तू आए न आए – भाग 3: शफीका का प्यार और इंतजार

निश्चित दिन, निश्चित समय, उन के घर की डौरबैल बजाने से पहले, क्षणभर के लिए हाथ कांपा था, ‘तुम शफीका के भतीजे के बेटे हो. गेटआउट फ्रौम हियर. वह पृष्ठ मैं कब का फाड़ चुका हूं. तुम क्या टुकड़े बटोरने आए हो?’ कुछ इस तरह की ऊहापोह में मैं ने डौरबैल पर उंगली रख दी.

‘‘प्लीज कम इन, आई एम वेटिंग फौर यू.’’ एक अनौपचारिक स्वागत के बाद उन के द्वारा मेरा परिचय और मेरा मिलने का मकसद पूछते ही मैं कुछ देर तो चुप रहा, फिर अपने ननिहाल का पता बतलाने के बाद देर तक खुद से लड़ता रहा.

अनौपचारिक 2-3 मुलाकातों के बाद वे मुझ से थोड़ा सा बेबाक हो गए. उन की दूसरी पत्नी की मृत्यु 15 साल पहले हो चुकी थी. बेटों ने पाश्चात्य सभ्यता के मुताबिक अपनी गृहस्थियां अलग बसा ली थीं. वीकैंड पर कभी किसी का फोन आ जाता, कुशलता मिल जाती. महीनों में कभी बेटों को डैड के पास आने की फुरसत मिलती भी तो ज्यादा वक्त फोन पर बिजनैस डीलिंग में खत्म हो जाता. तब सन जैसी सफेद पलकें, भौंहें और सिर के बाल चीखचीख कर पूछने लगते, ‘क्या इसी अकेलेपन के लिए तुम श्रीनगर में पूरा कुनबा छोड़ कर यहां आए थे?’

हालांकि डाक्टर खालिद अनवर की उम्र चेहरे पर हादसों का हिसाब लिखने लगी थी मगर बचपन से जवानी तक खाया कश्मीर का सूखा मेवा और फेफड़े में भरी शुद्ध, शीतल हवा उन की कदकाठी को अभी भी बांस की तरह सीधा खड़ा रखे हुए है. डाक्टर ने बुढ़ापे को पास तक नहीं फटकने दिया. अकसर बेटे उन के कंधे पर हाथ रख कर कहते हैं, ‘‘डैड, यू आर स्टिल यंग दैन अस. सो, यू डौंट नीड अवर केयर.’’ यह कहते हुए वे शाम से पहले ही अपने घर की सड़क की तरफ मुड़ जाते हैं.

शरीर तो स्वस्थ है लेकिन दिल… छलनीछलनी, दूसरी पत्नी से छिपा कर रखी गई शफीका की चिट्ठियां और तसवीरों को छिपछिप कर पढ़ने और देखने के लिए मजबूर थे. प्यार में डूबे खतों के शब्द, साथ गुजारे गिनती के दिनों के दिलकश शाब्दिक बयान, 63 साल पीछे ले जाता, यादों के आईने में एक मासूम सा चेहरा दिखलाई देने लगता. डाक्टर हाथ बढ़ा कर उसे छू लेना चाहते हैं जिस की याद में वे पलपल मरमर कर जीते रहे. बीवी एक ही छत के नीचे रह कर भी उन की नहीं थी. दौलत का बेशुमार अंबार था. शानोशौकत, शोहरत, सबकुछ पास में था अगर नहीं था तो बस वह परी चेहरा, जिस की गरम हथेलियों का स्पर्श उन की जिंदगी में ऊर्जा भर देता.

मेरे अपनेपन में उन्हें अपने वतन की मिट्टी की खुशबू आने लगी थी. अब वे परतदरपरत खुलने लगे थे. एक दिन, ‘‘लैपटौप पर क्या सर्च कर रहे हैं?’’

‘‘बेटी के लिए प्रौपर मैच ढूंढ़ रहा हूं,’’ कहते हुए उन का गला रुंधने लगा. उन की यादों की तल्ख खोहों में उस वक्त वह कंपा देने वाली घड़ी शामिल थी, जब उन की बेटी का पति अचानक बिना बताए कहीं चला गया. बहुत ढूंढ़ा, इंटरनैशनल चैनलों व अखबारों में उस की गुमशुदगी की खबर छपवाई, लेकिन सब फुजूल, सब बेकार. तब बेटी के उदास चेहरे पर एक चेहरा चिपकने लगा. एक भूलाबिसरा चेहरा, खोयाखोया, उदास, गमगीन, छलछला कर याचना करती 2 बड़ीबड़ी कातर आंखें.

किस का है यह चेहरा? दूसरी बीवी का? नहीं, तो? मां का? बिलकुल नहीं. फिर किस का है, जेहन को खुरचने लगे, 63 साल बाद यह किस का चेहरा? चेहरा बारबार जेहन के दरवाजे पर दस्तक दे रहा है. किस की हैं ये सुलगती सवालिया आंखें? किस का है यह कंपकंपाता, याचना करता बदन, मगर डाक्टर पर उस का लैशमात्र भी असर नहीं हुआ था. लेकिन आज जब अपनी ही बेटी की सिसकियां कानों के परदे फाड़ने लगीं तब वह चेहरा याद आ गया.

दुनियाभर के धोखों से पाकसाफ, शबनम से ज्यादा साफ चेहरा, वे कश्मीर की वादियां, महकते फूलों की लटकती लडि़यों के नीचे बिछी खूबसूरत गुलाबी चादर, नर्म बिस्तर पर बैठी…खनकती चूडि़यां, लाल रेशमी जोड़े से सजा आरी के काम वाला लहंगाचोली, मेहंदी से सजे 2 गोरे हाथ, कलाई पर खनकती सोने की चूडि़यां, उंगलियों में फंसी अंगूठियां. हां, हां, कोई था जिस की मद्धम आवाज कानों में बम के धमाकों की तरह गूंज रही थी, मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी खालिद, हमेशा.

लाहौर एयरपोर्ट पर अलविदा के लिए लहराता हाथ, दिल में फांस सी चुभी कसक इतनी ज्यादा कि मुंह से बेसाख्ता चीख निकल गई, ‘‘हां, गुनहगार हूं मैं तुम्हारा. तुम्हारे दिल से निकली आह… शायद इसीलिए मेरी बेटी की जिंदगी बरबाद हो गई. मेरे चाचा के बहुत जोर डालने पर, न चाहते हुए भी मुझे उन की अंगरेज बेटी से शादी करनी पड़ी. दौलत का जलवा ही इतना दिलफरेब होता है कि अच्छेअच्छे समझदार भी धोखा खा जाते हैं.

‘‘शफीका, तुम से वादा किया था मैं ने. तुम्हें लाहौर ला कर अपने साथ रखने का. वादा था नए सिरे से खुशहाल जिंदगी में सिमट जाने का, तुम्हारी रातों को हीरेमोती से सजाने का, और दिन को खुशियों की चांदनी से नहलाने का. पर मैं निभा कहां पाया? आंखें डौलर की चमक में चौंधिया गईं. कटे बालों वाली मोम की गुडि़या अपने शोख और चंचल अंदाज से जिंदगी को रंगीन और मदहोश कर देने वाली महक से सराबोर करती चली गई मुझे.’’

अचानक एक साल बाद उन का दामाद इंगलैंड लौट आया, ‘‘अब मैं कहीं नहीं जाऊंगा. आप की बेटी के साथ ही रहूंगा. वादा करता हूं.’’

दीवानगी की हद तक मुहब्बत करने वाली पत्नी को छोड़ कर दूसरी अंगरेज औरत के टैंपरेरी प्यार के आकर्षण में बंध कर जब वह पूरी तरह से कंगाल हो गया तो लौटने के लिए उसे चर्चों के सामने खड़े हो कर वायलिन बजा कर लोगों से पैसे मांगने पड़े थे.

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पति की अपनी गलती की स्वीकृति की बात सुन कर बेटी बिलबिला कर चीखी थी, ‘‘वादा, वादा तोड़ कर उस फिनलैंड वाली लड़की के साथ मुझ पत्नी को छोड़ कर गए ही क्यों थे? क्या कमी थी मुझ में? जिस्म, दौलत, ऐशोआराम, खुशियां, सबकुछ तो लुटाया था तुम पर मैं ने. और तुम? सिर्फ एक नए बदन की हवस में शादी के पाकीजा बंधन को तोड़ कर चोरों की तरह चुपचाप भाग गए. मेरे यकीन को तोड़ कर मुझे किरचियों में बिखेर दिया.

‘‘तुम को पहचानने में मुझ से और मेरे बिजनैसमैन कैलकुलेटिव पापा से भूल हो गई. मैं इंगलैंड में पलीपढ़ी हूं, लेकिन आज तक दिल से यहां के खुलेपन को कभी भी स्वीकार नहीं कर सकी. मुझ से विश्वासघात कर के पछतावे का ढोंग करने वाले शख्स को अब मैं अपना नहीं सकती. आई कांट लिव विद यू, आई कांट.’’ यह कहती हुई तड़प कर रोई थी डाक्टर की बेटी.

आज उस की रुलाई ने डाक्टर को हिला कर रख दिया. आज से 50 साल पहले शफीका के खामोश गरम आंसू इसी पत्थरदिल डाक्टर को पिघला नहीं सके थे लेकिन आज बेटी के दर्द ने तोड़ कर रख दिया. उसी दम दोटूक फैसला, दामाद से तलाक लेने के लिए करोड़ों रुपयों का सौदा मंजूर था क्योंकि बेटी के आंसुओं को सहना बरदाश्त की हद से बाहर था.

डाक्टर, शफीका के कानूनी और मजहबी रूप से सहारा हो कर भी सहारा न बन सके, उस मजलूम और बेबस औरत के वजूद को नकार कर अपनी बेशुमार दौलत का एक प्रतिशत हिस्सा भी उस की झोली में न डाल सके. शफीका की रात और दिन की आह अर्श से टकराई और बरसों बाद कहर बन कर डाक्टर की बेटी पर टूटी. वह मासूम चेहरा डाक्टर को सिर्फ एक बार देख लेने, एक बार छू लेने की चाहत में जिंदगी की हर कड़वाहट को चुपचाप पीता रहा. उस पर रहम नहीं आया कभी डाक्टर को. लेकिन आज बेटी की बिखरतीटूटती जिंदगी ने डाक्टर को भीतर तक आहत कर दिया. अब समझ में आया, प्यार क्या है. जुदाई का दर्द कितना घातक होता है, पहाड़ तक दरक जाते हैं, समंदर सूख जाते हैं.

मैं यह खबर फूफीदादी तक जल्द से जल्द पहुंचाना चाहता था, शायद उन्हें तसल्ली मिलेगी. लेकिन नहीं, मैं उन के दिल से अच्छी तरह वाकिफ था. ‘मेरे दिल में डाक्टर के लिए नफरत नहीं है. मैं ने हर लमहा उन की भलाई और लंबी जिंदगी की कामना की है. उन की गलतियों के बावजूद मैं ने उन्हें माफ कर दिया है, बजी,’ अकसर वे मुझ से ऐसा कहती थीं.

मैं फूफीदादी को फोन करने की हिम्मत जुटा ही नहीं सका था कि आधीरात को फोन घनघना उठा था, ‘‘बजी, फूफीदादी नहीं रहीं.’’ क्या सोच रहा था, क्या हो गया. पूरी जिंदगी गीली लकड़ी की तरह सुलगती रहीं फूफीदादी.

सुबह का इंतजार मेरे लिए सात समंदर पार करने की तरह था. धुंध छंटते ही मैं डाक्टर के घर की तरफ कार से भागा. कम से कम उन्हें सचाई तो बतला दूं. कुछ राहत दे कर उन की स्नेहता हासिल कर लूं मगर सामने का नजारा देख कर आंखें फटी की फटी रह गईं. उन के दरवाजे पर एंबुलैंस खड़ी थी. और घबराई, परेशान बेटी ड्राइवर से जल्दी अस्पताल ले जाने का आग्रह कर रही थी. हार्टअटैक हुआ था उन्हें. हृदयविदारक दृश्य.

मैं स्तब्ध रह गया. स्टेयरिंग पर जमी मेरी हथेलियों के बीच फूफीदादी का लिखा खत बर्फबारी में भी पसीने से भीग गया, जिस पर लिखा था, ‘बजी, डाक्टर अगर कहीं मिल जाएं तो यह आखिरी अपील करना कि वे मुझ से मिलने कश्मीर कभी नहीं आए तो मुझे कोई शिकवा नहीं है लेकिन जिंदगी के रहते एक बार, बस एक बार, अपनी मां की कब्र पर फातेहा पढ़ जाएं और अपनी सरजमीं, कश्मीर की खूबसूरत वादियों में एक बार सांस तो ले लें. मेरी 63 साल की तपस्या और कुरबानियों को सिला मिल जाएगा. मुझे यकीन है तुम अपने वतन से आज भी उतनी ही मुहब्बत करते हो जितनी वतन छोड़ते वक्त करते थे.’

गुनाहों की सजा तो कानून देता है, लेकिन किसी का दिल तोड़ने की सजा देता है खुद का अपना दिल.

‘तू आए न आए,

लगी हैं निगाहें

सितारों ने देखी हैं

झुकझुक के राहें…’

इस गजल का एकएक शब्द खंजर बन कर मेरे सीने में उतरने लगा और मैं स्टेयरिंग पर सिर पटकपटक कर रो पड़ा.

एक जहां प्यार भरा: भाग 2

“पर यह कैसे हो सकता है?” उसे विश्वास नहीं हो रहा था.

“क्यों नहीं हो सकता?”

“आई मीन मुझे बहुत से लोग पसंद करते हैं, कई दोस्त हैं मेरे. लड़कियां भी हैं जो मुझ से बातें करती हैं. पर किसी ने आज तक मुझे आई लव यू तो नहीं कहा था. क्या तुम वाकई…? आर यू श्योर ?”

“यस इत्सिंग. आई लव यू.”

“ओके… थोड़ा समय दो मुझे रिद्धिमा.”

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“ठीक है, कल तक का समय ले लो. अब हम परसों बात करेंगे,” कह कर मैं औफलाइन हो गई.

मुझे यह तो अंदाजा था कि वह मेरे प्रस्ताव पर सहज नहीं रह पाएगा. पर जिस तरह उस ने बात की थी कि उस की बहुत सी लड़कियों से भी दोस्ती है. स्वाभाविक था कि मैं भी थोड़ी घबरा रही थी. मुझे डर लग रहा था कि कहीं वह इस प्रस्ताव को अस्वीकार न कर दे. सारी रात मैं सो न सकी. अजीबअजीब से खयाल आ रहे थे. आंखें बंद करती तो इत्सिंग का चेहरा सामने आ जाता. किसी तरह रात गुजरी. अब पूरा दिन गुजारना था क्योंकि मैं ने इत्सिंग से कहा था कि मैं परसों बात करूंगी. इसलिए मैं जानबूझ कर देर से जागी और नहाधो कर पढ़ने बैठी ही थी कि सुबहसुबह अपने व्हाट्सएप पर इत्सिंग का मैसेज देख कर मैं चौंक गई.

धड़कते दिल के साथ मैं ने मैसेज पढ़ा. लिखा था,”डियर रिद्धिमा, कल पूरी रात मैं तुम्हारे बारे में ही सोचता रहा. तुम्हारा प्रस्ताव भी मेरे दिलोदिमाग में था. काफी सोचने के बाद मैं ने फैसला लिया है कि हम चीन में अपना घर बनाएंगे पर एक घर इंडिया में भी होगा. जहां गरमी की छुट्टियों में बच्चे नानानानी के साथ अपना वक्त बिताएंगे.”

“तो मिस्टर इन बातों का सीधासीधा मतलब भी बता दीजिए,” मैं ने शरारत से पूछा तो अगले ही पल इत्सिंग ने बोल्ड फौंट में आई लव यू टू डियर लिख कर भेजा. साथ में एक बड़ा सा दिल भी. मैं खुशी से झूम उठी. वह मेरी जिंदगी का सब से खूबसूरत पल था. अब तो मेरी जिंदगी का गुलशन प्यार की खुशबू से महक उठा था. हम व्हाट्सएप पर चैटिंग के साथ फोन पर भी बातें करने लगे थे.

कुछ महीने के बाद एक दिन मैं ने इत्सिंग से फिर से अपने दिल की बात की,”यार, जब हम प्यार करते ही हैं तो क्यों न शादी भी कर लें.”

“शादी?”

“हां शादी.”

“तुम्हें अजीब नहीं लग रहा?”

“पर क्यों? शादी करनी तो है ही न इत्सिंग या फिर तुम केवल टाइमपास कर रहे हो?” मैं ने उसे डराया था और वह सच में डर भी गया था.

वह हकलाता हुआ बोला,”ऐसा नहीं है रिद्धिमा. शादी तो करनी ही है पर क्या तुम्हें नहीं लगता कि यह फैसला बहुत जल्दी का हो जाएगा? कम से कम शादी से पहले एक बार हमें मिल तो लेना ही चाहिए,”कह कर वह हंस पड़ा.

इत्सिंग का जवाब सुन कर मैं भी अपनी हंसी रोक नहीं पाई.

अब हमें मिलने का दिन और जगह तय करना था. यह 2010 की बात थी. शंघाई वर्ल्ड ऐक्सपो होने वाला था. आयोजन से पहले दिल्ली यूनिवर्सिटी में इंडियन पैविलियन की तरफ से वालंटियर्स के सिलैक्शन के लिए इंटरव्यू लिए जा रहे थे. मैं ने जरा सी भी देर नहीं की. इंटरव्यू दिया और सिलैक्ट भी हो गई.

इस तरह शंघाई के उस वर्ल्ड ऐक्सपो में हम पहली दफा एकदूसरे से मिले. वैसे तो हम ने एकदूसरे की कई तसवीरें देखी थीं पर आमनेसामने देखने की बात ही अलग होती है. एकदूसरे से मिलने के बाद हमारे दिल में जो एहसास उठे उसे बयां करना भी कठिन था. पर एक बात तो तय थी कि अब हम पहले से भी ज्यादा श्योर थे कि हमें शादी करनी ही है.

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ऐक्सपो खत्म होने पर मैं ने इत्सिंग से कहा,”एक बार मेरे घर चलो. मेरे मांबाप से मिलो और उन्हें इस शादी के लिए तैयार करो. उन के आगे साबित करो कि तुम मेरे लिए परफैक्ट रहोगे.”

इत्सिंग ने मेरे हाथों पर अपना हाथ रख दिया. हम एकदूसरे के आगोश में खो गए. 2 दिन बाद ही इत्सिंग मेरे साथ दिल्ली एअरपोर्ट पर था. मैं उसे रास्ते भर समझाती आई थी कि उसे क्या बोलना है और कैसे बोलना है, किस तरह मम्मीपापा को इंप्रैस करना है.

मैं ने उसे समझाया था,”हमारे यहां बड़ों को गले नहीं लगाते बल्कि आशीर्वाद लेते हैं. नमस्कार करते हैं.”

मैं ने उसे सब कुछ कर के दिखाया था. मगर एअरपोर्ट पर मम्मीपापा को देखते ही इत्सिंग सब भूल गया और हंसते हुए उन के गले लग गया. मम्मीपापा ने भी उसे बेटे की तरह सीने से लगा लिया था. मेरी फैमिली ने इत्सिंग को अपनाने में देर नहीं लगाई थी मगर उस के मम्मीपापा को जब यह बात पता चली और इत्सिंग ने मुझे उन से मिलवाया तो उन का रिएक्शन बहुत अलग था.

उस के पापा ने नाराज होते हुए कहा था,”लड़की की भाषा, रहनसहन, खानपान, वेशभूषा सब बिलकुल अलग होंगे. कैसे निभाएगी वह हमारे घर में? रिश्तेदारों के आगे हमारी कितनी बदनामी होगी.”

इत्सिंग ने उन्हें भरोसा दिलाते हुए कहा था,”डोंट वरी पापा, रिद्धिमा सब कुछ संभाल लेगी. रिद्धिमा खुद को बदलने के लिए तैयार है. वह चाइनीज कल्चर स्वीकार करेगी.”

“पर भाषा? वह इतनी जल्दी चाइनीज कैसे सीख लेगी?” पापा ने सवाल किया.

“पापा वह चाइनीज जानती है. उस ने चाइनीज लैंग्वेज में ही ग्रैजुएशन किया है. वह बहुत अच्छी चाइनीज बोलती है,” इत्सिंग ने अपनी बात रखी.

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यह जवाब सुन कर उस के पापा के चेहरे पर हलकी सी मुसकान आ गई. थोड़ी नानुकर के बाद उस के मांबाप ने भी मुझे अपना लिया. उस के पिता हमारी शादी के लिए तैयार तो हो गए मगर उन्होंने हमारे सामने एक शर्त रखते हुए कहा,” मैं चाहता हूं कि तुम दोनों की शादी चीनी रीतिरिवाज के साथ हो. इस में मैं किसी की नहीं सुनूंगा.”

“जी पिताजी,” हम दोनों ने एकसाथ हामी भरी.

बाद में जब मैं ने अपने मातापिता को यह बात बताई तो वे अड़ गए. वे मुझे अपने घर से विदा करना चाहते थे और वह भी पूरी तरह भारतीय रीतिरिवाजों के साथ. मैं ने यह बात इत्सिंग को बताई तो वह भी सोच में डूब गया. हम किसी को भी नाराज नहीं कर सकते थे. पर एकसाथ दोनों की इच्छा पूरी कैसे करें यह बात समझ नहीं आ रही थी.

तभी मेरे दिमाग में एक आईडिया आया,” सुनो इत्सिंग क्यों न हम बीच का रास्ता निकालें. ”

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Valentine’s Special- भाग-2: वैलेंटाइन के फूल

हितेश की बातें सुन कर मानसी मन ही मन  झल्ला गई थी, पर कुछ कह न सकी, क्योंकि हितेश ने उसे बिस्तर पर गिरा दिया था और मानसी के कपड़े उतार कर सैक्स में लीन हो गया था.

‘‘ऐसा है हितेश… मु झे अभी काम बाकी है. मु झे इसे निबटाने में समय लग जाएगा,’’ अगले दिन की शाम को मानसी ने फोन कर के हितेश से कहा.

‘‘यानी आज मु झे मेरे लिए खुद ही चाय बनानी पड़ेगी,’’ मुसकराते हुए हितेश ने कहा.

रात के 8 बजे नैतिक मानसी को घर छोड़ने आया, तो मानसी ने उसे अपने फ्लैट में बुला लिया. हितेश और नैतिक अपनी पुरानी यादें ताजा करने लगे थे और दोनों के बीच जम कर हंसी के ठहाके गूंज रहे थे. देर रात तक नैतिक उन दोनों के साथ बातें करता रहा.

कई दिनों तक मानसी को औफिस में देर हो जाती और अकसर नैतिक उसे छोड़ने के लिए आता. मानसी को रोज नैतिक के साथ आता देख कर हितेश के मन में शक का कीड़ा कुलबुलाने लगा और वह मानसी और नैतिक के बढ़ते हुए रिश्ते से मन ही मन चिढ़ने लगा था.

हितेश को लगने लगा था कि उन दोनों के बीच प्रेम संबंध पनप रहा है, इसलिए उस ने मानसी और नैतिक पर निगाहें रखनी शुरू कर दीं और हितेश मानसी के मोबाइल और ह्वाट्सएप संदेशों की भी जांच बराबर करने लगा.

मानसी आज एक माल में गई थी. वहां मानसी को देख कर एक कोने में खड़े लड़के आपस में कुछ कानाफूसी करने लगे. वे लड़के बारबार मानसी को देखते और फिर अपने मोबाइल की स्क्रीन पर देखते मानो किसी की शक्ल से मानसी की शक्ल मिलाने की कोशिश कर रहे हों. उन की यह हरकत मानसी ने भी नोट की थी, पर उस ने उन लोगों पर ध्यान न देना ही उचित सम झा.

पर उन लड़कों में से एक ने कोई तंज कसा, ‘‘भई वाह, आजकल तो पोर्नस्टार भी पारिवारिक जगहों पर घूमनेफिरने लगी हैं… तो मैडम हम में क्या बुराई है… पैसे तो हम भी दे देंगे…’’

मानसी से अब रहा नहीं गया और बोली, ‘‘क्या मतलब है तुम लोगों का? ये कैसी बातें कर रहे हो तुम?’’

उस की बात सुन कर उन लड़कों ने बिना कुछ कहे ही अपने मोबाइल की स्क्रीन मानसी के सामने कर दी. मानसी ने मोबाइल में जो भी देखा उसे देख कर उस की आंखें हैरानी से फटी रह गई थीं.

मोबाइल में कोई पोर्नसाइट खुली हुई थी, जिस में एक वीडियो प्ले हो रहा था और उस वीडियो में मानसी और हितेश सैक्स कर रहे थे. यह वही वीडियो क्लिप थी जो हितेश ने अपने मोबाइल से शूट की थी.

अपने निजी पलों को इस तरह आम होते हुए देख कर मानसी शर्म से पानीपानी हो गई थी. वह उन लड़कों से आंखें भी नहीं मिला पाई. उसे सम झ नहीं आ रहा था कि क्या कहे और क्या न कहे. मानसी ने आंखें नीची कीं और वहां से भाग खड़ी हुई.

‘‘अरे… ओ, अकेले कहां जा रही हो… कम से कम अपना भाव तो बताती जाओ,’’ पीछे से आने वाली ऐसी आवाजें उसे नश्तर बन कर चुभ रही थीं.

रात को जैसे ही मानसी सोने को हुई तो हितेश ने फिर से अपने मोबाइल कैमरे को चालू कर के मानसी की वीडियो बनानी शुरू की.

इस पर मानसी बुरी तरह बिफर पड़ी और उस ने हितेश को खूब बुराभला कहते हुए बताया कि कैसे हितेश ने उस की वीडियो पोर्नसाइट पर अपलोड कर के उस को बेइज्जत किया है.

पर हितेश ने कहा कि उस ने मानसी की वीडियो बनाई जरूर थी, लेकिन वह भी सिर्फ रोमांच के लिए, किसी तरह की साइट पर अपलोड करने का उस का कोई इरादा नहीं था और उस ने कोई भी वीडियो नहीं अपलोड की है.

पहले तो मानसी को हितेश की बात पर यकीन नहीं आया, पर जब हितेश अपनी बात पर कायम रहा तो मानसी  को उस की बात पर यकीन करना पड़ा.

‘‘तो फिर हमारे वीडियो कैसे इंटरनैट पर पहुंच गए?’’ परेशान हो कर मानसी ने पूछा.

‘‘जब उन लड़कों ने तुम्हे अपने मोबाइल की स्क्रीन दिखाई थी तो उस पोर्नसाइट का नाम क्या तुम देख पाई थी?’’ हितेश ने पूछा.

पहलेपहल तो मानसी को कुछ याद नहीं आया, पर जब 1-2 कौमन साइटों के नाम हितेश ने उसे गिनवाए तो मानसी के जेहन में उस साइट का नाम उभर आ गया जो मोबाइल की स्क्रीन पर नीचे कोने में लिखा हुआ था.

हितेश ने बिना देरी किए उस साइट को खोला और कुछ वीडियो सर्च किए तो दंग रह गया. उस साइट पर मानसी और हितेश के बहुत से वीडियो थे.

इन वीडियो को भले ही हितेश ने बनाया था, पर थोड़ी सी जांच करने के बाद ही हितेश ने मानसी को बताया कि ये सारे वीडियो नैतिक के मोबाइल फोन से ही अपलोड किए गए हैं.

‘‘मानसी, हमें तुरंत ही पुलिस के पास जाना होगा. हम किसी बहुत बड़े जाल में फंसने वाले हैं,’’ हितेश ने कहा.

हितेश और मानसी ने सारी बात थाने में जा कर पुलिस को बता दी. कुछ डाटा खंगालने के बाद पुलिस ने उस आदमी का नाम भी खोज निकाला था जो इस गंदे काम को अंजाम देता था. वह कोई और नहीं, बल्कि नैतिक था.

‘‘पर नैतिक… वह क्यों करेगा ऐसा काम? उस ने तो हम लोगों की मदद की है,’’ बुदबुदा पड़ी थी मानसी. पुलिस ने मानसी और हितेश की शिकायत के आधार पर नैतिक को गिरफ्तार कर लिया.

नैतिक के गिरफ्तार होने से हितेश को बड़ी राहत सी महसूस हो रही थी और मन ही मन वह मुसकराए जा रहा था. हितेश ने मानसी को यह यकीन दिला दिया था कि कालेज में अपने प्यार में नाकाम रहने के बाद नैतिक ने मानसी और हितेश से बदला लेने के लिए ही

उन दोनों को बदनाम कर के बदले की नीयत से ही उन के वीडियो पोर्नसाइट पर डाले थे. मानसी के मन में  झं झावात सा चल रहा था. सारे सुबूत नैतिक को कुसूरवार ठहरा रहे  थे और वह पुलिस की गिरफ्त में भी था, पर पता नहीं क्यों मानसी नैतिक को कुसूरवार नहीं मान पा रही थी.

‘‘नैतिक और कुछ भी हो, पर ऐसा तो नहीं कर सकता,’’ अपनेआप से ही सवाल करती रही थी मानसी. अगले दिन मानसी नैतिक से मिलने से अपनेआप को रोक नहीं सकी और हितेश को बिना बताए उस से मिलने पहुंच गई.

मानसी ने नैतिक की आंखों में  झांका. नैतिक के चेहरे पर तनाव जरूर था, पर उस की आंखों में एक सचाई नजर आ रही थी और वह सचाई नैतिक की बातों से भी पता चली, जब उस ने मानसी को यह बताया कि वह बेकुसूर है और मानसी की इज्जत के साथ तो ऐसा कतई नहीं कर सकता.

उस ने मानसी से यह भी कहा कि बेहतर होगा कि वह अपने घर में ही नौकर के मोबाइल देख कर पता लगाए कि ऐसा काम किस ने और क्यों किया है.

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सुगंधा लौट आई- भाग 2 : क्या थी सुगंधा की अनिल को छोड़ने की वजह?

कुछ ही दिनों में मुझे और काम मिले. मैं अकेले तो सब काम नहीं कर सकता था इसलिए मैं ने 2 नए आदमी रखे. इसलिए अलग औफिस के लिए बड़ी जगह की जरूरत पड़ी तो मैं ने 2 औफिस केबिन किराए पर लिए. बाहर वाले केबिन में मेरा स्टाफ और अंदर वाले में मैं खुद बैठता. कभीकभी सुगंधा भी आ कर मेरे साथ कुछ देर बैठती. मैं उसे पा कर बहुत खुश था. मुझे लगा मुझे मेरा मुकाम मिल गया है.

शादी के 2 साल बाद सुगंधा गर्भवती हुई. हम दोनों बहुत खुश थे. मैं उसे काफी समय देने लगा था. हर पल आने वाले मेहमान को ले कर सोचता और भविष्य का प्लान करता रहा. इस के चलते बिजनैस पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा था. सुगंधा मुझे बारबार आगाह करती कि वह तो आजीवन मेरे साथ है उस की इतनी ज्यादा चिंता करने की आवश्यकता नहीं है और अपने काम पर ज्यादा समय दे. इसी बीच उस की मां चल बसी. दुर्भाग्यवश चौथे महीने में सुगंधा का मिसकैरेज हो गया. वह बहुत उदास रहने लगी थी और डिप्रैशन में चली गई.

अब मैं अपना पहले से भी ज्यादा समय उस पर देने लगा. वह मुझे समझाती कि कुछ दिनों की बात है मैं ठीक हो जाऊंगी. मैं उसे समझाता कि उस के ठीक होने के बाद ही मैं काम पर जाऊंगा. मेरे प्रोजैक्ट्स डेडलाइन मिस करने लगे थे. नए काम का अकाल पड़ने लगा और पुराने कस्टमर भी नाराज थे. इस बीच सुगंधा बहुत कुछ ठीक हो चली थी पर मेरा बिजनैस दुबारा पटरी पर नहीं आ सका था.

मुझे अपने स्टाफ की छंटनी करनी पड़ी. औफिस का किराया देने के लिए सुगंधा ने स्कूल से कर्ज लिया था. मैं फिर से अपने घर से काम करने लगा, पर काम तो था नहीं. काम ढूंढ़ना ही मेरा काम था. सुगंधा मुझे ढाढ़स देती और कहती कि काम के लिए और लोगों के पास जाऊं. मैं अपमानित महसूस कर रहा था कि कुछ दिन पहले मैं दूसरों को नौकरी देता था और अब मुझे काम के लिए दूसरों की चौखट पर जाना होगा. मुझे लगा कि सुगंधा इस बात से नाराज हुई थी.

कुछ ही दिनों के बाद अचानक मेरे जीवन में भूचाल आया. एक सुबह अचानक  सुगंधा घर से गायब थी. वह एक लिफाफा छोड़ गई थी. उस में एक पत्र था जिस में लिखा था-

मैं आप को और इस शहर को छोड़ कर जा रही हूं. आप मेरी फिक्र न करें. मैं लौट कर आप के जीवन में आऊंगी या नहीं अभी नहीं कह सकती, पर आप की यादों के सहारे मैं जी लूंगी. आप किसी की कही एक बात हमेशा याद रखें- ‘‘जिंदगी जीना आसान नहीं होता, बिना संघर्ष के कोई महान नहीं होता, जब तक न पड़े हथौड़े की चोट, पत्थर भी भगवान नहीं होता. बस आप पूरी लगन से एक बार फिर अपने काम में लगे रहिए, कामयाबी जरूर मिलेगी. मेरी दुआएं और शुभकामनाएं सदा आप के साथ हैं.’’

मैं सकते में था कि सुगंधा ने ऐसा फैसला क्यों लिया होगा. मैं ने पापा से भी उस के बारे में पूछा कि शायद उन्हें कुछ बताया हो पर उन्हें भी कुछ पता नहीं था.

मुसीबत की इस घड़ी में सिर्फ पापा मेरे साथ खड़े रहे. मैं ने सुगंधा के स्कूल में पता किया कि शायद वह इसी गु्रप के किसी दूसरे स्कूल में हो. पर सुगंधा का कोई सुराग नहीं मिला. मेरा मन किसी काम में नहीं लग रहा था. पापा ने कहा, ‘‘फिलहाल तुम काम के बारे में सोचना छोड़ दो और मैनेजमैंट करो. तुम ने पहले से मैनेजमैंट में ग्रैजुएशन कर रखा है अब तुम एमबीए करोगे. वहां से तुम्हें बहुत सारे अवसर और विकल्प मिलेंगे. मैं इस घर को गिरवी रख कर तुम्हें एमबीए करने भेज सकता हूं. इस बीच तुम्हारा ध्यान भी दुनियादारी से हट जाएगा.’’

आईआईएम अहमदाबाद भारत का सर्वश्रेष्ठ मैनेजमैंट स्कूल माना जाता है, वहां मुझे दाखिला मिला. मेरी पढ़ाई और पूर्व अनुभव के चलते मुझे दूसरे वर्ष में मल्टीनैशनल कंपनी में बहुत अच्छा प्लेसमैंट मिल गया.

पढ़ाई पूरी होने के बाद 6 महीने की ट्रैनिंग ब्रिटेन में और फिर ब्रिटेन या अन्य किसी देश में पोस्टिंग होती.

मैं मैनेजमैंट करने के बाद लंदन गया. मैं अपने नए काम और पोस्टिंग से बहुत खुश था. हर 2-3 साल के बाद मेरी पोस्टिंग ब्रिटेन के अतिरिक्त फ्रांस, इटली, न्यूजीलैंड और आस्ट्रेलिया में होती रही और साथ में मुझे प्रमोशन भी मिलता रहा. इस बीच 10 साल बीत गए. इस दौरान मुझे सुगंधा के बारे में कोईर् खबर नहीं मिली. ऐसा नहीं था कि मैं उसे पूरी तरह से भूल चुका था. प्रमोशन के साथ बढ़ते टारगेट और जिम्मेदारी के चलते अपने निजी जीवन के बारे में सोचने का समय कम मिलता था. फिर भी तन्हाई के आलम में उस की बहुत याद आती और शराब भी उस गमगीन माहौल

को भुलाने में नाकाम होती थी. मन में उम्मीद अभी भी जिंदा थी कि सुगंधा शायद किसी दिन वापस आ जाए. पापा से लगभग रोजाना संपर्क होता था.

मेरी कंपनी मुंबई में अपना दफ्तर खोलने जा रही थी और मेरे एक जूनियर कलीग को इस काम के लिए मुंबई भेजा गया. पूरा औफिस सैट होने के बाद कंपनी मुझे वहां चीफ बना कर भेज रही थी. इस औफिस के लिए के कुछ सौफ्टवेयर इंजीनियर चाहिए थे. इस के लिए पहले राउंड का इंटरव्यू मेरा कलीग लेता उस के बाद उस की डिटेल्स के साथ फाइनल इंटरव्यू फोन और विडियो कौनफ्रैंस द्वारा मुझे लेना था. मेरे पास 6 लोगों के नाम आए उन में से मुझे दो इंजीनियर मुझे लेने थे. पहले राउंड के इंटरव्यू के बाद जो लिस्ट मुझे मिली उसे देख कर मैं चौंक उठा. सुगंधा लिस्ट में टौप पर थी. पहले मुझे कुछकुछ संदेह हुआ कि शायद कोई और सुगंधा हो जब मैं ने उस का पूरा बायोडाटा देखा तो पाया कि वह मेरी सुगंधा ही थी. उस ने बीसीए के बाद एमसीए किया और पिछले 5 वर्षों से एक कंपनी में सौफ्टवेयर इंजीनियर थी. मैं ने सुगंधा का फाइनल विडियो इंटरव्यू लिया. मैं ने 10 वर्षों से दाढ़ी बढ़ा रखी थी, आंखों पर चश्मा चढ़ गया था और कनपटी के बालों पर सफेदी थी. शायद उस ने मुझे पहचाना नहीं, मैं ने औफिस को बोल रखा था कि मेरा नाम उसे नहीं बताया जाए बस चीफ ऐग्जीक्यूटिव बोला जाए.

बहुत दिनों के बाद सुगंधा की तस्वीर देख कर मुझे जो खुशी मिली उसे शब्दों में मैं बयां नहीं कर सकता. मुझे उस के फोटो से ही सुगंधा की खुशबू का अहसास हो रहा था जो मेरे मन को तरंगित कर जाता. उस ने अपने को बड़ी खूबसूरती से मैंटैन कर रखा था. खैर उस का इंटरव्यू पूरा हुआ. मुझे उसे सिलैक्ट करना ही था, इसलिए नहीं कि वह मेरी ऐक्स थी. वह अपनी काबीलियत के बल पर टौपर थी.

मैं ने अपने मुंबई वाले कलीग से कहा कि बिना मेरे बारे में सुगंधा को बताए वह मेरे बारे में उस के मन की बात जानने की कोशिश करे. निजी बातें होशियारी से करे ताकि उसे संदेह नहीं हो. सुगंधा से बात कर उस ने फोन पर कहा, ‘‘आप के लिए मुझे बहुत पापड़ बेलने पड़े. मैं ने जब उस से पूछा कि आप के परिवार में आप के अलावा और कौनकौन हैं तो उस ने कहा मैं ही मेरा परिवार हूं.

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खूबसूरती की मल्लिका अनारा बेगम- भाग 1: एक हिंदू राजा ने मुस्लिम स्त्री से ऐसे निभाया प्यार

राजामहाराजे का एक दौर था, जब जोधपुर में जोधाणे की ख्यातिप्राप्त रियासत थी. वहां के महाराजा गजसिंह राठौड़ की आगरा, लखनऊ, और दिल्ली के नवाबों के बीच भी काफी चर्चा होती थी.

एक रोज वह आगरा के नवाब फजल के घर शयनकक्ष में मखमली बिस्तर पर नींद में थे. वह जहां सो रहे थे, वहीं समीप जल रहे एक दीपक की मद्धिम रोशनी में बिस्तर पर बिछी जरीदार गद्दे चमक रहे थे.

कल रात शराब ज्यादा पीने से महाराजा अलसाए हुए अनिद्रा में थे. चाह कर भी नहीं उठ पा रहे थे. जबकि सुबह होने वाली थी. नौकर कई बार आ कर देख चुका था. वह चिंता में था कि महाराजा साहब समय पर क्यों नहीं उठे हैं. मगर वह उन्हें जगाना नहीं चाहता था.

रात की खुमारी जैसे उन की आंखों की पलकों पर जमी बैठी थी. मानो वह पलकों की बोझिलता के साथ एक अनोखी दुनिया में होने जैसे सपनीली मादकता के एहसास में हों. रेशमी जरीदार कमरबंद, किनारी में झूलती हुई स्वर्णिम जरी, गले में चमकता अमूल्य हार, कानों में लौंग और हाथों में सोने के कड़े.

वह कल रात मुगल सम्राट शाहजहां के विशेष कृपापात्र नवाब फजल के घर आमंत्रित किए गए थे. नवाब फजल ने गजसिंह के स्वागत में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. जबरदस्त महफिल जमी थी. कुछ अन्य सरदार और रसूखदार वहां बैठे थे. सभी को उम्दा शराब परोसी गई थी. सुरा के साथ सुंदरी का भी इंतजाम किया गया था.

ईरानी हसीन नर्तकी ने हुस्न के जलवे बिखेरे थे. और फिर नृत्य, गायनवादन से शमा परवाने की रातें रंगीन होने लगी थीं. देर रात तक जश्न चला था. सुंदरी ने सभी अतिथियों को शराब के मनुहार से संतुष्ट किया था.

…और जब महफिल की शमा बुझी, तब तक अतिथिगण मदहोश हो चुके थे. अधिकतर तो अपनेअपने घर चले गए थे, लेकिन महाराजा गजसिंह को तनिक भी होश नहीं था. वह वहीं बैठ गए. नवाब फजल भी तकिए के सहारे वहीं लुढ़क गए.

गजसिंह के पास हाजरिए कृपाल सिंह ने उन्हें सतर्क करते हुए कहा, ‘‘महाराजा साहेब, होश में आइए, हमें अपने डेरे पर चलना है. उठिए महाराजा साहेब!’’

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‘‘नहींनहीं, हम डेरे पर नहीं चल सकते.’’ एक पल रुक कर उन्होंने हुक्म दिया, ‘‘बुलाओ हमारे लिए उस ईरानी नर्तकी को. हम उसे ईनाम देंगे.’’

‘‘वह तो चली गई. रात बहुत हो गई है. अब हम को भी चलना चाहिए, महाराजा साहेब.’’ कृपाल सिंह ने कहा.

गजसिंह उस के कहने पर चलने के लिए उठे. साथ चलने लगे, लेकिन 2-4 कदम चल कर ही अचानक रुक गए. फिर नशे में बुदबुदाने लगे, ‘‘जिस की नर्तकी चांद के समान रूपवती हो, उस नवाब की बीवी अनारा कितनी सुंदर होगी? मैं ने अनारा बेगम की बहुत चर्चा सुनी है. हमें कोई उस का दीदार करवा दे तो हम उस को मुहमांगा ईनाम दे सकते हैं.’’

यह बात उस जगह से कही गई थी, जहां से पास के झरोखे तक उन की आवाज बाहर जा सकती थी. वह ईरानी नर्तकी की मधुर यादों में खोए हुए थे. कहते हैं न कि नशा चीज ही ऐसी है, जो अच्छेअच्छों को बेसुध कर देती है. क्या शूरवीर और क्या अमीर क्या गरीब.

मंदिर से शंख और घंटेघडि़याल की आवाजें आते ही गजसिंह हड़बड़ा कर उठ बैठे और तेजी से चल दिए. आज वह दरबार में हाजिर नहीं हो पाएंगे. ऐसा उन्होंने आलीजहां को कहवा कर भेज दिया और अपने डेरे में ऊपरी मंजिल पर आ गए.

अब भी उन की आंखों में बीते रात की महफिल का सुरूर और ईरानी नर्तकी छाई हुई थी. उन का मन ईरानी नर्तकी को अपनी बाहों में कैद करने की भावना से बेचैन था. बिस्तर पर लेट चुके थे, नींद की आगोश में आने लगे थे, किंतु दिमाग में हलचल सी मची हुई थी. तभी एक सेवक ने आ कर कहा, ‘‘अन्नदाता, हुजूर नवाब साहब की दासी आप से मिलना चाहती है.’’

‘‘नवाब साहब की दासी? आने दो.’’

चंद मिनटों में ही एक 40 वर्षीया औरत महाराज गजसिंह के सामने पेश हो गई. उस का रंग गोरा था और मुंह में पान चबा रही थी.

‘‘नवाब साहब का कोई परवाना लाई हो?’’ महाराजा ने उस से पूछा.

‘‘गुस्ताखी माफ हो, मैं तनहाई में कुछ अर्ज करना चाहती हूं.’’

दासी के कहने पर वहां खड़ा अंगरक्षक सिर झुका कर चला गया. दासी ने अत्यंत ही कोमलता के साथ अदबी लहजे में कहा, ‘‘दासी को जरीन नाम से जानते हैं. मैं एक खास मकसद से पेश हुई हूं. मुआफी चाहूंगी.’’

‘‘कहो, क्या बात है? बेहिचक बताओ.’’ महाराजा गजसिंह बोले.

‘‘हुजूर, कल रात जब आप ने ईरानी नर्तकी रक्कासा की प्रशंसा करतेकरते अनारा बेगम का जिक्र किया था, तब मैं झरोखे पर खड़ी थी. आप को इस कदर हुस्न का आशिक मिजाज देख कर मेरा दिल पसीज गया और…’’

‘‘…और क्या?’’ महाराजा ने बेसब्री से पूछा.

‘‘बात यह है हुजूर कि हमारी सब से छोटी बेगम साहिबा के नाखून के बराबर भी नहीं है रक्कासा. आप चाहें तो…’’

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इतना सुनते ही विलासी महाराजा गजसिंह के शरीर में एक सिहरन सी दौड़ गई, लेकिन उन्होंने तुरंत अपनी बेसब्री पर काबू किया. गंभीरता से बोले, ‘‘जरीन, यह मत भूलो कि तुम एक हिंदू राजा के सामने खड़ी हो, जो तुम्हें जिंदा जमीन में गड़वा सकता है. मुगलिया सल्तनत की नींव हिला सकता है. तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यह सब कहने की? मुझ से किसी तरह का खेल खेलने की कोशिश मत करना. जानती हो, उस वक्त हम नशे में थे. शराब ने हम को होशोहवास में नहीं रहने दिया था. तुम मर्द की कमजोरी का नाजायज फायदा…’’

‘‘तौबा करती हूं, गरीब परवर! हम गुलाम हैं, आप हमें माफ कर दें.’’ दासी कांपती हुई हाथ जोड़ कर बोली.

शैतान भाग 2 : अरलान ने रानिया के साथ कौन सा खेल खेला

वह ड्राइंगरूम में पहुंची तो वहां सोनिया की सहेली कंजा सोफे पर अरसलान से सटी बैठी थी. रानिया को उस का यह अंदाज बड़ा बुरा लगा. वहीं पर सोनिया के वकील भी मौजूद थे. वकील ने कहा, ‘‘मिस रानिया, आप कल 11 बजे यहां हाजिर रहिएगा.’’

‘‘मैं तो यहीं रहती हूं साहब, जब आप कहेंगी, आ जाऊंगी.’’

‘‘मुझे बताया गया था कि आज आप अपने घर चली जाएंगी.’’ वकील साहब ने कहा.

कंजा बीच में बोल पड़ी, ‘‘दरअसल, मैं ने और अरसलान ने सोचा कि फिजा को जेहनी सुकून के लिए मेरे घर मेरे बच्चे और उस की ट्रेंड आया के पास छोड़ दिया जाए. क्योंकि फिजा के दिलोदिमाग में सोनिया की मौत का असर पड़ सकता है. जब फिजा हमारे यहां चली जाएगी तो रानिया की यहां क्या जरूरत रहेगी.’’

उस की इस बात पर रानिया को गुस्सा आ गया. उस ने तीखे स्वर में कहा, ‘‘मेरे खयाल से अभी घर में फिजा के बड़े मौजूद हैं, वे इस बारे में फैसला लेंगे. आप का ताल्लुक सिर्फ इतना है कि आप सोनिया मैम की सहेली हैं.’’

‘‘मैं तो सोनिया की सहेली हूं, लेकिन तुम तो मुलाजिम के अलावा कुछ नहीं हो.’’

रानिया ने तड़प कर अरसलान की ओर देखा कि वह उस का कुछ सपोर्ट करेगा. पर वह चुप बैठा था. वहां मौजूद सोनिया की खाला ने कहा, ‘‘मैं फिजा को अपने घर भेज देती हूं, वहां मेरी बेटियां उसे संभाल लेंगी.’’

वकील ने कहा, ‘‘आप लोग बेकार की बहस कर रहे हैं. सोनिया की वसीयत के मुताबिक वसीयत खोलते वक्त सिर्फ 3 लोग मौजूद रहेंगे. इन में एक हैं मिस रानिया, इसलिए इन का यहां रहना जरूरी है, इसलिए यही बेहतर होगा कि फिजा उन्हीं के पास रहे. इतने दिनों से वही उस की देखभाल कर रही हैं और इस वक्त इन्हीं की जरूरत भी है. क्यों अरसलान साहब, यह बात सही है न?’’

अरसलान ने अनमने ढंग से कहा, ‘‘आप ठीक कह रहे हैं वकील साहब.’’

कंजा ने बेकरार हो कर उस की तरफ देखा तो अरसलान ने धीरे से उस का हाथ दबा दिया. रानिया ने उठ कर कहा, ‘‘क्या अब मैं फिजा के पास जाऊं?’’

‘‘हां, आप जाएं और आप यहीं रुकेंगी. बच्ची के पास.’’ वकील ने मजबूत लहजे में कहा.

इस के बाद रानिया फिजा के पास लेट गई. अरसलान की बेरुखा और दोगला बर्ताव देख कर वह बहुत दुखी थी. उस की आंखों से आंसू बहने लगे. उसे याद आया कि एक बार सोनिया ने उस से कहा था, ‘‘मेरी कंजा से कोई खास दोस्ती नहीं है. पता नहीं यह तलाकशुदा महिला क्यों बारबार मेरे घर चली आती है?’’

शायद सोनिया को अंदाजा था कि वह अरसलान के पीछे लगी है. इन 8 महीनों में सोनिया से रानिया की अच्छी दोस्ती हो गई थी. रानिया की यह अच्छी आदत थी कि वह चुपचाप सब सुनती थी, इसलिए सोनिया उस से अपने मन की बातें कर के दिल हलका कर लेती थी.

एक बार उस ने अपनी मोहब्बत की पूरी कहानी बताई थी. उस ने कहा था, ‘‘यह सच है कि मुझे अरसलान से पहली नजर में मोहब्बत हो गई थी. पहली बार जब अरसलान कार्टन सप्लाई के लिए हमारी फैक्टरी में आया था, तब उस का कारोबार बहुत छोटा था. मैं ने उसे पार्टनरशिप का औफर दिया था, ताकि उस का काम बड़े पैमाने पर हो सके और आमदनी भी बढ़े. उस के बाद हम ने साथ मिल कर बिजनैस बढ़ाया.

‘‘उसी दौरान मुझे मालूम हुआ कि अरसलान की मंगनी उस की कजिन रूही से हो चुकी है. मैं पीछे हट गई और अरसलान को भूल जाना चाहा, पर उसी दौरान रूही का किडनैप हो गया. अरसलान ने बताया कि अपहर्त्ताओं ने 50 लाख रुपए मांगे हैं. 50 लाख रुपए उस ने मुझ से इस वादे के साथ मांगे कि रूही के छूट जाने के बाद वह मुझ से शादी कर लेगा.

‘‘मैं ने अरसलान को 50 लाख रुपए दे दिए. मैं ने पुलिस को भी खबर कर दी. जांच करते हुए पुलिस वहां पहुंची तो अपहर्त्ता भाग चुके थे. रूही रस्सियों से बंधी थी. उस की आंखों पर पट्टी बंधी थी. रूही ने बताया कि अपहर्त्ता 3 थे और उन्होंने मास्क पहन रखे थे, इसलिए वह किसी को पहचान नहीं सकी.’’

सोनिया का कहना था कि उसे शक है कि यह किडनैपिंग का प्रोपेगैंडा अरसलान का था. उसी ने सारा खेल खेला था.

‘‘आप अपने शौहर पर इलजाम लगा रही हैं. यह जान लेने के बाद भी आप ने उन से शादी की?’’

‘‘क्योंकि मैं उस वक्त उस के इश्क में अंधी थी.’’

सोनिया ने आगे कहा, ‘‘अरसलान कंजा के साथ मिल कर मेरी मौत का इंतजार कर रहा है. मैं अपनी दौलत इस लालची इंसान और उस बेशर्म औरत के लिए नहीं छोड़ूंगी.’’

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उस वक्त कंजा का नाम सुन कर रानिया मन ही मन हंसी, क्योंकि कंजा खुद को अरसलान की महबूबा समझ रही थी. उसी वक्त सोनिया की खाला उस के कमरे में आ गईं. आते ही उन्होंने कहा, ‘‘अरे, तुम यहां बैठी हो रानिया. तुम परेशान न हो, मैं अरसलान से कहूंगी कि फिजा की सही देखभाल के लिए तुम्हारा यहां रहना जरूरी है.’’

रानिया चुपचाप बैठी रही.

खाला ने आगे कहा, ‘‘कंजा फिजा के मामले में बेकार में टांग अड़ा रही है. पर मैं उस की एक नहीं चलने दूंगी. वह बेवजह अरसलान पर डोरे डाल रही है. एक बार मेरी बेटी शीना इस घर में दुलहन बन कर आ जाए तो मैं कंजा का पत्ता ही काट दूंगी. ऐसा हो गया तो तुम्हारी जौब भी सेफ रहेगी.’’

रानिया समझ गई कि सब लोग अपनीअपनी चाल चल रहे हैं. शीना शादी कर के करोड़ों की मालकिन हो जाएगी.  सोनिया की मौत हो गई. लाश घर में पड़ी थी और सभी लोग अपनाअपना उल्लू सीधा करने में लगे थे.

सोनिया की मौत के गम में रानिया कमरे में बैठी थी, तभी अरसलान की बड़ी बहन कमरे में आ कर बोली, ‘‘मैं चाहती हूं कि अरसलान कम से कम फिजा का खयाल करते हुए उस बेशर्म औरत के चंगुल से निकल जाए. दौलत के पीछे भागना छोड़ कर वह ऐसी लड़की से शादी करे, जो फिजा को दिल से प्यार करे और बिखरा घर संभाले. मैं उस से तुम्हारा जिक्र जरूर करूंगी.’’

उस की बात पर रानिया कुछ नहीं बोली. उस की झुकी आंखों व लाल होते चेहरे से शायद उस की रजामंदी मिल गई थी.

उस ने आगे कहा, ‘‘मैं जानती हूं कि अरसलान दिलफेंक है. कई लड़कियों से अफेयर चला चुका है. मैं उसे बहुत समझाती थी कि सोनिया से बेवफाई न करे, पर वह नहीं माना.’’

इस से रानिया को लगा कि अरसलान ने मोहब्बत का जाल फेंक कर उसे भी बेवकूफ बनाया है. उसी वक्त बाहर से आवाजें आनी लगीं. सब लोग कब्रिस्तान से वापस आ गए थे. वह फिजा के बालों में हाथ फेरती वहीं बैठी रही. दरवाजा खटखटा कर के अरसलान कमरे में आया. फिजा को देख कर बोला, ‘‘फिजा तो अच्छी है न, तुम ने उसे संभाल लिया है न?’’

‘‘जी वह अब ठीक है.’’

इस के बाद अरसलान ने रूखे लहजे में पूछा, ‘‘तुम ने आपा को क्या पढ़ाया है?’’

‘‘मैं ने… मैं ने तो कुछ नहीं कहा.’’ रानिया चौंक कर बोली.

‘‘मैं अच्छी तरह जानता हूं कि तुम ने मेरी आपा के दिमाग में यह बात भरी है कि फिजा के लिए मुझे तुम से ही शादी करनी चाहिए. रानिया, मैं ने रात के अंधेरे में तुम से जो वादे किए थे, उन्हें दिन के उजाले में भूल जाओ. झूठे वादे करना मेरी आदत है, उस पर यकीन न करना.’’ इस के बाद वह कहकहा लगा कर हंस पड़ा.

रानिया उस का असली चेहरा देख कर दंग रह गई. अरसलान ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘मैं ने पहले दिन ही तुम्हारी आंखों में अपने लिए पसंदगी देख ली थी. जो लड़की खुद पसंद करे, उसे फंसाना मेरे लिए बड़ा आसान होता है. 2-3 मोहब्बत भरी मुलाकातों के बाद शादी के झूठे ख्वाब दिखा कर तुम्हारा जिस्म हासिल कर लिया. बस इतना ही मेरा मकसद था.’’

रानिया का चेहरा गुस्से से लाल पड़ गया. वह तीखे स्वर में बोली, ‘‘बिलकुल उसी तरह, जिस तरह तुम ने रूही की नजर पहचानी थी, सोनिया की नजर पहचानी थी. अपने दोस्तों के जरिए रूही को अगवा करवा कर उस की भी इज्जत लूट ली और उस के वापस आने पर ऐसी बेरुखी दिखाई कि उस मासूम ने मजबूर हो कर खुदकशी कर ली.’’

अरसलान की आंखों में हैरत थी. वह गुस्से से चीखा, ‘‘यह क्या बकवास कर रही हो? यह कहानी तुम्हें सोनिया ने ही सुनाई होगी? तुम इस का कोई सबूत नहीं दे सकती. अब चुप हो जाओ और मैं कहता हूं कि तुम यहां रह सकती हो. हमारे रात के अंधेरे का ताल्लुक वैसा ही रहेगा या फिर खामोशी से 5 लाख रुपए ले कर यहां से निकल जाओ. पर अपनी जुबान बंद रखना.’’

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‘‘मैं ने तुम्हें देवता समझा था, तुम तो शैतान निकले. तुम्हारी हर बात मानती रही, यहां तक कि अपनी इज्जत भी गंवा दी और उस का तुम यह बदला दे रहे हो मुझे?’’

‘‘मैं तुम से शादी क्यों करूं? जरा अक्ल से सोचो, तुम्हारे पास देने को अब बचा ही क्या है?’’ यह कह कर वह कमरे से बाहर निकल गया.

रानिया रो पड़ी. एक आवारा आदमी के पीछे उस ने अपना सब कुछ लुटा दिया. उस का दिल चाहा खुदकुशी कर के मर जाए. तभी उस ने सोचा कि अगर वह मर गई तो फिजा एकदम अकेली व बेसहारा हो जाएगी. उसे सही मायनों में फिजा से मोहब्बत हो गई थी. वह कुछ देर सोचती रही, उस के बाद उस ने एक फैसला लिया और बात करने कमरे से बाहर निकली.

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

बस तुम्हारी हां की देर है: भाग 3

तुम सब को तो जेल होगी ही और तुम्हारा बाप, उसे तो फांसी न दिलवाई मैं ने तो मेरा भी नाम मनोहर नहीं,’’ बोलतेबोलते मनोहर का चेहरा क्रोध से लाल हो गया.

मनोहर की बातें सुन कर सब के होश उड़ गए, क्योंकि झूठे और गुनहगार तो वे लोग थे ही अत: दिन में ही तारे नजर आने लगे उन्हें.

‘‘क्या सोच रहे हो रोको उसे. अगर वह पुलिस में चला गया तो हम में से कोई नहीं बचेगा और मुझे फांसी पर नहीं झूलना.’’ अपना पसीना पोछते हुए नीलेश के पिता ने कहा.

उन लोगों को लगने लगा कि अगर यह बात पुलिस तक गई तो इज्जत तो जाएगी ही, उन का जीवन भी नहीं बचेगा. बहुत गिड़गिड़ाने पर कि वे जो चाहें उन से ले लें, जितने मरजी थप्पड़ मार लें, पर पुलिस में न जाएं.

‘कहीं पुलिसकानून के चक्कर में उन की बेटी का भविष्य और न बिगड़ जाए,’ यह सोच कर मनोहर को भी यही सही लगा, लेकिन उन्होंने उन के सामने यह शर्त रखी कि नीलेश दिव्या को जल्द से जल्द तलाक दे कर उसे आजाद कर दे.

मरता क्या न करता. बगैर किसी शर्त के नीलेश ने तलाक के पेपर साइन कर दिए, पहली सुनवाई में ही फैसला हो गया.

वहां से तो दिव्या आजाद हो गई, लेकिन एक अवसाद से घिर गई. जिंदगी पर से उस का विश्वास उठ गया. पूरा दिन बस अंधेरे कमरे में पड़ी रहती. न ठीक से कुछ खाती न पीती और न ही किसी से मिलतीजुलती. ‘कहीं बेटी को कुछ हो न जाए, कहीं वह कुछ कर न ले,’ यह सोचसोच कर मनोहर और नूतन की जान सूखती रहती. बेटी की इस हालत का दोषी वे खुद को ही मानने लगे थे. कुछ समझ नहीं आ रहा था उन्हें कि क्या करें जो फिर से दिव्या पहले की तरह हंसनेखिलखिलाने लगे. अपनी जिंदगी से उसे प्यार हो जाए.

‘‘दिव्या बेटा, देखो तो कौन आया है,’’ उस की मां ने लाइट औन करते हुए कहा तो उस ने नजरें उठा कर देखा पर उस की आंखें चौंधिया गईं. हमेशा अंधेरे में रहने और एकाएक लाइट आंखों पर पड़ने के कारण उसे सही से कुछ नहीं दिख रहा था, पर जब उस ने गौर से देखा तो देखती रह गई, ‘‘अक्षत,’’ हौले से उस के मुंह से निकला.

नूतन और मनोहर जानते थे कि कभी दिव्या और अक्षत एकदूसरे से प्यार करते थे पर कह नहीं पाए. शायद उन्हें बोलने का मौका ही नहीं दिया और खुद ही वे उस की जिंदगी का फैसला कर बैठे. ‘लेकिन अब अक्षत ही उन की बेटी के होंठों पर मुसकान बिखेर सकता था. वही है जो जिंदगी भर दिव्या का साथ निभा सकता है,’ यह सोच कर उन्होंने अक्षत को उस के सामने ला कर खड़ा कर दिया.

बहुत सकुचाहट के बाद अक्षत ने पूछा, ‘‘कैसी हो दिव्या?’’ मगर उस ने कोई जवाब

नहीं दिया. ‘‘लगता है मुझे भूल गई? अरे मैं अक्षत हूं अक्षत…अब याद आया?’’ उस ने उसे हंसाने के इरादे से कहा पर फिर भी उस ने कोई जवाब नहीं दिया.

धीरेधीरे अक्षत उसे पुरानी बातें, कालेज के दिनों की याद दिलाने लगा. कहने लगा कि कैसे वे दोनों सब की नजरें बचा कर रोज मिलते थे. कैसे कैंटीन में बैठ कर कौफी पीते थे. अक्षत उसे उस के दुख भरे अतीत से बाहर लाने की कोशिश कर रहा था, पर दिव्या थी कि बस शून्य में ही देखे जा रही थी.

दिव्या की ऐसी हालत देख कर अक्षत की आंखों में भी आंसू आ गए. कहने लगा, ‘‘आखिर तुम्हारी क्या गलती है दिव्या जो तुम ने अपनेआप को इस कालकोठरी में बंद कर रखा है? ऐसा कर के क्यों तुम खुद को सजा दे रही हो? क्या अंधेरे में बैठने से तुम्हारी समस्या हल हो जाएगी या जिसने तुम्हारे साथ गलत किया उसे सजा मिल जाएगी, बोलो?’’

‘‘तो मैं क्या करूं अक्षत, क्या कंरू मैं? मैं ने तो वही किया न जो मेरे मम्मीपापा ने चाहा, फिर क्या मिला मुझे?’’ अपने आंसू पोंछते हुए दिव्या कहने लगी. उस की बातें सुन कर नूतन भी फफकफफक कर रोने लगीं.

दिव्या का हाथ अपनी दोनों हथेलियों में दबा कर अक्षत कहने लगा, ‘‘ठीक है, कभीकभी हम से गलतियां हो जाती हैं. लेकिन इस का यह मतलब तो नहीं है कि हम उन्हीं गलतियों को ले कर अपने जीवन को नर्क बनाते रहें… जिंदगी हम से यही चाहती है कि हम अपने उजाले खुद तय करें और उन पर यकीन रखें. जस्ट बिलीव ऐंड विन. अवसाद और तनाव के अंधेरे को हटा कर जीवन को खुशियों के उजास से भरना कोई कठिन काम नहीं है, बशर्ते हम में बीती बातों को भूलने की क्षमता हो.

‘‘दिव्या, एक डर आ गया है तुम्हारे अंदर… उस डर को तुम्हें बाहर निकालना होगा. क्या तुम्हें अपने मातापिता की फिक्र नहीं है कि उन पर क्या बीतती होगी, तुम्हारी ऐसी हालत देख कर. अरे, उन्होंने तो तुम्हारा भला ही चाहा था न… अपने लिए, अपने मातापिता के लिए,

तुम्हें इस गंधाते अंधेरे से निकलना ही होगा दिव्या…’’

अक्षत की बातों का कुछकुछ असर होने लगा था दिव्या पर. कहने लगी, ‘‘हम अपनी खुशियां, अपनी पहचान, अपना सम्मान दूसरों से मांगने लगते हैं. ऐसा क्यों होता है अक्षत?’’

‘‘क्योंकि हमें अपनी शक्ति का एहसास नहीं होता. अपनी आंखें खोल कर देखो गौर से…तुम्हारे सामने तुम्हारी मंजिल है,’’ अक्षत की बातों ने उसे नजर उठा कर देखने पर मजबूर कर दिया. जैसे वह कह रहा हो कि दिव्या, आज भी मैं उसी राह पर खड़ा तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं, जहां तुम मुझे छोड़ कर चली गई थी. बस तुम्हारी हां की देर है दिव्या. फिर देखो कैसे मैं तुम्हारी जिंदगी खुशियों से भर दूंगा.

अक्षत के सीने से लग दिव्या बिलखबिलख कर रो पड़ी जैसे सालों का गुबार निकल रहा हो उस की आंखों से बह कर. अक्षत ने भी उसे रोने दिया ताकि उस के सारे दुखदर्द उन आंसुओं के सहारे बाहर निकल जाएं और वह अपने डरावने अतीत से बाहर निकल सके.

बाहर खड़े मनोहर और नूतन की आंखों से भी अविरल आंसू बहे जा रहे थे पर आज ये खुशी के आंसू थे.

सुगंधा लौट आई- भाग 3 : क्या थी सुगंधा की अनिल को छोड़ने की वजह?

शकुंतला सिन्हा

और आगे निजी बातें पूछने के लिए सुगंधा से बहुत फटकार मिली. जब मैं ने कहा कि आप ने मेरे निकटतम मित्र की जिंदगी बरबाद कर दी है और वह आप की याद में काफी दिनों तक शराब के नशे में डूबे इधरउधर भटक रहा था.’’

मैं ने पूछा ‘‘उस ने क्या कहा?’’

वह बोली ‘‘मैं अनिल को बहुत प्यार करती थी और उन का सम्मान आज भी करती हूं. वे बहुत टैलेंटेड हैं और वे अपने काम में ज्यादा ध्यान न दे कर मेरे पीछेपीछे अपना समय बरबाद कर रहे थे. मैं उन्हें ऊंचाईयों पर देखना चाहती हूं. मुझे लगा कि मैं उन की उन्नति में बाधा बन गई थी इसीलिए दिल पर पत्थर रख कर उन से दूर चली गई.’’

‘‘अगर आज वे कहीं से मिल जाएं तो आप दोबारा उन्हें स्वीकार करेंगी?’’ मेरे कलीग के पूछने पर सुगंधा बोली, ‘‘अगर अनिलजी मेरे सामीप्य से अपने मुकाम तक पहुंचने में कामयाब होंगे तो मैं समझूंगी कि मेरा त्याग और मेरी उपासना सफल रही और मैं अपने को खुशनसीब समझूंगी.’’

‘‘अगर मैं कहूं कि मेरा वह दोस्त आज भी आप के इंतजार में पलकें बिछाए बैठा है और अब उस ने इतना कुछ हासिल कर रखा है जिसे जान कर आप को गर्व होगा और आप इसे अपने वर्षों की उपासना का नतीजा ही समझें.’’

‘‘वे कहां है आजकल? मुझे बस इतना पता है कि मैनेजमैंट करने के बाद वे विदेश चले गए थे.’’ सुगंधा ने मेरे  कलीग से कहा.

‘‘फिलहाल मुझे भी ठीक से पता नहीं है फिर भी मैं जल्द ही पता कर आप को बता दूंगा. वैसे आप का जौइनिंग लैटर रैडी है. आज फ्राइडे है, आप मंडे को ज्वाइन करेंगी. तब तक हमारे चीफ भी यहां होंगे और आप सीधा उन्हें ही रिपोर्ट करेंगी.’’ मेरे कलीग ने कहा.

मैं मुंबई आ गया. सोमवार को अपने केबिन में बैठा था, मेरी पीए ने फोन पर कहा ‘‘सर, सुगंधा मैम हैज कम. शी इज गोइंग टू रिपोर्ट यू.’’

‘‘सैंड हर इन.’’

‘‘गुड मौर्निंग सर, दिस इज सुगंधा योर सौफ्टवेयर इंजीनियर रिपोर्टिंग टू यू.’’ सुगंधा ने कहा.

‘‘वैलकम इन अवर फैमिली, मेरा मतलब मेरी कंपनी में. मेरी कंपनी ही मेरी फैमिली रही है अब तक.’’

सुगंधा मुझे अभी भी नहीं पहचान सकी थी. मैं ने उस से कहा ‘‘आप अपने केबिन में जा कर अपनी जौब की जानकारी लें. कल सुबह आप मुझे मिलेंगी फिर बाकी काम मैं समझा दूंगा.’’

दूसरे दिन सुबह मैं ने अपने केबिन डोर पर अपना नेम प्लेट ‘अनिल कुमार’ लगवा दी थी. मैं क्लीन शेव्ड हो कर अपनी कुर्र्सी पर बैठा था. सुगंधा नौक कर मेरे केबिन में आई

और मुझे देख कर ठिठक कर खड़ी हो गई और बोली ‘‘आप?’’

‘‘लगता है तुम ने मेरी नेम प्लेट नहीं देखी?’’

‘‘मैं ने गौर नहीं किया.’’

‘‘यही मेरी कंपनी और फैमिली है. आज से तुम भी इसी फैमिली की अतिविशिष्ट सदस्य हुई. मुझे उम्मीद थी मेरी सुगंधा एक न एक दिन जरूर आएगी इसीलिए तुम्हारे सिवा किसी और के बारे में मैं ने आज तक सोचा ही नहीं.’’

मेरे कलीग ने तुम्हारे दूर जाने का कारण मुझे बता दिया था. मुझे तुम पर नाज है और तुम्हें सैल्यूट करना होगा.

मैं ने उठ कर सैल्यूट किया और उसे गले लगाया. मेरा कलीग केबिन के शीशे के पारदर्शी दीवार के उस पार से यह नजारा देख रहा था. उस ने मुझे कनखी मारी और हम तीनों मुस्करा उठे.

Valentine’s Special- भाग-3: वैलेंटाइन के फूल

अगले दिन से ही मानसी ने अपने फ्लैट के सीसीटीवी की जांच कराई. घर में कोई नौकर तो रखा ही नहीं था, लिहाजा मानसी को कुछ पता नहीं चल सका.

एक दिन जब मानसी सब्जी ले कर अपने फ्लैट पर पहुंची, तो दूसरे कमरे में हितेश तेज आवाज में किसी से बहस कर रहा था,

‘‘आप मु झे चुनाव के लिए टिकट इसलिए नहीं देना चाहते कि मेरी पत्नी और मेरी वीडियो क्लिप की खबर मीडिया में चल रही है, पर  यह बात पूरी तरह से सच नहीं है.

‘‘असल में वे सैक्स वीडियो तो मैं ने ही नैतिक के मोबाइल में डाल कर सैक्स साइट पर अपलोड किए थे, क्योंकि मु झे उन दोनों पर शक था और मैं नैतिक और मानसी को अलग करना चाहता था…’’

हितेश के आगे के शब्द तो मानसी के लिए माने नहीं रखते थे, क्योंकि उस के पति की ये बातें उस के कानों में जहर के समान लग रही थीं. मानसी ने तुरंत ही अपने मोबाइल को निकाल कर हितेश की वीडियो रिकौर्डिंग शुरू कर दी, जिस में वह अनजाने में ही अपने जुर्म का इकरार करता हुआ नजर आ रहा था.

अपने मोबाइल के उस वीडियो को मानसी ने पुलिस के सामने सुबूत के तौर पर पेश कर दिया, जिसे आधार मानते हुए पुलिस ने हितेश को गिरफ्तार कर के सख्ती से पूछताछ की.

पहले तो हितेश अनजान बन कर नाटक करता रहा, पर पुलिस की सख्ती के आगे उस ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया, जिस में हितेश ने यह मान लिया कि वह छोटी जाति की मानसी को हमेशा से ही अपने पैर की जूती बना कर रखना चाहता था और उस की जाति का इस्तेमाल अपनी राजनीति में करना चाहता था, ताकि उसे दलित वर्ग उद्धारक के रूप में पहचान मिल सके और अपनी इस दलित और सवर्ण वर्ग की शादी की बातें वह अकसर सोशल मीडिया के द्वारा प्रचारित करवाता था.

उसे उन दोनों के पुराने दोस्त नैतिक से मानसी की नजदीकियां सहन नहीं हुईं और इसीलिए उस ने अपनी और मानसी की सैक्स वीडियो क्लिप बना कर एक दिन धोखे से नैतिक का मोबाइल ले कर तकनीक की मदद से मोबाइल में डाल दी, ताकि वह असली कुसूरवार नैतिक को दिखा सके और मानसी की नजरों में उसे गिरा सके.

हितेश ने यह भी कुबूल किया कि माल के अंदर वे लड़के भी भाड़े के गुरगे थे. पुलिस ने नैतिक को रिहा कर दिया. यह वैलेंटाइन डे का अगला दिन यानी 15 फरवरी का दिन था. नैतिक मानसी के दरवाजे पर सुर्ख लाल गुलाबों का बुके ले कर खड़ा था. मानसी उसे देख कर थोड़ा चकित भी हुई.

‘‘अंदर आने को नहीं कहोगी?’’ नैतिक ने पूछा.

मानसी चुपचाप अंदर चली आई और पीछे से नैतिक भी आ गया. उस ने बुके मानसी की तरफ बढ़ाया.

‘‘यह सब क्यों?’’ मानसी ने पूछा.

‘‘क्योंकि मैं चाहता हूं कि हमारी दोस्ती को एक नया नाम मिले और मैं और तुम एक रिश्ते में बांध जाएं…’’ नैतिक ने कहा.

‘‘मतलब?’’ चौंक पड़ी थी मानसी.

नैतिक ने मानसी के सामने तुरंत ही शादी का प्रस्ताव रख दिया.

‘‘पर मैं तो शादीशुदा हूं.’’

‘‘ऐसे आदमी की बीवी बनने से

क्या फायदा जो अपनी बीवी की इज्जत को पूरी दुनिया के सामने नीलाम करने से भी न हिचके,’’ नैतिक की आंखों में गुस्सा था.

कुछ देर तक खामोश रहने के बाद मानसी बोली, ‘‘पर मेरे वे वीडियो…’’

‘‘मैं ऐसी चीजों की परवाह नहीं करता… और वैसे भी मैं ने एक साइबर ऐक्सपर्ट की मदद से तुम्हारे सारे वीडियो उन साइटों से डिलीट करवा दिए हैं… अब कोई उन्हें नहीं देख सकता.’’

नैतिक के यह बात सुन कर मानसी के चेहरे पर खुशी की एक लहर दौड़ गई. मानसी ने नैतिक की प्यार भरी जिद पर उस से शादी करने के लिए हामी भर ली.

कुछ समय बाद ही मानसी ने हितेश को तलाक दे दिया. वैलेंटाइन डे तो कब का बीत गया था, पर मानसी और नैतिक के जिंदगी में वैलेंटाइन आज से शुरू हुआ था.

खूबसूरती की मल्लिका अनारा बेगम- भाग 2: एक हिंदू राजा ने मुस्लिम स्त्री से ऐसे निभाया प्यार

‘‘अच्छी बात है,’’ सहसा महाराज ने आवाज में नरमी के साथ कहा. दासी नि:शब्द वहीं हाथ जोड़े खड़ी रही.

‘‘हमें बेगम का दीदार करवाओ, हम तुम्हें मुंहमांगा इनाम देंगे.’’

‘‘जरूर दीदार करवाऊंगी, तब आप को मुझ पर यकीन हो जाएगा कि हमारी मालकिन हकीकत में हुस्न और इल्म की मलिका हैं.’’ दासी अदब के साथ बोली.

इस पर महाराजा ने तुरंत उसे एक अंगूठी बतौर बख्शीश दे दी.

बादशाह के दरबार में गजसिंह का बहुत ही मानसम्मान था. शाहजहां उन की खूब इज्जत करते थे. आनबान का विशेष खयाल रखते थे. खातिरदारी में कोई शिकायत नहीं आने देना चाहते थे. साथ ही मन ही मन डरते भी थे कि गजसिंह किसी बात को ले कर नाराज न हो जाएं.

गजसिंह दासी जरीन का बेसब्री से इंतजार  में करने लगे थे. नवाब साहब से उन्होंने खूब दोस्ती गांठ रखी थी. कभी उन के यहां जाना, तो कभी उन को अपने यहां बुलाना. यह सिलसिला चलता रहता था.

फिर एक दिन दासी जरीन आई. वह बहुत खुश थी. एकांत में गजसिंह से मिल कर बोली, ‘‘हुजूर, आज ही दोपहर को बेगम साहिबा आप का दीदार करना चाहती हैं.’’

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‘‘मगर कहां?’’ गजसिंह ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘यमुना के उस पार, पेड़ों के पीछे झुरमुट में.’’ जरीन ने महाराजा साहब से धीमे से कहा.

गजसिंह ने अपनी खुशी को बेकाबू होने से रोकते हुए कहा, ‘‘उन्हें हमारी ओर से पूरा यकीन दिला देना.’’

उस के बाद वह अपने विश्वस्त अंगरक्षकों के साथ यमुना नदी के पार समय रहते पहुंच गए. तेज धूप से रात में ठिठुरे पेड़ों और झाडि़यों को राहत मिल रही थी. यमुना का पानी भी छोटीछोटी लहरों के साथ तट से टकरा रहा था. गजसिंह ने एक घने झुरमुट में अपने सभी अंगरक्षकों को सावधान कर दिया. उस के बाद उन्होंने विशेष दासी देवली को एकांत में आने का इशारा किया.

उस के आने पर निर्देश दिया, ‘‘तुम बेगम की नाव के पास चली जाना. बेहद सावधानी से इस बात का ध्यान रखना कि आसपास कोई संदिग्ध व्यक्ति न हो.’’

‘‘आप निश्चिंत रहिए, हुजूर.’’ देवली इतना कह कर चली गई.

थोड़ी देर में एक नाव धीमी गति से आती दिखाई दी. छोटी सी नाव के तट के पास आने से पहले गजसिंह एक बड़े वृक्ष के मोटे तने के पीछे छिप गए. वह निकट आती नाव को अपलक देखने लगे. देखते ही देखते नाव तट पर आ लगी. उसे 2 मल्लाह खेव रहे थे.

उस में सवार जरीन नीचे उतरी. उस के साथ बुरके में एक और औरत थी. निश्चित तौर पर वही अनारा बेगम थी. जरीन ने इधरउधर देखा, तभी वहां देवली आ गई. जरीन के कुछ बोलने से पहले ही बोल पड़ी, ‘‘बेगम साहिबा, मैं महाराजा गजसिंह राठौड़ की खास बंदी हूं. आप मेरे साथ चलिए.’’

‘‘नहीं जरीन, हम इन्हें नहीं जानते.’’ बुरके में आई अनारा सुमधुर आवाज में बोली.

जरीन के कुछ कहनेसुनने से पहले ही गजसिंह तेजी से वृक्ष की ओट से बाहर निकल आए, ‘‘जरीन, हम यहां हैं.’’

जरीन ने इधरउधर देखा और बेगम साहिबा को ले कर एक झुरमुट में घुस गई. झुरमुट क्या था, वह पूरी तरह झाडि़यों और लताओं से चारों ओर से घिरी शांत एकांत जगह थी.

घनी लताओं में छोटेछोटे फूल भी खिले थे. वे गंधहीन थे, किंतु उन की खास किस्म की खूबसूरती सुगंधित होने का एहसास देने जैसी थी.

जरीन ने तुरंत अदब बजा कर कहा, ‘‘महाराज, मेरा ईनाम?’’

महाराजा ने भी झट से अपने गले का एक बड़ा हार उतार कर उसे सौंप दिया. जरीन थोड़ी दूर चली गई. रह गई बुरके में बेगम. अनारा बेगम. बुरके में तराशी गई प्रतिमा की तरह खड़ी सामने आई.

गजसिंह उस के समीप जा कर धीमी आवाज में बोले, ‘‘इस परदे को दूर कीजिए बेगम साहिबा.’’

कुछ पल में जैसे ही सामने खड़ी बेगम ने बुरका उतारा, उस के अद्वितीय सौंदर्य और कोमलांगी काया को देख कर गजसिंह सहसा बोल पड़े, ‘‘अति सुंदर. हम नहीं जानते थे कि यह प्यार किस किस्म का है, पर इतना जरूर है कि हम आप से मिलने को तड़प रहे थे. रातदिन बेचैनी की सांसें चल रही थीं..’’

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बेगम चुपचाप निस्तब्ध गजसिंह की बातें सुनती रही और वह लगातार बोलते जा रहे थे, ‘‘शायद इसीलिए प्रेममोहब्बत प्यार करने वालों के बारे में लोगों ने कहा है कि वे जन्मजन्मांतर से प्रेम करते आए हैं.’’

अनारा जवाब में कुछ भी नहीं बोली. तब गजसिंह उस के और समीप आ गए. बेगम का चेहरा धूपछांह वाली रोशनी में और भी चमक रहा था. हाथ में बुरका थामे खड़ी बेगम की ओर महाराजा ने हाथ बढ़ाया. थोड़ा पीछे हटती हुई अनारा बोल पड़ी, ‘‘ओह!’’

महाराजा स्तब्ध खड़े उसे निहारते रहे. बेगम साहिबा की आवाज सुनने का इंतजार करते रहे. जब वह कुछ नहीं बोली, तब वह खुद ही बोल पड़े, ‘‘जरीन सच में ही कहती थी कि हमारी अनारा बेगम साहिबा चांद का टुकड़ा हैं. उस ने आप के बारे में इस तरह बताया था कि मानो वह नहीं आप ही खुद हम से बातचीत कर रही हों. इस पहली मुलाकात में हम सब कुछ नहीं कहते हैं, सिर्फ इतना ही वादा करते हैं कि हम आप के लिए सब कुछ न्यौछावर कर सकते हैं.’’

इतना सुनने के बाद अनारा बेगम ने अपनी पंखुडि़यों सी पलकों को आहिस्ता से खोला. बहुत ही मद्धिम स्वर में बोली, ‘‘आप के बारे में बहुत कुछ सुन चुकी हूं, हम भी वफा नहीं छोड़ेंगे, आप यकीन रखें.’’

इतना सुनना था कि महाराजा का मन दहक उठा. उन्होंने बढ़ कर अनारा बेगम के हाथ थाम लिए. और उन्हें चूम कर कहा, ‘‘विदा.’’

बेगम ने सिर्फ खामोशी से सलाम किया.

उस के बाद दिनप्रतिदिन उन का प्यार बढ़ता चला गया. महाराजा गजसिंह अपना सारा धैर्य, संस्कार, सरोकार, गौरव, मानमर्यादा और अपनी आनबान को भूल कर अनारा बेगम के प्यार में खो गए.

अनारा बेगम ने भी किसी की परवाह न कर के गजसिंह को अपना तनमन समर्पित कर दिया. उन का इश्क परवान चढ़ने लगा.

वे खुलेआम मिलने लगे. उन के प्यार के चर्चे भी शुरू हो गए. मुसलमानों को यह अनुचित लगा. उन्होंने नवाब फजल से इस की शिकायत कर दी. पहले तो नवाब को विश्वास नहीं हुआ, पर बाद में जब उन्हें भी सच्चाई मालूम हुई, तब वह भी सजग हो गए.

फिर क्या था, उन्होंने अनारा पर प्रतिबंध लगा दिया. अनारा बेगम कहीं आजा नहीं सकती थीं. ड्योढ़ी पर भी कड़ा पहरा बिठा दिया गया था.

एक बार जरीन ने देवली को अपने यहां बुलवाया. बेगम ने दर्द भरे स्वर में कहा, ‘‘मैं महाराजा के पास आऊंगी. मैं उन के बिना रह नहीं सकती. उन्हें मेरी ओर से हाथ जोड़ कर कहना कि वह मुझे यहां से आजाद करवा लें.’’

देवली ने बेगम को आश्वस्त करते हुए कहा, ‘‘महाराजा तो स्वयं आप के प्यार में बेचैन हैं. उन्होंने कहा है कि आप उन से एक बार मिल लें, सिर्फ एक बार. क्या आप उन से मिल नहीं सकतीं?’’

‘‘कैसे मिल सकती हूं देवली, नवाब साहब खुद बादशाह सलामत के खास आदमी हैं. मुझे डर इस बात का है कि कहीं मेरी वजह से कोई बड़ा खूनखराबा न हो जाए.’’

‘‘मैं इस का क्या जवाब दूं? आप किसी भी तरह उन से एक बार बस मिल लीजिए.’’

कुछ क्षणों तक सन्नाटा छाया रहा. बेगम सोचती रहीं. सहसा चेहरे पर प्रसन्न्नता की रेखा उभरी. वह बोली, ‘‘महाराजा गजसिंह महल के पश्चिमी झरोखे में आ सकते हैं क्या? उन्हें कहना कि मैं वहां उन का इंतजार करूंगी.’’

देवली ने आ कर यह बात महाराजा गजसिंह को बताई. सुन कर महाराजा और भी व्याकुल हो गए. उन्हें लगा कि बेगम के बिना यह जीवन, यह भोगविलास, यह शौर्य और शानोशौकत सब व्यर्थ है. अनारा बेगम का प्यार और साहस देख कर वह बेचैन हो उठे.

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‘‘मैं आऊंगा देवली, तू बेगम से जा कर कह दे कि वह झरोखे में रस्सी की सीढि़यां बना कर डाल दें. मैं उस रस्सी से झरोखे में पहुंच जाऊंगा.’’

देवली चली गई. निश्चित समय पर महाराजा अपने व्यक्तित्व की महत्ता को भूल कर साधारण प्रेमी की भांति चल पड़े. वह हाथी पर थे. जैसे ही हाथी झरोखे के नीचे पहुंचा वैसे ही बेगम ने रस्सी की सीढि़यां लटका दीं. महाराजा पलक झपकते उस पर चढ़ गए.

‘‘बेगम!’’ गजसिंह अनारा का हाथ थामते हुए बोले.

‘‘महाराजा, आप कुछ भी कहिए, पर यह सच है कि हम मोहब्बत की राह में बहुत आगे बढ़ गए हैं. अब मैं आप के बगैर जिंदा नहीं रह सकूंगी. पता नहीं आप क्या सोचते हैं.’’ बेगम ने भी राजा का हाथ थामते हुए कहा.

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