वे 3 दिन – भाग 2 : इंसान अपनी सोच से मौडर्न बनता है

‘तब आप बदन के दर्द के साथसाथ हुई इस बेइज्जती के दर्द से घबरा कर रोने लगी थीं और वह भी तब जब आप अपनी गलती से बिलकुल अनजान थीं.

‘‘तब मम्मी ही आप को अपने साथ अपने कमरे में ले गई थीं. आप के आंसुओं को पोंछ कर गले से लगा लिया था. तभी दादी भी कमरे में आ गई थीं और मम्मी को आप के पास बैठा देख बहुत गरम हुई थीं.

‘‘तब मम्मी ही थीं, जिन्होंने आप को मानसिक संबल दे कर इन दिनों रखने वाली हाइजीन के बारे में सबकुछ समझाया था.

‘‘यही नहीं, दादी ने आप को 3 दिन बिलकुल अलगथलग कर दिया था, तब आप शर्म से कितनी दुखी हुई थीं. तब मम्मी ही थीं, जो भरी ठंड में भी दादी द्वारा आप को जमीन पर बिछाने के लिए दिए पतले से बिछौने से उठा कर ले आई थीं और आप को अपने पास ही सुला लिया था.’’

‘‘बसबस, चुप कर… देख रही हूं कि बहुत पटरपटर जबान चलने लगी है तेरी. और तू तो ऐसे कह रही है, जैसे यह सब तू ने अपनी आंखों से देखा हो…’’

‘‘बूआ, चाहे यह सब देखने को मैं वहां मौजूद नहीं थी, पर मम्मी ने ये सब बातें मुझे तब बता दी थीं, जब मैं 12 साल की थी, जिस से मैं इस बदलाव से घबरा नहीं जाऊं और इस के लिए दिमागी रूप से तैयार रहूं.’’

‘‘जो भी हो, उस समय मैं नादान थी, मुझे अच्छेबुरे की परख नहीं थी, पर अब मैं एक जिम्मेदार बहू, बेटी और मां हूं. बरसों से हमारे समाज द्वारा बनाई गई कुछ सामाजिक परंपराएं हैं, जिन के मानने में हमारा ही फायदा है और जब तक मैं ही इन परंपराओं का पालन नहीं करूंगी, तो आने वाली पीढ़ी को किस मुंह से सिखाऊंगी,’’ बूआ ने कहा.

‘‘बूआ, आप जिन रिवाजों की बात कर रही हैं, वे काफी समय पहले बनाए गए थे. वे सब ढकोसले थे. पंडों की सिखाई बातें थीं. हम लोग सचाई की तह तक जाए बिना या लकीर के फकीर बन कर उन हालात का बोझ ढोते चले जा रहे हैं.’’

‘‘देख रही हूं, तेरी मां ने तुझे कुछ ज्यादा ही छूट दे रखी है. छोटी जगह है, इनसान जैसे माहौल में रहे, उसी के हिसाब से बरताव करना चाहिए. क्या कहेंगी आसपड़ोस की औरतें, जब उन्हें पता चलेगा कि इस घर में ऐसा घोर अनर्थ हो रहा है? मैं नहीं मानती, पता चलने के बाद कोई इस घर का पानी भी पीएगा.

‘‘अरे इनसान तो क्या, ऐसे घर में तो पितर भी अन्न ग्रहण नहीं करते, इसीलिए तो इतने पूजापाठ के बाद भी तेरी मां की कोख ने बेटा नहीं जना. बस, अब तू मेरा ज्यादा मुंह मत खुलवा,’’ निकिता बूआ ने अपने हाथ नचाते हुए कहा.

‘‘बूआ, अभीअभी तो आप ने कहा कि इनसान को अपने माहौल के मुताबिक बदलाव करना चाहिए, तो मैं ने तो सुना है कि पंजाबी औरतों को इन 3 दिनों के दरमियान भी गुरुद्वारे जाने की छूट है, फिर आप इतने साल दिल्ली में रह कर भी अपनी सोच को क्यों नहीं बदल पाईं?

‘‘आप ने उन का पहनावा, रहनसहन तो अपना लिया, पर दिल में आप अभी भी छोटी सोच को अपनाए हुए हो,’’ कहते हुए नव्या की आंखें छलक आईं.

कहना तो वह और भी बहुतकुछ चाहती थी, पर उस की शिक्षा ने उसे इस की इजाजत नहीं दी. बूआ तो पापा के इतना बुलाने पर यहां आई थीं, इसलिए उस ने अपना मुंह बंद कर लिया.

बातों की इस चोट से एक पल के लिए तो निकिता बूआ तिलमिला उठीं, पर अगले ही पल हालात को भांपते हुए थोड़ी नरम पड़ते हुए वे कहने लगीं, ‘‘देख बेटी, यह हमारे शरीर की गंदगी होती है. यह गंदगी जो बाहर आती है तो थोड़ाबहुत तो शुद्धअशुद्ध का विचार तो रखना ही चाहिए न? यह तो तू भी मानती होगी?’’

‘‘गंदगी कैसी बूआ? यह तो हमारे बदन की दूसरी हरकतों की ही तरह एक आम हरकत है. कुदरत का औरत को प्रदान किया गया तोहफा है. इसे मर्द को नहीं दिया गया है. इस के दम पर तो एक औरत को मां बनने का मौका मिलता है और यह सृष्टि चलती रहती है. अगर यह इतनी जरूरी चीज है, तो इस से इतनी ज्यादा चिढ़ क्यों?’’

‘‘चल, अब पहले मैं नहा कर आती हूं.’’

नव्या समझ गई थी कि वह इतनी देर से भैंस के आगे बीन बजा रही थी. बूआ को समझाने का कोई मतलब नहीं है. निकिता बूआ रसोई से बाहर आईं तो उन्होंने देखा कि नव्या डाइनिंग टेबल पर खाना लगा रही थी.

‘‘यह सब क्या करने लगी तू?’’

‘‘बूआ देखो, आप के लिए मैं ने पसंदीदा छोलेभटूरे बनाए हैं. चख कर बताइए कि कैसे बनाए हैं?’’

‘‘अभी तो तुझे मैं ने इतना समझाया, लगता है कि तेरे दिमाग में कुछ नहीं बैठा दिखता है.’’

‘‘आखिर भतीजी किस की हूं. पापा तो मुझे बातबात पर कहते हैं कि मैं बिलकुल अपनी बूआ पर गई हूं. आप जिद्दी तो मैं महाजिद्दी,’’ नव्या ने अपने कंधे उचकाते हुए कहा.

‘‘तेरी यह जिद तेरी मां के सामने ही चलती होगी. जब तक मैं यहां हूं, मेरी ही मरजी चलेगी. बाद में तुम लोग जानो और तुम्हारा काम जाने.’’

‘‘बूआ, मैं ने इतने मन से बनाए हैं. आज के दिन मान जाइए, कल से वही होगा जो आप चाहेंगी,’’ नव्या के हथियार डाल देने पर भी निकिता बूआ नहीं पिघलीं. गुस्से में नव्या ने वह खाना कूड़े की बालटी में डाल दिया.

रात में नव्या अपनी बूआ के गुस्से के डर से बैडरूम में न सो कर ड्राइंगरूम में ही लेट गई. पर बाद में रसोई में होने वाली खटरपटर से उस की नींद खुल गई.

‘‘क्या हुआ बूआ, आप को कुछ चाहिए क्या?’’ नव्या ने बूआ को आवाज लगाते हुए पूछा.

‘‘कुछ नहीं, हींग ढूंढ़ रही थी. पेट में बहुत दर्द है. गैस हो गई दिखती है.’’

‘‘बूआ, आप को हींग नहीं मिलेगी, लाइए, मैं निकाल देती हूं,’’ कहते हुए नव्या रसोई में घुस गई.

‘‘तू बाहर ही खड़ी रह. बोल कर भी तो बता सकती है कि कहां रखी है.’’

उस के बाद भी नव्या ने महसूस किया कि बूआ सोई नहीं हैं. वे बेचैन सी पल में बैठ रही थीं और दूसरे पल फिर से लेट जाती थीं.

Holi Special: शायद बर्फ पिघल जाए- भाग 1

‘‘हमारा जीवन कोई जंग नहीं है मीना कि हर पल हाथ में हथियार ही ले कर चला जाए. सामने वाले के नहले पर दहला मारना ही क्या हमारे जीवन का उद्देश्य रह गया है?’’ मैं ने समझाने के उद्देश्य से कहा, ‘‘अब अपनी उम्र को भी देख लिया करो.’’

‘‘क्या हो गया है मेरी उम्र को?’’ मीना बोली, ‘‘छोटाबड़ा जैसे चाहे मुझ से बात करे, क्या उन्हें तमीज न सिखाऊं?’’

‘‘तुम छोटेबड़े, सब के हर काम में अपनी टांग क्यों फंसाती हो, छोटे के साथ बराबर का बोलना क्या तुम्हें अच्छा लगता है?’’

‘‘तुम मेरे सगे हो या विजय के? मैं जानती हूं तुम अपने ही खून का साथ दोगे. मैं ने अपनी पूरी उम्र तुम्हारे साथ गुजार दी मगर आज भी तुम मेरे नहीं अपने परिवार के ही सगे हो.’’

मैं ने अपना सिर पीट लिया. क्या करूं मैं इस औरत का. दम घुटने लगता है मेरा अपनी ही पत्नी मीना के साथ. तुम ने खाना मुझ से क्यों न मांगा, पल्लवी से क्यों मांग लिया. सिरदर्द की दवा पल्लवी तुम्हें क्यों खिला रही थी? बाजार से लौट कर तुम ने फल, सब्जी पल्लवी को क्यों पकड़ा दी, मुझे क्यों नहीं बुला लिया. मीना अपनी ही बहू पल्लवी से अपना मुकाबला करे तो बुरा लगना स्वाभाविक है.

उम्र के साथ मीना परिपक्व नहीं हुई उस का अफसोस मुझे होता है और अपने स्नेह का विस्तार नहीं किया इस पर भी पीड़ा होती है क्योंकि जब मीना ब्याह कर मेरे जीवन में आई थी तब मेरी मां, मेरी बहन के साथ मुझे बांटना उसे सख्त नागवार गुजरता था. और अब अपनी ही बहू इसे अच्छी नहीं लगती. कैसी मानसिकता है मीना की?

मुझे मेरी मां ने आजाद छोड़ दिया था ताकि मैं खुल कर सांस ले सकूं. मेरी बहन ने भी शादी के बाद ज्यादा रिश्ता नहीं रखा. बस, राखी का धागा ही साल भर बाद याद दिला जाता था कि मैं भी किसी का भाई हूं वरना मीना के साथ शादी के बाद मैं एक ऐसा अनाथ पति बन कर रह गया जिस का हर कोई था फिर भी पत्नी के सिवा कोई नहीं था. मैं ने मीना के साथ निभा लिया क्योंकि मैं पलायन में नहीं, निभाने में विश्वास रखता हूं, लेकिन अब उम्र के इस पड़ाव पर जब मैं सब का प्यार चाहता हूं, सब के साथ मिल कर रहना चाहता हूं तो सहसा महसूस होता है कि मैं तो सब से कटता जा रहा हूं, यहां तक कि अपने बेटेबहू से भी.

मीना के अधिकार का पंजा शादी- शुदा बेटे के कपड़ों से ले कर उस के खाने की प्लेट तक है. अपना हाथ उस ने खींचा ही नहीं है और मुझे लगता है बेटा भी अपना दम घुटता सा महसूस करने लगा है.

‘‘कोई जरूरत नहीं है बहू से ज्यादा घुलनेमिलने की. पराया खून पराया ही रहता है,’’ मीना ने सदा की तरह एकतरफा फैसला सुनाया तो बरसों से दबा लावा मेरी जबान से फूट निकला.

‘‘मेरी मां, बहन और मेरा भाई विजय तो अपना खून थे पर तुम ने तो मुझे उन से भी अलग कर दिया. मेरा अपना आखिर है कौन, समझा सकती हो मुझे? बस, वही मेरा अपना है जिसे तुम अपना कहो…तुम्हारे अपने भी बदलते रहते हैं… कब तक मैं रिश्तों को तुम्हारी ही आंखों से देखता रहूंगा.’’

कहतेकहते रो पड़ा मैं, क्या हो गया है मेरा जीवन. मेरी सगी बहन, मेरा सगा भाई मेरे पास से निकल जाते हैं और मैं उन्हें बुलाता ही नहीं…नजरें मिलती हैं तो उन में परायापन छलकता है जिसे देख कर मुझे तकलीफ होती है. हम 3 भाई, बहन जवान हो कर भी जरा सी बात न छिपाते थे और आज वर्षों बीत गए हैैं उन से बात किए हुए.

आज जब जीवन की शाम है, मेरी बहू पल्लवी जिस पर मैं अपना ममत्व अपना दुलार लुटाना चाहता हूं, वह भी मीना को नहीं सुहाता. कभीकभी सोचता हूं क्या नपुंसक हूं मैं? मेरी शराफत और मेरी निभा लेने की क्षमता ही क्या मेरी कमजोरी है? तरस आता है मुझे कभीकभी खुद पर.

क्या वास्तव में जीवन इसी जीतहार का नाम है? मीना मुझे जीत कर अलग ले गई होगी, उस का अहं संतुष्ट हो गया होगा लेकिन मेरी तो सदा हार ही रही न. पहले मां को हारा, फिर बहन को हारा. और उस के बाद भाई को भी हार गया.

‘‘विजय चाचा की बेटी का  रिश्ता पक्का हो गया है, पापा. लड़का फौज में कैप्टन है,’’ मेरे बेटे दीपक ने खाने की मेज पर बताया.

‘‘अच्छा, तुझे बड़ी खबर है चाचा की बेटी की. वह तो कभी यहां झांकने भी नहीं आया कि हम मर गए या जिंदा हैं.’’

‘‘हम मर गए होते तो वह जरूर आता, मीना, अभी हम मरे कहां हैं?’’

मेरा यह उत्तर सुन हक्काबक्का रह गया दीपक. पल्लवी भी रोटी परोसती परोसती रुक गई.

‘‘और फिर ऐसा कोई भी धागा हम ने भी कहां जोड़े रखा है जिस की दुहाई तुम सदा देती रहती हो. लोग तो पराई बेटी का भी कन्यादान अपनी बेटी की तरह ही करते हैं, विजय तो फिर भी अपना खून है. उस लड़की ने ऐसा क्या किया है जो तुम उस के साथ दुश्मनी निभा रही हो.

खाना पटक दिया मीना ने. अपनेपराए खून की दुहाई देने लगी.

‘‘बस, मीना, मैं इस बहस में नहीं पड़ना चाहता कि कल क्या हुआ था. जो भी हुआ उस का इस से बुरा परिणाम और क्या होगा कि इतने सालों से हम दोनों भाइयों ने एकदूसरे की शक्ल तक नहीं देखी… आज अगर पता चला है कि उस की बच्ची की शादी है तो उस पर भी तुम ताना कसने लगीं.’’

‘‘उस की शादी का तो मुझे 15 दिन से पता है. क्या वह आप को बताने आया?’’

‘‘अच्छा, 15 दिन से पता है तो क्या तुम बधाई देने गईं? सदा दूसरों से ही उम्मीद करती हो, कभी यह भी सोचा है कि अपना भी कोई फर्ज होता है. कोई भी रिश्ता एकतरफा नहीं चलता. सामने वाले को भी तो पता चले कि आप को उस की परवा है.’’

‘‘क्या वह दीपक की शादी में आया था?’’ अभी मीना इतना ही कह पाई थी कि मैं खाना छोड़ कर उठ खड़ा हुआ.

मीना का व्यवहार असहनीय होता जा रहा है. यह सोच कर मैं सिहर उठता कि एक दिन पल्लवी भी दीपक को ले कर अलग रहने चली जाएगी. मेरी उम्र भर की साध मेरा बेटा भी जब साथ नहीं रहेगा तो हमारा क्या होगा? शायद इतनी दूर तक मीना सोच नहीं सकती है.

हाय हैंडसम – भाग 1 : प्रेम की दिवानी गौरी का क्या हुआ

प्यार आजाद है, उम्र नहीं देखता. यह किसी भी उम्र में, किसी से भी हो सकता है.  कमसिन उम्र की गौरी दिल लगा बैठी थी अपनी उम्र से ढाईगुना बड़े व्यक्ति से. प्रेम में दीवानी गौरी का यह महज बचपना था या वाकई उस के प्यार में कोई अलग बात थी?

‘प्यार दीवाना होता है, मस्ताना होता है, हर खुशी से हर गम से बेगाना होता है…’ मैं जब इस फिल्मी गाने को सुनता था तो मन में यही सोचता था, क्या वाकई प्यार दीवाना और मस्ताना होता है? लेकिन जब प्यार में दीवानीमस्तानी, हर खुशी हर गम से बेगानी एक लड़की से मुलाकात हुई तो यकीन हो गया, वास्तव में प्यार दीवाना और मस्ताना होता है.

4 साल पहले मैं फेसबुक खूब चलाता था. उसी दौरान मेरे मैसेंजर बौक्स में एक मैसेज आया, ‘हैलो…’

मैं ने मैसेज बौक्स के ऊपर नजर डाली, नाम था गौरी. इतनी देर में दूसरा मैसेज आ गया, ‘हैलो, आप कहां से हैं?’

मैं ने मैसेज में अपने शहर का नाम टाइप किया, साथ ही उस से पूछा, ‘आप कौन?’

‘जी, मेरा नाम गौरी है.’

‘ओके. कहां से हो?’ मैं ने मैसेज का जवाब दिया.

‘जी, मैं मुरादाबाद से हूं. क्या मैं आप से बात कर सकती हूं?’ उस ने अगला मैसेज किया.

‘बात तो आप कर ही रही हैं,’ मैं ने मजाकिया अंदाज में मैसेज किया.

‘जी, मेरा मतलब है, आप मु?ो अपना मोबाइल नंबर देंगे?’

‘मोबाइल नंबर क्यों?’

‘आप से बात करनी है.’

‘तुम करती क्या हो?’ मैं ने पूछा.

‘स्टडी, मैं इंटरमीडिएट के एग्जाम की तैयारी कर रही हूं.’

‘तुम इंटरमीडिएट में पढ़ती हो?’ मैं चौंका.

‘हां, लेकिन आप को हैरानी क्यों हो रही है?’

‘वो… बस, ऐसे ही. तुम मु?ा से क्या बात करोगी, मेरी उम्र मालूम है तुम्हें?’

‘जी, मैं ने आप की प्रोफाइल देखी है, आप की उम्र करीब 50 साल है.’

‘उम्र ही मेरी 50 साल नहीं है, मेरे 2 बच्चे भी हैं, वे भी तुम से बड़े.’

‘इस में आश्चर्य की क्या बात है. शादी के बाद बच्चे तो सभी के होते हैं. आप के भी हैं. एक बात बोलूं, आप बहुत हैंडसम हैं.’

‘फोटो में तो सभी हैंडसम दिखते हैं.’

‘सुनिए, मु?ो आप से प्यार हो गया है.’

‘क्या कहा तुम ने?’ मु?ो अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ.

‘आई लव यू… आई लव यू सो मच,’ उस ने फिर मैसेज किया.

‘तुम पागल तो नहीं हो?’

‘हां, मैं आप की प्रोफाइल फोटो देख कर पागल हो गई हूं.’

‘ज्यादा इमोशनल होने की जरूरत नहीं है. मेरी एक बात ध्यान से सुनो, बेटा.’

‘हाय… क्या कहा, बेटा… कितना अजीब इत्तफाक है, मेरे पापा भी मेरी मम्मी को प्यार से बेटा ही बुलाते हैं. आप के मुंह से बेटा शब्द सुन कर अच्छा लगा,’ उस ने रोमांटिक अंदाज में मैसेज भेजा.

‘तुम नादानी में कुछ भी बोले जा रही हो.’

‘मैं होशोहवास में बोल रही हूं.’

‘चलो, फिर से बेटा, अच्छा चलो, ऐसे ही बोलो आप.’

‘तुम चाहती क्या हो?’

‘इतनी जल्दी है आप को यह सुनने की?’

उस की बात से मैं ?ोंप गया था, फिर संभल कर मैं ने उस से कहा, ‘अगर तुम्हारे मम्मीपापा को तुम्हारे बारे में पता चला कि तुम किसी भी इंसान से ऐसी बातें करती हो तो उन पर क्या…’

‘सुनिए हैंडसम, अब मैं आप को हैंडसम ही बोला करूंगी और आप मु?ो बेटा,’ उस ने मेरी बात को बीच में ही काटते हुए कहा, ‘‘हां तो हैंडसम, मैं कह रही थी, मैं हर किसी से ऐसे नहीं बोलती हूं, आप से ऐसे बोलने का मन हुआ, तो बोल रही हूं. दूसरी बात, मेरे मम्मीपापा के मु?ो ले कर जो भी ड्रीम्स हैं उन्हें तो मैं हंड्रैड परसैंट पूरे करूंगी. पर ड्रीम्स से दिल का क्या लेनादेना. उसे तो इन सब चीजों से दूर रखिए. बेचारा मेरा नन्हामुन्ना, प्यारा सा एक ही तो दिल था उसे भी आप ने चुरा लिया.’

‘फालतू बातें मत करो.’

‘प्लीज हैंडसम, मु?ो अपना नंबर दो न, मु?ो आप से बहुत सारी बातें करनी हैं.’

‘नहीं, मैं तुम्हें नंबर नहीं दूंगा और तुम भी अब मु?ो मैसेज मत करना.’

‘सुनिए, औफलाइन मत होना, प्लीज.’

‘चुप रहो, मु?ो तुम से कोई बात नहीं करनी है.’

‘ऐसा मत कहिए, प्लीज, अपना नंबर दे दो न.’

‘कहा न, मैं तुम्हें नंबर नहीं दूंगा और न ही आज के बाद कोई मैसेज करूंगा,’ यह मैसेज भेजते हुए मैं ने फेसबुक लौगआउट कर दिया.

अगले दिन मैं औफिस टूअर पर कई दिनों के लिए दिल्ली चला गया. इस बीच मैं ने फेसबुक ओपन नहीं किया. दिल्ली से वापस आने के बाद रात को मैं ने लैपटौप पर फेसबुक लौगइन किया. मैसेज बौक्स में कई मैसेज मेरा इंतजार कर रहे थे. उन मैसेजेस में गौरी का मैसेज भी था. उस के मैसेज को देख कर मेरा दिल धक्क से हो गया. मन में सोचने लगा, यह लड़की जरूर सिरफिरी या पागल है. मैं तो इसे भूल गया था और यह? मैं ने उस के मैसेज पर क्लिक कर दिया. वही हंसतामुसकराता मासूम सा चेहरा सामने आ गया. मैसेज में लिखा था, ‘कहां हो हैंडसम, अपना नंबर दो न प्लीज.’ उस के मैसेज का मैं ने कोई रिप्लाई नहीं किया.

कई दिनों बाद मेरे मोबाइल पर एक अनजानी कौल आई. मैं ने कौल रिसीव की. दूसरी तरफ से खिलखिलाती हंसी सुनाई दी. उस के बाद आवाज आई, ‘हाय हैंडसम.’

उस आवाज को सुन कर मैं एकदम सकते में आ गया. दूसरी तरफ से फिर आवाज आई.

‘आप ने क्या सम?ा था, आप फेसबुक से दूर हो गए तो हम आप को अपने दिल से दूर कर देंगे. नहीं हैंडसम, ऐसा नहीं होगा. आप ने गौरी का दिल चुराया है. उस का चैन, उस की रातों की नींद चुराई है तो हम आप को कैसे भूल जाएंगे. हैंडसम, हम ने आप से सच्चा प्यार किया है. आप ने नंबर नहीं दिया तो क्या हुआ, आप फेसबुक से दूर हो गए तो क्या हुआ, हम तो आप से दूर नहीं हुए. हम ने आप का नंबर ढूंढ़ ही लिया. कोई बात नहीं, आप दुखी मत होइए. हम आप को परेशान भी नहीं करेंगे. क्या करें, हम आप पर मरमिटे हैं, इसलिए कभीकभार हम से बात कर लिया करो, ताकि हम जिंदा रह सकें.

क्या करें हैंडसम, हम तो दिल के हाथों मजबूर हो गए. दिल तो दिल ही है, कर बैठा आप से प्यार, तो कर बैठा. वैसे, आप हमारे ऊपर आंख मूंद कर भरोसा कर सकते हैं. हमें गर्व होता है अपनेआप पर जब हम सोचते हैं हमें प्यार भी हुआ तो एक मशहूर लेखक से. कभी तो हम भी उस की कहानी का हिस्सा बनेंगे. क्या हुआ… आप की खामोशी बता रही है, आप हमारी बेस्वादी बातों को सुन कर बोर हो रहे हैं. तभी तो कुछ बोल नहीं रहे हैं, हम ही बोले जा रहे हैं.’

‘क्या चाहती हो तुम?’ मैं ने ?ां?ालाते हुए कहा तो वह तपाक से बोली, ‘आप से मिलना चाहते हैं एक बार बस. एक बार हम से मिल लो, फिर आप जैसा कहोगे, हम वैसा ही करेंगे. हैंडसम प्लीज, न मत करना. हम जानते हैं आप बहुत सज्जन हैं. हम से बात करते हुए आप को ?ि?ाक होती है. पर हम सचमुच आप से प्यार करने लगे हैं.

आप हम से बिलकुल भी न घबराएं. हम न चालबाज हैं, न धोखेबाज. हमें आप से फोन रिचार्ज भी नहीं करवाना है, और न ही आप को ब्लैकमेल करना है. उम्र भी हमारी 20 साल है. आप को हम से कैसी भी कोई टैंशन नहीं मिलेगी. एक बार आप से मिलने की तमन्ना है. बस, वह पूरी कर दीजिए. हैंडसम, हम जानते हैं हमें ऐसी गलती नहीं करनी चाहिए.

‘हम यह भी नहीं चाहते कि हमारी गलती की सजा आप को मिले. आप हमारे बारे में कैसेकैसे अनुमान लगा रहे होंगे, हम कौन हैं, कहीं हम आप को गुमराह तो नहीं कर रहे हैं. हम लड़की हैं भी या नहीं, कहीं हम आप को किसी जाल में तो नहीं फांस रहे हैं. क्योंकि, आजकल ऐसा हो रहा है.

सोशलसाइट पर फेक आईडी बना कर लोग लोगों को ब्लैकमेल करते हैं, पर हम ऐसे नहीं हैं. हम सीधीसादी लड़की हैं. पैसे की भी हमारे पास कमी नहीं है. मम्मीपापा दोनों बिजनैस में हैं. हम उन की इकलौती, वह भी लाड़ली, संतान हैं. बहुत प्यार करते हैं मम्मीपापा हमें. पर क्या करें हम आप को प्यार करने लगे. आप का प्रोफाइल फोटो देख कर हमारा दिल हमारे काबू में नहीं रहा. आप के मन में हमें ले कर जो भी भ्रम हैं, वह हम मिल कर दूर कर लेंगे. हैंडसम, हमें इग्नोर मत करना वरना हमारा नन्हा सा, मासूम सा दिल टूट जाएगा.’

मैं ने उस से पीछा छुड़ाने की गरज से कह दिया, ‘अच्छा ठीक है. मैं अगले सप्ताह औफिस के काम से दिल्ली जाते वक्त तुम से मिल लूंगा.’ इतना सुनते ही वह खुशी से उछल पड़ी और बोली, ‘‘हैंडसम, आना जरूर, धोखा मत देना.’’

‘ठीक है, इस बीच तुम भी मु?ो फोन मत करना, मैं खुद तुम्हें फोन कर लूंगा.’

‘ठीक है, हमे मंजूर है, नहीं करेंगे हम आप को फोन.’

‘हां, मैं ने भी कह दिया तो जरूर आऊंगा.’

मैं ने गौरी से कह तो दिया लेकिन मेरे जेहन में उस की बातें उथलपुथल मचाने लगीं. कभी सोचता, मैं कहां फंस गया, कभी अपने मन में उस की काल्पनिक तसवीर बनाने लगता, वह ऐसी दिखती होगी, वह वैसी दिखती होगी. एक बार मन में आया, मैं घर में पत्नी को बता दूं. फिर सोचा, पत्नी ने मेरी बातों पर यकीन नहीं किया तो… फालतू में बात का बतंगड़ बन जाएगा. घर में हंगामा खड़ा हो जाएगा. नहीं, मैं पत्नी को नहीं बताऊंगा. मु?ो नहीं लगता कि वह लड़की गलत हो. वह भटक गई है, उस से मिल कर मु?ो उस को सम?ाना होगा, वरना उलटेसीधे हाथों में पड़ कर वह अपना जीवन बरबाद कर सकती है.

एक दिन जब मैं ने उस को फोन कर के बताया कि मैं कल सुबह 11 बजे तक उस के पास पहुंच जाऊंगा, मु?ो मिल जाना, तो वह खुशी से जैसे पागल हो गई. कई बार एक सांस में, ‘आई लव यू… आई लव यू सो मच…’ बोलती चली गई. मैं ने बिना किसी प्रतिक्रिया के फोन डिसकनैक्ट कर दिया.

रात को औफिस के ड्राइवर का फोन आया, ‘सर, सुबह को कितने बजे गाड़ी ले कर आऊं?’

मैं ने सोचा, अगर ड्राइवर के साथ मैं गौरी से मिलूंगा तो ड्राइवर औफिस में सब को बता देगा और फिर यह बात घर तक भी पहुंच जाएगी. इसलिए मैं ने ड्राइवर से ?ाठ बोला. मैं ने कहा, ‘मैं तो मुरादाबाद में ही हूं. रात को यहीं रुकना पड़ेगा. ऐसा करो, तुम कल दोपहर को 12 बजे तक यहां आ जाना, हम यहीं से दिल्ली चलेंगे.’

‘ठीक है सर,’ कह कर ड्राइवर ने फोन काट दिया.

खूबसूरत लम्हे – भाग 2 : दो प्रमियों की कहानी

जब मूड होता तो संगीता अपनी मातृभाषा पंजाबी बोलती. तब शेखर वाकई में खुल कर हंस पड़ा. उस के सामने जब संगीता ने टिफिन बौक्स खोला तो परांठों की महक सूंघ कर ही शेखर खुश हो गया.

दोनों ने जी भर कर परांठे खाए. परांठे खाने के बाद संगीता बोली, ‘‘चलो, अब लस्सी पिलाओ.’’

शेखर सकुचाते हुए बोला, ‘‘अभी क्लास शुरू होने वाली है, लस्सी कल पी लेंगे.’’

संगीता बेधड़क बोली, ‘‘बड़े कंजूस बाप के बेटे हो यार, लस्सी पीने का मन आज है और तुम अगले जन्म में पिलाने की बात करते हो. मेरी कुछ कद्र है कि नहीं. अभी यदि एक आवाज दूं तो लस्सी की दुकान से ले कर यहां तक लस्सी लिए लड़कों की लाइन लग जाए.’’

शेखर फिर मुसकरा कर रह गया. संगीता टिफिन बौक्स समेटती हुई बोली, ‘‘ठीक है, चलो मैं ही पिलाती हूं. मेरा बाप बड़े दिल वाला है. मिलिट्री औफिसर है. एक बार पर्स में हाथ डालते हैं और जितने नोट निकल आते हैं, वे मुझे दे देते हैं. किसी की इच्छा पूरी करना सीखो शेखर, बस किताबी कीड़ा बने रहते हो. लाइफ औलवेज नीड्स सम चेंज.’’

‘‘ठीक है, चलो पिलाता हूं लस्सी, अब भाषण देना बंद करो,’’ शेखर आग्रह भरे स्वर में बोला.

‘‘मुझे नहीं पीनी है अब लस्सी,’’ संगीता मुसकराते हुए बोली, ‘‘जिस ने पी तेरी लस्सी वह समझो फंसी, मैं तो नहीं ऐसी.’’

फिर कालेज कंपाउंड से निकल कर दोनों बाजार की ओर चल पड़े. चौक पर ही लस्सी की दुकान थी. कुरसी पर बैठते ही संगीता ने एक लस्सी का और्डर दिया. शेखर तब कुतुहल भरी दृष्टि से संगीता को निहारने लगा. संगीता ने टेबल पर सर्व किए गए लस्सी के गिलास को देख कर शेखर की तरफ देखा और जोर से हंस पड़ी.

शेखर धीरेधीरे उस की शोखी और शरारत से वाकिफ हो गया था. अत: वह लस्सी के गिलास को न देख कर दुकान की छत की ओर निहारने लगा. संगीता ने उस से चुटकी बजाते हुए कहा, ‘‘शेखर, लस्सी इधर टेबल पर है आसमान में नहीं है, ऊपर क्या देख रहे हो.’’

उस ने आवाज दे कर मैनेजर को बुलाया. उस के करीब आते ही वह उस पर बरस पड़ी, ‘‘इस टेबल पर कितने लोग बैठे हैं?’’

‘‘2,’’ मैनेजर ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया.

‘‘फिर लस्सी एक ही क्यों भेजी, तुम्हारे आदमी को समझ में नहीं आता है,’’ संगीता के तेवर गरम हो गए.

मैनेजर गरजते हुए बोला, ‘‘अरे, ओ मंजीते, तेरा ध्यान किधर है, कुड़ी द खयाल कर और एक लस्सी ला.’’

मंजीत कहना चाहता था कि मैडम ने एक ही और्डर दिया था, पर कह न सका और उसे काफी डांट पड़ी.

शेखर को यह सब पसंद नहीं आया. वह संगीता से नाराजगी भरे लहजे में बोला, ‘‘तुम ने और्डर तो एक ही लस्सी का दिया था फिर उसे डांट क्यों खिलवाई?’’

संगीता शरारती लहजे में बोली, ‘‘तुम्हें इतना बुरा क्यों लगा. वह तुम्हारा सगा है क्या? तुम को मालूम है, मैं जब भी अकेले लस्सी पीने आती हूं तो वह मुझे घूरघूर कर देखता है, लस्सी देर से देता है या फिर स्पर्श के लिए लस्सी हाथ में पकड़वाने की कोशिश करता है. आज उसे सबक मिला. अब लस्सी पीओ और दिमाग बिलकुल कूल करो.’’

शेखर ने लस्सी पीते हुए कहा, ‘‘तुम हो ही इतनी खूबसूरत कि लोग तुम्हें निहारे बिना रह नहीं सकते.’’

‘‘फिर चौराहे पर खड़ा कर के नोच डालो न मुझे, यह समाज तो मर्दों का है न, खूबसूरत होना क्या गुनाह है,’’ संगीता गुस्से में बोली. शेखर तब उसे बहलाने के खयाल से बोला, ‘‘अरे, लस्सी पी कर लोग कूल होते हैं, पर तुम तो गरम हो रही हो.’’

फिर शांत मन से संगीता लस्सी पीते हुए बोली, ‘‘अगर मेरा वश चले तो तुम्हें सिर्फ एक दिन के लिए लड़की बना दूं. तब तुम सब की नजरों को अपने पर देखो, उन के चेहरे के भाव समझो, उन की नीयत पहचानो, क्योंकि अभी तो तुम्हें सिर्फ कजरारे नयन और मधुर मुसकान नजर आती है.’’

शेखर एक कड़वी सचाई को सुन कर एकदम चुप हो गया.

कई दिन से संगीता कालेज में नजर नहीं आई. शेखर काफी परेशान हो गया. न कालेज में, न घर में, न अकेले में, कहीं भी उस का दिल न लगता. किसी तरह उस की एक सहेली से पता चला कि वह बीमार है और नर्सिंगहोम में भरती है. वह दौड़ पड़ा नर्सिंगहोम की ओर, काफी रात हो चुकी थी. संगीता बैड पर लेटी थी. नर्स से पता चला कि वह अभी दवा खा कर सोई है. कई रात से वह सो न सकी, नर्स शेखर की बदहवासी देख पूछ बैठी, ‘‘जगा दूं क्या?’’

पर शेखर का अंतर्मन बोला, ‘सोने दो मेरी जान को, कितनी हसीन लग रही है,’ नींद में भी चेहरे पर मुसकान थी. उस ने नर्स को एक गुलदस्ता और एक छोटी डायरी दे कर कहा, ‘‘जब संगीता नींद से जागे तो उसे दे देना.’’

‘‘आप का नाम?’’ नर्स ने पूछा.

‘‘कहना तुम्हारा मीत आया था,’’ कल फिर आऊंगा.

वह दूसरे दिन भी गया. पता चला कि संगीता को एक्सरे रूम में ले जाया गया है. वहां उस के मम्मीपापा और काफी रिश्तेदार आ गए. अब शेखर को रुकना उचित नहीं लगा. उस ने दोबारा फल, रजनीगंधा के फूल और मैगजीन सब नर्स को सौंपते हुए कहा, ‘‘मेरा कालेज का वक्त हो गया है, ये सब उसे दे दीजिएगा और…’’

‘‘और कह दूंगी तुम्हारे मीत ने दिया है,’’ नर्स ने मुसकराते हुए वाक्य पूरा किया और शेखर भी मुसकराते हुए लौट गया.

2 दिन बाद शेखर दोबारा हौस्पिटल आया. संगीता अपने बैड पर बैठी थी. शेखर को देखते ही उस के चेहरे पर मुसकान खिल उठी. शेखर बैड के करीब आ कर बोला, ‘‘सौरी, मैं 2-3 बार आया पर…’’

संगीता बीच में ही बोल पड़ी, ‘‘मुझे सब मालूम है, यह डायरी, यह फल, रजनीगंधा के फूल सब मेरे मीत के ही हैं. वैसे भी मैं तुम से सदा अकेले में ही मिलना चाहती हूं, भीड़ में गर तुम न ही मिलो तो अच्छा है.’’

वैसे भी मम्मीडैडी तुम्हें लाइक नहीं करते, वे धर्म के पक्के अनुयायी हैं.

शेखर उस की खैरियत जानना चाहता था. संगीता मुसकराते हुए बोली, ‘‘अरे, मुझे कुछ नहीं हुआ, मैं बिलकुल ठीक हूं, थोड़ा फीवर हुआ था. तुम्हें बहुत परेशान करती रहती हूं न, इसीलिए भुगतना पड़ा.’’

‘‘पर तुम्हारी बीमारी की खबर सुन कर तो मेरी नींद ही उड़ गई,’’ शेखर चिंता भरे लहजे में बोला.

पैर की जूती – भाग 1: क्या बहु को मिल पाया सास-ससुर का प्यार

होली के रंगों की तरह, वह ससुराल में यह उम्मीद ले कर आई थी कि उसे यहां अपने शौहर और सासससुर का प्यार मिलेगा, आने वाला समय इंद्रधनुषी रंगों की तरह आकर्षक और रंगबिरंगा होगा. लेकिन यहां आते ही उस की सारी आशाएं लुप्त हो गईं. हर वक्त ढेर सारा काम और ऊपर से मारपीट व गालियों की बौछार. इन यातनाओं से वह भयभीत हो उठी. न जाने कब ये कयामत के बादल बन कर उस पर टूट पड़ें. करीम से पहले उस के रिश्ते की बात उस के फुफेरे भाई अमजद से चली थी. पर अमजद ने इस रिश्ते को यह कह कर ठुकरा दिया कि वे भाईबहन हैं और वह भाईबहन के निकाह को ठीक नहीं समझता.

करीम से उस के रिश्ते की बात जब महल्ले में उड़ी तो महल्ले के सभी बुजुर्ग खुश हो उठे और बोले, ‘‘वाह, लड़की हो जरीना जैसी. फौरन मांबाप का कहना मान गई. वैसे आजकल की लड़कियां तौबातौबा, कितनी नाफरमान हो गई हैं. सचमुच जरीना जैसी लड़की सब को नहीं मिलती.’’

बुजुर्गों की बातों से छुटकारा मिलता तो सहेलियां उस पर कटाक्ष करतीं, ‘‘वाह बन्नो, अपने हबीब से मिलने की इतनी जल्दी तैयारी कर ली? अरी, थोड़े दिन तो और सब्र किया होता. दीवाली व ईद तो मना ली, होली भी मना कर जाती तो क्या फर्क पड़ जाता? ’’ और वह गुस्से व शर्म से कसमसा कर रह जाती.

कुछ दिनों बाद उस की शादी बड़ी धूमधाम से हो गई. शादी से पहले उस ने एक ख्वाब देखा था. ख्वाब यह था कि वह करीम को अपने मायके लाएगी और होली का त्योहार उल्लास से मनाएगी. पर उस का सपना, सपना ही रह गया.

उस के मायके में मुसलिम त्योहारों को जितनी खुशी से मनाया जाता है उतनी ही हिंदू त्योहारों को भी. वहां त्योहार मनाते समय यह नहीं देखा जाता कि उस का ताल्लुक उन के अपने मजहब से है या किसी दूसरे धर्म से. वे तो इस देश में मनाए जाने वाले प्रत्येक त्योहार को अपना त्योहार मानते हैं पर उस की ससुराल में तो सब उलटा ही था. उसे ऐसा पति मिला, जो पत्नी की इज्जत करना भी नहीं जानता था. वह तो उसे अपने पैर की जूती समझता था.

शादी के कुछ महीने बाद की बात है. उस दिन सब्जी में नमक कुछ ज्यादा हो गया था. करीम के निवाला उठाने से पहले सासससुर ने निवाला उठाया और मुंह में लुकमा डालते ही चीख पड़े, ‘‘यह सब्जी है या जहर? क्या करीम की शादी हम ने यही दिन देखने के लिए की थी?’’

यह सुनते ही करीम भड़क उठा था, ‘‘नालायक, खाना पकाना तक नहीं आता? क्या तेरे मांबाप ने तुझे यही सिखाया था? इस महंगाई के जमाने में इतनी बरबादी. चल, सारी सब्जी तू ही खा, नहीं तो मारमार कर खाल खींच लूंगा.’’

उसे विवश हो कर पतीली की पूरी सब्जी अपने गले से उतारनी पड़ी थी. इनकार करती तो करीम के हाथ में जो आता, उस से मारमार कर उस का भुकस निकाल देता.

इस घटना से भयभीत हो कर वह इतनी बीमार पड़ी कि उस के लिए दो कदम चलना भी मुश्किल हो गया.

पर करीम के मांबाप यही कहते, ‘‘काम के डर से बहाना बना रही है. चल उठ, काम कर, हमारे घर में तेरे ये नखरे नहीं चलेंगे.’’

उसे लाचार हो कर बिस्तर से उठना पड़ता. कदमकदम पर चक्कर आता तो पूरा घर खिल्ली उड़ा कर कहता, ‘‘देखा, कुलच्छन कैसी नजाकत दिखा रही है.’’

अंत में हार कर उस ने करीम से कह दिया, ‘‘देखिए, मुझे कुछ दिनों के लिए मायके भिजवा दीजिए. मेरी तबीयत ठीक नहीं है.’’

‘‘वाह, क्या मैं तुझे इसलिए निकाह कर के लाया हूं कि तू अपने मांबाप के यहां अपनी हड्डियां गलाए? अगर फिर कभी जाने का नाम लिया तो ठीक नहीं होगा.’’

इन जानवरों के बीच में वह विवश सी हो गई. घर जाने का  नाम उस की जबान पर आते ही ये लोग भूखे गिद्ध की तरह उस के शरीर पर टूट पड़ते. अगर उस की पड़ोसिन निर्मला उस का ध्यान न रखती और उसे वक्त पर चोरीछिपे दवा ला कर न देती तो वह कभी की इस दुनिया से कूच कर गई होती.

करीम ने उस दिन फिर उसे बुरी तरह मारा था. इस स्थिति को सहतेसहते उसे करीब 3 साल हो गए थे. उस की स्थिति उस वहशी कसाई के हाथों में बंधी बकरी की तरह थी जिस का हलाल होना तय था.

इस मुसीबत के समय उसे एक ही हमदर्द चेहरा नजर आता और वह था अमजद का. यह सही था कि उस ने ममेरी बहन होने की वजह से उस से शादी करने से इनकार कर दिया था, पर जब उसे यह पता चला कि जरीना का निकाह करीम से हो रहा है, तो वह दौड़ादौड़ा मामू के पास आया था और उन से बोला था, ‘अरे मामृ, जरीना बहन को कहां दे रहे हो? वह लड़का तो बिलकुल गधा है. अपनी समझ से तो काम ही लेना नहीं जानता. जो मांबाप कहते हैं, बस, आंख मींच कर वही करने लगता है, चाहे वह ठीक हो या गलत. जरीना वहां जा कर कभी खुश नहीं रह सकती. वे लोग उसे अपने पैर की जूती बना कर रखेंगे.’

पर अमजद की बात को किसी ने नहीं माना और जो होना था, वही हुआ. विदा के वक्त अमजद ने उस के सिर पर प्यार से हाथ रखते हुए कहा था, ‘पगली, तू रोती क्यों है? अगर तुझे कभी जरूरत पड़े तो अपने इस भाई को याद कर लेना. तू फिक्र मत कर, मैं तेरे हर दुखदर्द में काम आऊंगा.’

जरीना ने किसी तरह जीवन के 3 साल बिता दिए पर अब उस से बरदाश्त नहीं होता था. उस ने सोचा, अब उसे उस शख्स का दामन थामना ही होगा, जो सही माने में उस का हमदर्द है. फरजाना भाभी यानी अमजद की बीवी भी कई बार उस के घर आईं. वे उस की खैरियत पूछतीं तो जरीना हमेशा हंस कर यही कहती, ‘ठीक हूं, भाभी.’

और कई बार तो ऐसा हुआ कि जब वह मार खा कर सिसक रही होती, ठीक उसी वक्त फरजाना वहां पहुंच जाती. ऐसे वक्त चेहरे पर मुसकराहट लाना बड़ा कठिन होता है. भाभी भी चेहरा देख कर समझ जाती थीं पर घर के अन्य लोगों की मौजूदगी में कुछ बोल नहीं पाती थीं. आखिर वे चुपचाप चली जातीं. कुछ अरसे बाद अमजद का दूसरे शहर में तबादला हो गया. एक रहासहा आसरा भी दूर हो गया.

उस रोज घर में कोई नहीं था. मार और दर्द से उस का बदन टूट रहा था. गुस्से से उस का शरीर कांपने लगा. उस ने अपने वहशी पति के नाम एक लंबा खत लिखा और उसे मेज पर रख कर घर से निकल गई.

2 बजे की ट्रेन पकड़ कर शाम को वह अमजद के शहर पहुंची. रेलवेस्टेशन से टैक्सी ले कर घर पहुंचतेपहुंचते अंधेरा हो गया था. टैक्सी से उतर कर वह बुझे मन से घर की ड्योढ़ी की ओर बढ़ गई.

सामने से आती फरजाना भाभी उसे देखते ही चौंकीं, ‘‘अरी जरीना, तू कब आई?’’

वह भाभी को सलाम कर सोफे पर बैठते हुए धीमे से बोली, ‘‘बस, सीधे  घर से चली आ रही हूं, भाभी.’’

फरजाना उस के मैले कुचैले कपड़ों और रूखे बालों को एकटक देखती रहीं. फिर क्षणभर बाद बोली, ‘‘यह अपनी क्या हालत बना रखी है, जरीना?’’

भाभी के शब्दों से उस के धैर्य का बांध टूट गया. जो आंसू अब तक जज्ब थे, वे फरात नदी की तरह बह निकले.

‘‘अरी, तू रो रही है,’’ भाभी ने दिलासा देते हुए उस की आंखों से आंसू पोंछ दिए, ‘‘चल जरीना, हाथमुंह धो, कपड़े बदल और जो कुछ हुआ उसे भूल जा.’’

वे 3 दिन – भाग 1 : इंसान अपनी सोच से मौडर्न बनता है

‘‘मेरी प्यार बूआ, आप तो एकदम जंच रही हो, बिलकुल पंजाबी लड़कियों की तरह. पंजाबी सलवार… लिपस्टिक… क्या बात है,’’ नव्या ने दिल्ली से आई अपनी बूआ को कुहनी मारते हुए छेड़ा और फिर उन के गले लग गई और उन के गालों को चूम लिया.

नव्या की बूआ निकिता को उन के भैया ने कल फोन कर तुरंत बुढ़ाना आ जाने को कहा था.

‘हैलो निकिता, हम लोग 3 दिन के लिए शिमला जा रहे हैं. नव्या के फाइनल एग्जाम हैं और साथ में उस की तबीयत भी ठीक नहीं है. तुम हमारे पीछे से उस के पास आ जातीं, तो हमें परेशानी नहीं होती. अब जवान लड़की है, तो अकेले या आसपड़ोस वालों के भरोसे भी छोड़ कर जाने को मन नहीं मान रहा है.’

‘नहीं भाईसाहब, आप बिलकुल बेफिक्र हो कर जाइए, मैं कल सुबह की किसी बस से शाम तक वहां पहुंच जाऊंगी.’

‘‘क्या हुआ री नव्या तुझे? भाई साहब बता रहे थे कि तेरी तबीयत ठीक नहीं है,’’ निकिता बूआ ने आते ही चिंतित आवाज में पूछा, ‘‘और तू ने यह क्या पहन रखा है… यह फटी जींस और कटे शोल्डर वाला टौप. तुम यह सब कब से पहनने लगी?’’

‘‘अरे, कुछ नहीं बूआ, वही मंथली पीरियड…’’

‘‘मतलब, तू टाइम से है?’’ निकिता बूआ उछल कर खड़ी हो गईं और अपना गाल पोंछने लगीं, जहां पर एक मिनट पहले नव्या ने चूमा था. जैसे उन के गाल पर किसी ने कीचड़ मल दिया हो.

‘‘तेरी मां ने तुझे इतना भी नहीं सिखाया है कि इन दिनों में किसी नहाएधोए को छूना नहीं चाहिए. अब मुझे फिर से नहा कर आना पड़ेगा.’’

‘‘सौरी बूआ, आप पहले चाय तो ले लीजिए. मैं ने आप के लिए अदरक वाली चाय बना दी है और साथ में आप की पसंद के पालक के पकौड़े भी हैं,’’ बूआ का मूड अच्छा करने की गरज से नव्या ने बात बदलते हुए कहा.

‘‘तेरा दिमाग खराब हो गया है क्या? 3 दिन रसोई में जाना तो दूर उस के आसपास भी नहीं फटकना चाहिए. तुझे लगता है कि मैं तेरे हाथ का छुआ पानी भी पीऊंगी?’’ अब निकिता बूआ की आवाज कुछ कठोर हो गई थी.

नव्या को बूआ के गरममिजाज और दकियानूसी विचारों के बारे में मालूम था, जो दिल्ली में रहते हुए भी मानो बुढ़ाना में रह रही थीं, पर उन का ऐसा रूप देखने का मौका पहली बार पड़ा था.

नव्या कुछ समय के लिए सहम गई, फिर माहौल को बदलने के लिए अपनी बूआ को लाड़ लड़ाते हुए उन का हाथ पकड़ कर उन्हें सोफे पर बिठाने लगी.

‘‘अरे, तुझे अभी तो मना किया था मुझे छूने को… पर तू है कि तुझे कोई बात समझ ही नहीं आ रही है,’’ बूआ चिल्लाईं.

‘‘बूआ, मुझे इन सब चीजों की आदत नहीं है न, तो बारबार भूल जाती हूं,’’ नव्या ने निकिता के कंधे से अपना हाथ हटा लिया और उन के साथसाथ खुद भी सोफे पर बैठ गई.

नव्या के बैठते ही बूआ फिर से तुनक गईं, ‘‘अगर ये 3 दिन तुम थोड़ेबहुत नियम मान लोगी, तो तुम पर आसमान टूट कर गिर जाएगा क्या?

‘‘अच्छा है, अम्मां यह सब देखने से पहले ही इस दुनिया से विदा हो गईं, नहीं तो वे यह सब देख कर जीतेजी मर जातीं. तेरी मां का राज आते ही पूरे घर में अपवित्रता आ गई.

‘‘मुझे कहना तो नहीं चाहिए, पर जिस घर में ऐसा पाप हो रहा हो, वहां कहां से कुलदीपक आता. अब चाहे देवीदेवताओं की लाख मन्नतें कर लो, कुछ हासिल नहीं होने वाला है, जब घर में ही ऐसा अनर्थ.

‘‘अम्मां थीं तब तक शहर से ब्याह कर आई तेरी संस्कारहीन मां को सबकुछ मानना पड़ा, चाहे डंडे के जोर पर ही. पर अब तो लगता है, यहां जंगल राज आ गया है.’’

निकिता बूआ इस बार 8-9 साल बाद बुढ़ाना आई थीं. घर का खाका ही बदल गया था. तख्त की जगह सोफा था, टीवी भी नया था.

अब तक सब्र से काम लेती हुई नव्या को भी गुस्सा आ गया. घर से निकलते हुए उस की मम्मी द्वारा दी गई सारी नसीहतों को भी वह भूल गई, क्योंकि अब बात उस की मम्मी के संस्कारों पर आ गई थी.

‘‘बूआ, मम्मी के संस्कारों की तो आप बात न ही करें तो बेहतर होगा. भूल गईं आप अपना समय… जब पहली बार अपने कपड़ों पर धब्बे देख कर कितना डर गई थीं आप.

आप को लगा था कि आप कैंसर जैसी किसी खतरनाक बीमारी की चपेट में आ गई हैं. आप रोतेरोते दादी के पास गई थीं और पूजा करती हुई दादी ने आप के कपड़े देख कर आप को पुचकारने के बजाय अपने से दूर धकेल दिया था.

अब क्या करूं मैं – भाग 1

‘‘भाभी, शीशे पर क्या गुस्सा निकाल रही हो, जो हो रहा है उसे होने दो. मैं तो कई साल पहले से ही जानती थी. आज का यह दिन तुम्हें न देखना पड़े इसीलिए तो सदा टोकती रही हूं कि अपना व्यवहार इतना भी हलका न बनाओ…’’

‘‘मेरा व्यवहार हलका है?’’ सदा की तरह भाभी ने आंखें तरेरीं, ‘‘तू होगी हलकी…तेरा सारा खानदान होगा हलका…’’

भैया और भतीजा पास ही खड़े थे. मेरी आंखें उन से मिलीं. शरम आ रही थी उन्हें अपनी पत्नी और मां के व्यवहार पर. आज बरसों बाद मैं मायके आई हूं. नाराज थी भाभीभाई से, ऐसा कहना उचित नहीं होगा, मैं तो बस, भाभी के व्यवहार से तंग आ कर मायके को त्याग चुकी थी.

भाभी का ओछा व्यवहार और ऊपर से भैया का चुपचाप सब सुनते रहना जब तक सहा गया सहती रही और जब लगा अब नहीं सह सकती, पीठ दिखा दी. उम्र के इस पड़ाव पर, जब मैं भी सास बन चुकी हूं और भाभी भी दादीनानी, बच्चों की तरह उन का लड़ पड़ना अभी गया नहीं है. आज भी उन में परिपक्वता नहीं आई.

‘‘मेरे खानदान को छोड़ो भाभी, तुम्हारामेरा खानदान अलगअलग कहां है, जो खानदान पर उतर आई हो. आधी उम्र मैं इस खानदान की बेटी रही हूं, मेरा खानदान तो यह भी है, जो आज तुम्हारा है. हमारी उम्र इस तरह लड़ने की नहीं रही जो हम ऊलजलूल बकते रहें. आज सवाल हमारे बच्चों का है कि हमारे व्यवहार से उन का अनिष्ट हो, ऐसा नहीं होना चाहिए.’’

‘‘अरे, मेरी बेटी का सर्वनाश तो तेरे कारण हो रहा है चंदा, तेरी ही ससुराल के हैं न उस के ससुराल वाले…तू ही उस का पैर वहां लगने नहीं देती.’’

‘‘मेरी ससुराल में जब बेटी का रिश्ता किया था तब क्या मुझ से पूछा था तुम ने, भाभी? भैया, आप ने भी जरूरी नहीं समझा मुझे बताना कि लड़का कितना पढ़ालिखा है, कोई बुरी आदत तो  नहीं. भला मुझ से बेहतर कौन बताता आप को जिस के सामने वह पलाबढ़ा है… तब तो मैं आप को दुश्मन नजर आती थी कि कहीं रिश्ता ही न तुड़वा दूं.

‘‘मुझे तो पता ही तब चला था जब मेरी चचिया सास ने शादी का कार्ड हाथ में थमा दिया था. क्या कहती मैं तब अपनी ससुराल में कि आने वाली मेरी सगी भतीजी है, जिस की मां और बाप ने मुझे एक बार पूछा तक नहीं.’’

गला भर आया मेरा, ‘‘जानती हो भाभी, मेरी चचिया सास ने भी इसी अनबन का फायदा उठाया और अपना खोटा सिक्का चला लिया. अब जो हो रहा है उस में मेरा दोष क्यों निकाल रही हो. तुम्हारी बच्ची वहां सुखी नहीं है तो उस में मैं क्या करूं? न मैं कल किसी गिनती में थी न ही मैं आज किसी गिनती में हूं.’’

‘‘उसी का बदला ले रही है न चंदा, तू चाहती है कि मेरी बेटी तेरी जूती के नीचे रहे…’’

‘‘मेरा घर तो उस के घर से 50 किलोमीटर दूर है भाभी. भला मेरी जूती के नीचे वह कैसे रह सकती है? सच तो यह है कि जो कलह तुम सदा यहां डालती रही हो उसी को अपनी बच्ची के संस्कारों में गूंथ कर तुम ने साथ बांध दिया है. एक तो सोना उस पर सुहागा. पति अच्छा होता तो पत्नी की आदतों पर परदा डालता रहता…जिस तरह भैया डालते रहे हैं लेकिन वहां वह भी तो सहारा नहीं है… शराबी, चरित्रहीन पति, पत्नी को नंगा करने में लगा रहता है और पत्नी, पति के परदे तारतार करने से नहीं चूकती. उस पर आग में घी का काम तुम करती हो.

‘‘बेटी का घर बसाना चाहती हो तो कम से कम अब तो जागो और बेटी को समझाओ कि समझदारी से काम ले. घर में रुपएपैसे की कमी नहीं है. लड़का अच्छा नहीं, लेकिन सासससुर तो लड़की को सिरआंखों पर रखते हैं. पति को समझाए, उसे सुधारने का प्रयास करे.’’

‘‘कैसे समझाए उसे मेरी बेटी? उस के तो 10-10 हजार चक्कर हैं. कईकई दिन वह घर ही नहीं आता. ऊपर से तू भी उसी को दोष देती है.’’

‘‘तो क्या करूं मैं? कोई बीच का रास्ता निकालना होगा न हमें. कम से कम घर तो संभाल ले तुम्हारी बेटी…सासससुर इज्जतमान देते हैं तो उन्हीं का मान रख कर घर में सुखशांति बनाने की कोशिश करे. मेरे दोष देने या न देने का कोई अर्थ नहीं है भैया, मैं कब उस के घर जाती हूं. तुम ने इतना प्यार ही कहां छोड़ा है कि वह बूआ के घर आना चाहे या मैं ही उसे अपने घर बुलाऊं…तुम्हारे परिवार से दूर ही रहने में मैं अपना भला समझती हूं.’’

मन भर आया मेरा और मैं अतीत में विचरण करने लगी. यही वह घरआंगन है जहां मैं और भैया दिनभर धमाचौकड़ी मचाते थे. अच्छा संस्कारी परिवार था हमारा मगर भाभी के आते ही सब बिखर गया. छोटे दिलोदिमाग की भाभी की जबान गज भर लंबी थी. कुदरत ने शायद लंबी जबान दे कर ही बुद्धि और विवेक की भरपाई करने का प्रयास कर दिया था, जिस का भाभी जम कर इस्तेमाल करती थीं. अवाक् रह जाते थे हम सब. बच्चों की तरह लड़ पड़ती थीं मुझ से. समझ में नहीं आता था कि भाभी का दिमाग इस दिशा में जाता है तो जाता कैसे है.

एक पढ़ालिखा सभ्य इनसान किसी दूसरे पर सीधासीधा आरोप लगाने से पहले हजार बार सोचता है कि बरसों का रिश्ता कहीं टूट ही न जाए, लेकिन भाभी तो अपनी जरा सी चीज आगेपीछे होने पर भी झट से मुझ पर आरोप लगा देती थीं कि मैं ने अपनी आंखों से देखा है.

 

3 किरदारों का अनूठा नाटक

पिछला टेलीफोन उस के लिए परेशानी भरा था. दूसरा फोन तो उसे खौफजदा करने के लिए काफी था. दोनों टेलीफोन दिन के वक्त आए थे. तब जब उस का हसबैंड सिकंदर अपने औफिस में था और वह घर पर अकेली थी.

‘‘मिसेज सिकंदर,’’ फोन पर एक अजनबी औरत की आवाज सुनाई दी.

‘‘हां, बोल रही हूं. आप कौन हैं?’’ मिसेज सिकंदर ने कहा.

‘‘एक दोस्त हूं. मकसद है आप की मदद करना. क्या आप सलिलि को जानती हैं?’’ उस ने पूछा.

‘‘तो क्या आप सलिलि हैं?’’ मिसेज सिकंदर ने पूछा.

‘‘नहीं मिसेज सिकंदर, सलिलि तो आप के शौहर की सेक्रेटरी का नाम है. मिस्टर सिकंदर और सलिलि के बीच जो चल रहा है, आप के लिए ठीक नहीं है. मेरा फर्ज है कि मैं आप को सही हालात की जानकारी दे दूं.’’

मिसेज सिकंदर गुस्से से चिल्लाई, ‘‘यह सब फालतू बकवास है. सलिलि मेरे शौहर की सेक्रेटरी जरूर है. वह उस का जिक्र भी करते हैं. पर उन का उस से कोई चक्कर है, यह बिलकुल गलत है. सलिलि को दिल की बीमारी है, इसलिए वह उस से हमदर्दी रखते हैं. अबकी बार तो वह कह रहे थे, अगर अब उस ने ज्यादा छुट्टियां लीं तो उसे नौकरी से निकाल देंगे.’’

दूसरी तरफ से औरत की जहरीली हंसी की आवाज आई, ‘‘हां, आप यह सच कह रही हैं मिसेज सिकंदर. सलिलि को दिल की बीमारी है, लेकिन वह दूसरी तरह की दिल की बीमारी है. वैसे मुझे सलिलि से कोई जलन नहीं है. मैं तो आप का भला चाहती हूं. आप यह मालूम करने की कोशिश करें कि जब आप के शौहर पिछले महीने बिजनैस के सिलसिले में सिंगापुर गए थे, उस वक्त उन की खूबसूरत सेक्रेटरी सलिलि कहां थी?’’

‘‘आप हद से आगे बढ़ रही हैं मैडम, अपनी बेहूदा बकवास बंद कीजिए.’’ गुस्से से मिसेज सिकंदर ने फोन रख दिया. दोनों हाथों से सिर थाम कर मिसेज सिकंदर सोच में डूब गईं.

उन्हें याद आया, जब पिछले महीने सिकंदर बिजनैस के लिए सिंगापुर गया था, तो उस ने उसे सिंगापुर के उस होटल का नाम बताया था, जहां वह ठहरने वाला था. लेकिन एक जरूरी काम के सिलसिले में जब उस ने सिकंदर को होटल फोन किया था तो होटल से बताया गया था कि सिकंदर नाम का कोई आदमी उन के होटल में नहीं ठहरा है. उस वक्त उस ने सोचा था कि सिकंदर ने किसी वजह से होटल बदल लिया होगा. लेकिन अब?

सिकंदर से उस की शादी किसी रोमांस का नतीजा नहीं थी. उसे कहीं देख कर सिकंदर ने उस के हुस्न की तारीफ की तो वह सोच में पड़ गई थी. वह सिकंदर से उम्र में बड़ी थी. देखने में भी कोई खास अच्छी नहीं थी. उसे अपने हुस्न के बारे में कोई गलतफहमी नहीं थी.

सिकंदर ने उस से शादी सिर्फ इसलिए की थी कि वह एक बड़ी दौलत और जायदाद की वारिस थी. 14 साल से वह सिकंदर के साथ एक अच्छी जिंदगी गुजार रही थी. सिकंदर देखने में स्मार्ट था और बेहद जहीन भी.

उस ने रोमा की दौलत को इस तरह बिजनैस में लगाया कि कारोबार चमक उठा. बिजनैस खूब फलफूल रहा था. 14 साल के अरसे में उन की शादी को एक शानदार कारोबारी समझौता कहा जा सकता था. दोनों एकदूसरे से खुश थे और इस कामयाब फायदेमंद कौंट्रैक्ट को तोड़ने पर राजी नहीं थे. दोनों ही खुशहाल जिंदगी बसर कर रहे थे.

शाम को सिकंदर की वापसी पर रोमा ने फोन काल के बारे में कुछ नहीं बताया. एक हफ्ता आराम से गुजरा. इस बार किसी आदमी का फोन था. जिस ने उसे दहशतजदा कर दिया. उस ने घबरा कर पूछा, ‘‘आप कौन हैं?’’

‘‘इस बारे में आप को फिक्र करने की जरूरत नहीं है. जो मैं कह रहा हूं, उसे ध्यान से सुनो मिसेज सिकंदर. मैं एक पेशेवर कातिल हूं. मैं मोटी रकम के बदले किसी का भी कत्ल कर सकता हूं. शायद यह जान कर आप को ताज्जुब होगा कि आप के शौहर सिकंदर ने आप को कत्ल करने के लिए मुझे 10 लाख रुपए की औफर दी है.’’

रोमा डर कर चिल्लाई, ‘‘तुम पागल हो गए हो या मजाक कर रहे हो? मेरा शौहर हरगिज ऐसा नहीं कर सकता.’’

मरदाना आवाज फिर उभरी, ‘‘अगर आप को आप के शौहर के औफर के बारे में न बताता तो शायद मैं पागल कहलाता. मैं हर काम बहुत सोचसमझ कर करता हूं. 10 लाख का औफर मिलने के बाद मैं ने अपने शिकार के बारे में जानकारी हासिल की और आप तक पहुंचा.

‘‘मैं कोई मामूली ठग या चोर नहीं हूं. अपने मैदान का कामयाब खिलाड़ी हूं. मैं इस तरह कत्ल करता हूं कि मौत नेचुरल लगे. किसी को भी कोई शक न हो. मैं अपने काम में कभी भी नाकाम नहीं रहा.’’

मिसेज सिकंदर ने कंपकंपाती आवाज में कहा, ‘‘यह सब क्या कह रहे हो तुम, मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है.’’

अजनबी मर्द की आवाज गूंजी, ‘‘मैं आप को सब समझाता हूं. आप के हसबैंड की औफर कबूल करने के बाद मुझे आप के बारे में पता लगा कि सारी दौलत की मालिक आप हैं. आप का शौहर आप का कत्ल करवाने के बाद पूरी दौलत का मालिक बनना चाहता है.

‘‘तब मुझे एक खयाल आया कि अगर मिसेज सिकंदर मुझे डबल रकम देने पर राजी हो जाएं तो मैं उन की जगह उन के शौहर को ही ठिकाने लगा दूं. आप क्या कहती हैं, इस बारे में मिसेज सिकंदर?’’

मिसेज सिकंदर खौफ से चीखीं, ‘‘तुम एकदम पागल आदमी हो. मैं पुलिस को खबर कर रही हूं.’’

मर्द ने जोरों से हंसते हुए कहा, ‘‘पुलिस, आप उन्हें क्या बताएंगी. चलिए, अगर उन्होंने यकीन कर भी लिया तो आप मुझे कहां तलाश करेंगी? मैं पीसीओ से फोन कर रहा हूं. आप बेकार की बातें छोड़ें और गौर करें. आप दोनों में से कोई एक मरने वाला है. अब रहा सवाल यह कि मरने वाला कौन होगा? आप या आप का शौहर? इस का फैसला आप को करना होगा. आप तसल्ली से सोच लें. कल मैं इसी वक्त फिर फोन करूंगा. आप का आखिरी फैसला जानने के लिए.’’

दूसरी तरफ से फोन बंद हो गया.

शाम को सिकंदर घर नहीं आया. उस ने फोन कर दिया कि औफिस में काम ज्यादा है, वह देर रात तक काम करेगा. उस ने सोचा कि सलिलि के साथ ऐश करेगा. जब आधी रात को सिकंदर बैडरूम में दाखिल हुआ तो वह जाग रही थी और कुछ सोच रही थी.

सोचतेसोचते वह इस फैसले पर पहुंच गई कि सुबह सिकंदर को टेलीफोन के बारे में बताएगी. मगर सिर्फ पहले फोन के बारे में. वह उस से कहेगी कि अगर उसे कोई कीप रखनी है तो रखे. उसे कोई ऐतराज नहीं, पर यह बात राज रहे. कोई बदनामी न हो.

वह आखिर दूसरे फोन के बारे में क्या बताती कि एक आदमी ने कहा है कि मुझे कत्ल करने के लिए 10 लाख का औफर दिया गया है. अगर मैं औफर डबल कर दूं तो मेरी जगह वह मारा जाएगा. शायद यह सुन कर सिकंदर उसे पागलखाने में दाखिल करा दे.

फिर उसे खयाल आया कि क्यों न वह उस अजनबी मर्द के दूसरे फोन का इंतजार करे. हो सकता है बातचीत के दौरान उस की कोई ऐसी गलती पकड़ में आ जाए, जिस की वजह से सिकंदर और पुलिस दोनों को उस की बात का यकीन आ जाए. फिर उसे पागलखाने में डालने की जरूरत नहीं पड़ेगी.

लेकिन उसे लगा कि पहले फोन के बारे में भी बताने की भी क्या जरूरत है. वह उस की कहानी सुन कर खूब हंसेगा. अफेयर से इनकार करेगा और चौकन्ना हो जाएगा.

जैसेजैसे वह सोच रही थी, उसे लग रहा था कि फोन करने वाला आदमी पागल है. आखिर सिकंदर उस का कत्ल क्यों करवाएगा? वह खुद बूढ़ा हो रहा है, तोंद निकल आई है. अब क्या इश्क लड़ाएगा. पर यह बात भी सच है कि वह उसे तलाक नहीं दे सकता, क्योंकि सारी दौलत उस के हाथ से निकल जाएगी.

पर अचानक एक खयाल ने उसे डरा दिया कि अगर आज वह मर जाती है तो सारी दौलत का मालिक सिकंदर होगा. इस तरह उसे अपनी बीवी से छुटकारा मिल जाएगा और वह सलिलि से शादी करने के लिए आजाद हो जाएगा.

इसी सोचविचार में सारी रात कट गई. दूसरे दिन जब फोन की घंटी बजी तो उसी मरदाना आवाज ने पूछा, ‘‘मैडम, आप ने क्या फैसला किया?’’

रोमा की पेशानी पसीने से भीग गई. उस ने कहा, ‘‘मैं तैयार हूं. मैं तुम्हें 20 लाख दूंगी, तुम शिकार बदल दो. पर शिकार सिकंदर नहीं, सलिलि होगी.’’

‘‘बहुत अच्छा फैसला है, मतलब अब इस लड़की को ठिकाने लगाना है.’’ मरदाना आवाज ने पूछा.

‘‘हां, मेरे शौहर के बजाए उस की सेक्रेटरी सलिलि को कत्ल करना बेहतर है. क्योंकि न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी. उसे लग रहा था, जैसे सलिलि और सिकंदर के अफेयर के बारे में सारी दुनिया जानती है. सलिलि के न रहने से वह खुद ही वफादार बन जाएगा और अगर उस ने अपनी बीवी को कत्ल कराने की कोशिश की थी तो वह उस से खौफजदा भी रहेगा.’’

उस के दिमाग में एक खयाल और आया कि ये सारी बातें लिख कर अपने वकील के पास हिफाजत से रखवा देगी कि उस की अननेचुरल डैथ के बाद इसे खोला जाए और मौत का जिम्मेदार सिकंदर को ठहराया जाए.

फोन में मरदाना आवाज उभरी, ‘‘मुझे इस से कोई मतलब नहीं कि शिकार कौन है? मैं अपना काम बहुत ईमानदारी और सलीके से करता हूं. मैं आज ही आप के शौहर के औफर से इनकार कर दूंगा.

‘‘आप का काम हो जाने के बाद फिर कभी आप मेरी आवाज नहीं सुनेंगी, पर एकदो चीजें बहुत जरूरी हैं. मैं अपनी फीस एडवांस में नहीं मांग रहा हूं पर आप को मेरे बताए पते पर मेरे कहे मुताबिक एक खत लिख कर भेजना पड़ेगा. मेरा पता है— रूस्तम, पोस्ट बौक्स-911, रौयल पैलेस.’’

रोमा ने घबरा कर पूछा, ‘‘मुझे क्या लिखना होगा?’’

‘‘आप को लिखना होगा कि आप ने 20 लाख के एवज में मुझे हायर किया है कि मैं आप के शौहर की सेक्रेटरी सलिलि फर्नांडीज को कत्ल कर दूं.’’ मरदानी आवाज सुनाई दी.

रोमा चीख पड़ी, ‘‘नहीं, हरगिज नहीं. इस तरह तो मैं कत्ल में शामिल हो जाऊंगी.’’

‘‘बेशक, पर यह खत मेरे लिए बहुत ही जरूरी है, क्योंकि इसे लिखने के बाद आप मेरे बारे में छानबीन नहीं करेंगी. यही खत मेरी फीस की गारंटी भी है. जब आप को सबूत मिल जाए कि सलिलि मर चुकी है, आप मुझे 20 लाख की रकम भेजेंगी. उस के मिलते ही कुरियर से आप को आप का खत वापस मिल जाएगा.’’

‘‘नहीं नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकती.’’ रोमा ने चिल्ला कर कहा.

‘‘मुझे बहुत दुख है मैडम कि आप के शौहर आप से कहीं ज्यादा अक्लमंद हैं. उन्होंने मेरी हर बात मंजूर कर ली थी. अब मैं आप के शौहर से ही सौदा कर लेता हूं.’’

रोमा ने कांपती आवाज में कहा, ‘‘ठहरो, मुझे तुम्हारी बात मंजूर है. बताओ, मुझे क्या लिखना है?’’

‘‘हां, यह ठीक है. आप कागज पेन ले लें, मैं आप को लिखवाता हूं.’’

रोमा ने कांपते हाथों से खत लिखा. फिर उस ने कहा, ‘‘मैं आप को खबर करूंगा कि आप खत भेज दें. खत मिलने के 2-3 दिन के अंदर ही अखबार में आप को सलिलि फर्नांडीस की मौत की खबर मिल जाएगी. फिर मैं आप को रकम के बारे में बताऊंगा कि कहां और कैसे भेजनी है. और फिर आप का खत आप को वापस मिल जाएगा. इस के बाद हमारा ताल्लुक खत्म.’’ दूसरी तरफ से फोन बंद हो गया.

2 दिन बाद फिर फोन आया. उस ने खत भेजने की हिदायत दी. रोमा ने खत रवाना कर दिया. तीसरे दिन अखबार में सलिलि फर्नांडीस की मौत की खबर छपी कि कल रात सलिलि फर्नांडीस की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई.

रोमा का शौहर सिकंदर काम के सिलसिले में कलकत्ता गया हुआ था. अब उसे कोई फिक्र नहीं थी. वह कहां जाता है, कहां ठहरता है, क्या करता है.

दूसरे दिन उसी आदमी ने रकम के बारे में कई हिदायतें दीं. रोमा ने अलगअलग बैंकों से रकम निकलवाई. कुछ अपने पास से मिलाई और बड़ी ईमानदारी से वहां पैसा पहुंचा दिया, जहां कहा गया था. वह कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी. पेशेवर कातिल भी अपने वादे का पक्का निकला. दूसरे रोज ही रोमा को कुरियर से उस का खत वापस मिल गया. उस ने फौरन उसे जला दिया और चैन की नींद सो गई.

उसी रात रोमा का शौहर रोमा से कई सौ मील दूर अपनी खूबसूरत सेक्रेटरी सलिलि के साथ एक शानदार होटल में अपनी कामयाबी का जश्न मना रहा था. सलिलि ने पूछा, ‘‘सिकंदर, मुझे यकीन नहीं हो रहा है कि यह सब कैसे हो गया? आखिर कैसे तुम ने मेरी मौत की खबर छपवा दी?’’

सिकंदर ने शराब का घूंट भरते हुए कहा, ‘‘बहुत आसानी से, तुम्हारे मरने की खबर और रकम मैं ने अखबार वालों को भेज दी थी और उस के साथ एक परचा रखा था—‘सलिलि फर्नांडीस का कोई रिश्तेदार या करीबी इस शहर में नहीं है और वह मेरी कंपनी में मुलाजिम थी. उस की सारी जिम्मेदारी मुझ पर आती है. उस के सारे मामलात मैं ही देख रहा हूं. बस अखबार के जरिए उस की मौत की खबर दुनिया को बताना चाहता हूं.’

उन लोगों ने दूसरे दिन ही यह खबर छाप दी. अच्छा जानेमन, तुम यह बताओ कि तुम ने फ्लैट छोड़ते वक्त अपनी मकान मालकिन से क्या कहा?’’

‘‘मैं ने मकान मालकिन से कहा था कि मैं दिल की मरीज हूं. अपने शहर वापस जा कर अपने डाक्टर से इलाज कराऊंगी, क्योंकि अब तकलीफ बहुत बढ़ गई है.’’

‘‘शाबाश, तुम्हें मुंबई आए अभी बहुत कम अरसा हुआ है. कोई तुम्हें जानता भी नहीं है, न कोई दोस्त है. अब तुम दूरदराज के इलाके में एक शानदार फ्लैट ले कर ठाठ से रहना. अपना नाम और पहचान भी बदल लेना. रोमा से मिले 20 लाख रुपए मैं किसी बिजनैस में लगा दूंगा ताकि हर महीने गुजारे के लिए अच्छीखासी रकम मिलती रहे.’’

‘‘डार्लिंग, तुम कितने अच्छे हो, सारी रकम मेरे नाम पर लगा रहे हो.’’

‘‘क्यों नहीं डियर, पहली बार टेलीफोन करने वाली तुम खुद थीं. तुम्हीं ने तो प्लान कामयाब बनाया.’’

‘‘मगर सिकंदर, सारी प्लानिंग तो तुम्हारी थी. तुम ने कितनी कामयाबी से आवाज बदल कर कातिल का रोल अदा किया. तुम्हारी आवाज सुन कर तो मैं भी धोखा खा गई थी. तुम वाकई में बहुत बड़े कलाकार हो.’’

‘‘चलो, फालतू बातें छोड़ो, अब हमारे मिलने में कोई रुकावट नहीं रहेगी. टूर का बहाना कर के मैं तुम्हारे पास आ जाया करूंगा. उधर रोमा अपनी दौलत पर नाज करते हुए चैन से सोएगी. अब मुझ पर शक भी नहीं करेगी.’’

दामाद: अमित के सामने आई आशा की सच्चाई

अमित आज शादी के बाद पहली बार अपनी पत्नी को ले कर ससुराल जा रहा था. पढ़ाईलिखाई में अच्छा होने के चलते उसे सरकारी नौकरी मिल गई थी. सरकारी नौकरी लगते ही उसे शादी के रिश्ते आने लगे थे. उस के गरीब मांबाप भी चाहते थे कि अमित की शादी किसी अच्छी जगह हो जाए. अमित के गांव के एक दलाल ने उस का रिश्ता पास के शहर के एक काफी अमीर घर में करवा दिया. अमित तो गांव की ऐसी लड़की चाहता था जो उस के मांबाप की सेवा कर सके लेकिन पता नहीं उस दलाल ने उस के पिता को क्या घुट्टी पिलाई थी कि उन्होंने तुरंत शादी की हां कर दी.

सगाई होते ही लड़की वाले तुरंत शादी करने की कहने लगे थे और अमित के पिताजी ने तुरंत ही शादी की हां भर दी. शादी से पहले अमित को इतना भी मौका नहीं मिला था कि वह अपनी होने वाली पत्नी से बात कर सके. अमित की मां ने उस की बात को भांप लिया था और उन्होंने अमित के पिता से कहा भी कि अमित को अपनी होने वाली पत्नी को देख तो लेने दो, लेकिन उस के पिता ने कहा कि शादी के बाद खूब जीभर के देख लेगा.

खैर, शादी हो गई और अमित को दहेज में बहुतकुछ मिला. लड़की वाले तो अमित को कार भी दे रहे थे लेकिन अमित ने मना कर दिया कि वह दहेज लेने के भी खिलाफ है लेकिन उस के पिताजी के कहने पर वह मान गया. सुहागरात को ही अमित को कुछकुछ समझ में आने लगा था क्योंकि उस की नईनई पत्नी बनी आशा ने न तो उस के मातापिता की ही इज्जत की थी और न ही सुहागरात को उस ने अमित को अपने पास फटकने दिया था.

अमित ने आशा से भी कई बार पूछा भी कि तुम्हारी शादी मुझ से जबरदस्ती तो नहीं की गई है लेकिन आशा ने कोई जवाब नहीं दिया. शादी के तीसरे दिन अमित अपनी मां और पिताजी के कहने पर एक रस्म के मुताबिक आशा को छोड़ने ससुराल चल दिया.

अमित और आशा ट्रेन से उतर कर पैदल ही चल दिए. अमित की ससुराल रेलवे स्टेशन के पास ही थी. रास्ते में आशा अमित से आगे चलने लगी. अमित ने देखा कि 2 लड़के मोटरसाइकिल पर उन की तरफ आ रहे थे. वे आशा को देख कर रुक गए और आशा भी उन को देख कर काफी खुश हुई.

अमित जब तक आशा के पास पहुंचा तब तक वे दोनों लड़के उस की तरफ देखते हुए चले गए. आशा के चेहरे पर असीम खुशी झलक रही थी. अमित के पास आने पर आशा ने अमित को उन लड़कों के बारे में कुछ नहीं बताया और अमित ने भी नहीं पूछा.

अमित अपनी ससुराल पहुंचा. वहां पर सब लोग केवल आशा को देख कर खुश हुए और अमित की तरफ किसी ने ध्यान भी नहीं दिया. आशा की मां उसे ले कर अंदर चली गईं और अमित बाहर बरामदे में खड़ा रहा. अंदर से उस के ससुर और दोनों साले बाहर आए.

अमित के ससुर ने पास ही रखी कुरसी की तरफ इशारा किया और बोले, ‘‘अरे, खड़े क्यों हो, बैठ जाओ.’’ अमित चुपचाप बैठ गया. उसे वहां का माहौल कुछ ठीक नहीं लग रहा था.

अमित के सालों ने तो उस की तरफ ध्यान भी नहीं दिया था. शाम होने को थी और अंधेरा धीरेधीरे बढ़ रहा था. अमित को फर्स्ट फ्लोर के एक कमरे में ठहरा दिया. अमित थोड़ा लेट गया और उस की आंख लग गई. नीचे से शोर सुन कर अमित की आंख खुली तो उस ने देखा कि अंधेरा हो चुका था और रात के 9 बज चुके थे.

अमित खड़ा हुआ और उस ने मुंह धोया. उस को हैरानी हो रही थी कि किसी ने उस से चाय तक की नहीं पूछी थी. अमित उसे अपना वहम समझ कर भूलने की कोशिश कर रहा था. लेकिन दिमाग तो उस के पास भी था इसलिए वह अपने ही विचारों में खोया हुआ था.

अब नीचे से जोरजोर से हंसने की आवाज आ रही थी. अमित के ससुर शायद किसी से बात कर रहे थे. अमित ने नीचे झांका तो पाया कि उस के ससुर और 2-3 लोग बरामदे में महफिल लगाए शराब पी रहे थे. अमित के ससुर बहुत शराब पी चुके थे इसलिए वे अब होश में नहीं थे.

वे बोले, ‘‘देखा मेरी अक्ल का कमाल. मैं ने अपनी बिगड़ैल बेटी की शादी कैसे एक गरीब लड़के से करा दी वरना आप लोग तो कह रहे थे कि इस बिगड़ी लड़की से कौन शादी करेगा,’’ इतना कह कर वे जोर से हंसे और बाकी बैठे दोनों लोगों ने भी उन का साथ दिया और उन की इस बात का समर्थन किया. अमित के पैरों के नीचे से जैसे जमीन खिसक गई.

तभी अमित की सास आईं और उस के ससुर के कान में कुछ बोलीं जिस को सुन कर वे तुरंत अंदर गए. अब अमित को समझ आ गया था कि उस के ससुर ने ही अपना रोब दिखा कर उस के पिताजी को डराया होगा और उस की शादी आशा से कर दी होगी. तभी उस के पिताजी उस की शादी में उस के सवालों के जवाब नहीं दे रहे थे.

अमित का सिर चकरा रहा था. वह तुरंत नीचे उतरा और अंदर कमरे के दरवाजे पर पहुंचा. अमित ने अंदर देखा कि आशा एक कोने में नीचे ही बैठी है और उस के ससुर उस के पास खड़े उसे डांट रहे हैं. उन्होंने कहा कि अब वह किस के साथ अपना मुंह काला करा आई. अमित को तो अब बिलकुल भी समझ नहीं आ रहा था, ऐसा लगता था कि उस की शादी किसी बिगड़ैल लड़की से करा दी गई है और उस का परिवार भी सामाजिक नहीं है. तभी उस की सास ने आशा के बाल पकड़े और उस को मारने लगीं.

आशा बिलकुल चुप थी और वह अपनी पिटाई का भी बिलकुल विरोध नहीं कर रही थी. आशा की मां उसे रोते हुए मारे जा रही थीं. तभी पता नहीं अमित को क्या सूझा कि वह अंदर पहुंचा और अपनी सास से आशा को मारने को मना किया.

अमित को अंदर आया देख सासससुर घबरा गए. ससुर का तो नशा भी उतर गया था. वे समझ चुके थे कि अमित ने सब सुन लिया है. अमित के ससुर अब कुरसी पर बैठ कर रो रहे थे और उस की सास का भी बुरा हाल था. तभी अमित के ससुर एक झटके से उठे और कमरे से अपनी दोनाली बंदूक ले आए और आशा की तरफ तान कर बोले, ‘‘मैं ने इस की हर गलती को माफ किया है. बड़ी मुश्किल से मैं ने इस की शादी कराई है और अब यह मुंह काला करा कर पता नहीं किस का पाप अपने पेट में ले आई है. मैं इसे नहीं छोड़ूंगा.’’

तभी अमित ने उन के हाथों से बंदूक छीन ली और एक तरफ फेंक दी. वह बोला, ‘‘चलो आशा, मेरे साथ अपने घर.’’ आशा ने झटके से अपना चेहरा ऊपर उठाया. अमित की बात सुन कर उस के सासससुर भी चौंक गए.

अमित के ससुर बोले, ‘‘अमित, तुम आशा की इतनी बड़ी गलती के बावजूद उसे अपने साथ घर ले जाना चाहते हो?’’ अमित बोला, ‘‘आप सब लोगों के लाड़प्यार की गलती आशा ही क्यों भुगते. इस में इस की क्या गलती है. गलती तो आप के परिवार की है जो ऐसे काम को अपनी शान समझते हैं और उस को छिपाने के लिए मुझ जैसे लड़के से उस की शादी करवा दी.’’

अमित थोड़ी देर रुका और फिर बोला, ‘‘आशा की यही सजा है कि उसे मेरे साथ मेरी पत्नी बन कर रहना पड़ेगा.’’ यह सुन कर उस के ससुर ने उस के पैर पकड़ लिए लेकिन अमित ने उन्हें उठाया और आशा का हाथ पकड़ कर घर से बाहर निकल गया.

आशा अमित के पीछेपीछे हो ली. अमित के ससुर तो हाथ जोड़े खड़े थे. अमित और आशा पैदल ही जा रहे थे तभी उन्हें वही दोनों लड़के मिले जो उन्हें आते हुए मिले थे. अब की बार वे दोनों पैदल ही थे. आशा को देख उन में से एक बोला, ‘‘चलो आशा डार्लिंग, हम तुम्हारे पेट में पल रहे बच्चे को गिरवा देते हैं और फिर से मजे करेंगे.’’

इतना कह कर वे दोनों बड़ी बेहूदगी से हंसने लगे. उन में से एक ने आशा का हाथ पकड़ने की कोशिश की तो अमित ने उसे पकड़ कर अच्छीखासी धुनाई कर दी और जब दूसरा लड़का अपने साथी को बचाने आया तो आशा ने उस के बाल पकड़ कर नीचे गिरा दिया और लातों से अधमरा कर दिया. थोड़ी देर में वे दोनों ही वहां से भाग खड़े हुए. आशा का साथ देना अमित को अच्छा लगा था. अमित ने आशा का हाथ पकड़ा और रेलवे स्टेशन की तरफ चल पड़े.

घर पहुंच कर अमित ने अपने मां और पिताजी को कुछ नहीं बताया. अब आशा ने अमित के घर को इस तरह से संभाल लिया था कि अमित सबकुछ भूल गया. आशा ने जब उस के पेट में पल रहे बच्चे को गिराने की बात कही तो अमित ने कहा, ‘‘इस में इस मासूम की क्या गलती है…’’ आशा अमित के पैरों में गिर पड़ी और रोने लगी. अमित ने उसे उठाया और गले से लगा लिया. वह बोला, ‘‘आशा, तुम्हारे ये पछतावे के आंसू ही तुम्हारी पवित्रता हैं.’’

आशा अमित के गले लग कर रोए जा रही थी. दूर शाम का सूरज नई सुबह में दोबारा आने के लिए डूब रहा था.

तभी तो कह रही हूं

लड़कियों की मकान मालकिन कम वार्डेन नीलिमा ने रोज की तरह दरवाजे पर ताला लगा दिया और बोलीं, ‘‘लड़कियो, मैं बाहर की लाइट बंद कर रही हूं. अपनेअपने कमरे अंदर से ठीक से बंद कर लो.’’

एक नियमित दिनचर्या है यह. इस में जरा भी दाएंबाएं नहीं होता. जैसे सूरज उगता और ढलता है ठीक उसी तरह रात 10 बजते ही दालान में नीलिमा की यह घोषणा गूंजा करती है.

उन का मकान छोटामोटा गर्ल्स होस्टल ही है. दिल्ली या उस जैसे महानगरों में कइयों ने अपने घरों को ही थोड़ीबहुत रद्दबदल कर छात्रावास में तबदील कर दिया है. दूरदराज के गांवों, कसबों और शहरों से लड़कियां कोई न कोई कोर्स करने महानगरों में आती रहती हैं और कोर्स पूरा होने के साथ ही होस्टल छोड़ देती हैं. इस में मकान कब्जाने का भी कोई अंदेशा नहीं रहता.

15 साल पहले नीलिमा ने अपने मकान का एक हिस्सा पढ़ने आई लड़कियों को किराए पर देना शुरू किया था. उस काम में आमदनी होने के साथसाथ उन के मकान ने अब कुछकुछ गर्ल्स होस्टल का रूप ले लिया है. आय होने से नीलिमा का स्वास्थ्य और आत्मविश्वास तो अवश्य सुधरा लेकिन बाकी रहनसहन में ठहराव ही रहा. हां, उन की बेटी के शौक जरूर बढ़ते गए. अब तो पैसा जैसे उस के सिर चढ़कर बोल रहा है. घर में ही हमउम्र लड़कियां हैंपर वह तो जैसे किसी को पहचानती ही नहीं.

सुरेखा और मीना एम.एससी. गृह विज्ञान के फाइनल में हैं. पिछले साल जब वे रांची से आई थीं तो विचलित सी रहती थीं. जानपहचान वालों ने उन्हें नीलिमा तक पहुंचाया.

‘‘1,500 रुपए एक कमरे का…एक कमरे को 2 लड़कियां शेयर करेंगी…’’ नीलिमा की व्यावसायिकता में क्या मजाल जो कोई उंगली उठा दे.

‘‘ठीक है,’’ सुरेखा और मीना के पिताजी ने राहत की सांस ली कि किसी अनजान लड़की से शेयर नहीं करना पड़ेगा.

‘‘खाने का इंतजाम अपना होगा. वैसे यहां टिफिन सिस्टम भी है. कोई दिक्कत नहीं है,’’ नीलिमा बताती जाती हैं.

सबकुछ ठीकठाक लगा. अब तो वे दोनों अभ्यस्त हो गई हैं. गर्ल्स होस्टल की जितनी हिदायतें और वर्जनाएं होती हैं, सब की वे आदी हो चुकी हैं.

‘‘नो बौयफ्रेंड एलाउड,’’ यह नीलिमा की सब से अलार्मिंग चेतावनी है.

सुरेखा और मीना के बगल के कमरे में देहरादून से आई दामिनी और अर्चना हैं. दोनों ग्रेजुएशन कर रही हैं. इंगलिश आनर्स कहते उन के चेहरे पर ऐसे भाव आते हैं जैसे इंगलैंड से सीधे आई हैं और सारा अंगरेजी साहित्य इन के पेट में हो.

दोनों कमरों के बीच में एक छोटा सा कमरा है जिस में एक गैस का चूल्हा, फिल्टर, फ्रिज और रसोई का छोटामोटा सामान रखा है. बस, यही वह स्थान है जहां देहरादूनी लड़कियां मात खा जाती हैं.

सुरेखा नंबर एक कुक है. जबतब प्रस्ताव रख देती है, ‘‘चाइनीज सूप पीना हो तो 20-20 रुपए जमा करो.’’

दामिनी और अर्चना बिके हुए गुलामों की तरह रुपए थमा देतीं. निर्देशों पर नाचतीं. सुरेखा अब सुरेखा दीदी बन गई है. अच्छाखासा रुतबा हो गया है. अकसर पूछ लिया करती है, ‘‘कहां रही इतनी देर तक. आंटी नाराज हो रही थीं.’’

‘‘आंटी का क्या, हर समय टोकाटाकी. अपनी बेटी तो जैसे दिखाई ही नहीं देती,’’ दामिनी भुनभुनाती.

ऊपर की मंजिल में भी कमरे हैं. वहां भी हर कमरे में 2-2 लड़कियां हैं. उन की अपनी दुनिया है पर आंटी की आवाज होस्टल के हर कोने में गूंजा करती है.

आज छुट्टी है. लड़कियां देर तक सोएंगी. जवानी की नींद जो है. नीलिमा एक बार झांक गई हैं.

‘‘ये लड़कियां क्या घोड़े बेच कर सो रही हैं,’’ बड़बड़ाती हुई नीलिमा सुरेखा के कमरे के पास से गुजरीं.

सुरेखा की नींद खुल गई. उसे उन की यह बेचैनी अच्छी लगी.

‘‘अपनी बेटी को उठा कर देखें ये… बस, यहीं घूमती रहती हैं,’’ सुरेखा ढीठ हो लेटी रही. जैसे ऐसा कर के ही वह नीलिमा को कुछ जवाब दे पा रही हो.

उधर होस्टल गुलजार होने लगा. गुसलखाने के लिए चिल्लपौं मची. फिर सबकुछ ठहर गया. कुछ कार्यक्रम बने. मीना की चचेरी बहन लक्ष्मीनगर में रहती है. वहीं लंच का कार्यक्रम था इसलिए सुरेखा और मीना भी चली गईं.

एकाएक दामिनी ने चमक कर अर्चना से कहा, ‘‘चल, बाहर से फोन करते हैं. अरविंद को बुला लेंगे. फिल्म देखने जाएंगे.’’

‘‘अरविंद को बुलाने की क्या जरूरत.’’

‘‘लेकिन अब कौन सा शो देखा जाएगा. 6 से 9 के ही टिकट मिल सकते हैं,’’ अर्चना ने घड़ी देखते हुए कहा.

‘‘तो क्या हुआ?’’ दामिनी लापरवाही से बोली.

‘‘नहीं पागल, आंटी नाराज होंगी…. लौटने में समय लग जाएगा.’’

‘‘ये आंटी बस हम पर ही गुर्राती हैं. अपनी बेटी के लक्षण इन को नहीं दिखते. रोज एक गाड़ी आ कर दरवाजे पर रुकती है… आंटी ही कौन सा दूध की धुली हैं… बड़ी रंगीन जिंदगी रही है इन की.’’

अर्चना, दामिनी और अरविंद ‘दिल से’ फिल्म देखने हाल में जा बैठे. खूब बातें हुईं. अरविंद दामिनी की ओर झुकता जाता. सांसें टकरातीं. शो खत्म हुआ.

कालिज तक अरविंद दोनों को छोड़ने आया था. वहां से दोनों टहलती हुई होस्टल के गेट तक आ गईं. गेट खोलने को हलका धक्का दिया. चूं…चूं… की आवाज हुई.

‘‘तैयार हो जाओ डांट खाने के लिए,’’ अर्चना ने फुसफुसा कर कहा.

‘‘ऊंह, क्या फर्क पड़ता है.’’

गेट खुलते ही सामने नीलिमा घूमते हुए दिखीं. सकपका गईं दोनों लड़कियां.

‘‘आंटी, नमस्ते,’’ दोनों एकसाथ बोलीं.

‘‘कहां गई थीं?’’

‘‘बहुत मन कर रहा था, ‘दिल से’ देखने का,’’ अर्चना ने मिमियाती सी आवाज में कहा.

‘‘यही शो मिला था फिल्म देखने को?’’

‘‘आंटी, प्रोग्राम देर से बना,’’ दामिनी ने बात संभालने की कोशिश की.

‘‘मैं कुछ नहीं जानती. होस्टल का डिसीपिलिन बिगाड़ती हो. आज ही तुम्हारे घर पत्र डालती हूं,’’ नीलिमा यह कहती हुई अपने कमरे की ओर चली गईं.

दामिनी कमरे में आते ही धम से बिस्तर में धंस गई और अर्चना गुसलखाने में चली गई.

‘‘कुछ खानावाना भी है या अरविंद के सपनों में ही रहेगी,’’ अर्चना ने दामिनी को वैसे ही पड़ी देख कर पूछा.

दामिनी वैसे ही मेज पर आ गई. राजमा, भिंडी की सब्जी और चपातियां. दोनों ने कुछ कौर गले के नीचे उतारे. पानी पिया.

‘हेमलेट’ के नोट्स ले कर अर्चना दिन गंवाने का अपराधबोध कुछ कम करने का प्रयास करने लगी. उसे पढ़ता देख दामिनी भी रैक में कुछ टटोलने लगी. सभी के कमरों की लाइट जल रही है.

‘‘जाऊंगी, सौ बार कहती हूं मैं जाऊंगी,’’ आंटी के कमरे की ओर से आती आवाज सन्नाटे को चीरने लगी.

बीचबीच में ऐसा कुछ होता रहता है. इस की भनक सभी लड़कियों को है. आज संवाद एकदम स्पष्ट है.

बेटी की आवाज ऊंची होते देख आंटी को जैसे सांप सूंघ गया. वह खामोश हो गईं. बेटी भी कुछ बड़बड़ा कर चुप हो गई.

सुबह रात्रि के विषाद की छाया आंटी के चेहरे पर साफ झलक रही है. नियमत: वह होस्टल की तरफ आईं पर बिना कुछ कहेसुने ही चली गईं.

फाइनल परीक्षा अब निकट ही है. सुरेखा और मीना प्रेक्टिकल के बोझ से दबी रहती हैं. देहरादूनी लड़कियों को उन्हें देख कर ही पता चला कि गृहविज्ञान कोई मामूली विषय नहीं है. उस पर इस विषय के कई अभ्यास देखे तो आंखें खुल गईं. विषय के साथसाथ सुरेखा और मीना भी महत्त्वपूर्ण हो गईं.

आजकल दामिनी भी सैरसपाटा भूल गई है पर दिल के हाथों मजबूर दामिनी बीचबीच में अरविंद के साथ प्रोग्राम बना लेती है. पिछले दिनों उस के बर्थ डे पर अरविंद एंड पार्टी ने उसे सरप्राइज पार्टी दी. बड़े स्टाइल से उन्हें बुलाया. वहां जा कर दोनों चकरा गईं. सुनहरी पन्नियों की बौछार, हैपी बर्थ डे…हैपी बर्थ डे की गुंजार.

रात के 11 बज रहे हैं. दामिनी और अर्चना ‘शेक्सपियर इज ए ड्रामाटिस्ट’ पर नोट्स तैयार कर रही हैं. दोनों के हाथ तेजी से चल रहे हैं. बगल के कमरे से छन कर आती रोशनी बता रही है कि सुरेखा और मीना भी पढ़ रही होंगी. यहां पढ़ने के लिए रात ही अधिक उपयुक्त है. एकदम सन्नाटा रहता है और एकदूसरे के कमरे की दिखती लाइट एक प्रतिद्वंद्विता उत्पन्न करती है.

बाहर से कुछ बातचीत की आवाज आ रही है. आंटी की बेटी आई होगी. धीरेधीरे सब की श्रवण शक्ति बाहर चली गई. पदचाप…खड़…एक असहज सन्नाटा.

‘‘…अब आ रही है?’’ आंटी तेज आवाज में बोलीं, ‘‘फिर उस के साथ गई थी. मैं ने तुझे लाख बार समझाया है पर क्या तेरा भेजा फिर गया है?’’

‘‘आप मेरी लाइफ स्टाइल में इंटरफेयर क्यों करती हैं? ये मेरी लाइफ है. मैं चाहे जिस तरह जिऊं.’’

‘‘तू जिसे अपना लाइफ स्टाइल कह रही है वह एक मृगतृष्णा है, जहां सिर्फ तुझे भटकाव ही मिलेगा. तू मेरी औलाद है और मैं ने दुनिया देखी है इसलिए तुझे समझा रही हूं. तू समझ नहीं रही है…’’

‘‘मैं कुछ नहीं समझना चाहती. और आप समझा रही हैं…मेरा मुंह आप मत खुलवाओ. पापा से आप की दूसरी शादी…. पता नहीं पहले वाली शादी थी भी या…’’

‘‘चुप, बेशर्म, खबरदार जो अब आगे एक शब्द भी बोला,’’ आज नीलिमा अप्रत्याशित रूप से बिफर गईं.

‘‘चुप रहने से क्या सचाई बदल जाएगी?’’

‘‘तू क्या सचाई जानती है? पिता का साया नहीं था. 6 भाईबहनों के परिवार में मैं एकमात्र कमाने वाली थी. तब का जमाना भी बिलकुल अलग था. लड़कियां दिन में भी घर से बाहर नहीं निकलती थीं और मैं रात की शिफ्ट में काम करती थी. कुछ मजबूर थी, कुछ मैं नादान… यह दुनिया बड़ी खौफनाक है बेटी, तभी तो कह रही हूं…’’

नीलिमा रो रही हैं. वे हताश हो रही हैं. उन की व्यथा को सब लड़कियों ने जाना, समझा. सब ने फिर एकदूसरे को देखा किंतु आज वे मुसकराईं नहीं.

सरोजिनी नौटियाल

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