Serial Story: धनिया का बदला- भाग 3

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

धनिया रोते हुए गांव के बाहर जाने लगी. वह कहां जाएगी, उसे कुछ पता नहीं था. तभी रास्ते में उसे एक बूढ़ी काकी ने रोक कर कहा, ‘‘धनिया… मैं छंगा को अच्छी तरह जानती हूं. वह कभी अच्छा नहीं था और वह कालिया… वह तो एक नंबर का बदमाश है. उस ने ऐसे ही छल कर के लोगों की जमीन हड़प ली है. लोग उस के डर के चलते कुछ कह नहीं पाते.’’

‘‘पर काकी, अब मैं क्या करूं…?’’

‘‘दुनिया का दस्तूर ही यही है… जैसे को तैसा.’’

धनिया को कुछ समझ नहीं आया, तो काकी ने एक 30 साल के आदमी की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘यह मेरा बेटा राजू है. यह शहर से पढ़ कर आया है, तो गांव में कंप्यूटर की दुकान खोलना चाहता था, पर कालिया को यह मंजूर नहीं हुआ कि गांव के लोग बाहर की दुनिया के बारे में जागरूक बनें, इसलिए रात में मेरे बेटे की दुकान लूट ली और जब यह पुलिस में रिपोर्ट करने गया, तो मारमार कर इस की टांग ही तोड़ दी.

‘‘दीदी, मेरा नाम राजू है. मुझ से आप को जो भी मदद चाहिए, बेझिझक बता दीजिएगा,’’ राजू ने कहा.

काकी और राजू की बातों से धनिया को कुछ हिम्मत मिली, तो उस ने कुछ समय गांव में ही रहने का फैसला किया और एक पेड़ के नीचे जा कर बैठ गई. उस की बच्चियां भूख से परेशान हो रही थीं. धनिया उन का मन बहलाने के लिए उन्हें सेमल का फूल पानी में डुबा कर खिलाने लगी.

‘‘अरे, यह सब करने से बच्चों का पेट नहीं भरेगा… यह लो, तुम भी खाना खाओ और इन्हें भी खिलाओ,’’ एक टोकरी में भर कर पूरीसब्जी ले कर आया था कालिया.

दोनों बच्चियां खाने की खुशबू से होंठों पर जीभ फेरने लगीं. धनिया से बेटियों का इस तरह से परेशान होना उसे दुखी कर रहा था.

धनिया ने निगाहें नीची रखीं, पर उस के हाथ खुद ब खुद खाने से भरी टोकरी लेने के लिए आगे बढ़ गए.

जैसे ही धनिया ने हाथ आगे बढ़ाए, कालिया ने अपने हाथों को रोकते हुए कहा, ‘‘खाना तो मैं दे रहा हूं, पर इस की कीमत तुम्हें देनी होगी,’’ कालिया ने अपनी एक आंख दबाते हुए कहा.

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‘‘क्या करना होगा मुझे…?’’ डर गई थी धनिया.

‘‘कुछ नहीं… तुम्हें कुछ नहीं करना होगा… जो भी करूंगा मैं करूंगा. तुम तो बस आज रात मेरे कमरे पर अकेली आ जाना बस,’’ कालिया ने धनिया को ऊपर से नीचे तक घूरते हुए कहा.

कालिया खाना देने के बदले धनिया से उस की इज्जत मांग रहा था. धनिया जानती थी कि उसे यह कदम तो उठाना ही पड़ेगा, इसलिए उस ने खाने की टोकरी ले ली और यह भी पूछ लिया कि उसे आना कहां पर है.

कालिया एक विजयी मुसकान के साथ वहां से चला गया.

रात हुई, तो धनिया कालिया की बताई गई जगह पर पहुंच गई. उस के इंतजार में कालिया बेकरार हुआ जा रहा था. जैसे ही धनिया उस के दरवाजे पर पहुंची, कालिया उस पर झपट पड़ा और पागलों की तरह उसे चूमने लगा.

धनिया उसे अपने से अलग करते हुए बोली, ‘‘सारा काम अभी कर लोगे, तो भला रातभर क्या करोगे… मैं तो सारी की सारी तुम्हारी हूं… इतनी भी बेचैनी ठीक नहीं.’’

‘‘अरे, तुम क्या जानो धनिया… मैं तो तुम से बहुत पहले से ही प्यार करता था, पर तुम ने शहर जाने के चक्कर में उस बीरू से शादी कर ली, पर मैं आज भी तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं… अब मैं तुम्हें कहीं नहीं जाने दूंगा… आओ मेरी बांहों में समा जाओ,’’ कालिया ने बांहें फैलाते हुए कहा.

धनिया ने शराब का गिलास कालिया की ओर बढ़ाया, जिसे वह जल्दी से गटक गया और धनिया के सीने को घूरने लगा, ‘‘बस, अब तुम आ गई हो, तो

मुझे रोज रात को ऐसे ही खुश करती रहना… मेरी धनिया,’’ कालिया नशे में आ रहा था.

‘‘हांहां, बिलकुल… अब तो मुझे तुम्हारा ही सहारा है… पर, मुझे यह समझ नहीं आ रहा है कि भला  तुम्हारी मेरे पति से क्या दुश्मनी थी, जो तुम ने उसे गोली मार दी?’’ धनिया  की सवालिया नजरें कालिया के चेहरे  पर थीं.

‘‘नहीं… मैं ने तुम्हारे पति को नहीं मारा, बल्कि तुम्हारा देवर छंगा ही तुम्हारे पति का कातिल है… वह गांव के साहूकार की लड़की से प्यार करता है और उस से शादी करने के लिए उसे पैसे की जरूरत थी, जो उसे जमीन बेचने से मिल सकती थी, पर बीरू के वापस आने से उस के प्लान पर पानी फिर गया, इसीलिए उस ने उसे गोली मार दी.

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‘‘मुझ में और उस में एक करार था कि वह जमीन मुझे बेच कर मुझ से पैसे लेगा और उस पैसे के बल पर अपने पसंद की लड़की से शादी करेगा और तुम को मुझे सौंप देगा.

‘‘यही वजह थी कि छंगा ने तुम्हें आज तक छुआ भी नहीं था, क्योंकि मैं ने ही उसे ऐसा करने से मना किया था,’’ नशे में सब बताता जा रहा था कालिया.

धनिया ने कालिया को शराब पिलाना तब तक जारी रखा, जब तक वह नशे के चलते बेसुध नहीं हो गया और जब वह बेहोश होने लगा, तो धनिया ने जमीन के कागज, जो उस ने गांव की बड़ी काकी के बेटे की मदद से पहले से ही तैयार करवा कर रखे हुए थे, पर बड़ी सफाई से कालिया का अंगूठा लगवा लिया.

रात को कालिया के पास जाने से पहले राजू ने एक मोबाइल फोन धनिया को दे दिया था और वीडियो बनाना  भी सिखा दिया था, जिस में बड़ी सफाई से धनिया ने वे सारी बातें वीडियो के रूप में रिकौर्ड कर ली थीं, जिन में कालिया छंगा की पोल खोलता नजर आ रहा था.

अगले दिन धनिया ने पंचायत बुलाई और फिर से छंगा और कालिया को बुलाया गया. धनिया ने जमीन के कागज पंचायत को दिखाए और बताया कि कालिया ने फिर जमीन उस के नाम कर दी है.

‘‘नहीं, यह मेरे अंगूठे का निशान नहीं है,’’ कालिया चिल्ला उठा, पर कालिया के अंगूठे की छाप भी मेल खा रही थी.

धनिया ने मोबाइल फोन पर बनाई गई वीडियो क्लिप भी पंचों को दिखाई, जिसे देख कर सरपंच ने फैसला सुनाया, ‘‘चूंकि जमीन के कागजों पर लगा हुआ कालिया का अंगूठा इस बात की साफ गवाही दे रहा है कि कालिया ने जमीन धनिया के नाम कर दी है, इसलिए अब उस जमीन पर धनिया का हक है.

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‘‘जहां तक बीरू की हत्या की बात है, उस की जांच के लिए हम ने पुलिस को खबर भेजी है. आगे की जांच पुलिस ही करेगी.’’

यह सुन कर छंगा और कालिया वहां से भागने की कोशिश करने लगे, पर वहां मौजूद गांव वालों ने उन्हें पकड़ लिया और पुलिस के आने पर हवाले कर दिया.

ये लम्हा कहां था मेरा- भाग 3

अभिनव काम में हुई देरी के कारण माफी मांग निकिता को सोने को कह देता और स्वयं भी बिस्तर पर लेटते ही बेसुध हो जाता. लेकिन एकदूसरे को पतिपत्नी का स्थान न दिए जाने के बावजूद भी इन 2-3 दिनों में दोनों के मन में एकदूसरे के प्रति मित्रता का भाव जन्म लेने लगा था. दिन में अकसर अपनाअपना काम करते हुए वे फोन पर बातचीत कर लेते थे. एकदूसरे से नई जगह और नए लोगों के विषय में अनुभव बांटना दोनों का अच्छा लगता था.

2 दिन बाद निकिता का पैरिस का काम पूरा हो गया और वह अपनी गाइड के साथ फ्रैंच रिविएरा के लिए रवाना हो गई. फ्रांस के दक्षिण पूर्व में भूमध्य सागर के तट पर बसे इस स्थान के विषय में सोचते हुए निकिता के मस्तिष्क में कांस फिल्म फैस्टिवल, मौजमस्ती के लिए बना विशाल खेल का मैदान, रेतीले बीच और नीस

में मनाए जाने वाले फूलों के कार्निवाल की छवि बन रही थी. मन चाह रहा था कि गाइड के स्थान पर अभिनव साथ होता तो लिखने की सामग्री जुटाने के साथसाथ ही वह दोस्ती का आनंद भी ले पाती.

नौनस्टौप फ्लाइट में लगभग डेढ़ घंटे का सफर तय कर वे नीस पहुंचे. एअरपोर्ट से निकल कर होटल जाने के लिए टैक्सी में बैठ निकिता खिड़की से बाहर झांकने लगी. साफ मौसम जहां निकिता के मन को सुकून दे रहा था, वहीं अभिनव की चाह को भी बढ़ा रहा था. ‘क्या इस समय मुझे सिर्फ एक दोस्त की जरूरत है? मेरी गाइड ऐलिस भी एक अच्छी मित्र बन गई है, फिर अभिनव ही क्यों याद आ रहा है मुझे बारबार?’

निकिता की सोच मोबाइल की रिंग बजने से टूट गई. अभिनव का फोन था अरे, मैं तो फ्लाइट से उतर कर अभिनव को फोन करना ही भूल गई. कुछ देर बातें करने के बाद फोन काटने से पहले अभिनव से मिसिंग यू सुन निकिता मंदमंद मुसकरा उठी.

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पैरिस में अभिनव का मन भी औफिस में नहीं लग रहा था. तबीयत खराब होने का बहाना कर वह अपने होटल आ गया. कुछ देर टीवी देखने के बाद वाशरूम गया तो निकिता के अंतर्वस्त्र दरवाजे के पीछे टंगे थे. ‘‘भुलक्कड़, कहीं की,’’ कहते हुए उस ने मुसकरा कर उन्हें दरवाजे से उतारा तो निकिता के परफ्यूम की खुशबू से उसे अपने भीतर एक उत्तेजना सी महसूस हुई.

बिस्तर पर लेटा तो लगा कि निकिता भी पास ही लेटी दिखती तो बैड यों सूनासूना न लगता. जब होटल के कमरे में भी उस का मन नहीं लगा तो टैक्सी ले कर ऐफिल टावर पहुंच गया. वहां मस्ती करते हुए जोड़ों को हाथ में हाथ डाले घूमते देख वह बेचैन होने लगा.

उधर निकिता नीस में होटल पहुंच कुछ देर आराम करने के बाद ऐलिस के साथ सी बीच की ओर चल दी. वहां का नजारा बहुत हसीन था. आराम से लेटे युवकयुवतियां भी थे वहां और छोटे बच्चों का हाथ पकड़ उन्हें टहलाते हुए हंसतेमुसकराते बुजुर्ग भी. निकिता को बारबार अभिनव का ही खयाल आ रहा था. लग रहा था कि उसे फोन कर बताए कि कितना मनोरम दृश्य है इधर.

वहां कुछ लोगों के विचार अपनी डायरी में नोट कर तसवीरें खींचने के बाद ऐलिस के साथ वह बाजार की ओर चल दी. विभिन्न प्रकार की वस्तुएं बेचते और पर्यटन की दृष्टि से कई महत्त्वपूर्ण बाजार हैं नीस में.

सब से पहले वे उस बाजार में पहुंचे जहां लोग अपने पुराने सामान को कम कीमत

पर बेचने व अन्य लोग उस में से अपनी जरूरत का सामान लेने आते हैं. निकिता दुकानदारों व लोगों से बातचीत में व्यस्त थी. ऐलिस वहां रखा सामान देखते हुए एक बड़ी सी घड़ी की ओर आकर्षित हो गई. उसे हाथों में उठा कर देखते हुए उस का पैर नीचे रखे सोफे से टकरा गया और धड़ाम से जमीन पर गिरते ही घड़ी का कांच टूट कर उस के हाथ में गड़ गया.

ऐलिस को ऐसी स्थिति में देख निकिता घबरा गई. आसपास खड़े लोगों में से किसी ने अस्पताल फोन कर ऐंबुलैंस मंगवा ली. अस्पताल पहुंचने पर कांच निकालने के लिए ऐलिस को औपरेशन थिएटर ले जाया गया. निकिता ने पब्लिशिंग हाउस में फोन कर ऐलिस के पति का मोबाइल नंबर लिया और घटना की जानकारी दे दी. औपरेशन चल ही रहा था कि ऐलिस के औफिस से कुछ लोग उस के पति के साथ वहां पहुंच गए.

निकिता ने तब अभिनव को फोन किया और सारी बात बताई. अभिनव ने सुनते ही नीस आने का निर्णय कर लिया.

‘‘अरे नहीं, ऐसा मत करो अभिनव… मैं कुछ देर बाद होटल लौट जाऊंगी और कल फिर अपने काम में लग जाऊंगी… मेरी फिक्र न करो तुम,’’ निकिता बोली.

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‘‘नहीं निकिता, अजनबी जगह है वह तुम्हारे लिए, मैं आ रहा हूं… और फिर तुम ने बताया कि अभी कोई नया गाइड भी प्रोवाइड नहीं कर पाएंगे पब्लिशर तुम्हें.’’

‘‘कोई बात नहीं, तुम्हें भी तो काम है न पैरिस में… मैं यहां डरूंगी नहीं… अकेली ही…’’

‘‘अरे डर तो मैं गया था तुम्हारा फोन सुन कर…जब तुम ने कहा न कि तुम अस्पताल से बोल रही हो तो मुझे लगा कि 2016 की तरह ही कहीं फिर से टैररिस्ट अटैक तो नहीं हो गया वहां… बस उस के बाद से अचानक फिक्र सी होने लगी है तुम्हारी… बस कुछ न कहो, मैं आ रहा हूं.’’

सच तो यह था कि निकिता कुछ कहना चाह भी नहीं रही थी. ऐलिस के चोटिल होने के बाद अचानक ही वह स्वयं को इतना अकेला महसूस करने लगी थी कि कुछ देर पहले तक यहां के लोगों की मुसकराहट उसे विद्रूप हंसी लगने लगी थी और प्रत्येक पुरुष उसे राजन जैसा लग रहा था.

अगले दिन पर्यटन स्थलों पर जा कर लेखन सामग्री एकत्र करना तो दूर उसे अस्पताल से होटल लौटने में ही अजीब सी दहशत हो रही थी.

हिम्मत जुटा कर होटल पहुंची तो अभिनव का फोन आ गया. उस ने बताया कि फ्लाइट में टिकट न मिलने के कारण वह ट्रेन से रहा है. वहां से हर 40 मिनट बाद नीस के लिए ट्रेन मिल जाती है. लगभग 6-7 घंटे की जर्नी होगी. रात तक वह नीस पहुंच जाएगा.

निकिता को अभिनव का आना बहुत अच्छा लग रहा था, साथ ही चिंता भी हो रही थी कि रात के समय कहीं ट्रेन से आते हुए उसे किसी प्रकार की समस्या का सामना न करना पड़े. घबराई सी वह अभिनव को बारबार फोन कर रही थी.

अभिनव उस की परेशानी को महसूस कर उस का ध्यान कहीं और लगाने के उद्देश्य से बोला, ‘‘तुम आराम करो न निकिता… ट्रेन में मेरे पास वाली सीट पर एक बहुत खूबसूरत हसीना बैठी है. फ्रांस की ब्यूटी से बात करने का मौका मिला है… थोड़ी देर तो मजे लेने दो जिंदगी के.’’

निकिता ने ओके कह कर फोन रख दिया और रोंआंसी हो उठी. अभिनव का किसी और को सुंदर कहना और उस में रूचि लेना उसे बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा था. ‘मैं ऐसा क्यों महसूस करने लगी हूं अभिनव के प्रति और खुद को असुरक्षित महसूस करने पर मुझे अभिनव की जरूरत क्यों लगने लगी है? क्यों राजन की छवि नहीं दिखाई दे रही मुझे अभिनव में?’ उस ने स्वयं से प्रश्न करने शुरू कर दिए और फिर उत्तर भी दे दिए, ‘क्यों लगेगा वह मुझे राजन जैसा? राजन ने निकिता को सिर्फ एक देह समझा और अभिनव… उस ने मेरे मन को जाना, मुझे यहां कैसा लग रहा होगा इस वक्त, वह अच्छी तरह समझ गया.

‘मेरे इतने करीब होने पर भी कभी मन नहीं डोला उस का और 7 फेरों में बंध जाने पर भी मेरे जिस्म को अपनी जागीर नहीं समझा उस ने. तभी तो मेरा जी चाह रहा है उस के कंधे पर सिर रख कर आंखें मूंद लूं और समर्पित कर दूं खुद को मन को ही नहीं, तन को भी…’

रात के लगभग 1 बजे पहुंच गया अभिनव. निकिता उसे देख कर खिल उठी. उस का झीनी गुलाबी नाइटी पहने अपनी स्नेहिल आंखों और प्रेम भरी मुसकान से स्वागत करना अभिनव को बहुत अच्छा लगा.

‘‘मैं चेंज कर लेती हूं, फिर चलते हैं डाइनिंग हौल में,’’ कह कर निकिता उठने लगी तो अभिनव ने उस का हाथ पकड़ कर अपने पास बैठा लिया, ‘‘नहीं, रूम में ही मंगा लेते हैं कुछ… मेरे पास बैठी रहो आज… बहुत कुछ बताना है तुम्हें… बस मैं आया अभी,’’ कह कर अभिनव वाशरूम में फ्रैश होने चला गया.

निकिता ने कमरे में अनियन टार्ट और कौफी मंगवा ली.

अभिनव फ्रैश हो कर लौटा तो दोनों कौफी के घूंट भरने लगे. अभिनव तो जैसे आज निकिता के सामने अपना मन खोल देने को व्याकुल हो रहा था. बिना किसी लागलपेट को बोल उठा, ‘‘निकिता, पता है मैं शादी नहीं करना चाहता था?’’

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‘‘मतलब?’’ निकिता का मुंह आश्चर्य से खुला रह गया.

कुछ पल की चुप्पी के बाद अभिनव ने आपबीती सुना दी निकिता को.

‘‘निकिता इस बात को सुनने के बाद क्या तुम मुझ पर यकीन रख पाओगी… सच बताना क्या तुम्हें लगता हूं मैं वैसा जैसा सोनाली ने इलजाम लगा मुझे बना दिया था?’’ वह रुंधे गले से निकिता की ओर देखते हुए बोला.

‘‘अभिनव स्त्री के बारे में कहा जाता है कि वह पुरुष की फितरत उस की आंखें देख कर ही जान जाती है. सच कहूं तो आज मुझे बहुत दुख हो रहा है कि आप जैसे इंसान पर ऐसे आरोप लगे. भेड़ और भेडि़ए का फर्क समझ आता है मुझे. आप चाहते तो अपने शरीर की भूख मिटा सकते थे इन बीते 3 दिनों में, पर आप जब तक मेरे दिल तक नहीं पहुंचे शरीर तक पहुंचना बेमानी लगा आप को… आप के लिए बहुत इज्जत है मेरे मन में,’’ निकिता एक सांस में ही सब बोल गई.

‘‘निकिता, तुम्हारा इस प्रकार मुझ पर विश्वास करना… बता नहीं सकता कि तुम ने मुझ पर कितना बड़ा एहसान किया है.’’

‘‘अभिनव अपने जीवन की किताब भी आज मैं खोल देना चाहती हूं तुम्हारे सामने… मैं भी शादी नहीं करना चाहती थी,’’ कह कर निकिता बेबस चेहरा लिए अभिनव की ओर देखने लगी.

‘‘मुझे सब पता है निकिता, तुम्हें कुछ बताने की जरूरत नहीं,’’ निकिता की ओर स्नेह से देखता हुआ अभिनव बोला.

‘‘क्या पता है?’’ हक्कीबक्की सी हो निकिता ने पूछा.

‘‘निकिता तुम्हारी एक सहेली थी न अदीबा नाम की, जो पुणे में तुम्हारे साथ पीजी में रहती थी, उस का भाई हाशिम मेरा दोस्त है. कुछ समय पहले वह अपनी बहन की एक सहेली के लिए हमारे औफिस में जौब की बात करने आया था. मेरा अच्छा दोस्त है, इसलिए बहन की उस सहेली के विषय में सब बताया था उस ने.उस सहेली पर किस प्रकार उस के ही पिता के दोस्त ने बुरी नजर डाली थी, यह बताते हुए उस ने मुझ से कहा था कि बहन की सहेली के लिए जल्द से जल्द नौकरी का इंतजाम करना है तो कि वह पिछला सब भूल कर सामान्य जीवन बिताने लगे.‘‘तुम एक दिन जब अदीबा के साथ हाशिम के पास आई थीं तो मैं ने देख लिया था. फिर जब तुम्हें देखने तुम्हारे घर आया तो तुम्हारे चेहरे के भाव देख कर समझ गया कि विवाह बंधन में तुम भी बंधना नहीं चाहती, पर जब तुम्हारी ओर से हां में जवाब मिला और उधर दादाजी बीमार हुए तो मैं ने भी हां कह दी. आज तुम ने जो विश्वास मुझ पर दिखाया, मैं एहसानमंद हो गया हूं तुम्हारा. हां, एक बात और तुम उस बुरे हादसे को बिलकुल भूल जाओ, मैं हूं न साथ,’’ अभिनव ने अपनी बात पूरी करने से पहले ही निकिता का हाथ अपने हाथों में ले लिया.

बिस्तर पर आतेआते रात के 3 बज चुके थे. नाइट लैंप की हलकी रोशनी में

अभिनव की आंखों में नींद की जगह मदहोशी छलक रही थी. उस मदहोशी का असर निकिता पर भी हो रहा था और वह अभिनव के आकर्षण से स्वयं को अलग नहीं कर पा रही थी. कुछ देर तक दोनों पलकें मूंदें लेट कर बातचीत शुरू करने की एकदूसरे की पहल का इंतजार करते रहे.

आखिर चुप्पी को तोड़ते हुए अभिनव बोला, ‘‘निकिता एक बात कहना चाहता हूं.’’

‘‘कहो न,’’ अभिनव के मोहपाश में जकड़ी निकिता उस की ओर प्रेमभरी दृष्टि डालते हुए बोली.

‘‘सोच रहा हूं तुम्हें फ्रांस पर बहुत कुछ लिखना है, इस के लिए जानकारी जुटा रही हो तुम. इस प्रेम नगरी में आ कर क्या फ्रैंच किस पर कुछ नहीं लिखना चाहोगी?’’ शरारत से मुसकराते हुए अभिनव बोला.

‘‘कैसे लिखूंगी? मुझे कहां पता है कुछ फ्रैंच किस के बारे में,’’ निकिता अदा से बोली.

अभिनव खिसक कर निकिता के पास आ गया और फिर उस के चेहरे पर चुंबनों की बौछार कर दी. निकिता का पोरपोर भीगा जा रहा था. कितना खूबसूरत और बेशकीमती

था वह लमहा, जो अब तक उन के भीतर ही छिपा था पर उसे महसूस करवाने वाला आज मिला था उन्हें.

‘‘ऐलिस बाजार में घड़ी की सुंदरता को निहार ही रही थी कि अचानक उस का पैर फिसला और…’’

‘‘झीनी गुलाबी नाइटी पहने निकिता ने जब रात को अभिनव का स्वागत किया तो वह खुशी से झूम उठा…’’

विदाई- भाग 3: क्या कविता को नीरज का प्यार मिला?

‘‘दुनिया छोड़ कर जल्दी जाने वाली कविता के साथ इतना मोह रखना ठीक नहीं है नीरज,’’ उस की मां, अकसर अकेले में उसे समझातीं, ‘‘तुम्हारी जिंदगी अभी आगे भी चलेगी, बेटे. कोई ऐसा तेज सदमा दिमाग में मत बैठा लेना कि अपने भविष्य के प्रति तुम्हारी कोई दिलचस्पी ही न रहे.’’

नीरज हमेशा हलकेफुलके अंदाज में उन्हें जवाब देता, ‘‘मां, कविता इतने कम समय के लिए हमारे साथ है कि हम उसे अपना मेहमान ही कहेंगे और मेहमान की विदाई तक उस की देखभाल, सेवा व आवभगत में कोई कमी न रहे, मेरी यही इच्छा है.’’

वक्त का पहिया अपनी धुरी पर निरंतर घूमता रहा. कविता की शारीरिक शक्ति घटती जा रही थी. नीरज ने अगर उस के होंठों पर मुसकान बनाए रखने को जी जान से ताकत न लगा रखी होती तो अपनी तेजी से करीब आ रही मौत का भय उस के वजूद को कब का तोड़ कर बिखेर देता.

एक दिन चाह कर भी वह घर से बाहर जाने की शक्ति अपने अंदर नहीं जुटा पाई. उस दिन उस की खामोशी में उदासी और निराशा का अंश बहुत ज्यादा बढ़ गया.

उस रात सोने से पहले कविता नीरज की छाती से लग कर सुबक उठी. नीरज उसे किसी भी प्रकार की तसल्ली देने में नाकाम रहा.

‘‘मुझे इस एक बात का सब से ज्यादा मलाल है कि हमारे प्रेम की निशानी के तौर पर मैं तुम्हें एक बेटा या बेटी नहीं दे पाई… मैं एक बहू की तरह से…एक पत्नी के रूप में असफल हो कर इस दुनिया से जा रही हूं…मेरी मौत क्या 2-3 साल बाद नहीं आ सकती थी?’’ कविता ने रोंआसी हो कर नीरज से सवाल पूछा.

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‘‘कविता, फालतू की बातें सोच कर अपने मन को परेशान मत करो,’’ नीरज ने प्यार से उस की नाक पकड़ कर इधरउधर हिलाई, ‘‘मौत का सामना आगेपीछे हम सब को करना ही है. इस शरीर का खो जाना मौत का एक पहलू है. देखो, मौत की प्रक्रिया पूरी तब होती है जब दुनिया को छोड़ कर चले गए इनसान को याद करने वाला कोई न बचे. मैं इसी नजरिए से मौत को देखता हूं. और इसीलिए कहता हूं कि मेरी अंतिम सांस तक तुम्हारा अस्तित्व मेरे लिए कायम रहेगा…मेरे लिए तुम मेरी सांसों में रहोगी… मेरे साथ जिंदा रहोगी.’’

कविता ने उस की बातों को बड़े ध्यान से सुना था. अचानक वह सहज ढंग से मुसकराई और उस की आंखों में छाए उदासी के बादल छंट गए.

‘‘आप ने जो कहा है उसे मैं याद रखूंगी. मेरी कोशिश रहेगी कि बचे हुए हर पल को जी लूं… बची हुई जिंदगी का कोई पल मौत के बारे में सोचते हुए नष्ट न करूं. थैंक यू, सर,’’ नीरज के होंठों का चुंबन ले कर कविता ने बेहद संतुष्ट भाव से आंखें मूंद ली थीं.

आगामी दिनों में कविता का स्वास्थ्य तेजी से गिरा. उसे सांस लेने में कठिनाई होने लगी. शरीर सूख कर कांटा हो गया. खानापीना मुश्किल से पेट में जाता. शरीर में जगहजगह फैल चुके कैंसर की पीड़ा से कोई दवा जरा सी देर को भी मुक्ति नहीं दिला पाती.

अपनी जिंदगी के आखिरी 3 दिन उस ने अस्पताल के कैंसर वार्ड में गुजारे. नीरज की कोशिश रही कि वह वहां हर पल उस के साथ बना रहे.

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‘‘मेरे जाने के बाद आप जल्दी ही शादी जरूर कर लेना,’’ अस्पताल पहुंचने के पहले दिन नीरज का हाथ अपने हाथों में ले कर कविता ने धीमी आवाज में उस से अपने दिल की बात कही.

‘‘मुझे मुसीबत में फंसाने वाली मांग मुझ से क्यों कर रही हो?’’ नीरज ने जानबूझ कर उसे छेड़ा.

‘‘तो क्या आप मुझे अपने लिए मुसीबत समझते रहे हो?’’ कविता ने नाराज होने का अभिनय किया.

‘‘बिलकुल नहीं,’’ नीरज ने प्यार से उस की आंखों में झांक कर कहा, ‘‘तुम तो सोने का दिल रखने वाली एक साहसी स्त्री हो. बहुत कुछ सीखा है मैं ने तुम से.’’

‘‘झूठी तारीफ करना तो कोई आप से सीखे,’’ इन शब्दों को मुंह से निकालते समय कविता की खुशी देखते ही बनती थी.

कविता का सिर सहलाते हुए नीरज मन ही मन सोचता रहा, ‘मैं झूठ नहीं कह रहा हूं, कविता. तुम्हारी मौत को सामने खड़ी देख हमारी साथसाथ जीने की गुणवत्ता पूरी तरह बदल गई. हमारी जीवन ज्योति पूरी ताकत से जलने लगी… तुम्हारी ज्योति सदा के लिए बुझने से पहले अपनी पूरी गरिमा व शक्ति से जलना चाहती होगी…मेरी ज्योति तुम्हें खो देने से पहले तुम्हारे साथ बीतने वाले एकएक पल को पूरी तरह से रोशन करना चाहती है. जीने की सही कला…सही अंदाज सीखा है मैं ने तुम्हारे साथ पिछले कुछ हफ्तों में. तुम्हारे साथ की यादें मुझे आगे भी सही ढंग से जीने को सदा उत्साहित करती रहेंगी, यह मेरा वादा रहा तुम से…भविष्य में किसी अपने को विदाई देने के लिए नहीं, बल्कि हमसफर बन कर जिंदगी का भरपूर आनंद लेने के लिए मैं जिऊंगा क्योंकि जिंदगी के सफर का कोई भरोसा नहीं.’

जब 3 दिन बाद कविता ने आखिरी सांस ली तब नीरज का हाथ उस के हाथ में था. उस ने कठिनाई से आंखें खोल कर नीरज को प्रेम से निहारा. नीरज ने अपने हाथ पर उस का प्यार भरा दबाव साफ महसूस किया. नीरज ने झुक कर उस का माथा प्यार से चूम लिया.

कविता के होंठों पर छोटी सी प्यार भरी मुसकान उभरी. एक बार नीरज के हाथ को फिर प्यार से दबाने के बाद कविता ने बड़े संतोष व शांति भरे अंदाज में सदा के लिए अपनी आंखें मूंद लीं.

नीरज ने देखा कि इस क्षण उस के दिलोदिमाग पर किसी तरह का बोझ नहीं था. इस मेहमान को विदा कहने से पहले उस की सुखसुविधा व मन की शांति के लिए जो भी कर सकता था, उस ने खुशीखुशी व प्रेम से किया. तभी तो उस के मन में कोई टीस या कसक नहीं उठी.

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विदाई के इन क्षणों में उस की आंखों से जो आंसुओं की धारा लगातार बह रही थी उस का उसे कतई एहसास नहीं था.

अस्तित्व- भाग 1: क्या तनु ने प्रणव को अपने अस्तित्व का एहसास करा पाई?

लेखिका- नीलमणि शर्मा

तनु ने हमेशा झूठे अहम में डूबे प्रणव की भावनाओं का सम्मान किया. लेकिन बदले में प्रणव ने उसे दिया कदमकदम पर अपमान का कटु दंश. और एक दिन तो हद ही हो गई, जब प्रणव ने जीवन भर के इस रिश्ते को ताक पर रख दिया. उम्र भर पति के ताने सहन करती आई तनु क्या प्रणव को अपने अस्तित्व का एहसास करा पाई?

कालिज पहुंचते ही तनु ने आज सब से पहले स्टाफ क्वार्टर के लिए आवेदन किया. इतने साल हो गए उसे कालिज में पढ़ाते हुए, चाहती तो कभी का क्वार्टर ले सकती थी पर इतना बड़ा बंगला छोड़ कर यों स्टाफ क्वार्टर में रहने की उस ने कभी कल्पना भी नहीं की थी. फिर प्रणव को भी तनु के घर आ कर रहना पसंद नहीं था. उन का अभिमान आहत होता था. उन्हें लगता कि वहां वह  ‘मिस्टर तनुश्री राय’ बन कर ही रह जाएंगे. और यह बात उन्हें कतई मंजूर न थी.

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आज सुबह ही प्रणव ने उसे अपने घर से निकल जाने को कह दिया जबकि तनु को इस घर में 30 साल गुजर चुके हैं. कहने को तो प्रणव ने उसे सबकुछ दिया है, बढि़या सा घर, 2 बच्चे, जमाने की हर सुखसुविधा…लेकिन नहीं दिया तो बस, आत्मसम्मान से जीने का हक. हर अच्छी बात का श्रेय खुद लेना, तनु के हर काम में मीनमेख निकालना और बातबात पर उस को  ‘मिडिल क्लास मानसिकता’ का ताना देना, यही तो किया है प्रणव ने शुरू से अब तक. पलंग पर लेटेलेटे तनु अपने ही जीवन से जुड़ी घटनाओं का तानाबाना बुनने लगी.

इतने वर्षों से तनु को लगने लगा था कि उसे यह सब सहने की आदत सी हो गई है पर आज सुबह उस का धैर्य जवाब दे गया. जैसेजैसे उम्र बढ़ रही थी प्रणव का कहनासुनना बढ़ता जा रहा था और तनु की सहनशीलता खत्म होती जा रही थी.

तनु जानती है कि अमेरिका में रह रहे बेटे के विवाह कर लेने की खबर प्रणव बरदाश्त नहीं कर पा रहे हैं, बल्कि उन के अहम को चोट पहुंची है. अब तक हर बात का फैसला लेने का एकाधिकार उस से छिन जो गया था. प्रणव की नजरों में इस के  लिए तनु ही दोषी है. बच्चों को अच्छे संस्कार जो नहीं दे पाई है…यही तो कहते हैं प्रणव बच्चों की हर गलती या जिद पर.

जबकि वह अच्छी तरह जानते हैं कि बच्चों के बारे में किसी भी तरह का निर्णय लेने का कोई अधिकार उन्होंने तनु को नहीं दिया. यहां तक कि उस के गर्भ के दौरान किस डाक्टर से चैकअप कराना है, क्या खाना है, कितना खाना है आदि बातों में भी अपनी ही मर्जी चलाता. शुरू में तो तनु को यह बात अच्छी लगी थी कि कितना केयरिंग हसबैंड मिला है लेकिन धीरेधीरे पता चला यह केयर नहीं, अपितु स्टेटस का सवाल था.

कितना चाहा था तनु ने कि बेटी कला के क्षेत्र में नाम कमाए पर उसे डाक्टर बनाना पड़ा, क्योंकि प्रणव यही चाहते थे. बेटे को आई.ए.एस. बनाने की चाह भी तनु के मन में धरी की धरी रह गई और वह प्रणव के आदेशानुसार वैज्ञानिक ही बना, जो आजकल नासा में कार्यरत है.

ऐसा नहीं कि बच्चों की सफलता से तनु खुश नहीं है या बच्चे अपने प्राप्यों से संतुष्ट नहीं हैं लेकिन यह भी सत्य है कि प्रणव इस सब से इसलिए संतुष्ट हैं कि बच्चों को इन क्षेत्रों में भेजने से वह और तनु आज सोसाइटी में सब से अलग नजर आ रहे हैं.

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पूरी जिंदगी सबकुछ अपनी इच्छा और पसंद को ही सर्वश्रेष्ठ मानने की आदत होने के कारण बेटे की शादी प्रणव को अपनी हार प्रतीत हो रही है. यही हार गुस्से के रूप में पिछले एक सप्ताह से किसी न किसी कारण तनु पर निकल रही है. प्रणव को वैसे भी गुस्सा करने का कोई न कोई कारण सदा से मिलता ही रहा है.

प्रणव यह क्यों नहीं समझते कि बेटे के इस तरह विवाह कर लेने से तनु को भी तो दुख हुआ होगा. पर उन्हें उस की खुशी या दुख से कब सरोकार रहा है. जब बेटे का फोन आया था तो तनु ने कहा भी था,  ‘खुशी है कि तुम्हारी शादी होगी, लेकिन तुम अगर हमें अपनी पसंद बताते तो हम यहीं बुला कर तुम्हारी शादी करवा देते. सभी लोगों को दावत देते…वहां बहू को कैसा लगेगा, जब घर पर नई बहू का स्वागत करने वाला कोई भी नहीं होगा.’

‘क्या मौम आप भी, कोई कैसे नहीं होगा, दीदी और जीजाजी आ रहे हैं न. आप को तो पता है कि अपनी पसंद बताने पर पापा कभी नहीं होने देते यह शादी. दीदी की बार का याद नहीं है आप को. डा. सोमेश को तो दीदी ने उस तरह पसंद भी नहीं किया था. बस, पापा ने उन्हें रेस्तरां में साथ बैठे ही तो देखा था. घर में कितने दिनों तक हंगामा रहा था. दीदी ने कितना कहा था कि डा. सोमेश केवल उन के कुलीग हैं पर कभी पापा ने सुनी? उन्होंने आननफानन में कैसे अपने दोस्त के डा. बेटे के साथ शादी करवा दी. यह ठीक है कि  जीजाजी भी एकदम परफेक्ट हैं.

‘सौरी मौम, मेरी शादी के कारण आप को पापा के गुस्से का सामना करना पडे़गा. रीयली मौम, आज मैं महसूस करता हूं कि आप कैसे उन के साथ इतने वर्षों से निभा रही हैं. यू आर ग्रेट मौम…आई सेल्यूट यू…ओ.के., फोन रखता हूं. शादी की फोटो ईमेल कर दूंगा.’

तनु बेटे की इन बातों से सोच में पड़ गई. सच ही तो कहा था उस ने. लेकिन वह गुस्सा एक बार में खत्म नहीं हुआ था. पिछले एक सप्ताह से रोज ही उसे इस स्थिति से दोचार होना पड़ रहा है. सुबह यही तो हुआ था जब प्रणव ने पूछा था, ‘सुना, कल तुम निमिषा के यहां गई थीं.’

‘हां.’

‘मुझे बताया क्यों नहीं.’

‘कल रात आप बहुत लेट आए तो ध्यान नहीं रहा.’

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‘‘ध्यान नहीं रहा’ का क्या मतलब है, फोन कर के बता सकती थीं. कोई काम था वहां?’

‘निमिषा बहुत दिनों से बुला रही थी. कालिज में कल शाम की क्लास थी नहीं, सोचा उस से मिलती चलूं.’

‘तुम्हें मौका मिल गया न मुझे नीचा दिखाने का. तुम्हें शर्म नहीं आई कि बेटे ने ऐसी करतूत की और तुम रिश्तेदारी निभाती फिर रही हो.’

‘निमिषा आप की बहन होने के साथसाथ कालिज के जमाने की मेरी सहेली भी है…और रही बात बेटे की, तो उस ने शादी ही तो की है, गुनाह तो नहीं.’

‘पता है मुझे, तुम्हारी ही शह से बिगड़ा है वह. जब मां बिना पूछे काम करती है तो बेटे को कैसे रोक सकती है. भूल जाती हो तुम कि अभी मैं जिंदा हूं, इस- घर का मालिक हूं.’

‘मैं ने क्या काम किया है आप से बिना पूछे. इस घर में कोई सांस तो ले नहीं सकता बिना आप की अनुमति के…हवा भी आप से इजाजत ले कर यहां प्रवेश करती है…जिंदगी की छोटीछोटी खुशियों को भी जीने नहीं दिया…यह तो मैं ही हूं कि जो यह सब सहन करती रही….’

‘क्या सहन कर रही हो तुम, जरा मैं भी तो सुनूं. ऐसा स्टेटस, ऐसी शान, सोसाइटी में एक पहचान है तुम्हारी…और कौन सी खुशियां चाहिए?’

अस्तित्व: क्या तनु ने प्रणव को अपने अस्तित्व का एहसास करा पाई?

क्षमादान: आखिर मां क्षितिज की पत्नी से क्यों माफी मांगी?

क्षमादान- भाग 1: आखिर मां क्षितिज की पत्नी से क्यों माफी मांगी?

टैक्सी से उतरते हुए प्राची के दिल की धड़कन तेज हो गई थी. पहली बार अपने ही घर के दरवाजे पर उस के पैर ठिठक गए थे. वह जड़वत खड़ी रह गई थी.

‘‘क्या हुआ?’’ क्षितिज ने उस के चेहरे पर अपनी गहरी दृष्टि डाली थी.

‘‘डर लग रहा है. चलो, लौट चलते हैं. मां को फोन पर खबर कर देंगे. जब उन का गुस्सा शांत हो जाएगा तब आ कर मिल लेंगे,’’ प्राची ने मुड़ने का उपक्रम किया था.

‘‘यह क्या कर रही हो. ऐसा करने से तो मां और भी नाराज होंगी…और अपने पापा की सोचो, उन पर क्या बीतेगी,’’ क्षितिज ने प्राची को आगे बढ़ने के लिए कहा था.

प्राची ने खुद को इतना असहाय कभी महसूस नहीं किया था. उस ने क्षितिज की बात मानी ही क्यों. आधा जीवन तो कट ही गया था, शेष भी इसी तरह बीत जाता. अनवरत विचार शृंखला के बीच अनजाने में ही उस का हाथ कालबेल की ओर बढ़ गया था. घर के अंदर से दरवाजे तक आने वाली मां की पदचाप को वह बखूबी पहचानती थी. दरवाजा खुलते ही वह और क्षितिज मां के कदमों में झुक गए. पर मीरा देवी चौंक कर पीछे हट गईं.

‘‘यह क्या है, प्राची?’’ उन्होंने एक के बाद एक कर प्राची के जरीदार सूट, गले में पड़ी फूलमाला और मांग में लगे सिंदूर पर निगाह डाली थी.

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‘‘मां, मैं ने क्षितिज से विवाह कर लिया है,’’ प्राची ने क्षितिज की ओर संकेत किया था.

‘‘मैं ने मना किया था न, पर जब तुम ने मेरी इच्छा के विरुद्ध विवाह कर ही लिया है तो यहां क्या लेने आई हो?’’ मीरा देवी फुफकार उठी थीं.

‘‘क्या कह रही हो, मां. वीणा, निधि और राजा ने भी तो अपनी इच्छा से विवाह किया था.’’

‘‘हां, पर तुम्हारी तरह विवाह कर के आशीर्वाद लेने द्वार पर नहीं आ खड़े हुए थे.’’

‘‘मां, प्रयत्न तो मैं ने भी किया था, पर आप ने मेरी एक नहीं सुनी.’’

‘‘इसीलिए तुम ने अपनी मनमानी कर ली? विवाह ही करना था तो मुझ से कहतीं, अपनी जाति में क्या लड़कों की कमी थी. अरे, इस ने तो तुम से तुम्हारे मोटे वेतन के लिए विवाह किया है. मैं तुम्हें श्राप देती हूं कि तुम ने मां का दिल दुखाया है, तुम कभी चैन से नहीं रहोगी,’’ और इस के बाद वह ऐसे बिलखने लगीं जैसे घर में किसी की मृत्यु हो गई हो.

‘‘मां,’’ बस, इतना बोल कर प्राची अविश्वास से उन की ओर ताकती रह गई. मां के प्रति उस के मन में बड़ा आदर था. अपना वैवाहिक जीवन वह उन के श्राप के साथ शुरू करेगी, ऐसा तो उस ने सपने में भी नहीं सोचा था. अनजाने ही आंखों से अश्रुधारा बह चली थी.

‘‘ठीक है मां, एक बार पापा से मिल लें, फिर चले जाएंगे,’’ प्राची ने कदम आगे बढ़ाया ही था कि मीरा देवी फिर भड़क उठीं.

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‘‘कोई जरूरत नहीं है यह दिखावा करने की. विवाह करते समय नहीं सोचा अपने अपाहिज पिता के बारे में, तो अब यह सब रहने ही दो. मैं उन की देखभाल करने में पूर्णतया सक्षम हूं. मुझे किसी की दया नहीं चाहिए,’’ मीरा देवी ने प्राची का रास्ता रोक दिया.

‘‘कौन है. मीरा?’’ अंदर से नीरज बाबू का स्वर उभरा था.

‘‘मैं उन्हें समझा दूंगी कि उन की प्यारी बेटी प्राची अपनी इच्छा से विवाह कर के घर छोड़ कर चली गई,’’ वह क्षितिज को लक्ष्य कर के कुछ बोलना ही नहीं चाहती थीं मानो वह वहां हो ही नहीं.

‘‘चलो, चलें,’’ आखिर मौन क्षितिज ने ही तोड़ा. वह सहारा दे कर प्राची को टैक्सी तक ले गया और प्राची टैक्सी में बैठी देर तक सुबकती रही. क्षितिज लगातार उसे चुप कराने की कोशिश करता रहा.

‘‘देखा तुम ने, क्षितिज, पापा को पक्षाघात होने पर मैं ने पढ़ाई छोड़ कर नौकरी की. आगे की पढ़ाई सांध्य विद्यालय में पढ़ कर पूरी की. निधि, राजा, प्रवीण, वीणा की पढ़ाई का भार, पापा के इलाज के साथसाथ घर के अन्य खर्चों को पूरा करने में मैं तो जैसे मशीन बन गई थी. मैं ने अपने बारे में कभी सोचा ही नहीं. निधि, राजा और वीणा ने नौकरी करते ही अपनी इच्छा से विवाह कर लिया. तब तो मां ने दोस्तों, संबंधियों को बुला कर विधिविधान से विवाह कराया, दावत दीं. पर आज मुझे देख कर उन की आंखों में खून उतर आया. आशीर्वाद देने की जगह श्राप दे डाला,’’ आक्रोश से प्राची का गला रुंध गया और वह फिर से फूटफूट कर रोने लगी.

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‘‘शांत हो जाओ, प्राची. हमारे जीवन का सुखचैन किसी के श्राप या वरदान पर नहीं, हमारे अपने नजरिए पर निर्भर करता है,’’ क्षितिज ने समझाना चाहा था, पर सच तो यह था कि मां के व्यवहार से वह भी बुरी तरह आहत हुआ था. अपने फ्लैट के सामने पहुंचते ही क्षितिज ने फ्लैट की चाबी प्राची को थमा दी और बोला, ‘‘यही है अपना गरीबखाना.’’

प्राची ने चारों ओर निगाह डाली, घूम कर देखा और मुसकरा दी. डबल बेडरूम वाला छोटा सा फ्लैट बड़े सुरुचिपूर्ण ढंग से सजाया गया था.

अस्तित्व- भाग 2: क्या तनु ने प्रणव को अपने अस्तित्व का एहसास करा पाई?

लेखिका- नीलमणि शर्मा

‘नहीं सहन होता तो चली जाओ यहां से, जहां अच्छा लगता है वहां चली जाओ. क्यों रह रही हो फिर यहां.’

‘चली जाऊं, छोड़ दूं, उम्र के इस पड़ाव पर, आप को बेशक यह कहते शर्म नहीं आई हो, पर मुझे सुनने में जरूर आई है. इस उम्र में चली जाऊं, शादी के 30 साल तक सब झेलती रही, अब कहते हो चली जाओ. जाना होता तो कब की सबकुछ छोड़ कर चली गई होती.’

तनु तड़प उठी थी. जिंदगी का सुख प्रणव ने केवल भौतिक सुखसुविधा ही जाना था. पूरी जिंदगी अपनेआप को मार कर जीना ही अपनी तकदीर मान जिस के साथ निष्ठा से बिता दी, उसी ने आज कितनी आसानी से उसे घर से चले जाने को कह दिया.

‘हां, आज मुझे यह घर छोड़ ही देना चाहिए. अब तक पूरी जिंदगी प्रणव के हिसाब से ही जी है, यह भी सही.’ सारी रात तनु ने इसी सोच के साथ बिता दी.

शादी के बाद कितने समय तक तो तनु प्रणव का व्यवहार समझ ही नहीं पाई थी. किस बात पर झगड़ा होगा और किस बात पर प्यार बरसाने लगेंगे, कहा नहीं जा सकता. कालिज से आने में देर हो गई तो क्यों हो गई, घरबार की चिंता नहीं है, और अगर जल्दी आ गई तो कालिज टाइम पास का बहाना है, बच्चों को पढ़ाना थोड़े ही है.

दुनिया की नजर में प्रणव से आदर्श पति और कोई हो ही नहीं सकता. मेरी हर सुखसुविधा का खयाल रखना, विदेशों में घुमाना, एक से एक महंगी साडि़यां खरीदवाना, जेवर, गाड़ी, बंगला, क्या नहीं दिया लेकिन वह यह नहीं समझ सके कि सुखसुविधा और खुशी में बहुत फर्क होता है.

तनु की विचारशृंखला टूटने का नाम ही नहीं ले रही थी…मैं इन की बिना पसंद के एक रूमाल तक नहीं खरीद सकती, बिना इन की इच्छा के बालकनी में नहीं खड़ी हो सकती, इन की इच्छा के बिना घर में फर्नीचर इधर से उधर एक इंच भी सरका नहीं सकती, नया खरीदना तो दूर की बात… क्योंकि इन की नजर में मुझे इन चीजों की, इन बातों की समझ नहीं है. बस, एक नौकरी ही है, जो मैं ने छोड़ी नहीं. प्रणव ने बहुत कहा कि सोसाइटी में सभी की बीवियां किसी न किसी सोशल काम से जुड़ी रहती हैं. तुम भी कुछ ऐसा ही करो. देखो, निमिषा भी तो यही कर रही है पर तुम्हें क्या पता…पहले हमारे बीच खूब बहस होती थी, पर धीरेधीरे मैं ने ही बहस करना छोड़ दिया.

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आज मैं थक गई थी ऐसी जिंदगी से. बच्चों ने तो अपना नीड़ अलग बना लिया, अब क्या इस उम्र में मैं…हां…शायद यही उचित होगा…कम से कम जिंदगी की संध्या मैं बिना किसी मानसिक पीड़ा के बिताना चाहती हूं.

प्रणव तो इतना सबकुछ होने के बाद भी सुबह की उड़ान से अपने काम के सिलसिले में एक सप्ताह के लिए फ्रैंकफर्ट चले गए. उन के जाने के बाद तनु ने रात में सोची गई अपनी विचारधारा पर अमल करना शुरू कर दिया. अभी तो रिटायरमेंट में 5-6 वर्ष बाकी हैं इसलिए अभी क्वार्टर लेना ही ठीक है, आगे की आगे देखी जाएगी.

तनु को क्वार्टर मिले आज कई दिन हो गए, लेकिन प्रणव को वह कैसे बताए, कई दिनों से इसी असमंजस में थी. दिन बीतते जा रहे थे. प्रोफेसर दीप्ति, जो तनु के ही विभाग में है और क्वार्टर भी तनु को उस के साथ वाला ही मिला है, कई बार उस से शिफ्ट करने के बारे में पूछ चुकी थी. तनु थी कि बस, आजकल करती टाल रही थी.

सच तो यह है कि तनु ने उस दिन आहत हो कर क्वार्टर के लिए आवेदन कर दिया था और ले भी लिया, पर इस उम्र में पति से अलग होने की हिम्मत वह जुटा नहीं पा रही थी. यह उस के मध्यवर्गीय संस्कार ही थे जिन का प्रणव ने हमेशा ही मजाक उड़ाया है.

ऐसे ही एक महीना बीत गया. इस बीच कई बार छोटीमोटी बातें हुईं पर तनु ने अब खुद को तटस्थ कर लिया, लेकिन वह भूल गई थी कि प्रणव के विस्फोट का एक बहाना उस ने स्वयं ही उसे थाली में परोस कर दे दिया है.

कालिज से मिलने वाली तनख्वाह बेशक प्रणव ने कभी उस से नहीं ली और न ही बैंक मेें जमा पैसे का कभी हिसाब मांगा पर तनु अपनी तनख्वाह का चेक हमेशा ही प्रणव के हाथ में रखती रही है. वह भी उसे बिना देखे लौटा देते हैं. इतने वर्षों से यही नियम चला आ रहा है.

तनु ने जब इस महीने भी चेक ला कर प्रणव को दिया तो उस पर एक नजर डाल कर वह पूछ बैठे, ‘‘इस बार चेक में अमाउंट कम क्यों है?’’

पहली बार ऐसा सवाल सुन कर तनु चौंक गई. उस ने सोचा ही नहीं था कि प्रणव चेक को इतने गौर से देखते हैं. अब उसे बताना ही पड़ा,  ‘‘अगले महीने से ठीक हो जाएगा. इस महीने शायद स्टाफ क्वार्टर के कट गए होंगे.’’

अभी उस का वाक्य पूरा भी नहीं हुआ था, ‘‘स्टाफ क्वार्टर के…किस का…तुम्हारा…कब लिया…क्यों लिया… और मुझे बताया भी नहीं?’’

तनु से जवाब देते नहीं बना. बहुत मुश्किल से टूटेफूटे शब्द निकले,  ‘‘एकडेढ़ महीना हो गया…मैं बताना चाह रही थी…लेकिन मौका ही नहीं मिला…वैसे भी अब मैं उसे वापस करने की सोच रही हूं…’’

‘‘एक महीने से तुम्हें मौका नहीं मिला…मैं मर गया था क्या? यों कहो कि तुम बताना नहीं चाहती थीं…और जब लिया है तो वापस करने की क्या जरूरत है…रहो उस में… ’’

‘‘नहीं…नहीं, मैं ने रहने के लिए नहीं लिया…’’

‘‘फिर किसलिए लिया है?’’

‘‘उस दिन आप ने ही तो मुझे घर से निकल जाने को कहा था.’’

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‘‘तो गईं क्यों नहीं अब तक…मैं पूछता हूं अब तक यहां क्या कर रही हो?’’

‘‘आप की वजह से नहीं गई. समाज क्या कहेगा आप को कि इस उम्र में अपनी पत्नी को निकाल दिया…आप क्या जवाब देंगे…आप की जरूरतों का ध्यान कौन रखेगा?’’

‘‘मैं समाज से नहीं डरता…किस में हिम्मत है जो मुझ से प्रश्न करेगा और मेरी जरूरतों के लिए तुम्हें परेशान होने की आवश्यकता नहीं है…जिस के मुंह पर भी चार पैसे मारूंगा…दौड़ कर मेरा काम करेगा…मेरा खयाल कर के नहीं गई…चार पैसे की नौकरी पर इतराती हो. अरे, मेरे बिना तुम हो क्या…तुम्हें समाज में लोग मिसिज प्रणव राय के नाम से जानते हैं.’’

तनु का क्रोध आज फिर अपना चरम पार करने लगा, ‘‘चुप रहिए, मैं ने पहले ही कहा था कि अब मुझ से बरदाश्त नहीं होता. ’’

‘‘कौन कहता है कि बरदाश्त करो…अब तो तुम ने मकान भी ले लिया है. जाओ…चली जाओ यहां से…मैं भूल गया था कि तुम जैसी मिडिल क्लास को कोठीबंगले रास नहीं आते. तुम्हारे लिए तो वही 2-3 कमरों का दड़बा ही ठीक है.’’

तनु इस अपमान को सह नहीं पाई और तुरंत ही अंदर जा कर अपना सूटकेस तैयार किया और वहां से निकल पड़ी. आंखों में आंसू लिए आज कोठी के फाटक को पार करते ही तनु को ऐसा लगा मानो कितने बरसों की घुटन के बाद उस ने खुली हवा में सांस ली है.

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अस्तित्व- भाग 3: क्या तनु ने प्रणव को अपने अस्तित्व का एहसास करा पाई?

लेखिका- नीलमणि शर्मा

‘‘बाहर से ताला खुला देखा इसलिए बेल बजा दी. कब आईं आप?’’ शालीनता से पूछा था दीप्ति ने.

‘‘रात ही में.’’

‘‘ओह, अच्छा…पता ही नहीं चला. और मिस्टर राय?’’

‘‘वह बाहर गए हैं…तब तक दोचार दिन मैं यहां रह कर देखती हूं, फिर देखेंगे.’’

दीप्ति भेदभरी मुसकान से ‘बाय’ कह कर वहां से चल दी.

पूरा दिन निकल गया प्रतीक्षा में. तनु को बारबार लग रहा था प्रणव अब आए, तब आए. पर वह नहीं ही आए.

रात होतेहोते तनु ने अपने मन को समझा लिया था कि यह किस का इंतजार था मुझे? उस का जिस ने घर से निकाल दिया. अगर उन्हें आना ही होता तो मुझे निकालते ही क्यों…सचमुच मैं उन की जिंदगी का अवांछनीय अध्याय हूं. लेकिन ऐसा तो नहीं कि मैं जबरदस्ती ही उन की जिंदगी में शामिल हुई थी…

कालिज में मैं और निमिषा एक साथ पढ़ते थे. एक ही कक्षा और एक जैसी रुचियां होने के कारण हमारी शीघ्र ही दोस्ती हो गई. निमिषा और मुझ में कुछ अंतर था तो बस, यही कि वह अपनी कार से कालिज आती जिसे शोफर चलाता और बड़ी इज्जत के साथ कार का गेट खोल कर उसे उतारताबैठाता, और मैं डीटीसी की बस में सफर करती, जो सचमुच ही कभीकभी अंगरेजी भाषा का  ‘सफर’ हो जाता था. मेरा मुख्य उद्देश्य था शिक्षा के क्षेत्र में अपना कैरियर बनाना और निमिषा का केवल ग्रेजुएशन की डिगरी लेना. इस के बावजूद वह पढ़ाई में बहुत बुद्धिमान थी और अभी भी है…

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ग्रेजुएशन करने तक मैं कभी निमिषा के घर नहीं गई…अच्छी दोस्ती होने के बाद भी मुझे लगता कि मुझे उस से एक दूरी बनानी है…कहां वह और कहां मैं…लेकिन जब मैं ने एम.ए. का फार्म भरा तो मुझे देख उस ने भी भर दिया और इस तरह हम 2 वर्ष तक और एकसाथ हो गए. इस दौरान मुझे दोचार बार उस के घर जाने का मौका मिला. घर क्या था, महल था.

मेरी हैरानी तब और बढ़ गई जब एम.फिल. के लिए मेरे साथसाथ उस ने भी आवेदन कर दिया. मेरे पूछने पर निमिषा ने कहा था, ‘यार, मम्मीपापा शादी के लिए लड़का ढूंढ़ रहे हैं, जब तक नहीं मिलता, पढ़ लेते हैं. तेरे साथसाथ जब तक चला जाए…’ बिना किसी लक्ष्य के निमिषा मेरे साथ कदम-दर-कदम मिलाती हुई बढ़ती जा रही थी और एक दिन हम दोनों को ही लेक्चरर के लिए नियुक्त कर लिया गया.

इस खुशी में उस के घर में एक भव्य पार्टी का आयोजन किया गया था. उसी पार्टी में पहली बार उस के भाई प्रणव से मेरी मुलाकात हुई. बाद में मुझे पता चला कि उस दिन पार्टी में मेरे रूपसौंदर्य से प्रभावित हो कर निमिषा के मम्मीपापा ने निमिषा की शादी के बाद मुझे अपनी बहू बनाने पर विचार किया, जिस पर अंतिम मोहर मेरे घर वालों को लगानी थी जो इस रिश्ते से मन में खुश भी थे और उन की शानोशौकत से भयभीत भी.

इस सब में लगभग एक साल का समय लगा. प्रणव कई बार मुझ से मिले, वह जानते थे कि मैं एक आम भारतीय समाज की उपज हूं…शानोशौकत मेरे खून में नहीं…लेकिन शादी के पहले मेरी यही बातें, मेरी सादगी, उन्हें अच्छी लगती थी, जो उन की सोसाइटी में पाई जाने वाली लड़कियों से मुझे अलग करती थी.

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तनु को यहां रहते एक महीना हो चुका था. कुछ दिन तो दरवाजे की हर घंटी पर वह प्रणव की उम्मीद लगाती, लेकिन उम्मीदें होती ही टूटने के लिए हैं. इस अकेलेपन को तनु समझ ही नहीं पा रही थी. कभी तो अपने छोटे से घर में 55 वर्षीय प्रोफेसर डा. तनुश्री राय का मन कालिज गर्ल की तरह कुलाचें मार रहा होता कि यहां यह मिरर वर्क वाली वाल हैंगिंग सही लगेगी…और यह स्टूल यहां…नहीं…इसे इस कोने में रख देती हूं.

घर में कपडे़ की वाल हैंगिंग लगाते समय तनु को याद आया जब वह जनपथ से यह खरीद कर लाई थी और उसे ड्राइंग रूम में लगाने लगी तो प्रणव ने कैसे डांट कर मना कर दिया था कि यह सौ रुपल्ली का घटिया सा कपडे़ का टुकड़ा यहां लगाओगी…इस का पोंछा बना लो…वही ठीक रहेगा…नहीं तो अपने जैसी ही किसी को भेंट दे देना.

तनु अब अपनी इच्छा से हर चीज सजा रही थी. कोई मीनमेख निकालने वाला या उस का हाथ रोकने वाला नहीं था, लेकिन फिर भी जीवन को किसी रीतेपन ने अपने घेरे में घेर लिया था.

कालिज की फाइनल परीक्षाएं समाप्त हो चुकी थीं. सभी कहीं न कहीं जाने की तैयारियों में थे. प्रणव के साथ मैं भी हमेशा इन दिनों बाहर चली जाया करती थी…सोच कर अचानक तनु को याद आया कि बेटा  ‘यश’ के पास जाना चाहिए…उस की शादी पर तो नहीं जा पाई थी…फिर वहीं से बेटी के पास भी हो कर आऊंगी.

बस, तुरतफुरत बेटे को फोन किया और अपनी तैयारियों में लग गई. कितनी प्रसन्नता झलक रही थी यश की आवाज में. और 3 दिन बाद ही अमेरिका से हवाई जहाज का टिकट भी भेज दिया था.

फ्लाइट का समय हो रहा था… ड्राइवर सामान नीचे ले जा चुका था, तनु हाथ में चाबी ले कर बाहर निकलने को ही थी कि दरवाजे पर दस्तक हुई, उफ, इस समय कौन होगा. देखा, दरवाजे पर प्रणव खड़े हैं.

क्षण भर को तो तनु किंकर्तव्य- विमूढ़ हो गई. उफ, 2 महीनों में ही यह क्या हो गया प्रणव को. मानो बरसों के मरीज हों.

‘‘कहीं जा रही हो क्या?’’ प्रणव ने उस की तंद्रा तोड़ते हुए पूछा.

‘‘हां, यश के पास…पर आप अंदर तो आओ.’’

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‘‘अंदर बैठा कर तनु प्रणव के लिए पानी लेने को मुड़ी ही थी कि उस ने तनु का हाथ पकड़ लिया, ‘‘तनु, मुझे माफ नहीं करोगी. इन 2 महीनों में ही मुझे अपने झूठे अहम का एहसास हो गया. जिस प्यार और सम्मान की तुम अधिकारिणी थीं, तुम्हें वह नहीं दे पाया. अपने  ‘स्वाभिमान’ के आवरण में घिरा हुआ मैं तुम्हारे अस्तित्व को पहचान ही नहीं पाया. मैं भूल गया कि तुम से ही मेरा अस्तित्व है. मैं तुम्हारे बिना अधूरा हूं…यह सच है तनु, मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं…पहले भी करता था पर अपने अहम के कारण कहा नहीं, आज कहता हूं तनु, तुम्हारे बिना मैं मर जाऊंगा…मुझे माफ कर दो और अपने घर चलो. बहू को पहली बार अपने घर बुलाने के लिए उस के स्वागत की तैयारी भी तो करनी है…मुझे एक मौका दो अपनी गलती सुधारने का.’’

तनु बुढ़ापे में पहली बार अपने पति के प्यार से सराबोर खुशी के आंसू पोंछती हुई अपने बेटे को अपने न आ पाने की सूचना देने के लिए फोन करने लग जाती है.

Serial Story: धनिया का बदला- भाग 2

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

‘‘अरे धनिया, आप चिंता क्यों करती हो… आप तो बस दवा खाओ और आराम करो… हम खाना भी बना लेंगे और बच्चों को भी संभाल लेंगे,’’ छंगा कह रहा था. उस की बात सुन कर खटिया पर लेटी हुई धनिया की आंखों में आंसू आ गए.

बीरू के मर जाने के बाद उस के हिस्से की जमीन धनिया के नाम कर दी गई थी. छंगा के मन में तो खोट था. वह उस जमीन को अपने नाम पर करा कर धनिया से छुटकारा पाना चाहता था, इसलिए एक दिन जब धनिया बुखार की दवा खा कर सो रही थी, तब धोखे से छंगा ने जमीन के कागजों पर धनिया का अंगूठा लगवा लिया.

शायद छंगा को इसी दिन का इंतजार ही था कि कागजों पर अंगूठा लग जाए और वह अकेला ही इस जमीन पर  राज करे.

जब कुछ दिनों बाद धनिया की सेहत में सुधार हो गया, तब उस ने गौर किया कि छंगा का उस के और उस की बेटियों के प्रति बरताव बदल सा गया है. जहां पहले वह बच्चियों के लिए खानेपीने की चीजें लाता था, वहीं अब वह खाली हाथ चला आता है और सीधे मुंह बात भी नहीं करता और उन्हें मारनापीटना भी शुरू कर दिया है.

‘‘अब तो तुम्हारा बुखार सही हो गया है… कुछ कामधाम भी किया करो… सारा दिन तुम्हारे बच्चे मुझे तंग करते रहते हैं और मेरे पैसे खर्च करवाते हैं. अब इन का और खर्चा मुझ से नहीं उठाया जाता,’’ छंगा गरज रहा था.

‘शायद बाहर की कुछ परेशानी होगी, तभी तो ऐसे कह रहा है छंगा, नहीं तो मीठा बोलने वाला छंगा इतना कड़वा क्यों बोलता,’ ऐसा सोच कर धनिया खुद ही खेत की तरफ सब्जी तोड़ने चल दी.

खेत पर पहुंचते ही उस की आंखें हैरत से फटी रह गईं. खेत में खड़े नीम के पेड़ की छांव में गांव के कुछ मुस्टंडे शराब और मांस खा रहे थे.

‘‘तुम लोग मेरे खेत में गंदगी क्यों फैला रहे हो… क्या तुम लोगों को और कोई जगह नहीं मिली… चलो, भागो यहां से,’’ धनिया चीख रही थी.

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‘‘तुम्हारा खेत… पर, यह खेत तो तुम अपनी मरजी से छंगा के नाम पर चुकी हो… और उसी ने हमें यहां बुला कर खानेपीने का इंतजाम करवाया है. अगर हमारी बात पर यकीन न आ रहा हो, तो पंचायत बुला कर पूछ लो,’’ उन में से एक ने धनिया से कहा.

धनिया ने उन लोगों को तो किसी तरह वहां से चलता किया, पर उन लोगों की बात उस के कानों में गूंजती रही.

धनिया घर लौटी, तो अपनी बेटियों को उस ने दरवाजे पर ही रोते पाया.

‘‘देखो अम्मां… पापा ने हमें मार कर घर से बाहर निकाल दिया है,’’ एक बेटी ने बताया.

धनिया का दिल दहल उठा था. उस ने बाहर से ही छंगा को आवाज लगाई.

‘‘अब मुझे तेरी जरूरत नहीं है… तू मेरी जिंदगी से चली जा, तुझ में है ही क्या? भला कोई 2 बेटियों की मां के साथ कैसे खुश रह सकता है,’’ छंगा अंदर से ही बोला और दरवाजा बंद  कर लिया.

रोती हुई धनिया पंचायत पहुंची. पंचों ने तुरंत ही छंगा को तलब किया और उस से पूछा कि जिस औरत के साथ अभी कुछ दिन पहले ही तुम ने ब्याह किया है, आज उस के साथ ऐसा सुलूक क्यों कर रहे हो?

‘‘भला मैं ऐसा सुलूक करने वाला कौन होता हूं… इस कागज पर खुद धनिया का अंगूठा लगा है और जिस में लिखा हुआ है कि मैं अब अपनी सारी खेती छंगा के नाम कर रही हूं और अपनी मरजी से छंगा का घर छोड़ कर जा रही हूं, इसलिए भविष्य में उसे मेरा पति और मुझे उस की पत्नी न समझा जाए,’’ कह कर छंगा ने कागज आगे बढ़ा दिया.

पंचों ने उन कागजों को उलटापलटा. कागज पर यही लिखा हुआ था, जिस के नीचे धनिया का अंगूठा भी लगा हुआ था.

‘‘तुम ने तो अपनी मरजी से ही ये सब किया है… यह अंगूठे का निशान तो तुम्हारा ही है न?’’ पंचों में से  एक ने कागज दिखाते हुए पूछा.

धनिया हैरान थी. अंगूठे का निशान तो उसी का था, पर भला वह क्यों ऐसा करने लगी? यह सोच कर वह परेशान हो उठी.

कागजों के आगे पंच भी मजबूर थे, इसलिए उन्होंने छंगा के हक में फैसला सुना दिया और धनिया सड़क पर आ गई.

रात हुई तो धनिया को डर लगने लगा. कुछ सोच कर वह बेटियों को ले कर अपने घर गई. दरवाजा अंदर से भिड़ा हुआ था. सामने छंगा बैठा हुआ ढेर सारे नोटों की गड्डियां गिन रहा था.

धनिया सन्न रह गई थी, उस की आंखें फटी की फटी रह गई थीं. आखिरकार आज से पहले इतना पैसा तो छंगा के पास नहीं देखा था उस ने.

‘‘ऐसे चुड़ैल की तरह क्या देख रही है… क्या कभी पैसा नहीं देखा… और फिर मेरे घर क्यों आई हो, जब तुझे पंचायत में शिकायत ले कर जाना ही है… अब मुझे तेरा साथ नहीं चाहिए,’’ छंगा ने धनिया को देख कर कहा.

‘‘मैं कोई भीख मांगने नहीं आई… मेरे हिस्से की जमीन…’’

‘‘तेरी कोई जमीन नहीं… और जो जमीन तू ने मेरे नाम कर दी थी, वह भी मैं ने कालिया को बेच दी है,’’ कह कर छंगा ने दरवाजा बंद कर दिया था.

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