इश्क के चक्कर में : किस ने रची थी वह खतरनाक साजिश- भाग 2

अगली पेशी के पहले मैं ने रियाज और नादिर के घर जा कर पूरी जानकारी हासिल  कर ली थी. रियाज का बाप नौकरी पर था. मां नगीना से बात की. वह बेटे के लिए बहुत दुखी थी. मैं ने उसे दिलासा देते हुए पूछा, ‘‘क्या आप को पूरा यकीन है कि आप के बेटे ने नादिर का कत्ल नहीं किया?’’

‘‘हां, मेरा बेटा कत्ल नहीं कर सकता. वह बेगुनाह है.’’

‘‘फिर आप खुदा पर भरोसा रखें. उस ने कत्ल नहीं किया है तो वह छूट जाएगा. अभी तो उस पर सिर्फ आरोप है.’’

नगीना से मुझे कुछ काम की बातें पता चलीं, जो आगे जिरह में पता चलेंगी. मैं रियाज के घर से निकल रहा था तो सामने के फ्लैट से कोई मुझे ताक रहा था. हर फ्लैट में 2 कमरे और एक हौल था. इमारत का एक ही मुख्य दरवाजा था. हर मंजिल पर आमनेसामने 2 फ्लैट्स थे. एक तरफ जीना था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, 17 अप्रैल की रात 2 बजे के करीब नादिर की हत्या हुई थी. उसे इसी बिल्डिंग की छत पर मारा गया था. उस की लाश पानी की टंकी के करीब एक ब्लौक पर पड़ी थी. उस की हत्या बोल्ट खोलने वाले भारी रेंच से की गई थी.

अगली पेशी पर अभियोजन पक्ष की ओर से कादिर खान को पेश किया गया. कादिर खान भी उसी बिल्डिंग में रहता था. बिल्डिंग के 5 फ्लैट्स में किराएदार रहते थे और एक फ्लैट में खुद मकान मालिक रहता था. अभियोजन के वकील ने कादिर खान से सवालजवाब शुरू किए.

लाश सब से पहले उसी ने देखी थी. उस की गवाही में कोई खास बात नहीं थी, सिवाय इस के कि उस ने भी रियाज को झगड़ालू और गुस्सैल बताया था. मैं ने पूछा, ‘‘आप ने मुलाजिम रियाज को गुस्सैल और लड़ाकू कहा है, इस की वजह क्या है?’’

‘‘वह है ही झगड़ालू, इसलिए कहा है.’’

‘‘आप किस फ्लैट में कब से रह रहे हैं?’’

‘‘मैं 4 नंबर फ्लैट में 4 सालों से रह रहा हूं.’’

‘‘इस का मतलब दूसरी मंजिल पर आप अकेले ही रहते हैं?’’

‘‘नहीं, मेरे साथ बीवीबच्चे भी रहते हैं.’’

‘‘जब आप बिल्डिंग में रहने आए थे तो रियाज आप से पहले से वहां रह रहा था?’’

‘‘जी हां, वह वहां पहले से रह रहा था.’’

‘‘कादिर खान, जिस आदमी से आप का 4 सालों में एक बार भी झगड़ा नहीं हुआ, इस के बावजूद आप उसे झगड़ालू कह रहे हैं, ऐसा क्यों?’’

‘‘मुझ से झगड़ा नहीं हुआ तो क्या हुआ, वह झगड़ालू है. मैं ने खुद उसे नादिर से लड़ते देखा है. दोनों में जोरजोर से झगड़ा हो रहा था. बाद में पता चला कि उस ने नादिर का कत्ल कर दिया.’’

‘‘क्या आप बताएंगे कि दोनों किस बात पर लड़ रहे थे?’’

‘‘नादिर का कहना था कि रियाज उस के घर के सामने से गुजरते हुए गंदेगंदे गाने गाता था. जबकि रियाज इस बात को मना कर रहा था. इसी बात को ले कर दोनों में झगड़ा हुआ था. लोगों ने बीचबचाव कराया था.’’

‘‘और अगले दिन बिल्डिंग की छत पर नादिर की लाश मिली थी. उस की लाश आप ने सब से पहले देखी थी.’’

एक पल सोच कर उस ने कहा, ‘‘हां, करीब 9 बजे सुबह मैं ने ही देखी थी.’’

‘‘क्या आप रोज सवेरे छत पर जाते हैं?’’

‘‘नहीं, मैं रोज नहीं जाता. उस दिन टीवी साफ नहीं आ रहा था. मुझे लगा कि केबल कट गया है, यही देखने गया था.’’

‘‘आप ने छत पर क्या देखा?’’

‘‘जैसे ही मैं ने दरवाजा खोला, मेरी नजर सीधे लाश पर पड़ी. मैं घबरा कर नीचे आ गया.’’

‘‘कादिर खान, दरवाजा और लाश के बीच कितना अंतर रहा था?’’

‘‘यही कोई 20-25 फुट का. ब्लौक पर नादिर की लाश पड़ी थी. उस की खोपड़ी फटी हुई थी.’’

‘‘नादिर की लाश के बारे में सब से पहले आप ने किसे बताया?’’

‘‘दाऊद साहब को बताया था. वह उस बिल्डिंग के मालिक हैं.’’

‘‘बिल्डिंग के मालिक, जो 5 नंबर फ्लैट में रहते हैं?’’

‘‘जी, मैं ने उन से छत की चाबी ली थी, छत की चाबी उन के पास ही रहती है.’’

‘‘उस दिन छत का दरवाजा तुम्हीं ने खोला था?’’

‘‘जी साहब, ताला मैं ने ही खोला था?’’

‘‘ताला खोला तो ब्लौक पर लाश पड़ी दिखाई दी. जरा छत के बारे में विस्तार से बताइए?’’

‘‘पानी की टंकी छत के बीच में है. टंकी के करीब छत पर 15-20 ब्लौक लगे हैं, जिन पर बैठ कर कुछ लोग गपशप कर सकते हैं.’’

‘‘अगर ताला तुम ने खोला तो मृतक आधी रात को छत पर कैसे पहुंचा?’’

‘‘जी, यह मैं नहीं बता सकता. दाऊद साहब को जब मैं ने लाश के बारे में बताया तो वह भी हैरान रह गए.’’

‘‘बात नादिर के छत पर पहुंचने भर की नहीं है, बल्कि वहां उस का बेदर्दी से कत्ल भी कर दिया गया. नादिर के अलावा भी कोई वहां पहुंचा होगा. जबकि चाबी दाऊद साहब के पास थी.’’

‘‘दाऊद साहब भी सुन कर हैरान हो गए थे. वह भी मेरे साथ छत पर गए. इस के बाद उन्होंने ही पुलिस को फोन किया.’’

इसी के बाद जिरह और अदालत का वक्त खत्म हो गया.

मुझे तारीख मिल गई. अगली पेशी पर माजिद की गवाही शुरू हुई. वह सीधासादा 40-42 साल का आदमी था. कपड़े की दुकान पर सेल्समैन था. फ्लैट नंबर 2 में रहता था. उस ने कहा कि नादिर और रियाज के बीच काफी तनाव था. दोनों में झगड़ा भी हुआ था. यह कत्ल उसी का नतीजा है.

अभियोजन के वकील ने सवाल कर लिए तो मैं ने पूछा, ‘‘आप का भाई कब से कब तक अपनी नौकरी पर रहता था?’’

‘‘सुबह 11 बजे से रात 8 बजे तक. वह 9 बजे तक घर आ जाता था.’’

‘‘कत्ल वाले दिन वह कितने बजे घर आया था?’’

‘‘उस दिन मैं घर आया तो वह घर पर ही मौजूद था.’’

‘‘माजिद साहब, पिछली पेशी पर एक गवाह ने कहा था कि उस दिन शाम को उस ने नादिर और रियाज को झगड़ा करते देखा था. क्या उस दिन वह नौकरी पर नहीं गया था?’’

‘‘नहीं, उस दिन वह नौकरी पर गया था, लेकिन तबीयत ठीक न होने की वजह से जल्दी घर आ गया था.’’

‘‘घर आते ही उस ने लड़ाईझगड़ा शुरू कर दिया था?’’

‘‘नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं है. घर आ कर वह आराम कर रहा था, तभी रियाज खिड़की के पास खड़े हो कर बेहूदा गाने गाने लगा था. मना करने पर भी वह चुप नहीं हुआ. पहले भी इस बात को ले कर नादिर और उस में मारपीट हो चुकी थी. नादिर नाराज हो कर बाहर निकला और दोनों में झगड़ा और गालीगलौज होने लगी.’’

‘‘झगड़ा सिर्फ इतनी बात पर हुआ था या कोई और वजह थी?’’ मैं ने पूछा.

‘‘यह आप रियाज से ही पूछ लीजिए. मेरा भाई सीधासादा था, बेमौत मारा गया.’’ जवाब में माजिद ने कहा.

‘‘आप को लगता है कि रियाज ने धमकी के अनुसार बदला लेने के लिए तुम्हारे भाई का कत्ल कर दिया है.’’

‘‘जी हां, मुझे लगता नहीं, पूरा यकीन है.’’

‘‘जिस दिन कत्ल हुआ था, सुबह आप सो कर उठे तो आप का भाई घर पर नहीं था?’’

‘‘जब मैं सो कर उठा तो मेरी बीवी ने बताया कि नादिर घर पर नहीं है.’’

‘‘यह जान कर आप ने क्या किया?’’

‘‘हाथमुंह धो कर मैं उस की तलाश में निकला तो पता चला कि छत पर नादिर की लाश पड़ी है.’’

‘‘पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, नादिर का कत्ल रात 1 से 2 बजे के बीच हुआ था. क्या आप बता सकते हैं कि नादिर एक बजे रात को छत पर क्या करने गया था? आप ने जो बताया है, उस के अनुसार नादिर बीमार था. छत पर ताला भी लगा था. इस हालत में छत पर कैसे और क्यों गया?’’

‘‘मैं क्या बताऊं? मुझे खुद नहीं पता. अगर वह जिंदा होता तो उसी से पूछता.’’

‘‘वह जिंदा नहीं है, इसलिए आप को बताना पड़ेगा, वह ऊपर कैसे गया? क्या उस के पास डुप्लीकेट चाबी थी? उस ने मकान मालिक से चाबी नहीं ली तो क्या पीछे से छत पर पहुंचा?’’

‘‘नादिर के पास डुप्लीकेट चाबी नहीं थी. वह छत पर क्यों और कैसे गया, मुझे नहीं पता.’’

‘‘आप कह रहे हैं कि आप का भाई सीधासादा काम से काम रखने वाला था. इस के बावजूद उस ने गुस्से में 2-3 बार रियाज से मारपीट की. ताज्जुब की बात तो यह है कि रियाज की लड़ाई सिर्फ नादिर से ही होती थी. इस की एक खास वजह है, जो आप बता नहीं रहे हैं.’’

‘‘कौन सी वजह? मैं कुछ नहीं छिपा रहा हूं.’’

‘‘अपने भाई की रंगीनमिजाजी. नादिर सालिक खान की छोटी बेटी फौजिया को चाहता था. वह फौजिया को रियाज के खिलाफ भड़काता रहता था. उस ने उस के लिए शादी का रिश्ता भी भेजा था, जबकि फौजिया नादिर को इस बात के लिए डांट चुकी थी. जब उस पर उस की डांट का असर नहीं हुआ तो फौजिया ने सारी बात रियाज को बता दी थी. उसी के बाद रियाज और नादिर में लड़ाईझगड़ा होने लगा था.’’

‘‘मुझे ऐसी किसी बात की जानकारी नहीं है. मैं ने रिश्ता नहीं भिजवाया था.’’

‘‘खैर, यह बताइए कि 2 साल पहले आप के फ्लैट के समने एक बेवा औरत सकीरा बेगम रहती थीं, आप को याद हैं?’’

माजिद हड़बड़ा कर बोला, ‘‘जी, याद है.’’

‘‘उस की एक जवान बेटी थी रजिया, याद आया?’’

‘‘जी, उस की जवान बेटी रजिया थी.’’

‘‘अब यह बताइए कि सकीरा बेगम बिल्डिंग छोड़ कर क्यों चली गई?’’

‘‘उस की मरजी, यहां मन नहीं लगा होगा इसलिए छोड़ कर चली गई.’’

रिश्तेदार: अकेली सौम्या, अनजान शहर और अनदेखे चेहरे- भाग 3

‘‘जी दीदी, मैं अभी चलती हूं.’’ नेहा चली गई और सौम्या आरुषि की देखभाल में लग गई.

अगले 3-4 दिनों तक सौम्या आरुषि में ही लगी रही क्योंकि उसे तेज बुखार था. चौथे दिन जब वह थोड़ी ठीक हुई तो उसे नेहा का ध्यान आया. उस ने नेहा को फोन किया तो उस ने उठाया नहीं. घबरा कर सौम्या ने नितिन को फोन लगाया और नितिन से नेहा के बारे में पूछा.

नितिन ने उदास स्वर में कहा, ‘‘हमारा ब्रेकअप हो गया है दीदी. 3 दिन हो गए मेरी नेहा से कोई बात नहीं हुई.’’

‘‘पर ऐसा क्यों?’’

‘‘दीदी, नेहा बहुत शक्की लड़की है. अजीब तरह से रिऐक्ट करती है. मैं अब उस से कभी बात नहीं करूंगा.’’

‘‘पागल हो क्या? ऐसे नहीं करते. कल मेरे पास आओ. मुझे मिलना है तुम से.’’

‘‘ठीक है दीदी. कल 3 बजे आता हूं.’’

अगले दिन सौम्या ने नेहा को फिर से फोन लगाया. उस ने उदास स्वर में  ‘हैलो’ कहा तो सौम्या ने उसे 3 बजे घर आने को कहा.

फिर 3 बजे के करीब नितिन और नेहा दोनों ही सौम्या के घर पहुंचे. एकदूसरे को देखते ही उन्होंने मुंह बनाया और खामोशी से बैठ गए. सौम्या ने कमान संभाली और नेहा से पूछा, ‘‘नेहा, तुम्हारी क्या शिकायत है?’’

नेहा ने ठंडा सा जवाब दिया, ‘‘यह दूसरी लड़कियों के साथ घूमता है.’’

नितिन ने घूर कर नेहा को देखा और नजरें फेर लीं. सौम्या ने अब नितिन से पूछा, ‘‘तुम्हें क्या कहना है इस बारे में नितिन?’’

‘‘दीदी, इस ने मुझ से इतने रूखे तरीके से बात की जो मैं आप को बता नहीं सकता. 2 दिन तो मेमसाहब मुझ से मिलीं नहीं और न ही फोन उठाया. जब तीसरे दिन जबरदस्ती मैं ने बात करनी चाही और इस रवैये का कारण पूछा तो मुझ पर सीधा इलजाम लगाती हुई बोली कि तुम्हें दूसरी लड़कियों के साथ गुलछर्रे उड़ाना पसंद है न, तो ठीक है, करो जो करना है. पर मुझ से बात मत करना. अब बताइए दीदी, मुझे कैसा लगेगा?’’ नितिन फूट पड़ा था.

सौम्या ने उसे शांत करते हुए पूछा, ‘‘नितिन, वह लड़की कौन थी?’’

‘‘दीदी, वह मेरे शहर की थी और उस के विषय भी सेम मेरे वाले थे. वह हमारी बिंदु मैडम की भतीजी थी. उन्होंने ही मुझे उस का ध्यान रखने और गाइड करने को कहा था. बस, वही कर रहा था और इस ने पता नहीं क्याक्या समझ लिया.’’

सौम्या ने हंस कर कहा, ‘‘नेहा, मुझे नहीं लगता कि नितिन की कोई गलती है. तुम्हें इस तरह रिऐक्ट नहीं करना चाहिए था. जिस से आप प्यार करते हैं उस पर पूरा भरोसा रखना चाहिए. नितिन, तुम्हें भी नेहा की बात का बुरा नहीं मानना चाहिए था. जहां प्यार होता है वहां जलन और शक होना स्वाभाविक है. नेहा ने जलन की वजह से ही ऐसा बरताव किया. अब तुम दोनों एकदूसरे को सौरी कहो और मेरे आगे एकदूसरे के गले लगो.’’

नेहा और नितिन मुसकरा पड़े. एकदूसरे को सौरी बोलते हुए वे सौम्या के गले लग गए. सौम्या का दिल खिल उठा था. नितिन और नेहा में उसे अपने बच्चे नजर आने लगे थे. सब ने मिल कर शाम तक बातें कीं और साथ मिल कर चायनाश्ते का आनंद लिया.

दिन इसी तरह बीतने लगे. समय के साथ सौम्या नितिन और नेहा के और भी करीब आती गई. इस बीच नितिन को जौब मिल गई थी और नेहा एक ट्रेनिंग में बिजी हो गई.

इधर नितिन और नेहा के घर में उन की शादी की बातें भी चलने लगी थीं. सौम्या के कहने पर उन्होंने अपने घरवालों से एकदूसरे के बारे में बताया और अपने प्यार की जानकारी दी. नेहा के घरवाले तो थोड़े नानुकुर के बाद तैयार हो गए मगर नितिन के पेरैंट्स ने गैरजाति की लड़की को बहू बनाने से साफ इनकार कर दिया.

नितिन ने नेहा को सारी बात बताते हुए भाग कर शादी करने का औप्शन दिया. तब नेहा ने एक बार सौम्या से सलाह लेने की बात की. नितिन तैयार हो गया और दोनों एक बार फिर सौम्या के पास पहुंचे. सौम्या ने सारी बातें सुनीं और थोड़ी देर सोचती रही. भाग कर शादी करने की बात सिरे से नकारते हुए सौम्या ने मन ही मन एक प्लान बनाया. सौम्या ने नितिन से अपनी मां का नंबर देने को कहा और उस के रिश्तेदारों के बारे में भी जानकारी ली.

नंबर ले कर सौम्या ने नितिन की मां को फोन लगाया. उधर से ‘हैलो’ की आवाज सुनते ही सौम्या बोली, ‘‘बहनजी, मैं सौम्या बोल रही हूं. आप का नंबर मुझे अपने पति से मिला है. मेरे पति आप के एक रिश्तेदार के साथ औफिस में काम करते हैं. असल में बहनजी, हम भी आप की ही बिरादरी के हैं. आप के रिश्तेदार ने बताया कि आप का बेटा शादी लायक है. बहुत जहीन और प्यारा बच्चा है. तो  मु झे लगा मैं अपनी बिटिया की शादी की बात चलाऊं. हम भी राजपूत हैं और हमारी बिटिया बहुत संस्कारशील व खूबसूरत है. आप को जरूर पसंद आएगी.’’

‘‘हां जी, आप मिल लीजिए हम से.’’

‘‘मैं तो कहती हूं बहनजी, आप आ जाओ हमारे घर. बिटिया को तबीयत से देख लेना आप. मैं एड्रैस भेजती हूं.’’

कोशिशें जारी हैं : सास – बहू का निराला रिश्ता – भाग 3

‘‘अच्छा अब तू फ्रैश हो जा बेटा. चेंज कर ले. सुकरानी भी आ गई. मनपसंद कुछ बनवा ले उस से.’’

‘‘ममा, सुकरानी के हाथ का खा कर तो ऊब गई हूं. आप एकदम ठीक हो जाओ. कुछ ढंग का खाना तो मिलेगा,’’ वह शिवानी की गोद में सिर रख कर लेट गई और शिवानी उस के बालों को सहलाती रही.

जब सुयश शिप पर होता था तो निया शिवानी के साथ ही सो जाती थी. खाना खा कर दिन भर की थकी हुई निया लेटते ही गहरी नींद सो गई. उस का चेहरा ममता से निहारती शिवानी फिर खयालों में डूब गई. ‘कौन कहता है कि इस रिश्ते में प्यार नहीं पनप सकता… उन दोनों का जुड़ाव तो ऐसा है कि प्यार में मांबेटी जैसा, समझदारी में सहेलियों जैसा और मानसम्मान में सासबहू जैसा.’

छत को घूरतेघूरते शिवानी अपने अतीत में उतर गई. पति की असमय मृत्यु के बाद छोटे से सुयश के साथ जिंदगी फूलों की सेज नहीं थी उस के लिए. कांटों से अपना दामन बचाते, संभालते जिंदगी अत्यंत दुष्कर लगती थी कभीकभी. वह ओएनजीसी में नौकरी करती थी. पति के रहते कई बार घर और सुयश के कारण नौकरी छोड़ देने का विचार आया. पर अब वही नौकरी उस के लिए सहारा बन गई थी. सुयश बड़ा हुआ. वह उसे मर्चेंट नेवी में नहीं भेजना चाहती थी पर सुयश को यह जौब बहुत रोमांचक लगता था. सुयश लंबे समय के लिए शिप पर चला जाता और वह अकेले दिन बिताती.

इसलिए वह सुयश पर शादी के लिए दबाव डालने लगी. तब सुयश ने निया के बारे में बताया. निया उस के दोस्त की बहन थी. निया मराठी परिवार से थी और वह हिमाचल के पहाड़ी परिवार से. सुन कर ही दिल टूट गया उस का. पता नहीं कैसी होगी? पर विद्रोह करने का मतलब इस रिश्ते में वैमनस्य का पहला बीज बोना.

उस ने कुछ भी बोलने से पहले लड़की से मिलने का मन बना लिया पर जब निया से मिली तो सारे पूर्वाग्रह जैसे समाप्त हो गए. लंबी, गोरी, छरहरी, खूबसूरत, सौम्य, चेहरे पर दिलकश मुसकान लिए निया को देख कर विवाह की जल्दी मचा डाली. निया अपने मम्मीपापा की इकलौती लाडली बेटी थी. अच्छे संस्कारों में पली लाडली बेटी को प्यार लेना और देना तो आता था पर जिम्मेदारी जैसी कोई चीज लेना आजकल की बच्चियों को नहीं आता. बिंदास तरह से पलती हैं और बिंदास तरह से रहती हैं.

और इस बात को बेटी न होते हुए भी, बेटी की मां जैसा अनुभव कर शिवानी ने निया के गृहप्रवेश करते समय ही गांठ बांध लिया. दोनों बांहों से उस ने ऐसा समेटा निया को कि उस का माइनस तो कुछ दिखा ही नहीं, बल्कि सबकुछ प्लसप्लस होता चला गया. निया देर से सो कर उठती, तो घर में काम करने वाली के पेट में भी मरोड़ होने लगती पर शिवानी के चेहरे पर शिकन न आती.

निया के कुछ कपड़े संस्कारी मन को पसंद न आते पर पड़ोसियों से ज्यादा परवाह बहूबेटे की खुशियों की रहती. उन दोनों को पसंद है, पड़ोसी दुखी होते हैं तो हो लें. कुछ महीने रह कर सुयश 6 महीने के लिए शिप पर चला गया. निया अपनी जौब छोड़ कर आई थी इसलिए वह अपने लिए नई जौब ढूंढ़ने में लगी थी. शिवानी ने सुयश के जौब में आने के बाद रिटायरमैंट ले लिया था. वह अब दौड़तीभागती जिंदगी से विराम चाहती थी. फिलहाल जो एक कोमल पौधा उस के आंगन में रोपा गया था, उसे मजबूती देना ही उस का मकसद था.

पर सुयश के शिप पर जाने के बाद निया मायके जाने के लिए कसमसाने लगी थी. शिवानी इसी सोच में थी कि अब उसे अकेले नहीं रहना पड़ेगा. पर जब निया ने कहा, ‘‘ममा, जब तक सुयश शिप में है, मैं मुंबई चली जाऊं? सुयश के आने से पहले आ जाऊंगी?’’

न चाहते हुए भी उस ने खुशीखुशी निया को मुंबई भेज दिया. यह महसूस कर कि अभी वह बिना पति के इतना लंबा वक्त उस के साथ कैसे बिताएगी. नए रिश्ते को, नए घर को अपना समझने में समय लगता है. सुयश के आने से कुछ दिन पहले ही निया वापस आई. हां, वह मुंबई से उसे फोन करती रहती और वह खुद भी उसी की तरह बिंदास हो कर बात करती. अपने जीवन में उस की खूबी को महसूस कराती. घर में उस की कमी को महसूस कराती पर अपनी तरफ से आने के लिए कभी नहीं कहती.

सुयश ने भी कुछ नहीं कहा. निया वापस आई तो शिवानी ने उसे बिछड़ी बेटी की तरह गले लगा लिया. सुयश कुछ महीने रह कर फिर शिप पर चला गया. पर इस बार निया में परिवर्तन अपनेआप ही आने लगा था. स्वभाव तो उस का प्यारा पहले से ही था पर अब वह उस के प्रति जिम्मेदारी भी महसूस करने लगी थी. इसी बीच निया को जौब मिल गई.

शिवानी खुद ही निया के रंग में रंग गई. निया ने जब पहली बार उस के लिए जींस खरीदने की पेशकश की तो उस ने ऐतराज किया, ‘‘ममा पहनिए, आप पर बहुत अच्छी लगेगी.’’

और उस के जोर देने पर वह मान गई कि बेटी भी होती तो ऐसा ही कर सकती थी. समय बीततेबीतते उन दोनों के बीच रिश्ता मजबूत होता चला गया. औपचारिकता के लिए कोई जगह ही नहीं रह गई. कोशिश तो किसी भी रिश्ते में सतत करनी पड़ती है. फिर एक समय ऐसा आता है जब उन कोशिशों को मुकाम हासिल हो जाता है.

जितना खुलापन, प्यार, अपनापन, विश्वास, उस ने शुरू में निया को दिया और उसे उसी की तरह जीने, रहने व पहनने की आजादी दी, उतना ही वह अब उस का खयाल रखने लगी थी. बेटी की तरह उस की छोटीछोटी बातें अकसर उस की आंखों में आंसू भर देती. कभी वह उस को शाल यह कह कर ओढ़ा देती, ‘‘ममा ठंड लग जाएगी.’’ कभी उस की ड्रैस बदला देती, ‘‘ममा यह पहनो. इस में आप बहुत सुंदर लगती हैं. मेरी फ्रैंड्स कहती हैं तेरी ममा तो बहुत सुंदर और स्मार्ट है.’’

निया ने ही उसे ड्राइविंग सिखाई. हर नई चीज सीखने का उत्साह जगाया. वह खुद ही पूरी तरह निया के रंग में रंग गई और अब ऐसी स्थिति आ गई थी कि दोनों एकदूसरे को पूछे बिना न कुछ करतीं, न पहनतीं. हर बात एकदूसरे को बतातीं. इतना अटूट रिश्ता तो मांबेटी के बीच भी नहीं बन पाता होगा. सोच कर शिवानी मुसकरा दी.

सोचतेसोचते शिवानी ने निया की तरफ देखा. वह गहरी नींद में थी. उस ने उस की चादर ठीक की और लाइट बंद कर खुद भी सोने का प्रयास करने लगी. दूसरे दिन रविवार था. दोनों देर से सो कर उठीं.

दैनिक कार्यक्रम से निबट कर दोनों बैडरूम में ही बैठ कर नाश्ता कर रही थीं कि उन की पड़ोसिनें मिथिला, वैशाली, मधु व सुमित्रा आ धमकीं. निया सब को नमस्ते कर के उठ गई.

‘‘अरे वाह, आओआओ… आज तो सुबहसुबह दर्शन हो गए. कहां जा रही हो चारों तैयार हो कर?’’ शिवानी मुसकरा कर नाश्ता खत्म करती हुई बोली.

‘‘हम सोच रहे थे शिवानी कि कालोनी का एक ग्रुप बनाया जाए, जिस से साल में आने वाले त्योहार साथ में मनाएं मिलजुल कर,’’ मिथिला बोली.

‘‘इस से आपस में मिलनाजुलना होगा और जीवन की एकरसता भी दूर होगी,’’ वैशाली बात को आगे बढ़ाते हुए बोली.

‘‘हां और क्या… बेटेबहू तो चाहे साथ में रहें या दूर अपनेआप में ही मस्त रहते हैं. उन की जिंदगी में तो हमारे लिए कोई जगह है ही नहीं… बहू तो दूध में पड़ी मक्खी की तरह फेंकना चाहती है सासससुर को,’’ मधु खुद के दिल की भड़ास उगलती हुई बोली.

‘‘ऐसा नहीं है मधु… बहुएं भी आखिर बेटियां ही होती हैं. बेटियां अच्छी होती हैं फिर बहुएं होते ही वे बुरी कैसे बन जातीं हैं, मां अच्छी होती हैं फिर सास बनते ही खराब कैसे हो जाती हैं? जाहिर सी बात है कि यह रिश्ता नुक्ताचीनी से ही शुरू होता है. एकदूसरे की बुराइयों, कमियों और गलतियों पर उंगली रखने से ही शुरुआत होती है.

‘‘मांबेटी तो एकदूसरे की अच्छीबुरी आदतें व स्वभाव जानती हैं और उन्हें इस की आदत हो जाती है. वे एकदूसरे के स्वभाव को ले कर चलती हैं पर सासबहू के रूप में दोनों कुछ भी गलत सहन नहीं कर पाती हैं. आखिर इस रिश्ते को भी तो पनपने में, विकसित होने में समय लगता है. बेटी के साथ 25 साल रहे और बहू 25 साल की आई, तो कैसे बन पाएगा एक दिन में वैसा रिश्ता.’ उस रिश्ते को भी तो उतना ही समय देना पड़ेगा. कोशिशें निरंतर जारी रहनी चाहिए. एकदूसरे को सराहने की, प्यार करने की, खूबसूरत पहलुओं को देखने की,’’ शिवानी ने अपनी बात रखी.

‘‘तुम्हें अच्छी बहू मिल गई न… इसलिए कह रही हो. हमारे जैसी मिलती तो पता चलता,’’ सुमित्रा बोली.

‘‘लेकिन बेटे की पत्नी व बहू के रूप में देखने से पहले उसे उस के स्वतंत्र व्यक्तित्व के साथ क्यों नहीं स्वीकार करते? उस की पहचान को प्राथमिकता क्यों नहीं देते? उस पर अपने सपने थोपने के बजाए उस के सपनों को क्यों नहीं समझते? उस के उड़ने के लिए दायरे का निर्धारण तुम मत करो. उसे खुला आकाश दो जैसे अपनी खुद की बेटी के लिए चाहते हो, उस के लिए नियम बनाने के बजाए उसे अपने जीवन के नियम खुद बनाने दो, उसे अपने रंग में रंगने के बजाए उस के रंग में रंगने की कोशिश तो करो, तुम्हें पता नहीं चलेगा, कब वह तुम्हारे रंग में रंग गई.

‘‘आखिर सभी को अपना जीवन अपने हिसाब से जीने का पूरा हक है. फिर बहू से ही शिकायतें व अपेक्षा क्यों?’’ बड़े होने के नाते आज उस की गलतसही आदतों को समाओ तो सही, कल इस रिश्ते का सुख भी मिलेगा. कोशिश तो करो. हालांकि, देर हो गई है पर कोशिश तो की जा सकती है. रिश्तों को कमाने की कोशिशें सतत जारी रहनी चाहिए सभी की तरफ से,’’ शिवानी मुसकरा कर बोली.

‘‘मैं यह नहीं कहती कि इस से हर सासबहू का रिश्ता अच्छा हो जाएगा पर हां, इतना जरूर कह सकती हूं कि हर सासबहू का रिश्ता बिगड़ेगा नहीं,’’ उस ने आगे कहा.

चारों सहेलियां विचारमग्न सी शिवानी को देख रही थीं और बाहर से उन की बातें सुनती निया मुसकराती हुई अपने कमरे की तरफ चली गई.

जवाब : अनसुलझे सवालों के घेरे में माधुरी – भाग 2

सासूजी कहां चुप रहने वाली, ‘अरे, क्यों नहीं लाएंगे,’ बोल पड़तीं, ‘बेटी के घर क्या खाली हाथ आएंगे? अब हम क्या विमला की ससुराल इतना कुछ भेजते नहीं हैं. इन की उतनी औकात तो नहीं है पर जो लाए हैं…’

यह सुन कर मैं कट के रह जाती, जी करता था कि बाबूजी के जुड़े हाथों को पकड़ कर उन्हें इस घर से चले जाने को कह दूं. नहीं देखा जाता था मुझ से उन का यह अपमान.

मेरे दुख को मेरी छोटी ननद जया और देवर समय समझते थे, परंतु जब आप खुद के लिए खड़े नहीं हो सकते तो किसी और से क्या उम्मीद कर सकते हैं. सुमित ने तो बहुत पहले ही अपना फैसला मुझे सुना दिया था.

जब भी बाबूजी मेरी ससुराल से अपमानित हो कर जाते, मेरे अंदर कुछ टूट जाता और कानों में विवाह के दूसरे वचन की ध्वनि सुनाई पड़ती थी. ‘जिस प्रकार आप अपने मातापिता का आदर करते हो उसी प्रकार मेरे मातापिता का आदर करो.’

जब सुमित का तबादला नोएडा हुआ तब पहली बार मेरे ससुर अपनी पत्नी के खिलाफ बोले थे, ‘सरला, जाने दो माधुरी को सुमित के साथ. अपनी गृहस्थी संभालेगी और तुम्हें सुमित के खानेपीने की चिंता भी नहीं रहेगी.’

‘अरे वाह, मां, पापा को तो भाभी की बड़ी चिंता है,’ विमला ने व्यंग्य कसा था.

‘जिसे जहां जाना है जाए. मुझे तो सारी उम्र रोटियां ही बेलनी हैं,’ सासूजी बड़बड़ाती रहीं.

मेरे आज्ञाकारी पति कैसे पीछे रह जाते, ‘नहीं मां, माधुरी यहां रहेगी आप के पास. मैं ने वहां एक कुक का इंतजाम कर लिया है. वैसे भी, रमेश के साथ रहूंगा तो पैसे कम खर्च होंगे.’

‘मेरा राजा बेटा, यह जानता है कि इस पर अपने छोटे भाईबहनों की जिम्मेदारी है.’

‘तुम तो ऐसे कह रही हो जैसे मैं निठल्ला बैठा हूं…घर जैसे इस की कमाई से चलता है,’ ससुरजी ने एक कोशिश और की.

‘चुप होगे अब. हर शनिवार को तो घर आ ही जाएगा,’ सासूजी ने यह कह कर पति की बोलती बंद कर दी.

सुमित नोएडा चले गए थे. अपनी छोटीछोटी जरूरतों के लिए भी मैं अपनी सास पर मुहताज थी. कई बार सुमित से कहा भी कि मुझे कुछ पैसे भेज दिया करो.

‘तुम्हें क्या जरूरत है पैसों की? जब कभी जरूरत हो तो मां से मांग लिया करो. मां ने कभी मना किया है क्या?’

उन्होंने कभी किसी वस्तु के लिए मना नहीं किया. परंतु उस वस्तु की उपयोगिता बताने के क्रम में जो कुछ भी मुझे सहना पड़ता था, वह मैं सुमित को नहीं समझा सकती थी.

मैं कपड़ों की जगह सैनिटरी नैपकिन इस्तेमाल करना चाहती थी. हिम्मत बटोर कर यह बात जब मैं ने अपनी सास को बताई थी, उन की प्रतिक्रिया आज भी मेरे रोंगटे खड़े कर देती है-

‘अरे, सुनते हो…समय…जया…’

घर के सभी लोग, नौकर तक, बरामदे में आ गए थे.

‘मांजी गलती हो गई, माफ कर दीजिए, प्लीज चुप हो जाइए.’

‘तू होती कौन है मुझे चुप कराने वाली…’

‘अरे, बताओगी भी हुआ क्या?’ ससुरजी की आवाज थी.

‘आप की बहू को अपना मैल उतारने के लिए पैसे चाहिए.’

‘मांजी, प्लीज चुप हो जाइए,’ रो पड़ी थी मैं.

‘तेरे बाप ने भी देखा है कभी पैड, बेटी को पैड चाहिए.’

सारा माजरा समझते ही मेरे ससुर और देवर सिर झुका कर अंदर चले गए थे और मेरे बगल में खड़ी जया मेरे आंसू पोंछती रही थी.

कई घंटे तक वे लगातार मुझे अपमानित करती रही थीं. इस घटना के बाद मैं ने अपनी सारी अभिलाषाओं तथा जरूरतों को एक संदूक में बंद कर के दफन कर दिया था.

मेरे बेटे के जन्म ने मुझे मां बनने का गौरव तो प्रदान किया परंतु जब उस की छोटीछोटी जरूरतों के लिए भी मुझे हाथ फैलाना पड़ता, तब मेरा हृदय चीत्कार कर उठता था.

विवाह का तीसरा वचन भी मेरे कानों के पास आ कर दबी आवाज में चीखा करता था. ‘आप अपनी युवावस्था से ले कर वृद्धावस्था तक कुटुंब का पालन करोगे.’

मेरी एक पुरानी सहेली रम्या मुझे एक दिन बाजार में घूमते हुए मिल गई. औपचारिकतावश मैं ने उसे घर आने को कह दिया था. परंतु मैं उस समय अवाक रह गई जब शनिवार को वह अपने पति व बच्चों के साथ अचानक आ गई.

मेरा आधुनिक वस्त्र पहनना न तो सुमित को पसंद था और न ही उन की मां को. बिना बांहों का ब्लाउज पहनना भी उन के परिवार में मना था. रम्या को जींस और स्लीवलैस टौप में देख कर मैं समझ गई कि आज पति और सास दोनों की ही बातें सुननी पड़ेंगी.

परंतु उस दिन मैं ने सुमित का अलग ही रूप देखा था. जितने वक्त रम्या रही, सुमित मेरे कमरे में ही मौजूद रहे. दिन के समय सुमित हमारे कमरे में बहुत कम आते थे, इसलिए यह मेरे लिए सुखद आश्चर्य था. रम्या की तारीफ करते नहीं थक रहे थे वे. और तो और, अगले दिन बाहर घूमने का प्लान भी बना लिया उन्होंने.

रात में मैं ने सुमित से पूछा भी था, ‘बिना मां से पूछे कल घूमने का प्लान कैसे बना लिया तुम ने?’

‘ उस की चिंता तुम छोड़ो. क्या औरत हैं रम्याजी, कितना मेंटेन किया है. उन की फिगर को देख कर कौन कहेगा कि 2 बच्चों की मां हैं.’

‘सौरभजी भी तो कितने अच्छे हैं.’

‘क्या अच्छा लगा तुम्हें सौरभजी में?’

‘नहीं, बस रम्या से पूछ कर निर्णय…’

‘जोरू का गुलाम है. और तुम्हें शर्म नहीं आती अपने पति के सामने किसी और मर्द की तारीफ करती हो. सो जाओ चुपचाप.’

अगले दिन पिकनिक में बातोंबातों के दौरान रम्या ने सुमित को मेरे बारे में बताया कि मैं अपने कालेज की मेधावी छात्राओं में आती थी. इतना सुनना था कि सुमित जोरजोर से हंसने लगे.

‘रम्याजी, क्या आप के कालेज में सभी गधे थे? माधुरी और मेधावी में सिर्फ अक्षर की समानता है. रसोई में खाने में नमक तो सही से डाल नहीं पाती. न चलने का ढंग, न कपड़े पहनने की तमीज. शरीर पर चरबी देखिए, कितनी चढ़ा रखी है,’ इतना कह कर वे अपनी बात पर खुद ही हंस पड़े थे. मेरा चेहरा शर्म और अपमान से काला पड़ गया था.

‘चलिए, बातें बहुत हो गईं, अब बैडमिंटन खेलते हैं,’ सौरभजी ने बात बदलते हुए कहा.

खेल के दौरान सुमित ने फिर एक ऐसी हरकत कर दी जिस की उम्मीद मुझे भी नहीं थी. स्त्री के चरित्र का आकलन आज भी उस के पहने गए कपड़ों से किया जाता है. सुमित ने भी रम्या को ले कर गलत विचारधारा बना ली थी. खेल के दौरान सुमित ने कई बार रम्या को छूने की कोशिश की थी, यह बात मुझ से भी छिपी नहीं रह पाई थी.

इसलिए जब रम्या सुमित को किनारे पर ले जा कर दबे परंतु कड़े शब्दों में कुछ समझा रही थी, मैं समझ गई थी कि वह क्या कह रही है.

घर लौटते ही सुमित की मां रम्या की चर्चा ले कर बैठ गईं. सुमित जैसे इंतजार ही कर रहे थे.

‘अरे मां, बड़ी तेज औरत है. उस से तो दूर रहना ही ठीक होगा.’

‘मैं न कहती थी. अरी ओ माधुरी, तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि तुम्हें चरित्रवान पति मिला है.’

दिल कर रहा था कि चरित्रवान बेटे की झाड़ खाने की बात मां को बता दूं. परंतु कह नहीं पाई. विवाह के वचन फिर कानों के पास आ कर चुगली करने लगे.

‘मैं अपनी सखियों के साथ या अन्य स्त्रियों के साथ बैठी हूं, आप मेरा अपमान न करें. आप दूसरी स्त्री को मां समान समझें और मुझ पर क्रोध न करें.’

सप्तक को मैं ने सदा प्रश्न करना सिखाया था. सुमित अकसर उस के सवालों से चिढ़ जाया करते थे, परंतु मैं सदा उसे प्रश्न पूछने के लिए प्रोत्साहित करती थी. मेरे और सप्तक के प्रश्नोत्तर के खेल में ही मुझे मेरे जीवन के सब से बड़े सवाल का जवाब मिल गया था.

शोर करती चुप्पी : कैसा थी मानसी की ससुराल- भाग 2

परिमल दुविधा में सोफे पर बैठा ही रहा और साथ में अवनी भी. थकान के मारे आंखें मुंद रही थीं. मायके की बात होती तो सारा तामझाम उतार कर, शौर्ट्स और टीशर्ट पहन कर, फुल एसी पंखा खोल कर चित्त सो जाती, लेकिन यहां ऐसा कुछ नहीं कर सकती थी. इसलिए चुप बैठी रही.

‘‘जाओ परिमल, ड्राइवर इंतजार कर रहा है.’’

‘‘चलो अवनी,’’ थकेमांदे अवनी व परिमल, थके शरीर को धकेल कर कार में बैठ गए. अवनी का दिल कर रहा था पीछे सिर टिकाए और सो जाए.

शादी से पहले उस के पापा ने उस की मम्मी से कहा था कि अवनी व परिमल का दिल्ली से देहरादून की फ्लाइट का टिकट करवा देते हैं. रोड की 7-8 घंटे की जर्नी इन्हें थका देगी. लेकिन भारतीय संस्कार आड़े आ गए. इसलिए मानसी बोलीं, ‘शादी के बाद अवनी उन की बहू है. वे उसे ट्रेन से ले जाएं, कार से ले जाएं, बैलगाड़ी से ले जाएं या फिर फ्लाइट से, हमें बोलने का कोई हक नहीं.’

सुन कर अवनी मन ही मन मुसकरा दी थी, ‘वाह भई, भारतीय परंपरा… सड़क  मार्ग से यात्रा करने में मेरी तबीयत खराब होती है, इसलिए मुझे उलटी की दवाई खा कर जाना पड़ेगा. लेकिन बेटी को चाहे कितनी भी ऊंची शिक्षा दे दो और वह कितने ही बड़े पद पर कार्यरत क्यों न हो, एक ही रात में उस के मालिकों की अदलाबदली कैसे हो जाती है? उस पर अधिकार कैसे बदल जाते हैं? उस की खुद की भी कोई मरजी है? खुद की भी कोई तकलीफ है? खुद का भी कोई निर्णय है? इस विषय में कोई भी जानना नहीं चाह रहा.’

लेकिन उस की शादी होने जा रही थी. वह बमुश्किल एक महीने की छुट्टी ले पाई थी. 20 दिन विवाह से पहले और 10 दिन बाद के. लेकिन उन 10 दिनों की भी कशमकश थी. उसे ससुराल में शादी के बाद की कुछ जरूरी रस्मों में भी शामिल होना था और हनीमून ट्रिप पर भी जाना था. बहुत टाइट शैड्यूल था. शादी से पहले की छुट्टियां भी जरूरी थीं. उसे शादी की तैयारियों के लिए भी समय नहीं मिल पाया था. ऐसा लग रहा था,

शादी भी औफिस के जरूरी कार्यों की तरह ही निबट रही है. शायद वे दोनों एक महीने के किसी प्रोजैक्ट को पूरा करने आए हैं. ऊपर से मम्मी के उपदेश सुनतेसुनते वह तंग आ गई थी. ‘बहू को ऐसा नहीं करना चाहिए, बहू को वैसा नहीं करना चाहिए, ऐसे रहना, वैसे रहना, चिल्ला कर बात नहीं करना, सुबह उठना, औफिस से आ कर थोड़ी देर सासससुर के पास बैठना, किचन में जितनी बन पाए मदद जरूर करना…’

एक दिन सुनतेसुनते वह भन्ना गई, ‘मम्मी, जब भैया की शादी हुई थी, तब भैया को भी यही सब समझाया था? स्त्रीपुरुष की समानता का जमाना है. भाभी भी नौकरी करती हैं. भैया को भी सबकुछ वही करना चाहिए, जो भाभी करती हैं. मसलन, उन के मातापिता, भाईबहन, रिश्तेदारों से अच्छे संबंध रखना, किचन में मदद करना, भाभी से ऊंचे स्वर में बात न करना, औफिस से आ कर हफ्ते में भाभी के मम्मीपापा से  2-3 बार बात करना और सुबह उठ कर भाभी के साथ मिलजुल कर काम करना आदि…लड़की को ही यह सब क्यों सिखाया जाता है?’

उस के बाद मम्मी के निर्देश कुछ बंद हुए थे. अवनी को मन ही मन मम्मी पर दया आ गई. गलती मम्मी की नहीं, मम्मी की पीढ़ी की है जो नईपुरानी पीढ़ी के बीच झूल रही है. उच्च शिक्षित है लेकिन अधिकतर आत्मनिर्भर नहीं रही. इसलिए कई तरह के अधिकारों से वंचित भी रही. उच्च शिक्षा के कारण गलतसही भले ही समझी हो, नए विचारों को अपनाने का माद्दा भले ही रखती हो, लेकिन गलत को गलत बोलती नहीं है. नए विचारों को अपने आचरण में लाने की हिम्मत नहीं करती.

यहां तक कि मम्मी की पीढ़ी की आत्मनिर्भर महिलाएं भी नईपुरानी विचारधारा के बीच झूलती, नईपुरानी परंपराओं के बीच पिसती रहती हैं. फुल होममेकर्स की शायद आखिरी पीढ़ी है, जो अब समाप्त होने की कगार पर है.

कार होटल पहुंच गई और अवनी व परिमल को कमरे तक पहुंचा कर परिमल के दोस्त चले गए. रात के 12 बज रहे थे. कमरे में पहुंच कर दोनों ने चैन की सांस ली.

2 प्रेमी पिछले 4 सालों से इस रात का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे. लेकिन थके शरीर नींद की आगोश में जाना चाहते थे. दोनों इतने थके थे कि बात करने के मूड में भी नहीं थे. शादी की 3 दिनों तक चली परंपरावादी प्रक्रिया ने उन्हें बुरी तरह थका दिया था. ऊपर से देहरादूनदिल्ली का भीड़ के कारण 8-9 घंटे का सफर. दोनों उलटेसीधे कपड़े बदल कर औंधेमुंह सो गए.

सुबह देहरादून व दिल्ली के दोनों घरों में सभी देर से उठे. लेकिन 10 बजतेबजते सभी उठ गए. बेटी को विदा कर बेटी की मां आज भी चैन से कहां रह पाती है, चाहे वह लड़के को बचपन से ही क्यों न जानती हो. 12 बज गए मानसी से रहा न गया. उन्होंने अवनी को फोन मिला दिया. गहरी नींद के सागर में गोते लगा रही अवनी, फोन की घंटी सुन कर बमुश्किल जगी. परिमल भी झुंझला गया. स्क्रीन पर मम्मी का नाम देख कर मोबाइल औन कर कानों से लगा लिया.

‘‘कैसी है मेरी अनी?’’

‘‘सो रही है, मरी नहीं है,’’ अवनी झुंझला कर बोली, ‘‘इतनी सुबह क्यों फोन किया?’’ मम्मी को बुरा तो लगा पर बोली, ‘‘सुबह कहां है, 12 बज रहे हैं, कैसी है?’’

‘‘अरे कैसी है मतलब…कल 12 बजे तो आई हूं देहरादून से. आज 12 बजे तक क्या हो जाएगा मुझे. हमेशा ही तो आती हूं नौकरी पर छुट्टियों के बाद, तब तो आप फोन नहीं करतीं. आज ऐसी क्या खास बात हो गई? कल मैसेज कर तो दिया था पहुंचने का.’’

मानसी निरुत्तर हो, चुप हो गई. ‘‘अभी मैं सो रही हूं, फोन रखो आप. जब उठ जाऊंगी तो खुद ही मिला दूंगी,’’ कह कर अवनी ने फोन रख दिया.

मानसी की आंखें भर आईं. आज की पीढ़ी की बहू की तटस्थता तो दुख देती ही है, पर बेटी की तटस्थता तो दिल चीर कर रख देती है. यह असंवेदनहीन मशीनी पीढ़ी तो किसी से प्यार करना जैसे जानती ही नहीं. जब मां को ऐसे जवाब दे रही है तो सास को कैसे जवाब देगी.

मानसी एक शिक्षित गृहिणी थी और सास सुजाता एक उच्चशिक्षित कामकाजी महिला. वे केंद्रीय विद्यालय में विज्ञान की अध्यापिका थीं. सुबह पौने 8 बजे घर से निकलतीं और साढ़े 4 बजे तक घर पहुंचतीं. सरस रिटायर हो चुके थे. लेकिन सुजाता के रिटायरमैंट में अभी 3 साल बाकी थे. सुजाता आधुनिक जमाने की उच्चशिक्षित सास थीं. कभी कार, कभी स्कूटी चला कर स्कूल जातीं, लैपटौप पर उंगलियां चलातीं. और जब किचन में हर तरह का खाना बनातीं, कामवाली के न आने पर बरतन धोतीं, झाड़ूपोंछा करतीं तो उन के ये सब गुण पता भी न चलते. सरस एक पीढ़ी पहले के पति, पत्नी के कामकाजी होने के बावजूद, गृहकार्य में मदद करने में अपनी हेठी समझते और पत्नी से सबकुछ हाथ में मिल जाने की उम्मीद करते.

शोर करती चुप्पी : कैसा थी मानसी की ससुराल- भाग 3

सुजाता सिर्फ शारीरिक रूप से ही नहीं, मानसिक रूप से भी व्यस्त थीं. नौकरी की व्यस्तता के कारण उन का ध्यान दूसरी कई फालतू बातों की तरफ नहीं जाने पाता था. दूसरा, सोचने का आयाम बहुत बड़ा था. कई बातें उन की सोच में रुकती ही नहीं थीं. इधर से शुरू हो कर उधर गुजर जाती थीं.

2 बज गए थे. लंच का समय हो गया था. बच्चे अभी होटल से नहीं आए थे. सरस ने एकदो बार फोन करने की पेशकश की, पर सुजाता ने सख्ती से मना कर दिया कि उन्हें फोन कर के डिस्टर्ब करना गलत है.

‘‘तुम्हें भूख लग रही है, सरस, तो हम खाना खा लेते हैं.’’

‘‘बच्चों का इंतजार कर लेते हैं.’’

‘‘बच्चे तो अब यहीं रहेंगे. थोड़ी देर और देखते हैं, फिर खा लेते हैं. न उन्हें बांधो, न खुद बंधो. वे आएंगे तो उन के साथ कुछ मीठा खा लेंगे.’’

सुजाता के जोर देने पर थोड़ी देर बाद सुजाता व सरस ने खाना खा लिया. बच्चे 4 बजे के करीब आए. वे सो कर ही 2 बजे उठे थे. अब कुछ फ्रैश लग रहे थे. उन के आने से घर में चहलपहल हो गई. सरस और सुजाता को लगा बिना मौसम बहार आ गई हो. सुजाता ने उन का कमरा व्यवस्थित कर दिया था. बच्चों का भी होटल जाने का कोई मूड नहीं था. परिमल भी अपने ही कमरे में रहना चाहता था. इसलिए वे अपनी अटैचियां साथ ले कर आ गए थे. थोड़ी देर घर में रौनक कर, खाना खा कर बच्चे फिर अपने कमरे में समा गए.

अवनी अपनी मम्मी को फोन करना फिर भूल गई. बेचैनी में मानसी का दिन नहीं कट रहा था. दोबारा फोन मिलाने पर अवनी की सुबह की डांट याद आ रही थी. इसलिए थकहार कर समधिन सुजाता को फोन मिला दिया. थकी हुई सुजाता भी लंच के बाद नींद के सागर में गोते लगा रही थीं. घंटी की आवाज से बमुश्किल आंखें खोल कर मोबाइल पर नजरें गड़ाईं. समधिन मानसी का नाम देख कर हड़बड़ा कर उठ कर बैठ गईं.

‘‘हैलो,’’ वे आवाज को संयत कर नींद की खुमारी से बाहर खींचती हुई बोलीं.

‘‘हैलो, सुजाताजी, लगता है आप को डिस्टर्ब कर दिया. दरअसल, अवनी ने फोन करने को कहा था, पर अभी तक नहीं किया.’’

‘‘ओह, अवनी अपने कमरे में है. बच्चे 4 बजे आए होटल से. खाना खा कर कमरे में चले गए हैं. फोन करना भूल गई होगी शायद. जब बाहर आएगी तो मैं याद दिला दूंगी.’’

‘‘हां, जी,’’ बेटी की सुबह की डांट से क्षुब्ध मानसी सुजाता से भी संभल कर व धीमी आवाज में बात कर रही थी. सुजाता का हृदय द्रवित हो गया. बेटी की मां ऐसी ही होती है.

‘‘बेटी की याद आ रही है?’’ वे स्नेह से बोलीं.

‘‘हां, आ तो रही है,’’ मानसी की आवाज भावनाओं के दबाव से नम हो गई, ‘‘पर ये आजकल के बच्चे, मातापिता की भावनाओं को समझते कहां हैं,’’ सुबह की घटना से व्यथित मानसी बोल पड़ी.

‘‘नहींनहीं, ऐसी बात नहीं. दरअसल, बच्चों के जीवन में उलझने के लिए बहुतकुछ है. और मातापिता के जीवन में सिर्फ बच्चे, इसलिए ऐसा लगता है. अवनी बहुत प्यारी बच्ची है. लेकिन अभी नईनई शादी है न, इसलिए आप चिंता मत कीजिए. वह आप की लाड़ली बेटी है तो हमारे घर की भी संजीवनी है. बाहर आएगी तो मैं बात करने के लिए कह दूंगी.’’

‘‘ठीक है,’’ कह कर मानसी ने फोन रख दिया. सुजाता की नींद तो मानसी के फोन से उड़ गई थी. सरस भी आवाज से उठ गए थे. इसलिए वह उठ कर मुंहहाथ धो कर चाय बना कर ले आई.

बच्चे दूसरे दिन हनीमून पर निकल गए. वापस आए तो कुछ दिन अवनी के घर देहरादून चले गए. इस बीच, सुजाता की छुट्टियां खत्म हो गईं. बच्चे वापस आए तो उन की भी छुट्टियां खत्म हो गई थीं. दोनों के औफिस शुरू हो गए और दोनों अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गए. वैसे तो सुजाता बहुत ही आधुनिक विचारों की कामकाजी सास थीं पर वे इस नई पीढ़ी को नवविवाहित जीवन की शुरुआत करते बड़े आश्चर्य व कुतूहल से देख रही थीं. इन बच्चों की दिनचर्या में उन के मोबाइल व लैपटौप के अलावा किसी के लिए भी जगह नहीं थी.

उन के औफिस संबंधी अधिकतर काम तो मोबाइल से ही निबटते थे. बाकी बचे लैपटौप से. सुबह 8, साढ़े 8 बजे के निकले बच्चे रात के साढ़े 8 बजे के बाद ही घर में घुसते. उन की दिनचर्या में अपने नवविवाहित साथी के लिए ही जगह नहीं थी, फिर सासससुर की कौन कहे. ‘‘इन्हें प्यार करने के लिए फुरसत कैसे मिली होगी?’’ सुजाता अकसर सरस से परिहास करतीं, ‘‘लगता है प्यार भी मोबाइल पर ही निबटा लिया होगा औफिस के जरूरी कार्यों की तरह.’’

मानसी बेटी से बात करने के लिए तरस जाती. पहले सिर्फ उस की नौकरी थी, इसलिए थोड़ीबहुत बात हो जाती थी. पर अब उस की दिनचर्या का थोड़ाबहुत हिस्सेदार परिमल भी हो गया था.

‘‘सासससुर के साथ भी थोड़ाबहुत बैठती है छुट्टी के दिन? कभी किचन का रुख भी कर लिया कर. अब तेरी शादी हो गई है. तेरे सासससुर अच्छे हैं पर थोड़ीबहुत उम्मीद तो वे भी करते होंगे,’’ एक दिन फोन पर बात करते हुए मानसी बोली.

‘‘उफ, मम्मी, फिर शुरू हो गए आप के उपदेश. अरे, जब मैं किसी से बदलने की उम्मीद नहीं करती, जो जैसा है वैसा ही रह रहा है, तो मुझ से बदलने की उम्मीद कैसे कर सकता है कोई. शादी मेरे लिए ही सजा क्यों है. यह मत पहनो, वह मत करो. मन हो न हो, सब से बातचीत करो. जल्दी उठो. रिश्तेदार आएं तो उन्हें खुश करो,’’ अवनी झल्ला कर बोली.

कमरे के बाहर से गुजरती सुजाता के कानों में अवनी की ये बातें पड़ गईं. सुजाता बहुत ही खुले विचारों की महिला थीं. हर बात का सकारात्मक पहलू देखना व विश्लेषणात्मक तरीके से सोचना उन की आदत थी.

पारंपरिक सास के कवच से बाहर आ कर एक स्त्री के नजरिए से वे सोचने लगीं, ‘आखिर गलत क्या कह रही है अवनी. शादी सजा क्यों बन जाती है किसी लड़की के लिए. लड़के के लिए शादी न कल सजा थी न आज, पर लड़की के लिए…वे खुद भी कामकाजी रही हैं. अंदरबाहर की जिम्मेदारियों में बुरी तरह पिसी हैं. पति ने भी इतना साथ नहीं दिया. कितने ही क्षण ऐसे आए जब नौकरी बचाना भी मुश्किल हो गया था. कामकाजी होते हुए भी उन से एक संपूर्ण गृहिणी वाली उम्मीद की गई.’

ऐसे विचार कई बार उन के हृदय को भी आंदोलित करते थे. पर गलत को गलत कहने की उच्चशिक्षित होते हुए यहां तक कि आर्थिकरूप से आत्मनिर्भर होते हुए भी उन की पीढ़ी ने हिमाकत नहीं की. उन्हें लग रहा था जैसे उन की पीढ़ी का मौन अब अवनी की पीढ़ी की लड़कियों के मुंह से मुखरित हो रहा है. अवनी की पीढ़ी की लड़कियों की दिनचर्या अपने हिसाब से शुरू होती है और अपने हिसाब से खत्म होती है. यह देख कर उन्हें अच्छा भी लगता. अवनी की पीढ़ी की लड़की का जीवन पतिरूपी पुरुष के जीवन के खिलने व सफल होने के लिए आधार मात्र नहीं है बल्कि दोनों ही बराबर के स्तंभ थे. एक भी कम या ज्यादा नहीं. वे अपने बेटे को अवनी से ज्यादा बदलते हुए देख रही थीं शादी के बाद.

छोटे शहर की लड़की : जब पूजा ने दी दस्तक- भाग 2

‘एक दिन अचानक पूजा उस के घर आई तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ. वह पूजा को पहचानता था, वह उस के पड़ोस में ही रहती थी. परंतु उस के साथ कभी कोई बात नहीं होती थी. कारण, वह बहुत संकोची था और पूजा अपनेआप में मस्त रहने वाली लड़की. वह शर्मीली लड़की की तरह पूजा के घर के सामने से सिर झुका कर गुजर जाता. अकसर उस ने पूजा को अपने घर से बाहर अपनी सहेलियों से बातें करते हुए देखा था. कई बार उस ने महसूस भी किया कि वे सभी उस की तरफ कुछ इशारा कर के हंसती थीं.\

यह उस का भ्रम भी हो सकता था, परंतु संकोचवश वह तुरंत उन के सामने से हट जाता और घर आ कर अपनी तेज सांसों पर काबू पाने का प्रयास करता. वह पूजा की हंसी और मुसकराहट का अर्थ आज तक समझ नहीं पाया था. आज जब पूजा उस के घर आई और उसे देख कर बड़ी अदा से मुसकराई तो उस के दिल पर मानो बिजली गिर गई हो. लड़कियों को देख कर वैसे ही उस के हाथपैर कांपने लगते और मुंह लाल हो जाता था. पूजा को अपने घर पर देख कर उस के दिल की धड़कन और भी बढ़ गई थी.

घर पर उस की मां थीं, छोटी बहन थी और रविवार होने के कारण उस के पिता भी घर पर ही थे. वे लोग उस के बारे में क्या सोचेंगे? उस ने मुड़ कर अपने कमरे की तरफ भागने का प्रयास किया ही था कि पूजा की मधुर आवाज उस के कानों में पड़ी, ‘‘भाग रहे हो? अपने ही घर में भाग कर कहां छिपोगे?’’ पूजा पहली बार उस से ऐसे बोली थी. वह ठिठक कर खड़ा हो गया, सचमुच वह अपने घर से भाग कर कहां जाएगा? उस ने पूजा के प्रफुल्लित चेहरे को बच्चे की तरह देखा और मन ही मन कहा, ‘तुम यहां क्या मेरी दुर्गति करने के लिए आई हो?’

पूजा ने पूछा, ‘‘आंटीजी हैं क्या, और तुम्हारी बहन कहां है?’’ वह इस तरह बात कर रही थी, जैसे विनोद उस से

छोटा हो और उस का इस घर में बहुत ज्यादा आनाजाना हो. पूजा का आत्मविश्वास और साहस देख कर उसे अपनेआप पर शर्म आने लगी. काश, वह भी उस की तरह दबंग होता. वह जानता था कि उस की मां से पूजा गली में कभीकभार बात कर लेती थी, लेकिन यह बिलकुल पता नहीं था कि उस की छोटी बहन दीप्ति से पूजा की कोई बोलचाल थी या वे दोनों आपस में मिलतीजुलती थीं. दोनों की उम्र में लगभग 4-5 साल का अंतर था.

उस ने पूजा की बात का जवाब देने के बजाय ऊंचे स्वर में लगभग चीखते हुए मां को आवाज लगाई, ‘‘मम्मी, दीप्ति, देखो तो तुम से कोई मिलने आया है?’’ और वह फिर से जाने के लिए उद्यत हुआ. पूजा खिलखिला कर हंस पड़ी, ‘‘अरे, तुम बौखला क्यों रहे हो? क्या कोई कुत्ता तुम्हारे पीछे पड़ा है?’’

उस ने मन ही मन कहा, ‘नहीं, एक बिल्ली है, जो मेरा मुंह नोचने के लिए आई है. क्या कोई मुझे इस बिल्ली से बचाएगा?’ वह और जोर से चिल्लाया, ‘‘दीप्ति, आती क्यों नहीं?’’ उस की मां किचन में थीं, दीप्ति झटपट बाहर निकली और सामने का नजारा देख कर कुछ चौंकी. पूजा को पहली बार अपने घर में देख कर वह बोली, ‘‘दीदी, आप… यहां?’’

‘‘हां, वैसे ही एक काम आ गया था,’’ वह दो कदम आगे बढ़ कर बोली, ‘‘परंतु तुम्हारा भाई तो बहुत झेंपू है, क्या वह लड़कियों के साथ ज्यादा उठताबैठता है, क्योंकि उन्हीं के जैसे गुण और लक्षण इस में आ गए हैं,’’ अपने कमरे में घुसतेघुसते उस ने पूजा को दीप्ति से कहते सुना. उस का दिल बैठ गया, ‘क्या वह इतना दब्बू है कि लड़कियां उस के बारे में ऐसे खयाल रखती हैं?‘ उस ने अपने दिल को संयत किया और मन ही मन बोला, ‘एक दिन दिखा दूंगा तुम्हें पूजा की बच्ची कि मैं कायर और डरपोक नहीं हूं. तुम मुझे झेंपू समझने की भूल मत करना.’

कमरे में आए उसे थोड़ी ही देर हुई थी कि धमधमाते हुए दोनों उस के कमरे में ही आ गईं. पूजा आगे थी और दीप्ति उस के पीछे. दोनों पता नहीं आपस में क्या बातें कर के आई थीं और अब उन का मकसद क्या था. वह अपने बिस्तर से उठ कर खड़ा हो गया. ‘‘क्या कर रहे हो… पढ़ाई? अभीअभी तो नए सत्र की कक्षाएं शुरू हुई हैं. अच्छा, विनोद यह बताओ, तुम कौन सी कक्षा में गए हो?’’ पूजा ने निस्संकोच उस के पास आ कर पूछा.

विनोद धम् से कुरसी पर बैठ गया. जैसे चेहरे पर किसी ने गोबर मल दिया हो. उस की बोलती बंद थी और दिल काबू में नहीं था. वे दोनों उसे देखदेख कर मुसकराती रहीं.

‘‘बताओ न मुझे पढ़ाई में तुम से मदद लेनी है,’’ पूजा उस के पास आ कर खड़ी हो गई और मटकती हुई बोली. जवान लड़की के बदन की एक अनोखी गंध उस के नथुनों में समा गई. विनोद ने बड़ी मुश्किल से खुद को संभाला और बोला, ‘‘बीए में.’’ ‘‘कौन सा साल है?’’ यह पूछते हुए वह लगभग उस से सट गई थी.

विनोद ने अपने को पीछे की तरफ धकेला. कुरसी थोड़ा पीछे की तरफ सरक गई. उस के गले में सांस फंस कर रह गई. शब्द गले में अटक गए और वह बता नहीं पाया कि बीए अंतिम वर्ष में था. पूजा यह बात जानती थी. वह स्वयं बीए द्वितीय वर्ष में थी. वह तो जानबूझ कर विनोद को बनाने की कोशिश कर रही थी. पूजा उस की हालत पर मुसकराई, ‘‘तुम कांप क्यों रहे हो? तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न?’’

बैग पर लटका राजू : लौकडाउन ने जड़े पैरों में ताले – भाग 2

सरिता ने जब गांव छोड़ कर शहर में अपना नया ठिकाना बनाया तब भी उस के कष्टों ने सालों तक उस का साथ नहीं छोड़ा. पर जब उस ने इन कष्टों में से खुशियों को निकाल कर अपनी संदूक में रखने का प्रयास किया तब ही लौकडाउन ने संदूक के सारे सामान को बिखरा दिया.

वैसे भी था ही क्या उस के पास. 2 जोड़ी कपड़े और जरूरत का सामान. पर वह तो इतने में ही खुश थी न. दोनों वक्त रूखीसूखी खाने को मिल रही थी और कमाने को काम मिल रहा था. दिनभर काम कर के ऐसे थक जाते कि नंगे फर्श पर लेटते ही नींद की आगोश में समा जाते. रात का बचाखुचा खा कर फिर काम पर चले जाते.

राजू के लिए जरूर रोज दूध लेते और कभीकभी बिस्कुट का पैकेट ले लेते जिन्हें राजू दिनभर खाता रहता. राजू की बालसुलभ क्रीड़ाओं ने उन के कष्टों को हलका कर दिया था.

सरिता ने उस दिन काम से लौटते समय कुछ पैसे मांगे थे सेठ से, ‘सेठ जी, राजू को दूध लेना पड़ता है, पैसे बिलकुल नहीं हैं, सौ रुपए भी दे देंगे तो हमारा काम चल जाएगा.’

‘कल तुम्हारा हफ्ता होगा तब ही पैसे मिलेंगे. चलो, जाओ.’

सरिता कुछ नहीं बोली. पर उस के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आई थीं. उस ने साड़ी के पल्लू को टटोला जिस में 10 रुपए का सिक्का बंधा था. वह इस से आज तो राजू के लिए दूध ले ही लेगी, फिर कल तो पैसे मिल ही जाएंगे. उसे कुछ तसल्ली हुई.

दूसरे दिन सरिता और उस का पति जल्दीजल्दी नहाधो कर घर से निकले. जब वे काम पर जाने के लिए घर से निकलते थे तो चौराहे पर हलचल हो जाया करती थी. आसपास लगी चायनाश्ते की दुकानें खुल जाती थीं. यहीं से वे राजू के लिए दूध ले लेते और एकाध बिस्कुट का पैकेट भी. पर आज तो सारा चौराहा सुनसान पड़ा था. दुकानें भी बंद थीं. अब वे राजू के लिए दूध कैसे लेंगे.

सरिता ने अपनी साड़ी के पल्लू में बंधे 10 रुपए के सिक्के को जोर से पकड़ कर रखा था. चौराहे पर पुलिस खड़ी थी. वे कुछ समझ पाते, इस के पहले ही एक पुलिसवाला उन की ओर बढ़ आया था, ‘‘कहां जा रहा है?”

‘‘जी, काम पर.”

‘काम…पर…साले, जानता नहीं है लौकडाउन लग गया है,’ कहते हुए उस ने सरिता के पति पर लाठी चला दी. लाठी की चोट से उस का पति कराह पड़ा. सरिता ने पति को बचाने का प्रयास किया तो लाठी की मार उसे भी पड़ी. उस की गोद में बैठा राजू रोने लगा. उन की कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि पुलिस वाले उन्हें मार क्यों रहे हैं और काम पर क्यों नहीं जाने दे रहे हैं.

पुलिस वालों की लाठी जोर से लगी थी. दोनों की आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा था. सरिता मजबूती से राजू को अपने कांधे से चिपकाए थी. दोनों कराहते हुए अपने कमरे पर लौट आए थे. वे समझ नहीं पा रहे थे कि यह लौकडाउन क्या है और उन्हें काम पर क्यों नहीं जाने दिया जा रहा है.

कमरे के फर्श पर दोनों चुपचाप बैठे थे, राजू भी खामोश था. उन की हिम्मत बाहर निकल कर देख लेने की भी नहीं हो रही थी. उन की आंखों से आंसुओं का सैलाब बाहर आ रहा था.

सरिता की आंख जब खुली तब तक अंधेरा फैलेने की जुगत बना रहा था. उस का पति तो अभी भी सोया हुआ ही था. सरिता ने राजू को देखा जो वहां नहीं था. वह घबरा गई. राजू खोली का द्वार खोले गुमसुम सा बैठा था. उस के हाथ में बिस्कुट का एक पैकेट था. घबराई सरिता ने राजू को अपनी आगोश में ले लिया, ‘‘तू यहां काहे को बैठा है और तेरे पास बिस्कुट का पैकेट कहां से आया?’

‘एक आदमी आया था, उस ने दिया और यह भी दिया…,’  राजू ने एक दूसरे पैकेट की ओर इशारा कर बताया.

अचंभित सी सरिता ने हडबड़ाहट में पैकेट खोल कर देखा. उस में 4 रोटियां और अचार रखा था. सरिता को ध्यान आया कि आज तो उन्होंने कुछ खाया ही नहीं है. उस ने पति को जगाया और एकएक रोटियां दोनों ने खा लीं. 2 रोटियां राजू के लिए बचा लीं.

दूसरे दिन वे कुछ ज्यादा ही जल्दी जाग गए थे और सहमे हुए से घर से निकल पड़े थे. उन्हें भरोसा था कि आज उन्हें काम पर जाने दिया जाएगा. चौराहे पर आज भी पुलिस खड़ी थी. वे डर गए और वापस कमरे में लौट आए. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि वे क्या करें. ऐसे वे कब तक काम पर नहीं जा पाएंगे. उन्हें तो सेठ से पैसे भी लेना थे. यदि पैसे नहीं मिले तो वे राजू के लिए दूध कैसे लाएंगे. दोनों के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आई थीं.

‘तुम मोहन भैया के पास जाओ. वे ही कुछ बता पाएंगे,’ सरिता ने  पति को बोला.

मोहन दूसरी गली में रहता था.

‘पर बाहर पुलिस खड़ी है. वह फिर डंडे मारेगी.’ उस का चेहरा रोंआसा हो चुका था. कल खाए डंडे की मार अभी तक दर्द दे रही थी. दर्द तो सरिता को भी हो रहा था.

‘जाना तो पड़ेगा ताकि हमें कुछ पता तो चले,’ सरिता बुदबुदाई और दोनों हिम्मत कर के मोहन के पास पहुंच गए.

सरिता खामोशी से सारी बात सुन रही थी. मोहन ने बताया था कि 21 दिनों तक लौकडाउन रहेगा तब तक काम भी बंद रहेगा और कोई घर के बाहर भी नहीं निकल पाएगा. यदि निकला तो पुलिस उसे मारेगी और जेल में भी बंद कर देगी. मोहन ने ही बताया था कि वे लोग गांव लौटने की तैयारी कर रहे हैं. पैदल ही जाना पड़ेगा क्योंकि न तो ट्रेन चल रही हैं और न ही बसें.

‘पैदल…इतनी दूर…सरिता की आंखें डबडबा आई थीं.

‘तो क्या करें? यहां रहेंगे तो खाएंगे क्या…इस का कोई भरोसा भी नहीं है…’ मोहन बता रहा था, ‘कऊनो बीमारी फैली है, यदि वह खत्म नहीं हुई तो इसे और बढ़ा दिया जाएगा.’

‘गांव चले जाएंगे तो सेठ जी से पैसे कैसे मिलेंगे? अभी तो हाथ में फूटी कौड़ी तक नहीं है.’

‘‘सेठ जी तक जा कैसे पाएंगे?’

‘कुछ पैसे तो लाओ, रास्ते में कुछ तो पैसा लगेगा.’

कोई कुछ नहीं बोला.

हजारों लोगों का जनसैलाब सड़कों पर बदहवास की हालत में दिखाई दे रहा था. सभी पैदल ही अपने घरों की ओर रवाना हो चुके थे. गरमी की भीषण तपन उन्हें परेशान कर रही थी पर यह परेशानी वहां रुके रहने से होने वाली परेशानी से कम थी.

शिवानी: सोने के पिंजरे में कैद बुलबुल -भाग 2

पहली दफा उस की सास ने उसे स्टील के गिलास में चाय पीते देख कर फौरन टोका था, ‘‘बहू, वैसे तो चाय गिलास में भी पी जा सकती है… अपने मायके में तुम ऐसा करती ही रही हो, पर यहां की बात और है. अच्छा रहेगा कि कमला चाय की ट्रे सजा कर लाए और तुम हमेशा कपप्लेट में ही चाय पीने की आदत बना लो.’’

आज बैंडएड वाली घटना के कारण शिवानी के मन में विद्रोह के भाव थे. तभी उस ने चाय गिलास में तैयार की और ऐसा करते हुए उसे अजीब सी शांति महसूस हो रही थी.

समीर फैक्टरी के काम से 3 दिन के लिए मुंबई गया था. उस की गैरमौजूदगी में शिवानी की व्यस्तता बहुत कम हो गई. चाय पीने के बाद उस ने कुछ देर आराम किया. फिर उठने के बाद वह अपने भैया के घर जन्मदिन पार्टी में शामिल होने गाजियाबाद जाने की तैयारी में लग गई.

सुमित्रा को जब पता चला कि बहू गाजियाबाद जाने की तैयारी कर रही है तो यह सोच कर वह भी पति रामनाथ सहित बहू के साथ हो लीं कि रास्ते में अपनी बहन सीमा से मिल लेंगी. मम्मी, पापा और भाभी को जाता देख कर नेहा भी उन के साथ हो ली.

सुमित्रा की बड़ी बहन सीमा की कोठी ऐसे इलाके में थी जहां का विकास अभी अच्छी तरह से नहीं हुआ था. रास्ता काफी खराब था. सड़क पर प्रकाश की उचित व्यवस्था भी नहीं थी. ड्राइवर राम सिंह को कार चलाने में काफी कठिनाई हो रही थी.

सुमित्रा जब अपनी बहन के घर पहुंचीं तो पता चला कि उन का लगभग पूरा परिवार एक विवाह समारोह में भाग लेने मेरठ गया हुआ था. घर में सीमा की छोटी बेटी अंकिता और नौकर मोहन मौजूद थे.

अंकिता ने जिद कर के उन्हें चाय पीने को रोक लिया. उन्हें वहां पहुंचे अभी 10 मिनट भी नहीं बीते थे कि अचानक हवा बहुत तेजी से चलने लगी और बिजली चली गई.

‘‘मैं मोमबत्तियां लाती हूं,’’ कहते हुए अंकिता रसोई की तरफ चली गई.

‘‘लगता है बहुत जोर से बारिश आएगी,’’ रामनाथजी की आवाज चिंता से भर उठी.

मौसम का जायजा लेने के इरादे से रामनाथजी उठ कर बाहर बरामदे की दिशा में चले. कमरे में घुप अंधेरा था, सो वह टटोलतेटटोलते आगे बढे़.

तभी एक चुहिया उन के पैर के ऊपर से गुजरी. वह घबरा कर उछल पड़े. उन का पैर मेज के पाए से उलझा और अंधेरे कमरे में कई तरह की आवाजें एक साथ उभरीं. मेज पर रखा शीशे का गुलदान छनाक की आवाज के साथ फर्श पर गिर कर टूट गया. रामनाथजी का सिर सोफे के हत्थे से टकराया. चोट लगने की आवाज के साथ उन की पीड़ा भरी हाय पूरे घर में गूंज गई.

‘‘क्या हुआ जी?’’ सुमित्रा की चीख में नेहा और शिवानी की चिंतित आवाजें दब गईं.

रामनाथजी किसी सवाल का जवाब देने की हालत में ही नहीं रहे थे. उन की खामोशी ने सुमित्रा को बुरी तरह से घबरा दिया. वह किसी पागल की तरह चिल्ला कर अंकिता से जल्दी मोमबत्ती लाने को शोर मचाने लगीं.

अंकिता जलती मोमबत्ती ले भागती सी बैठक में आई. उस के प्रकाश में फर्श पर गिरे रामनाथजी को देख सुमित्रा और नेहा जोरजोर से रोने लगीं.

अपने ससुर के औंधे मुंह पड़े शरीर को शिवानी ने ताकत लगा कर सीधा किया. उन के सिर से बहते खून पर सब की नजर एकसाथ पड़ी.

‘‘पापा…पापा,’’ नेहा के हाथपांव की शक्ति जाती रही और वह सोफे पर निढाल सी पसर गई.

शिवानी के आदेश पर अंकिता ने मोमबत्ती सुमित्रा को पकड़ा दी.

मोहन भी घटनास्थल पर आ गया. शिवानी ने मोहन और अंकिता की सहायता से मूर्छित रामनाथजी को किसी तरह उठा कर सोफे पर लिटाया.

‘‘पापा को डाक्टर के पास ले जाना पड़ेगा,’’ शिवानी घाव की गहराई को देखते हुए बोली, ‘‘अंकिता, तुम बाहर खडे़ राम सिंह ड्राइवर को बुला लाओ.’’

सुमित्रा अपने पति को होश में लाने की कोशिश रोतेरोते कर रही थी और नेहा भयभीत हो अश्रुपूरित आंखों से अधलेटी सी पूरे दृश्य को देखे जा रही थी. अंकिता बाहर से आ कर बोली, ‘‘भाभी, आप का ड्राइवर राम सिंह गाड़ी के पास नहीं है. मैं ने तो आवाज भी लगाई, लेकिन उस का मुझे कोई जवाब नहीं मिला.’’

‘‘मैं देखती हूं. मम्मी, आप हथेली से घाव को दबा कर रखिए.’’

सुमित्रा की हथेली घाव पर रखवा कर शिवानी मेन गेट की तरफ बढ़ गई. अंकिता भी उस के पीछेपीछे हो ली.

‘‘पापा को डाक्टर के पास ले जाना जरूरी है, अंकिता. यहां पड़ोस में कोई डाक्टर है?’’

‘‘नहीं भाभी,’’ अंकिता ने इनकार में सिर हिलाया.

‘‘नजदीकी अस्पताल कहां है?’’

‘‘बाहर निकल कर मुख्य सड़क पर.’’

‘‘टैक्सी या थ्री व्हीलर कहां मिलेगा?’’

‘‘मेन रोड पर.’’

‘‘चल मेरे साथ.’’

‘‘कहां, भाभी?’’

‘‘टैक्सी या थ्री व्हीलर लाने. उसी में पापा को अस्पताल ले चलेंगे.’’

अंधेरे में डूबी गली में दोनों तेज चाल से मुख्य सड़क की तरफ चल पड़ीं. तभी बादल जोर से गरजे और तेज बारिश पड़ने लगी.

सड़क के गड्ढों से बचतीबचाती दोनों करीब 10 मिनट में मुख्य सड़क पर पहुंचीं. बारिश ने दोनों को बुरी तरह से भिगो दिया था.

एक तरफ उन्हें थ्री व्हीलर खड़े नजर आए तो वे उस ओर चल दीं.

शिवानी ने थ्री व्हीलर के अंदर बैठते हुए ड्राइवर से कहा, ‘‘भैया, अंदर कालोनी में चलो. एक मरीज को अस्पताल तक ले जाना है.’’

‘‘कौन से अस्पताल?’’ ड्राइवर ने रूखे स्वर में पूछा.

‘‘किसी भी पास के सरकारी अस्पताल में ले चलना है. अब जरा जल्दी चलो.’’

‘‘अंदर सड़क बड़ी खराब है, मैडम.’’

‘‘स्कूटर निकल जाएगा.’’

‘‘किसी और को ले जाओ, मैडम. मौसम बेहद खराब है.’’

‘‘बहनजी, आप मेरे स्कूटर में बैठें,’’ एक सरदार ड्राइवर ने उन की बातचीत में दखल देते हुए कहा.

‘‘धन्यवाद, भैया,’’ शिवानी ने अंकिता के साथ स्कूटर में बैठते हुए कहा.

मालती का बदला: दिलावर सिंह की दहशत – भाग 2

पुलिस की औपचारिकताएं पूरी करने के बाद डाक्टर ने पोस्टमार्टम करने के बाद लाश मालती को सौंप दी. इस घटना के बाद मालती शहर में नहीं दिखी.

दिलावर दूसरे दिन पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टर से मिला और उस से पोस्टमार्टम के बारे मे पूछा. डाक्टर ने कहा, ‘‘गोली सामने से सीने के बाईं ओर मारी गई थी. कोई पेशेवर हत्यारा था.’’

‘‘वह मैं ही था और तुम्हें कैसे मालूम कि गोली सामने से मारी गई?’’ दिलावर ने पूछा.

‘‘जी सामने कार्बन के ट्रेड मार्क्स थे और प्रवेश का घाव सामने ही था.’’

दिलावर ने पूछा, ‘‘तुम्हें कैसे मालूम कि घाव बून्ड औफ एंट्री सामने ही था?’’

डाक्टर ने जवाब दिया, ‘‘उस के किनारे अंदर की ओर थे.’’

‘‘अच्छा,’’ तो गोली बाहर निकलने का घाव पीछे की ओर होगा क्योंकि वह बड़ा होगा और उस के किनारे फटे होंगे.’’

‘‘हां.’’ डाक्टर ने जवाब दिया.

अब दिलावर ने चैकबुक निकाली उस पर पहले से ही हस्ताक्षर थे. फिर डाक्टर से कहा कि अमाउंट अपनी औकात के अनुसार भर लेना, पर घाव सिर के बाजू में ही चाहिए.

‘‘डाक्टर कैन नाट बी परचेज्ड लाईक दिस,’’ डाक्टर बोला.

दिलावर ने पिस्टल निकाल कर टेबिल पर रखी और पूछा, ‘‘कैन डाक्टर बी परचेज्ड विद दिस?’’

डाक्टर कांपने लगा और दोनों लौटाते हुए बोला, ‘‘आप दोनों रखिए. गोली के अंदर जाने का घाव खोपड़ी के दाहिनी तरफ ही होगा और त्वचा जली हुई होगी.’’

दिलावर गनमैन के साथ बाहर चला गया.

सरकार उन्हें तो पिस्टल का लाइसैंस नहीं देती जिन्हें आत्मरक्षा की जरूरत है पर उन्हें दे देती है जो पिस्टल ले कर नाचते हुए वीडियो फेसबुक पर डाल देते हैं.

कोई आतंकवादी या सामूहिक बलात्कारी पुलिस एनकांउटर में मारे जाते हैं तो जाने कहां से मानव अधिकार आयोग उन की रक्षा के लिए खड़ा हो जाता है पर कश्मीर घाटी में कश्मीरी पंडितों का नरसंहार हुआ तो मानव अधिकार आयोग कहां छिप कर बैठ गया था, किसी को नहीं मालूम.

दिलावर एक दबंग और प्रभावशाली व्यक्ति था. उस के पास पैसों की कोई कमी नहीं थी, इसलिए उस ने अपने प्रभाव से डाक्टर से भी मालती के पति की पोस्टमार्टम रिपोर्ट बदलवा दी थी. डाक्टर ने सिर में गोली लगने की बात पोस्टमार्टम रिपोर्ट में लिखी थी. जबकि पुलिस ने जो पंचनामा बनाया था, उस में गोली सीने पर बाईं ओर लगने की बात लिखी थी. इस का फायदा दिलावर को न्यायालय में मिला.

कोर्ट में पुलिस और पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टर की अलगअलग रिपोर्ट देख कर जज भी हैरान रह गया. दिलावर के वकीलों ने कोर्ट में दलील दी कि उन के क्लायंट को रंजिश के चलते इस केस में फंसाया गया है. उन का इस हत्या से कोई संबंध नहीं है. इस का नतीजा यह हुआ कि सबूतों के अभाव में कोर्ट ने दिलावर को हत्या के इस केस से बरी कर दिया.

दिलावर के छूट जाने के बाद मालती को बहुत दुख हुआ. वह पति के हत्यारे को सजा दिलाना चाहती थी, लेकिन दबंगई और पैसों के बूते वह साफ बच गया था. इस के बाद मालती ने तय कर लिया कि भले ही दिलावर कोर्ट से बरी हो गया है लेकिन उस का घरबार उजाड़ने वाले दिलावर को वह ऐसी सजा देगी, जिस से वह किसी और की दुनिया उजाड़ने लायक ही न रहे.

काफी सोचनेविचारने के बाद आखिर उस ने एक खतरनाक योजना बना ली. इस के लिए उस ने खुद को भी भस्म करने की ठान ली.

इस के बाद वह एक डाक्टर के पास गई और उन से एड्स बीमारी के बारे में जानकारी ली. डाक्टर ने बताया कि एचआईवी एक बहुत खतरनाक ह्यूमन इम्यूनोडेफिसिएंसी वायरस है, जो व्यक्ति की रोगों से लड़ने की क्षमता कम करता है. यह व्यक्ति के शारीरिक द्रवों के संपर्क ड्रग्स, यूजर, संक्रमित रक्त या मां से बच्चे को ही फैलता है.

एड्स, एचआईवी संक्रमित मरीजों में संक्रमण या कैंसर होने की श्रंखला है. संक्रमण के 3 महीने बाद ही रक्त की रिपोर्ट पौजिटिव आती है. बीच का समय ‘विंडो पीरियड’ होता है.

अपनी इसी योजना के तहत वह एक दिन सफेद साड़ी पहन कर सरकारी अस्पताल में गई. उस ने एड्स काउंसलर से एड्स पीड़ितों की सूची मांगी.

काउंसलर ने कहा, ‘‘वह लिस्ट तो नहीं दी जा सकती. क्योंकि उन के नाम गुप्त रखे जाते हैं.’’

मालती ने झूठ बोलते हुए कहा, ‘‘मैं एक एनजीओ से हूं और एड्स पीड़ितों के बीच काम करना चाहती हूं.’’

काउंसलर ने पूछा, ‘‘आप को काउंसिलिंग की परिभाषा भी मालूम है?’’

‘‘जी, 2 व्यक्तियों या समूहों के मध्य संवाद, जिस में एक जानने वाला दूसरे के डर एवं गलतफहमियां दूर करता है.’’

उस की बातों से काउंसलर ने संतुष्ट हो कर करीब 400 एचआईवी पौजिटिव पुरुषों की सूची उसे दे दी. काउंसलर ने हाथ मिलाते हुए कहा, ‘‘मैं आप की सेवा भावना से प्रमावित हूं.’’

धन्यवाद दे कर वह मालती बाहर आ गई.

लिस्ट पा कर मालती मन ही मन खुश हुई. इस के बाद मालती ने हर रात एक एड्स पीड़ित के साथ बिताई. फिर 3 महीने बाद उस ने स्वयं का एचआईवी टैस्ट करवाया. रिपोर्ट पौजिटिव आई तो मालती को सीमातीत प्रसन्नता हुई.

3 महीने बाद एक रात को मालती दिलावर के घर पहुंची. दिलावर उसे देख कर अचकचा गया. उस ने कहा, ‘‘इतनी रात को तुम यहां?’’

‘‘जी मेरे पति तो गुजर गए. मैं ने आवेश में अपनी बैंक नौकरी से भी इस्तीफा दे दिया. मैं बदनाम हो गई थी. अब आप का ही सहारा है,’’ वह बोली.

दिलावर खुश हो कर बोला, ‘‘सहारा मजबूत पेड़ का ही लेना चाहिए. महिलाओं की मनमोहक सुंदरता पुरुषों को आकर्षित करती है इसलिए वे खुद को संभाल नहीं पाते. मैं हैरान हूं कि तुम्हारा आकर्षण अभी तक बरकरार है. तुम्हारा स्वागत है.’’

इस तरह मालती दिलावर की प्रेमिका बन कर उस के साथ रहने लगी. उसे रोज रात को दिलावर को शरीर समर्पण करना पड़ता, जिस से उसे अत्यंत प्रसन्नता होती.

3 महीने बाद दिलावर को फ्लू जैसा बुखार आया, जिस से मालती को दिल में अत्यंत प्रसन्नता हुई. वह दिखावे के तौर पर चिंतित हो कर बोली, ‘‘सर, मैं फैमिली डाक्टर को बुला लाऊं?’’

‘‘अरे नहीं, सामान्य बुखार और खांसी है. खुदबखुद ठीक हो जाएगा.’’ दिलावर बोला.

‘‘नहींनहीं, मुझे आप की बहुत चिंता रहती है. आप ही तो मेरा सहारा हैं,’’ कहती हुई मालती बाहर चली गई और दिलावर के फैमिली डाक्टर को बुला लाई.

दिलावर के फैमिली डाक्टर शहर के प्रसिद्ध डाक्टर थे. उन्होंने दिलावर का परीक्षण किया और सामान्य दवाइयां लिख दीं. उन्होंने खून की जांच के लिए भी लिख दिया.

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