बुजदिल : कलावती का कैसे फायदा उठाया

आशीर्वाद : भाग 1 – कहानी मेनका, अमित और ढोंगी गुरु की

दोपहर का खाना खा कर मेनका थोड़ी देर आराम करने के लिए कमरे में आई ही थी कि तभी दरवाजे की घंटी बज उठी.

मेनका ने झल्लाते हुए दरवाजा खोला. सामने डाकिया खड़ा था.

डाकिए ने उसे नमस्ते की और पैकेट देते हुए कहा, ‘‘मैडम, आप की रजिस्टर्ड डाक है.’’

मेनका ने पैकेट लिया और दरवाजा बंद कर कमरे में आ गई. वह पैकेट देखते ही समझ गई कि इस में एक किताब है. पैकेट पर भेजने वाले गुरुजी के हरिद्वार आश्रम का पता लिखा हुआ था.

मेनका की जरा भी इच्छा नहीं हुई कि वह उस किताब को खोल कर देखे या पढ़े. वह जानती थी कि यह किताब गुरु सदानंद ने लिखी है. सदानंद उस के पति अमित का गुरु था. वह उठतेबैठते, सोतेजागते हर समय गुरुजी की ही बातें करता था, जबकि मेनका किसी गुरुजी को नहीं मानती थी.

मेनका ने किताब का पैकेट एक तरफ रख दिया. अजीब सी कड़वाहट उस के मन में भर गई. उस ने बिस्तर पर लेट कर आंखें बंद कर लीं. साथ में उस की 3 साल की बेटी पिंकी सो रही थी.

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मेनका समझ नहीं पा रही थी कि उसे अमित जैसा अपने गुरु का अंधभक्त जीवनसाथी मिला है तो इस में किसे दोष दिया जाए?

शादी से पहले मेनका ने अपने सपनों के राजकुमार के पता नहीं कैसेकैसे सपने देखे थे. सोचा था कि शादी के बाद वह अपने पति के साथ हनीमून पर शिमला, मसूरी या नैनीताल जाएगी. पहाड़ों की खूबसूरत वादियों में उन दोनों का यादगार हनीमून होगा.

मेनका के सारे सपने शादी की पहली रात को ही टूट गए थे. उस रात वह अमित का इंतजार कर रही थी. काफी देर के बाद अमित कमरे में आया था.

अमित ने आते ही कहा था, ‘देखो मेनका, आज की रात का हर कोई बहुत बेचैनी से इंतजार करता है पर मैं उन में से नहीं हूं. मेरा खुद पर बहुत कंट्रोल है.’

मेनका चुपचाप सुन रही थी.

‘सदानंद मेरे गुरुजी हैं. हरिद्वार में उन का बहुत बड़ा आश्रम है. मैं कई सालों से उन का भक्त हूं. उन के उपदेश मैं ने कई बार सुने हैं. उन की इच्छा के खिलाफ मैं कुछ भी करने की सोच ही नहीं सकता.

‘मैं ने तो गुरुजी से कह दिया था कि मैं शादी नहीं करना चाहता पर गुरुजी ने कहा था कि शादी जरूर करो तो मैं ने कर ली.’

मेनका चुपचाप अमित की ओर देख रही थी.

अमित ने आगे कहा था, ‘देखो मेनका, आज की रात हमारी अनोखी रात होगी. हम नए ढंग से शादीशुदा जिंदगी की पहली रात मनाएंगे. मेरे पास गुरुजी की कई किताबें हैं. मैं तुम्हें एक किताब से गुरुजी के उपदेश सुनाऊंगा जिन्हें सुन कर तुम भी मान जाओगी कि हमारे गुरुजी कितने ज्ञानी और महान हैं.

‘और हां मेनका, मैं तुम्हें एक बात और भी बताना चाहता हूं…’

‘क्या?’ मेनका ने पूछा था.

‘मेरा तुम से एक वादा है कि तुम मां जरूर बनोगी यानी तुम्हें तुम्हारा हक जरूर मिलेगा, क्योंकि गुरुजी ने कहा है कि गृहस्थ जीवन में ब्रह्मचर्य व्रत को तोड़ना पड़ता है.’

मेनका जान गई थी कि अमित गुरुजी के जाल में बुरी तरह फंसा हुआ है. उस के सारे सपने बिखरते चले गए थे.

अमित एक सरकारी दफ्तर में बाबू के पद पर काम करता था. जब भी उसे समय मिलता तो वह गुरुजी की किताबें ही पढ़ता रहता था.

एक दिन किताब पढ़ते हुए अमित ने कहा था, ‘मेनका, गुरुजी के प्रवचन पढ़ कर तो ऐसा मन करता है कि मैं भी संन्यासी हो जाऊं.’

यह सुन कर मेनका को ऐसा लगा था मानो कुछ तेज सा पिघल कर उस के दिल को कचोट रहा है. वह शांत आवाज में बोल उठी थी, ‘मेरे लिए तो तुम अब भी संन्यासी ही हो.’

‘ओह मेनका, मैं मजाक नहीं कर रहा हूं. मैं सच कह रहा हूं. अगर तुम गुरुजी की यह किताब पढ़ लो, तुम भी संन्यासिनी हो जाने के लिए सोचने लगोगी,’ अमित ने वह किताब मेनका की ओर बढ़ाते हुए कहा था.

‘अगर इन गुरुओं की किताबें पढ़पढ़ कर सभी संन्यासी हो गए तो काम कौन करेगा? मैं गृहस्थ जीवन में संन्यास की बात क्यों करूं? अगर तुम्हारी तरह मैं भी संन्यासी बनने के बारे में सोचने लगूंगी तो हमारी बेटी पिंकी का क्या होगा? बिना मांबाप के औलाद किस तरह पलेगी? बड़ी हो कर उस की क्या हालत होगी? उस के मन में हमारे लिए प्यार नहीं नफरत होगी. इस नफरत के जिम्मेदार हम दोनों होंगे.

‘जिस बच्चे को हम पालपोस नहीं सकते, उसे पैदा करने का हक भी हमें नहीं है और जिसे हम ने पैदा कर दिया है उस के प्रति हमारा भी तो कुछ फर्ज है,’ मेनका कहा था.

अमित ने कोई जवाब नहीं दिया था.

एक दिन दफ्तर से लौट कर अमित ने कहा था, ‘मेनका, मेरे दफ्तर में 3 दिन की छुट्टी है. मैं सोच रहा हूं कि हम दोनों गुरुजी के आश्रम में हरिद्वार चलेंगे.’

‘मैं क्या करूंगी वहां जा कर?’

‘जब से हमारी शादी हुई है, तुम एक बार भी वहां नहीं गई हो. अब तो तुम मां भी बन चुकी हो. हमें गुरुजी का आशीर्वाद लेना चाहिए… वे हमारे भगवान हैं.’

‘मेरे नहीं सिर्फ तुम्हारे. जहां तक आशीर्वाद लेने की बात है, वह भी तुम ही ले लो. मुझे नहीं चाहिए किसी गुरु का आशीर्वाद.’

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‘मेनका, मैं ने फोन कर के पता कर लिया है. गुरुजी अगले एक हफ्ते तक आश्रम में ही हैं. तुम मना मत करो.’

‘देखो अमित, मैं नहीं जाऊंगी,’ मेनका ने कड़े शब्दों में कहा था.

अमित को गुरुजी से मिलने के लिए अकेले ही हरिद्वार जाना पड़ा था.

3 दिन बाद अमित गुरुजी से मिल कर घर लौटा तो बहुत खुश था.

‘दर्शन हो गए गुरुजी के?’ मेनका ने पूछा था.

‘हां, मैं ने तो गुरुजी से साफसाफ कह दिया था कि आप की शरण में यहां आश्रम में आना चाहता हूं… हमेशा के लिए. गुरुजी ने कहा कि अभी नहीं, अभी वह समय बहुत दूर है. कभी मेनका से बात कर उसे भी समझाएंगे.’

‘वे भला मुझे क्या समझाएंगे? क्या मैं कोई गलत काम कर रही हूं या कोई छोटी बच्ची हूं? तुम ही समझते रहो और आशीर्वाद लेते रहो,’ मेनका ने कहा था.

तभी मेनका को पिंकी के रोने की आवाज सुनाई पड़ी. पिंकी नींद से जाग चुकी थी. मेनका उसे थपकियां दे कर दोबारा सुलाने की कोशिश करने लगी.

शाम को अमित दफ्तर से लौट कर आया तो मेनका ने कहा, ‘‘आज आप के गुरुजी की किताब आई है डाक से.’’

इतना सुनते ही अमित ने खुश हो कर कहा, ‘‘कहां है… लाओ.’’

मेनका ने अमित को किताब का वह पैकेट दे दिया.

अमित ने पैकेट खोल कर किताब देखी. कवर पर गुरुजी का चित्र छपा था. दाढ़ीमूंछें सफाचट. घुटा हुआ सिर. चेहरे पर तेज व आंखों में खिंचाव था.

अमित ने मेनका को गुरुजी का चित्र दिखाते हुए कहा, ‘‘देखो मेनका, गुरुजी कितने आकर्षक और तेजवान लगते हैं. ऐसा मन करता है कि मैं हरदम इन को देखता ही रहूं.’

‘‘तो देखो, मना किस ने किया है.’’

‘‘मेनका, तुम जरा एक कप चाय बना देना. मैं अपने गुरुजी की यह किताब पढ़ रहा हूं,’’ अमित बोला.

मेनका चाय बना कर ले आई और मेज पर रख कर चली गई.

अमित गुरुजी की किताब पढ़ने में इतना खो गया कि उसे समय का पता ही नहीं चला.

रात के साढ़े 8 बज गए तो मेनका ने कहा, ‘‘अब गुरुजी को ही पढ़ते रहोगे क्या? खाना खा लीजिए, तैयार है.’’

‘‘अरे हां मेनका, मैं तो भूल ही गया था कि मुझे खाना भी खाना है. गुरुजी की किताब सामने हो तो मैं सबकुछ भूल जाता हूं.’’

‘‘किसी दिन मुझे ही न भुला देना.’’

‘‘अरे वाह, तुम्हें क्यों भुला दूंगा? तुम क्या कोई भूलने वाली चीज हो…’’ अमित ने कहा, ‘‘ठीक है, तुम खाना लगाओ… मैं आता हूं.’’

मेनका रसोई में चली गई.

रात के 11 बजे थे. मेनका आंखें बंद किए बिस्तर पर लेटी थी. साथ में पिंकी सो रही थी. अमित आराम से बैठा हुआ गुरुजी की किताब पढ़ने में मगन था. तभी वह पुरानी यादों में खो गया.

कुछ साल पहले अमित अपने दोस्त से मिलने चंडीगढ़ गया था. दोस्त के घर पर ही गुरुजी आए हुए थे. तब पहली बार वह गुरुजी के दर्शन और उन के प्रवचन सुन कर बहुत प्रभावित हुआ था.

कुछ महीने बाद अमित गुरुजी के आश्रम में हरिद्वार जा पहुंचा था. आश्रम में गुरुजी के कई शिष्य थे जो आनेजाने वालों की खूब देखभाल कर रहे थे.

अमित उस कमरे में पहुंचा जहां एक तख्त पर केसरी रंग की महंगी चादर बिछी थी. उस पर गुरुजी केसरी रंग का कुरता व लुंगी पहने हुए बैठे थे. भरा हुआ शरीर. गोरा रंग. चंदन की भीनीभीनी खुशबू से कमरा महक रहा था. 8-10 मर्दऔरत गुरुजी के विचार सुन रहे थे. अमित ने गुरुजी के चरणों में माथा टेका था.

कुछ देर बाद अमित कमरे में अकेला ही रह गया था.

‘कैसे हो बच्चा?’ गुरुजी ने उस से पूछा था.

‘कृपा है आप की. आप के पास आ कर मन को बहुत शांति मिली. गुरुजी, मन करता है कि मैं यहीं आप की सेवा में रहने लगूं.’

‘नहीं बच्चा, अभी तुम पढ़ाई कर रहे हो. पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़े हो जाओ. यह आश्रम तुम्हारा ही है, कभी भी आशीर्वाद लेने आ सकते हो.’

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‘जी, गुरुजी.’

‘एक बात का ध्यान रखना बच्चा कि औरत से हमेशा बच कर रहना. उस से बचे रहोगे तो खूब तरक्की कर सकोगे, नहीं तो अपनी जिंदगी बरबाद कर लोगे. ब्रह्मचर्य से बढ़ कर कोई सुख संसार में नहीं है,’ गुरुजी ने उसे समझाया था.

उस के बाद जब कभी अमित परेशान होता तो गुरुजी के आश्रम में जा पहुंचता.

विचारों में तैरतेडूबते अमित को नींद आ गई और वह खर्राटे भरने लगा.

2 महीने बाद एक दिन दफ्तर से लौट कर अमित ने कहा, ‘‘मेनका, अगले हफ्ते गुरुजी के आश्रम में चलना है.’

‘‘तो चले जाना, किस ने मना किया है,’’ मेनका बोली.

‘‘इस बार मैं अकेला नहीं जाऊंगा. तुम्हें भी साथ चलना है.’’

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

आशीर्वाद : भाग 3 – कहानी मेनका, अमित और ढोंगी गुरु की

तभी एक शिष्य अमित के पास आया और बोला, ‘‘आप को गुरुजी ने याद किया है.’’

अमित एकदम उठा और शिष्य के साथ चल दिया.

गुरुजी के कमरे में पहुंच कर अमित हाथ जोड़ कर बैठ गया.

सामने बैठे गुरुजी ने पूछा, ‘‘क्या हुआ अमित? मेनका नहीं आई?’’

‘‘गुरुजी, मैं ने उसे बहुत कहा, पर वह नहीं आई. कहने लगी कि मैं माफी नहीं मांगूंगी. इस पर मैं ने उसे थप्पड़ भी मार दिया और वह गुस्से में बेटी के साथ कहीं चली गई.’’

‘‘चली गई? कहां चली गई? इस तरह अपनी पत्नी से हमें अपमानित करा कर तुम ने उसे जानबूझ कर यहां से भेजा है. यह तुम ने अच्छा नहीं किया,’’ गुरुजी ने अमित की ओर गुस्से से देखा.

अमित घबरा गया. वह गुरुजी के चरणों में सिर रख कर बोला, ‘‘मैं ने उसे नहीं भेजा गुरुजी. मैं सच कह रहा हूं. मेरा विश्वास कीजिए.’’

‘‘विश्वास… कैसा विश्वास? मुझे तुम जैसे अविश्वासी भक्त नहीं चाहिए. जिन की पत्नी अपने पति की बात न मानती हो. हम ने मेनका को इसलिए बुलाया था कि उसे भी आशीर्वाद मिल जाता.’’

‘‘गुरुजी, आप कहें तो मैं उसे छोड़ दूं. उस से तलाक ले लूं.’’

‘‘हम कुछ नहीं कहेंगे. जो तुम्हारी इच्छा हो करो…’’ गुरुजी ने नाराजगी

भरी आवाज में कहा, ‘‘अब तुम जा सकते हो.’’

‘‘गुरुजी, मेनका की ओर से मैं माफी मांगता हूं.’’

‘‘ऐसा नहीं होता कि किसी के अच्छेबुरे कर्मों का फल किसी दूसरे को दिया जाए. तुम अपने कमरे में जाओ,’’ गुरुजी ने अमित की ओर गुस्से से देखते हुए कहा.

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अमित चुपचाप थके कदमों से अपने कमरे में पहुंचा.

कुछ देर बाद 2 शिष्य अमित के पास आए और उस के बैग में से कपड़े निकाल कर बाहर डालने लगे मानो कुछ ढूंढ़ रहे हों.

अमित समझ नहीं पाया कि यह क्या हो रहा है? उस ने पूछा, ‘‘भैयाजी, यह क्या कर रहे हो? बैग से कपड़े क्यों निकाल रहे हो?’’

‘‘अभी पता चल जाएगा,’’ कहते हुए एक शिष्य ने बैग में से एक लाल रंग की बहुत सुंदर सी डब्बी निकाल कर खोली. उस में हीरे की एक अंगूठी थी.

दूसरा शिष्य बोला, ‘‘आज ही यह अंगूठी गुरुजी को दिल्लीवासी एक भक्त ने भेंट में दी थी. उस भक्त की आभूषण की दुकान है. यह डब्बी कुछ देर पहले से गायब थी. हमें तुम पर शक था, पर अब तो पता चल गया कि यह चोरी तुम ने ही की है.’’

‘‘नहीं, मैं ने अंगूठी नहीं चुराई. मैं चोर नहीं हूं. मुझे अंगूठी के बारे में कुछ नहीं मालूम. मैं बेकुसूर हूं,’’ अमित घबरा कर बोला.

‘‘अंगूठी तेरे पास से मिली है और तू कहता है कि तू ने चोरी नहीं की,’’ एक शिष्य ने कहा.

तभी 2 शिष्य और आ गए. उन चारों ने अमित के साथ मारपीट शुरू कर दी.

अमित के साथ हो रही मारपिटाई की आवाज सुन आश्रम में कुछ भक्त कमरों से बाहर निकल कर देखने गए. जब उन्हें पता चला कि गुरुजी की अंगूठी चुराने पर उस की पिटाई की जा रही है तो किसी ने भी उसे छुड़ाने की कोशिश नहीं की. सभी नफरत और गुस्से से अमित की ओर देख रहे थे.

सभी का कहना था कि ऐसे चोर की तो खूब पिटाई कर के पुलिस में देना चाहिए.

चारों शिष्यों ने अमित की इतनी पिटाई कर दी कि वह बेहोश हो गया. आश्रम से बाहर उसे सड़क के किनारे फेंक दिया.

गाडि़यां आतीजाती रहीं. लोग देखते रहे कि सड़क के किनारे कोई शख्स पड़ा हुआ है.

पुलिस की गश्ती गाड़ी उधर से जा रही थी. सड़क के किनारे किसी को पड़ा हुआ देख कर गाड़ी रुकी. दारोगा और

2 सिपाही उतरे. उन्होंने अमित को देखा. उस के चेहरे पर मारपिटाई के निशान थे. मुंह व सिर से खून भी निकला था.

पुलिस ने उसे उठा कर जिला अस्पताल में भरती करा दिया. डाक्टर से कह दिया कि जब यह होश में आ जाए तो सूचना दे देना.

सुबह तकरीबन 7 बजे अमित को होश आया तो उस का पूरा शरीर बुरी तरह से दुख रहा था.

डाक्टर ने अमित के पास आ कर पूछा, ‘‘आप का नाम?’’

‘‘अमित.’’

‘‘क्या रात को किसी से झगड़ा हो गया था?’’ डाक्टर ने सवाल किया.

अमित ने सबकुछ बता दिया कि वह गुरुजी का एक भक्त है. पत्नी के साथ यहां आश्रम में आया था. रात पत्नी से कहासुनी होने पर वह चली गई. गुरुजी के शिष्यों ने उस पर चोरी का आरोप लगा कर मारपिटाई कर सड़क पर फेंक दिया.

‘‘तुम्हारा समय अच्छा है अमित कि उन शिष्यों ने तुम्हारी जान नहीं ली. वे तुम्हें बेहोशी की हालत में गंगा में भी फेंक सकते थे. अब उन्होंने तुम्हारा बैग, मोबाइल वगैरह सामान जरूर फेंक दिया होगा गंगा में.’’

अमित चुप रहा.

‘‘अब तुम्हारी पत्नी कहां होगी?’’ डाक्टर ने पूछा.

‘‘पता नहीं. वह बेटी को ले कर चली गई थी कि रात को किसी होटल में रुकेगी. सुबह बस या टे्रन से वापस जाने की बात कह रही थी.’’

‘‘उस के पास मोबाइल फोन होगा. जरा उस का नंबर बताओ.’’

अमित ने मेनका का मोबाइल नंबर बताया. डाक्टर ने नंबर मिलाया तो उधर घंटी बजने लगी.

‘हैलो,’ उधर से आवाज सुनाई दी.

‘‘मैडम मेनका बोल रही हैं?’’

‘हां, बोल रही हूं. आप कौन?’

‘‘मैं यहां सिविल अस्पताल से डाक्टर विपिन बोल रहा हूं. आप के पति अमित यहां अस्पताल में भरती हैं. अब वे काफी ठीक हैं. लीजिए उन से बात कीजिए,’’ कहते हुए डाक्टर ने मोबाइल अमित को दे दिया.

‘‘हैलो,’’ अमित की कराहती सी आवाज निकली.

‘क्या हुआ? तुम ठीक तो हो न? अस्पताल में क्यों? तुम्हारी तो आवाज भी नहीं निकल रही है.’

‘‘तुम यहां आ जाओ मेनका. मैं तुम्हारे बगैर जी नहीं सकूंगा,’’ कहतेकहते अमित को रुलाई आ गई.

‘मैं आ रही हूं. बस अभी पहुंच रही हूं,’ उधर से मेनका की घबराई सी आवाज सुनाई पड़ी.

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डाक्टर ने पुलिस को सूचना दे दी कि अमित को होश आ गया है.

कुछ देर बाद चिंतित व डरी सी मेनका पिंकी के साथ अस्पताल में अमित के पास पहुंची. अमित के चेहरे पर चोट के निशान थे. सिर पर पट्टी बंधी हुई थी.

अमित को देखते ही वह कांप उठी. उस ने पूछा, ‘‘यह कैसे हुआ?’’

अमित ने सबकुछ बता दिया.

तभी दारोगा व एक सिपाही उन के पास आए. दारोगा ने पूछा, ‘‘अब कैसे हो आप?’’

‘‘ठीक हूं…’’ अमित ने कहा, ‘‘यह मेरी पत्नी और बेटी हैं.’’

‘‘अच्छा, अब आप यह बताओ कि हमें क्या करना है? आप चाहें तो रिपोर्ट लिखा सकते हो.’’

‘‘नहीं सर, हमें कोई रिपोर्ट नहीं लिखवानी है. हमें यह भी पता चल गया है कि गुरुजी की पहुंच ऊपर तक है. कई मंत्री व बड़ेबड़े नेता भी यहां आश्रम में आते रहते हैं. गुरुजी का कुछ नहीं बिगड़ेगा,’’ अमित ने कहा.

‘‘जिस दिन भी इस शैतान गुरु के पाप का घड़ा भर जाएगा, उस दिन यह भी नहीं बचेगा,’’ मेनका बोली.

कुछ देर तक बातचीत कर के दारोगा सिपाही के साथ वापस चला गया.

पछतावे के साथ अमित बोला, ‘‘कल सुबह अस्पताल से मुझे छुट्टी मिल जाएगी. हम वापस घर चले जाएंगे.

‘‘मेनका, मैं ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस गुरु को मैं भगवान समझता रहा, वह एक शैतान है. इस गुरु की अंधभक्ति में मैं ने जिंदगी के इतने साल बरबाद कर दिए.

‘‘मैं ने हमेशा तुम्हारी कही गई बातों की अनदेखी की. तुम तो इन ढोंगी बाबाओं से नफरत करती थीं, लेकिन मैं उस की वजह नहीं समझ पाया.

‘‘तुम ने इशारोंइशारों में कई बार मुझे समझाने की कोशिश भी की थी, पर मेरी अक्ल पर तो जैसे पत्थर पड़ गए थे. दुख की बात तो यह है कि मैं ही तुम्हें यहां जबरदस्ती लाया था.’’

‘‘पुरानी बातों को सोच कर अपना मन मत दुखाओ. अगर मैं इस शैतान का कहना मान लेती तो कुछ भी न होता. तुम पर कोई आरोप न लगता. मारपिटाई भी न होती और न ही मुझे पिंकी के साथ होटल में जाना पड़ता.

‘‘मैं उन औरतों जैसी नहीं हूं जो अपने पति से विश्वासघात कर ऐसे ढोंगी गुरु की हर बात मान लेती हैं,’’ मेनका बोली.

‘‘मेनका, तुम तो बहुत पहले से ही मुझे समझा रही थीं, पर मैं ही गहरी नींद में आंखें बंद किए हुए था. काश, मैं भी तुम्हारी तरह गुरुजी के जाल में न फंसता.’’

‘‘कोई बात नहीं, जब जागो तभी सवेरा,’’ मेनका ने अमित की ओर देखते हुए कहा.

अमित एक नई सीख ले कर अस्पताल से सीधा अपने घर की ओर चल दिया. उस ने मन में ठान लिया था कि घर जाते ही वह उस ढोंगी गुरु के दिए गए सामान को फिंकवा देगा.

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आशीर्वाद : कहानी मेनका, अमित और ढोंगी गुरु की

आशीर्वाद : भाग 2 – कहानी मेनका, अमित और ढोंगी गुरु की

पिछले अंक में आप ने पढ़ा था:

शादी के बाद मेनका को पता चला कि उस का पति अमित हरिद्वार के किसी गुरुजी का परम भक्त है. सुहागरात पर जब अमित ने मेनका को गुरुजी की लिखी एक किताब के उपदेश सुनाए तो वह ठगी सी रह गई. बाद में उन की एक बेटी भी हो गई पर अमित का अपने गुरुजी के प्रति मोह न छूटा. इस से मेनका की गुरुजी के प्रति नफरत बढ़ती जा रही थी. एक दिन अमित ने मेनका को हरिद्वार ले जाने की जिद की.

अब पढ़िए आगे…

‘‘मैं नहीं जाऊंगी. तुम पता नहीं क्यों बारबार मुझे अपने गुरुजी के पास ले जाना चाहते हो जबकि मैं किसी गुरुवुरु के चक्कर में नहीं पड़ना चाहती. अखबारों में और टैलीविजन पर आएदिन अनेक गुरुओं की करतूतों का भंडाफोड़ होता रहता है,’’ मेनका बोली.

‘‘सभी गुरु एकजैसे नहीं होते. आज मैं ने जब गुरुजी से फोन पर कहा कि आप के दर्शन करना चाहता हूं तो उन्होंने कहा कि मेनका को भी साथ लाना. हम उसे भी आशीर्वाद देना चाहते हैं.’’

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‘‘मुझे किसी आशीर्वाद की जरूरत नहीं है. तुम ही चले जाना.’’

‘‘मैं ने गुरुजी को वचन दिया है कि तुम्हें जरूर ले कर आऊंगा. तुम्हें मेरी कसम मेनका, तुम्हें मेरे साथ चलना होगा. अगर इस बार भी तुम मेरे साथ नहीं गईं तो मैं वहीं गंगा में डूब जाऊंगा,’’ अमित ने अपना फैसला सुनाया.

यह सुन कर मेनका कांप कर रह गई. वह जानती थी कि अमित गुरुजी के चक्रव्यूह में बुरी तरह फंस चुका है. उस पर गुरुजी का जादू सिर चढ़ कर बोल रहा है. वह भावुक भी है. अगर वह साथ न गई तो हो सकता है कि गुरुजी अमित को इतना बेइज्जत कर दें कि उस के सामने डूब कर मरने के अलावा कोई दूसरा रास्ता न बचे.

मेनका को मजबूरी में कहना पड़ा, ‘‘ऐसा मत कहो… मैं तुम्हारे साथ हरिद्वार चलूंगी.’’

अमित के चेहरे पर मुसकान फैल गई, ‘‘यह हुई न बात. मेनका, तुम्हें गुरुजी से मिल कर बहुत अच्छा लगेगा. वहां मुझे, तुम्हें और पिंकी को आशीर्वाद मिलेगा.’’

मेनका ने कोई जवाब नहीं दिया.

एक हफ्ते बाद अमित मेनका और पिंकी के साथ हरिद्वार जा पहुंचा. रेलवे स्टेशन से बाहर निकल कर उस ने एक आटोरिकशा किया और गुरुजी के आश्रम जा पहुंचा. शिष्यों ने उन के लिए एक कमरा खोल दिया.

सामान रख कर अमित ने मेनका से कहा, ‘‘कुछ देर आराम कर लेते हैं. शाम को गुरुजी से मिलेंगे और आरती देखेंगे. 2-3 दिन हरिद्वारऋषिकेश घूमेंगे.’’

शाम को तकरीबन 6 बजे अमित मेनका व पिंकी के साथ गुरुजी के कमरे के बाहर इंतजार में बैठ गया. कुछ देर बाद शिष्य ने उन को कमरे में भेजा.

कमरे में पहुंचते ही अमित ने हाथ जोड़ कर गुरुजी के चरणों में सिर रख दिया. मेनका ने भी चरण छू कर प्रणाम किया.

‘‘सदा सुखी रहो, सौभाग्यवती रहो,’’ गुरुजी ने आशीर्वाद दिया, ‘‘तुम्हारे घर में अपार सुख और वैभव आ रहा?है मेनका. तुम्हें जल्दी पुत्र रत्न भी प्राप्त होगा.

‘‘यह तुम्हारा पति अमित बहुत भोला और सीधासादा सच्चा इनसान है.’’

मेनका कुछ नहीं बोली.

गुरुजी ने मेनका की ओर देखते हुए कहा, ‘‘शाम की आरती में जरूर शामिल होना.’’

‘‘जी गुरुजी,’’ अमित ने तुरंत जवाब दिया.

शाम को साढ़े 7 बजे आश्रम के मंदिर में खूब जोरशोर से आरती हुई. गुरुजी और शिष्य आरती में लीन थे.

प्रसाद ले कर कमरे में लौट कर अमित ने कहा, ‘‘मुझे तो यहां आ कर बहुत अच्छा लगता है मेनका. तुम्हें कैसा लगा?’’

‘‘ठीक है.’’

कुछ देर बाद एक शिष्य ने आ कर कहा, ‘‘गुरुजी मेनका को बुला रहे हैं.’’

‘‘अभी आ रही है,’’ अमित बोला.

‘‘जाओ मेनका. लगता है, गुरुजी तुम्हें कुछ खास आशीर्वाद देना चाहते हैं.’’

‘‘मैं अकेली नहीं जाऊंगी,’’ मेनका ने कहा.

‘‘अरे मेनका, हम तो भाग्यशाली हैं. गुरुजी हमें बुला कर दर्शन और आशीर्वाद दे रहे हैं. बहुत से लोग तो इन से मिलने को तरसते रहते हैं. जाओ, देर न करो. पिंकी यहीं है मेरे पास,’’ अमित ने कहा.

मेनका को अकेले ही जाना पड़ा. वह धड़कते दिल से नमस्कार कर गुरुजी के सामने बैठ गई.

तख्त पर बैठे हुए गुरुजी ने उस की ओर देख कर कहा, ‘‘मेनका, तुम्हारा भविष्य बहुत ही उज्ज्वल है. जरा अपना हाथ दिखाओ. हम देखना चाहते हैं कि तुम्हारा भाग्य क्या कह रहा है?’’

मेनका ने न चाहते हुए भी गुरुजी की तरफ अपना हाथ बढ़ा दिया. उस की कोमल हथेली पकड़ कर गुरुजी गंभीर मुद्रा में खो गए.

मेनका के दिल की धड़कनें बढ़ने लगीं. उसे यह सब जरा भी अच्छा नहीं लग रहा था.

‘‘देखो मेनका, जब तक अमित तुम्हारे पास है तुम्हें बहुत सुख मिलेगा, पर…’’ कहतेकहते गुरुजी रुक गए.

‘‘लेकिन क्या गुरुजी…?’’ मेनका चौंकी.

‘‘अमित ज्यादा दिनों तक तुम्हारी जिंदगी में नहीं रहेगा. वह तुम्हारी जिंदगी से काफी दूर निकल जाएगा. बिना पति के पत्नी की हालत कटी पतंग की तरह होती है. यह तुम भी अच्छी तरह जानती हो. मुझे अमित और तुम्हारे बीच के संबंध के बारे में पूरी जानकारी है. जो तुम चाहती हो, वह नहीं चाहता.’’

‘‘गुरुजी, इस में गलती पर कौन है?’’ मेनका ने पूछा.

‘‘गलती पर कोई नहीं है. अपनेअपने सोचने का ढंग है. मैं तुम्हारे मन की हालत समझ रहा हूं. तुम एक प्यासी नदी की तरह हो मेनका. तुम सुंदर ही नहीं, बहुत सुंदर हो, पर तुम्हारे रूप का असर अमित पर जरा भी नहीं पड़ रहा है. अमित इस समय मेरे प्रभाव में है. अगर मैं चाहूं तो वह कभी भी सबकुछ छोड़ कर मेरी शरण में आ सकता है,’’ गुरुजी ने मेनका की ओर देखते हुए कहा.

‘‘आप कहना क्या चाहते हैं?’’

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‘‘मेनका, तुम जितनी सुंदर हो, अमित उतना ही भोला है. वह तुम्हारी इच्छाओं को आज तक समझ नहीं पाया. तुम्हारा यह सुंदर रूप देख कर मेरी प्यास बढ़ गई है. मैं भी एक प्यासा सागर हूं,’’ कहते हुए गुरुजी ने मेनका की हथेली चूमनी चाही.

मेनका को लगा, जैसे उस के शरीर में कोई बिच्छू डंक मार देना चाहता है. उस ने एक झटके से अपना हाथ छुड़ा कर कहा, ‘‘यह क्या कर रहे हैं आप? यहां बुला कर आप ऐसी हरकतें करते हैं क्या?’’

‘‘मेनका, तुम्हें मेरी बात माननी होगी, नहीं तो तुम्हारा अमित तुम्हें छोड़ कर मेरी शरण में आ जाएगा. उस के बिना क्या तुम अकेली रह लोगी?’’

‘‘मैं अकेली रह लूंगी या नहीं, यह तो बाद की बात है, लेकिन मैं आप

की असलियत जान चुकी हूं. इस देश में आप की तरह अनेक ढोंगी व पाखंडी गुरु हैं जिन के बारे में अखबारों में छपता रहता है.

‘‘अमित भोला है, पर मैं नहीं. मैं तो यहां आना ही नहीं चाहती थी. मुझे तो अमित की कसम के सामने मजबूर होना पड़ा. अब मैं आप के इस आश्रम में नहीं रहूंगी,’’ मेनका ने गुस्से में कहा.

यह सुनते ही गुरुजी खिलखिला कर हंस पड़े. मेनका हैरान सी गुरुजी की ओर देखती रह गई.

‘‘सचमुच तुम बहुत समझदार हो मेनका, तुम भोली नहीं हो. मैं तो तुम्हारा इम्तिहान ले रहा था. मैं यह देखना चाह रहा था कि तुम कितने पानी में हो. अब तुम जा सकती हो,’’ गुरुजी ने मेनका की ओर देखते हुए कहा.

मेनका बाहर निकली और तेजी से कमरे में लौट आई. आते ही मेनका ने कहा, ‘‘अब हम यहां नहीं रहेंगे.’’

‘‘क्यों, क्या बात हुई?’’ अमित ने हैरान हो कर पूछा.

‘‘यह तुम्हारे गुरुजी भी उन ढोंगी बाबाओं की तरह हैं जो पकड़े जा रहे हैं. असलियत खुल जाने पर जिन की जगह आश्रम में नहीं, जेल में होती है. कई गुरु जेल में हैं. देखना, किसी न किसी दिन तुम्हारा यह ढोंगी गुरु भी जरूर पकड़ा जाएगा.’’

‘‘क्या हुआ? कुछ बताओ तो सही? तुम तो गुरुजी के पास आशीर्वाद लेने गई थीं, फिर क्या हो गया जो तुम गुरुजी के लिए ऐसे शब्द बोल रही हो?’’

‘‘मैं तो पहले ही यहां आने के लिए मना कर रही थी. पर तुम्हारी कसम ने मुझे मजबूर कर दिया,’’ कहते हुए मेनका ने पूरी घटना सुना दी.

अमित कुछ कहने ही वाला था, तभी एक शिष्य ने कमरे में आ कर कहा, ‘‘अमितजी, आप को गुरुजी बुला रहे हैं.’’

अमित शिष्य के साथ चल दिया.

मेनका धड़कते दिल से कमरे में बैठी रही. उस की आंखों के सामने बारबार गुरुजी का चेहरा और वह सीन याद आ रहा था, जब गुरुजी ने उस का हाथ पकड़ कर चूमना चाहा था. उस के मन में गुरुजी के प्रति नफरत भर उठी.

कुछ देर बाद अमित लौटा और बोल उठा, ‘‘मेनका, यह तुम ने अच्छा नहीं किया जो गुरुजी की बेइज्जती कर दी. गुरुजी ने तो तुम्हें आशीर्वाद देने के लिए बुलाया था लेकिन तुम ने गुरुजी की शान में ऐसी बातें कह दीं, जो नहीं कहनी चाहिए थीं. अब तुम्हें मेरे साथ चल कर गुरुजी से माफी मांगनी पड़ेगी.’’

यह सुन कर मेनका समझ गई कि गुरुजी ने अमित से झूठ बोल दिया है. वह बोली, ‘‘अमित, यहां आ कर तो मैं बेइज्जत हुई हूं. गुरुजी ने जो हरकत मेरे साथ की है, उस के बाद तो मैं ऐसे गुरु की शक्ल भी देखना नहीं चाहूंगी. माफी मांगने का तो सवाल ही नहीं उठता है.’’

अमित का भी पारा ऊपर चढ़ने लगा. वह मेनका को घूरता हुआ बोला, ‘‘मेनका, मुझे गुस्सा न दिलाओ. मेरे गुरुजी झूठ नहीं बोलते. मेरे साथ चल कर तुम्हें माफी मांगनी पड़ेगी.’’

‘‘मुझे नहीं जाना तुम्हारे ढोंगी गुरु के पास.’’

अमित अपने गुस्से पर काबू न रख सका. उस ने एक जोरदार थप्पड़ मेनका के मुंह पर दे मारा और कहा, ‘‘मैं तुम्हारी शक्ल भी देखना नहीं चाहता…’’

‘‘मैं यहां से चली जाऊंगी अपनी बेटी को ले कर. आज की रात किसी होटल में रुक जाऊंगी. कल सुबह होते ही बस या टे्रन से वापस मेरठ चली जाऊंगी. तुम चाहे जितने दिन बाद आना.

‘‘देख लेना किसी न किसी दिन इस ढोंगी गुरु की पोल भी खुलेगी और यह भी जेल में पहुंचेगा.’’

मेनका ने एक बैग में अपने व पिंकी के कपड़े भरे और पिंकी को गोद में उठा कर आश्रम से बाहर निकल गई.

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मेनका एक होटल में पहुंची और एक कमरा ले कर बिस्तर पर कटे पेड़ की तरह गिर पड़ी.

आश्रम के कमरे में बैठे अमित को बारबार मेनका पर गुस्सा आ रहा था. मेनका ने गुरुजी की बेइज्जती कर दी. वह माफी मांगने भी नहीं गई. वह बहुत हठी है. न जाने खुद को क्या समझती है वह. चली जाएगी जहां जाना होगा, वह तो अब उस से कभी बात नहीं करेगा. उसे ऐसी पत्नी नहीं चाहिए जो गुरुजी और उस की बात ही न सुने. इस के लिए उसे तलाक भी लेना पड़े तो वह पीछे नहीं हटेगा.

(क्रमश:)

क्या मेनका और अमित की शादी वाकई तलाक के कगार तक जा पहुंची थी? क्या मेनका ने गुरुजी से माफी मांगी? पढ़िए अगले अंक में…

करामात : भाग 1 – आखिर सुखदेव क्या चाहता था राजेश्वरी से?

आज सनीचरी की तेरहवीं थी, मगर सुखदेव को ईंटभट्ठे पर मजदूरी के लिए जाना ही पड़ा. आज अगर वह कुछ रुपए नहीं लाया, तो सनीचरी की तेरहवीं नहीं हो पाएगी. अगर गुनेसर बाबा का गुस्सा बढ़ गया, तो सुखदेव भी मारा जाएगा.

बाबा ने पहले ही चेता दिया था कि सनीचरी की तेरहवीं में पूजा कराना जरूरी है और अच्छी तरह भोग लगाना भी, नहीं तो सनीचरी की आत्मा प्रेत योनि में भटकती हुई तेरा जीना हराम कर देगी.

सुखदेव छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में नारायणपुर गांव में रहता था. ईंटभट्ठे की मजदूरी में जैसेतैसे 3 पेट पल रहे थे. घर में मवेशी पाल कर उस की बीवी सनीचरी भी कुछ इंतजाम कर ही लेती थी. छोटी सी झोंपड़ी और रातदिन के टुकड़ों में बंटी थी उन की पारिवारिक जिंदगी. बेटे को ले कर सनीचरी बड़े ख्वाब बुनती थी.

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बेटा कार्तिक भी होशियार था. सालभर मीलों साइकिल दौड़ादौड़ा कर वह स्कूल जाता, अव्वल आता और इस साल गांव के स्कूल में उस की आखिरी पढ़ाई थी. अगले साल वह कसबे के हाईस्कूल में दाखिला लेगा. बहुत उमंग थी मांबेटे के दिल में. पर कुछ समय से सनीचरी की तबीयत बिगड़ती ही जा रही थी.

सनीचरी को रात में अचानक जब खून की उलटी हुई, तो कार्तिक पूरी रात सो न सका. सुबह जल्दी स्कूल पहुंचा, ताकि मास्टरनी से कुछ पूछ सके. विज्ञान की मास्टरनी बड़ी भली थीं. पढ़ाई में अच्छे बच्चों को कुछ ज्यादा ही लाड़ जताती थीं. फिर कार्तिक का प्रिय विषय विज्ञान ही था, सो मास्टरनी कार्तिक की बातों को ध्यान से सुनने लगीं.

सोचविचार कर उन्होंने कहा, ‘‘कार्तिक, तुम्हारी मां को कहीं कैंसर तो नहीं है? तुम अपने बापू से कहो कि उसे तुरंत अस्पताल ले जाएं.’’

कार्तिक छुट्टी मांग कर जल्दी घर आ गया था. बापू से कहा, तो बापू ने कहा, ‘‘हां, ले जाऊंगा.’’

रात को मां और बापू वापस आए, तो कार्तिक ने मां से पूछा, ‘‘क्या कहा डाक्टर ने?’’

‘‘तेरे बापू गुनेसर तांत्रिक बाबा के पास ले गए थे. वे कहते हैं कि उन के पास बहुत करामात हैं. वे मुझे जल्द ठीक कर देंगे.’’

यह सुनते ही कार्तिक उदास हो गया. वह बापू से हर रोज विनती करता कि वे उसे डाक्टर के पास ले जाएं, लेकिन बापू रोज यही कहता, ‘‘बाबा अंतर्यामी हैं. उन्हें अगर पता चल गया कि मैं इसे बाबा के पास न ले जा कर डाक्टर के पास ले जाता हूं, तो वे गुस्से में हम सब का नाश कर देंगे.’’

और इस तरह मुरगियां, बकरियां, रुपए, चांदी के जेवर सबकुछ लुटा कर सनीचरी इस लोक से चली गई, कार्तिक के सामने एक बड़ा सवाल छोड़ कर.

सुखदेव को ईंटभट्ठे के मालिक से आज उस की मजदूरी के सौ रुपए मिल गए थे, साथ ही जल्दी छुट्टी भी.

सुखदेव आज किराना की दुकान छोड़ कर सीधे घर आया. सनीचरी की तेरहवीं पूरी हो जाए, तो उस की भी जान छूटे. बाबा ने सुखदेव को डरा दिया था. सनीचरी की तेरहवीं में अगर काल भैरव खुश नहीं हुए, तो सनीचरी प्रेत योनि में चली जाएगी और फिर सुखदेव दूसरी औरत कभी नहीं ला पाएगा.

इधर नारायणपुर के जंगली इलाकों में डकैतों का भी बड़ा आतंक था. यह भी एक बड़ी वजह थी कि सुखदेव की तरह सारे गांव वाले तांत्रिक बाबा की छत्रछाया में रहना पसंद करते थे. गांव वालों को पूरा भरोसा था कि बाबा के डर से डकैत उन का नुकसान नहीं करते, वरना दूसरे गांव में तो आएदिन खूनखराबा और अपहरण होते रहते हैं.

गांव के लोग बाबा के खानेपीने और उन के आराम का इंतजाम करते रहते. अपनी फसल देते, भेंट में मुरगियां और बकरियां काल भैरव को बलि के नाम पर चढ़ाई जातीं.

बाबा बताते कि कैसे उन में करामाती जादुई ताकत है. इस ताकत की वजह से वे अंतर्यामी हैं. वे तुरंत खबर सुनाते, ‘‘टेकराम, तेरी बीवी कल झगड़ कर मायके गई थी. यह बात सच है न?’’

‘‘हां बाबा.’’

‘‘मनिराम, तेरी गाय अब ज्यादा दूध देने लगी है. इधर भी एक सेर ज्यादा पहुंचाना, नहीं तो दूध बंद करवा दूंगा. ऐसा मंतर पढ़ूंगा कि गाय दूध देना ही बंद कर देगी.’’

‘‘जोहार बाबा, पहुंचा दूंगा.’’

‘‘अब बता कि मैं कैसे समझ रहा हूं इधर मंदिर में बैठेबैठे?’’

‘‘जी बाबा, आप ध्यान में सब जान जाते हो.’’

भीड़ के बीच तांत्रिक का खबरी गुनेसर बोला, ‘‘गांव वालो, मेरी बात पर ध्यान दो. अनाज, गुड़, दूध, दाल, सब्जी, मुरगी, बकरी सब थोड़ाथोड़ा बढ़ा दो. काल भैरव अनाज की कमी से गुस्सा हो रहे हैं.’’

‘‘दूसरी बात यह कि सारंग की बेटी घर छोड़ कर धोबन के बेटे के साथ भाग गई है. ऐसा कुकर्म नहीं चलेगा. अब से सब के घर की बेटियों को इधर भेजना. मैं उन का चरित्र पूजन कर दूंगा. अपनी बहुओं को भी भेजना. उन का गर्भपूजन करूंगा, तभी वे भले मानस को जन्म देंगी,’’ गुनेसर ने कहा.

‘‘हां बाबा, आप तो यहां हमारे भले के लिए ही हो,’’ बाबा के किसी मुखबिर ने कहा.

सभी बाबा के कहे मुताबिक भजनकीर्तन में लग गए. इस तरह पूजाअर्चन का माहौल बना कर लोगों का विश्वास जीता जाता. दिनरात हर घर से खाना आता. खाना क्या था, पकवान. जीभ की लालसा से ले कर शरीर के हर अंग की प्यास बुझाने की तरकीब बाबा ने निकाल रखी थी इन मति के मारे गांव वालों के जरीए.

पहले के जोड़े हुए 5 सौ रुपए और आज के सौ रुपए मिला कर सुखदेव बाबा के पास पहुंचा. बाबा ध्यान में बैठे थे यानी उसे आता देख वे ध्यान में बैठ गए थे.

10 मिनट तक बिना आंखें खोले वे कुछ बुदबुदाते रहे, फिर कह पड़े, ‘‘आ गया सुखदेव.’’

सुखदेव हैरान हो कर बोला, ‘‘जोहार माईबाप.’’

‘‘रख दे इस आसन पर, जो कुछ लाया है.’’

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सुखदेव के 6 सौ रुपए रखते ही बाबा नाराज होते हुए बोले, ‘‘ये क्या है रे? इतने से तो तू क्या अपनी बीवी को नरक में जाने से रोक पाएगा? मुक्ति दिलाएगा बस इतने में?’’

‘‘बाबा, जो था, मैं सब ले आया.’’

‘‘झूठ.’’

‘‘बाबा, आप ही बताइए और क्या दूं?’’

‘‘क्यों, सनीचरी का मंगलसूत्र, उस की अंगूठी, चांदी के कड़े तेरे पास हैं न? उसे तो पहने हुए देखा था मैं ने. कितना दरिद्दर है रे तू? भोलेनाथ और काल भैरव तुझ पर प्रसन्न न होंगे.’’

‘‘नहीं बाबा, आप आज्ञा दें, मैं अभी लाता हूं.’’

‘‘जा, जल्दी आना. किसी हेराफेरी में पड़ा, तो तेरे बेटे को ही चढ़ा दूंगा यज्ञ में.’’

‘‘मैं अभी आया,’’ हांफता सा सुखदेव घर पहुंचा और सनीचरी का टिन का बक्सा खोल कर कुछ ढूंढ़ने लगा. बापू को परेशान देख कार्तिक पूछ बैठा, ‘‘क्या हो गया बापू? क्या ढूंढ़ रहे हो?’’

‘‘तेरी मां का सामान. वह लाल पोटली नहीं दिख रही.’’

‘‘यहीं अंदर होगी, जिस में मंगलसूत्र है?’’

‘‘हांहां.’’

कार्तिक ने पोटली ढूंढ़ कर बापू के हाथ में थमा दी.

‘‘क्या करोगे बापू तुम इस का?’’

‘‘अरे तू ज्यादा पूछ मत. तेरी मां की तेरहवीं ऐसे ही हो जाएगी? देवता को खुश तो करना पड़ेगा, वरना उसे प्रेत योनि से मुक्ति कैसे मिलेगी?’’

‘‘क्या बोल रहे हो बापू… हमारी विज्ञान मैडम कल ही बता रही थीं कि ऐसा कुछ नहीं होता. बेवकूफ बना रहा है बाबा तुम्हें. वह खुद सब चीजें हड़प जाएगा.’’

सुखदेव ने डर के मारे कार्तिक के गाल पर एक चांटा रसीद कर दिया.

‘‘क्या बकता है? अगर कोई सुन लेगा, तो गजब हो जाएगा. तू दरवाजा बंद कर के पढ़ाई कर. आने में रात हो जाएगी. भूख लगे तो दोपहर का चावल पड़ा है हांड़ी में, अचार के साथ खा लेना.’’

सुखदेव ने अपनी खाट के नीचे से देशी ठर्रे की बोतल निकाली, बैग में सारी चीजों को भरा और बाहर निकल गया.

मंदिर पहुंच कर सुखदेव इस डर से बाबा के चरणों में लेट गया कि फिर किसी बात की कोई कमी न रह जाए. आखिर उस के पास अब कुछ भी नहीं बचा था, यहां तक कि सनीचरी की मुक्ति के उपाय को ‘न’ कहने का रास्ता भी नहीं था, क्योंकि इस से न सिर्फ सनीचरी के भूत बन कर तंग करने का डर था, बल्कि बेटे के बलि चढ़ जाने का खतरा मंडरा रहा था.

बाबा को ये सारी चीजें जल्दी निबटाने की जरूरत रहती है, क्योंकि रात 11 बजे से उन का गर्भपूजन का कार्यक्रम चालू हो जाता है. हां, गर्भपूजन की हुई लड़की सुबह होने से पहले ही अपने घर उन के नुमाइंदे की देखरेख में पूरी हिदायत के साथ पहुंचा दी जाती है. भला हो बाबा का, जो वे मान गए.

‘‘चलचल, काल भैरव मान गए. जा, तू मंदिर के उस कोने में जा कर आंखें बंद कर के बैठ जा और भोलेनाथ को याद करते रहना.’’

‘‘जी बाबा,’’ सुखदेव बोला.

कार्तिक बड़ी दुविधा में था. मां जब तक जिंदा थीं, दोगुनी मेहनत करती थीं. मां की बीमारी ने उन का सत्यानाश कर दिया.

कार्तिक ने दरवाजे पर ताला लगाया, अपनी साइकिल उठाई और चल पड़ा. आज कुछ न कुछ करना ही है. घर में हर घड़ी खानेपीने के लाले पड़ते जा रहे हैं. छमाही के इम्तिहान के बाद स्कूल से भी उसे अल्टीमेटम दे दिया गया है कि वह कांपियां खरीद ले. किताबें तो फिर भी मिल जाती हैं स्कूल से, जो अब तक वह पढ़ाई जारी रखे हुए है. खाने का इंतजाम स्कूल के मिड डे मील में और ईंटभट्ठे के मालिक के बेटे के कपड़े भी कार्तिक को आ ही जाते हैं.

मगर आज तो हद ही हो गई. मां के गहने उन की आखिरी निशानी भी चली गई. आएदिन उस का बापू गुनेसर बाबा की खातिरदारी में गांजाभांग पी कर खुद को बड़ा भक्त बनाता जा रहा है. ईंटभट्ठे से आते ही वह बाबा के पास निकल जाता, इधर घर पर गरीबी की मार, तिस पर मां का दुख.

कार्तिक की सोच की रफ्तार साइकिल के पेडल पर जोरजोर से पड़ रही थी.

गोधूली बेला के डूबते सूरज की विपरीत दिशा में कार्तिक जा रहा था, नया सूरज उगाने को. मवेशी घर लौट रहे थे और वह अपना घर बचाने के लिए घर से दूर. मौसी राजेश्वरी के गांव पहुंचने तक कार्तिक को रात के 9 बज गए थे.

मौसी भी उस की ऐसीवैसी नहीं, इस गांव की दमदार औरत थी. बचपन से लगातार कुश्ती की वह चैंपियन रही थी और राज्यस्तरीय प्रतियोगिताओं में बहुत पदक जीत चुकी थी. नानी के साथ मौसी अकेली रहती थी. एक मामा भी थे, जो मामी और बच्चों के साथ दूर शहर में रहते थे. मौसी ने शादी नहीं की, मगर उस की शादी के चर्चे खास रहे. अभी सालभर पहले ही कार्तिक को उस की मां ने बताया था.

एक लड़का बराती के साथ सजधज कर मौसी को ब्याहने पहुंचा. लड़के ने मौसी का फोटो देखा हुआ था, मगर जब सामने देखा, तो बात उठ गई कि लड़की काली है. पैसे ज्यादा चलेंगे, अगर ब्याहनी है तो…

कार्तिक की नानी राधा देवी पहले ही अपना खेत बेच कर दूल्हे को 15 हजार रुपए नकद, एक रंगीन टैलीविजन, एक मोपैड, एक सिलाई मशीन और एक पंखा दे चुकी थीं.

अब 10 हजार रुपए और…? दूल्हा मंडप में बैठा था.

मौसी बीच मंडप में आईं, सजीसंवरी दुलहन के वेश में. फिर उन्होंने कहना शुरू किया, ‘‘दूल्हे बाबू से मेरा निवेदन है कि वे अपने बरातियों के साथ वापस लौट जाएं. दूल्हा बाबू का कहना है कि मैं काली हूं, और मेरा भी कहना है कि दूल्हा बाबू नाटे हैं, मोटे हैं, उन का कोई धर्म नहीं, वे मांस के कारोबारी हैं, जिन को अपनी होने वाली बीवी की दुखतकलीफ का कोई खयाल नहीं.’’

यह सुन कर सब हैरान रह गए. ऐसी दुलहन को देख बराती दूल्हा ले कर उलटे पैर भागे. बस, तब से मौसी कुंआरी ही हैं. राजेश्वरी का सांवला गदराया बदन था. जवानी के बोझ से मदमस्त, लेकिन कोराअनछुआ. देखने में भोली, लेकिन चुस्त पैनी आंखें, सतर्कता रगरग में.

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30 साल की राजेश्वरी खुद ही खेत संभालती, मवेशी पालती, फसल शहर जा कर बेच आती.

कुछ महीने पहले की बात है. पड़ोस की एक बहू रामवती पेट से थी. अचानक रात को उस की तबीयत बिगड़ी. पति ने ध्यान नहीं दिया. उस का बेटा दौड़ता हुआ आया और बोला, ‘‘मौसी, देख तो… मेरी मां को क्या हो गया है?’’

बस, चल पड़ी राजेश्वरी. रामवती को उठा कर पड़ोस के पंचू रिकशे वाले के घर गई. वह तो नशे में धुत्त पड़ा था.

राजेश्वरी ने आव देखा न ताव, उस का रिकशा निकाला, रामवती को उस में किसी तरह लिटाया और 7 किलोमीटर दूर ले चली सरकारी अस्पताल.

अब ऐसी मौसी पर कार्तिक को भरोसा क्यों न हो. मौसी के एक ही धोबी पछाड़ पर गुनेसर दुम दबा कर भागेगा.

कार्तिक की इस सोच ने उस के होंठों पर मुसकान ला दी.

‘‘क्या सोच कर हंसे जा रहा रे तू? तू कब आया? जीजा ठीक हैं न?’’ मौसी ने पूछा.

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

करामात : आखिर सुखदेव क्या चाहता था राजेश्वरी से?

करामात : भाग 2 – आखिर सुखदेव क्या चाहता था राजेश्वरी से?

पिछले अंक में आप ने पढ़ा था:

सनीचरी की तेरहवीं कराने के चक्कर में सुखदेव एक तांत्रिक बाबा के हत्थे चढ़ गया. बाबा ने उसे भूतप्रेत का डर दिखाया. सुखदेव का बेटा कार्तिक इस अंधविश्वास को नहीं मानता था. उसे पता था कि उस की मां को कैंसर है, पर सुखदेव उसे डाक्टर के बजाय तांत्रिक बाबा के पास ले गया. कार्तिक को अपने पिता को धूर्त बाबा से बचाना था. वह अपनी मौसी के गांव गया, जो एक बिंदास औरत थी.

अब पढ़िए आगे…

‘‘हां मौसी, पहले मुझे बैठ तो लेने दे, थक गया हूं,’’ कार्तिक बोला. नानी भी अब तक दालान में आ गई थीं. कार्तिक का यहां बड़ा मन लगता है. मौसी के दालान के एक किनारे मुरगियों के दड़बे और कुएं के पास बकरियों के रहने के ठिकाने हैं. कुल 7 बकरियां हैं. मौसी इन्हें बेचती भी है.

दालान से ऊपर चबूतरा और उस से लगे 2 बड़े हवादार कमरे हैं. पलंग, कुरसी, बड़ा शीशा, पंखा, टैलीविजन सबकुछ है मौसी के पास. मोपैड भी है, जो अब मौसी ही चलाती है.

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कार्तिक ने मौसी को ढोंगी बाबा और अपने बापू की सारी बातें बताईं. मौसी ने कहा, ‘‘देख बेटा, तेरा भविष्य तो जीजा के पास एकदम चौपट है. कहीं तांत्रिक तेरे बापू से तुझे ही न मांग ले.

‘‘नशा इनसान का दिमाग खराब कर देता है. वह ढोंगी गांव वालों को नशे का आदी इसलिए बनाता होगा, ताकि अपनी मनमानी करता रहे.

‘‘तू अब हमारे पास ही रुक जा. मैं तुझे कसबे के बड़े वाले स्कूल में भरती करवा दूंगी.’’

‘‘मौसी, आप ने मेरे लिए जो सोचा है, वह तो अच्छी बात है, मगर गुनेसर बाबा को हमारे गांव से भगाओ न आप. किसी की भी हिम्मत नहीं कि उस से लड़े. वह मेरे बापू को नशे के चक्कर में एक दिन खत्म ही न कर दे.’’

कार्तिक की बात सुन कर राजेश्वरी पसीज गई थी. सुबह होते ही वह अकेले ही उमाशंकर पहलवान से मिलने जा पहुंची. उन से सारी बातें तय कर के राजेश्वरी पहले खेत और फिर घर पहुंची.

वहां जीजा को दालान में बैठा देख राजेश्वरी चौंक गई. वह कार्तिक को डांटफटकार रहा था.

राजेश्वरी खीझ गई और पूछा, ‘‘ऐसे कैसे चले आए जीजा? कार्तिक की फिक्र में…’’

‘‘कुछ होश भी है तुम को? लड़का चुपचाप बैठा लिया, कोई खोजखबर नहीं दी,’’ सुखदेव बोला.

‘‘जीजा, तुम ने बेटे को ऐसा लाचार कर दिया कि भागा आया इधर. जिस बाप का खुद का ठिकाना नहीं, उसे खबर कैसे दूं? बाप हो तो सलीके से क्यों न रहते बेटे के साथ?’’

सुखदेव उस बाबा के डर के साए में रह कर नशेड़ी हो कर अपनी सोचने की ताकत खो बैठा था. वह थोड़ी सी धमक पर ही डर कर बैठ गया और अपना सिर खुजाने लगा. नानी ने कार्तिक को दोपहर का खाना खिलाया और वापस जाने को कहा.

लेकिन राजेश्वरी ने दोटूक कहा, ‘‘कार्तिक को कब भेजना है, मैं सोचूंगी. बेचारा खानेपीने को तरस गया है. यह जीजा के साथ नहीं जाएगा.’’ नानी चुप हो गईं. कार्तिक हफ्ताभर और वहां रहा, फिर अपने घर लौट गया.

उधर उमाशंकर ने पहलवान छात्रों को कुछ निर्देश दिए और अपने भतीजे रंजन के घर नारायणपुरा में ही आ गए.

इधर कार्तिक के गांव वालों के रंगढंग देख कर राजेश्वरी दंग रह गई. सभी गांव वाले बिना कोई पूछताछ किए बाबा के कदमों में लोटे रहते थे.

आज की रात दिल की धड़कन बढ़ाने वाली थी. राजेश्वरी मंदिर के पीछे बने मकान के कमरे तक पहुंच चुकी थी. खिड़की खुली थी. उस ने भीतर झांका. गुनेसर भूरे, सफेद पाउडर के पैकेट के बदले 3 लोगों से रुपयों की गड्डी ले रहा था. उस का चेहरा ठीक सामने था. राजेश्वरी हटने को हुई, तो बाबा की नजर उस पर पड़ी. बाबा चिल्लाया, ‘‘पकड़ो इसे.’’

उन में से एक दौड़ कर जैसे ही उसे पकड़ने को हुआ, राजेश्वरी उसे धक्का दे कर भाग खड़ी हुई.

बाबा ने कहा, ‘‘यह तो सुखदेव की साली है. मंदिर के आसपास 2 दिन से घूम रही थी. गांव वालों से पता किया है. पहलवानी करती है. औरत जात पर कलंक है. यहां जासूसी करने आई थी.

‘‘यह कुछ खुराफात करे, इस से पहले अभी अपने आदमियों से कह दो कि रातोंरात इस की चिता सजा दें.

‘‘लोगों की फसल में जगहजगह आग लगा दो, लोगों के मवेशी चुरा लो, कई घरों में सेंधमारी करो और फिर सुबह से ही बात फैलाओ कि यह पहलवान टोनही है, जो जादूटोना कर के सब का नाश कर रही है. देखो, कैसे मेरी बात मान कर सब गांव वाले इस का क्रियाकर्म करते हैं.’’

तीनों हुक्म के गुलाम चल दिए. इधर भोर होने तक राजेश्वरी अपनी मोपैड से उमाशंकर के भतीजे रंजन के घर पहुंची. उमाशंकर सुबह की कसरत कर रहे थे. उन का 30 साला भतीजा रंजन अपनी चाय की दुकान खोलने की तैयारी में था.

राजेश्वरी ने बताया, ‘‘मैं ने आते वक्त खेतों को जलते देखा है. यह निश्चित ही उस गुनेसर का काम है, जो अब यह इलजाम मुझ पर लगाने वाला है.’’

उमाशंकर बोले, ‘‘राजेश्वरी, अब वह वक्त आ चुका है, जिस का हम इंतजार कर रहे थे. कार्तिक पर भी हमला हो सकता है, इसलिए अभी सीधे तुम उस के पास जाओ. मैं सगुणा को अपने गांव फोन कर देता हूं, वह तैयार हो जाएगा. दूसरे छात्रों को भी अब बुलवा लेता हूं.

‘‘मैं बस पकड़ कर सीधे शहर पहुंच रहा हूं. वहां से मैं अपने एक पत्रकार दोस्त को ले कर जल्दी लौटूंगा. फोन पर उस को इत्तिला कर देता हूं कि वह मेरे साथ चलने को तैयार रहे.’’

इधर तांत्रिक गांव वालों को इकट्ठा कर चुका था और मंदिर के सामने पीपल के पेड़ के नीचे बने चबूतरे पर खड़ा हो कर भाषण झाड़ रहा था, ‘‘हमारे गांव में टोनही घुस आई है. सुखदेव की साली. कब से जानता हूं मैं इसे. उस ने तुम लोगों के खेत जला डाले, बकरियां गायब कर दीं…’’

‘‘मेरी मुरगियां भी बाबा,’’ एक गांव वाले ने कहा.

‘‘खाती है सब. जादूटोना करने वाले उन्हें कच्चा खा जाते हैं…’’ बाबा ने बताया, ‘‘वह तुम लोगों के पास आ कर यह कहे कि बाबा चोर है, तुम लोगों को ठग रहा है, उस से पहले तुम सब उसे यहां पकड़ लाओ.’’

‘हां बाबा, अभी लाते हैं,’ कई गांव वाले एकसाथ बोले.

‘‘सुखदेव मिले तो उसे भी ले आओ,’’ बाबा ने कहा.

सुखदेव के घर में राजेश्वरी तो नहीं मिली, अलबत्ता सुखदेव को ही लोग घसीटते हुए ले गए.

सुखदेव को देखते ही बाबा ने हुंकार भरी, ‘‘क्यों रे सुखदेव, बहुत मचल रहा था. जो पहलवान साली घर में बिठा ली? और कोई औरत नहीं मिली तुझे?’’

एक औरत ने तांत्रिक को खुली चुनौती दी थी. उस की चोरी पकड़ी गई थी. वह तिलमिला उठा था. चरसगांजे की मारी जनता ‘हेहे’ कर के हंस पड़ी.

सुखदेव डर के मारे बाबा के पैरों में लोट गया और कहा, ‘‘उस औरत से मेरा कोई नाता नहीं है. बेटे को खिलानेपिलाने की खातिर जबरदस्ती इधर पहुंच गई. हमें क्या पता, वह गांव में क्या कर रही है.’’

‘‘टोनही है वह. टोनाटोटका कर के मेरे रहते गांव वालों का इतना नुकसान कर दिया. गांव वालों की ओर जो आंख उठा कर देखेगा, मैं उस की बलि कालभैरव के सामने चढ़ा दूंगा.’’

‘‘आप राजेश्वरी को ला कर जो करना है करो, मुझे कोई मतलब नहीं. मेरे बेटे और मुझे छोड़ दो बाबा,’’ सुखदेव ने कहा.

‘‘जा, फिर ढूंढ़ कर ला उसे गांव वालों के साथ जा कर.’’

इधर गांव वाले गांव छानते रहे, उधर कार्तिक को ले कर राजेश्वरी गांव के बाहर अपने पहलवान गुरुभाई के घर छिप कर बैठी रही. जब तक तांत्रिक का इलाज नहीं हो जाता, उस के हिलनेडुलने से बात बिगड़ सकती थी.

रात के वक्त मंदिर के पास पत्रकार और उमाशंकर छिप गए. अंदर गुनेसर के कमरे में कुछ बातचीत चल रही थी. ‘‘बाबा, मैं आप के पैर पड़ता हूं. सामान है मेरे पास… आप दे दो.’’ ‘‘चलचल, यह सब यहां नहीं है. तुझे गलत बात पता चली है.’’

सगुना उठ खड़ा हुआ और बोला, ‘‘बाबा, बड़ी मुश्किल से मां की 2 पायल उठा कर लाया हूं.’’

‘‘ठीक है, देखता हूं,’’ बाबा ने अपने मन की कूदफांद को काबू में रखते हुए कहा.

लेकिन अचानक बाबा सतर्क हो गया और पूछा, ‘‘तू कहीं जासूस तो नहीं है? क्या नाम है तेरा?’’

‘‘नहीं बाबा, आप तो अंतर्यामी हैं. सब समझ सकते हैं. ये पायल मां की ही हैं. मैं उन्हें चुरा कर लाया था कि पुडि़या मिल जाए. कहीं पकड़ा गया तो पुलिस जो न करेगी, उस से ज्यादा घर वाले मेरा कर देंगे. आप दे दो बाबा, तो मैं निकल जाऊं जल्दी.’’

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बाबा को विश्वास हो चला था. उन्होंने ड्रग का एक पैकेट निकाला. उस में चरस थी.

‘‘बाबा, हेरोइन की भी एक छोटी पुडि़या दे दो न.’’

‘‘पाकिस्तान बौर्डर पर लड़ाई चल रही है. अफगानिस्तान का सारा माल रुका हुआ है. इसी पर संतोष कर और चल भाग यहां से. फिर कभी दोबारा इधर दिखना मत, वरना जिंदा जमीन में गड़वा दूंगा.’’

‘‘जा रहा हूं बाबा, मगर एक बात रह गई.’’

‘‘क्या…? जल्दी बोल?’’

‘‘बाबा, हमारे गांव की एक लड़की थी. मैं उस से शादी करना चाहता था, मगर उस के बाप ने मुझे निकम्मा और चरसखोर कह कर बहुत पिटवाया. अब लड़की को बहला कर मैं आप के पास छोड़ देना चाहता हूं. आप उस का पूजन करते रहना.’’

‘‘बहुत होशियार है रे तू चल, ले आना. कितनी उम्र है उस की?’’ उस हवस के भूखे भेडि़ए ने कुटिल मुसकान के साथ पूछा.

‘‘24 साल की होगी. बहुत खूबसूरत है वह.’’

‘‘कब लाएगा?’’

‘‘हफ्तेभर बाद.’’

‘‘भूलना मत.’’

सगुना ने बहुत बड़ा खतरा मोल लिया था. छिपतेछिपते उस ने उमाशंकर और पत्रकार को इशारा कर दिया. वे तीनों वहां से निकल लिए.

सगुना अपने गांव चला गया. उमाशंकर और पत्रकार शहर पुलिस को यह स्टिंग वीडियो दिखाने चले गए, जो सगुना की कमीज के बटन में लगालगा सबकुछ कैद कर रहा था.

उमाशंकर ने फोन पर राजेश्वरी को अब सब के सामने आने को कह दिया था, क्योंकि उन के हिसाब से तांत्रिक के पापों का आज आखिरी दिन था.

पुलिस सादा लिबास में उमाशंकर और पत्रकार के साथ नारायणपुरा गांव पहुंची. राजेश्वरी गांव वालों की पकड़ में आ चुकी थी. उसे ‘टोनही’ पुकारते हुए लोग उस पर कीचड़ मल रहे थे.

राजेश्वरी चाहती, तो उन्हें अपने ‘धोबी पछाड़’ से पटकनी दे देती, लेकिन वह चाहती थी कि तांत्रिक का कियाधरा पुलिस की नजर में आ जाए.

इधर राजेश्वरी के साथ भीड़ मंदिर के सामने पीपल के पेड़ तक चली आ रही थी, उधर बाबा की धरपकड़ के बाद उस के कमरे की तलाशी में सैकड़ों की तादाद में गंदी फिल्मों के वीडियो, लड़कियों के फोटो, चरसगांजा और रुपयों की अनगिनत गड्डियां पुलिस को मिल चुकी थीं.

‘‘सब पीपल पेड़ के पास इकट्ठा हो चुके थे. इतने में उमाशंकर तलाशी लेने वाले अफसर के सामने आए और कहा, ‘‘सर, राजेश्वरी राज्यस्तरीय कुश्ती चैंपियन है. हमारे कुछ छात्र भी यहां मौजूद हैं, जो पहलवानी करते हैं. राजेश्वरी भी हम से कुश्ती सीखती है. इसे टोनही कह कर बदनाम करने वाले ठग बाबा का भंडाफोड़ कराने में राजेश्वरी और उस के भांजे कार्तिक का बड़ा हाथ है. सर, आप इजाजत दें, तो इस का स्टिंग वीडियो चलाया जाए.’’

बाबा वहां मुंह लटकाए खड़ा था. लोगों में कानाफूसी चल रही थी. अफसर ने कहा, ‘‘पुलिस को इस गुनेसर के घर से काफी सुबूत मिले हैं, जिन से साफ जाहिर है कि वह गलत धंधा कर के पैसे कमा रहा था और आप सब को ठग रहा था. हमारे पास छिप कर बनाया गया वीडियो है, जिस से सच का पता लगा है. ये महाशय जेल जाने वाले हैं. आगे से आप लोग ऐसे किसी करामाती बाबा के चंगुल में मत फंसिएगा.’’

कार्तिक, राजेश्वरी और उमाशंकर सुखदेव के घर पहुंचे. राजेश्वरी अपना सामान बांध रही थी. उमाशंकर के साथ वह सुबह ही निकल जाने वाली थी. कार्तिक सुखदेव से नजरें चुरा रहा था.

उमाशंकर ने कहा, ‘‘सुखदेव, अब तो सारा सच तुम्हारे सामने है. बाबा की पोलपट्टी खुल चुकी है. तुम्हारे गहने, रुपए मवेशी सब गए. बीवी भी गई. अब बेटे को कैसे पालोगे?’’

सुखदेव सिर खुजाते हुए बोला, ‘‘क्या करूंगा? जैसे पहले जाता था स्कूल, जाएगा.’’ कार्तिक के मन को पढ़ते हुए राजेश्वरी ने कहा, ‘‘जीजा, मैं तुम्हें जितना समझती हूं, लगता नहीं कि इसे पाल पाओगे. जी लेना और जिंदगी बनाने में बड़ा फर्क है. होनहार बच्चा है. मैं इसे पालूंगी. ले जाती हूं अपने साथ.’’

सुखदेव कसमसाता सा बोला, ‘‘तू इधर ही रह जा.’’ राजेश्वरी को तरस भी आया और गुस्सा भी. फिर भी वह संभल कर बोली, ‘‘देखो जीजा, मैं तुम्हारी घरवाली बन कर तो रह नहीं सकती… तेरी अक्ल क्या चरस और भांग चरने गई है?’’

कार्तिक हंस पड़ा.

‘‘अपने जीजा की देखभाल की नहीं सोच रही है,’’ कुढ़ता हुआ सुखदेव फिर भी बोल पड़ा.

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‘‘अरे जीजा, ज्यादा बोला तो दूंगी पटक के… तू कर ले न दूसरी औरत. मेरे पीछे क्यों पड़ गया?

‘‘मेरे लिए बहुत काम पड़े हैं. तू अपना रास्ता देख और कभी बेटे से लाड़ करने का मन करे, तो हमारे घर का दरवाजा खुला है, आ जाना,’’ राजेश्वरी बोली. उमाशंकर अपनी साइकिल पर, कार्तिक अपनी छोटी सी पोटली के साथ राजेश्वरी की मोपैड पर अपनी मौसी के गांव की ओर चल दिया.

हल: आखिर क्यों पति से अलग होना चाहती थी इरा?

हल : भाग 2

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लेखक- विजया वासुदेवा

भाग-2

इरा हैरत से अपूर्व को देखने लगी. फिर पूछा, ‘‘अरे, ऐसा क्यों?’’

‘‘जब आप और पापा 15 साल एकदूसरे के साथ रह कर भी एकदूसरे के साथ नहीं रह सकते, अलग होना चाहते हैं तब हम तो आप के साथ 12 साल से रह रहे हैं. हमें आप कैसे जानेंगे? आप और पापा अगर अलग हो रहे हैं तो हमें होस्टल भेज देना, हम आप दोनों से ही नहीं मिलेंगे,’’ अपूर्व तिलमिला उठा था.

‘‘पागल है क्या तू?’’ इरा हैरान थी, ‘‘नहीं बिलकुल नहीं. इतने वर्षों साथ रह कर भी आप को एकदूसरे का आदर करना, एकदूसरे को अपनाना नहीं आया, तो आप हमें कैसे अपनाएंगे.

‘‘पापा आप का सम्मान नहीं करते तभी आप को घर छोड़ कर जाने देंगे. आप पापा को और घर को इतने सालों में भी समझा नहीं पाईं तभी घर छोड़ कर जाने की बात कर सकती हैं. इसलिए हम आप दोनों का ही आदर नहीं कर सकेंगे और हम मिलना भी नहीं चाहेंगे आप दोनों से,’’ अपूर्व के चेहरे पर उत्तेजना और आक्रोश झलक रहा था.

इरा ने अपूर्व के कंधे को कस कर पकड़ लिया. उस का बेटा इतना समझदार होगा उस ने सोचा भी नहीं था. नवीन से अलग हो कर उस ने सोचा भी नहीं था कि अपने बेटे की नजरों में वह इतनी गिर जाएगी. अगर नवीन उसे सम्मान नहीं दे रहा, तो वह भी अलग हो रही है नवीन का तिरस्कार कर के. इस से वह नवीन को भी तो अपमानित कर रही है. परिवार टूट रहा है, बच्चे असंतुलित हो रहे हैं. वह विवाहविच्छेद नहीं करेगी. उस के आशियाने के तिनके उस के आत्मसम्मान की आंधी में नहीं उड़ेंगे. उसे नवीन के साथ अब किसी अलग ही धरातल पर बात करनी होगी.

अक्सर ही नवीन झगड़े के बाद 2-4 दिन देर से घर आता है. औफिस में अधिक काम का बहाना कर के देर रात तक बैठा रहता. इरा उस की इस मानसिकता को अच्छी तरह समझती है.

इरा ने औफिस से 10 दिनों का अवकाश लिया. नवीन 2-4 दिन तटस्थता से इरा का रवैया देखता रहा. फिर एक दिन बोला, ‘‘ये बेमतलब की छुट्टियां क्यों ली जा रही हैं?’’

छुट्टियां खत्म हो जाएंगी तो हाफ पे ले लूंगी, जब औफिस जाना ही

नहीं है तो पिछले काम की छुट्टियों का हिसाब पूरा कर लूं,’’ इरा ने स्थिर स्वर में कहा.

‘‘किस ने कहा तुम औफिस छोड़ रही हो?’’ नवीन ने ऊंचे स्वर में कहा, ‘‘मैडम, आजकल नौकरी मिलती कहां है जो तुम यों आराम से लगीलगाई नौकरी को लात मार रही हो?’’

‘‘और क्या करूं?’’ इरा ने सपाट स्वर में कहा, ‘‘जिन शर्तों पर नौकरी करनी है वह मेरे बस के बाहर की बात है.’’

‘‘कौन सी शर्तें?’’ ‘‘नवीन ने अनजान बनते हुए पूछा.’’

‘‘देरसबेर होना, जनसंपर्क के काम में सभी से मिलनाजुलना होता है, वह भी तुम्हें पसंद

नहीं. कैरियर या होम केयर में से एक का चुनाव करना था. सो मैं ने कर लिया. मैं ने नौकरी

छोड़ने का निर्णय कर लिया है,’’ इरा ने अपना फैसला सुनाया.

‘‘क्या बच्चों जैसी जिद करती हो,’’ नवीन झल्लाई आवाज में बोला, ‘‘एक जने की सैलरी में घरखर्च और बच्चों की पढ़ाई कैसे होगी?’’

‘‘पर नौकरी छोड़ कर तुम सारा दिन करोगी क्या?’’ नवीन को समझ नहीं आ रहा था कि वह किस तरह इरा का निर्णय बदले.

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‘‘जैसे घर पर रहने वाली औरतें खुशी से दिन बिताती हैं. टीवी, वीडियो, ताश, बागबानी, कुकिंग, किटी पार्टी हजार तरह के शौक हैं. मेरा भी टाइम बीत जाएगा. टाइम काटना कोई समस्या नहीं है,’’ इरा आराम से दलीलें दे रही थी.

‘‘तुम्हारा कितना सम्मान है, तुम्हारे और मेरे सर्किल में लोग तुम्हें कितना मानते हैं. कितने लोगों के लिए तुम प्रेरणा हो, सार्थक काम कर रही हो,’’ नवीन ने इरा को बहलाना चाहा.

‘‘तो क्या इस के लिए मैं घर में रोजरोज कलहकलेश सहूं, नीचा देखूं, हर बात पर मुजरिम की तरह कठघरे में खड़ी कर दी जाऊं बिना किसी गुनाह के?

‘‘क्यों सहूं मैं इतना अपमान इस नौकरी के लिए? इस के बिना भी मैं खुश रह सकती हूं. आराम से जी सकती हूं,’’ इरा ने बिना किसी तनाव के अपना निर्णय सुनाया.

‘‘इरा आई एम वैरी सौरी, मेरा मतलब तुम्हें अपमानित करने का नहीं था. जब भी तुम्हें आने में देर होती है मेरा मन तरहतरह की आशंकाओं से घिर जाता है. उसी तनाव में तुम्हें बहुत कुछ उलटासीधा बोल दिया होगा. मुझे माफ कर दो. मेरा इरादा तुम्हें पीड़ा पहुंचाने या अपमानित करने का नहीं था,’’ नवीन के चेहरे पर पीड़ा और विवशता दोनों झलक रही थीं.

‘‘ठीक है कल से काम पर चली जाऊंगी. पर उस के लिए आप को भी वचन देना होगा कि इस स्थिति को तूल नहीं देंगे. मैं नौकरी करती हूं. मेरे लिए भी समय के बंधन होते हैं. मुझे भी आप की तरह समय और शक्ति काम के प्रति लगानी पड़ती है. आप के काम में भी देरसबेर होती ही है पर मैं यों शक कर के क्लेश नहीं करती,’’ कहतेकहते इरा रोआंसी हो उठी.

‘‘यार कह दिया न आगे से ऐसा नहीं करूंगा. अब बारबार बोल कर क्यों नीचा दिखाती हो,’’ इरा का हाथ अपने दोनों हाथों में थाम कर नवीन ने कहा.

इरा सोच रही थी कि रिश्ता तोड़ कर अलग हो जाना कितना सरल हल लग रहा था. लेकिन कितना पीड़ा दायक. परिवार के टूटने का त्रास सहन करना क्या आसान बात थी. मन ही मन वह अपने बेटे की ऋणी थी, जिस की जरा सी परिपक्वता ने यह हल निकाल दिया था, उस की समस्या का.

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