सवाल मैं एक लड़के से 3 वर्षों से प्यार करती हूं. वह भी मुझ से प्यार करता है. बीच में हम दोनों में कुछ मनमुटाव हो गया था. अब वह कहता है कि वह मुझे नहीं किसी और को चाहता है. मैं उसे भुला नहीं सकती. दिनरात रोती हूं. कभी वह कहता है कि लौट आओ. मुझे उस के व्यवहार को ले कर बहुत गुस्सा आता है, यह सोच कर कि उस ने मेरा मजाक बना रखा है. क्या मैं उस पर भरोसा करूं या नहीं?
जवाब
एकदूसरे को समझने के लिए 3 साल का समय बहुत होता है. यदि आप का प्रेमी आप से साफसाफ कह चुका है कि वह आप को नहीं किसी और लड़की को चाहता है तो आप को किसी गलतफहमी में नहीं रहना चाहिए और उस से किनारा कर लेना चाहिए. अपने पहले प्यार को भुलाना थोड़ा मुश्किल जरूर होता है पर नामुमकिन नहीं. समय बीतने के साथ आप के दिलोदिमाग से उस की यादें मिट जाएंगी.
सवाल मैं 2 साल से एक युवक से बहुत प्यार करती हूं. वह भी मुझे बहुत चाहता है. हम दोनों शादी करना चाहते हैं, पर दोनों अलग कास्ट के हैं, जिस की वजह से मेरे परिवार वाले उस युवक से मेरी शादी नहीं करेंगे. कई बार मैं ने अपनी फैमिली से दोनों की शादी की बात करनी चाही पर कह नहीं पाई. हम दोनों एकसाथ रहना चाहते हैं. कई बार घर छोड़ने की भी सोची पर घर वालों की बदनामी न हो इसलिए घर नहीं छोड़ पाई. अब आप ही बताएं मैं क्या करूं?
जवाब
यह अच्छी बात है कि आप अपने परिवार वालों के बारे में अभी भी सोच रही हैं और उन की इज्जत के कारण घर से भाग कर शादी करने का फैसला टाल रही हैं. यह याद रखें कि नए रिश्तों को संवारने के साथसाथ पुराने रिश्ते न बिखरने पाएं. आप परिवार वालों से खुद शादी की बात न करें, बल्कि अपनी बड़ी बहन या परिवार का ऐसा कोई सदस्य जिस के सामने आप खुल कर बात कर सकती हैं, को अपने परिवार वालों से बात करने का माध्यम बनाएं. समस्या का समाधान मुश्किल नहीं होता, लेकिन व्यवहार की जटिलता से समस्या पर समस्या खड़ी होती जाती है. हर किसी की भावना की इज्जत करते हुए शांति से बातचीत के रास्ते खोलें.
सवाल बिना किसी गर्भनिरोधक के सैक्स का सब से सुरक्षित समय क्या है?
जवाब
वैसे तो सुरक्षित सैक्स के लिए गर्भनिरोधक ही कारगर उपाय हैं, लेकिन प्राकृतिक तरीके से अगर गर्भ से बचने हेतु सुरक्षित समय पूछा जाए तो इस का सीधा संबंध युवती के मासिक धर्म से है. गर्भ ठहरने के लिए पुरुष के शुक्राणु और स्त्री के अंडाणु का मिलन जरूरी है और यह गर्भ निरोधक इसी मिलन को रोकते हैं.
लेकिन अगर मासिक धर्म के 5 दिन के चक्र को छोड़ कर अन्य 18-20 दिन में सैक्स किया जाए तो गर्भ ठहरने की आशंका नहीं रहती, लेकिन इसे पूर्णतया सुरक्षित नहीं कहा जा सकता. अच्छा होगा सुरक्षित समय जानने के बजाय सुरक्षित उपायों के बारे में जानें, जिन में कंडोम सब से कारगर है ताकि पूर्ण सुरक्षित सैक्स का आनंद ले सकें.
लिव इन आज की बदलती जीवनशैली के अनुरूप युवाओं द्वारा ईजाद किया गया थोड़ा कम आजमाया कौंसैप्ट है. पहले लड़के बाइयों के यहां पड़े रहते थे या फिर उन के भाभियों, कजिनों के साथ संबंध तो होते थे पर वे एक घर में नहीं रहते थे. घर नहीं चलाते थे. लड़के लड़की की कपल्स की तरह साथ रहने की व्यवस्था यानी लिव इन में वैवाहिक जिंदगी की हसरतें तो पूरी होती हैं, एकदूसरे का साथ भी मिलता है पर लंबी जिम्मेदारियां निभाने का कोई वादा नहीं होता. कभी भी अलग हो जाने की आजादी रहती है. यह कौंसैप्ट शादी के लिए तैयार नहीं लोगों को लुभावना नजर आता है, पर अंदर से उतना ही खोखला और अस्थाई तो है ही, पर उस में भी बहुत जिम्मेदारियां भरी पड़ी हैं. शायद यही वजह है कि ज्यादातर लोग खासकर लड़कियां आज भी इसे स्वीकार नहीं कर पातीं.
अधूरेपन की कसक
एक तरह से यह रिश्ता धार्मिक मान्यताओं की जकड़न, सामाजिक रीतिरिवाजों और शोशेबाजी के रंग से दूर है और कानून ने भी इसे कुछ हद तक मान्यता दे दी है. मगर फिर भी इस रिश्ते के अधूरेपन को अनदेखा नहीं किया जा सकता खासकर लड़कियां इस तरह के रिश्ते में कई बार गहरी मानसिक पीड़ा से गुजरती हैं.
दरअसल, लिव इन में रिश्ता जब गहरा होता है और दोनों एकदूसरे के करीब आते हैं, शारीरिक संबंध बनते हैं, तो वह जज्बा लड़की के मन में हमेशा साथ रहने की चाहत को जन्म देता है.
50 मिनट की नजदीकी 50 सालों के साथ की इच्छा में बदलने लगती है. मगर जरूरी नहीं कि लड़का भी इसी रूप में सोचे और जिम्मेदारियां निभाने को तैयार हो जाए.
ज्यादातर मामलों में इस बात पर रिश्ता टूट जाता है और अंतत: शारीरिक प्रेम की बुनियाद पर बना यह रिश्ता उम्र भर की कसक बन कर रह जाता है. कई दफा इस टूटन से उत्पन्न पीड़ा इतनी गहरी होती है कि लड़की स्वयं को खत्म कर लेने जैसा बेवकूफी भरा कदम उठाने को भी तैयार हो जाती है जैसाकि प्रत्यूषा ने किया.
ऐसे रिश्तों में प्यार कम विवाद ज्यादा
इस रिश्ते में लड़केलड़कियों का एकदूसरे पर पूरा हक नहीं होता. वे जौइंट डिसीजन भी नहीं ले सकते. जैसाकि विवाहित दंपती लेते हैं. उदाहरण के लिए संपत्ति या तो लड़के की होती है या फिर लड़की की. दोनों का हक नहीं होता. दूसरे का यह पूछने का हक नहीं कि रुपए किस प्रकार खर्च हो रहे हैं. दोनों अपने रुपए अपने हिसाब से खर्च करते हैं.
इसी वजह से अकसर इन के बीच हक और अधिकार की लड़ाई होती रहती है. इन विवादों का निबटारा सहज नहीं होता. वे प्रयास करते हैं कि प्यार जता कर या आपस में बात कर मसला सुलझाया जाए, मगर अकसर ऐसा हो नहीं पाता, क्योंकि किसी भी रिश्ते को बनाए रखने और 2 लोगों को करीब रखने के लिए जो गुण सब से ज्यादा जरूरी हैं वे हैं, विश्वास, ईमानदारी, पारदर्शिता और आत्मिक निकटता.
इन्हें विकसित करने के लिए समय चाहिए होता है. महज भौतिक या शारीरिक निकटता मानसिक और भावनात्मक जुड़ाव भी दे, यह जरूरी नहीं. ऐसे खोखले रिश्ते में कड़वाहट का दौर आसानी से खत्म नहीं होता.
जिम्मेदारियों से भागना सिखाता है लिव इन
लिव इन रिलेशनशिप वास्तव में भावनात्मक बंधन के आधार पर साथ रहने का एक व्यक्तिगत और आर्थिक प्रबंध मात्र है. इस में हमेशा के लिए एकदूसरे का साथ देने का कोई वादा नहीं होता, न ही पूरे समाजकानून के आगे इस तरह का कोई अनुबंध ही किया जाता है. इस वजह से पार्टनर्स एकदूसरे पर (लिखित/मौखिक) किसी तरह का कोई दबाव नहीं बना सकते. ऐसा रिश्ता एक तरह से रैंटल ऐग्रीमैंट के समान होता है. यह बड़ी सहजता से बनाया जाता है और जब तक दोनों पक्ष सही व्यवहार करते हैं, एकदूसरे को खुश रखते हैं तभी तक वे साथ होते हैं. इस के विपरीत शादी इस पार्टनरशिप से बहुत ज्यादा गहरी है. यह एक सार्वभौमिक तौर पर किया गया अनुबंध है, जिस के साथ कानूनी और सामाजिक जिम्मेदारियां जुड़ी होती हैं. वस्तुत: शादी न सिर्फ 2 लोगों वरन 2 परिवारों व समुदायों के बीच बनाया गया रिश्ता है, जो उम्र भर के लिए स्वीकार्य है. जीवन में कितने भी दुख, परेशानियां आएं, आपसी बंधन कायम रखने का वादा किया जाता है.
कहा जा सकता है कि जब दिल मिल रहे हों तो रस्मोरिवाज की क्या जरूरत? मगर यहां बात सिर्फ रस्मों की नहीं वरन सामाजिक तौर पर की गई कमिटमैंट की है, सदैव जिम्मेदारियां उठाने की कमिटमैंट, हमेशा साथ निभाने की कमिटमैंट, विवाह में एक डिफरैंट लैवल की कमिटमैंट होती है, इसलिए एक डिफरैंट लैवल की सुरक्षा, आजादी और परिणामस्वरूप डिफरैंट लैवल की खुशी भी प्राप्त होती है. यह उस से बिलकुल अलग है, जो रिश्ता महज तब तक निभाया जाता है जब तक कि परस्पर प्यार और आकर्षण कायम है. बेहतर विकल्प मिलते ही अलग होने का रास्ता खुला होता है. हमेशा इस बात के लिए तैयार रहना पड़ता है कि कभी भी रिश्ता खत्म हो सकता है.
वफा चाहिए तो लिव इन नहीं
जब बात वफा की आती है, तो शादीशुदा पार्टनर इस दृष्टि से काफी लौयल पाए जाते हैं. 5 सालों के एक अध्ययन के मुताबिक 90% विवाहित महिलाएं पतिव्रता पाई गईं, जबकि लिव इन में रह रहीं सिर्फ 60% महिलाएं ही लौयल निकलीं.
पुरुषों के मामले में स्थिति और भी ज्यादा आश्चर्यजनक रही. 90% विवाहित पुरुष अपनी पत्नी के प्रति वफादार रहे, जबकि लिव इन के मामले में केवल 43% पुरुष.
यही नहीं, लिव इन का प्रकोप यानी प्रीमैरिटल सैक्सुअल ऐटीट्यूड और बिहेवियर शादी के बाद भी नहीं बदलता. यदि एक महिला शादी से पहले किसी पुरुष के साथ रहती है, तो यह काफी हद तक संभव है कि वह शादी के बाद भी अपने पति को धोखा देगी.
अध्ययनों व अनुसंधानों के मुताबिक यदि कोई शख्स शादी से पहले सैक्स का अनुभव करता है, तो इस की संभावना काफी ज्यादा रहती है कि शादी के बाद भी उस के ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स रहेंगे. यह खासतौर पर महिलाओं के लिए ज्यादा सच है.
पेरैंट्स से दूरी
लिव इन में रह रहे लड़केलड़कियों की जिंदगी में सामान्यतया मांबाप का दखल नाममात्र का होता है, क्योंकि इस बाबत उन की सहमति नहीं होती और वे अपने बच्चों से दूरी बना लेते हैं.
यदि वे घर वालों को इस बात की जानकारी नहीं देते, तो ऐसे में इस राज को छिपा कर रखना भी आसान हीं होता. कई तरह के मसले जैसे मांबाप से पैसों की मदद लेना, पार्टनर और उस के सामान को छिपाना जब अभिभावक अचानक मिलने आ रहे हों, लगातार उन की इच्छा के विरुद्ध जाने का अपराधबोध और झूठ बोलना जैसी बहुत सी बातें हैं, जो लिव इन में रहने वालों को बेचैन करती हैं.
विश्वास की कमी
जो शादी से पहले साथ रहते हैं, उन में अकसर अविश्वास का भाव विकसित होता है. परिपक्व प्रेम में गहरा विश्वास होता है कि आप का प्यार सिर्फ आप का है और कोई बीच में नहीं. मगर शादी से पहले ही नजदीकी बना लेने पर व्यक्ति के मन में कई तरह के शक पैदा होने लगते हैं कि कहीं इस की जिंदगी में मुझ से पहले भी तो कोई नहीं रहा या मेरे अलावा भविष्य में किसी और के साथ भी इस के संबंध तो नहीं बन जाएंगे.
इस तरह के अविश्वास और संदेह के भाव गहराने से व्यक्ति धीरेधीरे अपने पार्टनर के प्रति प्यार व सम्मान खोने लगता है जबकि शादीशुदा जिंदगी में विश्वास एक अहम फैक्टर होता है.
– 68% युवाओं का कहना था कि लिव इन प्यार (लव) नहीं वासना (लस्ट) है.
– 72% ने माना कि लिव इन का अंत ब्रेकअप में होता है.
– 36% महिलाओं ने ही इसे अच्छा माना.
– 52% युवा लड़कों ने लिव इन की जिंदगी जीने में रुचि दिखाई.
– 89% अभिभावकों ने कहा कि विवाह से पूर्व सैक्स स्वीकार्य नहीं.
– 51% युवाओं ने ही इसे गलत माना.
यशराज प्रोडक्शंस व औरमैक्स मीडिया द्वारा किए गए ‘शुद्ध देशी इंडिया की रोमांटिक सोच’ सर्वे से प्राप्त आंकड़े.
पहले मजा बाद में सजा
‘‘देश की अदालतों में लिव इन में रहने वाले जोड़ों के मुकदमे दिनबदिन बढ़ रहे हैं. शारीरिक व भौतिक जरूरत के लिए लिव इन में रहना बाद में मुश्किल भी खड़ी कर सकता है. इन मामलों में आमतौर पर शादी का वादा कर के मुकरना, घरेलू हिंसा और यहां तक कि बलात्कार करने तक का संगीन आरोप लगता है. आपसी झगड़े का रूप कईकई बार बेहद आपराधिक हो जाता है. लड़कियां आत्महत्या कर लेती हैं, तो कई मामलों में लड़कियों की हत्या भी कर दी जाती है. हालिया हुई कई वारदातें इस बात का सुबूत हैं.’’
– अवधेश कुमार दुबे, ऐडवोकेट, दिल्ली हाई कोर्ट
आसान नहीं रहती जिंदगी
‘‘भारत में शहरी जनसंख्या खुले विचारों की है. उस पर पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव भी है. आज शिक्षा और नौकरी के कारण युवा बड़ी संख्या में अपने घरों से दूर रह रहे हैं, इसलिए लिव इन रिलेशनशिप का चलन लगातार बढ़ रहा है. आज की पीढ़ी के लिए यह एक अच्छा चलन है, क्योंकि इस में विवाह जितनी जटिलताएं नहीं हैं. इस में मूव इन और मूव आउट काफी आसान है. लेकिन यही इस रिश्ते की सब से बड़ी कमी भी है, क्योंकि इसी के कारण इस रिश्ते में असुरक्षा और अनिश्चित भविष्य की चिंताएं घर करने लगती हैं. अकसर लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले लोग असुरक्षा, गुस्सा, दुख, भ्रम, अवसाद और भावनात्मक उथलपुथल के शिकार हो जाते हैं.
‘‘भारतीय समाज का तानाबाना ऐसा है कि यहां आज भी लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले लोगों पर परिवार और समाज का बहुत अधिक दबाव होता है. थोड़ी उम्र बीतने के बाद हर इनसान अपने जीवन में स्टैबिलिटी चाहता है, अपना परिवार बढ़ाना चाहता है. लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले लोगों में बच्चों को जन्म देने, उन्हें समाज, परिवार की मान्यता मिलने और उन के भविष्य को ले कर कई प्रकार की आशंकाएं होती हैं. वे हमेशा इस द्वंद्व में रहते हैं कि परिवार बढ़ाएं या न बढ़ाएं? इन पर हमेशा एक मानसिक दबाव रहता है. इस सब का मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. मानसिक दबाव के कारण
इन लोगों का इम्यून सिस्टम भी कमजोर हो जाता है, जो इन्हें बीमारियों का आसान शिकार बनाता है.’’
– डा. गौरव गुप्ता, मनोचिकित्सक
VIDEO : फंकी लेपर्ड नेल आर्ट
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‘‘नहीं, आज नहीं,’’ अजय ने जैसे ही भारती को अपने करीब खींचने की कोशिश की, भारती ने झट से उसे पीछे धकेल दिया.
‘‘यह क्या है? कुछ समय से देख रहा हूं कि जब भी मैं तुम्हारे पास आना चाहता हूं, तुम कोई न कोई बहाना बना कर दूर भागती हो. क्या अब मुझ में दिलचस्पी खत्म हो गई है?’’ अजय ने क्रोधित स्वर में पूछा.
‘‘मुझे डर लगता है,’’ भारती ने उत्तर दिया.
‘‘2 बच्चे हो गए, अब किस बात का डर लगता है?’’ अजय हैरान था.
‘‘इसीलिए तो डर लगता है कि कहीं फिर से प्रैग्नैंट न हो जाऊं. तुम से कहा था कि मैं औपरेशन करा लेती हूं, पर तुम माने नहीं. तुम गर्भनिरोधक का इस्तेमाल करना पसंद नहीं करते, इसलिए मैं किसी किस्म का रिस्क नहीं लेना चाहती हूं.’’
भारती की बात सुन कर अजय दुविधा में पड़ गया कि पत्नी कह तो ठीक रही है, लेकिन वह भी क्या करे? उसे कंडोम का इस्तेमाल करना पसंद नहीं था. उसे लगता था कि इस से सहवास का मजा बिगड़ जाता है, जबकि भारती को लगता था कि अगर वे कोई कौंट्रासेप्टिव इस्तेमाल कर लेंगे तो यौन संबंधों का वह पूरापूरा आनंद उठा सकेगी.
अब सुजाता की ही बात लें. उस का बेटा 8 महीने का ही था कि उसे दोबारा गर्भ ठहर गया. उसे अपने पति व स्वयं पर बहुत क्रोध आया. वह किसी भी हालत में उस बच्चे को जन्म देने की स्थिति में नहीं थी, न मानसिक न शारीरिक रूप से और न ही आर्थिक दृष्टि से. पहले बच्चे के जन्म से पैदा हुई कमजोरी अभी तक बनी हुई थी, उस पर उसे गर्भपात का दर्द झेलना पड़ा. वह शारीरिक व मानसिक तौर पर इतनी टूट गई कि उस ने पति से एक दूरी बना ली, जिस की वजह से उन के रिश्ते में दरार आने लगी. जब पति कंडोम का इस्तेमाल करने को राजी हुए तभी उन के बीच की दूरी खत्म हुई.
प्रैग्नैंसी का डर नहीं रहता
अगर पति या पत्नी दोनों में से एक भी किसी गर्भनिरोधक का प्रयोग करता है, तो महिला के मन में प्रैग्नैंट हो जाने का डर नहीं होता, जिस से वह यौन क्रिया का आनंद उठा पाती है. अगर पत्नी इस क्रिया में खुशी से पति का सहयोग देती है, तो दोनों को ही संतुष्टि मिलती है. अगर इस दौरान पत्नी तनाव में रहे और बेमन से पति की बात माने तो पति का असंतुष्ट रह जाना स्वाभाविक है. गर्भ ठहर जाने के डर से पत्नी का ध्यान उसी ओर लगा रहता है. यही नहीं, उस के बाद भी जब तक उसे मासिकधर्म नहीं हो जाता, वह तनाव में ही जीती है. पति से जितनी दूरी हो सके वह बनाए रखने की कोशिश करती है. वह जानती है कि गर्भवती होने पर बारबार गर्भपात करवाने का झंझट कितना तकलीफदेह होता है. बारबार गर्भपात कराने से उस की सेहत पर भी बुरा असर पड़ता है.
तनावमुक्त संबंध
इंडियाना यूनिवर्सिटी के किसी इंस्टिट्यूट के नए आंकड़े बताते हैं कि अधिकांश औरतों का मानना है कि गर्भनिरोधक तरीके चाहे वे हारमोनल कौंट्रासेप्टिव हों या कंडोम, यौन संतुष्टि व उस के आनंद में कई गुना बढ़ोतरी कर देते हैं. तनावमुक्त यौन संबंध आपसी रिश्तों में तो उष्मा बनाए ही रखते हैं, साथ ही आनंद की चरम सीमा तक भी पहुंचा देते हैं.
दिल्ली के फोर्टिस एस्कौर्ट्स हार्ट इंस्टिट्यूट की सीनियर क्लीनिकल साइकोलौजिस्ट डा. भावना बर्मी के अनुसार, अवरोध या किसी तरह का तनाव या फिर दबाव एक तरह का मनोवैज्ञानिक भय होता है, जिस के चलते हमारा मन ही नहीं, शरीर भी असहज हो जाता है. खासकर यौन संबंधों को ले कर मन व शरीर दोनों को ही ऐसे में कुछ अच्छा नहीं लगता है और तब वे अपने को हर तरह के आनंद से दूर कर लेते हैं. अगर शरीर चाहता भी है तो मन का अवरोध उसे रोक लेता है. तनाव के न होने पर जिस स्थिति को हम ‘कंडीशंड रिफलैक्स औफ द बौडी’ कहते हैं, वह यौन संबंधों को आनंददायक बना देता है. जाहिर सी बात है कि अगर गर्भवती होने या गर्भपात करवाने का तनाव न हो तो महिला उन्मुक्त हो कर यौन संबंधों का आनंद उठा सकती है.
रहती है बेफिक्री
गर्भनिरोधकों का प्रयोग करने से युगल को इस बात का डर नहीं रहता कि उन्हें अनचाही प्रैग्नैंसी का सामना करना पड़ेगा. चूंकि ये कौंट्रासेप्टिव एक सुरक्षाकवच की तरह काम करते हैं, इसलिए सैक्स के दौरान एक बेफिक्री औरत में रहती है, जो उस के हावभाव व पति को दिए जा रहे सहयोग में नजर आती है.
दिल्ली के फोर्टिस एस्कौर्ट्स हौस्पिटल की गाइनेकोलौजिस्ट डा. निशा कपूर कहती हैं, ‘‘इन के इस्तेमाल से औरत के दिमाग में एक सिक्योरिटी से रहती है कि अवांछित प्रैग्नैंसी या गर्भपात से उस का बचाव हो रहा है. इस कारण सैक्सुअल आनंद में बढ़ोतरी होती है और सहवास करने से पहले उसे सोचना नहीं पड़ता या इस से बचने के बहाने नहीं सोचने पड़ते. वैवाहिक जीवन को सुखी व सैक्स जीवन को आनंदमय बनाने के लिए इन का इस्तेमाल किया जा सकता है.’’
कौंट्रासेप्टिव चाहे पति इस्तेमाल करे या पत्नी, यह निर्णय तो उन दोनों का होता है, पर यह सही है कि कौंट्रासेप्टिव सैक्स के आनंद की चाबी होते हैं. सहवास करते समय दोनों के मन में अगर किसी तरह की टैंशन हो तो सिवा मनमुटाव के कोई परिणाम सामने नहीं आता है. लेकिन बेफिक्री और सहर्ष बनाए गए यौन संबंध वैवाहिक जीवन में तो दरार डालने से बचाते ही हैं, साथ ही सैक्स के आनंद को भी दोगुना कर देते हैं.
मैं 25 वर्षीय वयस्क हूं. मैं बहुत सी रिलेशनशिप में रह चुका हूं. पर अब मेरी रिलेशनशिप और प्यारव्यार के चक्करों में पड़ने की इच्छा नहीं रही. अब मुझे नहीं लगता कि मैं किसी से उस तरह प्यार कर भी पाऊंगा जैसा मुझे मेरी पहली गर्लफ्रैंड से हुआ था. मेरे औफिस में एक लड़की है. मेरी बहुत अच्छी दोस्त है. मैं उस के प्रति आकर्षण महसूस करता हूं परंतु उस का दिल दुखाने से डरता हूं. मैं क्या करूं?
जवाब
आप को अपने अतीत से बाहर निकलने की जरूरत है. आप को 1-2 बार प्यार में मंजिल नहीं मिली, इस का मतलब यह नहीं कि आप खुद को प्रेम में पड़ने से ही रोक दें. आप उस लड़की की तरफ आकर्षित हैं तो आप के प्यार में पड़ने की संभावनाएं भी हैं. आप इस तरह अपनेआप को प्रेम करने से रोकेंगे और उस की तरफ आकर्षित भी होते रहेंगे तो इस से आप का मन कभी शांत नहीं हो पाएगा और कहीं ऐसा न हो कि आप की अकुलाहट को वह कभी दोस्ती से ज्यादा समझे ही न और किसी दूसरे व्यक्ति के साथ प्रेम में पड़ जाए. समय रहते उस से अपने मन की बात कह दीजिए, खुद को प्रेम में पड़ने से मत रोकिए. हो सकता है आप दोनों का प्रेम परवान चढ़े और यह आप की जिंदगी का सब से अच्छा फैसला साबित हो.
मैं 12वीं कक्षा में पढ़ता हूं. मेरी गर्लफ्रैंड 11वीं कक्षा में है…
सवाल
मैं 12वीं कक्षा में पढ़ता हूं. मेरी गर्लफ्रैंड 11वीं कक्षा में है. हम एक-दूसरे से बहुत प्यार करते हैं. मैं उसे छोड़ कर इस स्कूल से नहीं निकलना चाहता. मैं यदि 12वीं में फेल हो जाऊं तो यह संभव है, पर मुझे समझ नहीं आ रहा कि ऐसा करना सही होगा या नहीं?
जवाब…
इस उम्र में लड़का-लड़की सिर्फ अपनी दुनिया में खोए होते हैं. जैसे ही हकीकत की जमीन पर आते हैं तो गुब्बारे की हवा की तरह उन का प्यार भी फुस हो जाता है. फेल होने जैसी बेवकूफी न करें. यह समय अपने भविष्य को संवारने का है, प्रेम संबंधों में पड़ कर अपने जीवन के कीमती समय को व्यर्थ करने का नहीं. आप के मातापिता को आप से बहुत उम्मीदें हैं. आप के पास पछताने के सिवा कुछ नहीं बचेगा.
यूं तो महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए पूरी दुनिया में अनेक कदम उठाए जा रहे हैं. लेकिन आज भी कई जगहें ऐसी हैं जहां महिलाओं को हवस मिटाने का जरिया समझा जाता है. आज हम आपको एक ऐसी जगह के बारे में बताएंगे जहां महिलाओं के साथ यौन शोषण के नाम पर जो होता है उसे सुनकर आपकी रूह कांप जाएगी. यहां पर ये लोग लड़कियों को कामुक बने रहने के लिए ड्रग्स का सेवन करने के लिए मजबूर करते हैं.
मामला उत्तर प्रदेश का है, जहां कई बड़े शहरों में चल रहे अनैतिक काम के अड्डों पर अवयस्क लड़कियों को खूबसूरत-जवान और कामुक बनाने के लिये खतरनाक ड्रग्स के इंजेक्शन दिये जाते हैं. तीन-चार दिन तक लगातार इंजेक्शन दिये जाने के बाद लड़कियों को इंजेक्शन की लत पड़ जाती है फिर वो खुद बिना इंजेक्शन रह नहीं पाती.
इस मामले का खुलासा आगरा के रेड लाइट ऐरिया से छुड़ायी गयी लड़कियों ने पुलिस के सामने किया है. चिकित्साविज्ञानियों के अनुसार रेड लाइट ऐरिया में लड़कियों को संभवतः वो इंजेक्शन दिये जा रहे थे जिनको डॉक्टर्स विशेष परिस्थितियों में किसी रोगी को प्रेसक्राइब्ड करते हैं. क्यों कि ऐसे ड्रग्स लगातार या ज्यादा मात्रा में लेने से मेंटल और फिजिकल डिसऑर्डर की भी आशंका रहती है.
चिकित्सा विज्ञानियों का यह भी कहना है कि अगर इस ड्रग्स का इंजेक्शन किसी 15-16 साल की लड़की को दिया जा रहा है तो 20-22 साल की होने से पहले ही उसकी हड्डियां कमजोर हो जाती हैं. और बहुत ही कम उम्र में ही अर्थराइटिस की शिकार हो सकती है. इसके अलावा वो किसी न किसी मनोरोग की भी शिकार हो सकती है. इस ड्रग्स का सबसे बड़ा साइड इफेक्ट ये है कि कोई दूसरी ड्रग्स अपना पूरा असर कभी डाल ही नहीं पाती और लड़की पूरी जिंदगी रोगी बनी रहती है. कोई देखभाल करने वाला न हो तो कम उम्र में मृत्यु की भी आशंका बढ़ जाती है.
सवाल मेरे पति की जिंदगी में कोई लड़की है जो रात के वक्त उन्हें रोमांटिक मैसेजेज भेजती है. पति ने यह बात स्वयं मुझे बताई थी. वे उस लड़की को तवज्जुह नहीं देते. मगर आजकल वे मुझ से छिप कर उस लड़की के मैसेज पढ़ने लगे हैं. मुझे डर लगने लगा है कि कहीं वह मेरे पति को मुझ से छीन न ले. उन्होंने अपने मोबाइल में पासवर्ड भी डाल दिया है ताकि मैं उसे चैक न कर सकूं.
जवाब
सर्वप्रथम अपने मन में विश्वास रखें. अगर आप का पति के साथ रिश्ता मजबूत है तो कोई तीसरा आसानी से बीच में नहीं आ सकता. आप पति के साथ पहले की तरह ही व्यवहार कीजिए. बारबार शक की नजरों से देखने पर वे आप से बातें छिपाने लगेंगे. बेहतर होगा कि उन की जिंदगी में दखल देने के बजाय उन्हें अपने खूबसूरत साथ का हर पल एहसास दिलाएं और उस लड़की को अपने बीच में आने ही न दें. यदि फिर भी आप को लगे कि अब पति हाथ से निकल चुके हैं तो स्पष्ट तौर पर उन से इस संदर्भ में बात करें.
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सैक्स लाइफ में इन चीजों की हो नो ऐंट्री
दिलीप ने जब रुही से यह कहा कि वह बिस्तर पर अब पहले जैसा साथ नहीं देती, तो वह यह सुन कर परेशान हो उठी. फिर रुही ने सैक्स ऐक्सपर्ट डा. चंद्रकिशोर कुंदरा से संपर्क किया. डा. कुंदरा के मुताबिक, सैक्स सफल दांपत्य जीवन का महत्त्वपूर्ण आधार है. इस की कमी पतिपत्नी के रिश्ते को प्रभावित करती है. पतिपत्नी की एकदूसरे के प्रति चाहत, लगाव, आकर्षण खत्म होने के कई कारण होते हैं जैसे शारीरिक, मानसिक, लाइफस्टाइल. ये सैक्स ड्राइव को कमजोर बनाते हैं.
तनाव: औफिस, घर का वर्कलोड, आर्थिक समस्या, असमय खानपान आदि का सीधा असर तनाव के रूप में नजर आता है, जो हैल्थ के साथसाथ सैक्स लाइफ को भी प्रभावित करता है.
डिप्रैशन: यह सैक्स का सब से बड़ा दुश्मन है. यह पतिपत्नी के संबंधों को प्रभावित करने के साथसाथ परिवार में कलह को भी जन्म देता है. डिप्रैशन के कारण वैसे ही सैक्स की इच्छा में कमी आ जाती है. ऊपर से डिप्रैशन की दवा का सेवन भी कामेच्छा को खत्म करने लगता है.
नींद पूरी न होना: 4-5 घंटे की नींद से हम फ्रैश फील नहीं कर पाते, जिस से धीरेधीरे हमारा स्टैमिना कम होने लगता है. इतना ही नहीं सैक्स में भी हमारा इंट्रैस्ट नहीं रहता है.
गलत खानपान: वक्तबेवक्त खाना और जंक फूड व प्रोसैस्ड फूड का सेवन भी सैक्स ड्राइव को खत्म करता है.
टेस्टोस्टेरौन की कमी: शरीर में मौजूद यह हारमोन हमारी सैक्स इच्छा को कंट्रोल करता है. इस की कमी से पतिपत्नी दोनों ही प्रभावित होते हैं.
बर्थ कंट्रोल पिल्स: बर्थ पिल्स महिलाओं में टेस्टोस्टेरौन लैवल को कम करती हैं, जिस से महिलाओं में सैक्स संबंधों को ले कर विरक्ति हो जाती है. पतिपत्नी का दांपत्य जीवन तभी सफल होता है, जब सैक्स में दोनों एकदूसरे को सहयोग करें. सैक्स एक दोस्त की तरह भी जीवन में रंग भर देता है. शादीशुदा जिंदगी से प्यार की कशिश और इश्क का रोमांच खत्म होने लगा है तो सावधान हो जाएं.
यदि आप की सैक्स लाइफ अच्छी है तो इस का सकारात्मक प्रभाव आप की सेहत पर भी पड़ता है.
जानिए, सैक्स के सेहत से जुड़े कुछ फायदे:
शारीरिक तथा मानसिक पीड़ा में राहत दिलाता है: सैक्स के समय शरीर में हारमोन पैदा होते हैं, जो दर्द की अनुभूति कम करते हैं. भले ही कुछ समय के लिए.
सर्दीजुकाम के असर को कम करता है: सैक्स गरमी, सर्दीजुकाम के प्रभाव को काफी हद तक कम कर देता है. अमेरिका स्थित ओहियो यूनिवर्सिटी के अध्ययन बताते हैं कि चुंबन एवं प्यारदुलार करने से रक्त में बीमारियों से लड़ने वाले टी सैल्स की तादाद बढ़ जाती है.
मानसिक तनाव को कम करता है: सैक्स मन को शांति देने के साथसाथ मूड को भी बढि़या बनाने वाले हारमोन ऐंडोर्फिंस के उत्पादन में वृद्धि करता है. इस के मानसिक तनाव कम हो जाता है.
मासिकधर्म के पूर्व की कमी को कम करता है: सैक्स में लगातार गरमी के चलते ऐस्ट्रोजन स्तर काफी हद तक कम होता है. इस दौरान शरीर में थकान कम महसूस होती है.
दिल के रोग और दौरों की आशंका कम होती है: अकसर दिल के मरीजों को सैक्स संबंध बनाने से दूर रहने की सलाह दी जाती है. मगर अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ हृदयरोग विशेषज्ञ, डा. के.के. सक्सेना के अनुसार, पत्नी के साथ सैक्स संबंध बनाने से पूरे शरीर का समुचित व्यायाम होता है, जिस से दिमाग तनावरहित हो जाता है. दिल के दौरों की आशंका कम हो जाती है. सैक्स संबंध बनाने से धमनियों में रक्त का प्रवाह और हृदय की मांसपेशियों की क्षमता बढ़ती है.
मेरा पिछले महीने ब्रेकअप हुआ है. मुझे लगने लगा है कि मैं डिपै्रशन में जा रही हूं. जिस से मेरा सब से ज्यादा बात करने का मन करता है उसी से बात करने में मैं सब से ज्यादा असमर्थ हूं. मैं न रात में सो पा रही हूं न मुझे दिन में किसी तरह का चैन आता है. खानेपीने और बाकी दिनचर्या पर भी असर पड़ा है. कुछ भी करती हूं तो बस उसी का खयाल बारबार आता है, उस के साथ बिताए पल ही याद आते हैं. मेरी अपने दोस्तों से भी लड़ाई हो गई है क्योंकि उन्हें लगता है मैं उन से बात नहीं करती या बदल चुकी हूं. कालेज के असाइनमैंट भी अब तक नहीं किए. कुछ करने का मन नहीं करता, बस बेसुध पड़े रहने को मन होता है. मैं क्या करूं, कुछ समझ नहीं आ रहा है.
दिल टूटने पर अकसर यही होता है, मन किसी और चीज में नहीं लगता और बेचैनी बढ़ती जाती है. आप को इस स्थिति से खुद को निकालना ही होगा. खुद को समझाएं कि जो जा चुका है उस के लौटने की उम्मीद छोड़ दें. आप के दोस्त आप के साथ नहीं न सही लेकिन कोई तो होगा जो आप की बात सुनता होगा, उस से बातें कर अपना मन हलका करने की कोशिश करें. बात करने के लिए कोई न हो तो अपने दिल का हाल कागज पर लिखें, इस से जो बातें आप के अंदर भरी पड़ी हैं वे निकल जाएंगी. कुछ करने का मन न करे, तब भी खुद को फोर्स करें उस काम को करने के लिए, जैसे आप का असाइनमैंट या खानापीना.
अपने दुख को इतना न बढ़ने दें कि वह अवसाद बन जाए.
आप को शायद अभी एहसास न हो रहा हो लेकिन आप अपनी जिंदगी के अच्छे पलों और अच्छे दोस्तों को किसी और के गम में नजरअंदाज कर रही हैं. दुखी होना जायज है लेकिन इतना नहीं कि आप खुद को बरबाद ही कर लें. प्यार में हारजीत नहीं होती, रिलेशनशिप में आना और ब्रेकअप होना जिंदगी का एक हिस्सा मात्र है, इस से निकलने की तरफ ध्यान दें, यादों में डूबी न रहें.
अकसर आप ने सुना होगा कि पीरियड्स में सैक्स करना सही नहीं माना जाता है. यहां तक कि आज भी कई जगह पीरियड्स के दौरान महिलाओं को अपने घर में ही पराया बना दिया जाता है. उन्हें पति से दूरी बनाने को कहा जाता है, रसोईघर में घुसने नहीं दिया जाता है, यहां तक कि महिलाएं पीरियड्स के दौरान खुद को सब से अलगथलग कर लेती हैं, जिस से ऐसा लगता है कि उन के लिए पीरियड्स अभिशाप हों, जबकि हमें यह मानना होगा कि यह उन्हें प्रकृति की देन है.
1972 में जब ‘द जौय औफ सैक्स : ए गोरमैट गाइड टू लवमेकिंग’ नामक एक बैस्ट सैलर पुस्तक प्रकाशित हुई थी तब पीरियड्स के दौरान सैक्स की मनाही थी. लेकिन लेखक ने पीरियड्स के दौरान सैक्स को पौजिटिव नजरिए से देखा और यह वास्तव में सही भी है.
ऐसा माना जाता है कि पीरियड्स में सैक्स लंबे समय से सांस्कृतिक व धार्मिक कारणों से निंदा का कारण बन गया है. अभी भी बहुत से लोग मानते हैं कि यह खतरनाक व बुरा है. लेकिन शिक्षा के माध्यम से इस भ्रांति को दूर करने की कोशिश की जा रही है.
अनेक शोधों से तो यह भी पता चला है कि पीरियड्स के दौरान सैक्स के काफी फायदे हैं व महिलाएं पीरियड्स के दौरान बहुत ज्यादा कामोत्तेजित हो जाती हैं, क्योंकि योनि से अधिक खून का बहाव जो होता है, इसलिए महिलाओं में होने वाली इस प्राकृतिक प्रक्रिया को स्वीकार करें, क्योंकि यह उन की सिर्फ शारीरिक खुशहाली के लिए ही नहीं, बल्कि मानसिक खुशहाली के लिए भी आवश्यक है.
पीरियड्स की अवधि का कम होना : संभोग के दौरान मांसेपशियों में संकुचन तेजी से होने से पीरियड्स का खून तेजी से बाहर निकलता है, जिस का मतलब है कि अगर आप के पीरियड्स 7 दिन तक चलेंगे तो संभोग के कारण उन की अवधि घट कर 2-3 दिन हो जाती है.
दर्द से राहत : पीरियड्स में मांसपेशियों में जो ऐंठन होती है, संभोग उसे शांत करता है, क्योंकि इस से खून का प्रवाह बढ़ता है और ऐंड्रोफिंस रिलीज होता है जो दर्द से राहत दिलाने का काम करता है.
करे लुब्रिकेशन का काम : सैक्स के दौरान जितने लुब्रिकेशन की जरूरत होती है, कई महिलाओं में इस दौरान इस की कमी रहती है. लेकिन पीरियड्स के दौरान गुप्तांगों में ऐक्स्ट्रा फ्लूड रहता है.
सैक्स की इच्छा बढ़ाए : आप को बता दें कि महिलाओं में बड़ी तेजी से हार्मोन बदलते हैं खासकर प्रोजेस्टेरोन हार्मोन ओब्युलेशन से पहले ओवरीज से रिलीज होता है, जो ऐंड्रोमैट्रियन को अंडों को फलदायक बनाने के लिए तैयार करता है.
प्रोजेस्टेरोन को कामेच्छा कम करने के लिए जाना जाता है इसलिए यह हार्मोन सर्किल की शुरुआत में न्यून होता है और आप की सैक्स की इच्छा बढ़ जाती है. तनाव को कम करे : सैक्स से ऐंड्रोफिंस नामक कैमिकल्स रिलीज होते हैं जिस से आप अच्छा महसूस कर पाते हैं. इस से पीरियड्स के दौरान होने वाले तनाव में भी कमी आती है. सिरदर्द से राहत : ज्यादातर महिलाओं को इस दौरान पैन्स्ट्रूअल माइग्रेन की शिकायत होती है, लेकिन सैक्स से सिरदर्द से उन्हें राहत मिल सकती है. मूड को सुधारे : साबित हुआ है कि संभोग से ऐंड्रोफिंस हार्मोंस जैसे औक्सिटोसिन व डोपामाइन रिलीज होते हैं, जो पीरियड्स के लक्षणों को कम कर के मूड को सुधारने का काम करते हैं.
सेफ सैक्स के लिए यह भी जरूरी
* पीरियड्स के दौरान कंसीव करने के चांस बहुत कम होते हैं लेकिन अगर आप का पीरियड सर्किल छोटा है तो कंसीव करने के चांस काफी बढ़ जाते हैं, इसलिए अगर आप कंसीव नहीं करना चाहती हैं तो पीरियड्स की शुरुआत में ही सैक्स करें, वह भी सेफ तरीके से.
* पीरियड्स में सैक्स से सैक्सुअल ट्रांसमिटिड इंफैक्शन होने का भी डर रहता है, इसलिए सेफ सैक्स के लिए कंडोम वगैरह का इस्तेमाल करना न भूलें.
* वेजाइनल यीस्ट इंफैक्शन होने के चांसेज ज्यादा रहते हैं क्योंकि आप की योनि 3.8-4.5 के बीच पीएच लैवल को मैंटेन रखती है लेकिन मैंसुरेशन के दौरान यह बढ़ जाता है. इस का कारण है कि खून का पीएच लैवल काफी बढ़ा हुआ होता है.
* बैक्टीरिया को पनपने से रोकने के लिए जल्दीजल्दी सैनेटरी पैड्स वगैरह बदलें.
लिहाजा, सैक्स को ऐंजौय कर खुद को हैल्दी और ऐक्टिव रखें. साथ ही, पीरियड्स में सैक्स से जुड़ी भ्रांतियों को दूर करने की कोशिश करें.