क्या वही प्यार था : दीदी बाबा का प्यार क्या रंग लाया

दादी और बाबा के कमरे से फिर जोरजोर से लड़ने की आवाजें आने लगी थीं. अम्मा ने मुझे इशारा किया, मैं समझ गई कि मुझे दादीबाबा के कमरे में जा कर उन्हें लड़ने से मना करना है. मैं ने दरवाजे पर खड़े हो कर इतना ही कहा कि दादी, चुप हो जाइए, अम्मा के पास नीचे गुप्ता आंटी बैठी हैं. अभी मेरी बात पूरी भी नहीं हुई कि दादी भड़क गईं.

‘‘हांहां, मुझे ही कह तू भी, इसे कोई कुछ नहीं कहता. जो आता है मुझे ही चुप होने को कहता है.’’

दादी की आवाज और तेज हो गई थी और बदले में बाबा उन से भी जोर से बोलने लगे थे. इन दोनों से कुछ भी कहना बेकार था. मैं उन के कमरे का दरवाजा बंद कर के लौट आई.

दादीबाबा की ऐसी लड़ाई आज पहली बार नहीं हो रही थी. मैं ने जब से होश संभाला है तब से ही इन दोनों को इसी तरह लड़ते और गालीगलौज करते देखा है. इस तरह की तूतू मैंमैं इन दोनों की दिनचर्या का हिस्सा है. हर बार दोनों के लड़ने का कारण रहता है दादी का ताश और चौपड़ खेलना. हमारी कालोनी के लोग ही नहीं बल्कि दूसरे महल्लों के सेवानिवृत्त लोग, किशोर लड़के दादी के साथ ताश खेलने आते हैं. ताश खेलना दादी का जनून था. दादी खाना, नहाना छोड़ सकती थीं, मगर ताश खेलना नहीं.

दादी के साथ कोई बड़ा ही खेलने वाला हो, यह जरूरी नहीं. वे तो छोटे बच्चे के साथ भी बड़े आनंद के साथ ताश खेल लेती थीं. 1-2 घंटे नहीं बल्कि पूरेपूरे दिन. भरी दोपहरी हो, ठंडी रातें हों, दादी कभी भी ताश खेलने के लिए मना नहीं कर सकतीं. बाबा लड़ते समय दादी को जी भर कर गालियां देते परंतु दादी उन्हें सुनतीं और कोई प्रतिक्रिया दिए बगैर उसी तरह ताश में मगन रहतीं. कई बार बहुत अधिक गुस्सा आने पर बाबा, दादी के 1-2 छड़ी भी टिका देते. दादी बाबा से न नाराज होतीं न रोतीं. बस, 1-2 गालियां बाबा को सुनातीं और अपने ताश या चौपड़ में मस्त हो जातीं.

एक खास बात थी, वह यह कि दोनों अकसर लड़ते तो थे मगर एकदूसरे से अलग नहीं होना चाहते थे. जब दोनों की लड़ाई हद से बढ़ जाती और दोनों ही चुप न होते तो दोनों को चुप कराने के लिए अम्मा इसी बात को हथियार बनातीं. वे इतना ही कहतीं, ‘‘आप दोनों में से किसी एक को देवरजी के पास भेजूंगी,’’ दोनों चुप हो जाते और तब दादी, बाबा से कहतीं, ‘‘करमजले, तू कहीं रहने लायक नहीं है और न मुझे कहीं रहने लायक छोड़ेगा,’’ और दोनों थोड़ी देर के लिए शांत हो जाते.

खैर, गुप्ता आंटी तो चली गई थीं मगर अम्मा को आज जरा ज्यादा ही गुस्सा आ गया था. सो, अम्मा ने दोनों से कहा, ‘‘बस, मैं अब और बर्दाश्त नहीं कर सकती. अभी देवरजी को चिट्ठी लिखती हूं कि किसी एक को आ कर ले जाएं.’’

अम्मा का कहना था कि बाबा हाथ जोड़ कर हर बार की तरह गुहार करने लगे, ‘‘अरी बेटी, तू बिलकुल सच्ची है, तू हमें ऊपर बनी टपरी में डाल दे, हम वहीं रह लेंगे पर हमें अलगअलग न कर. अरी बेटी, आज के बाद मैं अपना मुंह सी लूंगा.’’

अभी बात चल ही रही थी कि संयोग से चाचा आ गए. चायनाश्ते के बाद अम्मा ने चाचा से कहा, ‘‘सुमेर, दोनों में से किसी एक को अपने साथ ले कर जाना. जब देखो दोनों लड़ते रहते हैं. न आएगए की शर्म न बच्चों का लिहाज.’’

चाचा लड़ने का कारण तो जानते ही थे इसलिए दादी को समझाते हुए बोले, ‘‘मां, जब पिताजी को तुम्हारा ताश और चौपड़ खेलना अच्छा नहीं लगता तो क्यों खेलती हैं, बंद कर दें. ताश खेलना छोड़ दें. पता नहीं इस ताश और चौपड़ के कारण तुम ने पिताजी की कितनी बेंत खाई होंगी.

‘‘भाभी ठीक कहती हैं. मां, तुम चलो मेरे साथ. मेरे पास ज्यादा बड़ा मकान नहीं है, पिताजी के लिए दिक्कत हो जाएगी. मां, तुम तो बच्चों के कमरे में मजे से रहना.’’

आज दादी भी गुस्से में थीं, एकदम बोलीं, ‘‘हां बेटा, ठीक है. मैं भी अब तंग आ गई हूं. कुछ दिन तो चैन से कटेंगे.’’

दादी ने अपना बोरियाबिस्तर बांध कर तैयारी कर ली. अपनी चौपड़ और ताश उठा लिए और जाने के लिए तैयार हो गईं.

यह बात बाबा को पता चली तो बाबा ने वही बातें कहनी शुरू कर दीं जो दादी से अलग होने पर अम्मा से किया करते थे, ‘‘अरी बेटी, मैं मर कर नरक में जाऊं जो तू मेरी आवाज फिर सुने.’’

अम्मा के कोई जवाब न देने पर वे दादी के सामने ही गिड़गिड़ाने लगे, ‘‘सुमेर की मां, आप मुझे जीतेजी क्यों मार रही हो. आप के बिना यह लाचार बुड्ढा कैसे जिएगा.’’

इतना सुनते ही दादी का मन पिघल गया और वे धीरे से बोलीं, ‘‘अच्छा, नहीं जाती,’’ दादी ने चाचा से कह दिया, ‘‘तेरे पिताजी ठीक ही तो कह रहे हैं न, मैं नहीं जाऊंगी,’’ और दादी ने अपना बंधा सामान, अपना बक्सा, ताश, चौपड़ सब कुछ उठा कर खुद ही अंदर रख दिया.

चाचा को उसी दिन लौटना था अत: वे चले गए. शाम को मैं चाय ले कर बाबा के पास गई तो बाबा ने कहा, ‘‘सिम्मी बच्ची, पहले अपनी दादी को दे,’’ और फिर खुद ही बोले, ‘‘सुमेर की मां, सिम्मी चाय लाई है, चाय पी लो.’’

दादी भी वाणी में मिठास घोल कर बड़े स्नेह से बोलीं, ‘‘अजी आप पियो, मेरे लिए और ले आएगी.’’

एक बात और बड़ी मजेदार थी, जब अलग होने की बात होती तो तूतड़ाक से बात करने वाले मेरे बाबा और दादी आपआप कर के बात करते थे जो हमारे लिए मनोरंजन का साधन बन जाती थी. लेकिन ऐसे क्षण कभीकभी ही आते थे, और दादीबाबा कभीकभी ही बिना लड़ेझगड़े साथ बैठते थे. आज भी ऐसा ही हुआ था. ये आपआप और धीमा स्वर थोड़ी ही देर चला क्योंकि पड़ोस के मेजर अंकल दादी के साथ ताश खेलने आ गए थे.

बाबा की तबीयत खराब हुए कई दिन हो गए थे. दादी को विशेष मतलब नहीं था उन की तबीयत से. एक दिन बाबा की तबीयत कुछ ज्यादा ही खराब हो गई. बाबा कहने लगे, ‘‘आज मैं नहीं बचूंगा. अपनी दादी से कहो, मेरे पास आ कर बैठे, मेरा जी बहुत घबरा रहा है.’’

दादी की ताश की महफिल जमी हुई थी. हम उन्हें बुलाने गए मगर दादी ने हांहूं, अच्छा आ रही हूं, कह कर टाल दिया. वह तो अम्मा डांटडपट कर दादी को ले आईं. दादी बेमन से आई थीं बाबा के पास.

दादी बाबा के पास आईं तो बाबा ने बस इतना ही कहा था, ‘‘सुमेर की मां, तू आ गई, मैं तो चला,’’ और दादी का जवाब सुने बिना ही बाबा हमेशा के लिए चल बसे.

तेरहवीं के बाद सब रिश्तेदार चले गए. शाम को दादी अपने कमरे में गईं. वे बिलकुल गुमसुम हो गई थीं हालांकि बाबा की मृत्यु होने पर न वे रोई थीं न ही चिल्लाई थीं. दादी ने खाना छोड़ दिया, वे किसी से बात नहीं करती थीं. ताश, चौपड़ को उन्होंने हाथ नहीं लगाया. जब कोई ताश खेलने आता तो दादी अंदर से मना करवा देतीं कि उन की तबीयत ठीक नहीं है. अम्मा या पापा दादी से बात करने का प्रयास करते तो दादी एक ही जवाब देतीं, ‘‘मेरा जी अच्छा नहीं है.’’

एक दिन अम्मा, दादी के पास गईं और बोलीं, ‘‘मांजी, कमरे से बाहर आओ, चलो ताश खेलते हैं, आप ने तो बात भी करना छोड़ दिया. दिनभर इस कमरे में पता नहीं क्या करती हो. चलो, आओ, लौबी में ताश खेलेंगे.’’

दादी के चिरपरिचित जवाब में अम्मा ने फिर कहा, ‘‘मांजी, ऐसी क्या नफरत हो गई आप को ताश से. इस ताश के पीछे आप ने सारी उम्र पिताजी की गालियां और बेंत खाए. जब पिताजी मना किया करते थे तो आप खेलने से रुकती नहीं थीं और अब वे मना करने के लिए नहीं हैं तो 3 महीने से आप ने ताश छुए भी नहीं. देखो, आप की चौपड़ पर कितनी धूल जम गई है.’’

अब दादी बोलीं, ‘‘परसों होंगे 3 महीने. मेरा उन के बिना जी नहीं लगता. सुमेर के पिताजी, मुझे भी अपने पास बुला लो. मुझे नहीं जीना अब.’’

दादी की मनोकामना पूरी हुई. बाबा के मरने के ठीक 3 महीने बाद उसी तिथि को दादी ने प्राण त्याग दिए. यानी दादी अपने कमरे में जो गईं तो 3 महीने बाद मर कर ही बाहर आईं.

दादीबाबा को हम ने कभी प्रेम से बैठ कर बातें करते नहीं देखा था, लेकिन दादी बाबा की मौत का गम नहीं सह पाईं और बाबा के पीछेपीछे ही चली गईं. उन के ताश, चौपड़ वैसे के वैसे ही रखे हुए हैं.

प्रेम का मूल : लता को चोरी क्यों करनी पड़ी

लता ने कभी सोचा नहीं था कि उसे टूट कर चाहने वाला यशवंत उसे मुसीबत के समय इस कदर धोखा भी दे सकता है. प्यार की हद तक चाहने का दावा करने वाले यशवंत का प्यार तो केवल लता की मतवाली जवानी से हवस मिटाने तक ही सिमटा रह गया था.

लता कभी अस्पताल के कमरे की छत पर टंगे मकड़जाले से लिपटे खड़खड़ाते पंखे को देख रही थी, तो कभी बैड के पास टूटे स्टूल पर चिंतित बैठे अपने पति छगन को.

डाक्टर ने बताया कि इस हादसे की वजह से उस की एक टांग टूट गई है और रीढ़ की हड्डी पर भी मामूली चोट आई है, जो समय के साथसाथ ठीक हो जाएगी.

लता की दाईं टांग पर प्लास्टर चढ़ा हुआ था और कमर पर चौड़ी बैल्ट बंधी थी. दर्द से उस का रोमरोम सिहर रहा था. आंखें पछतावे के आंसू बहा रही थीं. उस ने दोनों हाथों से छगन के दाएं हाथ को पकड़ा और होंठों से एक गहरा चुम्मा जड़ दिया. छगन की आंखें भी भीग गईं. उस ने दूसरे लोगों की परवाह न करते हुए लता के माथे को चूम लिया.

लता के सूखे होंठों पर बस एक कोरी मुसकान उभर गई. छत के एक किनारे पर मकड़जाले में फंसे किसी पतंगे को देख कर उसे भी अपना अतीत याद आने लगा. उस ने छगन का हाथ पकड़ कर धीरेधीरे आंखें मूंदनी शुरू कर दीं. लता को यशवंत की वह पहली मुलाकात याद आने लगी, जब वह उस के चंगुल में फंस गई थी.

छगन को लगा कि लता को नींद आ गई है, तो उस ने चुपके से उस के हाथों से अपना हाथ हटाया और उस के पैर की उंगलियों पर भिनभिनाती मक्खियों को हटाने लगा.

लता शहर से गांव जाने वाले रास्ते पर बने वेटिंग रूम में बैठी थी. उस के पास 2 भारी बैग थे, जिस में महीनेभर का राशन और दूसरा जरूरी सामान था.

सूरज आकाश के बीचोंबीच आ कर शरीर को झुलसा रहा था. वह सोचने लगी कि कुछ देर बाद छगन भी दोपहर का खाना खाने के लिए घर आने वाला होगा. उसे घर पर न पा कर वह परेशान हो जाएगा.

छगन निकट ही जल महकमे में चपरासी था. लता छगन को बता कर शहर आई थी. उस ने ब्लाउज के अंदर हाथ ठूंस कर अपना मोबाइल निकाला और छगन को हालात के बारे में बता दिया.

लता अभी मोबाइल बंद कर ही रही थी कि उस के निकट एक मोटरसाइकिल सवार आ कर रुक गया. वह तिरछी निगाहों से लता को देख रहा था. लता कभी सड़क के दूसरे छोर को देख रही थी, तो कभी अपने दोनों बैगों को. वह चुपकेचुपके उस नौजवान को भी तिरछी निगाहों से देख रही थी.

काफी देर तक जब दोनों में बातचीत नहीं हुई, तो मोटरसाइकिल सवार ने पूछा, ‘‘क्या आप को नारायणकोटी गांव जाना है?’’

काफी देर तक जब लता ने कोई जवाब नहीं दिया तो, उस नौजवान ने अनमने भाव से कहा, ‘‘असल में, मैं इस गांव के लिए नया हूं. वहां मेरे रिश्तेदार रहते हैं, मुझे उन के घर जाना है. चूंकि मैं वहां पहली बार जा रहा हूं, इसलिए मुझे उन के घर के बारे में जानकारी नहीं है.

‘‘बाकी अगर आप की कुछ बोलने की इच्छा नहीं है, तो कोई बात नहीं. केवल उन के घर के बारे में ही बता दीजिए,’’ कह कर उस नौजवान ने मोबाइल निकाल कर एक पते के बारे में लता से पूछा.

यह घर तो लता के ठीक सामने वालों का था. बारबार समझाने के बाद भी जब नौजवान के पल्ले कुछ नहीं पड़ा, तो वह झंझला गई.

‘‘अगर आप को कोई तकलीफ न हो, और आप को भी नारायकणकोटी गांव जाना है, तो बुरा न मानें मेरे साथ चलिए. आप जल्दी भी पहुंच जाएंगी और मुझे पता ढूंढ़ने में दिक्कत भी नहीं आएगी. बाकी आप की इच्छा,’’ कह कर वह नौजवान मोटरसाइकिल पर किक मारने लगा.

वह नौजवान यही कोई 24 साल का रहा होगा. लंबा, छरहरा और गठीला बदन. बाल घुंघराले थे. बात करने के सलीके से ऐसा लग रहा था कि वह ठीकठाक पढ़ालिखा भी है. चेहरे पर मासूमियत टपक रही थी.

कुछ सोच कर लता ने अपने दोनों बैग संभाले और किसी तरह वह मोटरसाइकिल पर बैठ गई. कुछ देर की खामोशी के बाद दोनों में औपचारिक बातें शुरू हुईं, जिस का सार यह था कि उस नौजवान का नाम यशवंत है, जो एक प्राइवेट फर्म में मैनेजर है. कुछ दिन की छुट्टियां बिताने के लिए वह इस गांव में जा रहा था.

अपने घर के निकट आते ही लता ने यशवंत को रुकने का इशारा किया. मोटरसाइकिल से उतर कर यशवंत ने लता के बैग उतारे और उस के घर के अहाते में रख दिए.

यशवंत का शुक्रिया अदा करते हुए लता ने उसे सामने वाले घर की ओर बढ़ने के लिए इशारा किया.

लता ने छगन को खाना खिलाया, जो भोजन कर के दोबारा अपनी ड्यूटी पर लौट गया.

कुछ देर के बाद लता कपड़े धो कर सुखाने के लिए छत पर गई. उस ने देखा कि सामने वाली छत पर यशवंत फोन पर किसी से बतिया रहा था.

लता को छत पर आता देख यशवंत ने तत्काल फोन पर बात करना बंद कर दिया और मुसकराते हुए लता की ओर देखने लगा.

जवाब में लता भी अपना निचला होंठ काट कर मुसकराने लगी. दोनों में कुछ बातें हुईं.

लता अब यशवंत के बारे में ही सोचने लगी थी. चंद दिनों में ही वे दोनों एकदूसरे के इश्क में पड़ गए. घंटों मोबाइल पर दोनों की चैटिंग होने लगी, यहां तक कि वीडियो काल के जरीए दोनों एकदूसरे के बेहद करीब आ गए.

एक दिन दोपहर को छगन के ड्यूटी पर जाने के बाद लता ने यशवंत को घर आने का न्योता दे दिया. गरमी के मारे बुरा हाल था. लोग अमूमन घर में ही पंखे या कूलर की हवा ले रहे थे.

यशवंत ने तिरछी निगाहों से रास्ते के दोनों किनारों पर देखा, कोई भी नहीं था. उस ने दबे पैर लता के घर का दरवाजा खोला और अंदर आ कर कुंडी चढ़ा दी.

लता इस पल का कई दिन से इंतजार कर रही थी. उस ने गुलाबी रंग का पटियाला सूट पहना था. अभीअभी वह नहा कर बाहर आई थी. बाल खुशबूदार तेल से महक रहे थे.

यशवंत लता के बेहद करीब आ गया. इतना कि दोनों की सांसें एकदूसरे की सांसों से टकराने लगीं.

यशवंत ने लता को अपनी बांहों में ले लिया. एक आह के साथ लता यशवंत के चौड़े सीने से सट गई. दोनों की सांसें अब धौंकनी की तरह चल रही थीं.

यशवंत ने लता को उठा कर खाट पर पटक दिया और कुछ देर के लिए 2 जिस्म एक हो गए. सांसों ने रफ्तार पकड़ ली. कुछ देर बाद वे दोनों निढाल हो कर एकदूसरे की बांहों में सुस्ताने लगे.

‘‘बाबू, अब तुम्हारे बिना रहा नहीं जाता. छगन की कमाई से घर नहीं चलता. शादी के बाद से आज तक ढंग का सूट तक नहीं दिला पाया. कहीं घुमाने के लिए भी नहीं ले जाता. इस गंवार के साथ और नहीं रहा जाता,’’ कह कर लता यशवंत के सीने पर फैले बालों के साथ खेलने लगी.

‘‘पगली, अभी थोड़ा और समय दे दे. हम हमेशा के लिए इस गांव से दूर चले जाएंगे. मैं ने घर में बात कर ली है. हम दोनों मंदिर में शादी कर लेंगे और मेरी कंपनी में तुम्हारे लिए एक बेहतर नौकरी भी है. इस घर में तुम्हारा रहना मुझे अच्छा नहीं लग रहा है. हम जल्दी यहां से निकल जाएंगे,’’ कह कर यशवंत लता के गालों को चूमने लगा.

इस के बाद बातों का सिलसिला कुछ देर तक चला. यशवंत कपड़े पहन कर बाहर निकल गया. लता को कई सालों बाद ऐसा प्यार मिला था. यशवंत के साथ कितना खुश रहेगी वह. दोनों ड्यूटी के बाद सैरसपाटे को निकलेंगे. बढि़या होटल में खाना खाएंगे. प्यार में अंधी हो चुकी लता को अब उसे टूट कर चाहने वाले छगन में कई बुराइयां दिखाई देने लगीं.

यशवंत 15 दिन गांव में रहा. इस दौरान उन दोनों के बीच कई बार जिस्मानी रिश्ता भी बना. एक दिन यशवंत लता से जल्दी शादी करने का वादा कर के वापस चला गया. उस के जाते ही लता का दिल घर के किसी भी काम में नहीं लग रहा था. छगन से भी वह कई बार बिना वजह ही बातबात पर झगड़ने लगी थी.

समय मिलते ही आएदिन यशवंत और लता घंटों फोन पर चिपके रहते थे. हवस में पागल हो चुकी लता को यशवंत कई बार शहर के होटलों में मिलने लगा था और वह लता के लिए खूबसूरत सूटसलवार और सिंगार का दूसरा सामान भी ले आता था. लता काफी खुश थी.

काफी समय गुजरने के बाद भी जब यशवंत शादी के नाम पर केवल बहाने बनाने लगा, तो लता को कुछ शक होने लगा. जब लता उस से शादी की बात करती, तो वह कहता कि अभी पैसे जोड़ रहा है. शहर में एक बढि़या सा घर भी तो बनाना है.

जब पानी सिर के ऊपर से गुजरने लगा, तो एक दिन उस ने यशवंत से झूठ कहा कि वह उस के बच्चे की मां बनने वाली है. पहले तो यशवंत झल्ला गया, फिर उस ने बच्चा गिराने की सलाह दी, जिसे लता ने मानने से मना कर दिया.

अब लता को भी लगने लगा था कि यशवंत ने उसे बेवकूफ बना दिया है. थकहार कर उस ने यशवंत को डराने के मकसद से कड़े शब्दों में कहा कि अगर वह उस से शादी नहीं करेगा, तो वह पुलिस में उस की शिकायत दर्ज करेगी.

पुलिस का नाम सुन कर पहले तो यशवंत डर गया. फिर उस ने हालात संभालते हुए कहा कि वह लता को अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करता है. अगर उसे थोड़ा भी शक है, तो कल वह उस से मिलने शहर आ जाए. फिर वहीं से कहीं दूर भाग कर साथ रहेंगे.

यशवंत ने लता को समझाया कि अगर घर में कुछ गहने या पैसे हैं, तो वे भी उठा कर अपने साथ ले आए, भविष्य में न जाने कैसे बुरे हालात बन जाएं, इसलिए गहने और पैसे उन के सुखद भविष्य के कुछ काम तो आएंगे.

लता अपने मांबाप के दिए कुछ गहने और छगन की जेब से चुरा कर जमा किए गए 20,000 रुपए एक बैग में रख कर शहर आ गई.

शहर में पहले से ही यशवंत लता का इंतजार कर रहा था. लता के आते ही उस ने उसे मोटरसाइकिल पर बिठाया और हाईवे से आगे बढ़ने लगा. लता उस से सट कर बैठ गई. आखिरकार उसे उस का अनमोल प्यार जो मिल गया था.

यशवंत की मोटरसाइकिल तेज रफ्तार से शहर से दूसरे रास्ते पर बढ़ने लगी. ओवर स्पीड की वजह से सामने से तेज रफ्तार से आ रहे एक ट्रक से बचने के चक्कर में मोटरसाइकिल सड़क के किनारे बनी रेलिंग से जा टकराई. टक्कर इतनी जबरदस्त थी कि देखते ही देखते मोटरसाइकिल के परखच्चे उड़ गए.

यशवंत मोटरसाइकिल से छिटक कर खेतों में गिर गया. उस के एक पैर में चोट आ गई थी. लता निढाल हो कर सड़क के दूसरे किनारे पड़ी थी. उस के माथे, पैरों और नथुनों से खून फूट पड़ा था.

लता को उसी हालत में छोड़ कर सड़क किनारे गिरे लता के बैग को उठा कर यशवंत लड़खड़ाते कदमों से खेतों को पार करते हुए भाग चुका था.

इस भयंकर हादसे के बाद वहां पर लोग जमा होने लगे और लता को उठा कर नजदीक के एक अस्पताल में दाखिल कर के उस के पति को बता दिया था.

लता की सोच भंग हुई. उस के जेहन में बारबार धोखेबाज यशवंत का चेहरा घूम रहा था. उस की मुट्ठियां भिंचने लगी थीं. आंखों में गुस्से का लावा जमने लगा था. वह उठने की भरसक कोशिश करने लगी, लेकिन उठ नहीं  पाई.

छगन ने लता के होंठों से जूस का गिलास लगा दिया और बोला, ‘‘अगर तुम्हें कुछ हो जाता तो मेरा क्या होता, मैं किस के सहारे जीता, किस के लिए नौकरी करता. मैं ने पाईपाई जोड़ कर तुम्हारे लिए सोने की नथ बनवाने को दी थी… तुम्हें नथ बहुत पसंद है न…’’ कहतेकहते उस की आंखों से आंसू निकल आए.

लता के मुंह से बोल नहीं फूट रहे थे. वह यशवंत की हवस और छगन के प्यार को तोल रही थी. उस ने इधरउधर देखा. आसपास न तो उस का मोबाइल नजर आ रहा था और न ही उस का कीमती बैग.

पूछने पर पता चला कि कुछ स्थानीय लोगों ने लता को अस्पताल पहुंचा कर उस के पति को बुलाया था. मतलब, यशवंत ने उसे धोखे में रखा. उस के गहने और पैसे यशवंत ले गया.

लता उसी हालत में अपने पति छगन से लिपट गई और फूटफूट कर रोने लगी. उसे अपने किए पर पछतावा था, जिस का प्रायश्चित्त भी तो करना था. ठीक होने के बाद वह भगोड़े यशवंत से तो निबटेगी ही.

‘‘मुझे माफ कर देना,’’ कह कर लता रोने लगी. आज लता को पता चल चुका था कि गरीबी के दौर में भी उस के हर नखरे उठाने के बाद भी खुश रहने वाला छगन असलियत में कितना महान है. पत्नी का असल हमदर्द उस का पति ही होता है. उसे अपने गंदे शरीर से घिन सी आने लगी थी.

लता समझ चुकी थी कि प्रेम का मूल हवस नहीं है, बल्कि साथी के प्रति समर्पण, विश्वास और अपनों की खुशी है.

प्यार की पहली किस्त : अरबपति रहमान की कहानी

बेगम रहमान से सायरा ने झिझकते हुए कहा, ‘‘मम्मी, मैं एक बड़ी परेशानी में पड़ गई हूं.’’

उन्होंने टीवी पर से नजरें हटाए बगैर पूछा, ‘‘क्या किसी बड़ी रकम की जरूरत पड़ गई है?’’

‘‘नहीं मम्मी, मेरे पास पैसे हैं.’’

‘‘तो फिर इस बार भी इम्तिहान में खराब नंबर आए होंगे और अगली क्लास में जाने में दिक्कत आ रही होगी…’’ बेगम रहमान की निगाहें अब भी टीवी सीरियल पर लगी थीं.

‘‘नहीं मम्मी, ऐसा कुछ भी नहीं है. आप ध्यान दें, तो मैं कुछ बताऊं भी.’’

बेगम रहमान ने टीवी बंद किया और बेटी की तरफ घूम गईं, ‘‘हां, अब बताए मेरी बेटी कि ऐसी कौन सी मुसीबत आ पड़ी है, जो मम्मी की याद आ गई.’’

‘‘मम्मी, दरअसल…’’ सायरा की जबान लड़खड़ा रही थी और फिर उस ने जल्दी से अपनी बात पूरी की, ‘‘मैं पेट से हूं.’’

यह सुन कर बेगम रहमान का हंसता हुआ चेहरा गुस्से से लाल हो गया, ‘‘तुम से कितनी बार कहा है कि एहतियात बरता करो, लेकिन तुम निरी बेवकूफ की बेवकूफ रही.’’

बेगम रहमान को इस बात का सदमा कतई नहीं था कि उन की कुंआरी बेटी पेट से हो गई है. उन्हें तो इस बात पर गुस्सा आ रहा था कि उस ने एहतियात क्यों नहीं बरती.

‘‘मम्मी, मैं हर बार बहुत एहतियात बरतती थी, पर इस बार पहाड़ पर पिकनिक मनाने गए थे, वहीं चूक हो गई.’’

‘‘कितने दिन का है?’’ बेगम रहमान ने पूछा.

‘‘चौथा महीना है,’’ सायरा ने सिर झांका कर कहा.

‘‘और तुम अभी तक सो रही थी,’’ बेगम रहमान को फिर गुस्सा आ गया.

‘‘दरअसल, कैसर नवाब ने कहा था कि हम लोग शादी कर लेंगे और इस बच्चे को पालेंगे, लेकिन मम्मी, वह गजाला है न… वह बड़ी बदचलन है. कैसर नवाब पर हमेशा डोरे डालती थी. अब वे उस के चक्कर में पड़ गए और हम से दूर हो गए.’’

रहमान साहब शहर के एक नामीगिरामी अरबपति थे. कपड़े की कई मिलें थीं, सियासत में भी खासी रुचि रखते थे. सुबह से शाम तक बिजनेस मीटिंग या सियासी जलसों में मसरूफ रहते थे.

बेगम रहमान भी अपनी किटी पार्टी और लेडीज क्लब में मशगूल रहती थीं. एकलौती बेटी सायरा के पास मां की ममता और बाप के प्यार के अलावा दुनिया की हर चीज मौजूद थी, यारदोस्त, डांसपार्टी वगैरह यही सब उस की पसंद थी.

हाई सोसायटी में किरदार के अलावा हर चीज पर ध्यान दिया जाता है. सायरा ने भी दौलत की तरह अपने हुस्न और जवानी को दिल खोल कर लुटाया था, लेकिन उस में अभी इतनी गैरत बाकी थी कि वह बिनब्याही मां बन कर किसी बच्चे को पालने की हिम्मत नहीं कर सकती थी.

‘‘तुम ने मुसीबत में फंसा दिया बेटी. अब सिवा इस बात के कोई चारा नहीं है कि तुम्हारा निकाह जल्द से जल्द किसी और से कर दिया जाए. अपने बराबर वाला तो कोई कबूल करेगा नहीं. अब कोई शरीफजादा ही तलाश करना पड़ेगा,’’ कहते हुए बेगम रहमान फिक्रमंद हो गईं.

एक महीने के अंदर ही बेगम रहमान ने रहमान साहब के भतीजे सुलतान मियां से सायरा का निकाह कर दिया.

सुलतान कोआपरेटिव बैंक में मैनेजर था. नौजवान खूबसूरत सुलतान के घर जब बेगम रहमान सायरा के रिश्ते की बात करने गईं, तो सुलतान की मां आब्दा बीबी को बड़ी हैरत हुई थी.

बेगम रहमान 5 साल पहले सुलतान के अब्बा की मौत पर आई थीं. उस के बाद वे अब आईं, तो आब्दा बीबी सोचने लगीं कि आज तो सब खैरियत है, फिर ये कैसे आ गईं.

जब बेगम रहमान ने बगैर कोई भूमिका बनाए सायरा के रिश्ते के लिए सुलतान का हाथ मांगा तो उन्हें अपने कानों पर यकीन नहीं आया था.

कहां सायरा एक अरबपति की बेटी और कहां सुलतान एक मामूली बैंक मैनेजर, जिस के बैंक का सालाना टर्नओवर भी रहमान साहब की 2 मिलों के बराबर नहीं था.

सुलतान की मां ने बड़ी मुश्किल से कहा था, ‘‘भाभी, मैं जरा सुलतान से बात कर लूं.’’

‘‘आब्दा बीबी, इस में सुलतान से बात करने की क्या जरूरत है. आखिर वह रहमान साहब का सगा भतीजा है. क्या उस पर उन का इतना भी हक नहीं है कि सायरा के लिए उसे मांग सकें?’’ बेगम रहमान ने दोटूक शब्दों में खुद ही रिश्ता दिया और खुद ही मंजूर कर लिया था.

चंद दिनों के बाद एक आलीशान होटल में सायरा का निकाह सुलतान मियां से हो गया. रहमान साहब ने उन के हनीमून के लिए स्विट्जरलैंड के एक बेहतरीन होटल में इंतजाम करा दिया था. सायरा को जिंदगी का यह नया ढर्रा भी बहुत पसंद आया.

हनीमून से लौट कर कुछ दिन रहमान साहब की कोठी में गुजारने के बाद जब सुलतान ने दुलहन को अपने घर ले जाने की बात कही तो सायरा के साथ बेगम रहमान के माथे पर भी बल पड़ गए.

‘‘तुम कहां रखोगे मेरी बेटी सायरा को?’’ बेगम रहमान ने बड़े मजाकिया अंदाज में पूछा.

‘‘वहीं जहां मैं और मेरी अम्मी रहती हैं,’’ सुलतान ने बड़ी सादगी से जवाब दिया.

‘‘बेटे, तुम्हारे घर से बड़ा तो सायरा का बाथरूम है. वह उस घर में कैसे रह सकेगी,’’ बेगम रहमान ने फिर एक दलील दी.

सुलतान को अब यह एहसास होने लगा था कि यह सारी कहानी घरजंवाई बनाने की है.

‘‘यह सबकुछ तो आप को पहले सोचना चाहिए था,’’ सुलतान ने कहा.

इस से पहले कि सायरा कोई जवाब देती, बेगम रहमान को याद आ गया कि यह निकाह तो एक भूल को छिपाने के लिए हुआ है. मियांबीवी में अभी से अगर तकरार शुरू हो गई, तो पेट में पलने वाले बच्चे का क्या होगा.

उन्होंने अपने मूड को खुशगवार बनाते हुए कहा, ‘‘अच्छा बेटा, ले जाओ. लेकिन सायरा को जल्दीजल्दी ले आया करना. तुम को तो पता है कि सायरा के बगैर हम लोग एक पल भी नहीं रह सकते.’’

सुलतान और उस की मां की खुशहाल जिंदगी में आग लगाने के लिए सायरा सुलतान के घर आ गई.

2 दिनों में ही हालात इतने खराब हो गए कि सायरा अपने घर वापस आ गई. मियांबीवी की तनातनी नफरत में बदल गई और बात तलाक तक पहुंच गई, लेकिन मसला था मेहर की रकम का, जो सुलतान मियां अदा नहीं कर सकते थे.

10 लाख रुपए मेहर बांधा गया था. आखिर अरबपति की बेटी थी. उस के जिस्म को कानूनी तौर पर छूने की कीमत 10 लाख रुपए से कम क्या होती.

एक दिन मियांबीवी की इस लड़ाई को एक बेरहम ट्रक ने हमेशा के लिए खत्म कर दिया.

हुआ यों कि सुलतान मियां शाम को बैंक से अपने स्कूटर से वापस आ रहे थे, न जाने किस सोच में थे कि सामने से आते हुए ट्रक की चपेट में आ गए और बेजान लाश में तबदील हो गए.

सायरा बेगम अपने पुराने दोस्तों के साथ एक बड़े होटल में गपें लगाने में मशगूल थीं, तभी बीमा कंपनी के एक एजेंट ने उन्हें एक लिफाफे के साथ

10 लाख रुपए का चैक देते हुए कहा, ‘‘मैडम, ऐसा बहुत कम होता है कि कोई पहली किस्त जमा करने के बाद ही हादसे का शिकार हो जाए.

‘‘सुलतान साहब ने अपनी तनख्वाह में से 10 लाख रुपए की पौलिसी की पहली किस्त भरी थी और आप को नौमिनी करते समय यह लिफाफा भी दिया था. शायद वह यही सोचते हुए जा रहे थे कि महीने के बाकी दिन कैसे गुजरेंगे और ट्रक से टकरा गए.’’

सायरा ने पूरी बात सुनने के बाद एजेंट का शुक्रिया अदा किया और होटल से बाहर आ कर अपनी कार में बैठ कर लिफाफा खोला. यह सुलतान का पहला और आखिरी खत था. लिखा था :

तुम ने मुझे तोहफे में 4 महीने का बच्चा दिया था, मैं तुम्हें मेहर के 10 लाख रुपए दे रहा हूं. तुम्हारी मजबूरी सुलतान. सायरा ने खत को लिफाफे में रखा और ससुराल की तरफ गाड़ी को घुमा लिया.

वह होटल आई थी अरबपति रहमान की बेटी बन कर, अब वापस जा रही थी एक खुद्दार बैंक मैनेजर की बेवा बन कर.

प्यार दोबारा भी होता : संजना ने राजीव को देखकर क्या महसूस किया

सागरशांत गहरी सोच में डूबा नजर आता. मगर आज किसी ने कंकड़ फेंक लहरों को हिला दिया था. ध्यान भंग था सागर का. कुछ ऐसा ही राजीव के साथ भी हो रहा था. हां, उस का दिल भी सागर की तरह था और इस दिल में सिर्फ एक मूर्ति बसी थी. किसी अन्य का खयाल दूरदूर तक न था. सिर्फ वह और संजना. दुनिया में रहते हुए भी दुनिया से बेखबर. वह बेहद प्यार करता था अपनी पत्नी को. संजना को देख कर उसे लगा था कि एक वही है जिसे वह ताउम्र प्यार कर सकता है.

कहने को तो अरेंज्ड मैरिज थी पर लगता जैसे कई जन्मों से एकदूसरे को जानते हैं. संजना को देख कर ही राजीव का दिल धड़का. दिल

भी अजीब है. हर चीज का संकेत पहले ही दे देता है.

3 साल शादी को हो गए थे. कोई संतान नहीं हुई. फिर भी उसे कोई गम नहीं था. उस के लिए संजना ही संपूर्ण थी. कितने शहर दोनों घूमे. संजना के बगैर राजीव को अपना वजूद ही नजर नहीं आता. संजना के गर्भवती होने पर कितना खुश था वह… जैसे उस का संसार पूर्ण होने वाला है. मगर कुदरत को कुछ और ही मंजूर था. बेटी को जन्म देते समय अधिक रक्तस्राव के कारण संजना का निधन हो गया. उस की मौत ने उसे अंदर तक हिला दिया. घर की हर वस्तु पर

संजना की परछाईं नजर आती. परछाईं तो उस की स्वयं की बेटी थी. जब भी वह बेटी का चेहरा देखता दिल काबू में न रहता. दम घुटने लगा उस का. वह नहीं रह पाया. न ही बेटी को देख मोह हुआ. उस की मां ने कितना सम झाया पर वह नहीं माना. उस ने अपना ट्रांसफर बैंगलुरु से मुंबई करवा लिया.

मांपिताजी पोती के आने से खुश थे. जब भी वह बैंगलुरु जाता 1 दिन से अधिक न रुक पाता. उस शहर, उस घर में उस का दम घुटता. उसे लगता अगर वह यहां और रहा तो पागल हो जाएगा.

मुंबई में किराए पर फ्लैट ले कर अकेले रहने लगा. अब उस का दिल सूख चुका था. मौसम बदले, महीने बदले, वह यंत्रवत अपना कार्य करता. पर आज इस दिल में हलचल मची थी.

‘‘नहीं, यह नहीं हो सकता,’’ वह बुदबुदाने लगा.

दिल एक बार ही धड़कता है जो उस का धड़क चुका. फिर आज क्यों? क्यों ऐसी बेचैनी? क्या वह किसी के प्रति आकर्षित हो रहा है? नहीं, यह संजना के प्रति अन्याय होगा. पर दिल नहीं सुन रहा था. उस ने स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि कभी वह ऐसा महसूस करेगा. क्यों वह बेचैन हो रहा है? क्यों उसे चिंता हो रही है? एक पड़ोसी की दूसरे पड़ोसी की चिंता हो सकती है, यह स्वाभाविक है. इस से अधिक और कुछ नहीं. कुछ पलों के लिए  झटकता पर फिर उस का चेहरा सामने आने लगता.

6 महीने पहले राजीव के पड़ोस में एक औरत रहने आई थी. लड़की नहीं कह सकते,

क्योंकि 30 के ऊपर की लग रही थी. एक फ्लोर में 2 ही फ्लैट थे. घर में नैटवर्क सही न होने के कारण वह बाहर फोन से बातें कर रहा था. पड़ोस में वह औरत अपने सामान को ठीक से रखवा रही थी. हलकी सी नजर राजीव ने डाली थी उस पर इस के अलावा कुछ नहीं.

औफिस जातेआते प्राय: रोज ही टकरा जाते. लिफ्ट में अकेले साथ

जाते हुए कभीकभी राजीव को कुछ महसूस होता. यों तो हजारों के साथ लिफ्ट में आताजाता पर इस के होने से कुछ आकर्षण महसूस करता. शायद अकेले होने के कारण या फिर शरीर की अपनी जरूरत होने के कारण.

एक दिन लिफ्ट से निकलते वक्त उस औरत का पांव मुड़ गया. वह गिरने ही वाली थी कि राजीव ने उसे पकड़ लिया. बांह पकड़ उसे लिफ्ट के बाहर रखी कुरसी पर बैठा दिया.

‘‘क्या हुआ?’’ पूछते हुए उस ने पांव को हाथ लगा कर देखना चाहा पर उस औरत ने  झटके से पांव खींच लिया.

‘‘नहीं, ठीक है… थोड़ी देर में ठीक हो जाएगा,’’ कहते हुए उस ने पांव को आगेपीछे किया.

‘‘कुछ मदद चाहिए?’’ राजीव ने पूछा.

‘‘नहीं, धन्यवाद. संभाल लूंगी.’’

राजीव भी औफिस के लिए निकल गया. मगर उस की बांह पकड़ना… किसी के इतने करीब आना… उस का दिल धड़का गया.

2-3 दिन वह लंगड़ा कर ही चलती रही थी. अब हलकी सी मुसकराहट का आदानप्रदान होने लगा. कभीकभी 1-2 बातें भी होने लगीं. उस की मुसकराहट अब राजीव के दिल में जगह बनाने लगी थी.

2-3 दिन से वह दिखाई नहीं दे रही थी. यही बेचैनी उस के दिल में तूफान मचा रही थी. वह अपने ही घर में चहलकदमी करने लगा. कभी दरवाजा खोलता, तो कभी बंद करता. पता नहीं कौन है? क्या करती है? कुछ भी जानकारी नहीं थी. नजर आता तो सिर्फ उस का चेहरा.

तभी दरवाजे की घंटी बजी. उस ने दरवाजा खोला तो सामने कामवाली थी.

‘‘साहब, जरा मेम साहब को देखो न… बहुत बीमार हैं,’’ वह हड़बड़ाते हुए बोली.

राजीव घबराते हुए उस के पास पहुंचा. माथे पर हाथ रखा तो तप रहा था.

‘‘किसी को दिखाया?’’ चिंतित स्वर में राजीव ने पूछा.

उस ने हलके से न में सिर हिला दिया.

राजीव ने डाक्टर को फोन कर बुलाया और फिर उस के माथे पर पानी की पट्टियां लगाता रहा. कामवाली भी जा चुकी थी. डाक्टर ने आ कर दवा लिखी. दवा खाने से उस का बुखार कम होने लगा.

दूसरे दिन थोड़ा स्वस्थ देख राजीव ने पूछा, ‘‘आप के घर से किसी को बुलाना है तो कह दीजिए मैं कौल कर देता हूं?’’

उस ने न में हलके से सिर हिलाया.

‘‘कोई रिश्तेदार है यहां पर?’’

उस ने फिर न में सिर हिलाया.

उस के खानेपीने की, दवा देने की जिम्मेदारी राजीव ने खुद पर ले ली. वह काफी सकुचा रही थी पर स्वस्थ न होने के कारण कुछ बोल नहीं पाई.

2-3 दिन बाद स्वस्थ होने पर वह आभार प्रकट करने लगी, ‘‘माफ कीजिए, मेरे कारण आप को बहुत कष्ट हुआ.’’

‘‘माफी किस बात की? पड़ोसी ही पड़ोसी के काम आता है. आइए बैठिए,’’ अंदर आने का इशारा करते हुए राजीव बोला.

‘‘नहीं, आज नहीं. फिर कभी. अभी औफिस जाना है,’’ कह वह औफिस के लिए निकलने लगी.

‘‘रुकिए मैं भी आ रहा हूं,’’ कहते हुए राजीव ने भी अपना बैग उठा लिया.

वह मुसकराते हुए लिफ्ट का बटन दबाने लगी.

अब अकसर दोनों आतेजाते बातें करने लगे. कभीकभी डिनर भी साथ कर लेते. दोनों में दोस्ती हो गई. पर अभी भी वे एकदूसरे के निजी जीवन से अनजान थे.

घर से बाहर दूरदूर तक पहाड़ दिखाई देते थे. हरियाली भी खूब थी.

राजीव के दोस्त प्राय: कहते कि तुम कितनी अच्छी जगह रहते हो. पर राजीव को कभी महसूस ही नहीं होता था. उसे हरियाली कभी दिखाई ही नहीं दी. दिल सूना होने से सब सूना और बेजान ही दिखाई देता है. अब कुछ महीनों से यह हरियाली की  झलक दिखाई दे रही थी. बारिश ने आ कर और अधिक हराभरा कर दिया था.

एक शाम दोनों डिनर पर गए.

‘‘मैं अभी तक आप का नाम ही नहीं जान पाया,’’ कुरसी पर बैठते हुए राजीव ने कहा.

‘‘रोशनी,’’ मुसकराते हुए वह बोली.

‘‘अच्छा तो इसीलिए यह रैस्टोरैंट जगमगा रहा है,’’ जाने कितने महीनों बाद राजीव ने चुहलबाजी की थी.

‘‘जगमगाहट देख कर पेट नहीं भरेगा. कुछ और्डर कीजिए,’’ रोशनी मुसकराते हुए बोली.

राजीव ने खाने का और्डर किया.

‘‘मैं आप के बारे में कुछ नहीं जानता. मगर आप बताना चाहें तो मैं सुनना चाहूंगा,’’ राजीव खाना खाते हुए बोला.

रोशनी नजरें नीचे कर  झेंपने लगी.

‘‘ठीक है आप न बताना चाहें तो कोई बात नहीं.’’

‘‘नहीं ऐसी कोई बात नहीं. इतनी दोस्ती तो है कि मैं बता सकूं. बाहर बताती हूं,’’ नजरें अभी भी उस की  झुकी हुई थीं.

खाना खाने के बाद दोनों बाहर टहलने लगे. टहलतेटहलते स्वयं को संभाल रोशनी कहने लगी, ‘‘मैं एमबीए करने लगी. वह भी मु झ से प्यार करता था. हम दोनों लिवइन में रहने लगे. मेरे परिवार वालों ने बहुत सम झाया, डांटा भी पर मैं उस के बिना नहीं रह सकती थी. मम्मीपापा ने कहा शादी कर के साथ रहो. पर मैं नहीं मानी. मु झे लगता था जब प्यार करते हैं तो शादी जैसा बंधन क्यों और फिर उस वक्त हम शादी कर भी नहीं सकते थे. गुस्से में आ कर मेरे परिवार वालों ने रिश्ता तोड़ लिया. मु झे जौब मिल गई थी. उसे भी जौब मिल गई पर दूसरे शहर में.हम लोग कोशिश कर रहे थे कि एक ही शहर में मिल जाए.

‘‘तब तक कभी वह आ जाता, कभी मैं चली जाती. 1 साल बाद वह प्राय: आने में आनाकानी करने लगा. मैं ही कभीकभी चली जाती. वह प्राय: उखड़ाउखड़ा रहता. बहुत

जोर देने पर उस ने कहा कि अब उसे किसी और से प्यार हो गया है. क्या ऐसा हो सकता है?

प्यार तो एक बार ही होता है न? दिल एक बार ही धड़कता है न?’’ कहते हुए वह फफक पड़ी.

राजीव ने उसे बांह से पकड़ बैंच पर बैठाया.

‘‘नहीं, आप बताइए प्यार दोबारा हो सकता है?’’ उस ने रोते हुए जिज्ञासा भरी नजरों से राजीव की तरफ देखा.

राजीव की नजरें  झुक गईं.

‘‘मतलब? तब पहले वाला प्यार नहीं था. सिर्फ लगाव था?’’ राजीव को  झुकी नजरें देख रोशनी बोली.

‘‘नहीं वह भी प्यार था पर…’’

‘‘पर… बदल गया?’’

‘‘बदला नहीं हो सकता है फिर से…’’

बात बीच में छोड़ राजीव खामोश हो गया.

‘‘आप कहना क्या चाहते हैं? साफसाफ कहिए,’’ रोशनी के आंसू सूख चुके थे.

‘‘मैं भी यही सम झता था,’’ गहरी सांस छोड़ते हुए राजीव बोला, ‘‘प्यार एक बार ही होता है… दिल एक बार ही धड़कता है. मैं अपनी पत्नी को बेहद चाहता था पर बेटी होने के दौरान उस की मृत्यु हो गई. ऐसा लगता था उस के अलावा मेरा दिल अब किसी के लिए नहीं धड़केगा पर जब…’’ कहतेकहते अचानक चुप

हो गया.

‘‘पर जब क्या?’’ जिज्ञासाभरी नजरों से रोशनी ने राजीव की तरफ देखा.

राजीव ने नजरें घुमा लीं.

‘‘क्या कोई और मिल गई?’’ बड़ीबड़ी आंखों से घूरते हुए वह बोली.

राजीव ने एक गहरी नजर रोशनी पर डाली और फिर कहा, ‘‘चलो, चलते हैं.’’

‘‘नहीं पहले बात खत्म करो,’’ कह रोशनी ने राजीव का हाथ कस कर पकड़ लिया.

‘‘चलो चलते हैं.’’

‘‘नहीं पहले बताओ.’’

‘‘क्या बताऊं. हां… होने लगा प्यार तुम से,’’ राजीव ने उत्तेजित हो कर कहा. आंसू निकल आए थे उस की आंखों से.

‘‘नहीं, यह नहीं हो सकता,’’ रोशनी के हाथ ढीले पड़ गए.

‘‘यह जरूरी नहीं कि जो मैं महसूस करता हूं तुम भी करो. इस सब से हमारी दोस्ती पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा,’’ कहते हुए उस ने गाड़ी स्टार्ट की.

दूसरे दिन दोनों ने औपचारिक बातें कीं. स्वयं को संयत कर लिया था दोनों ने.

2 दिन के दौरे पर रोशनी दूसरे शहर गई थी.

मां की तबीयत खराब होने की खबर सुन राजीव भी बैंगलुरु चला गया. इस बार अपनी बेटी को देख वह मुसकरा उठा. जाने क्यों विरक्ति नहीं लग रही थी. दिल बहुत शांत था. संजना की यादें सता नहीं रही थीं, बल्कि यह एहसास दिला रही थीं कि उस ने जितना भी जीवन जीया प्यार से जीया. संजना वजूद नहीं एक हिस्सा लग रही थी, जिसे वह हमेशा बना कर रखेगा.

मां भी राजीव को देख आश्चर्यचकित थीं. उन्हें लगा जैसे पहले वाला राजीव उन्हें वापस मिल गया है. बेटे को प्रसन्न व शांत देख वे जल्द ही स्वस्थ हो गईं. पहली बार वह अपनी बेटी को बाहर घुमाने ले गया. जैसे बेटी से परिचय ही अभी हुआ हो. वहीं स्कूल में दाखिला भी करा दिया. 1 सप्ताह वहां रह वह मुंबई लौट आया.

सुबह जब राजीव नहा रहा था तब बारबार दरवाजे की घंटी बज रही थी.

‘‘कौन है जो इतनी बेचैनी से घंटी बजाए जा रहा है?’’ बाथ गाउन पहने वह बाहर निकला.

दरवाजा खोलते ही रोशनी तेजी से अंदर आ कर चीखने लगी, ‘‘कहां गए थे आप? बता कर भी नहीं गए? फोन नंबर भी नहीं दिया… आप को पता है मेरी क्या हालत हुई? मैं सोचसोच कर मरे जा रही थी… कहीं आप भी मु झे छोड़ कर तो नहीं चले गए? यों तो कहते हो प्यार करने लगा और ऐसे कोई परवाह ही नहीं,’’ और कहतेकहते वह रो पड़ी.

मुसकराते हुए राजीव ने रोशनी को बांहों में ले लिया. अब रोशनी को भी एहसास हो चुका था कि प्यार दोबारा भी होता है. ‘‘इस बार अपनी बेटी को देख वह मुसकरा उठा.

जाने क्यों विरक्ति नहीं लग रही थी. दिल बहुत शांत लग रहा था…’’

पाक मुहब्बत : इश्क का मुश्किल इम्तिहान

अहसान और परवीन की मुहब्बत इतनी पाक थी कि उन दोनों ने तकरीबन 7 साल साथसाथ गुजारे थे. वे दोनों एकदूसरे को दिल की गहराइयों से चाहते थे, पर उन्होंने मन ही मन ठान लिया था कि जब तक उन का निकाह नहीं होता, तब तक वे एकदूसरे के जिस्म को नहीं छुएंगे.

उस समय अहसान की उम्र महज 17 साल थी. तब वह अपनी चाची के घर उन के साथ रह रहा था, चाची उस पर अपनी जान छिड़कती थीं.

परवीन भी अकसर अहसान की चाची के घर आतीजाती रहती थी. परवीन और कोई नहीं, बल्कि अहसान की चाची की छोटी बहन थी, जो महज 16 साल की एक खूबसूरत लड़की थी. उस की नीली आंखें ऐसी लगती थीं, मानो कोई अंगरेज हो. गोरा बदन, बड़ीबड़ी आंखें, सुनहरे बाल उस की खूबसूरती में चार चांद लगाते थे.

एक दिन अहसान अपनी चाची से बातें कर रहा था कि तभी वहां परवीन भी आ गई.

चाची अचानक से बोलीं, ‘‘अहसान, तुझे परवीन कैसी लगती है?’’

अहसान ने कहा, ‘‘बहुत अच्छी.’’

चाची बोलीं, ‘‘मै चाहती हूं कि तेरी शादी परवीन से हो जाए.’’

अहसान ने शरमाते हुए कहा, ‘‘मुझे इस में कोई एतराज नहीं है चाची.’’

इतना सुन कर पास बैठी परवीन भी शरमा गई और तिरछी निगाहों से अहसान को देखते हुए अपने प्यार का इजहार करने लगी.

अहसान की चाची ने परवीन से पूछा, ‘‘क्यों परवीन, क्या तू चाहती है कि तेरी शादी अहसान से हो जाए?’’

परवीन शरमाते हुए बोली, ‘‘बाजी, आप की जो मरजी, भला मुझे क्या एतराज होगा.’’

उस दिन से परवीन और अहसान एकदूसरे को दिल की गहराइयों से चाहने लगे और अपनी शादी के सपने संजोने लगे. दोनों अकसर अकेले घूमने जाने लगे, जिस पर चाची को कोई एतराज नहीं था. फिर वे दोनों बालिग हो गए.

अब परवीन पर शादी करने का दबाव बढ़ने लगा था, जबकि अहसान अभी भी पढ़ाई में उलझ हुआ था. वह बीकौम कर रहा था.

जब परवीन को इस बात का पता चला कि उस के लिए रिश्ता ढूंढ़ा जा रहा है, तो उस ने अपनी बड़ी बहन से अपने दिल की बात कहते हुए कहा, ‘‘आप तो कह रही थीं कि मेरी शादी अहसान से कराओगी, फिर क्यों मेरे लिए रिश्ता ढूंढ़ा जा रहा है?’’

परवीन की बाजी बोलीं, ‘‘अहसान से तेरी शादी कैसे हो सकती है… अभी वह पढ़ रहा है. कुछ कमाता है नहीं, कैसे तेरे खर्चे उठाएगा?’’

परवीन ने कहा, ‘‘कुछ भी करो, पर मेरी शादी अहसान से करा दो. मैं उस के सिवा किसी और से शादी नहीं करूंगी. मैं ने उसे अपना सबकुछ मान लिया है. अब इस दिल में उस के सिवा किसी और का खयाल करना भी मेरे लिए बड़ा मुश्किल है.’’

अगले दिन परवीन ने सारी बात अहसान को बता दी और बोली, ‘‘मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती. तुम कुछ भी करो, क्योंकि मैं किसी गैर से शादी नहीं कर सकती.’’

अहसान बोला, ‘‘तुम फिक्र मत करो. मैं चाची से बात करता हूं. वे मेरी बात जरूर मानेंगी और मुझे कुछ काम करने का थोड़ा समय भी दे देंगी. मैं अपने पैरों पर खड़ा हो कर तुम से शादी कर लूंगा.’’

अहसान ने अगले ही दिन चाची से कहा, ‘‘चाची, आप ने मेरी शादी की बात परवीन से की थी. मैं उसे दिलोजान से चाहता हूं. मैं उस के बगैर नहीं रह सकता.’’

चाची बोलीं, ‘‘प्यार से पेट नहीं भरता, बल्कि जिंदगी जीने के लिए पैसों की जरूरत पड़ती है. जब पेट की भूख बढ़ती है, तो प्यार का सारा भूत उतर जाता है.’’

अहसान बोला, ‘‘मैं मेहनतमजदूरी कर के उस का पेट भरूंगा. उसे किसी चीज की कमी नहीं होने दूंगा.’’

चाची ने कहा, ‘‘मेहनतमजदूरी कर के एक वक्त का खाना खा सकते हो, अच्छी जिंदगी नहीं गुजार सकते. जिंदगी जीने के लिए पैसा चाहिए और मेरे अम्मीअब्बा कभी भी एक बेरोजगार से परवीन की शादी करने को कभी तैयार नहीं होंगे.’’

अहसान गिड़गिड़ाने लगा, ‘‘आप कोशिश तो करो. मुझे कुछ समय दे दो. प्लीज, मेरी खाली झाली में मेरा प्यार परवीन डाल दो.’’

चाची बोलीं, ‘‘बहुत मुश्किल है. पहले तुम कामयाब हो जाओ, उस के बाद परवीन से शादी करने का खयाल करना.’’

‘‘ठीक है चाची, मैं अगले 2 साल के अंदर एक कामयाब इनसान बन कर ही आऊंगा. मैं कल ही काम की तलाश में मुंबई जाता हूं,’’ अहसान बोला.

अगले ही दिन अहसान 2 साल का समय ले कर मुंबई चला गया और वहां उस ने अपनी जानपहचान के लोगों से काम की बात की, तो उसे एक बेकरी में हिसाबकिताब का काम मिल गया और 4,000 रुपए महीने की नौकरी पर उस ने वहां काम करना शुरू कर दिया.

6 महीने की कड़ी मेहनत के बाद अहसान ने 20,000 रुपए जोड़ लिए और अपनी चाची से फोन कर के सब बता दिया.

चाची बोलीं, ‘‘बहुत अच्छा है, पर 4,000 रुपए महीना कमाने से घर नहीं चलेगा. मेरे घर वाले इतना कम कमाने वाले से शादी नहीं करेंगे.’’

अहसान बोला, ‘‘अभी मेरे वादे के डेढ़ साल बाकी हैं. मैं इन डेढ़ साल के अंदर अच्छा पैसा कमाने वाला बन कर दिखाऊंगा.’’

चाची ने कहा, ‘‘ठीक है, पहले कामयाब बनो, तब बात करना. उस से पहले तुम मुझ से परवीन के बारे में कोई बात नहीं करोगे.’’

अहसान बोला, ‘‘ठीक है, चाची.’’

समय गुजरता गया. अहसान मेहनत और लगन से काम करता रहा. उसे काम करतेकरते डेढ़ साल हो गया. उस की मेहनत और लगन से खुश हो कर उस के मालिक ने पूछा, ‘‘क्या तुम हमारे साथ एक बेकरी में सा?ोदारी करोगे?’’

अहसान बोला, ‘‘मेरे पास अभी पैसा नहीं है. बड़ी मुश्किल से 70,000 रुपए ही जोड़ पाया हूं.’’

मालिक बोले, ‘‘ठीक है, बाकी पैसा मैं लगा दूंगा. एक बेकरी किराए पर मिल रही है. 30,000 रुपए महीना किराया है, ऊपर का जो खर्च होगा, वह तकरीबन 3 लाख रुपए है.

3 पार्टनर मिल कर इस बेकरी को ले लेते हैं. तुम ईमानदारी और जिम्मेदारी से उसे चलाना. जो बचत होगी, उसे तीनों आपस में बांट लेंगे.’’

अहसान बोला, ‘‘ठीक है, मैं तैयार हूं.’’

अगले ही दिन वह बेकरी किराए पर ले ली गई. अहसान को उस की जिम्मेदारी दे दी गई.

अहसान की मेहनत रंग लाई और 3 महीने में ही उस बेकरी में 2 लाख रुपए हर महीने की बचत होने लगी.

अहसान के ऊपर जो कर्जा हो गया था, वह भी उतर गया था और अब वह तकरीबन 60,000 रुपए हर महीने कमाने लगा था.

2 साल पूरे होने में अभी 15 दिन बाकी थे. अहसान ने गांव जाने का इरादा किया और एक महीने के लिए बेकरी पर अपने पार्टनर को बैठा कर वह गांव चला गया.

गांव पहुंचते ही अहसान सब से पहले अपनी चाची के घर गया और बोला, ‘‘चाची, मैं अब 60,000 रुपए महीना कमाने लगा हूं, जिस से मैं परवीन को सारी खुशियां दे सकता हूं. अब आप अपने वादे के मुताबिक मेरी शादी परवीन से करा कर उसे मेरी झाली में डाल दो.’’

यह सुन कर चाची बोलीं, ‘‘परवीन की शादी तो एक साल पहले ही कर दी गई है. उस के एक बेटा भी हो गया है. उस का शौहर भी मुंबई में रहता है और महीने में 15,000 रुपए कमा लेता है.’’

अहसान ने जैसे परवीन की शादी की बात सुनी, तो उस का खून खुश्क हो गया. उस के दिल की धड़कन जहां की तहां थम गई. उस ने जिस लड़की को पाने के लिए अपनी पढ़ाई कुरबान कर दी थी, जिस के लिए वह अपना गांव छोड़ कर पैसा कमाने के लिए मुंबई चला गया था, वापस आने से पहले ही उस के सपने चूर हो कर रह गए.

अहसान का दिल पूरी तरह टूट चुका था. उस ने दबे लहजे में अपनी चाची से कहा, ‘‘चाची, आप को भी थोड़ा सब्र नहीं हुआ. मेरे दिल के टुकड़े को किसी दूसरे के हवाले करते हुए आप का दिल नहीं धड़का.’’

चाची बोलीं, ‘‘हमें क्या पता था कि तू 2 साल में कामयाब हो जाएगा. हम ने सोचा था कि अगर तू कामयाब न हुआ, तो परवीन को जिंदगीभर तेरे इंतजार में थोड़ा बिठाए रखेंगे, इसलिए हमें रिश्ता अच्छा लगा तो हम ने उस की शादी कर दी. मेरी बात मान, तू भी कोई अच्छी सी लड़की देख कर शादी कर ले.’’

कुछ दिनों के बाद अहसान ने भी शादी कर ही ली. वह अपनी पुरानी जिंदगी भूल कर नई जिंदगी की शुरुआत करने में मशगूल हो गया. दिन बीतते गए.

एक बार अहसान ‘महाराष्ट्र संपर्क क्रांति’ ट्रेन से मुंबई जाने के लिए जैसे ही बोगी नंबर एस 5 की बर्थ नंबर 32 पर पहुंचा, तो वहां परवीन को देख कर दंग रह गया.

परवीन बर्थ नंबर 31 पर अपने 4 महीने के बेटे के साथ बैठी थी. जैसे ही दोनों की नजर एकदूसरे पर पड़ी, तो हैरान रह गए.

अहसान परवीन से बोला, ‘‘तुम भी मुंबई जा रही हो क्या परवीन?’’

‘‘हां, मेरे शौहर को 2 महीने के लिए उन के दोस्त का कमरा मिला था, तो उन्होंने मुझे अपने पास मुंबई बुला लिया है. वे बांद्रा स्टेशन पर आ कर मुझे ले जाएंगे.’’

अहसान ने कहा, ‘‘बहुत जल्दी की तुम ने शादी करने में, थोड़ा इंतजार कर लेती.’’

परवीन बोली, ‘‘वह एक साल मैं ने तुम्हारी याद में कैसे गुजारा था, मैं ही जानती हूं. तुम्हारा न कुछ अतापता था और न ही कोई मोबाइल नंबर. तब बाजी बोलीं कि क्यों उस की याद में परेशान होती है. अम्मी की तबीयत भी ठीक नहीं है. एक रिश्ता आया है.

‘‘अम्मी की तमन्ना थी कि उन के जीतेजी मेरी शादी हो जाए, तो मैं ने हां कर दी और मेरी शादी के एक महीने बाद ही वे चल बसीं.’’

अहसान ने कहा, ‘‘मेरा खयाल नहीं आया कि जब मैं तुम्हारी शादी की खबर सुनूंगा, तो मुझे पर क्या बीतेगी? मैं ने तुम्हारी बाजी से कामयाब होने के लिए 2 साल का समय मांगा था और मैं कामयाब हो कर तुम्हारी बाजी के पास गया, तो मुझे पता चला कि तुम ने शादी कर ली है. यह सुनते ही मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी दुनिया ही उजड़ गई है.’’

परवीन ने कहा, ‘‘अहसान, मुझे माफ कर देना. मैं मजबूर थी.’’

अहसान बोला, ‘‘चलो, छोड़ो पुरानी बातें… और सुनाओ, घर में सब कैसे हैं?’’

परवीन ने कहा, ‘‘सब सही है, पर जिस कमाऊ लड़के के चक्कर में घर वालों ने मेरी शादी की, वह बहुत गुस्से वाला है और हर समय घर पर ही पड़ा रहता है. सालभर में 6 महीने ही काम करता है,’’ यह कहतेकहते वह रोने लगी.

इस के बाद बात करतेकरते कब समय निकल गया, कुछ पता ही नहीं चला. रात के 10 बज गए थे.

तभी परवीन बोली, ‘‘बहुत दिन गुजर गए एकसाथ खाना खाए. चलो, खाना खाते हैं.’’

दोनों ने एकसाथ खाना निकाल कर सीट पर रख लिया. तभी परवीन ने हाथ बढ़ा कर पहला निवाला अहसान को खिलाते हुए कहा, ‘‘आज तो खाना मेरे हाथ से ही खाना पड़ेगा.’’

यह सुनते ही अहसान की आंखों में आंसू आ गए और उस ने भी अपने हाथों से परवीन को खाना खिलाना शुरू कर दिया.

रात के 12 बज चुके थे. पूरे डब्बे के मुसाफिर सो गए थे. बस, अहसान और परवीन जाग रहे थे कि तभी परवीन ने अहसान को जगह देते हुए कहा, ‘‘तुम आराम से यहीं सो जाओ.’’

अहसान चौंका और सोने के इरादे से अपने बैग से चादर निकालने लगा. जैसे ही उस ने अपनी चादर निकाली, उस में से एक छोटा टैडी बीयर निकल कर अहसान के पास आ गिरा.

जैसे ही अहसान ने उसे उठाया, उस में एक परचा लगा था, जिस में उस की बीवी ने बड़े प्यार से प्यारभरी बातें लिखी थीं और आखिर में ‘आई लव यू’ लिखा था, जिसे देखते ही अहसान की आंखें भर आईं और वह उसे अपने सीने से लगा कर ऊपर वाली बर्थ पर ही लेट गया.

परवीन ने उसे आवाज दी और कहा, ‘‘नीचे आ कर यहां सो जाओ.’’

पर अहसान नीचे नहीं आया और बोला, ‘‘तुम सो जाओ. मैं यहीं सो रहा हूं.’’

दरअसल, अहसान के सामने उस की बीवी का प्यारभरा लव लैटर आ गया था, जिसे देख कर उसे अहसास हो गया था कि परवीन के पास जा कर सोना अपनी बीवी का साथ गद्दारी करना है, उसे धोखा देना है, जबकि परवीन अब एक पराई औरत है.

अपनी बीवी को याद करतेकरते कब अहसान की आंख लग गई, उसे पता ही न चला. सुबह जब आंख खुली, तो उस ने अपनेआप को बांद्रा स्टेशन पर पाया. ट्रेन मुंबई आ चुकी थी. अहसान जल्दी से उठा और नीचे उतर आया.

परवीन ने पूछा, ‘‘क्या बात है, तुम रात को नीचे नहीं आए?’’

अहसान टालते हुए बोला, ‘‘मेरी आंख लग गई थी.’’

दोनों ने जल्दीजल्दी अपना सामान एक साइड में किया. थोड़ी देर बाद परवीन बोली, ‘‘पता नहीं, अब कभी हमारी मुलाकात होगी या नहीं. अच्छा, अपना मोबाइल नंबर तो दे दो.’’

अहसान ने परवीन को अपना मोबाइल नंबर दे दिया और दोनों का सामान वह गाड़ी से नीचे उतारने लगा.

प्लेटफार्म से बाहर निकलते ही परवीन का शौहर आ गया और आटोरिकशा में बैठा कर उसे ले जाने लगा.

परवीन हसरतभरी निगाहों से अहसान को देखती रही. थोड़ी ही देर में दोनों एकदूसरे की आंखों से ओझल हो गए.

अहसान ने मुंबई आ कर अपना काम संभाल लिया और खूब तरक्की की. कुछ ही दिनों में अहसान ने भी अपनी बीवी को मुंबई बुला लिया.

एक दिन अहसान ने अपनी चाची को फोन किया और उन की खबर जाननी चाही, तो उन्होंने बताया, ‘‘परवीन मायके में आ कर रह रही है. उस का शौहर उसे जानवरों की तरह मारतापीटता है. कुछ कामकाज भी नहीं करता है. और तू सुना क्या हाल हैं तेरे?’’

‘‘मैं 2 बेकरी चला रहा हूं. अब महीने के एक लाख रुपए कमाता हूं. बीवी भी खुश है. एक बेटी का बाप बन गया हूं.’’

चाची बोलीं, ‘‘तू ने वह कर दिखाया है, जिस की हमें उम्मीद भी नहीं थी. काश, हम समय रहते तुझे समझ पाते और परवीन से ही तेरी शादी करा देते, तो आज परवीन इस तरह की परेशानियों में न घिरी होती.’’

अहसान ने परवीन के बारे में इतना सुन कर फोन रख दिया.

एक दिन अहसान के फोन की घंटी बजी. उस ने फोन उठाया, तो दूसरी तरफ से परवीन के बोलने की आवाज आई, ‘‘अहसान, मैं अब उस जालिम के साथ नहीं रहूंगी, जो मुझे जानवरों की तरह मारतापीटता है, खाने को भी नहीं देता. कुछ कमाता ही नहीं, बस रातदिन दोस्तों के साथ घूमता फिरता है. उस ने मेरी जिंदगी नरक बना दी है. अहसान, अगर मैं उस से तलाक ले लूंगी, तो क्या तुम मुझ से शादी करोगे?’’

अहसान ने कहा, ‘‘कैसी बात कर रही हो तुम? ऐसा कुछ मत करो. अपने घर वालों से कहो कि उसे प्यार से सम?ाएं और उसे कोई काम करा दें, ताकि उस की कुछ इनकम होने लगे.

‘‘यह तो सोचो कि तुम्हारे पास अब उस का एक बेटा भी है. क्यों उसे उस के बाप से अलग करना चाहती हो? जल्दबाजी में कोई ऐसा कदम मत उठाना, जिस की वजह से बाद में परेशानी हो.’’

परवीन बोली, ‘‘मैं तुम से मशवरा नहीं मांग रही, बल्कि मैं तो यह कह रही हूं कि अगर मैं उस से तलाक ले लूं, तो क्या तुम मुझे अपनाओगे?’’

अहसान ने कहा, ‘‘ऐसा कैसे हो सकता है… मेरी भी बीवी है, बच्ची है, जिन्हें मैं बहुत प्यार करता हूं. तुम समझती क्यों नहीं…’’

परवीन गुस्से में बोली, ‘‘इस का मतलब यह है कि तुम मुझ से प्यार नहीं करते थे और न ही करते हो…’’

अहसान बोला, ‘‘मैं सिर्फ तुम से ही प्यार करता था, पर अब अपने बीवीबच्चों से प्यार करता हूं.

हां, तुम से अब वह प्यार नहीं करता, जो तुम सोच रही हो, क्योंकि अब तुम भी किसी दूसरे की

अमानत हो और मैं भी. अब सिर्फ हम एक अच्छे दोस्त हैं.’’

परवीन गुस्से में बोली, ‘‘ठीक है, तुम से ही उम्मीद थी कि तुम मुझे अपनाओगे, पर जब तुम ही पराए हो गए तो किसी और से क्या उम्मीद की जाए,’’ कहते हुए उस ने फोन रख दिया.

अहसान भी अपने काम में मसरूफ हो गया. रहरह कर उसे परवीन के कहे शब्द सता रहे थे, पर वह अब उसे कैसे अपना सकता था, क्योंकि उस की बीवी थी, बच्ची थी, जिन्हें वह धोखा नहीं दे सकता था

एक दिन अहसान की चाची का फोन आया और उन्होंने उसे एक दुखभरी बात बताई, जिसे सुन कर अहसान के होश ही उड़ गए.

चाची ने बताया, ‘‘परवीन अब इस दुनिया में नहीं रही. उसे अचानक सीने में दर्द हुआ, फिर जल्दबाजी में उसे हौस्पिटल ले जाया गया, पर वहां पहुंचतेपहुंचते उस की मौत हो गई.’’

यह सुनते ही अहसान को बड़ा धक्का लगा. देखते ही देखते उस की पाक मुहब्बत, जिसे वह सच्चे दिल से चाहता था, आज इस दुनिया में नहीं थी.

अहसान कई दिनों तक परवीन के गम में दुखी रहा. उसे न तो खाना अच्छा लगा और न ही कोई काम. उस की आंखों से नींद कोसों दूर थी. वह यही सोच कर बेचैन हो रहा था कि कहीं परवीन की मौत का जिम्मेदार वह तो नहीं, क्योंकि आखिरी समय में परवीन ने उस से प्यार मांगा था, पर अपने बीवीबच्चों के होते हुए उस ने उस के प्यार को ठुकरा दिया था.

इश्क के चक्कर में : किस ने रची थी वह खतरनाक साजिश

मेरे मुवक्किल रियाज पर नादिर के कत्ल का इलजाम था. इस मामले को अदालत में पहुंचे करीब 3 महीने हो चुके थे, पर बाकायदा सुनवाई आज हो रही थी. अभियोजन पक्ष की ओर से 8 गवाह थे, जिन में पहला गवाह सालिक खान था. सच बोलने की कसम खाने के बाद उस ने अपना बयान रिकौर्ड कराया.

सालिक खान भी वहीं रहता था, जहां मेरा मुवक्किल रियाज और मृतक नादिर रहता था. रियाज और नादिर एक ही बिल्डिंग में रहते थे. वह तिमंजिला बिल्डिंग थी. सालिक खान उसी गली में रहता था. गली के नुक्कड़ पर उस की पानसिगरेट की दुकान थी.

भारी बदन के सालिक की उम्र 46-47 साल थी. अभियोजन पक्ष के वकील ने उस से मेरे मुवक्किल की ओर इशारा कर के पूछा, ‘‘सालिक खान, क्या आप इस आदमी को जानते हैं?’’

‘‘जी साहब, अच्छी तरह से जानता हूं.’’

‘‘यह कैसा आदमी है?’’

‘‘हुजूर, यह आवारा किस्म का बहुत झगड़ालू आदमी है. इस के बूढ़े पिता एक होटल में बैरा की नौकरी करते हैं. यह सारा दिन मोहल्ले में घूमता रहता है. हट्टाकट्टा है, पर कोई काम नहीं करता.’’

‘‘क्या यह गुस्सैल प्रवृत्ति का है?’’ वकील ने पूछा.

‘‘जी, बहुत ही गुस्सैल स्वभाव का है. मेरी दुकान के सामने ही पिछले हफ्ते इस की नादिर से जम कर मारपीट हुई थी. दोनों खूनखराबे पर उतारू थे. इस से यह तो नहीं होता कि कोई कामधाम कर के बूढ़े बाप की मदद करे, इधरउधर लड़ाईझगड़ा करता फिरता है.’’

‘‘क्या यह सच है कि उस लड़ाई में ज्यादा नुकसान इसी का हुआ था. इस के चेहरे पर चोट लगी थी. उस के बाद इस ने क्या कहा था?’’ वकील ने मेरे मुवक्किल की ओर इशारा कर के पूछा.

‘‘इस ने नादिर को धमकाते हुए कहा था कि यह उसे किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ेगा. इस का अंजाम उसे भुगतना ही पड़ेगा. इस का बदला वह जरूर लेगा.’’

इस के बाद अभियोजन के वकील ने कहा, ‘‘दैट्स आल हुजूर. इस धमकी के कुछ दिनों बाद ही नादिर की हत्या कर दी गई, इस से यही लगता है कि यह हत्या इसी आदमी ने की है.’’

उस के बाद मैं गवाह से पूछताछ करने के लिए आगे आया. मैं ने पूछा, ‘‘सालिक साहब, क्या आप शादीशुदा हैं?’’

‘‘जी हां, मैं शादीशुदा ही नहीं, मेरी 2 बेटियां और एक बेटा भी है.’’

‘‘क्या आप की रियाज से कोई व्यक्तितगत दुश्मनी है?’’

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है.’’

‘‘तब आप ने उसे कामचोर और आवारा क्यों कहा?’’

‘‘वह इसलिए कि यह कोई कामधाम करने के बजाय दिन भर आवारा घूमता रहता है.’’

‘‘लेकिन आप की बातों से तो यही लगता है कि आप रियाज से नफरत करते हैं. इस की वजह यह है कि रियाज आप की बेटी फौजिया को पसंद करता है. उस ने आप के घर फौजिया के लिए रिश्ता भी भेजा था. क्या मैं गलत कह रहा हूं?’’

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. हां, उस ने फौजिया के लिए रिश्ता जरूर भेजा था, पर मैं ने मना कर दिया था.’’ सालिक खान ने हकलाते हुए कहा.

‘‘आप झूठ बोल रहे हैं सालिक खान, आप ने इनकार नहीं किया था, बल्कि कहा था कि आप पहले बड़ी बेटी शाजिया की शादी करना चाहते हैं. अगर रियाज शाजिया से शादी के लिए राजी है तो यह रिश्ता मंजूर है. चूंकि रियाज फौजिया को पसंद करता था, इसलिए उस ने शादी से मना कर दिया था. यही नहीं, उस ने ऐसी बात कह दी थी कि आप को गुस्सा आ गया था. आप बताएंगे, उस ने क्या कहा था?’’

‘‘उस ने कहा था कि शाजिया सुंदर नहीं है, इसलिए वह उस से किसी भी कीमत पर शादी नहीं करेगा.’’

‘‘…और उसी दिन से आप रियाज से नफरत करने लगे थे. उसे धोखेबाज, आवारा और बेशर्म कहने लगे. इसी वजह से आज उस के खिलाफ गवाही दे रहे हैं.’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है. मैं ने जो देखा था, वही यहां बताया है.’’

‘‘क्या आप को यकीन है कि रियाज ने जो धमकी दी थी, उस पर अमल कर के नादिर का कत्ल कर दिया है?’’

‘‘मैं यह यकीन से नहीं कह सकता, क्योंकि मैं ने उसे कत्ल करते नहीं देखा.’’

‘‘मतलब यह कि सब कुछ सिर्फ अंदाजे से कह रहे हो?’’

मैं ने सालिक खान से जिरह खत्म कर दी. रियाज और मृतक नादिर गोरंगी की एक तिमंजिला बिल्डिंग में रहते थे, जिस की हर मंजिल पर 2 छोटेछोटे फ्लैट्स बने थे. नादिर अपने परिवार के साथ दूसरी मंजिल पर रहता था, जबकि रियाज तीसरी मंजिल पर रहता था.

रियाज मांबाप की एकलौती संतान था. उस की मां घरेलू औरत थी. पिता एक होटल में बैरा थे. उस ने इंटरमीडिएट तक पढ़ाई की थी. वह आगे पढ़ना चाहता था, पर हालात ऐसे नहीं थे कि वह कालेज की पढ़ाई करता. जाहिर है, उस के बाप अब्दुल की इतनी आमदनी नहीं थी. वह नौकरी ढूंढ रहा था, पर कोई ढंग की नौकरी नहीं मिल रही थी, इसलिए इधरउधर भटकता रहता था.

बैरा की नौकरी वह करना नहीं चाहता था. अब उस पर नादिर के कत्ल का आरोप था. मृतक नादिर बिलकुल पढ़ालिखा नहीं था. वह अपने बड़े भाई माजिद के साथ रहता था. मांबाप की मौत हो चुकी थी. माजिद कपड़े की एक बड़ी दुकान पर सेल्समैन था. वह शादीशुदा था. उस की बीवी आलिया हाउसवाइफ थी. उस की 5 साल की एक बेटी थी. माजिद ने अपने एक जानने वाले की दुकान पर नादिर को नौकरी दिलवा दी थी. नादिर काम अच्छा करता था. उस का मालिक उस पर भरोसा करता था. नादिर और रियाज के बीच कोई पुरानी दुश्मनी नहीं थी.

अगली पेशी के पहले मैं ने रियाज और नादिर के घर जा कर पूरी जानकारी हासिल  कर ली थी. रियाज का बाप नौकरी पर था. मां नगीना से बात की. वह बेटे के लिए बहुत दुखी थी. मैं ने उसे दिलासा देते हुए पूछा, ‘‘क्या आप को पूरा यकीन है कि आप के बेटे ने नादिर का कत्ल नहीं किया?’’

‘‘हां, मेरा बेटा कत्ल नहीं कर सकता. वह बेगुनाह है.’’

‘‘फिर आप खुदा पर भरोसा रखें. उस ने कत्ल नहीं किया है तो वह छूट जाएगा. अभी तो उस पर सिर्फ आरोप है.’’

नगीना से मुझे कुछ काम की बातें पता चलीं, जो आगे जिरह में पता चलेंगी. मैं रियाज के घर से निकल रहा था तो सामने के फ्लैट से कोई मुझे ताक रहा था. हर फ्लैट में 2 कमरे और एक हौल था. इमारत का एक ही मुख्य दरवाजा था. हर मंजिल पर आमनेसामने 2 फ्लैट्स थे. एक तरफ जीना था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, 17 अप्रैल की रात 2 बजे के करीब नादिर की हत्या हुई थी. उसे इसी बिल्डिंग की छत पर मारा गया था. उस की लाश पानी की टंकी के करीब एक ब्लौक पर पड़ी थी. उस की हत्या बोल्ट खोलने वाले भारी रेंच से की गई थी.

अगली पेशी पर अभियोजन पक्ष की ओर से कादिर खान को पेश किया गया. कादिर खान भी उसी बिल्डिंग में रहता था. बिल्डिंग के 5 फ्लैट्स में किराएदार रहते थे और एक फ्लैट में खुद मकान मालिक रहता था. अभियोजन के वकील ने कादिर खान से सवालजवाब शुरू किए.

लाश सब से पहले उसी ने देखी थी. उस की गवाही में कोई खास बात नहीं थी, सिवाय इस के कि उस ने भी रियाज को झगड़ालू और गुस्सैल बताया था. मैं ने पूछा, ‘‘आप ने मुलाजिम रियाज को गुस्सैल और लड़ाकू कहा है, इस की वजह क्या है?’’

‘‘वह है ही झगड़ालू, इसलिए कहा है.’’

‘‘आप किस फ्लैट में कब से रह रहे हैं?’’

‘‘मैं 4 नंबर फ्लैट में 4 सालों से रह रहा हूं.’’

‘‘इस का मतलब दूसरी मंजिल पर आप अकेले ही रहते हैं?’’

‘‘नहीं, मेरे साथ बीवीबच्चे भी रहते हैं.’’

‘‘जब आप बिल्डिंग में रहने आए थे तो रियाज आप से पहले से वहां रह रहा था?’’

‘‘जी हां, वह वहां पहले से रह रहा था.’’

‘‘कादिर खान, जिस आदमी से आप का 4 सालों में एक बार भी झगड़ा नहीं हुआ, इस के बावजूद आप उसे झगड़ालू कह रहे हैं, ऐसा क्यों?’’

‘‘मुझ से झगड़ा नहीं हुआ तो क्या हुआ, वह झगड़ालू है. मैं ने खुद उसे नादिर से लड़ते देखा है. दोनों में जोरजोर से झगड़ा हो रहा था. बाद में पता चला कि उस ने नादिर का कत्ल कर दिया.’’

‘‘क्या आप बताएंगे कि दोनों किस बात पर लड़ रहे थे?’’

‘‘नादिर का कहना था कि रियाज उस के घर के सामने से गुजरते हुए गंदेगंदे गाने गाता था. जबकि रियाज इस बात को मना कर रहा था. इसी बात को ले कर दोनों में झगड़ा हुआ था. लोगों ने बीचबचाव कराया था.’’

‘‘और अगले दिन बिल्डिंग की छत पर नादिर की लाश मिली थी. उस की लाश आप ने सब से पहले देखी थी.’’

एक पल सोच कर उस ने कहा, ‘‘हां, करीब 9 बजे सुबह मैं ने ही देखी थी.’’

‘‘क्या आप रोज सवेरे छत पर जाते हैं?’’

‘‘नहीं, मैं रोज नहीं जाता. उस दिन टीवी साफ नहीं आ रहा था. मुझे लगा कि केबल कट गया है, यही देखने गया था.’’

‘‘आप ने छत पर क्या देखा?’’

‘‘जैसे ही मैं ने दरवाजा खोला, मेरी नजर सीधे लाश पर पड़ी. मैं घबरा कर नीचे आ गया.’’

‘‘कादिर खान, दरवाजा और लाश के बीच कितना अंतर रहा था?’’

‘‘यही कोई 20-25 फुट का. ब्लौक पर नादिर की लाश पड़ी थी. उस की खोपड़ी फटी हुई थी.’’

‘‘नादिर की लाश के बारे में सब से पहले आप ने किसे बताया?’’

‘‘दाऊद साहब को बताया था. वह उस बिल्डिंग के मालिक हैं.’’

‘‘बिल्डिंग के मालिक, जो 5 नंबर फ्लैट में रहते हैं?’’

‘‘जी, मैं ने उन से छत की चाबी ली थी, छत की चाबी उन के पास ही रहती है.’’

‘‘उस दिन छत का दरवाजा तुम्हीं ने खोला था?’’

‘‘जी साहब, ताला मैं ने ही खोला था?’’

‘‘ताला खोला तो ब्लौक पर लाश पड़ी दिखाई दी. जरा छत के बारे में विस्तार से बताइए?’’

‘‘पानी की टंकी छत के बीच में है. टंकी के करीब छत पर 15-20 ब्लौक लगे हैं, जिन पर बैठ कर कुछ लोग गपशप कर सकते हैं.’’

‘‘अगर ताला तुम ने खोला तो मृतक आधी रात को छत पर कैसे पहुंचा?’’

‘‘जी, यह मैं नहीं बता सकता. दाऊद साहब को जब मैं ने लाश के बारे में बताया तो वह भी हैरान रह गए.’’

‘‘बात नादिर के छत पर पहुंचने भर की नहीं है, बल्कि वहां उस का बेदर्दी से कत्ल भी कर दिया गया. नादिर के अलावा भी कोई वहां पहुंचा होगा. जबकि चाबी दाऊद साहब के पास थी.’’

‘‘दाऊद साहब भी सुन कर हैरान हो गए थे. वह भी मेरे साथ छत पर गए. इस के बाद उन्होंने ही पुलिस को फोन किया.’’

इसी के बाद जिरह और अदालत का वक्त खत्म हो गया.

मुझे तारीख मिल गई. अगली पेशी पर माजिद की गवाही शुरू हुई. वह सीधासादा 40-42 साल का आदमी था. कपड़े की दुकान पर सेल्समैन था. फ्लैट नंबर 2 में रहता था. उस ने कहा कि नादिर और रियाज के बीच काफी तनाव था. दोनों में झगड़ा भी हुआ था. यह कत्ल उसी का नतीजा है.

अभियोजन के वकील ने सवाल कर लिए तो मैं ने पूछा, ‘‘आप का भाई कब से कब तक अपनी नौकरी पर रहता था?’’

‘‘सुबह 11 बजे से रात 8 बजे तक. वह 9 बजे तक घर आ जाता था.’’

‘‘कत्ल वाले दिन वह कितने बजे घर आया था?’’

‘‘उस दिन मैं घर आया तो वह घर पर ही मौजूद था.’’

‘‘माजिद साहब, पिछली पेशी पर एक गवाह ने कहा था कि उस दिन शाम को उस ने नादिर और रियाज को झगड़ा करते देखा था. क्या उस दिन वह नौकरी पर नहीं गया था?’’

‘‘नहीं, उस दिन वह नौकरी पर गया था, लेकिन तबीयत ठीक न होने की वजह से जल्दी घर आ गया था.’’

‘‘घर आते ही उस ने लड़ाईझगड़ा शुरू कर दिया था?’’

‘‘नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं है. घर आ कर वह आराम कर रहा था, तभी रियाज खिड़की के पास खड़े हो कर बेहूदा गाने गाने लगा था. मना करने पर भी वह चुप नहीं हुआ. पहले भी इस बात को ले कर नादिर और उस में मारपीट हो चुकी थी. नादिर नाराज हो कर बाहर निकला और दोनों में झगड़ा और गालीगलौज होने लगी.’’

‘‘झगड़ा सिर्फ इतनी बात पर हुआ था या कोई और वजह थी?’’ मैं ने पूछा.

‘‘यह आप रियाज से ही पूछ लीजिए. मेरा भाई सीधासादा था, बेमौत मारा गया.’’ जवाब में माजिद ने कहा.

‘‘आप को लगता है कि रियाज ने धमकी के अनुसार बदला लेने के लिए तुम्हारे भाई का कत्ल कर दिया है.’’

‘‘जी हां, मुझे लगता नहीं, पूरा यकीन है.’’

‘‘जिस दिन कत्ल हुआ था, सुबह आप सो कर उठे तो आप का भाई घर पर नहीं था?’’

‘‘जब मैं सो कर उठा तो मेरी बीवी ने बताया कि नादिर घर पर नहीं है.’’

‘‘यह जान कर आप ने क्या किया?’’

‘‘हाथमुंह धो कर मैं उस की तलाश में निकला तो पता चला कि छत पर नादिर की लाश पड़ी है.’’

‘‘पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, नादिर का कत्ल रात 1 से 2 बजे के बीच हुआ था. क्या आप बता सकते हैं कि नादिर एक बजे रात को छत पर क्या करने गया था? आप ने जो बताया है, उस के अनुसार नादिर बीमार था. छत पर ताला भी लगा था. इस हालत में छत पर कैसे और क्यों गया?’’

‘‘मैं क्या बताऊं? मुझे खुद नहीं पता. अगर वह जिंदा होता तो उसी से पूछता.’’

‘‘वह जिंदा नहीं है, इसलिए आप को बताना पड़ेगा, वह ऊपर कैसे गया? क्या उस के पास डुप्लीकेट चाबी थी? उस ने मकान मालिक से चाबी नहीं ली तो क्या पीछे से छत पर पहुंचा?’’

‘‘नादिर के पास डुप्लीकेट चाबी नहीं थी. वह छत पर क्यों और कैसे गया, मुझे नहीं पता.’’

‘‘आप कह रहे हैं कि आप का भाई सीधासादा काम से काम रखने वाला था. इस के बावजूद उस ने गुस्से में 2-3 बार रियाज से मारपीट की. ताज्जुब की बात तो यह है कि रियाज की लड़ाई सिर्फ नादिर से ही होती थी. इस की एक खास वजह है, जो आप बता नहीं रहे हैं.’’

‘‘कौन सी वजह? मैं कुछ नहीं छिपा रहा हूं.’’

‘‘अपने भाई की रंगीनमिजाजी. नादिर सालिक खान की छोटी बेटी फौजिया को चाहता था. वह फौजिया को रियाज के खिलाफ भड़काता रहता था. उस ने उस के लिए शादी का रिश्ता भी भेजा था, जबकि फौजिया नादिर को इस बात के लिए डांट चुकी थी. जब उस पर उस की डांट का असर नहीं हुआ तो फौजिया ने सारी बात रियाज को बता दी थी. उसी के बाद रियाज और नादिर में लड़ाईझगड़ा होने लगा था.’’

‘‘मुझे ऐसी किसी बात की जानकारी नहीं है. मैं ने रिश्ता नहीं भिजवाया था.’’

‘‘खैर, यह बताइए कि 2 साल पहले आप के फ्लैट के समने एक बेवा औरत सकीरा बेगम रहती थीं, आप को याद हैं?’’

माजिद हड़बड़ा कर बोला, ‘‘जी, याद है.’’

‘‘उस की एक जवान बेटी थी रजिया, याद आया?’’

‘‘जी, उस की जवान बेटी रजिया थी.’’

‘‘अब यह बताइए कि सकीरा बेगम बिल्डिंग छोड़ कर क्यों चली गई?’’

‘‘उस की मरजी, यहां मन नहीं लगा होगा इसलिए छोड़ कर चली गई.’’

‘‘माजिद साहब, आप असली बात छिपा रहे हैं. क्योंकि वह आप के लिए शर्मिंदगी की बात है. आप बुरा न मानें तो मैं बता दूं? आप का भाई उस बेवा औरत की बेटी रजिया पर डोरे डाल रहा था. उस की इज्जत लूटने के चक्कर में था, तभी रंगेहाथों पकड़ा गया. यह रजिया की खुशकिस्मती थी कि झूठे प्यार के नाम पर वह अपना सब कुछ लुटाने से बच गई. इस बारे में बताने वालों की कमी नहीं है, इसलिए झूठ बोलने से कोई फायदा नहीं है. सकीरा बेगम नादिर की वजह से बिल्डिंग छोड़ कर चली गई थीं.’’

‘‘जी, इस में नादिर की गलती थी, इसलिए मैं ने उसे खूब डांटा था. इस के बाद वह सुधर गया था.’’

‘‘अगर वह सुधर गया था तो आधी रात को छत पर क्या कर रहा था? क्या आप इस बात से इनकार करेंगे कि नादिर सकीरा बेगम की बेटी रजिया से छत पर छिपछिप कर मिलता था? इस के लिए उस ने छत के ताले की डुप्लीकेट चाबी बनवा ली थी. जब इस बात की खबर दाऊद साहब को हुई तो उन्होंने ताला बदलवा दिया था.’’

उस ने लड़खड़ाते हुए कहा, ‘‘यह भी सही है.’’

अगली पेशी पर मैं ने इनक्वायरी अफसर से पूछताछ की. उस का नाम साजिद था. मैं ने कहा, ‘‘नादिर की हत्या के बारे में आप को सब से पहले किस ने बताया?’’

‘‘रिकौर्ड के अनुसार, घटना की जानकारी 18 अप्रैल की सुबह 10 बजे दाऊद साहब ने फोन द्वारा दी थी. मैं साढ़े 10 बजे वहां पहुंच गया था.’’

‘‘जब आप छत पर पहुंचे, वहां कौनकौन था?’’

‘‘फोन करने के बाद दाऊद साहब ने सीढि़यों पर ताला लगा दिया था. मैं वहां पहुंचा तो मृतक की लाश टंकी के पीछे ब्लौक पर पड़ी थी. अंजाने में पीछे से उस की खोपड़ी पर  लोहे के वजनी रेंच से जोरदार वार किया गया था. उसी से उस की मौत हो गई थी.’’

‘‘हथियार आप को तुरंत मिल गया था?’’

‘‘जी नहीं, थोड़ी तलाश के बाद छत के कोने में पड़े कबाड़ में मिला था.’’

‘‘क्या आप ने उस पर से फिंगरप्रिंट्स उठवाए थे?’’

‘‘उस पर फिंगरप्रिंट्स नहीं मिले थे. शायद साफ कर दिए गए थे.’’

‘‘घटना वाली रात मृतक छत पर था, वहीं उस का कत्ल किया गया था. सवाल यह है कि जब छत पर जाने वाली सीढि़यों के दरवाजे पर ताला लगा था तो मृतक छत पर कैसे पहुंचा? इस बारे में आप कुछ बता सकते हैं?’’

जज साहब काफी दिलचस्पी से हमारी जिरह सुन रहे थे. उन्होंने पूछा, ‘‘मिर्जा साहब, इस मामले में आप बारबार किसी लड़की का जिक्र क्यों कर रहे हैं? इस से तो यही लगता है कि आप उस लड़की के बारे में जानते हैं?’’

‘‘जी सर, कुछ हद तक जानता हूं.’’

‘‘तो आप मृतक की प्रेमिका का नाम बताएंगे?’’ जज साहब ने पूछा.

‘‘जरूर बताऊंगा सर, पर समय आने दीजिए.’’

पिछली पेशी पर मैं ने प्यार और प्रेमिका का जिक्र कर के मुकदमे में सनसनी पैदा कर दी थी. यह कोई मनगढ़ंत किस्सा नहीं था. इस मामले में मैं ने काफी खोज की थी, जिस से मृतक नादिर के ताजे प्यार के बारे में पता कर लिया था. अब उसी के आधार पर रियाज को बेगुनाह साबित करना चाहता था.

काररवाई शुरू हुई. अभियोजन की तरफ से बिल्डिंग के मालिक दाऊद साहब को बुलाया गया. वकील ने 10 मिनट तक ढीलीढाली जिरह की. उस के बाद मेरा नंबर आया. मैं ने पूछा, ‘‘छत की चाबी आप के पास रहती है. घटना वाले दिन किसी ने आप से चाबी मांगी थी?’’

‘‘जी नहीं, चाबी किसी ने नहीं मांगी थी.’’

‘‘इस का मतलब यह हुआ कि 17 अप्रैल की रात को कातिल रियाज और मृतक नादिर में किसी एक के पास छत के दरवाजे की चाबी थी या दोनों के पास थी. उसी से दोनों छत पर पहुंचे थे. दाऊद साहब, आप के खयाल से नादिर की हत्या किस ने की होगी?’’

दाऊद ने रियाज की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘इसी ने मारा है और कौन मारेगा? इन्हीं दोनों में झगड़ा चल रहा था.’’

‘‘आप ने सरकारी वकील को बताया है कि रियाज आवारा, बदमाश और काफी झगड़ालू है. आप भी उसी बिल्डिंग में रहते हैं. आप का रियाज से कितनी बार लड़ाईझगड़ा हुआ है?’’

‘‘मुझ से तो उस का कभी कोई झगड़ा नहीं हुआ. मैं ने उसे झगड़ालू नादिर से बारबार झगड़ा करने की वजह से कहा था.’’

‘‘इस का मतलब आप के लिए वह अच्छा था. आप से कभी कोई लड़ाईझगड़ा नहीं हुआ था.’’

‘‘जी, आप ऐसा ही समझिए.’’ दाऊद ने गोलमोल जवाब दिया.

‘‘सभी को पता है कि 2 साल पहले रजिया से मिलने के लिए नादिर ने छत के दरवाजे में लगे ताले की डुप्लीकेट चाबी बनवाई थी. जब सब को इस बात की जानकारी हुई तो बड़ी बदनामी हुई. उस के बाद आप ने छत के दरवाजे का ताला तक बदल दिया था. हो सकता है, इस बार भी उस ने डुप्लीकेट चाबी बनवा ली हो और छत पर किसी से मिलने जाता रहा हो? इस बार लड़की कौन थी, बता सकते हैं आप?’’

‘‘इस बारे में मुझे कुछ नहीं पता. हां, हो सकता है उस ने डुप्लीकेट चाबी बनवा ली हो. लड़की के बारे में मैं कैसे बता सकता हूं. हो सकता है, रियाज को पता हो.’’

‘‘आप रियाज का नाम क्यों ले रहे हैं?’’

‘‘इसलिए कि वह भी फौजिया से प्यार करता था या उसे इस प्यार की जानकारी थी.’’

मैं ने भेद उगलवाने की गरज से कहा, ‘‘दाऊद साहब, यह तो सब को पता है कि रियाज फौजिया से शादी करना चाहता था और इस के लिए उस ने रिश्ता भी भेजा था. जबकि नादिर उसे रियाज के खिलाफ भड़काता था. कहीं नादिर फौजिया के साथ ही छत पर तो नहीं था? इस का उल्टा भी हो सकता है?’’

दाऊद जिस तरह फौजिया को नादिर से जोड़ रहा था, यह उस की गंदी सोच का नतीजा था या फिर उस के दिमाग में कोई और बात थी. उस ने पूछा, ‘‘उल्टा कैसे हो सकता है?’’

‘‘यह भी मुमकिन है कि घटना वाली रात नादिर फौजिया से मिलने बिल्डिंग की छत पर गया हो और…’’

मेरी अधूरी बात पर उस ने चौंक कर मेरी ओर देखा. इस के बाद खा जाने वाली नजरों से मेरी ओर घूरते हुए बोला, ‘‘और क्या वकील साहब?’’

‘‘…और यह कि फौजिया के अलावा कोई दूसरी लड़की भी तो हो सकती है? किसी ने फौजिया को आतेजाते देखा तो नहीं, इसलिए वहां दूसरी लड़की भी तो हो सकती थी. इस पर आप को कुछ ऐतराज है क्या?’’

दाऊद ने हड़बड़ा कर कहा, ‘‘भला मुझे क्यों ऐतराज होगा?’’

‘‘अगर मैं कहूं कि वह लड़की उसी बिल्डंग की रहने वाली थी तो..?’’

‘‘…तो क्या?’’ वह हड़बड़ा कर बोला.

‘‘बिल्डिंग का मालिक होने के नाते आप को उस लड़की के बारे में पता होना चाहिए. अच्छा, मैं आप को थोड़ा संकेत देता हूं. उस का नाम ‘म’ से शुरू होता है और आप का उस से गहरा ताल्लुक है, जिस के इंतजार में नादिर छत पर बैठा था.’’

मैं असलियत की तह तक पहुंच चुका था. बस एक कदम आगे बढ़ना था. मैं ने कहा, ‘‘दाऊद साहब, नाम मैं बताऊं या आप खुद बताएंगे? आप को एक बार फिर बता दूं कि उस का नाम ‘म’ से शुरू होता है, जिस का इश्क नादिर से चल रहा था और यह बात आप को मालूम हो चुकी थी. अब बताइए नाम?’’

दाऊद गुस्से से उबलते हुए बोला, ‘‘अगर तुम ने मेरी बेटी मनीजा का नाम लिया तो ठीक नहीं होगा.’’

मैं ने जज साहब की ओर देखते हुए कहा, ‘‘सर, मुझे अब इन से कुछ नहीं पूछना. मेरे हिसाब से नादिर का कत्ल इसी ने किया है. रियाज बेगुनाह है. इस की नादिर से 2-3 बार लड़ाई हुई थी, इस ने धमकी भी दी थी, लेकिन इस ने कत्ल नहीं किया. धमकी की वजह से उस पर कत्ल का इल्जाम लगा दिया गया. अब हकीकत सामने है सर.’’

अगली पेशी पर अदालत ने मेरे मुवक्किल को बाइज्जत बरी कर दिया, क्योंकि वह बेगुनाह था. दाऊद के व्यवहार से उसे नादिर का कातिल मान लिया गया था. जब अदालत के हुक्म पर पुलिस ने उस से पूछताछ की तो थोड़ी सख्ती के बाद उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था.

नादिर एक दिलफेंक आशिकमिजाज लड़का था. जब फौजिया ने उसे घास नहीं डाली तो उस ने इश्क का चक्कर दाऊद की बेटी मनीजा से चलाया. वह उस के जाल में फंस गई. दाऊद को अपनी बेटी से नादिर के प्रेमसंबंधों का पता चल गया था. नादिर के इश्कबाजी के पुराने रिकौर्ड से वह अच्छी तरह वाकिफ था.

दाऊद ने बेटी के प्रेमसंबंधों को उछालने या उसे समझाने के बजाय नादिर की जिंदगी का पत्ता साफ करने का फैसला कर लिया. वह मौके की ताक में रहने लगा. रियाज और नादिर के बीच लड़ाईझगड़े और दुश्मनी का माहौल बना तो दाऊद ने नादिर के कत्ल की योजना बना डाली.

दाऊद को पता था कि नादिर ने मनीजा की मदद से छत की डुप्लीकेट चाबी बनवा ली है. घटना वाली रात को वह दबे पांव मनीजा के पहले छत पर पहुंच गया. नादिर छत पर मनीजा का इंतजार कर रहा था, तभी पीछे से अचानक पहुंच कर दाऊद ने उस की खोपड़ी पर वजनी रेंच से वार कर दिया.

एक ही वार में नादिर की खोपड़ी फट गई और वह मर गया. उस की जेब से चाबी निकाल कर दाऊद दरवाजे में ताला लगा कर नीचे आ गया.

मैं ने दाऊद से कहा कि वह बिल्डिंग का मालिक था. नादिर को वहां से निकाल सकता था. मारने की क्या जरूरत थी? जवाब में उस ने कहा, ‘‘मैं उस बदमाश को छोड़ना नहीं चाहता था. घर बदलने से उस की बुरी नीयत नहीं बदलती. वह मेरी मासूम बच्ची को फिर बहका लेता या फिर किसी सीधीसादी लड़की की जिंदगी बरबाद करता.’’

इस तरह नादिर को मासूम लड़कियों को अपने जाल में फंसाने की कड़ी सजा मिल गई थी.

बहारें फिर भी आएंगी : प्रेम ने कहा दम तोड़ा

आ मिर और मल्लिका ने कालेज के स्टेज पर शेक्सपियर का प्रसिद्ध नाटक रोमियोजूलियट क्या खेला कि ये पात्र उन के वास्तविक जीवन में भी प्रतिबिंबित हो उठे. महीनेभर की रिहर्सल उन्हें इतना करीब ले आई कि वे एकदूजे की धड़कनों में ही समा गए. स्टेज पर अपने पात्रों में वे इतने जीवंत हो उठे थे कि सभी ने इन दोनों का नाम भी रोमियोजूलियट ही रख दिया था.

कालेज कैंपस हो या बाहर, दीनदुनिया से बेखबर, हाथों को थाम चहलकदमी करते प्यार के हजारों रंगों को बिखराते वे दिख जाते. प्रीत की खुशबू से मदहोश हो कर वे  झूम उठे थे. जाति अलग, धर्म अलग फिर भी कोई खौफ नहीं आंखों में. विरहमिलन की अनगिनत गाथाओं को समेटे इस दीवाने प्रेम को जाति और धर्म से क्या लेनादेना था.

प्रेम ने तो कभी दरिया में, कभी पहाड़ों पर, कभी दीवारों में, कभी मरुस्थलों में दम तोड़ दिया पर प्रियतम का साथ नहीं छोड़ा. एक ही मन, एक ही चुनर, प्रीत के ऐसे पक्के रंग में रंगी विरहबेला में न छीजा न सूखा. दिनोंदिन प्रेमी प्रेमरस में भीगते और भिगोते सूली पर चढ़ गए. पर जातिधर्म की न समाप्त होने वाली सरहदों ने प्रेमीयुगल को शायद ही बख्शा हो. मल्लिका और आमिर के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ.

पहले तो सभी इसे सहजता से लेते रहे लेकिन जैसे ही इश्क के गहराते रंग का अनुभव हुआ दोनों ओर के लोगों की तलवारें तन गईं. फिर प्यार भी कहीं छिपता है? यह तो पलभर में हरसिंगार के फूलों की तरह अपनी आभा बिखेरता है. बेहद सुंदर और प्रतिभा की मालकिन मल्लिका को पाने के लिए प्रोफैसरों से ले कर सजातीयविजातीय लड़कों में एक होड़ सी लगी थी. बहुत दीवाने थे उस के लेकिन सब को अनदेखा कर उन की नादानियों पर हंसती रही.

जिसे भी मल्लिका पलभर को देख लेती वह निहाल हो उठता था. जिधर से गुजर जाती, लोग उस की खूबसूरती के कायल हो जाते थे. कट्टर मानसिकता वाले राजपूत परिवार से ताल्लुक रखने वाली मल्लिका के लिए अपनी बिरादरी में भी एक से एक सुयोग्य लड़के शादी के लिए आंखें बिछाए कतार में खड़े थे. लेकिन मल्लिका के सपनों का राजकुमार आमिर बन चुका था.

मल्लिका का किसी गैरजाति के लड़के को चाहना जमाना इसे कितने दिनों तक सहन करता. आमिर पर न जाने कितने जानलेवा हमले हुए, मल्लिका को तो एसिड से जला देने की धमकियों से भरी न जाने कितनी गुमनाम चिट्ठियां मिलती रहीं, जो उन के प्रेम को और मजबूत ही करती रहीं. आमिर का एक प्यारभरा स्पर्श, एक स्नेहिल मुसकान उस की राहों में बिछे हर कांटे के डंक को मिटाती रही. आमिर के बारे में पता चलते ही मल्लिका के मातापिता ने अपनी लाड़ली को हर तरह से सम झाया, अपनी जान देने की धमकी तक दी. पर प्यार की इस मेहंदी का रंग लाल ही होता गया. जैसेजैसे समाज के शिकंजे कसते गए वह आमिर के प्यार में और डूबती गई.

एक हिंदू लड़की अपनी जातिबिरादरी के एक से एक होनहार और खूबसूरत नौजवानों को नजरअंदाज कर के मुसलिम से प्यार करे, हिंदू समाज को यह सहन कैसे होता. राजनीति का अखाड़ा बने कालेज परिसर में ही आमिर पर ऐसा जानलेवा हमला हुआ कि उस की जान बालबाल बची. मल्लिका पर भी तेजाबी हमले हुए. गरदन और हाथ ही  झुलसे. चेहरे पर एकाध छींटे पड़े जरूर, पर वे उलटे उस की सुंदरता में चारचांद लगा गए.

पुलिस ने कुछ विरोधी हिंदू आतंकियों को पकड़ा पर जैसा इस तरह के मामलों में होता है, सुबूतों के अभाव में वे छूट गए. मुसलिम समाज क्यों पीछे रहता, वह भी दलबल के साथ आमिर के बचाव में उतर आया. हिंदूमुसलिम दंगा भड़कने ही वाला था कि मल्लिका और आमिर ने कोर्टमैरिज कर के दंगाइयों के मनसूबों पर पानी फेर दिया. मल्लिका के मातापिता ने जीतेजी उसे अपने लिए मरा करार दे दिया, तो आमिर के घरवालों ने उसे अपनाते हुए धूमधाम से अपने घर ले जा कर उस का भरपूर मानसम्मान किया जिसे उन दोनों ने कोई खास तरजीह नहीं दी. धर्म के सौदागरों के शह और मात के खेलों से वे अनजान नहीं थे.

अभी आमिर के घर में मल्लिका के कुछ ही घंटे बीते थे कि बाहर गेट पर पटाखे फूट कर आकाश को छू रहे थे. चेहरे को छिपाए

8-10 आदमियों का समूह चिल्ला रहा था. राजपूत की बेटी इन विधर्मियों के घर में. अकबर का इतिहास दोहरा रहे हो तुम लोग. राजपूतों का वह समाज नपुंसक था जिस ने पैरों पर गिर कर अपनी बहनबेटियों को म्लेच्छों के हवाले कर दिया था. उसे किसी भी हालत में दोहराने नहीं देंगे हम. सुनो विधर्मियो, हमें नीचा दिखाने के लिए बड़ी शान से मुसलिम बना कर जिसे विदा करा लाए हो तुम सभी, उस म्लेच्छ लड़की को घर से निकाल बाहर करो. हम यहीं पर उस के टुकड़ेटुकड़े कर देंगे.

आज गौमांस खाएगी, कल रोजा रख कर कुरानपाठ करेगी. बुरका ओढ़ कर तुम्हारी बिरादरी में घूमेगी, तुम्हारे गंदे खून से बच्चे पैदा कर के राजपूतों की नाक कटवाएगी. निकालो इसे, नहीं तो इस का अंजाम बहुत भयानक होगा. आज पटाखों से केवल तुम्हारा गेट जला है. कल बम फोड़ कर तुम सब को भून डालेंगे.

उन की गगनभेदी आवाजों से घर के अंदर सभी दहशत से कांप रहे थे. आमिर की बांहों में मल्लिका अर्धमूर्च्छित पड़ी थी. हिंदुओं की कारगुजारी की जानकारी पाते उस के विरोध में मुसलिम समाज भी इकट्ठा होने लगा था. वह तो अच्छा हुआ कि आननफानन में पुलिस पहुंच गई, और दंगों के शोले भड़कने से रह गए.

फिर महीनों तक आमिर को पुलिस सुरक्षा लेनी पड़ी थी. उन का बाहर निकलना मुश्किल था. घात लगाए बैठे राजपूतों का खून खौल रहा था. कुछ अलग हट कर करने की चाह से ये आंखें मूंदे सभीकुछ सहन कर रहे थे. रिजल्ट निकलते ही इन्हें आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका चले जाना था. सभी तैयारियां हो चुकी थीं. बची हुई औपचारिकताओं को ये छिपछिपा कर पूरी कर रहे थे. पर मौत का खतरा टला नहीं था. अपने हनीमून को ये दोनों दहशतों के बीच ही मना रहे थे.

इन दोनों का रिजल्ट आ गया. तैयारियां तो थीं ही. जाने के दिन छिपतेछिपते किसी प्रकार से वे इंटरनैशनल हवाईअड्डे तक पहुंचे. रिश्तेदार तो दूर, इन्हें विदा करने कोई संगीसाथी भी नहीं आ सका. उमड़ आए आंसुओं के समंदर को दोनों पलकों से पी रहे थे. बुरके में मल्लिका का दम घुट रहा था तो खुले में आमिर के पसीने छूट रहे थे.

जब तक प्लेन उड़ा नहीं, वे डर के साए में ही रहे. किसी तरह की जांचपड़ताल से वे घबरा उठते थे. 17 घंटे के अंतराल के बाद ही एकदूसरे की बांहें थाम पहुंच गए अमेरिका के न्यूजर्सी में, जहां की गलियों में उन्नत सिर उठाए उन के सपनों की मंजिल, प्रिंसटन कालेज बांहें फैलाए उन का स्वागत कर रहा था. इस की तैयारी वे महीनों से कर रहे थे. बहुत हाईस्कोर के साथ उन्होंने टोफेल आदि को क्लीयर कर रखा था. प्रिंसटन यूनिवर्सिटी ने दोनों का लोन सैंक्शन करते हुए पासपोर्ट, वीजा आदि के मिलने में बड़ा ही सहयोग दिया. प्यार के विरोध में उठे स्वरों एवं छलनी दिल के सिवा वे भारत से कुछ भी नहीं लाए थे. सामने चुनौतियों से भरे रास्ते थे, पर उन के पास हौसलों के पंख थे. ख्वाबों की दुनिया उन्हें खुद बनानी थी.

यहां आ कर भी महीनों तक मल्लिका दहशत में जीती रही. किसी भी हिंदू की नजर उसे सहमा कर रख देती थी. कालेज परिसर में रहने वाले विद्यार्थियों के आश्वासन भी उसे सामान्य नहीं बना सके थे. मल्लिका ने कभी पलट कर भी अपनों की खबर नहीं ली. आमिर के मांबाप और छोटी बहन से कभी बात कर लिया करती थी पर उन्हें भी कभी यहां आने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया.

प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में इंटरनैशनल सिक्योरिटी, जो एक नया विषय था, उस में पीएचडी करने का फैसला मल्लिका और आमिर ने लिया. यह भी अच्छी बात रही कि यूनिवर्सिटी की ओर से ही उन दोनों को रहने के लिए जगह मिली, जिस ने उन के रहने की बड़ी समस्या को हल कर दिया. जैसेजैसे दिन गुजरते गए, उन की राहें आसान होती गईं.

अभी भी उन के रिश्ते पतिपत्नी से ज्यादा प्रेमीप्रेमिका जैसे ही थे. हाथों में हाथ डाले जिधर चाहा निकल गए. न किसी के देख लेने का डर था और न कोई दंगा भड़कने का. अकसर वे दोनों मखमली हरी घास पर लेट कर गरमी का आनंद लेते हुए पढ़ाई किया करते थे. जब? भी थक जाते, आइसक्रीम खा कर तरोताजा हो उठते.

वीकैंड में अकसर चहलकदमी करते हुए प्राकृतिक सौंदर्य को निहारते दुकानों में जा कर शौपिंग करते. रैस्टोरैंट में हर तरह के कौंटिनैंटल फूड खाते. आमिर को कौफी बहुत पसंद थी तो मल्लिका को टोमैटो सूप और ग्रिल्ड सैंडविच.

इतने लंबे समय में दोनों कभी मंदिरमसजिद नहीं गए. प्यार ही उन का मजहब था. विवरस्पून स्ट्रीट की विशाल प्रिंसटन पब्लिक लाइब्रेरी में जा कर दोनों पढ़ाई करते. समय ने इन के परिश्रम और लगन का भरपूर रिवौर्ड दिया.

युद्ध के कारण, नेचर डेटरैंस, एलाएंस, फौर्मेशन, सिविल मिलिटरी रिलेशन, आर्म्स कंपीटिशन के साथ आर्म्स की रोक आदि पर इन की हर छानबीन को खूब वाहवाही मिली. इन का परफौर्मैंस इतना अच्छा रहा कि दोनों की नियुक्ति प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में ही हो गई. सपनों की मंजिल पर पहुंच कर दोनों अभिभूत थे.

प्रिंसटन के लिंडेन लेन में इन्होंने रहने के लिए एक टाउन हाउस ले लिया था, जिस के गैराज में चमचमाती हुई नई गाड़ी खड़ी थी.

युद्ध के कारणों और निवारणों पर रिसर्च करते हुए उन्होंने करीबकरीब दुनिया के सारे शक्तिशाली देशों की परिक्रमा कर डाली. यह अपनेआप में बहुत खास अनुभव रहा. पढ़तेपढ़ाते विभिन्न देशों की संस्कृति को मानसम्मान देते हुए उन्होंने मेल्ंिटग पौट औफ कल्चर को अपना लिया. दंगा, हिंसा और खूनखराबे के डर से अपने देश से क्या भागे कि सारी दुनिया को ही गले लगा लिया. यही कारण है कि अमेरिका में रह रहे सारे विश्ववासियों को इन्होंने प्यार से एक गुलदस्ते में ही संजो लिया. सभी वर्गों में इन का बड़ा मानसम्मान था.

2 साल में ही सारे लोन चुका कर इन्होंने अपना परिवार बढ़ाने का निर्णय लिया. गर्भावस्था में आमिर ने मल्लिका का बहुत ध्यान रखा. अपने जुड़वां बच्चों का नाम उन्होंने अर्थ और आशी रखा. ऐसे वक्त में गुजरात की रहने वाली पारुल बेन किसी सौगात की तरह उन्हें मिल गईं, जिन्होंने दोनों बच्चों की देखरेख के साथ मल्लिका का भी मां की तरह खयाल रखा. मल्लिका और आमिर ने भी उन्हें कभी नैनी नहीं सम झा.

अपने बच्चों को पारुल बेन को सौंप कर मल्लिका और आमिर पढ़नेपढ़ाने की दुनिया में ख्याति बटोरते रहे. पारुल बेन भी उन की कसौटी पर सब तरह से खरा सोना निकलीं. किसी बात के लिए उन्हें निराश नहीं किया. अर्श और आशी को पारुल बेन ने दोनों संस्कृतियों के सारे संस्कार दिए. घर और बच्चों की सारी जिम्मेदारियों से मुक्त हो कर आमिर और मल्लिका को ऊंची उड़ान भरने के अवसर मिले. मल्लिका के सौंदर्य और प्रतिभा पर उस के क्षेत्र के लोग मुग्ध थे. ब्यूटी और ब्रेन का अनोखा सामंजस्य था उस में. उन से जुड़ कर सभी लाभान्वित ही होते रहे. अपने आसपास के ही नहीं, बल्कि जिस देश में भी गए वहां की संस्कृति को आत्मसात कर लिया. उन्होंने बहुत बड़ी पहचान को प्राप्त कर लिया था. यह उन के जीवन की बहुत बड़ी विजय थी.

समय पखेरू बन कर उड़ता रहा. अर्थ ने फाइनैंस में एमबीए कर के न्यूयौर्क की प्रतिष्ठित कंपनी को जौइन कर लिया. साल भी नहीं बीता था कि उस ने उसी कंपनी में कार्यरत चाइनीज लड़की से शादी कर ली और 4 महीने बाद ही 2 जुड़वां लड़कियों का पिता बन गया. वहां की खुली संस्कृति के लिए यह बड़ी आम बात थी. वहां बच्चे पहले पैदा होते हैं, शादी बाद में होती है.

आशी ने भी मैडिसिन की पढ़ाई कर के एक अफ्रीकीअमेरिकन से ब्याह रचा लिया. सालभर में वह भी अपने पिता के हमशक्ल जैसे बच्चे की मां बन गई. अपने बच्चों के उठाए इन कदमों की कोई आलोचना मल्लिका और आमिर ने कभी नहीं की. सब तरह से सहयोग देते हुए उन्हें संवारते हुए निखारा था. दोनों अपने बच्चों के बच्चे देख कर अभिभूत थे. सारे जहां की खुशियों को वे बटोर रहे थे.

अपने नानानानी और दादादादी बनने की खुशी में उन्होंने न्यूजर्सी में ही बड़ी शानदार पार्टी रखी थी. महीनेभर पहले सारी नाराजगी को भुलाते हुए दोनों ने अपने परिवारवालों को भी न्योता दिया था. वे आएं या न आएं, उस से उदासीन होते हुए वे अपनी खुशियों में मग्न थे. इतने लंबे समय में मल्लिका ने भूल कर भी अपनों को कभी याद नहीं किया था. उन के सारे रिश्तेनाते एकदूसरे के लिए वे स्वयं ही थे. बाकी कमी पारुल बेन ने आ कर पूरी कर दी थी. किसी अपने की तरह अर्थ और आशी की खुशियों से उन की भी आंखें छलक रही थीं. दोनों में से वे किस के पास जा कर, रह कर बच्चों की देखरेख करें, इस के लिए अर्थ और आशी को विवाद करते देख पारुल बेन भी अपने अस्तित्व के महत्त्व पर, अपनी काबिलीयत पर खुश थीं. 1,800 डौलर मासिक पगार पर काम करने वाली पारुल बेन लाखों डौलर की मालकिन होने के साथ अपना भविष्य संवारते हुए परिवार की बहुत बड़ी स्तंभ बन गई थीं.

भारत से आमिर और मल्लिका दोनों के मातापिताओं के साथ उन के भैयाभाभी भी आए. मिलन की खुशियों में छलकते आंसुओं ने दरिया ही बहा दिया था. फिर आरोपों और प्रत्यारोपों के लिए समय ही कहां था. वर्षों से बिछुड़े बच्चों के लिए नजराने में वे सारा भारत ही उठा लाए थे. उस प्यार के उफनते समंदर में न कोई जाति थी, न कोई धर्म, एक परिवार की तरह सारे भेदभाव को भूल कर सभी एकदूसरे से गले मिल रहे थे.

 

वह सुंदर लड़की: दोस्त की बड़ी बहन पर आया दिल

मेरा घर सहारनपुर में था. 10वीं का इम्तिहान देने के बाद आगे की पढ़ाई करने के लिए पिताजी ने मुझे मेरे काकाजी के पास भेज दिया, जो दिल्ली के सब्जी मंडी नामक महल्ले में रहते थे.

जेबखर्च के लिए पिताजी हर महीने मुझे 2,000 रुपए भेजा करते थे. दिल्ली जैसा इतना बड़ा शहर और खुली आजादी, मेरे तो मजे हो गए. कालेज जाने के बजाय वे रुपए मैं फिल्में देखने और दोस्तों के साथ मौजमस्ती करने में खर्च कर देता था.

मैं जहां रहता था, उस महल्ले में मेरी उम्र के और भी कई लड़के थे, जिन से बहुत जल्द मेरी दोस्ती हो गई. उन में मेरा सब से अच्छा दोस्त था अविनाश. रोज शाम के समय हम सब क्रिकेट खेलते थे. अपने काकाजी को जब मैं गली में घुसते हुए देखता तब मैं तुरंत किसी दीवार की आड़ में छिप जाता.

अगर वे देख लेते कि शाम के समय पढ़ाई करने के बजाय मैं क्रिकेट खेल रहा हूं, तब फोन कर के पिताजी को बता देते और फिर पिताजी मुझे सहारनपुर बुला लेते.

एक शाम जब हम बहुत देर तक क्रिकेट खेल रहे थे, तब एक लड़की अविनाश को बुलाने आई. वह इतनी सुंदर थी कि मैं उसे देखता ही रह गया. जब उस की मुझ पर नजर पड़ी, तब वह मुसकरा दी.

उन दोनों के जाने के बाद, मेरे पूछने पर, महल्ले के एक लड़के ने मुझे बताया कि वह लड़की अविनाश की बड़ी बहन है. उस का नाम दीपा है और वह सुंदरम शौपिंग माल में नौकरी करती है.

मुझे याद आया कि एक रोमांटिक फिल्म देखते समय मेरे कालेज के दोस्त राजेश ने मुझ से कहा था, ‘अपनी जिंदगी भी फिल्मों जैसी है. अगर कोई लड़की तुम्हें देख कर मुसकराए, तो इस का मतलब है कि वह तुम्हें पसंद करती है और तुम से दोस्ती करना चाहती है.

‘लेकिन लड़कियां बहुत शर्मीली होती हैं, इसलिए पहल तुम्हें करनी होगी. दोस्ती का हाथ आगे बढ़ाओगे, तो वह तुम्हारी दोस्त बन जाएगी.’राजेश की इस बात को मैं ने सच समझ लिया था.

अगले दिन मैं ने यह पता कर लिया कि दुकान पर जाने के लिए दीपा रोजाना सवेरे ठीक 10 बजे घर से निकलती है. उस के बाद दीपा को एक नजर देखने के लिए मैं अपने कमरे में खिड़की की आड़ में छिप कर उस का इंतजार किया करता और उसे देखते ही मेरे दिल की धड़कनें तेज हो जातीं. मुझे एक फिल्म का संवाद याद आया

, ‘अगर किसी लड़की को देखते ही दिल की धड़कनें तेज हो जाएं, तो तुम्हें उस लड़की से इश्क हो गया है.’एक दिन सवेरे दीपा जब घर से निकली तब मैं उस का पीछा करने लगा.

मैं मन ही मन यही सोच रहा था कि किसी दिन हिम्मत कर के दीपा से कह दूंगा, ‘दीपा, मुझे तुम से प्यार हो गया है…’शौपिंग माल ज्यादा दूर नहीं था, इसलिए दीपा पैदल जा रही थी. जब वह शौपिंग माल के नजदीक पहुंची, तब मैं थोड़ी देर वहीं रुक कर उसे देखता रहा, फिर अपने कमरे में लौट गया.यह सिलसिला अगले 3 दिनों तक चलता रहा.

चौथे दिन जब मैं दीपा का पीछा कर रहा था, तब वह अचानक मुड़ी और मुझे घूर कर देखने लगी. मैं सकपका कर वापस जाने के लिए मुड़ा, तो उस ने पूछा, ‘‘मेरे भाई अविनाश के दोस्त हो न तुम?’’मैं इतना घबरा गया था कि मुझ से कुछ बोला ही नहीं गया.

उस ने जब यही सवाल दोबारा पूछा, तब मैं ने झिझकते हुए कहा, ‘‘हां, मैं अविनाश का दोस्त हूं.’’‘‘क्या नाम है तुम्हारा?’’‘‘प्रमोद.’’‘‘तुम रोज मेरा पीछा क्यों करते हो?’’मुझ से कोई जवाब नहीं बन पड़ा, तो उस ने दोबारा पूछा, ‘‘चुप क्यों हो? बताओ, तुम मेरा पीछा क्यों करते हो?’’मैं ने झूठमूठ कह दिया, ‘‘मैं तुम्हारा पीछा नहीं करता हूं, मुझे अपने लिए कमीज खरीदनी है,

इसलिए शौपिंग माल में जाता हूं.’’दीपा पलभर मुझे देखती रही और फिर उस ने कहा, ‘‘तुम्हें शायद बहुत सारी कमीजें खरीदनी होंगी, इसलिए रोज जाते हो वहां.’’‘‘बहुत सारी नहीं, सिर्फ 3.

लेकिन अब तक मैं ने कुछ नहीं खरीदा, क्योंकि जो कमीजें मुझे पसंद आती हैं, वे बहुत महंगी हैं.’’दीपा ने कहा, ‘‘मैं वहीं एक दुकान में नौकरी करती हूं और शौपिंग माल के कई दुकानदारों से मेरी जानपहचान है. तुम मेरे साथ चलो, मैं तुम्हें वाजिब दाम पर कमीज दिला दूंगी.’’

कोई बहाना नहीं सूझ रहा था, इसलिए मैं चुपचाप दीपा के पीछे चल पड़ा. मुझे अपने साथ ले कर दीपा शौपिंग माल पहुंची. 2-3 दुकानों में घूमने के बाद मैं ने मजबूरन एक दुकान से 2,000 रुपए में 3 कमीजें खरीदीं और फिर दीपा को ‘थैंक यू’ बोल कर लौट गया.मुझे अपनेआप पर बहुत गुस्सा आ रहा था कि दीपा का पीछा करने की गलती कर के मैं ने एक ही दिन में 2,000 रुपए खर्च कर दिए थे.

अब पूरा महीना कैसे गुजारूंगा मैं…उस शाम मैं अपने दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलने भी नहीं गया. वे मुझे बुलाने आए तो मैं ने कहा कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है.रात के 8 बज गए थे.

तभी किसी ने मेरे कमरे का दरवाजा खटखटाया. दरवाजा खोला तो मैं यह देख कर चौंक गया कि सामने दीपा खड़ी थी. मैं पलभर उसे देखता रहा, तो उस ने कहा, ‘‘अविनाश ने बताया कि तुम कालेज में पढ़ने के लिए यहां आए हो और जेबखर्च के लिए तुम्हें हर महीने 2,000 रुपए मिलते हैं… क्या यह सच है?’’

‘‘हां सच है,’’ मैं ने धीमी आवाज में कहा.‘‘लेकिन तुम ने तो सारी रकम एक ही दिन में खर्च कर दी… अब पूरा महीना कैसे गुजारोगे तुम?’’मुझ से कोई जवाब नहीं बन पड़ा, इसलिए मैं खामोश रहा.

दीपा ने कहा, ‘‘आज सवेरे जब तुम मेरा पीछा कर रहे थे, तब मैं ने भांप लिया था कि तुम ने मुझ से झूठ कहा था कि तुम शौपिंग माल में खरीदारी करने जा रहे हो. झूठ कहा था या नहीं?’’मैं ने गरदन झुका कर धीमी आवाज में कहा, ‘‘हां, झूठ कहा था.’’

‘‘तुम ने जो कमीजें खरीदी हैं, वे मुझे दे दो. मैं दुकानदार को लौटा दूंगी. तुम्हारे 2,000 रुपए कल तुम्हें मिल जाएंगे.’’मैं ने ऐसा ही किया. दीपा जाने लगी, फिर उस ने मुड़ कर कहा, ‘‘तुम अविनाश के दोस्त हो, मेरे छोटे भाई जैसे हो, इसलिए तुम्हें एक सलाह देती हूं.’’‘‘जी कहिए…’’

‘‘अगर कोई लड़की तुम्हें देख कर मुसकरा दे या तुम से हंस कर बात कर ले, तो यह मत समझना कि उसे तुम से प्यार हो गया है या वह तुम से दोस्ती करना चाहती है. लड़कियों और औरतों की इज्जत करना सीखो.’’मैं ने शर्मिंदगी से कहा, ‘‘मुझे माफ दीजिए, फिर ऐसी गलती कभी नहीं करूंगा.’’दीपा पलभर मुझे देखती रही और फिर चली गई.

 

सबसे हसीन वह : दुल्हन के ससुराल आने के बाद क्या हुआ

इन दिनों अनुजा की स्थिति ‘कहां फंस गई मैं’ वाली थी. कहीं ऐसा भी होता है भला? वह अपनेआप में कसमसा रही थी.

ऊपर से बर्फ का ढेला बनी बैठी थी और भीतर उस के ज्वालामुखी दहक रहा था. ‘क्या मेरे मातापिता तब अंधेबहरे थे? क्या वे इतने निष्ठुर हैं? अगर नहीं, तो बिना परखे ऐसे लड़के से क्यों बांध दिया मुझे जो किसी अन्य की खातिर मु झे छोड़ भागा है, जाने कहां? अभी तो अपनी सुहागरात तक भी नहीं हुई है. जाने कहां भटक रहा होगा. फिर, पता नहीं वह लौटेगा भी या नहीं.’

उस की विचार शृंखला में इसी तरह के सैकड़ों सवाल उमड़ते घुमड़ते रहे थे. और वह इन सवालों को झेल भी रही थी.  झेल क्या रही थी, तड़प रही थी वह तो.

लेकिन जब उसे उस के घर से भाग जाने के कारण की जानकारी हुई, झटका लगा था उसे. उस की बाट जोहने में 15 दिन कब निकल गए. क्या बीती होगी उस पर, कोई तो पूछे उस से आ कर.

सोचतेविचारते अकसर उस की आंखें सजल हो उठतीं. नित्य 2 बूंद अश्रु उस के दामन में ढुलक भी आते और वह उन अश्रुबूंदों को देखती हुई फिर से विचारों की दुनिया में चली जाती और अपने अकेलेपन पर रोती.

अवसाद, चिड़चिड़ाहट, बेचैनी से उस का हृदय तारतार हुआ जा रहा था. लगने लगा था जैसे वह अबतब में ही पागल हो जाएगी. उस के अंदर तो जैसे सांप रेंगने लगा था. लगा जैसे वह खुद को नोच ही डालेगी या फिर वह कहीं अपनी जान ही गंवा बैठेगी. वह सोचती, ‘जानती होती कि यह ऐसा कर जाएगा तो ब्याह ही न करती इस से. तब दुनिया की कोई भी ताकत मु झे मेरे निर्णय से डिगा नहीं सकती थी. पर, अब मु झे क्या करना चाहिए? क्या इस के लौट आने का इंतजार करना चाहिए? या फिर पीहर लौट जाना ही ठीक रहेगा? क्या ऐसी परिस्थिति में यह घर छोड़ना ठीक रहेगा?’

वक्त पर कोई न कोई उसे खाने की थाली पहुंचा जाता. बीचबीच में आ कर कोई न कोई हालचाल भी पूछ जाता. पूरा घर तनावग्रस्त था. मरघट सा सन्नाटा था उस चौबारे में. सन्नाटा भी ऐसा, जो भीतर तक चीर जाए. परिवार का हर सदस्य एकदूसरे से नजरें चुराता दिखता. ऐसे में वह खुद को कैसे संभाले हुए थी, वह ही जानती थी.

दुलहन के ससुराल आने के बाद अभी तो कई रस्में थीं जिन्हें उसे निभाना था. वे सारी रस्में अपने पूर्ण होने के इंतजार में मुंहबाए खड़ी भी दिखीं उसे. नईनवेली दुलहन से मिलनजुलने वालों का आएदिन तांता लग जाता है, वह भी वह जानती थी. ऐसा वह कई घरों में देख चुकी थी. पर यहां तो एकबारगी में सबकुछ ध्वस्त हो चला था. उस के सारे संजोए सपने एकाएक ही धराशायी हो चले थे. कभीकभार उस के भीतर आक्रोश की ज्वाला धधक उठती. तब वह बुदबुदाती, ‘भाड़ में जाएं सारी रस्मेंरिवाज. नहीं रहना मु झे अब यहां. आज ही अपना फैसला सुना देती हूं इन को, और अपने पीहर को चली जाती हूं. सिर्फ यही नहीं, वहां पहुंच कर अपने मांबाबूजी को भी तो खरीखोटी सुनानी है.’ ऐसे विचार उस के मन में उठते रहे थे, और वह इस बाबत खिन्न हो उठती थी.

इन दिनों उस के पास तो समय ही समय था. नित्य मंथन में व्यस्त रहती थी और फिर क्यों न हो मंथन, उस के साथ ऐसी अनूठी घटना जो घटी थी, अनसुल झी पहेली सरीखी. वह सोचती, ‘किसे सुनाऊं मैं अपनी व्यथा? कौन है जो मेरी समस्या का निराकरण कर सकता है? शायद कोई भी नहीं. और शायद मैं खुद भी नहीं.’

फिर मन में खयाल आता, ‘अगर परीक्षित लौट भी आया तो क्या मैं उसे अपनाऊंगी? क्या परीक्षित अपने भूल की क्षमा मांगेगा मुझ से? फिर कहीं मेरी हैसियत ही धूमिल तो नहीं हो जाएगी?’ इस तरह के अनेक सवालों से जूझ रही थी और खुद से लड़ भी रही थी अनुजा. बुदबुदाती, ‘यह कैसी शामत आन पड़ी है मु झ पर? ऐसा कैसे हो गया?’

तभी घर के अहाते से आ रही खुसुरफुसुर की आवाजों से वह सजग हो उठी और खिड़की के मुहाने तक पहुंची. देखा, परीक्षित सिर  झुकाए लड़खड़ाते कदमों से, थकामांदा सा आंगन में प्रवेश कर रहा था.

उसे लौट आया देखा सब के मुर झाए चेहरों की रंगत एकाएक बदलने लगी थी. अब उन चेहरों को देख कोई कह ही नहीं सकता था कि यहां कुछ घटित भी हुआ था. वहीं, अनुजा के मन को भी सुकून पहुंचा था. उस ने देखा, सभी अपनीअपनी जगहों पर जड़वत हो चले थे और यह भी कि ज्योंज्यों उस के कदम कमरे की ओर बढ़ने लगे. सब के सब उस के पीछे हो लिए थे. पूरी जमात थी उस के पीछे.

इस बीच परीक्षित ने अपने घर व घर के लोगों पर सरसरी निगाह डाली. कुछ ही पलों में सारा घर जाग उठा था और सभी बाहर आ कर उसे देखने लगे थे जो शर्म से छिपे पड़े थे अब तक. पूरा महल्ला भी जाग उठा था.

जेठानी की बेटी निशा पहले तो अपने चाचा तक पहुंचने के लिए कदम बढ़ाती दिखी, फिर अचानक से अपनी नई चाची को इत्तला देने के खयाल से उन के कमरे तक दौड़तीभागतीहांफती पहुंची. चाची को पहले से ही खिड़की के करीब खड़ी देख वह उन से चिपट कर खड़ी हो गई. बोली कुछ भी नहीं. वहीं, छोटा संजू दौड़ कर अपने चाचा की उंगली पकड़ उन के साथसाथ चलने लगा था.

परीक्षित थके कदमों से चलता हुआ, सीढि़यां लांघता हुआ दूसरी मंजिल के अपने कमरे में पहुंचा. एक नजर समीप खड़ी अनुजा पर डाली, पलभर को ठिठका, फिर पास पड़े सोफे पर निढाल हो बैठ गया और आंखें मूंदें पड़ा रहा.

मिनटों में ही परिवार के सारे सदस्यों का उस चौखट पर जमघट लग गया. फिर तो सब ने ही बारीबारी से इशारोंइशारों में ही पूछा था अनुजा से, ‘कुछ बका क्या?’

उस ने एक नजर परीक्षित पर डाली. वह तो सो रहा था. वह अपना सिर हिला उन सभी को बताती रही, अभी तक तो नहीं.’

एक समय ऐसा भी आया जब उस प्रागंण में मेले सा समां बंध गया था. फिर तो एकएक कर महल्ले के लोग भी आते रहे, जाते रहे थे और वह सो रहा था जम कर. शायद बेहोशी वाली नींद थी उस की.

अनुजा थक चुकी थी उन आनेजाने वालों के कारण. चौखट पर बैठी उस की सास सहारा ले कर उठती हुई बोली, ‘‘उठे तो कुछ खिलापिला देना, बहू.’’ और वे अपनी पोती की उंगली पकड़ निकल ली थीं. माहौल की गर्माहट अब आहिस्ताआहिस्ता शांत हो चुकी थी. रात भी हो चुकी थी. सब के लौट जाने पर अनुजा निरंतर उसे देखती रही थी. वह असमंजस में थी. असमंजस किस कारण से था, उसे कहां पता था.

परिवार के, महल्ले के लोगों ने भी सहानुभूति जताते कहा था, ‘बेचारे ने क्या हालत बना रखी है अपनी. जाने कहांकहां, मारामारा फिरता रहा होगा? उफ.’

आधी रात में वह जगा था. उसी समय ही वह नहाधो, फिर से जो सोया पड़ा, दूसरी सुबह जगा था. तब अनुजा सो ही कहां पाई थी. वह तो तब अपनी उल झनोंपरेशानियों को सहेजनेसमेटने में लगी हुई थी.

वह उस रात निरंतर उसे निहारती रही थी. एक तरफ जहां उस के प्रति सहानुभूति थी, वहीं दूसरी तरफ गहरा रोष भी था मन के किसी कोने में.

सहानुभूति इस कारण कि उस की प्रेमिका ने आत्महत्या जो कर ली थी और रोष इस बात पर कि वह उसे छोड़ भागा था और वह सजीसंवरी अपनी सुहागसेज पर बैठी उस के इंतजार में जागती रही थी. वह उसी रात से ही गायब था. फिर सुहागरात का सुख क्या होता है, कहां जान पाई थी वह.

उस रात उस के इंतजार में जब वह थी, उस का खिलाखिला चेहरा पूनम की चांद सरीखा दमक रहा था. पर ज्यों ही उसे उस के भाग खड़े होने की खबर मिली, मुखड़ा ग्रहण लगे चांद सा हो गया था. उस की सुर्ख मांग तब एकदम से बु झीबु झी सी दिखने लगी थी. सबकुछ ही बिखर चला था.

तब उस के भीतर एक चीत्कार पनपी थी, जिसे वह जबरन भीतर ही रोके रखे हुए थी. फिर विचारों में तब यह भी था, ‘अगर उस से मोहब्बत थी, तो मैं यहां कैसे? जब प्यार निभाने का दम ही नहीं, तो प्यार किया ही क्यों था उस से? फिर इस ने तो 2-2 जिंदगियों से खिलवाड़ किया है. क्या इस का अपराध क्षमायोग्य है? इस के कारण ही तो मु झे मानसिक यातनाएं  झेलनी पड़ी हैं.

मेरा तो अस्तित्व ही अधर में लटक गया है इस विध्वंसकारी के कारण. जब इतनी ही मोहब्बत थी तो उसे ही अपना लेता. मेरी जिंदगी से खिलवाड़ करने का हक इसे किस ने दिया?’ तब उस की सोच में यह भी होता, ‘मैं अनब्याही तो नहीं कहीं? फिर, कहीं यह कोई बुरा सपना तो नहीं?’

दूसरे दिन भी घर में चुप्पी छाई रही थी. वह जागा था फिर से. घर वालों को तो जैसे उस के जागने का ही इंतजार था.  झटपट उस के लिए थाली परोसी गई. उस ने जैसेतैसे खाया और एक बार फिर से सो पड़ा और बस सोता ही रहा था. यह दूसरी रात थी जो अनुजा जागते  बिता रही थी. और परीक्षित रातभर जाने क्याक्या न बड़बड़ाता रहा था. बीचबीच में उस की सिसकियां भी उसे सुनाई पड़ रही थीं. उस रात भी वह अनछुई ही रही थी.

फिर जब वह जागा था, अनुजा के समीप आ कर बोला, तब उस की आवाज में पछतावे सा भाव था, ‘‘माफ करना मु झे, बहुत पीड़ा पहुंचाई मैं ने आप को.’’

‘आप को,’ शब्द जैसे उसे चुभ गया. बोली कुछ भी नहीं. पर इस एक शब्द ने तो जैसे एक बार में ही दूरियां बढ़ा दी थीं. उस के तो तनबदन में आग ही लग गई थी.

रिमझिम, जो उस का प्यार थी, इस की बरात के दिन ही उस ने आत्महत्या कर ली थी. लौटा, तो पता चला. फिर वह भाग खड़ा हुआ था.

लौटने के बाद भी अब परीक्षित या तो घर पर ही गुमसुम पड़ा रहता या फिर कहीं बाहर दिनभर भटकता रहता. फिर जब थकामांदा लौटता तो बगैर कुछ कहेसुने सो पड़ता.

ऐसे में ही उस ने उसे रिमझिम झोड़ कर उठाया और पहली बार अपनी जबान खोली थी. तब उस का स्वर अवसादभरा था, ‘‘मैं पराए घर से आई हूं. ब्याहता हूं आप की. आप ने मु झ से शादी की है, यह तो नहीं भूले होंगे आप?’’

वह निरीह नजरों से उसे देखता रहा था. बोला कुछ भी नहीं. अनुजा को उस की यह चुप्पी चुभ गई. वह फिर से बोली थी, तब उस की आवाज विकृत हो आई थी.

‘‘मैं यहां क्यों हूं? क्या मुझे लौट जाना चाहिए अपने मम्मीपापा के पास? आप ने बड़ा ही घिनौना मजाक किया है मेरे साथ. क्या आप का यह दायित्व नहीं बनता कि सबकुछ सामान्य हो जाए और आप अपना कामकाज संभाल लो. अपने दायित्व को सम झो और इस मनहूसियत को मिटा डालो?’’

चंद लमहों के लिए वह रुकी. खामोशी छाई रही. उस खामोशी को खुद ही भंग करते हुए बोली, ‘‘आप के कारण ही पूरे परिवार का मन मलिन रहा है अब तक. वह भी उस के लिए जो आप की थी भी नहीं. अब मैं हूं और मु झे आप का फैसला जानना है. अभी और अभी. मैं घुटघुट कर जी नहीं सकती. सम झे आप?’’

अनुजा के भीतर का दर्द उस के चेहरे पर था, जो साफ  झलक रहा था. परीक्षित के चेहरे की मायूसी भी वह भलीभांति देख रही थी. दोनों के ही भीतर अलगअलग तरह के झंझावात थे,  झुंझलाहट थी.

परीक्षित उसे सुनता रहा था. वह उस के चेहरे पर अपनी नजरें जमाए रहा था. वह अपने प्रति उपेक्षा, रिमिझम के प्रति आक्रोश को देख रहा था. जब उस ने चुप्पी साधी, परीक्षित फफक पड़ा था और देररात फफकफफक कर रोता ही रहा था. अश्रु थे जो उस के रोके नहीं रुक रहे थे. तब उस की स्थिति बेहद ही दयनीय दिखी थी उसे.

वह सकपका गई थी. उसे अफसोस हुआ था. अफसोस इतना कि आंखें उस की भी छलक आई थीं, यह सोच कर कि ‘मु झे इस की मनोस्थिति को सम झना चाहिए था. मैं ने जल्दबाजी कर दी. अभी तो इस के क्षतविक्षत मन को राहत मिली भी नहीं और मैं ने इस के घाव फिर से हरे कर दिए.’

उस ने उसे चुप कराना उचित नहीं सम झा. सोचा, ‘मन की भड़ास, आंसुओं के माध्यम से बाहर आ जाए, तो ही अच्छा है. शायद इस से यह संभल ही जाए.’ फिर भी अंतर्मन में शोरगुल था. उस में से एक आवाज अस्फुट सी थी, ‘क्या मैं इतनी निष्ठुर हूं जो इस की वेदना को सम झने का अब तक एक बार भी सोचा नहीं? क्या स्त्री जाति का स्वभाव ही ऐसा होता है जो सिर्फ और सिर्फ अपना खयाल रखती है? दूसरों की परवा करना, दूसरों की पीड़ा क्या उस के आगे कोई महत्त्व नहीं रखती? क्या ऐसी सोच होती है हमारी? अगर ऐसा ही है तो बड़ी ही शर्मनाक बात है यह तो.’

उस की तंद्रा तब भंग हुई थी जब वह बोला, ‘‘शादी हो जाती अगर हमारी तो वह आप के स्थान पर होती आज. प्यार किया था उस से. निभाना भी चाहता था. पर इन बड़ेबुजुर्गों के कारण ही वह चल बसी. मैं कहां जानता था कि वह ऐसा कर डालेगी.’’

‘‘पर मेरा क्या? इस पचड़े में मैं दोषी कैसे? मु झे सजा क्यों मिल रही है? आप कहो तो अभी, इसी क्षण अपना सामान समेट कर निकल जाऊं?’’

‘‘देखिए, मु झे संभलने में जरा वक्त लगेगा. फिर मैं ने कब कहा कि आप यह घर छोड़ कर चली जाओ?’’

तभी अनुजा फिर से बिफर पड़ी, ‘‘वह हमारे वैवाहिक जीवन में जहर घोल गई है. अगर वह भली होती तो ऐसा कहर तो न ढाती? लाज, शर्म, परिवार का मानसम्मान, मर्यादा भी तो कोई चीज होती है जो उस में नहीं थी.’’

‘‘इतनी कड़वी जबान तो न बोलो उस के विषय में जो रही नहीं. ऊलजलूल बकना क्या ठीक है? फिर उस ने ऐसा क्या कर दिया?’’ वह एकाएक आवेशित हो उठा था.

वह एक बार फिर से सकपका गई थी. उसे, उस से ऐसे व्यवहार की अपेक्षा तो नहीं थी. फिर वह अब तक यह बात सम झ ही नहीं पाई थी कि गलत कौन है. क्या वह खुद? क्या उस का पति? या फिर वह नासपीटी?

देखतेदेखते चंद दिन और बीत गए. स्थिति ज्यों की त्यों ही बनी रही थी. अब उस ने उसे रोकनाटोकना छोड़ दिया था और समय के भरोसे जी रही थी.

परीक्षित अब भी सोते में, जागते में रोतासिसकता दिखता. कभी उस की नींद उचट जाने पर रात के अंधेरे में ही घर से निकल जाता. घंटों बाद थकाहारा लौटता भी तो सोया पड़ा होता. भूख लगे तो खाता अन्यथा थाली की तरफ निहारता भी नहीं. बड़ी गंभीर स्थिति से गुजर रहा था वह. और अनुजा झुंझलाती रहती थी.

ऐसे में अनुजा को उस की चिंता सताने भी लगी थी. इतने दिनों में परीक्षित ने उसे छुआ भी नहीं था. न खुद से उस से बात ही की थी उस ने.

उस दिन पलंग के समीप की टेबल पर रखी रिमझिम की तसवीर फ्रेम में जड़ी रखी दिखी तो वह चकित हो उठा. उस ने उस फ्रेम को उठाया, रिमझिम की उस मुसकराती फोटो को देर तक देखता रहा. फिर यथास्थान रख दिया और अनुजा की तरफ देखा. तब अनुजा ने देखा, उस की आंखें नम थीं और उस के चेहरे के भाव देख अनुजा को लगा जैसे उस के मन में उस के लिए कृतज्ञता के भाव थे.

अनुजा सहजभाव से बोली, ‘‘मैं ने अपनी हटा दी. रिमझिम दीदी अब हमारे साथ होंगी, हर पल, हर क्षण. आप को बुरा तो नहीं लगा?’’

उस ने उस वक्त कुछ न कहा. काफी समय बाद उस ने उस से पूछा, ‘‘तुम ने खाना खाया?’’ फिर तत्काल बोला, ‘‘हम दोनों इकट्ठे खाते हैं. तुम बैठी रहो, मैं ही मांजी से कह आता हूं कि वे हमारी थाली परोस दें.’’

खाना खाने के दौरान वह देर तक रिमझिम के विषय में बताता रहा. आज पहली बार ही उस ने अनुजा को, ‘आप’ और ‘आप ने’ कह कर संबोधित नहीं किया था. और आज पहली बार ही वह उस से खुल कर बातें कर रहा था. आज उस की स्थिति और दिनों की अपेक्षा सामान्य लगी थी उसे. और जब वह सोया पड़ा था, उस रात, एक बार भी न सिसका, न रोया और न ही बड़बड़ाया. यह देख अनुजा ने पहली बार राहत की सांस ली.

मानसिक यातना से नजात पा कर अनुजा आज गहरी नींद में थी. परीक्षित उठ चुका था और उस के उठने के इंतजार में पास पड़े सोफे पर बैठा दिखा. पलंग से नीचे उतरते जब अनुजा की नजर  टेबल पर रखी तसवीर पर पड़ी तो चकित हो उठी. मुसकरा दी. परीक्षित भी मुसकराया था उसे देख तब.

अब उस फोटोफ्रेम में रिमझिम की जगह अनुजा की तसवीर लगी थी.

‘तुम मेरी रिमझिम हो, तुम ही मेरी पत्नी अनुजा भी. तुम्हारा हृदय बड़ा विशाल है और तुम ने मेरे कारण ही महीनेभर से बहुत दुख  झेला है, पर अब नहीं. मैं आज ही से दुकान जा रहा हूं.’

और तभी, अनुजा को महसूस हुआ कि उस की मांग का सिंदूर सुर्ख हो चला है और दमक भी उठा है. कुछ अधिक ही सुर्ख, कुछ अधिक ही दमक रहा है.

हमसफर भी तुम ही हो : संस्कृति ने किसे चुना अपना जीवनसाथी

अविनाश सुबह समय पर उठा नहीं तो संस्कृति को चिंता हुई. उस ने अविनाश को उठाते हुए उस के माथे पर हाथ रखा. माथा तप रहा था. संस्कृति घबरा उठी. अविनाश को तेज बुखार था. 2 दिन से वह खांस भी रहा था.

संस्कृति ने कल इसी वजह से उसे औफिस जाने से मना कर दिया था. मगर आज तेज बुखार भी था. उस ने जल्दी से अविनाश को दवा खिला कर माथे पर ठंडे पानी की पट्टी रखी.

संस्कृति और अविनाश की शादी को अभी ज्यादा वक्त नहीं गुजरा था. 2 साल ही हुए थे. पिछले साल तक सासससुर साथ में रहते थे. मगर कोरोना में संस्कृति की जेठानी की मौत हो गई तो सासससुर बड़े बेटे के पास रहने चले गए. उस के बाद करोना का प्रकोप बढ़ता ही गया.

पिछले कुछ समय से टीवी चैनल्स पर दिल्ली के अस्पतालों में कोरोना से जूझने वालों की हालत देख कर वह वैसे भी परेशान थी. कहीं वैंटीलेटर नहीं, तो कहीं औक्सीजन नहीं। मरीजों को अस्पतालों में बैड तक नहीं मिल रहा था. ऐसे में अब उन का क्या होगा, यह सोच कर ही वह कांप उठी.

जल्दी से उस ने मां को फोन लगाया,”मां, अविनाश को सुबह से बहुत तेज बुखार है, क्या करूं?”

“बेटा, यह समय ही बुरा चल रहा है. राजू भी कोरोना पौजिटिव है वरना उसे भेज देती. हम खुद उस की देखभाल में लगे हुए हैं. तू ऐसा कर, जल्दी से डाक्टर को बुला और दवाएं शुरू कर.”

“हां मां, वह तो करना ही होगा. मेरी सास की भी तबीयत भी सही नहीं चल रही है. वरना जेठजी को ही बुला लेती.”

“घबरा नहीं, बेटी. धैर्य से काम ले. सब ठीक हो जाएगा,” मां ने समझाने का प्रयास किया.

संस्कृति ने पति का कोरोना टेस्ट कराया. तब तक फैमिली डाक्टर से पूछ कर दवाएं भी देती रही. इस बीच अविनाश की हालत ज्यादा खराब होने लगी तो वह उसे ले कर अस्पताल भागी.

2 अस्पतालों से निराश लौटने के बाद तीसरे में मुश्किल से बैड का इंतजाम हो सका. सासससुर और जेठ भी दूसरे शहर में थे सो मदद के लिए आ नहीं सके. वैसे भी दिल्ली में लौकडाउन लगा हुआ था. रिश्तेदार चाह कर भी उस की मदद करने नहीं आ सकते थे.

आसपड़ोस वालों ने कोरोना के डर से दरवाजे बंद कर लिए. तब संस्कृति ने अपने दोस्तों को फोन लगाया पर सब ने बहाने बना दिए. अकेली संस्कृति पति की सेवा में लगी हुई थी.

अस्पताल में मरीजों की लंबी कतारों और मौत के तांडव के बीच किसी तरह संस्कृति खुद को बचाते हुए पति के लिए दौड़भाग करने में लग गई. कभी दवा की परची ले कर भागती तो कभी खाना ले कर। कभी डाक्टर से गिड़गिड़ाती तो कभी थकहार कर बैठ जाती.

उसे कोरोना वार्ड में जाने की इजाजत नहीं थी. बाहर रिसैप्शन में बैठ कर ही पति के ठीक होने की कामना करती रहती. उस पर पति की तबीयत अच्छी होने के बजाय बिगड़ती जा रही थी.

उस दिन भी डाक्टर ने परची में कई दवाएं जोड़ कर लिखीं. वह दवाएं लेने गई मगर जो सब से जरूरी दवा थी वही नहीं मिली. अस्पताल में उस का स्टौक खत्म हो चुका था. अब वह क्या करेगी? बदहवास सी वह अस्पताल के बैंच पर बैठ गई. बगल में ही परेशान सा एक युवक भी बैठा हुआ था.

संस्कृति ने उस की तरफ मुखातिब हो कर पूछा,”आप बता सकते हैं यह दवा मुझे कहां मिलेगी?”

“मैं खुद यह दवा ढूंढ़ रहा हूं. आसपास तो मिली नहीं. मेरे दोस्त ने बताया है कि नोएडा में उस की शौप है. उस ने कुछ दवाएं स्टौक कर के रखी हैं, सो वह मुझे दे देगा. अभी जाने की ही सोच रहा था. परची लाइए, मैं अपने साथ आप के लिए भी दवा ले आता हूं.”

“बहुत मेहरबानी होगी. सुबह से इस के लिए परेशान हो रही थी,”पसीना पोंछते हुए संस्कृति ने कृतज्ञ स्वर में कहा.

“मेहरबानी की कोई बात नहीं. इंसान ही इंसान के काम आता है. बस इतना शुक्र मनाइए कि दवा वहां मिल जाए,” कह कर वह चला गया.

करीब 2-3 घंटे बाद लौटा तो उस के चेहरे पर परेशानी की लकीरों के बावजूद खुशी थी.

“यह लीजिए, बड़ी मुश्किल से मिली, मगर मिल गई यही बहुत है.”

“बहुतबहुत शुक्रिया. कितने की है?” संस्कृति का चेहरा भी खिल उठा था.

“अरे नहीं, पैसे की जरूरत नहीं. आप पहले यह दवा खिलाइए मरीज को.

उस दिन के बाद से दोनों में बातचीत होने लगी. वह अपने भाई की देखभाल में लगा था और संस्कृति पति के लिए दौड़भाग कर रही थी. दोनों का दर्द एकसा ही था.

संस्कृति जब भी व्यथित होती तो उस के कंधों पर सिर रख कर रो लेती. कोई चीज लानी होती तो प्रतीक ले कर आता. संस्कृति को घर छोड़ कर आता.

धीरेधीरे तकलीफ के इन दिनों में 2 अजनबी एक बंधन में बंधते जा रहे थे. उन के बीच एक अजीब सा आकर्षण भी था, जो दोनों के इस बंधन को और मजबूत बना रहा था.

एक दिन अविनाश का औक्सीजन लेवल काफी घट गया. अस्पताल में औक्सीजन सिलैंडर नहीं था. तब प्रतीक ने यह जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली. पूरे दिन कड़ी धूप और गरमी में लाइन में लग कर आखिर वह औक्सीजन सिलैंडर ले कर ही लौटा था.

उस दिन संस्कृति ने पूछा था,”आप मेरे लिए इतना कुछ कर रहे हैं, इतना खयाल रखते हैं मगर क्यों? मैं तो आप की कुछ भी नहीं लगती. फिर बताओ न ऐसा क्यों कर रहे हो?”

“पहली बात, हर क्यों का जवाब नहीं होता और दूसरी बात, हम दोनों हमसफर नहीं हैं तो क्या हुआ हमदर्द तो हैं ना. आप के दर्द को मैं बहुत अच्छे से महसूस कर सकता हूं. आप की तकलीफ देख कर मुझे दुख होता है. बस, किसी भी तरह आप की मदद करना चाहता हूं.”

एक अनकहा सा मगर मजबूत साथ महसूस कर वह गमों के बीच भी मुसकरा उठी थी.

धीरेधीरे अविनाश की तबीयत और भी बिगड़ गई और उस को वैंटिलेटर पर रखना पड़ा. अस्पताल में वैंटीलेटर्स की भी कमी थी. कई वैंटिलेटर्स खराब हो गए.

बदहवास सी संस्कृति ने प्रतीक को फोन लगाया तो पता चला कि उस के भाई को भी कहीं और शिफ्ट करने की नौबत आ गई है.

“आप चिंता न करो संस्कृतिजी, मैं अपने भाई को जिस अस्पताल में ले कर जा रहा हूं, आप के पति को भी वहीं ले कर चलता हूं. वहां वैंटिलेटर की सुविधा है और डाक्टर्स भी अच्छे हैं,” प्रतीक ने उसे ढांढ़स बंधाया और फिर जल्दी ही शिफ्टिंग की सारी व्यवस्था करा दी.

शाम में सब निबट गया तो प्रतीक का हाथ पकड़ कर रुंधे गले से संस्कृति इतना ही कह सकी,”आप नहीं होते तो पता नहीं क्या होता.”

“मैं नहीं होता तो कोई और होता. अच्छे लोगों की मदद के लिए कोई ना कोई आ ही जाता है.”

“ऐसा नहीं है प्रतीकजी. मैं ने अपने दोस्तों, पड़ोसियों और परिचितों सब को देख लिया. इस कठिन समय में कोई भी मेरे साथ खड़ा नहीं. केवल आप हैं जिसे 4-6 दिन पहले तक मैं जानती भी नहीं थी. आज लगता है ऐसे आप के बिना रह ही नहीं सकती.”

उस की बात सुन कर प्रतीक ने एक अलग ही नजर नजर से संस्कृति की तरफ देखा और फिर मुसकरा कर चला गया.

संस्कृति के दिल में अजीब सी बेचैनी होने लगी. वह सोचने लगी कि प्रतीक का साथ इस परेशानी के समय में भी कितना सुकून दे जाता है. अस्पताल में मरीजों के रिश्तेदारों की भागदौड़ और परेशानियों के बीच भी चंद लम्हे वह केवल प्रतीक के बारे में सोचती रह गई.

इसी तरह 2-3 दिन और गुजरे. अविनाश की हालत काफी गंभीर थी. फिर एक दिन सुबहसुबह संस्कृति को सूचना मिली कि उस के पति की मृत्यु हो गई है. एक पल में संस्कृति को लगा जैसे वह अधूरी रह गई. उस का सबकुछ छिन गया है. प्रतीक ने जितना हो सका उसे धैर्य बंधाया. कोरोना की वजह से वह पति के शव को घर भी नहीं ला सकती थी. लौकडाउन लगा हुआ था. घर वालों का आना भी कठिन था. ऐसे में उसे समझ नहीं आ रहा था कि पति को अंतिम विदाई कैसे दे?

इस वक्त भी प्रतीक ही उस के काम आया. मुश्किल की इस घड़ी में सब से पहले उस ने संस्कृति को शांत कराया फिर उस के पति को शमशान तक ले जाने का सही से इंतजाम कराया. संस्कृति के साथ वह शमशान तक गया. फिर संस्कृति को उस के घर छोड़ने आया. संस्कृति लगातार रो रही थी. उस के हाथपैर कांप रहे थे.

प्रतीक समझ रहा था कि उस की तबीयत खराब है. वह अकेली है सो अपने खानेपीने को ले कर लापरवाह रहेगी तो और तबीयत खराब होगी.

तब प्रतीक ने हाथपैर धो कर और कपड़े बदल कर उस की रसोई में प्रवेश किया और सब से पहले चाय बनाई. संस्कृति के साथ खुद भी बैठ कर उस ने चाय पी. फिर संस्कृति को नहाने भेज कर खुद दालचावल बनाने लगा. संस्कृति को खाना खिला कर उस के लिए सब्जी, फल, दूध आदि का इंतजाम कर और सांत्वना दे कर वह वापस लौट गया.

2-3 दिनों बाद जब संस्कृति थोड़ी सामान्य हुई और पति की मौत के सदमे से उबरी तो उसे प्रतीक की याद आई. प्रतीक उस के लिए अपनों से बढ़ कर बन चुका था. मगर उसे पता नहीं था कि वह कहां रहता है, क्या जौब करता है? बस एक फोन नंबर था. उस ने फोन मिलाया तो नंबर बंद आ रहा था. संस्कृति घबरा उठी. वह प्रतीक से से संपर्क करना चाहती थी मगर ऐसा हो ना सका. 2-3 घंटे वह लगातार फोन ट्राई करती रही मगर फोन बंद ही आ रहा था.

अब उस से रहा नहीं गया. कुछ सोच कर वह उसी अस्पताल में पहुंची जहां उस के पति और प्रतीक का भाई ऐडमिट थे. वह रिसैप्शन एरिया में घूमघूम कर प्रतीक को खोजने लगी क्योंकि अकसर दोनों वहीं बैठे होते थे. फिर वह उसे खोजती हुई कैंटीन में भी गई. हर तरफ चक्कर लगा लिया मगर प्रतीक कहीं नजर नहीं आ रहा था. थक कर वह वापस रिसैप्शन में आ कर बैठ गई और सोचने लगी अब क्या करे.

तभी उसे वह नर्स नजर आई जिस से संस्कृति की जानपहचान हो गई थी. संस्कृति के पति की देखभाल वही नर्स करती थी. संस्कृति उसे अकसर अम्मां कह कर पुकारा करती. नर्स ने प्रतीक को भी उस के साथ कई बार देखा हुआ था. संस्कृति दौड़ कर नर्स के पास गई.

दुखी स्वर में नर्स ने कहा,”सौरी बेबी, तुम्हारे पति को हम बचा नहीं पाए.”

“जो लिखा था वह हो गया पर यह बताओ, अम्मां आप को प्रतीक याद है, जो अकसर मेरे साथ होता था? उस के भाई का इलाज चल रहा था.”

“हां बेबी, उस के भाई की भी तो मृत्यु हो गई. वह खुद भी ऐडमिट है. उसे भी कोरोना है और जानती हो, बेबी वह तेरे पति वाले बैड पर ही है. बैड नंबर 125.”

“सच अम्मां, आप उसे पहचानती हो ना?”

“हां बेबी, पहचानती हूं. तेरी बहुत हैल्प करता था. पर अब उस की हैल्प करने वाला कोई नहीं. अकेला है वह.”

“मैं हूं न अम्मां. अब उस के लिए किसी भी चीज की जरूरत पड़े तो मुझे बताना. मैं उस के अटेंडैंट के रूप में अपना नाम लिखवा देती हूं.”

“ठीक है, बेबी मैं बताती हूं तुझे.”

इस के बाद संस्कृति पूरे मन से प्रतीक की सेवा में लग गई. उस के लिए घर का खाना, फल, दवाएं वगैरह ले कर आना, उस की हर जिम्मेदारी अपने ऊपर लेना, डाक्टरों से उस की तबियत की हर वक्त जानकारी लेते रहना जैसे काम वह पूरे उत्साह से कर रही थी. इस बीच प्रतीक की हालत बिगड़ी और उसे आईसीयू ले जाने की जरूरत पड़ गई.

इस के लिए अस्पताल के क्लर्क ने उस के आगे एक फौर्म बढ़ाया. उस में मरीज के साथ क्या संबंध है, यह लिख कर हस्ताक्षर करना था.

संस्कृति कुछ पलों के लिए सोचती रही कि वह क्या लिखे. फिर उस ने उस खाली जगह पर ‘पत्नी’ लिख कर साइन कर दिया. क्लर्क को कागज थमा कर वह खुद में ही मुसकरा उठी.

2-3 दिन आईसीयू में रह कर प्रतीक की हालत में सुधार शुरू हुआ और उसे कोविड वार्ड में वापस शिफ्ट कर दिया गया.

7-8 दिनों तक लगातार सुधार होने और रिपोर्ट नैगेटिव आने के बाद उसे डिस्चार्ज भी कर दिया गया. इतने दिनों तक संस्कृति ने भी अपना खानापीना और नींद भूल कर दिनरात प्रतीक की सेवा की थी.

डिस्चार्ज वाले दिन वह बहुत खुश थी. उस ने सीधा अपने घर के लिए कैब बुक किया और प्रतीक को अपने घर ले आई.

प्रतीक ने टोका तो संस्कृति ने थोड़े शरारती अंदाज में जवाब दिया,” मैं ने फौर्म में एक जगह यह लिख कर साइन किया है कि मैं तुम्हारी पत्नी हूं और इसलिए अब मेरा और तुम्हारा घर अलगअलग नहीं, बल्कि एक ही होगा.”

“मगर संस्कृति लोग क्या कहेंगे?”

“लोगों का क्या है प्रतीक, जब मुझे जरूरत थी तो क्या लोग मेरी मदद के लिए आगे आए थे? नहीं न… उस वक्त तुम ने मेरा साथ दिया. अब मेरी बारी है. इस में गलत क्या है? तुम थोड़े ठीक हो जाओ फिर सोचेंगे कि क्या करना है,” संस्कृति ने अपना फैसला सुना दिया.

करीब 10 दिन संस्कृति ने जीभर कर प्रतीक का खयाल रखा. हर तरह से उस की सेहत पहले की तरह बनाने और खुश रखने का प्रयास करती रही.

संस्कृति एक संयुक्त परिवार से संबंध रखती थी. ससुराल में धनसंपत्ति की कमी नहीं थी. यह घर भी पति के बाद उस के नाम हो चुका था. पति ने उस के लिए काफी संपत्ति और गहने भी छोड़े थे. बस एक हमसफर की कमी थी, जिसे प्रतीक पूरा कर सकता था.

उस दिन शाम में संस्कृति ने प्रतीक के हाथों को थाम कर कहा,”जो बात मैं ने अनजाने ही उस फौर्म में लिखा, क्या हम उसे हकीकत का रूप नहीं दे सकते? क्या मैं तुम्हें अपने हमदर्द के साथसाथ एक हमसफर के रूप में भी स्वीकार हूं?”

“मुझे लगता है संस्कृति कि अब यह बात कहना फुजूल है.”

“मतलब?”

“मतलब यह कि तुम औलरेडी मेरी हमदर्द और हमसफर बन चुकी हो. हम हमेशा साथ रहेंगे. तुम से बढ़ कर कोई और मेरा खयाल नहीं रख सकता,” कह कर प्रतीक ने संस्कृति को गले से लगा लिया.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें