क्या करें जब पड़ोस की लड़की भाने लगे

खैर, मसला यह है कि क्या करें जब पड़ोस की लड़की भाने लगे, उस के लिए दिल में कुछकुछ होने लगे और उसे देखने भर से मन न भरे. पहली बात जो इस मसले में जान लेना बहुत जरूरी है, यह है कि पड़ोस के प्यार के बारे में शायद आप को अब भी कुछ दुविधा हो कि यह प्यार है या नहीं, लेकिन, पूरे महल्ले के लिए तो आप का उसे एक नजर देखना भर ही “पक्का इन का चक्कर चल रहा है” कहने के लिए काफी होगा. तो, जरा संभल कर.

प्रोपोज करने से पहले सोच लें यदि आप यह सोचें की आप को अपने सामने वाले घर में रहने वाली लड़की अच्छी लगती है और आप के दिमाग में उसे देखते ही ‘मेरे सामने वाली खिड़की में एक चांद सा टुकड़ा रहता है’ गीत गुनगुनाने लगता है, तो इस का मतलब यह नहीं कि आप जा कर सीधा प्रोपोज कर दें.

पहले अपनी फीलिंग्स को ले कर क्लियर हो जाएं कि सच में आप उसे चाहने लगे हैं या यह छोटा मोटा क्रश है. इस के बाद उस लड़की के हावभाव नोटिस करें. अगर वह भी आप को उस नजर से देखती है जिस से आप देखते हैं, अगर वह भी आप को नोटिस करती है, अगर उस ने सच में कोई हिंट दिया है तो आप उसे प्रोपोज करने के बारे में सोच सकते हैं, नहीं तो नहीं.

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हां, परंतु उस का अपनी खिड़की पर आ कर बाल सुखाना और खिड़की का पर्दा खुला रखना आप के लिए कोई संकेत नहीं है, यह भी ध्यान रखें. उस की सामान्य क्रियाओं को प्रतिकिर्याओं के रूप में लेने की कोशिश न करें.

शब्दों का चुनाव सही हो

अगर आप को उस लड़की को प्रोपोज करना है तो अपने शब्दों का चुनाव सही रखना बेहद जरूरी है. उसे दो दिन पहले देखा और तीसरे दिन जा कर यह कह देना कि मैं तुम्हें बेहद प्यार करता हूं और तुम्हारे बिना मर जाऊंगा, बेतुका है. फिल्म रांझना के कुंदन बनने से कुछ होने वाला नहीं है, थोड़े समझदार व्यक्ति की तरह सोचें. यदि आप उसे पसंद करते हैं तो उसे यह कहें कि आप को वह पसंद है. आप को उसे देखना अच्छा लगता है तो उसे यह कहें कि वह खूबसूरत है और आप की नजरें उस पर रुक जाती हैं. जवानी के जोश में और अपने खुद के भ्रम में उस लड़की को उलझाने की कोशिश न करें. प्यार को चलता फिरता शब्द न बनाएं.

गति धीमी रखें

यदि आप की पड़ोस की लड़की भी आप को उतना ही पसंद करती है जितना आप करते हैं तो खुशी के मारे हर चीज़ हबड़तबड़ में न करें. आज उसे खत भेजना तो कल बाजार में हाथ पकड़े घूमना और परसो उसे कहना कि किस करे या सेक्स करे, गलत है. चीज़ें शुरू के दिनों में जितनी अच्छी लगेंगी ब्रेकअप होने के बाद उतनी ही खलेंगी भी. वैसे भी जल्बाजी करने पर चीज़े बिगड़ती ही हैं, फल अपना समय ले कर ही उगते हैं, जल्बाजी करने पर पेट में रसायन ही जाता है जो जानलेवा होता है.

आसपड़ोस का रखे ध्यान

अपने प्यार में इतना भी न खो जाएं कि आप आसपास देखना ही भूल जाएं. पड़ोस की लवस्टोरी में परिवार और पड़ोस की भी बड़ी भूमिका होती है. यदि जाने-अनजाने किसी को आप दोनों के प्रेमप्रसंग के बारे में पता चलता है तो यह आप दोनों के रिश्ते का अंत भी हो सकता है. यह न भूलें कि भारतीय परंपरा और प्रतिष्ठा से लिप्त परिवारों के लिए लड़के लड़की का शादी से पहले ‘प्यार’ का नाम लेना भी “थूथू” से कम नहीं. तो, बाजार में हाथ पकड़े न घूमें, हमेशा उसे ही ताकते न रहें, इशारों इशारों में इतनी भी बातें न करें कि पूरा महल्ला ही इस का दर्शक बन जाए.

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दोस्तों को हर बात न बताएं

माना दोस्तों से कुछ छुपाना नहीं चाहिए हम ने बचपन से सीखा है लेकिन इस का मतलब यह नहीं कि आप इस बात को अपने अंदर इतना घुसा लें कि आप अपने प्रेमप्रसंग की बातें हर किसी को ही बताने लगें. आप का दोस्त यदि आप को जानता है तो उस लड़की को भी जानता ही होगा. एक ही महल्ले में रहने के कारण आप का दोस्त भी उस लड़की को हमेशा ‘भाभी’ की नजर से ही देखेगा जोकि सही नहीं है, क्योंकि इस से उस लड़की को अटपटा लग सकता है.

आप यदि अपने दोस्तों को अपने और उस लड़की के शारीरिक संबंधों के बारे में बताते फिरेंगे तो यकीन मानिए वे उस लड़की को वासना की नजर से देखने लगेंगे. कितनी ही बार तो ऐसी घटनाएं भी सामने आई हैं जब दोस्तों ने अपनी ही दोस्त की गर्लफ्रेंड को छेड़ा या उस के साथ बलात्कार की कोशिश की है. तो, जरा संभल कर.

पारिवारिक अस्मिता का ध्यान रखें

पड़ोस के प्यार में अकसर लड़के-लड़कियां पारिवारिक अस्मिता का ध्यान रखना भूल जाते हैं. एकदूसरे से छत पर छुपछुप कर मिलना, एकदूसरे के घर में घुस जाना, फंक्शन का फायदा उठा कर एकदूसरे को भरी महफिल में छूने की कोशिश करना, गलत है. कुछ भी करने से पहले अच्छी तरह सोच लें. इस पड़ोस के प्यार के पकड़े जाने पर आप और आप का परिवार तो आहत होते ही हैं, साथ ही लड़ाई झगड़ा होता है जिस का मनोरंजन पूरा महल्ला उठाता है और मजे लेता है. अपनी मोहब्बत को अपने परिवार की इज्जत उछालने का जरिया न बनने दें.

ब्रेकअप को सर पर न चढ़ने दें

हो सकता है आप को लग रहा हो कि अभी तो आप की लवस्टोरी शुरू भी नहीं हुई और मैं ब्रेकअप की बातें करने लगी. लेकिन, यह समझना भी बेहद जरूरी है. पड़ोस के प्यार में प्राइवेसी बहुत कम होती है, एकदूसरे का घर भी आसापास ही होता है इसलिए. ऐसे में यदि आप का ब्रेकअप हो जाए तो दो चीज़ें हो सकती हैं. पहला, आप इस ब्रेकअप से इतना टूट गए हैं कि उस लड़की की हंसी भी आप को अंगारों जैसी जला रही है.

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दूसरा, आप उस लड़की को अपनी खुशी दिखा कर जलाना चाहते हैं. दोनों ही मामलों में कुछ भी करने से पहले सोच लें. यह वही लड़की है जिस की चाहत में आप कुछ दिन पहले तक पागल हो गए थे, इसलिए अब उस के लिए कुछ बुरा सोचना या उस को नुक्सान पहुंचाने जैसी चीजें न सोचें. जो हो गया, सो हो गया. बातों को पकड़ कर न बैठे रहें बल्कि आगे बढें.

मोहब्बत के खूनी अंत की हैरतअंगेज कहानी

मध्य प्रदेश के इंदौर के थाना चंदननगर के रहने वाले 21 साल के सलमान शेख के अचानक लापता हो जाने से उस के घर वाले काफी परेशान थे. वह फैब्रिकेशन का काम करता था. घर से काम के लिए निकला सलमान घर नहीं लौटा तो 9 जनवरी, 2017 को उस के बड़े भाई तौकीर शेख ने थाना चंदननगर में उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी थी. गुमशुदगी दर्ज कराते समय उस ने अपने घर के सामने रहने वाले रऊफ खान और उस के ड्राइवर सद्दाम पर भाई के गायब करने का शक जाहिर किया था.

रऊफ खान बड़ीबड़ी बिल्डिंगों की मरम्मत एवं रंगाईपोताई का ठेका लेता था. उस के यहां पचासों मजदूर काम करते थे. सलमान भी पहले उस के यहां नौकरी करता था. लेकिन साल भर पहले उस ने सलमान को अपने यहां से नौकरी से निकाल दिया था.

रऊफ खान संपन्न आदमी था. वह निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में विधानसभा का चुनाव भी लड़ चुका था. उस की पहुंच भी ऊंची थी, इसलिए बिना किसी ठोस सबूत के पुलिस उस पर हाथ डालने से कतरा रही थी.

पुलिस ने लापता सलमान शेख के नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस में चौंकाने वाली जानकारी यह मिली कि सलमान की सब से ज्यादा और लंबीलंबी बातें रऊफ की पत्नी शबनम से हुई थीं. रऊफ के नौकरी से निकाल देने के बाद भी उस की शबनम से बातें होती रही थीं. इन बातों से थाना चंदननगर पुलिस को लगा कि शायद इसी वजह से सलमान के घर वाले रऊफ खान पर शक जाहिर कर रहे थे.

उन्होंने सलमान के भाई तौकीर से रऊफ और उस के रिश्तेदारों के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि उस के कई नजदीकी रिश्तेदार धार जिले के धरमपुरी में रहते हैं. तौकीर की इस बात पर उन्हें 5 दिनों पहले धरमपुरी में मिली लाश की बात याद आ गई.

दरअसल, 10 जनवरी, 2017 को धार जिला के थाना धरमपुरी के थानाप्रभारी के.एस. साहू को फोन द्वारा बेंट संस्थान के जंगल में लाश पड़ी होने की खबर मिली थी. अधिकारियों को सूचना दे कर वह पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए थे. वहां एक लाश पड़ी थी, जिस का सिर काफी क्षतविक्षत था. शायद जंगली जानवरों ने उसे नोचखसोट डाला था. उस का गुप्तांग भी कटा हुआ था. लाश की स्थिति देख कर थानाप्रभारी को लगा कि यह हत्या प्रेमप्रसंग में की गई है. क्योंकि प्रेमप्रसंग में अकसर इसी तरह हत्याएं की जाती हैं.

पुलिस ने लाश की शिनाख्त के लिए जब मृतक के कपड़ों की तलाशी ली तो पैंट की जेब से एक पर्स मिला, जिस में एक लड़के और लड़की की तसवीर के अलावा हिसाब की एक डायरी और तंबाकू की एक पुडि़या मिली. उस में कुछ ऐसा नहीं था, जिस से मृतक की पहचान हो सकती.

मृतक के गले में तुलसी की एक माला पड़ी थी, जिस से अंदाजा लगाया गया कि लाश किसी हिंदू की है. लाश की शिनाख्त नहीं हो सकी तो के.एस. साहू ने घटनास्थल की सारी काररवाई निपटा कर उसे पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया था. इस के बाद लाश की शिनाख्त के लिए इस की जानकारी अपने जिले में ही नहीं, आसपास के जिलों में भी दे दी थी. उसी जानकारी के आधार पर थाना चंदननगर के थानाप्रभारी को जब पता चला कि रऊफ की रिश्तेदारी धरमपुरी में है तो उन्हें लगा था कि वह लाश सलमान शेख की हो सकती है.

उन्होंने तत्काल लापता सलमान शेख के घर वालों को थाना धरमपुरी जाने की सलाह दी. तौकीर पिता के साथ थाने पहुंचा तो पता चला कि लाश तो दफना दी गई है. थानाप्रभारी के.एस. साहू ने लाश के सामान को दिखाया तो उन्होंने उस में रखी एक अंगूठी देख कर कहा कि वह लाश सलमान शेख की थी, पर यह तुलसी की माला उन का बेटा क्यों पहनेगा?

के.एस. साहू तुरंत समझ गए कि हत्यारों ने पुलिस को गुमराह करने के लिए उसे तुलसी की माला पहना कर उस का गुप्तांग काट दिया था. पुलिस को भ्रमित करने के लिए ही हत्यारों ने जेब में लड़की और लड़के की फोटो भी रखी थी. हत्यारों ने गलती यह की थी कि वे सलमान शेख की अंगूठी निकालना भूल गए थे. अंगूठी से ही उस की लाश की पहचान हो गई थी.

लाश की पहचान होने के बाद अगले दिन उपजिलाधिकारी के आदेश पर सलमान शेख का शव निकलवा कर उस के घर वालों को सौंप दिया गया था. घर वालों ने सलमान की लाश ला कर इंदौर के एक कब्रिस्तान में दफना दिया था. सलमान की लाश मिलने की सूचना पा कर उस के परिचितों और दोस्तों ने थाना चंदननगर में धरना दे कर हत्यारों को जल्द से जल्द गिरफ्तार करने की मांग की थी.

एक ओर जहां मृतक सलमान शेख के घर वालों और परिचितों ने पुलिस पर हत्यारों को गिरफ्तार करने का दबाव बना रखा था, वहीं मुखबिर से मिली जानकारी ने थानाप्रभारी को चौंका दिया था. मुखबिर ने बताया था कि सलमान को आखिरी बार रऊफ खान के ड्राइवर सद्दाम के साथ देखा गया था.

इस के बाद थाना चंदननगर पुलिस ने शबनम और सद्दाम को हिरासत में ले कर पूछताछ की. लेकिन दोनों ही कुछ भी बताने को तैयार नहीं थे. चूंकि पुलिस के पास दोनों के खिलाफ ठोस सबूत थे, इसलिए पुलिस ने दोनों से थोड़ी सख्ती की और उन्हें काल डिटेल्स दिखाई तो दोनों ने ही असलियत उगल दी.

सद्दाम ने स्वीकार कर लिया कि शबनम भाभी से सलमान शेख के संबंध थे, जिस से नाराज हो कर रऊफ खान ने सलमान की हत्या की योजना बनाई थी. इस योजना में उस के अलावा रऊफ के भतीजे गोलू उर्फ जफर और जावेद भी शामिल थे.

इस के बाद उस ने सलमान शेख की हत्या की जो कहानी सुनाई, उस के अनुसार थाना चंदननगर पुलिस ने जावेद, रऊफ खान, गोलू उर्फ जफर के अलावा थाना धरमपुरी पुलिस की मदद से धरमपुरी के रहने वाले रऊफ के एक रिश्तेदार को भी गिरफ्तार किया था. बाद में इन सब को भी थाना धरमपुरी पुलिस को सौंप दिया गया था, जहां इन सब से की गई पूछताछ में सलमान की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी.

इंदौर के थाना चंदननगर में रहने वाला 21 साल का सलमान अब्दुल लतीफ शेख का बेटा था. उस के घर के सामने ही रऊफ खान का घर था, जो बिल्डिंगों की मरम्मत और पुताई का ठेका लेता था. इस के लिए उस के पास तमाम मजदूर काम करते थे. सलमान पढ़लिख कर कमाने लायक हुआ तो अब्दुल लतीफ शेख के कहने पर रऊफ खान ने उसे भी अपने यहां काम पर रख लिया था.

सलमान रऊफ का पड़ोसी था ही, इसलिए उस का रऊफ के घर पहले से ही आनाजाना था. लेकिन जब वह उस के यहां काम करने लगा तो उस का आनाजाना कुछ ज्यादा ही हो गया. जिस की वजह से रऊफ की पत्नी शबनम से उस की कुछ ज्यादा ही पटने लगी. उन का रिश्ता भी कुछ ऐसा था. सलमान शबनम को भाभी कहता था, इसलिए खुल कर हंसीमजाक होता था.

रऊफ खान का काम बड़ा था, इसलिए उस का दिन भागदौड़ में ही बीत जाता था. चूंकि सलमान पड़ोसी था, इसलिए घर के कामों के लिए वह ज्यादातर उसे ही भेजता था. घर के कामों के साथसाथ सलमान शबनम के छोटेमोटे निजी काम भी कर दिया करता था. शबनम खूबसूरत भी थी और उम्र में भी रऊफ खान से छोटी थी. सलमान उस के हमउम्र था. इसी आनेजाने में ही युवा सलमान की नजरें शबनम के गदराए यौवन पर जम गईं. फिर तो जब भी उसे मौका मिलता, वह शबनम से ऐसा मजाक करता कि वह शरम से लाल हो उठती. औरतों को मर्दों की नजरें पहचानने में देर नहीं लगती. शबनम ने भी सलमान की नजरों से उस का इरादा भांप लिया.

पहले तो शबनम ने उस की नजरों से बचने की कोशिश की, लेकिन खुद से भी कमउम्र के आशिक की दीवानगी ने उसे बचने नहीं दिया, उस की दीवानगी उसे अच्छी लगने लगी तो वह उस के सामने अपने छिपे अंगों को इस तरह दिखाने लगी, जैसे सलमान जो देख रहा है, उस से वह अंजान है.

सलमान ने जो कुछ अब तक नहीं देखा था, शबनम से वह देखने को मिला तो वह ज्यादा से ज्यादा उस के करीब रहने की कोशिश करने लगा. सलमान की चाहत की आग में शबनम कुछ ज्यादा ही पिघलने लगी और धीरेधीरे खुद ही उस की होती चली गई. उस बीच रऊफ खान विधानसभा का चुनाव लड़ रहा था. इसलिए वह चुनाव में इस कदर व्यस्त हो गया कि न उसे काम का खयाल रहा और न पत्नीबच्चों का.

उस ने सभी कर्मचारियों को चुनाव प्रचार में लगा रखा था. ऐसे में उस ने सलमान को घर के कामों की जिम्मेदारी सौंप दी थी. इस बीच उस ने रातदिन शबनम भाभी की सेवा की. उस सेवा के फलस्वरूप एक दिन सलमान ने उसे बांहों में भर लिया. शबनम ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘तुम तो बड़े दिलेर निकले, तुम्हारी हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी. मुझे बांहों में भरते हुए तुम्हें डर नहीं लगा. तुम्हारे भाईजान ने देख लिया तो सीधे सूली पर चढ़ा देंगे.’’

‘‘भाभीजान, मैं ने तुम से मोहब्बत की है. मोहब्बत करने वाले किसी से नहीं डरते.’’

‘‘तुम भाईजान के गुस्से को तो जानते ही हो, एक ही बार में सारा इश्क उतार देंगे.’’

‘‘भाभीजान, क्यों मोहब्बत के मूड को बिगाड़ रही हो.’’

‘‘मैं तो मजाक कर रही थी.’’ शबनम ने कहा और सलमान से लिपट गई. इस के बाद दोनों तभी अलग हुए, जब उन के तनमन की आग ठंडी हो गई. इस के बाद दोनों को जब भी मौका मिलता, तन की आग के दरिया में डूब कर आपस में सुख बांट लेते.

सलमान को अब शबनम की जुदाई पल भर के लिए भी बरदाश्त नहीं होती थी. वह चाहता कि शबनम हमेशा उस की आंखों के सामने रहे. लेकिन यह संभव नहीं था. फिर भी वह हर पल उसी की यादों में खोया रहता और उस से मिलने का मौका ढूंढता रहता. अकसर वह दोपहर में काम छोड़ कर शबनम से मिलने उस के घर पहुंच जाता.

सलमान के इस तरह काम छोड़ कर जाने से रऊफ को उस पर शक हुआ तो उस ने कर्मचारियों से उस के बारे में पूछा. पता चला कि सलमान उस की पत्नी से फोन पर घंटों बातें करता है, अकसर दोपहर में उसी से मिलने भी जाता है. रऊफ ने जब इस बात पर ध्यान दिया तो पता चला कि सलमान और शबनम के बीच कुछ चल रहा है. इस के बाद वह दोनों पर नजर रखने लगा. आखिर एक दिन उस ने सलमान को पत्नी से फोन पर बातें करते पकड़ लिया तो उस ने सलमान की पिटाई कर के काम से निकाल दिया.

सलमान को इस से कोई फर्क नहीं पड़ा. वह रऊफ के घर के ठीक सामने ही रहता था. मौका निकाल कर वह शबनम से मिल ही लेता था. फोन पर उन की बातें होती ही रहती थीं. जब रऊफ को पता चला कि अब भी सलमान और शबनम मिलते हैं तो उसे डर सताने लगा कि अगर शबनम सलमान के साथ भाग गई तो समाज में वह मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगा, क्योंकि एक तरह से सलमान उस का नौकर था. उस के पास पैसा था और ऊंची राजनीतिक पहुंच भी. इसलिए उस ने सलमान को रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया.

रऊफ ने सलमान को इंदौर से करीब 150 किलोमीटर दूर ले जा कर धार जिले के धरमपुरी इलाके के जंगल में हत्या करने की योजना बनाई, ताकि पुलिस किसी कीमत पर उस की लाश को न पा सके. अपनी इस योजना में उस ने अपने ड्राइवर सद्दाम, भतीजे गोलू उर्फ जफर और जावेद को शामिल किया.

योजना तो बन गई, लेकिन अब सलमान को धरमपुरी के जंगल तक ले कैसे जाया जाए, इस पर विचार किया गया. वह आसानी से जाने वाला नहीं था. आखिर एक तरकीब निकाली गई और इस काम के लिए ड्राइवर सद्दाम को तैयार किया गया. उस ने सद्दाम से कहा कि वह सलमान को शबनम से मिलाने के बहाने धरमपुरी के जंगल तक ले चले.

योजना के अनुसार, 8 जनवरी, 2017 को सद्दाम सलमान से मिला. सद्दाम ने उस से शबनम से मिलाने की बात कही तो वह फौरन तैयार हो गया. क्योंकि पिछले कई सप्ताह से वह शबनम से मिल नहीं पाया था. सद्दाम सलमान को अपने साथ ले कर चला तो कई लोगों ने सलमान को उस के साथ जाते देख लिया था. धरमपुरी के जंगल में पहुंच कर सलमान ने शबनम के बजाए गोलू, जावेद और रऊफ खान को देखा तो समझ गया कि उस के साथ धोखा हुआ है.

वह कुछ कहता या भाग पाता, उस से पहले ही सभी ने उसे पकड़ लिया और उस की पिटाई शुरू कर दी. पिटाई करने के बाद उस के गले में रस्सी डाल कर कस दिया तो उस की मौत हो गई. इस के बाद पहचान छिपाने के लिए उस का चेहरा ईंट से कुचल दिया गया. उस के कपड़े उतार कर गुप्तांग काट दिया गया, ताकि उस के धर्म का पता न चल सके.

गले में तुलसी की माला डाल कर उस की पैंट की जेब में एक लड़के और लड़की की फोटो भी डाल दी. उन्होंने पुलिस को गुमराह करने के लिए किया तो बहुत कुछ, लेकिन उन का अपराध छिप न सका और वे पकडे़ गए.

सलमान की हत्या करने के बाद रऊफ ने गोलू और सद्दाम को रात में ही इंदौर भेज दिया था, जबकि खुद जावेद के साथ अपनी बहन के यहां धरमपुरी में रुक गया था, ताकि किसी को शंका न हो. वह अगले दिन इंदौर आ गया और अपने काम में लग गया.

रऊफ और उस के साथियों को पूरा भरोसा था कि पुलिस उन तक कभी नहीं पहुंच पाएगी. लेकिन पुलिस उन तक पहुंच ही गई. इस तरह उन की उम्मीदों पर पानी फिर गया. पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक शबनम, रऊफ खान, सद्दाम, जावेद और गोलू जेल में थे.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अनजान फेसबुक फ्रेंड रिक्वेस्ट से रहें सावधान..!

चंडीगढ़ की एक युवती को फेसबुक पर विदेशी ‘हैंडसम’ की फ्रेंड रिक्वेस्ट एक्सेप्ट करना भारी पड़ गया. पहले कीमती गिफ्ट भेजने, फिर विदेश से भारत आकर पैरंट्स से मुलाकात करने का झांसा देकर करीब साढ़े छह लाख रुपये ऐंठ लिए गए. न गिफ्ट मिला, न परदेसी से मुलाकात हुई. युवती ने स्पेशल सेल की साइबर सेल में पूरे घटनाक्रम का ब्योरा देते हुए कंप्लेंट दी.

पुलिस के मुताबिक, 26 साल की युवती मूलरूप से हरियाणा के सिरसा की रहने वाली है. वह चंडीगढ़ में जौब करती है. कुछ महीने पहले युवती की फेसबुक पर जौहन हैरी से दोस्ती हुई. फेसबुक से चैट वौट्सऐप पर पहुंच गई. युवक शादी की बात कहने लगा. इसके बाद उसने युवती से कहा कि वह गिफ्ट लाया है, जो उसे भेजना चाहता है. जौहन ने युवती को जूलरी और विदेशी मुद्रा से भरा पैकेट भेजने का झांसा दिया.

युवती के मोबाइल पर कौल आई. कौलर ने कहा कि वह मुंबई एयरपोर्ट कस्टम विभाग से बोल रहा है. गिफ्ट के लिए 35 हजार रुपये टैक्स भरना होगा. युवती ने बताए गए बैंक अकाउंट में कैश जमा करा दिया. फिर कौल आई कि और डेढ़ लाख रुपये देने होंगे. युवती ने वह भी दे दिए.

जौहन ने कहा कि वह कुछ दिनों में आ रहा है. उसने टिकट की फोटोकौपी भी दिखाई. तय तारीख पर युवती के पास एक मैडम की कौल आई. उन्होंने कहा कि वह मुंबई एयरपोर्ट से बोल रही हैं. मैडम ने बताया कि जौहन 50 हजार पाउंड लेकर आया है. एक्सचेंज कराने के लिए 2.10 लाख जमा करने होंगे. युवती ने रकम जमा करा दी.

कुछ घंटे बाद जौहन की कौल आई. उसने कहा कि दिल्ली एयरपोर्ट आ चुका है, लेकिन इमीग्रेशन वाले निकलने नहीं दे रहे हैं. पाउंड के बदले ढाई लाख रुपये की डिमांड कर रहे हैं. युवती ने फिर पैसे जमा करा दिए. इसके बाद जौहन भाग गया. उसका नंबर भी बंद हो गया.

दफ्तर में प्यार की पींगें पड़ न जाए कैरियर पर भारी

इन्फौर्मेशन टैक्नोलौजी उद्योग के एक जानेमाने नाम फणीश मूर्ति, जो पहले इन्फोसिस और बाद में आई गेट जैसी कंपनियों को नई बुलंदियों तक ले जाने के लिए दुनियाभर में मशहूर रहे हैं, साल 2013 में एक बार फिर एक महिला कर्मचारी के साथ सैक्स संबंध बनाने के आरोप में आई गेट की अपनी नौकरी खो चुके थे. 2002 में उन्हें ऐसे ही एक आरोप के चलते इन्फोसिस से निकाल दिया गया था. उद्योग जगत ने सोचा था कि इस अप्रिय हादसे के बाद वे अपनी हरकतों से बाज आ जाएंगे. लेकिन शायद फणीश किसी दूसरी ही मिट्टी के बने हैं. उन के लिए सुंदर महिलाओं का संसर्ग भी उतना ही जरूरी बन गया है जितना किसी कंपनी के मुनाफे के आंकड़ों को नई ऊंचाइयों पर ले जाना.

फणीश ने जब इन्फोसिस का अमेरिकी कारोबार संभाला था, तब कंपनी का कुल व्यापार 70 लाख अमेरिकी डौलर ही था, जिसे वे 10 साल के अपने कार्यकाल के दौरान 70 करोड़ डौलर तक पहुंचाने में कामयाब रहे. इस बीच कंपनी की कई महिला कर्मचारियों से उन के शारीरिक संबंध होने की अफवाहें उड़ीं लेकिन बात कभी कोर्टकचहरी तक नहीं पहुंची. लेकिन उन की ऐक्जिक्यूटिव सैके्रटरी रेका मैक्सीमोविच ने उन पर यौन शोषण का आरोप लगा कर मामला अदालत तक पहुंचा दिया.

रेका ने यह भी आरोप लगाया कि उसे गलत तरीके से कंपनी की नौकरी से निकाल दिया गया था. बहुत मुमकिन है कि फणीश के लिए रेका का रोमांस सिरदर्द बन गया हो और इसीलिए उन्होंने उस से पीछा छुड़ाने के लिए उसे नौकरी से निकाल दिया हो. तब इन्फोसिस के चेयरमैन एन आर नारायणमूर्ति ने कंपनी को बदनामी से बचाने के लिए 30 लाख डौलर की बड़ी रकम रेका को मुआवजे में दे कर कोर्ट के बाहर ही मामले को रफादफा कर दिया था. इस हादसे के बाद ही फणीश को इन्फोसिस की अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा था.

आई गेट के मालिकों से फणीश के जीवन की इतनी बड़ी सचाई छिपी नहीं थी. इतना ही नहीं, उन के आई गेट के सीईओ पद पर कार्य करने के दौरान भी 2004 में फणीश ने इन्फोसिस की ही एक दूसरी महिला कर्मचारी जेनिफर ग्रिफिथ के यौन शोषण के आरोप में लंबे समय से चल रहे मुकदमे से बचने के लिए उसे 8 लाख डौलर की रकम मुआवजे के रूप में चुका कर किसी तरह जेनिफर से अपना पिंड छुड़ाया था.

इन सारे तथ्यों की जानकारी के बावजूद आई गेट ने फणीश की कार्यकुशलता के कारण ही उन्हें इतनी बड़ी जिम्मेदारी सौंपी थी और अपनी विलक्षण प्रतिभा के बल पर वे आई गेट को भी प्रगति की नई डगर पर अग्रसर करने में कामयाब रहे थे. लेकिन इस बार फिर उन की ही एक सहकर्मी ने उन पर यौन शोषण का आरोप लगा कर इस कंपनी को भी उन्हें नौकरी से बर्खास्त करने के लिए मजबूर कर दिया.

कंपनी का कहना है कि फणीश ने किसी महिला कर्मचारी से अपने संबंधों की बात कंपनी को न बता कर नियमों को तोड़ा है और इसीलिए उन्हें नौकरी से निकाला जा रहा है. इस बार फणीश की दलील यह है कि यह महिला मुझे ब्लैकमेल कर रही है, तभी तो उस ने मुझ से पैसा ऐंठने के लिए रेका मैक्सोविच के वकील को रखा है. यहां पर यह उल्लेखनीय है कि फणीश को 2 महीने पहले ही इस बात की भनक लग गई थी कि आई गेट को अपनी साख बचाने के लिए उन्हें नौकरी से निकालना पड़ेगा और इसीलिए उन्होंने इन 2 महीनों के दौरान आई गेट के अपने डेढ़ लाख शेयर बेच दिए थे. उन्होंने अपने 1 लाख 4 हजार 459 शेयर 6 मार्च को 18.88 डौलर प्रति शेयर से भाव से बेचे, जिस से उन्हें 10 लाख 17 हजार डौलर की बड़ी रकम मिली. इस के 1 महीने बाद उन्होंने 40 हजार शेयर 17.1 डौलर के भाव से बेच कर 6 लाख 84 हजार डौलर वसूल कर लिए. जैसे ही फणीश को नौकरी से निकालने की खबर बाजार में पहुंची, शेयर के दाम गिर कर 14.82 डौलर पर पहुंच गए. इस बात से अनुमान लगाया जा सकता है कि फणीश कितने तेज व्यापारी हैं, जो अपनी विपरीत परिस्थितियों का भी लाभ उठाना जानते हैं.

अमेरिका जैसे देशों में महिला कर्मचारियों का यौन शोषण करने के खिलाफ कड़े कानून हैं, जबकि हमारे देश में ऐसे कारगर कानूनों का अभाव है और इसीलिए आज भी हमारे यहां अकसर बौस अपनी महिला कर्मचारियों का यौन शोषण बेखौफ करता रहता है. यह मामला एकतरफा बिलकुल नहीं होता, कई बार महिला कर्मचारी भी प्रमोशन की सीढि़यां जल्दीजल्दी चढ़ने के लिए बौस को रिझाने की कोशिश करती रहती है.

ऐसा ही मुंबई की एक बड़ी कंपनी का मामला पिछले दिनों सामने आया था जिस में कंपनी के एक चोटी के अधिकारी का अपनी सैके्रटरी से चक्कर शुरू हो गया था. उस अधिकारी ने थोड़े से समय में ही अपनी सेक्रेटरी को एक सुंदर घर और एक कार तो खरीद कर दे ही डाली, साथ ही उसे एक ऊंचा ओहदा दे कर हमेशा के लिए उस की जिंदगी संवार दी. अगर फणीश भारत में काम कर रहे होते तो शायद उन्हें कंपनी से कभी निकाला ही नहीं जाता, इस के बदले कितनी ही महिला कर्मचारियों को उन की ज्यादतियां बरदाश्त करनी पड़ रही होतीं. कड़े कानूनों के कारण ही उन्हें 2 बार न सिर्फ अपनी 2 नौकरियां छोड़नी पड़ीं, बल्कि बड़ीबड़ी रकमें मुआवजे के तौर पर देनी भी पड़ीं.

भारत में युवाओं की संख्या दफ्तरों में बढ़ती जा रही है. ऐसे में लड़केलड़कियों के बीच संबंध कायम होना स्वाभाविक है. कई बार ऐसा देखा जाता है कि दफ्तर की यही जानपहचान आगे चल कर रोमांस और फिर शादी में परिवर्तित हो जाती है. भारत में कंपनियां अकसर इस तरह के विवाहों और रोमांस पर पाबंदी नहीं लगातीं, लेकिन फिर भी कर्मचारियों की कार्यक्षमता को बढ़ाए रखने के लिए अकसर इस बात का ध्यान रखा जाता है कि पतिपत्नी को एक ही विभाग में न रखा जाए. माइक्रोसौफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स व मेलिंडा का रोमांस भी दफ्तर में जन्मा था, जो आखिर एक सफल पतिपत्नी के रिश्ते में परिवर्तित हो गया. अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा को भी उन की पत्नी मिशेल एक दफ्तर में साथसाथ काम करने के दौरान ही मिलीं थीं. इस तरह की प्रेम कहानियों पर भला किसे आपत्ति हो सकती है, लेकिन बात तब समस्या बन जाती है जब यह संबंध केवल वासनापूर्ति के लिए कायम किया जाता है. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्ंिलटन, आईएमएफ के पूर्व प्रमुख डोमिनीक स्ट्रौसकान व लेखक डैविड डैवीडार ऐसे ही वासनापूर्ति वाले संबंधों के कुछ उदाहरण हैं, जिन में पुरुष हस्तियों ने अपने पद व शक्ति का दुरुपयोग कर के अपने नीचे काम करने वाली लड़कियों का शोषण किया.

जहां तक हमारे देश में दफ्तरों में होने वाले रोमांस का सवाल है, एम्सटरडम की एक कंपनी रैनस्टैंड द्वारा 2012 में किए गए एक सर्वेक्षण से यह तथ्य उजागर हुआ है कि हमारे यहां 70 प्रतिशत कर्मचारी दफ्तर में रोमांस कर चुके थे. यह संख्या जापान (33 प्रतिशत) तथा लक्समबर्ग (36 प्रतिशत) जैसे अन्य देशों के मुकाबले बहुत ज्यादा है. शायद इस का कारण यही है कि हमारे देश में इस संबंध में कोई स्पष्ट नीति नहीं अपनाई गई है.

हमारी कंपनियां भी इस मामले में कोई कड़ा रुख अपनाना पसंद नहीं करतीं. एक वरिष्ठ अधिकारी के शब्दों में, ‘‘भारत में दफ्तर में पनपा रोमांस कभी कोर्टकचहरी तक नहीं पहुंचा और उस की वजह से किसी कंपनी को कभी कोई भारी मुआवजा भी नहीं चुकाना पड़ा. शायद इसीलिए कंपनियां ऐसे मामलों को गंभीरता से नहीं लेतीं. इस के विपरीत अकसर दफ्तर को रोमांस व अपना सही पार्टनर ढूंढ़ने का एक सही स्थान माना जाता है.

‘ट्रूलीमैडलीडीपली’ नामक डेटिंग की एक वैबसाइट के संस्थापक चैतन्य रामलिंगेगोवड़ा का इस विषय में कहना है, ‘‘लोग अकसर रोज 8-10 घंटे अपने दफ्तर में बिताते हैं. इस के अलावा उन का 1 से 2 घंटे का समय दफ्तर आनेजाने में व्यतीत हो जाता है. इस सब के बाद रोमांस व लाइफपार्टनर ढूंढ़ने के लिए उन के पास समय ही कहां बचता है. इसलिए वे इस कमी को दफ्तर में ही पूरी करने की कोशिश करते हैं.’’

भारत में खासतौर पर आईटी उद्योग से जुड़े लोग इस बात को स्वीकार करते हैं कि प्यार व काम दफ्तर में सही ढंग से चल सकते हैं और इस से कंपनी को कोई नुकसान पहुंचने की संभावना नहीं है. उदाहरण के तौर पर याहू इंडिया में औफिस में पनपने वाले संबंधों पर कोई रोकटोक नहीं है. इस कंपनी के ह्यूमन रिसोर्सेज विभाग के प्रमुख अनिरुद्ध बनर्जी का कहना है, ‘‘हम कर्मचारियों के साथसाथ कौफी पीने या सिगरेट पीने जाने या महिला व पुरुष कर्मचारियों के साथसाथ बाहर जाने को कतई बुरा नहीं मानते.’’ इस विषय में एक अन्य प्रमुख कंपनी एनआईआईटी के वाइसप्रेसिडैंट प्रतीक चटर्जी ने अपने विचार कुछ इस तरह व्यक्त किए, ‘‘हम अपने कर्मचारियों की बहुत इज्जत करते हैं और अगर वे अपने जीवनसाथी को काम के दौरान कंपनी में से ही चुन लेते हैं, तो हम उन का स्वागत करते हैं.’’

अंत में इस विषय में सिर्फ इतना ही कहा जा सकता है कि एक ओर जहां दफ्तर का रोमांस, जो आखिरकार विवाहबंधन में परिणित हो जाता है, दो व्यक्तियों के जीवन में एक सार्थक भूमिका निभा सकता है, वहीं दूसरी तरफ दफ्तर में होने वाला यौन शोषण कैंसर जैसी किसी बीमारी से कम नहीं, जो न केवल संबंधित महिला के जीवन को नीरसता में बदल देता है, बल्कि उस दफ्तर के पूरे माहौल को भी दूषित कर देता है.

प्रीत या नादानी : इश्क के चक्कर में हत्या

दिल्ली-अमृतसर राष्ट्रीय राजमार्ग पर जालंधर से करीब 50 किलोमीटर पहले ही जिला जालंधर की तहसील है थाना फिल्लौर. इसी थाने का एक गांव है शाहपुर. इसी गांव के 4 छात्र थे- हनी, रमेश उर्फ गगू, तजिंदर उर्फ राजन और निशा. 15 से 17 साल के ये सभी बच्चे फिल्लौर के ही एक सरकारी स्कूल में पढ़ते थे.

एक ही गांव के होने की वजह से इन सभी का आपस में गहरा लगाव था. साथसाथ खेलना, साथसाथ खाना, साथसाथ पढ़ने जाना. लेकिन ज्योंज्यों इन की उम्र बढ़ती गई, त्योंत्यों इन के मन में तरहतरह के विचार पैदा होने लगे.

हनी के घर वालों की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, जबकि रमेश और राजन अच्छे परिवारों से थे. हनी के पिता हरबंसलाल की फिल्लौर बसअड्डे के पास फ्लाई ओवर के नीचे पंचर लगाने की छोटी सी दुकान थी. उसी दुकान की आमदनी से घर का खर्चा चलता था.

जबकि राजन और रमेश के पिता के पास खेती की अच्छीखासी जमीनों के अलावा उन का अपना बिजनैस भी था. इसलिए राजन तथा रमेश जेब खर्च के लिए घर से खूब पैसे लाते थे और स्कूल में अन्य दोस्तों के साथ खर्च करते थे.

शुरुआत में निशा हनी के साथ ज्यादा घूमाफिरा करती थी, पर बाद में उस का झुकाव रमेश की ओर से हो गया. धीरेधीरे हालात ऐसे बन गए कि इन चारों छात्रों के बीच 2 ग्रुप बन गए. एक ग्रुप में अकेला हनी रह गया था तो दूसरे में राजन, रमेश और निशा.

रमेश और निशा अब हर समय साथसाथ रहने लगे थे. दोनों के साथ राजन भी लगा रहता था. तीनों ही साथसाथ फिल्म देखने जाते. हनी को एक तरह से अलग कर दिया गया था. इस बात को हनी समझ रहा था. निशा ने हनी से मिलनाजुलना तो दूर, बात तक करना बंद कर दिया था.

एक दिन हनी ने फोन कर के निशा से कहा, ‘‘हैलो जानेमन, कैसी हो और इस समय क्या कर रही हो?’’

‘‘कौन…हनी?’’ निशा ने पूछा.

‘‘और कौन होगा, जो इस तरह तुम से बात करेगा. मैं हनी ही बोल रहा हूं.’’ हनी ने कहकहा लगाते हुए कहा, ‘‘अच्छा बताओ, तुम इस समय कहां हो? आज हमें पिक्चर देखने चलना है.’’

‘‘हनी, मैं तुम से कितनी बार कह चुकी हूं कि मुझे फोन कर के डिस्टर्ब मत किया करो. मैं तुम से कोई वास्ता नहीं रखती, फिर भी तुम मुझे परेशान करते हो. आखिर क्या बिगाड़ा है मैं ने तुम्हारा…?’’ निशा ने झुंझलाते हुए कहा.

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‘‘अरे डार्लिंग, परेशान मैं नहीं, तुम कर रही होे. आखिर तुम्हें मेरे साथ फोन पर दो बातें करने में इतनी तकलीफ क्यों होती है, जबकि दूसरे लड़कों के साथ आवारागर्दी करती रहती हो. तब तुम्हें कोई परेशानी नहीं होती.’’ हनी ने कहा तो उस की इन बातों से निशा खामोश हो गई. फिर उस ने हिम्मत जुटा कर कहा, ‘‘सुनो हनी, तुम जिन लड़कों की बात कर रहे हो, वे मेरे दोस्त हैं. अब तुम यह बताओ, मैं किसी के भी साथ घूमूंफिरूं, इस में तुम्हें क्या परेशानी है? यह मेरी मरजी है. मेरे दोस्त सभ्य परिवारों से हैं, समझे.’’

निशा की बात सुन कर हनी को गुस्सा तो बहुत आया, पर कुछ सोच कर उस ने अपने गुस्से पर काबू करते हुए कहा, ‘‘हां, सही कह रही हो. भला मैं कौन होता हूं. पर तुम शायद यह भूल गई कि तुम और तुम्हारे जो दोस्त हैं, वे मेरे ही गांव के हैं.’’

‘‘इस का मतलब तुम मुझे धमकी दे रहे हो?’’ निशा ने उत्तेजित हो कर कहा.

‘‘मैं तुम्हें कोई धमकी नहीं दे रहा. तुम ना जाने क्यों नाराज हो रही हो.’’ हनी ने कहा.

इस के बाद निशा थोड़ा नार्मल हुई तो हनी ने कहा, ‘‘अरे पगली, मुझे इस से कोई ऐतराज नहीं है. तुम किसी के साथ भी घूमोफिरो. मैं सिर्फ इतना चाहता हूं कि थोड़ा टाइम मुझे भी दे दिया करो. बात यह है कि आज मैं ने पिक्चर का प्रोग्राम बनाया है. तुम मेरे साथ पिक्चर देखने जालंधर चलो. मैं फिल्लौर बसअड्डे पर तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं.’’

‘‘ठीक है, मैं आ रही हूं, लेकिन आइंदा जो भी प्रोग्राम बनाना, मुझ से पूछ कर बनाना.’’ निशा ने कहा.

‘‘ओके जानेमन, मैं आइंदा से ध्यान रखूंगा. तुम टाइम पर बसअडडे आ जाना. बाकी बातें वहीं करेंगे.’’ हनी ने कहा.

निशा समझ गई कि हनी उसे ब्लैकमेल कर रहा है, इसलिए न चाहते हुए भी मजबूरी में उसे उस के साथ फिल्म देखने जाना पड़ा. इस के बाद यह नियम सा बन गया.

हनी जब भी निशा को बुलाता, न चाहते हुए भी उसे उस की बात माननी पड़ती. निशा जानती थी कि अगर उस ने उस की बात नहीं मानी तो इस का क्या परिणाम हो सकता है. क्योंकि हनी ने उस से स्पष्ट कह दिया था कि अगर उस ने उस की कोई बात नहीं मानी तो वह उस के और रमेश के संबंधों के बारे में उस के मातापिता से बता देगा.

उधर रमेश और उस के दोस्त को पता चल गया था कि निशा हनी के साथ घूमती है. यह बात उन्हें अच्छी नहीं लगी. इसलिए उन्होंने निशा को धमकी दी कि अगर उस ने हनी से बोलना बंद नहीं किया तो नतीजा ठीक नहीं होगा. निशा ने यह बात रमेश को नहीं बताई थी कि वह हनी के साथ अपनी मरजी से नहीं जाती, बल्कि यह उस की मजबूरी है.

निशा पेशोपेश में पड़ गई. वह जानती थी कि जिस दिन उस ने हनी से बोलना बंद किया, उसी दिन वह उस के मांबाप से उस की शिकायत कर देगा. लेकिन ऐसा कब तक चलता. एक न एक दिन इस बात का भांडा फूटना ही था.

यही सोच कर एक दिन निशा ने यह बात रमेश और राजन को बता दी कि हनी उसे किस तरह ब्लैकमेल कर रहा है. यह सुन कर रमेश और राजन का खून खौल उठा. उन्होंने उसी दिन हनी को रास्ते में घेर लिया. उन्होंने उसे धमकाते हुए कहा, ‘‘तुम निशा से दूर ही रहो, वरना यह तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा. तुम लापता हो जाओगे और तुम्हारे मांबाप तुम्हें ढूंढते रह जाएंगे.’’

दोनों की इस धमकी से उत्तेजित होने के बजाय हनी ने उन्हें समझाते हुए कहा, ‘‘देखो रमेश, हम सब दोस्त हैं और एक ही गांव के रहने वाले हैं. बचपन से साथसाथ खेलेकूदे हैं और पढ़ेलिखे हैं. अब यह बताओ कि तुम निशा के साथ बातें करते हो, घूमने जाते हो, मैं ने कभी बुरा माना तो फिर मेरे बात करने पर तुम्हें भी बुरा नहीं मानना चाहिए.’’

‘‘अच्छा तो पंक्चर लगाने वाले का बेटा मेरी बराबरी करेगा?’’ रमेश ने नफरत से यह बात कही. इस के बावजूद हनी ने मुसकराते हुए जवाब दिया, ‘‘रमेश बात हम लोगों के बीच की है, इसलिए इस में बड़ों को मत घसीटो.’’

बहरहाल, उस दिन तो मामला यहीं पर शांत हो गया. लेकिन हनी और रमेश के बीच कड़वाहट पैदा हो गई. आगे चल कर इस कड़वाहट का क्या नतीजा निकलेगा, कोई नहीं जानता था. हनी ने कुछ दिनों तक निशा से बात नहीं की.

7 जुलाई, 2017 को हनी ने निशा को फोन कर के मिलने के लिए कहा. इस बार निशा ने उस से मिलने से साफ मना कर दिया. हनी को गुस्सा आ गया. उस ने उसी दिन रमेश और निशा के प्रेमप्रसंग की बात निशा के पिता को बता दी.

बेटी की बदचलनी के बारे में जान कर मांबाप की नींद उड़ गई. निशा घर लौटी तो उन्होंने उसे डांटा. उस ने लाख सफाई दी, पर उन्होंने उस की बात पर विश्वास न करते हुए उसे घर में कैद कर दिया. यह बात जब रमेश और राजन को पता चली तो दोनों हनी के पास जा पहुंचे. दोनों पक्षों में काफी तूतूमैंमैं हुई और अंत में एकदूसरे को देख लेने की धमकी देते हुए अपनेअपने घर चले गए.

अगले दिन यानी 8 जुलाई, 2017 की शाम साढ़े 6 बजे हनी के पिता हरबंशलाल ने कहा, ‘‘जा बेटा, हवेली जा कर पशुओं के लिए चारा काट दे. पशु भूखे होंगे.’’

पिता के कहने पर हनी चारा काटने के लिए हवेली चला गया. चारा काटने का काम ज्यादा से ज्यादा एक घंटे का था. लेकिन जब हनी साढ़े 8 बजे तक घर नहीं लौटा तो हरबंशलाल को चिंता हुई. पहले तो उन्होंने अपने छोटे बेटे को हवेली जाने को कहा, फिर उसे रोक कर खुद ही उठ कर चल पड़े.

वहां हनी नहीं दिखा. उस ने चारा काट कर पशुओं को डाल दिया था. चारा काटने के बाद वह कहां चला गया, वह इस बात पर विचार करने लगे. उन्हें लगा ऐसा तो नहीं कि वह घर चला गया हो. वह घर लौट आए.

पर हनी घर नहीं आया था. उन्होंने उसे इधरउधर देखा, लेकिन वह कहीं दिखाई नहीं दिया. अब तब तक रात के 10 बज चुके थे. हनी के मातापिता के अलावा गांव के अन्य लोग भी रात के 1 बजे तक उसे गांव और आसपास ढूंढते रहे. पर हनी का कहीं पता नहीं चला. थकहार कर सब सो गए.

अगले दिन सुबह जब हनी के दोस्तों रमेश, राजन आदि को उस के गायब होने का पता चला तो सभी हनी के घर जमा हो गए. वे सब भी उसे खोजने लगे.

अगले दिन सुबह गांव का ही ओंकार सिंह अपने खेतों पर गया तो उस के खेत के दूसरे छोर पर नहर के पास एक जगह किसी आदमी का कटा हुआ कान पड़ा दिखाई दिया. वहीं पर काफी मात्रा में खून बिखरा था. खून देख कर ओंकार सिंह सोच रहा था कि यह सब वह किस ने किया होगा, तभी हरबंशलाल, रमेश, राजन तथा अन्य लोग हनी को तलाशते हुए वहां पहुंच गए.

कान और खून वाली जगह उन्होंने भी देखी, पर एक अकेले कान को देख कर कुछ कहा नहीं जा सकता था कि कान किस का होगा. खेत में कुछ दूरी पर खून से सनी एक चप्पल देख कर हरबंशलाल के मुंह से चीख निकल गई. वह कान को भले ही नहीं पहचान पाए थे, पर वह चप्पल उन के बेटे हनी की थी. कुछ दिनों पहले ही उन्होंने खुद वह चप्पल हनी को खरीद कर दी थी.

कान वाली जगह से खून टपकता हुआ खेत के बाहर तक गया था. सभी ने टपकते खून का पीछा किया तो वह नहर के किनारे तक टपका हुआ मिला. अनुमान लगाया गया कि मरने वाला जो भी था, उस की हत्या करने के बाद लाश को ले जा कर नहर में फेंक दिया गया था.

कुछ लोग गोताखोरों को बुलाने चले गए तो कुछ लोग पुलिस को सूचना देने थाने चले गए. पर गोताखोर और पुलिस आती, उस के पहले ही अपनी दोस्ती का फर्ज निभाते हुए रमेश और राजन नहर में कूद गए और लाश ढूंढने लगे.

सूचना मिलने पर थाना फिल्लौर के थानाप्रभारी राजीव कुमार अपनी टीम के साथ नहर पर पहुंच गए. गोताखोर भी आ कर नहर में लाश ढूंढने लगे. कुछ देर बाद गोताखोर नहर से लाश निकाल कर बाहर आ गए. लाश देख कर हरबंशलाल पछाड़ खा कर गिर गए. क्योंकि वह लाश और किसी की नहीं, उन के बेटे हनी की थी.

थानाप्रभारी ने लाश मिलने की सूचना अधिकारियों को दे दी. सूचना पा कर डीएसपी (फिल्लौर) बलविंदर इकबाल सिंह, सीआईए इंचार्ज हरिंदर गिल भी मौके पर पहुंच गए. लाश का मुआयना करने पर उस का एक कान गायब मिला. गरदन भी पूरी तरह कटी हुई थी. वह सिर्फ खाल से जुड़ी थी.

लाश व कान को बरामद कर पुलिस काररवाई में जुट गई. खेत से खूनआलूदा मिट्टी भी अपने कब्जे में ले कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. पुलिस ने हरबंशलाल की तहरीर पर अज्ञात लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 34 के तहत मुकदमा दर्ज कर तफ्तीश शुरू कर दी.

15 साल के हनी की हत्या के विरोध में लोगों ने बाजार बंद कर पुलिस के खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी. सूरक्षा की दृष्टि से एसपी (जालंधर) बलकार सिंह ने फिल्लौर और शाहपुर में भारी मात्रा में पुलिस तैनात कर दिया. इस के अलावा एसपी ने लोगों को आश्वासन दिया कि जल्द ही केस का खुलासा कर अभियुक्तों को गिरफ्तार कर लिया जाएगा.

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उन के आश्वासन के बाद लोग शांत हुए. एसपी बलकार सिंह ने डीएसपी गुरमीत सिंह और डीएसपी बलविंदर इकबाल सिंह की अगुवाई में पुलिस टीमों का गठन किया, जिस में सीआईए इंचार्ज हरिंदर गिल, एसआई ज्ञान सिंह, एएसआई लखविंदर सिंह, परमजीत सिंह, हंसराज सिंह, हवलदार राजिंदर कुमार, निशान सिंह, प्रेमचंद और सिपाही जसविंदर कुमार को शामिल किया गया.

पुलिस ने सब से पहले मृतक हनी के यारदोस्तों से पूछताछ की. इस में निशा को ले कर रमेश और राजन की नाराजगी वाली बातें निकल कर सामने आईं. यह बात भी सामने आई कि इस हत्या से एक दिन पहले रमेश और हनी के बीच जम कर कहासुनी हुई थी.

संदेह के आधार पर पुलिस ने रमेश को पूछताछ के लिए थाने बुला लिया. पर उस की हिमायत में लगभग पूरा गांव थाने पहुंच गया. दबाव बढने पर पुलिस को तफ्तीश बीच में छोड़ कर उसे घर भेजना पड़ा.

हरबंशलाल ने अपने बयान में बताया था कि रात को जिस समय वह उसे तलाश रहे थे, उन्होंने अपने फोन से हनी को कई बार फोन किया था, पर हर बार फोन बंद मिला था. थानाप्रभारी राजीव कुमार ने हनी के फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर चेक की तो उस में अंतिम फोन रमेश के फोन से गई थी.

रमेश के अलावा 4 नंबर और भी थे. डीएसपी गुरमीत सिंह ने राजन, रमेश सहित उन चारों लड़कों को उठवा लिया. इस बार थाने के बजाय उन्हें किसी अन्य जगह ले जाया गया. वहां हनी की हत्या के संबंध में पूछताछ की गई तो रमेश अधिक देर तक नहीं टिक सका. उस ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए हनी की हत्या की जो सनसनीखेज कहानी सुनाई, उसे सुन कर सभी सन्न रह गए.

रमेश और हनी के बीच निशा को ले कर खींचातानी चल रही थी. निशा और रमेश, दोनों के दिलों में इस बात को ले कर एक डर बैठा हुआ था कि हनी कभी भी उन की पोल गांव वालों या निशा के मांबाप के सामने खोल सकता है. ऐसा ही हुआ भी. हनी ने 7 जुलाई को जब निशा के घर वालों को निशा और रमेश के संबंधों की बात बता दी तो रमेश यह सहन नहीं कर सका.

रमेश ने उसी समय राजन के साथ मिल कर हनी को रास्ते से हटाने की योजना बना डाली. निशा को समझा कर उसे घर भेजते समय रमेश ने कहा, ‘‘तू चिंता मत कर, जल्द ही हनी की दर्दनाक चीखों की आवाज तेरे कानों को सुनाई देगी.’’

और फिर उसी शाम वह अपना फोन निशा के घर जा कर जबरदस्ती उसे दे आया. निशा की मां ने उस समय उसे बहुत डांटा था, पर वह वहां से भाग गया था. रमेश और राजन यह बात अच्छी तरह जानते थे कि हनी शाम को किस समय हवेली में चारा लेने जाता है.

दोनों दातर (दरांती) ले कर 8 जुलाई को हनी के पीछेपीछे पहुंच गए. हनी शाम 8 बजे जैसे ही हवेली से  घर जाने के लिए निकला दोनों ने उस का रास्ता रोक कर दोस्ताना लहजे में  कहा, ‘‘सौरी यार हनी, बेवजह तेरे साथ गरमागरमी कर ली, यार हमें माफ कर दे. हमें निशा से बात करने में कोई ऐतराज नहीं. तू कहे तो अभी के अभी तेरी निशा से बात करा दूं.’’

बात करतेकरते दोनों हनी को खेतों की तरफ ले गए. चलते हुए रमेश ने अपने उस फोन का नंबर मिलाया, जो वह निशा को दे आया था. उधर से जब निशा ने फोन उठाया तो रमेश ने कहा, ‘‘निशा, लो अपने पुराने साथी से बात करो.’’

हनी फोन अपने कान से लगा कर निशा से बातें करने लगा, तभी रमेश ने पीछे से दातर का एक भरपूर बार हनी के उस कान पर किया, जिस पर उस ने फोन लगा रखा था. एक ही वार में हनी का कान कट कर दूर जा गिरा और उस के मुंह से एक जोरदार चीख निकली.

इस के बाद रमेश और राजन ने यह कहते हुए हनी पर लगातार वार करने शुरू कर दिए कि ‘‘साले और कर निशा से बात.’’

हनी कटे हुए पेड़ की तरह जमीन पर गिर गया. कुछ ही देर में उस की मौत हो गई. हनी की हत्या कर के राजन और रमेश ने उस की लाश को घसीट कर पास वाली नहर में फेंक दिया और अपनेअपने घर चले गए.

पुलिस ने 11 जुलाई, 2017 को रमेश और राजन को हनी की हत्या के अपराध में गिरफ्तार कर अदालत में पेश कर रिमांड पर लिया. रमेश की उम्र 17 साल और राजन की उम्र 15 साल थी. अब यह अदालत तय करेगी कि उन पर काररवाई कोर्ट में चलेगी या बाल न्यायालय में.

रिमांड के बीच पुलिस ने वह दातर बरामद कर लिया था, जिस से हनी की हत्या की गई थी. इस के बाद पुलिस ने रमेश और राजन को बाल न्यायालय में पेश कर बालसुधार गृह भेज दिया.

पुलिस ने पूछताछ के लिए निशा को भी थाने बुलाया था कि इस अपराध में उस की भी तो कोई भूमिका नहीं है? पर थाने आते ही वह डर के मारे बेहोश हो गई. पुलिस ने उसे अस्पताल में भरती कराया. उस की हालत में सुधार होने पर उस से पूछताछ की गई, पर वह बेकुसूर थी, इसलिए उसे घर भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में रमेश, राजन तथा निशा बदले हुए नाम हैं.

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नादान मोहब्बत का नतीजा

उत्तर प्रदेश के शहर आगरा के थाना छत्ता की गली कचहरी घाट में रामअवतार अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटियां थीं. बड़ी बेटी की वह शादी कर चुका था, मंझली के लिए लड़का ढूंढ रहा था. सब से छोटी शिल्पी हाईस्कूल में पढ़ रही थी.

शिल्पी की उम्र  भले ही कम थी, पर उस की शोखी और चंचलता से रामअवतार और उस की पत्नी चिंतित रहते थे. पतिपत्नी उसे समझाते रहते थे, पर 15 साल की शिल्पी कभीकभी बेबाक हो जाती थी. इस के बावजूद रामअवतार ने कभी यह नहीं सोचा था कि उन की यह बेटी एक दिन ऐसा काम करेगी कि वह समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे.

कचहरी घाट से कुछ दूरी पर जिमखाना गली है. वहीं रहता था शब्बीर. उस का बेटा था इरफान, जो एक जूता फैक्ट्री में कारीगर था. इरफान के अलावा शब्बीर के 2 बेटे और थे.

शिल्पी जिमखाना हो कर ही स्कूल आतीजाती थी. वह जब स्कूल जाती तो इरफान अकसर उसे गली में मिल जाता. आतेजाते दोनों की निगाहें टकरातीं तो इरफान के चेहरे पर चमक सी आ जाती. इस से शिल्पी को लगने लगा कि इरफान शायद उसी के लिए गली में खड़ा रहता है.

शिल्पी का सोचना सही भी था. दरअसल शिल्पी इरफान को अच्छी लगने लगी थी. यही वजह थी, वह उसे देखने के लिए गली में खड़ा रहता था. कुछ दिनों बाद वह शिल्पी से बात करने का बहाना तलाशने लगा. इस के लिए वह कभीकभी उस के पीछेपीछे कालोनी के गेट तक चला जाता, पर उस से बात करने की हिम्मत नहीं कर पाता. जब उसे लगा कि इस तरह काम नहीं चलेगा तो एक दिन उस के सामने जा कर उस ने कहा, ‘‘मैं कोई गुंडालफंगा नहीं हूं. मैं तुम्हारा पीछा किसी गलत नीयत से नहीं करता. मैं तुम से एक बात कहना चाहता हूं.’’

CRIME

‘‘तुम मुझ से क्या चाहते हो?’’ शिल्पी ने पूछा.

‘‘बात सिर्फ इतनी है कि मैं तुम से दोस्ती करना चाहता हूं.’’ इरफान ने कहा.

‘‘लेकिन मैं तुम से दोस्ती नहीं करना चाहती. मम्मीपापा कहते हैं कि लड़कों से दोस्ती ठीक नहीं.’’ शिल्पी ने कहा और मुसकरा कर आगे बढ़ गई.

इरफान उस की मुसकराहट का मतलब समझ गया. हिम्मत कर के उस ने आगे बढ़ कर उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘कोई जल्दी नहीं है, तुम सोचसमझ लेना. मैं तुम्हें सोचने का समय दे रहा हूं.’’

‘‘कोई देख लेगा.’’ कह कर शिल्पी ने अपना हाथ छुड़ाया और आगे बढ़ गई. किसी लड़के ने उसे पहली बार ऐसे छुआ था. उस के शरीर में बिजली सी दौड़ गई थी. शिल्पी उम्र की उस दहलीज पर खड़ी थी जहां आसानी से फिसलने का डर रहता है. इरफान पहला लड़का था, जिस ने उस से दोस्ती की बात कही थी, पर मांबाप और समाज का डर आड़े आ रहा था.

इरफान के बारे में शिल्पी ज्यादा कुछ नहीं जानती थी. बस इतना जानती थी कि वह जिमखाना गली में रहता है. उसे उस का नाम भी पता नहीं था. धीरेधीरे इरफान ने उस के दिल में जगह बना ली. मिलने पर इरफान उस से थोड़ीबहुत बात भी कर लेता. पर उसे प्यार के इजहार का मौका नहीं मिल रहा था. एक दिन उस ने कहा, ‘‘चलो, ताजमहल देखने चलते हैं. वहीं बैठ कर बातें करते हैं.’’

शिल्पी ने हां कर दी तो दोनों औटो से ताजमहल पहुंच गए. वहां शिल्पी को जब पता चला कि उस का नाम इरफान है तो उस ने कहा, ‘‘ओह तो तुम मुसलमान हो?’’

‘‘हां, मुसलमान हूं तो क्या हुआ? क्या मुसलमान प्यार नहीं कर सकता. मैं तुम से प्यार करता हूं, ठीकठाक कमाता भी हूं. और मैं वादा करता हूं कि जीवन भर तुम्हारा बनकर रहूंगा. तुम्हें हर तरह से खुश रखूंगा.’’

इरफान देखने में अच्छाखासा था और ठीकठाक कमाई भी कर रहा था, केवल एक ही बात थी कि वह मुसलमान था. पर आज के जमाने में तमाम अंतरजातीय विवाह होते हैं. यह सब सोच कर शिल्पी ने इरफान की मोहब्बत स्वीकार कर ली. उस दिन के बाद वह अकसर उस के साथ घूमनेफिरने लगी.

मोहल्ले वालों ने जब शिल्पी को इरफान के साथ देखा तो तरहतरह की बातें करने लगे. किसी ने रामअवतार को बताया कि वह अपनी बेटी को संभाले. वह एक मुसलमान लड़के के साथ घूमतीफिरती है. कहीं उस की वजह से कोई बवाल न हो जाए.

बेटी के बारे में सुन कर रामअवतार के कान खड़े हो गए. दोपहर में जब वह घर पहुंचा तो पता चला कि शिल्पी अभी तक घर नहीं आई है. पत्नी ने बताया कि वह रोज देर से आती है. कहती है कि एक्स्ट्रा क्लास चल रही है.

रामअवतार दुकान पर लौट गया. कुछ देर बाद पत्नी का फोन आया कि शिल्पी आ गई है तो वह घर आ गया. उस ने शिल्पी से पूछताछ की तो उस ने कहा कि वह किसी लड़के से नहीं मिलती. छुट्टी के बाद मैडम क्लास लेती हैं. इसलिए देर हो जाती है.

रामअवतार जानता था कि शिल्पी झूठ बोल रही है. वह खुद उसे पकड़ना चाहता था, इसलिए उस ने उस से कुछ नहीं कहा. कुछ दिनों तक शिल्पी से कोई टोकाटाकी नहीं हुई तो वह निश्ंिचत हो गई. वह इरफान के साथ घूमनेफिरने लगी. फिर एक दिन रामअवतार ने उसे इरफान के साथ देख लिया. उस ने शिल्पी को डांटाफटकारा ही नहीं, उस का स्कूल जाना भी बंद करा दिया.

बंदिश लगने से शिल्पी का प्रेमी से मिलनाजुलना बंद हो गया. वह उस से मिलने के लिए बेचैन रहने लगी, जिस से उसे अपने ही घर वाले दुश्मन नजर आने लगे. अब घर उसे कैदखाना लगने लगा था. उस का मन कर रहा था कि किसी तरह वह इस चारदीवारी को तोड़ कर अपने प्रेमी के पास चली जाए. एक दिन उसे वह मौका मिला तो वह इरफान के साथ भाग गई.

हिंदू लड़की को मुसलमान लड़का भगा कर ले गया था. इस बात पर इलाके में तनाव फैल गया. थाना छत्ता में 28 अगस्त, 2010 को रामअवतार की तरफ से शिल्पी को भगाने वाले इरफान के खिलाफ मुकदमा दर्ज हो गया. इस के बाद पुलिस सक्रिय हो गई. जल्दी ही पुलिस ने दोनों को ढूंढ निकाला. पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया. चूंकि शिल्पी नाबालिग थी, इसलिए अदालत ने उसे उस के पिता को सौंप दिया और इरफान को जेल भेज दिया.

प्रेमी के जेल जाने से शिल्पी बहुत दुखी थी. वह अपने पिता के खिलाफ खड़ी हो गई. मांबाप और रिश्तेदारों ने शिल्पी को लाख समझाने की कोशिश की, पर उस के दिलोदिमाग से इरफान नहीं निकला. शिल्पी की उम्र भले ही कमसिन थी, पर उस की मोहब्बत तूफानी थी. जबकि समाज और कानून की नजर में उस की मोहब्बत बेमानी थी, क्योंकि वह नाबालिग थी.

इरफान 3 महीने बाद जेल से बाहर आ गया. उस के जेल से बाहर आने पर शिल्पी बहुत खुश हुई. दोनों के बीच चोरीछिपे मोबाइल से बातचीत होने लगी. शिल्पी पर नजरों का सख्त पहरा था. उसे घर से निकलने की इजाजत नहीं थी. वह अपने प्रेमी से मिलने के लिए छटपटा रही थी, पर रामअवतार और उस की पत्नी माया सतर्क थे.

शिल्पी और इरफान साथसाथ रहने का मन बना चुके थे. मांबाप की लाख निगरानी के बावजूद एक दिन रात में शिल्पी प्रेमी के पास पहुंच गई. इरफान इस बार उसे ले कर इलाहाबाद चला गया. इरफान ने लव मैरिज के लिए हाईकोर्ट के वकीलों से बात की, लेकिन शिल्पी नाबालिग थी, इसलिए कोई मदद नहीं कर सका.

इस के बाद इरफान ने एक काजी की मदद से शिल्पी से निकाह कर लिया. शिल्पी दोबारा घर से भागी थी. इस बार किसी ने विरोध नहीं किया, पर रामअवतार परेशान था. वह मदद के लिए पुलिस के पास पहुंचा तो पुलिस ने इरफान के घर वालों पर दबाव डाला. करीब एक महीने बाद इरफान शिल्पी के साथ वापस आ गया. पुलिस ने दोनों को कोर्ट में पेश किया, शिल्पी अभी भी नाबालिग थी, लेकिन इस बार उस ने पिता के साथ जाने से इनकार कर दिया. तब अदालत ने उसे नारी निकेतन तो इरफान को जेल भेज दिया.

प्रेमी युगल को कानून ने एक बार फिर जुदा कर दिया. लेकिन उन की मोहब्बत जुनूनी हो गई थी. शिल्पी अब अपने बालिग होने का इंतजार कर रही थी. इस से तय हो गया कि बाहर आने के बाद दोनों साथसाथ रहेंगे. तब साथ रहने का उन के पास कानूनी अधिकार होगा.

14 महीने बाद जब शिल्पी नारी निकेतन से बाहर आई, तब तक इरफान भी जेल से छूट चुका था. हालांकि नारी निकेतन के दरवाजे पर शिल्पी के मांबाप मौजूद थे, लेकिन शिल्पी ने साफ कहा कि वह अपने शौहर के साथ जाएगी. बेबस मांबाप देखते ही रह गए और बेटी प्रेमी के साथ चली गई. क्योंकि अब वह बालिग थी और अपनी मरजी की मालिक थी.

मांबाप के प्रति उस के मन में प्यार नहीं, नफरत थी. जिन के कारण उसे नारी निकेतन में रहना पड़ा तो प्रेमी को जेल में. शिल्पी जब नहीं मानी तो मांबाप ने भी उसे उस के हाल पर छोड़ दिया. अब वह इस दर्द को भूलना चाहते थे कि बेटी ने समाज में उन्हें कितना जलील किया था.

शिल्पी ने अपनी दुनिया प्रेमी के साथ बसा ली थी. उस ने कभी भी नहीं जानना चाहा कि उस के कारण मांबाप का क्या हाल हुआ. किस तरह से वो अपनी तारतार हुई इज्जत के साथ जी रहे थे.

धीरेधीरे प्यार का नशा उतरने लगा और शिल्पी को मांबाप की याद आने लगी. एक दिन वह पिता के घर पहुंच गई. मां का दिल पिघल गया, उस ने उसे गले से लगा लिया. उस दिन के बाद शिल्पी चोरीछिपे पिता के घर जाने लगी.

CRIME

इरफान का काफी पैसा पुलिसकचहरी और इधरउधर की भागदौड़ में खर्च हो गया था. उस ने फिर से जूता फैक्ट्री में काम शुरू कर दिया था, लेकिन शिल्पी की ख्वाहिशें बढ़ रही थीं. उस का खयाल था कि शादी के बाद शौहर उसे एक रंगीन दुनिया में ले जाएगा, पर उस ने महसूस किया कि जिंदगी उतनी रंगीन नहीं है, जैसा कि उस ने सोचा था. उस की चाहतों की उड़ान बहुत ऊंची थी. उसे लग रहा था कि इरफान ने जो खुशियां देने का वादा किया था, वह पूरा नहीं कर पा रहा है.

एक दिन उस ने इरफान से कहा, ‘‘जब तक तुम प्रेमी थे, तब तक मोहब्बत से लबरेज थे. लेकिन अब जब शौहर हो गए हो तो लगता है कि तुम्हारी मोहब्बत भी ठंडी पड़ गई है.’’

‘‘क्या मतलब है तुम्हारा? तुम्हारी मोहब्बत में मैं 2-2 बार जेल गया हूं. पुलिस के जुल्म सहे हैं. अब तुम मुझे ही ताने दे रही हो.’’ इरफान ने कहा.

‘‘मैं भी तो तुम्हारी खातिर नारी निकेतन में रही. मांबाप का घर छोड़ा, आज भी उन की उपेक्षा सह रही हूं.’’ शिल्पी ने तुनक कर कहा.

इसी तरह के छोटेछोटे झगड़ों में एक दिन इरफान ने उसे 2 तमाचे जड़ दिए तो शिल्पी हैरान रह गई पहले तो वह कहता था कि उसे फूलों की तरह रखेगा, उस ने उस पर हाथ उठा दिया. उस ने कहा कि अगर उसे पता होता कि उस की मोहब्बत इतनी कमजोर होगी तो वह उसे कभी स्वीकार न करती.

शिल्पी को लगा कि उस ने गलती कर दी है. लेकिन अब उसे जिंदगी इरफान के साथ ही गुजारनी थी. आखिर हिम्मत कर के वह मायके गई और रोरो कर मां को अपना दुख सुनाया. उस ने कहा कि इरफान पर काफी कर्जा हो गया, जिस से वह तनाव में रहता है. मां ने बेटी का दुख सुना और उसे माफ भी कर दिया. लेकिन जब रामअवतार को पता चला कि बेटी घर आई थी तो वह गुस्से से भर उठा. उस ने पत्नी से साफ कह दिया कि जिस आदमी को उस ने दामाद माना ही नहीं, वह उस की मदद कतई नहीं कर सकता.

घर में अब आए दिन झगड़े होने लगे थे. ससुराल में शिल्पी का कोई हमदर्द नहीं था. मायके वाले भी नहीं अपनाएंगे, शिल्पी यह भी जानती थी. वह तनाव में रहने लगी. उसे लगने लगा कि जिंदगी कैद के सिवाय कुछ नहीं है.

इरफान की समझ में आ गया कि मोहब्बत का खेल बहुत हो चुका है. उसे जिंदगी को पटरी पर लाने के लिए पैसे की जरूरत थी, जिस के लिए मेहनत जरूरी थी. बेटी ने भले ही परिवार को दर्द दिया था, पर ममता मरी नहीं थी. मांबाप बेटी के लिए परेशान थे, पर वह उसे अपनाना नहीं चाहते थे.

12 दिसंबर, 2016 को रामअवतार को किसी ने फोन कर के बताया कि शिल्पी को मार दिया गया है. बेटी की मौत की खबर से रामअवतार सदमे में आ गया. उस ने तुरंत माया को यह खबर सुनाई और पत्नी के साथ शब्बीर के घर पहुंच गया, जहां मकान की ऊपरी मंजिल पर बेटी का शव पलंग पर पड़ा था. उस के गले पर जो निशान थे, उस से साफ लग रहा था कि उसे गला घोंट कर मारा गया है. बेटी की लाश देख कर वह फूटफूट कर रोने लगा.

पुलिस को भी खबर मिल गई थी. थाना छत्ता के थानाप्रभारी शैलेंद्र सिंह मय फोर्स के घटनास्थल पर पहुंच गए थे. उन्होंने रामअवतार से पूछताछ की तो उस ने बताया कि करीब सवा महीने पहले बेटी को फोन कर के बताया था कि इरफान उसे मारतापीटता है और मायके से पैसा लाने को कहता है.

बेटी ने परिवार को बड़ा जख्म दिया था, इस कारण वह बेटी से नाराज था. इसलिए उस समय उसने उस से ज्यादा बात नहीं की थी. वह यह नहीं जानता था कि इरफान उसे जान से ही मार डालेगा.

इरफान और उस के घर वाले फरार हो चुके थे. पुलिस ने रामअवतार और मोहल्ले वालों की मौजूदगी में घटनास्थल की काररवाई पूरी कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

रामअवतार की तरफ से थाना छत्ता में शब्बीर और उस के बेटों इरफान, जमीर, फुरकान व शाहनवाज के खिलाफ भादंवि की धारा 498ए, 304बी, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो पता चला कि शिल्पी की मौत दम घुटने से हुई थी. इस से पुलिस को विश्वास हो गया कि यह हत्या का मामला था. पुलिस अब आरोपियों के पीछे लग गई. पुलिस ने आरोपियों के कई ठिकानों पर छापे मारे, लेकिन कोई भी हाथ नहीं लगा.

घटना के हफ्ते भर बाद शब्बीर पुलिस की गिरफ्त में आ गया. इस के बाद धीरेधीरे सभी आरोपी पकड़े गए. शब्बीर ने बताया था कि उस ने बहू को नहीं मारा. अगर उसे कोई परेशानी होती तो वह बेटे का विवाह हिंदू लड़की से न होने देता. उस ने उसे सम्मान के साथ घर में रहने की जगह दी.

शब्बीर के अनुसार शिल्पी की मौत में उस का कोई हाथ नहीं है. इरफान शिल्पी के साथ ऊपर के कमरे में रहता था. जबकि अन्य लोग नीचे रहते थे. चूंकि रिपोर्ट नामजद दर्ज कराई गई थी, इसलिए पुलिस ने उस का बयान ले कर उसे न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. इस के बाद पुलिस ने एकएक कर के सभी को जेल भेज दिया.

सिर्फ इरफान पुलिस की गिरफ्त से दूर था. पुलिस ने उस की भी सरगर्मी से तलाश शुरू की तो जून, 2017 में उस ने अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया. लेकिन उस ने अपना अपराध स्वीकार नहीं किया. उस का कहना था कि वह शिल्पी से मोहब्बत करता था. शिल्पी को खुश रखने के लिए वह मेहनत कर के पैसा कमा रहा था. उस ने खुद ही फांसी लगा कर जान दी है.

इरफान भी जेल चला गया. शिल्पी मोहब्बत में इस कदर बागी हुई कि अपनों के मानसम्मान की भी परवाह नहीं की, पर उस को यह नहीं मालूम था कि समाज के नियमों को तोड़ने वालों को समाज माफ नहीं करता.

रामअवतार भले बेटी से नाराज था, पर अपनी गुमराह बेटी को उस की मौत के बाद माफ कर चुका है, अब वह बेटी के लिए इंसाफ की लड़ाई लड़ रहा है. वह नादान बेटी को गुमराह करने वालों को माफ नहीं करना चाहता बल्कि उन्हें सजा दिलाना चाहता है.

जिस्म की आग में मां बेटी ने खेला खूनी खेल

8 नवंबर, 2016 को किसी ने राजस्थान के बाड़मेर जिले के थाना पचपदरा पुलिस को फोन कर के सूचना दी कि मंडापुरा साजियाली फांटा के पास सड़क किनारे झाडि़यों में एक लाश पड़ी है. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी जयकिशन सोनी पुलिस टीम के साथ सूचना में बताई गई जगह पर पहुंच गए. वहां बबूल की झाडि़यों में 25-26 साल के एक युवक की लाश पड़ी थी. उस के गले में रस्सी का फंदा लगा था. इस से यही लग रहा था कि उस की हत्या रस्सी से गला घोंट कर की गई थी. लाश के पास किसी आदमी के पैरों के निशान के साथ मोटरसाइकिल के टायरों के भी निशान थे.

पुलिस ने वहां पर मौजूद लोगों से लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश की, पर मृतक को कोई भी पहचान नहीं सका. थानाप्रभारी ने अज्ञात युवक की लाश मिलने की सूचना बाड़मेर के एसपी डा. गगनदीप सिंगला और बालोतरा के एडिशनल एसपी कैलाशदान रतनू को भी दे दी थी.

कुछ ही देर में एसपी और एडिशनल एसपी भी मौके पर पहुंच गए. लाश का निरीक्षण कर उन्होंने भी वहां मौजूद लोगों से बात की. इस के बाद दोनों पुलिस अधिकारी थानाप्रभारी जयकिशन सोनी को जरूरी दिशानिर्देश दे कर चले गए. अधिकारियों के जाने के बाद थानाप्रभारी ने लाश का पंचनामा भर कर उसे पोस्टमार्टम के लिए बालोतरा के सरकारी अस्पताल भिजवा दिया.

लाश की शिनाख्त जरूरी थी, इसलिए पुलिस अधिकारियों ने सलाहमशविरा कर के लाश के फोटो वाट्सएप ग्रुप में शेयर कर लोगों से शिनाख्त की अपील की. पुलिस की यह तरकीब काम कर गई और किसी ने उस की शिनाख्त कर दी. उस का नाम गोमाराम था और वह थाना धोरीमन्ना के गांव कोठाला के रहने वाले गुमानाराम का बेटा था.

जयकिशन सोनी ने गुमानाराम को बुलवाया तो उन्होंने बालोतरा अस्पताल जा कर लाश देखी और उस की शिनाख्त अपने बेटे गोमाराम के रूप में कर दी. शिनाख्त हो गई तो पोस्टमार्टम के बाद लाश घर वालों को सौंप दी गई. घर वालों ने पुलिस को बताया कि गोमाराम की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. इस से मामला और पेचीदा हो गया. पुलिस ने हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर केस की जांच शुरू कर दी.

एसपी डा. गगनदीप सिंगला ने इस केस को सुलझाने के लिए 2 पुलिस टीमें बनाई. पहली टीम में थाना नागाणा के थानाप्रभारी देवीचंद ढाका, एसपी (स्पेशल टीम) कार्यालय से भूपेंद्र सिंह तथा ओमप्रकाश और दूसरी टीम में कल्याणपुर के थानाप्रभारी चंद्र सिंह व उन के थाने के तेजतर्रार सिपाहियों को शामिल किया.

दोनों टीमों का निर्देशन एडिशनल एसपी कैलाशदान रतनू कर रहे थे. पुलिस ने मृतक के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि बाटाड़ू गांव का एक लड़का मृतक के साथ आताजाता रहता था. 2 महीने पहले वह गांव लुखू स्थित मृतक की ससुराल भी गया था.

उस युवक की पहचान गंगाराम निवासी दुर्गाणियों का तला, थाना लुंदाड़ा गिड़ा, के रूप में हुई. पुलिस ने 13 नवंबर, 2016 को उसे जोधपुर से धर दबोचा. थाने ला कर उस से पूछताछ की गई तो सारा सच सामने आ गया.

उस ने बताया कि गोमाराम की हत्या में उस की पत्नी वीरो और सास जीतो भी शामिल थीं. पुलिस ने 14 नवंबर की सुबह उन दोनों को भी गिरफ्तार कर लिया. तीनों से पूछताछ के बाद गोमाराम की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

राजस्थान का बाड़मेर जिला जाट बाहुल्य है. यहां के लोगों का मुख्य पेशा खेतीकिसानी है. पहले राजस्थान में बालविवाह का प्रचलन था. दादादादी अथवा नानानानी की मौत होने पर मौसर (मृत्युभोज) की कड़ाही पर नन्हें बच्चों का बालविवाह करने की परंपरा थी.

अक्षय तृतीया को भी हजारों की संख्या में बालविवाह किए जाते थे. इसी जिले के गांव कोठाला के रहने वाले गोमाराम का भी 15-16 साल पहले लुखू गांव के श्रवणराम चौधरी की बेटी के साथ बालविवाह हुआ था. उस समय वीरो की उम्र 4 साल थी, जबकि गोमाराम 10 साल का था.

घर वालों ने गुड्डेगुडि़यों के खेल की तरह छोटी सी उम्र में इन दोनों की शादी कर दी थी. इस से पहले गोमाराम की शादी अपनी ही बिरादरी की एक लड़की के साथ हो गई थी, पर गौना होने से पहले ही उस की बीवी टांके में डूब कर मर गई थी. राजस्थान में अंडरग्राउंड बने पानी के टैंक को टांका कहते हैं.

वक्त के साथ गोमाराम और वीरो जवान हो गए. दोनों ने घर वालों से सुन रखा था कि उन की बचपन में ही शादी हो चुकी है. गोमाराम ने स्कूली पढ़ाई के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी, जबकि वीरो जब 10वीं कक्षा में पढ़ रही थी, तभी उस का गौना गोमाराम से कर दिया गया था.

वीरो ने अपने वैवाहिक जीवन को ले कर कई रंगीन ख्वाब देखे थे, मगर गौने के बाद जब गोमराम से उस का सामना हुआ तो उस के ख्वाब टूट गए. किसी सुंदरस्वस्थ युवक के बजाय उस का पति दुबलापतला और शराबी था. चूंकि उस के साथ उस की शादी हो चुकी थी, इसलिए निभाना उस की मजबूरी थी.

गोमाराम हर समय शराब के नशे में डूबा रहता था. पत्नी से जैसे उसे कोई लगाव ही नहीं था. वह तो केवल शराब को अपनी जरूरत समझता था. नईनवेली दुलहन का दुखसुख पूछना तो दूर, वह उस से रात में भी बात नहीं करता था. शराब पी कर वह बिस्तर पर एक तरफ लुढ़क जाता था.

गौने के कुछ दिनों बाद ससुराल से वीरो जब मायके आई तो उस ने अपना दुखड़ा अपनी मां जीयो से कह सुनाया. उस ने साफसाफ कहा कि ऐसे शराबी के साथ वह जिंदगी कैसे गुजारेगी. बेटी की व्यथा सुन कर जीयो को भी महसूस हुआ कि बचपन में गोमाराम के साथ बेटी की शादी कर के उस ने बड़ी गलती की थी.

मां ने उसे दिलासा दी कि वक्त के साथ सबकुछ ठीक हो जाएगा. गौने के बाद वीरो स्कूल की गर्मियों की छुट्टियों में ससुराल गई. मगर पति की शराब की आदत में कोई सुधार नहीं आया. गौने के डेढ़ साल तक वह ससुराल में रही. उस ने अपने प्यार से पति का दिल जीतना चाहा, पर पति पर इस का कोई फर्क नहीं पड़ा.

वीरो ने मायके आ कर मां को सारी बातें बताईं तो बेटी का दुख देख कर जीयो को बड़ा झटका लगा. गोमाराम जोधपुर शहर की एक फैक्ट्री में नौकरी करता था. उस के साथ गंगाराम और उस का भाई चूनाराम भी काम करते थे. तीनों आपस में अच्छे दोस्त थे.

गोमाराम अपनी ज्यादातर कमाई शराब पर उड़ा देता था. वहीं गंगाराम और चूनाराम शराब को हाथ तक नहीं लगाते थे. वे अपनी तनख्वाह बचा कर रखते थे.  गोमाराम की बीवी वीरो पिछले 6 महीने से मायके में थी. गोमाराम कभीकभी उस से फोन पर बातें कर लेता था. वह उस से आने को कहती तो वह पैसे न होने का बहना कर देता. उस के पास पैसे होते भी कहां से, क्योंकि वह सारे पैसे शराब में उड़ा देता था.

एक बार पैसे न होने पर गोमाराम ने अपना मोबाइल चूनाराम को बेच दिया. चूनाराम ने वह मोबाइल अपने भाई गंगाराम को दे दिया. वीरो को यह बात पता नहीं थी, इसलिए जब उस ने पति को फोन किया तो फोन गंगाराम ने रिसीव किया. वीरो ने पूछा, ‘‘कैसे हो?’’

‘‘मैं तो ठीक हूं. तुम कैसी हो?’’ गंगा ने पूछा.

उस की आवाज सुन कर वीरो चौंकी, क्योंकि एक तो वह आवाज उस के पति की नहीं थी, दूसरे पति ने कभी उस से इतनी तमीज से बात नहीं की थी. उस ने कहा, ‘‘यह नंबर तो गोमाराम का है, आप कौन बोल रहे हैं?’’

‘‘मैं गोमाराम का दोस्त गंगाराम बोल रह हूं. उन का फोन मैं ने ले लिया है. आप इसी नंबर पर फोन करना, मैं गोमा से बात करा दूंगा.’’

‘‘बात क्या करनी है, उन्हें तो शराब पीने से ही फुरसत नहीं है. उन के लिए कोई मरे या जिए, उन्हें किसी से कोई मतलब नहीं है.’’ वीरो ने लंबी सांस ले कर कहा.

‘‘आप सही कह रही हैं, उसे सचमुच किसी की परवाह नहीं है. आप को मायके गए कितने दिन हो गए, मिलने तक नहीं जाता. पता नहीं कैसा आदमी है. दिनरात शराब में मस्त रहता है.’’

‘‘बिलकुल सही कह रहे हैं आप.’’ वीरों ने लंबी सांस ले कर कहा.

इस बातचीत से गंगाराम समझ गया कि वीरो अपने पति से खुश नहीं है. इसलिए जब भी वीरो उस से बात करती, वह उस से बड़ी तहजीब से बातें करता.

गंगाराम की यही आदत वीरो को भा गई. वह अकसर उस से मोबाइल पर बातें करने लगी. उसे गंगारम ने बताया कि उस का बचपन में बालविवाह हुआ था. वीरो जब भी गंगाराम से बातें करती, उसे अपनेपन का अहसास होता.

थोड़े दिनों तक फोन पर होने वाली बातों से दोनों एकदूसरे की ओर आकर्षित हो गए. वीरों ने अपनी मां जीयो को भी गंगाराम के बारे में बता दिया. जीयो ने भी गंगाराम से बात की. उसे भी गंगाराम का व्यवहार सही लगा. इस के बाद जीयो ने गंगाराम से कहा कि गोमाराम के साथ उस की बेटी खुश नहीं है. अगर वीरो का उस से तलाक हो जाए तो नाताप्रथा के तहत वह बेटी का ब्याह उस के साथ कर देगी.

इस बात से गंगाराम का दिल बागबाग हो उठा. वीरो ने भी गंगाराम से कहा कि वह गोमाराम का दोस्त है, उसे तलाक के लिए मनाए. एक दिन गोमा जब शराब के नशे में धुत था तो गंगाराम ने उस से कहा, ‘‘तुम वीरो का जीवन क्यों बरबाद कर रहे हो. उसे तलाक दे दो.’’

‘‘तलाक… मैं उसे इस जनम में तो तलाक नहीं दूंगा. वह अपने आप को बहुत सुंदर और होशियार समझती है. मुझे शराबी, निकम्मा और न जाने क्याक्या कहती है. इसलिए जीते जी मैं उसे तलाक नहीं दे सकता. वह शादीशुदा हो कर भी विधवा की तरह जीती रहे. बस मैं यही चाहता हूं?’’ गोमाराम ने कहा.

गंगाराम ने यह बात जब वीरो को बताई तो उस ने अपनी मां से बात की. इस के बाद उन्होंने गंगाराम को अपने गांव लुखू बुलाया. यह 2 महीने पहले की बात है. गंगाराम अपनी प्रेमिका वीरो से मिलने लुखू पहुंच गया. वहां पर गंगाराम और वीरो ने एकदूसरे को देखा.

दोनों ने एकदूसरे को पसंद कर लिया. बस फिर क्या था, मांबेटी ने गंगाराम से कहा कि वह गोमाराम से वीरो का तलाक करवा दे. अगर वह तलाक के लिए राजी न हो तो उसे रास्ते से हटा दे. गंगाराम को भी उन की बात पसंद आ गई.

गंगाराम गोमाराम को रास्ते से हटाने का मौका तलाशने लगा. वीरो और उस की मां की गंगाराम से अकसर मोबाइल पर बातें होती रहती थीं. दोनों उसे उकसाती रहती थीं कि जल्द से जल्द गोमाराम का पत्ता साफ करे. गंगाराम भी इसी धुन में था, मगर मौका नहीं मिल रहा था.

गोमाराम ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उस की बीवी और सास उस की हत्या का तानाबाना बुन रही हैं. वह तो अपनी मस्ती में मस्त था. आखिर 7 नवंबर, 2016 को गंगाराम को उस समय मौका मिल गया, जब दिन में ही गोमाराम उसे शराब के नशे में धुत मिल गया. इस मौके को भला वह हाथ से क्यों जाने देता.

उस ने रात होने का इंतजार किया. रात करीब 8 बजे गंगाराम ने अपनी मोटरसाइकिल पर गोमाराम को बिठाया और गांव चलने को कहा. गोमाराम उस मना नहीं कर सका. बालोतरा रोड पर मोटरसाइकिल पहुंची तो रास्ते में भांडू गांव के ठेके से गंगाराम ने शराब की बोतल खरीद कर गोमाराम को दी. एक जगह बैठ कर वह उसे पी गया. इस के बाद दोनों ने कल्याणपुर के एक ढाबे पर खाना खाया.

गंगाराम को लग रहा था कि गोमाराम अभी भी होश में है. उस ने पचपदरा में जोधपुर रोड पर उसे फिर शराब पिलाई. इस से उसे गहरा नशा हो गया. मोटरसाइकिल के पीछे बैठ कर वह लहराने लगा. गंगाराम इसी मौके की ताक में था. वह गोमा को मोटरसाइकिल से उतार कर बबूल की झाडि़यों के बीच ले गया और वहीं उस का गला दबा कर मार डाला. लाश को वहीं पड़ी छोड़ कर वह मोटरसाइकिल से जोधपुर चला गया.

गंगाराम ने गोमाराम की हत्या करने की बात वीरो तथा जीयो को बता दी थी. वीरो खुश थी कि अब गंगाराम से वह नाता के तहत ब्याह कर लेगी. गंगाराम भी यही सोच रहा था. मगर पुलिस ने उन के मंसूबों पर पानी फेरते हुए 5 दिनों में इस हत्याकांड का खुलासा कर दिया.

पूछताछ के बाद पुलिस ने 16 नवंबर, 2016 को तीनों को पचपदरा की कोर्ट में पेश किया, जहां से वीरो और जीयो को केंद्रीय कारागार जोधपुर और गंगाराम को बालोतरा जेल भेज दिया गया. क्योंकि बालोतरा जेल में महिलाओं को रखने की जगह नहीं है. इस मामले में भी वही हुआ, जो ऐसे मामलों में होता है. थानाप्रभारी जयकिशन सोनी इस मामले की जांच कर रहे हैं.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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