दगाबाजी एक आशिक की : भाग 1

मूलरूप से गाजियाबाद के लोनी की इंद्रापुरी कालोनी में रहने वाली पूनम चौधरी के पिता मांगेराम उत्तर प्रदेश होमगार्ड में नौकरी करते थे. उन के 3 बच्चे थे. पूनम सब से बड़ी थी. मांगेराम बहुत ज्यादा तो नहीं कमा पाते थे, लेकिन किसी तरह गुजरबसर हो जाती थी.

पूनम बचपन से आजादखयाल लड़की थी. उस ने इंटरमीडिएट तक पढ़ाई की और ब्यूटीपार्लर का कोर्स कर के एक ब्यूटीपार्लर में नौकरी कर ली थी. लेकिन जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही मातापिता ने उस की शादी कर दी.

पूनम की शादी सन 2010 में गाजियाबाद के भोजपुर थाना क्षेत्र के खंजरपुर निवासी राजीव चौधरी से हुई थी. एक तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रहने वाला जाट परिवार, ऊपर से पूनम जैसी लड़की का आजादखयाल और महत्त्वाकांक्षी होना. सो पति और ससुराल वालों से पूनम की ज्यादा पटरी नहीं बैठी. छोटीछोटी बातों पर टोकाटाकी और सासससुर के शर्मलिहाज के उलाहनों से पूनम इतनी आजिज आ गई कि उस के राजीव से आए दिन झगड़े होने लगे.

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इस दौरान पूनम एक बेटी की मां बन चुकी थी. जिस का नाम उस ने कशिश रखा. लेकिन बंदिशों में रहना पूनम को मंजूर नहीं था, इसलिए पति और ससुराल वालों से उस का विवाद कम होने के बजाय और ज्यादा बढ़ गया. पूनम के मातापिता ने भी उसे समझाया कि शादीब्याह के बाद लड़की को बहुत से समझौते करने पड़ते हैं, इसलिए वह अपनी ससुराल वालों और पति के साथ कुछ समझौते कर के चले.

लेकिन अपने ही तरीके से जिंदगी जीने वाली पूनम की समझ में यह बात नहीं आई. आखिरकार नतीजा यह निकला कि दोनों परिवारों के बीच कई बार मानमनौव्वल की कोशिशें बेकार गईं. अंतत: सन 2013 में पूनम का राजीव से तलाक हो गया.

तलाक के समय पूनम को ससुराल की तरफ से हरजाने के रूप में 3-4 लाख रुपए मिले. पूनम अपनी बेटी को ले कर माता पिता के पास आ गई. कुछ दिनों बाद मांगेराम ने लोनी का अपना घर बेच दिया और वह गाजियाबाद के सिहानी गेट स्थित नेहरू नगर में आ कर रहने लगे. 5 साल पहले वे होमगार्ड से रिटायर हो गए.

इधर, पति से तलाक के बाद पूनम मातापिता के साथ उन के घर आ कर रहने लगी. लेकिन पूनम आजादखयाल जिंदगी बसर करना चाहती थी, जिस के चलते मातापिता के घर में भी सुसराल की तरह जिंदगी जीने पर प्रतिबंध लगने लगे. कुछ महीने तो जैसेतैसे गुजर गए. लेकिन फिर आए दिन पूनम को कभी मां से तो कभी पिता से रोकटोक के कारण झगड़ा होने लगा.

आए दिन की कलह के बाद आखिर एक दिन पूनम ने अपना घर छोड़ने का फैसला कर लिया. उस ने सोच लिया कि वह अपनी बेटी कशिश को ले कर परिवार से अलग रह कर अपनी जिंदगी अपने पैरों पर खड़े हो कर गुजारेगी. इस के लिए उसने अपना नाम भी बदल लिया. उस ने पूनम की जगह अपना नाम प्रिया चौधरी रख लिया. उस ने इसी नाम से अपना आधार कार्ड व दूसरे दस्तावेज भी तैयार करवा लिए.

पूनम उर्फ प्रिया ने जब मायका छोड़ा तो मातापिता ने उसे लाख समझाना चाहा, लेकिन वह नहीं मानी. इसीलिए मातापिता से उस की खूब कहासुनी भी हुई. तब पिता ने दुखी हो कर प्रिया से कहा था कि जो बच्चे  अपने मातापिता की बात नहीं सुनते, वे कभी खुश नहीं रहते और एक न एक दिन उन्हें पछताना पड़ता है.

लेकिन प्रिया के सिर पर तो आजादी से आत्मनिर्भर हो कर रहने का भूत सवार था लिहाजा उस वक्त मातापिता की ये बात उसे ऐसी लगी मानो वे उसे अभिशाप दे रहे हैं. यही कारण था कि माता पिता का घर छोड़ते समय उस ने यहां तक कह दिया कि अगर वो मर भी जाए तो वे उस की अर्थी को कंधा देने ना आएं.

घर छोड़ने के बाद मातापिता से प्रिया ने कभी बहुत ज्यादा संबंध नहीं रखे. हां, यदाकदा उस की मां और बहनभाई फोन पर उस की कुशलक्षेम जरूर पूछते रहते थे. इस से ज्यादा परिवार वालों का उस की जिंदगी में कोई दखल नहीं था.

इधर, मातापिता का घर छोड़ने के बाद प्रिया के सामने दिक्कत थी कि अब क्या करे और कहां रहे. लिहाजा उस ने अपनी सहेली चंचल से इस बारे में बात की. चंचल उस की ही बिरादरी की युवती थी. दोनों की पुरानी दोस्ती थी.

लोनी की ही रहने वाली चंचल की शादी मोदी नगर में हुई थी. वह अपने पति के साथ मोदीनगर के सुदामा पुरी में रहती थी. चंचल को जब प्रिया के तलाक और माता पिता से विवाद के बाद घर छोड़ने की बात पता चली तो उस ने प्रिया से कहा कि वह मोदीनगर आ जाए और उस के घर में रहे.

साल 2013 के अंत में प्रिया अपनी बेटी कशिश को ले कर मोदी नगर के सुदामा पुरी चली गई और वहां चंचल के मकान में किराए पर रहने लगी. चूंकि प्रिया ब्यूटीपार्लर का काम जानती थी, इसलिए उस ने किराए की एक दुकान ले कर वहां बेटी के नाम से एक ब्यूटीपार्लर भी खोल लिया. संयोग से पार्लर का काम ठीक से चल निकला और धीरेधीरे उस की जिंदगी ढर्रे पर आने लगी.

प्रिया को आज की पीढ़ी के लोगों की तरह सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने की लत थी. वह फेसबुक पर एक्टिव रहती थी. सन 2014 में उसे फेसबुक पर अमित गुर्जर नाम के एक आकर्षक नौजवान की फ्रेंड रिक्वेस्ट मिली तो उस ने उस की रिक्वेस्ट स्वीकार कर ली.

बाद में फेसबुक मैसेंजर के जरिए अमित गुर्जर से उस की चैट होने लगी. चैट पर बातचीत होतेहोते प्रिया ने अमित गुर्जर से उस के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि वह अपने मातापिता की एकलौती संतान है और उस के मातापिता की मौत हो चुकी है.

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अमित ने बताया कि वह मेरठ के भूड़बराल में रहता है और मेरठ के ही बुक प्रकाशकों के यहां ठेके पर उन की किताबों की बुक बाइंडिंग का काम करता है. उस के पास पैसा, रोजगार सब कुछ है लेकिन जीवन में साथ देने वाला कोई हमसफर नहीं है.

अमित गुर्जर मैसेज में ऐसी इमोनशल और प्यारी बातें करता था कि कुछ समय बाद प्रिया भी उस से बेतकल्लुफ हो कर बातचीत करने लगी. कुछ महीने की फेसबुक दोस्ती में ही प्रिया अमित के साथ इतनी घुलमिल गई मानों उन की सालों पुरानी जानपहचान हो.

उस ने अपने दिल की किताब का हर पन्ना अमित के सामने खोल दिया. दोनों की फेसबुक दोस्ती धीरेधीरे प्यार में बदलने लगी. जल्दी ही दोनों ने प्यार का इजहार भी कर लिया और साथ जीनेमरने की कसमें भी खा लीं. प्रिया को अमित में ऐसे जीवन साथी का अक्स दिखाई दे रहा था, जैसा उस ने सोचा था. फेसबुक पर दोनों एकदूसरे को अपनी फोटो और वीडियो भी सेंड करते थे.

प्रिया ने अमित से अपनी दोस्ती के बारे में अपनी सहेली चंचल को भी बताया था. परिवार के नाम पर उस के पास चंचल ही थी जिस से वह अपने हर सुखदुख की बात शेयर करती थी. चंचल को भी लगा कि अगर अमित के कारण प्रिया की जिंदगी को एक नया ठौर मिल जाए तो उस की बिखरी जिंदगी संवर सकती है.

2014 के मध्य में प्रिया और अमित का प्यार इस कदर परवान चढ़ा कि दोनों ने एक साथ रहने और शादी करने का फैसला कर लिया. लिहाजा इस के लिए वह पहले अमित से मिली. दोनों की रूबरू यह पहली मुलाकात थी.

इस मुलाकात में प्रिया ने अमित को वैसा ही पाया, जैसा उस ने खुद के बारे में बताया था. दोनों के बीच भविष्य को ले कर बहुत सी बातें हुईं और फिर एक दिन प्रिया अपनी बेटी कशिश के साथ चंचल का मकान छोड़ कर अपने सामान सहित अमित के पास मेरठ चली गई.

अमित गुर्जर ने मेरठ के परतापुर इलाके में स्थित कांशीराम कालोनी में किराए का एक कमरा ले लिया और प्रिया व उस की बेटी के साथ लिवइन रिलेशन में रहने लगा. इस दौरान प्रिया ने अपना ब्यू्टी पार्लर भी बंद कर दिया था. वक्त इसी तरह तेजी से गुजरने लगा.

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प्रिया अपनी नई जिंदगी में बेहद खुश थी. लेकिन वो अपने हर सुख के बारे में अपनी सहेली चंचल को फोन पर सब कुछ बता देती थी. सप्ताह में एकदो बार दोनों के बीच फोन पर बातचीत जरूर होती थी. कभी प्रिया चंचल को फोन करती तो कभी चंचल प्रिया को फोन करती थी. प्रिया चंचल से मिलने के लिए मोदीनगर भी चली जाती थी.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

30 लाख भी गए, बेटा भी : भाग 3

मीडिया के तीखे सवालों के आगे पुलिस अधिकारी बेबस नजर आए. चूंकि अपहर्ताओं ने अपहरण और हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था, अत: थाना बर्रा पुलिस ने पहले से दर्ज अपहरण के मामले में राहुल यादव का नाम हटा दिया और उसी क्राइम नंबर पर भादंवि की धारा 364/302/201/120बी के तहत कुलदीप गोस्वामी, नीलू सिंह, ज्ञानेंद्र सिंह, रामजी शुक्ला तथा प्रीति शर्मा के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज कर ली. उन्हेें विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया गया.

पुलिस जांच तथा अभियुक्तों के बयानों से पैसे के लिए दोस्ती का कत्ल करने की घटना प्रकाश में आई.

कानपुर शहर के बर्रा भाग 5 में रहने वाला संजीत यादव नौबस्ता स्थित धनवंतरि अस्पताल के पैथालौजी विभाग में काम करता था. उसी के साथ कुलदीप गोस्वामी तथा ज्ञानेंद्र सिंह काम करते थे. कुलदीप का दोस्त नीलू सिंह था, जबकि ज्ञानेंद्र का दोस्त रामजी शुक्ला था. सभी में खूब पटती थी और सप्ताह में एक बार बीयर पार्टी होती थी.

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दोस्तों के बीच संजीत धनवान होने का बखान करता था. उस ने दोस्तों को बताया था कि उस के 2 ट्रक चलते हैं, 2 कार हैं, गांव में जमीनमकान है. नौकरी तो वह समय काटने के लिए करता है. जल्द ही अपनी पैथालौजी खोल लेगा.

संजीत का दोस्त ज्ञानेंद्र सिंह दबौली में रहता था. उस के पिता श्रीकृष्ण यादव धनाढ्य थे. उस ने पिता से अस्पताल खोलने के लिए पूंजी लगाने का अनुरोध किया था. लेकिन उन्होंने साफ मना कर दिया था. बीएससी नर्सिंग पास ज्ञानेंद्र सिंह महत्त्वाकांक्षी था. वह अमीर बनना चाहता था. पर 10-12 हजार की नौकरी से अमीर नहीं बना जा सकता था. यद्यपि वह ठाटबाट से रहता था. कार से आताजाता था.

जनवरी 2020 में कुलदीप और ज्ञानेंद्र सिंह ने धनवंतरि अस्पताल से नौकरी छोड़ दी. ज्ञानेंद्र सिंह संविदा पर हैलट अस्पताल में काम करने लगा जबकि कुलदीप स्वरूपनगर में डा. एस.के. कटियार के यहां नौकरी करने लगा.

कुलदीप सरायमीता पनकी में रहता था. उस के पिता प्रेम गोस्वामी किराए की गाड़ी चलाते थे. उस की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी.

कुलदीप की दोस्ती सचेंडी के गज्जापुरवा निवासी नीलू सिंह से थी. वह फरजी काम करता था. उस की मां की मौत हो चुकी थी और पिता चंद्रप्रकाश सरिया मिल में काम करते थे. 3 भाइयों में वह दूसरे नंबर का था.

नीलू की एक महिला मित्र थी प्रीति शर्मा. वह हनुमान पार्क कौशलपुरी की रहने वाली थी. उस ने अपने पति को छोड़ दिया था और पनकी में अपनी मां सिम्मी के साथ रहने लगी थी. नीलू सिंह का उस के घर आनाजाना था. वह अपनी अवैध कमाई उसी पर खर्च करता था. उस ने कुलदीप से भी उस की दोस्ती करा दी थी.

ज्ञानेंद्र सिंह का दोस्त रामजी शुक्ला अंबेडकर नगर (गुजैनी) में रहता था. वह तेजतर्रार और अपराधी प्रवृत्ति का था. उस के पिता योगेश शुक्ला फैक्ट्रीकर्मी थे. छोटा भाई श्यामजी है. दोनों भाइयों को राजनैतिक संरक्षण प्राप्त था, जिस से क्षेत्र में उन का दबदबा था. ज्ञानेंद्र सिंह ने उस से दबंगई की वजह से ही दोस्ती की थी.

ज्ञानेन्द्र सिंह को 2 टीवी सीरियल सावधान इंडिया और क्राइम पैट्रोल बेहद पसंद थे. इन सीरियलों को देख कर उस ने अपहरण कर फिरौती वसूलने की योजना बनाई.

इस योजना में उस ने कुलदीप, रामजी शुक्ला, नीलू सिंह व उस की प्रेमिका प्रीति शर्मा को शामिल किया. प्रीति को 3 लाख रुपए देने का लालच दिया गया.

एक रोज सब ने सिर से सिर जोड़ कर माथापच्ची की तो संजीत यादव के अपहरण और फिरौती की बात तय हुई. क्योंकि उस के बताए अनुसार संजीत धनवान था.

योजना के तहत नीलू सिंह ने महिला मित्र प्रीति शर्मा के साथ जा कर 15 जून को रतनलाल नगर में ब्रोकर रवींद्र तिवारी की मार्फत 15 हजार रुपया मासिक किराए पर सुनील श्रीवास्तव का मकान ले लिया. मकान किराए पर लेते समय प्रीति को उस ने अपनी पत्नी बताया था. इस मकान में प्रीति अपनी मां सिम्मी के साथ रहने लगी.

नीलू ने ही फरजी आईडी पर 6 सिम और 4 चाइनीज मोबाइल खरीदे और ज्ञानेंद्र को दे दिए. ज्ञानेंद्र ने चारों मोबाइल आपस में बांट लिए. ये मोबाइल अपहरण में इस्तेमाल करने के लिए थे.

इधर ज्ञानेंद्र सिंह ने संजीत को बेहोश करने के लिए नशे के इंजेक्शन, मुंह पर लगाने के लिए टेप तथा नींद की गोलियां हैलट अस्पताल के सामने मैडिकल स्टोर से खरीदीं. मैडिकल स्टोर के कर्मचारी ज्ञानेंद्र को जानते थे इसलिए उन्होंने डाक्टर का पर्चा नहीं मांगा. ज्ञानेंद्र ने इस सामान को बैग में सुरक्षित कर कार में रख लिया.

22 जून की शाम 7बज कर 47 मिनट पर ज्ञानेंद्र सिंह ने संजीत को फोन कर के बताया कि आज उस का जन्मदिन है, पार्टी करने चलते हैं. पार्टी के नाम पर संजीत तैयार हो गया. इस के बाद दोनों का फोन पर संपर्क बना रहा. ज्ञानेंद्र अपनी फोर्ड फीगो कार ले कर शिवाजी पुलिया नौबस्ता के पास खड़ा हो गया. उस समय कार में ज्ञानेंद्र के अलावा कुलदीप, नीलू तथा रामजी शुक्ला मौजूद थे. कुछ देर बाद संजीत आया तो इन लोगों ने उसे कार में बिठा लिया.

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कार में ही उन लोगों ने संजीत को शराब पिलाई. उसी में नशीली गोलियां मिला दी गई थीं. बेहोश होेने पर ये लोग उसे रतनलाल नगर स्थित किराए वाले मकान पर ले आए. यहां प्रीति पहले से मौजूद थी. उसी ने दरवाजा खोला. कमरे में ला कर इन लोगों ने संजीत के हाथपैर बांधे, मुंह पर टेप लगाया और नशीला इंजेक्शन लगा दिया. इस के बाद बारीबारी से सब उस की निगरानी करने लगे.

26 जून की रात 10 बजे खाना खाते वक्त संजीत ने भागने का प्रयास किया और गेट तक पहुंच गया. लेकिन नीलू सिंह ने उसे दबोच लिया. इस के बाद ज्ञानेंद्र, कुलदीप व रामजी शुक्ला आ गए. सभी ने मिल कर संजीत का गला घोंट दिया. फिर शव को बोरी में भर कर, कार की डिक्की में रखा और सवेरा होने के पहले ही पांडव नदी में फेंक आए. फिर नीलू को छोड़ कर सब अपनेअपने घर चले गए.

संजीत की हत्या के बाद अपहर्त्ताओं ने फिरौती के लिए फोन किया और 30 लाख रुपए की मांग की. 13 जुलाई को उन्होंने फिरौती की रकम ले भी ली. अपहर्त्ताओं ने पुलिस से बचने का भरसक प्रयास किया, लेकिन बच नहीं पाए और पकड़े गए.

इधर संजीत की हत्या की खबर प्रिंट मीडिया में छपी और टीवी चैनलों में दिखाई जाने लगी तो राजनीतिक भूचाल आ गया. सपा, बसपा व कांग्रेस के बड़े नेता प्रदेश की कानूनव्यवस्था पर सवाल खड़े करने लगे तो सीएम योगी तिलमिला उठे.

मुख्यमंत्री ने आईजी मोहित अग्रवाल से संजीत प्रकरण की जानकारी जुटाई, साथ ही पुलिस की भूमिका की भी जानकारी ली. इस के बाद उन्होंने लापरवाह पुलिस अधिकारियों व पुलिसकर्मियों को सस्पेंड करने का फरमान जारी कर दिया.

एसएसपी दिनेश कुमार पी का भी तबादला झांसी कर दिया गया. शासन के आदेश पर एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता, डीएसपी मनोज कुमार गुप्ता, पूर्व बर्रा थानाप्रभारी रणजीत राय, चौकी प्रभारी राजेश कुमार, दरोगा योगेंद्र सिंह, सिपाही अवधेश, भारती, दिशू, विनोद कुमार, सौरभ, मनीष और शिव प्रताप को सस्पेंड कर दिया गया.

लेकिन मृतक संजीत की बहन रुचि ने मीडिया से रूबरू हो कर कहा कि सस्पेंड पुलिसकर्मियों की लापरवाही से उस के भाई की हत्या हो गई. इसलिए ये पुलिसकर्मी उतने ही दोषी हैं, जितने अपहर्त्ता. उस की शासन से मांग कि केवल निलंबन से काम नहीं चलेगा. उन पर हत्या का मुकदमा दर्ज कर जेल भेजा जाए.

25 जुलाई, 2020 को थाना बर्रा पुलिस ने अभियुक्त ज्ञानेंद्र सिंह, कुलदीप गोस्वामी, नीलू सिंह, रामजी शुक्ला तथा प्रीति शर्मा को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.

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कथा संकलन तक पुलिस न तो शव बरामद कर सकी थी और न ही नोटों भरा बैग. बैग बरामदगी तथा जांच हेतु पुलिस हेडक्वार्टर से एडीजी वी.पी. जोगदंड को भेजा गया. उन्होंने जांच शुरू कर दी थी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

30 लाख भी गए, बेटा भी : भाग 2

चमन सिंह के परिवार को तो अपहर्त्ताओं के फोन का इंतजार था ही, पुलिस भी इंतजार कर रही थी. लेकिन अपहर्त्ताओं का फोन आया 12 जुलाई को. चमन सिंह ने उन्हें बता दिया कि रकम तैयार कर ली गई है. इस पर उन्होंने कहा कि 30 लाख की रकम बैग में भर कर तैयार रखो. जल्दी ही बता दिया जाएगा कि रकम कहां और कैसे देनी है.

रुचि ने यह बात भी एसपी अपर्णा गुप्ता को बता दी. उन्होंने पूरी टीम को सादे कपड़ों में तैयार रहने के लिए अलर्ट कर दिया.  लेकिन उस दिन अपहर्त्ताओं का फोन नहीं आया. उन का फोन आया 13 जुलाई की दोपहर में.

अपहर्त्ताओं ने चमन सिंह से कहा कि शाम 5 बजे रकम का बैग ले कर वह गुजैनी हाइवे के फ्लाईओवर पर पहुंच जाएं. फ्लाईओवर से बैग नीचे फेंकना है. वे लोग पुल के नीचे रहेंगे. रकम मिलते ही संजीत को छोड़ दिया जाएगा. यह बात भी एसपी अपर्णा गुप्ता को बता दी गई. उन्होंने पुलिस टीम को तैयार रहने का आदेश दे दिया.

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ठीक 6 बजे पुलिस की 2 गाडि़यां फ्लाईओवर पर पहुंच गईं. एक गाड़ी में पुलिस जवानों के साथ अपर्णा गुप्ता थीं और दूसरी में सहयोगियों के साथ थानाप्रभारी रणजीत राय थे.

तभी रकम का बैग ले कर चमन सिंह मोटरसाइकिल से वहां पहुंच गया. मोटरसाइकिल खड़ी कर के उस ने नीचे झांका. तभी अपहर्त्ताओं का फोन आ गया कि चंद कदम आगे जा कर बैग नीचे फेंक दो. चमन सिंह ने बैग नीचे फेंक दिया तो अपहर्त्ताओं का फिर फोन आया. उन्होंने कहा कि थोड़ा आगे जा कर हनुमान मंदिर है, वहीं पहुंचो. संजीत मिल जाएगा.

इस बीच पुलिस की निगाहें चमन सिंह पर ही जमी थीं. जैसे ही उस ने बैग फेंका, पुलिस अपहर्त्ताओं को पकड़ने के लिए दौड़ी, लेकिन नीचे जाने का रास्ता लंबा था. पुलिस के वहां पहुंचने तक अपहर्त्ता बैग ले कर भाग गए थे. उधर चमन सिंह आंखों में आस समेटे मंदिर पर पहुंचा. लेकिन संजीत वहां नहीं मिला. पुलिस औपरेशन पूरी तरह फेल रहा.

चमन सिंह का परिवार अवाक रह गया. जैसेतैसे जुटाई 30 लाख की रकम तो गई ही, बेटा भी नहीं मिला. इस पर रुचि पिता के साथ जा कर आईजी मोहित अग्रवाल से मिली. रुचि ने पूरी बात आईजी को बताई. साथ ही संदेह भी व्यक्त किया कि पुलिस अपहर्त्ताओं से मिली हुई थी. संभव है पैसों का बैग भी पुलिस के ही पास हो.

चमन सिंह और रुचि की शिकायत पर आईजी मोहित अग्रवाल उसी समय थाना बर्रा पहुंचे. उन्होंने थानाप्रभारी रणजीत राय से पूछताछ की. उन की बातों से संतुष्ट न होने पर उन्होंने रणजीत राय को सस्पेंड कर के हरमीत सिंह को थानाप्रभारी नियुक्त कर दिया.

इंसपेक्टर हरमीत सिंह ने क्राइम ब्रांच व सर्विलांस टीम की मदद से जांच प्रारंभ की. उन्होंने पहले अपहृत संजीत के परिवार वालों से पूछताछ की, फिर संजीत के मोबाइल नंबर को खंगाला, जिस से पता चला अपहरण वाले दिन यानी 22 जून को संजीत के मोबाइल फोन पर एक नंबर से 5 काल आई थीं. 2 बार काल करने वाले ने बात की थी और 3 बार संजीत ने उसी नंबर पर बात की थी.

रात पौने 8  बजे संजीत की उस नंबर पर आखिरी बार बात हुई थी. पौने 9 बजे संजीत का मोबाइल और संदिग्ध नंबर के मोबाइल का स्विच्ड औफ हो गया था. फिरौती के लिए अलग नंबर प्रयोग किया गया था. उस नंबर से 22 बार काल की गई थी.

इस जानकारी के बाद पुलिस टीम ने सिम बेचने वाले दुकानदार का पता लगाया तो पता चला उस की सिम कार्ड की दुकान चकरपुर में हैं. पुलिस ने उसे उठा कर कड़ाई से पूछताछ की तो उस ने 6 सिम कार्ड बेचने की बात कही.

सर्विलांस टीम ने सभी मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवानी शुरू की. साथ ही उन नंबरों को लिसनिंग पर भी लगा दिया. इस के बाद पुलिस ने धनवंतरि अस्पताल की पैथालौजी के 2 कर्मचारियों को हिरासत में लिया. उन में से एक की संदिग्ध नंबर पर बात हुई थी.

उस कर्मचारी से सख्ती से पूछताछ की गई तो पता चला, वह संदिग्ध नंबर कुलदीप गोस्वामी का था, जो कुछ माह पहले धनवंतरि अस्पताल में काम करता था. लौकडाउन में विवाद होने पर उस ने नौकरी छोड़ दी थी. कुलदीप गोस्वामी पुलिस की रडार पर आया तो उस की तलाश शुरू की गई.

23 जुलाई, 2020 की सुबह 10 बजे थानाप्रभारी हरमीत सिंह को सूचना मिली कि कुलदीप गोस्वामी अपने साथियों के साथ अंबेडकर नगर के पटेल चौक पर मौजूद है.

इस सूचना पर हरमीत सिंह क्राइम ब्रांच की टीम के साथ पटेल चौक पहुंच गए. पुलिस को देख कर एक युवती और 4 युवक भागने लगे. लेकिन क्राइम ब्रांच की टीम ने घेराबंदी कर युवती सहित 4 युवकों को गिरफ्तार कर लिया और सुरक्षा की दृष्टि से थाना बर्रा न ले जा कर सीओ औफिस गोविंद नगर ले आए.

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उन से पूछताछ की गई तो युवकों ने अपना नाम कुलदीप गोस्वामी, नीलू सिंह, ज्ञानेंद्र सिंह और रामजी शुक्ला बताया. युवती ने अपना नाम प्रीति शर्मा बताया. पकड़े गए सभी युवक थे. उन की उम्र 25 से 30 वर्ष के बीच थी. पकड़े गए युवकों से जब संजीत यादव के अपहरण के संबंध में पूछा गया तो सब ने मौन धारण कर लिया और एकदूसरे का मुंह ताकने लगे. इस पर उन्हें तराशा गया, आखिर उन्होंने जुबान खोली और बताया कि संजीत अब इस दुनिया में नही है.

इन लोगों ने आगे बताया कि अपहरण के 4 दिन बाद उस की हत्या कर दी थी. फिर उस के शव को बोरी में भर कर पांडव नदी में फेंक दिया था. यह सुनते ही थानाप्रभारी हरमीत सिंह के होश उड़ गए. उन्होंने सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी.

सूचना पाते ही आईजी मोहित अग्रवाल, एसएसपी दिनेश कुमार पी, तथा एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता आ गईं. पुलिस अधिकारियों ने अपहर्ताओं से पूछताछ की, फिर शव बरामदगी के लिए फ्लड कंपनी बटालियन की 6 बोट तथा 35 गोताखोरों को बुला कर उन्हें पांडव नदी में उतारा गया. गोताखोरों ने 30 किलोमीटर तक शव को तलाशा, लेकिन शव बरामद नहीं हो सका.

इधर अपहर्ताओं की निशानदेही पर पुलिस ने सड़क किनारे झाड़ी में छिपाई गई संजीत की मोटरसाइकिल, अपहरण व हत्या में प्रयुक्त कार, कार में रखा बैग तथा 4 मोबाइल फोन बरामद किए. पुलिस अब तक फिरौती के 30 लाख रुपए बरामद नहीं कर पाई थी. इस बाबत अपहर्ताओं से पूछताछ की गई तो उन्होंने बताया कि पुलिस के डर से वे नोटों से भरा बैग नहीं ले जा पाए थे.

अब सवाल था, जब नोटों से भरा बैग अपहर्ताओं ने नहीं उठाया, तो बैग क्या पुलिस ने गायब कर दिया.

पुलिस अधिकारियों को डर था कि हत्या की खबर फैलते ही बर्रा क्षेत्र में सनसनी फैल जाएगी. लोग सड़क पर उपद्रव मचाएंगे. नेता आग में घी डालने का काम करेंगे, अत: पुलिस अधिकारियों ने पहले क्षेत्र में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी की, फिर रात 11 बजे चमन सिंह के घर जा कर अपहर्ताओं के पकड़े जाने तथा संजीत की हत्या कर शव को पांडव नदी में बहाने की जानकारी दी.

संजीत की हत्या की खबर सुन कर घर में कोहराम मच गया. चमन सिंह, कुसुमा और रुचि चीखनेचिल्लाने लगी. उन की चीखपुकार सुन कर रात के सन्नाटे में मोहल्ले के लोग घरों से निकल आए.

देखते ही देखते सैकड़ों की भीड़ चमन सिंह के घर आ पहुंची. हत्या की जानकारी मिलने पर लोगों का गुस्सा भड़क उठा. मांबेटी की चीखों से महिलाएं द्रवित हो उठीं. रुचि पुलिस अधिकारियों के पैर पकड़ कर बोली, ‘‘आप लोग, जिंदा तो मेरे भाई को ला नहीं पाए, कम से कम मुर्दा ही ला दो. ताकि आखिरी बार उसे राखी बांध सकूं.’’ उस की इस बात पर पुलिस अधिकारी द्रवित हो गए. उन्होंने रुचि को धैर्य बंधाया.

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24 जुलाई, 2020 की सुबह 11 बजे आईजी मोहित अग्रवाल तथा एसएसपी दिनेश कुमार पी ने पुलिस लाइन सभागार में प्रैस वार्ता बुलाई और अपहर्ताओं को प्रिंट तथा इलेक्ट्रौनिक मीडिया के सामने पेश कर संजीत के अपहरण और हत्या का खुलासा कर दिया.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

30 लाख भी गए, बेटा भी : भाग 1

कानपुर दक्षिण में काफी बड़े क्षेत्र में फैला एक बड़ी आबादी वाला क्षेत्र है बर्रा. बड़े क्षेत्र को देखते हुए इसे कई भागों में बांटा गया है. चमन सिंह यादव अपने परिवार के साथ इसी बर्रा क्षेत्र के बर्रा 5 की एलआईजी कालोनी में रहते थे. उन के परिवार में पत्नी कुसुमा देवी के अलावा एक बेटा था संजीत और एक बेटी रुचि यादव.

चमन सिंह एक फैक्ट्री में काम करते थे. वह धनवान तो नहीं थे, पर घर में किसी चीज की कमी भी नहीं थी. चमन सिंह मृदुभाषी थे सो अड़ोसीपड़ोसी सभी से मिलजुल कर रहते थे.

चमन सिंह खुद तो ज्यादा पढ़ेलिखे नहीं थे, लेकिन उन्होंने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाई थी. बेटी रुचि डीबीएस कालेज गोविंद नगर से बीएससी कर के प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुटी थी, जबकि बेटे संजीत ने बीएससी नर्सिंग कर रखा था. वह नौबस्ता स्थित धनवंतरि अस्पताल के पैथोलौजी विभाग में बतौर लैब टेक्नीशियन कार्यरत था. उस का काम था मरीजों के खून का नमूना जांच हेतु एकत्र करना. फिर उसे जांच के लिए पैथोलौजी लैब ले जाना और जांच रिपोर्ट लाना.

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चमन सिंह की बेटी रुचि जौब की तलाश में थी, चमन सिंह बेटी का ब्याह कर देना चाहते थे. इस में उन की पत्नी कुसुमा की भी सहमति थी. इसी कवायद में चमन सिंह को रुचि के लिए राहुल यादव पसंद आ गया. राहुल बर्रा विश्व बैंक कालोनी में रहता था. उस के पिता राजेंद्र यादव पीएसी में तैनात थे. राहुल पसंद आया तो उन्होंने बेटी का रिश्ता तय कर दिया.

रिश्ता तय हुआ तो चमन सिंह बेटी की शादी की तैयारी में जुट गए. उन्होंने बेटी के लिए जेवरात बनवा लिए तथा कैश का भी इंतजाम कर लिया. संजीत का सपना था कि वह अपनी बहन को कार से ससुराल भेजेगा. कार खरीदने के लिए उस ने बैंक से 2 लाख का कर्ज भी ले लिया था.

रुचि की शादी की तैयारियां चल ही रही थीं कि इसी बीच चमन सिंह को पता चला कि राहुल रुचि के लिए ठीक लड़का नहीं है.

चमन सिंह ने अपने स्तर से पता लगाया तो बात सच निकली. इस के बाद उन्होंने पत्नी व बच्चों के साथ इस गंभीर समस्या पर विचारविमर्श किया और रुचि के भविष्य को देखते हुए रिश्ता तोड़ दिया.

रिश्ता टूटने से राहुल और उस के घर वाले बौखला गए. राहुल, रुचि के पिता व भाई को मनाने में जुट गया, परंतु बात नहीं बनी.

हर रोज की तरह 22 जून, 2020 को भी संजीत अस्पताल गया, लेकिन जब वह रात 10 बजे तक वापस घर नहीं आया, तब चमन सिंह व उस की पत्नी कुसुमा को चिंता हुई.

दरअसल संजीत रात 9 बजे तक हर हाल में घर आ जाता था. कभी उसे अस्पताल में रुकना होता था या कहीं और जाना होता तो वह अपनी मां या बहन को फोन कर के बता देता था.

10 बज गए थे. न वह आया था, न ही फोन पर बताया था. ताज्जुब की बात यह थी कि उस का मोबाइल फोन भी बंद था.

ज्योंज्यों समय बीतता रहा था, चमन सिंह, उन की पत्नी कुसुमा और बेटी रुचि की धड़कनें बढ़ती जा रही थीं. रुचि ने संजीत के अस्पताल फोन किया तो पता चला वह 7 बजे ही अस्पताल से चला गया था. पैथोलाजी लैब वह गया ही नहीं था. रुचि ने भाई के दोस्तों जिन्हें वह जानती थी, सब को फोन किया, कोई जानकारी नहीं मिली.

मां बेटी और पिता रात भर फोन पर फोन करते रहे, लेकिन कहीं से भी संजीत के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. सुबह का उजाला फैला तो पूरी कालोनी में संजीत के लापता होने की खबर फैल गई. पड़ोसी सांत्वना देने घर पहुंचने लगे. चमन सिंह ने कुछ खास पड़ोसियों से विचारविमर्श किया फिर बेटी रुचि को साथ ले कर जनता नगर पुलिस चौकी पहुंच गए.

उस समय चौकी इंचार्ज राजेश कुमार चौकी पर मौजूद थे. चमन सिंह ने उन्हें एकलौते बेटे संजीत के लापता होने की जानकारी दी. साथ ही अपहरण की आशंका भी जताई. राजेश कुमार ने चमन सिंह से तहरीर ले ली, फिर पूछा, ‘‘तुम्हारी किसी से दुश्मनी या जमीन वगैरह की रंजिश तो नहीं है. संजीत का लेनदेन में किसी से झगड़ाफसाद तो नहीं हुआ था.’’

‘‘सर, हम सीधेसादे लोग हैं. हमारी या बेटे संजीत की न तो किसी से रंजिश है, न ही लेनदेन का झगड़ा है.’’

‘‘तुम्हें किसी पर शक है?’’ चौकीप्रभारी राजेश कुमार ने पूछा.

‘‘हां सर, मुझे राहुल यादव पर शक है.’’ चमन सिंह ने बताया.

‘‘वजह बताओ?’’ राजेश कुमार ने अचकचा कर पूछा.

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‘‘सर, राहुल यादव, विश्व बैंक कालोनी बर्रा में रहता है. उस के पिता पीएसी में तथा चाचा मैनपुरी में दरोगा है. राहुल के साथ मैं ने अपनी बेटी रुचि का विवाह तय किया था. लेकिन कुछ कारणों से हम ने रिश्ता तोड़ दिया था. रिश्ता टूटने से राहुल बौखला गया. मुझे शक है कि इसी बौखलाहट में उस ने संजीत का अपहरण किया है.’’

‘‘ठीक है, तुम जाओ. मैं इस मामले को देखता हूं.’’ कह कर राजेश कुमार ने चमन सिंह को टरका दिया. उन्होंने न तो गुमशुदगी दर्ज की और न ही किसी से कोई पूछताछ की.

24 जून की सुबह 10 बजे चमन सिंह आशंका जताते हुए राहुल के खिलाफ नामजद तहरीर ले कर चौकी पहुंचे. तहरीर पढ़ते ही चौकीप्रभारी राजेश कुमार भड़क उठे, ‘‘तुम्हारा बेटा गर्लफ्रैंड के साथ मौजमस्ती करने गया होगा. किसी पर गलत आरोप लगाओगे तो भुगतना पड़ेगा. गलत होने पर मैं तुम्हारे खिलाफ मानहानि का मुकदमा लिख दूंगा, समझे.’’

चमन सिंह समझ गए कि यहां कोई काररवाई संभव नहीं है. अत: वह थाना बर्रा जा कर थानाप्रभारी रणजीत राय से मिले. उन्होंने उन्हें जनता नगर चौकी में दी गई तहरीर के आधार पर गुमशुदगी दर्ज न करने की बात बताई. इस पर वह नाराज होते हुए बोले, ‘‘हथेली पर सरसों मत उगाओ. तुम्हारा बेटा मिल जाएगा.’’

थाने से निराशा हाथ लगी तो चमन सिंह डीएसपी (गोविंद नगर) मनोज कुमार गुप्ता और एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता से मिले और अपनी परेशानी बताई. लेकिन जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों ने भी उस के आंसुओं को नजरअंदाज कर दिया.

दरअसल, पुलिस यह मान रही थी कि संजीत मौजमस्ती करने कहीं चला गया है. अगर उस का अपहरण हुआ होता तो अब तक फिरौती के लिए फोन आ गया होता.

पुलिस की खुमारी तब टूटी जब 29 जून को फिरौती के लिए अपहर्त्ताओं का फोन आया. उन्होंने संजीत को सहीसलामत लौटाने के लिए 30 लाख रुपए मांगे थे. चमन सिंह ने यह बात पुलिस को बताई. पुलिस ने उन्हें रुपयों का इंतजाम करने को कहा.

एक साधारण परिवार के लिए 30 लाख रुपए का इंतजाम करना आसान नहीं था. लेकिन सवाल एकलौते बेटे का था. चमन सिंह ने बेटी रुचि की शादी के लिए जो रकम सहेज कर रखी थी, वह और बेटी की शादी के लिए बनवाए गए जेवर बेच कर पैसा एकत्र किया. पर 30 लाख की रकम पूरी नहीं हो पाई. इस पर उन्होंने गांव की जमीन और मकान बेच दिया.

पैसा एकत्र हो गया तो चमन सिंह ने यह बात पुलिस को बता दी. इस बीच अपहर्त्ताओं  के फोन पर फोन आ रहे थे. उन का कहना था कि चाहे जैसे भी हो, 30 लाख रुपए जमा कर लो, बेटा अमित मिल जाएगा.

रुचि हर रोज सारी बात पुलिस को बता रही थी. इस बीच संजीत के अपहरण को 3 हफ्ते बीत गए थे. इसे पुलिस की कमजोरी ही कहा जाएगा कि वह अपहर्त्ताओं का नंबर तक ट्रेस नहीं कर पाई थी.

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रकम का इंतजाम हो जाने पर यह बात पुलिस को बता दी गई. इस पर एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता ने अपहर्त्ताओं को रंगेहाथों पकड़ने के लिए योजना तैयार की. इस के लिए क्राइम ब्रांच की टीम और सर्विलांस टीम को भी साथ लिया गया.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

30 लाख भी गए, बेटा भी

सम्मान की खातिर : भाग 3

पहली जुलाई को गढ़ा गांव के जंगल में देवराज उर्फ दानवीर के यूकेलिप्टस के बाग में बंटी और सुखदेवी की लाशें शीशम के एक पतले  से पेड़ पर लटकी मिलीं. गांव के कुछ लड़के उधर गए तो उन्होंने लाशें देखीं. लड़कों ने यह जानकारी दोनों के घर वालों को दे दी.

सूचना पा कर बंटी के घर वाले और गांव के लोग तो पहुंच गए, लेकिन सुखदेवी के घर वाले वहां नहीं पहुंचे. संबंधित थाना धनारी को घटना की सूचना दे दी गई. सूचना पा कर इंसपेक्टर सतेंद्र भड़ाना कुछ पुलिसकर्मियों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. थानाप्रभारी की सूचना पर एएसपी आलोक जायसवाल और सीओ (गुन्नौर) डा. के.के. सरोज भी वहां पहुंच गए.

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सुखदेवी और बंटी की लाशें एक ही पेड़ से लटकी हुई थीं. सुखदेवी के गले में हरे रंग के दुपट्टे का फंदा था तो बंटी के गले में प्लास्टिक की रस्सी का. दोनों के चेहरे तेजाब जैसे किसी पदार्थ से झुलसे हुए थे. प्रथमदृष्टया मामला आत्महत्या का था, लेकिन दोनों के चेहरे झुलसे होने से हत्या का शक भी जताया जा रहा था.

पुलिस अधिकारियों ने मौके पर मौजूद मृतक बंटी के पिता बिन्नामी से आवश्यक पूछताछ की. फिर इंसपेक्टर सतेंद्र भड़ाना को दिशानिर्देश दे कर दोनों अधिकारी चले गए. इस के बाद पुलिस ने जरूरी काररवाई कर दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का सही कारण नहीं आ पाया. 7 जुलाई, 2020 को सुखदेवी के भाई कुलदीप उर्फ सूखा का शव गढ़ा के जंगल में नीम के पेड़ से लटका मिला. उसी जगह जहां सुखदेवी और बंटी के शव मिले थे.

थानाप्रभारी सतेंद्र भड़ाना तत्काल पुलिस टीम के साथ वहां पहुंचे. सीओ के.के. सरोज भी फोरैंसिक टीम के साथ पहुंच गए.

कुलदीप का शव प्लास्टिक की रस्सी से लटका हुआ था और उस का चेहरा भी तेजाब से झुलसा हुआ लग रहा था. लाश का निरीक्षण करने पर पता चला कि तीनों की मौत का तरीका एक जैसा ही था. मुआयना करने के बाद पुलिस को इस मामले में भी हत्या की साजिश नजर आ रही थी.

पहले बंटी व सुखदेवी की मौत और अब सुखदेवी के भाई कुलदीप की मौत आत्महत्या नहीं हो सकती थी. हां, इसे आत्महत्या का रूप दे कर गुमराह करने का प्रयास जरूर किया था.

कुलदीप के घर वालों से पूछताछ की गई तो पता चला कि कुलदीप 25 जून से ही लापता था. लेकिन सुखदेवी और बंटी की मौत के बाद घर वाले पुलिस के पास जाने से डर रहे थे, इसलिए पुलिस तक सूचना नहीं पहुंची.

गढ़ा गांव में 3 हत्याओं के बाद एसपी यमुना प्रसाद एक्शन में आए. उन्होंने इंसपेक्टर सतेंद्र भड़ाना को जल्दी से जल्दी केस का खुलासा करने के निर्देश दिए.

मृतक बंटी के पिता बिन्नामी की तहरीर पर इंसपेक्टर भड़ाना ने अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धाराओं 302/201/34 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.

इस के बाद थानाप्रभारी ने सुखदेवी के घर वालों से पूछताछ की तो सुखदेवी का भाई विनीत उर्फ लाला और किशोरी घर से गायब मिले. पुलिस ने दोनों की तलाश की तो गढ़ा के जंगल से दोनों को हिरासत में ले लिया.

उन से पूछताछ की गई तो इन 3 हत्याओं का परदाफाश हो गया. उन से पूछताछ में कई और लोगों के शामिल होने का पता चला. इस के बाद पुलिस ने गढ़ा गांव के ही जगपाल यादव उर्फ मुल्लाजी और श्योराज को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में सभी ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया और घटना के बारे में विस्तार से बता दिया.

पता चला कि सुखदेवी और बंटी के घर से लापता हो जाने के बाद उन के घर वाले काफी परेशान थे. जबकि बंटी सुखदेवी के साथ अपने गन्ने के खेत में छिप गया था. गांव के जगपाल यादव उर्फ मुल्लाजी ने 26 जून को उन्हें देख लिया. उस ने दोनों के खेत में छिपे होने की बात सुखदेवी के भाई विनीत उर्फ लाला को बता दी.

विनीत ने यह बात अपने भाई किशोरी और गांव के श्योराज को बताई. समाज में बदनामी के डर से विनीत ने जगपाल से अपनी बहन सुखदेवी और बंटी को मारने की बात कही और बदले में ढाई लाख रुपया देने को कहा. जगपाल पेशे से अपराधी था, इसलिए वह हत्या करने को तैयार हो गया.

विनीत ने उसे ढाई लाख रुपए ला कर दे दिए. इस के बाद योजना बना कर रात 11 बजे चारों बंटी के खेत में पहुंचे. वे शराब और तेजाब की बोतल साथ ले गए थे.

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वहां पहुंच कर चारों ने बंटी और सुखदेवी को दबोच लिया. श्योराज ने बंटी को जबरदस्ती शराब पिलाई. फिर श्योराज पास में ही जगपाल के ट्यूबवेल पर पड़े छप्पर में लगी प्लास्टिक की रस्सी निकाल लाया.

इस के बाद सुखदेवी के गले को उसी के हरे रंग के दुपट्टे से और बंटी के गले को प्लास्टिक की रस्सी से घोंट कर मार डाला.

इसी बीच विनीत का छोटा भाई 25 वर्षीय कुलदीप उर्फ सूखा वहां आ गया. उस ने उन लोगों को दोनों हत्याएं करते देख लिया.

विनीत ने उसे समझाबुझा कर वहां से वापस घर भेज दिया. इस के बाद वे लोग दोनों की लाशों को कुछ दूरी पर देवराज यादव उर्फ दानवीर के यूकेलिप्टस के बाग में ले गए. वहां दोनों की लाशों को दुपट्टे व रस्सी की मदद से शीशम के पेड़ पर लटका दिया. इस के बाद उन की पहचान मिटाने के लिए दोनों के चेहरों पर तेजाब डाल दिया गया.

कुलदीप को दौरे पड़ते थे, उन दौरों की वजह से उस का दिमाग सही नहीं था, उस पर भरोसा करना गलत था. वह घटना का लगातार विरोध भी कर रहा था. इस पर चारों लोगों ने योजना बनाई कि कुलदीप को भी मार दिया जाए, नहीं तो वह उन लोगों का भेद खोल देगा.

2 जुलाई, 2020 को विनीत और उस के तीनों साथी कुलदीप को बहाने से रात को जंगल में ले गए. वहां गांव के नेकपाल यादव के खेत में कुलदीप का गला पीले रंग के दुपट्टे से घोंट कर उस की हत्या कर दी और दुपट्टे से बांध कर उस की लाश को नीम के पेड़ पर लटका दिया. उस के चेहरे पर भी तेजाब डाल दिया गया. फिर निश्चिंत हो कर सब घर लौट आए.

कुलदीप की हत्या उन के लिए बड़ी गलती साबित हुई.

थानाप्रभारी सतेंद्र भड़ाना ने अभियुक्तों की निशानदेही पर हत्या के एवज में दिए गए ढाई लाख रुपए, शराब के खाली पव्वे और तेजाब की खाली बोतल बरामद कर ली.

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आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी करने के बाद चारों अभियुक्तों विनीत उर्फ लाला, किशोरी, जगपाल और श्योराज को न्यायालय में पेश किया गया, वहां से उन्हें न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सम्मान की खातिर

सम्मान की खातिर : भाग 2

बंटी ने उस से आंखें खोलने को कहा, मगर सुखदेवी हिम्मत नहीं कर सकी. उस के दोबारा कहने पर सुखदेवी ने अपनी पलकें उठाईं और तुरंत झुका लीं. तभी बंटी ने उस की आंखों को चूम लिया. सुखदेवी घबरा गई. उस ने वहां से उठना चाहा. मगर बंटी ने उसे उठने नहीं दिया. वह शर्म के मारे कांपने लगी. उस के होंठों की कंपकंपाहट से बंटी अच्छी तरह वाकिफ था. मगर वह उसी समय अपने प्यार का इजहार कर देना चाहता था.

तभी उस ने सुखदेवी की कलाई पकड़ कर कहा, ‘‘मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं, मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता, मैं सचमुच तुम से बहुत प्यार करता हूं.’’

बंटी की बात सुन कर सुखदेवी आश्चर्यचकित रह गई. उस ने बंटी को समझाना चाहा, मगर बंटी अपनी जिद पर ही अड़ा रहा. सुखदेवी ने कहा, ‘‘बंटी, मैं तुम्हारी बहन हूं. हमारा प्यार कोई कैसे स्वीकार करेगा.’’

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मगर बंटी ने इन सब बातों को खारिज करते हुए सुखदेवी को अपनी बांहों में समेट लिया और प्यार से उस के होंठों पर अपने प्यार की मोहर लगा दी.

सुखदेवी के लिए यह किसी पुरुष का पहला स्पर्श था, जिस ने उसे मदहोश कर दिया और वह बंटी की बांहों में कसमसाने लगी. सुखदेवी चाह कर भी अपने आप को उस से अलग नहीं कर पा रही थी. कुछ क्षणों तक चले इस प्रेमालाप से सुखदेवी मदमस्त हो गई, तभी अचानक बंटी उस से अलग हो गया. सुखदेवी तड़प उठी. बंटी के स्पर्श से छाया खुमार जल्दी ही उतरने लगा. वह बिना कुछ कहे घर के दरवाजे की तरफ बढ़ी तो पीछे से बंटी ने उसे कई आवाजें लगाईं, मगर सुखदेवी नजरें झुकाए चुपचाप बाहर चली गई.

बंटी घबरा सा गया. उस के दिल में हजारों सवाल सिर उठाने लगे. वह इस दुविधा में फंसा रहा कि सुखदेवी उस का प्यार ठुकरा न दे या फिर ताऊताई से उस की इस हरकत के बारे में न बता दे. इसी सोच में बंटी परेशान रहा, वह पूरी रात सो न सका, बस बिस्तर पर करवटें बदलता रहा.

उधर सुखदेवी का हाल भी बंटी से जुदा न था. वह भी पूरे रास्ते बंटी द्वारा कहे हर लफ्ज के बारे में सोचती रही. घर पहुंच कर वह बिना कुछ खाएपीए अपने बिस्तर पर लेट गई. मगर उस की आंखों में नींद कहां थी.

बंटी का प्यार दस्तक दे चुका था. वह बिस्तर पर पड़ीपड़ी करवटें बदल रही थी. सुखदेवी भी अपनी भावनाओं पर काबू न रख पाई और वह भी बंटी से प्यार कर बैठी. अपने इस फैसले को दिल में लिए सुखदेवी बहुत बेकरारी से सुबह का इंतजार करने में लगी रही.

पूरी रात आंखोंआंखों में कटने के बाद सुखदेवी ने सुबह जल्दीजल्दी घर का सारा काम निपटाया. फिर मां को बता कर बंटी के घर चली गई. सुखदेवी के कदम खुदबखुद आगे बढ़ते जा रहे थे. कभी वह बंटी के प्रेम के बारे में सोचती तो कभी समाज व लोकलाज के बारे में, जाते वक्त कई बार उस ने वापस लौटने की सोची, मगर हिम्मत न जुटा सकी.

वह बंटी के उस जुनून को भी नहीं भुला पा रही थी. क्योंकि कहीं न कहीं उस के दिल में भी बंटी के लिए प्रेम की भावना उछाल मार रही थी. इसी सोचविचार में वह बंटी के घर के दरवाजे पर पहुंच गई लेकिन अंदर जाने की हिम्मत न जुटा सकी. तभी बंटी की नजर उस पर पड़ गई और उसे अंदर जाना ही पड़ा.

उधर बंटी का चेहरा एकदम पीला पड़ा हुआ था. एक रात में ही ऐसा लग रहा था जैसे उस ने कई दिनों से कुछ खायापीया न हो. उस की आंखें लाल थीं, जिस से साफ पता चल रहा था कि वह न तो रात भर सोया है और न ही कुछ खायापीया है.

उस की आंखों को देख कर सुखदेवी समझ गई कि वह बहुत रोया है. सुखदेवी को आभास हो चुका था कि बंटी उस से अटूट प्रेम करता है.

उस ने आते ही बंटी से पूछा कि वह रोया क्यों था? बस फिर क्या था, इतना सुनते ही बंटी की आंखें फिर छलक आईं. उस की आंखों से छलके आसुंओं ने सुखदेवी को इस दुविधा में डाल दिया कि अब उस के मन से समाज की सोच और घर वालों का डर निकल चुका था. वह उस से लिपट गई और उस के चेहरे को चूमने लगी.

उस ने अपने हाथों से बंटी को खाना खिलाया. फिर दोनों एकांत कमरे में बैठ गए. तन्हाई के आलम में बंटी से रहा न गया और उस ने सुखदेवी को अपनी बांहों में भर लिया, सुखदेवी ने विरोध नहीं किया.

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सुखदेवी को इस से पहले कभी ऐसे एहसास का अनुभव नहीं हुआ था. बंटी का हर स्पर्श उस की मादकता को और भड़का रहा था. उस दिन बंटी ने सुखदेवी को पूरी तरह पा लिया.

सुखदेवी को भी यह अनुभव आनंदमई लगा. उसे वह सुख प्राप्त हुआ जो पहले कभी नहीं हुआ था. उस दिन के बाद सुखदेवी के मन में भी बंटी के लिए प्यार और बढ़ गया. अब उस के लिए बंटी ही सब कुछ था.

एक बार जिस्मानी ताल्लुकात कायम हुआ तो यह सिलसिला चलता रहा. दोनों घंटोंघंटों बातें करते. दोनों के लिए एकदूसरे के बगैर रहना मुश्किल होता जा रहा था.

एक दिन उन के प्यार का भेद उन के परिजनों के सामने खुला तो कोहराम सा मच गया. दोनों को समझाया गया कि उन के बीच खून का संबंध होने के कारण उन की शादी नहीं हो सकती, लेकिन वे प्रेम दीवाने कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे.

परिजनों के विरोध से दोनों परेशान रहने लगे. इसी बीच बंटी के घर वालों ने उस की शादी बदायूं जनपद के गांव तिमरुवा निवासी एक युवती से तय कर दी. शादी की तारीख तय हुई 26 जून, 2020. इस से सुखदेवी तो परेशान हुई ही बंटी भी बेचैन हो उठा. बेचैनी में वह काफी देर तक सोचता रहा, फिर उस ने फैसला कर लिया कि वह अब अपने प्यार को ले कर कहीं और चला जाएगा, जहां प्यार के दुश्मन उन को रोक न सकें.

अपने फैसले से उस ने सुखदेवी को भी अवगत करा दिया. सुखदेवी भी उस के साथ घर छोड़ कर दूर जाने को तैयार हो गई.

शादी की तारीख से एक दिन पहले 25 जून, 2020 को बंटी सुखदेवी को घर से ले भाग गया. उन के भाग जाने की भनक दोनों के घर वालों को लग गई. उन्होंने तलाशा लेकिन कोई पता नहीं चला.

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जानें आगे की कहानी अगले भाग में…

सम्मान की खातिर : भाग 1

बंटी की अजीब सी स्थिति थी. उस का दिमाग चेतनाशून्य हो चला था. मन में तूफान सा मचा हुआ था. यही तूफान सा चल रहा था. बेचैनी का आलम यह था कि कभी बैठ जाता तो कभी उठ कर चहलकदमी करने लगता. अचानक उस का चेहरा कठोर हो गया, जैसे किसीफैसले पर पहुंच गया हो, लगा जैसे उस फैसले के अलावा कुछ हो ही न सकता हो.

बंटी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के संभल जिले के थाना धनारी के गांव गढ़ा में रहता था. उस के पिता का नाम बिन्नामी और माता का नाम शीला था. बिन्नामी खेतीकिसानी का काम करते थे.

22 वर्षीय बंटी इंटर पास था. उस के बड़े भाई संदीप का विवाह हो चुका था. बंटी से छोटे 2 भाई तेजपाल और भोलेशंकर के अलावा छोटी बहनें कश्मीरा, सोमवती और राजवती थीं.

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उस के पड़ोस में उस के ताऊ तुलसीदास रहते थे. परिवार में उन की पत्नी रमा देवी और 8 बेटे थे. बेटी एक ही थी सुखदेवी, जो सब भाइयों से छोटी थी.

रिश्ते में बंटी और सुखदेवी तहेरे भाईबहन थे. बचपन से दोनों साथ खेलेघूमे थे. दोनों को एकदूसरे का साथ खूब भाता था. समय के साथ बचपन कब जवानी के प्यार की तरफ बढ़ने लगा, उन को एहसास भी नहीं हुआ.

जवान होती सुखदेवी के सौंदर्य को देखदेख कर बंटी आश्चर्यचकित था. सुखदेवी पर छाए यौवन ने उसे आकर्षक युवती बना दिया था. उस के नयननक्श में अब गजब का आकर्षण पैदा हो गया था.

उस के गालों पर उतरी लाली ने उसे इतना आकर्षक बना दिया था कि बंटी खुद पर काबू न रख सका और उसे पाने को लालायित हो उठा. उस के छरहरे बदन में यौवन की ताजगी, कसक और मादकता थी.

बंटी उस की चाहत में डूबता चला गया. वह भूल गया कि वह उस की तहेरी ही सही, लेकिन बहन है.

एक दिन बंटी जब सुखदेवी के घर गया तो उसे एकटक देखने लगा. सुखदेवी इस से बेखबर अपने काम में व्यस्त थी. जब उस की मां रमा ने उसे आवाज दी, ‘‘ऐ सुखिया, देख बंटी आया है.’’ तो उस का ध्यान बंटी की तरफ गया.

सुखदेवी को भी बंटी पसंद था, मगर उस रूप में नहीं जिस रूप में उसे बंटी देख रहा था और उसे पाने की चाह में तड़पने लगा था.

रमा देवी ने फिर आवाज लगाई. सुखदेवी ने तुरंत एक गिलास पानी और थोड़ा मीठा ला कर बंटी के सामने रख दिया. पानी का गिलास हाथ में पकड़ाते हुए वह बोली, ‘‘क्या हाल हैं जनाब के?’’

बंटी ने उस से पानी का गिलास लिया तो उस का स्पर्श पा कर वह और ज्यादा व्याकुल हो उठा. इधर सुखदेवी ने उस के गालों को खींच कर कहा, ‘‘कहां खो गए जनाब?’’

इस के बाद वह चाय बनाने चली गई. बंटी का पूरा ध्यान सुखदेवी की तरफ ही था, जो किचन में उस के लिए चाय बना रही थी.

वह इस कदर व्याकुल था कि दिल हुआ किचन में जा कर खड़ा हो जाए. जब सुखदेवी चाय ले कर आई तो बंटी की बेचैनी थोड़ी कम हुई.

सुखदेवी ने जब बंटी को चाय दी तो उस ने पुन: उसे छूना चाहा, मगर नाकाम रहा. तभी उस की ताई को कुछ काम याद आ गया और वह उठ कर बाहर चली गईं. इधर बंटी की धड़कनें रेल के इंजन की तरह दौड़ने लगीं. वह घबराने लगा. मगर एक खुशी भी थी कि उस तनहाई में वह सुखदेवी को देख सकता है.

सुखदेवी फिर अपने काम में लग गई, मगर बंटी के कहने पर वह उस के करीब ही चारपाई पर बैठ गई. बंटी का दिल चाह रहा था कि वह उसे अपनी बांहों में भर ले और प्यार करे, मगर झिझक उसे रोक रही थी. वह अपने जज्बातों को काबू कर के उस की बातें सुन रहा था. वह बारबार हंसती तो बंटी के मन में फूल खिल उठे.

थोड़ी ही देर में बंटी को न जाने क्या हुआ, वह उठा और जाने लगा. तभी सुखदेवी ने उस का हाथ पकड़ कर पूछा, ‘‘कहां जा रहे हो?’’

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मगर बंटी ने बिना कुछ कहे अपना हाथ छुड़ाया और वहां से चला गया. सुखदेवी उस से बारबार पूछती रही.

मगर वह रुका नहीं और बिना पीछे देखे चला गया.

उस दिन के बाद बंटी को कुछ अच्छा नहीं लगता था, वह बस सुखदेवी के खयालों में ही खोया रहता था, मगर चाह कर भी वह उस से मन की बात नहीं बता पाता था. उस के मन में पैदा हुई दुविधा ने उसे उलझा रखा था. तहेरी बहन से प्रेम की इच्छा ने उस के दिलोदिमाग को हिला रखा था. मगर सुखदेवी के यौवन का रंग बंटी पर चढ़ चुका था.

एक दिन बंटी घर पर अकेला था और सुखदेवी के खयालों में खोया हुआ था. वह चारपाई पर लेटा ही था, तभी सुखदेवी उस के घर पहुंची और बिना कुछ कहे सीधे अंदर चली गई. बंटी उसे देख कर आश्चर्यचकित रह गया. कुछ देर तक वह उसे देखता रहा. तभी सुखदेवी ने सन्नाटा भंग करते हुए कहा, ‘‘क्या हाल है? क्या मुझे बैठने तक को नहीं कहोगे?’’

‘‘कैसी बात कर रही हो, आओ तुम्हारा ही घर है.’’ बंटी ने कहा तो सुखदेवी वहीं पड़ी चारपाई पर बैठ गई.

सुखदेवी बैठते ही बंटी की ओर देख कर कहने लगी, ‘‘क्या बात है आजकल तुम घर नहीं आते? मुझ से कोई गलती हो गई है कि उस दिन तुम बिना कुछ कहे घर से चले आए.’’

बंटी मूक बैठा बस सुखदेवी को निहारे जा रहा था. सुखदेवी ने जब उसे चुप देखा तो उस के करीब बैठ गई और उस के हाथों को अपने हाथों में ले कर बोली, ‘‘बोलो न क्या हुआ? तुम इतने चुपचुप क्यों हो, क्या कोई बात है जो तुम्हें बुरी लग गई है. मुझे बताओ न, तुम तो हमेशा हंसते थे, मुझ से ढेर सारी बातें करते थे. मगर अब क्या हुआ तुम्हें, इतने खामोश क्यों हो?’’

मगर बंटी एक अलग ही दुविधा में फंसा हुआ था. सुखदेवी की बातें सुन कर वह अचानक उस की ओर घूमा और उसे बड़े गौर से देखने लगा. तभी सुखदेवी ने उस से पूछा कि वह क्या देख रहा है, मगर बंटी जड़वत बना उसे घूरता जा रहा था. सुखदेवी भी उस की निगाहों के एहसास को महसूस कर रही थी, शायद इसलिए वह नजरें झुकाए खामोश बैठी रही.

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बंटी उस से प्रेम का इजहार करना चाहता था, मगर इस दुविधा में था कि वह तहेरी बहन है. मगर अंत में प्रेम की जीत हुई. उस ने सुखदेवी के चेहरे को अपने हाथों में ले लिया. बंटी के इस व्यवहार से सुखदेवी थोड़ा घबरा गई. मगर अपनी धड़कनों पर काबू पा कर उस ने अपनी दोनों मुट्ठियों को बहुत जोर से भींचा और आंखें बंद कर लीं.

जानें आगे की कहानी अगले भाग में…

रसरंगी औरत का प्यार

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