Story in hindi

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Family story in Hindi: मोहन और सुरेश 2 भाई थे. मोहन बड़ा, सुरेश छोटा था. उन के बचपन में ही पिता का देहांत हो गया था. दोनों की मां ने बहुत मुश्किल से उन का पालनपोषण किया था. मां की तकलीफ देखते हुए मोहन छोटी उम्र से ही काम करने लगा था. दोनों मांबेटा मिल कर छोटे से खेत में सब्जियां उगाते, उन्हें बाजार में बेचते, साथ ही दूसरे के खेतों में मजदूरी भी करते थे. एक बार मां ने मोहन से कहा था, ‘‘बेटा, तू भी पढ़ाई कर ले. मैं सब संभाल लूंगी. भले ही अच्छा खाना नहीं दे सकूंगी, रोटी का जुगाड़ तो हो ही जाएगा.’’मोहन ने कहा, ‘‘मां, अगर हम दोनों भाई पढ़ेंगे, तो किसी की पढ़ाई भी सही ढंग से नहीं होगी. अगर मैं तुम्हारी कुछ मदद कर दूंगा, तो छोटा भाई अच्छी तरह पढ़ाई कर लेगा. मैं शाम को मास्टरजी से पढ़ लिया करूंगा और वे इम्तिहान भी दिलवा देंगे.’’
सुरेश पढ़ाई में बहुत तेज था. बड़े भाई और मां की उम्मीदों पर खरा उतरता हुआ वह कामयाबी के रास्ते पर आगे बढ़ता रहा.
मोहन भी पास के हाईस्कूल के एक मास्टरजी की मदद से रात में पढ़ाई करता और उन्हीं की सलाह से फार्म भर कर उस ने मैट्रिक और इंटर का इम्तिहान पास किया था. इस के बाद पत्राचार से बीए करते हुए उस ने नजदीक के कृषि विज्ञान केंद्र से कई तरह की ट्रेनिंग ले कर खेतीबारी से जुड़ी नई से नई तकनीक की जानकारी हासिल कर ली थी.
सुरेश का जिस दिन अपने ही राज्य के इंजीनियरिंग कालेज में दाखिला हुआ, मोहन ने पूरे गांव को मिठाई खिलाई थी.
सुरेश जब कालेज में पढ़ रहा था, उसी समय उस के बड़े भाई मोहन का ब्याह हो गया. उस की भाभी बहुत प्यारी और सब का ध्यान रखने वाली थीं. भाभी के आने से घर में रौनक हो गई और सुरेश की पढ़ाई पूरी होने से पहले घर में गुडि़या सी भतीजी भी आ गई.
सुरेश अपनी भतीजी को बहुत स्नेह करता था. उस की इच्छा थी कि वह भतीजी को एक अच्छे स्कूल में पढ़ाए और उसे हर वह खुशी दे, जो बचपन में इन दोनों भाइयों को नहीं मिल पाई थी.
इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद मोहन की इच्छा थी कि सुरेश एमबीए में दाखिला ले ले, पर पढ़ाई खत्म करते ही सुरेश की नौकरी एक बड़ी विदेशी कंपनी में लग गई, जिस का दफ्तर मुंबई में था.
सुरेश की तनख्वाह भी बहुत ज्यादा थी. इस वजह से सुरेश ने पत्राचार कोर्स से एमबीए करने का फैसला किया. उस ने अपने भाई और मां को भी समझ कर नौकरी करने के पक्ष में तैयार कर लिया.
नौकरी लगने के बाद सुरेश ने मोहन और मां से अपने साथ ही मुंबई चलने के लिए कहा, पर मोहन ने मुंबई जाने से मना करते हुए कहा, ‘‘देख भाई, तू वहां नौकरी कर और यहां हमारी खेती भी है, उसे मैं संभालूंगा.
‘‘हम ने तो धीरेधीरे कर के कुछ और खेत भी ले लिए हैं. हमारी जो बंजर जमीन पड़ी थी, उस में भी सरकार की ओर से आम के बाग लगाने का प्रस्ताव मिला है, इसलिए हमें यहीं रहने दे.
‘‘हम मुंबई जरूर घूमने आएंगे. अभी तू अकेले जा कर नौकरी कर ले. जब हम तुम्हारी शादी करेंगे, तब तुम अपनी पत्नी को भी ले जाना. और जब तुम्हारी भतीजी स्कूल में पढ़ने लायक होगी, तब उसे भी अपने साथ रखना.’’
सुरेश बोला, ‘‘क्या भैया, अभीअभी तो मेरी नौकरी लगी है और आप शादी की बात कर रहे हैं. पहले एक अच्छा मकान बना लें, उस के बाद मेरी शादी की सोचना.
‘‘हमारा मकान बहुत छोटा और पुराना है. आप की सारी आमदनी तो मुझे पढ़ाने में लग गई. जो थोड़ीबहुत बचत होती थी, उस से आप ने और खेत ही बढ़ाए हैं.
‘‘मकान की मरम्मत भी नहीं हुई. मेरी भाभी और नन्ही भतीजी को इस मकान में कितनी परेशानी होती है, इसलिए पहले मकान, उस के बाद आगे की कुछ बात आप सोचना.’’
मोहन ने कहा, ‘‘तू तो पूरा पागल है. अरे, हम दोनों काम एकसाथ कर सकते हैं.’’
कुछ दिनों के बाद सुरेश मुंबई चला गया. वह तनख्वाह मिलते ही अपना खर्च निकाल कर हर महीने मोहन भैया को एक अच्छीखासी रकम भेज देता था.
एक दिन सुरेश ने फोन पर भैया से कहा, ‘‘भैया, मैं नए घर का नक्शा भिजवा रहा हूं, आप घर बनवाना शुरू कर दें.’’
मोहन ने वह नक्शा देख कर कहा, ‘‘पर, इतना बड़ा मकान बनाने के लिए तो कई लाख रुपए लगेंगे…’’
सुरेश बोला, ‘‘तो क्या हुआ भैया. मैं बैंक से कर्ज ले लूंगा. मेरी तनख्वाह से कर्ज चुकता होता रहेगा.’’
मोहन ने पहले तो कर्ज लेने के लिए बहुत मना किया, पर सुरेश की जिद पर मान गया. सुरेश ने बैंक से कर्ज ले लिया.
सुरेश की शादी के लिए भी बहुत से प्रस्ताव आ रहे थे. एक अच्छी लड़की देख कर मां और भैयाभाभी ने उस का ब्याह करा दिया.
मोहन जब अपनी पत्नी को ले कर मुंबई जा रहा था, तब वह अपने साथ अपनी भतीजी को भी ले जाना चाह रहा था, लेकिन मां ने समझाया, ‘‘इसे अभी मत ले जाओ, यह छोटी है. थोड़ी और बड़ी हो जाने दो, फिर ले जाना पढ़ाने के लिए.
‘‘अभी तुम दोनों जाओ. वैसे भी तुम दोनों का जीवन शुरू ही हुआ है अभी. पूरी जिंदगी पड़ी है जिम्मेदारी निभाने को.’’
सुरेश चला गया और मोहन ने घर बनवाना शुरू किया, पर न जाने उस के दिमाग में क्या बात आई कि बैंक से कर्ज लिए गए रुपए जैसेजैसे मिलते गए, उन में से आधे पैसों से उस ने खेती लायक कुछ जमीन खरीद ली और उस पर और्गैनिक खेती करने लगा.
मोहन ने आधे पैसे से साधारण सा मकान बना लिया, जिस में सुविधाएं तो सब थीं, पर जो मौडर्न डिजाइन सुरेश ने भेजा था, वह नहीं था.
सुरेश जब भी फोन पर मोहन को मकान के फोटो भेजने के लिए कहता, तो मोहन हंस कर बोलता, ‘‘कुछ राज भी तो रहने दे, जब पूरा मकान बन जाएगा तब देख लेना.’’
पूरा परिवार हंसीखुशी गांव और शहर दोनों जगह पर अपना समय बिता रहा था कि अचानक कोरोना वायरस का कहर शुरू हो गया.
कोरोना काल में हुई मंदी के चलते कई बड़ीबड़ी कंपनियों ने अपने मुलाजिमों की छंटनी कर दी थी. उन्हीं में सुरेश भी था. उस ने गांव जाने का फैसला किया.
पत्नी नेहा गांव जाने के लिए तो तैयार हो गई, पर उसे एक अलग ही चिंता सता रही थी, ‘‘गांव में हमारा रहनाखाना तो हो जाएगा, लेकिन बैंक की किस्त कहां से भरेंगे? हर महीने इतनी बड़ी रकम देना बड़ा मुश्किल होगा. ऐसे में तो हमारी गांव की जमीन भी बिक सकती है. भैया ने सही कहा था आप से कि अभी बड़ा घर बनवाने की जरूरत नहीं है.’’
यह सुन कर सुरेश बोला, ‘‘अभी तो गांव में चल कर देखते हैं. कुछ नहीं होगा तो कोई अपना ही काम शुरू करूंगा. कम से कम यह मुसीबत का समय तो निकल जाए.’’
जब नेहा और सुरेश गांव पहुंचे, तो नए घर को देख कर हैरान रह गए. भैया और मां खेत पर गए थे, भाभी घर में थीं.
थोड़े गुस्से और नाराजगी के मिलेजुले भाव से सुरेश ने भाभी से कहा, ‘‘भाभी, यह सब क्या है… यह घर बनवाया है आप ने… इतने सारे रुपयों में इतना साधारण सा मकान क्यों बना है? मैं ने तो भैया को एक बड़ा और मौडर्न मकान बनाने के लिए पैसा दिया था.’’
भाभी मुसकरा कर बोलीं, ‘‘देवरजी, अभी तो आए हो, पहले नहाधो लो, कुछ खापी कर थोड़ा आराम तो कर लो, फिर अपने रुपयों का भी हिसाब कर लेना.’’
भाभी की बात सुन कर सुरेश थोड़ा सकपका गया, इसलिए वह एकदम से बोला, ‘‘नहींनहीं भाभी, आप बुरा मत मानिए. मैं तो इतना साधारण मकान देख कर यह बोल रहा था.’’
भाभी बोलीं, ‘‘कोई बात नहीं. अच्छा, मैं गरम पानी दे रही हूं. जाओ, पहले नहा कर आओ.’’
कमरे में जाने के बाद सुरेश को नहाने के लिए कपड़े निकाल कर देते हुए नेहा ने कहा, ‘‘आप को आते ही भाभी से ऐसे नहीं बोलना चाहिए था. शायद उन्हें आप की बात पसंद नहीं आई.’’
सुरेश बोला, ‘‘मैं अपनी गलती मानता हूं, लेकिन मैं भी क्या करता… बैंक से इतना ज्यादा कर्ज लिया था. नौकरी लगने के बाद से ही मैं उन्हें पैसे भेजता रहा, बहुत सोचसमझ कर मैं ने खुद पर खर्च किया है. अपने भविष्य के लिए भी मैं ने कुछ भी नहीं रखा है. जोकुछ बचत हुई, तुम्हारे आने के बाद ही हुई. ऐसे में इतना साधारण मकान देख कर मैं अपने को रोक नहीं पाया.’’
नेहा ने कहा, ‘‘जो हो गया, वह हो गया, लेकिन आगे भैया या मां के सामने इस बारे में आप कुछ भी नहीं बोलेंगे.’’
सुरेश ने हंसते हुए कहा, ‘‘अच्छा ठीक है, अब नहाने भी दोगी या यह भाषण ही देती रहोगी…’’
छोटे भाई के गांव आने की खबर सुन कर मोहन और मां भी घर आ गए. नेहा द्वारा मना किए जाने के बाद भी सुरेश ने मां और भैया के सामने भी अपना वही सवाल रख दिया.
मोहन ने कहा, ‘‘पहले यह बताओ कि अचानक बिना सूचना के तुम कैसे आ गए, वह भी कोरोना काल में. अब यहां तुम्हें 15 दिन तक क्वारंटीन रहना होगा.’’
सुरेश बोला, ‘‘हम क्वारंटीन रह लेंगे, क्योंकि शहर में रहते तो कुछ दिन बाद फाके करने की नौबत आ जाती. एक बुरी सूचना है कि मेरी नौकरी छूट गई है. और अब मैं यह सोच रहा हूं कि बैंक से जो कर्ज लिया उस की किस्त कैसे भर पाऊंगा. इतना पैसा भी नहीं है कि कोई नया रोजगार भी कर सकूं. अभी के समय में तो कोई नया धंधा भी नहीं चलेगा. ऐसे में बैंक की किस्त देना मुश्किल लगता है.’’
मोहन ने कहा, ‘‘तू घबरा मत छोटे, कुछ भी मुश्किल नहीं होगा. हमारा धंधा अभी भी चलेगा.’’
सुरेश ने हैरान हो कर पूछा, ‘‘मैं समझ नहीं भैया, कैसा धंधा?
मोहन ने समझाया, ‘‘तुम्हें क्या लगता है कि तुम्हारे द्वारा हर महीने भेजे गए और तुम्हारे नक्शे के मुताबिक मकान नहीं बना कर बचाए गए रुपए मैं ने कहीं उड़ा दिए क्या? नहीं मेरे भाई. इस साधारण मकान में सुविधाएं तो सारी हैं, बस मौडर्न नहीं है. इस तरह का मकान बनाने से आधी से ज्यादा रकम बच गई थी…’’
‘‘वही तो मैं भी पूछ रहा था कि साधारण मकान बना कर पैसे बचाने की जरूरत क्या आ गई आप को?’’ सुरेश ने मोहन की बात काटते हुए पूछ लिया.
मोहन ने कहा, ‘‘थोड़ा धीरज रख छोटे, वही मैं तुझे बता रहा हूं. उस बची हुई रकम से मैं ने कुछ उपजाऊ जमीन खरीद ली थी और उस पर नए तरीके से खेतीबारी कर रहा हूं.
‘‘इस बार हम ने तरबूज और खरबूजे लगाए थे. इस फसल से खर्च काट कर 3 लाख रुपए की आमदनी हुई है, जिसे मैं ने बैंक में जमा कर दिया है. उस से हम लोग कई महीने तक बैंक की किस्त दे ही सकते हैं. उस के खत्म होने के पहले हमारे आम की फसल की आमदनी आ जाएगी.’’
सुरेश खुश हो कर बोला, ‘‘मान गया भैया आप को. मैं तो महज दिखावे पर ध्यान दे रहा था, पर आप ने घर की माली हालत मजबूत करने पर ध्यान रखा.’’
मोहन ने हंसते हुए कहा, ‘‘आखिर तेरा बड़ा भाई हूं. और हां, तू कहता है तेरा रोजगार खत्म हो गया… कहां खत्म हुआ है. अभी तो और ज्यादा आगे बढ़ने का समय है. मैं अकेले सबकुछ नहीं संभाल पा रहा था, अब तुम मेरी मदद करना.’’
मोहन भैया की सूझबूझ से सुरेश बहुत प्रभावित था. उस ने अपनी पत्नी की ओर देखा और कहा, ‘‘देखा, तुम चिंता करती आ रही थी कि कर्ज कैसे चुकाएंगे. कल तक हम नौकर थे तो परेशानी थी, अब हम अपनी धरती मां के पुत्र बने हैं, अब हमें कोई परेशानी नहीं होगी. बैंक का कर्ज भी चुकता हो जाएगा.
‘‘धरती मां हमें उपज के रूप में अपना इतना स्नेहदुलार देंगी कि हम मालामाल हो जाएंगे. मैं अपने घर में रह कर खेतीबारी करूंगा. हां, मैं धरतीपुत्र किसान हूं.’’
Family Story in Hindi: लक्ष्मी और श्रीनिवास ने लवमैरिज की थी. पर कुछ समय के बाद ही श्रीनिवास बदल गया था. लक्ष्मी अपने पति को गलत रास्ते पर जाने से न रोक सकी, लेकिन वह अपने सपनों को भी नहीं मरने देना चाहती थी. क्या थे उस के सपने और क्या लक्ष्मी का पति सही रास्ते पर आ पाया? लक्ष्मी अपने हाथ में एक खुला खत लिए हुए खड़ी थी और थरथर कांप रही थी. उस ने घबराते हुए टिकटिक करती हुई घड़ी की तरफ नजर फेंकी. 5 बजने में 35 मिनट बाकी थे. वह फिर से खत देखने लगी. लक्ष्मी देख रही थी कि टेढ़ेमेढ़े अक्षरों में क्या लिखा है, क्या वह इस समय भी पहुंच सकती है? हां, अभी समय है. वह मौके पर पहुंच सकती है. उस ने झपट कर सोफे पर पड़ा हुआ हैंडबैग उठाया और तेजी से बाहर निकली.
घर के सामने ही लक्ष्मी की स्कूटी खड़ी थी. उस ने तेजी से स्कूटी स्टार्ट की और गुलाब बाग की ओर चल पड़ी. उसे रास्ते की भीड़ पर गुस्सा आ रहा था.
फिर भी लक्ष्मी की स्कूटी सनसनाती हुई भीड़भाड़ से भरी सड़कों से गुजरने लगी. लक्ष्मी बारबार घड़ी देख रही थी. समय बड़ी तेजी से निकल रहा था. साढ़े 4 हुए, फिर पौने 5 और अब 4 बज कर 50 मिनट. बस, 10 मिनट और… गुलाब बाग थोड़ी दूर है. ट्रैफिक भी कितना है कि वह कैसी मरी चाल से चला पा रही है स्कूटी को.
4 बज कर 55 मिनट पर लक्ष्मी गुलाब बाग के बड़े दरवाजे पर पहुंची. वहां एक मीटिंग हो रही थी. चारों तरफ नीले झंडे लगे हुए थे.
लक्ष्मी ने स्कूटी खड़ी की और भीड़ की तरफ दौड़ी. भीड़ में घुस पाना बहुत मुश्किल था, लेकिन वह पलभर में ही बीचोंबीच पहुंच गई.
मंच पर फूलमालाओं से लदा हुआ, सफेद कपड़े और नीली टोपी पहने हुए एक आदमी जोरदार भाषण दे रहा था. उस की आवाज लाउडस्पीकरों के जरीए चारों तरफ फैल रही थी.
लक्ष्मी ने न तो उस आदमी की तरफ देखा और न उस के भाषण का एक भी शब्द सुनने की कोशिश की. उस की आंखें श्रीनिवास को ढूंढ़ रही थीं.
आखिरकार लक्ष्मी ने श्रीनिवास को ढूंढ़ ही लिया. वह मंच के नीचे तीसरी लाइन में बैठा था, लेकिन इस समय 5 बजने में सिर्फ कुछ ही सैकंड बाकी थे.
लक्ष्मी जल्दी से जल्दी श्रीनिवास के पास पहुंचने के लिए भीड़ में से रास्ता बनाने की कोशिश कर रही थी. अचानक उस ने देखा कि श्रीनिवास ने अपनी जेब से एक पिस्तौल निकाली. लक्ष्मी को यह होश नहीं रहा कि पहले पिस्तौल छूटी या उस के मुंह से चीख निकल पड़ी.
फूलमालाओं से लदा हुआ आदमी कटे हुए पेड़ की तरह गिर पड़ा. उस के सीने से सुर्ख खून की धार बह चली. भीड़ में इस हादसे से खलबली मच गई. हर आदमी चीख रहा था.
लक्ष्मी भीड़ के बीच फंस गई थी. वह कुचली जा रही थी, लेकिन फिर भी श्रीनिवास के पास पहुंचने की कोशिश कर रही थी.
अचानक लक्ष्मी को श्रीनिवास के चारों तरफ पुलिस की खाकी वरदियां दिखाई दीं. वह समझ गई कि पुलिस ने उसे पकड़ लिया है.
इस के बाद पुलिस की गाड़ी आ गई. उसे श्रीनिवास की झलक भर मिली थी कि सिपाहियों ने उसे गाड़ी में बंद कर दिया. गाड़ी धूल का गुबार उड़ाती हुई चली गई. लक्ष्मी उस गुबार को देखती रह गई.
लक्ष्मी ने पता लगाने की कोशिश की कि श्रीनिवास को किस जेल में भेजा गया है, मगर कुछ भी पता न लग सका. वह उसी जगह घूमती रही. जब अंधेरा हो गया और वह थक कर चूर हो गई, तो घर लौट आई.
अपने कमरे में आते ही लक्ष्मी एक आरामकुरसी पर गिर पड़ी. उस ने कमरे की बत्ती तक नहीं जलाई. खुली खिड़की से आती हुई रोशनी की पट्टी एक नौजवान के फोटो पर पड़ रही थी.
लक्ष्मी उस फोटो की तरफ एकटक देख रही थी. उस नौजवान के चेहरे पर शांत मुसकराहट खेल रही थी. लक्ष्मी समझ नहीं पा रही थी कि उस की मासूम निगाहों के पीछे आतंक की आग कहां छिपी थी. उसे 5 साल पहले की बातें याद आने लगीं…
उस समय वे दोनों कालेज में पढ़ते थे. वह यानी श्रीनिवास कट्टर राष्ट्रीय विचारों का था. लक्ष्मी उस के विचारों से प्रभावित हो कर उस की तरफ खिंच गई थी. श्रीनिवास के विचार कभीकभी उसे बहुत खतरनाक मालूम पड़ते थे, लेकिन वह फिर भी उस की ओर खिंचती ही चली गई.
लक्ष्मी श्रीनिवास के नजदीक आने की कोशिश करने लगी और उस के एक दोस्त ने श्रीनिवास से उस का परिचय करा दिया. श्रीनिवास भी उस की तरफ खिंच गया था, इसलिए उन की दोस्ती बढ़ने लगी. बिलकुल उसी तरह, जैसे हवा लगने से आग बढ़ती है. हालांकि उन के विचार कभीकभी टकरा जाते थे. लक्ष्मी उदारवादी थी, सब को बराबर समझाने वाली. लेकिन वह मोह बंधन तोड़ न सकी और उस ने श्रीनिवास के साथ ब्याह कर लिया.
कुछ समय तक वे दोनों बहुत सुखी रहे. श्रीनिवास एक आदर्श पति की तरह लक्ष्मी को सुखी रखने की कोशिश करता रहा. लक्ष्मी यह देख कर खुश होने लगी कि उस ने अपने पति की विचित्र सोच को बदल दिया है.
एक साल सपनों और कल्पनाओं में निकल गया. इस के बाद श्रीनिवास ऊबने लगा और रात को देर तक बहस करने लगा. वह अब अकसर ही कहने लगता था, ‘‘लक्ष्मी, मैं तो तुम्हें अपनी पत्नी समझता हूं, लेकिन तुम मुझे अपना पति नहीं समझती हो.’’
लक्ष्मी ने श्रीनिवास को अपनी तरफ से समझाने की पूरी कोशिश की, लेकिन वह उसे जरा भी न समझ पाई. श्रीनिवास इतना जिद्दी था कि अपने सामने किसी की नहीं सुनता था. बस अपने दल के कट्टर नेताओं की ही बात वह मानता था. उन की पार्टी की सरकार थी, पर उसे इस में भी कमी नजर आती थी. वह चाहता था कि जो भी काम हो रहा है, उस का जल्दी से जल्दी नतीजा सामने आए.
एक दिन शाम को श्रीनिवास ने लक्ष्मी के सामने ऐलान कर दिया कि वह इस दल के आंतकवादियों के दस्ते में शामिल हो गया है. उस का विचार था कि केवल हिंसा द्वारा ही देश की संस्कृति को बचाया जा सकता है.
लक्ष्मी को इस फैसले से बहुत दुख हुआ. उस ने खुद अपने और होने वाले बच्चे की खातिर श्रीनिवास को समझाने की कोशिश की. वह प्रेम और फर्ज की जद्दोजेहद में फंसा रहा. न तो वह लक्ष्मी के प्यार को कुचल सकता था और न ही फर्ज से मुंह मोड़ना चाहता था.
आखिर में जब श्रीनिवास को आतंकवादी संगठन द्वारा एक विपक्षी नेता को खत्म करने का काम सौंपा गया, तो उस ने फर्ज के सामने लक्ष्मी के प्यार की परवाह नहीं की. वह लक्ष्मी और अपने मासूम बच्चे को तकलीफ नहीं देना चाहता था, फिर भी वह अपने आदर्शों के सामने निजी बातों को नहीं आने देना चाहता था. अगर वह इस काम से हट गया, तो कभी अपनेआप को माफ नहीं कर सकेगा.
श्रीनिवास ने ये सब बातें लक्ष्मी को अपने आखिरी खत में समझा कर माफी मांग ली थी. ह्वाट्सएप इस्तेमाल करने की कोशिश नहीं की कि कहीं वह पकड़ा न जाए. लक्ष्मी ने उसे इस जुर्म से बचाने की पूरी कोशिश की, लेकिन जब वह वहां पहुंची, तब तक बहुत देर हो चुकी थी.
अगले दिन सुबह लक्ष्मी सैंट्रल पुलिस स्टेशन जाने वाली बस में बैठ गई. उस के पास ही एक आदमी अखबार पढ़ रहा था. उस अखबार में मोटे अक्षरों में कल शाम की हत्या की खबर छपी थी.
लक्ष्मी उस की तरफ देखे बिना न रह सकी. कुछ लोग श्रीनिवास को हत्यारा और जानवर कह रहे थे, तो कुछ उसे देशभक्त बता रहे थे. लक्ष्मी का दिल पीड़ा से कराह रहा था.
लक्ष्मी का गुस्सा भी बढ़ रहा था. इन लोगों के हिसाब से श्रीनिवास जानवर है. ये अजनबी लोग क्या जानें कि बहादुर होते हुए भी श्रीनिवास का ब्रेनवाश किया जा चुका है. ये क्या जानें कि श्रीनिवास ने कितनी बेवकूफी से सपनों की वेदी पर अपने प्रेम की बलि दी है.
नहीं, कोई भी श्रीनिवास को नहीं समझता. उसे बचाने की कोशिश की जा रही थी. उसे सही बताने की कि एक को मार कर उस आवाज को बदला नहीं जा सकता. उसे समझाने की किसी ने कोशिश नहीं की. सिर्फ वही उस के विचारों को समझ सकी थी. उस ने अपने प्यार से उसे गलत रास्ते पर चलने से रोकने की कोशिश भी की, लेकिन उसे कामयाबी नहीं मिली. जब उस ने कोशिश करने में जरा भी कसर नहीं रखी, तो वह कैसे अपनेआप को दोष दे.
पुलिस स्टेशन के सामने बस रुक गई, तो लक्ष्मी उतर गई. काफी परेशानी के बाद उसे श्रीनिवास से मिलने की इजाजत मिली.
श्रीनिवास एक आरामदेह कमरे में था. लक्ष्मी ने देखा कि वह हमेशा की तरह शांत है. वह मुसकराते हुए बोला, ‘‘मेरी लक्ष्मी, मुझे दुख है कि मैं ने तुम्हें तकलीफ पहुंचाई है. चिंता मत करो, कुछ ही दिनों में मैं छूट जाऊंगा.’’
‘‘क्या तुम्हें इस बात का दुख नहीं है कि तुम ने एक आदमी की जान ली है?’’ लक्ष्मी ने पूछा.
‘‘हां, एक इनसान के नाते मुझे दुख है, लेकिन वह आदमी संस्कृति की रक्षा में बाधक था.’’
‘‘तुम अपने नजरिए से ऐसा समझते हो. हो सकता है कि वह अपने नजरिए से समाज के एक हिस्से के लिए कुछ करने की कोशिश कर रहा हो.’’
‘‘बिलकुल हो सकता है, लेकिन वह हमारे सपनों के देश को बनाने में रोड़ा बन रहा था.’’
‘‘ओह श्रीनिवास, तुम सिर्फ अपने नजरिए से ऐसा समझते हो. मैं तुम्हारा नजरिया समझती हूं. तकलीफ मुझे इस पर होती है कि मैं तुम्हारे किसी काम न आ सकी,’’ लक्ष्मी की आंखों में आंसू भर आए.
‘‘मेरी अच्छी लक्ष्मी, तुम गलत कहती हो. तुम हमेशा से मेरी प्रेरणा रही हो. दुखदर्द में तुम ने मुझे बहुत सहारा दिया है. लेकिन लक्ष्मी, तुम्हारा प्रेम और त्याग भी मेरे आदर्शों की भूख न मिटा सके. मैं इतना जिद्दी न होता और मेरे विचार दूसरी ही दिशा में मुड़ जाते. तुम चिंता न करो, मैं जल्दी ही छोड़ दिया जाऊंगा.
‘‘कुछ भी हो लक्ष्मी, अपने बच्चे को अब उसी रास्ते पर ले जाना है. उसे अपनेआप को समझने में मदद देनी है. यह याद रखना कि मैं ने हमेशा तुम्हारे प्रेम और त्याग की कद्र की है. आज भी मेरे साथ तुम्हारी मीठी यादें हैं, मेरे साथ वे पल हैं, जिन में मुझे रोशनी मिली थी, इसलिए कभी हिम्मत मत खोना.’’
लक्ष्मी सब्र के साथ कानून के फैसले का इंतजार करती रही. श्रीनिवास के खिलाफ गवाह नहीं मिले.
फैसला होने का दिन नजदीक आ रहा था. लक्ष्मी के गर्भ के दिन भी पूरे हो रहे थे. जिस दिन सुबह श्रीनिवास का फांसी पर फैसला आने वाला था, ठीक उसी समय, उसी दिन, लक्ष्मी ने एक बेटे को जन्म दिया. वह उस के नन्हे से मुख की तरफ एकटक देखती रही. उस की आंखों में भी उसे वही आग नजर आई, जो श्रीनिवास की आंखों में जला करती है. उसे लगा कि यह भी श्रीनिवास बनेगा.
तभी खबर आई कि कोर्ट ने गवाहों की कमी के आधार पर श्रीनिवास को बरी कर दिया था, पर जब वह बाहर आ रहा था, तब एक आदमी ने उसे माला पहनाई और तभी एक बम धमाका हुआ. वह आदमी और श्रीनिवास दोनों वहीं मारे गए.
लक्ष्मी ने अपने बेटे की तरफ देखा और सोचा कि उस का श्रीनिवास तो फिर से उस के पास आया है, पर उस ने ठान लिया कि वह जिंदगी को नए सिरे से नई दिशा की ओर मोड़ देगी और इस श्रीनिवास को संस्कृति के बहके नारों की ओर नहीं जाने देगी.
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Romantic Story in Hindi: पवन जमीन पर अपने दोनों हाथों को सिर पर रखे हुए ऊकड़ू बैठा था. वह अचरज भरी निगाहों से देखता कि कैसे जयपुर की तेज रफ्तार में सभी अपनी राह पर सरपट भागे जा रहे थे. अचानक एक गरीब लड़का, जो भीख मांग रहा था, एक गाड़ी के धक्के से गिर गया. मगर उस की तरफ मुड़ कर देखने की जहमत किसी ने नहीं उठाई. थोड़ी देर तक तो उस लड़के ने इधरउधर देखा कि कोई उस की मदद करने आएगा और सहारा दे कर उठाएगा, मगर जब कोई मदद न मिली तो वह खुद ही उठ खड़ा हुआ और आगे बढ़ गया. उस लड़के को देख पवन ने कुछ देर सोचा और फिर उठ कर सामने रखी बालटी के पानी से मुंह धोया और जेब से कंघी निकाल कर बालों को संवारा.
तभी चाय की दुकान पर बैठे एक बुजुर्ग आदमी बोले, ‘‘पवन, तुम यहां 2 महीने से चक्कर काट रहे हो. देखो जरा, तुम ने अपना क्या हाल बना रखा है. तुम्हारा शरीर भी कपड़े की तरह मैला हो गया है. यह जयपुर है बेटा, यहां तो सिर्फ पैसा बोलता है. तुम जैसे गांव से आए हुए अनपढ़ और गरीब आदमी की बात कौन सुनेगा. मेरी बात मानो और तुम अपने गांव लौट जाओ.’’
‘‘काका, मुझे किसी की जरूरत नहीं है. मैं अपनी पत्नी को खुद ही ढूंढ़ लूंगा,’’ पवन ने कहा.
‘‘यह हुई न हीरो वाली बात… यह लो गरमागरम चाय,’’ रमेश चाय वाला बोला.
चाय की दुकान और रमेश ही पवन का ठिकाना थे. उस का सारा दिन थाने के चक्कर काटने में बीतता और रात होते ही वह इसी दुकान की बैंच को बिस्तर बना कर सो जाता. वह तो रमेश चाय वाला भला आदमी था जो उसे इस तरह पड़ा रहने देता था और कभी उस पर दया आ जाती तो चायबिसकुट भी दे देता.
अकेले में पवन को उदासी घेर लेती थी. हर दिन जब वह सुबह उठता तो सोचता कि आज तो गीता उस के साथ होगी, मगर उसे नाकामी ही हाथ लगती.
उस दिन की घटना ने तो पवन को एकदम तोड़ दिया था. लंबे समय तक हर जगह की खाक छानने के बाद उसे एक घर में गीता सफाई करते हुए मिली तो उस की खुशी का ठिकाना ही न रहा. वह भाग कर गीता से लिपट गया.
गीता की आंखों में भी पानी आ गया था. तभी गार्ड आ गया और उन दोनों को अलग कर के पवन को धक्के मार कर बाहर कर दिया.
बेचारा पवन बहुत चिल्लाया, ‘यह मेरी गीता है… गीता… गीता… तुम घबराना नहीं, मैं तुम्हें यहां से ले जाऊंगा,’ मगर आधे शब्द उस की जबान से बाहर ही न आ पाए कि कोई भारी चीज उस के सिर पर लगी और वह बेहोश हो गया.
आंखें खुलीं तो देखा कि पवन की जिंदगी की तरह बाहर भी स्याह अंधेरा फैल गया. किसी तरह अपने लड़खड़ाते कदमों से पुलिस स्टेशन जा कर वह मदद की गुहार लगाने लगा और थकहार कर वहीं सड़क किनारे सो गया.
सुबह होते ही पवन फिर पुलिस स्टेशन जा पहुंचा, तभी उन में से एक पुलिस वाले को उस की हालत पर तरस आ गया. वह बोला, ‘‘ठीक है, मैं तुम्हारे कहने पर चलता हूं, पर यह बात झूठ नहीं होनी चाहिए.’’
पुलिस को ले कर पवन उसी घर में पहुंचा और गीता के बारे में पूछा. वहां के मालिक ने कहा, ‘हमारे यहां गीता नाम की कोई लड़की काम नहीं करती.’
‘आप उसे बुलाएं. हम खुद ही उस से बात करेंगे,’ हवलदार ने डंडा लहराते हुए रोब से कहा.
अंदर से डरीसहमी एक लड़की आई. उसे देखते ही पवन चिल्लाया, ‘साहब, यही मेरी गीता है. गीता, तुम डरना नहीं, इंस्पैक्टर साहब को सबकुछ सचसच बता दो.’
‘क्या नाम है तेरा?’
‘साहब, मेरा नाम सपना है.’
‘क्या यह तुम्हारा पति है?’
‘नहीं साहब, मैं तो इसे जानती तक नहीं हूं.’
पवन भौचक्का सा कभी गीता को तो कभी पुलिस वाले को देखता रहा.
तभी पुलिस वाला बोला, ‘सौरी सर, आप को तकलीफ हुई.’
सभी लोग बाहर आ गए.
पवन कहता रहा कि वह उस की पत्नी है, पर किसी ने उस की न सुनी. सब उस से शादी का सुबूत मांगते रहे, पर वह गरीब सुबूत कहां से लाता.
‘‘पवन… ओ पवन, कल मेरी दुकान में एक मैडम आई थीं,’’ रमेश चाय वाले की यह बात सुन कर पवन अपने दिमाग में चल रही उथलपुथल से बाहर आ गया. वह अपना सिर खुजलाते हुए बोला, ‘‘हां, बोलो.’’
तभी रमेश चाय वाले ने उसे चाय का गरमागरम प्याला पकड़ाते हुए कहा, ‘‘कल मेरी दुकान में एक मैडम आई थीं और वे गीता जैसी लड़कियों की मदद के लिए एनजीओ चलाती हैं. हो सकता है कि वे हमारी कुछ मदद कर सकें.’’
थोड़ी देर बाद ही वे दोनों मैडम के सामने बैठे थे. मैडम ने पूछा, ‘‘उस ने तुम्हें पहचानने से क्यों मना कर दिया? अपना नाम गलत क्यों बताया?’’
‘‘मैडम, मैं ने गीता की आंखों से लुढ़कता हुआ प्यार देखा था. उन लोगों ने जरूर मेरी गीता को डराया होगा.’’
‘‘अच्छा ठीक है, तुम शुरू से अपना पूरा मामला बताओ.’’
यह सुन कर पवन उन यादों में खो गया था, जब गीता से उस की शादी हुई थी. दोनों अपनी जिंदगी में कितना खुश थे. सुबह वह ट्रैक्टर चलाने ठाकुर के खेतों में चला जाता और शाम होने का इंतजार करता कि जल्दी से गीता की बांहों में खो जाए.
इधर गीता घर पर मांबाबूजी को पहले ही खाना खिला देती और पवन के आने पर वे दोनों साथ बैठ कर खाना खाते और फिर अपने प्यार के पलों में खो जाते.
मगर कुछ दिनों से पवन परेशान रहने लगा था. गीता के बहुत पूछने पर वह बोला, ‘पहले मैं इतना कमा लेता था कि 3 लोगों का पेट भर जाता था, पर अब 4 हो गए और कल को 5 भी होंगे. बच्चों की परवरिश भी तो करनी होगी. सोचता हूं कि शहर जा कर कोई कामधंधा करूं. कुछ ज्यादा आमदनी हो जाएगी और वहां कोई कामकाज भी सीख लूंगा. उस के बाद गांव आ कर एक छोटी सी दुकान खोल लूंगा.’
‘आप के बिना तो मेरा मन ही नहीं लगेगा.’
‘क्या बात है…’ पवन ने शरारत भरे अंदाज में गीता से पूछा तो गीता भी शरमा गई और दोनों अपने भविष्य के सपने संजोते हुए सो गए.
कुछ दिनों बाद वे दोनों शहर आ गए. वहां उन्हें काम ढूंढ़ने के लिए ज्यादा परेशान नहीं होना पड़ा. जल्दी ही एक जगह काम और सिर छिपाने की जगह मिल गई. रोजमर्रा की तरह जिंदगी आगे बढ़ने लगी.
पवन को लगा कि गीता से इतनी मेहनत नहीं हो पा रही है तो उस ने उस का काम पर जाना बंद करा दिया. वैसे भी फूल सी नाजुक और खूबसूरत लड़की ईंटपत्थर ढोने के लिए नहीं बनी थी.
अभी बमुश्किल एक हफ्ता ही बीता था कि जहां पवन काम करता था वहां उस दिन बहुत कम लोग आए थे. वहां के मालिक ने पूछा, ‘क्या हुआ पवन, आजकल तेरी घरवाली काम पर नहीं आ रही है?’
पवन ने अपनी परेशानी बताई तो मालिक बोले, ‘कुछ दिनों से मेरे घर पर कामवाली बाई नहीं आ रही है, अगर तुम चाहो तो तुम्हारी घरवाली हमारे यहां काम कर सकती है और तुम इस काम के अलावा हमारी कोठी में माली का काम भी कर लो.’
पवन को जैसे मनचाहा वरदान मिल गया. सोचा कि इस से पैसा भी आएगा और गीता इस काम को कर भी पाएगी. उस ने गीता को बताया तो वह खुशीखुशी राजी हो गई.
इस तरह कुछ महीने आराम से बीत गए. कुछ ही समय में उन्होंने अपना पेट काट कर काफी पैसे इकट्ठा कर लिए थे और अकसर ही बैठ कर बातें करते कि अब कुछ ही समय में अपने गांव लौट जाएंगे.
मगर वे दोनों अपने ऊपर आने वाले खतरे से अनजान थे. गीता जहां काम करती थी, उन के ड्राइवर की नजर गीता पर थी. उधर मालकिन को गीता का काम बहुत पसंद था. वे अकसर पूरा घर गीता के भरोसे छोड़ कर चली जाती थीं.
रोज की तरह एक दिन पवन जब गीता को लेने पहुंचा और बाहर खड़ा हो कर इंतजार करने लगा. तभी ड्राइवर ने उसे साजिशन अंदर जाने के लिए कहा.
डरतेडरते पवन ने ड्राइंगरूम में पैर रखा तभी गीता आ गई और वे दोनों घर चले गए.
सुबह जब दोनों जैसे ही काम पर निकलने लगे कि देखा, मालिक पुलिस को लिए उन के दरवाजे पर खड़े थे.
‘क्या हुआ?’
‘इंस्पैक्टर, गिरफ्तार कर लो इसे.’
पुलिस ने पवन को पकड़ लिया तो उस ने पूछा, ‘मगर, मेरा कुसूर क्या है?’
‘जब तुम कल इन के घर गए थे तब तुम ने इन के घर से पैसे चुराए थे.’
वे दोनों बहुत समझाते रहे कि ऐसा नहीं है, मगर उन गरीबों की बात किसी ने नहीं सुनी और पवन को 2 महीने की सजा हो गई.
उधर गीता को मालिक ने घर से निकाल दिया. उस का तो बस एक ही ठिकाना रह गया था, वह बरसाती वाला घर और पवन की यादें.
उधर पवन के खिलाफ कोई पुख्ता सुबूत न होने के चलते कोर्ट ने उसे 2 महीने बाद निजी मुचलके पर छोड़ दिया.
जब पवन जेल से बाहर आया तो सीधे अपने घर गया, मगर वहां गीता का कोई अतापता नहीं था.
आसपास पूछने पर भी कोई बताने को तैयार नहीं हुआ. मगर उसी जगह काम करने वाली एक बुजुर्ग औरत को दया आ गई, ‘बेटा, मैं तुम्हें सबकुछ बताती हूं. तुम जब जेल में थे, उसी दौरान गीता के पास न कोई सहारा, न ही कोई काम रह गया था. तभी यहां के एक ठेकेदार ने उसे अपने घर के कामकाज के लिए रख लिया, क्योंकि वह अकेला रहता था.
‘तन और मन से टूटी गीता की मदद करने के बहाने वह करीब आने लगा. पहले तो वह मन से पास आया, फिर धीरेधीरे दोनों तन से भी करीब आ गए. गीता को अकसर उस के साथ बनसंवर कर घूमते देखा गया.
‘अब तुम्हीं बताओ, कोई अपनी काम वाली के साथ ऐसे घूमता है क्या? मैं ने तो यहां तक सुना है कि काम करतेकरते उस के साथ सोने भी लगी थी. अब इतनी बला की खूबसूरत लड़की के साथ यही तो होगा.
‘जब लोगों ने बातें करना शुरू कर दिया तो एक दिन रात के अंधेरे में सारा सामान ले कर चली गई. पर कुछ समय पहले ही मुझे बाजार में मिली थी. कह रही थी कि यहीं कालोनी के आसपास घरों में काम करती है.’
यह सब सुन कर पवन को बहुत दुख हुआ, पर उन की कही किसी बात पर उसे यकीन नहीं हुआ.
इतना जानने के बाद एनजीओ वाली मैडम ने पवन से आगे की कहानी पूछी.
पवन ने कहा, ‘‘मैं उसे ढूंढ़ता हुआ वहां पहुंच ही गया. मैं ने गीता को एक घर के अंदर जाते हुए देखा. उस ने पहचानने से मना कर दिया,’’ और पवन की आंखों से झरझर आंसू बहने लगे.
‘‘यह लो पवन, पानी पी लो,’’ मैडम ने कहा, ‘‘तुम ने उस से दोबारा मिलने की कोशिश क्यों नहीं की?’’
‘‘आप को क्या लगता है कि मैं ने उस से मिलने की कोशिश नहीं की होगी. पुलिस का कहना है कि जब तक तू शादी का सुबूत नहीं लाता तब तक उस घर क्या गली में भी दिखाई दिया तो तुझे फिर से जेल में डाल देंगे.
‘‘मैं गरीब कहां से शादी का सुबूत लाऊं? मेरी शादी में तो एक फोटो तक नहीं खिंचा था.’’
‘‘ठीक है पवन, हम तुम्हारी जरूर मदद करेंगे,’’ मैडम ने कहा.
कुछ दिन बाद वे मैडम पवन और पुलिस को साथ ले कर गीता से मिलने गई और वहां जा कर पूछा कि आप के यहां गीता काम करती?है क्या?
उन लोगों में से एक ने एक बार में ही सच बयां कर दिया, ‘‘गीता ही हमारे यहां काम करती थी, मगर उस ने अपना नाम सपना क्यों बताया, यह हम नहीं जानते. जिस दिन पवन पुलिस को ले कर आया था. उसी दिन से वह बिना बताए कहीं चली गई और कभी वापस भी नहीं आई.’’
‘‘मैडम, ये सब झूठ बोल रहे हैं. आप इन के घर की तलाशी लीजिए.’’
मगर गीता सचमुच जा चुकी थी. तभी पुलिस ने गार्ड से पूछा, ‘‘क्या तुम ने गीता को जाते हुए देखा था?’’
‘‘हां साहब… उसी दिन रात 10 बजे के आसपास उसे ड्राइवर से बातें करते हुए देखा था.’’
पुलिस ने उत्सुकतावश पूछा, ‘‘कौन सा ड्राइवर?’’
गार्ड बोला, ‘‘साहब, जहां वह पहले काम करती थी वहीं का कोई ड्राइवर अकसर उस से मिलने आताजाता था.’’
पुलिस ने ड्राइवर का पताठिकाना निकाला. पहले तो उस ने मना कर दिया कि वह गीता को नहीं जानता, पर जब सख्ती की गई तो ड्राइवर ने पुलिस को बताया, ‘‘गीता इस घर के पास ही एक और घर में काम करती थी. उस का वहां के आदमी से अफेयर था. वह आदमी गीता की मजबूरी का फायदा उठाता रहा. उस के उस से नाजायज संबंध थे. उस ने तो गीता को अपने ही मकान में एक छोटा कमरा भी दे रखा था.
‘‘रोजाना गहरी होती हर रात को शराब के नशे में धुत्त वह गीता पर जबरदस्ती करता था. गीता चाहती तो गांव वापस जा सकती थी, पर वहां गांव में कुनबे के लिए रोटी बनाने से बेहतर काम उसे यह सब करना ज्यादा अच्छा लगने लगा था, क्योंकि उसे तो पाउडर और लिपस्टिक से लिपेपुते शहरी चेहरे की आदत हो गई थी.
‘‘मगर जब प्रेमी का मन भर गया और उस में कोई रस नहीं दिखाई देने लगा तो एक दिन चुपचाप अपने घर में ताला लगा कर चला गया.
‘‘जब वह 2-4 दिन बाद भी वापस नहीं आया तो गीता ने उस बन रही बिल्डिंग में जा कर उसे ढूंढ़ा लेकिन वहां पर भी उसे निराशा ही हाथ लगी. उस के रहने का ठिकाना भी न रहा.
‘‘उस के जाने के बाद अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए वह देह धंधे में उतर गई.’’
इतना सुनते ही पवन के होश उड़ गए और वह अपने उस दिन के फैसले पर पछताने लगा कि वे दोनों शहर क्यों आए थे. लेकिन पवन अच्छी तरह जानता था कि ऐसी औरतों के ठिकाने कहां होते हैं.
कुछ दिनों में पुलिस ने फौरीतौर पर छानबीन कर फाइल भी बंद कर दी और मैडम ने भी हार मान ली.
वे पवन को समझाने लगीं, ‘‘उस दुनिया में जाने के बाद सारे प्यार और जज्बात मर जाते हैं. वहां से कोई वापस नहीं आता. जब हम और पुलिस मिल कर कुछ नहीं कर पाए तो तुम अकेले क्या कर पाओगे? अच्छा होगा कि तुम भी गांव वापस चले जाओ और नई जिंदगी शुरू करो.’’
पर, पवन पर तो जैसे भूत सवार था. वह अपनी गीता को किसी भी कीमत पर पाना चाहता था. वह सारा दिन काम करता और रातभर रैडलाइट एरिया में भटकता रहता.
इसी तरह कई महीने बीत गए, मगर उस ने हार नहीं मानी. एक दिन रात को ढूंढ़ते हुए उस की निगाह ऊपर छज्जे पर खड़ी लड़की पर पड़ी. चमकीली साड़ी, आंखों पर भरपूर काजल, होंठो पर चटक लाल रंग की लिपस्टिक और उस पर से अधखुला बदन. अपने मन को मजबूत कर उस ने उस से आंखें मिलाने की हिम्मत की तो देखा कि तो गीता थी.
पवन दूसरे दिन मैडम को ले कर रैडलाइट एरिया के उसी मकान पर गया और लकड़ी की बनी सीढ़ियों के सहारे झटपट ऊपर पहुंचा और बोला, ‘‘गीता, तुम यहां…’’ और यह कहते हुए उस के करीब जाने लगा, तभी उस ने उसे झटक कर दूर किया और कहा, ‘‘मैं रेशमा हूं.’’
पवन बोला, ‘‘मैं अब तुम्हारी कोई बात नहीं मानूंगा. तुम मेरी गीता हो… केवल मेरी… गीता घर लौट चलो… मैं तुझ से बहुत प्यार करता हूं, मैं तुम्हें वह हर खुशी दूंगा जो तुम चाहती हो. अब और झूठ मत बोलो.
‘‘मैं जानता हूं कि तुम गीता हो, तुम अपने पवन के पास वापस लौट आओ. तुझे उस प्यार की कसम जो शायद थोड़ा भी कभी तुम ने किया हो. यहां पर तुम्हारा कोई नहीं है. सब जिस्म के भूखे हैं. चंद सालों में यह सारी चमक खत्म हो जाएगी.’’
गीता भी चिल्लाते हुए बोली, ‘‘पवन, मैं चाह कर भी तुम्हारे साथ नहीं चल सकती. तुम्हारी गीता उसी दिन मर गई थी जिस दिन उस ने यहां कदम रखा था. तुम समझने की कोशिश क्यों नहीं करते हो कि मैं गंदी हो चुकी हूं.’’
पवन उस के और करीब जा कर उस का चेहरा अपने हाथों में ले कर बोला, ‘‘तुम औरत नहीं, मेरी पत्नी हो, तुम कभी गंदी नहीं हो सकती. जहां वह रहती है वो जगह पवित्र हो जाती है, तुम यहां से निकलने की कोशिश तो करो. मैं तुम्हारे साथ हूं. तुम्हारा पवन सबकुछ भुला कर नई जिंदगी की शुरुआत करना चाहता है.’’
गीता भी शायद कहीं न कहीं इस जिंदगी से तंग आ चुकी थी. पवन की बातों से वह जल्दी ही टूट गई. वे दोनों एकदूसरे से लिपट गए और फफक कर रो पड़े. पवन और गीता अपनी नई जिंदगी की शुरुआत करने वहां से वापस चल दिए.
मैडम उन को जाते देख बोली, ‘‘जहां न कानून कुछ कर पाया और न ही समाज, वहां इस के प्यार की ताकत ने वह कर दिखाया जो नामुमकिन था. सच में… ऐसा प्यार कहां…’’
बहुत देर से अपनी बीवी प्रेमा को सजतासंवरता देख बलवीर से रहा नहीं गया. उस ने पूछा, ‘‘क्योंजी, आज क्या खास बात है?’’
‘‘देखोजी…’’ कहते हुए प्रेमा उस की ओर पलटी. उस का जूड़े में फूल खोंसता हुआ हाथ वहीं रुक गया, ‘‘आप को कितनी बार कहा है कि बाहर जाते समय टोकाटाकी न किया करो.’’
‘‘फिर भी…’’
‘‘आज मुझे जनप्रतिनिधि की ट्रेनिंग लेने जाना है,’’ प्रेमा ने जूड़े में फूल खोंस लिया. उस के बाद उस ने माथे पर बिंदिया भी लगा ली.
‘‘अरे हां…’’ बलवीर को भी याद आया, ‘‘कल ही तो चौधरी दुर्जन सिंह ने कहलवाया था कि इलाके के सभी जनप्रतिनिधियों को ब्लौक दफ्तर में
ट्रेनिंग दी जानी है,’’ उस ने होंठों पर जीभ फिरा कर कहा, ‘‘प्रेमा, जरा संभल कर. आजकल हर जगह का माहौल बहुत ही खराब है. कहीं…’’
‘‘जानती हूं…’’ प्रेमा ने मेज से पर्स उठा लिया, ‘‘अच्छी तरह से जानती हूं.’’
‘‘देख लो…’’ बलवीर ने उसे चेतावनी दी, ‘‘कहीं दुर्जन सिंह अपनी नीचता पर न उतर आए.’’
‘‘अजी, कुछ न होगा,’’ कह कर प्रेमा घर से बाहर निकल गई.
प्रेमा जब 7वीं क्लास में पढ़ा करती थी, तभी से वह देश की राजनीति में दिलचस्पी लेने लगी थी.
शादी के बाद वह गांव की औरतों से राजनीति पर ही बातें किया करती. कुरेदकुरेद कर वह लोगों के खयाल जाना करती थी.
इस साल के पंचायती चुनावों में सरकार ने औरतों के लिए कुछ रिजर्व सीटों का ऐलान किया था. प्रेमा चाह कर भी चुनावी दंगल में नहीं उतर पा रही थी.
गांव की कुछ औरतों ने अपने नामांकनपत्र दाखिल करा दिए थे. तभी एक दिन उस के यहां दुर्जन सिंह आया और उसे चुनाव लड़ने के लिए उकसाने लगा.
इस पर बलवीर ने खीजते हुए कहा था, ‘नहीं चौधरी साहब, चुनाव लड़ना अपने बूते की बात नहीं है.’
‘क्यों भाई?’ दुर्जन सिंह ने पूछा था, ‘ऐसी क्या बात हो गई?’
‘हमारे पास पैसा नहीं है न,’ बलवीर ने कहा था.
‘तू चिंता न कर…’ दुर्जन सिंह ने छाती ठोंक कर कहा था, ‘वैसे, इस चुनाव में ज्यादा पैसों की जरूरत नहीं है. फिर भी जो भी खर्चा आएगा, उसे पार्टी दे देगी.’
‘तो क्या यह पार्टी की तरफ से लड़ेगी?’ बलवीर ने पूछा था.
‘हां…’ दुर्जन सिंह ने मुसकरा कर कहा था, ‘मैं ही तो उसे पार्टी का टिकट दिलवा रहा हूं.’
‘फिर ठीक है,’ बलवीर बोला था.
इस प्रकार प्रेमा उस चुनावी दंगल में उतर गई थी. सच में चौधरी दुर्जन सिंह ने चुनाव प्रचार का सारा खर्चा पार्टी फंड से दिला दिया था.
प्रेमा भी दिनरात महिला मतदाताओं से मुलाकात करने लगी थी. उस का चुनावी नारा था, ‘शराब हटाओ, देहात बचाओ.’
चुनाव होने से पहले ही मतदाताओं की हवा प्रेमा की ओर बहने लगी थी. चुनाव में वह भारी बहुमत से जीत गई थी. एक उम्मीदवार की तो जमानत तक जब्त हो गई थी. तब से चौधरी साहब का प्रेमा के यहां आनाजाना कुछ ज्यादा ही होने लगा था.
गांव से निकल कर प्रेमा सड़क के किनारे बस का इंतजार करने लगी. वहां से ब्लौक दफ्तर तकरीबन 20 किलोमीटर दूर था. बस आई, तो वह उस में चढ़ गई. बस में कुछ और सभापति भी बैठी हुई थीं. वह उन्हीं के साथ बैठ गई.
ब्लौक दफ्तर में काफी चहलपहल थी. प्रेमा वहां पहुंची, तो माइक से ‘हैलोहैलो’ कहता हुआ कोई माइक को चैक कर रहा था.
उस शिविर में राज्य के एक बड़े नेता भी आए हुए थे. मंच पर उन्हें माला पहनाई गई. उस के बाद उन्होंने लोगों की ओर मुखातिब हो कर कहा, ‘‘भाइयो और बहनो, आप लोग जनता के प्रतिनिधि हैं. यहां आप सब का स्वागत है. तजरबेकार सभासद आप को बताएंगे कि आप को किनकिन नियमों का पालन करना है.
‘‘इस शिविर में आप लोगों की मदद यही तजरबेकार जनप्रतिनिधि किया करेंगे. आप को उन्हीं के बताए रास्ते पर चलना है.’’
प्रेमा की नजर मंच पर बैठे चौधरी दुर्जन सिंह पर पड़ी. वह खास सभासदों के बीच बैठा हुआ था.
समारोह खत्म होने के बाद दुर्जन सिंह प्रेमा के पास चला आया. उस ने उस से अपनेपन से कहा, ‘‘प्रेमा, जरा सुन तो.’’
‘‘जी,’’ प्रेमा ने कहा.
दुर्जन सिंह उसे एक कोने में ले गया. उस का हाथ प्रेमा के कंधे पर आतेआते रह गया. उस ने कहा, ‘‘कल तुम मु?ा से मेरे घर पर मिल लेना. मुझे तुम से कुछ जरूरी काम है.’’
‘‘जी,’’ कह कर प्रेमा दूसरी औरतों के पास चली गई.
ट्रेनिंग के पहले ही दिन इलाकाई जनप्रतिनिधियों को उन के फर्ज की जानकारी दी गई. राज्य के एक बूढ़े सभासद ने बताया कि किस प्रकार सभी सभासदों को सदन की गरिमा बनाए रखनी चाहिए. उस के बाद सभी चायनाश्ता करने लगे.
दोपहर बाद प्रेमा ब्लौक दफ्तर से घर चली आई.
उधर दुर्जन सिंह को याद आया कि जब पहली बार उस ने प्रेमा को देखा था, उसी दिन से उस का मन डगमगाने लगा था. उसे पहली बार पता चला था कि देहात में भी हूरें हुआ करती हैं.
आज दुर्जन सिंह बिस्तर से उठते ही अपने खयालों को हवा देने लगा. उस ने दाढ़ी बनाई और शीशे के सामने जा खड़ा हुआ. 60 साल की उम्र में भी वह नौजवान लग रहा था.
आज दुर्जन सिंह की बीवी पति के मन की थाह नहीं ले पा रही थी. ऐसे तो वह कभी भी नहीं सजते थे.
आखिरकार उस ने पूछ ही लिया, ‘‘क्योंजी, आज क्या बात हो गई?’’
‘‘क्या मतलब है तुम्हारा?’’ दुर्जन सिंह ने मासूम बनते हुए पूछा.
‘‘आज तो आप कुछ ज्यादा ही बनठन रहे हैं.’’
‘‘अरे हां,’’ दुर्जन सिंह ने मूंछों पर ताव दे कर कहा, ‘‘आज मैं ने 2-3 सभासदों को अपने घर पर बुलाया है. उन से पार्टी की बातें करनी हैं.’’
‘‘फिर उन की खातिरदारी कौन करेगा?’’ चौधराइन ने पूछा.
‘‘हम ही कर लेंगे…’’ दुर्जन सिंह ने लापरवाही से कहा, ‘‘उन्हें चाय ही तो पिलानी है न? मैं बना दूंगा.’’
‘‘ठीक है,’’ चौधराइन भी बाहर जाने की तैयारी करने लगी.
चौधराइन के बड़े भाई के यहां गांव में पोता हुआ था, उसे उसी खुशी में बुलवाया गया था.
चौधराइन पति के पास आ कर बोली, ‘‘मैं जा रही हूं.’’
‘‘ठीक है…’’ दुर्जन सिंह उसे सड़क तक छोड़ने चल दिया, ‘‘जब मन करे, तब चली आना.’’
अब दुर्जन सिंह घर में अकेला ही रह गया. प्रेमा को उस ने सोचसमझ कर ही बुलाया था. वह बारबार घड़ी देखता और मन के लड्डू फोड़ता.
दुर्जन सिंह ने अपने कपड़ों पर इत्र छिड़का और खिड़की पर जा खड़ा हुआ. सामने से उन्हें अपना कारिंदा मोर सिंह आता दिखाई दिया.
दुर्जन सिंह ने उस से पूछा, ‘‘हां भई, क्या बात है?’’
‘‘मालिक…’’ कारिंदे ने कहा, ‘‘कल रात जंगली जानवर हमारी फसल को बरबाद कर गए.’’
‘‘वह कैसे?’’
‘‘वे मक्के के खेतों को नुकसान पहुंचा गए हैं…’’ मोर सिंह ने बताया, ‘‘मैं ने बहुत हांक लगाई, तब जा कर कुछ फसल बच पाई.’’
‘‘तू इस समय चला जा…’’ दुर्जन सिंह ने बात को टालते हुए कहा, ‘‘इस समय मेरे पास कोई खास मेहमान आने वाला है. मैं कल आऊंगा.’’
‘‘ठीक है मालिक,’’ मोर सिंह हाथ जोड़ कर चल दिया.
अब दुर्जन सिंह था और उस की कुलबुलाती ख्वाहिशें थीं. वह वहीं आंगन में एक कुरसी पर बैठ गया और आंखें मूंद कर प्रेमा की छवि को अपनी आंखों में भरने लगा.
चूडि़यों की खनक से दुर्जन सिंह ने अपनी आंखें खोलीं. सामने हूर की तरह खूबसूरत प्रेमा खड़ी थी.
वह मुसकराते हुए बोला, ‘‘आ प्रेमा, तेरी लंबी उम्र है. मैं अभीअभी तुझे ही याद कर रहा था.
‘‘और सुना…’’ दुर्जन सिंह उस की ओर घूम गया, ‘‘शिविर में तुम ने कुछ सीखा या नहीं?’’
‘‘बहुतकुछ सीखा है मैं ने चौधरी साहब,’’ प्रेमा ने हंसते हुए कहा.
‘‘मैं चाहता हूं कि तुझे मैं एक दबंग नेता बना दूं,’’ दुर्जन सिंह उस के आगे चारा डालने लगा.
‘‘जी,’’ प्रेमा बोली.
दुर्जन सिंह ने कहा, ‘‘यह सब सिखाने वाले पर ही निर्भर करता है.’’
‘‘जी.’’
‘‘देख प्रेमा,’’ दुर्जन सिंह ने चालबाजी से कहा, ‘‘सोना भी आग में तप कर ही चमका करता है.’’
‘‘जी.’’
‘‘आ, अंदर चल कर बातें करते हैं,’’ इतना कह कर दुर्जन सिंह कुरसी से उठ गया.
‘‘चलिए,’’ कह कर प्रेमा भी उस के पीछेपीछे चल दी.
बैठक में पहुंच कर दुर्जन सिंह ने प्रेमा को सोफे पर बैठा दिया और उसे एक बहुत बड़ा अलबम थमा दिया, ‘‘तब तक तू इसे देखती रह. मैं ने जिंदगी में जो भी काम किया है, इस में उन सभी का लेखाजोखा है. तु?ो बड़ा मजा आएगा.’’
‘‘आप भी बैठिए न,’’ प्रेमा ने कहा.
‘‘मैं तेरे लिए चायनाश्ते का इंतजाम करता हूं,’’ दुर्जन सिंह ने कहा.
‘‘चौधराइनजी नहीं हैं क्या?’’ प्रेमा ने पूछा.
‘‘अचानक ही आज उसे मायके जाना पड़ गया,’’ दुर्जन सिंह ने बताया.
दुर्जन सिंह रसोईघर की ओर चल दिया. प्रेमा अलबम के फोटो देखने लगी.
तभी दुर्जन सिंह एक बड़ी प्लेट में ढेर सारी भुजिया ले आया और उसे टेबल पर रख दिया.
साथ ही, दुर्जन सिंह ने टेबल पर 2 गिलास और 1 बोतल दारू रख दी. उसे देख कर प्रेमा बिदक पड़ी, ‘‘आप तो…’’
‘‘अरे भई, यह विदेशी चीज है…’’ दुर्जन सिंह मुसकरा दिया, ‘‘यह लाल परी मीठामीठा नशा दिया करती है.’’
‘‘तो आप शराब पीएंगे?’’ प्रेमा ने तल्खी से पूछा.
‘‘मैं कभीकभी ले लेता हूं,’’ दुर्जन सिंह गिलासों में शराब उड़ेलने लगा.
‘‘यह तो अच्छी बात नहीं है चौधरी साहब,’’ प्रेमा नाकभौं सिकोड़ते हुए बोली.
‘‘प्रेमा रानी…’’ इतना कह कर दुर्जन सिंह का भारीभरकम हाथ प्रेमा के कंधे पर आ लगा.
प्रेमा ने उस का हाथ झिड़क दिया और बोली, ‘‘आप तो बदतमीजी करने लगे हैं.’’
दुर्जन सिंह ने शराब का घूंट भर कर कहा, ‘‘इसे पी कर मैं तुम्हें ऐसी बातें बताऊंगा कि तुम भूल नहीं पाओगी. रातोंरात आसमान को छूने लगोगी.’’
प्रेमा चुप ही रही. दुर्जन सिंह ने उस से गुजारिश की, ‘‘लो, कुछ घूंट तुम भी ले लो. दिमाग की सारी खिड़कियां खुल जाएंगी.’’
‘‘मैं तो इसे छूती तक नहीं,’’ प्रेमा गुस्से से बोली.
‘‘लेकिन, हम तो इसे गले लगाए रहते हैं,’’ दुर्जन सिंह उसे बरगलाने लगा.
प्रेमा ने नफरत से कहा, ‘‘लानत है ऐसी जिंदगी पर.’’
‘‘देख…’’ दुर्जन सिंह के हाथ उस के कंधों पर फिर से जा लगे, ‘‘तू मेरा कहा मान. मैं तेरी राजनीतिक जिंदगी संवार दूंगा.’’
इतना सुनते ही प्रेमा दहाड़ उठी, ‘‘आप जैसे पिता की उम्र के आदमी से मुझे इस तरह की उम्मीद नहीं थी.’’
मगर तब भी दुर्जन सिंह के हाथों का दबाव बढ़ता ही गया. प्रेमा शेरनी से बिजली बन बैठी. उस ने एक ही झटके में चौधरी के हाथ एक ओर झटक दिए और दहाड़ी, ‘‘मुझे मालूम न था कि आप इतने गिरे हुए हैं.’’
दुर्जन सिंह खिसियाई आवाज में बोला, ‘‘राजनीति का दलदल आदमी को दुराचारी बना देता है. तू मेरा कहा मान ले. तेरी पांचों उंगलियां घी में रहा करेंगी. तुझे लोग याद करेंगे.’’
‘‘नहीं…’’ प्रेमा जोर से चीख उठी, ‘‘मैं अपने ही बूते पर एक दबंग नेता बनूंगी.’’
इस के बाद वह झट से बाहर निकल गई. दुर्जन सिंह को लगा, जैसे उस के हाथ से मछली फिसल गई?हो.
Family Story in Hindi : जैसे ही दोपहर के खाने की घंटी बजी, सारे बच्चे दौड़ते हुए खाने की तरफ भागे. दीपक सर, जो गणित के टीचर थे और हाल ही में इस स्कूल में आए थे, स्कूल के इन तौरतरीकों को देख कर हैरान थे. आज बच्चों का खाना देख कर तो और भी हैरान हो गए. दाल बिलकुल पानी जैसी, भात और सब्जी के नाम पर उबले हुए चने. कैसे किसी के गले से उतरेंगे? स्टाफ रूम में सारे टीचर अपनेअपने खाने का डब्बा खोल कर खाने बैठ गए थे. दीपक सर ने जैसे ही अपने खाने का डब्बा खोला, मिश्रा सर, जो हिंदी के टीचर थे, कहने लगे, ‘‘दीपक सर, क्या बात है… आज तो आप के खाने के डब्बे से बड़ी अच्छी खुशबू आ रही है?’’
‘‘जी,’’ मुसकराते हुए दीपक सर ने कहा और अपने खाने का डब्बा उन के आगे बढ़ा दिया.
थोडी़ देर बाद दीपक ने वहां बैठे दूसरे टीचरों से पूछा, ‘‘चलिए, मैं तो चलता हूं, अगली क्लास लेने. आप सब को नहीं चलना है?’’
‘‘अरे भैया, क्यों इतने उतावले हो रहे हो? बैठो जरा. बच्चे कहां भागे जा रहे हैं,’’ संस्कृत के पांडे सर ने कहा.
विज्ञान की टीचर वंदना मैडम बोल पड़ीं, ‘‘बच्चे अगर 1-2 सब्जैक्ट नहीं भी पढ़ेंगे, तो कौन सा आईएएस बनना है उन्हें, जो नहीं बन पाएंगे?’’
‘‘वंदना मैडम, बच्चों को पढ़ाना हमारी ड्यूटी है और अगर हम ईमानदारी से बच्चों पढ़ाएंगे न, तो बच्चे एक दिन जरूर आईएएस बनेंगे. हम यहां इसलिए तो आए हैं. तनख्वाह भी तो हमें बच्चों को पढ़ाने की ही मिलती है,’’ दीपक सर ने कहा.
‘‘मैं ने तो कुछ ज्यादा ही खा लिया. अब क्या करें? पत्नीजी खाना ही इतना दे देती हैं. और खाते ही मुझे जोरों की नींद आने लगती है,’’ कह कर सिन्हा सर वहीं पड़ी कुरसी पर अपने पैर पसार कर सो गए.
दीपक ने जब मिश्रा सर की तरफ देखा, तो वे भी अपने मुंह में पान दबाते हुए बोले, ‘‘देखिए दीपक सर, आप भी नएनए आए हैं, तो आप को यहां के नियमकानून का कुछ पता नहीं है.’’
‘‘कैसे नियमकानून हैं सर?’’ दीपक ने हैरान होते हुए पूछा.
मिश्रा सर भी वहीं लगी दूसरी कुरसी पर आराम से अपने पैर पसारते हुए कहने लगे, ‘‘दीपक सर, मैं कोचिंग सैंटर भी चलाता हूं. अब पूरे दिन इसी स्कूल में बैठा रह गया, तो वहां के बच्चे को कौन पढ़ाएगा?
‘‘अब ऐसे मत देखिए दीपक सर. अब अगर कोचिंग सैंटर नहीं चलाएंगे, तो दालरोटी पर मक्खन कहां से मिलेगा.’’
‘‘मिश्रा सर, वह सब तो ठीक है, पर जब प्रिंसिपल मैडम को आप सब की हरकतों का पता चलेगा तो…?’’
दीपक सर की बात को बीच में ही काटते हुए श्रीवास्तव सर कहने लगे, ‘‘अरे छोडि़ए मैडम की बातें. उन को कोई फर्क नहीं पड़ता है कि हम क्या करें और क्या न करें. उन के हाथों में हर महीने हरेहरे नोट सरका दीजिए बस. और वे कौन सी दूध की धुली हैं, जो हमें कुछ कहेंगी.’’
तभी मिश्राजी हंसते हुए कहने लगे, ‘‘लगता है दीपक बाबू को प्रिंसिपल मैडम की कहानी नहीं पता?’’
दीपक सर ने हैरानी से सब का मुंह देखते हुए पूछा, ‘‘कौन सी कहानी सर?’’
‘‘लो भैया, अब इन्हें भी बतानी पड़ेगी मैडम की कहानी कि कैसे वे एक अदना सी टीचर से प्रिंसिपल बन बैठीं,’’ अपने मुंह से पान की पीक दीवार पर ही फेंकते हुए मिश्राजी ने कहा.
‘‘दीपक सर, ये बबीता मैडम जो हैं न, पहले अपने ही गांव के एक प्राइमरी स्कूल में टीचर थीं. आप समझ रहे हैं न?’’ एक बार फिर उन्होंने पान की पीक दीवार पर मारते हुए कहा.
दीपक सर ने उन्हें बड़ी अजीब नजरों से देखा.
‘‘बबीता मैडम जिस गांव से थीं, उसी गांव से एमएलए प्रवीण यादव चुनाव के लिए खड़े हुए थे. बबीताजी के पति चुनाव महकमे में ही एक छोटेमोटे मुलाजिम थे.
‘‘प्रवीण यादव की तरफ से बबीता मैडम और उन के पति ने खूब चुनाव प्रचार किया था. प्रवीण यादव ने बबीताजी से यह वादा किया था कि अगर वे जीत गए, तो उन्हें खुश कर देंगे और उन्होंने ऐसा किया भी.
‘‘बबीताजी कितनी पढ़ीलिखी हैं, यह तो आज तक हम में से कोई नहीं जानता है. उस के बावजूद उन्हें इस स्कूल में मिडिल तक की टीचर बना दिया गया. बबीता मैडम गांव के स्कूल से सीधा शहर में आ गईं.
‘‘प्रवीण यादव और बबीता मैडम अब किसी न किसी बहाने एकदूसरे से मिलने लगे. लोगों की नजरों में तो वे अच्छे दोस्त थे, पर सचाई कुछ और ही थी. धीरेधीरे सब को पता चल ही गया कि नेता प्रवीण यादव और बबीताजी के रिश्ते कितने गहरे हैं.
‘‘बबीता मैडम स्कूल में तो जब मन करता तब ही आती थीं, पर तनख्वाह पूरे महीने की उठाती थीं. वे अब ज्यादातर नेताजी की सेवा में ही लगी रहती थीं.
‘‘दीपक सर, आप समझ रहे हैं न. मैडम कहां बिजी रहने लगी थीं और नेताजी उन पर इतने मेहरबान क्यों थे?’’ एक खलनायक वाली हंसी हंसते हुए मिश्रा सर ने कहा, तो दीपक सर ने भी अपना सिर हां में हिला दिया. मिश्रा सर ने पूरा किस्सा बताया.
‘‘नेताजी की पत्नी को जब उन दोनों के नाजायज रिश्तों के बारे में पता चला, तो एक दिन वे सीधे अपने फार्महाउस पहुंच गईं, जहां पहले से बबीता मैडम मौजूद थीं.
‘‘पहले तो उन्होंने बबीताजी के गाल पर एक जोरदार तमाचा जड़ दिया, फिर कहने लगीं, ‘नीच औरत, तुझे शर्म नहीं आती किसी पराए मर्द के साथ गुलछर्रे उड़ाते हुए. अपने पति से मन भर गया, तो मेरे पति का बिस्तर गरम कर रही है. आगे से कभी भी मैं ने तुझे इन के इर्दगिर्द भी देखा ना, तो समझ लेना…’
‘‘नेताजी को भी उन्होंने खूब खरीखोटी सुनाई, ‘आप को यह जो एमएलए की पोस्ट मिली है न, वह मैं मिनटों में छिनवा लूंगी… समझे नेताजी?’
‘‘नेताजी के ससुर खुद ही मुख्यमंत्री रह चुके थे. उन्होंने ही अपने दामाद को टिकट दिलवाया था.
‘‘बबीताजी की हरकतों से परेशान हो कर उन के पति ने भी उन्हें अपनी जिंदगी से निकाल दिया.
‘‘बबीताजी के सिर पर अब शिक्षा मंत्रीजी का हाथ है. अरे, एक ने घर से निकाल दिया, तो दूसरे ने अपनी पत्नी के डर से उन्हें छोड़ दिया तो क्या हुआ. आप ने सुना है दीपक सर, एक नहीं तो और सही,’’ चुटकी लेते हुए मिश्रा सर ने कहा.
मिश्रा सर ने आगे कहा, ‘‘शिक्षा मंत्रीजी, जो अकसर स्कूल की शिक्षा व्यवस्था देखने आते रहते हैं, बबीताजी ने अब उन को फंसा रखा है. उन के साथ भी बबीता मैडम के बहुत गहरे संबंध बन गए हैं. देखिए, एक मामूली टीचर से आज वे प्रिंसिपल बन बैठी हैं.’’
दीपक को ये सब बातें सुन कर बहुत हैरानी हुई. कैसा अंधा कानून चल रहा है इस स्कूल में. एक प्रिंसिपल कितनी पढ़ीलिखी हैं, यह भी किसी को नहीं पता है. वे कैसे इतनी बड़ी कुरसी पर बैठ सकती हैं? और ये सारे निकम्मे टीचर अपनी कामचोरी, रिश्वतखोरी, आलसीपन का सुबूत खुद अपने मुंह से दे रहे हैं.
ऐसे ही कुछ टीचरों की वजह से आज सारे टीचरों को गलत समझा जा रहा है. क्लास में बच्चे तो आते हैं, पर पढ़ाने के लिए टीचर ही नहीं आते हैं. सब अपनाअपना कोचिंग सैंटर चलाते हैं और तनख्वाह इस स्कूल से लेते हैं. यह सरासर गलत है.
उस दिन अंगरेजी की टीचर ममता मैडम बच्चों को 8 की अंगरेजी में स्पैलिंग ईआईजीटी समझ रही थीं. दीपक ने ही उन्हें टोका था, ‘‘मैडम, आप गलत स्पैलिंग बता रही हैं बच्चों को. ईआईजीटी नहीं, ईआईजीएचटी होगा.’’
इस पर अंगरेजी की मैडम ममता बरस पड़ीं, ‘‘दीपक सर, आप अपनी क्लास के बच्चों को संभालिए.’’
अगले दिन दीपक जब स्कूल गया, तो स्कूल के चपरासी ने आ कर उस से कहा, ‘‘आप को प्रिंसिपल मैडम ने अपने औफिस में बुलाया है.’’
‘‘नमस्ते मैडम,’’ दीपक ने प्रिंसिपल मैडम से कहा. उस ने देखा कि पहले से ही वहां और भी कई टीचर बैठे थे.
‘‘दीपक सर, आइए बैठिए. मैं ने आप सब को यहां यह कहने के लिए बुलाया है कि कल हमारे स्कूल में स्कूल निरीक्षक आने वाले हैं. आप सब अपनीअपनी क्लास के बच्चों को ठीक से समझा दें कि क्या कहना है और क्या नहीं.
‘‘और हां, कल दोपहर का खाना बहुत ही स्वादिष्ठ बनना चाहिए और मिठाई तो जरूर होनी चाहिए.
‘‘मिश्रा सर, आप पूरे स्कूल की व्यवस्था ठीक से देख लीजिएगा. कुछ भी गड़बड़ नहीं होनी चाहिए,’’ बबीता मैडम ने सब को अच्छी तरह से समझ दिया.
अगले दिन बराबर बैठी वंदना मैडम ने कहा, ‘‘पांडेजी, जरा देखिए तो,
कैसे प्रिंसिपल मैडम निरीक्षक महोदय के बगल में अपनी कुरसी चिपका कर बैठी हैं.
‘‘मैडम की इसी अदा पर तो मर्द फिदा हो जाते हैं,’’ पांडे सर की बातों पर वहां बैठे सारे टीचर हंस पड़े.
‘‘सर, आप को बच्चों से कुछ पूछना है, तो पूछ सकते हैं,’’ प्रिंसिपल मैडम ने निरीक्षक महोदय से कहा.
‘‘बच्चो, आप सब को कोई दिक्कत तो नहीं है न इस स्कूल में? किसी को कुछ कहना हो या कुछ पूछना हो तो पूछो. डरने की कोई बात नहीं है,’’ निरीक्षक महोदय ने कहा.
सारे बच्चों ने एकसाथ जवाब दिया, ‘‘नहीं सर, यहां सबकुछ ठीक है. हमें कोई दिक्कत नहीं है.’’
बच्चों ने वही कहा, जो उन्हें पहले से रटाया गया था.
‘‘आप टीचरों को कुछ कहना है?’’ निरीक्षक महोदय ने पूछा.
‘‘नहीं महोदय, हमें कुछ नहीं कहना है,’’ सारे टीचरों ने जवाब दिया.
तभी अपना हाथ ऊपर करते हुए दीपक सर ने कहा, ‘‘महोदयजी, मुझे कुछ कहना है.’’
दीपक ने सोचा कि अगर आज हम चुप रहे तो फिर पता नहीं निरीक्षक सर कब आएं इस स्कूल में.
दीपक के इतना कहते ही प्रिंसिपल मैडम समेत सारे टीचर उन का मुंह ताकने लगे कि भाई इन्हें क्या कहना है.
‘‘हांहां, कहिए, आप क्या कहना चाहते हैं?’’ निरीक्षक महोदय ने पूछा.
‘‘महोदय, बच्चे तो वही कह रहे हैं, जो उन्हें कहने को कहा गया है. दरअसल, यहां की स्कूली व्यवस्था बिलकुल अच्छी नहीं है.’’
‘‘आप मुझे जरा खुल कर बताइए,’’ निरीक्षक महोदय ने दीपक से कहा.
‘‘महोदय, पहली बात तो यह है कि कोई भी टीचर अपनी क्लास ठीक से नहीं लेते हैं. जब मन हुआ बच्चों को पढ़ाते हैं, नहीं मन हुआ तो नहीं पढ़ाते हैं.
‘‘दूसरी बात यह कि यहां खाने के नाम पर बच्चों को भात के साथ पानी जैसी दाल और उबली हुई सब्जी परोसी जाती है. हर क्लास में पंखे सिर्फ दिखाने के लिए हैं, चलता कोई नहीं है, जबकि प्रिंसिपल रूम और स्टाफ रूम में एयरकंडीशंड का इंतजाम है.’’
और भी जितनी बातें दीपक ने इस स्कूल में देखीं और सुनीं, वे सब उस ने निरीक्षक को बता दीं, बिना अंजाम की परवाह किए.
निरीक्षक ने सारी बातें अपनी डायरी में लिख लीं, पर रजिस्टर में कुछ नहीं लिखा और पेज खाली छोड़ दिया. बाद में प्रिंसिपल और दूसरे टीचर ने दीपक को बहुत फटकार लगाई और कहने लगे, ‘‘दीपक सर, जो भी बात थी, आप हमें आ कर बताते, निरीक्षक को बताने की क्या जरूरत थी.’’
मिश्रा सर कहने लगे, ‘‘दीपक सर, यह आप ने ठीक नहीं किया. अब आप को क्या होगा देख लेना,’’ जैसे उन्हें सब पता था कि क्या होगा.
‘‘माफ कीजिएगा मिश्रा सर, मैं यहां कोई रिश्वत दे कर या किसी की पैरवी से नहीं आया हूं, जो मैं डर जाऊंगा. अंजाम की परवाह तो वे लोग करते हैं, जो खुद गलत हैं.’’
हफ्तेभर बाद दीपक का तबादला हो गया, तो मिश्रा और सारे टीचर मुसकरा कर बोले, ‘‘देख लिया न अंजाम.’’
दीपक को यह समझते जरा भी देर नहीं लगी कि ये सब मिले हुए हैं, निरीक्षक भी. यहां तो पूरा घोटाला है, अकेला वह कुछ नहीं कर सकता है. यह तो चलता रहेगा.
आज टीचर की नौकरी उस की काबिलीयत को देख कर नहीं लगती है. नौकरी लगती है तो किसी बड़े नेता की पैरवी से. यहां टीचर 15 दिन की नौकरी करते हैं और पूरे महीने की तनख्वाह उठाते हैं. अपना खुद का कोचिंग सैंटर चलाते हैं. पैसे ले कर बच्चों को ज्यादा नंबर देते हैं. आज कोई भी मांबाप अपने बच्चे के उज्ज्वल भविष्य की कामना कैसे कर सकते हैं, जब वे ही इन नकारा टीचर को बढ़ावा दे रहे हैं.
प्रिंसिपल शिक्षा मंत्री की चमचागीरी करते हैं और टीचर प्रिंसिपल की, ताकि बिना मेहनत के उन्हें तरक्की मिलती रहे. मेहनती टीचर को या तो मैमो दिलवाते हैं या कोसों दूर तबादला कर देते हैं.
दीपक का तबादला एक पहाड़ी गांव में कर दिया गया था, जहां स्कूल की अधूरी बिल्डिंग बनी थी, पर 2 कमरों की छत ढह चुकी थी. बच्चे आते ही नहीं थे, क्योंकि टीचर ऊंची जातियों के थे और बच्चे दलितों के. उन को बहला दिया गया था कि उन्हें पास होने का सर्टिफिकेट मिल जाएगा.
किदवई नगर कालोनी में बड़ीबड़ी कोठियां बनी हुई थीं. इसी कालोनी में इंजीनियर नागेश साहब की भी एक कोठी थी. कोठी के आउटहाउस में बैजू अपनी बीवी मीना और 8 साल के बेटे संजू के साथ रहता था.
बैजू एक मजदूर था. वह ईंट, गिट्टी और बालू ढोने का काम करता था. उस की मजदूरी से घर का खर्च चलता था. लेकिन उसे शराब पीने की बुरी आदत थी. मजदूरी के मिले थोड़े रुपयों से भी वह ऐश कर लेता था. उसे अपनी बीवीबच्चे की परवाह नहीं थी.
बैजू की बीवी मीना को घर चलाने में बड़ी मुश्किलें होती थीं. इस वजह से वह अपने पति बैजू से चिढ़ी रहती थी. उसे बेटे संजू की परवरिश और पढ़ाई की फिक्र होती थी, लेकिन बैजू को बेटे की पढ़ाई की कोई चिंता नहीं थी.
मीना गोरी और खूबसूरत औरत थी. वह स्मार्ट और फुरतीली थी. उस की पतली कमर और लंबे रेशमी बाल सब को आकर्षित करते थे. वह हंसमुख और बिंदास थी. वह बनठन कर रहने की शौकीन थी. उस का पहनावा सलीकेदार था.
किदवई नगर कालोनी में किराए का घर ले कर रहना बैजू जैसे मजदूर के लिए मुमकिन नहीं था. इस कालोनी में घर का किराया बहुत ज्यादा था. नागेश साहब ने उसे अपनी कोठी के आउटहाउस में रहने को जगह दे दी थी.
नागेश साहब बैजू से किराया नहीं लेते थे. किराए के बदले में नागेश साहब की कोठी में बैजू की बीवी मीना कामवाली बाई की तरह काम करती थी. वह सुबहशाम घर के जूठे बरतन साफ कर देती थी, जिस से मेमसाहब को बननेसंवरने और पार्टियों में जाने की फुरसत मिल जाती थी. नागेश साहब और मेमसाहब दोनों बड़े खुश रहते थे. उन्हें मीना के रूप में नौकरानी जो मिल गई थी.
बैजू एक रात शराब पी कर घर लौटा था. इस से बैजू और मीना में जम कर लड़ाई हो गई थी.
‘‘मैं कहती हूं, तू कब सुधरेगा…’’ मीना ने बैजू से कहा.
‘‘मैं बिगड़ा ही कहां हूं. थोड़ी पी ली तो पहाड़ टूट गया क्या?’’ बैजू ने अपनी सफाई दी.
‘‘500 रुपए मजदूरी के मिलते हैं, जिन में से 300 रुपए की तू दारू पी गया. मुझे घर चलाने के लिए केवल 200 रुपए ही दिए. इतनी महंगाई में घर कैसे चलेगा?’’ मीना ने कहा.
‘‘घर चल जाएगा. हां, नवाबी चाहोगी तो वह नहीं होगा,’’ बैजू ने बेशर्मी से कहा.
इस बात पर बैजू और मीना के बीच हाथापाई हो गई. मीना ने बैजू के पीठ पर 2-4 जोरदार मुक्के मारे. बैजू ने भी मीना को पीट दिया.
संजू अम्मां और बापू की लड़ाई देख कर सहम गया. वह सुबक कर रोने लगा. तब जा कर मियांबीवी शांत हुए.
इसी कलह में सुबह हो गई थी. बैजू साइट पर मजदूरी करने चला गया था. मीना मेमसाहब के जूठे बरतन धो रही थी. मेमसाहब भी वहीं कुरसी पर बैठी थीं.
‘‘अरे मीना, कल रात बैजू के साथ तेरा झगड़ा हुआ था क्या? तुम दोनों के झगड़ने की जोरजोर से आवाजें आ रही थीं,’’ मेमसाहब ने पूछा.
‘‘हां, मेमसाहब. कल रात बैजू दारू पी कर आया था. वह मजदूरी के मिले सारे रुपए दारू में उड़ा देता है,’’ मीना ने उदास लहजे में कहा.
‘‘अरे मीना, इस में बैजू से लड़ने की क्या जरूरत थी. नागेश साहब भी तो क्लब में शराब पीते हैं. मैं ने उन से कभी कोई झगड़ावगड़ा नहीं किया. उलटे रात में उन का प्यार मुझ से बढ़ जाता है,’’ मेमसाहब ने मुसकरा कर कहा.
मेमसाहब की बात सुन कर मीना जलभुन गई और बोली, ‘‘हां मेमसाहब, नागेश साहब और बैजू में बड़ा फर्क है. नागेश साहब के पास क्या कमी है. उन के पास खूब दौलत है. वे क्लब में शराब पी सकते हैं. लेकिन बैजू को मजदूरी के मिले रुपयों से मेरे और संजू के सपने जुड़े हुए हैं. हम उन सपनों को मरते नहीं देख सकते हैं.’’
मीना ने मेमसाहब को लाजवाब कर दिया था. वह झटपट बरतन धो कर वहां से चली गई.
मीना ने संजू को नाश्ता करा कर स्कूल भेज दिया था. थोड़ी दूर संजू का स्कूल था. उस स्कूल में गरीब घरों के बच्चे पढ़ते थे. स्कूल में 2 ही कमरे थे. एक कमरे और आंगन से सटे बरामदे में बच्चों की क्लास चलती थी.
दूसरे कमरे में रामचंद्र फल वाले का फल का गोदाम था. गोदाम से फल की खुशबू आती रहती थी. बच्चे ललचाते रहते थे कि फल चुरा कर कैसे खाए जाएं. वे पढ़ाई पर पूरी तरह से ध्यान नहीं लगा पाते थे.
आज रामचंद्र फल वाले ने गोदाम में आम रखे थे. गोदाम से पके आम की रसीली खुशबू आ रही थी. संजू को आम खाने का मन करने लगा. वह गोदाम से आम चुरा कर खाने लगा. किसी बच्चे ने संजू की शिकायत सुनील सर से कर दी. चुरा कर आम खाने पर उन्होंने संजू को खूब डांट लगाई.
शाम को स्कूल के रास्ते बैजू काम पर से घर लौट रहा था. उसे स्कूल के पास सुनील सर मिल गए. उन्होंने संजू की आम चुरा कर खाने वाली बात बैजू से कह दी.
घर पहुंच कर बैजू छड़ी से संजू की पिटाई करने लगा, ‘‘और आम चुरा कर खाएगा.’’
संजू पिटाई से रोने लगा. मीना को संजू की छड़ी से पिटाई देखी नहीं गई. वह बैजू को कोसने लगी, ‘‘कभी बच्चे के लिए आम खरीद कर लाया नहीं, वह चुरा कर नहीं खाएगा तो क्या करेगा.’’
‘‘मेरी महंगे आम खरीदने की औकात नहीं है,’’ बैजू ने कहा.
‘‘और दारू पीने और मुरगा खाने की औकात तो है न,’’ मीना ने डपट कर कहा.
इस बात पर मीना और बैजू में मारपीट हो गई. दोनों एकदूसरे को थप्पड़ और मुक्के से मारने लगे. वे चीखचिल्ला भी रहे थे. संजू अम्मां और बापू के झगड़े से डर कर रोने लगा. कुछ देर बाद दोनों की लड़ाई शांत हुई.
अगली सुबह मीना नागेश साहब की कोठी में जूठे बरतन साफ कर रही थी. मेमसाहब वहीं कुरसी लगा कर बैठी थीं.
बरतन साफ कर मीना घर जाने लगी कि तभी मेमसाहब ने उसे रोक कर कहा, ‘‘मीना, ये लो 200 रुपए. बाजार से चिकन खरीद कर ला दो.’’
‘‘जी मेमसाहब, अभी जाती हूं,’’ मीना रुपए ले कर बाजार से चिकन लाने चली गई.
सब्जी मंडी के नुक्कड़ पर बादल की चिकन, ब्रैड और अंडे की दुकान थी. बादल गठीला नौजवान था. उसे बनठन कर रहना अच्छा लगता था. वह टीशर्ट और जींस पहनता था. उस के पास एक पुरानी मोटरसाइकिल थी, जिस से वह अपने किराए के घर से दुकान आताजाता था.
मीना बादल की दुकान पर आ गई. बादल ने मीना को देखते ही पूछा, ‘‘मीना, आज क्या चाहिए? अंडाब्रैड दे दूं क्या?’’ ‘‘नहीं बादल, सिर्फ एक किलो चिकन दे दो,’’ मीना ने कहा.
बादल ने झटपट उसे चिकन दे दिया. मीना ने उसे 200 रुपए दे दिए.
‘‘दोपहर में आओ न मीना, कुछ इधरउधर घूमेंगे. मैं दुकान पर बैठेबैठे बोर हो जाता हूं,’’ बादल ने मीना से कहा.
‘‘अच्छा, मैं दोपहर में आती हूं. लेकिन बादल, तुम्हारी दुकान तो दोपहर में बंद हो जाती है,’’ मीना ने कहा.
‘‘हां, तभी तो उस समय ही फुरसत मिलती है,’’ बादल ने कहा. मीना मुसकराते हुए चिकन ले कर चली गई.
मीना अकसर मेमसाहब के लिए चिकन और अंडाब्रैड लेने बादल की दुकान पर आती थी. बादल की मीना से दोस्ती हो गई थी.
धीरेधीरे बादल और मीना एकदूसरे को चाहने लगे थे. मीना बादल के गठीले बदन पर मरमिटी थी. मीना भी खूबसूरती में कहां कम थी. बादल उस की देह का दीवाना हो गया था. दोनों को एकदूसरे से प्यार हो गया.
दोपहर में बादल मीना का इंतजार करने लगा. कुछ ही देर में मीना आ गई. बादल मीना को मोटरसाइकिल पर बैठा कर एक ढाबे पर ले गया, जहां दोनों ने गरमागरम डोसा खाया. ढाबे से निकल कर बादल मीना को अपने घर ले गया.
कमरे में मीना पलंग पर लेट गई. उस के साथ बादल भी लेट गया. वह मीना को बांहों में भर कर चूमने लगा. मीना भी बादल को बेतहाशा चूमने लगी.
बादल मीना के उभारों को सहलाने लगा. वे दोनों पूरी तरह प्यार के सुर में आ गए थे. पलभर में दोनों सैक्स करने लगे. जब जिस्म की आग ठंडी हुई, तब दोनों अलग हुए. बादल ने मीना को मोटरसाइकिल से उस के घर के नजदीक छोड़ दिया.
महीने बीतते गए. अब सर्दियां आ गई थीं. जल्दी ही दीवाली आने वाली थी. इस सब के बावजूद बैजू को पिछले 3-4 दिन से काम नहीं मिल रहा था. उस के हाथ में रोज की तरह मजदूरी के पैसे नहीं आ रहे थे. उसे रोज दारू पी कर ऐश करने की आदत थी. वह बैठेबैठे जुगाड़ भिड़ाने लगा.
‘अरे हां, कालोनी के मोड़ के पास चाय वाले प्रभु को जूठे कपप्लेट धोने के लिए एक छोकरा चाहिए था. अपना संजू उस चाय की दुकान में कपप्लेट धो देगा. बदले में प्रभु चाय वाले से उसे 2,000 रुपया महीना देने को बोलूंगा,’ सोच कर बैजू खुशी से झूम उठा.
दूसरे दिन बैजू संजू को स्कूल न भेज कर अपने साथ प्रभु चाय वाले के पास ले गया.
‘‘प्रभु, तुम्हें अपनी दुकान में जूठे कपप्लेट धोने के लिए एक छोकरा चाहिए था न? मेरे बेटे संजू को दुकान में रख लो,’’ बैजू ने कहा.
‘‘हां, एक छोकरा तो चाहिए था. क्या मेरी दुकान में यह लड़का काम कर लेगा?’’ प्रभु चाय वाले ने संजू को देखते हुए पूछा.
‘‘हां, क्यों नहीं. मजदूर का बेटा है, काम आसानी से कर लेगा,’’ बैजू ने उसे भरोसा दिलाया.
‘‘ठीक है, संजू को आज से ही
काम पर लग जाने दो,’’ प्रभु चाय वाले ने कहा.
कुछ सकुचाते हुए बैजू ने प्रभु चाय वाले से कहा, ‘‘500 रुपए एडवांस चाहिए थे. संजू की पगार से काट लेना.’’
प्रभु चाय वाले ने बैजू पर शक करते हुए बड़ी मुश्किल से 500 रुपए दिए.
बैजू रुपए ले कर चला गया.
जब संजू दोपहर में घर नहीं लौटा, तो मीना घबरा गई. वह स्कूल में संजू को खोजने गई. स्कूल में सुनील सर ने बताया कि आज संजू स्कूल नहीं आया है. तब मीना और ज्यादा घबरा गई.
घबराई मीना कालोनी के मोड़ से हो कर घर लौट रही थी. अचानक उस की नजर प्रभु चाय वाले की दुकान पर पड़ी, जहां संजू जूठे कपप्लेट धो रहा था. यह देख कर वह हैरान रह गई. वह फौरन तेज कदमों से दुकान में चली गई.
‘‘संजू बेटे, यह क्या कर रहे हो?’’ मीना ने पूछा.
‘‘अम्मां, बापू ने मुझे स्कूल न भेज कर इस दुकान में काम पर लगा दिया है,’’ संजू ने बताया.
‘‘हां, बैजू सुबह इसे दुकान में छोड़ कर गया है,’’ प्रभु चाय वाले ने कहा.
यह सुन कर मीना को बैजू पर बहुत गुस्सा आया, लेकिन वह संभल कर प्रभु चाय वाले से बोली, ‘‘संजू को घर जाने दीजिए.’’
‘‘यह कैसे हो सकता है. आज ही इस छोकरे का बाप 500 रुपए एडवांस में ले कर गया है,’’ प्रभु चाय वाले को गुस्सा आया.
‘‘संजू को जाने दीजिए. कल मैं आप के रुपए लौटा दूंगी,’’ मीना ने प्रभु चाय वाले से गुजारिश की.
‘‘ठीक है, छोकरे को ले जाओ, लेकिन कल मेरे रुपए मिल जाने चाहिए,’’ प्रभु चाय वाले ने मीना को धमकाते हुए कहा.
मीना संजू को दुकान से वापस ले कर चली आई थी. रात को बैजू दारू पी कर घर लौटा. उसे देखते ही मीना को काफी गुस्सा आया, लेकिन वह गुस्से को दबा गई.
मीना के चेहरे पर अब कोई उतारचढ़ाव नहीं था. उस ने मन ही मन एक फैसला ले लिया था, जिसे उस ने अपने सीने में छिपा कर रख लिया था.
मीना ने बैजू से शांत हो कर पूछा, ‘‘प्रभु चाय वाले से जो 500 रुपए लिए थे, उन का क्या किया?’’
‘‘उन रुपयों से दारू पी गया,’’ बैजू ने कहा.
‘‘बाप का फर्ज क्या होता है?’’ मीना ने पूछा.
‘‘मुझे नहीं मालूम,’’ बैजू ने कहा.
‘‘क्या एक मजदूर का बेटा पढ़ नहीं सकता है?’’ मीना ने पूछा.
‘‘मजदूर का बेटा पढ़ कर क्या बैरिस्टर बनेगा? उसे एक दिन मजदूरी ही करनी पड़ेगी,’’ बैजू ने कहा.
‘‘इसलिए तुम ने अपने बेटे संजू को स्कूल न भेज कर चाय की दुकान में जूठे कपप्लेट धोने के लिए काम पर लगा दिया,’’ मीना ने उसे नफरत से देखा. बैजू कुछ नहीं बोला. वह बिछावन पर जा कर निढाल हो कर सो गया.
2 दिन के बाद दीवाली थी. सुबह के 8 बज रहे थे. कुनकुनी धूप खिली हुई थी. बैजू मजदूरी करने चला गया था. इसी समय मीना बादल से मिलने उस की चिकन की दुकान पर चली गई.
मीना को देखते ही बादल धीरे से मुसकराया, ‘‘चिकन चाहिए क्या या अंडाब्रैड दे दूं?’’
‘‘नहीं, मुझे 500 रुपए चाहिए. प्रभु चाय वाले को लौटाने हैं,’’ मीना ने कहा.
‘‘500 रुपए, प्रभु चाय वाले को…’’ बादल सोचते हुए बड़बड़ाया.
‘‘हां बादल, बैजू ने प्रभु चाय वाले से एडवांस में 500 रुपए लिए थे. बदले में बेटे संजू को जूठे कपप्लेट धोने के लिए उस की दुकान में काम पर लगा दिया था. मैं संजू को दुकान से वापस ले आई. मैं उस के रुपए लौटा कर संजू को स्कूल भेजना चाहती हूं,’’ मीना ने कहा.
‘‘हां, क्यों नहीं. ये लो 500 रुपए, प्रभु चाय वाले को लौटा देना. वैसे, बैजू का रवैया बेटे के प्रति अच्छा नहीं है. संजू को स्कूल भेज कर पढ़ाना चाहिए था,’’ बादल ने कहा.
‘‘मैं ने फैसला कर लिया है कि अब बैजू के साथ नहीं रहूंगी, क्योंकि मेरी और संजू की जिंदगी उस के साथ रह कर बरबाद हो जाएगी. अब और सहना ठीक नहीं है,’’ मीना ने कहा.
‘‘तुम चाहो तो संजू को ले कर मेरे पास चली आओ. ऐसे आदमी के साथ रहना बिलकुल ठीक नहीं है,’’ बादल ने कहा.
‘‘हां बादल, मुझे एक सहारे की जरूरत है, जिस के साथ मैं चैन से रह सकूं. संजू अच्छे माहौल में रह कर पढ़लिख सके,’’ मीना ने कहा.
‘‘मैं भी अकेले रह कर ऊब चुका हूं. तुम संजू को ले कर आ जाओगी, तब हमारा एक परिवार हो जाएगा. हम साथ रह कर हंसीखुशी से जी सकेंगे,’’ बादल ने कहा.
‘‘आज शाम को संजू को ले कर मैं आ जाऊंगी. तुम मेरा इंतजार करना,’’ कह कर मीना चली गई.
मीना ने प्रभु चाय वाले को रुपए वापस कर दिए. शाम को मीना ने अपने कपड़े और संजू की किताबकौपियां सब एक बैग में रख लीं. बैजू के लौट आने से पहले वह संजू के साथ घर छोड़ कर बादल के घर चली गई. बादल मीना का बेसब्री से इंतजार कर रहा था.
‘‘आ जाओ मीना. आज से मेरे घर की मालकिन तुम हो,’’ बादल ने मीना का स्वागत गर्मजोशी से किया.
‘‘हां बादल, संजू को मिल कर खूब पढ़ानालिखाना है. आज से संजू तुम्हारा भी बेटा है,’’ मीना ने कहा.
बादल ने संजू को प्यार से गले लगा लिया, ‘‘संजू प्यारा बच्चा है. इसे मैं खूब सारा प्यार दूंगा. पढ़ालिखा कर काबिल बनाऊंगा. संजू अब हम दोनों का प्यार है,’’ बादल ने कहा. मीना खुशी से मुसकरा उठी.
बैजू जब रात में घर लौटा, तब मीना और संजू को न पा कर वह सन्न रह गया. उस ने अपने दिल को समझाया कि मीना यहींकहीं बाजार से कोई सामान लेने गई होगी. जब 2-3 घंटे बीत गए, फिर भी मीना घर नहीं लौटी. तब
बैजू घबरा गया. उस ने सब्जी मंडी, बाजारहाट सब जगह मीना को ढूंढ़ा, लेकिन वह कहीं नहीं मिली. कहार कर बैजू घर लौट आया.
‘‘लगता है, मीना किसी यार के साथ भाग गई,’’ बैजू बड़बड़ाया.
कटोरे में थोड़ी सब्जी और 2-4 रोटियां रखी थीं, जिसे खा कर बैजू सो गया.
सुबह हुई. बैजू की रात बेचैनी में कटी थी. उस के चेहरे पर उदासी थी, मीना उस का घर छोड़ कर जो चली गई थी. वह बेबस था. वह कमरे में खामोश बैठा था.
तभी मेमसाहब ने पुकारा, ‘‘बैजू, मीना को भेज दो. जूठे बरतन धोने के लिए पड़े हैं.’’
बैजू भारी मन से कमरे से बाहर आया. कोठी के बरामदे में मेमसाहब मीना के इंतजार में खड़ी थीं.
‘‘मेमसाहब, मीना रात को ही किसी प्रेमी के साथ भाग गई है,’’ बैजू ने कहा.
‘‘मुझे रात में क्यों नहीं बताया? यह सब कैसे हुआ?’’ मेमसाहब ने थोड़ा हैरान हो कर पूछा.
‘‘मुझे नहीं मालूम, मेमसाहब. रात में काम पर से लौटा, तब मीना और संजू घर पर नहीं थे,’’ कहते हुए बैजू की आंखों में आंसू झिलमिला आए.
‘‘इतनी बड़ी बात हो गई. मैं नागेश साहब से बात करती हूं,’’ कह कर मेमसाहब चली गईं.
नागेश साहब कमरे में बैठे मोबाइल फोन पर किसी से बातें कर रहे थे. उन की बात जब खत्म हुई, तब मेमसाहब ने नागेश साहब से कहा, ‘‘मीना रात से ही घर से गायब हो गई है. पता नहीं, वह कहां चली गई.’’
‘‘बैजू से पूछा कि मीना कहां गई है?’’ नागेश साहब ने कहा.
‘‘हां, पूछा था. बैजू का कहना है कि मीना किसी प्रेमी के साथ भाग गई है,’’ मेमसाहब ने कहा.
‘‘बहुत बुरा हो गया. घर के जूठे बरतन अब कौन साफ करेगा. मीना तो हम लोगों को तकलीफ दे गई,’’ नागेश साहब के चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंच गई थीं.
‘‘आप ने बैजू के बारे में क्या सोचा है?’’ मेमसाहब ने नागेश साहब से पूछा.
‘‘कुछ नहीं. अपने आउटहाउस से बैजू को निकाल दूंगा. जब मीना थी, तब वह हमारे घर का कामकाज करती थी. हम लोगों को कामवाली बाई की कभी जरूरत नहीं पड़ी. अब बैजू जैसे मजदूर को यहां रखना ठीक नहीं है,’’ नागेश साहब ने कहा.
‘‘ठीक है, मैं अभी बैजू को बुलाती हूं,’’ मेमसाहब ने कहा.
मेमसाहब ने कोठी के बरामदे से बैजू को पुकारा, ‘‘बैजू, तुम को साहब बुला रहे हैं.’’
बैजू मेमसाहब की आवाज सुन कर तुरंत कमरे से बाहर चला आया. वह नागेश साहब के सामने आ कर खड़ा हो गया, ‘‘आप ने बुलाया साहब?’’
‘‘बैजू, मेरा आउटहाउस खाली कर दो. तुम कहीं दूसरी जगह चले जाओ,’’ नागेश साहब ने गंभीर आवाज में कहा.
‘‘लेकिन साहब, मैं रहूंगा कहां…?’’ बैजू गिड़गिड़ाया.
‘‘बैजू, तुम कहीं भी जाओ. मुझे मेरा घर 1-2 दिन में खाली मिलना चाहिए,’’ नागेश साहब ने जोर दे कर कहा.
बैजू अब करता भी क्या. वह बहुत मजबूर था. वह 2 दिन बाद नागेश साहब की कोठी का आउटहाउस खाली कर के चला गया. नशे की लत ने उस की जिंदगी से परिवार और दीवाली की खुशियां छीन ली थीं.
‘‘कहीं नहीं जाएगी काकी…’’ पार्वती बूआ की कड़कती आवाज ने सब को चुप करा दिया. काकी की अटैची फिर हवेली के अंदर रख दी गई.
यह तीसरी बार की बात थी. काकी के कुनबे ने फैसला किया था कि शादीशुदा लड़की का असली घर उस की ससुराल ही होती है. न चाहते हुए भी काकी मायका छोड़ कर ससुराल जा रही थी.
हालांकि ससुराल से उसे लिवाने कोई नहीं आया था. काकी को बोझ समझ कर उस के परिवार वाले उसे खुद ही उस की ससुराल फेंकने का मन बना चुके थे कि पार्वती बूआ को अपनी बरबाद हो चुकी जवानी याद आ गई. खुद उस के साथ कुनबे वालों ने कोई इंसाफ नहीं किया था और उसे कई बार उस की मरजी के खिलाफ ससुराल भेजा था, जहां उस की कोई कद्र नहीं थी.
तभी तो पार्वती बूआ बड़ेबूढ़ों की परवाह न करते हुए चीख उठी थी, ‘‘कहीं नहीं जाएगी काकी. उन कसाइयों के पास भेजने के बजाय उसे अपने खेतों के पास वाली नहर में ही धक्का क्यों न दे दिया जाए. बिना किसी बुलावे के या बिना कुछ कहेसुने, बिना कोई इकरारनामे के काकी को ससुराल भेज देंगे, तो वे ससुरे इस बार जला कर मार डालेंगे इस मासूम बेजबान लड़की को. फिर उन का एकाध आदमी तुम मार आना और सारी उम्र कोर्टकचहरी के चक्कर में अपने आधे खेतों को गिरवी रखवा देना.’’
दूसरी बार काकी के एकलौते भाई की आंखों में खून उतर आया था. उस ने हवेली के दरवाजे से ही चीख कर कहा था, ‘‘काकी ससुराल नहीं जाएगी. उन्हें आ कर हम से माफी मांगनी होगी. हर तीसरे दिन का बखेड़ा अच्छा नहीं. क्या फायदा… किसी की जान चली जाएगी और कोई दूसरा जेल में अपनी जवानी गला देगा. बेहतर है कि कुछ और ही सोचो काकी के लिए.’’
काकी के लिए बस 3 बार पूरा कुनबा जुटा था उस के आंगन में. काकी को यहीं मायके में रखने पर सहमति बना कर वे लोग अपनेअपने कामों में मसरूफ हो गए थे. उस के बाद काकी के बारे में सोचने की किसी ने जरूरत नहीं समझ और न ही कोई ऐसा मौका आया कि काकी के बारे में कोई अहम फैसला लेना पड़े.
काकी का कुसूर सिर्फ इतना था कि वह गूंगी थी और बहरी भी. मगर गूंगी तो गांव की 99 फीसदी लड़कियां होती हैं. क्या उन के बारे में भी कुनबा पंचायत या बिरादरी आंखें मींच कर फैसले करती है? कोई एकाध सिरफिरी लड़की अपने बारे में लिए गए इन एकतरफा फैसलों के खिलाफ बोल भी पड़ती है, तो उस के अपने ही भाइयों की आंखों में खून उतर आता है. ससुराल की लाठी उस पर चोट करती है या उस के जेठ के हाथ उस के बाल नोंचने लगते हैं.
ऐसी सिरफिरी मुंहफट लड़की की मां बस इतना कह कर चुप हो जाती है कि जहां एक लड़की की डोली उतरती है, वहां से ही उस की अरथी उठती है. यह एक हारे हुए परेशान आदमी का बेमेल सा तर्क ही तो है. एक अकेली छुईमुई लड़की क्या विद्रोह करे. उसे किसी फैसले में कब शामिल किया जाता है. सदियों से उस के खिलाफ फतवे ही जारी होते रहे हैं. वह कुछ बोले तो बिजली टूट कर गिरती है, आसमान फट पड़ता है.
अनगनित लोगों की शादियां टूटती हैं, मगर वे सब पागल नहीं हो जाते. बेहतर तो यही होता कि अपनी नाकाम शादी के बारे में काकी जितना जल्दी होता भूल जाती. ये शादीब्याह के मामले थानेकचहरी में चले जाएं, तो फिर रुसवाई तो तय ही है. आखिर हुआ क्या? शीशा पत्थर से टकराया और चूरचूर हो गया.
काकी का पति तो पहले भी वैसा ही था लंपट, औरतबाज और बाद में भी वैसा ही बना रहा. काकी से अलग होने के बाद भी उस की जिंदगी पर कोई खास असर नहीं पड़ा.
काकी के कुनबे का फैसला सुनने के बाद तो वह हर तरफ से आजाद हो चुका था. उस के सुख के सारे दरवाजे खुल गए, मगर काकी का मोह भंग हो गया. अब वह खुद को एक चुकी हुई बूढ़ी खूसट मानने लगी थी.
भरी जवानी में ही काकी की हर रस, रंग, साज और मौजमस्ती से दूरी हो गई थी. उस के मन में नफरत और बदले के नागफनी इतने विकराल आकार लेते गए कि फिर उन में किसी दूसरे आदमी के प्रति प्यार या चाहत के फूल खिल ही न सके.
किसी ने उसे यह नहीं समझाया, ‘लाड़ो, अपने बेवफा शौहर के फिर मुंह लगेगी, तो क्या हासिल होगा तुझे वह सच्चा होता तो क्या यों छोड़ कर जाता तुझे उसे वापस ले भी आएगी, तो क्या अब वह तेरे भरोसे लायक बचा है? क्या करेगी अब उस का तू? वह तो ऐसी चीज है कि जो निगले भी नहीं बनेगा और बाहर थूकेगी, तो भी कसैली हो जाएगी तू.
‘वह तो बदचलन है ही, तू भी अगर उस की तलाश में थानाकचहरी जाएगी, तो तू तो वैसी ही हो जाएगी. शरीफ लोगों का काम नहीं है यह सब.’
कोई तो एक बार उसे कहता, ‘देख काकी, तेरे पास हुस्न है, जवानी है, अरमान हैं. तू क्यों आग में झोंकती है खुद को? दफा कर ऐसे पति को. पीछा छोड़ उस का. तू दोबारा घर बसा ले. वह 20 साल बाद आ कर तु?ा पर अपना दावा दायर करने से रहा. फिर किस आधार पर वह तुझ पर अपना हक जमाएगा? इतने सालों से तेरे लिए बिलकुल पराया था. तेरे तन की जमीन को बंजर ही बनाता रहा वह.
‘शादी के पहले के कुछ दिनों में ही तेरे साथ रहा, सोया वह. यह तो अच्छा हुआ कि तेरी कोख में अपना कोई गंदा बीज रोप कर नहीं गया वह दुष्ट, वरना सारी उम्र उस से जान छुड़ानी मुश्किल हो जाती तुझे.’
कुनबे ने काकी के बारे में 3 बार फतवे जारी किए थे. पहली बार काकी की मां ने ऐसे ही विद्रोही शब्द कहे थे कि कहीं नहीं जाएगी काकी. पहली बार गांव में तब हंगामा हुआ था, जब काकी दीनू काका के बेटे रमेश के बहकावे में आ गई थी और उस ने उस के साथ भाग जाने की योजना बना ली थी. वह करती भी तो क्या करती.
35 बरस की हो गई थी वह, मगर कहीं उस के रिश्ते की बात जम नहीं रही थी. ऐसे में लड़कियां कब तक खिड़कियों के बाहर ताकझांक करती रहें कि उन के सपनों का राजकुमार कब आएगा. इन दिनों राजकुमार लड़की के रंगरूप या गुण नहीं देखता, वह उस के पिता की जागीर पर नजर रखता है, जहां से उसे मोटा दहेज मिलना होता है.
गरीब की बेटी और वह भी जन्म से गूंगीबहरी. कौन हाथ धरेगा उस पर? वैसे, काकी गजब की खूबसूरत थी. घर के कामकाज में भी माहिर. गोरीचिट्टी, लंबा कद. जब किसी शादीब्याह के लिए सजधज कर निकलती, तो कइयों के दिल पर सांप लोटने लगते. मगर उस के साथ जिंदगी बिताने के बारे में सोचने मात्र की कोई कल्पना नहीं करता था.
वैसे तो किसी कुंआरी लड़की का दिल धड़कना ही नहीं चाहिए, अगर धड़के भी तो किसी को कानोंकान खबर न हो, वरना बरछे, तलवारें व गंड़ासियां लहराने लगती हैं. यह कैसा निजाम है कि जहां मर्द पचासों जगह मुंह मार सकता था, मगर औरत अपने दिल के आईने में किसी पराए मर्द की तसवीर नहीं देख सकती थी? न शादी से पहले और शादी के बाद तो कतई नहीं.
पर दीनू काका के फौजी बेटे रमेश का दिल काकी पर फिदा हो गया था. काकी भी उस से बेपनाह मुहब्बत करने लगी थी. मगर कहां दीनू काका की लंबीचौड़ी खेती और कहां काकी का गरीब कुनबा. कोई मेल नहीं था दोनों परिवारों में.
पहली ही नजर में रमेश काकी पर अपना सबकुछ लुटा बैठा, मगर काकी को क्या पता था कि ऐसा प्यार उस के भविष्य को चौपट कर देगा.
रमेश जानता था कि उस के परिवार वाले उस गूंगी लड़की से उस की शादी नहीं होने देंगे. बस, एक ही रास्ता बचा था कि कहीं भाग कर शादी कर ली जाए.
उन की इस योजना का पता अगले ही दिन चल गया था और कई परिवार, जो रमेश के साथ अपनी लड़की का रिश्ता जोड़ना चाहते थे, सब दिशाओं में फैल गए. इश्क और मुश्क कहां छिपते हैं भला. फिर जब सारी दुनिया प्रेमियों के खिलाफ हो जाए, तो उस प्यार को जमाने वालों की बुरी नजर लग जाती है.
काकी का बचपन बड़े प्यार और खुशनुमा माहौल में बीता था. उस के छोटे भाई राजा को कोई चिढ़ाताडांटता या मारता, तो काकी की आंखें छलछला आतीं. अपनी एक साल की भूरी कटिया के मरने पर 2 दिन रोती रही थी वह. जब उस का प्यारा कुत्ता मरा तो कैसे फट पड़ी थी वह. सब से ज्यादा दुख तो उसे पिता के मरने पर हुआ था. मां के गले लग कर वह इतना रोई थी कि मानो सारे दुखों का अंत ही कर डालेगी. आंसू चुक गए. आवाज तो पहले से ही गूंगी थी. बस गला भरभर करता था और दिल रेशारेशा बिखरता जाता था. सबकुछ खत्म सा हो गया था तब.
अब जिंदा बच गई थी तो जीना तो था ही न. दुखों को रोरो कर हलका कर लेने की आदत तब से ही पड़ गई थी उसे. दुख रोने से और बढ़ते जाते थे.
रमेश से बलात छीन कर काकी को दूर फेंक दिया गया था एक अधेड़ उम्र के पिलपिले गरीब किसान के झोपड़े में, जहां उस के जवान बेटों की भूखी नजरें काकी को नोंचने पर आमादा थीं.
काकी वहां कितने दिन साबुत बची रहती. भाग आई भेडि़यों के उस जंगल से. कोई रास्ता नहीं था उस जंगल से बाहर निकलने का.
जो रास्ता काकी ने खुद चुना था, उस के दरमियान सैकड़ों लोग खड़े हो गए थे. काकी के मायके की हालत खराब तो न थी, मगर इतने सोखे दिन भी नहीं थे कि कई दिन दिल खोल कर हंस लिया जाए. कभी धरती पर पड़े बीजों के अंकुरित होने पर नजरें गड़ी रहतीं, तो कभी आसमान के बादलों से मुरादें मांगती झोलियां फैलाए बैठी रहतीं मांबेटी.
रमेश से छिटक कर और फिर ससुराल से ठुकराई जाने के बाद काकी का दिल बुरी तरह हार माने बैठा था. अब काकी ने अपने शरीर की देखभाल करनी छोड़ दी थी. उस की मां उस से अकसर कहती कि गरीब की जवानी और पौष की चांदनी रात को कौन देखता है.
फटी हुई आंखों से काकी इस बात को समझाने की कोशिश करती. मां झंझला कर कहती, ‘‘तू तो जबान से ही नहीं, दिल से भी बिलकुल गूंगी ही है. मेरे कहने का मतलब है कि जैसे पूस की कड़कती सर्दी वाली रात में चांदनी को निहारने कोई नहीं बाहर निकलता, वैसे ही गरीब की जवानी को कोई नहीं देखता.’’
मां चल बसीं. काकी के भाई की गृहस्थी बढ़ चली थी. काकी की अपनी भाभी से जरा भी नहीं बनती थी. अब काकी काफी चिड़चिड़ी सी हो गई थी. भाई से अनबन क्या हुई, काकी तो दरबदर की ठोकरें खाने लगी. कभी चाची के पास कुछ दिन रहती, तो कभी बूआ काम करकर के थकटूट जाती थी. काकी एक बार खाट से क्या लगी कि सब उसे बोझ समझाने लगे थे.
आखिरकार काकी की बिरादरी ने एक बार फिर काकी के बारे में फैसला करने के लिए समय निकाला. इन लोगों ने उस के लिए ऐसा इंतजाम कर दिया, जिस के तहत दिन तय कर दिए गए कि कुलीन व खातेपीते घरों में जा कर काकी खाना खा लिया करेगी.
कुछ दिन तक यह बंदोबस्त चला, मगर काकी को यों आंखें झाका कर गैर लोगों के घर जा कर रहम की भीख खाना चुभने लगा. अपनी बिरादरी के अब तक के तमाम फैसलों का काकी ने विरोध नहीं किया था, मगर इस आखिरी फैसले का काकी ने जवाब दिया. सुबह उस की लाश नहर से बरामद हुई थी. अब काकी गूंगीबहरी ही नहीं, बल्कि अहल्या की तरह सर्द नीला पत्थर हो चुकी थी.
फूलमनी जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही बुतरू के स्टाइल पर फिदा हो गई. प्यार के झांसे में आ कर एक दिन बिना सोचेसमझो वह अपना घर छोड़ उस के साथ शहर भाग आई.
शादीशुदा जिंदगी क्या होती है, दोनों ही इस का ककहरा भी नहीं जानते थे. भाग कर शहर तो आ गए, लेकिन बुतरू कोई काम ही नहीं करना चाहता था. वह बस्ती के बगल वाली सड़क पर दिनभर हंड़िया बेचने वाली औरतों के पास निठल्ला बैठा बातें करता और हंड़िया पीता रहता था. इसी तरह दिन महीनों में बीत गए और खाने के लाले पड़ने लगे.
फूलमनी कब तक बुतरू के आसरे बैठे रहती. उस ने अगलबगल की औरतों से दोस्ती गांठी. उन्होंने फूलमनी को ठेकेदारी में रेजा का काम दिलवा दिया. वह काम करने जाने लगी और बुतरू घर संभालने लगा. जल्द ही दोनों का प्यार छूमंतर हो गया.
बुतरू दिनभर घर में अकेला बैठा रहता. शाम को जब फूलमनी काम से घर लौटती, वह उस से सारा पैसा छीन लेता और गालीगलौज पर आमादा हो जाता, ‘‘तू अब आ रही है. दिनभर अपने भरतार के घर गई थी पैसा कमाने… ला दे, कितना पैसा लाई है…’’
फूलमनी दिनभर ठेकेदारी में ईंटबालू ढोतेढोते थक कर चूर हो जाती. घर लौट कर जमीन पर ही बिना हाथमुंह धोए, बिना खाना खाए लेट जाती. ऊपर से शराब के नशे में चूर बुतरू उस के आराम में खलल डालते हुए किसी भी अंग पर बेधड़क हाथ चला देता. वह छटपटा कर रह जाती.
एक तो हाड़तोड़ मेहनत, ऊपर से बुतरू की मार खाखा कर फूलमनी का गदराया बदन गलने लगा था. तरहतरह के खयाल उस के मन में आते रहते. कभी सोचती, ‘कितनी बड़ी गलती की ऐसे शराबी से शादी कर के. वह जवानी के जोश में भाग आई. इस से अच्छा तो वह सुखराम मिस्त्री है. उम्र में बुतरू से थोड़ा बड़ा ही होगा, पर अच्छा आदमी है. कितने प्यार से बात करता है…’
सुखराम फूलमनी के साथ ही ठेकेदारी में मिस्त्री का काम करता था. वह अकेला ही रहता था. पढ़ालिखा तो नहीं था, पर सोचविचार का अच्छा था. सुबहसवेरे नहाधो कर वह काम पर चला आता. शाम को लौट कर जो भी सुबह का पानीभात बचा रहता, उसे प्यार से खापी कर सो जाता.
शनिवार को सुखराम की खूब मौज रहती. उस दिन ठेकेदार हफ्तेभर की मजदूरी देता था. रविवार को सुखराम अपने ही घर में मुरगा पकाता था. मौजमस्ती करने के लिए थोड़ी शराब भी पी लेता और जम कर मुरगा खाता.
फूलमनी से सुखराम की नईनई जानपहचान हुई थी. एक रविवार को उस ने फूलमनी को भी अपने घर मुरगा खाने के लिए बुलाया, पर वह लाज के मारे नहीं गई.
साइट पर ठेकेदार का मुंशी सुखराम के साथ फूलमनी को ही भेजता था. सुखराम जब बिल्डिंग की दीवारें जोड़ता, तो फूलमनी फुरती दिखाते हुए जल्दीजल्दी उसे जुगाड़ मसलन ईंटबालू देती जाती थी.
सुखराम को बैठने की फुरसत ही नहीं मिलती थी. काम के समय दोनों की जोड़ी अच्छी बैठती थी. काम करते हुए कभीकभी वे मजाक भी कर लिया करते थे. लंच के समय दोनों साथ ही खाना खाते. खाना भी एकदूसरे से सा?ा करते. आपस में एकदूसरे के सुखदुख के बारे में भी बतियाते थे.
एक दिन मुंशी ने सुखराम के साथ दूसरी रेजा को काम पर जाने के लिए भेजा, तो सुखराम उस से मिन्नतें करने लगा कि उस के साथ फूलमनी को ही भेज दे.
मुंशी ने तिरछी नजरों से सुखराम को देखा और कहा, ‘‘क्या बात है सुखराम, तुम फूलमनी को ही अपने साथ क्यों रखना चाहते हो?’’
सुखराम थोड़ा झोंप सा गया, फिर बोला ‘‘बाबू, बात यह है कि फूलमनी मेरे काम को अच्छी तरह समझती है कि कब मुझे क्या जुगाड़ चाहिए. इस से काम करने में आसानी होती है.’’
‘‘ठीक है, तुम फूलमनी को अपने साथ रखो, मुझे कोई एतराज नहीं है. बस, काम सही से होना चाहिए… लेकिन, आज तो फूलमनी काम पर आई नहीं है. आज तुम इसी नई रेजा से काम चला लो.’’
झक मार कर सुखराम ने उस नई रेजा को अपने साथ रख लिया, मगर उस से उस के काम करने की पटरी नहीं बैठी, तो वह भी लंच में सिरदर्द का बहाना बना कर हाफ डे कर के घर निकल गया. दरअसल, फूलमनी के नहीं आने से उस का मन काम में नहीं लग रहा था.
दूसरे दिन सुखराम ने बस्ती जा कर फूलमनी का पता लगाया, तो मालूम हुआ कि बुतरू ने घर में रखे 20 किलो चावल बेच दिए हैं. फूलमनी से उस का खूब झगड़ा हुआ है. गुस्से में आ कर बुतरू ने उसे इतना मारा कि वह बेहोश हो गई. वह तो उसे मारे ही जा रहा था, पर बस्ती के लोगों ने किसी तरह उस की जान बचाई.
सुखराम ने पड़ोस में पूछा, ‘‘बुतरू अभी कहां है?’’
किसी ने बताया कि वह शराब पी कर बेहोश पड़ा है. सुखराम हिम्मत कर के फूलमनी के घर गया. चौखट पर खड़े हो कर आवाज दी, तो फूलमनी आवाज सुन कर झोपड़ी से बाहर आई. उस का चेहरा उतरा हुआ था.
सुखराम से उस की हालत देखी न गई. वह परेशान हो गया, लेकिन कर भी क्या सकता था. उस ने बस इतना ही पूछा, ‘‘क्या हुआ, जो 2 दिन से काम पर नहीं आ रही हो?’’
दर्द से कराहती फूलमनी ने कहा, ‘‘अब इस चांडाल के साथ रहा नहीं जाता सुखराम. यह नामर्द न कुछ करता है और न ही मुझे कुछ करने देता है. घर में खाने को चावल का एक दाना तक नहीं छोड़ा. सारे चावल बेच कर शराब पी गया.’’
‘‘जितना सहोगी उतना ही जुल्म होगा तुम पर. अब मैं तुम से क्या कहूं. कल काम पर आ जाना. तुम्हारे बिना मेरा मन नहीं लगता है,’’ इतना कह कर सुखराम वहां से चला आया.
सुखराम के जाने के बाद बहुत देर तक फूलमनी के मन में यह सवाल उठता रहा कि क्या सचमुच सुखराम उसे चाहता है? फिर वह खुद ही लजा गई. वह भी तो उसे चाहने लगी है. कुछ शब्दों के एक वाक्य ने उस के मन पर इतना गहरा असर किया कि वह अपने सारे दुखदर्द भूल गई. उसे ऐसा लगने लगा, जैसे सुखराम उसे साइकिल के कैरियर पर बैठा कर ऐसी जगह लिए जा रहा है, जहां दोनों का अपना सुखी संसार होगा. वह भी पीछे मुड़ कर देखना नहीं चाह रही थी. बस आगे और आगे खुले आसमान की ओर देख रही थी.
अचानक फूलमनी सपनों के संसार से लौट आई. एक गहरी सांस भरी कि काश, ऐसा बुतरू भी होता. कितना प्यार करती थी वह उस से. उस की खातिर अपने मांबाप को छोड़ कर यहां भाग आई और इस का सिला यह मिल रहा है. आंखों से आंसुओं की बूंदें टपक आईं. बुतरू का नाम आते ही उस का मन फिर कसैला हो गया.
अगले दिन सुबहसवेरे फूलमनी काम पर आई, तो उसे देख कर सुखराम का मन मयूर नाच उठा. काम बांटते समय मुंशी ने कहा, ‘‘सुखराम के साथ फूलमनी जाएगी.’’
साइट पर सुखराम आगेआगे अपने औजार ले कर चल पड़ा, पीछेपीछे फूलमनी पाटा, बेलचा, सीमेंट ढोने वाला तसला ले कर चल रही थी.
सुखराम ने पीछे घूम कर फूलमनी को एक बार फिर देखा. वह भी उसे ही देख रही थी. दोनों चुप थे. तभी सुखराम ने फूलमनी से कहा, ‘‘तुम ऐसे कब तक बुतरू से पिटती रहोगी फूलमनी?’’
‘‘देखें, जब तक मेरी किस्मत में लिखा है,’’ फूलमनी बोली.
‘‘तुम छोड़ क्यों नहीं देती उसे?’’ सुखराम ने सवाल किया.
‘‘फिर मेरा क्या होगा?’’
‘‘मैं जो तुम्हारे साथ हूं.’’
‘‘एक बार तो घर छोड़ चुकी हूं और कितनी बार छोडूं? अब तो उसी के साथ जीना और मरना है.’’
‘‘ऐसे निकम्मे के हाथों पिटतेपिटाते एक दिन तुम्हारी जान चली जाएगी फूलमनी. क्या तुम मेरा कहा मानोगी?’’
‘‘बोलो…’’
‘‘बुतरू एक जोंक की तरह है, जो तुम्हारे बदन को चूस रहा है. कभी आईने में तुम ने अपनी शक्ल देखी है. एक बार देखो. जब तुम पहली बार आई थीं, कैसी लगती थीं. आज कैसी लग रही हो. तुम एक बार मेरा यकीन कर के मेरे साथ चलो. हमारी अपनी प्यार की दुनिया होगी. हम दोनों इज्जत से कमाएंगेखाएंगे.’’
बातें करतेकरते दोनों उस जगह पहुंच चुके थे, जहां उन्हें काम करना था. आसपास कोई नहीं था. वे दोनों एकदूसरे की आंखों में समा चुके थे.