही.
‘‘अम्मी ने गाल फुलाते हुए कहा, ‘क्या हमारे पैसों की और बेटी के पैसों की उम्मीद पर ही हाथ पर हाथ धरे अभी तक लड़का बैठा हुआ है?’
‘‘इस तरह वह रिश्ता भी न हो सका. मैं अब तक एक एमएनसी में अच्छा कमाने लगी थी. मेरी खुद की चाहत अच्छे पढ़ेलिखे लड़के की होने लगी.
‘‘मेरी उम्र के 28वें साल में मौका आया. एक सांवले लड़के ने मुझे प्रपोज किया. वह एक दूसरी कंपनी में डायरैक्टर के पद पर था. वह न तो काला ही था, न साउथ इंडियनों की तरह. न मुझे पसंद था और न घर वालों को. मन ही मन मैं उसे काला बंदर कह कर हंस दी थी.
‘‘हालांकि उम्र के इस दौर में मुझे सोचना चाहिए था कि आखिर किसी न किसी को तो हमसफर बना ही लेना चाहिए. लड़की की उम्र निकल जाए तो फिर सबकुछ हाथ से निकल जाता है. और बेशुमार दौलत भी उम्र वापस नहीं ला सकती. पर, मैं अपने मांबाप की लाड़ली अपनी नौकरी और दौलत के नशे में चूर इस पर गहराई से न सोच सकी.
‘‘उम्र के 30वें साल में एक से शादी की बात चली. उस में कहीं कोई कमी न थी. लड़का डिप्टी कलक्टर था. हम कई बार मिले. एक बार रात भी बिताई. उस रात देखा कि लड़के वाले करीबकरीब हमारी टक्कर के थे. पर लड़का जरा सा लंगड़ाता था.
‘‘अम्मी को बताया तो उन्होंने कहा, ‘भई, पैसा और रसूख तो आताजाता रहता?है. लेकिन कम से कम लड़का तो ऐसा हो, जिस के साथ लड़की घूमफिर सके.’
‘‘मुझे भी लगा कि कहीं टांग में कैंसर वगैरह न हो. जब सहेलियों को बताया तो वे बोलीं, ‘चल कर ले न तैमूर लंग से शादी. अरे, उसे कहो कहीं लंगड़ीलूली लड़की देखे.’
‘‘फिर कई और रिश्ते आए. पर किसी में मुझे कमी आई, किसी में अम्मी को कमी नजर आई, तो किसी में मेरी सहेलियों को. मेरी सब सहेलियां शादीशुदा हो चुकी थीं और उन के खाविंद मुझ पर मरते थे. शायद वे लड़कियां चाहती थीं कि मेरी शादी ही न हो. फिर लड़के मिलने कम हो गए. मैं उम्र की 34वीं मंजिल पार कर गई.
‘‘उम्र का यह वह ढलान था, जब लड़की को शादी कर लेनी चाहिए. पर दौलत के नशे में मैं ने कुछ न सोचा. उम्र के इस मोड़ पर मैं भी एक मर्द साथी की कमी महसूस कर रही थी और मैं ने तय कर लिया था कि अब किसी भी रिश्ते के आने पर, चाहे वह आम आमदनी वाले का ही क्यों न हो, मैं टांग नहीं अड़ाऊंगी. 2-3 से मेलजोल भी हुआ, पर रात को पता लगा कि वे तो सब शादीशुदा हैं या आधेअधूरे.
‘‘मैं 36 साल की थी, तब एक रिश्ता आया. लड़का तलाकशुदा था. उस की घरवाली भाग गई थी. 2 बच्चे थे. मैं ने इस बार सोच लिया था कि तलाकशुदा है तो क्या हुआ? बच्चे हैं तो क्या हुआ? मैं सब संभाल लूंगी.
‘‘औरत की समझदारी से ही गृहस्थी चलती है. मैं भी बच्चों को प्यार दूंगी. घर को खुशहाल बना दूंगी. पर बात मुझ तक आने का मौका ही नहीं मिला. अम्मीजान तो मुंहफट थीं ही, सो रिश्ते लाने वाले के मुंह पर ही कह मारा, ‘तलाकशुदा है तो कहीं बेवा या तलाकशुदा को तलाशो. हमारी लड़की में कोई कमी थोड़े ही है, जो सैकंडहैंड के मत्थे मढ़ दें.’
‘‘और बस यही आखिरी रिश्ता था. फिर कोई रिश्ता नहीं आया. कुछ ही दिनों में मांबाप ढेर सी दौलत छोड़ कर मर गए. मैं नौकरी में आगे बढ़ती गई, पर मैं एक मर्द साथी के लिए बेचैन हो उठी थी. जो मिलते थे, केवल 2-4 रात बिताते. एक मिला, पर रात को बिस्तर पर हैवान होने लगा. मैं रात को सिर्फ नाइटी में उस के घर से निकल कर भागी थी.
‘‘आखिर एक दिन हिम्मत कर के अपने बूढ़े चौकीदार से पूछा, ‘बाबा, आप का लड़का था न रमजानी. कहां है वह?’
‘‘बूढ़े चौकीदार ने मुसकरा कर कहा, ‘बेटी, वह मुंबई में गोदी में मजदूरी करता है. अचानक उस की याद कैसे आ गई.’ ‘‘मैं ने अपनी आंखें बचाते हुए कहा, ‘यों ही पूछा था. शादी तो अब कर ही ली होगी.’
‘‘बूढ़ा चौकीदार हंसा और बोला, ‘शादी… अब तो उस के बच्चे भी शादी लायक हो गए हैं.’
‘‘फिर मुझे पता चला कि उन सभी लड़कों की शादियां हो चुकी हैं, जिन के लिए मेरे साथ तार जुड़ने आए थे. और अब सभी बालबच्चों में घिर कर जिंदगी गुजार रहे हैं. और मैं अपने और अपने मांबाप की झूठी शान की वजह से उन मंजिलों को पार कर गई थी, जो एक बार छूट जाने के बाद फिर कभी नहीं मिलती.
‘‘मैं इस इंतजार में रही कि अब जो भी रिश्ता आएगा, उसे फौरन मंजूर कर लूंगी, पर फिर कोई रिश्ता नहीं आया और मैं रिश्ते के इंतजार में उम्र को पीछे छोड़ने लगी.
‘‘अब आईने में खड़ी अपनेआप को देखती हूं कि मेरे सिर के बाल सफेद हो रहे हैं. चेहरा भी कुछ ढीला पड़ रहा है. मैं समझ गई हूं कि अब किसी रिश्ते का इंतजार बेकार है. एक औरत के रूप में मैं वह सबकुछ खो चुकी थी, जो उम्र के एक खास पड़ाव तक ही रहता है. बस, फिर मैं अपने अकेलेपन में कैद हो कर रह गई.’’
अपनी कहानी सुना कर शाहिदा ने अपनी आंखों को टिशू से एक बार फिर साफ किया. उन्होंने अब चाय का ठंडा होता कप उठाया. थोड़ी देर तक चुप रहने के बाद वे बोलीं,
‘‘कुलसुम, औरत बिना मर्द के बिलकुल बेजान है. मैं नहीं चाहती कि मेरी तरह कोई और लड़की वह सुख झेले, जो मैं झेल रही हूं. तुम फौरन जा कर अम्मीअब्बा को मेरे पास भेज दो. मैं उन्हें समझाऊंगी.’’
कुलसुम ने अपनी अम्मीअब्बा को शाहिदा के पास भेजा. शाहिदा ने उन्हें तलाकशुदा के साथ शादी करने के लिए राजी कर लिया. कुलसुम की शादी में शाहिदा ने उधार की रकम तो दी ही, अपनी तरफ से बहुतकुछ खर्च भी किया. कुलसुम को विदा करा कर जब वे अपने घर आई, तो उन्हें ऐसा लगा मानो उन की ही शादी हो गई है.
अंधविश्वास, पुरातनपंथी और कट्टरवादी सोच ने न जाने कितनों का घर उजाड़ा है. शुभा की आंखों पर भी न जाने क्यों इन्हीं सब का परदा पड़ा हुआ था, जिस का परिणाम इतना भयावह होगा, इस की वह कल्पना भी नहीं कर सकती थी.
लेखन कला मुझे नहीं आती, न ही वाक्यों के उतारचढ़ाव में मैं पारंगत हूं. यदि होती तो शायद मुझे अपनी बात आप से कहने में थोड़ी आसानी रहती. खुद को शब्दों में पिरोना सचमुच क्या इतना मुश्किल होता है?
बाहर पूनम का चांद मुसकरा रहा है. नहीं जानती कि वह मुझ पर, अपनेआप पर या किसी और पर मुस्कुरा रहा है. मैं तो बस इतना जानती हूं कि वह भी पूनम की ऐसी ही एक रात थी जब मैं अस्पताल के आईसीयू के बाहर बैठी अपने गुनाहों के लिए बेटी से माफी मांग रही थी, ‘मुझे माफ कर दे बेटी. पाप किया है मैं ने, महापाप.’
मानसी, मेरी इकलौती बेटी, भीतर आईसीयू में जीवन और मौत के बीच झूल रही है. उस ने आत्महत्या करने की कोशिश की, यह तो सभी जानते हैं पर यह कोई नहीं जानता कि उसे इस हाल तक लाने वाली मैं ही हूं. मैं ने उस मासूम के सामने कोई और रास्ता छोड़ा ही कहां था?
कहते हैं आत्महत्या करना कायरों का काम है पर क्या मैं कायर नहीं जो भविष्य की दुखद घटनाओं की आशंका से वर्तमान को ही रौंदती चली आई?
हर मां का सपना होता है कि वह अपनी नाजों से पाली बेटी को सोलहशृंगार में पति के घर विदा करे. मैं भी इस का अपवाद नहीं थी. तिनकातिनका जोड़ कर जैसे चिड़िया अपना घोंसला बनाती है. वैसे ही मैं भी मानसी की शादी के सपने संजोती गई. वह भी मेरी अपेक्षाओं पर हमेशा खरी उतरी. वह जितनी सुंदर थी उतनी ही मेधावी भी. शांत, सुसभ्य, मृदुभाषिणी मानसी घरबाहर सब की चहेती थी. एक मां को इस से ज्यादा और क्या चाहिए?
‘देखना अपनी लाडो के लिए मैं चांद सा दूल्हा लाऊंगी,’ मैं सुशांत से कहती तो वे मुसकरा देते.
उस दिन मानसी की 12वीं कक्षा का परिणाम आया था. वह पूरे स्टेट में फर्स्ट आईर् थी. नातेरिश्तेदारों की तरफ से बधाइयों का तांता लगा हुआ था. हमारे पड़ोसी व खास दोस्त विनोद भी हमारे घर आए थे मिठाई ले कर.
‘मिठाई तो हमें खिलानी चाहिए भाईसाहब, आप ने क्यों तकलीफ की,’ सुशांत ने गले मिलते हुए कहा तो वे बोले, ‘हां हां, जरूर खाएंगे. सिर्फ मिठाई ही क्यों? हम तो डिनर भी यहीं करेंगे, लेकिन पहले आप मेरी तरफ से मुंह मीठा कीजिए. रोहित का मैडिकल कालेज में दाखिला हो गया है.’
‘फिर तो आज दोहरी खुशी का दिन है. मानसी ने 12वीं में टौप किया है. मैं ने मिठाई की प्लेट उन की ओर बढ़ाई.’
‘आप चाहें तो हम यह खुशी तिहरी कर लें,’ विनोद ने कहा.
‘हम समझे नहीं,’ मैं अचकचाई.
‘अपनी बेटी मानसी को हमारे आंचल में डाल दीजिए. मेरी बेटी की कमी पूरी हो जाएगी और आप की बेटे की,’ मिसेज विनोद बड़ी मोहब्बत से बोली.
‘देखिए भाभीजी, आप के विचारों की मैं इज्जत करती हूं, लेकिन मुंह रहते कोई नाक से पानी नहीं पीता. शादीविवाह अपनी बिरादरी में ही शोभा देते हैं,’ इस से पहले कि सुशांत कुछ कहते मैं ने सपाट सा उत्तर दे दिया.
‘जानती हूं मैं. सदियों पुरानी मान्यताएं तोड़ना आसान नहीं होता. हमें भी काफी वक्त लगा है इस फैसले तक पहुंचने में. आप भी विचार कर देखिएगा,’ कहते हुए वे लोग चले गए.
‘इस में हर्ज ही क्या है शुभा? दोनों बच्चे बचपन से एकदूसरे को जानते हैं, समझते हैं. सब से बढ़ कर बौद्धिक और वैचारिक समानता है दोनों में. मेरे खयाल से तो हमें इस रिश्ते के लिए हां कह देनी चाहिए.’ सुशांत ने कहा तो मेरी त्योरियां चढ़ गईं.
‘तुम्हारा दिमाग तो नहीं फिर गया है. आलते का रंग चाहे जितना शोख हो, उस का टीका नहीं लगाते. कहां वो, कहां हम उच्चकुलीन ब्राह्मण. हमारी उन की भला क्या बराबरी? दोस्ती तक तो ठीक है, पर रिश्तेदारी अपनी बराबरी में होनी चाहिए. मुझे यह रिश्ता बिलकुल पसंद नहीं है.’
‘एक बार खुलेमन से सोच कर तो देखो. आखिर इस में बुराई ही क्या है? दीपक ले कर ढूंढ़ेंगे तो भी ऐसा दामाद हमें नहीं मिलेगा’, सुशांत ने कहा.
‘मुझे जो कहना था मैं ने कह दिया. तुम्हें इतना ही पसंद है तो कहीं से मुझे जहर ला दो. अपने जीतेजी तो मैं यह अनर्थ नहीं होने दूंगी. अरे, रिश्तेदार हैं, समाज है उन्हें क्या मुंह दिखाएंगे. दस लोग दस तरह के सवाल पूछेंगे, क्या जवाब देंगे उन्हें हम?’
मैं ने कहा तो सुशांत चुप हो गए. उस दिन मैं ने मानसी को ध्यान से देखा. वाकई मेरी गुडि़या विवाहयोग्य हो गई थी. लिहाजा, मैं ने पुरोहित को बुलावा भेजा.
‘बिटिया की कुंडली में तो घोर मंगल योग है बहूरानी. पतिसुख से यह वंचित रहेगी. पुरोहित के मुख से यह सुन कर मेरा मन अनिष्ट की आशंका से कांप उठा. मैं मध्यवर्गीय धर्मभीरू परिवार से थी और लड़की के मंगला होने के परिणाम से पूरी तरह परिचित थी. मैं ने लगभग पुरोहित के पैर पकड़ लिए, ‘कोई उपाय बताइए पुरोहितजी. पूजापाठ, यज्ञहवन, मैं सबकुछ करने को तैयार हूं. मुझे कैसे भी इस मंगल दोष से छुटकारा दिलाइए.’
‘शांत हो जाइए बहूरानी. मेरे होते हुए आप को परेशान होने की बिलकुल भी जरूरत नहीं है,’ उन्होंने रसगुल्ले को मुंह में दबाते हुए कहा, ‘ऐसा कीजिए, पहले तो बिटिया का नाम मानसी के बजाय प्रिया रख दीजिए.’
‘ऐसा कैसे हो सकता है पंडितजी. इस उम्र में नाम बदलने के लिए न तो बिटिया तैयार होगी न उस के पापा. वे कुंडली मिलान के लिए भी तैयार नहीं थे.’
‘तैयार तो बहूरानी राजा दशरथ भी नहीं थे राम वनवास के लिए.’ पंडितजी ने घोर दार्शनिक अंदाज में मुझे त्रियाहट का महत्त्व समझाया व दक्षिणा ले कर चलते बने.
‘आज से तुम्हारा नाम मानसी के बजाय प्रिया रहेगा,’ रात के खाने पर मैं ने बेटी को अपना फैसला सुना दिया.
‘लेकिन क्यों मां, इस नाम में क्या बुराई है?’
‘वह सब मैं नहीं जानती बेटा, पर मैं जो कुछ भी कर रही हूं तुम्हारे भले के लिए ही कर रही हूं. प्लीज, मुझे समझने की कोशिश करो.’
उस ने मुझे कितना समझा, कितना नहीं, यह तो मैं नहीं जानती पर मेरी बात का विरोध नहीं किया.
हर नए रिश्ते के साथ मैं उसे हिदायतों का पुलिंदा पकड़ा देती.
‘सुनो बेटा, लड़के की लंबाई थोड़ा कम है, इसलिए फ्लैटस्लीपर ही पहनना.’
‘लेकिन मां फ्लैटस्लीपर तो मुझ पर जंचते नहीं हैं.’
‘देखो प्रिया, यह लड़का 6 फुट का है. इसलिए पैंसिलहील पहनना.’
‘लेकिन मम्मी मैं पैंसिलहील पहन कर तो चल ही नहीं सकती. इस से मेरे टखनों में दर्द होता है.’
‘प्रिया, मौसी के साथ पार्लर हो आना. शाम को कुछ लोग मिलने आ रहे हैं.’
‘मैं नहीं जाऊंगी. मुझे मेकअप पसंद नहीं है.’
‘बस, एक बार तुम्हारी शादी हो जाए, फिर करती रहना अपने मन की.’
मैं सुबकने लगती तो प्रिया हथियार डाल देती.
पर मेरी सारी तैयारियां धरी की धरी रह जातीं जब लड़के वाले ‘फोन से खबर करेंगे’, कहते हुए चले जाते या फिर दहेज में मोटी रकम की मांग करते, जिसे पूरा करना किसी मध्यवर्गीय परिवार के वश की बात नहीं थी.
‘ऐसा कीजिए बहूरानी, शनिवार की सुबह 3 बजे बिटिया से पीपल के फेरे लगवा कर ग्रहशांति का पाठ करवाइए,’ पंडितजी ने दूसरी युक्ति सुझाई.
‘तुम्हें यह क्या होता जा रहा है मां, मैं ये जाहिलों वाले काम बिलकुल नहीं करूंगी,’ प्रिया गुस्से से भुनभुनाई, ‘पीपल के फेरे लगाने से कहीं रिश्ते बनते हैं.’
‘सच ही तो है, शादियां यदि पीपल के फेरे लगाने से तय होतीं तो सारी विवाहयोग्य लड़कियां पीपल के इर्दगिर्द ही घूमती नजर आतीं,’ सुशांत ने भी हां में हां मिलाई.
‘चलो, माना कि नहीं होती पर हमें यह सब करने में हर्ज ही क्या है?’
‘हर्ज है शुभा, इस से लड़कियों का मनोबल गिरता है. उन का आत्मसम्मान आहत होता है. बारबार लड़के वालों द्वारा नकारे जाने पर उन में हीनभावना घर कर जाती है. तुम ये सब समझना क्यों नहीं चाहतीं. मानसी को पहले अपनी पढ़ाई पूरी कर लेने दो. उसे जो बनना है वह बन जाने दो. फिर शादी भी हो जाएगी,’ सुशांत ने मुझे समझाने की कोशिश की.
‘तब तक सारे अच्छे रिश्ते हाथ से निकल जाएंगे, फिर सुनते रहना रिश्तेदारों और पड़ोसियों के ताने.’
‘रिश्तेदारों का क्या है, वे तो कुछ न कुछ कहते ही रहेंगे. उन की बातों से डर कर क्या हम बेटी की खुशियों, उस के सपनों का गला घोंट दें.’
‘तुम कहना क्या चाहते हो, मैं क्या इस की दुश्मन हूं. अरे, लड़कियां चाहे कितनी भी पढ़लिख जाएं, उन्हें आखिर पराए घर ही जाना होता है. घरपरिवार और बच्चे संभालने ही होते हैं और इन सब कामों की एक उम्र होती है. उम्र निकलने के बाद यही काम बोझ लगने लगते हैं.’
‘तो हमतुम मिल कर संभाल लेंगे न इन की गृहस्थी.’
‘संभालेंगे तो तब न जब ब्याह होगा इस का. लड़के वाले तो मंगला सुनते ही भाग खड़े होते हैं.’
हमारी बहस अभी और चलती अगर सुशांत ने मानसी की डबडबाई आंखों को देख न लिया होता.
सुशांत ने ही बीच का रास्ता निकाला था. वे कहीं से पीपल का बोनसाई का पौधा ले आए थे, जिस से मेरी बात भी रह जाए और प्रिया को घर से बाहर भी न जाना पड़े.
साल गुजरते जा रहे थे. मानसी की कालेज की पढ़ाई भी पूरी हो गई थी.
घर में एक अदृश्य तनाव अब हर समय पसरा रहता. जिस घर में पहले प्रिया की शरारतों व खिलखिलाहटों की धूप भरी रहती, वहीं अब सर्द खामोशी थी.
सभी अपनाअपना काम करते, लेकिन यंत्रवत. रिश्तों की गर्माहट पता नहीं कहां खो गईर् थी.
हम मांबेटी की बातें जो कभी खत्म ही नहीं होती थीं, अब हां…हूं…तक ही सिमट गई थीं.
जीवन फिर पुराने ढर्रे पर लौटने लगा था कि तभी एक रिश्ता आया. कुलीन ब्राह्मण परिवार का आईएएस लड़का दहेजमुक्त विवाह करना चाहता था. अंधा क्या चाहे, दो आंखें.
हम ने झटपट बात आगे बढ़ाई. और एक दिन उन लोगों ने मानसी को देख कर पसंद भी कर लिया. सबकुछ इतना अचानक हुआ था कि मुझे लगने लगा कि यह सब पुरोहितजी के बताए उपायोें के फलस्वरूप हो रहा है.
हंसीखुशी के बीच हम शादी की तैयारियों में व्यस्त हो गए थे कि पुरोहित दोबारा आए, ‘जयकारा हो बहूरानी.’
‘सबकुछ आप के आशीर्वाद से ही तो हो रहा है पुरोहितजी,’ मैं ने उन्हें प्रणाम करते हुए कहा.
‘इसीलिए विवाह का मुहूर्त निकालते समय आप ने हमें याद भी नहीं किया,’ वे नाराजगी दिखाते हुए बोले.
‘दरअसल, लड़के वालों का इस में विश्वास ही नहीं है, वे नास्तिक हैं. उन लोगों ने तो विवाह की तिथि भी लड़के की छुट्टियों के अनुसार रखी है, न कि कुंडली और मुहूर्त के अनुसार,’ मैं ने अपनी सफाई दी.
‘न हो लड़के वालों को विश्वास, आप को तो है न?’ पंडित ने छूटते ही पूछा.
‘लड़के वालों की नास्तिकता का परिणाम तो आप की बेटी को ही भुगतना पड़ेगा. यह मंगल दोष किसी को नहीं छोड़ता.’
‘यह तो मैं ने सोचा ही नहीं,’ जैसेतैसे मेरे मुंह से निकला. पुरोहितजी की बात से शादी की खुशी जैसे काफूर गई थी.
‘कुछ कीजिए पुरोहितजी, कुछ कीजिए. अब तक तो आप ही मेरी नैया पार लगाते आ रहे हैं,’ मैं गिड़गिड़ाई.
‘वह तो है बहूरानी, लेकिन इस बार रास्ता थोड़ा कठिन है,’ पुरोहित ने पान की गिलौरी मुंह में डालते हुए कहा.
‘बताइए तो महाराज, बिटिया की खुशी के लिए तो मैं कुछ भी करने के लिए तैयार हूं,’ मैं ने डबडबाई आंखों से कहा.
‘हर बेटी को आप जैसी मां मिले,’ कहते हुए उन्होंने हाथ के इशारे से मुझे अपने पास बुलाया, फिर मेरे कान के पास मुंह ले जा कर जो कुछ कहा उसे सुन कर तो मैं सन्न रह गई.
‘यह क्या कह रहे हैं आप? कहीं बकरे या कुत्ते से भी कोई मां अपनी बेटी की शादी कर सकती है.’
‘सोच लीजिए बहूरानी, मंगल दोष निवारण के लिए बस यही एक उपाय है. वैसे भी यह शादी तो प्रतीकात्मक होगी और आप की बेटी के सुखी दांपत्य जीवन के लिए ही होगी.’
‘लेकिन पुरोहितजी, बिटिया के पापा भी तो कुछ दिनों के लिए बाहर गए हैं. उन की सलाह के बिना…’
‘अब लेकिनवेकिन छोडि़ए बहूरानी. ऐसे काम गोपनीय तरीके से ही किए जाते हैं. अच्छा ही है जो यजमान घर पर नहीं हैं.
‘आप कल सुबह 8 बजे फेरों की तैयारी कीजिए. जमाई बाबू (बकरा) को मेरे साथी पुरोहित लेते आएंगे और बिटिया को मेरे घर की महिलाएं संभाल लेंगी.
‘और हां, 50 हजार रुपयों की भी व्यवस्था रखिएगा. ये लोग दूसरों से तो 80 हजार रुपए लेते हैं, पर आप के लिए 50 हजार रुपए पर बात तय की है.’ मैं ने कहते हुए पुरोहितजी चले गए.
अगली सुबह 7 बजे तक पुरोहित अपनी मंडली के साथ पधार चुके थे.
पुरोहिताइन के समझाने पर प्रिया बिना विरोध किए तैयार होने चली गई तो मैं ने राहत की सांस ली और बाकी कार्य निबटाने लगी.
‘मुहूर्त बीता जा रहा है बहूरानी, कन्या को बुलाइए.’ पुरोहितजी की आवाज पर मुझे ध्यान आया कि प्रिया तो अब तक तैयार हो कर आई ही नहीं.
‘प्रिया, प्रिया,’ मैं ने आवाज दी, लेकिन कोई जवाब न पा कर मैं ने उस के कमरे का दरवाजा बजाया, फिर भी कोई जवाब नहीं मिला तो मेरा मन अनजानी आशंका से कांप उठा.
‘सुनिए, कोई है? पुरोहितजी, पंडितजी, अरे, कोई मेरी मदद करो. मानसी, मानसी, दरवाजा खोल बेटा.’ लेकिन मेरी आवाज सुनने वाला वहां कोई नहीं था. मेरे हितैषी होने का दावा करने वाले पुरोहित बजाय मेरी मदद करने के, अपने दलबल के साथ नौदोग्यारह हो गए थे.
हां, आवाज सुन कर पड़ोसी जरूर आ गए थे. किसी तरह उन की मदद से मैं ने कमरे का दरवाजा तोड़ा.
अंदर का भयावह दृश्य किसी की भी कंपा देने के लिए काफी था. मानसी ने अपनी कलाई की नस काट ली थी. उस की रगों से बहता खून पूरे फर्श पर फैल चुका था और वह खुद एक कोने में अचेत पड़ी थी. मेरे ऊलजलूल फैसलों से बचने का वह यह रास्ता निकालेगी, यह मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था.
पड़ोसियों ने ही किसी तरह हमें अस्पताल तक पहुंचाया और सुशांत को खबर की.
ऐसी बातें छिपाने से भी नहीं छिपतीं. अगली ही सुबह मानसी के ससुराल वालों ने यह कह कर रिश्ता तोड़ दिया कि ऐसे रूढि़वादी परिवार से रिश्ता जोड़ना उन के आदर्शों के खिलाफ है.
‘‘यह सब मेरी वजह से हुआ है,’’ सुशांत से कहते हुए मैं फफक पड़ी.
‘‘नहीं शुभा, यह तुम्हारी वजह से नहीं, तुम्हारी धर्मभीरुता और अंधविश्वास की वजह से हुआ.’’
‘‘ये पंडेपुरोहित तो तुम जैसे लोगों की ताक में ही रहते हैं. जरा सा डराया, ग्रहनक्षत्रों का डर दिखाया और तुम फंस गईं जाल में. लेकिन यह समय इन बातों का नहीं. अभी तो बस यही कामना करो कि हमारी बेटी ठीक हो जाए,’’ कहते हुए सुशांत की आंखें भर आईं.
‘बधाई हो, मानसी अब खतरे से बाहर है,’ डा. रोहित ने आईसीयू से बाहर आते हुए कहा.
‘रोहित, विनोद का बेटा है, मानसी के लिए जिस का रिश्ता मैं ने महज विजातीय होने के कारण ठुकरा दिया था, इसी अस्पताल में डाक्टर है और पिछले 48 घंटों से मानसी को बचाने की खूब कोशिश कर रहा है. किसी अप्राप्य को प्राप्त कर लेने की खुशी मुझे उस के चेहरे पर स्पष्ट दिख रही है. ऐसे समय में उस ने मानसी को अपना खून भी दिया है.
‘क्या यह इस बात का प्रमाण नहीं कि रोहित सिर्फ व सिर्फ मेरी बेटी मानसी के लिए ही बना है?
‘मैं भी बुद्धू हूं. मैं ने पहले बहुत गलतियां की हैं. अब और नहीं करूंगी,’ यह सब वह सोच रही थी.
रोहित थोड़ी दूरी पर नर्स को कुछ दवाएं लाने को कह रहा था. उस ने हिम्मत जुटा कर रोहित से आहिस्ता से कहा, ‘‘मानसी ने तो मुझे माफ कर दिया, पर क्या तुम व तुम्हारे परिवार वाले मुझे माफ कर पाएंगे.’’
‘कैसी बातें करती हैं आंटी आप, आप तो मेरी मां जैसी है.’ रोहित ने मेरे जुड़े हुए हाथों को थाम लिया था.
आज उन की भरीपूरी गृहस्थी है. रोहित के परिवार व मेरी बेटी मानसी ने भी मुझे माफ कर दिया है. लेकिन क्या मैं कभी खुद को माफ कर पाऊंगी. शायद कभी नहीं.
इन अंधविश्वासों के चंगुल में फंसने वाली मैं अकेली नहीं हूं. ऐसी घटनाएं हर वर्ग व हर समाज में होती रहती हैं. मैं आत्मग्लानि के दलदल में आकंठ डूब चुकी थी और अपने को बेटी का जीवन बिगाड़ने के लिए कोस रही थी.
योगेन नपेतुले कदमों से आगे बढ़ते हुए साफ महसूस कर रहा था कि आगे चल रही महिला उस से डर रही है. उस अंधेरे कौरीडोर में वह बारबार पीछे मुड़ कर देख रही थी. उस की आंखों में एक अंजाना सा डर था और वह बेहद घबराई हुई लग रही थी. शायद उसे लग रहा था कि वह उस का पीछा कर रहा है. बिजनैस सेंटर में ज्यादातर औफिस थे, जिन में अब तक काफी बंद हो चुके थे. इस बिजनैस सेंटर में खास बात यह थी कि इस के औफिस में किसी भी समय आयाजाया जा सकता था. इसीलिए सेंटर के गेट पर एक रजिस्टर रख दिया गया था, जिस में आनेजाने वालों को अपना नामपता और समय लिखना होता था.
महिला रजिस्टर में अपना नामपता और समय लिख कर तेजी से आगे बढ़ गई. उस के बाद योगेन भी नामपता और समय लिख कर महिला के साथ लिफ्ट में सवार हो गया था. लिफ्ट में महिला ने एक बार भी नजर उठा कर उस की ओर नहीं देखा.
शायद वह अपने खौफ पर काबू पाने की कोशिश कर रही थी. योगेन ने लिफ्ट औपरेटर से कहा, ‘‘सातवीं मंजिल पर जाना है.’’
इस पर महिला ने चौंक कर उस की ओर देखा, क्योंकि उसे भी उसी मंजिल पर जाना था. यह सोच कर उस की सांस रुकने लगी कि यह आदमी क्यों उस के पीछे लगा है?
चंद पलों में ही सातवीं मंजिल आ गई. लिफ्ट का दरवाजा खुलते ही महिला तेजी से निकली और उसी रफ्तार से आगे बढ़ गई. उस की ऊंची ऐड़ी के सैंडल फर्श पर ठकठक बज रहे थे. तेजी से चलते हुए उस ने पलट कर देखा तो गिरतेगिरते बची.
योगेन की समझ में नहीं आ रहा था कि वह उस महिला को कैसे समझाए कि वह उस का पीछा नहीं कर रहा, इसलिए उसे उस से डरने की कोई जरूरत नहीं है.
आगे बढ़ते हुए योगेन दोनों ओर बने धुंधले शीशे वाले औफिसों पर नजर डालता जा रहा था. अंधेरा होने की वजह से दरवाजों पर लिखे नंबर ठीक से दिखाई नहीं दे रहे थे. कौरीडोर खत्म होते ही महिला बाईं ओर मुड़ गई. वह भी उसी ओर मुड़ा तो महिला और ज्यादा सहम गई.
वह और तेजी से आगे बढ़ कर एक औफिस के आगे रुक गई. उस की लाइट जल रही थी. दरवाजे के हैंडल पर हाथ रख कर उस ने योगेन की ओर देखा. लेकिन वह उस के करीब से आगे बढ़ गया.
आगे बढ़ते हुए योगेन ने दरवाजे पर नजर डाली थी. उस पर डा. साहिल परीचा के नाम का बोर्ड लगा था. उस के आगे बढ़ जाने से महिला हैरान तो हुई ही, उसे यकीन भी हो गया कि वह उस का पीछा नहीं कर रहा था.
योगेन अंधेरे में डूबे दरवाजों को पार करते हुए आगे बढ़ता रहा. उस कौरीडोर में आखिरी दरवाजे से रोशनी आ रही थी. आगे बढ़ते हुए उस ने अपनी दोनों जेबें थपथपाई. एक जेब में पिस्तौल था, जिसे इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं पड़ी थी. दूसरी जेब में 50 लाख रुपए की कीमत का बहुमूल्य हीरे का नेकलैस मखमल की एक डिब्बी में रखा था. जिसे लेने से पहले योगेन ने अच्छी तरह चैक किया था. वह वही नेकलैस पहुंचाने यहां आया था.
दरवाजा खोलने से पहले योगेन ने पलट कर देखा तो वह महिला अभी तक दरवाजे पर खड़ी उसी को देख रही थी. योगेन ने उसे घूरा तो वह हड़बड़ा कर जल्दी से अंदर चली गई.
योगेन ने एक बार फिर खाली कौरीडोर को देखा और दरवाजा खोल कर अंदर चला गया. सामने रिसैप्शन में बैठी लड़की उसे देख कर मुसकराते हुए उठी और उस के गले लग गई. योगेन कुछ कहता, उस के पहले ही वह बोली, ‘‘तुम एकदम सही समय साढ़े 8 बजे आए हो डियर. उसे साथ ले आए हो न?’’
‘‘हां, ले आया हूं.’’ योगेन ने जेब पर हाथ फेरते हुए कहा.
‘‘कैसा है, क्या बहुत खूबसूरत है?’’ लड़की ने बेचैनी से पूछा.
योगेन ने लड़की का हाथ पकड़ कर उस के बाएं हाथ की हीरे की अंगूठी देखते हुए कहा, ‘‘रीना, नेकलैस के सारे हीरे इस से बड़े और काफी कीमती हैं.’’
‘‘योगेन फिर कभी ऐसा मत कहना. मेरे लिए यह अंगूठी दुनिया की सब से कीमती चीज है. जानते हो क्यों? क्योंकि इसे तुम ने दिया है. यह तुम्हारे प्यार की निशानी है.’’ रीना योगेन की आंखों में झांकते हुए प्यार से कहा.
रीना की इस बात पर योगेन मुसकराया.
रीना ने अपने बैग से टिशू पेपर निकालते हुए कहा, ‘‘तुम्हारे गाल पर मेरी लिपस्टिक का निशान लग गया है…’’ रीना इतना ही कह पाई थी कि उस की आंखें हैरानी से फैल गईं और आगे की बात मुंह में ही रह गई.
रीना की हालत से ही योगेन अलर्ट हो गया. वह समझ गया कि उस के पीछे जरूर कोई मौजूद है. उस ने मुड़ने की कोशिश की कि तभी उस के सिर के पिछले हिस्से पर कोई भारी चीज लगी और वह रीना की बांहों में गिर कर बेहोश हो गया.
जब उसे होश आया तो उसे लगा कि वह किसी मुलायम चीज पर लेटा है. सिर के पिछले हिस्से में तेज दर्द हो रहा था. उस के होंठों से कराह निकली. आंखें खोलने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रहा.
उसे लगा जैसे उस की आंखों पर भारी बोझ रखा है. फिर भी उस ने हिम्मत कर के आंखें खोल दीं. लेकिन तेज रोशनी से उस की आंखें बंद हो गईं. उस के कानों में कुछ आवाजें पड़ रही थीं. कोई कह रहा था, ‘‘ओह गाड, यह क्या हुआ?’’
‘‘पता नहीं, मैं ने इसे इसी तरह पड़ा पाया था.’’ किसी ने जवाब दिया.
‘‘अरे इसे होश आ रहा है.’’ किसी ने कहा.
इस के बाद 2-3 लोगों ने मिल कर योगेन को उठाया तो उस के हलक से कराह निकल गई.
‘‘आराम से, शायद यह जख्मी है. शायद इसे दिमागी चोट आई है. रुको डा. परीचा के औफिस में लाइट जल रही है. मैं उन्हें बुला कर लाता हूं.’’ किसी ने भारी आवाज में कहा.
‘‘ठीक है, डाक्टर को जल्दी ले कर आओ.’’ किसी अन्य ने कहा.
अब तक योगेन को पूरी तरह से होश आ गया था. कोई धीरेधीरे उस के शरीर को टटोल रहा था. शायद चोट तलाश रहा था. जैसे ही उस का हाथ योगेन के सिर के पीछे पहुंचा, उसके मुंह से कराह निकल गई. उस का शरीर कांप उठा.
‘‘इस का मतलब सिर के पिछले हिस्से में काफी गहरी चोट लगी है. इसे उठा कर सोफे पर लिटाओ, उस के बाद देखता हूं.’’
योगेन को उठा कर मुलायम और आरामदेह सोफे पर लिटा दिया गया. इस के बाद कोई उस के जख्म की जांच करने लगा तो उसे तकलीफ हुई और वह दोबारा बेहोश हो गया.
योगेन को दोबारा होश आया तो उस का दर्द काफी कम हो चुका था. उसे ऐसा लग रहा था, जैसे वह नींद से जागा हो. किसी की कोमल अंगुलियों ने उस के सिर को छुआ तो उस ने आंखें खोल दीं. उस की आंखों के सामने उसी औरत का चेहरा था, जो कौरीडोर में उस से डर रही थी. लेकिन अब डर की जगह उस के चेहरे पर मुसकराहट थी.
उस ने हमदर्दी से पूछा, ‘‘अब तुम कैसा फील कर रहे हो?’’
‘‘ठीक हूं.’’ योगेन ने मुश्किल से जवाब दिया.
‘‘मुझे पहचाना मैं लिलि… लिलि पराशर. मैं वही हूं, जो तुम्हारे आगेआगे बिजनैस सेंटर में आई थी. तुम मेरे पीछे थे.’’ लिलि ने बेहद नरमी से कहा.
‘‘लेकिन मैं तुम्हारा पीछा नहीं कर रहा था.’’
‘‘तुम्हें याद है, मैं डा. परीचा के औफिस में गई थी?’’ लिलि ने पूछा.
योगेन ने ‘हां’ में सिर हिला दिया.
‘‘तुम से मेरी एक रिक्वैस्ट है. अगर तुम ने मेरी बात मान ली तो मुझ पर एक बड़ा एहसान करोगे.’’ लिलि ने कहा.
‘‘इस की वजह?’’ योगेन ने पूछा.
‘‘दरअसल, मेरे पति अतुल पराशर बहुत ही शक्की स्वभाव के हैं. मैं और डा. परीचा बहुत अच्छे दोस्त हैं. शादी के पहले से हम एकदूसरे को जानते हैं. अतुल उन से जलता है, इसलिए मैं चाहती हूं कि तुम यह बात भूल जाओ कि मैं डाक्टर के औफिस में गई थी. इस समय तुम मेरे पति के ही औफिस में हो.’’
योगेन चुपचाप उसे देखता रहा. लिलि ने आगे कहा, ‘‘मेरी बात मानोगे न? बाहर पुलिस आ चुकी है. कहीं ऐसा न हो कि तुम कह दो कि मैं डाक्टर के पास गई थी.’’
‘‘पुलिस… पुलिस क्यों आई है?’’ यह कह योगेन उठा और दरवाजे की ओर बढ़ा. लिलि ने उसे रोकना चाहा, लेकिन वह रुका नहीं. उसे चक्कर आ गया तो उस ने दीवार का सहारा ले कर दरवाजा खोला. दूसरे कमरे में काफी लोग जमा थे. फर्श पर रीना चित लेटी थी. उस की आंखें खुली थीं, चेहरा सफेद पड़ गया था. उस के सीने में चमकदार चीज घुसी थी. वह जोर से चीखा, ‘‘रीना…’’
इसी के साथ वह लड़खड़ा कर गिरने लगा तो 2 लोगों ने उसे संभाल कर सोफे पर लिटा दिया. थोड़ी देर बाद एक स्मार्ट सा आदमी उस के पास आ कर बोला, ‘‘मैं इंसपेक्टर पटेल…क्या तुम इस लड़की को जानते हो?’’
‘‘जी, रीना मेरी मंगेतर थी.’’ उस ने उदासी से कहा.
‘‘जी, मुझे अफसोस है. इस लड़की का कातिल यहीं मौजूद है. वह कौन है? हम पता करने की कोशिश कर रहे हैं.’’ पटेल ने हमदर्दी से कहा, ‘‘मैं उसे जल्दी ही पकड़ लूंगा.’’
योगेन चुपचाप भरी आंखों से पटेल को देखता रहा. इंसपेक्टर पटेल ने पूछा, ‘‘तुम मि. अतुल पराशर को हीरो का नेकलैस डिलीवर करने आए थे न?’’
यह सुन कर योगेन का हाथ जेब पर गया. जेब में न नेकलैस था, न पिस्तौल. उस ने कहा, ‘‘सर, नेकलैस की डिबिया गायब है.’’
‘‘मुझे पता है. मैं तुम्हारी तलाशी ले चुका हूं. तुम्हारी पिस्तौल मेरे पास है. तुम पूरी बात मुझे बताओ.’’ पटेल ने कहा.
योगेन ने शुरू से अंत तक पूरी बात बता दी. उस के बाद पटेल ने कहा, ‘‘तुम्हारे और मृतका लड़की के अलावा बाहर के कमरे में 4 लोग मौजूद हैं. वे चारों इसी फ्लोर पर थे. इन में से किसी ने तुम्हारे ऊपर हमला कर के तुम्हारी मंगेतर का कत्ल किया और तुम्हारी जेब से वह नेकलैस लिया.’’
‘‘क्या, सचमुच कातिल और चोर बाहर मौजूद हैं?’’ योगेन ने पूछा.
‘‘हां, क्योंकि इन लोगों के अलावा यहां कोई और नहीं था. लिफ्ट से कोई आया नहीं, सीढि़यों वाले दरवाजे में ताला बंद था.’’ पटेल ने बताया.
‘‘वे 4 लोग कौन हैं?’’ योगेन ने पूछा.
‘‘मि. अतुल, उन की बीवी लिलि, डा. परीचा और एक इंश्योरैंस एजेंट प्रेमप्रकाश.’’
‘‘आप ने उन लोगों से कुछ पता किया?’’
‘‘हम ने सभी की अच्छी तरह तलाशी ले ली है. डा. परीचा और अतुल के औफिसों की भी अच्छी तरह तलाशी ले ली गई है. लेकिन नेकलैस नहीं मिला. कोई सुराग भी नहीं मिल रहा है.’’ पटेल ने कहा.
‘‘हो सकता है, किसी तरह नेकलैस बाहर पहुंचा दिया गया हो?’’ योगेन ने कहा.
‘‘सवाल ही नहीं उठता. हम ने लगभग सभी दरवाजे लौक करवा दिए हैं. सारे रास्ते बंद करा दिए हैं. सब से जरूरी है कातिल को पकड़ना. नेकलैस को बाद में भी ढूंढ़ लेंगे.’’
‘‘रीना को किस ने और कैसे मारा?’’ योगेन ने रुंधे गले से पूछा.
‘‘किसी ने लिफाफे खोलने वाली छुरी, जो उस की मेज पर रखी रहती थी, उसी को उस के सीने में घोंप कर मार दिया है. तुम्हारे सिर पर पीछे से एक पाइप से वार किया गया था, जिस पर कपड़ा लपेटा हुआ था.’’
‘‘अब आप क्या करेंगे?’’ उस ने पूछा.
‘‘मैं तुम्हारे सामने उन चारों को बुला कर पूछताछ करूंगा. तुम सारी बातें सुनते रहना, शायद उस में काम की कोई बात निकल आए.’’ इंसपेक्टर पटेल ने कहा.
इस के बाद उन्होंने लिलि और अतुल को बुलवाया. लिलि ने सवालिया नजरों से योगेन की ओर देखा तो योगेन ने उसे नजरंदाज कर के उस के पति की ओर देखा. वह एक छोटे कद का भारीभरकम आम सा आदमी था, जबकि लिलि काफी खूबसूरत थी. अतुल ने आते ही ऐतराज करते हुए कहा, ‘‘मैं पुलिस का हर तरह से सहयोग कर रहा हूं, फिर भी मुजरिमों की तरह मेरी तलाशी ली जा रही है. मेरी बीवी को भी पूछताछ में शामिल किया गया है.’’
पटेल ने उस के ऐतराज पर ध्यान दिए बगैर योगेन का उस से परिचय कराया. अतुल ने हमदर्दी से कहा, ‘‘तो तुम्हीं से रीना की शादी होने वाली थी?’’
योगेन ने ‘हां’ में सिर हिलाया.
‘‘उस की मौत का मुझे बहुत अफसोस है. रीना अकसर तुम्हारा जिक्र किया करती थी. उसी के कहने पर मैं ने तुम्हारी फर्म की नेकलैस का और्डर दिया था. काश, मैं ऐसा न करता.’’ अफसोस जाहिर करते हुए अतुल ने कहा.
‘‘इस का मतलब तुम ने रीना की सिफारिश पर नेकलैस का और्डर दिया था?’’ पटेल ने कहा.
‘‘जी, मेरे और्डर पर इस लड़के को फायदा होता. हालांकि यह उस फर्म का सेल्समैन नहीं है, फिर भी रीना के कहने पर मैं ने उस फर्म से संपर्क कर और्डर देते हुए कहा था कि वह नेकलैस योगेन के जरिए मुझे भिजवा दिया जाए, ताकि उसे फायदा हो जाए.’’
‘‘मि. अतुल, सब से पहले तुम ने रीना और योगेन को देखा था?’’ पटेल ने पूछा.
‘‘मैं अपने औफिस में बैठा था. रिसेप्शन पर मुझे शोर सुनाई दिया तो मैं ने घंटी बजाई कि रीना को बुला कर इस शोर के बारे में पता करूं. लेकिन रीना की तरफ से कोई जवाब नहीं आया तो मैं बाहर निकला. तब ये दोनों मुझे फर्श पर पड़े मिले. रीना के सीने में लिफाफे खोलने वाली छूरी घुसी हुई थी और यह योगेन बेहोश पड़ा था.’’
‘‘फिर…?’’
‘‘मैं मामला समझ ही रहा था कि प्रेमप्रकाश अंदर आए. मैं ने उन से डा. परीचा को बुलाने को कहा. इस के बाद पुलिस को फोन किया.’’
‘‘मिसेज अतुल पराशर मैं यह जानना चाहता हूं कि तुम अपने पति के औफिस में आने से पहले डा. परीचा के औफिस में क्यों गई थीं? और तुम ने योगेन से यह क्यों कहा कि वह इस बात का किसी से जिक्र न करे?’’
लिलि ने गुस्से से योगेन की ओर देखा. उस के बाद बोली, ‘‘इंसपेक्टर योगेन या तो ख्वाबों की दुनिया में रहता है या बहुत बड़ा झूठा है.’’
‘‘ठीक है, हम डा. परीचा से पता कर लेते हैं, लेकिन उस से पहले प्रेमप्रकाश से बात करूंगा. वहीं डा. परीचा को बुलाने गया था. अगर तुम वहां थीं तो उस ने तुम्हें जरूर देखा होगा?’’ पटेल ने रूखेपन से कहा.
‘‘जरूरजरूर, अगर सच में मैं डा. परीचा के पास थी तो प्रेमप्रकाश जरूर बता देगा.’’ लिलि ने कहा.
इस के बाद उस ने अतुल की ओर देखा, जो कभी पटेल को देख रहा था और कभी लिलि को. उस के चेहरे पर उलझन थी. लिलि समझ गई थी कि योगेन ने ही इंसपेक्टर पटेल को यह बताया होगा.
‘‘इंसपेक्टर, आप मुझ से सवाल पर सवाल किए जा रहे हैं और इस आदमी से कुछ नहीं पूछ रहे हैं, जिस के गाल पर अभी तक लिपस्टिक का निशान है.’’ लिलि ने कहा.
‘‘तुम चुपचाप आराम से बैठो. यह पुलिस की जांच है, कोई मजाक नहीं. बेकार की बातें करने के बजाय यह बताओ कि तुम डाक्टर के औफिस में क्यों गई थी?’’ इंसपेक्टर पटेल ने पूछा.
‘‘तुम्हें इस बात से कोई मतलब नहीं होना चाहिए.’’ लिलि ने गुस्से में कहा.
इस बात पर उस का पति अतुल गुस्से में बोला, ‘‘पर मुझे मतलब है लिलि. मुझे बताओ कि तुम डा. परीचा के औफिस में क्यों गई थीं?’’
‘‘अतुल, तुम क्यों पागल हो रहे हो?’’
‘‘मैं तुम्हारा पति हूं. मेरा पूरा हक है यह जानने का कि तुम डाक्टर के पास क्यों गई थीं? क्या मैं बेवकूफ हूं कि इतनी बड़ी रकम खर्च कर के तुम्हारे लिए हीरों का नेकलैस खरीद रहा था? मेरी यही मंशा थी कि तुम डाक्टर का खयाल तक न करो, पूरी तरह मेरी वफादार बन जाओ. रीना ने ही मुझ से कहा था कि मैं वह हीरों का नेकलैस इस के मंगेतर योगेन के जरिए खरीदूं, ताकि उस का कुछ भला हो जाए. उसे कमीशन मिल सके. यह इतना कीमती नेकलैस मैं ने तुम्हारे लिए ही खरीदा था और इस के बदले मैं तुम्हारी वफा चाहता था, लेकिन मुझे खुशी है कि वह नेकलैस चोरी हो गया. अच्छा हुआ जो तुम जैसी बेवफा औरत को नहीं मिला. वैसे भी मैं ने कौन सी अभी उस की कीमत अदा की है. अच्छा हुआ कि तुम्हारे चेहरे से नकाब उतर गया. तुम्हारी असली सूरत सामने आ गई. शक तो मुझे पहले भी था, अब तो इस का सबूत भी मिल गया.’’
‘‘जहन्नुम में जाओ तुम और तुम्हारा नेकलैस. मामूली सी बात का बतंगड़ बना दिया सब ने.’’ लिलि गुस्से से बोली.
‘‘तुम दोनों लड़नाझगड़ना बंद करो. यह तुम्हारा आपस का मामला है. घर जा कर सुलझाना. यहां जांच हो रही है, उस में अड़ंगे मत डालो.’’ इंसपेक्टर पटेल ने कहा.
इंसपेक्टर पटेल ने डा. परीचा और प्रेम प्रकाश को अंदर बुलाया. डा. परीचा सेहतमंद और काफी स्मार्ट था. प्रेमप्रकाश लंबा और स्लिम था. वह इंश्योरैंस एजेंट था.
‘‘प्रेमप्रकाश जब तुम डाक्टर को बुलाने उस के औफिस में गए थे तो वह अकेला था या उस के साथ कोई और था?’’ इंसपेक्टर ने पहला सवाल किया.
‘‘मैं सिर्फ बाहरी कमरे तक ही गया था. वह वहां अकेला ही था. अंदर के कमरे में कोई रहा हो तो मुझे मालूम नहीं.’’ प्रेमप्रकाश ने कहा.
‘‘तुम क्या कहते हो डा. परीचा?’’ पटेल ने डा. परीचा से पूछा.
‘‘मैं अकेला था.’’ डाक्टर धीरे से बोला.
‘‘लिलि पराशर तुम्हारे साथ नहीं थीं?’’
उस ने इनकार में सिर हिला दिया.
‘‘पर लिलि ने तो मान लिया है कि वह तुम्हारे साथ थी.’’ इंसपेक्टर पटेल ने कहा.
पर डाक्टर इनकार करता रहा.
‘‘डाक्टर पुलिस के काम में उलझन मत पैदा करो. तुम्हें अंदाजा नहीं है कि तुम्हारा यह झूठ तुम्हें मुश्किल में डाल सकता है. लिलि और उस के पति ने मान लिया है कि वह तुम्हारे कमरे में थी. पर तुम लगातार इनकार कर रहे हो. आखिर कारण क्या है?’’
‘‘मि. अतुल एक शक्की आदमी है. मैं नहीं चाहता कि मेरे सच बोलने की वजह से लिलि के लिए कोई मुसीबत खड़ी हो. वह पागल आदमी उस का जीना मुश्किल कर देगा.’’ डा. परीचा ने कहा.
‘‘तुम और लिलि शादी के पहले से दोस्त हो?’’
पटेल ने अचानक प्रेमप्रकाश से सवाल किया, ‘‘तुम ने मि. अतुल को इस लड़की और योगेन को करीब खड़े देखा था, ये दोनों फर्श पर पड़े थे, तुम अपने औफिस से इस औफिस में क्यों आए थे?’’
‘‘मैं यहां शोर सुन कर वजह जानने आया था.’’
‘‘तुम्हें नेकलैस के बारे में मालूम था?’’ पटेल ने घूरते हुए पूछा.
‘‘जी, अतुल ने मुझ से ही उस कीमती नेकलैस का इंश्योरैंस करवाया था. मुझे यह भी पता था कि वह नेकलैस आज ही उन्हें मिलने वाला है.’’ प्रेमप्रकाश ने कहा.
‘‘उस नेकलैस के चोरी होने से तुम्हें तो नुकसान होगा?’’ पटेल ने पूछा.
‘‘मुझे तो नहीं, हां मेरी कंपनी को जरूर नुकसान होगा. इस के लिए पुलिस जांच की रिपोर्ट की जरूरत पड़ेगी.’’ प्रेमप्रकाश ने बताया.
‘‘क्या तुम रेस खेलते हो, घोड़ों पर रकम लगाते हो, यह बहुत महंगा शौक है?’’ पटेल ने पूछा.
‘‘तुम्हारा मतलब है नेकलैस मैं ने चुराया है?’’ प्रेमप्रकाश ने खीझ कर पूछा.
पटेल ने उसे जवाब देने के बजाय डाक्टर से पूछा, ‘‘तुम इतनी रात तक अपने औफिस में क्या कर रहे थे? लिलि की राह देख रहे थे क्या?’’
‘‘मुझे लिलि के आने के बारे में कुछ भी पता नहीं था. वह जिस वक्त मेरे पास आई, घबराई हुई थी. उस ने बताया कि कोई उस का पीछा कर रहा है. उस ने यह भी कहा कि वह आदमी उस के पति के औफिस में गया है. इस के बाद हम बातें करने लगे. तभी प्रेमप्रकाश आ गया. मैं ने लिलि को अंदर वाले कमरे में भेज दिया और अपना बैग ले कर उस के साथ यहां आ गया. लिलि को मुझे छिपाना नहीं चाहिए था.’’ डाक्टर ने कहा.
‘‘उस के बाद क्या हुआ?’’ पटेल ने पूछा.
‘‘जब मैं अतुल के औफिस में पहुंचा तो रीना मर चुकी थी. मगर यह लड़का जिंदा था. इस के सिर पर चोट आई थी. अगर चोट जरा भी गहरी होती तो यह मर भी सकता था.’’ डाक्टर ने कहा.
‘‘अच्छा, तुम दोनों जा सकते हो.’’ पटेल ने कहा.
‘‘क्या मैं भी जा सकता हूं?’’ योगेन ने पूछा.
इंसपेक्टर पटेल ने उसे भी इजाजत दे दी.
योगेन की चोट तकलीफ दे रही थी. सिर के पिछले हिस्से में दर्द था. उस की नजरों के सामने बारबार रीना की लाश आ रही थी. कैसी हंसतीमुसकराती लड़की मिनटों में मौत की गोद में समा गई. नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी. रीना से मुलाकात का दृश्य उस की आंखों में घूम रहा था, कानों में उस की आवाज गूंज रही थी.
वह उन आवाजों के बारे में सोचने लगा, जो जरा होश में आने पर उस के कानों में पड़ी थी. अचानक एक आवाज उसे याद आई तो वह उछल पड़ा. उस ने उसी वक्त इंसपेक्टर पटेल को फोन किया. पटेल ने झुंझला कर कहा, ‘‘अभी तुम सो जाओ, सुबह बात करेंगे.’’
‘‘इंसपेक्टर साहब, सुबह तक बहुत देर हो जाएगी. सारा खेल खतम हो जाएगा. हमें अभी और इसी वक्त बिजनैस सेंटर चलना होगा. मुझे उम्मीद है कि नेकलैस भी बरामद कर लेंगे और कातिल को भी पकड़ लेंगे.’’
आधे घंटे बाद दोनों अतुल के औफिस में बैठे थे. इंसपेक्टर पटेल थोड़ा नाराज थे. योगेन जबरदस्ती उन्हें औफिस ले आया था. गार्ड से चाबी ले कर अतुल का औफिस खोल कर दोनों उस में बैठे थे.
‘‘मुझे रीना के कातिल का पता चला गया है.’’ योगेन ने कहा.
‘‘कौन है वह?’’ इंसपेक्टर पटेल ने पूछा.
‘‘यह बड़ी होशियारी से तैयार किया गया प्लान था. कातिल किसी का कत्ल नहीं करना चाहता था. उस ने पाइप में भी कपड़ा लपेट रखा था, ताकि अपने शिकार को बेहोश कर के नेकलैस उड़ा सके. न जाने क्यों उस ने लिफाफे खोलने वाली छुरी से रीना पर हमला कर दिया? शायद उसे अंदाजा नहीं था कि यह छुरी किसी को मार भी सकती है.’’
‘‘यह सब छोड़ो, तुम यह बताओ कि हम यहां क्यों आए हैं? रीना का कातिल कौन है?’’ इंसपेक्टर पटेल ने पूछा.
‘‘जिस वक्त रीना मेरी बांहों में थी, उसी वक्त उस ने चौंक कर मेरे पीछे देखा था. मतलब उस ने मुझ पर हमला करने वाले को देख लिया था. हमला करने वाला मुझे बेहोश कर के नेकलैस हासिल करना चाहता था. मगर रीना ने उसे देख लिया था, इसलिए हमला करने वाले को मजबूरन उस का कत्ल करना पड़ा.’’ योगेन ने कहा.
‘‘आखिर वह है कौन?’’ पटेल ने झुंझला कर पूछा.
‘‘इस के लिए आप को थोड़ा इंतजार करना होगा. सुबह होते ही कातिल आप की गिरफ्त में होगा.’’ योगेन ने जवाब में कहा.
दोनों बैठे इंतजार करते रहे. जैसे ही सुबह का उजाला फैला, योगेन ने उठ कर अतुल के औफिस के दरवाजे में हलकी सी झिरी कर दी और बाहर झांकने लगा. पटेल भी उसी के साथ खड़ा था. धीरेधीरे लोग आने लगे. सभी अपनेअपने औफिसों में जा रहे थे. कुछ देर बाद डा. परीचा नजर आया, वह भी अपने औफिस का दरवाजा खोल कर अंदर चला गया.
अतुल और प्रेमप्रकाश भी नजर आए. दोनों साथसाथ बातें करते आ रहे थे. प्रेमप्रकाश अपने औफिस में चला गया. जैसे ही अतुल ने अपने औफिस के दरवाजे के हैंडल पर हाथ रखा, योगेन ने दरवाजा खोल दिया.
योगेन को अंदर देख कर अतुल हैरान रह गया. कभी वह इंसपेक्टर पटेल को देखता तो कभी योगेन को. योगेन ने कहा, ‘‘अतुलजी अंदर आ जाइए. थोड़ी देर में आप को सब मालूम हो जाएगा.’’
उन दोनों को हैरानी से देखते हुए अतुल अंदर आ गया. फिर वह अंदर के कमरे में चला गया. योगेन झिरी से बाहर की तरफ देखता रहा. अचानक उस ने एकदम से दरवाजा खोल कर कहा, ‘‘आइए पटेल साहब.’’
दोनों तेजी से दरवाजा खोल कर बाहर आ गए. सामने ही मरदाना टौयलेट था. योगेन ने पटेल से चाबियों का गुच्छा मांगा, जो उस ने गार्ड से ले रखा था. उस में से एक चाबी ढूंढ़ कर टौयलेट में लगाई, दरवाजा खुल गया, सामने का सीन साफ नजर आने लगा. प्रेमप्रकाश फर्श पर झुका बेसिन के नीचे कुछ तलाश रहा था.
उन दोनों को देख कर वह सीधा खड़ा हो गया. योगेन ने उसे एक तरफ धकेल कर बेसिन के नीचे हाथ डाला तो अगले पल उस के हाथ में वह मखमली डिबिया थी, जिस में हीरों का नेकलैस था. यह वही डिबिया थी, जो रात योगेन अतुल पराशर को देने लाया था.
‘‘मिल गया न इंसपेक्टर साहब नेकलैस.’’ योगेन ने कहा.
इंसपेक्टर पटेल प्रेमप्रकाश को घूर रहे थे. उस का चेहरा पीला पड़ गया था. वह हकलाते हुए बोला, ‘‘मैं तो… बस अंदाजे से तलाश रहा था. इस से पहले कि मैं सफल होता, आप लोग आ गए. मैं तो…’’
‘‘प्रेमप्रकाश झूठ मत बोलो.’’ योगेन ने कहा.
‘‘मैं सच कह रहा हूं,’’ उस ने कहा.
‘‘बेकार की बकवास मत करो.’’ पटेल ने घुड़का.
‘‘तुम झूठे हो, पहले तुम ने मेरी मंगेतर रीना का खून किया, उस के बाद नकेलैस ले कर इस बेसिन के नीचे छिपा दिया.’’ योगेन ने कहा.
प्रेमप्रकाश घबरा गया. वह दोनों को देखता रहा. उस की जुबान बंद हो चुकी थी.
‘‘जब मैं नेकलैस ले कर अतुल के औफिस की तरफ जा रहा था, तब तक तुम अपने औफिस में अंधेरा किए खड़े थे और मेरी निगरानी कर रहे थे. जब मैं औफिस में रीना की बांहों में था तो तुम अंदर आए. रीना ने तुम्हें देख लिया. पहले तुम ने मुझ पर हमला किया, उस के बाद रीना को छुरी घोप कर मार दिया, क्योंकि वह तुम्हें देख चुकी थी.
मेरी बेहोशी का फायदा उठा कर तुम नेकलैस ले उड़े. नेकलैस तुम ने मरदाना टौयलेट में छिपा दिया. इस के बाद यहां आ कर ड्रामा करने लगे. तुम्हारी जुबान से निकले एक वाक्य ने तुम्हें फंसवा दिया. बाद में तुम्हारी भारी आवाज पहचान ली थी. जब मुझे थोड़ाथोड़ा होश आ रहा था, तब तुम ने कहा था, ‘पीछे देखो, शायद इस के दिमाग पर चोट आई है.’
‘‘तुम्हें कैसे पता चला कि मेरे सिर के पीछे चोट लगी थी. हमलावर जा चुका था, हम दोनों फर्श पर पड़े थे. इस से यह साबित होता है कि चोट तुम ने ही मारी थी. इसलिए तुम इस के बारे में जानते थे.’’
योगेन ने सारी बात का खुलासा कर दिया. रीना की मौत का दुख उस की आंखों में छलक आया.
‘‘प्रेमप्रकाश, तुम्हारा खेल खत्म हो चुका हूं. मैं तुम्हें रीना के कत्ल और हीरों के नेकलैस की चोरी के इल्जाम में गिरफ्तार करता हूं.’’ इंसपेक्टर पटेल ने सख्ती से कहा.
प्रेमप्रकाश ने सिर झुका लिया. योगेन ने दरवाजा खोला और आंसू पोंछते हुए चला गया.
कौफी हाउस के बाहर हैदर को देख कर फहीम के चेहरे की रंगत उड़ गई थी. हैदर ने भी उसे देख लिया था. इसलिए उस के पास जा कर बोला, ‘‘हैलो फहीम, बहुत दिनों बाद दिखाई दिए.’’
‘‘अरे हैदर तुम..?’’ फहीम ने हैरानी जताते हुए कहा, ‘‘अगर और ज्यादा दिनों बाद मिलते तो ज्यादा अच्छा होता.’’
‘‘दोस्त से इस तरह नहीं कहा जाता भाई फहीम.’’ हैदर ने कहा तो जवाब में फहीम बोला, ‘‘तुम कभी मेरे दोस्त नहीं रहे हैदर. तुम यह बात जानते भी हो.’’
‘‘अब मिल गए हो तो चलो एकएक कौफी पी लेते हैं.’’ हैदर ने कहा.
‘‘नहीं,’’ फहीम ने कहा, ‘‘मैं कौफी पी चुका हूं. अब घर जा रहा हूं.’’
कह कर फहीम ने आगे बढ़ना चाहा तो हैदर ने उस का रास्ता रोकते हुए कहा, ‘‘मैं ने कहा न कि अंदर चल कर मेरे साथ भी एक कप कौफी पी लो. अगर तुम ने मेरी बात नहीं मानी तो बाद में तुम्हें बहुत अफसोस होगा.’’
फहीम अपने होंठ काटने लगा. उसे मालूम था कि हैदर की इस धमकी का क्या मतलब है. फहीम हैदर को देख कर ही समझ गया था कि अब यह गड़े मुर्दे उखाड़ने बैठ जाएगा. हैदर हमेशा उस के लिए बुरी खबर ही लाता था. इसीलिए उस ने उकताए स्वर में कहा, ‘‘ठीक है, चलो अंदर.’’
दोनों अंदर जा कर कोने की मेज पर आमनेसामने बैठ कर कौफी पी रहे थे. फहीम ने उकताते हुए कहा, ‘‘अब बोलो, क्या कहना चाहते हो?’’
हैदर ने कौफी पीते हुए कहा, ‘‘अब मैं ने सुलतान ज्वैलर के यहां की नौकरी छोड़ दी है.’’
‘‘सुलतान आखिर असलियत जान ही गया.’’ फहीम ने इधरउधर देखते हुए कहा.
हैदर का चेहरा लाल हो गया, ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. मेरी उस के साथ निभी नहीं.’’
फहीम को हैदर की इस बात पर किसी तरह का कोई शक नहीं हुआ. ज्वैलरी स्टोर के मालिक सुलतान अहमद अपने नौकरों के चालचलन के बारे में बहुत सख्त मिजाज था. ज्वैलरी स्टोर में काम करने वाले किसी भी कर्मचारी के बारे में शक होता नहीं था कि वह उस कर्मचारी को तुरंत हटा देता था.
फहीम ने सुलतान ज्वैलरी स्टोर में 5 सालों तक नौकरी की थी. सुलतान अहमद को जब पता चला था कि फहीम कभीकभी रेस के घोड़ों पर दांव लगाता है और जुआ खेलता है तो उस ने उसे तुरंत नौकरी से निकाल दिया था.
‘‘तुम्हारे नौकरी से निकाले जाने का मुझ से क्या संबंध है?’’ फहीम ने पूछा.
हैदर ने उस की इस बात का कोई जवाब न देते हुए बात को दूसरी तरफ मोड़ दिया, ‘‘आज मैं अपनी कुछ पुरानी चीजों को देख रहा था तो जानते हो अचानक उस में मेरे हाथ एक चीज लग गई. तुम्हारी वह पुरानी तसवीर, जिसे ‘इवनिंग टाइम्स’ अखबार के एक रिपोर्टर ने उस समय खींची थी, जब पुलिस ने ‘पैराडाइज’ में छापा मारा था. उस तस्वीर में तुम्हें पुलिस की गाड़ी में बैठते हुए दिखाया गया था.’’
फहीम के चेहरे का रंग लाल पड़ गया. उस ने रुखाई से कहा, ‘‘मुझे वह तस्वीर याद है. तुम ने वह तस्वीर अपने शराबी रिपोर्टर दोस्त से प्राप्त की थी और उस के बदले मुझ से 2 लाख रुपए वसूलने की कोशिश की थी. लेकिन जब मैं ने तुम्हें रुपए नहीं दिए तो तुम ने सुलतान अहमद से मेरी चुगली कर दी थी. तब मुझे नौकरी से निकाल दिया गया था. मैं ने पिछले 4 सालों से घोड़ों पर कोई रकम भी नहीं लगाई है. अब मेरी शादी भी हो चुकी है और मेरे पास अपनी रकम को खर्च करने के कई दूसरे तरीके भी हैं.’’
‘‘बिलकुल… बिलकुल,’’ हैदर ने हां में हां मिलाते हुए कहा, ‘‘और अब तुम्हारी नौकरी भी बहुत बढि़या है बैंक में.’’
यह सुन कर फहीम के चेहरे का रंग उड़ गया, ‘‘तुम्हें कैसे पता?’’
‘‘तुम क्या समझ रहे हो कि मेरी तुम से यहां हुई मुलाकात इत्तफाक है?’’ हैदर ने भेडि़ए की तरह दांत निकालते हुए कहा.
फहीम ने तीखी नजरों से हैदर की ओर देखते हुए कहा, ‘‘ये चूहेबिल्ली का खेल खत्म करो. यह बताओ कि तुम चाहते क्या हो?’’
हैदर ने बेयरे की ओर देखते हुए धीमे स्वर में कहा, ‘‘बात यह है फहीम कि सुलतान अहमद के पास बिना तराशे हीरों की लाट आने वाली है. उन की शिनाख्त नहीं हो सकती और उन की कीमत करोड़ों रुपए में है.’’
यह सुन कर फहीम के जबड़े कस गए. उस ने गुर्राते हुए कहा, ‘‘तो तुम उन्हें चोरी करना चाहते हो और चाहते हो कि मैं तुम्हारी इस काम में मदद करूं?’’
‘‘तुम बहुत समझदार हो फहीम,’’ हैदर ने चेहरे पर कुटिलता ला कर कहा, ‘‘लेकिन यह काम केवल तुम करोगे.’’
फहीम उस का चेहरा देखता रह गया.
‘‘तुम्हें याद होगा कि सुलतान अहमद अपनी तिजोरी के ताले का कंबीनेशन नंबर हर महीने बदल देता है और हमेशा उस नंबर को भूल जाता है. जब तुम जहां रहे तुम उस के उस ताले को खोल देते थे. तुम्हें उस तिजोरी को खोलने में महारत हासिल है, इसलिए…’’
‘‘इसलिए तुम चाहते हो कि मैं सुलतान ज्वैलरी स्टोर में घुस कर उस की तिजोरी खोलूं और उन बिना तराशे हीरों को निकाल कर तुम्हें दे दूं?’’ फहीम ने चिढ़ कर कहा.
‘‘इतनी ऊंची आवाज में बात मत करो,’’ हैदर ने आंख निकाल कर कहा, ‘‘यही तो असल हकीकत है. तुम वे हीरे ला कर मुझे सौंप दो और वह तस्वीर, निगेटिव सहित मुझ से ले लो. अगर तुम इस काम के लिए इनकार करोगे तो मैं वह तस्वीर तुम्हारे बौस को डाक से भेज दूंगा.’’
पलभर के लिए फहीम की आंखों में खून उतर आया. वह भी हैदर से कम नहीं था. उस ने दोनों हाथों की मुटिठयां भींच लीं. उस का मन हुआ कि वह घूंसों से हैदर के चेहरे को लहूलुहान कर दे, लेकिन इस समय जज्बाती होना ठीक नहीं था. उस ने खुद पर काबू पाया. क्योंकि अगर हैदर ने वह तसवीर बैंक में भेज दी तो उस की नौकरी तुरंत चली जाएगी.
फहीम को उस कर्ज के बारे में याद आया, जो उस ने मकान के लिए लिया था. उसे अपनी बीवी की याद आई, जो अगले महीने उस के बच्चे की मां बनने वाली थी. अगर उस की बैंक की नौकरी छूट गई तो सब बरबाद हो जाएगा. हैदर बहुत कमीना आदमी था. उस ने फहीम को अब भी ढूंढ़ निकाला था. अगर उस ने किसी दूसरी जगह नौकरी कर ली तो यह वहां भी पहुंच जाएगा. ऐसी स्थिति में हैदर को हमेशा के लिए खत्म करना ही ठीक रहेगा.
‘‘तुम सचमुच मुझे वह तसवीर और उस की निगेटिव दे दोगे?’’ फहीम ने पूछा.
हैदर की आंखें चमक उठीं. उस ने कहा, ‘‘जिस समय तुम मुझे वे हीरे दोगे, उसी समय मैं दोनों चीजें तुम्हारे हवाले कर दूंगा. यह मेरा वादा है.’’
फहीम ने विवश हो कर हैदर की बात मान ली. हैदर अपने घर में बैठा फहीम का इंतजार कर रहा था. उस के यहां फहीम पहुंचा तो रात के 3 बज रहे थे. उस के आते ही उस ने पूछा ‘‘तुम हीरे ले आए?’’
फहीम ने अपने ओवरकोट की जेब से मखमली चमड़े की एक थैली निकाल कर मेज पर रखते हुए कहा, ‘‘वह तसवीर और उस की निगेटिव?’’
हैदर ने अपने कोट की जेब से एक लिफाफा निकाल कर फहीम के हवाले करते हुए हीरे की थैली उठाने के लिए हाथ आगे बढ़ाया.
‘‘एक मिनट…’’ फहीम ने कहा. इस के बाद लिफाफे में मौजूद तसवीर और निगेटिव निकाल कर बारीकी से निरीक्षण करने लगा. संतुष्ट हो कर सिर हिलाते हुए बोला, ‘‘ठीक है, ये रहे तुम्हारे हीरे.’’
हैदर ने हीरों की थैली मेज से उठा ली. फहीम ने जेब से सिगरेट लाइटर निकाला और खटके से उस का शोला औन कर के तसवीर और निगेटिव में आग लगा दी. उन्हें फर्श पर गिरा कर जलते हुए देखता रहा.
अचानक उस के कानों में हैदर की हैरानी भरी आवाज पड़ी, ‘‘अरे, ये तो साधारण हीरे हैं.’’
फहीम ने तसवीर और निगेटिव की राख को जूतों से रगड़ते हुए कहा, ‘‘हां, मैं ने इन्हें एक साधारण सी दुकान से खरीदे हैं.’’
यह सुन कर हैदर फहीम की ओर बढ़ा और क्रोध से बोला, ‘‘यू डबल क्रौसर! तुम समझते हो कि इस तरह तुम बच निकलोगे. कल सुबह मैं तुम्हारे बौस के पास बैंक जाऊंगा और उसे सब कुछ बता दूंगा.’’
हैदर की इस धमकी से साफ हो गया था कि उस के पास तसवीर की अन्य कापियां नहीं थीं. फहीम दिल ही दिल में खुश हो कर बोला, ‘‘हैदर, कल सुबह तुम इस शहर से मीलों दूर होगे या फिर जेल की सलाखों के पीछे पाए जाओगे.’’
‘‘क्या मतलब?’’ हैदर सिटपिटा गया.
‘‘मेरा मतलब यह है कि मैं ने सुलतान ज्वैलरी स्टोर के चौकीदार को रस्सी से बांध दिया है. छेनी की मदद से तिजोरी पर इस तरह के निशान लगा दिए हैं, जैसे किसी ने उसे खोलने की कोशिश की हो. लेकिन खोलने में सफल न हुआ हो. ऐसे में सुलतान अहमद की समझ में आ जाएगा कि यह हरकत तुम्हारी है.
‘‘इस के लिए मैं ने तिजोरी के पास एक विजीटिंग कार्ड गिरा दिया है, जिस पर तुम्हारा नाम और पता छपा है. वह कार्ड कल रात ही मैं ने छपवाया था. अगर तुम्हारा ख्याल है कि तुम सुलतान अहमद को इस बात से कायल कर सकते हो कि तिजोरी को तोड़ने की कोशिश के दौरान वह कार्ड तुम्हारे पास से वहां नहीं गिरा तो फिर तुम इस शहर रहने की हिम्मत कर सकते हो.
‘‘लेकिन अगर तुम ऐसा नहीं कर सकते तो बेहतर यही होगा कि तुम अभी इस शहर से भाग जाने की तैयारी कर लो. मैं ने सुलतान ज्वैलरी स्टोर के चौकीदार को ज्यादा मजबूती से नहीं बांधा था. वह अब तक स्वयं को रस्सी से खोलने में कामयाब हो गया होगा.’’
हैदर कुछ क्षणों तक फहीम को पागलों की तरह घूरता रहा. इस के बाद वह अलमारी की तरफ लपका और अपने कपड़े तथा अन्य जरूरी सामान ब्रीफकेस में रख कर तेजी से सीढि़यों की ओर बढ़ गया.
फहीम इत्मीनान से टहलता हुआ हैदर के घर से बाहर निकला. बाहर आ कर बड़बड़ाया, ‘मेरा ख्याल है कि अब हैदर कभी इस शहर में लौट कर नहीं आएगा. हां, कुछ समय बाद वह यह जरूर सोच सकता है कि मैं वास्तव में सुलतान ज्वैलरी स्टोर में गया भी था या नहीं? लेकिन अब उस में इतनी हिम्मत नहीं रही कि वह वापस आ कर हकीकत का पता करे. फिलहाल मेरी यह चाल कामयाब रही. मैं ने उसे जो बता दिया, उस ने उसे सच मान लिया.’
अपनी सहेली के बेटे के विवाह में शामिल हो कर पटना से पुणे लौट रही थी कि रास्ते में बनारस में रहने वाली भाभी, चाची की बहू से मिलने का लोभ संवरण नहीं कर पाई. बचपन की कुछ यादों से वे इतनी जुड़ी थीं जो कि भुलाए नहीं भूल सकती. सो, बिना किसी पूर्वयोजना के, पूर्वसूचना के रास्ते में ही उतर गई. पटना में ट्रेन में बैठने के बाद ही भाभी से मिलने का मन बनाया था. घर का पता तो मुझे मालूम ही था, आखिर जन्म के बाद 19 साल मैं ने वहीं गुजारे थे. हमारा संयुक्त परिवार था. पिताजी की नौकरी के कारण बाद में हम दिल्ली आ गए थे. उस के बाद, इधरउधर से उन के बारे में सूचना मिलती रही, लेकिन मेरा कभी उन से मिलना नहीं हुआ था. आज 25 साल बाद उसी घर में जाते हुए अजीब सा लग रहा था, इतने सालों में भाभी में बहुत परिवर्तन आ गया होगा, पता नहीं हम एकदूसरे को पहचानेंगे भी या नहीं, यही सोच कर उन से मिलने की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी. अचानक पहुंच कर मैं उन को हैरान कर देना चाह रही थी.
स्टेशन से जब आटो ले कर घर की ओर चली तो बनारस का पूरा नक्शा ही बदला हुआ था. जो सड़कें उस जमाने में सूनी रहती थीं, उन में पैदल चलना तो संभव ही नहीं दिख रहा था. बड़ीबड़ी अट्टालिकाओं से शहर पटा पड़ा था. पहले जहां कारों की संख्या सीमित दिखाई पड़ती थी, अब उन की संख्या अनगिनत हो गई थी. घर को पहचानने में भी दिक्कत हुई. आसपास की खाली जमीन पर अस्पताल और मौल ने कब्जा कर रखा था. आखिर घूमतेघुमाते घर पहुंच ही गई.
घर के बाहर के नक्शे में कोई परिवर्तन नहीं था, इसलिए तुरंत पहचान गई. आगे क्या होगा, उस की अनुभूति से ही धड़कनें तेज होने लगीं. डोरबैल बजाई. दरवाजा खुला, सामने भाभी खड़ी थीं. बालों में बहुत सफेदी आ गई थी. लेकिन मुझे पहचानने में दिक्कत नहीं हुई. उन को देख कर मेरे चेहरे पर मुसकान तैर गई. लेकिन उन की प्रतिक्रिया से लग रहा था कि वे मुझे पहचानने की असफल कोशिश कर रही थीं. उन्हें अधिक समय दुविधा की स्थिति में न रख कर मैं ने कहा, ‘‘भाभी, मैं गीता.’’ थोड़ी देर वे सोच में पड़ गईं, फिर खुशी से बोलीं, ‘‘अरे, दीदी आप, अचानक कैसे? खबर क्यों नहीं की, मैं स्टेशन लेने आ जाती. कितने सालों बाद मिले हैं.’’
उन्होंने मुझे गले से लगा लिया और हाथ पकड़ कर घर के अंदर ले गईं. अंदर का नक्शा पूरी तरह से बदला हुआ था. चाचाचाची तो कब के कालकवलित हो गए थे. 2 ननदें थीं, उन का विवाह हो चुका था. भाभी की बेटी की भी शादी हो गई थी. एक बेटा था, जो औफिस गया हुआ था. मेरे बैठते ही वे चाय बना कर ले आईं. चाय पीतेपीते मैं ने उन को भरपूर नजरों से देखा, मक्खन की तरह गोरा चेहरा अपनी चिकनाई खो कर पाषाण जैसा कठोर और भावहीन हो गया था. पथराई हुई आंखें, जैसे उन की चमक को ग्रहण लगे वर्षों बीत चुके हों. सलवटें पड़ी हुई सूती सफेद साड़ी, जैसे कभी उस ने कलफ के दर्शन ही न किए हों. कुल मिला कर उन की स्थिति उस समय से बिलकुल विपरीत थी जब वे ब्याह कर इस घर में आई थीं.
मैं उन्हें देखने में इतनी खो गई थी कि उन की क्या प्रतिक्रिया होगी, इस का ध्यान ही नहीं रहा. उन की आवाज से चौंकी, ‘‘दीदी, किस सोच में पड़ गई हैं, पहले मुझे देखा नहीं है क्या? नहा कर थोड़ा आराम कर लीजिए, ताकि रास्ते की थकान उतर जाए. फिर जी भर के बातें करेंगे.’’ चाय खत्म हो गई थी, मैं झेंप कर उठी और कपड़े निकाल कर बाथरूम में घुस गई.
शादी और सफर की थकान से सच में बदन बिलकुल निढाल हो रहा था. लेट तो गई लेकिन आंखों में नींद के स्थान पर 25 साल पुराने अतीत के पन्ने एकएक कर के आंखों के सामने तैरने लगे…
मेरे चचेरे भाई का विवाह इन्हीं भाभी से हुआ था. चाचा की पहली पत्नी से मेरा इकलौता भाई हुआ था. वह अन्य दोनों सौतेली बहनों से भिन्न था. देखने और स्वभाव दोनों में उस का अपनी बहनों से अधिक मुझ से स्नेह था क्योंकि उस की सौतेली बहनें उस से सौतेला व्यवहार करती थीं. उस की मां के गुण उन में कूटकूट कर भरे थे. मेरी मां की भी उस की सगी मां से बहुत आत्मीयता थी, इसलिए वे उस को अपने बड़े बेटे का दरजा देती थीं. उस जमाने में अधिकतर जैसे ही लड़का व्यवसाय में लगा कि उस के विवाह के लिए रिश्ते आने लगते थे. भाई एक तो बहुत मनमोहक व्यक्तित्व का मालिक था, दूसरा उस ने चाचा के व्यवसाय को भी संभाल लिया था. इसलिए जब भाभी के परिवार की ओर से विवाह का प्रस्ताव आया तो चाचा मना नहीं कर पाए. उन दिनों घर के पुरुष ही लड़की देखने जाते थे, इसलिए भाई के साथ चाचा और मेरे पापा लड़की देखने गए. उन को सब ठीक लगा और भाई ने भी अपने चेहरे के हावभाव से हां की मुहर लगा दी तो वे नेग कर के, शगुन के फल, मिठाई और उपहारों से लदे घर लौटे तो हमारी खुशी का ठिकाना नहीं रहा. भाई जब हम से मिलने आया तो बहुत शरमा रहा था. हमारे पूछने पर कि कैसी हैं भाभी, तो उस के मुंह से निकल गया, ‘बहुत सुंदर है.’ उस के चेहरे की लजीली खुशी देखते ही बन रही थी.
देखते ही देखते विवाह का दिन भी आ गया. उन दिनों औरतें बरात में नहीं जाया करती थीं. हम बेसब्री से भाभी के आने की प्रतीक्षा करने लगे. आखिर इंतजार की घडि़यां समाप्त हुईं और लंबा घूंघट काढ़े भाभी भाई के पीछेपीछे आ गईं. चाची ने उन्हें औरतों के झुंड के बीचोंबीच बैठा दिया.
मुंहदिखाई की रस्मअदायगी शुरू हो गई. पहली बार ही जब उन का घूंघट उठाया गया तो मैं उन का चेहरा देखने का मौका हाथ से जाने नहीं देना चाहती थी और जब मैं ने उन्हें देखा तो मैं देखती ही रह गई उस अद्भुत सौंदर्य की स्वामिनी को. मक्खन सा झक सफेद रंग, बेदाग और लावण्यपूर्ण चेहरा, आंखों में हजार सपने लिए सपनीली आंखें, चौड़ा माथा, कालेघने बालों का बड़ा सा जूड़ा तथा खुशी से उन का चेहरा और भी दपदपा रहा था.
वे कुल मिला कर किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थीं. सभी औरतें आपस में उन की सुंदरता की चर्चा करने लगीं. भाई विजयी मुसकान के साथ इधरउधर घूम रहा था. इस से पहले उसे कभी इतना खुश नहीं देखा था. उस को देख कर हम ने सोचा, मां तो जन्म देते ही दुनिया से विदा हो गई थीं, चलो कम से कम अपनी पत्नी का तो वह सुख देखेगा.
विवाह के समय भाभी मात्र 16 साल की थीं. मेरी हमउम्र. चाची को उन का रूप फूटी आंखों नहीं सुहाया क्योंकि अपनी बदसूरती को ले कर वे हमेशा कुंठित रहती थीं. अपना आक्रोश जबतब भाभी के क्रियाकलापों में मीनमेख निकाल कर शांत करती थीं. कभी कोई उन के रूप की प्रशंसा करता तो छूटते ही बोले बिना नहीं रहती थीं, ‘रूप के साथ थोड़े गुण भी तो होने चाहिए थे, किसी काम के योग्य नहीं है.’
दोनों ननदें भी कटाक्ष करने में नहीं चूकती थीं. बेचारी चुपचाप सब सुन लेती थीं. लेकिन उस की भरपाई भाई से हो जाती थी. हम भी मूकदर्शक बने सब देखते रहते थे.
कभीकभी भाभी मेरे व मां के पास आ कर अपना मन हलका कर लेती थीं. लेकिन मां भी असहाय थीं क्योंकि चाची के सामने बोलने की किसी की हिम्मत नहीं थी.
मैं मन ही मन सोचती, मेरी हमउम्र भाभी और मेरे जीवन में कितना अंतर है. शादी के बाद ऐसा जीवन जीने से तो कुंआरा रहना ही अच्छा है. मेरे पिता पढ़ेलिखे होने के कारण आधुनिक विचारधारा के थे. इतनी कम उम्र में मैं अपने विवाह की कल्पना नहीं कर सकती थी. भाभी के पिता के लिए लगता है, उन के रूप की सुरक्षा करना कठिन हो गया था, जो बेटी का विवाह कर के अपने कर्तव्यों से उन्होंने छुटकारा पा लिया. भाभी ने 8वीं की परीक्षा दी ही थी अभी. उन की सपनीली आंखों में आंसू भरे रहते थे अब, चेहरे की चमक भी फीकी पड़ गई थी.
विवाह को अभी 3 महीने भी नहीं बीते होंगे कि भाभी गर्भवती हो गईं. मेरी भोली भाभी, जो स्वयं एक बच्ची थीं, अचानक अपने मां बनने की खबर सुन कर हक्कीबक्की रह गईं और आंखों में आंसू उमड़ आए. अभी तो वे विवाह का अर्थ भी अच्छी तरह समझ नहीं पाई थीं. वे रिश्तों को ही पहचानने में लगी हुई थीं, मातृत्व का बोझ कैसे वहन करेंगी. लेकिन परिस्थितियां सबकुछ सिखा देती हैं. उन्होंने भी स्थिति से समझौता कर लिया. भाई पितृत्व के लिए मानसिक रूप से तैयार तो हो गया, लेकिन उस के चेहरे पर अपराधभावना साफ झलकती थी कि जागरूकता की कमी होने के कारण भाभी को इस स्थिति में लाने का दोषी वही है. मेरी मां कभीकभी भाभी से पूछ कर कि उन्हें क्या पसंद है, बना कर चुपचाप उन के कमरे में पहुंचा देती थीं. बाकी किसी को तो उन से कोई हमदर्दी न थी.
प्रसव का समय आ पहुंचा. भाभी ने चांद सी बेटी को जन्म दिया. नन्हीं परी को देख कर, वे अपना सारा दुखदर्द भूल गईं और मैं तो खुशी से नाचने लगी. लेकिन यह क्या, बाकी लोगों के चेहरों पर लड़की पैदा होने की खबर सुन कर मातम छा गया था. भाभी की ननदें और चाची सभी तो स्त्री हैं और उन की अपनी भी तो 2 बेटियां ही हैं, फिर ऐसा क्यों? मेरी समझ से परे की बात थी. लेकिन एक बात तो तय थी कि औरत ही औरत की दुश्मन होती है. मेरे जन्म पर तो मेरे पिताजी ने शहरभर में लड्डू बांटे थे. कितना अंतर था मेरे चाचा और पिताजी में. वे केवल एक साल ही तो छोटे थे उन से. एक ही मां से पैदा हुए दोनों. लेकिन पढ़ेलिखे होने के कारण दोनों की सोच में जमीनआसमान का अंतर था.
मातृत्व से गौरवान्वित हो कर भाभी और भी सुडौल व सुंदर दिखने लगी थीं. बेटी तो जैसे उन को मन बहलाने का खिलौना मिल गई थी. कई बार तो वे उसे खिलातेखिलाते गुनगुनाने लगती थीं. अब उन के ऊपर किसी के तानों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता था. मां बनते ही औरत कितनी आत्मविश्वास और आत्मसम्मान से पूर्ण हो जाती है, उस का उदाहरण भाभी के रूप में मेरे सामने था. अब वे अपने प्रति गलत व्यवहार की प्रतिक्रियास्वरूप प्रतिरोध भी करने लगी थीं. इस में मेरे भाई का भी सहयोग था, जिस से हमें बहुत सुखद अनुभूति होती थी.
इसी तरह समय बीतने लगा और भाभी की बेटी 3 साल की हो गई तो फिर से उन के गर्भवती होने का पता चला और इस बार भाभी की प्रतिक्रिया पिछली बार से एकदम विपरीत थी. परिस्थितियों ने और समय ने उन को काफी परिपक्व बना दिया था.
गर्भ को 7 महीने बीत गए और अचानक हृदयविदारक सूचना मिली कि भाई की घर लौटते हुए सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई है. यह अनहोनी सुन कर सभी लोग स्तंभित रह गए. कोई भाभी को मनहूस बता रहा था तो कोई अजन्मे बच्चे को कोस रहा था कि पैदा होने से पहले ही बाप को खा गया. यह किसी ने नहीं सोचा कि पतिविहीन भाभी और बाप के बिना बच्चे की जिंदगी में कितना अंधेरा हो गया है. उन से किसी को सहानुभूति नहीं थी.
समाज का यह रूप देख कर मैं कांप उठी और सोच में पड़ गई कि यदि भाई कमउम्र लिखवा कर लाए हैं या किसी की गलती से दुर्घटना में वे मारे गए हैं तो इस में भाभी का क्या दोष? इस दोष से पुरुष जाति क्यों वंचित रहती है?
एकएक कर के उन के सारे सुहाग चिह्न धोपोंछ दिए गए. उन के सुंदर कोमल हाथ, जो हर समय मीनाकारी वाली चूडि़यों से सजे रहते थे, वे खाली कर दिए गए. उन्हें सफेद साड़ी पहनने को दी गई. भाभी के विवाह की कुछ साडि़यों की तो अभी तह भी नहीं खुल पाई थी. वे तो जैसे पत्थर सी बेजान हो गई थीं. और जड़वत सभी क्रियाकलापों को निशब्द देखती रहीं. वे स्वीकार ही नहीं कर पा रही थीं कि उन की दुनिया उजड़ चुकी थी.
एक भाई ही तो थे जिन के कारण वे सबकुछ सह कर भी खुश रहती थीं. उन के बिना वे कैसे जीवित रहेंगी? मेरा हृदय तो चीत्कार करने लगा कि भाभी की ऐसी दशा क्यों की जा रही थी. उन का कुसूर क्या था? पत्नी की मृत्यु के बाद पुरुष पर न तो लांछन लगाए जाते हैं, न ही उन के स्वरूप में कोई बदलाव आता है. भाभी के मायके वाले भाई की तेरहवीं पर आए और उन्हें साथ ले गए कि वे यहां के वातावरण में भाई को याद कर के तनाव में और दुखी रहेंगी, जिस से आने वाले बच्चे और भाभी के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ेगा. सब ने सहर्ष उन को भेज दिया यह सोच कर कि जिम्मेदारी से मुक्ति मिली. कुछ दिनों बाद उन के पिताजी का पत्र आया कि वे भाभी का प्रसव वहीं करवाना चाहते हैं. किसी ने कोई एतराज नहीं किया. और फिर यह खबर आई कि भाभी के बेटा हुआ है.
हमारे यहां से उन को बुलाने का कोई संकेत दिखाई नहीं पड़ रहा था. लेकिन उन्होंने बुलावे का इंतजार नहीं किया और बेटे के 2 महीने का होते ही अपने भाई के साथ वापस आ गईं. कितना बदल गई थीं भाभी, सफेद साड़ी में लिपटी हुई, सूना माथा, हाथ में सोने की एकएक चूड़ी, बस. उन्होंने हमें बताया कि उन के मातापिता उन को आने नहीं दे रहे थे कि जब उस का पति ही नहीं रहा तो वहां जा कर क्या करेगी लेकिन वे नहीं मानीं. उन्होंने सोचा कि वे अपने मांबाप पर बोझ नहीं बनेंगी और जिस घर में ब्याह कर गई हैं, वहीं से उन की अर्थी उठेगी.
मैं ने मन में सोचा, जाने किस मिट्टी की बनी हैं वे. परिस्थितियों ने उन्हें कितना दृढ़निश्चयी और सहनशील बना दिया है. समय बीतते हुए मैं ने पाया कि उन का पहले वाला आत्मसम्मान समाप्त हो चुका है. अंदर से जैसे वे टूट गई थीं. जिस डाली का सहारा था, जब वह ही नहीं रही तो वे किस के सहारे हिम्मत रखतीं. उन को परिस्थितियों से समझौता करने के अतिरिक्त कोई चारा दिखाई नहीं पड़ रहा था. फूल खिलने से पहले ही मुरझा गया था. सारा दिन सब की सेवा में लगी रहती थीं.
उन की ननद का विवाह तय हो गया और तारीख भी निश्चित हो गई थी. लेकिन किसी भी शुभकार्य के संपन्न होते समय वे कमरे में बंद हो जाती थीं. लोगों का कहना था कि वे विधवा हैं, इसलिए उन की परछाईं भी नहीं पड़नी चाहिए. यह औरतों के लिए विडंबना ही तो है कि बिना कुसूर के हमारा समाज विधवा के प्रति ऐसा दृष्टिकोण रखता है. उन के दूसरे विवाह के बारे में सोचना तो बहुत दूर की बात थी. उन की हर गतिविधि पर तीखी आलोचना होती थी. जबकि चाचा का दूसरा विवाह, चाची के जाने के बाद एक साल के अंदर ही कर दिया गया. लड़का, लड़की दोनों मां के कोख से पैदा होते हैं, फिर समाज की यह दोहरी मानसिकता देख कर मेरा मन आक्रोश से भर जाता था, लेकिन कुछ कर नहीं सकती थी.
मेरे पिताजी पुश्तैनी व्यवसाय छोड़ कर दिल्ली में नौकरी करने का मन बना रहे थे. भाभी को जब पता चला तो वे फूटफूट कर रोईं. मेरा तो बिलकुल मन नहीं था उन से इतनी दूर जाने का, लेकिन मेरे न चाहने से क्या होना था और हम दिल्ली चले गए. वहां मैं ने 2 साल में एमए पास किया और मेरा विवाह हो गया. उस के बाद भाभी से कभी संपर्क ही नहीं हुआ. ससुराल वालों का कहना था कि विवाह के बाद जब तक मायके के रिश्तेदारों का निमंत्रण नहीं आता तब तक वे नहीं जातीं. मेरा अपनी चाची से ऐसी उम्मीद करना बेमानी था. ये सब सोचतेसोचते कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला.
‘‘उठो दीदी, सांझ पड़े नहीं सोते. चाय तैयार है,’’ भाभी की आवाज से मेरी नींद खुली और मैं उठ कर बैठ गई. पुरानी बातें याद करतेकरते सोने के बाद सिर भारी हो रहा था, चाय पीने से थोड़ा आराम मिला. भाभी का बेटा, प्रतीक भी औफिस से आ गया था. मेरी दृष्टि उस पर टिक गई, बिलकुल भाई पर गया था. उसी की तरह मनमोहक व्यक्तित्व का स्वामी, उसी तरह बोलती आंखें और गोरा रंग.
इतने वर्षों बाद मिली थी भाभी से, समझ ही नहीं आ रहा था कि बात कहां से शुरू करूं. समय कितना बीत गया था, उन का बेटा सालभर का भी नहीं था जब हम बिछुड़े थे. आज इतना बड़ा हो गया है. पूछना चाह रही थी उन से कि इतने अंतराल तक उन का वक्त कैसे बीता, बहुतकुछ तो उन के बाहरी आवरण ने बता दिया था कि वे उसी में जी रही हैं, जिस में मैं उन को छोड़ कर गई थी. इस से पहले कि मैं बातों का सिलसिला शुरू करूं, भाभी का स्वर सुनाई दिया, ‘‘दामादजी क्यों नहीं आए? क्या नाम है बेटी का? क्या कर रही है आजकल? उसे क्यों नहीं लाईं?’’ इतने सारे प्रश्न उन्होंने एकसाथ पूछ डाले.
मैं ने सिलसिलेवार उत्तर दिया, ‘‘इन को तो अपने काम से फुरसत नहीं है. मीनू के इम्तिहान चल रहे थे, इसलिए भी इन का आना नहीं हुआ. वैसे भी, मेरी सहेली के बेटे की शादी थी, इन का आना जरूरी भी नहीं था. और भाभी, आप कैसी हो? इतने साल मिले नहीं, लेकिन आप की याद बराबर आती रही. आप की बेटी के विवाह में भी चाची ने नहीं बुलाया. मेरा बहुत मन था आने का, कैसी है वह?’’ मैं ने सोचने में और समय बरबाद न करते हुए पूछा.
‘‘क्या करती मैं, अपनी बेटी की शादी में भी औरों पर आश्रित थी. मैं चाहती तो बहुत थी…’’ कह कर वे शून्य में खो गईं.’’
‘‘चलो, अब चाचाचाची तो रहे नहीं, प्रतीक के विवाह में आप नहीं बुलाएंगी तो भी आऊंगी. अब तो विवाह के लायक वह भी हो गया है.’’
‘‘मैं भी अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होना चाह रही हूं,’’ उन्होंने संक्षिप्त उत्तर देते हुए लंबी सांस ली.
‘‘एक बात पूछूं, भाभी, आप को भाई की याद तो बहुत आती होगी?’’ मैं ने सकुचाते हुए उन्हें टटोला.
‘‘हां दीदी, लेकिन यादों के सहारे कब तक जी सकते हैं. जीवन की कड़वी सचाइयां यादों के सहारे तो नहीं झेली जातीं. अकेली औरत का जीवन कितना दूभर होता है. बिना किसी के सहारे के जीना भी तो बहुत कठिन है. वे तो चले गए लेकिन मुझे तो सारी जिम्मेदारी अकेले संभालनी पड़ी. अंदर से रोती थी और बच्चों के सामने हंसती थी कि उन का मन दुखी न हो. वे अपने को अनाथ न समझें,’’ एक सांस में वे बोलीं, जैसे उन्हें कोई अपना मिला, दिल हलका करने के लिए.
‘‘हां भाभी, आप सही हैं, जब भी ये औफिस टूर पर चले जाते हैं तब अपने को असहाय महसूस करती हूं मैं भी. एक बात पूछूं, बुरा तो नहीं मानेंगी? कभी आप को किसी पुरुषसाथी की आवश्यकता नहीं पड़ी?’’ मेरी हिम्मत उन की बातों से बढ़ गई थी.
‘‘क्या बताऊं दीदी, जब मन बहुत उदास होता था तो लगता था किसी के कंधे पर सिर रख कर खूब रोऊं और वह कंधा पुरुष का हो तभी हम सुरक्षित महसूस कर सकते हैं. उस के बिना औरत बहुत अकेली है,’’ उन्होंने बिना संकोच के कहा.
‘‘आप ने कभी दूसरे विवाह के बारे में नहीं सोचा?’’ मेरी हिम्मत बढ़ती जा रही थी.
‘‘कुछ सोचते हुए वे बोलीं, ‘‘क्यों नहीं दीदी, पुरुषों की तरह औरतों की भी तो तन की भूख होती है बल्कि उन को तो मानसिक, आर्थिक सहारे के साथसाथ सामाजिक सुरक्षा की भी बहुत जरूरत होती है. मेरी उम्र ही क्या थी उस समय. लेकिन जब मैं पढ़ीलिखी न होने के कारण आर्थिक रूप से दूसरों पर आश्रित थी तो कर भी क्या सकती थी. इसीलिए मैं ने सब के विरुद्ध हो कर, अपने गहने बेच कर आस्था को पढ़ाया, जिस से वह आत्मनिर्भर हो कर अपने निर्णय स्वयं ले सके. समय का कुछ भी भरोसा नहीं, कब करवट बदले.’’
उन का बेबाक उत्तर सुन कर मैं अचंभित रह गई और मेरा मन करुणा से भर आया, सच में जिस उम्र में वे विधवा हुई थीं उस उम्र में तो आजकल कोई विवाह के बारे में सोचता भी नहीं है. उन्होंने इतना समय अपनी इच्छाओं का दमन कर के कैसे काटा होगा, सोच कर ही मैं सिहर उठी थी.
‘‘हां भाभी, आजकल तो पति की मृत्यु के बाद भी उन के बाहरी आवरण में और क्रियाकलापों में विशेष परिवर्तन नहीं आता और पुनर्विवाह में भी कोई अड़चन नहीं डालता, पढ़ीलिखी होने के कारण आत्मविश्वास और आत्मसम्मान के साथ जीती हैं, होना भी यही चाहिए, आखिर उन को किस गलती की सजा दी जाए.’’
‘‘बस, अब तो मैं थक गई हूं. मुझे अकेली देख कर लोग वासनाभरी नजरों से देखते हैं. कुछ अपने खास रिश्तेदारों के भी मैं ने असली चेहरे देख लिए तुम्हारे भाई के जाने के बाद. अब तो प्रतीक के विवाह के बाद मैं संसार से मुक्ति पाना चाहती हूं,’’ कहतेकहते भाभी की आंखों से आंसू बहने लगे. समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा न करने के लिए कह कर उन का दुख बढ़ाऊंगी या सांत्वना दूंगी, मैं शब्दहीन उन से लिपट गई और वे अपना दुख आंसुओं के सहारे हलका करती रहीं. ऐसा लग रहा था कि बरसों से रुके हुए आंसू मेरे कंधे का सहारा पा कर निर्बाध गति से बह रहे थे और मैं ने भी उन के आंसू बहने दिए.
अगले दिन ही मुझे लौटना था, भाभी से जल्दी ही मिलने का तथा अधिक दिन उन के साथ रहने का वादा कर के मैं भारी मन से ट्रेन में बैठ गई. वे प्रतीक के साथ मुझे छोड़ने के लिए स्टेशन आई थीं. ट्रेन के दरवाजे पर खड़े हो कर हाथ हिलाते हुए, उन के चेहरे की चमक देख कर मुझे सुकून मिला कि चलो, मैं ने उन से मिल कर उन के मन का बोझ तो हलका किया.