प्यार की खातिर- भाग -2

मगर आज रात खाने के बाद जब उस ने यह बात उठाई तो कार्तिक बोला, ‘‘इस बार तो विदेश जाना जरा मुश्किल होगा.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘इसलिए कि बड़ी दीदी शकुंतला की बेटी रीना की शादी पक्की हो गई है. मैं ने तुम्हें बताया तो था… आज ही सुबह उन का फोन आया कि इसी महीने सगाई की रस्म है और हमारा वहां पहुंचना बहुत जरूरी है. आखिर मैं एकलौता मामा हूं न… भानजी की शादी में मेरी प्रमुख भूमिका रहेगी.’’

‘‘आप के घर में तो हमेशा कुछ न कुछ लगा रहता है,’’ वह मुंह बना कर बोली, ‘‘कभी किसी का जन्मदिन हैतो कभी किसी का मुंडन तो कभी कुछ और.’’

‘‘अरे जन्मदिन तो हर साल आता है. उस की इतनी अहमियत नहीं… पर शादीब्याह तो रोजरोज नहीं होते नदीदी ने बहुत आग्रह किया है कि हम जरूर आएं. वे कोई भी बहाना सुनने को तैयार नहीं हैं.’’

‘‘मैं पूछती हूं कि क्या हम कभी अपनी मरजी से नहीं जी सकते?’’

 ‘‘डार्लिंगइतना क्यों बिगड़ती हो… हम शादी की सालगिरह मनाने अगले साल भी तो जा सकते हैं… अभी से तय कर लो कि कहां जाना है और कितने दिनों के लिए जाना है… मैं सारी प्लानिंग तुम्हीं पर छोड़ता हूं.’’

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‘‘जी हांबड़ी मेहरबानी आप की… हम सारा प्लान बना लेंगे और फिर आप के घर वालों का एक फोन आएगा और सब कुछ कैंसल.’’

‘‘यह हमेशा थोड़े न होता है?’’

‘‘यह हमेशा होता है… हर बार होता है. हमारी अपनी कोई जिंदगी ही नहीं है.’’

‘‘तुम बेकार में नाराज हो रही हो… क्या मैं ने कभी तुम्हें किसी चीज से वंचित रखा हैहमेशा तुम्हारी इच्छा पूरी की है. तुम्हारे सारे नाजनखरे सहर्ष उठाता हूं.’’

‘‘इस में कौन सी बड़ी बात है…. यह तो हर पति करता हैबशर्ते वह अपनी पत्नी से प्यार करता हो.’’

‘‘तो तुम्हारा खयाल है कि मैं तुम्हें प्यार नहीं करता?’’ कार्तिक रोहिणी की आंखों में झांक कर मुसकराया.

‘‘लगता तो ऐसा ही है.’’

‘‘रोहिणीयह तुम ज्यादती कर रही हो. जानती हो मेरा तुम्हारे प्रति प्रेम देख कर मेरे यारदोस्त मुझे बीवी का गुलाम कह कर चिढ़ाते हैं.’’

‘‘अच्छावे ऐसा क्यों कहते हैं भलाजब मेरी हर बात काटी जाती है… मेरा हर प्रस्ताव ठुकराया जाता है. हांअगर कोई तुम्हें मां के पल्लू से बंधा लल्लू या बहनों का पिछलग्गू कहे तो मैं मान सकती हूं.’’

कार्तिक खिलखिला कर हंस पड़ा, ‘‘तुम्हारा भी जवाब नहीं.’’

कार्तिक ने टीवी औन कर लिया. रोहिणी थोड़ी देर बड़बड़ाती रही. वह इस मसले को कल पर नहीं छोड़ना चाहती थी. अभी कोई फैसला कर लेना चाहती थी. अत: बोली, ‘‘तो क्या तय किया तुम ने?’’

‘‘किस बारे में?’’

‘‘यह लो घंटे भर से मैं क्या बकबक किए जा रही हूं… हम इस टूअर पर जा रहे हैं या नहीं?’’

‘‘कह तो दिया भई कि इस बार जरा मुश्किल हैं. तुम तो जानती हो कि मुझे साल में सिर्फ हफ्ते की छुट्टी मिलती है. शादी में जाना जरूरी है… पर अगले साल इटली अवश्य…’’

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‘‘जी नहींमुझे तुम इन खोखले वादों से नहीं टाल सकते.’’

‘‘पर अगले साल भी इटली उसी जगह बना रहेगा और हम दोनों भी.’’

‘‘और तुम्हारा परिवार भी तो वैसे ही सहीसलामत ही रहेगा.’’

‘‘तुम कभीकभी बड़ी बचकानी बातें करती हो.’’

‘‘हांमैं तो हूं ही बेवकूफसिरफिरीअदूरदर्शी…  सारी बुराइयां मुझ में कूटकूट कर भरी हैं.’’

‘‘तुम से इस विषय में बात करना बेकार है… अभी तुम्हारा दिमाग जरा गरम है. कल

सुबह ठंडे दिमाग से इस बारे में बात करेंगे.

मैं जरा दफ्तर का जरूरी काम निबटा कर आता हूं,’’ कह कार्तिक अपने औफिसरूम में चला गया.

रोहिणी अपनी बात न मनवा पाई तो गुस्से से बिफर गई. कुछ देर वह क्रोध में भरी बैठी रही. फिर सहसा उठ कर बाहर की ओर चल दी.

कोलाबा के बाजार में अभी भी काफी चहलपहल थी. रीगल सिनेमा के पास पहुंची तो देखा कि वहां भी भीड़ है. उस ने सोचा कि टिकट खरीद कर रात का शो देख ले. घंटे आराम से बीत जाएंगे. पर फिर यह सोच कर कि इस बीच अगर कार्तिक ने उसे घर में न पाया तो वह परेशान हो जाएगा. उसे पागलों की तरह ढूंढ़ेगा. इधरउधर फोन घुमाएगाअपना इरादा बदल दिया. फिर वह गेट वे औफ इंडिया की तरफ मुड़ गई.

यहां लोग समुद्र के किनारे बैठे ठंडी हवा का लुत्फ उठा रहे थे. रोहिणी भी वहां मुंडेर पर बैठ गईर् और अपनी नजरें समुद्र के पार क्षितिज पर गड़ा दीं.

समुद्र के बीच 2-3 समुद्री जहाज लंगर डाले थे. उन की बत्तियां पानी में झिलमिला रही थीं. रोहिणी ने हसरत भरी नजरों से समुद्र की गहराइयों में झांका. बस इस अथाह जल में समाने की देर हैउस ने सोचा. एक ही पल में उस के प्राणों का अंत हो जाएगा.

उस ने मन की आंखों से देखा कार्तिक उस के निष्प्राण शरीर से लिपट कर बिलख रहा है कि हाय प्रियेमैं ने क्यों तुम्हारी बात न मानी. मैं जानता न था कि तुम इतनी सी बात पर मुझ से रूठ जाओगी और मुझे हमेशा के लिए छोड़ कर चली जाओगी.

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पर नहींवह क्यों अपनी जान दे. उस ने अभी दुनिया में देखा ही क्या है और उस के ऊपर कौन सा गमों का पहाड़ टूट पड़ा हैजो वह अपनी जान देने की सोचे. ठीक है पति से थोड़ी खटपट हुई है. यह तो हर शादीशुदा स्त्री के जीवन का हिस्सा है. कभी खुशी तो कभी गम. और सच पूछा जाए तो उस के जीवन में खुशियां ज्यादा हैं गम न के बराबर.

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प्यार की खातिर- भाग -1

Ramni Motana

हमेशा की तरह इस बार भी जब रोहिणी और कार्तिक के बीच जम कर बहस हुईतो कार्तिक झगड़ा समाप्त करने की गरज से अपने कमरे में जा कर लैपटौप में व्यस्त हो गया.

रोहिणी उत्तेजित सी कुछ देर कमरे में टहलती रही. फिर एकाएक बाहर चल दी.

गेट से निकल ही रही थी कि वाचमैन दौड़ता हुआ आया और बोला, ‘‘कहीं जाना है मेमसाबटैक्सी बुला दूं?’’

‘‘नहींमैं पास ही जा रही हूं. 10 मिनट में लौट आऊंगी.’’

रात के 10 बज रहे थेपर कोलाबा की सड़कों पर अभी भी काफी गहमागहमी थी. दुकानें अभी भी खुली हुई थीं और लोग खरीदारी कर रहे थे. रेस्तरां और हलवाईर् की दुकानों के आसपास भी भीड़ थी.

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रोहिणी के मन में खलबली मची हुई थी. आजकल जब भी उस की पति के साथ बहस होतीतो बात कार्तिक के परिवार पर ही आ कर थमती. कार्तिक अपने मातापिता का एकलौता बेटा था. अपनी मां की आंखों का ताराउन का बेहद दुलारा. उस की बड़ी बहनें थींजो उसे बेहद प्यार करती थीं और उसे हाथोंहाथ लेती थीं.

रोहिणी को इस बात से कोई परेशानी नहीं थीपर कभीकभी उसे लगता था कि उस का पति अभी भी बच्चा बना हुआ है. वह एक कदम भी अपनी मरजी से नहीं उठा सकता है. रोज जब तक दिन में एकाध बार वह अपनी मां व बहनों से बात नहीं कर लेता उसे चैन नहीं पड़ता था.

जब भी इस बात को ले कर रोहिणी भुनभुनाती तो कार्तिक कहता, ‘‘पिताजी के देहांत के बाद उन की खोजखबर लेने वाला मैं अकेला ही तो हूं. मेरे पैदा होने के बाद से मां बीमार रहतीं… मेरी तीनों बहनों ने ही मेरी परवरिश की है. मेरे पिता के देहांत के बाद मेरी मां ने मुझे बड़ी मुश्किल से पाला है. मैं उन का ऋण कभी नहीं चुका सकता.’’

ऐसी दलीलों से रोहिणी चुप हो जाती थी. पर उसे यह बात समझ में न आती थी कि बच्चों को पालपोस कर बड़ा करना हर मातापिता का फर्ज होता हैतो इस में एहसान की बात कहां से आ गईपर वह जानती थी कि कार्तिक से बहस करना बेकार था. वैसे उसे अपने पति से और कोई शिकायत नहीं थी. वह उस से बेहद प्यार करता था. वह एक भला इनसान था और उस के प्रति संवेदशील था. उसे कोफ्त केवल इस बात से होती कि उसे अपने पति का प्यार उस के घर वालों से साझा करना पड़ता है.

जब उस की शादी हुई तो कार्तिक ने उस से कहा था, ‘‘जानेमनतुम्हें पूरा अधिकार है कि तुम अपना घर जैसे चाहे सजाओजिस तरह चाहे चलाओ. मैं ने अपने को भी तुम्हारे हवाले किया. मेरी तुम से केवल एक ही गुजारिश है कि चूंकि मैं अपने परिवार से बेहद जुड़ा हुआ हूं इसलिए चाहता हूं तुम भी उन से मेलजोल रखोउन का आदरसम्मान करो. मैं अपनी मां की आंखों में आंसू नहीं देख सकता और अपनी बहनों को भी किसी भी कीमत पर दुख नहीं पहुंचाना चाहता.’’

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उसे याद आया कि अपने हनीमून पर जब वे सिंगापुर गए थेतो उन्होंने खूब मौजमस्ती की थी.

एक दिन जब वे बाजार से हो कर गुजर रहे थेतो कार्तिक एक जौहरी की दुकान के सामने ठिठक गया. बोला, ‘‘चलो जरा इस दुकान में चलते हैं.’’

वह मन ही मन पुलकित हुई कि क्या कार्तिक उसे कोई गहना खरीद कर देने वाला है.

उन्होंने दुकान में रखे काफी गहने देख डाले. फिर कार्तिक ने एक हार उठा कर कहा, ‘‘यह हार तुम्हें कैसा लगता है?’’

‘‘अरेयह तो बहुत ही खूबसूरत है,’’ खुशी से बोली.

‘‘तुम्हें पसंद है तो ले लो. हमारे हनीमून की एक यादगार भेंट’’

‘‘ओह कार्तिकतुम कितने अच्छे हो. लेकिन इतनी महंगी…?’’

‘‘कीमत की तुम फिक्र न करो और हां सुनो 1-1 गहना अपनी तीनों बहनों के लिए भी ले लेते हैं. यहां से लौटेंगे तो वे सब मुझ से किसी भेंट की अपेक्षा करेंगी.’’

सुन कर रोहिणी मन ही मन कुढ़ गई पर कुछ बोली नहीं.

‘‘और मांजी के लिए?’’ उस ने पूछा.

‘‘उन के लिए एक शाल ले लेते हैं.’’

वे घर सामान से लदेफदे लौटे. उस के बाद भी हर तीजत्योहार पर अपने परिवार के लिए तोहफे भेजता. जब भी विदेश जातातो उस के पास भानजेभानजियों की मनचाही वस्तुओं की लिस्ट पहले पहुंच जाती. अपने परिवार वालों के लिए उन के कहने की देर होती कि वह उन की फरमाइश तुरंत पूरी कर देता.

रोहिणी को इस पर कोई आपत्ति न थी. कार्तिक एक आईटी कंपनी में कार्यरत था और अच्छा कमा रहा था. उसे पूरा हक था कि वह अपनी कमाई जैसे चाहेजिस पर चाहेखर्च करे. पर उसे यह बात बुरी तरह अखरती थी कि कार्तिक के जिस कीमती समय को वह अपने लिए सुरक्षित रखना चाहती उसे भी वह बिना हिचक अपने परिवार को समर्पित कर देता. रोहिणी को अपने पति का प्यार उस के घर वालों के साथ बांटना बहुत नागवार गुजरता.

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अब आज ही की बात ले लो. उन की शादी की सालगिरह थी. वह कब से सोच रही थी कि इस बार एक शानदार जगह जा कर ठाट से छुट्टियां मनाएंगे पर सब गुड़ गोबर हो गया. जब से उस की 2-4 किट्टी पार्टी वाली सहेलियां इटली हो कर आई थीं वे लगातार उस जगह की तारीफ के पुल बांध रही थीं कि उन्होंने वहां कितना लुत्फ उठाया. सुनसुन कर उस के कान पक गए थे. उस की 1-2 सहेलियों के पति जो अरबपति थेवे उन की दौलत दोनों हाथों से लुटातीं थीं और नित नईर् साडि़यों और गहनों की नुमाइश करती थीं. इस से रोहिणी जलभुन जाती थी.

बड़ी मुश्किल से उस ने अपने पति को राजी कर लिया था कि इस बार वे भी विदेश जा कर दिल खोल कर पैसा खर्च करेंगेखूब मौजमस्ती करेंगे.

उस ने मन ही मन कल्पना की थी कि जब वह फ्रैंच शिफौन की साड़ी में लिपटीमहंगे फौरेन सैंट की खुशबू बिखेरतीहाथ में चौकलेट का डब्बा लिए किट्टी पार्टी में पहुंचेगी तो सब उसे देख कर ईर्ष्या से जल मरेंगी पर ऊपरी मन से उस की खूब तारीफ करेंगी.

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शैतान : अरलान ने रानिया के साथ कौन सा खेल खेला

शैतान भाग 1 : अरलान ने रानिया के साथ कौन सा खेल खेला

8 महीने पहले रानिया जब उस शानदार कोठी में नौकरी के लिए आई थी, तब उस ने ख्वाब में भी नहीं सोचा था कि वह उस कोठी की मालकिन भी बन सकती है. दरअसल अखबार में 3 साल की एक बच्ची की देखभाल के लिए आया के लिए एक विज्ञापन छपा था. रानिया को काम की जरूरत थी, इसलिए वह आया की नौकरी के लिए उस कोठी पर पहुंच गई थी, जिस का पता अखबार में छपे विज्ञापन में दिया था. कोठी के गेट के पास बने केबिन में बैठे गार्ड ने रानिया को रोक कर कहा, ‘‘तुम्हारे आने की खबर मेमसाहब को दे आता हूं, जब वह बुलाएंगी, तब तुम अंदर चली जाना.’’

रानिया केबिन में पड़े स्टूल पर बैठ गई थी. गार्ड खबर देने कोठी के अंदर चला गया था. रानिया को बच्चों की देखभाल करने का कोई तजुर्बा नहीं था. और तो और, घर में भाई का जो बच्चा था, उसे भी वह कम ही लेती थी.

कुछ देर बाद कोठी से एक दूसरा गार्ड आया और उस ने रानिया को अपने साथ मेमसाहब के कमरे तक पहुंचा दिया. रानिया कमरे में दाखिल हुई तो वहां बैठी महिला ने उस का मुसकरा कर स्वागत किया. वह देखने में बीमार लग रही थी.

दुबलीपतली उस महिला के चेहरे की पीली रंगत, अंदर धंसी बेनूर आंखें और पास की टेबल पर रखी दवाएं इस बात का सबूत थीं.

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उस महिला ने रानिया से सर्टिफिकेट मांगे. सर्टिफिकेट देखने के बाद उस ने कहा, ‘‘मिस रानिया फारुखी, आप को बच्ची की देखरेख करने का तो कोई तुजर्बा है नहीं, इस समय आप जहां काम कर रही हैं, वह कंपनी बहुत अच्छी है. नौकरी भी आप की योग्यता के मुताबिक है. इस के बावजूद आप आया की नौकरी क्यों करना चाहती हैं?’’

रानिया कुछ देर उसे खामोशी से देखती रही. उस के बाद सकुचाते हुए बोली, ‘‘दरअसल मैडम, रिहाइश का मसला है. मेरे भाई मुल्क से बाहर हैं, भाभी भी उन के पास जाना चाहती हैं, पर वह मुझे अकेली छोड़ना नहीं चाहतीं. मेरी वजह से वह भाई के पास नहीं जा पा रही हैं. मैं उन के रास्ते की रुकावट बन रही हूं. अगर मुझे रहने की यहां मुनासिब जगह मिल गई तो भाभी भाई के पास चली जाएंगी. अगर मैं आप के पास रहूंगी तो उन दोनों को मेरी तरफ से कोई चिंता नहीं रहेगी.’’

महिला कुछ सोच कर बोली, ‘‘मेरा नाम सोनिया है, मेरे शौहर का नाम अरसलान है. हमारी 3 साल की बच्ची फिजा है. तुम कितने भाईबहन हो?’’

‘‘हम 3 भाईबहन हैं. सब से बड़ी बहन की शादी अम्मा अपनी मौत से पहले कर गई थीं. उन से 2 साल छोटे अजहर भाई हैं, जो बाहर हैं. उन से 5 साल छोटी मैं हूं.’’

‘‘ठीक है, मैं तुम्हारी मजबूरी को देखते हुए तुम्हें नौकरी दे सकती हूं, पर मेरी एक शर्त है…’’

‘‘कैसी शर्त मैडम?’’ रानिया जल्दी से बोली.

‘‘रानिया, तुम्हें एक बांड भरना होगा, जिस के अनुसार एक साल से पहले तुम नौकरी नहीं छोड़ सकोगी. अगर उस से पहले नौकरी छोड़ोगी तो तुम्हें 5 लाख रुपए भरने होंगे. तुम इस बारे में अच्छे से सोच कर कल मुझे जवाब देना.’’

इस बीच चायनाश्ता आ गया. सोनिया ने उसे चायनाश्ता करने को कहा. चायनाश्ता कर के रानिया खड़ी हो कर बोली, ‘‘मैडम, कल मैं अपने सामान के साथ हाजिर हो जाऊंगी. अब मैं चलती हूं, वरना देर होने पर भाभी शक करेंगी.’’

रानिया खड़ी ही हुई थी कि एक बेहद खूबसूरत मर्द एक बच्ची के साथ उस कमरे में दाखिल हुआ. रानिया ने एक नजर प्यारी सी बच्ची पर डाली, उस के बाद उस की आंखें उस खूबसूरत मर्द पर जम गईं. सोनिया ने उस आदमी का परिचय कराते हुए कहा, ‘‘रानिया, यह मेरे शौहर अरसलान हैं, और यह मेरी बच्ची फिजा. अरसलान, मैं ने रानिया को अपनी बेटी की देखभाल के लिए रख लिया है.’’

अरसलान ने उचटती सी नजर रानिया पर डाली. उस के बाद सोनिया से बोला, ‘‘जैसा आप का दिल चाहे.’’

सोनिया ने बच्ची से कहा, ‘‘बेटा, यह आप की आंटी हैं. अब यह आप के साथ रहेंगी.’’ खुश हो कर बच्ची ने रानिया का हाथ पकड़ लिया, ‘‘आंटी, आप मेरे साथ रहेंगी न?’’

‘‘हां बेटा, अब मैं आप के ही साथ रहूंगी.’’ कह कर रानिया ने उसे गोद में उठा लिया.

सोनिया ने पति से कहा, ‘‘अगर तुम गुलशन इकबाल की तरफ जा रहे हो तो रानिया को चौरंगी पर छोड़ देना.’’

‘‘कोई बात नहीं. 2 मिनट लगेंगे, बस.’’ अरसलान ने अनमने ढंग से कहा.

रानिया ने जल्दी से कहा, ‘‘नहीं, मैं चली जाऊंगी.’’

सोनिया ने कहा, ‘‘नहीं, देर हो गई है. तुम्हें अरसलान छोड़ देंगे. फिर कल सवेरे तुम्हें आना भी तो है.’’

अरसलान ने फटाफट गैरेज से गाड़ी निकाली और रानिया को बैठाया. जैसे ही कार गेट से बाहर निकली, अरसलान का मूड ठीक हो गया. वह रानिया को देखते हुए बोला, ‘‘पता नहीं सोनिया ने तुम्हें काम पर कैसे रख लिया? वह तो खूबसूरत लड़कियों से चिढ़ती है. उसे तो बूढ़ी औरतें ही पसंद आती हैं. पता नहीं तुम पर वह  मेहरबान है, बहुत शक्की है वह.’’

रानिया के दिमाग में एक सवाल आया. उस ने पूछा, ‘‘वैसे मेमसाहब को हुआ क्या है. वह बीमार सी लगती हैं?’’

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अरसलान ने रानिया को गौर से देखते हुए कहा, ‘‘शादी के बाद डाक्टरों ने मना किया था कि वह मां न बने, लेकिन उस ने किसी की बात नहीं मानी. नतीजा यह निकला कि उस की यह हालत हो गई. अब उस की बीमारियों से लड़ने की ताकत खत्म हो गई है.’’

‘‘आखिर, ऐसा क्या हुआ है?’’ रानिया ने पूछा.

‘‘देखा जाए तो सोनिया अपने किए का फल भोग रही है. उस ने रूही के साथ जो किया, वही उस के साथ हो रहा है.’’

‘‘यह रूही कौन है, उस के साथ क्या किया था उन्होंने?’’ रानिया ने जिज्ञासावश पूछा.

‘‘रूही मेरी मंगेतर थी. हम एकदूसरे को बहुत चाहते थे, पर बीच में सोनिया आ टपकी. एक दिन रूही और उस के भाई का किडनैप हो गया. फिरौती की रकम 50 लाख मांगी गई. हम इतने पैसे नहीं दे सकते थे. हम ने सोनिया से मदद मांगी. उस ने हमारी मदद तो की, पर रूही लुटपिट कर घर वापस आई. उस ने उसी रात खुदकुशी कर ली.’’ अरसलान ने दुखी मन से कहा.

‘‘यह किडनैप किस ने किया था?’’ रानिया ने पूछा.

‘‘सोनिया के पिता ने और किस ने.’’ उस ने कहा, ‘‘बाप ने अगवा करवाया और बेटी पैसे ले कर मदद को आ गई. देखो रानिया, इंसान की करनी का फल यहीं मिल जाता है. सोनिया की बीमारी की खबर जब उस के पिता को मिली तो वह हार्टअटैक से मर गया.’’

‘‘क्या सोनिया मैम की बीमारी का कोई इलाज नहीं है?’’

‘‘डाक्टर उम्मीद तो दिलाते हैं, पर सब बेकार है. मैं सोनिया को यकीन तो दिलाता हूं कि उस के सिवा मेरी जिंदगी में कोई नहीं है, पर वह पूरे वक्त शक करती है, अपने मुखबिर मेरे पीछे लगाए रखती है.’’ अरसलान इतना ही कह पाया था कि उस का मोबाइल बज उठा. उस ने फोन उठाया तो दूसरी तरफ से सोनिया की आवाज आई. वह पूछ रही थी, ‘‘रानिया को छोड़ दिया क्या?’’

‘‘हां, मैं ने उसे चौरंगी पर उतार दिया.’’ फोन बंद कर के उस ने कहा, ‘‘देखो, उसे तुम पर भी यकीन नहीं है. मैं ने कह दिया, उसे चौरंगी उतार दिया है. उसे पता नहीं है कि मैं तुम्हें तुम्हारे घर के पास ही उतारूंगा.’’

‘‘अरे नहीं, आप मेरी वजह से परेशान न हों. मैं चौरंगी से चली जाऊंगी.’’ रानिया ने कहा.

‘‘इस में परेशानी वाली कोई बात नहीं है. अब यहां से तुम्हारा घर रह ही कितनी दूर गया है.’’ अरसलान ने कहा.

कुछ देर में कार रानिया के घर के पास पहुंच गई तो वह उस का शुक्रिया अदा कर के कार से उतर कर अपने घर चली गई. रानिया ने उस से भी अपने घर चलने को कहा था, पर वह फिर कभी आने की बात कह कर चला गया था.

रानिया चहकती हुई अपने घर पहुंची तो भाभी का मूड ठीक नहीं था. वह तीखे स्वर में बोली, ‘‘इतनी देर क्यों हुई?’’

रानिया जल्दी से बोली, ‘‘भाभी, मैं एक नई नौकरी के इंटरव्यू के लिए गई थी. बहुत अच्छी जौब है. सैलरी भी अच्छी है. मेरे वहां नौकरी करने से आप की एक बड़ी समस्या हल हो जाएगी.’’

भाभी ने उसे हैरानी से देखा तो वह जल्दी से बोली, ‘‘हां भाभी, मुझे मिसेज सोनिया ने अपनी 3 साल की बच्ची की देखरेख के लिए रख लिया है. अच्छी सैलरी के साथ रिहाइश, खानापीना सब फ्री है. वह 30-35 साल की बहुत अच्छी महिला हैं, बच्ची की देखरेख के लिए मुझे रखा है.’’

‘‘लेकिन तुम्हें यह काम करने का कोई अनुभव नहीं है.’’

‘‘भाभी, बच्चे प्यार व खिदमत के भूखे होते हैं. मैं यह कर लूंगी. मुझे कल 10 बजे अपना सामान ले कर जाना है. मैं आप को वहां का पता वगैरह दे दूंगी.’’

भाभी के रजामंद होने पर रानिया बेहद खुश हुई.

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अरसलान के साथ रहने के बारे में सोच कर ही रानिया का दिल धड़कने लगा. अरसलान की बातों से उसे लगा था कि अब सोनिया ज्यादा नहीं जिएगी. उस ने बीमार सोनिया की तो देखभाल की ही, साथ ही उस की बेटी फिजा को भी बहुत प्यार दिया. करीब 8 महीने बाद सोनिया की मौत हो गई. इन 8 महीनों में सोनिया ने अरसलान की हर बात उसे बता दी थी.

उस की मौत से 3 दिन पहले की बात थी. उस दिन सोनिया की तबीयत ज्यादा खराब थी. रानिया सोनिया के पास ही थी. तभी एक नौकरानी ने कमरे में आ कर कहा, ‘‘रानिया बीबी, आप को साहब ड्राइंगरूम में बुला रहे हैं.’’

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

Holi Special: अधूरी चाह- भाग 2

उस का घर शालिनी की लेन में नहीं था, बस थोड़ा लेन से कट मार कर था, इसलिए सामने से नजर नहीं आता था. 4 साल से वह शालिनी पर नजर रखे हुए था, उस की हर हरकत को नोटिस करता. उस ने शालिनी के बारे में सब जानकारी निकाल ली थी.

दरअसल, इस समय बच्चे बड़े हो रहे थे और खर्चे बढ़ने की वजह से शालिनी और संजय ने फैसला लिया कि शालिनी को कोई नौकरी करनी चाहिए, वैसे भी बच्चों की जिम्मेदारी अब थोड़ा कम है, बच्चे खुद को संभाल सकते हैं, तो शालिनी का काफी समय फ्री रहता है.

अजय श्रीवास्तव ने इसी मौके का फायदा उठाया. पहले उस ने शालिनी से जानपहचान बढ़ाई, फिर शालिनी को अपने औफिस में जौब का औफर दिया. शालिनी को भी यही चाहिए था. उस ने नौकरी जौइन कर ली.

अजय ने अपनेआप को बहुत अमीर शो किया हुआ था. शालिनी उस की गाड़ी और कपड़ों को देखती तो रश्क करती कि काश, उस के पास भी ऐसी गाड़ी हो. न जाने अजय श्रीवास्तव में शालिनी को कैसा खिंचाव महसूस हुआ कि वह उस की तरफ खिंचती चली गई.

अजय श्रीवास्तव के मातापिता की मौत हो चुकी थी, एक बहन है, उस की शादी हो गई है और अजय अभी तक कुंआरा है. वह शादी नहीं करना चाहता, क्योंकि जिस दिन शालिनी ने वहां शिफ्ट किया था, उसी दिन अजय के दिल में वह बस गई थी. 4 साल से वह राह तक रहा था कि कब और कैसे शालिनी को अपना बनाए.

आज अजय का जन्मदिन है. उस ने शालिनी को अपने घर पर बुलाया है. बस केवल शालिनी और अजय जन्मदिन मना रहे हैं, लेकिन शालिनी को उस के घर की भव्यता देख कर अच्छा लग रहा है.

अजय ने पूछा, ‘‘शालिनी, तुम्हें कैसा लगा मेरा छोटा सा आशियाना?’’

शालिनी बोली, ‘‘अजयजी, यह छोटा है? अरे, यह तो महल है महल… काश, मैं इस महल की रानी होती.’’

‘‘अरे, तो आप खुद को इस महल की रानी ही सम?ा न…’’

शालिनी शरारत से बोली, ‘‘ओहो, अच्छाजी, तो राजा कौन है?’’

‘‘डियर, तुम चाहो तो हम तैयार हैं…’’ और शालिनी को जैसे ही अजय अपनी ओर खींचना चाहता है, शालिनी खुद को उस की बांहों में सौंप देती है.

2 जवां दिल तेजी से धड़कने लगे, रगों में खून गर्मजोशी दिखाने लगा, अजय की चाहत उस की बांहों में खुद को समेटे हुए है और शालिनी की अधूरी चाह ने भी अंगड़ाई ली है. वह भी खुद को रोक नहीं पा रही, बेकाबू हो रही थी अजय में समा जाने को. दोनों के होंठ थरथराए और उल?ा गए एकदूसरे से. एक बहाव आया और दोनों को बहा कर ले गया.

आज अजय की मुराद पूरी हो गई. शालिनी को भी बहुत अच्छा लग रहा है. बहुत खुश है आज वह. घर आ कर भी चहकती रहती है.

अगले दिन जैसे ही वह नौकरी के लिए घर से निकलती है, अजय का फोन आता है, ‘शालिनी डियर, ऐसा करो तुम घर पर आ जाओ. मैं अभी घर पर हूं, बाद में साथ में औफिस चलते हैं…’

‘‘ओके, मैं आ रही हूं.’’

शालिनी अजय के घर गई तो देखा कल का सबकुछ फैला हुआ था. केक भी वहीं पड़ा था. खानेपीने का सामान जो बचा था, सब ऐसा पड़ा था.

शालिनी ने पूछा, ‘‘आज बाई नहीं आई क्या अभी तक?’’

‘‘नहीं, आज मैं ने उसे आने को मना किया, कहीं हमारे बीच में जो कल हुआ, उस के बारे में किसी चीज से उसे कोई शक न हो, इसलिए…’’

‘‘कोई बात नहीं. हम सब अभी साफसफाई कर लेते हैं और फिर औफिस चलेंगे,’’ इतना कह कर शालिनी सब साफ करने की कोशिश करती है, लेकिन अजय उस का हाथ पकड़ लेता है, ‘‘डार्लिंग रहने दो यह सब, इन में कल के प्यार की खुशबू है…’’ और दोनों एकदूसरे की तरफ देखते हैं. उन के चेहरों पर एक शरारती मुसकराहट है.

पूरा दिन दोनों घर पर रह कर ही समय बिताते हैं. ऐसा अब रोज होने लगा. शालिनी घर से औफिस की कह कर अजय के घर चली जाती और दोनों पूरा दिन घर पर मौजमस्ती करते. किसी को कानोंकान खबर नहीं थी, क्योंकि अजय ने बाई को काम से निकाल दिया था. उस के घर का सारा काम अब शालिनी करती थी.

खैर, इस तरह से कई महीने बीत गए. अजय श्रीवास्तव की कुछ पुश्तैनी जायदाद थी, जिस की घर बैठे ही आमदनी आती थी और काम चल रहा था, लेकिन ऐसा कब तक चलता आखिर बिजनैस हो या प्रोपर्टी हो, कभी तो देखभाल की जरूरत होती ही है.

अब अजय औफिस जाने लगा और शालिनी को घर पर छोड़ कर बाहर से ताला लगा कर जाता. शालिनी ही घर का सारा काम करती और सारा दिन उस के घर पर रहती.

अजय का जब जी चाहता तो घर आ जाता और फिर शाम या रात के समय ही शालिनी घर जाती. जब वह लेट हो जाती, तो काम के ज्यादा होने का बहाना करती. काम के ज्यादा होने के चलते फिर उसे घर पर आराम के लिए कहा जाता और रात का खाना संजय खुद ही मैनेज करता.

इस तरह से न तो अजय ने किसी और लड़की से शादी की, न शालिनी को ही छोड़ा. न जाने क्या था… शालिनी भी रोज इसी तरह से अजय के घर पर ही सारा दिन रहती.

जब कभी अजय के घर कोई रिश्तेदार या मेहमान आता, तो उस दिन वह शालिनी को नहीं बुलाता था और शालिनी तबीयत खराब होने का बहाना कर घर पर रहती और कहती कि औफिस से छुट्टी ले ली है, लेकिन यहां बाजी पलटती है.

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Valentine’s Special-भाग -3-अब और नहीं : आखिर क्या करना चाहती थी दीपमाला

समाज में पत्नी का दर्जा क्या होता है, भूपेश और दीपमाला के साथ रहते हुए उसे इस बात का अंदाजा हो गया था. दीपमाला की जो जगह उस घर में थी वह जगह अब उपासना लेना चाहती थी. वह सोचने लगी आखिर कब तक वह भूपेश की खेलने की चीज बन कर रहेगी. कभी न कभी तो भूपेश इस खिलौने से ऊब जाएगा. उपासना को अब अपने भविष्य की चिंता होने लगी.

भूपेश के पास ओहदा और पैसा दोनों थे. उस के साथ रह कर उपासना को अपना भविष्य सुनहरा लग रहा था. उस ने अब अपना दांव फेंकना शुरू किया. वह भूपेश पर दीपमाला को तलाक देने का दबाव डालने लगी. शातिर दिमाग भूपेश को घरवाली और बाहरवाली दोनों का सुख मिल रहा था. वह शादी के पचड़े में नहीं पड़ना चाहता था. उस ने उपासना को कई तरीकों से समझाने की कोशिश की तो वह जिद पर अड़ गई. उस ने भूपेश के सामने शर्त रख दी कि या तो वह दीपमाला को तलाक दे कर उस से शादी करे या फिर वह सदा के लिए उस से अपना रिश्ता तोड़ लेगी.

कंटीली चितवन और मदमस्त हुस्न की मालकिन उपासना को भूपेश कतई नहीं छोड़ना चाहता था. उस ने उपासना से कुछ दिन की मोहलत मांगी.

एक रात दीपमाला की नींद अचानक खुली तो उस ने पाया भूपेश बिस्तर से नदारद है. दीपमाला को बातचीत की आवाजें सुनाई दीं तो वह कमरे से बाहर आई. आवाजें उपासना के कमरे से आ रही थीं. दरवाजा पूरी तरह बंद नहीं था. एक झिरी से दीपमाला ने अंदर झांका. बिस्तर पर उपासना और भूपेश सिर्फ एक चादर लपेटे हमबिस्तर थे. दोनों इतने बेखबर थे कि उन्हें दीपमाला के वहां होने का भी पता नहीं चला.

उस दृश्य ने दीपमाला को जड़ कर दिया. उस की हिम्मत नहीं हुई कुछ देर और वहां रुकने की. जैसे गई थी वैसे ही उलटे पांव कमरे में लौट आई. आंखों से लगातार आंसू बहते जा रहे थे. उस की नाक के नीचे ये सब हो रहा था और वह बेखबर रही. वह यकीन नहीं कर पा रही थी कि इतना बड़ा विश्वासघात किया दोनों ने उस के साथ.

दीपमाला के दिल में नफरत का ज्वारभाटा उछाल मार रहा था. उस के आंसू पोंछने वाला वहां कोई नहीं था. दिमाग में बहुत से विचार कुलबुलाने लगे. अगर अभी कमरे में जा कर दोनों को जलील करे तो उस का मन शांत हो और फिर वह हमेशा के लिए यह घर छोड़ कर चली जाए. फिर उसे खयाल आया कि वह क्यों अपना घर छोड़ कर जाए. यहां से जाएगी तो उपासना जिस ने उस के सुहाग पर डाका डाला. अपने सोते हुए बच्चे पर नजर डाल दीपमाला ने खुद को किसी तरह सयंत किया और फिर एक फैसला ले लिया.

दीपमाला को नींद में बेखबर समझ बड़ी देर बाद भूपेश अपने कमरे में लौट आया और चुपचाप बिस्तर पर लेट गया मानो कुछ हुआ ही नहीं.

दूसरी सुबह जब उपासना औफिस के लिए निकली रही थी तभी दीपमाला ने उस का रास्ता रोक लिया. बोली, ‘‘सुनो उपासना अब तुम यहां नहीं रह सकती. इसलिए आज ही अपना सामान उठा कर चली जाओ,’’ दीपमाला की आंखों में उस के लिए नफरत के शोले धधक रहे थे.

‘‘यह क्या कह रही हो तुम? उपासना कहीं नहीं जाएगी,’’ भूपेश ने बीच में आते हुए कहा.

‘‘मैं ने बोल दिया है. इसे जाना ही होगा.’’

भूपेश की शह पा कर उपासना भूपेश के साथ खड़ी हो गई तो दीपमाला के तनबदन में आग लग गई.

एक तो चोरी ऊपर से सीनाजोरी, उपासना की ढिठाई देख कर दीपमाला से रहा नहीं गया. गुस्से की ज्वाला में उबलती दीपमाला ने उपासना की बांह पकड़ कर उसे लगभग धकेल दिया.

तभी एक जोरदार तमाचा दीपमाला के गाल पर पड़ा. वह सन्न रह गई. एक दूसरी औरत के लिए भूपेश उस पर हाथ उठा सकता है, वह सोच भी नहीं सकती थी. उस की आंखें भर आईं. भूपेश के रूप में एक अजनबी वहां खड़ा था उस का पति नहीं.

किसी जख्मी शेरनी सी गुर्रा कर दीपमाला बोली, ‘‘सब समझती हूं मैं. तुम इसे यहां क्यों रखना चाहते हो… कल रात अपनी आंखों से देख चुकी हूं तुम दोनों की घिनौनी करतूत.’’

मर्यादा की सारी हदें तोड़ते हुए भूपेश ने दीपमाला के सामने ही उपासना की कमर में हाथ डाल दिया और एक कुटिल मुसकान उस के होंठों पर आ गई.

‘‘चलो अच्छा हुआ जो तुम सब जान गई, तो अब यह भी सुन लो मैं उपासना से शादी करने वाला हूं और यह मेरा अंतिम फैसला है.’’

दीपमाला अवाक रह गई. उसे यकीन हो गया भूपेश अपने होशोहवास में नहीं है. जो कुछ कियाधरा है उपासना का किया है.

‘‘तुम अपने होश में नहीं हो भूपेश… यह हम दोनों के बीच नहीं आ सकती… मैं तुम्हारी बीवी हूं.’’

‘‘तुम हम दोनों के बीच आ रही हो. मैं अब तुम्हारे साथ एक पल भी नहीं रहना चाहता,’’ भूपेश ने बिना किसी लागलपेट के दोटूक जवाब दिया.

दीपमाला अपने ही घर में अपराधी की तरह खड़ी थी. भूपेश और उपासना एक पलड़े में थे और उन का पलड़ा भारी था.

जिस आदमी के साथ ब्याह कर वह इस घर में आई थी, वही अब उस का नहीं रहा तो उस घर में उस का हक ही क्या रह जाता है.

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Valentine’s Special-अब और नहीं : आखिर क्या करना चाहती थी दीपमाला

Valentine’s Special-भाग -2-अब और नहीं : आखिर क्या करना चाहती थी दीपमाला

दीपमाला की डिलीवरी का समय नजदीक था. भूपेश ने उस के जाने का इंतजाम कर दिया. दीपमाला अपनी मां के घर चली आई. अपने मायके पहुंचने के कुछ दिन बाद ही दीपमाला ने एक बेटे को जन्म दिया. उस की खुशी का ठिकाना नहीं था. उस के दिनरात नन्हे अंशुल के साथ बीतने लगे. 4 दिन दीपमाला और बच्चे के साथ रह कर भूपेश औफिस में जरूरी काम की बात कह कर लौट आया. दीपमाला के न रहने पर वह अब बिलकुल आजाद पंछी था. उस की और उपासना की प्रेमलीला परवान चढ़ रही थी. औफिस में लोग उन के बारे में दबीछिपी बातें करने लगे थे, मगर भूपेश को अब किसी की परवाह नहीं थी. वह हर हालत में उपासना का साथ चाहता था.

कुछ महीने बीते तो दीपमाला ने भूपेश को फोन कर के बताया कि वह अब घर आना चाहती है. जवाब में भूपेश ने दीपमाला को कुछ दिन और आराम करने की बात कही. दीपमाला को भूपेश की बात कुछ जंची नहीं, मगर उस के कहने पर वह कुछ दिन और रुक गई. 3 महीने बीतने को आए, मगर भूपेश उसे लेने नहीं आया तो उस ने भूपेश को बताए बिना खुद ही आने का फैसला कर लिया.

दरवाजे की घंटी पर बड़ी देर तक हाथ रखने पर भी जब दरवाजा नहीं खुला तो दीपमाला को फिक्र होने लगी. ‘आज इतवार है. औफिस नहीं गया होगा. दरवाजे पर ताला भी नहीं है. इस का मतलब कहीं बाहर भी नहीं गया है. तो फिर इतनी देर क्यों लग रही है उसे दरवाजा खोलने में?’ वह सोचने लगी.

कंधे पर बैग उठाए और एक हाथ से बच्चे को गोद में संभाले वह अनमनी सी खड़ी थी कि खटाक से दरवाजा खुला.

एक बिलकुल अनजान लड़की को अपने घर में देख दीपमाला हैरान रह गई. वह कुछ पूछ पाती उस से पहले ही उपासना बिजली की तेजी से वापस अंदर चली गई. भूपेश ने दीपमाला को यों इस तरह अचानक देखा तो उस की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. उस के माथे पर पसीना आ गया.

उस का घबराया चेहरा और घर में एक पराई औरत को अपनी गैरमौजूदगी में देख दीपमाला का माथा ठनका. गुस्से में दीपमाला की त्योरियां चढ़ गईं. पूछा, ‘‘कौन है यह और यहां क्या कर रही है तुम्हारे साथ?’’

भूपेश अपने शातिर दिमाग के घोड़े दौड़ाने लगा. उपासना उस के मातहत काम करती है, यह बताने के साथ ही उस ने दीपमाला को एक झूठी कहानी सुना डाली कि किस तरह उपासना इस शहर में नई आई है. रहने की कोई ढंग की जगह न मिलने की वजह से वह उस की मदद इंसानियत के नाते कर रहा है.

‘‘तो तुम ने यह मुझे फोन पर क्यों नहीं बताया? तुम ने मुझ से पूछना भी जरूरी नहीं समझा कि हमारे साथ कोई रह सकता है या नहीं?’’

‘‘यह आज ही तो आई है और मैं तुम्हें बताने ही वाला था कि तुम ने आ कर मुझे चौंका दिया. और देखो न मुझे तुम्हारी और मुन्ने की कितनी याद आ रही थी,’’ भूपेश ने उस की गोद से ले कर अंशुल को सीने से लगा लिया. दीपमाला का शक अभी भी दूर नहीं हुआ कि तभी उपासना बेहद मासूम चेहरा बना कर उस के पास आई.

‘‘मुझे माफ कर दीजिए, मेरी वजह से आप लोगों को तकलीफ हो रही है. वैसे इस में इन की कोई गलती नहीं है. मेरी मजबूरी देख कर इन्होंने मुझे यहां रहने को कहा. मैं आज ही किसी होटल में चली जाती हूं.’’

‘‘इस शहर में बहुत से वूमन हौस्टल भी तो हैं, तुम ने वहां पता नहीं किया?’’ दीपमाला बोली.

‘‘जी, हैं तो सही, लेकिन सब जगह किसी जानपहचान वाले की गारंटी चाहिए और यहां मैं किसी को नहीं जानती.’’

भूपेश और उपासना अपनी मक्कारी से दीपमाला को शीशे में उतारने में कामयाब हो गए. दीपमाला उन दोनों की तरह चालाक नहीं थी. उपासना के अकेली औरत होने की बात से उस के दिल में थोड़ी सी हमदर्दी जाग उठी. उन का गैस्टरूम खाली था तो उस ने उपासना को कुछ दिन रहने की इजाजत दे दी.

भूपेश की तो जैसे बांछें खिल गईं. एक ही छत के नीचे पत्नी और प्रेमिका दोनों का साथ उसे मिल रहा था. वह अपने को दुनिया का सब से खुशनसीब मर्द समझने लगा.

दीपमाला के आने के बाद भूपेश और उपासना की प्रेमलीला में थोड़ी रुकावट तो आई पर दोनों अब होशियारी से मिलतेजुलते. कोशिश होती कि औफिस से भी अलगअलग समय पर निकलें ताकि किसी को शक न हो. दीपमाला के सामने दोनों ऐसे पेश आते जैसे उन का रिश्ता सिर्फ औफिस तक ही सीमित हो.

दीपमाला घर की मालकिन थी तो हर काम उस की मरजी से होता था. थोड़े ही अंतराल बाद उपासना उस की स्थिति की तुलना खुद से करने लगी थी. उस के तनमन पर भूपेश अपना हक जताता था, मगर उन का रिश्ता कानून और समाज की नजरों में नाजायज था. औफिस में वह सब के मनोरंजन का साधन थी, सब उस से चुहल भरे लहजे में बात करते, उन की आंखों में उपासना को अपने लिए इज्जत कम और हवस ज्यादा दिखती थी.

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Valentine’s Special-भाग -4-अब और नहीं : आखिर क्या करना चाहती थी दीपमाला

बसीबसाई गृहस्थी उजड़ चुकी थी. भूपेश ने जब तलाक का नोटिस भिजवाया तो दीपमाला की मां और भाई का खून खौल उठा. वे किसी भी कीमत पर भूपेश को सबक सिखाना चाहते थे, जिस ने दीपमाला की जिंदगी से खिलवाड़ किया. रहरह कर दीपमाला को वह थप्पड़ याद आता जो भूपेश ने उसे उपासना की खातिर मारा था.

दीपमाला के दिल में भूपेश की याद तक मर चुकी थी. उस ने ठंडे लहजे में घर वालों को समझाबुझा लिया और तलाकनामे पर हां की मुहर लगा दी. जिस रिश्ते की मौत हो चुकी थी उसे कफन पहनाना बाकी था.

वक्त ने गम का बोझ कुछ कम किया तो दीपमाला अपने आपे में लौटी. अपने घर वालों पर मुहताज होने के बजाय उस ने फिर से नौकरी करने का फैसला लिया. दीपमाला दिल कड़ा कर चुकी थी. नन्ही जान को अपनी मां की देखरेख में छोड़ वह उसी शहर में चली आई, जिस ने उस का सब कुछ छीन लिया था. सीने में धधकती आग ले कर दीपमाला ने अपने को काम के प्रति समर्पित कर दिया. जिंदगी की गाड़ी एक बार फिर पटरी पर आने लगी.

ब्यूटी सैलून में उस के हाथों के हुनर के ग्राहक कायल थे. उसे अपने काम में महारत हासिल हो चुकी थी. कुछ समय बाद ही दीपमाला ने नौकरी छोड़ दी. अब वह खुद का काम शुरू करना चाहती थी. अपने बेटे की याद आते ही तड़प उठती. वह उसे अपने पास रखना चाहती थी, मगर फिलहाल उसे किसी ढंग की जगह की जरूरत थी जहां वह अपना सैलून खोल सके.

तलाक के बाद कोर्ट के आदेश पर दीपमाला को भूपेश से जो रुपए मिले उन में अपनी कुछ जमापूंजी मिला कर उस के पास इतना पैसा हो गया कि वह अपना सपना पूरा कर सकती थी.

अपने सैलून के लिए जगह तलाश करने की दौड़धूप में उस की मुलाकात प्रौपर्टी डीलर अमित से हुई, जिस ने दीपमाला को शहर के कुछ इलाकों में कुछ जगहें दिखाईं. असमंजस में पड़ी दीपमाला जब कुछ तय नहीं कर पाई तो अमित ने खुद ही उस की परेशानी दूर करते हुए एक अच्छी रिहायशी जगह में उसे जगह दिलवा दी. अपना कमीशन भी थोड़ा कम कर दिया तो दीपमाला अमित की एहसानमंद हो गई.

अमित के प्रौपर्टी डीलिंग के औफिस के पास ही दीपमाला का सैलून खुल गया. आतेजाते दोनों की अकसर मुलाकात हो जाती. कुछ समय बाद उन का साथ उठनाबैठना भी हो गया.

अमित दीपमाला के अतीत से वाकिफ था, बावजूद इस के वह कभी भूल से भी दीपमाला को पुरानी बातें याद नहीं करने देता. उस की हमदर्दी भरी बातें दीपमाला के टूटे मन को सुकून देतीं. जिंदगी ने मानो हंसनेमुसकराने का बहाना दे दिया था.

दोस्ती कुछ गहरी हुई तो दोनों की शामें साथ गुजरने लगीं. शहर में अकेली रह रही दीपमाला पर कोई बंदिश नहीं थी. वह जब चाहती तब अमित की बांहों में चली आती.

एक सुहानी शाम दीपमाला की गोद में सिर रख कर उस के महकते आंचल से आंखें मूंदे लेटे अमित से दीपमाला ने पूछा, ‘‘अमित हम कब तक यों ही मिलते रहेंगे. क्या कोई भविष्य है इस रिश्ते का?’’

रोमानी खयालों में डूबा अमित एकाएक पूछे गए इस सवाल से चौंक गया. बोला, ‘‘जब तक तुम चाहो दीप, मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगा.’’

दीपमाला खुद तय नहीं कर पा रही थी कि इस रिश्ते का कोई अंजाम भी है या नहीं. किसी की प्रेमिका बन कर प्यार का मीठा फल चखने में उसे आनंद आने लगा था, पर यह साथ न जाने कब छूट जाए, इस बात से उस का दिल डरता था.

जब अमित ने उसे बताया कि उस के घर वाले पुराने विचारों के हैं तो दीपमाला को यकीन हो गया कि उस के तलाकशुदा होने की बात जान कर वे अमित के साथ उस की शादी को कभी स्वीकार नहीं करेंगे. आने वाले कल का डर मन में छिपा था, मगर अपने वर्तमान में वह अमित के साथ खुश थी.

अमित की बाइक पर उस के साथ सट कर बैठी दीपमाला को एक दिन जब भूपेश ने बाजार में देखा तो वह नाग की तरह फुफकार उठा. दीपमाला अब उस की पत्नी नहीं थी, यह बात जानते हुए भी दीपमाला का किसी और मर्द के साथ इस तरह घूमनाफिरना उसे नागवार गुजरा. उस की कुंठित मानसिकता यह बात हजम नहीं कर पा रही थी कि उस की छोड़ी हुई औरत किसी और मर्द के साथ गुलछर्रे उड़ाए.

घर आ कर भूपेश बहुत देर तक उत्तेजित होता रहा. दीपमाला उस आदमी के साथ कितनी खुश लग रही थी, उसे यह बात रहरह कर दंश मार रही थी. उपासना से शादी कर के उस के अहं को संतुष्टि तो मिली, लेकिन उपासना दीपमाला नहीं थी. शादी के बाद भी उपासना पत्नी न हो कर प्रेमिका की तरह रहती थी. घर के कामों में बिलकुल फूहड़ थी.

उस की फजूलखर्ची से भूपेश अब परेशान रहने लगा था. कभी उस पर झुंझला उठता तो उपासना उस का जीना हराम कर देती, तलाक और पुलिस की धमकी देती.

जो शारीरिक सुख उपासना से प्रेमिका के रूप में मिल रहा था वह उस के पत्नी बनते ही नीरस लगने लगा. इश्क का भूत जल्दी ही सिर से उतर गया.

दीपमाला के साथ शादी के शुरुआती दिनों की कल्पना कर के भूपेश के मन में बहुत से विचार आने लगे. वह एक बार फिर दीपमाला के संग के लिए उत्सुक होने लगा. खाने की थाली की तरह जिस्म की भूख भी स्वाद बदलना चाहती थी.

किसी तरह दीपमाला के घर और सैलून का पता लगा कर एक दिन वह दीपमाला के फ्लैट पर आ धमका. एक अरसे बाद अचानक उसे सामने देख दीपमाला चौंक उठी कि भूपेश को आखिर उस का पता कैसे मिला और अब यहां क्या करने आया है?

‘‘कैसी हो दीपमाला? बिलकुल बदल गई हो… पहचान में ही नहीं आ रही,’’ भूपेश ने उसे भरपूर नजरों से घूरा.

दीपमाला संजसंवर कर रहती थी ताकि उस के सैलून में ग्राहकों का आना बना रहे. अब वह आधुनिक फैशन के कपड़े भी पहनने लगी थी. सलीके से कटे बाल और आत्मनिर्भरता के भाव उस के चेहरे की रौनक बढ़ा रहे थे. उस का रंगरूप भी पहले की तुलना में निखर आया था.

कांच के मानिंद टूटे दिल के टुकड़े बटोरते उस के हाथ लहूलुहान भी हुए थे, मगर उस ने अपनी हिम्मत कभी नहीं टूटने दी. वह अब जीवन की हर मुश्किल का सामना कर सकती थी तो फिर भूपेश क्या चीज थी.

‘‘किस काम से आए हो?’’ उस ने बेहद उपेक्षा भरे लहजे में पूछा. उस की बेखौफी देख भूपेश जलभुन गया, लेकिन फौरन उस ने पलटवार किया, ‘‘मैं अपने बेटे से मिलने आया हूं. तुम ने मुझे मेरे ही बेटे से अलग कर दिया है.’’

‘‘आज अचानक तुम्हें बेटे पर प्यार कैसे आ गया? इतने दिनों में तो एक बार भी खबर नहीं ली उस की,’’ एक व्यंग्य भरी मुसकराहट दीपमाला के अधरों पर आ गई.

‘‘तुम्हें क्या लगता है मैं अंशुल से प्यार नहीं करता? बाप हूं उस का, जितना हक तुम्हारा है उतना मेरा भी है.’’

‘‘तो तुम अब हक जताने आए हो? कानून ने तुम्हें बेशक हक दिया है, मगर वह मेरा बेटा है,’’ दीपमाला ने कहा.

बेटे से मिलना बस एक बहाना था भूपेश के लिए. उसे तो दीपमाला के साथ की प्यास थी. बोला, ‘‘सुनो दीपमाला, मैं तुम्हारा गुनाहगार हूं. मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई… हो सके तो मुझे माफ कर दो.’’

भूपेश के तेवर अचानक नर्म पड़ गए. उस ने दीपमाला का हाथ पकड़ लिया.

तभी एक झन्नाटेदार तमाचा भूपेश के गाल पर पड़ा. दीपमाला ने बिजली की फुरती से फौरन अपना हाथ छुड़ा लिया.

भूपेश का चेहरा तमतमा गया. इस खातिरदारी की तो उसे उम्मीद ही नहीं थी. वह कुछ बोलता उस से पहले ही दीपमाला गुर्राई, ‘‘आज के बाद दोबारा मुझे छूने की हिम्मत की तो अंजाम इस से भी बुरा होगा. यह मत भूलो कि तुम अब मेरे पति नहीं हो और एक गैरमर्द मेरा हाथ इस तरह नहीं पकड़ सकता, समझे तुम? अब दफा हो जाओ यहां से.’’

उसे एक भद्दी सी गाली दे कर भूपेश बोला, ‘‘सतीसावित्री बनने का नाटक कर रही हो. किसकिस के साथ ऐयाशी करती हो सब जानता हूं, अगर उन के साथ तुम खुश रह सकती हो तो मुझ में क्या कमी है? मैं अगर चाहूं तो तुम्हारी इज्जत सारे शहर में उछाल सकता हूं… इस थप्पड़ का बदला तो मैं ले कर रहूंगा और फिर दीपमाला को बदनाम करने की धमकी दे कर भूपेश वहां से चला गया.

कितना नीच और कू्रर हो चुका है भूपेश… दीपमाला की सहनशक्ति जवाब दे गई. वह तकिए पर सिर रख कर खुद पर रोती रही, जुल्म उस पर हुआ था, लेकिन कुसूरवार उसे ठहराया जा रहा था.

इस मुश्किल की घड़ी में उसे अमित की जरूरत होने लगी. उस के प्यार का मरहम उस के दिल को सुकून दे सकता था. उस ने अपने फोन पर अमित का नंबर मिलाया. कई बार कोशिश करने पर भी जब उस ने फोन नहीं उठाया तो वह अपना पर्स उठा कर उस से मिलने चल पड़ी.

भूपेश किसी भी हद तक जा सकता है, यह दीपमाला को यकीन था. वह चुप नहीं बैठेगा. अगर उस की बदनामी हई तो उस के सैलून के बिजनैस पर असर पड़ सकता है. वह अमित से मिल कर इस मुश्किल का कोई हल ढूंढ़ना चाहती थी. क्या पता उसे पुलिस की भी मदद लेनी पड़े.

अमित के औफिस में ताला लगा देख कर वह निराश हो गई. अमित उस के एक बार बुलाने पर दौड़ा चला आता था, फिर आज उस का फोन क्यों नहीं उठा रहा? उसे याद आया जब वह पहली बार अमित से मिली थी तो उसे अपना विजिटिंग कार्ड दिया था. उस ने पर्स टटोला, कार्ड मिल गया. औफिस और घर का पता उस में मौजूद था. उस ने पास से गुजरते औटो को हाथ दे कर रोका और पता बताया. धड़कते दिल से दीपमाला ने फ्लैट की घंटी बजाई. एक आदमी ने दरवाजा खोला. दीपमाला ने उस से अमित के बारे में पूछा तो वह अंदर चला गया. थोड़ी देर बाद एक औरत बाहर आई. बोली, ‘‘जी कहिए, किस से मिलना है? लगभग उस की ही उम्र की दिखने वाली उस औरत ने दीपमाला से पूछा.’’

‘‘मैं अमित से मिलने आई हूं. क्या यह उन का घर है?’’ पूछते हुए उसे थोड़ा अटपटा लगा कि पता नहीं यह सही पता है भी या नहीं.

‘‘मैं अमित की पत्नी हूं. क्या काम है आप को? आप अंदर आ जाइए,’’ अमित की पत्नी विनम्रता से बोली.

दीपमाला ने उस औरत को करीब से देखा. वह सुंदर और मासूम थी, मांग में सिंदूर दमक रहा था और चेहरे पर एक पत्नी का विश्वास.

कुछ रुक कर अपनी लड़खड़ाती जबान पर काबू पा कर दीपमाला बोली, ‘‘कोई खास बात नहीं थी. मुझे एक मकान किराए पर चाहिए था. उसी सिलसिले में बात करनी थी.’’

‘‘मगर आप ने अपना नाम तो बताया नहीं… मैं अपने पति को कैसे आप का संदेश दूंगी.’’

‘‘वे खुद समझ जाएंगे,’’ और दीपमाला पलट कर तेज कदमों से मकान की सीढि़यां उतर सड़क पर आ गई.

अजीब मजाक किया था कुदरत ने उस के साथ. उस ने शुक्र मनाया कि उस की आंखें समय रहते खुल गईं.

अमित ने भी वही दोहराया था जो भूपेश ने उस के साथ किया था. एक बार फिर से वह ठगी गई थी. मगर इस बार वह मजबूती से अपने पैरों पर खड़ी थी. जिस जगह पर कभी उपासना खड़ी थी, उसी जगह उस ने आज खुद को पाया. क्या फर्क था भला उस में और उपासना में? दीपमाला ने सोचा.

नहीं, बहुत फर्क है, उस का जमीर अभी मरा नहीं, वह इतनी खुदगर्ज नहीं हो सकती कि किसी का बसेरा उजाड़े. जो गलती उस से हो गई है उसे अब वह दोहराएगी नहीं. उस ने तय कर लिया अब वह किसी को अपने दिल से खेलने नहीं देगी. बस अब और नहीं.

Valentine’s Special-भाग -1-अब और नहीं : आखिर क्या करना चाहती थी दीपमाला

नन्हीगौरैया ने बड़ी कोशिश से अपना घोंसला बनाया था. घास के तिनके फुरती से बटोर कर लाती गौरैया को देख कर दीपमाला के होंठों पर मुसकान आ गई. हाथ सहज ही अपने पेट पर चला गया. पेट के उभार को सहलाते हुए वह ममता से भर उठी. कुछ ही दिनों में एक नन्हा मेहमान उस के आंगन में किलकारियां मारेगा. तार पर सूख रहे कपड़े बटोर वह कमरे में आ गई. कपड़े रख कर रसोई की तरफ मुड़ी ही थी कि तभी डोरबैल बजी.

‘‘आज तुम इतनी जल्दी कैसे आ गई?’’ घर में घुसते ही भूपेश ने पूछा.

‘‘आज मन नहीं किया काम पर जाने का. तबीयत कुछ ठीक नहीं है,’’ दीपमाला ने जवाब दिया.

दीपमाला इस आस से भूपेश के पास खड़ी रही कि तबीयत खराब होने की बात जान कर वह परेशान हो उठेगा. गले से लगा कर प्यार से उस का हाल पूछेगा, मगर बिना कुछ कहेसुने जब वह हाथमुंह धोने बाथरूम में चला गया तो बुझी सी दीपमाला रसोई की ओर चल पड़ी.

शादी के 4 साल बाद दीपमाला मां बनने जा रही थी. उस की खुशी 7वें आसमान पर थी, मगर भूपेश कुछ खास खुश नहीं था. दीपमाला अकेली ही डाक्टर के पास जाती, अपने खानेपीने का ध्यान रखती और अगर कभी भूपेश को कुछ कहती तो काम की व्यस्तता का रोना रो कर वह अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ लेता. वह बड़ी बेसब्री से दिन गिन रही थी. बच्चे के आने से भूपेश को शायद कुछ जिम्मेदारी का एहसास हो जाए, शायद उस के अंदर भी नन्ही जान के लिए प्यार उपजे, इसी उम्मीद से वह सब कुछ अपने कंधों पर संभाले बैठी थी.

कुछ ही दिनों की तो बात है. बच्चे के आने से सब ठीक हो जाएगा, यही सोच कर उस ने काम पर जाना नहीं छोड़ा. जरूरत भी नहीं थी, क्योंकि उस की और भूपेश की कमाई से घर मजे से चल रहा था. पार्लर की मालकिन दीपमाला के हुनर की कायल थी. एक तरह से दीपमाला के हाथों का ही कमाल था जो ग्राहकों की संख्या में बढ़ोतरी हुई थी. दीपमाला के इस नाजुक वक्त में सैलून की मालकिन और बाकी लड़कियां उसे पूरा सहयोग देतीं. उस का जब कभी जी मिचलाता या तबीयत खराब लगती तो वह काम से छुट्टी ले लेती.

एक प्राइवेट कंपनी में मैनेजर भूपेश स्वभाव से रूखा था. उस के अधीन 2-4 लोग काम करते थे. उस के औफिस में एक पोस्ट खाली थी, जिस के लिए विज्ञापन दिया गया था. कंपनी में ग्राहक सेवा के लिए योग्यता के साथसाथ किसी मिलनसार और आकर्षक व्यक्तित्व की जरूरत थी.

एक दिन तीखे नैननक्शों वाली उपासना नौकरी के आवेदन के लिए आई. उस की मधुर आवाज और व्यक्तित्व से प्रभावित हो कर और कुछ उस के पिछले अनुभव के आधार पर उस का चयन कर लिया गया. भूपेश के अधीनस्थ होने के कारण उसे काम सिखाने की जिम्मेदारी भूपेश पर थी.

उपासना उन लड़कियों में से थी जिन्हें योग्यता से ज्यादा अपनी सुंदरता पर भरोसा होता है. अब तक के अपने अनुभवों से वह जान चुकी थी कि किस तरह अदाओं के जलवे दिखा कर आसानी से सब कुछ हासिल किया जा सकता है. छोटे शहर से आई उपासना कामयाबी की मंजिल छूना चाहती थी. कुछ ही दिनों बाद वह समझ गई कि भूपेश उस पर फिदा है. फिर इस बात का वह भरपूर फायदा उठाने लगी.

उपासना का जादू भूपेश पर चला तो वह उस पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान रहने लगा. उपासना बहाने बना कर औफिस के कामों को टाल देती जिन्हें भूपेश दूसरे लोगों से करवाता. अकसर बेवजह छुट्टी ले कर मौजमस्ती करने निकल पड़ती. उसे बस उस पैसे से मतलब था जो उसे नौकरी से मिलते थे. साथ में काम करने वाले भूपेश के दबदबे की वजह से उपासना की हरकतों को नजरंदाज कर देते.

अपने यौवन और शोख अदाओं के बल पर उपासना भूपेश के दिलोदिमाग में पूरी तरह उतर गई. उस की और भूपेश की नजदीकियां बढ़ने लगीं. काम के बाद दोनों कहीं घूमने निकल जाते. उसे खुश करने के लिए भूपेश उसे महंगे तोहफे देता. आए दिन किसी पांचसितारा होटल में लंच या डिनर पर ले जाता. भूपेश का मकसद उपासना को पूरी तरह से हासिल करना था और उपासना भी खूब समझती थी कि क्यों भूपेश उस के आगेपीछे भंवरे की तरह मंडरा रहा है.

पहले भूपेश औफिस से घर जल्दी आता था तो दोनों साथ में खाना खाते, अब देर रात तक दीपमाला उस का इंतजार करती रहती और फिर अकेली ही खा कर सो जाती. कुछ दिनों से भूपेश के रंगढंग बदल गए थे. औफिस में भी सजधज कर जाता. उधर इन सब बातों से बेखबर दीपमाला नन्हें मेहमान की कल्पना में डूबी रहती. उस की दुनिया सिमट कर छोटी हो गई थी.

एक रोज धोने के लिए कपड़े निकालते वक्त उसे भूपेश की पैंट की जेब से फिल्म के 2 टिकट मिले. उसे थोड़ी हैरानी हुई. भूपेश फिल्मों का शौकीन नहीं था. कभी कोई अच्छी फिल्म लगी होती तो दीपमाला ही जबरदस्ती उसे खींच ले जाती.

उस ने भूपेश से इस बारे में पूछा. टिकट की बात सुन कर वह कुछ सकपका गया. फिर तुरंत संभल कर उस ने बताया कि औफिस के एक सहकर्मी के कहने पर वह चला गया था. बात आईगई हो गई.

इस बात को कुछ ही दिन बीते थे कि एक दिन भूपेश के बटुए में दीपमाला को सुनार की दुकान की एक परची मिली. शंकित दीपमाला ने भूपेश के घर लौटते ही उस पर सवालों की बौछार कर दी.

उपासना को जन्मदिन में देने के लिए भूपेश ने एक गोल्ड रिंग बुक करवाई थी, लेकिन किसी शातिर अपराधी की तरह भूपेश उस दिन सफेद झूठ बोल गया. अपने होने वाले बच्चे का वास्ता दे कर.

उस ने दीपमाला को यकीन दिला दिया कि उस के दोस्त ने अपनी पत्नी को सरप्राइज देने के लिए ही परची उस के पास रखवाई है. इस घटना के बाद से भूपेश कुछ सतर्क रहने लगा. अपनी जेब में कोई सुबूत नहीं छोड़ता था.

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