Father’s Day Special- मौहूम सा परदा: भाग 3

‘अब्बू इतनी सुबह गए कहां’, इस प्रश्न पर सोचतेसोचते दोनों लड़के आपस में उलझ गए. साजिद ने साफ कह दिया, ‘‘गलती शाहिद भाई की है. अम्मी ने हमारे साथ कभी कोई बदसलूकी नहीं की. बल्कि हमेशा प्यार से हमारी परवरिश की. फिर शाहिद भाई के मन में ऐसे खयालात कैसे पैदा हुए जिन की वजह से कल उस ने अब्बू के सामने अम्मी के खिलाफ ऐसी बेहूदा बातें कीं. अगर किसी वजह से उन को निजी तौर पर अम्मी के खिलाफ कुछ शिकायत थी तो उसे मोहूम से परदे में ही रहने देते. इस तरह अब्बू के सामने उन्हें पेश कर के क्या हासिल हुआ. अरे, कुछ हासिल होना तो दूर, मुझे तो ऐसा लगता है कि हम कहीं अब्बू को खो न दें.’’ इतना कह कर साजिद चुप हो गया.

थोड़ी देर खामोशी पसरी रही, फिर साजिद ही बोला, ‘‘चलो, अब चल कर ढूंढ़ो तो सही, अब्बू गए कहां हैं, आखिरकार,’’ दोनों भाई चलने को तैयार हुए ही थे कि दरवाजे की घंटी बजी. गेट पर एक आटो चालक को खड़ा देख कर शाहिद भिनभिनाया, ‘‘अब यह कौन है, एक नई मुसीबत सुबह ही सुबह?’’

‘‘अरे चुप रहिए, देखिए, कहीं अब्बू ही न हों,’’ शाहिद की बीवी ने डांटते हुए कहा.

आटोरिक्शा वाला घर के लोगों को बाहर आया देख कर गेट खोल कर अंदर आ गया और बोला, ‘‘हजरात, आप जनाब डा. साहब के साहबजादे ही हैं न?’’

‘‘हां, मगर आप कौन हैं. और डाक्टर साहब यानी हमारे अब्बू कहां हैं?’’

दोनों के सवाल के जवाब में आटोचालक बोला, ‘‘साहबान, हमारा नाम रमजानी है, हम आप के पास की कच्ची बस्ती में ही रहते हैं. पहले यूनिवर्सिटी की डिलीवरी वैन चलाते थे. 3 साल से रिटायर हो गए. रिटायर होने से गुजरबसर में परेशानी होने लगी तो डाक्टर साहब ने हमें यह आटोरिक्शा अपनी जमानत पर फाइनैंस करा दिया. आज सवेरे 4 बजे के करीब डाक्टर साहब हमारे घर आए और बोले, ‘रमजानी, तुम्हें बेवक्त जगा कर तकलीफ दे रहे हैं लेकिन अगर तुम हमें अभी एअरपोर्ट छोड़ दोगे तो हमें सुबह 6 बजे दिल्ली के लिए फ्लाइट मिल जाएगी और वहां से शाम को हमें लंदन की फ्लाइट मिल जाएगी. तुम्हारी भाभी को वहां अपने इस पुराने सितार की बड़ी जरूरत है. अगर यह मेहरबानी कर दो तो काम बन जाएगा.’

‘‘हजरात, डाक्टर साहब के ये शब्द सुन कर हम तो शर्म से ऐसे गड़़ गए कि उन्हें सलाम करना तक भूल गए. जल्दी से कपड़े पहने, आटो निकाला और उन्हें बिठा कर चल दिए. एअरपोर्ट पहुंच कर वे आटो से उतरे, सितार निकाला और हजार का एक नोट हमारे हाथ में थमा कर बोले, ‘रमजानी, मेरे पास छुट्टा नहीं हैं, तुम्हारी बोहनी का समय है, रख लो. देखो, मना मत करना.’ यह कह कर हमारी मुट्ठी बंद कर के तेजी से एअरपोर्ट की बिल्ंिडग में दाखिल हो गए. हम तो बोडम की तरह देखते ही रह गए. भैया, हम डाक्टर साहब की बहुत इज्जत करते हैं. सो, एअरपोर्ट तक का किराया 120 रुपए रख लिया है. बाकी के यह 880 रुपए आप हजरात रखें.’’ कह कर उस ने कुछ नोट शाहिद के हाथ पर रख दिए. फिर बोला, ‘‘हां, यह खत भी दिया था. घर पर देने को,’’ कह कर कमीज की जेब से एक लिफाफा निकाल कर शाहिद के हाथ में थमा कर सलाम कर के वह चला गया.

आटोचालक के जाते ही साजिद ने शाहिद से तल्ख आवाज में कहा, ‘‘अब जनाब लिफाफा खोल कर खत पढ़ कर बताने की जहमत फरमाएं कि अब्बा हुजूर आप की तकरीर से खुश हो कर क्या पैगाम दे गए हैं.’’

शाहिद ने कांपते हाथों से लिफाफा खोला, कौपी के एक पन्ने पर शायद चलते वक्त कांपते हाथों से लिखा था, ‘‘शाहिद साहब, राबिया बेगम के बारे में आप ने अपने खयालात को आज तक मोहूम से परदे में रखा. उस के लिए शुक्रिया. अगर आप के खयालात उन की मौजूदगी में रोशन होते तो शायद वे तो शर्म और दुख से जीतेजी ही मर जातीं. हम कोशिश करेंगे कि अब इस घर में कभी वापस आना न हो. हमारे पास इल्म और फन के साथ आपसी प्यारमुहब्बत और विश्वास की जो अकूत दौलत है उस के सहारे

हम मजे से जिंदा रह लेंगे. तुम सब खुश रहो.’’ खत के अंत में उन्होंने हमेशा की तरह ‘तुम्हारा अब्बू’ नहीं लिख कर लिखा था, ‘‘किसी का कोई नहीं, जाकिर अली.’’

खत का मजमून सुन कर घर के सभी लोग थोड़ी देर गुमसुम खड़े रहे और शाहिद को तनहा छोड़ कर कोठी के अंदर चले गए.

पता नहीं कितना समय गुजर गया. अचानक अजब तरह के शोर से शाहिद चौंका. उस ने देखा एक मादा लंगूर कोठी के बाग के एक पुराने पेड़ की सब से ऊंची शाखा पर चढ़ कर वहां से हवेली की छत पर पहुंच कर महफूज पनाह पाने के जनून में पेड़ों के बीच में से निकल रहे बिजली के तारों की चपेट में आ कर शायद मर गई है. हाइटैंशन पावर के तार होने से उस का शरीर फट गया था. मगर पता नहीं कैसे उस की गोद में चिपका उस का छोटा सा बच्चा उस की गोद से गिर कर नीचे जमीन पर आ पड़ा था. मादा लंगूर को तारों में लटकता देख कर सारे लंगूर पेड़ पर चढ़ कर हूपहूप की आवाज में चिल्ला कर अपना आक्रोश प्रकट कर रहे थे.

उधर, मां की गोद से छिटक कर जमीन पर पड़ा छोटा सा बेसहारा बच्चा अपनी भाषा में अपनी मां को पुकार रहा था और रक्षा की गुहार लगा रहा था. लंगूर के बच्चे को जमीन पर पड़ा देख कर लंगूरों का जानी दुश्मन उन का पालतू शेफर्ड जाति का खूंखार कुत्ता उस की तरफ लपका. वह उस के करीब पहुंच ही गया था कि अचानक पेड़ की डाल से एक मादा लंगूर कूदी. उस ने झपट कर बच्चे को गोदी में चिपकाया और कुत्ते के ऊपर से छलांग लगा कर खिड़की के छज्जे पर बैठ गई. बच्चा, एक मां की गोद में आ कर, अब बेहद आश्वस्त हो गया था. उस ने चीखना बंद कर दिया था.

यह दृश्य देख कर शाहिद को अपने खुद के अंदर कुछ पिघलता हुआ लगा. उस की मां की मौत के बाद से राबिया बेगम के उन की मां बनने और उन के द्वारा की गई परवरिश के बाद अब कल उस के मुंह से उन्हें राबिया बेगम कहे जाने तक का सारा माही कुछ लमहों में उस की आंखों के सामने एक फिल्म की रील के दृश्यों की तरह तेजी से गुजर गया. उस की आंखों से आंसू बहने लगे. तभी उस की बीवी हाथ में मोबाइल फोन लिए लपकती हुए आई और बोली, लंदन से आप की अम्मी का फोन, वे अब्बू को पूछ रही हैं, क्या कहना है.’’

उस ने जलती नजरों से बीवी को देखा. मोबाइल फोन उस के हाथ से छीना और रुंधे स्वर में बोला, ‘‘अम्मी आदाब, अम्मी, मैं शाहिद, आप का बेटा शाहिद. अम्मी आप हमें किस बात की सजा दे रही हैं जो हमें एकदम तनहा छोड़ कर चली गई हो. आ जाओ, अम्मी. आप को हमारी…अपने बच्चों की खुशियों के लिए वापस आ जाओ, अम्मी. मैं आप के बिना अपने को बिलकुल तनहा महसूस कर रहा हूं. एक हफ्ते में आ जाइए.’’ कहतेकहते शाहिद की हिचकिया बंध गईं तो साजिद ने फोन ले कर अम्मी की मानमनौवल शुरू कर दी.

साजिद की अम्मी से मानमनौवल पूरी हो गई थी. वह बोला, ‘‘भाईजान, आप ने रात को भी कुछ नहीं खाया, आप कुछ नाश्ता कर लीजिए. मैं ने रहमत चाचा से कार निकालने के कह दिया है. अभी निकलेंगे तो अब्बू की फ्लाइट के लिए सिक्योरिटी चैकइन के लिए एअरपोर्ट पहुंचने तक हम भी

वहां पहुंच जाएंगे. उन्हें मना कर ले कर आएंगे.’’

‘‘साजिद, मैं ने रात को खाना नहीं खाया तो तुम ने कौन सा खाया था. तुम नाश्ता कर लो, मैं तो जब तक अब्बू से मिल कर माफी नहीं मांग लेता, नहीं खाऊंगा. तुम सब यही मनाओ कि अब्बू मिल जाएं और मुझे माफ कर दें.’’ इतना कह कर उस ने सिर झुका लिया.

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