लिंग चेंज कर स्टूडेंट से की लेस्बियन शादी

प्यार दीवाना होता है, यह बात भरतपुर की फिजिकल टीचर मीरा के जज्बे से जाहिर हुई. अपनी स्टूडेंट और इंटरनैशनल कबड्डी खिलाड़ी कल्पना से प्यार हो जाने के बाद मीरा ने न सिर्फ अपना लिंग चेंज कराया और कल्पना से शादी भी की. अनोखी प्रेम कहानी जिस में सैक्स चेंज से ले कर पारिवारिक असहमति, सामाजिक आपत्तियां, कानूनी दायरा और मैडिकल प्रौब्लम की दीवारों को फांदने में जो दिक्कतें आईं, वे राजस्थान में भरतपुर के एक राजकीय माध्यमिक स्कूल के मैदान में कबड्डी खिलाड़ी कल्पना अपनी फिजिकल टीचर मीरा का इंतजार कर रही थी. सूर्योदय में अभी वक्त था, लेकिन अंधेरा थोड़ा कम होने लगा था.

कल्पना ने एक ही जगह पर छोटेछोटे स्टेप के साथ जंपिंग, जौगिंग की प्रैक्टिस शुरू कर दी थी. कुछ अन्य लड़कियां भी प्रैक्टिस के लिए मैदान में आने लगी थीं. उन के साथ दौड़ की प्रैक्टिस होनी थी. कुछ समय में ही मेन गेट से दौड़ लगाती हुई फिजिकल टीचर मीरा भी आती दिख गई.

वह जैसे ही कल्पना के पास आई, उस ने गुडमार्निंग मैडम कहा. मीरा पहले की तरह बोल पड़ी, ‘‘तुझे कितनी बार कहा है, मुझे मैडम मत बोल…कुछ और बोल लिया कर.’’

‘‘तो सर बोलूं? …हांहां, यही ठीक रहेगा, आप जेंट्स वाले कपड़े पहनती हैं इसलिए.’’ हाजिरजवाब कल्पना बोल पड़ी.

‘‘अरे, तू कुछ भी बोल देती है. मैं तुम्हारी टीचर हूं.’’ मीरा झेंपती हुई बोली.

‘‘एक बात बोल्यूं, बुरा न मानियो मैडमजी …अरे नहीं, सरजी. आप इन कपड़ों में ही जंचते हो. छोरे जैसे लगते हो.’’ कल्पना मजाकिया अंदाज में बोली.

‘‘चलोचलो, बहुत हो गया हंसीमजाक. आज मेरे साथ ग्राउंड के 4 फेरे लगाणी है. नैशनल कबड्डी में जीतना कोई मजाक ना होवे.’’ मीरा बोली.

‘‘जी.’’

‘‘तो फिर चल शुरू हो जा.’’

कुछ समय में दोनों स्कूल मैदान के किनारेकिनारे दौड़ने लगी थीं. पूरे 4 चक्कर के बाद वे आ कर एक जगह बैठ गईं. मीरा सांस लेती हुई बोली, ‘‘तन्ने प्रैक्टिस अच्छी की. दिल कहता है तू जरूर नैशनल चैंपियन बन जावेगी. स्कूल का नाम रौशन होवेगा…’’

‘‘और आप का? आप की बदौलत ही तो मैं इस काबिल बन पाई हूं.’’

‘‘अरे, तेरी भी तो मेहनत है. देख बाकी लड़कियों से तू कितनी जल्दी ट्रेंड हो गई.’’ मीरा बोली.

‘‘कुछ भी कहो, आप एकदम से मर्दों वाली चाल में दौड़ लगाती हो. वह तो मैं दुबलीपतली हूं, इसलिए आप के साथ कदमताल मिला लेती हूं, लेकिन दूसरी मोटी कमर और भारी देह वाली लड़की आप के आगे कहां टिकती हैं.’’

‘‘बात तो तुम सही कह रही हो, मुझे भी कई बार लगता है कि मैं एकदम से मर्द की तरह दौड़ रही हूं…फिर सोचती हूं कि साथ दौड़ने वाली लड़कियों के लिए यह अच्छा ही है. उन की प्रैक्टिस तो अच्छी हो जावेगी.’’

‘‘जी मैडमजी,’’ कल्पना ने जैसे ही बोला मीरा उस की ओर सवालिया निगाह से देखने लगी.

थोड़ी देर चुप रहने के बाद बोली, ‘‘अरी ओ छोरी, ऐसा कर तू मुझे ग्राउंड में मेरे नाम से ही बुलाया कर. फिर यह मैडम, मैम और सर का झंझट ही खत्म हो जावेगा.’’

‘‘जी.’’

‘‘जी क्या? आज से हम दोनों दोस्त हुए समझी? मैं उम्र में तुझ से बहुत अधिक बड़ी नहीं हूं.’’ मीरा ने कहा.

‘‘यही मन्ने भी लागे!’’

‘‘चल थोड़ी सीढि़यों की जौगिंग भी कर लें,’’ टीचर ने कहा.

‘‘अच्छा मीरा,’’ कल्पना ने अपने फिजिकल टीचर का अलग अंदाज में नाम लिया. …और फिर दोनों साथसाथ जौगिंग करने लगीं.

मीरा और कल्पना के साथ का यह सिलसिला करीब 3 साल पहले शुरू हुआ था. वे स्कूल के ग्राउंड में मिलते थे. फिजिकल ट्रेनिंग के साथसाथ उन की दोस्ती भी मजबूत होती चली गई. एक समय ऐसा भी आया जब उन्हें लगने लगा कि उन के दिल में एकदूसरे के प्रति काफी लगाव हो गया है. वे आपस में प्यार करने लगी हैं. समाज की नजर में उन का यह संबंध अप्राकृतिक कहलाता, लोग उन्हें समलैंगिक जोड़ा समझते. उन के सामने पारिवारिक, सामाजिक और कानूनी दीवारें थीं.

कहते हैं न कि प्यार में सब कुछ जायज है. ऐसा ही मीरा और कल्पना के साथ भी हुआ. हमेशा साथ बने रहने के लिए पहला कदम मीरा ने ही उठाया. उस ने अपना जेंडर चेंज करवाने की ही योजना बना ली. इस की जरूरत वह कई सालों से महसूस कर रही थी, लेकिन इस बारे में खुल कर किसी से बातें नहीं कर पा रही थी. परिवार में अपने मातापिता या भाईबहनों से भी नहीं. किंतु जब उस का स्कूल टीचर के रूप में करिअर सुरक्षित हो गया और कल्पना के साथ प्यार परवान चढ़ गया, तब उस ने पहले इस बारे में कल्पना को बताया.

लड़कों की तरह रहना पसंद था मीरा को

मीरा उत्तर प्रदेश की सीमा से सटे राजस्थान के भरतपुर जिले की डीग तहसील के एक परिवार की 5वीं बेटी थी. उस का जन्म 1994 में एक सुखीसंपन्न परिवार में हुआ था. बहनों में सब से छोटी इस बेटी का नाम रखा गया मीरा देवी. बढ़ती उम्र के साथ पढ़ाईलिखाई जारी रही.

लेकिन मीरा का लड़कों की तरह रहना, कपड़े पहनना और खुद को लड़कों की तरह ही देखना बदस्तूर जारी रहा. वह अपनी फिटनैस पर खूब ध्यान देती थी. इस का अच्छा परिणाम यह मिला कि साल 2018 में 24 साल की उम्र में उस का राजस्थान शिक्षा विभाग में बतौर शारीरिक शिक्षक पद पर चयन हो गया.

उस की पोस्टिंग डीग तहसील के ही नगला मोती के राजकीय माध्यमिक विद्यालय में हो गई. यहां तक तो सब सामान्य बातें थीं. मीरा की नौकरी शुरू हो गई थी. इसी दौरान मीरा को बारबार इस बात का अहसास होता रहा कि वह वह स्त्री के काबिल नहीं है. यानी उस में पुरुष के गुण मौजूद हैं.

मीरा अपने शरीर को ले कर काफी असहज महसूस कर रही थी. वह अपने शरीर और शारीरिक अंगों को ले कर उलझी सी रहती थी. एक महिला के शरीर में वह बेहद असहज महसूस कर रही थी.

इस बारे में जब उस ने अपनी मां को बताया तो कपड़े की आजादी मिल गई और लड़कों वाले कपड़े पहनने लगी. यहीं से उस के मनमुताबिक रहनेजीने की शुरुआत हो गई. इस बारे में उस ने सब से पहले अपने घर वालों को बताया. पहले तो उस की बातों को घर वालों ने गंभीरता से नहीं लिया, लेकिन बाद में उस की जिद के चलते डाक्टर की सलाह ली गई.

शादी के लिए किया घर वालों को राजी

मीरा को इस का अहसास काफी पहले किशोरावस्था की उम्र से ही था. जब वह 16 साल की थी, तभी उस ने 2010 में जेंडर चेंज कराने के बारे में पढ़ा था. उन्हीं दिनों उस के मन में विचार आया था कि आने वाले दिनों में अपना सैक्स चेंज करवा लेगी. हालांकि, इस बारे में तब किसी को नहीं बताया था और नौकरी के लिए पढ़ाई करने लगी थी. उस के दिमाग में यह बात उसी वक्त बैठ गई थी कि मौका देख कर घर वालों को जेंडर चेंज के लिए मनाएगी.

समय बीतता रहा और मीरा के मन में सैक्स बदल कर नई जिंदगी पाने की इच्छा भी मजबूत होती चली गई. साल 2018 में नौकरी मिल गई. उस के बाद से मीरा ने गूगल पर सर्च कर सैक्स सर्जरी की तमाम जानकारी जुटा ली. उस की जटिल प्रक्रिया को समझ लिया और डाक्टर से भी सलाह लेनी शुरू कर दी. कई लोगों से भी बात की और फिर उसे परिवार वालों को भी मनाने में सफलता मिल गई.

मीरा का घर डीग में और कल्पना का घर नगला मोती गांव में है. दोनों के परिवार पहले से ही परिचित थे. मीरा जहां पोस्टेड थी, वहीं कल्पना पढ़ा करती थी. इसी बीच उसे अपनी ही स्टूडेंट कल्पना से प्यार हो गया. कल्पना भी उस से बेइंतहा मोहब्बत कर बैठी थी. अपनी मोहब्बत को विवाह मंडप तक ले जाने में सब से बड़ी अड़चन थी उन का समलिंगी होना.

वे इस का बायोलौजिकल समाधान के बारे में तो जानती थीं, लेकिन पारिवारिक और सामाजिक अड़चनों को दूर करना भी किसी समस्या से कम नहीं था. उन्हें सैक्स चेंज के लिए परिवार को भी मानसिक तौर पर तैयार करना था.

एक बार कल्पना ने अपने घर के लोगों से मीरा को मिलवाया. मीरा का घर में एक टीचर होने के नाते खूब आवभगत हुई. तब तक कल्पना के घर वालों को उन के प्रेम संबंध के बारे में नहीं मालूम था. किंतु जब इस बारे में मीरा ने बताते हुए विवाह का प्रस्ताव रखा, तब घर में सभी चौंक गए.

इस का समाधान भी मीरा ने ही उन्हें समझाया और अपना सैक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी करवाने की बात बताई.

इस बारे में मीरा पहले से ही अपने घर वालों को बता चुकी थी. उस ने कल्पना के घर वालों को भी इस बारे में बताया कि वह किस तरह से सैक्स चेंज के बाद एक सामान्य पुरुष की जिंदगी गुजार सकता है.

2 साल तक चली लड़की से लड़का बनने की प्रक्रिया

दोनों परिवारों से इस की सहमति मिलने के बाद साल 2019 में दिल्ली के एक निजी अस्पताल में मीरा का इलाज शुरू कर दिया गया. उस का इलाज दिसंबर 2021 तक चला. इस दौरान उसे कई तरह की थैरेपी और सर्जरी के दौर से गुजरना पड़ा. कोरोना दौर की असुविधाओं के बावजूद डाक्टरों को इस में सफलता मिलती चली गई.

दिल्ली के निजी संस्थान में जेंडर चेंज के लंबे उपचार में कुल 15 लाख रुपए खर्च हो गए. इस की प्रक्रिया में सब से पहले मनोचिकित्सक से बातचीत की गई. उन के कई सवालों के सटीक जवाब देते हुए मीरा ने उस दौर को पार कर लिया. उस से पूछे गए अहम सवाल थे, ‘‘सैक्स चेंज क्यों करवाना चाहते हो? क्या कारण है? कुछ दबाव है या और कुछ बात है?’’

इस के जवाब में मीरा ने अपने शरीर की असहजता के साथसाथ मोहब्बत की कहानी भी सुनाई. मीरा ने न केवल अपनी स्टूडेंट कल्पना से प्रेम संबंध का खुलासा किया, बल्कि यह भी कहा कि उसे ख़ुद के लिए जीने के साथसाथ प्रेमिका से शादी कर खुशहाल जिंदगी भी गुजारनी है. उस ने मनोचिकित्सक को साफतौर पर कहा कि उसे महिला के शरीर से असुविधा होती है. इस से हर हाल में मुक्ति चाहिए.

मीरा की बातों से आश्वस्त होने के बाद ही मनोचिकित्सक ने सैक्स चेंज की अनुमति दी. वह समझ गए थे कि प्रेम ही वह दवा है, जो मीरा को पुरुष बनने के दौर में मजबूत बनाए रखेगी और वह मानसिक तौर पर खुद को मजबूत बनाए रखेगा.  इस तरह मीरा को मनोचिकित्सक की ओर से मैडिकल ट्रीटमेंट की अगली कड़ी के लिए सर्टिफिकेट मिल गया.

इलाज के अगले दौर की शुरुआत मीरा के हारमोन थैरेपी से हुई. कई दौर की थैरेपी की प्रक्रिया पूरी होने के बाद उस के बौडी पार्ट्स की सर्जरी की गई. इस में 3 तरह की सर्जरी थीं. अलगअलग की जाने वाली सर्जरी में 2 सर्जरी कर पहले मीरा के स्तनों को हटा दिया गया. उस के बाद बारी आई गुप्तांग की. इस की भी 2 बार सर्जरी की गई. एक सर्जरी के तहत जांघ, पेट और हाथ से स्किन ले कर, उस से गुप्तांग बनाए गए. इस सर्जरी के बाद करीब एक साल तक उसे पूरी तरह से रेस्ट करने की हिदायत दी गई.

सर्जरी की प्रक्रिया पूरी होने के बाद मीरा ने अपना नाम आरव रख लिया. लंबे इलाज के क्रम में ही उस ने शारीरिक बदलावों को देखा और महसूस किया. जैसेजैसे बदलाव होते गए, वैसेवैसे उस का आत्मविश्वास भी मजबूत होता चला गया. इसी क्रम में चेहरे,  होंठ और आंखों के ऊपरी हिस्से पर भी बदलाव किए गए. इस से मीरा के चेहरे पर बदलाव भी धीरेधीरे दिखने लगा और वह एक युवक की तरह ही नजर आने लगा.

उन बदलावों में लड़की की महीन आवाज में भारीपन था तो विशेष हारमोन थैरेपी से दाढ़ीमूंछ उगने लगी थी. इस से मीरा से आरव बनने के बाद वह पुरुष की तरह सहज महसूस करने लगा. यही उस के आत्मविश्वास को बढ़ाने में सहायक भी बना.

लिंग चेंज करा कर मीरा बन गई आरव

सैक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी की प्रक्रिया पूरी कर जब 28 साल की युवती मीरा देवी से युवक आरव कुंतल बन सामने आया, तब उस के परिवार की भी खुशी का ठिकाना नहीं रहा. उस के मातापिता को मीरा समेत 5 बेटियां थीं. अब उस परिवार में 5 बहनों में एक 4 बहनें और आरव के रूप में एक भाई आ गया था.

उस की पहली प्रतिक्रिया थी, ‘‘मुझे जीना था. मैं वैसा हो गया हूं. मुझे पहले से प्रौब्लम थी. मुझे अपने आप से और अपनी बौडी से परेशानी थी. अब मैं बेहद ख़ुश हूं और परिवार भी बेहद खुश है. भाई नहीं था तो अब जेंडर चेंज के बाद बहनों के लिए भाई की कमी भी दूर हो गई.’’

मीरा को अब भले ही नई पहचान आरव की मिल गई हो, लेकिन स्कूल रिकौर्ड में आज भी वो महिला शारीरिक शिक्षक मीरा देवी ही है. हालांकि सर्जरी के बाद भी आरव को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. नई समस्या मौजूदा नौकरी के कागजात और कागजी काररवाई में नाम बदलने की आ गई है.

हो गई नए जीवन की शुरुआत

और फिर वह समय भी आ गया, जिस का मीरा उर्फ आरव और कल्पना को बड़ी बेसब्री से इंतजार था. बीते साल 4 नंवबर, 2022 को कल्पना के घर शहनाई बज गई. कल्पना संग आरव की शादी की देश भर में चर्चा होने लगी. आरव ने बताया कि कल्पना भी ट्रीटमेंट के दौरान उस के साथ दिल्ली गई थी. दोनों के ही परिवारों ने उन की शादी की बात शुरू की और उन की ही इच्छा से शादी संपन्न हुई.

शादी के बाद आरव की पत्नी कल्पना ने भी मीडिया से कहा, ‘‘मैं सर को पहले से चाहती थी. यदि यह सर्जरी नहीं करवाते तो भी मैं शादी के लिए तैयार हो जाती.’’

आरव और कल्पना बेहद खुश हैं और कबड्डी की राष्ट्रीय खिलाड़ी कल्पना इस साल 2023 में इंटरनैशनल प्रो कबड्डी चैंपियनशिप में भाग लेने की तैयारी में जुट गई है. इस के लिए मैच 22 अक्तूबर से 7 नवंबर 2023 तक  होंगे.

कबड्डी के खेल की दुनिया को मान्यता प्रदान करने के लिए प्रो कबड्डी लीग (पीकेएल) की शुरुआत की गई थी.  अलगअलग टीम के मालिक खिलाडि़यों की नीलामी कर चुके हैं. इस के लिए कल्पना ने अपनी प्रैक्टिस पहले की तरह शुरू कर दी है. उसे दुबई के मैदान में कबड्डी खेलना है.

बहरहाल, अपना लिंग चेंज कराने के बाद आरव अपनी पत्नी कल्पना के साथ हंसीखुशी से रह रहा है.

मिसाल: चुनौती भरा रहा घूंघट से बिकिनी तक का सफर- प्रिया सिंह मेघवाल, बौडी बिल्डर

महज 8 साल की उम्र में बाल विवाह, 13 साल की उम्र में मां बनना, समाज की रूढि़वादी जंजीरों की जकड़न, निचली जाति से होने के चलते हर कदम दर्द देते जातिसूचक कड़वे बोल… तमाम मुश्किलों और पीड़ा के बावजूद घूंघट से बिकिनी तक का सफर तय कर मर्दों के दबदबे वाले खेल में कामयाबी हासिल करना कोई मामूली चुनौती नहीं है.

यह कहानी है थाईलैंड में वर्ल्ड बौडी बिल्डिंग चैंपियनशिप में गोल्ड मैडल जीतने वाली प्रिया सिंह मेघवाल की. इस से पहले 3 बार ‘मिस राजस्थान बौडी बिल्डिंग चैंपियन’ रही प्रिया सिंह मेघवाल को अब गहलोत सरकार ने सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग का ब्रांड एंबैसडर भी बनाया है.

यह कामयाबी प्रिया सिंह मेघवाल ने सालों की मेहनत से हासिल की है. उन का यह सफर इतना भी आसान नहीं था. रूढि़वादी समाज की जंजीरें काट कर घूंघट से बिकिनी के सफर में कई मुश्किलें आईं.

प्रिया सिंह मेघवाल का 8 साल की उम्र में बाल विवाह हुआ था और 13 साल की उम्र में वे मां बन गई थीं. फिर कई बार जाति को ले कर दंश झेला, तो समाज के लोगों ने उन के खेल के लिए ताने भी मारे.

मगर तमाम बाधाओं को नजरअंदाज कर प्रिया सिंह मेघवाल अपने सपने को जीतने की कोशिश करती रहीं. जिम में नौकरी करते हुए बौडी बिल्डिंग चैंपियनशिप में भाग लिया. फिर वे बनीं साल 2018, साल 2019 और साल 2020 में ‘मिस राजस्थान बौडी बिल्डिंग चैंपियन’. इस के बाद उन के सपनों को पंख मिले और अब यह कीर्तिमान रच डाला.

मर्दों के दबदबे वाले इस खेल में प्रिया सिंह मेघवाल ने वह कर दिखाया, जिस से साबित हुआ कि मौका मिलने पर औरतें मर्दों से किसी भी क्षेत्र में कम नहीं हैं. गौरतलब है कि प्रिया सिंह मेघवाल राजस्थान के बीकानेर की रहने वाली दलित समाज की महिला हैं. गांवदेहात के माहौल में जनमी प्रिया सिंह मेघवाल की खेलनेकूदने की उम्र में ही शादी कर दी गई थी. शादी के बाद 2 बच्चे… 2 बच्चों की मां बनने के बाद उन्होंने बौडी बिल्डिंग के फील्ड में हाथ आजमाया.

दरअसल, प्रिया सिंह मेघवाल ने घर चलाने के लिए जिम में नौकरी शुरू की थी. यहीं से उन में फिटनैस को ले कर दिलचस्पी पैदा हो गई और उन्होंने रोजाना घंटों जिम में पसीना बहाया.

पेश हैं, प्रिया सिंह मेघवाल से हुई लंबी बातचीत के खास अंश :आप ने कैसे बौडी बिल्डिंग की फील्ड को चुना और कब लगा कि आप को इसे प्रोफैशनल तरीके से करना चाहिए?

मैं ने इस फील्ड को साल 2015 में चुना था. इनसान को मजबूरी भी पता नहीं कहांकहां उसे झुका देती है. इसी के चलते मैं ने जिम में ट्रेनर की नौकरी शुरू की. तब किसी ने कहा कि आप ट्रेनर हो, आप भी बौडी बिल्डिंग में आगे जा सकती हो. तब यह भी बोला गया कि लड़कियां इस क्षेत्र में नहीं हैं, बौडी बिल्डिंग में इतना पैसा है कि सरकारी नौकरी वाला जितना 5 साल में कमाता है, उतना यहां एक साल में मिल जाता है. तो मैं इस फील्ड में आ गई. लेकिन यहां कमाने से दोगुना तो बौडी मेंटेन रखने में खर्च करना पड़ता है.

मेरी 8 साल की उम्र में शादी हो गई थी. मेरी पढ़ाई भी 5वीं क्लास तक ही हुई है. माली हालत कमजोर होने के चलते घरों में झाड़ू लगाना, बरतन धोना मुझे मंजूर नहीं था. मेरी हाइट और पर्सनैलिटी देख कर किसी ने जिम में नौकरी ट्राई करने को कहा. इस के बाद 8,000 रुपए महीने की जिम में नौकरी मिल गई, जो मेरे लिए बहुत बड़ी बात थी. लेकिन वहां कुछ लोग कमैंट करने लगे. वे बोलते थे कि इतना ज्यादा वेट, इस को निकालो, यह ब्रांड पर धब्बा है. गंवार है, इसे बोलना नहीं आता है. पर, मैं ने अपनी लगन को नहीं छोड़ा.

सवाल: आप को अपने परिवार में किसकिस का सपोर्ट मिला?

जवाब: मेरी बेटी का मुझे सब से ज्यादा सपोर्ट मिला है. इस के अलावा मैं ने ही खुद को सपोर्ट किया था. कहते हैं न कि इनसान पूरी दुनिया जीत सकता है, लेकिन घर में नहीं. अब ऐसा जरूरी तो नहीं कि सब खुश हों, तब ही सपने पूरे हो सकते हैं, इसलिए मैं बौडी बिल्डिंग करती रही.

मांबाप को तो पता भी नहीं था कि मैं क्या कर रही हूं. उन्हें तो 6 महीने पहले पता लगा है कि मैं बौडी बिल्डिंग करती हूं.

मैं बहुत ही रूढि़वादी कल्चर से आती हूं. यहां औरत घूंघट में ही अपना जीवन बिता देती है. मैं बीकानेर से आती हूं, यहां शादी के बाद औरतों को 5 रंग के कपड़े पहनने की ही इजाजत है, लेकिन मैं ने तो उस घूंघट को छोड़ कर बिकिनी पहनने तक का सफर तय किया है, तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि इस मुकाम तक पहुंचने के लिए मैं ने कितना संघर्ष किया होगा.

सवाल: आप का अब तक का सफर कितना चैलेंजिंग रहा है?

जवाब: यह सफर बहुत मुश्किल रहा, लेकिन मेरा फोकस क्लियर था. लोगों ने हजारों कमैंट किए. कुछ कहते थे कि ‘यह तो मर्द है, बस दाढ़ीमूंछ नहीं हैं’, कुछ लोग बोलते थे कि ‘अब तू औरत भी नहीं रहेगी और मर्द भी नहीं रहेगी’.

जब मैं ने पहली बार बिकिनी पहनी, तो बहुत लोगों ने बात करना बंद कर दिया. कुछ ने कहा कि आप राजस्थान की संस्कृति में दखल दे रही हैं. यहां की संस्कृति में औरत घूंघटपल्ले में रहती हैं. लेकिन मेरा मानना है कि कई बार चीजें गलत नहीं होती हैं, बल्कि नजरिया

गलत होता है. मैं ने ऐसी परेशानियों को दिल से न लगा कर अपने मिशन पर फोकस रखा.

सवाल: इस मुकाम तक पहुंचने से पहले आप को किस तरह की परेशानियों से गुजरना पड़ा?

जवाब: मेरी परेशानियां अभी खत्म नहीं हुई हैं. मुसीबतें मेरी जिंदगी का हिस्सा बन गई हैं. पर अगर परेशानियां नहीं होतीं, तो जिंदगी में कामयाबी भी नहीं मिल पाती. बस मेरी एक शिकायत है कि लड़कियों के लिए जो नैगेटिव सोच है, उसे पौजिटिव में बदलने का वक्त आ गया है.

जो काम लड़के कर रहे हैं, अब वे सब काम लड़कियां भी कर सकती हैं. आज मैं जो भी कुछ हूं, वह जनता के सम्मान की वजह से हूं, इसलिए मैं चाहती हूं कि जितना सम्मान जनता ने मुझे दिया है, उतना हर बेटी को दिया जाए.

सवाल: घूंघट से बिकिनी तक का सफर कैसे चुनौती भरा रहा?

जवाब: मैं भी आम औरतों की तरह ही साड़ी और घूंघट में रहती थी, लेकिन बौडी बिल्डिंग में कैरियर बनाने की चाहत ने मेरे ड्रैसिंग स्टाइल को बदल दिया. बौडी बिल्डिंग की शुरुआत में ही मैं ने घर वालों को स्पोर्ट्स ब्रा, शौर्ट्स और बिकिनी दिखाई थी.

उस वक्त मैं ने उन्हें बताया था कि स्टेट चैंपियनशिप तक स्पोर्ट्स ब्रा और शौर्ट्स पहन कर शामिल हो सकते हैं, लेकिन नैशनल और इंटरनैशनल चैंपियनशिप में शामिल होने के लिए बिकिनी पहननी पड़ती है. मेरे सामने सवाल था कि मैं किस चैंपियनशिप की तैयारी करूं या फिर बौडी बिल्डिंग छोड़ दूं? तब घर वालों ने मुझे दोनों चैंपियनशिप की तैयारी करने के लिए कहा था.

सवाल: क्या आप को कभी बौडी बिल्डिंग या फिर कपड़ों को ले कर ताने सुनने पड़े?

जवाब: हां, जब मैं बौडी बिल्डिंग करने लगी थी, तब लोगों ने मुझे काफी ताने दिए थे. कुछ कहते थे कि बिकिनी में खड़ी हो जाती हो… तुम्हें शर्म नहीं आती. वहीं कुछ लोग मुझे आदमी कह कर बुलाते थे.

मेरे रिश्तेदारों ने भी मुझे बौडी बिल्डिंग छोड़ कर अपना घर और बच्चे संभालने की नसीहत दी थी. यहां तक कि शुरुआती दिनों में मेरा भाई इतना नाराज हो गया था कि उस ने भी मुझ से रिश्ता तोड़ मुझे मारने तक की धमकी दी थी, लेकिन मैं नहीं रुकी और आज उन सब को मुझ पर गर्व है.

सवाल: आप की जाति को ले कर काफी विवाद चल रहा है. क्या इसलिए आप को तवज्जुह नहीं दी जा रही?

जवाब: मैं स्पोर्ट्स पर्सन हूं. न मेरी कोई जातबिरादरी है और न ही समुदाय. मैं सिर्फ एक खिलाड़ी हूं और खिलाड़ी को खिलाड़ी की नजर से ही देखा जाना चाहिए. जातिवाद हर क्षेत्र में हावी हो गया है. मेरे लिए तो यह थोड़ा ज्यादा ही हावी हो गया है, लेकिन मुझे इस पर फिलहाल कुछ नहीं कहना.

मैं बस यही चाहती हूं कि मुझे किसी जाति या समाज के आधार पर नहीं, बल्कि एक खिलाड़ी के नजरिए पर पहचान मिले.

सवाल: बौडी बिल्डिंग काफी खर्चीला गेम है. फाइनैंशियल मैनेजमैंट कैसे करती हैं?

जवाब: मैं लोगों को पर्सनल ट्रेनिंग देती हूं, लेकिन उस से मेरा गुजारा नहीं हो पा रहा है. मैं थाईलैंड खेल कर आई हूं. इस की वजह से लाखों रुपए का कर्जा हो गया है. उस से पहले भी कर्जा था. वह भी अभी उतरा नहीं है, लेकिन काफी लोग मेरी मदद कर रहे हैं. उन्हीं की वजह से आज मैं यहां तक पहुंच पाई हूं.

सवाल: आप को कौनकौन से शौक हैं?

जवाब: मुझे डांस करने का बहुत शौक है, लेकिन मुझे डांस नहीं आता है. फिर भी मैं समय मिलने पर डांस करती हूं, जिस में मुझे बहुत मजा आता है.

मुझे खेलकूद, मस्ती और खाना बनाना बेहद पसंद है. एक टीस हमेशा रहेगी कि मैं ने बचपन नहीं जिया. आज अगर बचपन लौट कर आ जाए तो उसे भरपूर जीना चाहती हूं.

सवाल: आप की एक बेटी है. आप उसे क्या बनाना चाहती हैं?

जवाब: मेरी बेटी ही मेरी सब से बड़ी ताकत है. इस पूरे सफर में, कामयाबी में बेटी का बहुत योगदान रहा है. बेटी ही मेरी डाइट का ध्यान रखती थी. मेरी ट्रेनिंग में सपोर्ट करती रही है. साथ ही, मेरे लिए खानेपीने से ले कर हर जरूरत में वही  खड़ी रही है.

हालांकि खुद बेटी को जिम और बौडी बिल्डिंग पसंद नहीं है, लेकिन उसे जो बनना है, इस को तय करने की आजादी उसे है.

सवाल: इस उपलब्धि पर आप के मातापिता कितना खुश हुए?

जवाब: दोनों बहुत खुश हुए थे. पापा तो मैडल के साथ एयरपोर्ट से निकलते हुए मेरा फोटो देख कर रोने लगे थे. पापा को खुशी है कि अब लोग पूछते हैं कि आप बौडी बिल्डर के पापा हो न?

इस से पहले मैं ने उन दोनों को बताया ही नहीं था कि मैं क्या करती हूं. बस, पापा से इतना कहा था कि एक दिन ऐसा काम करूंगी कि आप को मुझ पर गर्व होगा. आज पापा बहुत खुश हैं.

सवाल: आप ने किस तरह की फिल्मों में काम किया है?

जवाब: मैं ने सनी देओल के साथ फिल्म ‘सूर्या’ में काम किया है. इस के अलावा 4, 5, 6 और 7 दिसंबर को जैसलमेर में एक फिल्म की शूटिंग थी, लेकिन मेरा कंपीटिशन होने के चलते मैं ने जाना कैंसिल कर दिया.

मेरी पहचान खेल है, बौडी बिल्डिंग है तो पहले खेल जरूरी है, फिल्में बाद में. अभी मैं ने साउथ की 2 फिल्में साइन की हैं.

सवाल: आप एकदम से मशहूर हो गई हैं. इस बारे में आप क्या सोचती हैं?

जवाब: हां, ऐसा हुआ है. मेरी कई सालों की मेहनत थी, अब जा कर पहचान मिली है. लेकिन मैं वैसी ही हूं. मुझे साधारण जिंदगी जीना पसंद है.

सवाल: इस फील्ड में आगे क्या करने का इरादा है?

जवाब: मैं ने साल 2020 में स्टेट खेलना छोड़ दिया था, ताकि नई लड़कियों को मौका मिले, उन को प्लेटफार्म मिले. लेकिन मैं नैशनल, इंटरनैशनल खेल रही हूं. यह मैं खेलती रहूंगी और एक नया मुकाम हासिल करना है.जिम करने  के दौरान आप का खानापीना, डाइट चार्ट कैसा रहता है?खाने का बहुत ज्यादा ध्यान रखना पड़ता है. पसंद की चीजें नहीं खा पाते हैं. कंपीटिशन से 3 महीने पहले उबली डाइट खानी पड़ती है और 7 से 10 दिन पहले नमक छोड़ना पड़ता है, पानी छोड़ना पड़ता है. मुझे मीठा और नमकीन बहुत पसंद है, लेकिन मैं नहीं खा सकती.

सवाल: लोगों से क्या कहना चाहेंगी?

जवाब: हर इनसान को जो भी करना है, खुद करना पड़ता है. मांबाप से शिकायत नहीं करनी चाहिए कि पैसा नहीं लगाया या वह नहीं दिलवाया. एक जगह फोकस रहने पर कामयाबी मिलती है.

लोगों से अपील है कि बेटियों को दहेज देने के बजाय पहले बेटी के कैरियर पर खर्च करो. इस से बेटी की जिंदगी संवर जाएगी.

औरतों और लड़कियों के खिलाफ हिंसा की वारदातें लगातार बढ़ रही हैं. उन्हें किस तरह सैल्फ डिफैंस करना चाहिए?

जिस तरह लोग मुझे प्यार दे रहे हैं, ऐसा लगता है कि अब दूसरी लड़कियां भी जिम जा कर बौडी बिल्डर बनना चाहेंगी. इस से वे खुद को महफूज रख सकेंगी.

मैं चाहती हूं कि लड़कियां अपने फैसले खुद लें. हमें कभी अपनी जिंदगी के लिए मांबाप या फिर किसी और को दोष नहीं देना चाहिए, क्योंकि खुद के लिए हम खुद ही सब से अच्छा कर सकते हैं.

जागरूकता: लड़की को पढ़ाओ, रोजगार भी दिलाओ

सपना कोई भी देख सकता है और अपनी मेहनत के बल पर उसे पूरा भी कर सकता है. मन में कुछ करने का जज्बा हो और अगर इरादे मजबूत हों तो कोई भी राह मुश्किल नहीं होती है. उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में एक टैलीविजन मेकैनिक की बेटी सानिया नैशनल डिफैंस अकेडमी का इम्तिहान पास कर के प्रदेश की पहली महिला फाइटर पायलट बनने वाली हैं.

सानिया ने इस इम्तिहान में 149वीं रैंक हासिल की है और वे उत्तर प्रदेश की पहली महिला फाइटर पायलट होंगी. उन्होंने 27 दिसंबर, 2022 को पुणे में ट्रेनिंग शुरू की थी. सानिया मिर्जापुर से तकरीबन 10 किलोमीटर दूर जसोवर गांव की रहने वाली हैं. उन्होंने गांव के ही स्कूल से 10वीं जमात की पढ़ाई की थी. वे 12वीं के लिए मिर्जापुर आईं और हिंदी मीडियम से पढ़ाई जारी रखी. उन के पिता शाहिद अली टैलीविजन मेकैनिक हैं. गांव के घर पर ही उन की दुकान है.

सानिया ने एक इंटरव्यू में बताया कि देश की पहली महिला पायलट अवनी चतुर्वेदी का इंटरव्यू पढ़ कर उन्हें भी फाइटर पायलट बनने की इच्छा हुई थी. इसी तरह राजस्थान की रहने वाली वंदना मीणा बचपन से ही पढ़ाई में काफी होशियार थीं और अपने मकसद को ले कर बिलकुल साफ भी. उन के पिता दिल्ली पुलिस में नौकरी करते हैं.

वंदना मीणा ने देश का सब से मुश्किल इम्तिहान यूपीएससी पास कर के पूरे गांव का नाम रोशन किया है. वे मूल रूप से राजस्थान के एक छोटे से गांव टोकसी की रहने वाली हैं. अपने हुनर और मेहनत के दम पर ही वे आईएएस बन पाई हैं. इम्तिहान के दौरान वंदना मीणा रोजाना 15-16 घंटे पढ़ाई करती थीं. उन्होंने साल 2021 के यूपीएससी इम्तिहान में आल इंडिया लैवल पर 331वीं रैंक हासिल की. वे अपने गांव से पहली आईएएस हैं. पुराने समय में बेटियों को घर तक ही सीमित रखा जाता था. जैसेजैसे समय बदल रहा है, वैसेवैसे बेटियां समाज का गर्व बन रही हैं. वे लड़कों से कंधे से कंधा मिला कर चल रही हैं. राजस्थान के चूरू में एक परिवार की 8 बेटियां नैशनल प्लेयर बनी हैं. इन सभी के पिता एक साधारण जिंदगी जीने वाले हैं, जो खेतीबारी कर के परिवार का पालनपोषण करते हैं, जबकि उन की बेटियों ने पूरे गांव का नाम रोशन किया है.

1. लड़कियों को क्यों पढ़ाना चाहिए

अगर हमें किसी देश का विकास जानना हो, तो सब से पहले उस देश की महिलाएं कितनी पढ़ीलिखी हैं, यह पता करें. उस से उस देश का विकास पता चल जाएगा. आज के इस दौर में अगर लड़की को तालीम नहीं मिल पाती है, तो जाहिर है कि उस समाज में बहुत ही कम विकास हुआ है. याद रखें कि लड़कियां और औरतें हमारे समाज का अहम हिस्सा हैं. इन के बिना समाज अधूरा है.

वैसे भी आज पढ़ाईलिखाई ज्यादा महंगी नहीं रही. गरीब परिवार भी इस का खर्च उठा सकता है. लड़कियों की तालीम में सरकार की तरफ से भी मदद मिलती है. केंद्र सरकार द्वारा बहुत सी बालिका योजनाएं जैसे ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’, ‘सुकन्या समृद्धि योजना’, ‘बालिका समृद्धि योजना’, ‘सीबीएसई उड़ान स्कीम’, माध्यमिक शिक्षा के लिए लड़कियों के लिए प्रोत्साहन की राष्ट्रीय योजना ‘धनलक्ष्मी योजना’ वगैरह लागू की गई हैं.

राज्य सरकार की भी कई योजनाएं हैं, इसलिए एक लड़की के मातापिता को भी समझना जरूरी है कि वे अपनी बच्चियों की शिक्षा के बारे में विचार जरूर करें. आजकल लड़कियों के खिलाफ अपराधों में बढ़ोतरी कुछ ज्यादा होती जा रही है, इसलिए भी उन की पढ़ाईलिखाई जरूरी है. पर दुख की बात है कि सरकारी योजनाओं के बावजूद हमारा देश आज भी लड़कियों की पढ़ाईलिखाई के मामले में बहुत पीछे है.

देश की महिला साक्षरता दर (64.46 फीसदी) देश की कुल साक्षरता दर (74.04 फीसदी) से भी कम है. बहुत कम लड़कियों का स्कूलों में दाखिला कराया जाता है और उन में से भी कई तो बीच में ही स्कूल छोड़ देती हैं. इस के अलावा कई लड़कियां समाज के रूढि़वादी रवैए के चलते स्कूल नहीं जा पाती हैं.

मगर क्या यह उचित है? बिलकुल नहीं, क्योंकि पढ़लिख कर तो वे अपने पैरों पर खड़ी होंगी, जमाने में अपना एक मुकाम बनाएंगी और अपने मांबाप के बुढ़ापे की लाठी भी बनेंगी.

2. पढ़ालिखा होने की ताकत

अगर बेटियां पढ़ीलिखी हों, तो उन्हें समाज में अलग ही नजरिए से देखा जाता है. उन में सहीगलत की समझ होती है. वे किसी से दब कर नहीं रहती हैं. शादी होने के बाद उन के बच्चे भी पढ़लिख कर नया सीखते हैं.

3. रोजगार के मौके

कैरियर को ले कर लड़कियों और औरतों की सोच में आजकल बहुत बदलाव आया है. अब लड़कियां शुरुआत से ही अपने कैरियर को ले कर क्लीयर रहती हैं और उसी के मुताबिक आगे पढ़ाई करती हैं.वैसे तो हर फील्ड में लड़कियां बहुत अच्छा काम कर रही हैं, लेकिन फिर भी कुछ फील्ड ऐसे हैं, जो लड़कियों की खास पसंद हैं और उन के लिए सुविधाजनक भी हैं.

नर्सिंग

नर्स हमारे यहां ज्यादातर अस्पतालों में नर्स लड़कियां और औरतें ही दिखती है. जो लड़कियां मैडिकल फील्ड में अपना कैरियर बनाना चाहती हैं, उन के लिए नर्सिंग एक अच्छा औप्शन है. इस प्रोफैशन में काम करने के घंटे तकरीबन फिक्स होते हैं. हालांकि ड्यूटी 24 घंटे में कोई सी भी हो सकती है.

नर्स का काम डाक्टर और पेशेंट दोनों को असिस्ट करना होता है. एक नर्स डाक्टर के निर्देशों का पालन करती है, साथ ही मरीज का खयाल रखना, उन की सेहत पर नजर रखना, समय पर दवा और जरूरी चैकअप करने का काम भी वही करती है. प्रोफैशनल होने के साथ केयरिंग नेचर का होना भी नर्स के लिए अच्छा है.

ये नौकरी लड़कियों और औरतों के लिए एक इज्जत से भरा काम है और इस में तनख्वाह भी अच्छी मिलती है. सब से खास बात यह है कि नर्सिंग के लिए 12वीं जमात के बाद डिप्लोमा और डिगरी के कई औप्शन मौजूद हैं. नर्सिंग में कैरियर बनाने के लिए आप 12वीं जमात के बाद बीएससी कर सकते हैं या फिर डीएचए, डीएचएन, जीएनएम या एएनएम जैसे शौर्टटर्म डिप्लोमा कोर्स भी हैं.

टीचिंग

टीचिंग की नौकरी आज भी लड़कियों की सब से पसंदीदा नौकरी है. इस के पीछे खास वजह है, इस नौकरी में मिलने वाली सुविधाएं. सब से पहले तो टीचर बनने के लिए कई लैवल हैं और आप अपनी क्वालिफिकेशन के आधार पर नौकरी के लिए अप्लाई कर सकती हैं.

दूसरा टीचिंग की नौकरी में काम करने के फिक्स घंटे होते हैं और वीकैंड के अलावा सभी सरकारी और दूसरी बड़ी छुट्टियां भी मिलती हैं. टीचिंग ही एक ऐसी नौकरी है, जिस में गरमी और सर्दी की छुट्टियां होती हैं और इन सारे प्लस पौइंट के अलावा अब इस नौकरी में तनख्वाह भी बहुत अच्छी है.

लड़कियां और औरतें टीचिंग को इसीलिए अहमियत देती हैं, क्योंकि वे इस में अपनी प्रोफैशनल और पर्सनल लाइफ दोनों को अच्छी तरह मैनेज कर पाती हैं. टीचिंग लाइन में प्राइमरी, टीजीटी, पीजीटी, लैक्चरर, असिस्टैंट प्रोफैसर, एसोसिएट प्रोफैसर और प्रोफैसर जैसे प्रोफाइल होते हैं और इन के लिए अलगअलग क्वालिफिकेशन की जरूरत होती है.

पब्लिक रिलेशन ऐंड एडवरटाइजिंग

पब्लिक रिलेशन या पीआर एक ऐसा फील्ड है, जिस में अच्छी कम्युनिकेशन स्किल्स की सब से ज्यादा जरूरत होती है. अगर लड़की की पर्सनैलिटी में ये गुण हैं, तो पीआर में वह अच्छा कैरियर बना सकती है. आप 12वीं जमात या ग्रेजुएशन के बाद पीआर या एडवरटाइजिंग में डिप्लोमा या डिगरी कर सकती हैं.

आजकल हर कंपनी में पीआर के लिए नौकरी होती है. इस के अलावा आप तमाम सरकारी डिपार्टमैंट में भी पीआर के लिए अप्लाई कर सकती हैं. इस नौकरी के बाद सालाना पैकेज लाखों रुपए में मिल सकता है.

ब्यूटीशियन

ब्यूटीशियन का काम करने के लिए बहुत ज्यादा पढ़ालिखा होना जरूरी नहीं है. लड़कियों के लिए इस फील्ड में बहुत स्कोप है. अगर आप के पास थोड़ी पूंजी है, तो अपना ब्यूटी पार्लर भी चला सकती हैं. गांवदेहात में शहर के मुकाबले ब्यूटी पार्लर कम होते हैं, पर आज के समय में हर कोई सजनेसंवरने को अहमियत देता है. ऐसे में अगर किसी को ब्यूटीशियन का काम आता है, तो यह बेहतरीन बिजनैस बन सकता है. पढ़ीलिखी लड़की इस फील्ड के लेटैस्ट ट्रैंड्स और इक्विपमैंट्स अपना कर अच्छा प्रदर्शन कर सकती हैं. इस कारोबार को अपने घर से भी शुरू किया जा सकता है.

टिफिन बिजनैस

यह बिजनैस गांवदेहात से ज्यादा शहरों में चलने वाला बिजनैस है. इस बिजनैस को आप अपने घर पर ही या कोई जगह ले कर शुरू कर सकती हैं. इसे शुरू करने के लिए ज्यादा रुपयों की जरूरत नहीं होती है. आप कम लागत में शुरुआत में ही कम से कम 10,000 से 12,000 रुपए हर महीने कमा सकती हैं. आजकल रोजगार के मकसद से लोग अपने घरपरिवार से दूर जा कर रहते हैं. ऐसे में उन्हें घर का खाना नहीं मिल पाता है. इस को देखते हुए आज टिफिन सर्विस की मांग बहुत ज्यादा बढ़ गई है. आप को बस किसी भी पीजी वाले या औफिसियल इलाके में जा कर वहां रहने वाले लोगों से बात करनी होगी. इस के अलावा आप पंपलैट वगैरह की मदद से भी अपनी टिफिन सर्विस का प्रमोशन कर सकती हैं आजकल सोशल मीडिया भी अपने बिजनैस का प्रचार करने का अच्छा जरीया है. आप सोशल मीडिया में अच्छे तरीके से अपने काम का प्रचार कर सकती हैं.

आर्टिफिशियल जूलरी

इन दिनों लड़कियां और औरतें रास्ते में चोरों द्वारा छीन लिए जाने के डर से सोने के गहने नहीं पहनती हैं. ऐसे में एक औप्शन है आर्टिफिशियल जूलरी पहनना. आजकल बाजार में अलगअलग तरह की बहुत ही खूबसूरत दिखने वाली आर्टिफिशियल जूलरी मिलती है. ऐसे में पढ़ीलिखी लड़कियां बहुत कम पैसा लगा कर घर में बैठेबैठे ही आर्टिफिशियल जूलरी का काम शुरू कर सकती हैं.

औनलाइन काम

घर से काम करने के लिए आज बहुत सारे औप्शन हैं. औनलाइन काम करना भी इन में से एक है. आप अपनी क्वालिफिकेशन और स्किल के मुताबिक किसी भी तरह का काम कर सकती हैं. अगर आप को लेखन पसंद है, तो आप फ्रीलांस लेखन कर सकती हैं. बहुत सी कंपनी अपने अलगअलग प्रोजैक्ट के लिए लोगों को काम देती हैं. लड़कियां चाहे तो मार्केटिंग का काम भी कर सकती हैं और ऐसी किसी कंपनी को भी जौइन कर सकती हैं. अगर आप को सिलाईकढ़ाई या फैशन डिजाइनिंग में इंटरैस्ट है, तो औनलाइन पेज बना कर अपने डिजाइन किए गए कपड़ों की जानकारी दे सकती हैं और बिजनैस शुरू सकती हैं. आप अपना बुटीक भी खोल सकती हैं.

ट्यूशन पढ़ाना

अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद लड़कियां बच्चों को पढ़ाने का काम भी कर सकती हैं. वैसे भी बहुत सी लड़कियों को पढ़ाना बहुत अच्छा लगता है. इस तरीके से वे खूब पैसे कमा सकती हैं. पढ़ाने के भी 2 तरीके हो सकते हैं. पहला घर बैठेबैठे और दूसरा औनलाइन कोचिंग देने का काम. छोटे बच्चों को ट्यूशन देने का काम भी किया जा सकता है.

कब तक होते रहेंगे छुआछूत के शिकार दलित

उम्मीदों के चिराग रोशन हो रहे हैं. सत्तारूढ़ दल का ‘सब का साथ, सब का विकास’ नारा भी उम्मीदों को चार चांद लगा देता है.तसवीर कुछ इस अंदाज में पेश होती है, जैसे समाज में बराबरी आ रही है. दलित तबका अब अनदेखा नहीं है और उस की जिंदगी में खुशियां दस्तक दे रही हैं. यह सपने सरीखा हो सकता है, लेकिन जमीनी हकीकत ऐसी नहीं है. जातिवाद और छुआछूत की बीमारी ने 21वीं सदी में भी अपने लंबे पैर पसार रखे हैं. इस पर शर्मनाक बात यह है कि रूढि़वाद के बोझ से लोग निकलने को तैयार नहीं हैं. यों तो संविधान में सब को बराबरी का हक है. कोई दिक्कत आए, तो इसे लागू कराने के लिए सख्त कानून भी बने हुए हैं, इस के बावजूद गैरबराबरी धड़ल्ले से जारी है.

18 अप्रैल, 2017 का ही एक मामला लें. उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के कोतवाली इलाके में एक दलित के यहां शादी समारोह में बरातियों के पीने के लिए फिल्टर पानी के जार मंगवाए गए. सप्लायर वहां पहुंचा, तो उसे जाति का पता चल गया. इस से पानी के अछूत होने का भयानक डर पैदा हो गया. लिहाजा, सप्लायर जार वापस ले जाने लगा.

इस पर दलित भड़क गए और नौबत मारपीट तक आ गई. पुलिस पहुंची और मामला समझौते से निबट गया, लेकिन बात क्या सिर्फ इतनी सी थी? जालौन जिले के झांसीकानपुर हाईवे के नजदीक गिरथान गांव में 16 अप्रैल को मोटा चंदा इकट्ठा कर के सामूहिक भंडारा कराया गया. गांव के दलितों से भी इस के लिए चंदा वसूला गया था.

भोज चल ही रहा था कि इसी बीच कुछ दलित नौजवानों ने भी भोज परोसने के लिए पूरियों की टोकरियां उठा लीं. बस, इस बात पर दबंगों की त्योरियां चढ़ गईं. उन्होंने सोचा कि शायद चंदा देने के बाद ये बराबरी के भरम के शिकार हो गए हैं. दलितों को वहीं बेइज्जत किया गया. उन्होंने न सिर्फ खाना खाने से इनकार कर दिया, बल्कि दलितों को अलग बिठाने को भी कहा.

दलितों ने इस का विरोध किया, तो झगड़ा हो गया. इतने पर भी शांति नहीं हुई, तो दबंगों ने फरमान जारी कर दिया कि दलितों का बहिष्कार किया जाए. इस फरमान को तोड़ने वालों पर एक हजार रुपए जुर्माना लगाने के साथ ही सरेआम 5 जूते भी मारे जाएंगे.

गांव में बाल काटने की 2 दुकानें थीं. एक ने झगड़े के चक्कर में दुकान बंद कर दी और दूसरे ने दलितों के बाल काटने से इनकार कर दिया. दूसरे दुकानदारों ने भी उन्हें जरूरत का सामान देना बंद कर दिया. ट्यूशन पढ़ाने वाले एक नौजवान ने दलितों के 5 बच्चों को ट्यूशन आने से रोक दिया.

बात अफसरों तक पहुंची. वे भी समझाने के सिवा कुछ नहीं कर सके. आखिरकार दलितों को ही झुकना पड़ा. दलित बुजुर्ग तुलाराम के मुताबिक, कुएं से पानी भरने से ले कर दूसरी कई बातों में दलित भेदभाव के शिकार रहे हैं. साल 1952 में जब वे 5 साल के थे, तब से यही सब देख रहे हैं.

इसी तरह हाथरस जिले के छीतीपुर गांव में कुछ दलित सार्वजनिक जगह पर हो रही भागवत कथा सुनने के लिए बैठ गए, जिस का आयोजन जाति विशेष के लोगों द्वारा कराया जा रहा था. दलितों को देख कर वे भड़क गए और उन पर आयोजन को अछूत करने का आरोप लगा कर गालीगलौज की. विरोध करने पर उन के साथ मारपीट कर दी गई.

इस घटना में 6 दलित घायल हो गए थे. बाद में कई नेता हमदर्दी का मरहम लगाने वहां पहुंचे, लेकिन आरोपियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही की मांग करने से वे हिचक रहे थे.

उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के लोयन गांव का मामला लें. यहां दबंगों को सार्वजनिक नल से दलितों के पानी ले जाने पर एतराज था. रोक लगाने पर दलितों ने विरोध किया, तो बदले में उन्हें गालियां खानी पड़ीं. इतना ही नहीं, दलितों को कई तरह की पाबंदियों का फरमान सुना दिया गया. प्रशासन के दखल से मामला सुलझाया गया.

इसी तरह उत्तराखंड के जयरामपुर गांव में दलितों को अछूत होने के चलते सरकारी नल से पानी लेने से रोक दिया गया. इस की शिकायत तो की गई, लेकिन कोई स्थायी हल नहीं निकला.

चंदौसी के गांव गंगुरा में भी खेतों पर घास काटने गई चरन सिंह की 13 साला बेटी सुधा एक मंदिर में लगे नल पर पानी पीने के लिए चली गई, लेकिन पुजारी और वहां बैठे लोगों ने उसे पानी नहीं पीने दिया. चरन सिंह इस बात का विरोध जताने पहुंचा, तो उस के साथ मारपीट की गई.

इलाहाबाद के पुरखास गांव की रहने वाली एक किशोरी को दबंग नौजवान ने ऐसी सजा दी, जिसे वह शायद ही कभी भूल पाए. ये दबंग आमतौर पर पिछड़ी जातियों के थे, जो जमींदारी खत्म होने से पहले दलितों सी हालत में थे और उन के साथ ठाकुरब्राह्मण बैठ कर खाना नहीं खा सकते थे. अब वे अपने को ठाकुरब्राह्मण साबित करने में लग गए हैं.

दलित समुदाय के संगमलाल की बेटी सुशीला खेत पर घास काटने गई थी. इस दौरान उस ने एक दबंग के खेत में शकरकंद के पौधे की पत्तियां भी काट लीं. एक दलित लड़की द्वारा अपने खेत की पत्ती काटने पर गुस्से से तिलमिलाए दबंग के बेटों ने दरांती छीन कर उस के दाएं हाथ की 2 उंगलियों पर वार कर दिया.

इस हैवानियत का पता जब गांव वालों को चला, तो उन्होंने आरोपियों के पिता को पकड़ कर पीट दिया. मामला पुलिस तक पहुंच गया. सुशीला का बड़े अस्पताल में उपचार कराया गया. इस घटना से दबंगों की नजर में दलितों की हैसियत का अंदाजा लगाया जा सकता है.

दलित चिंतक चाहते हैं कि ऐसी सामाजिक बुराई के खिलाफ लगातार आवाज बुलंद की जानी चाहिए. संवैधानिक हकों को मारने वालों के खिलाफ कानून का कड़ाई से पालन हो और उस में डर पैदा हो.

हालांकि दलितों की भलाई के लिए कई तरह के कानून बने हैं, पर कागजी और कानूनी हकों को दबंग सामाजिक तौर पर देने को आज भी तैयार नहीं हैं. बात सिर्फ कानून बनाने से हल होती नहीं दिखती, बल्कि इस के लिए सामाजिक पहल की भी जरूरत है.

दुखी दलित ने खोद दिया कुआं

एक दलित की बीवी ऊंची जाति वाले पड़ोसियों के कुएं से पानी लेने गई, तो उन्होंने छुआछूत की बात कह कर ताने मारे और उसे बेइज्जत कर के लौटा दिया. अमनपसंद पति ने अपने ही अंदाज में जवाब देने की ठान ली. एक दिन उस ने जातिवाद को ऐसा करारा जवाब दिया कि सब हैरान रह गए.

महाराष्ट्र के वाशिम जिले के ताजणे का दिल पत्नी की बेइज्जती से बहुत दुखी हुआ. उस ने एक महीने से ज्यादा की गई मेहनत के बाद बिना किसी की मदद से अपना ही कुआं खोद दिया.

ताजणे 8 घंटे की मजदूरी कर के घर आने के बाद हर रोज तकरीबन 6 घंटे खुदाई करता था. जब वह कहता था कि दलितों के लिए अलग कुआं बना रहा है, तो लोग उस का मजाक बनाते थे, लेकिन उस ने इस की परवाह नहीं की. एक दिन ऐसा आया कि कुएं से पानी निकला, तो सब हैरान रह गए.

दलितों की खुशियों पर पहरा

आलम यह है कि दलितों की खुशियों पर भी दबंगों का पहरा होता है. उन के हिसाब से दलितों को उन के सामने खुशियां मनाने की इजाजत नहीं होती. ठीक वैसे जैसे पहले पिछड़ों यानी शूद्रों को खुशियां मनाने पर पाबंदी थी. हां, वे नौकर थे, पर अछूत नहीं.

अब दलितों की शादियों में बैंडबाजे बजने और दूल्हों के घोड़ी पर बैठने पर दबंग एतराज करते हैं. ऐसा करने की कोशिश में उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ती है. मध्य प्रदेश के मालवा जिले में माना गांव के चंदेर की बेटी की शादी थी. चंदेर ने बैंड पार्टी बुलवा ली. यह बात ऊंची जातियों के दबंगों को नागवार गुजरी. उन्होंने उसे सामाजिक बहिष्कार की धमकी दी. इस के बावजूद बैंडबाजा बजा, तो दलितों ने खुशियां मनाईं.

दलित की बेटी की शादी में बैंडबाजा बजने से दबंग बुरी तरह नाराज हो गए. बदला लेने के लिए उन्होंने दलितों के कुएं में मिट्टी का तेल डाल दिया.

इसी तरह राजस्थान के जयपुर के हसनपुरा गांव में एक दलित के घोड़ी पर बैठने को ले कर दबंग भड़क गए. झगड़ा बढ़ गया, तो दलितों ने पुलिस में फरियाद कर दी. इस बात से नाराज हो कर दबंगों ने शादी के घर में काम आ रही पानी की टंकी में जहरीली चीज मिला दी, जिस से तकरीबन एक दर्जन लोग बीमार हो गए.

फिरोजाबाद के एक गांव में दबंगों ने दलितों की बरात रोक दी. काफी मिन्नतों के बाद भी उन्होंने दलित को घोड़ी पर नहीं चढ़ने दिया. दरअसल, ऊंची जाति के गुमान में रहने वाले दबंग नहीं चाहते कि दलित गांवों में उन की बराबरी कर के खुशियां मनाएं.

जाति न पूछो प्यार में

वैलेंटाइन डे पर प्यार करने से पहले जाति और धर्म को बीच में नहीं लाना चाहिए. अगर युवा अपनी सोच बदलेंगे तो समाज में बदलाव होगा. प्यार और शादी को ले कर ज्यादातर युवाओं की यह सोच होती है कि प्यार जहां हो, शादी भी वहीं हो. कुछ युवा प्यार और शादी के मुद्दे को अलग रखना चाहते हैं. उन का कहना है कि शादी पेरैंट्स की मरजी से ही होनी चाहिए. भारत में प्रेम और उस को ले कर चल रहे प्रयोग बहुत अलगअलग होते हैं. भारतीय फिल्में देखने से ऐसा लगता है कि युवा भारतीयों के लिए रोमांस और प्रेम के सिवा कोई दूसरा काम नहीं है. लेकिन एक बड़ा वर्ग ऐसा है जो अभी भी ‘अरेंज मैरिज’ को अपनी पहली पसंद मानता है.

लव मैरिज के प्रति बदल रहा नजरिया

2018 के सर्वे के मुताबिक, एक लाख 60 हजार से अधिक भारतीय परिवारों में 93 प्रतिशत शादीशुदा लोगों ने कहा कि उन की शादी अरेंज मैरिज है. महज 3 प्रतिशत लोगों ने अपने विवाह को प्रेम विवाह बताया जबकि केवल 2 प्रतिशत लोगों ने अपनी शादी को लव कम अरेंज बताया. इस से जाहिर है कि भारत में परिवार के लोग शादियां तय करते हैं. समय के साथ इस स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है.

भारत में अरेंज शादियों की विशेषता अपनी जाति में ही शादी करना है. 2014 के एक सर्वे में शहरी भारत के 70 हजार लोगों में 10 प्रतिशत से भी कम लोगों ने माना कि उन के अपने परिवार में जाति से अलग से कोई शादी हुई है. अंतर्धामिक शादियां तो और भी कम होती हैं. शहरी भारत में महज

5 प्रतिशत लोगों ने माना है कि उन के परिवार में किसी ने धर्म से बाहर जा कर शादी की है. भारत में युवा अमूमन जाति के बंधन को तोड़ कर शादी करने की इच्छा जताते हैं लेकिन वास्तविकता में काफी अंतर है.

 हावी है रूढि़वादी सोच

लड़का व लड़की अगर दलित या दूसरे धर्म के हैं तो तमाम मापदंडों, शिक्षा, वेतन, गोरा रंग में ठीक होने के बाद भी उसे शादी के लिए ऊंची जातियों में पसंद नहीं किया जाता है. जिन को ऐसी शादियां करनी होती हैं वे विद्रोह कर के ही कर सकते हैं. इस के अपने खतरे हैं. घर से भागने से ले कर पुलिस, कचहरी, थाना और कोर्ट तक के चक्कर लगाने होते हैं. लड़की के मातापिता की ओर से अपहरण और बलात्कार के मामले दर्ज करा दिए जाते हैं. युवा जोड़ों के बीच शारीरिक संबंधों को बलात्कार की श्रेणी में रख दिया जाता है.

पिछले एक दशक में भारत में जिस तरह से ‘लव जिहाद’ और कट्टर जातिवाद का हौवा खड़ा किया गया है उस से गैरजाति और गैरधर्म के बीच शादी करने वालों के लिए चुनौतियां बढ़ गई हैं. कई राज्यों में महिलाओं को विवाह के बाद जबरन धर्मांतरण के लिए दबाव भी डाला जाता है. अंतर्धामिक शादी करने वालों पर भी प्रतिबंध बढ़ाया गया है. इस को एक तरह से प्रेम पर पुलिस का पहरा माना जा सकता है. प्रेम करने वालों पर इस तरह की रोकटोक से अंतर्धामिक जातीय शादियों पर प्रभाव पड़ेगा.

कोर्ट के तमाम बार फैसला देने के बाद भी भारत में किसी का प्रेम में होना एक निजी मामला बिलकुल नहीं होता. समाज, घरपरिवार ही तय करता है कि कौन किस से प्रेम और शादी करेगा. भारतीय समाज हमेशा से ही अपनी संस्कृति के लिए जाना जाता रहा है. आज इस संस्कृति का मतलब बदल चुका है. संस्कृति की रक्षा के नाम पर इस का दुरुपयोग किया जा रहा है. अब यहां मोरल पुलिसिंग होने लगी है. रूढि़वादी सोच से ग्रसित लोगों ने समाज में प्रेम को भी अपना निशाना बनाया हुआ है. भारतीय समाज में कोई अपनी मरजी से अपना जीवनसाथी चुनता है तो उसे तुच्छ और घृणा की नजर से देखा जाता है, जैसे, उस ने कोई अपराध किया हो. उन को समाज के ताने सुनने पड़ते हैं.

 प्यार पर हावी होती नफरती सोच

समाज में प्रेम संबंधों के प्रति नफरत इस कदर हावी है कि अगर लड़की के घर पर उस के प्रेम संबंध के बारे में पता चलता है तो परिवार के सदस्य इसे समाज में अपनी बेइज्जती और सम्मान पर लगा दाग सम?ाते हैं. यदि कोई लड़कालड़की घरवालों की सहमति के साथ प्रेम विवाह करता है तो लड़की के घर वाले यह बात समाज के सामने उजागर नहीं होने देते और सभी रिश्तेदार आदि से छिपाने की कोशिश करते हैं. वे इस को अरेंज्ड मैरिज ही बताते हैं. प्रेम विवाह को यह समाज भारतीय संस्कृति के खिलाफ ही मानता है. समाज में फैली ऐसी ही रूढि़वादी विचारधारा से ‘औनर किलिंग’ जैसे अपराध बढ़ते हैं.

वैसे देखा जाए तो भारतीय संस्कृति प्रेम की मुखालफत नहीं करती है. कुछ रूढि़वादी लोगों ने इस धारणा को बढ़ावा दिया है. ऐसे लोग हमेशा से ही पितृसत्ता के ही पक्ष में रहते हैं. किसी लड़की का अपनी मरजी से अपना साथी चुनना पितृसत्ता को चुनौती देना माना जाता है. इसलिए लोग प्रेम विवाह के विरुद्ध कई तरह के अभियान चलाते हैं.

उदाहरण के तौर पर बजरंग दल, जिस का मानना होता है कि वैलेंटाइन डे यानी 14 फरवरी विदेशी संस्कृति है जो युवाओं को भ्रमित कर रही है. इस तरह के लोग वैलेंटाइन डे के दिन सार्वजनिक स्थलों, सड़क आदि पर दिखने वाले हर जोड़े, यहां तक साथ दिखने वाले हर लड़कालड़की को बिना जाने कि वे प्रेमी जोड़े हैं भी या नहीं, परेशान करते हैं.

कानून ने भले ही बालिग लड़कालड़की को अपनी इच्छा अनुसार जीवनसाथी चुनने को या लिवइन रिलेशनशिप आदि का अधिकार दिया हो पर समाज अभी भी इस के विरोध में ही रहता है. सामाजिक तौर पर इसे अपनाया नहीं गया है. प्रेम के खिलाफ वही रूढि़वादी अवधारणाएं फैली हुई हैं. इन के कारण इस तरह के संबंधों में हत्या की घटनाएं भी तेजी से बढ़ रही हैं. पिछले कुछ वर्षों से देश में लगातार ऐसे प्रेम संबंधों की भयानक तसवीरें सामने आ रही हैं. अब देश में हर साल ढाईतीन हजार हत्याएं प्रेम संबंधों में बिखराव के चलते हो रही हैं.

प्रेम में बढ़ता अपराध

राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, प्रेम या अवैध संबंधों के कारण देशभर में हत्याएं तेजी से बढ़ी हैं. आंकड़ों के अनुसार, 2017 से 2021 तक देशभर में प्रेम संबंधों या अवैध संबंधों के कारण होने वाली हत्याओं की संख्या 2,706 से बढ़ कर 3,139 हो गई.

हाल ही में श्रद्धा वालकर की आफताब अमीन पूनावाला द्वारा की गई हत्या चर्चा में है. आफताब अमीन पूनावाला 2018 से श्रद्धा वालकर के साथ रिश्ते में था. 18 मई, 2022 को दोनों के बीच हुए ?ागड़े के बाद आफताब ने श्रद्धा का गला घोंट दिया. इस के बाद उस ने उस के शरीर के कई टुकड़े कर दिए और शरीर के हिस्सों को अलगअलग जगहों पर ठिकाने लगा दिया.

 आफताब पूनावाला को अपराध के

6 महीने बाद गिरफ्तार किया गया. दोनों 2019 से लिवइन रिलेशनशिप में थे और 8 मई, 2022 को दिल्ली चले आए थे. वे पहाड़गंज के एक होटल में 7 दिनों तक रहे और फिर 15 मई को श्रद्धा की हत्या के ठीक 3 दिन पहले किराए के मकान में शिफ्ट हो गए थे. आफताब ने अपने अपराध के हर सुबूत को मिटाने के लिए महीनों तक काम किया. एक विश्लेषण के अनुसार, वर्ष 2017 में विश्व में लगभग 30 हजार महिलाएं अपने प्रेमियों के हाथों मौत के घाट उतारी गईं. अपने दोस्त के हाथों मारे गए लोगों में 80 फीसदी महिलाएं रही हैं.

संयुक्त राष्ट्र का दावा है कि प्रेम संबंधों के कारण विश्व स्तर पर सालाना 5,000 हत्याओं में 1,000 हत्याएं तो अकेले भारत में हो रही हैं. गैरसरकारी संगठन बता रहे हैं कि विश्व में ऐसी हत्याओं की संख्या 20 हजार तक पहुंच चुकी है. भारत में प्रेम संबंधों में रोजाना 7 हत्याएं, 14 आत्महत्याएं और 47 अपहरण की घटनाएं हो रही हैं.

पुलिस रिकौर्ड के मुताबिक, इन दिनों 90 में से 25 हत्याएं प्रेम संबंधों और अवैध संबंधों को ले कर हो रही हैं. ऐसी हत्याओं के पीछे मूल कारण गलतफहमी, व्यभिचार और घरेलू हिंसा है. ऐसी ज्यादातर हत्याओं के खुलासे पीडि़त के अंतिम फोन कौल्स से हो रहे हैं. ऐसे हत्यारे पुलिस की मामूली सख्ती पर ही पूरा राज उगल देते हैं.

 सोच बदलने की जरूरत

मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक, इन दिनों का प्रेम संबंध इंसान को अंदर से बहुत पजेसिव बना दे रहा है. लड़की से उम्मीद के मुताबिक निर्वाह नहीं मिलने पर पुरुष पार्टनर प्रतिशोध पर आमादा हो जा रहे हैं. भारत में हर साल 1,000 से अधिक हत्याएं औनर किलिंग की हो रही हैं, जिन में प्रतिवर्ष हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में करीब 900 और बाकी देश में लगभग 300 औनर किलिंग हो रही हैं. अवैध प्रेम संबंधों में होने वाली हत्याओं का आंकड़ा तो और भी भयावह है.

आजकल के प्रेमी अपनी महिला दोस्तों पर चोरीछिपे नजर रखते हुए उन का उत्पीड़न करते रहते हैं. उन का रोमांस पहले तो तेजी से गहरे संबंधों में तबदील हो जाता है, फिर वे स्वयं पर नियंत्रण खो कर संबंध पर हावी होने लगते हैं. वे अकसर आत्महत्या की धमकियां देते हैं, प्रतिशोध की साजिश रचने लगते हैं. जबरदस्ती महिला दोस्त पर नियंत्रण रखने की प्रवृत्ति के कारण वे उन्माद के जनून में अंधे हो कर हत्या तक कर बैठते हैं. प्यार में एकदूसरे को समान अधिकार देने की जरूरत होती है. जहां यह नहीं होता वहीं अपराध घटता है.

ऐसे में सोच बदलने की जरूरत है. प्यार में सम्मान देना सीखें. अगर कहीं संबंधों में प्यार और सम्मान खो रहा है तो एकदूसरे के प्रति अपराध करने की जगह पर अलग हो जाएं. अगर प्यार में बढ़ते अपराध और भेदभाव को रोका नहीं गया तो प्यार का भाव ही खत्म हो जाएगा. इस से रूढि़वादी सोच रखने वालों की धारणा मजबूत होगी. जरूरत इस बात की है कि युवा प्यार को आगे बढाएं और यह साबित करें कि प्यार से बेहतर कुछ भी नहीं है. तभी प्यार के प्रति समाज की सोच और नजरिया बदल सकेगा.

घरेलू हिंसा कानून सास बहू दोनों के लिए

मेरे महल्ले में एक वृद्ध महिला अपने घर में अकेली रहती हैं. वे बेहद मिलनसार व हंसमुख हैं. उन का इकलौता बेटा और बहू भी इसी शहर में अलग घर ले कर रहते हैं. एक दिन जब मैं ने उन से इस बारे में जानना चाहा तो उन्होंने जो कुछ भी बताया वह सुन कर मेरे रोंगटे खड़े हो गए.

उन्होंने बताया, ‘‘मेरे बेटे ने प्रेमविवाह किया था. फिर भी हम ने कोई आपत्ति नहीं की. बहू ने भी आते ही अपने व्यवहार से हम दोनों का दिल जीत लिया. 2 साल बहुत अच्छे से बीते. लेकिन मेरे पति की मृत्यु होते ही मेरे प्रति अप्रत्याशित रूप से बहू का व्यवहार बदलने लगा. अब वह बेटे के सामने तो मेरे साथ अच्छा व्यवहार करती, परंतु उस के जाते ही वह बातबात पर मुझे ताने देती और हर वक्त झल्लाती रहती. मुझे लगता है कि शायद अधिक काम करने की वजह से वह चिड़चिड़ी हो गई है, इसलिए मैं ने उस के काम में हाथ बंटाना शुरू कर दिया. मगर उस ने तो जैसे मेरे हर काम में मीनमेख निकालने की ठान रखी थी.

‘‘धीरेधीरे वह घर की सभी चीजों को अपने तरीके से रखने व इस्तेमाल करने लगी. हद तो तब हो गई जब उस ने फ्रिज और रसोई को भी लौक करना शुरू कर दिया. एक दिन वह मुझ से मेरी अलमारी की चाबी मांगने लगी. मैं ने इनकार किया तो वह झल्लाते हुए मुझे अपशब्द कहने लगी. जब मैं ने यह सबकुछ अपने बेटे को बताया तो वह भी बहू की ही जबान बोलने लगा. फिर तो मुझे अपनी बहू का एक नया ही रूप देखने को मिला. वह जोरजोर से रोनेचिल्लाने लगी तथा रसोई में जा कर आत्महत्या का प्रयास भी करने लगी. साथ ही, यह धमकी भी दे रही थी कि वह यह सबकुछ वीडियो बना कर पुलिस में दे देगी और हम सब को दहेज लेने तथा उसे प्रताडि़त करने के इलजाम में जेल की चक्की पिसवाएगी. उस समय तो मैं चुप रह गई, परंतु मैं ने हार नहीं मानी.

‘‘अगले ही दिन बिना बहू को बताए उस के मातापिता को बुलवाया. अपने एक वकील मित्र तथा कुछ रिश्तेदारों को भी बुलवाया. फिर मैं ने सब के सामने अपने कुछ जेवर तथा पति की भविष्यनिधि के कुछ रुपए अपने बेटेबहू को देते हुए इस घर से चले जाने को कहा. मेरे वकील मित्र ने भी बहू को निकालते हुए कहा कि महिला संबंधी कानून सिर्फ तुम्हारे लिए नहीं, बल्कि तुम्हारी सास के लिए भी है. तुम्हारी सास भी चाहे तो तुम्हारे खिलाफ रिपोर्ट कर सकती है. तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम सीधी तरह से इस घर से चली जाओ. मेरा यह रूप देख कर बहू और बेटा दोनों ही चुपचाप घर से चले गए. अब मैं भले ही अकेली हूं परंतु स्वस्थ व सुरक्षित महसूस करती हूं.’’

उक्त महिला की यह स्थिति देख कर मुझे ऐसा लगा कि अब इस रिश्ते को नए नजरिए से भी देखने की आवश्यकता है. सासबहू के बीच झगड़े होना आम बात है. परंतु, जब सास अपनी बहू के क्रियाकलापों से खुद को असुरक्षित व मानसिक रूप से दबाव महसूस करे तो इस रिश्ते से अलग हो जाना ही उचित है. बदलते समय और बिखरते संयुक्त परिवार के साथ सासबहू के रिश्तों में भी काफी परिवर्तन आया है.

एकल परिवार की वृद्धि होने के कारण लड़कियां प्रारंभ से ही सासविहीन ससुराल की ही अपेक्षा करती हैं. वे पति व बच्चे तो चाहती हैं परंतु पति से संबंधित अन्य कोई रिश्ता उन्हें गवारा नहीं होता. शायद वे यह भूल जाती हैं कि आज यदि वे बहू हैं तो कल वे सास भी बनेंगी.

फिल्मों और धारावाहिकों का प्रभाव:  हम मानें या न मानें, फिल्में व धारावाहिक हमारे भारतीय परिवार व समाज पर गहरा असर डालते हैं. पुरानी फिल्मों में बहू को बेचारी तथा सास को दहेजलोभी, कुटिल बताते हुए बहू को जला कर मार डालने वाले दृश्य दिखाए जाते थे.

कई अदाकारा तो विशेषरूप से कुटिल सास का बेहतरीन अभिनय करने के लिए ही जानी जाती हैं. आजकल के सासबहू सीरीज धारावाहिकों का फलक इतना विशाल रहता है कि उस में सबकुछ समाया रहता है. कहीं गोपी, अक्षरा और इशिता जैसी संस्कारशील बहुएं भी हैं तो कहीं गौरा और दादीसा जैसी कठोर व खतरनाक सासें हैं. कोकिला जैसी अच्छी सास भी है तो राधा जैसी सनकी बहू भी है. अब इन में से कौन सा किरदार किस के ऊपर क्या प्रभाव डालता है, यह तो आने वाले समय में ही पता चलता है.

आज के व्यस्त समाज में आशा सहाय और विजयपत सिंघानिया की स्थिति देख कर तो यही लगता है कि अब हम सब को अपनी वृद्धावस्था के लिए पहले से ही ठोस उपाय कर लेने चाहिए. कई यूरोपियन देशों में तो व्यक्ति अपनी मृत्यु के बाद शोक मनाने के लिए भी सारे इंतजाम करने के बाद ही मरता है. हमारे समाज का तो ढांचा ही कुछ ऐसा है कि हम अपने बच्चों से बहुत सारी अपेक्षाएं रखते हैं.

हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार, बेटेबहू के हाथ से तर्पण व मोक्ष पाने का लालच इतना ज्यादा है कि चाहे जो भी हो जाए, वृद्ध दंपती बेटेबहू के साथ ही रहना चाहते हैं. बेटियां चाहे जितना भी प्यार करें, वे बेटियों के साथ नहीं रह सकते, न ही उन से कोई मदद मांगते हैं. कुछ बेटियां भी शादी के बाद मायके की जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेना चाहती हैं. और दामाद को तो ससुराल के मामले में बोलने का कोई हक ही नहीं होता.

भारतीय समाज में एक औरत के लिए सास बनना किसी पदवी से कम नहीं होता. महिला को लगता है कि अब तक उस ने बहू बन कर काफी दुख झेले हैं, और अब तो वह सास बन गई है. सो, अब उस के आराम करने के दिन हैं. सास की हमउम्र सहेलियां भी बहू के आते ही उस के कान भरने शुरू कर देती हैं. ‘‘बहू को थोड़ा कंट्रोल में रखो, अभी से छूट दोगी तो पछताओगी बाद में.’’

‘‘उसे घर के रीतिरिवाज अच्छे से समझा देना और उसी के मुताबिक चलने को कहना.’’

‘‘अब तो तुम्हारा बेटा गया तुम्हारे हाथ से’’, इत्यादि जुमले अकसर सुनने को मिलते हैं. ऐसे में नईनई सास बनी एक औरत असुरक्षा की भावना से घिर जाती है और बहू को अपना प्रतिद्वंद्वी समझ बैठती है. जबकि सही माने में देखा जाए तो सासबहू का रिश्ता मांबेटी जैसा होता है. आप चाहें तो गुरु और शिष्या के जैसा भी हो सकता है और सहेलियों जैसा भी.

यदि हम कुछ बातों का विशेषरूप से ध्यान रखें तो ऐसी विपरित परिस्थितियों से निबटा जा सकता है, जैसे-

  • नई बहू के साथ घर के बाकी सदस्यों के जैसा ही व्यवहार करें. उस से प्यार भी करें और विश्वास भी, परंतु न तो चौबीसों घंटे उस पर निगरानी रखें और न ही उस की बातों पर अंधविश्वास करें.
  • नई बहू के सामने हमेशा अपने गहनों व प्रौपर्टी की नुमाइश न करें और न ही उस से बारबार यह कहें कि ‘मेरे मरने के बाद सबकुछ तुम्हारा ही है.’ इस से बहू के मन में लालच पैदा हो सकता है. अच्छा होगा कि आप पहले बहू को ससुराल में घुलमिल जाने दें तथा उस के मन में ससुराल के प्रति लगाव पैदा होने दें.
  • बहू की गलतियों पर न तो उस का मजाक उड़ाएं और न ही उस के मायके वालों को कोसें. बल्कि, अपने अनुभवों का इस्तेमाल करते हुए सहीगलत, उचितअनुचित का ज्ञान दें. परंतु याद रहे कि ‘हमारे जमाने में…’ वाला जुमला न इस्तेमाल करें.
  • बहू की गलतियों के लिए बेटे को ताना न दें, वरना बहू तो आप से चिढ़ेगी ही, बेटा भी आप से दूर हो जाएगा.
  • अपने स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दें तथा घरेलू कार्यों में आत्मनिर्भर रहने का प्रयास करें.
  • समसामयिक जानकारियों, कानूनी नियमों, बैंक व जीवनबीमा संबंधी नियमों तथा इलैक्ट्रौनिक गैजेट्स के बारे में भी अपडेट रहें. इस के लिए आप अपनी बहू का भी सहयोग ले सकती हैं. इस से वह आप को पुरातनपंथी नहीं समझेगी, और वह किसी बात में आप से सलाह लेने में हिचकेगी भी नहीं.
  • अपने पड़ोसी व रिश्तेदारों से अच्छे संबंध रखने का प्रयास करें.
  • बेटेबहू को स्पेस दें. उन के आपसी झगड़ों में बिन मांगे अपनी सलाह न दें.
  • परंपराओं के नाम पर जबरदस्ती के रीतिरिवाज अपनी बहू पर न थोपें. उस के विचारों का भी सम्मान करें.

आखिर में, यदि आप को अपनी बहू का व्यवहार अप्रत्याशित रूप से खतरनाक महसूस हो रहा है तो आप अदालत का दरवाजा खटखटाने में संकोच न करें. याद रखिए घरेलू हिंसा का जो कानून आप की बहू के लिए है वह आप के लिए भी है.

कानून की नजर में

केंद्रीय महिला बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने एक अंगरेजी अखबार के जरिए यह कहा था कि घरेलू हिंसा कानून ऐसा होना चाहिए जो बहू के साथसाथ सास को भी सुरक्षा प्रदान कर सके. क्योंकि अब बहुओं द्वारा सास को सताने के भी बहुत मामले आ रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि हिंदू मैरिज कानून के मुताबिक, कोई भी बहू किसी भी बेटे को उस के मांबाप के दायित्वों के निर्वहन से मना नहीं कर सकती.

क्या कहता है समाज

भारतीय समाज के लोगों ने अपने मन में इस रिश्ते को ले कर काफी पूर्वाग्रह पाल रखे हैं. विशेषकर युवा पीढ़ी बहू को हमेशा बेचारी व सास को दोषी मानती है. युवतियां भी शादी से पहले से ही सासबहू के रिश्ते के प्रति वितृष्णा से भरी होती हैं. वे ससुराल में जाते ही सबकुछ अपने तरीके से करने की जिद में लग जाती हैं. वे पति को ममा बौयज कह कर ताने देती हैं और सास को भी अपने बेटे से दूर रखने की कोशिश करती हैं.

हकीकत: धर्म का धंधा, लूट का जरिया 

हम बचपन में जब कहानियों की कोई भी किताब पढ़ा करते थे, उन में एक कहानी इस टाइप की जरूर होती थी कि एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था. एक दानवीर राजा था, जो सवेरेसवेरे राज्य के 100 ब्राह्मणों को सोने की 100 मोहरें और 100 गाएं दान दिया करता था वगैरह.

सवाल उठता है कि रोजरोज इतना सोना, इतनी गाएं कहां से आती थीं?  मकसद सिर्फ एक था कि कैसे भी कर के ब्राह्मण को ‘बेचारा’ साबित कर दो, ताकि वह लोगों की दया का पात्र बना रहे और जितना हो सके कहानियों के जरीए दान की महिमा गाओ, ताकि सवेरेसवेरे जब ब्राह्मण किसी के घर की चौखट पर भिक्षा मांगने जाए तो उसे मंगता समझ कर दुत्कारें नहीं, बल्कि ब्राह्मण देवता समझ कर एक मुट्ठी की जगह 2 मुट्ठी आटा, दाल, चावल और दहीघी दे दें. तथाकथित धर्मग्रंथों में सबकुछ वही लिखा है, जो इन के लिए फायदे का सौदा था.

फायदे का धंधा

धर्म को धंधा बना कर चालाक लोगों द्वारा गरीबों, दलितों, पिछड़ों का शोषण करने की महज एक सोचीसमझी चाल है. यह एकतरफा वसूली है. आमजन के साथसाथ पूरे देश के भविष्य के लिए

यह खतरनाक है. मुफ्त में ठग कर खाने वाली आदत बड़ी खराब होती है. खुद तो निठल्ले हो कर खा ही रहे हैं, आम जनता की तरक्की को भी रोक देते हैं.

सालासर बालाजी मंदिर का पुजारी अपनी बेटी की शादी में 11 किलो सोना दे और करोड़ों रुपए खर्च कर डाले, तो इसे क्या कहेंगे, जबकि मंदिर की देखरेख के लिए एक ट्रस्ट बना हुआ है और ट्रस्ट में शामिल पुजारियों को तनख्वाह दी जाती है? 30,000 रुपए महीना तनख्वाह लेने वाला पुजारी इतना पैसा अपनी बेटी पर कहां से खर्च करेगा? यकीनी तौर पर चंदेचढ़ावे में हेराफेरी हुई होगी, नहीं तो इतना खर्चा इस समय 30,000 रुपए कमाने वाले के बूते में तो कतई नहीं है.

आजकल पुराने मंदिरों पर करोड़ों रुपए खर्च कर के उन्हें भव्य बनाया  जा रहा है. दिलचस्प बात तो यह है कि इन मंदिरों पर किसानों की कड़ी मेहनत की पूंजी इस्तेमाल की जा रही है. चाहे किसान फटे कपड़े पहने, उस के बच्चे भूखे रहें, वे पढ़ाई छोड़ दें, लेकिन मंदिर के लिए तो कमाई दान करनी ही होगी, वरना धर्म के ठेकेदार नाराज हो जाएंगे और स्वर्ग जाने का सर्टिफिकेट नहीं मिलेगा.

जब कोई इस तरह की लूटखसोट पर सवाल उठाता है, तो यह प्रचार किया जाता है कि तुम तो हिंदू विरोधी हो, कम्यूनिस्ट हो, देशद्रोही हो वगैरह. तो क्या करें? इस एक सवाल का जवाब इन का बड़ा हैरान करने वाला होता है कि लोग अपनी मरजी से देते हैं, तेरा मन नहीं है तो मत दे.

क्या आप को भी ऐसा ही लगता है कि लोग दान अपनी मरजी से देते हैं? नमूने के तौर पर, जब कोई औरत पेट से होती है, तो इन का प्रतिनिधि यह बताने आ जाता है कि आप का होने वाला बच्चा बड़ा काबिल होगा, बस थोड़ा

राहू का प्रकोप है. पैदा होने के 7वें दिन बला आएगी, जिसे कुछ मंत्र पढ़ कर और दान दे कर टाला जा सकता है. आप

10 ब्राह्मणों को खाना खिला कर कुछ दान दे दो, तो बुरा समय टल जाएगा.

अब 9 महीने तक पीड़ा झेलने वाली वह औरत क्या करेगी? उस के पास 2 ही रास्ते होते हैं. एक तो पंडितजी के कहे हिसाब से चल कर बच्चे को बचा ले या बच्चा पैदा करने के बाद 7वें दिन उसे मरने के लिए छोड़ दे. कोई भी मां अपने बच्चे को मरने के लिए नहीं छोड़ सकती, तो वह पहला रास्ता अपनाएगी और ढोंग पर अपनी मेहनत की कमाई लुटाएगी.

तो क्या हम यह मान लें कि उस मां ने डर कर नहीं, बल्कि अपनी इच्छा से यह खर्चा कर डाला? क्या 90 फीसदी लूट के ढोंग का बोझ उठा रहे इस बूढ़े धर्म की सफाई नहीं होनी चाहिए? कोई मर गया तो वह भूत बन कर परेशान न करे, इसलिए पंडितजी के कहे मुताबिक उधार ले कर ही सही, लेकिन झोलीझंडा उठा कर गंगा में अस्थि बहाने के लिए हरिद्वार की तरफ निकलना ही पड़ेगा, चाहे जिंदगी में कभी भूत देखा ही नहीं हो, लेकिन पंडितजी ने डराया है तो डरना ही पड़ेगा. मासूमों की अज्ञानता और नासमझी का इस तरह नाजायज फायदा उठाना क्या धर्म के हिसाब से सही हो सकता है? बिलकुल नहीं.

सीधी सी बात है कि या तो आप वैज्ञानिक शिक्षा व तार्किकता ला कर दुनिया के साथ मानव सभ्यता की दौड़ में साथ हो जाएं या ललाट पर भंवरें, कान के पीछे तिल या हथेली की खाज को खुजलातेखुजलाते किसी अनहोनी से डरते रहिए या धन खोजते रहिए.

आप चाहें तो पुराने काले जादू से भी चमत्कार की उम्मीद कर सकते हैं, क्योंकि ये लोग सब समस्याओं का समाधान ज्योतिष व जादू से करने का दावा जो करते हैं. हर गलीनुक्कड़ पर इन की दुकानें सजी हुई हैं.

गरीब लोगों का लुटना तकरीबन तय माना जाता है, चाहे वह मालीतौर से गरीब हो या मानसिक रूप से. मानसिक गरीब ज्यादा खतरनाक होते हैं, क्योंकि इन का लूट के अड्डों पर आनाजाना बहुत बड़ी आबादी पर असर डालता है. ये वे अमीर और पढ़ेलिखे लोग होते हैं, जिन्हें देख कर गरीब लोग भी अपना मानसिक आपा खो देते हैं.

साइरस मिस्त्री मंत्रों के बूते टाटा ग्रुप पर कब्जा जमाने की कोशिश करे तो इस का बहुत बड़ा असर पड़ता है, क्योंकि गरीब लोगों के दिमाग में भी यह घर कर जाता है कि शायद तिरुपति के दर्शन से अमिताभ बच्चन इतने बड़े स्टार बने होंगे या श्रीनाथजी को सोने का मुकुट चढ़ाने से ही अंबानी इतने बड़े उद्योगपति बने हैं.

मेरे एक दोस्त हैं. काफी समय बाद उन से मिला तो वे ललाट पर हाथ फेरते हुए कुछ इस तरह बताने लगे, ‘‘मेरा तीसरा नेत्र खुलता है, मैं मोहमाया

से बहुत दूर हो चुका हूं, मैं नौकरी छोड़ कर हरिद्वार जाऊंगा, भजन करूंगा…’’

तभी उन का 12 साल का बेटा पानी का गिलास ले कर आ गया. उस के पीछेपीछे 7 साल की बेटी भी आ गई. मैं बच्चों का मासूम चेहरा देख कर सहम सा गया. इन बच्चों का क्या होगा? था तो मैं भी जल्दी में, लेकिन उन बच्चों की मासूमियत ने मुझे रोक लिया. फिर 3 घंटे तक साइकोथैरेपी का दौर चला. वे दोस्त बिलकुल ठीक हो गए.

धर्म के धंधे का खेल

धर्म के धंधे का खेल समझना है, तो पितृपक्ष श्राद्ध और इस के कर्मकांडों को देखिए. आप को इस से बढि़या केस स्टडी दुनिया के किसी भी कोने में नहीं मिलेगी. ऐसी भयानक रूप से बेवकूफी से भरी बात सिर्फ ‘विश्वगुरु’ भारत के पास ही मिल सकती है.

एक तरफ तो यह माना जाता है कि पुनर्जन्म होता है. मतलब, घर के बुजुर्ग के मरने के बाद अगले जन्म में कहीं पैदा हो गए होंगे, तो दूसरी तरफ यह भी मानेंगे कि वे अंतरिक्ष में लटक रहे हैं और खीरपूरी के लिए तड़प रहे हैं.

अब सोचिए कि अगर पुनर्जन्म होता है, तो अंतरिक्ष में लटकने के लिए वे उपलब्ध ही नहीं हैं? किसी स्कूल में नर्सरी में पढ़ रहे होंगे या मिडडे मील वाले स्कूलों में खिचड़ी खा रहे होंगे.

अगर उन का अंतरिक्ष में लटकना सच है, तो पुनर्जन्म गलत हुआ. लेकिन हमारे पोंगा पंडित दोनों हाथ में लड्डू चाहते हैं, इसलिए मरने के पहले अगले जन्म को सुधारने के नाम पर भी उस आदमी से कर्मकांड करवाएंगे और मरने के बाद उस के बच्चों को पितरों का डर दिखा कर उन से भी खीरपूरी का इंतजाम जारी रखेंगे.

अब मजा यह है कि कोई कहनेपूछने वाला भी नहीं कि महाराज इन दोनों बातों में कोई एक ही सच हो सकती है. उस पर दावा यह कि ऐसा करने से खुशहाली आएगी, लेकिन इतिहास गवाह है कि हजारों साल तक यह सब करने के बावजूद यह देश गरीब और गुलाम बना रहा है. बावजूद इस कि हर घरपरिवार में श्राद्ध का ढोंग बहुत गंभीरता से निभाया जाता है.

हर कदम पर लूट

2 दिन की छुट्टी थी. मथुरा और वृंदावन 2 दिन में घूम सकते हैं. बृजभूमि है… कृष्ण से जुड़ी तमाम लीलाएं… यमुना का तीर… यह सब सोच कर मन में कौतूहल भी था. पर वहां जो देखा और अनुभव किया उस का धर्म और कर्म से कम और छल और छलावे से लेनादेना ज्यादा था.

मथुरा में प्रवेश करते ही खुद को पंडे या गाइड कहने वाले लोग आप को घेर लेंगे. कहेंगे कि महज 551 रुपए में दर्शन कराएंगे. आप की गाड़ी का दरवाजा अगर खुला मिल गया, तो आप के हां या न कहने के पहले आप की गाड़ी में बैठ भी जाएंगे.

दूरदराज से आए और इलाके से अपरिचित लोग आसानी से इन की बातों में आ जाते हैं, लेकिन बाद में पता चलता है कि ये 551 रुपए आप को काफी महंगे पड़ने वाले हैं. दरअसल, यह पूरा रैकेट है. गाइड आप को मंदिर के बाहर तक ले जाता है और अंदर मौजूद किसी पंडित के हवाले कर देता है.

मथुरा में ऐसा ही एक पंडानुमा गाइड हमें मथुरा से गोकुल ले गया, बिना हमें ठीक से बताए कि वह हमें कहां ले जा रहा है. रास्ते में वह कुछ बातें बारबार दोहराता रहा, जैसे गाय को दान देना चाहिए, इस से उद्धार होगा वगैरह.

मंदिर में गाइड ने सब को पंडित के हवाले कर दिया. पंडितजी भी आते ही समझाने लगे कि गाय के नाम पर दान देना कितने पुण्य की बात होती है. तब समझ में आया कि वह गाइड दिमाग में बातें पहले से ही भर रहा था, ताकि पंडितजी की बात मानने में हमें आसानी हो.

यहां तक तो ठीक था. इस के बाद तो पंडितजी ने कमाल ही कर दिया. कहा, पूजा के बाद दान देना होगा. इस ‘दान देना होगा’ में आग्रह नहीं, बल्कि आदेश था. उस पर तुर्रा यह कि दान उन की बताई राशि के अनुसार देना पड़ेगा, जिस में न्यूनतम स्तर तय था. उस से ज्यादा दे पाए तो कहना ही क्या. दान न हुआ मानो इनकम टैक्स हो गया कि न्यूनतम कर देना लाजिमी है. भावनात्मक दबाव बनाने के लिए पंडितजी बोले, ‘‘मंदिर में संकल्प करो कि बाहर दानपात्र में कितने पैसे दोगे, तभी बाहर जाओ.’’

क्या इस के लिए आप के मन में धार्मिक ब्लैकमेल के अलावा कोई शब्द उभरता है? मन दुखी था कि कैसी लूटखसोट है? धार्मिक लूट का रैकेट बना रखा है.

वापस लौटने पर एक सहयोगी ने बताया कि जगन्नाथपुरी जैसी जगहों पर तो हालात इस से भी बुरे हैं. इस तरह ठगने वाले लोग धर्मधर्म में फर्क नहीं करते, क्योंकि एक दोस्त ने बताया कि अजमेर शरीफ व पुष्कर जैसी जगहों पर भी लोगों को कुछ ऐसे ही अनुभवों से गुजरना पड़ता है.

धर्मगुरु और उन के ग्राहक

धर्म एक ऐसा नशा है, अगर सिर पर चढ़ जाए तो आप ऐसे तथाकथित धर्म के वशीभूत हो कर अनेक तरीके से उन तथाकथित निठल्ले बाबाओं के लिए भरपूर सुखसुविधा का इंतजाम खुद

ही करने लग जाते हैं. जैसे दानपुण्य, धार्मिक भवन वगैरह बनाने में पैसे की मदद देना. यहां तक कि धर्म के नाम पर इनसान इनसान की हत्या तक करने के लिए उग्र हो जाते हैं. इस वजह से देश में कई सांप्रदायिक झगड़े और दंगे हो चुके हैं.

क्या कभी आप ने सोचा है कि धार्मिक संगठनों ने समाज का कोई कल्याण किया है आज तक? बात थोड़ी कड़वी है, लेकिन सच है. आज भी हमारे समाज में इतनी गरीबी, अनाथ बच्चे और लाचार लोग क्यों हैं? क्या कभी ऐसे धार्मिक संगठन के लोग अपने समाज की बदहाली के बारे में सोचते हैं? नहीं न?

लेकिन जब आस्था और धर्म की बात आती है, तो हम लोग लोकलिहाज के चलते भी पैसे से मदद करने के लिए तैयार हो जाते हैं. जितने भी धार्मिक संस्थान आप देखते हैं या कोई धार्मिक संगठन आप भारत में देखते हैं, क्या उन के पास दान के अलावा दूसरा कोई आमदनी का जरीया होता है? नहीं न? फिर भी उन के पास पैसे की कोई कमी नहीं होती. जो लोग उन संगठनों के कर्ताधर्ता हैं, क्या आप ने उन्हें फटेहाल देखा है? आखिर सोनेचांदी के सिंहासन पर विराजमान हो कर धर्म का उपदेश देने वाले गरीब कैसे हो सकते हैं? यह सब आप के अंधभक्ति द्वारा दिए गए दान के पैसे से आता है.

इस वजह से आजकल कई ऐसे तथाकथित ढोंगी सीधेसरल लोगों को अपने धार्मिक प्रपंच के मायाजाल में फंसा कर उन से खूब पैसा इकट्ठा करते हैं और अपनेआप को ‘अवतार पुरुष’ तक घोषित कर देते हैं और भोलीभाली धर्मभीरु औरतों का जिस्मानी शोषण तक कर डालते हैं.

पिछले कुछ सालों में इस तरह के कई बाबाओं पर भारतीय दंड संहिता के तहत बलात्कार और हत्या के केस दायर किए गए हैं और वे अपराध साबित भी हुए. पिछले सालों में न जाने कितने फर्जी बाबा पकड़े गए और वे सब जेल की हवा खा रहे हैं.

इस में हम दोष किस को दें? वजह यह है कि हर किसी के अंदर ही भक्ति भरी होती है और जब कोई फर्जी बाबा या फर्जी गुरु दोचार प्रवचन दे देता है, तो लोग उन की ओर खिंच जाते हैं और फिर धीरेधीरे उन के छलप्रपंच मे फंस कर उन के अनुयायी बनने लगते हैं.

धर्म और आस्था के नाम पर मंच से दान देने या सहायता राशि देने की अपील कर दी जाए, तो हर कोई अपनी जेब से कुछ न कुछ जरूर दे ही देता है, जिस से ऐसे संगठनों को आमदनी हो जाती है. फिर ऐसे संगठन घोषणा करते हैं कि अगला प्रोग्राम फलां जगह पर होगा. ऐसे आयोजकों द्वारा पूरे प्लान के साथ भक्तों को बेचने के लिए नईनई चीजों को आयोजन के जरीए बेचा जाता है. इस तरह पूरा कारोबार ही खड़ा किया जाता है.

आज ऐसे कई फर्जी बाबा पैसों के साथसाथ राजनीतिक शक्तियां भी खूब हासिल कर रहे हैं. बड़ेबड़े नेता उन फर्जी बाबाओं के आशीर्वाद भी खूब लेने जाते हैं, ताकि उन से राजनीतिक फायदा लिया जा सके.

आज हमारा देश अगर थोड़ाबहुत तरक्की की ओर आगे बढ़ रहा है, तो इस का क्रैडिट विज्ञान और पढ़ाईलिखाई को दिया जाना चाहिए, न कि अंधभक्ति और तथाकथित बाबाओं को. सच तो यह है कि आज के समय में धर्म का समावेश देश की राजनीति के साथ होना बहुत खतरनाक बात है.

एसिड अटैक रोकने में कानून नाकाम

देश की राजधानी दिल्ली में अपनी छोटी बहन के साथ जा रही एक लड़की पर द्वारका मोड़ के पास एक लड़के ने एसिड अटैक कर दिया. लड़की ने इस मामले में 2-3 लोगों पर शक जाहिर किया. पुलिस ने सभी 3 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया. लड़की के पिता ने बताया, ‘‘मेरी दोनों बेटियां सुबह स्कूल के लिए निकली थीं. कुछ देर बाद मेरी छोटी बेटी भागती हुई आई और उस ने बताया कि 2 लड़के आए और दीदी पर एसिड फेंक कर चले गए.

हर साल देश में एसिड अटैक के 1,000 से ज्यादा मामले सामने आते हैं. आरोपी पकड़े जाते हैं. पुलिस अपना काम करती है. इस के बावजूद लड़की की जिंदगी खराब हो जाती है. एसिड अटैक को ले कर साल 2013 में कानून बना था. यह भी एसिड की शिकार लड़कियों की पूरी मदद नहीं कर पा रहा है. कानून के तहत एसिड हमलों को अपराध की श्रेणी में ला कर भारतीय दंड संहिता की धारा 326ए और धारा 326बी जोड़ी गई. इन धाराओं के तहत कुसूरवार पाए जाने पर कम से कम  10 साल की जेल की सजा का प्रावधान किया गया है.

कुछ मामलों में उम्रकैद का भी प्रावधान रखा गया है.  सुप्रीम कोर्ट ने साल 2013 में एक पीडि़ता की अर्जी पर सुनवाई के दौरान कहा था, ‘एसिड हमला हत्या से भी बुरा है. इस से पीडि़त की जिंदगी पूरी तरह बरबाद हो जाती है.’ इस के बाद एसिड अटैक के पीडि़तों के इलाज और सुविधाओं के लिए भी नई गाइडलाइंस जारी की गई थीं.

सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की सरकारों को एसिड हमले के शिकार को तुरंत कम से कम 3 लाख रुपए की मदद देने का प्रावधान है. पीडि़ता का मुफ्त इलाज भी सरकार की जिम्मेदारी है.  देखने में यह बेहतर लगता है, पर हकीकत में इस को संभालना बहुत मुश्किल होता है. एसिड की खुली बिक्री पर रोक लगी, इस के बाद भी एसिड मिल रहा है. साल 2018 से साल 2020 के बीच देश में महिलाओं पर एसिड हमलों के 386 मामले दर्ज किए गए थे.

इन में से केवल 62 मामलों के आरोपियों को कुसूरवार पाया गया था. एसिड अटैक की शिकार अपना मुकदमा सही से नहीं लड़ पाती हैं. उन के पास अच्छा वकील करने के लिए पैसे नहीं होते हैं. एसिड अटैक की शिकार अंशु बताती हैं, ‘‘एसिड अटैक के बाद जिंदगी बेहद मुश्किल हो जाती है. इलाज में लाखों रुपए खर्च होते हैं. सरकार से मिलने वाली मदद लेना बेहद मुश्किल होता है. वह मदद इतनी नहीं होती कि सही तरह से इलाज हो सके.  ‘‘इस के बाद जिंदगी में किसी का साथ नहीं मिलता. एसिड अटैक की शिकार लड़कियों के लिए सरकार को पुख्ता कदम उठाने चाहिए.

अंधविश्वास: कुंडली भाग्य औरतों की फूटी किस्मत

लोग पहले जाति देखते हैं, गोत्र मिलान करते हैं, तनख्वाह देखते हैं, कुंडली खंगालते हैं और देखते हैं कि लड़की का पैर कैसा है. उसे कदम दर कदम चला कर देखते हैं… फिर सवालों की बौछार… खाना बना लेती हो न? सिलाईबुनाई जानती हो न? तुम पढ़ीलिखी कितनी हो, इस से फर्क नहीं पड़ता, पर तुम घर संभाल लोगी न? फिर तय करते हैं कपड़ों के रंगरूप की तरह चरित्र और रूप और फिर जोड़ते हैं एक नया रिश्ता… मनचाही सब्जी खरीद ली हो जैसे… और उस के बाद कहते हैं कि रिश्ता तो ऊपर वाला तय करता है. यह कितने दुख की बात है कि आज भी लोग कुंडली पर विश्वास कर के लड़कियों की जिंदगी को झोंक देते हैं. मेरी सहेली की भी यही आपबीती है‘

मैं आज भी कुंडली के दायरे में बंधी हुई हूं. कभीकभी कोई मुद्दा खड़ा होता है, जैसे अच्छा कारोबार हो जाए तो लड़की के पैर भाग्यशाली हैं, आते ही घर को स्वर्ग बना दिया और जब पति का काम न बने, तो मेरी कुंडली में दोष ढूंढ़ते हैं. ‘इस जमाने में भी कई जगह कुंडली के आधार पर फैसले होते आए हैं. जब मेरी कुंडली मिलाई गई, तब सब ठीक था. शादी हुई तो कुछ दिन सब सही रहा, फिर कुंडली का खेल शुरू. ‘यहांवहां के पंडितों ने पैसा बनाने के चक्कर में मिलान कर दिया था किस्मत का मेरी. शादी के कुछ साल बाद पता चला कि मैं अर्धमंगली हूं. तब से ससुराल का तांडव शुरू.

जब कभी कुछ सही नहीं होता, तो मुझे चार बातें सुननी पड़ती हैं. ‘20 साल में अब बोलने वाले जिंदा नहीं हैं, लेकिन मेरे हमसफर ने कुंडली पर पूरा जीवन निकाल दिया मेरा. ‘यह रत्न पहन लो, वह रत्न पहन लो’, जीवन जैसे मेरा नहीं उन्हीं का है. कभीकभी मन झल्ला उठता है, इस शकुनअपशकुन के बीच.’ अपनी सहेली की बात सुन कर मुझे दुख हुआ. यह सच है कि कुछ अंधविश्वासी लोगों की वजह से घर टूट रहे हैं.

समाधान निकालने की कोई कोशिश नहीं करना चाहता, सुनीसुनाई फालतू की कुरीतियों को कोई नहीं रोकता. यह तो वही बात हो गई, सब्जी की तरह पसंद कर के लड़कियां खरीद लाएं और जब सब्जी खा कर ऊब गए तो शुरू उस की क्वालिटी पर सवालों की बौछार. पर अब समय आ गया है कि आप सभी औरतें खुद को मजबूत बना कर इन सब दायरों से निकलें. बेचारी बन कर रहोगी तो लोग दबा ही देंगे आप की कोमल भावनाओं को, तो निकलें इस दलदल से.

पहले ही जांचपरख कर शादी करें, वरना जिंदगी नरक हो जाती है. दुनिया बदल रही है, तो आप भी इस कुचक्र को तोड़ कर आगे बढ़ें, अपने पैरों पर खड़ी हों, ताकि आगे आप को यह न सुनना पड़े कि ‘तुम मेरे टुकड़ों पर पल रही हो…’ शादी करो तो लड़कालड़की खुद इतने समझदार हों कि अपनी जिंदगी को सुखमय बनाए रखें. लड़कियां इतना याद रखें कि आज के जमाने में बस उसी घर से जुड़ें, जहां आप की इज्जत हो.

फेसबुक बनी अधकचरी सैक्स बुक

सैक्स बुक

  •  सवाल : क्या खिलाने से लड़कियां सैक्स करने को तैयार हो जाती हैं?
  • जवाब : आंवला खिलाने से.
  • सवाल : अंग पर क्या लगा कर सैक्स में ज्यादा देर तक टिका रहा जा सकता है?
  • जवाब : नीबू व शहद लगाने से.
  • सवाल : योनि पर थप्पड़ मारने से क्या होता है?
  • जवाब : लड़की जल्दी डिस्चार्ज नहीं होती है.

येऔर ऐसे सैकड़ों बेमतलब के और बेहूदा सवाल फेसबुक पर पूछे जाते हैं, जिन का हकीकत और विज्ञान से दूरदूर तक कोई वास्ता नहीं होता है. सैक्स के नाम पर कचरा परोसती बातें फेसबुक पर इफरात से मौजूद हैं. इन्हें पढ़ और देख कर सिर पीट लेने का मन करने लगता है.

एक अंदाजे के मुताबिक, देशभर में तकरीबन 35 करोड़ लोग फेसबुक इस्तेमाल करते हैं और अब ज्यादातर लोग सैक्स के छोटेछोटे वीडियो देखने के लिए लौगइन करते हैं. इस के अलावा फेसबुक पर पोर्न फिल्मों की भी भरमार है, जो ज्यादा हर्ज की बात नहीं है, लेकिन बीते कुछ समय से सैक्स के सवालजवाब वाले वीडियो लोग ज्यादा देख रहे हैं.

ये वीडियो मशहूर टीवी शो ‘कौन बनेगा करोड़पति’ की तर्ज पर होते हैं, जिन में एक सवाल पूछ कर 5 सैकंड यूजर को दिए जाते हैं. यूजर बड़ी दिलचस्पी से अपने अंदाजे के बाद जवाब सुनता है तो हैरान रह जाता है कि ऐसा कैसे हो सकता है. यह तो सरासर बेवकूफी वाली बात है.

मिसाल के तौर पर, योनि पर थप्पड़ मारने वाले जैसे सवाल ही अपनेआप में हिंसक होते हैं. जवाब बनाने वालों ने यह भी नहीं सोचा कि लड़की का प्राइवेट पार्ट बहुत नाजुक होता है, जिस पर थप्पड़ मारने से उसे कितनी तकलीफ होगी. यह तो वह लड़की ही बता सकती है, जिस के प्राइवेट पार्ट पर थप्पड़ मारा जाए.

हैरानी नहीं होनी चाहिए कि दर्द से तिलमिलाती और बिलबिलाती लड़की गुस्से में लड़के के प्राइवेट पार्ट पर लात मार दे. फिर न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी वाली कहावत की तर्ज पर न हमबिस्तरी होगी, न दोनों में से कोई डिस्चार्ज होगा.

हां, मुमकिन यह है कि दोनों में से कोई एक या दोनों ही पुलिस थाने में रिपोर्ट लिखाते या डाक्टर के यहां इलाज कराते दिखें.

अब अगर कोई लड़का अपने अंग पर नीबूशहद लगाएगा, तो दर्द और जलन से आधा हो जाएगा, क्योंकि लड़कों का प्राइवेट पार्ट भी लड़कियों के प्राइवेट पार्ट से कम नाजुक नहीं होता.

एक और सवाल के जवाब में बताया जा रहा है कि शराब पीने से वीर्य जल्दी नहीं गिरता है, जबकि हकीकत में शराब पिया हुआ आदमी जल्दी डिस्चार्ज हो जाता है और उस ने अगर ज्यादा चढ़ा रखी हो तो बिस्तर पर ही डिस्चार्ज हो जाता है, क्योंकि नशे में धुत्त रहने के चलते उसे कुछ सूझता ही नहीं.

होश वाले जरूर एक सवाल के जवाब के मुताबिक अंग पर तिल का तेल लगा कर सैक्स करें, तो वीर्य उन की मरजी से गिरने की गारंटी रहती है. अब कौन किस के सामने जा कर दुखड़ा रोए कि तिल और सांडे के तेल से भी चौथी ड्राइव में फुस हो गए थे. वीर्य ने मरजी की परवाह ही नहीं की, जिस से भद्द पिट गई पार्टनर के सामने.

तो फिर क्यों देखते हैं लोग

यह ठीक वैसी ही बात है, जैसी यह कि लोग सैक्स क्यों करते हैं? दरअसल, हमारे देश और समाज में सैक्स की चर्चा को यों बुरा समझा जाता है मानो यह कोई पाप हो, जबकि हर कोई जानता है कि सैक्स भोजन के बाद जिंदगी की दूसरी बड़ी जरूरत है.

एक उम्र के बाद लड़केलड़कियां कुदरती तौर पर इस के बारे में जानने को मजबूर और बेचैन हो जाते हैं और जहां से उन्हें जानकारी मिलती है, वे उस पर टूट पड़ते हैं.

इंटरनैट के इस दौर में लोग खासतौर से कम उम्र के लड़के व लड़कियां अगर इसी के लिए फेसबुक भी खोलने लगे हैं, तो इस में हैरत की कोई बात नहीं है. जब वीडियो नहीं होते थे, तो नौजवान चोरीछिपे सैक्स से जुड़ी पत्रिकाएं और किताबें खरीद कर पढ़ते थे.

कहीं पकड़े न जाएं, इस का जरा सा भी खटका होता था, तो किताब या मैगजीन तोड़मरोड़ कर पाजामे या बिस्तर में छिपाना पड़ता था, लेकिन अब स्मार्टफोन पर ऐसा कोई खतरा नहीं है. जरा सी भी आहट हो तो बैक हुआ जा सकता है.

उस दौर में लड़के अपने दोस्तों से और लड़कियां अपनी भाभी, मामी, मौसी या शादीशुदा सहेलियों से सैक्स से जुड़ी जानकारियां शेयर करती थीं, पर अब ये सिलसिले और रिश्ते गांवदेहात तक में इंटरनैट ने छीन लिए हैं.

पर अफसोस की बात आज भी यह है कि इन ख्वाहिशमंदों को आज भी सटीक और सही जानकारी कहीं से नहीं मिल रही है. सोशल मीडिया, जो जानकारी पाने का सब का एकलौता सहारा हो चला है, के तमाम प्लेटफार्म उन्हें पोर्न वीडियो तो दिखा रहे हैं, लेकिन यह नहीं बता रहे हैं कि सैक्स कोई हौआ नहीं है और न ही हमबिस्तरी में ज्यादा पहलवानी दिखाना कोई मर्दानगी की बात है.

अगर आप सैक्स के बारे में अच्छी और सही जानकारी देने वाली किताबें और पत्रिकाएं पढ़ेंगे, तो कभी परेशान या चिंतित नहीं होंगे, फिर तनाव होना तो दूर की बात है, क्योंकि ये किताबें और पत्रिकाएं समाज के जिम्मेदार लोग छापते और बेचते हैं, जो किसी भी कीमत पर लोगों को गुमराह नहीं कर सकते.

इन की पहचान बहुत आसान है कि ये नामी बुक स्टोर्स पर मिलती हैं और रैगुलर मिलती हैं. मुनाफा कमाना इन का एकलौता मकसद नहीं होता है.

भोपाल के न्यू मार्केट इलाके में छोटी सी गुमटी लगाने वाले दुर्ग से आए नौजवान विकास का कहना है कि वह फेसबुक वगैरह पर जब भी सैक्स संबंधित जानकारियां ढूंढ़ने की कोशिश करता है, तो ऐसे पेज या वीडियो तुरंत सामने आ जाते हैं और वह इन्हीं में भटक कर रह जाता है. बहुत कम पेज या वीडियो ऐसे मिलते हैं, जो उस के सवालों के ठीकठीक जवाब दे पाएं.

परेशानी में डालती गलत जानकारियां

विकास को नहीं पता कि मर्द के अंग की औसत लंबाई कितनी होती है या कितनी होनी चाहिए. इस बाबत जब उस ने फेसबुक खंगाला, तो ऐसे विज्ञापनों की भरमार थी, जो अंग के मजबूत, बड़े और कड़े होने का दावा कर रहे थे.

विकास ने रात को बाथरूम में अपना अंग नाप कर देखा तो वह 5 इंच से कुछ कम निकला, जिसे ले कर वह टैंशन में आ गया और उसे अपना अंग औरों से छोटा लगने लगा, जबकि उस ने किसी और का अंग कभी नाप कर नहीं देखा था. 2 दिन बाद ही उस ने एक मालिश वाला तेल और्डर कर दिया.

महीनेभर बाद विकास ने फिर अंग नापा, तो वह पिछली बार जितना ही निकला, जिस से

उसे समझ आया कि वह उल्लू बन गया है और चायसमोसे बेच कर वह जो लगभग 1,000-500 रुपए के बीच कमाता था, उन में से एक दिन की कमाई इस तेल की बलि चढ़ गई है.

फिर भी विकास कहता है कि रोजाना की मालिश से यह फायदा तो हुआ कि अंग जल्दी जोश में आ जाता है और थोड़ा साफ व गोरा भी दिखने लगा है.

बात केवल ऐसी एक सवाल की नहीं, बल्कि जिज्ञासाओं से भरे सैकड़ों सवालों की है, जिन के जवाब करोड़ों विकासों को चाहिए.

सैक्स और हमबिस्तरी से ताल्लुक सही जानकारियां न मिलना उतनी परेशानी की बात नहीं है जितनी यह है, कि गलत जानकारियों को लोग सही समझ कर अमल में लाने लगते हैं.

इश्तिहारों के लिए है कचरा

सैक्स के प्रोडक्ट बेचने वाले अब औनलाइन सक्रिय हो कर धंधा कर रहे हैं. इस चक्कर में कई बार सही इश्तिहार गलत और गलत इश्तिहार सही समझ लिए जाते हैं.

मिसाल फेसबुक की ही लें, तो जान कर हैरानी होती है कि इश्तिहारों से उस की आमदनी प्रति घंटा 100 करोड़ रुपए है और उस की इश्तिहार पौलिसी में सबकुछ जायज है.

पोर्न फिल्मों और सवालजवाब वाले सैक्सी वीडियो के बीच सब से ज्यादा इश्तिहार दिखाए जाते हैं और अकसर उसी समय दिखाए जाते हैं, जब वीडियो या तो क्लाइमैक्स पर होता है या उस में यह इशारा कर दिया जाता है कि इश्तिहार के बाद वाले सीन में वह सब दिखाया जाने वाला है, जिस के लिए आप ने वीडियो देखना शुरू किया है. तो यूजर इश्तिहार भी देख लेता है, जिस से आमदनी फेसबुक जैसे प्लेटफार्मों की बढ़ती है.

ये इश्तिहार ज्यादा बड़े भी नहीं होते, इसलिए भी यूजर इन्हें नहीं हटाता. ज्यादातर इश्तिहारों में लड़की का सवाल पूछना भी लोगों को भाता है, जो नाजुक अंगों और हमबिस्तरी के लिए बेहिचक चालू शब्दों का इस्तेमाल करती है.

नतीजतन, धीरेधीरे लोग इन इश्तिहारों पर भरोसा करने लगते हैं और प्रोडक्ट कभी न कभी और्डर कर ही देते हैं. अब इन में से कितने इश्तिहार असरदार हैं और कितने बेकार हैं, इस का कोई पैमाना किसी के पास नहीं है, क्योंकि सारे प्रोडक्ट औनलाइन ही मंगाए जाने का इंतजाम रहता है, इसलिए ठगे गए या लुटेपिटे लोग किसी से शिकायत भी नहीं कर पाते हैं, जिस से बेचने वाला और फेसबुक अपनी तिजोरी भरते खुश होते रहते हैं और सैक्स के नाम पर नएनए प्रयोग करते रहते हैं, जिस से उन का फेस खिला रहे.

भोपाल के एक नामी वकील का कहना है कि लोग कोई दूसरा घटिया प्रोडक्ट मिलने पर तो उपभोक्ता फोरम में दावा ठोंक देते हैं, जिन में सैक्स प्रोडक्ट का एक भी दावा नहीं होता, क्योंकि इस से उन की पहचान और बात उजागर होगी और उन की ही जगहंसाई होगी.

एक 50 पैसे के आंवले में अगर लड़की पट कर हमबिस्तारी करने के लिए तैयार नहीं होती है, तो लोग कहां जा कर शिकायत करेंगे. ऐसे टोनेटोटकों से लोगों को खुद ही आगाह रहना पड़ेगा.

इस से तो बेहतर है कि लोग सैक्स संबंधी जानकारियां वहीं से लें, जहां से दूसरी जानकारियां भी सच्ची वाली मिलती हों और जो सिर्फ तगड़े मुनाफे के लिए सैक्स और उस से जुड़े प्रोडक्ट का ही कारोबार न करते हों.

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