खुशी के आंसू- भाग 2: आनंद और छाया ने क्यों दी अपने प्यार की बलि?

लेखिका- डा. विभा रंजन  

उस ने जब ज्योति को बताया, वह खुशी से झूम उठी. उस का चेहरा लज्जा से लाल हो गया. उस ने कहा कि शायद इसी कारण आनंद जी अब उसे पढ़ाने नहीं आ रहे हैं. छाया क्या कहती, वह चुप रही. अगले महीने से स्कूल में परीक्षा है. और  स्कूल के अंदर की परीक्षा का कार्यभार छाया के पास था. वह परीक्षा प्रभारी थी. इन दिनों छुट्टी लेना मुश्किल हो जाता है. उस ने सोचा, परीक्षा के बाद से वह विवाह की तैयारी में जुट जाएगी.

छाया की एक सहेली तबस्सुम, जो पहले इसी स्कूल में मनोविज्ञान की शिक्षिका थी, विवाह के बाद हैदराबाद चली गई थी. उस ने अचानक से खबर  किया कि वह दिल्ली आई है और उस से मिलने के लिए आना चाहती है. छाया ने उसे दिन के खाने पर बुला लिया.

“ज्योति मेरी छोटी बहन है.”

“जानता हूं, आगे?”

“मैं उसे बहुत प्यार करती हूं.”

“ठीक है, फिर?”

“पापा ने मरते समय मुझ से वादा लिया था, मैं ज्योति का अच्छे से ध्यान रखूं,उस की हर इच्छा का खयाल रखूं. और उस की इच्छा तुम हो, आनंद.”

ये भी पढ़ें- सीमा: सालों बाद मिले नवनीत से क्यों किनारा कर रही थी

“पागल तो नहीं हो गई हो तुम, क्या बोल रही हो, जरा सोचो.”

“सही सोच रही हूं आनंद. तुम से अच्छा लड़का ज्योति के लिए कहां मिलेगा मुझे?”

“शटअप छाया, पागल मत बनो. ज्योति से मैं 8 साल बड़ा हूं.”

“मेरी मां, मेरे पापा से 9 साल छोटी थीं.”

“ओह माई गौड, क्या हो गया तुम्हें, आई लव यू ओनली.”

“बट, ज्योति लव्स यू.”

“उसे हमारे बारे में नहीं पता है, सब सच बता दो उसे. तुम्हारे पापा का आशीर्वाद भी मिल चुका है हमें. हम तो शादी करने वाले थे. जब वह यह सब सच जानेगी तब वह सब समझ जाएगी.”

“वह दिनभर, बस, तुम्हारी बातें किया करती है. तुम ने पढ़ाते समय उसे जो उदाहरण दिए हैं, उन्हें उस ने जीवन के सूत्र बना लिए हैं. वह बच्ची है आनंद, सच जान कर उस का दिल टूट जाएगा. वह बिखर जाएगी. वह तुम्हें बहुत चाहने लगी है आनंद.”

“इस का मतलब?”

“मतलब यह है, ज्योति तुम को चाहती है और मैं ज्योति को तुम्हें सौपना चाहती हूं.”

नहीं, छाया नहीं, मैं जीतेजी मर जाऊंगा. तुम इतनी कठोर कैसे हो सकती हो, क्या तुम्हारा प्यार झूठा था, नकली था? तुम ऐसा सोच भी कैसे सकती हो?”  आनंद बिफर गया.

“तुम ने अभीअभी मेरी हर समस्या का हल निकालने की बात कही थी, और अब मुकरने लगे,” छाया ने बिलकुल शांत स्वर में कहा.

“मतलब, तुम मेरे बिना रह लोगी?” आनंद ने व्यंग्य करते हुए कहा.

“यह मेरे सवाल का जवाब नहीं है,” छाया ने फिर अपनी बात रखनी चाही.

“तुम मुझे प्यार नहीं करती न,” आनंद बात से हटना चाह रहा था.

“यही समझ लो, ज्योति तो करती है न.”

“मैं पागल हो जाऊंगा छाया, मुझ पर रहम करो.”

“तुम ज्योति को अपना लो. बस, मेरी इतनी बात मान लो आनंद. अगर कभी भी मुझे प्यार किया होगा, उसी का वास्ता देती हूं मैं तुम्हें.”

“मैं मां से क्या कहूंगा,” आनंद ने आखिरी दांव फेंका.

“कुछ भी कह देना, बदल गई छाया, बिगड़ गई छाया, जो चाहे सो कह देना.”

“तुम बहुत स्वर्थी हो गई हो छाया. तुम मुझ से प्यार नहीं करतीं. तुम्हें बस अपनी बहन से प्यार है. तुम ने मुझे जीतेजी मार दिया. आज का दिन मैं कभी भी भूल नहीं पाऊंगा.”

“चलो, मुझे छोड़ दो.”

“मैं क्या छोडूंगा तुम्हें, तुम ने मुझे छोड़ दिया.”

आनंद ने बाइक स्टार्ट की. छाया चुपचाप पीछे बैठ गई. आनंद उसे घर से कुछ दूरी पर छोड़ छाया को बिना देखे तेजी से निकल गया. छाया रातभर सो न सकी. वह सारी रात बेचैन रही. उस का स्कूल जाने का मन नहीं था, पर आज जाना जरूरी था, इसलिए उसे जाना पडा. वह सीधे क्लासरूम में चली गई. क्लास लेने के बाद वह लाइब्रेरी में जा कर बैठ गई.

आज उस में आनंद की सामना करने की हिम्मत नहीं हो रही थी. उस ने पर्स से एक किताब निकाली और पढ़ने की बेकार कोशिश करने लगी. पढ़ने में बिलकुल मन नहीं लग रहा था. पर समय काटना था क्योंकि अभी आनंद स्टाफरूम में होगा. घंटी लगने के बाद वह उठी और क्लास लेने चली गई. उस दिन छाया दिनभर आनंद के सामने आने से बचती रही.

अब छाया ने सोच लिया, बस, पापा के साल होने में मात्र 3 महीने हैं. उसे अब ज्योति की विवाह की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए. उसे आनंद पर विश्वास था, वह उसे धोखा नहीं देगा. अब उसे ज्योति को आनंद से विवाह की बात बता देनी चाहिए.

उस दिन छाया को जल्दी घर आना था, पर देर हो रही थी. तबस्सुम अपनी 3 महीने की खुबसूरत बेटी नूर को ले कर  छाया के घर आ गई थी. ज्योति नूर को बहुत प्यार कर रही थी.

ये भी पढ़ें- घुटन: मैटरनिटी लीव के बाद क्या हुआ शुभि के साथ?

“दीदी, जी करता है, मैं आप की बेटी को  रख लूं,”   ज्योति ने नूर को पुचकारते हुए कहा.

“रख लो,”  तबस्सुम ने हंस कर कहा.

तबस्सुम ज्योति से पहली बार मिल रही थी. “अगर अंकलजी नहीं गुजरते तब, अभी तक तेरी छाया दीदी को भी मुन्ना या मुन्नी हो गई होती. आनंद और छाया, मम्मी और पापा बन गए होते. अंकलजी अपने सामने शादी नहीं देख पाए पर, उन का आशीर्वाद तो  इन दोनों को मिल ही चुका  है.”

“क्या कहा आप ने तबस्सुम दी?” ज्योति ने हैरत से पूछा.

सिंदूरी मूर्ति- भाग 1: जब राघव-रम्या के प्यार के बीच आया जाति का बंधन

अभी लोकल ट्रेन आने में 15 मिनट बाकी थे. रम्या बारबार प्लेटफौर्म की दूसरी तरफ देख रही थी. ‘राघव अभी तक नहीं आया. अगर यह लोकल ट्रेन छूट गई तो फिर अगली के लिए आधे घंटे का इंतजार करना पड़ेगा’, रम्या सोच रही थी.

तभी रम्या को राघव आता दिखाई दिया. उस ने मुसकरा कर हाथ हिलाया. राघव ने भी उसे एक मुसकान उछाल दी. रम्या ने अपने इर्दगिर्द नजर दौड़ाई. अभी सुबह के 7 बजे थे. लिहाजा स्टेशन पर अधिक भीड़ नहीं थी. एक कोने में कंधे से स्कूल बैग लटकाए 3-4 किशोर, एक अधेड़ उम्र का जोड़ा व कुछ दूरी पर खड़े लफंगे टाइप के 4-5 युवकों के अलावा स्टेशन एकदम खाली था.

रम्या प्लेफौर्म की बैंच से उठ कर प्लेटफौर्म के किनारे आ कर खड़ी हुई तो उस का मोबाइल बज उठा. उस ने अपने मोबाइल को औन किया ही था कि अचानक किसी ने पीछे से उस की पीठ में छुरा भोंक दिया. एक तेज धक्के से वह पेट के बल गिर पड़ी, जिस से उस का सिर भी फट गया और वह बेहोश हो गई.

ये भी पढ़ें- समाधान: क्या ममता को मां बनने का सुख मिला?

राघव जब तक उस तक पहुंच पाता, हमलावर नौ दो ग्यारह हो चुका था. चारों तरफ चीखपुकार गूंज उठी. रेलवे पुलिस ने तत्काल उसे सरकारी अस्पताल पहुंचाने का इंतजाम किया. रम्या के मोबाइल फोन से उस के पापा को कौल की. संयोग से वे स्टेशन के बाहर ही खड़े हो अपने एक पुराने परिचित से बातचीत में मग्न हो गए थे. वे उस रोज रम्या के साथ ही घर से स्टेशन तक आए थे. उन्हें चेंग्ल्पप्त स्टेशन पर कुछ काम था. इसीलिए वे बाहर निकल गए जबकि रम्या परानुरू की लोकल ट्रेन पकड़ने के लिए स्टेशन पर ही रुक गई. रम्या रोज 2 ट्रेनें बदल कर महिंद्रा सिटी अपने औफिस पहुंचती थी.

अचानक फोन पर यह खबर सुन कर रम्या के पिता की हालत बिगड़ने लगी. यह देख कर उन के परिचित उन्हें धैर्य बंधाते हुए साथ में अस्पताल चल पड़े.

रम्या को तुरंत आईसीयू में भरती कर लिया गया. घर से भी उस की मां, बड़ी बहन, जीजा सभी अस्पताल पहुंच गए. डाक्टर ने 24 घंटे का अल्टीमेटम देते हुए कह दिया कि यदि इतने घंटे सकुशल निकल गए तो बचने की उम्मीद है.

मां और बहन का रोरो कर बुरा हाल था. उन का दामाद, डाक्टर और मैडिकल स्टोर के बीच चक्करघिन्नी सा घूम रहा था.

ये भी पढ़ें- मजाक: मिलावटी खाओ, एंटीबॉडी बढ़ाओ

राघव सिर पकड़े एक कोने की बैंच पर  बैठ गया. वह दूर से रम्या के मम्मीपापा और बड़ी बहन को देख रहा था. क्या बोले और कैसे, उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था. रम्या ने बताया था कि उस के परिवार के लोग गांव में रहते हैं. अत: वे तमिल के अलावा और कोई भाषा नहीं जानते थे जबकि वह शुरू से ही पढ़ाई में होशियार थी. इसीलिए गांव से निकल कर होस्टल में पढ़ने आ गई थी और फिर इंजीनियरिंग कर नौकरी कर रही थी वरना उस की दीदी का तो 12वीं कक्षा के बाद ही पास के गांव में एक संपन्न किसान परिवार में विवाह कर दिया गया था. सुबह से दोपहर हो गई वह अपनी जगह से हिला ही नहीं, अंदर जाने की किसी को अनुमति नहीं थी. उस ने रम्या की खबर उस के औफिस में दी तो कुछ सहकर्मियों ने शाम को हौस्पिटल आने का आश्वासन दिया. अब वह बैठा उन लोगों का इंतजार कर रहा था. वे आए तभी वह भी रम्या के मातापिता से अपनी भावनाएं व्यक्त कर सका.

पिछले 2 सालों से राघव और रम्या औफिस की एक ही बिल्डिंग में काम कर रहे थे. रम्या एक तमिल ब्राह्मण परिवार से थी, जो काफी संपन्न किसान परिवार था, जबकि राघव उत्तर प्रदेश के पिछड़े वर्ग के गरीब परिवार से था. उस का और रम्या का कोई तालमेल ही नहीं, मगर न जाने वह कौन सी अदृश्य डोर से उस की ओर खिंचा चला गया.

ये भी पढ़ें- बलात्कारी की हार

उस की पहली मुलाकात भी रम्या से इसी चेंग्ल्पप्त स्टेशन पर हुई थी, जहां से उसे परानुरू के लिए लोकल ट्रेन पकड़नी थी. उस दिन अपनी कंपनी का ही आईडी कार्ड लटकाए रम्या को देख कर वह हिम्मत कर उस के नजदीक पहुंच गया. जब रम्या को ज्ञात हुआ कि वह पहली बार लोकल ट्रेन पकड़ने आया है तो उस ने उस से कहा भी था कि जब उसे पीजी में ही रहना है तो परानुरू की महिंद्रा सिटी में शिफ्ट हो जाए. रोजरोज की परानुरू से चेंग्ल्पप्त की लोकल नहीं पकड़नी पड़ेगी.

इधर-उधर- भाग 2: अंबर को छोड़ आकाश से शादी के लिए क्यों तैयार हो गई तनु?

Writer- Rajesh Kumar Ranga

‘‘नारियल पानी पीना है?’’ तनु ने जोर से कहा.

‘‘पूछ रही हैं या कह रही हैं?’’

‘‘कह रही हूं… तुम्हें पीना हो तो पी सकते हो…’’

अंबर ने फौरन मोटरसाइकिल घुमा दी. विपरीत दिशा से आती गाडि़यों के बीच मोटरसाइकिल को कुशलता से निकालते हुए दोनों नारियल पानी वाले के पास पहुंय गए.

अंबर ने एक ही सांस में नारियल पानी खत्म कर दिया और नारियल को एक ओर उछाल कर जेब से पर्स निकाल कर पैसे दे कर बोला, ‘‘मैं ने अपने नारियल के पैसे दे दिए, आप अपने नारियल के पैसे दे दीजिए.’’

तनु अवाक हो कर अंबर को ताकने लगी.

‘‘बुरा मत मानिएगा तनुजी, आप का और मेरा अभी कोई रिश्ता नहीं है, मैं क्यों आप पर खर्च करूं?’’

तनु हार मानने वालों में से नहीं थी. बोली, ‘‘और जो आप के मातापिता हमारे घर पर काजू, किशमिश और चायकाफी उड़ा रहे हैं उस का क्या?

‘‘बात तो सही है, हम दिल्ली वाले हैं. मुफ्त का माल पर हाथ साफ करना हमें खूब आता है…’’

अंबर ने हंसते हुए कहा, ‘‘चिंता न करें मैं दोनों के पैसे दे चुका हूं, नारियल वाला छुट्टा करवाने गया है.’’

यह सुन कर तनु भी हंसे बगैर नहीं रह पाई.

अंबर के जूते मिट्टी से सन गए थे. उस ने पौलिश वाले बच्चे से जूते पौलिश करवाए, तब तक नारियल वाला भी आ चुका था.

‘‘आप ने देशविदेश में कहां की सैर की है,’’ तनु ने पूछा.

अंबर के पास जवाबहाजिर था, ‘‘यह पूछिए कहां नहीं गया, नौकरी ही ऐसी है पूरा एशिया और यूरोप का कुछ हिस्सा मेरे पास है… आनाजाना लगा ही रहता है…’’

ये भी पढ़ें- प्रसाद: रधिया के साथ तांत्रिक ने क्या किया?

‘‘क्या फर्क लगता है आप को अपने देश और परदेश में?’’

‘‘इस का क्या जवाब दूं, सभी जानते हैं, हम हिंदुस्तानी कानून तोड़ने में विश्वास करते हैं, नियम न मानना हमारे लिए फख्र की बात है… वहां के तो जानवर भी कायदेकानून की हद से बाहर नहीं जाते.’’

‘‘फिर क्या होगा अपने देश का?’’

‘‘फिलहाल तो यह सोचिए हमारा क्या होगा, आसमान पर बादल छा रहे हैं और मेरे 10 गिनने तक बरसात हमें अपने आगोश में ले लेगी.’’

‘घर तो जाना जरूरी है. मेरी दूसरी शिफ्ट भी है,’ तनु मन ही मन बुदबुदाई और फिर ऊंची आवाज में बोली, ‘‘चलते हैं और अगर भीग भी गए तो मुझे फर्क नहीं पड़ता, मुझे बरसात में भीगना पसंद है.’’

‘‘मुझे भी,’’ अंबर ने मोटरसाइकिल स्टार्ट करते हुए कहा, ‘‘मगर यों भीगने से पहले थोड़ा इंतजार करना अच्छा नहीं रहेगा? चलिए रेस्तरां में 1-1 कप कौफी हो जाए, यह मेरा रोज का सिलसिला है…’’

तनु ने मुसकरा कर हामी भर दी. अगले चंद ही मिनटों में दोनों रेस्तरां में थे. अंबर ने ऊंची आवाज में वेटर को आवाज दी और जल्दी से 2 कप कौफी लाने का और्डर दिया. कौफी खत्म कर के अंबर ने एक बड़ा नोट बतौर टिप वेटर को दिया और दोनों बाहर आ गए. बारिश रुकने के बजाय और तेज हो चुकी थी.

पूरे रास्ते तेज बरसात में भीगते हुए तनु को बहुत आनंद आ रहा था. घर पहुंचतेपहुंचते दोनों पूरी तरह भीग चुके थे. अंबर के मातापिता मानो उन का इंतजार ही कर रहे थे, उन के आते ही औपचारिक बातचीत कर के सभी वहां से चल पड़े.

‘‘कैसा लगा लड़का?’’ भाभी ने उतावलेपन से पूछा तो तनु ने भी स्पष्ट कर दिया, ‘‘भाभी दूसरे लड़के को मना ही कर दो, कह दो मेरी तबीयत ठीक नहीं है. मुझे अंबर पसंद है…’’

‘‘तनु, अब अगर वे आ ही रहे हैं तो आने दो. कुछ समय गुजार कर उन्हें रुखसत कर देना… कम से कम हमारी बात रह जाएगी.’’

‘‘लेकिन भाभी जब मुझे अंबर पसंद है, तो इस स्वयंवर की क्या जरूरत है?’’

ठीक 4 बजे एक लंबीचौड़ी गाड़ी आ कर रुकी. गाड़ी में से एक संभ्रांत उम्रदराज जोड़ा और एक नवयुवक उतरा. पूरे परिवार ने बड़े ही सम्मान से उन का स्वागत किया.

तनु ने एक नजर लड़के पर डाली और उस के मुंह से अनायास ही निकल गया, ‘‘आप सूटबूट में तो ऐसे आए हैं मानो किसी इंटरव्यू में आए हो.’’

जयनाथजी ने इशारे से तनु को हद में रहने को कहा.

जवाब में युवक ने एक ठहाका लगाया और फिर बिना ?िझके कहा, ‘‘आप सही कह रही हैं. एक तरह से मैं एक इंटरव्यू से दूसरे इंटरव्यू में आया हूं… दरअसल, हम यहां के कामा होटल को खरीदने का मन बना रहे हैं. अभी उन के निदेशकों से मीटिंग थी, जो किसी इंटरव्यू से कम नहीं थी और यह भी किसी इंटरव्यू से कम नहीं है…’’

ये भी पढ़ें- तुम कैसी हो: क्यों आशा को अपने पति से शिकायत थी?

तनु इधरउधर की औपचारिक बातें करने के बाद मुद्दे पर आ गई. बोली, ‘‘अगर आप लोग इजाजत दें तो मैं और आकाश थोड़ा समय घर से बाहर…’’

‘‘हां जरूर,’’ लगभग सब ने एकसाथ ही कहा.

आकाश ने ड्राइवर से चाबी ली और तनु के लिए गाड़ी का दरवाजा खोल कर बैठने का आग्रह किया. तनु की फरमाइश पर गाड़ी ने एक बार फिर गेटवे औफ इंडिया का रुख किया.

‘‘यहां से एक शौर्टकट है. आप चाहें तो मुड़ सकते हैं 15-20 मिनट बच जाएंगे.’’

‘‘तनुजी आप भूल रही हैं कि इधर नो ऐंट्री है,’’ आकाश ने कहा. फिर मानो उसे कुछ याद आया, ‘‘अगर आप बुरा न मानें तो मैं रास्ते में सिर्फ 10 मिनट के लिए होटल कामा में रुक जाऊं… वहां के निर्देशकों का मैसेज आया है. वे मुझ से मिलना चाहते हैं.’’

तनु ने अनमने मन से हां कर दी. आकाश ने तनु को कौफी शौप में बैठ कर वेटर को आवाज दे कर कौफी और चिप्स का और्डर दिया और स्वयं पुन: माफी मांग कर बोर्डरूम की तरफ चला गया.

10 मिनट के बाद जब आकाश आया तो उस के चेहरे पर खुशी और विजय के भाव थे, ‘‘मेरा पहला इंटरव्यू कामयाब हुआ. यहां की डील फाइनल हो गई है… तनुजी आप हमारे लिए शुभ साबित हुईं…’’

ये भी पढ़ें- चाहत: क्या शोभा के सपने पूरे हुए?

कहीं किसी रोज- भाग 3: आखिर जोया से विमल क्या छिपा रहा था?

नाश्ता करते हुए जोया की रोचक बातों में डूबा रहा विमल. जोया बता रही थी, ‘‘तुम्हें पता है, जब मैं यूरोप से अपनी आर्ट्स की पढ़ाई खत्म कर के  लौटी, और वहां के न्यूड स्कल्प्चर के बारे में स्टूटेंड्स को  बताती, उन्हें पढ़ाती, उन के चेहरे शर्म से लाल हो जाते. मुझे बड़ा मजा आता, मैं बहुत जगह घूमी, तुम्हें पता है डेनमार्क और स्वीडन में धार्मिक लोग सब से कम हैं और वहां सब से अच्छी शिक्षा है, अपराध न के बराबर हैं. ईमानदार लोग है,” जोया और विमल ने काफी अच्छे मूड में नाश्ता खत्म किया, जोया फिर उठ गई और बोली, ‘‘अब तुम औफिस के काम करो, मैं चलती हूं.”

विमल का मन ही नहीं कर रहा था कि जोया उस के पास से जाए, पर मजबूरी थी, एक मीटिंग थी, बोला, ‘‘तुम क्या करती हो पूरा दिन होटल में जोया?”

‘‘आराम, बुक्स, एक्सरसाइज, कुछ फोन पर बातें, फोन पर नेटफ्लिक्स भी देखती हूं.”

‘‘अच्छा? कौनकौन से शोज देखे हैं अब तक?”

‘‘सेक्रेड गेम्स देख रही हूं आजकल, वैसे और भी बहुत से देख लिए.”

विमल की आंखें कुछ चौड़ी हुईं, ‘‘सेक्रेड गेम्स?”

‘‘हां, फिर हैरान हुए तुम?”

विमल हंस पड़ा, जोया चली गई.

शाम को दोनों फिर बहुत देर तक स्विमिंग पूल के किनारे बैठे रहे, चाय भी साथ पी, जोया ने शरारती स्वर में कहा, ‘‘आज डिनर मेरे रूम में?”

विमल ने हां में सिर हिला दिया. विमल अब उस से अपनी फैमिली की बातें करता रहा, अपनी वाइफ और बच्चों के बारे में बताता रहा, जोया पूरी रुचि से सुनती रही, फिर बोली, ‘‘आप अपनी वाइफ को मेरे बारे में बताएंगे?”

‘‘नहीं,” कहता हुआ विमल मुसकरा दिया, तो जोया भी हंस पड़ी, कहा, ‘‘इसलिए मैं ने शादी नहीं की.” दोनों इस बात पर एकदूसरे को छेड़ते रहे, रात को डिनर के लिए जब विमल तैयार होने लगा, मन ही मन यही सोच रहा था कि वह अपनी वाइफ को धोखा दे रहा है, भगवान उसे कभी माफ नहीं करेंगे, यह पाप है वगैरह, पर जब जोया की हसीन कंपनी याद आती, सब नैतिकता धरी की धरी रह जाती.

ये भी पढ़ें- गलतफहमी: क्या रिया ने राज के प्यार को स्वीकार किया?

जोया विमल के साथ समय बिताने के लिए उत्साहित थी, उसे विमल का स्वभाव सरल, सहज लगा था, वह उस से खूब मजाक करने लगी थी, उसे अपनी बातों पर विमल का झेंपना बहुत अच्छा लगता, रात को विमल उस के रूम में आया, दोनों ने काफी सहज हो कर बहुत देर बातें कीं, डिनर आर्डर किया, खूब हंसतेहंसाते खाना खाया, वेटर सब क्लीन कर  गया, तो जोया ने कहा, ‘‘विमल, मुझे तुम से मिल कर अच्छा लगा. यह और बात है कि हम एकदूसरे से बिलकुल अलग हैं.”

‘‘जोया, मैं ने बहुत सोचा कि तुम से दूरी न बढ़ाऊं, पर दिल है कि अब मानता  नहीं,” कहतेकहते विमल ने उसे खींच कर अपनी बांहों में भर लिया. जोया भी उस के सीने से जा लगी, फिर जो होना था, वही हुआ. पूरी रात दोनों ने एक बेड पर ही बिताई. सुबह जोया ही उठ कर फ्रेश हुई पहले, विमल को झकझोर कर हिलाया, ‘‘उठो, आज क्या इरादा है?”

‘‘तुम्हारे साथ ही रातदिन बिताने का इरादा है, और क्या?”

‘‘तुम्हे पता है जौन अपड़ाईक ने कहा है, सैक्स बिलकुल पैसे की तरह होता है, जितना मिले, उतना कम.

‘‘और मुझे डीएच लौरेंस की बात भी सही लगती है कि सैक्स वास्तव में इनसान के लिए सब से करीबी स्पर्शों में से एक स्पर्श होता है, लेकिन इनसान इसी स्पर्श से डरता है.”

‘‘अब तो वही सही लगता है, जो तुम्हें सही लगता है, कभी भी नहीं सोचा था कि ऐसे किसी के करीब आऊंगा.”

जोया की संगत का ऐसा असर हुआ कि हर बात में धर्म और ईश्वर की बात आंख मूंद कर मानने वाले विमल को अब कुछ याद न आता, औफिस के पहले और बाद का सारा समय जोया के साथ होता, वेटर्स और बाकी स्टाफ से दोनों की नजदीकी छुपने वाली थी ही नहीं, पर दोनों को परवाह भी नहीं थी किसी की, विमल पूरे का पूरा बदल रहा था, न उसे सुबह जीवनभर का नियम सूरज पर जल चढ़ाना याद रहता, न कोई फास्ट, अब उसे जोया की तर्कपूर्ण बातें भातीं, दुनियाभर के दार्शनिकों की कोट्स जोया के मुंह से सुन कर उस का दिल खुश हो जाता कि आजकल वह कितनी इंटेलीजेंट महिला के साथ रातदिन बिता रहा है, अपनी फैमिली से बात करता हुआ भी वह अब परेशान न होता, बल्कि उसे फोन रखने की जल्दी होती, वह इस लौकडाउन को अब मन ही मन थैंक्स कहने लगा था. जोया, वह तो थी ही अपनी तरह की एक ही बंदी, विमल का दीवानापन देख वह हंस देती.

अचानक ट्रेनें और बाकी सेवाएं शुरू हुईं, जोया के एक स्टूडेंट ने रूड़की में अपने किसी रिश्तेदार को कह कर पास दिलवा कर जोया के टैक्सी से दिल्ली जाने का इंतजाम कर दिया, वहां से वह अपने भाई के पास रह कर फिर बैंगलोर चली जाती, उस ने यह खबर जब विमल को दी तो विमल को ऐसा झटका लगा कि उस का चेहरा देख जोया भी गंभीर हुई, ‘‘विमल, हमारे रास्ते, मंजिल तो अलग हैं ही, इस में तुम इतना उदास मत हो, मुझे दुख हो रहा है.”

ये भी पढ़ें- सीमा: सालों बाद मिले नवनीत से क्यों किनारा कर रही थी सीमा?

विमल ने उस का हाथ पकड़ लिया. गमगीन से स्वर में वह बोला, ‘‘मैं तो भूल ही गया था कि हमे बिछुड़ना भी होगा.”

जोया अपनी पैकिंग करने लगी.  होटल वालों को इस समय ध्यान रखने के लिए विशेष रूप से थैंक्स कहा, वेटर्स को बढ़िया टिप्स दी, विमल भी टूटे दिल से जाने के रास्ते खोजने लगा. चलते समय जोया विमल के गले लग गई, अपना कार्ड दिया, बोली, ‘‘जब मन करे, फोन कर लेना. वैसे, मैं जानती हूं कि कुछ ही दिन याद आएगी मेरी, फिर अपनी लाइफ में बिजी हो कर कभीकभी ही याद करोगे मुझे.”

‘‘और तुम…?”

जोया बस मुसकरा दी, कहा कुछ नहीं. टैक्सी आ गई, जोया बैठने लगी तो विमल ने बेकरारी से पूछा, ‘‘जोया, कब मिलेंगे?”

‘‘ऐसे ही, कभी भी, कहीं किसी रोज.”

टैक्सी चली गई. विमल का दिल जैसे बहुत उदास हुआ, मन ही मन कहा, ‘‘जोया सिद्दीकी, बहुत याद आओगी तुम.”

मिसफिट पर्सन- भाग 2: जब एक जवान लड़की ने थामा नरोत्तम का हाथ

‘‘क्यों, क्या शादीशुदा लाइन नहीं मारते?’’

‘‘मारते हैं लेकिन उन का स्टाइल जरा पोलाइट होता है जबकि कुंआरे सीधी बात करते हैं.’’

‘‘आप को बड़ा तजरबा है इस लाइन का.’’

‘‘आखिर शादीशुदा हूं. तुम से सीनियर भी हूं,’’ बड़ी अदा के साथ मिसेज बख्शी ने कहा.

दोनों खिलखिला कर हंस पड़ीं.

‘‘आजकल बख्शी साहब की नई सहेली कौन है?’’

‘‘कोई मिस बिजलानी है.’’

‘‘और आप का सहेला कौन है?’’

‘‘यह पता लगाना बख्शी साहब का काम है,’’ इस पर भी जोरदार ठहाका लगा.

‘‘और तेरा अपना क्या हाल है?’’

‘‘आजकल तो अकेली हूं. पहले वाले की शादी हो गई. दूसरे को कोई और मिल गई है. तीसरा अभी कोई मिला नहीं,’’ बड़ी मासूमियत के साथ ज्योत्सना ने कहा.

‘‘इस नए कस्टम अधिकारी के बारे में क्या खयाल है?’’

‘‘हैंडसम है, बौडी भी कड़क है. बात बन जाए तो चलेगा.’’

‘‘ट्राई कर के देख. वैसे अगर मैरिड हुआ तो?’’

‘‘तब भी चलेगा. शादीशुदा को ट्रेनिंग नहीं देनी पड़ती.’’

फिर इस तरह के भद्दे मजाक होते रहे. ज्योत्सना अपने केबिन में चली गई. मिसेज बख्शी ने अपने फिक्स्ड अफसर को फोन कर दिया. मालखाने में जमा माल थोड़ी खानापूर्ति और थोड़ा आयात कर जमा करवाने के बाद छोड़ दिया गया.

ये भी पढ़ें- Social Story in Hind: उधार का रिश्ता- लिव इन रिलेशन के सपने देख रही सरिता के साथ क्या हुआ?

मिसेज बख्शी कीमती इलैक्ट्रौनिक उपकरणों का कारोबार करती थीं. वे विदेशों से पुरजे आयात कर, उन को एसेंबल करतीं और उपकरण तैयार कर अपने ब्रैंड नेम से बेचती थीं.

उपकरणों का सीधा आयात भी होता था मगर उस में एक तो समय लगता था दूसरे, पूरा एक कंटेनर या कई कंटेनर मंगवाने पड़ते थे. जमा खर्च भी होता था. पूंजी भी फंसानी पड़ती थी.

दूसरा तरीका डेली पैसेंजर के किसी एक व्यक्ति को या दोचार व्यक्तियों को एक समूह में दुबई, बैंकौक, सिंगापुर, टोकियो, मारीशस या अन्य स्थलों पर भेज कर 3-4 बड़ीबड़ी अटैचियों में ऐसा सामान मंगवा लिया जाता था.

रेलवे की तरह कई एअरलाइनें भी अब मासिक पास बनाती थीं. अकसर विदेश जाने वाले पैसेंजर ऐसे मासिक पास बनवा लेते थे. ज्योत्सना भी ऐसी ही पैसेंजर थी. वह महीने में कई दफा दुबई, सिंगापुर, बैंकौक चली जाती थी. सामान ले आती थी. पहले से अधिकारियों के साथ सैटिंग होने से माल सुविधापूर्वक एअरपोर्ट से बाहर निकल आता था. कभीकभी नरोत्तम जैसा अफसर होने से कोई पंगा पड़ जाता जिस से उस के एंप्लायर निबट लेते थे.

नरोत्तम घर पहुंचा. उस को देख उस की पत्नी रमा ने मुंह बिचकाया. फिर फ्रिज से पानी की बोतल निकाल उस के सामने रख दी. मतलब साफ था, खुद ही पानी गिलास में डाल कर पी लो.

नरोत्तम अपनी पत्नी के इस रूखे व्यवहार का कारण समझता था. वह घर में भी मिसफिट था. उस की पत्नी के मातापिता ने उस से अपनी बेटी का विवाह यह सोच कर किया था कि लड़का ‘कस्टम’ जैसे मलाईदार महकमे में है, लड़की राज करेगी. मगर बाद में पता चला कि लड़का सूफी या संन्यासी किस्म का था.

रिश्वत लेनादेना पाप समझता है, तो उन के अरमान बुझ गए. बढ़े वेतनों के कारण अब नौकरीपेशाओं का जीवनस्तर भी काफी ऊंचा हो गया था. घर में वैसे कोई कमी न थी. पतिपत्नी 2 ही लोग थे. विवाह हुए चंद महीने हुए थे. मगर ऊपर की कमाई का अपना मजा था. कस्टम अधिकारी की पत्नी और वह भी तनख्वाह में गुजारा करना पड़े. कैसा आदमी या पति पल्ले पड़ गया था. कस्टम जैसे महकमे में ऐसा बंदा कैसे प्रवेश पा गया था?

‘‘आज मल्होत्रा साहब शिफौन की साड़ी का पूरा सैट लाए हैं. हर महीने बंधेबंधाए लिफाफे भी पहुंच जाते हैं,’’ चाय का कप सैंटर टेबल पर रखते हुए रमा ने कहा.

रमा का यह रोज का ही आलाप था. मतलब साफ था कि उसे भी अन्य के समान रिश्वतखोर बन रिश्वत लेनी चाहिए.

ज्योत्सना अनेक बार कस्टम अधिकारी नरोत्तम के समक्ष आई. कई बार घोषित किया सामान सही निकला. कई बार सही नहीं निकला. पहले पकड़ा गया सामान मालखाने से किस तरह छूटता था, इस की कोई खबर नरोत्तम को नहीं हुई.

एक दिन नरोत्तम अपनी पत्नी को सैरसपाटे के लिए ले गया. वे एक रेस्तरां पहुंचे जहां बार भी था और डांसफ्लोर भी. पत्नी के लिए ठंडे का और अपने लिए हलके डिं्रक का और्डर दे बैठ गया.

सामने डांसफ्लोर पर अनेक जोड़े नाच रहे थे. थोड़ी देर बाद डांस का दौर समाप्त हुआ. एक जोड़ा समीप की मेज पर बैठने लगा. तभी नरोत्तम की नजर लड़की पर पड़ी. वह चौंक पड़ा. वह ज्योत्सना थी. ज्योत्सना ने भी उसे देख लिया. वह लपकती हुई उस की तरफ आई.

‘‘हैलो हैंडसम, हाऊ आर यू?’’

उस के इस बेबाक व्यवहार पर नरोत्तम सकपका गया. उस को हाथ मिलाना पड़ा.

‘‘साथ में कौन है?’’ नरोत्तम की पत्नी की तरफ हाथ बढ़ाते हुए ज्योत्सना ने कहा.

‘‘मेरी वाइफ है.’’

‘‘वैरी गुड मैच इनडीड,’’ शरारत भरे स्वर में ज्योत्सना ने कहा.

नरोत्तम इस व्यवहार का अपनी पत्नी को क्या मतलब समझाता. वह समझ गया कि ज्योत्सना खामखां उस के समक्ष आई थी. उस का मकसद उस की पत्नी को भरमाना था.

‘‘एंजौय हैंडसम, फिर मिलेंगे,’’ शोखी से मुसकराती वह अपनी मेज की तरफ बढ़ गई.

ये भी पढ़ें- Family Story in Hindi: दिशाएं और भी हैं

वेटर और्डर लेने आ गया. पत्नी गहरी नजरों से पति की तरफ देख रही थी. किसी तरह खाना खाया. ज्योत्सना चहकचहक कर अपने साथी के साथ खापी रही थी.

घर आते ही, जैसे कि नरोत्तम को आशा थी, रमा उस पर बरस पड़ी.

‘‘सामने बड़े सीधेसादे बनते हो. घर से बाहर हैंडसम बन चक्कर चलाते हो.’’

‘‘मेरा उस लड़की से चक्कर तो क्या परिचय भी नहीं है,’’ अपनी सफाई देते हुए नरोत्तम ने कहा.

‘‘चक्कर नहीं है, परिचय भी नहीं है, पर मिलने का ढंग तो ऐसा था मानो बरसों से जानते हो. एकांत स्थान होता तो शायद वह आप से लिपट कर चूमने लगती,’’ पत्नी ने हाथ नचा कर कहा.

तलाक के बाद- भाग 3: जब सुमिता को हुआ अपनी गलतियों का एहसास

Writer- Vinita Rahurikar

फिल्म के इंटरवल में कुछ चिरपरिचित आवाजों ने सुमिता का ध्यान आकर्षित किया. देखा तो नीचे दाईं और आनंदी अपने पति और बच्चों के साथ बैठी थी. उस की बेटी रिंकू चहक रही थी. सुमिता को समझते देर नहीं लगी कि आनंदी का पहले से प्रोग्राम बना हुआ होगा, उस ने सुमिता को टालने के लिए ही रिंकू की तबीयत का बहाना बना दिया. आगे की फिल्म देखने का मन नहीं किया उस का, पर खिन्न मन लिए वह बैठी रही.

अगले कई दिन औफिस में भी वह गुमसुम सी रही. उस की और समीर की पुरानी दोस्त और सहकर्मी कोमल कई दिनों से देख रही थी कि सुमिता उदास और बुझीबुझी रहती है. कोमल समीर को बहुत अच्छी तरह जानती है. तलाक के पहले कोमल ने सुमिता को बहुत समझाया था कि वह गलत कर रही है, मगर तब सुमिता को कोमल अपनी दुश्मन और समीर की अंतरंग लगती थी, इसलिए उस ने कोमल की एक नहीं सुनी. समीर से तलाक के बाद फिर कोमल ने भी उस से बात करना लगभग बंद ही कर दिया था, लेकिन आज सुमिता की आंखों में बारबार आंसू आ रहे थे, तो कोमल अपनेआप को रोक नहीं पाई.

वह सुमिता के पास जा कर बैठी और बड़े प्यार से उस से पूछा, ‘‘क्या बात है सुमिता, बड़ी परेशान नजर आ रही हो.’’

उस के सहानुभूतिपूर्ण स्वर और स्पर्श से सुमिता के मन में जमा गुबार आंसुओं के रूप में बहने लगा. कोमल बिना उस से कुछ कहे ही समझ गई कि उसे अब समीर को छोड़ देने का दुख हो रहा है.

‘‘मैं ने तुम्हें पहले ही समझाया था सुमि कि समीर को छोड़ने की गलती मत कर, लेकिन तुम ने अपनी उन शुभचिंतकों की बातों में आ कर मेरी एक भी नहीं सुनी. तब मैं तुम्हें दुश्मन लगती थी. आज छोड़ गईं न तुम्हारी सारी सहेलियां तुम्हें अकेला?’’ कोमल ने कड़वे स्वर में कहा.

‘‘बस करो कोमल, अब मेरे दुखी मन पर और तीर न चलाओ,’’ सुमिता रोते हुए बोली.

‘‘मैं पहले से ही जानती थी कि वे सब बिना पैसे का तमाशा देखने वालों में से हैं. तुम उन्हें खूब पार्टियां देती थीं, घुमातीफिराती थीं, होटलों में लंच देती थीं, इसलिए सब तुम्हारी हां में हां मिलाती थीं. तब उन्हें तुम से दोस्ती रखने में अपना फायदा नजर आता था. लेकिन आज तुम जैसी अकेली औरत से रिश्ता बढ़ाने में उन्हें डर लगता है कि कहीं तुम मौका देख कर उन के पति को न फंसा लो. बस इसीलिए वे सतर्क हो गईं और तुम से दूर रहने में ही उन्हें समझदारी लगी,’’ कोमल का स्वर अब भी कड़वा था.

ये भी पढ़ें- औलाद: क्यों कुलसूम अपने बच्चे को खुद से दूर करना चाहती थी?

सुमिता अब भी चुपचाप बैठी आंसू बहा रही थी.

‘‘और तुम्हारे बारे में पुरुषों का नजरिया औरतों से बिलकुल अलग है. पुरुष हर समय तुम से झूठी सहानुभूति जता कर तुम पर डोरे डालने की फिराक में रहते हैं. अकेली औरत के लिए इस समाज में अपनी इज्जत बनाए रखना बहुत मुश्किल है. अब तो हर कोई अकेले में तुम्हारे घर आने का मंसूबा बनाता रहता है,’’ कोमल का स्वर सुमिता की हालत देख कर अब कुछ नम्र हुआ.

‘‘मैं सब समझ रही हूं कोमल. मैं खुद परेशान हो गई हूं औफिस के पुरुष सहकर्मियों और पड़ोसियों के व्यवहार से,’’ सुमिता आंसू पोंछ कर बोली.

‘‘तुम ने समीर से सामंजस्य बिठाने का जरा सा भी प्रयास नहीं किया. थोड़ा सा भी धीरज नहीं रखा साथ चलने के लिए. अपने अहं पर अड़ी रहीं. समीर को समझाने का जरा सा भी प्रयास नहीं किया. तुम ने पतिपत्नी के रिश्ते को मजाक समझा,’’ कोमल ने कठोर स्वर में कहा.

फिर सुमिता के कंधे पर हाथ रख कर अपने नाम के अनुरूप कोमल स्वर में बोली, ‘‘समीर तुझ से सच्चा प्यार करता है, तभी

4 साल से अकेला है. उस ने दूसरा ब्याह नहीं किया. वह आज भी तेरा इंतजार कर रहा है. कल मैं और केशव उस के घर गए थे. देख कर मेरा तो दिल सच में भर आया सुमि. समीर ने डायनिंग टेबल पर अपने साथ एक थाली तेरे लिए भी लगाई थी.

‘‘वह आज भी अपने परिवार के रूप में बस तेरी ही कल्पना करता है और उसे आज भी तेरा इंतजार ही नहीं, बल्कि तेरे आने का विश्वास भी है. इस से पहले कि वह मजबूर हो कर दूसरी शादी कर ले उस से समझौता कर ले, वरना उम्र भर पछताती रहेगी.

‘‘उस के प्यार को देख छोटीमोटी बातों को नजरअंदाज कर दे. हम यही गलती करते हैं कि प्यार को नजरअंदाज कर के छोटीमोटी गलतियों को पकड़ कर बैठ जाते हैं और अपना रिश्ता, अपना घर तोड़ लेते हैं. पर ये नहीं सोचते कि घर के साथसाथ हम स्वयं भी टूट जाते हैं,’’ एक गहरी सांस ले कर कोमल चुप हो गई और सुमिता की प्रतिक्रिया जानने के लिए उस के चेहरे की ओर देखने लगी.

‘‘समीर मुझे माफ करेगा क्या?’’ सुमिता उस की प्रतिक्रिया जानने के लिए उस के चेहरे की ओर देखने लगी.

‘‘समीर के प्यार पर शक मत कर सुमि. तू सच बता, समीर के साथ गुजारे हुए 3 सालों में तू ज्यादा खुश थी या उस से अलग होने के बाद के 4 सालों में तू ज्यादा खुश रही है?’’ कोमल ने सुमिता से सवाल पूछा जिस का जवाब उस के चेहरे की मायूसी ने ही दे दिया.

‘‘लौट जा सुमि, लौट जा. इस से पहले कि जिंदगी के सारे रास्ते बंद हो जाएं, अपने घर लौट जा. 4 साल के भयावह अकेलेपन की बहुत सजा भुगत चुके तुम दोनों. समीर के मन में तुझे ले कर कोई गिला नहीं है. तू भी अपने मन में कोई पूर्वाग्रह मत रख और आज ही उस के पास चली जा. उस के घर और मन के दरवाजे आज भी तेरे लिए खुले हैं,’’ कोमल ने कहा.

घर आ कर सुमिता कोमल की बातों पर गौर करती रही. सचमुच अपने अहं के कारण नारी शक्ति और स्वावलंबन के नाम पर इस अलगाव का दर्द भुगतने का कोई अर्थ नहीं है.

ये भी पढ़ें- बलात्कारी की हार

जीवन की सार्थकता रिश्तों को जोड़ने में है तोड़ने में नहीं, तलाक के बाद उसे यह भलीभांति समझ में आ गया है. स्त्री की इज्जत घर और पति की सुरक्षा देने वाली बांहों के घेरे में ही है. फिर अचानक ही सुमि समीर की बांहों में जाने के लिए मचल उठी.

समीर के घर का दरवाजा खुला हुआ था. समीर रात में अचानक ही उसे देख कर आश्चर्यचकित रह गया. सुमि बिना कुछ बोले उस के सीने से लग गई. समीर ने उसे कस कर अपने बाहुपाश में बांध लिया. दोनों देर तक आंसू बहाते रहे. मनों का मैल और 4 सालों की दूरियां आंसुओं से धुल गईं.

बहुत देर बाद समीर ने सुमि को अलग करते हुए कहा, ‘‘मेरी तो कल छुट्टी है. पर तुम्हें तो औफिस जाना है न. चलो, अब सो जाओ.’’

‘‘मैं ने नौकरी छोड़ दी है समीर,’’ सुमि ने कहा.

‘‘छोड़ दी है? पर क्यों?’’ समीर ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘तुम्हारे ढेर सारे बच्चों की परवरिश करने की खातिर,’’ सुमि ने शर्माते हुए कहा तो समीर हंस पड़ा. फिर दोनों एकदूसरे की बांहों में खोए हुए अपने कमरे की ओर चल पड़े.

सिंदूरी मूर्ति- भाग 2: जब राघव-रम्या के प्यार के बीच आया जाति का बंधन

खुद रम्या को तो रोज 2 ट्रेनें बदल कर अपने गांव से यहां आना पड़ता था. उन की बातों के दौरान ही ट्रेन आ गईं. जब तक वह कुछ समझता ट्रेन चल पड़ी. रम्या उस में सवार हो चुकी थी और वह प्लेटफौर्म पर ही रह गया. यह क्या अचानक रम्या प्लेटफौर्म पर कूद गई.

रम्या जब कूदी उस समय ट्रेन रफ्तार में नहीं थी. अत: वह कूदते ही थोड़ा सा लड़खड़ाई पर फिर संभल गई.

राघव हक्काबक्का सा उसे देखते रह गया. फिर सकुचा कर बोला, ‘‘तुम्हें इस तरह नहीं कूदना चाहिए था?’’

‘‘तुम अभी मुझ से ट्रेन के अप और डाउन के बारे में पूछ रहे थे… तुम यहां नए हो… मुझे लगा तुम किसी गलत ट्रेन में न बैठ जाओ सो उतर गई,’’ कह रम्या मुसकराई.

रम्या के सांवले मुखड़े को घेरे हुए उस के घुंघराले बाल हवा में उड़ रहे थे. चौड़े ललाट पर पसीने की बूंदों के बीच छोटी सी काली बिंदी, पतली नाक और पतले होंठों के बीच एक मधुर मुसकान खेल रही थी. राघव को लगा यह तो वही काली मिट्टी से बनी मूर्ति है जिसे उस के पिता बचपन में उसे रंग भरने को थमा देते थे.

‘‘क्या सोच रहे हो?’’ रम्या ने पूछा.

ये भी पढ़ें- बलात्कारी की हार: भाग 1

‘‘यही कि तुम्हें कुछ हो जाता तो, मैं पूरी जिंदगी अपनेआप को माफ न कर पाता… तुम्हें ऐसा हरगिज नहीं करना चाहिए था.’’

‘‘ब्लड… ब्लड…’’ यही शब्द उन वाक्यों के उसे समझ आए, जो डाक्टर रम्या की फैमिली से तमिल में बोल रहा था.

राघव तुरंत डाक्टर के पास पहुंच गया. बोला, ‘‘सर, माई ब्लड ग्रुप इज ओ पौजिटिव.’’

‘‘कम विद मी,’’ डाक्टर ने कहा तो राघव डाक्टर के साथ चल पड़ा. उन्हीं से राघव को पता चला कि शाम तक 5-6 यूनिट खून की जरूरत पड़ सकती है. राघव ने डाक्टर को बताया कि शाम तक अन्य सहकर्मी भी आ रहे हैं. अत: ब्लड की कमी नहीं पड़ेगी.

रक्तदान के बाद राघव अस्पताल के एहाते में बनी कैंटीन में कौफी पीने के लिए आ गया. अस्पताल आए 6 घंटे बीत चुके थे. उस ने एक बिस्कुट का पैकेट लिया और कौफी में डुबोडुबो कर खाने लगा.

तभी उस की नजर सामने बैठे व्यक्ति पर पड़ी, जो कौफी के छोटे से गिलास को साथ में दिए छोटे कटोरे (जिसे यहां सब डिग्री बोलते हैं) में पलट कर ठंडा कर उसे जल्दीजल्दी पीए जा रहा था. रम्या ने बताया था कि उस के अप्पा जब भी बाहर कौफी पीते हैं, तो इसी अंदाज में, क्योंकि वे दूसरे बरतन में अपना मुंह नहीं लगाना चाहते. अरे, हां ये तो रम्या के अप्पा ही हैं. मगर वह उन से कोई बात नहीं कर सकता. वही भाषा की मुसीबत.

तभी उस की नजर पुलिस पर पड़ी, जिस ने पास आ कर उस से स्टेटमैंट ली और उसे शहर छोड़ कर जाने से पहले थाने आ कर अनुमति लेने की हिदायत व पुलिस के साथ पूरा सहयोग करने की चेतावनी दे कर छोड़ दिया.

शाम के 6 बज चुके थे. जब उस के सहकर्मी आए तो राघव की सांस में सांस आई. वे सभी रक्तदान करने के पश्चात रम्या के परिजनों से मिले और राघव का भी परिचय कराया.

तब उस की अम्मां ने कहा, ‘‘हां, मैं ने सुबह से ही इसे यहीं बैठे देखा था. मगर मैं नहीं जान पाई कि ये भी उस के सहकर्मी हैं,’’ और फिर वे राघव का हाथ थाम कर रो पड़ीं.

ये भी पढ़ें- हीरो: क्या समय रहते खतरे से बाहर निकल पाई वह?

उन लोगों के साथ राघव भी लौट गया. वह रोज शाम 7 बजे अस्पताल पहुंच जाता और 9 बजे लौट आता. पूरे 15 दिन तक आईसीयू में रहने के बाद जब रम्या प्राइवेट वार्ड में शिफ्ट हुई तब जा कर उसे रम्या की झलक मिल सकी. रम्या की पीठ का घाव तो भरने लगा था, मगर उस के शरीर का दायां भाग लकवे का शिकार हो गया था, जबकि बाएं भाग में गहरा घाव होने से उसे ज्यादा हिलनेडुलने को डाक्टर ने मना किया था. रम्या निर्जीव सी बिस्तर पर लेटी रहती. अपनी असमर्थता पर आंसू गिरा कर रह जाती.

दुर्घटना के पूरे 6 महीनों के बाद स्वास्थ्य लाभ कर उस दिन रम्या औफिस जौइन करने जा रही थी. सुबह से रम्या को कई फोन आ चुके थे कि वह आज जरूर आए. उस दिन राघव की विदाई पार्टी थी. वह कंपनी की चंडीगढ़ ब्रांच में ट्रांसफर ले चुका था. वह दिन उस का अंतिम कार्यदिवस था.

कंपनी के गेट तक रम्या अपने अप्पा के साथ आई थी. वे वहीं से लौट गए, क्योंकि औफिस में शनिवार के अतिरिक्त अन्य किसी भी दिन आगंतुक का अंदर प्रवेश प्रतिबंधित था. उस का स्वागत करने को कई मित्र गेट पर ही रुके थे. उस ने मुसकरा कर सब का धन्यवाद दिया. राघव एक गुलदस्ता लिए सब से पीछे खड़ा था.

ये भी पढ़ें- 10 Raksha Bandhan Special Stories: भाई-बहन के अटूट बंधन को दर्शाती हैं ये 10 कहानियां

रम्या ने खुद आगे बढ़ कर उस के हाथ से गुलदस्ता लेते हुए कहा, ‘‘शायद तुम इसे मुझे देने के लिए ही लाए हो.’’

एक सम्मिलित ठहाका गूंज उठा. ‘तुम्हारी यही जिंदादिली तो मिस कर रहे थे हम सब,’ राघव ने मन ही मन सोचा.

खुशी के आंसू- भाग 3: आनंद और छाया ने क्यों दी अपने प्यार की बलि?

लेखिका- डा. विभा रंजन  

“यही कि शादी हो गई होती, अब तक छाया और आनंद, मम्मीपापा बन गए होते,”

तबस्सुम ने सच्ची बात कह दी.

ज्योति ने यह सुना तो सन्न रह गई. जो उस ने सुना वह सच है या तबस्सुम दी ने ऐसे ही यह बात कह दी. पर वे आनंद का नाम क्यों ले रही हैं वे किसी और का भी तो नाम ले सकती हैं. इस का मतलब है, दीदी और आनंद जी… ज्योति को कुछ समझ नहीं आ रहा था. उस ने जैसेतैसे खुद को संभाला और अपने चेहरे के भाव को सामान्य कर कर लिया.

तबस्सुम दिनभर रही और रात होने से पहले वापस घर चली गई. पर ज्योति के मन में हलचल मचा गई. मतलब साफ है, पापा भी इन लोगों के बारे में जानते थे, वह कैसे नहीं जान पाई. पापा की बीमारी में अस्पताल में आनंदजी आते रहते थे. उस समय की परिस्थिति ऐसी थी जिस में इन सभी विषयों पर सोचने की फुरसत भी नहीं थी. जब पापा के कैंसर का पता चला तब हम सभी पापा में लग गए. एक बात तो स्पष्ट है कि आनंद और दीदी का प्यार बहुत गहरा है. एकदूसरे के प्रति अटूट विश्वास है. इसी कारण इन्हें किसी को दिखाने की जरूरत नहीं पडी. उसी प्यार में दीदी ने आनंदजी को मुझ से विवाह करने के लिए मना भी लिया. दीदी ने ऐसा क्यों किया? काश, एक बार मुझे सब सच बता दिया होता. यह तो अच्छा हुआ कि तबस्सुम दी ने मुझे सच से अवगत करा दिया वरना…

स्कूल की परीक्षा समाप्त होने के बाद छाया ने ज्योति से कहा, “ज्योति, पापा की बरसी के बाद  मैं तेरे विवाह की सोच रही हूं. बरसी को 2 महीने रह गए हैं. तब तक मैं धीरेधीरे शादी की तैयारियां भी करती रहूंगी.”

ये भी पढ़ें- मजाक: गिरधारी राम खिचड़ी वाला स्कूल

ये भी पढ़ें- Short Story: हिंडोला- दीदी के लिए क्या भूल गई अनुभा अपना प्यार?

“इतनी जल्दी क्या है दीदी,”  ज्योति ने कहा.

“नहीं ज्योति, शुभकार्य में विलंब ठीक नहीं,”  छाया को जैसे हड़बड़ी थी.

“हां, तो ठीक है. अगले सप्ताह 27 तारीख को तुम्हारा जन्मदिन है, उस दिन कुछ कार्यक्रम कर लो,”    ज्योति ने कहा.

“धत, मेरे जन्मदिन के समय ठीक नहीं है, किसी और दिन रखूंगी.” छाया ने मना कर दिया.

“दीदी, मुझे कुछ कहना है,” ज्योति ने आग्रह किया.

“हां, बोलो,” छाया ज्योति को देखते हुए बोली.

“दीदी, इस बार  मैं तुम्हारा जन्मदिन अपनी पसंद से सैलिब्रेट करना चाहती हूं,” ज्योति ने बहुत लाड़ से कहा.

“अरे, मेरा जन्मदिन क्या मनाना,” छाया ने टालना चाहा.

“मैं ने कहा न, इस बार मैं तुम्हारा जन्मदिन सैलिब्रेट करूंगी, फिर तो मैं ससुराल चली जाऊंगी, तुम तो मेरी हर इच्छा पूरी करती हो, इतनी सी बात नहीं मानोगी,” ज्योति  छाया से मनुहार करने लगी.

“अच्छा बाबा, तुम सैलिब्रेट करना, पर भीड़भाड़ नहीं, समझीं,” छाया ने अपनी बात रख दी.

“ठीक है, मैं समझ गई,” ज्योति खुश हो गई.

छाया स्कूल में आनंद से, बस, काम की बात किया करती थी. वह कोशिश करती कि आनंद से उस का सामना कम हो. उस ने आनंद को छोड़ने का फैसला तो कर लिया पर जैसेजैसे दिन बीत रहे थे, उस का मन बोझिल होता जा रहा था. अपने जन्मदिन के दिन उस का मन खिन्न हो उठा क्योंकि हर जन्मदिन पर सब से पहले आनंद का ही फोन आता था. इस रास्ते को तो वह स्वयं ही बंद कर आई है.

छाया का मन बेचैन था, इंतजार करता रहा, आनंद का फोन नहीं आया. छाया ने ज्योति से काम का बहाना बनाया और आनंद से मिलने के लिए स्कूल चली आई. स्कूल आ कर पता चला आनंद ने 2 दिनों की छुट्टी ले रखी है. थोड़ी देर स्कूल में रुकने के बाद वह घर आ गई.

ज्योति उस की बेचैनी समझ रही थी. पर वह चुप थी. ज्योति ने पूरे घर को छाया की पसंद के फूलों से सजाया था. उस ने सारा खाना अपने हाथों से बनाया, यहां तक कि केक भी उस ने बडे प्यार से बनाया. छाया ने कहा था इतनी मेहनत करने की क्या जरूरत है, केक मंगा लेते हैं. पर वह तैयार नहीं हुई.

ये भी पढ़ें- वह नाराज ही चली गई

ज्योति ने छाया को मां की साड़ी दे कर कहा, “दीदी, शाम को यही पहनना.”

“मां की साडी, क्यों?” छाया ने अचरज से पूछा.

“पहन लो न. बस, ऐसे ही. आज तो मेरी हर बात माननी है, याद है न,” ज्योति ने और्डर से कहा.

“अच्छा, हां.”  छाया ने कहा. छाया का मन हो रहा था वह ज्योति से पूछे कि आनंद को बुलाया है या नहीं. पर उस की हिम्मत नहीं हुई. “तुम क्या पहन रही हो?”  छाया ने प्यार से पूछा.

“आज तुम ने जो पीला सूट दिया था न, वह वाला पहनूंगी. ठीक है न?”  ज्योति खुशी से बोली.

शाम को दोनों बहनें तैयार हो रही थीं, तभी बाई ने बताया कि आनंद बाबू आए हैं. छाया का दिल जोर से धड़कने लगा. उसे लगा, वह गिर जाएगी. उस ने अपनेआप को संभाला.

“आ गए आप, मैं ने तो आप को और पहले से आने को कहा था. आप इतनी देर में क्यों आए?” ज्योति का आनंद से बेतकल्लुफ़ हो कर बोलना आनंद और छाया दोनों ने गौर किया.

“वह कुछ काम था, इसलिए देर हो गई, हैप्पी बर्थडे छाया,” आनंद ने रजनीगंधा का एक खुबसूरत बुके देते हुए छाया से सकुचाते हुए कहा.

छाया ने “थैक्स” कह बुके को झट से अपने कलेजे से लगा लिया और अंदर कमरे में जाने लगी.

“दीदी, कहां जा रही हो, केक नहीं काटोगी,” ज्योति ने छाया का हाथ पकड़ा और उसे खींचती हुई आनंद के पास ला कर सोफे पर बिठा दिया और फिर बोली, “मैं केक ले कर आ रही हूं.”

छाया को बड़ी बेचैनी हो रही थी. आनंद से मिलना भी चाह रही थी, जब आनंद सामने आया तब घबराहट सी होने लगी. तभी ज्योति केक ले आई, “हैप्पी बर्थडे टू यू डीयर दीदी, हैप्पी बर्थडे टू यू.”

ज्योति का उत्साह देखते बन रहा था. दोनों बहनों ने एकदूसरे को केक खिलाया फिर आनंद को केक दिया.”केक तो बहुत अच्छा है,” आनंद ने कहा.“ज्योति ने बनाया है,” छाया ने बड़े गर्व से कहा, “आज का सारा इंतजाम मेरी ज्योति ने किया है.”

“ओह, और गिफ्ट क्या दिया?”

“नहीं दी हूं, अभी दूंगी,” ज्योति ने तपाक से कहा, फिर ज्योति ने आनंद के दिए हुए रजनीगंधा के बुके से एक फूल की डंडी निकाल कर छाया को देते हुए कहा,

“त्वदीयं वस्तु दीदी तुभ्यमेव समर्पये.” यानी, “ तुम्हारी चीज तुम्हें ही सौपती हूं दीदी.”

“क्या बोल रही है,” छाया हड़बड़ा गई.

“सही बोल रही हूं दीदी, तुम्हारी चीज मैं तुम्हें वापस लौटा रही हूं,” ज्योति ने आनंद की ओर अपना हाथ दिखाते हुए कहा.

ये भी पढ़ें- सिंदूरी मूर्ति- भाग 1: जब राघव-रम्या के प्यार के बीच आया जाति का बंधन

“मुझे पता चल चुका है दीदी आप दोनों के बारे में. आप दोनों की तो शादी होने वाली थी, पर पापा के असमय मौत से टल गई. सब जानते हुए आप ने कैसे मेरी शादी आनंदजी से तय कर दी. मैं नहीं जानती आप ने आनंदजी को किस तरह मुझ से शादी के लिए मजबूर किया होगा, लेकिन यह सब करते आप ने एक बार भी नहीं सोचा कि जिस दिन मुझे इस सच का पता चलेगा, उस दिन मुझ पर क्या बीतेगी. यह सच जान कर मैं तो आत्महत्या ही कर लेती दीदी.”

“ज्योति, ऐसा मत बोल,” छाया ने उस की बात काटते हुए तड़प कर उस के मुंह पर अपना हाथ रख दिया.

“मैं ने, बस, तेरी खुशी चाही, और कुछ नहीं.”

“ऐसी खुशी किस काम की दीदी, जिस में बाद में पछताना पडे. आप को क्या लगा, अगर आप सच बता देतीं, तब मैं आप से नफरत करने लगती, आप से दूर हो जाती? नहीं दीदी, मैं आप से कभी नफरत कर ही नहीं सकती दीदी, लेकिन आप ने मुझे अपनी ही नजरों में गिरा दिया,” यह सब  बोल कर ज्योती हांफने लगी.

“बस कर ज्योति, बस कर. मैं ने इतनी गहरी बात कभी सोची ही नहीं. मैं बहुत बडी गलती करने जा रही थी, मुझे माफ कर दे. कभीकभी बड़ों से भी नादानियां हो जाती हैं. बस, एक बार मुझे माफ कर दे मेरी बहन.”

“एक शर्त पर,” ज्योति ने कहा.”मैं तेरी हर शर्त मानने को तैयार हूं, तू बोल कर तो देख,” छाया ने कहा.”आप अभी यह केक मेरे होने वाले आनंद जीजाजी को खिलाइए,” ज्योती ने आनंद की ओर इशारा करते हुए  कहा.

“ओके.” छाया ने केक का टुकड़ा आनंद के मुंह में डाला. उस की आंखें, उस का तनमन, उस का रोमरोम  उस से क्षमायाचना कर रहा था. तीनों की आंखें भरी थीं, पर ये आंसू खुशी के थे.

इधर-उधर- भाग 3: अंबर को छोड़ आकाश से शादी के लिए क्यों तैयार हो गई तनु?

Writer- Rajesh Kumar Ranga

आकाश ने वेटर को बिल लाने को कहा तो मैनेजर ने बिल लाने से इनकार कर दिया, ‘‘यह हमारी तरफ से.’’

‘‘नहीं मैनेजर साहब, अभी हम इस होटल के मालिक नहीं बने हैं और बन भी जाएं तो भी मैं नहीं चाहूंगा कि हमें या किसी और को कुछ भी मुफ्त में दिया जाए. मेरा मानना है कि मुफ्त में सिर्फ खैरात बांटी जाती है और खैरात इंसान की अगली नस्ल तक को बरबाद करने के लिए काफी होती है.’’

होटल के बाहर निकल कर आकाश ने तनु की ओर नजर डाली और कहा,

‘‘बहुत दिनों से लोकल में सफर करने की इच्छा थी, आज छुट्टी का दिन है भीड़भाड़ भी कम होगी. क्यों न हम यहां से लोकल ट्रेन में चलें फिर वहां से टैक्सी.’’

तनु ने अविश्वास से आकाश की ओर देखा और फिर दोनों स्टेशन की तरफ चल पड़े.

‘‘आप तो अकसर विदेश जाते रहते होंगे. क्या फर्क लगता है हमारे देश में और विदेशों में?’’

‘‘सच कहूं तो लंदन स्कूल औफ इकौनोमिक्स से डिगरी लेने के बाद मैं विदेश बहुत कम गया हूं. आजकल के जमाने में इंटरनैट पर सबकुछ मिल जाता है और जहां तक घूमने की बात है यूरोप की छोटीमोटी भुतहा इमारतें जिन्हें वे कैशल कहते हैं और किले मुझे ज्यादा भव्य लगते हैं… स्विटजरलैंड से कहीं अच्छा हमारा कश्मीर है, सिक्किम है, अरुणाचल है, बस जरूरत है सफाई की, सुविधाओं की और ईमानदारी की…’’

‘‘जो हमारे यहां नहीं है… है न?’’ तनु ने प्रश्न किया.

‘‘आप इनकार नहीं कर सकतीं कि बदलाव आया है और अच्छी रफ्तार से आया है. जागरूकता बढ़ी है, देश की प्रतिष्ठा बढ़ी है, हमारे पासपोर्ट की इज्जत होनी शुरू हो गई है. आज का भारत कल के भारत से कहीं अच्छा है और कल का भारत आज के भारत से लाख गुना अच्छा होगा.’’

‘‘आप तो नेताओं जैसी बातें करने लगे आकाशजी,’’ तनु को उस की बातों में कोई दिलचस्पी नहीं थी.

गेटवे के किनारे तनु ने फिर नारियल पानी पीने की इच्छा जाहिर कर दी. दोनों ने नारियल पानी पीया.

सही कहा गया है कि इंसान के हालात का और मुंबई की बरसात का कोई भरोसा नहीं. एक बार फिर बादलों ने पूरे माहौल को अपने आगोश में ले कर लिया और चारों ओर रात जैसा अंधेरा छा गया. अगले ही पल मोटीमोटी बूंदों ने दोनों को भिगोना शुरू कर दिया. दोनों भाग कर पास की एक छप्परनुमा दुकान में घुस कर गरमगरम भुट्टे खाने लगे.

ये भी पढ़ें- सालते क्षण: उसे सालते क्षण की कमी कब महसूस हुई?

आकाश ने जेब से पैसे निकाले और भुट्टे वाली बुजुर्ग महिला के हाथ में थमा दिए. उस की नजर उमड़ते बादलों पर ही थी. प्रश्नवाचक दृष्टि से उस ने तनु की ओर देखा और दोनों बाहर निकल गए. टैक्सी लेने की तमाम कोशिशें नाकामयाब होने के बाद दोनों स्टेशन की ओर पैदल ही निकल पड़े. रास्ते में आकाश ने ड्राइवर को फोन कर के कामा होटल से गाड़ी ले कर स्टेशन आने को कह दिया.

घर पहुंचतेपहुंचते रात हो चुकी थी. आकाश और उस के परिवार वालों ने इजाजत

मांगी. उन के जाते ही जयनाथजी कुछ कहने के लिए मानो तैयार ही थे, ‘‘कितने पैसे वाले लोग हैं, मगर कोई मिजाज नहीं, कोई घमंड नहीं, हम जैसे मध्यवर्ग वालों की लड़की लेना चाहते हैं. कोई दहेज की मांग नहीं, यहां तक कि…’’

‘‘तो मुझे क्या करना चाहिए अंबर कि बजाय आकाश को पसंद कर लेना चाहिए, क्योंकि आकाश करोड़पति है, उस के मातापिता घमंडी नहीं हैं. वे धरातल से जुड़े हैं और सब से बड़ी बात कि उन्हें हम, हमारा परिवार, हमारी सादगी पसंद है. अपनी पसंद मैं भाभी को सुबह ही बता चुकी हूं, आकाश से मिलने के बाद उस में कोई तबदीली नहीं आई है…’’

‘‘ठीक है इस बारे में हम बाकी बातें कल करेंगे…’’ जयनाथजी ने लगभग पीछा छुड़ाते हुए कहा.

रात के करीब 2 बजे तनु ने भाभी को फोन मिलाया, ‘‘भाभी मुझे आप से मिलना है. भैया तो बाहर गए हैं. जाहिर है आप भी जग रही होंगी, मुझे अंबर के बारे में कुछ बातें करनी हैं, मैं आ जाऊं?’’

‘‘तनु मैं गहरी नींद में हूं… हम सुबह मिलें?’’

‘‘मैं तो आप के दरवाजे पर ही हूं… गेट खोलेंगी या खिड़की से आना पड़ेगा?’’

अगले ही पल तनु अंदर थी. बातों का सिलसिला शुरू करते हुए भाभी ने तनु से पूछा, ‘‘तुम मुझे अपना फैसला सुना चुकी हो. अब इतनी रात मेरी नींद क्यों खराब कर रही हो?’’

‘‘भाभी, अंबर को फोन कर के कहना है कि मैं उस से शादी नहीं कर सकती.’’

‘‘क्या?’’ भाभी को लगा कि वह अभी भी नींद में ही है.

पलक झपकते ही तनु ने अंबर को फोन लगा दिया, ‘‘हैलो अंबर मैं तनु बोल रही हूं… मैं इधरउधर की बात करने के बजाय सीधा मुद्दे पर आना चाहती हूं…’’

‘‘ठीक है… जल्दी बता दो मैं इधर हूं या उधर…’’

‘‘इधरउधर की छोड़ो और सुनो सौरी यार मैं तुम से शादी नहीं कर सकती…’’

‘‘ठीक है मगर इतनी रात को क्यों बता रही हो… सुबह तक…’’

‘‘सुबह तक मेरा दिमाग बदल गया तो? तुम चीज ही ऐसी हो कि तुम्हें मना करना बहुत मुश्किल है…’’

‘‘अच्छा औल द बैस्ट, अब सो जाओ और मुझे भी सोने दो, किसी उधर वाले से शादी तय हो जाए तो जगह, तारीख वगैरह बता देना मैं आ जाऊंगा, मुफ्त का खा कर चला जाऊंगा…’’

‘‘मुफ्ती साहब, गिफ्ट लाना पड़ेगा. शादी में खाली लिफाफे देने का रिवाज दिल्ली में होगा, मुंबई में नहीं…’’

ये भी पढ़ें – बदला: सुगंधा ने कैसे लिया रमेश से बदला

‘‘ठीक है 2-4 फूल ले आऊंगा. अब मुझे सोने दो… सुबह मेरी फ्लाइट है…’’

भाभी बिलकुल सकते में थी, ‘‘ये सब क्या है तनु? तुम तो अंबर पर फिदा हो गई थी… क्या आकाश का पैसा तुम्हें आकर्षित कर गया? क्या उस की बड़ी गाड़ी अंबर की मोटरसाइकिल से आगे निकल गई?’’

‘‘भाभी अंबर पर फिदा होना स्वाभाविक है. ऐसे लड़के के साथ घूमनाफिरना,

मजे करना, अच्छा लगेगा मगर शादी एक ऐसा बंधन है, जिस में एक गंभीर, संजीदा इंसान चाहिए न कि कालेज से निकला हुआ एक हीरोनुमा लड़का.

‘‘हम घर से बाहर निकले तो आकाश ने पूरे शिद्दत से ट्रैफिक के सारे नियमों का पालन किया, मेरे लाख कहने के बावजूद उस ने गाड़ी नो ऐंट्री में नहीं घुमाई, अपने देश के बारे में उस के विचार सकारात्मक थे. उसे देश से कोई शिकायत न थी, रेस्तरां में वेटर से इज्जत से बात की न कि उसे वेटर कह कर आवाज दी, मुफ्त का खाने के बजाय उस ने पैसे देने में अपनी खुद्दारी समझ.

‘‘बड़ी गाड़ी छोड़ कर लोकल ट्रेन में जाने में उसे कोई परहेज नहीं, नारियल पानी पी कर उस ने नारियल एक ओर उछाला नहीं, बल्कि डस्टबिन की तलाश की, भुट्टे वाली माई को उस ने जब मुट्ठीभर पैसे दिए तो उस का सारा ध्यान इस पर था कि मैं कहीं देख न लूं.

‘‘इतने पैसे उस भुट्टे वाली ने एकसाथ कभी नहीं देखे होंगे… इतने संवेदनशील व्यक्तित्व के मालिक के सामने मैं एक प्यारे से हीरो को चुन कर जीवनसाथी बनाऊं? इतनी बेवकूफ मैं लगती जरूर हूं, मगर हूं नहीं.’’

भाभी सिर पर हाथ रख कर बैठ गई.

‘‘क्या सर दर्द हो रहा है.’’

‘‘नहीं बस चक्कर से आ रहे हैं…’’

‘‘रुको, अभी सिरदर्द दूर हो जाएगा…’’ तनु ने कहा.

भाभी बोल पड़ी, ‘‘अब क्या बाकी है?’’

तनु ने फोन उठाया और एक नंबर मिलाया, ‘‘हैलो आकाश, मैं ने फैसला कर लिया है… मुझे आप पसंद हैं. मैं आप से शादी करने को तैयार हूं. मुझे पूरा यकीन है कि मैं भी आप को पसंद हूं.’’

‘‘तुम ने फैसला ले कर मुझे बताने का जो समय चुना वह वाकई काबिलेतारीफ है,’’ दूसरी ओर से आवाज आई.

‘‘हूं… मगर भाभी इस बात को मानती ही नहीं… देखो मुझे धक्के मार कर अपने कमरे से बाहर निकालने पर उतारू है…’’

‘‘आकाश ने जेब से पैसे निकाले और भुट्टे वाली बुजुर्ग महिला के हाथ में थमा दिए.

उसकी नजर उमड़ते बादलों पर ही थी. प्रश्नवाचक दृष्टि से उस ने तनु की ओर देखा और दोनों बाहर निकल गए…’’

सिंदूरी मूर्ति- भाग 3: जब राघव-रम्या के प्यार के बीच आया जाति का बंधन

रम्या को औफिस आ कर ही पता चला कि आज की लंच पार्टी रम्या की स्वागतपार्टी और राघव की विदाई पार्टी है. दोनों ही सोच में डूबे हुए अपनेअपने कंप्यूटर की स्क्रीन से जूझने लगे.

राघव सोच रहा था कि रम्या की जिंदगी के इस दिन का उसे कितना इंतजार था कि स्वस्थ हो दोबारा औफिस जौइन कर ले. मगर वही दिन उसे रम्या की जिंदगी से दूर भी ले कर जा रहा था.

रम्या सोच रही थी कि जब मैं अस्पताल में थी तो राघव नियम से मुझ से मिलने आता था और कितनी बातें करता था. शुरूशुरू में तो मां को उसी पर शक हो गया था कि यह रोज क्यों आता है? कहीं इसी ने तो हमला नहीं करवाया और अब हीरो बन सेवा करने आता है? और अप्पा को तो मामा पर शक हो गया था, क्योंकि मैं ने मामा से शादी करने को मना कर दिया था और छोेटा मामा तो वैसे भी निकम्मा और बुरी संगत का था. अप्पा को लगा मामा ने ही मुझ से नाराज हो कर हमला करवाया है. जब राघव को मैं ने मामा की शादी के प्रोपोजल के बारे में बताया तो वह हैरान रह गया. उस का कहना था कि उन के यहां मामाभानजी का रिश्ता बहुत पवित्र माना जाता है. अगर गलती से भी पैर छू जाए तो भानजी के पैर छू कर माफी मांगते हैं. पर हमारी तरफ तो शादी होना आम बात है. मामा की उम्र अधिक होने पर उन के बेटे से भी शादी कर सकते हैं.

ये भी पढ़ें-  Family Story in Hindi: बाजारीकरण- जब बेटी के लिए नीला ने किराए पर रखी कोख

उन दिनों कितनी प्रौब्ल्म्स हो गई थीं घर में… हर किसी को शक की निगाह से देखने लगे थे हम. राघव, मामा, हमारे पड़ोसियों सभी को… अम्मां को भी अस्पताल के पास ही घर किराए पर ले कर रहना पड़ा. आखिर कब तक अस्पताल में रहतीं. 1 महीने बाद अस्पताल छोड़ना पड़ा. मगर लकवाग्रस्त हालत में गांव कैसे जाती? फिजियोथेरैपिस्ट कहां मिलते? राघव ने भी मुझ से ही पूछा था कि अगर वह शनिवार, रविवार को मुझ से मिलने घर आए तो मेरे मातापिता को कोई आपत्ति तो नहीं होगी. अम्मांअप्पा ने अनुमति दे दी. वे भी देखते थे कि दिन भर की मुरझाई मैं शाम को उस की बातों से कैसे खिल जाती हूं, हमारा अंगरेजी का वार्त्तालाप अम्मां की समझ से दूर रहता. मगर मेरे चेहरे की चमक उन्हें समझ आती थी.

मामा ने गुस्से में आना कम कर दिया तो अप्पा का शक और बढ़ गया. वह तो

2 महीने पहले ही पुलिस ने केस सुलझा लिया और हमलावर पकड़ा गया वरना राघव का भी अपने घर जाना मुश्किल हो गया था. मैं ने आखिरी कौल राघव को ही की थी कि मैं स्टेशन पहुंच गई हूं, तुम भी आ जाओ. उस के बाद उस अनजान कौल को रिसीव करने के बीच ही वह हमला हो गया.

राघव ने जब बताया था कि वह बाराबंकी के कुंभकार परिवार से है और उस का बचपन मूर्ति में रंग भरने में ही बीता है, तो मैं ने कहा था कि वह मूर्ति बना कर दिखाए. तब उस ने रंगीन क्ले ला कर बहुत सुंदर मूर्ति बनाई जो संभाल कर रख ली.

‘रम्या भी तो एक बेजान मूर्ति में परिवर्तित हो गई थी उन दिनों,’ राघव ने सोचा. वह हर शनिवाररविवार जब मिलने जाता तब उसे रम्या में वही स्वरूप दिखाई देता जैसा उस के बाबा दीवाली में लक्ष्मी का रूप बनाते थे. काली मिट्टी से बनी सौम्य मूर्ति. उस मूर्ति में जब वह लाल, गुलाबी, पीले और चमकीले रंगों में ब्रश डुबोडुबो कर रंग भरता, तो उस मूर्ति से बातें भी करता.

यही स्थिति अभी भी हो गई है. रम्या के बेजान मूर्तिवत स्वरूप से तो वह कितनी बातें करता था. लकवाग्रस्त होने के कारण शुरूशुरू में वह कुछ बोल भी नहीं पाती थी, केवल अपने होंठ फड़फड़ा कर या पलकें झपका कर रह जाती. बाद में तो वह भी कितनी बातें करने लगी थी. उस की जिंदगी में भी रंग भरने लगे थे. वह समझ ही नहीं पाया कि रंग भर कौन रहा है? वह रम्या की जिंदगी में या रम्या उस की जिंदगी में? अब रम्या जीवन के रंगों से भरपूर है. अपने अम्मांअप्पा के संरक्षण में गांव लौट गई है, उस की पहुंच से दूर. अब उस की सेवा की रम्या को क्या आवश्यकता? अब वह भी यहां से चला जाएगा. रम्या से फेसबुक और व्हाट्सऐप के माध्यम से जुड़ा रहेगा वैसे ही जैसे पंडाल में सजी मूर्तियों से मन ही मन जुड़ा रहता था.

ये भी पढ़ें- Romantic Story in Hindi: चार आंखों का खेल

‘‘चलो, सब आज सब का लंच साथ हैं याद है न?’’ रमन ने मेज थपथपाई.

सभी एकसाथ लंच करने बैठ गए तो रम्या ने कहा, ‘‘धन्यवाद तो मुझे तुम सब का देना चाहिए जो रक्तदान कर मेरे प्राण बचाए…’’

‘‘सौरी, मैं तुम्हें रोक रहा हूं. मगर सब से पहले तुम्हें राघव को धन्यवाद करना चाहिए. इस ने सर्वप्रथम खून दे कर तुम्हें जीवनदान दिया है,’’ मुरली मोहन बोला.

‘‘ठीक है, उसे मैं अलग से धन्यवाद दे दूंगी,’’ कह रम्या हंस रही थी. राघव ने देखा आज उस ने काले की जगह लाल रंग की बिंदी लगाई थी.

‘‘वैसे वह तेरा वनसाइड लवर भी बड़ा खतरनाक था… तुझे अपने इस पड़ोसी पर पहले कभी शक नहीं हुआ?’’ सुभ्रा ने पूछा.

‘‘अरे वह तो उम्र में भी 2 साल छोटा है मुझ से. कई बार कुछ न कुछ पूछने को किसी न किसी विषय की किताब ले कर घर आ धमकता था. मगर मैं नहीं जानती थी कि वह क्या सोचता है मेरे बारे में,’’ रम्या अपना सिर पकड़ कर बैठ गई.

लगभग सभी खापी कर उठ चुके थे. राघव अपने कौफी के कप को घूरने में लगा था मानो उस में उस का भविष्य दिख रहा हो.

‘‘तुम्हारा क्या खयाल है उस लड़के के बारे में?’’ रम्या ने पास आ कर उस से पूछा.

‘‘प्यार मेरी नजर में कुछ पाने का नहीं, बल्कि दूसरे को खुशियां देने का नाम है. अगर हम प्रतिदान चाहते हैं, तो वह प्यार नहीं स्वार्थ है और मेरी नजर में प्यार स्वार्थ से बहुत ऊपर की भावना है.’’

‘‘इस के अलावा भी कुछ और कहना है तुम्हें?’’ रम्या ने शरारत से राघव से पूछा.

‘‘हां, तुम हमेशा इसी तरह हंसतीमुसकराती रहना और अपनी फ्रैंड लिस्ट में मुझे भी ऐड कर लेना. अब वही एक माध्यम रह जाएगा एकदूसरे की जानकारी लेने का.’’

‘‘ठीक है, मगर तुम ने मुझ से नहीं पूछा?’’

‘‘क्या?’’

‘‘यही कि मुझे कुछ कहना है कि नहीं?’’ रम्या ने कहा तो राघव सोच में पड़ गया.

‘‘क्या सोचते रहते हो मन ही मन? राघव, अब मेरे मन की सुनो. अगले महीने अप्पा बाराबंकी जाएंगे तुम्हारे घर मेरे रिश्ते की बात करने.’’

‘‘उन्हें मेरी जाति के बारे में नहीं पता शायद,’’ राघव को अप्पा का कौफी पीना याद आ गया.

‘‘यह देखो इन रगों में तुम्हारे खून की लाली ही तो दौड़ रही है और जो जिंदगी के पढ़ाए पाठ से भी सबक न सीख सके वह इनसान ही क्या… मेरे अप्पा इनसानियत का पाठ पढ़ चुके हैं. अब उन्हें किसी बाह्य आडंबर की जरूरत नहीं है,’’ रम्या ने अपना हाथ उस की हथेलियों में रख कर कहा, ‘‘अब अप्पा भी चाह कर मेरे और तुम्हारे खून को अलगअलग नहीं कर सकते.’’

ये भी पढ़ें- Social Story in Hindi: कोरा कागज- माता-पिता की सख्ती से घर से भागे राहुल के साथ क्या हुआ?

‘‘तुम ने आज लाल बिंदी लगई है,’’ राघव अपने को कहने से न रोक सका.

‘‘नोटिस कर लिया तुम ने? यह तुम्हारा ही दिया रंग है, जो मेरी बिंदी में झलक आया है और जल्द ही सिंदूर बन मेरे वजूद में छा जाएगा,’’ रम्या बोली और फिर दोनों एकदूसरे का हाथ थामें जिंदगी के कैनवास में नए रंग भरने निकल पड़े.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें