माध्यम – भाग 3 : सास के दुर्व्यवहार को क्या भुला पाई मीना

काश, मेरी सास होतीं उस समय और देख पातीं उन लोगों के मुख पर उभरती संतुष्टि, कृतज्ञता तथा संकटमुक्ति की अनुभूति को.

‘‘मीना, क्या बात है? आज तो शाम से तुम गौतम बुद्ध हो गई हो. एकदम समाधिस्थ, चिंतन में डूबी.’’

प्रदीप ने मेरे दोनों कंधे पकड़ कर झकझोर दिया. मैं अतीत की गलियों से लौट कर, वर्तमान के राजपथ पर आ गई. हां, मैं सचमुच खो गई थी. 3 विकल्प थे मेरे सामने. 2 में बेईमानी, संवेदनशून्यता और क्रूरता थी.

अनायास मैं ने दोपहर को बंबई से आया पत्र प्रदीप की ओर बढ़ा दिया. उलझे हुए हावभाव का प्रदर्शन करते हुए उन्होंने मुझ से पत्र लिया और गौर से पढ़ने लगे. मेरी दृष्टि प्रदीप के मुख पर टिकी थी. कुछ पल पूर्व की प्रफुल्लता उन के चेहरे से काफूर हो गई और उस का स्थान ले लिया, चिंता, ऊहापोह, उलझन और उदासी ने.

पत्र पढ़ कर प्रदीप ने मेरी तरफ याचक दृष्टि से ताका और बोले, ‘‘यह तो सब गड़बड़ हो गया. अब क्या करना है?

‘‘सीमा की ससुराल वाले भी कमाल के लोग हैं. मायके में इतनी परेशानी है. पर उन्हें तो अपने बेटे के इम्तिहान और बेटी के जापे की चिंता है, बहू की मां चाहे मरे या जिए, उन की बला से.’’

‘‘प्रदीप, हर सास ऐसे ही सोचती है. याद है, पिछले साल, आप का औरंगाबाद तबादला होने से पहले मेरे घर से चिट्ठी आई थी.’’

‘‘मैं ने तुम्हें भेजा था.’’

‘‘हां, प्रदीप. आप ने समझदारी से काम लिया था. पर मैं ने आप को एक बात नहीं बताई.’’

‘‘क्या?’’

‘‘मांजी ने मुझ से बड़ी कड़वी बातें कही थीं. उन्होंने कहा था कि जो लड़कियां बातबेबात मायके दौड़ती हैं, उन का अपना घर कभी सुखी नहीं रह सकता. लड़की की मां, बेटी की समस्याओं के लिए ससुराल वालों की आलोचना करती है, लड़की को भड़काती है. ससुराल वालों के प्रति उन के मन में वितृष्णा उत्पन्न करती है. फल यह होता है कि लड़की अपने घर जा कर स्थापित नहीं हो पाती.’’

‘‘मीना, उस को छोड़ो. अब बताओ, क्या करना है?’’ प्रदीप ने पूछा.

‘‘करना क्या है? हमें कल सुबह ही बंबई रवाना होना है.’’

‘‘और छुट्टी का क्या होगा?’’

‘‘प्रदीप, घूमनेफिरने के लिए पूरी जिंदगी पड़ी है. हम मांजी को बीमार और पिताजी तथा भैया को इस संकट में छोड़ कर सैरसपाटे के लिए कैसे जा सकते हैं? मायका हो या पति का घर, बच्चों तथा बहूबेटी का मांबाप, सासससुर की सेवा करना प्रथम कर्तव्य है.’’

‘‘और यह जो सामान बंधा हुआ है, उस का क्या होगा?’’

‘‘उसे भी बंबई लिए चलते हैं.’’

प्रदीप ने मेरी ओर अनुराग भरी दृष्टि डाली. क्या उस में केवल स्नेह था? नहीं, उस में प्रशंसा, गर्व, खुशी और संतोष सब का संगम था.

अगले दिन दोपहर बाद करीब साढ़े 3 बजे हम लोग बंबई पहुंच गए. अचानक बिना किसी पूर्व सूचना के हमें आया देख कर मां, पिताजी और छोटे भैया के चेहरों पर सूर्योदय के बाद की सी चमक आ गई. वे कितने खुश, मुग्ध और चिंतारहित से लगने लगे थे.

मैं ने मांजी की दशा देखी तो अपने निर्णय की बुद्धिमत्ता का विचार आत्मतुष्टि उत्पन्न कर गया. वास्तव में वह काफी तकलीफ में थीं. साथ ही घर पूरी तरह से अस्तव्यस्त हो चुका था.

‘‘बहू आ गई. अब कोई चिंता नहीं,’’ यह थी पिताजी की प्रतिक्रिया. उन्होंने चैन की सांस ली.

‘‘भाभी, आप अचानक कैसे आ गईं?’’ मेरे देवर ने घोर आश्चर्य से पूछा.

‘‘बहू, तुम लोग तो दक्षिण भारत की यात्रा पर जाने वाले थे?’’ मांजी ने पूछा.

‘‘हां, मांजी. पर मातापिता की सेवा तो हम सब का प्रथम कर्तव्य है. आप की दुर्घटना की सूचना पा कर हम सैरसपाटे के लिए कैसे जा सकते थे?’’

मांजी कुछ नहीं बोलीं. केवल उन की आंखों में नमी उभर आई.

हमारे आगमन से घर में नवजीवन का संचार हो गया. मैं ने आते ही घर के संचालन की बागडोर संभाल ली. सफाई, धुलाई, रसोईघर का काम, खाना बनाना, मांजी की सेवा और समयसमय पर उन को दवा तथा खानपान देना.

3-4 दिन में ही घर का कायाकल्प हो गया.

चौथे दिन मांजी के मुख से निकल ही गया, ‘‘घर को पुरुष नहीं, औरत ही चला सकती है, चाहे वह बहू हो या बेटी.’’

मैं क्या कहती? शब्दों में नहीं, गरदन को हिला कर मैं ने मांजी के कथन से अपनी सहमति प्रकट कर दी.

‘‘सीमा की ससुराल वाले बड़े मतलबी और स्वार्थी हैं. जोत रखा होगा मेरी बेटी को. 4 दिन पहले ननद के बेटी हुई है. जच्चा का कितना काम फैल जाता है. सास की निर्दयता तो देखो, उसे इतना भी खयाल नहीं कि बहू की मां की टांग टूट गई है और घर पर कोई नहीं है देखभाल करने वाला…’’

मांजी की भुनभुनाहट सुन कर मुझे अंदर से खुशी हुई. इनसान पर जब बीतती है तब उसे पता चलता है. पिछले वर्ष मांजी को क्या हुआ? तब वह सास थीं और आज? केवल मां.

7वें दिन एक अप्रत्याशित घटना घटी. शाम के 7 बजे अचानक, बिना किसी पूर्व सूचना के सीमा आ धमकी. साथ में था अशोक, उस का पति.

घर में खुशी की धूम मच गई. मांजी की आंखों से खुशी के आंसू बह निकले. बेटी और दामाद का अनायास आगमन निश्चित रूप से अभूतपूर्व सुख का क्षण था.

हमें देख कर वे दोनों चौंके. उन्होंने हमारे वहां होने की कल्पना तक नहीं की थी.

‘‘चिट्ठी पा कर दौड़े चले आए बेचारे. 1 सप्ताह से बहू ऐसी सेवा कर रही है कि बस पूछो मत,’’ मांजी के स्वर में सच्ची प्रशंसा थी.

‘‘भाभी, कितनी छुट्टियां बची हैं तुम्हारी?’’ सीमा ने पूछा.

‘‘यही 8-10 दिन,’’ मैं ने एक दीर्घ निश्वास छोड़ कर कहा.

‘‘ठीक है. कल खिसको यहां से. अब मैं संभालती हूं यह मोरचा,’’ सीमा बोली.

‘‘पर अब आरक्षण वगैरह कैसे मिलेगा?’’ प्रदीप के स्वर में निराशा?थी.

‘‘भैया, मतलब तो छुट्टी और सैरसपाटे से है. दक्षिण नहीं जा सकते तो गोआ चले जाओ. बसें जाती हैं. वहां ठहरने के लिए जगह मिल ही जाएगी. कैलनगूट तट की सुनहरी बालू में अर्धनग्न लेट कर मस्ती मारो,’’ सीमा एक सांस में कह गई.

प्रदीप ने मेरी तरफ देखा और मैं ने उस की तरफ.

‘‘हां, बहू. अब सीमा आ गई है. तुम लोग कल चले जाओ. क्यों छुट्टियां बरबाद करते हो,’’ कह कर मांजी ने सीमा से पूछा, ‘‘क्यों री, तेरी सास ने तुझे कैसे छोड़ दिया?’’

‘‘पिताजी की चिट्ठी पढ़ कर उन्होंने खुद कहा कि मैं तुरंत बंबई जाऊं. उन्होंने तो पहले भी मना नहीं किया था. वह तो मुझे ही कहने का साहस नहीं हुआ. इन के इम्तिहान, मंजू बहनजी का जापा और फिर यह भी आप को देखने के लिए चिंतित हो गए.’’

मांजी के मुख पर रुपहली आभा बिखर गई. वह भावातिरेक से कांपने लगीं फिर कुछ क्षण बाद बोलीं, ‘‘सचमुच, मेरे बच्चे और संबंधी इतने उदार, कृपालु और प्रेमी हैं. कितना खयाल रखते हैं हमारा.’’

‘‘बहू,’’ मांजी ने मुझे संबोधित कर के कहा, ‘‘6 मास पूर्व के अपने आचरण पर मैं लज्जित हूं. पहले जमाने में परिवार के अंदर लड़कियों की सेना होती थी. एक गई तो दूसरी उस का स्थान ले लेती थी. पर आज? हम दो, हमारे दो. एकमात्र लड़की चली जाए तो बहुत खलता है. उस पर वह हारीबीमारी, सुखदुख में काम न आए तो बड़ा भावनात्मक कष्ट होता?है,’’ कह कर मांजी ने थकान के कारण आंखें बंद कर लीं.

‘‘आप आराम कीजिए, मांजी,’’ कह कर हम सब बगल के कमरे में चले गए और गप्पें मारने लगे.

मुझे अपने निर्णय पर संतोष था. साथ ही अगले दिन गोआ जाने का मन में उत्साह था. संभवत: मेरे लिए सब से ज्यादा गौरव की बात थी, मेरे अपने घर में मानवीय संबंधों के आधारभूत मूल्यों की पुन: स्थापना…शायद इस का माध्यम मैं ही थी.

माध्यम – भाग 2 : सास के दुर्व्यवहार को क्या भुला पाई मीना

‘मांजी, यह तो ठीक है पर जरा सोचिए, जिन मांबाप ने जन्म दिया, जिन्होंने पालपोस कर इतना बड़ा किया, शादीब्याह किया, क्या कोई लड़की उन्हें एकदम भुला सकती है? यह तो खून का अटूट संबंध है. इसे भुलाना संभव नहीं,’ मैं भावावेश में कह गई.

‘बहू, हमारे भी मांबाप थे. हमारे भी खून के संबंध थे. पर एक बार इस घर की चौखट के अंदर कदम रखा नहीं कि एक झटके से मायके को भूल गए. यह तो जग की रीति है. शादी होती है. सात फेरों के साथ लड़की का नया रिश्ता जुड़ता है. पुराना रिश्ता टूट जाता है. ऐसा ही होता आया है.’

‘वह तो ठीक है, मांजी. लड़की का कर्तव्य है कि वह सासससुर, पति, बच्चों की सेवा करे पर इस का यह अर्थ नहीं कि वह अपने जन्मदाताओं के सुखदुख में भी काम न आए. यह कैसी एकांगी विचारधारा है?’

‘जो शादीशुदा लड़कियां हर समय मायके वालों के चक्कर में पड़ी रहती हैं वे ससुराल में किसी को सुखी नहीं रख सकतीं. 2 घरों की एकसाथ देखभाल असंभव है.’

‘मांजी, क्या दोनों के बीच कोई संतुलन…’

‘मीना, तुम बहुत बहस करती हो, मानती हूं, तुम पढ़ीलिखी हो पर इस का यह मतलब नहीं कि…’

‘मैं बहस नहीं कर रही हूं. मैं 1 हफ्ते के लिए नासिक जाने की आज्ञा मांग रही हूं.’

‘मैं कुछ नहीं जानती. तुम जानो और तुम्हारा पति.’

मांजी का उखड़ा स्वर, फूला मुंह और मटकती हुई गरदन क्या मेरी प्रार्थना की अस्वीकृति के साक्षी नहीं थे? मेरा मन बुझ गया. क्या यह क्रूरता और हृदयहीनता नहीं? अपने स्वार्थ के लिए संबंधियों के सुखदुख में भागीदारी न करना क्या उचित है?

उद्विग्न और निराश मैं चुप लगा गई. जी में तो आया कि मांजी के इस अनुचित व्यवहार के विरुद्ध विरोध का झंडा खड़ा कर दूं.

कहूं, ‘कल को आप की बेटी का विवाह होगा. आप को कोई तकलीफ हो और आप उसे बुलाएं और उस के ससुराल वाले न भेजें तो आप को कैसा महसूस होगा, जरा सोचिए.’

मैं ने आगे बहस नहीं की. उस से कुछ नहीं होना था. केवल धैर्य, सहिष्णुता तथा उदारता के आधार पर ही हम पारिवारिक शांति स्थापित कर सकते हैं. वही मैं ने किया.

पर मेरे अंदर की घुटन को अभिव्यक्ति मिली रात में. जब हम दोनों बिस्तर पर अकेले थे तब प्रदीप ने मेरी उदासी का कारण पूछा था. मैं ने पूरा किस्सा उन्हें सुना दिया. सुन कर वह हंसे और बोले, ‘मांजी के इन विचारों का मैं स्वागत करता हूं.’

‘आप क्यों नहीं करेंगे? अरे, घुटना पेट की तरफ मुड़ता है. एक ही थैली के चट्टेबट्टे हैं आप दोनों.’

‘नहीं श्रीमतीजी, मांजी की बात में सार है. विवाह के बाद इतनी जल्दी पतिपत्नी विरह की अग्नि में जलें, कोई मां ऐसा चाहेगी.’

‘आप सोचते हैं, किसी लड़की के मांबाप. भाईबहन भूखे रहें और वह मिलन के गीत तू मेरा चांद, मैं तेरी चांदनी… गाती रहे.’

इस बार प्रदीप गंभीर हो गए. बोले, ‘भई, नाराज क्यों होती हो? अगर जाना चाहती हो तो ठीक है. कल सुबह मांजी को पटाने की कोशिश करेंगे.’

‘मैं जाऊं या न जाऊं, इस से कोई खास अंतर नहीं पड़ता पर मांजी का यह व्यवहार, संवेदनाशून्य, क्रूर और एकांगी नहीं है क्या? आप ही बताइए?’

‘हर व्यक्ति अपने हिसाब से काम करता है. मां ने जो कुछ कहा और किया वह उन का दृष्टिकोण है, जीवनदर्शन है. और यह दर्शन बनता है हमारी अतीत की अनुभूतियों से. मीना, शायद तुम्हें विश्वास न हो पर यह सच है कि मां एक ऐसे परिवार से आईं जहां लड़की का विवाह एक मुक्ति का एहसास माना जाता था और दोबारा मायके आना अभिशाप.’

‘वह क्यों?’ मैं ने उत्सुक हो कर पूछा.

‘इसलिए कि मां के मायके में 11 बहनभाई थे. 8 बहनें और 3 भाई. नानानानी एकएक लड़की की शादी करते और दोबारा उस का नाम नहीं लेते. मां भी इस घर में आईं. भीड़, अभाव और विपन्नता से शांति, समृद्धि और सुख के माहौल में एक बार इस घर में आईं तो फिर मुड़ कर उस घर को नहीं देखा. बस, शादीब्याह के मौके पर गईं या न गईं.’

‘वह तो ठीक है, पर…’

‘सच कहूं,’ प्रदीप ने कहा, ‘हम लोग ननिहाल जाते तो वहां पर मां का कोई खास स्वागत नहीं होता. हम लोग एक तरह से उन पर बोझ बन जाते. ज्यादा काम, मेहमानदारी पर खर्चा और लौटने पर बेटी और बच्चों को उपहार देने का संकट.’

‘ठीक है, प्रदीप, मैं मांजी की मनोदशा समझ गई. पर वह यह क्यों नहीं सोचतीं कि उन की और मेरी स्थिति में आकाशपाताल का अंतर है. उन के मायके में संकट में घर का काम करने के लिए और बहनें थीं. मैं अकेली हूं. उन को पीहर में एक बोझ समझा जाता था पर मेरा मेरे घर में अभूतपूर्व स्वागत होता है, आप स्वयं देख चुके हैं.’

‘ठीक है. मैं कल सुबह मांजी से बात करूंगा,’ कह कर प्रदीप ने मुझे अपने अंक में समेट लिया. शारीरिक उत्तेजना और रासरंग की बाढ़ में मेरे अंतर की समस्त कड़वाहट डूब गई.

अगले दिन सुबह मैं तो रसोईघर में नाश्ता बनाने में व्यस्त थी और मांबेटा बाहर मेरे नासिक जाने के प्रश्न पर ऐसी गंभीरता से विचार कर रहे थे जैसे संयुक्त राष्ट्र संघ में निरस्त्रीकरण पर बहस.

मैं नाश्ता ले कर बाहर आई तो महसूस किया जैसे प्रदीप विजय के द्वार पर पहुंच गए हैं. मां उन से कह रही थीं, ‘बीवी का गुलाम हो गया है. उसी के स्वर में बोलने लगा है.’

मुझे देख, उन्होंने बनावटी गुस्से से कहा, ‘बहू, तू 2 हफ्ते के लिए नासिक चली जाएगी तो इस घर और प्रदीप की देखभाल कौन करेगा?’

‘आप जो हैं, मांजी,’ मेरे मुंह से अनायास निकल गया.

मैं नासिक गई. पहुंच कर देखा, मां पीली पड़ गई थीं. एकदम अशक्त और असहाय. पिताजी कैसे उलझे और अस्तव्यस्त से लग रहे थे…और भाई क्लांत. मुझे देखते ही तीनों के चेहरे खिल गए. एक मुक्ति, निश्चिंतता का भाव उन के मुख पर उभर आया.

‘तू आ गई, बेटी. अब कोई चिंता नहीं. तेरे बिना तो यह घर खाने को दौड़ता है, मैं बिस्तर पर पड़ गई. घर के रंगढंग ही बिगड़ गए,’ मां ने उदास स्वर में कहा.

माध्यम – भाग 1 : सास के दुर्व्यवहार को क्या भुला पाई मीना

बंबई से आए इस पत्र ने मेरा दिमाग खराब कर दिया है. दोपहर को पत्र आया था, तब प्रदीप दफ्तर में थे. अब रात के 9 बज गए हैं. मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि क्या किया जाए.

फाड़ कर फेंक दूं इसे? डाक विभाग पर दोष लगाना बड़ा सरल है. बाद में कभी प्रदीप या उन की मां ने इस विषय को उठाया तो मैं कह दूंगी कि वह पत्र मुझे कभी मिला ही नहीं.

या फिर प्रदीप से सीधी बात कर ली जाए. जैसेतैसे उन्हें छुट्टी मिली है. छुट्टी यात्रा भत्ता ले कर वह दक्षिण भारत की यात्रा पर जा रहे हैं. सिर्फ हम दोनों. बंगलौर, ऊटी, त्रिवेंद्रम, कोवलम और कन्याकुमारी. पिछले कई दिनों से तैयारियां चल रही हैं और परसों सुबह की गाड़ी से हमें रवाना हो जाना है. प्रदीप को इस पत्र के बारे में बताया तो संभव है कि हमारे पिछले 2 वर्ष के वैवाहिक जीवन में प्रथम बार यह यात्रा कार्यक्रम स्थगित हो जाए.

फिर मन इस मानवीय आधार पर पूरे प्रसंग की विवेचना करने लगा. प्रदीप की मां मेरी सास हैं. सास और मां में क्या अंतर है? कुछ भी तो नहीं. उन की बाईं टांग में प्लास्टर चढ़ा है. स्नानागार में फिसल गईं. टखने और घुटने की हड्डियों में दरार आ गई है. गनीमत हुई कि वे टूटी नहीं. उन्हें 3 सप्ताह तक बिस्तर पर विश्राम करने की सलाह दी गई है.

घर पर कौन है? प्रदीप के पिता, छोटा भाई और सीमा. अरे, सीमा कहां है? उस का तो पिछले वर्ष विवाह हो गया. पत्र में लिखा है कि सीमा को बुलाने के लिए दिल्ली फोन किया था पर उस की सास ने अनुमति नहीं दी. सीमा की ननद अपना पहला जापा करने मायके आई हुई है. सास का गठिया परेशान कर रहा है. उधर सीमा का पति किसी विभागीय परीक्षा के लिए तैयारी कर रहा है.

प्रदीप के भाई ने पत्र लिखा है. मांजी ने ही लिखवाया है. यह भी लिखा है कि घर के कामकाज में बड़ी दिक्कत हो रही है. नौकरानी भी छुट्टी कर गई है.

घर की इस दुर्दशा का वर्णन पढ़ कर मेरा अंतर द्रवित हो गया. मैं ने सोचा, संकट के समय अपने बच्चे ही तो काम आते हैं. मांजी चाहती हैं कि मैं उन की सेवा के लिए औरंगाबाद से बंबई आ जाऊं. पर शालीनता या संकोचवश उन्होंने लिखवाया नहीं. उन्हें पता है कि हम लोग 2 सप्ताह की छुट्टी ले कर घूमने जा रहे हैं.

एक मन किया, छुट्टी का सदुपयोग दक्षिण भारत की यात्रा नहीं, संकटग्रस्त परिवार की सेवा कर के किया जाए. पर तभी मन कसैला सा हो गया. शादी के पहले वर्ष में मेरे साथ मांजी ने जो व्यवहार किया था उस की कटु स्मृति आज तक मुझे छटपटाती है.

तब प्रदीप बंबई में ही नियुक्त थे. मैं अपने सासससुर के साथ ही रह रही थी. एक दिन नासिक से पिताजी का पत्र आया था. लिखा था कि कौशल्या बीमार है. उसे टायफाइड हुआ और बाद में पीलिया. डाक्टरों ने 4 हफ्ते पूर्ण विश्राम की सलाह दी है. वह बेहद परेशान है. पर मैं और तेरा छोटा भाई उस की देखभाल कर लेते हैं. खाना पकाने में दिक्कत होती है. पर पेट भरने के लिए कुछ कच्चापक्का बना ही लेते हैं. कभी दूध, डबलरोटी ले लेते हैं, कभी बाजार से छोलेभठूरे ले आते हैं.

पत्र पढ़ कर मेरी आंखों में आंसू आ गए. घर की ऐसी दुर्दशा. मेरा दिल किया कि मैं उड़ कर नासिक पहुंच जाऊं. शादी के बाद, पूरे 1 वर्ष में केवल रक्षाबंधन पर मैं 1 दिन के लिए अपने घर गई थी. प्रदीप साथ में थे.

मैं ने मांजी से घर जाने के लिए कहा तो वह संवेदनशून्य स्वर में बोलीं, ‘शादी के बाद लड़की को बातबेबात मायके जाना शोभा नहीं देता. उसे तो सिर्फ एक बार, और वह भी किसी त्योहार पर ही मां के घर जाना चाहिए.’

‘मांजी, मां को पीलिया हो गया है. घर में…’

‘बहू, घर में यह मामूली हारीबीमारी तो चलती रहती है. इस तरह छोटेमोटे बहाने से मायके की तरफ लपकना अच्छा लगता है?’ मांजी ने विद्रूप स्वर में ताना कसा.

‘पर भाई और पिताजी को ठीक से खाना नहीं मिल रहा है…’

‘देखो बहू, उस घर को भूल जाओ. अब तो तुम्हारा घर यह है. तुम्हारा पहला फर्ज बनता है हम लोगों की सेवा.’

Valentine’s Special- समर्पण: बेमेल प्रेम संबंध की अनोखी कहानी

नौकरी से सेवानिवृत्ति के बाद मैं नियमित रूप से सुबह की सैर करने का आदी हो गया था. एक दिन जब मैं सैर कर घर लौट रहा था तो लगभग 26-27 साल की एक लड़की मेरे साथसाथ घर आ गई. वह देखने में बहुत सुंदर थी. मैं ने झट से पूछ लिया, ‘‘हां, बोलो, किस काम से मेरे पास आई हो?’’ उस ने कहा, ‘‘हम लोगों का एक आर्केस्ट्रा गु्रप है. मैं रिहर्सल के बाद रोज इधर होते हुए अपने घर जाती हूं.

आज इधर से गुजरते हुए  आप दिखाई दिए तो मैं ने सोचा, आप से मिल ही लूं.’’ मैं ने बताया नहीं कि मैं भी उसे नोटिस कर चुका हूं और मेरा मन भी था कि उस से मुलाकात हो. ‘‘थोड़ा और बताओगी अपने कार्यक्रमों और ग्रुप में अपनी भूमिका के बारे में.’’ ‘‘यहीं खडे़खडे़ बातें होंगी या आप मुझे घर के अंदर भी ले जाएंगे.’’

‘‘यू आर वेलकम. चलो, अंदर चल कर बात करते हैं.’’ ड्राइंग रूम में बैठने के बाद उस ने अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘मेरा नाम सुधा है, वैसे हम कलाकार लोग स्टेज पर किसी और नाम से जाने जाते हैं. मेरा स्टेज का नाम है नताशा. हमारे कार्यक्रम या तो बिजनेस हाउस करवाते हैं या हम लोग शादियों में प्रोग्राम देते हैं. मैं फिल्मी गानों पर डांस करती हूं.’’

मैं ने उस से पूछा, ‘‘कार्यक्रमों के अलावा और क्या करती हो?’’ ‘‘मैं एम.ए. अंगरेजी से प्राइवेट कर रही हूं,’’ सुधा ने बताया, ‘‘मेरे पापा का नाम पी.एल. सेठी है और वह पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट में काम करते हैं.’’ सुधा ने खुल कर अपने परिवार के बारे में बताया, ‘‘मेरी 3 बहनें हैं. बड़ी बहन की शादी की उम्र निकलती जा रही है. मुझ से छोटी बहनें पढ़ाई कर रही हैं.

मां एक प्राइवेट स्कूल की टीचर हैं. घर का खर्च मुश्किल से चलता है. प्रोफेसर साहब, मैं ने आप की नेमप्लेट पढ़ ली थी कि आप रिटायर्ड प्रोफेसर हैं, इसलिए आप को प्रोफेसर साहब कह कर संबोधित कर रही हूं. हां, तो मैं आप को अपने बारे में बता रही थी कि मुझे हर महीने कार्यक्रम से साढ़े 3 हजार रुपए की आमदनी हो जाती है, जो मैं बैंक में जमा करवा देती हूं.’’

मैं ने सुधा के पूरे शरीर पर नजर डाली. गोरा रंग, यौवन से भरपूर बदन और उस पर गजब की मुसकराहट. सुधा ने पूछा, ‘‘आप के घर पर कोई दिखाई नहीं दे रहा है. लोग कहीं बाहर गए हैं क्या?’’  मैं ने सुधा को बताया, ‘‘मेरे घर पर कोई नहीं है. मैं ने शादी नहीं की है. मेरा एक भाई और एक बहन है. दोनों अपने परिवार के साथ इसी शहर में रहते हैं. वैसे सुधा, मैं शाम को इंगलिश विषय की एम.ए. की छात्राओं को ट्यूशन पढ़ाता हूं. तुम आना चाहो तो ट्यूशन के लिए आ सकती हो.’’ सुधा ने हामी भर दी और बोली, ‘‘मैं शीघ्र ही आप के पास ट्यूशन के लिए आ जाया करूंगी.

आप समय बता दीजिए.’’ सुधा के निमंत्रण पर मैं ने एक दिन उस का कार्यक्रम भी देखा. निमंत्रणपत्र देते हुए उस ने कहा, ‘‘प्रोफेसर साहब, आप से एक निवेदन है कि मेरे पापा भी कार्यक्रम को देखने आएंगे. आप अपना परिचय मत दीजिएगा. मैं सामने आ जाऊं तो यह मत जाहिर कीजिएगा कि आप मुझे जानते हैं. कुछ कारण है, जिस की वजह से मैं फिलहाल यह जानपहचान गुप्त रखना चाहती हूं.’’ ट्यूशन पर आने से पहले सुधा ने पूछा, ‘‘सर, कोचिंग के लिए आप कितनी फीस लेंगे?’’

मैं ने उत्तर दिया, ‘‘तुम से फीस नहीं लेनी है. तुम जब भी मेरे घर आओ किचन में चाय या कौफी बना कर पिला दिया करना. हम दोनों साथसाथ चाय पीने का आनंद लेंगे तो समझो फीस चुकता हो गई.’’ ‘‘सर, चाय तो मुझे भी बहुत अच्छी लगती है,’’ सुधा बोली, ‘‘एक बात पूछ सकती हूं, आप ने शादी क्यों नहीं की?’’ मैं इस प्रश्न के लिए तैयार नहीं था किंतु अब तक हम एकदूसरे के इतने निकट आ चुके थे कि बडे़ ही सहज भाव से मैं ने उस से कहा, ‘‘पहले तो मातापिता की जिम्मेदारी मुझ पर थी, फिर उन के देहांत के बाद मैं मन नहीं बना पाया. मातापिता के जीवन काल  में एक लड़की मुझे पसंद आई थी, लेकिन वह उन्हें नहीं अच्छी लगी. बस, इस के बाद शादी का विचार छोड़ दिया.’’

सुधा अकसर सुबह रिहर्सल के बाद सीधे मेरे घर आती और ट्यूशन का समय मैं ने उसे साढे़ 5 बजे शाम का अकेले पढ़ने के लिए दे दिया था.  उस का मेरे घर आना इतना अधिक हो गया था कि महल्ले वाले भी रुचि दिखाने लगे. कब वह मेरे घर आती है, कितनी देर रुकती है, यह बात उन की चर्चा का विषय बन गई थी. जब मैं ने उन के इस आचरण पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई तो वे खुदबखुद ठंडे पड़ गए. हां, इस चर्चा का इतना असर जरूर पड़ा कि जो छात्राएं 4-5 बजे शाम को ग्रुप में आती थीं वे एकएक कर ट्यूशन छोड़ कर चली गईं. इस बात की परवा न तो मैं ने की और न ही सुधा पर इन बातों का कोई असर था. मेरे भाई और बहन ने भी मुझे इस बारे में व्यंग्य भरे लहजे में बताया था, किंतु उन्होंने ज्यादा पूछताछ नहीं की. सुधा को साउथइंडियन डिशेज अच्छी लगती थीं.

अत: उसे साथ ले कर मैं एक रेस्तरां में भी जाने लगा था. वहां के वेटर भी हमें पहचानने लगे थे. एक दिन जब देर रात सुधा रेस्तरां पहुंची तो वेटर ने उस से कहा, ‘‘मैडम, आप के पापा का फोन आया था. वह थोड़ी देर से आएंगे. आप बैठिए, मैं आप के लिए पानी और चाय ले कर आता हूं.’’ मैं जब रेस्तरां में पहुंचा तो सुधा ने हंसते हुए बताया, ‘‘प्रोफेसर, आज बड़ा मजा आया. वेटर कह रहा था आप के पापा लेट आएंगे. यहां के वेटर्स मुझे आप की बेटी समझते हैं.’’ इस पर मैं ने भी चुटकी ले कर कहा, ‘‘मेरी उम्र ही ऐसी है, इन की कोई गलती नहीं है. यह भ्रम बना रहने दो.’’

डिनर से पहले सुधा ने कहा, ‘‘प्रोफेसर, आप का मेरे जीवन में आना एक मुबारक घटना है.’’ वह बहुत ही भावुक हो कर कह रही थी. मुझे लगा जैसे किसी बहुत ही घनिष्ठ संबंध के लिए मुझे मानसिक रूप से तैयार कर रही हो. मैं अकसर उस के डांस की तारीफ किया करता था और उसे यह बहुत अच्छा लगता था. एक दिन शाम को हम दोनों चाय पी रहे थे तो बडे़ प्यार से उस की पीठ सहलाते हुए मैं ने कहा, ‘‘सुधा, तुम्हें तो पता ही है कि रिटायरमेंट होने पर मुझे काफी अच्छी रकम मिली है. मेरी जरूरतें भी बहुत सीमित हैं. मेरा एक योगदान अपने परिवार के लिए स्वीकार करो. हर महीने तुम्हें मैं 1 हजार रुपए दिया करूंगा. वह तुम अपने एकाउंट में जमा करवाती रहना.’’

मेरी यह योजना सुधा को बेहद पसंद आई. उस की आंखों में खुशी के आंसू भर आए. वह बोली, ‘‘अब मैं पूरी तरह से आप को समर्पित हूं. आप जो भी मुझे प्यार से देंगे उसे मैं अपना हक समझ कर खुशी से स्वीकार करूंगी,’’ और फिर एकाएक आगे बढ़ कर उस ने  मेरा माथा चूमलिया. कहने लगी, ‘‘प्रोफेसर, आप से मिलने के बाद मेरी कई मुश्किलें हल होती दिखाई देती हैं.’’ मैं ने महसूस किया कि एकदूसरे का सामीप्य तनमन को प्यार के रंग में भिगो देता है. हमारे जीवन मेें वे कुछ अनमोल क्षण होते हैं जिन से हमें जीवन भर ऊर्जा और जीने का मकसद मिलता है. जवानी की दहलीज पर खड़ी सुधा पूरी उमंग और जोश में थी. उसे प्रेम के प्रथम अनुभव की तलाश थी, उसे चाहिए था जी भर कर प्यार करने वाला एक प्रौढ़ और पुरुषार्थी प्रेमी, जो शायद उस ने मुझ में ढूंढ़ लिया था.

नाजुक और व्यावहारिक क्षणों में कभीकभी नैतिकता बहुत पीछे रह जाती है. घनिष्ठता के अंतरंग क्षणों में, चाय की चुस्कियां लेते हुए साहस कर सुधा ने पूछ ही लिया, ‘‘प्रोफेसर, कौन थी वह भाग्यशाली लड़की जो आप को पसंद आई थी. उस का नाम क्या था. देखने में कैसी लगती थी?’’ उस की रुचि देख कर मैं ने अपनी अलबम के पृष्ठ पलट कर, उसे कृष्णा की फोटो दिखाते हुए कहा, ‘‘उस का नाम कृष्णा था. बहुत सुंदर और अच्छी लड़की थी.’’ फोटो देख कर उसे झटका सा लगा लेकिन स्पष्टतौर पर उस ने जाहिर नहीं होने दिया. ‘‘इस से अधिक मुझ से कुछ मत पूछना, सुधा,’’ मैं ने कहा. उस दिन मेरा मन हुआ काश, सुधा आज देर तक मेरे घर रुके और हम लोग प्यार भरी बातें करें, पर देर होने के कारण वह जल्दी ही चली गई. सुधा के निमंत्रण पर एक शाम मैं प्रोग्राम देख रहा था.

फिल्मी कलाकार की तरह सुधा नृत्य पेश कर रही थी. हाल खचाखच भरा हुआ था. ‘बीड़ी जलाइ ले’ और ‘कजरारे कजरारे’ जैसे मशहूर गानों पर सुधा अपने हर स्टेप पर दर्शकों की वाहवाही बटोर रही थी. तालियों की गड़गड़ाहट से बारबार हाल गूंज उठता था. प्रोग्राम के अंत में मेरे पास से गुजरते हुए सुधा ने मुझ से धीमे स्वर में पूछा, ‘‘प्रोफेसर, कैसा लगा मेरा डांस?’’ मैं ने धीमे स्वर में सराहना करते हुए कहा, ‘‘तुम वाकई बहुत अच्छा डांस करती हो.’’ दूसरे दिन सुधा शाम को 5 बजे मेरे घर पहुंची. घर में प्रवेश करते ही बोली, ‘‘प्रोफेसर, चाय बना कर लाती हूं, फिर ढेर सारी बातें करेंगे.’’ वह चाय ले कर आई और मेरे पास बैठ गई. ‘‘प्रोफेसर, आप ने ‘निशब्द’ फिल्म देखी है?’’

सुधा ने पूछा. ‘‘हां, देखी है, मुझे अच्छी भी लगी थी,’’ मैं ने बताया. सुधा मेरे इतने पास बैठी थी कि मन हुआ मैं उस के नरम गालों को स्पर्श कर अपने हाथों से उसे प्यार करूं. कृष्णा की याद आज ताजा हो उठी थी. उसे मैं इसी तरह प्यार किया करता था. उस दिन ट्यूशन का कोई काम नहीं हो पाया. बस, नजदीकियां बढ़ा कर, हम दोनों एकदूसरे को प्यार करते रहे.

जाते समय सुधा ने बडे़ प्यार से मेरा हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, ‘‘‘निशब्द’ में अमिताभ बच्चन ने जिया से कितना जीजान से प्यार किया है. उम्र को भूल जाइए प्रोफेसर, मुझे आप से वैसा ही बेबाक प्यार चाहिए. अपने स्वाभिमान को भी बनाए रखिए और मुझ से प्रेम करते रहिए, मेरा दिल कभी नहीं तोडि़एगा.’’ मेरे भीतर कुछ ऐसा परिवर्तन हो चुका था कि उम्र की सीमा को लांघ कर मैं ने सुधा को अपनी बांहों में कस लिया और प्यार करने लगा, ‘‘नैतिकता की बात मत सोचना सुधा. मेरे साथ आज आनंद में डूब जाओ,’’ मैं बोलता रहा, ‘‘कुदरत ने शायद हम दोनों को इसीलिए मिलाया है कि हम प्रेम की ऐसी मिसाल कायम करें जिस का अनुभव अपनेआप में अद्भुत हो.’’ एक झटके में मुझ से अलग होते हुए सुधा बोली, ‘‘प्रोफेसर, हम ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे. ‘निशब्द’ में भी ऐसा कुछ नहीं दिखाया गया है. अमिताभ ने जिया से कोई यौन संपर्क नहीं किया. चलो, वह तो कहानी थी.

हम वास्तव में प्यार करते रहेंगे. बस, एक यौन संपर्क को छोड़ कर,’’ एक पल रुक कर वह फिर बोली, ‘‘मैं एक बात और आप को बताना चाहती हूं कि जो फोटो कृष्णा की आप ने दिखाई थी वह मेरी मां की है. मेरी मां का नाम कृष्णा है. प्यार तो किया है आप से मैं ने और जिंदगी भर करती रहूंगी.’’ यह जान कर मेरे पैरों तले जमीन सरक गई. आश्चर्यचकित मैं सुधा के चेहरे की ओर देखता रहा. झील सी गहरी आंखों में अब भी मेरे लिए प्यार उमड़ रहा था. होंठों पर मधुर मुसकान थी. सुधा मेरी निगाहों में इतने ऊंचे  स्तर तक उठ चुकी थी, जिस महानता को मेरा निस्वार्थ प्रेम छू तक नहीं सकता था.

क्षण भर को मुझे लगा था, शायद तकदीर ने सुधा के रूप में मेरा पहला प्यार मुझे लौटा दिया है. दूसरे ही क्षण मैं अपने विचार पर मन ही मन हंस दिया कि अगर कृष्णा से विवाह भी हो गया होता तो सुधा जैसी ही सुंदर लड़की होती… मैं अपने विचारों में खोया था, इतने में सुधा ने अपना फैसला सुना दिया, ‘‘प्रोफेसर, यह मत सोचना कि मैं आप के पास आना बंद कर दूंगी. मैं एक बोल्ड लड़की हूं. आप को अपने मन की बात बता रही हूं. मां को बता चुकी हूं, अब मैं शादी नहीं करूंगी. आज के माहौल में जहां दहेज के लोभी लोग लड़कियों को तंग करते हैं, जला देते हैं या तलाक जैसे नर्क में ढकेल देते हैं, मैं शादी के चक्कर में नहीं पड़ूंगी. मैं अपनी मर्जी की मालिक हूं.

आप चाहोगे तो आप के पास आ कर रहने लगूंगी. नहीं चाहोगे तो भी आप के पास आती रहूंगी. ‘‘प्यार में चिर सुख की चाह होती है. यौन संबंध और विवाह की आवश्यकता से ऊपर उठ चुकी है आप की सुधा. आप के संरक्षण में  बहुत सुरक्षित रहूंगी,’’ मेरा हाथ अपने हाथ में ले कर शेक हैंड करते हुए उस ने कहा. मेरी आंखों में आंसू छलक उठे थे. मैं उस को जाते हुए देखता रहा, बोझिल मन लिए और निशब्द. लेकिन वह गई नहीं, वापस लौट आई. ‘‘तुम क्या सोचते थे, मैं तुम्हें आंसुओं के साथ छोड़ जाऊंगी. तुम्हें आश्चर्य हो रहा होगा. आप से तुम संबोधन पर आ गई हूं. ‘तुम’ में अपनापन लगता है. तुम रिटायर तो हो ही नहीं सकते. रिटायर काम से हुए हो जिंदगी से नहीं. हम दोनों आज से नई जिंदगी शुरू कर रहे हैं. कल सुबह सामान के साथ आ रही हूं,’’ हंसते हुए उस ने कहा, ‘‘अब तो मुसकरा दो…अब की सामान ले कर आ रही हूं. अच्छा…जाती हूं वापस आने के लिए.’’

Valentine’s Special- लव गेम: क्या शीना जीत पाई प्यार का खेल?

जिंदगी मौसम की तरह होती है. कभी गरमी की तरह गरम तो कभी सर्दी की तरह सर्द तो कभी बारिश के मौसम की तरह रिमझिमरिमझिम बरसती बूंदों सी सुहानी. जैसे मौसम रंग बदलता है, वैसे ही जिंदगी भी वक्तबेवक्त रंग बदलती रहती है. लेकिन जिंदगी में कभीकभी कुछ सवालों का जवाब देना बड़ा मुश्किल हो जाता है.

यह कहानी भी कुछ ऐसी ही है. बदलते मौसम की तरह रंग बदलती हुई भी और उन रंगों में से चटख रंगों को चुराती हुई भी. आइए देखें, इस कहानी के पलपल बदलते रंगों को, जो खुदबखुद फीके पड़ कर गायब होते जाते हैं.

कंट्री क्लब में एक पार्टी का आयोजन किया गया था, जिस में आयोजकों ने अपने मैंबर्स में से कुछ ऐसे यंग कपल्स के लिए पार्टी रखी थी, जिन की शादी को अभी ज्यादा से ज्यादा 5 साल हुए थे

 

इस पार्टी में करीब 50 यंग कपल्स शामिल हुए. सभी बहुत खूबसूरत थे, जो सजधज कर पार्टी में आए थे. उन सभी के छोटेछोटे बच्चे भी थे. लेकिन आर्गनाइजर्स ने बच्चों को पार्टी में लाने की परमिशन नहीं दी थी, इसलिए सब लोग अपने बच्चे घर पर ही छोड़ कर आए थे.

कई यंग कपल्स ऐसे भी थे, जो एकदूसरे को अच्छी तरह जानतेपहचानते थे, इसलिए पार्टी में आते ही वे बड़ी गर्मजोशी के साथ मिले और एकदूसरे से घुलमिल गए. पार्टी के शुरुआती दौर में स्टार्टर, कौकटेल, मौकटेल, वाइन और सौफ्ट ड्रिंक वगैरह का जम कर दौर चला. इस के बाद सब ने खाना खाया. खाना बहुत लजीज था.

खाने के बाद पार्टी में कपल्स के साथ कई तरह के गेम खेले गए. हर गेम के अपने नियम थे. बहुत ही सख्त. गेम का संचालन एक एंकर कर रहा था. जिस हौल में पार्टी चल रही थी, वहीं एक फुट ऊंचा बड़ा सा पोडियम बना था. उसी पोडियम पर गेम खेले जा रहे थे. आखिर में एक गेम और खेला गया.

एंकर ने एक यंग ब्यूटीफुल लेडी को पोडियम पर इनवाइट किया, जिस की शादी को अभी सिर्फ 4 साल हुए थे और उस का 2 साल का एक बेटा भी था. उस लेडी का नाम शीना था.

शीना पोडियम पर जा कर वहां रखी एक चेयर पर बैठ गई. पोडियम पर वाइट कलर का बड़ा सा एक बोर्ड लगा था. एंकर ने शीना से कहा, ‘‘आप बोर्ड पर ऐसे 40 नाम लिखिए, जिन से आप सब से ज्यादा प्यार करती हैं.’’

हौल में जितने भी कपल्स थे, वे सभी पोडियम के आसपास एकत्र हो गए और बड़ी बेचैनी से यह सोच कर एंकर तथा उस महिला की तरफ देखने लगे कि आखिर अब कौन सा गेम होने वाला है. गेम के बारे में किसी को कुछ नहीं मालूम था.

यहां तक कि वह महिला भी नहीं जानती थी कि वह किस तरह के गेम का हिस्सा बनने जा रही है. वह तो मस्तीमस्ती में पोडियम पर आ कर बैठ गई थी.

लेकिन एंकर की बात सुनते ही वह अनईजी हो गई.

‘‘च…चालीस ऐसे लोगों के नाम…’’ शीना कंफ्यूज्ड हो कर बोली, ‘‘जिन से मैं सब से ज्यादा प्यार करती हूं?’’

‘‘यस.’’ एंकर के होठों पर उस समय एक शरारती मुसकराहट खिल रही थी, ‘‘क्या आप की जिंदगी में 40 ऐसे इंसान नहीं हैं, जिन से आप बेहद प्यार करती हों?’’

‘‘नहीं…नहीं.’’ शीना जल्दी से हड़बड़ा कर बोली, ‘‘म…मेरे कहने का मतलब यह नहीं है. 40 क्या, मेरी लाइफ में तो ऐसे बहुत से लोग हैं, जिन से मैं बेहद प्यार करती हूं और वे सब भी मुझ से बहुत प्यार करते हैं.’’

‘‘गुड.’’ एंकर उत्साहित हो कर बोला, ‘‘आप को सब के नाम नहीं लिखने हैं, जो आप की लिस्ट में सब से ऊपर हों, सिर्फ वही नाम लिखिए. इस गेम का नाम लव गेम है.’’

‘‘लव गेम.’’ पोडियम के चारों तरफ एकत्र लोगों के चेहरे पर मुसकराहट दौड़ी, ‘‘इंटरेस्टिंग.’’

शीना भी अब चेयर छोड़ कर खड़ी हो गई थी. उस ने बड़े उत्साह से मार्कर पैन उठा लिया और वाइट बोर्ड के पास जा कर उस पर जल्दीजल्दी नाम लिखने लगी. शीना ने सच कहा था. उस की जिंदगी में वाकई ऐसे काफी लोग थे, जिन से वह बहुत प्यार करती थी. यह बात उस के नाम लिखने की स्पीड से पता चल रही थी. उसे इस बारे में ज्यादा सोचना नहीं पड़ा.

कुछ ही मिनट में उस ने 40 नाम लिख दिए. उस लिस्ट में उस के रिलेटिव, फ्रैंड्स, ब्रदर, सिस्टर, मदर, फादर, हसबैंड और उस का 2 साल का बेटा भी था. नाम लिख कर वह विक्ट्री स्माइल बिखेरती हुई एंकर की तरफ मुड़ी.

‘‘क्यों, लिख दिए न मैं ने 40 नाम.’’ वह इस अंदाज में बोली, जैसे उस ने गेम जीत लिया हो.

‘‘यस.’’ एंकर मुसकराया, ‘‘लेकिन गेम अभी खत्म नहीं हुआ मैम. गेम तो अभी शुरू हुआ है.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘मतलब अभी आप को इन में से 20 ऐसे नाम कट करने हैं, जिन से आप कम प्यार करती हैं. मान लीजिए, आप इन 40 लोगों के साथ बीच समुद्र में किसी ऐसी बोट में सवार हों, जो डूबने वाली हो. अगर 40 में से 20 लोगों को बीच समुद्र में फेंक दिया जाए तो बोट बच सकती है. ऐसी हालत में वह 20 लोग कौन होंगे, जिन्हें आप बीच समुद्र में फेंक कर बाकी के 20 लोगों की जान बचाएंगी?’’

शीना अब कंफ्यूज्ड नजर आने लगी.

फिर भी वह दोबारा वाइट बोर्ड के पास पहुंची और उस ने ऐसे 20 लोगों के नाम काट दिए, जिन्हें बीच समुद्र में फेंक कर वह बाकी के अपने 20 लोगों की जान बचा सकती थी. अब वाइट बोर्ड पर जो नाम बचे, उन में उस के बहुत करीबी, रिलेटिव, ब्रदर, सिस्टर, मदर, फादर, हसबैंड और उस का 2 साल का बेटा था.

‘गुड.’’ एंकर मुसकराया, ‘‘अब इन में से 10 नाम और काट दीजिए.’’

‘‘म…मतलब?’’ हक्कीबक्की शीना ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘सिंपल है,’’ एंकर बोला, ‘‘अब सिर्फ 10 ऐसे नाम चुनें, जिन्हें आप सब से ज्यादा प्यार करती हों और उन 10 लोगों को बचाने के लिए आप बाकी के 10 को बीच समुद्र में फेंक सकती हैं. याद रहे, आप सब बोट पर सवार हैं और वहां जिंदगी और मौत की फाइट चल रही है.’’

शीना वापस वाइट बोर्ड के पास पहुंची और उस ने 10 और नाम काट दिए. लेकिन वे 10 नाम काटना उस के लिए पहले जितना आसान नहीं था. उस ने बहुत सोचसमझ कर 10 नाम काट दिए. पोडियम के आसपास एकत्र लोग भी अब बड़ी बेचैनी से शीना की तरफ देखने लगे. सब जानना चाहते थे कि शीना अब किस के नाम काटेगी.

वाइट बोर्ड पर जो बाकी 10 नाम बचे थे, उन में उस के कुछ खास रिलेटिव, ब्रदर, सिस्टर, मदर, फादर, हसबैंड और बेटा था.

‘‘हूं.’’ एंकर ने गहरी सांस ली.

शीना 10 नाम काट कर के अभी टर्न भी नहीं हुई थी कि उस से पहले ही एंकर बोल पड़ा, ‘‘अब इन में से 6 नाम और काट दो. सिर्फ 4 रहने दो. बोट इतने लोगों का वजन भी नहीं संभाल पा रही है. अभी तुरंत 6 लोगों को और समुद्र में फेंकना पड़ेगा, वरना बोट डूब जाएगी.’’

शीना ने वाइट बोर्ड पर लिखे नाम देखे. वह अब इमोशनल होने लगी. बहरहाल उस ने 6 नाम और काट दिए. बोर्ड पर अब सिर्फ शीना के मदर, फादर, हसबैंड और उस के 2 साल के बेटे का नाम बचा था. दूसरी ओर उसे अपने ब्रदर, सिस्टर के नाम भी काटने पड़े. पूरे हौल में सन्नाटा पसर गया था. सभी लोग इमोशनल हो गए.

‘‘अब अगर इन में से भी 2 नाम और काटने पड़ें…’’ एंकर बहुत धीमी आवाज में बोला, ‘‘तो वे कौन से नाम होंगे, जो आप काटेंगी. किन 2 लोगों को बचाएंगी आप?’’

अब वाकई शीना की हालत बहुत बुरी हो गई. मस्तीमस्ती में शुरू हुआ गेम अचानक बहुत इमोशनल हो गया था. शीना किसी गहरी सोच में डूब गई.

पोडियम के चारों तरफ जमे कपल्स भी यह जानने के लिए बेचैन हो उठे कि आखिर अब शीना कौन से 2 नाम काटेगी? मदर फादर का या फिर हसबैंड और बेटे का?

हौल में सन्नाटा और गहरा गया. शीना की आंखों में भी आंसू आ गए. पोडियम के नीचे खड़ा शीना का हसबैंड उसी तरफ देख रहा था. उसे खुद भी मालूम नहीं था कि शीना अब कौन से 2 नाम काटने वाली है.

शीना ने कांपते हाथों से अपने मातापिता का नाम बोर्ड से मिटा दिया. देख कर सब सन्न रह गए. किसी को उम्मीद नहीं थी कि शीना अपने मातापिता का नाम बोर्ड से मिटा देगी. मातापिता तो जीवन देने वाले होते हैं, वह उन का नाम कैसे काट सकती थी? अब वाइट बोर्ड पर सिर्फ 2 नाम चमक रहे थे, हसबैंड और उस के बेटे का नाम.

‘‘प्लीज…’’ शीना रो पड़ी, ‘‘अब मुझ से कोई और नाम काटने के लिए मत कहना.’’

‘‘बस अब यह गेम खत्म होने वाला है.’’ एंकर बोला, ‘‘बिलकुल लास्ट है. अगर आप से कहा जाए कि इन दोनों में से भी आप किस से ज्यादा प्यार करती हैं तो आप किसे चुनेंगी? वह एक कौन होगा, जिसे बचाने के लिए आप दूसरे को बीच समुद्र में फेंक देंगी, हसबैंड या बेटा?’’

‘‘मैं खुद समुद्र में कूदना पसंद करूंगी.’’ शीना भावविह्वल हो कर बोली, ‘‘लेकिन इन दोनों में से किसी को भी अपने से अलग नहीं करूंगी.’’

‘‘नहीं…आप नहीं,’’ एंकर बोला, ‘‘आप को इन दोनों में से कोई एक नाम काटना है.’’

अब शीना की हालत बहुत बुरी हो गई थी. हौल में मौजूद हर आंख शीना पर ही टिकी थी. हर कोई यह जानना चाहता था कि अब वह किस का नाम काटेगी? हसबैंड या बेटे में से वह किसे चुनेगी?

शीना ने कांपते हाथों से वाइट बोर्ड पर लिखा अपने बेटे का नाम मिटा दिया. सब सन्न रह गए. हर कोई सोच रहा था कि वह अपने हसबैंड का नाम मिटाएगी, क्योंकि हम दुनिया में सब से ज्यादा अपने बच्चों से ही प्यार करते हैं.

‘‘क्यों?’’ एंकर ने बेचैनी के साथ पूछ ही लिया, ‘‘आप ने अपने हसबैंड को ही क्यों चुना?’’

‘‘जानते हो…’’ शीना पोडियम पर खड़ीखड़ी बहुत इमोशनल हो कर बोली, ‘‘जिस दिन मेरी शादी हुई, उस दिन मम्मीपापा ने मेरे हसबैंड के हाथ में मेरा हाथ देते हुए कहा था, ‘आज से यही आदमी जिंदगी के आखिरी सांस तक तुम्हारा साथ देगा. तुम कभी इस का साथ न छोड़ना. जिस तरह सुखदुख में वह तुम्हारा साथ दे, उसी तरह तुम भी हर सुखदुख में उस का साथ देना.’ मैं ने अपने मम्मीपापा की बात मानी.

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‘‘अपने हसबैंड के लिए मैं ने अपने उन्हीं मम्मीपापा तक को त्याग दिया. यहां तक कि जब अपने बेटे और हसबैंड में से भी किसी एक को चुनने का समय आया तो मैं ने अपने हसबैंड को ही चुना. मैं अपने बेटे से बहुत प्यार करती हूं. लेकिन हसबैंड के रहते मुझे बेटा तो दूसरा मिल सकता है, पर हसबैंड दूसरा नहीं मिल सकता. पतिपत्नी का यह रिश्ता अनमोल है, अटूट है. हमें हमेशा इस रिश्ते का सम्मान करना चाहिए.’’

शीना की बातें सुन कर पूरा हौल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. सभी की आंखों में आंसू थे. शीना का हसबैंड भी बेहद इमोशनल हो गया था. एकाएक वह शाम बेहद खास हो गई. लव गेम ने सभी हसबैंड वाइफ के रिलेशन को और मजबूत कर दिया था.

शक- भाग 3: ऋतिका से क्यों रिश्ता तोड़ना चाहता था राघव

राघव को यह उचित लगा, क्योंकि ऋतिका 5 बजे की चार्टर्ड बस से चली जाएगी. अत: उस के बाद वह इतमीनान से नमनजी के पास जा सकता है.

6 बजे के बाद नमनजी कागज ले कर जब वह लौट रहा था तो लिफ्ट का इंतजार करती ऋतिका मिल गई.

‘‘तुम अभी तक घर नहीं गईं?’’ वह पूछे बगैर नहीं रह सका.

‘‘एक प्रोजैक्ट रिपोर्ट पूरी करने के चक्कर में रुकना पड़ा. लेकिन तुम कहां गायब थे रविवार के बाद से?’’

‘‘सोम की शाम को अचानक टूर पर हैदराबाद जाना पड़ गया, आज ही लौटा हूं.’’

‘‘अच्छा किया जाने से पहले घर नहीं आए वरना मम्मी न जाने कितने पार्सल पकड़ा देतीं अपनी सखीसहेलियों के लिए.’’

‘‘पार्सल तो फिर भी ले कर गया था बड़े साहब की बहन डा. माधुरी के लिए,’’ राघव ने पैनी दृष्टि से ऋतिका को देखा, ‘‘तुम तो जानती होगी डा. माधुरी को?’’

ऋतिका के चेहरे पर कोई भाव नहीं आया और वह लापरवाही से कंधे झटक कर बोली, ‘‘कभी नाम भी नहीं सुना. पापा को फोन कर दूं कि वे सीधे घर चले जाएं मैं तुम्हारे साथ आ रही हूं. पहले कहीं कौफी पिलाओ, फिर घर चलेंगे.’’

राघव मना नहीं कर सका और फिर घर पर डा. माधुरी का नाम बता कर प्रकाश और रमा की प्रतिक्रिया देखने की जिज्ञासा भी थी.

रमा के चेहरे पर तो डा. माधुरी का नाम सुन कर कोई भाव नहीं आया, मगर प्रकाश जरूर सकपका सा गए. रमा के आग्रह के बावजूद राघव खाने के लिए नहीं रुका और यह पूछने पर कि फिर कब आएगा उस ने कुछ नहीं कहा. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि मांबेटी सफल अदाकारा की तरह डा. माधुरी को न जानने का नाटक कर रही थीं या उन्हें बगैर कुछ बताए प्रकाश साहब अबौर्शन की व्यवस्था करने गए थे.

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कुछ भी हो ऋतिका को निर्दोष तो नहीं कहा जा सकता. लेकिन चुपचाप सब बरदाश्त भी तो नहीं हो सकता. यह भी अच्छा ही था कि अभी न तो सगाई हुई थी और न इस बारे में परिवार के अलावा किसी और को पता था, इसलिए धीरेधीरे अवहेलना कर के किनारा कर सकता है. रात इसी उधेड़बुन में कट गई.

सुबह वह अखबार ले कर बरामदे में बैठा ही था कि प्रकाश की गाड़ी घर के सामने रुकी. उन का आना अप्रत्याशित तो नहीं था, मगर इतनी जल्दी आने की संभावना भी नहीं थी.

‘‘रात तो खैर अपनी थी जैसेतैसे काट ली, लेकिन दिन को तो तुम्हें भी काम करना है और मुझे भी और उस के लिए मन का स्थिर होना जरूरी है, इसलिए औफिस जाने से पहले तुम से बात करने आया हूं,’’ प्रकाश ने बगैर किसी भूमिका के कहा, ‘‘यहीं बैठेंगे या अंदर चलें?’’

‘‘अंदर चलिए अंकल,’’ राघव विनम्रता से बोला और फिर नौकर को चाय लाने को कहा.

‘‘मैं नहीं जानता डा. माधुरी ने तुम से क्या कहा, मगर जो भी कहा होगा उसे सुन कर तुम्हारा विचलित होना स्वाभाविक है,’’ प्रकाश ने ड्राइंगरूम में बैठते हुए कहा, ‘‘और यह सोचना भी कि तुम से यह बात क्यों छिपाई गई. वह इसलिए कि किसी की जिंदगी के बंद परिच्छेद बिना वजह खोलना न मुझे पसंद है और न ऋतु को. मैं ने अपनी भतीजी रुचि को हैदराबाद में एक सौफ्टवेयर कंपनी में जौब दिलवाई थी.

वह हमारे साथ ही रहती थी.

‘‘सौफ्टवेयर टैकीज के काम के घंटे तो असीमित होते हैं, इसलिए हम ने रुचि के देरसवेर आने पर कभी रोक नहीं लगाई और इस गलती का एहसास हमें तब हुआ जब रुचि ने बताया कि वह मां बनने वाली है, उस की सहेली का भाई उस से शादी करने को तैयार है, लेकिन कुछ समय यानी पैसा जोड़ने के बाद, क्योंकि उस की जाति में दहेज की प्रथा है और उस के मातापिता बगैर दहेज के विजातीय लड़की से उसे कभी शादी नहीं करने देंगे. पैसा जोड़ कर वह मांबाप को दहेज दे देगा.

‘‘फिलहाल रुचि को गर्भपात करवाना पड़ेगा. हम भी नहीं चाहते थे कि रुचि के मातापिता को इस बात का पता चले. अत: मैं ने गर्भपात करवाने की जिम्मेदारी ले ली. जिन अच्छे डाक्टरों से संपर्क किया उन्होंने साफ मना कर दिया और झोला छाप डाक्टरों से मैं यह काम करवाना नहीं चाहता था. बहुत परेशान थे हम लोग. तब हमें परेशानी से उबारा ऋतु और ऋषभ ने.

‘‘ऋतु को आईआईएम अहमदाबाद में एमबीए में दाखिला मिल गया था और ऋषभ भी अमेरिका जाने की तैयारी कर रहा था. दोनों ने कहा कि जो पैसा हम ने उन की पढ़ाई पर लगाना है, उसे हम रुचि को दहेज में दे कर उस की शादी तुरंत प्रशांत से कर दें. और कोई चारा भी नहीं था. मुझ में अपने भाईभाभी की नजरों में गिरने और लापरवाह कहलवाने की हिम्मत नहीं थी. अत: इस के लिए मैं ने अपने बच्चों का भविष्य दांव पर लगा दिया.

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‘‘खैर, रुचि की शादी हो गई, बच्चा भी हो गया और उस के बाद दोनों को ही बैंगलुरु में बेहतर नौकरी भी मिल गई. ऋतु ने भी पत्राचार से एमबीए कर लिया और ऋषभ भी आस्ट्रेलिया चला गया. इस में रुचि और प्रशांत ने भी उस की सहायता करी.’’

‘‘मगर मेरा हैदराबाद में रहना मुश्किल हो गया. लगभग सभी नामीगिरामी

डाक्टरों के पास मैं गया था और उन सभी से गाहेबगाहे क्लब या किसी समारोह में आमनासामना हो जाता था. वे मुझे जिन नजरों से देखते थे उन्हें मैं सहन नहीं कर पाता था. मैं ने कोशिश कर के दिल्ली बदली करवा ली. सोचा था वह प्रकरण खत्म हो गया. लेकिन वह तो लगता है मेरी बेटी की ही खुशियां छीन लेगा.

‘‘तुम्हें मेरी कहानी मनगढंत लगी हो तो मैं रुचि को यहां बुला लेता हूं. उस के बच्चे की उम्र और डा. माधुरी की बताई तारीखों से सब बात स्पष्ट हो जाएगी.’’

‘‘इस सब की कोई जरूरत नहीं है पापा.’’

अभी तक अंकल कहने वाले राघव के ऋतिका की तरह पापा कहने से प्रकाश को लगा कि राघव के मन में अब कोई शक नहीं है.

शक- भाग 1: ऋतिका से क्यों रिश्ता तोड़ना चाहता था राघव

राघव ऋतिका से बहुत प्यार करता था. उस ने अपने प्यार का इजहार भी कर दिया था, जिसे ऋतिका ने भी स्वीकार लिया था.

ऋतिका हंसमुंख और मिलनसार स्वभाव की तो थी ही, पुरुष सहकर्मियों के साथ भी बेहिचक बात करती थी. साथ काम करने वाली लड़कियों के साथ शौपिंग पर भी चली जाती थी और वहां खानेपीने का बिल भी दे देती थी. लेकिन जब कोई लड़की उसे अपने घर पर बुलाती थी तो वह मना कर देती थी.

‘‘लगता है इस के घर में जरूर कुछ गड़बड़ है तभी यह नहीं चाहती कि कोई इस के घर आए और यह किसी के घर जाए,’’ आरती बोली.

‘‘मुझे भी यही लगता है, क्योंकि फिल्म देखने या रेस्तरां चलने को कहो तो तुरंत मान जाती है और बिल भरने को भी तैयार रहती है,’’ मीता ने जोड़ा, तो सोनिया और चंचल ने भी सहमति में सिर हिलाया.

‘‘इतनी अटकलें लगाने की क्या जरूरत है?’’ पास बैठे राघव ने कहा, ‘‘ऋतिका बीमार है, इसलिए आप सब उसे देखने के बहाने उस का घर देख आओ.’’

‘‘उस के पापा टैलीफोन विभाग के आला अफसर हैं और शाहजहां रोड की सरकारी कोठी में रहते हैं, इतनी जानकारी तो जाने के लिए काफी नहीं है,’’ मीता ने लापरवाही से कहा.

बात वहीं खत्म हो गई. अगले सप्ताह ऋतिका औफिस आ गई. उस के पैर में मोच आ गई थी, इसलिए चलने में अभी भी दिक्कत हो रही थी. शाम को उसे छुट्टी के बाद भी काम करते देख कर राघव ने कहा, ‘‘मैं ने आप का कोई काम भी पैंडिंग नहीं रहने दिया था, फिर क्यों आप देर तक रुकी हैं?’’

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‘‘धन्यवाद राघवजी, मैं काम नहीं नैट सर्फिंग कर रही हूं.’’

‘‘मगर क्यों?’’

‘‘मजबूरी है. चार्टर्ड बस तक चल कर नहीं जा सकती और पापा को लेने आने में अभी देर है.’’

‘‘तकलीफ तो लगता है आप को बैठने में भी हो रही है?’’

‘‘हो तो रही है, लेकिन पापा मीटिंग में व्यस्त हैं, इसलिए बैठना तो पड़ेगा ही.’’

‘‘अगर एतराज न हो तो मेरे साथ चलिए.’’

‘‘इस शर्त पर कि आप चाय पी कर जाएंगे.’’

‘‘ठीक है, अभी और्डर करता हूं.’’

‘‘ओह नो… मेरा मतलब है मेरे घर पर.’’

‘‘इस में शर्त काहे की… किसी के भी घर जाने पर चायनाश्ते के लिए रुकना पड़ता ही है.’’

ऋतिका ने पापा को मोबाइल पर आने को मना कर दिया. फिर राघव के साथ घर पहुंच गई. मां भी विनम्र थीं. कुछ देर बाद ऋतिका के पापा भी आ गए. वे भी राघव को ठीक ही लगे. कुल मिला कर घर या परिवार में कुछ ऐसा नहीं था जिसे ऋतिका किसी से छिपाना चाहे. बातोंबातों में पता चला कि वे लोग कई वर्षों से हैदराबाद में रह रहे थे और उन्हें वह शहर पसंद भी बहुत था.

‘‘इन की तो विभिन्न जिलों में बदली होती रहती थी, लेकिन मैं बच्चों के साथ हमेशा हैदराबाद में ही रही. बहुत अच्छे लोग हैं वहां के… अकेले रहने में कभी कोई परेशानी नहीं हुई,’’ ऋतिका की मां ने बताया.

‘‘यहां तो अभी आप की जानपहचान नहीं हुई होगी?’’ राघव ने कहा.

‘‘पासपड़ोस में हो गई है. वैसे रिश्तेदार बहुत हैं यहां, लेकिन अभी उन से मिले नहीं हैं. ऋतु पत्राचार से एमबीए की पढ़ाई कर रही है, इसलिए औफिस के बाद का सारा समय पढ़ाई में लगाना चाहती है और हम भी इसे डिस्टर्ब नहीं करना चाहते. मिलने के बाद तो आनेजाने का सिलसिला शुरू हो जाएगा न.’’

राघव को ऋतिका की सहेलियों से मेलजोल न बढ़ाने की बात तो समझ आ गई, लेकिन एमबीए करने की बात छिपाने की नहीं.

यह सुन कर कि राघव के मातापिता सऊदी अरब में और बहन अपने पति के साथ सिंगापुर में रहती है और वह यहां अकेला, ऋतिका की मां ने आग्रह किया, ‘‘कभी घर वालों की याद आए तो आ जाया करो बेटा, अच्छा लगेगा तुम्हारा आना.’’

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‘‘जी जरूर,’’ कह राघव ऋतिका की ओर मुड़ा, ‘‘आप डिस्टर्ब तो नहीं होंगी न?’’

‘‘कभीकभार कुछ देर के लिए चलेगा,’’ ऋतिका शोखी से मुसकाराई, ‘‘मगर यह एमबीए वाली बात औफिस में किसी को मत बताइएगा प्लीज.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘क्योंकि चंद घंटों की पढ़ाई के बाद सफलता की कोई गारंटी तो होती नहीं तो क्यों व्यर्थ में ढिंढोरा पीट कर अपना मजाक बनाया जाए. पास हो गई तो पार्टी कर के बता दूंगी.’’

राघव ने औफिस में किसी को ऋतिका के घर जाने की बात भी नहीं बताई. कुछ दिनों के बाद ऋतिका ने उसे डिनर पर आने को कहा.

‘‘आज मेरे छोटे भाई ऋषभ का बर्थडे है. वह तो आस्ट्रेलिया में पढ़ रहा है, लेकिन मम्मी उस का जन्मदिन मनाना चाहती हैं पकवान बगैरा बना कर… अब उन्हें खाने वाले भी तो चाहिए… आप आ जाएं… पापा के औफिस और पड़ोस के कुछ लोग होंगे… मम्मी खुश हो जाएंगी,’’ ऋतिका ने आग्रह किया.

न जाने का तो सवाल ही नहीं था. ऋतिका ने अन्य मेहमानों से उस का परिचय अपने सहकर्मी के बजाय अपना मित्र कह कर कराया. उसे अच्छा लगा.

अगले सप्ताहांत चंचल ने सभी को बहुत आग्रह से अपने भाई की सगाई में बुलाया तो सब सहर्ष आने को तैयार हो गए.

‘‘माफ करना चंचल, मैं नहीं आ सकूंगी,’’ ऋतिका ने विनम्र परंतु इतने दृढ़ स्वर में कहा कि चंचल ने तो दोबारा आग्रह नहीं किया, लेकिन राघव ने मौका मिलते ही अकेले में कहा, ‘‘अगर आप अकेले जाते हुए हिचक रही हों तो मुझे आप ने मित्र कहा है, मित्र के साथ चलिए.’’

‘‘मित्र कहा है सो बता देती हूं कि मैं इस तरह के पारिवारिक समारोहों में कभी नहीं जाती.’’

‘‘क्यों?’’

शक- भाग 2: ऋतिका से क्यों रिश्ता तोड़ना चाहता था राघव

‘‘क्योंकि ऐसे समारोहों में ही सहेलियों की मामियां, चाचियां अपने चहेतों के लिए लड़कियां पसंद करती हैं. सहेलियों के भाई और उन के दोस्त तो ऐसी दावतों में जाते ही लड़कियों को लाइन मारने लगते हैं. वैसे सुरक्षित लड़के भी नहीं हैं, कुंआरी कन्याओं के अभिभावक भी गिद्ध दृष्टि से शिकार का अवलोकन करते हैं.’’

‘‘आप मुझे डरा रही हैं?’’

‘‘कुछ भी समझ लीजिए… जो सच है वही कह रही हूं.’’

‘‘खैर, कह तो सच रही हैं, फिर भी मुझे तो जाना ही पड़ेगा, क्योंकि औफिस से आप के सिवा सभी जा रहे हैं.’’

कुछ रोज बाद राघव को एक दूसरी कंपनी में अच्छी नौकरी मिल गई. ऋतिका बहुत खुश हुई.

‘‘अब हम जब चाहें मिल सकते हैं… औफिस की अफवाहों का डर तो रहा नहीं.’’

राघव की बढि़या नौकरी मिलने की खुशी और भी बढ़ गई. मुलाकातों का सिलसिला जल्दी दोस्ती से प्यार में बदल गया और फिर राघव ने प्यार का इजहार भी कर दिया.

ऋतिका ने स्वीकार तो कर लिया, लेकिन इस शर्त के साथ कि शादी सालभर बाद भाई के आस्ट्रोलिया से लौटने पर करेगी. राघव को मंजूर था क्योंकि उस के पिता को भी अनुबंध खत्म होने के बाद ही अगले वर्ष भारत लौटने पर शादी करने में आसानी रहती और वह भी नई नौकरी में एकाग्रता से मेहनत कर के पैर जमा सकता था.

भविष्य के सुखद सपने देखते हुए जिंदगी मजे में कट रही थी कि अचानक उसे टूर पर हैदराबाद जाना पड़ा. औफिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने उसे वहां अपनी बहन को देने के लिए एक पार्सल दिया.

‘‘मेरी बहन और जीजाजी डाक्टर हैं, उन का अपना नर्सिंगहोम है, इसलिए वे तो कभी दिल्ली आते नहीं किसी आतेजाते के हाथ उन्हें यहां की सौगात सोहन हलवा, गज्जक बगैरा भेज देता हूं. तुम मेरी बहन को फोन कर देना. वे किसी को भेज कर सामान मंगवा लेंगी.’’

मगर राघव के फोन करने पर डा. माधुरी ने आग्रह किया कि वह डिनर उन के साथ करे. बहुत दिन हो गए किसी दिल्ली वाले से मिले हुए… वे उसे लेने के लिए गाड़ी भिजवा देंगी.

माधुरी और उस के पति दिनेश राघव से बहुत आत्मीयता से मिले और दिल्ली के बारे में दिलचस्पी से पूछते रहे कि कहां क्या नया बना है बगैरा. फिर उस के बाद उन्होंने अजनबियों के बीच बातचीत के सदाबहार विषय राजनीति और भ्रष्टाचार पर बात शुरू कर दी.

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‘‘कितने भी अनशन और आंदोलन हो जाएं, कानून बन जाएं या सुधार हो जाएं सरकार या सत्ता से जुड़े लोग नहीं सुधरने वाले,’’ माधुरी ने कहा, ‘‘उन के पंख कितने भी कतर दिए जाएं, उन का फड़फड़ाना बंद नहीं होता.’’

‘‘प्रकाश का फड़फड़ाना फिर याद आ गया माधुरी?’’ दिनेश ने हंसते हुए पूछा.

राघव चौंक पड़ा. यह तो ऋतिका के पापा का नाम है. उस ने दिलचस्पी से माधुरी की ओर देखा, ‘‘मजेदार किस्सा लगता है दीदी, पूरी बात बताइए न?’’

माधुरी हिचकिचाई, ‘‘पेशैंट से बातचीत गोपनीय होती है, मगर वे मेरे पेशैंट नहीं थे,

2-3 साल पुरानी बात है और फिर आप तो इस शहर के हैं भी नहीं. एक साहब मेरे पास अबौर्शन का केस ले कर आए. पर मेरे यह कहने पर कि हमारे यहां यह नहीं होता उन्होंने कहा कि अब तो और कुछ भी नहीं हो सकेगा, क्योंकि वे टैलीफोन विभाग में चीफ इंजीनियर हैं. मैं ने बड़ी मुश्किल से हंसी रोक कर उन्हें बताया कि हमारे यहां तो प्राय सभी फोन, रिलायंस और टाटा इंडिकौम के हैं, सरकारी फोन अगर है भी तो खराब पड़ा होगा. उन की शक्ल देखने वाली थी. मगर फिर भी जातेजाते अन्य सरकारी विभागों में अपनी पहुंच की डुगडुगी बजा कर मुझे डराना नहीं भूले.’’

तभी नौकर खाने के लिए बुलाने आ गया. खाना बहुत बढि़या था और उस से भी ज्यादा बढि़या था स्नेह, जिस से मेजबान उसे खाना खिला रहे थे. लेकिन वह किसी तरह कौर निगल रहा था.

होटल के कमरे में जाते ही वह फूटफूट कर रो पड़ा कि क्यों हुआ ऐसा उस के साथ? क्यों भोलीभाली मगर संकीर्ण स्पष्टवादी ऋतिका ने उस से छिपाया अपना अतीत? वह संकीर्ण मानसिकता वाला नहीं है.

जवानी में सभी के कदम बहक जाते हैं. अगर ऋतिका उसे सब सच बता देती तो वह उसे सहजता से सब भूलने को कह कर अपना लेता. ऋतिका के परिवार का रिश्तेदारों से न मिलनाजुलना, ऋतिका का सहेलियों के घर जाने से कतराना और उन के परिवार के लिए सटीक टिप्पणी करना, डा. माधुरी के कथन की पुष्टि करता था.

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लौटने पर राघव अभी तय नहीं कर पाया था कि ऋतिका से कैसे संबंधविच्छेद करे. इसी बीच अकाउंट्स विभाग ने याद दिलाया कि अगर उस ने कल तक अपने पुराने औफिस का टीडीएस दाखिल नहीं करवाया तो उसे भारी इनकम टैक्स भरना पड़ेगा.

राघव ने तुरंत अपने पुराने औफिस से संपर्क किया. संबंधित अधिकारी से उस की अच्छी जानपहचान थी और उस ने छूटते ही कहा कि तुम्हारे कागजात तैयार हैं, आ कर ले जाओ. पुराने औफिस जाने का मतलब था ऋतिका से सामना होना जो राघव नहीं चाहता था.‘‘औफिस के समय में कैसे आऊं नमनजी, आप किसी के हाथ भिजवा दो न प्लीज.’’

‘‘आज तो मुमकिन नहीं है और कल का भी वादा नहीं कर सकता. वैसे मैं तो आजकल 7 बजे तक औफिस में रहता हूं, अपने औफिस के बाद आ जाना.’’

हाय हैंडसम – भाग 3 : प्रेम की दिवानी गौरी का क्या हुआ

मैं ने मन में सोच लिया, मैं अपना मोबाइल नंबर बदल लूंगा और कुछ समय के लिए फेसबुक चलाना भी बंद कर दूंगा. उसी समय मु?ो याद आया, गौरी ने मु?ा से कहा था, अगर मु?ो जिंदा देखना चाहते हो तो मु?ो कभी फेसबुक से अलग मत करना.’ मैं ने मन में सोचा, अगर गौरी ने ऐसावैसा कुछ कर लिया तो? नहीं, वह ऐसावैसा कुछ नहीं करेगी. मु?ो थोड़ाबहुत बुराभला कहेगी और फिर नौर्मल हो जाएगी. इसी बहाने कमसेकम उस के दिलोदिमाग से प्यार का भूत तो उतर जाएगा. मैं ने ऐसा ही किया. दिल्ली से वापस आने के बाद अपना मोबाइल नंबर, जो गौरी के पास था बंद करवा कर दूसरा नंबर ले लिया और फेसबुक भी चलाना बंद कर दिया.

4 वर्षों बाद अब अचानक एक दिन मेरे व्हाटसऐप पर एक मैसेज आया, ‘‘हम तो आप को धोखेबाज, चालबाज और बेवफा भी नहीं कह सकते क्योंकि आप ने तो हमें कभी प्यार किया ही नहीं था. प्यार तो हम ने आप से किया था और वह भी बेइंतहा, हद से भी ज्यादा. हां, आप से यह जरूर पूछेंगे, आप ने ऐसा क्यों किया? आप का प्यार पाने के लिए हम ने रातदिन पढ़ाई कर के इंटर की परीक्षा में टौप किया, उस के बाद बीएससी भी फर्स्ट डिवीजन से पास कर ली. आप को नहीं मालूम, जब हम ने इंटर में टौप किया था तो हम कितने खुश थे. कितने ख्वाब देख डाले थे हम ने आप के लिए. हमें पूरा यकीन था आप अपना वादा निभाने के लिए हमारे पास जरूर आएंगे. हमें यह नहीं मालूम था आप ने हम से ?ाठ बोला था. हम ने सैकड़ों बार आप को फोन लगाया, आप ने अपना फोन नंबर बदल दिया. फेसबुक पर भी हमारा कोई मैसेज नहीं पढ़ा, क्यों? क्यों किया आप ने ऐसा? हमारी भावनाओं के साथ आप ने खिलवाड़ क्यों किया?

‘‘हैंडसम, आप अच्छे इंसान हैं, इस बात का अंदाजा हमें तभी हो गया था जब हम आप से मिले थे और आप ने हमारी बेपनाह खूबसूरती को नजरभर कर भी नहीं देखा था. न आप ने हमारी खूबसूरती की तारीफ की थी. उसी दिन हम सम?ा गए थे आप उन आदमियों में से नहीं हैं जो किसी भी लड़की को देख कर अपना आपा खो देते हैं. आप की शालीनता और गंभीरता के कायल तो हम आज भी हैं. लेकिन हमें आप से यह उम्मीद नहीं थी कि आप हम से इस तरह किनारा कर जाएंगे.’’

व्हाट्सऐप पर गौरी का लंबा मैसेज पढ़ कर मैं असमंजस में पड़ गया. समझ नहीं आ रहा था, मैं गौरी के मैसेज का क्या जवाब दूं? जवाब दूं भी या नहीं? सोचा, अगर जवाब दूंगा तो बात आगे बढ़ जाएगी और नहीं दिया तो वह अपना आपा खो बैठेगी. फिर मेरी मुश्किलें बढ़ जाएंगी. फिर सोचा, मु?ो गौरी से बात कर के उसे सम?ा देना चाहिए.

मैं ने गौरी को मैसेज किया, ‘‘गौरी, तुम ने मेरे कहने से इंटर में टौप किया और फिर बीएससी भी फर्स्ट डिवीजन से पास किया, यह जान कर मु?ो बेहद खुशी हो रही है. रही बात तुम से बात न करने की, तो सुनो, दिल्ली से वापस आने के बाद मु?ो किन्हीं कारणों से अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी. इसलिए कंपनी ने अपना सिम भी वापस ले लिया. उसी में तुम्हारा नंबर था. और फेसबुक मैं इसलिए नहीं देख पाया, क्योंकि मैं भी 4 सालों से काफी परेशान रहा, मेरी पत्नी एक्सपायर हो गई थीं.’’

‘‘ओह, सो सैड. यू नो हैंडसम, मेरी मम्मी भी नहीं रहीं. वे भी…’’ गौरी भावुक हो गई.

‘‘अरे, फिर तो बड़ी मुश्किल हो गई होगी?’’

‘‘हां, और पापा ने हमारी शादी कर दी,’’ उस ने कहा.

‘‘इतनी जल्दी?’’

‘‘हां, जानते हो हैंडसम, हमारे हसबैंड बहुत अच्छे इंसान हैं. बिलकुल आप के जैसे. बड़े बिजनैसमैन हैं. बहुत प्यार करते हैं हम से. पर हम ने उन से कह दिया, हम अपने हैंडसम से प्यार करते हैं.’’

‘‘गौरी, यह तुम ने गलत किया, तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए.’’

‘‘क्यों नहीं करना चाहिए? हम किसी को धोखे में नहीं रखना चाहते, इसीलिए हमारे मन में जो था, वह हम ने कह दिया.’’

‘‘एक बात कहूं गौरी, तुम मु?ो बहुत प्यार करती हो न?’’

‘‘यह भी कोई पूछने वाली बात है. हम तो आप को खुद से भी ज्यादा प्यार करते हैं.’’

‘‘तो सुनो, अपना यह प्यारव्यार वाला चक्कर छोड़ कर अपने हसबैंड से प्यार करो. उसी में अपनी दुनिया और अपनी खुशियों को बसाओ. तुम्हें उसी में सबकुछ मिल जाएगा.’’

‘‘लेकिन आप तो नहीं मिलोगे. हैंडसम, हम अपने हसबैंड से साफ कह चुके हैं कि जब तक हम अपने हैंडसम से नहीं मिल लेंगे तब तक हम किसी के नहीं हो पाएंगे और उन्होंने हमारी बात मान भी ली.’’

‘‘अपनी यह नादानी छोड़ दो. गौरी. ऐसा पागलपन अच्छा नहीं होता. गौरी, कागज की नाव में सवार हो कर भावनाओं का सफर तय नहीं हो सकता और अब तो तुम्हारी शादी भी हो गई है. अब तुम्हें तुम्हारी खुशियां तुम्हारे हस्बैंड में ही मिलेंगी, कहीं और नहीं.’’

‘‘हैंडसम, एक बार, बस, एक बार आप हमें अपने सीने से लगा कर आई लव यू बोल दो. यकीन करना, आप फिर जैसा कहोगे, हम वैसा ही करेंगे.’’

‘‘नहीं, यह नामुमकिन है, गौरी. तुम मु?ा से यह उम्मीद मत करो. मैं ऐसा कुछ नहीं कह पाऊंगा. तुम अच्छी तरह जानती हो, मैं अपने परिवार से बहुत प्यार करता हूं. मैं अपने परिवार को धोखा नहीं दे सकता और तुम्हारे लिए तो बिलकुल भी नहीं, क्योंकि मैं ने तुम्हें कभी उस नजर से देखा ही नहीं.’’

‘‘ठीक है, जब हम आप के नहीं हो पाए तो किसी और के भी नहीं हो पाएंगे. हम अपनी गाड़ी को सड़क के डिवाइडर से लड़ा देंगे और मर जाएंगे. हम सच कह रहे हैं, हैंडसम. इसे हमारी धमकी मत सम?ा लेना. जब हमारा दिल ही टूट गया, तो हम जी कर क्या करेंगे.’’

गौरी की बात सुन कर मैं एकदम घबरा गया. मैं ने कहा, ‘‘अच्छा ठीक है, अगर मेरे मिलने और आई लव यू बोलने से तुम्हें खुशी मिल रही है तो मैं बोल दूंगा लेकिन उस के बाद तुम कोई और जिद  नहीं करोगी.’’

‘‘हां, हम वादा करते हैं, आप के मिलने और आई लव यू बोलने के बाद हम आप से फिर कभी कोई जिद नहीं करेंगे. लेकिन फोन पर नौर्मल बात तो कर ही सकते हैं?’’

‘‘हां, ठीक है, तुम जब चाहो, मु?ा से मिल सकती हो.’’

‘‘हैंडसम, आप को नहीं मालूम कि आज हम कितने खुश हैं. आप से मिलने और प्यार के तीन शब्द ‘आई लव यू’ सुनने के लिए हम कल ही आप के पास आ रहे हैं.’’

‘‘ओके, मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा.’’

खूबसूरत लम्हे – भाग 3 : दो प्रेमियों की कहानी

संगीता तब इठलाती हुई बोली, ‘‘नींद के मामले में मैं बहुत लक्की हूं, जहां भी रहूं, सोने से पहले जिस आखिरी इंसान से मेरी मुलाकात होती है वह हो तुम, बस, आंखें बंद कर लेती हूं और सो जाती हूं,’’ इतना कह कर उस ने अपनी मस्त नजरों से मुझे निहारा.

शेखर ने भी तब भावुकता में बहते हुए कहा, ‘‘मैं सुबह उठ कर सब से पहले बंद आंखों से जिस का चेहरा देखता हूं, वह हो सिर्फ तुम.’’

बातों ही बातों में संगीता ने बताया, ‘‘आज सुबह ही मम्मीपापा आए थे, डाक्टर ने डिस्चार्ज करने को कहा. दरअसल, वे लोग किसी रिश्तेदार के यहां फंक्शन में गए हैं सुबह मुझे लेने आएंगे.’’

‘‘मतलब एक रात और तुम्हें मरीज बन कर यहां रहना पड़ेगा,’’ शेखर ने कहा.

‘‘नहीं, अब तुम आ गए हो न. अब डाक्टर से इजाजत ले लेती हूं, पेपर वगैरा सब तैयार हैं.’’

‘‘पर डाक्टर पूछेगा कि कौन लेने आया है तो क्या बोलोगी?’’ शेखर ने जिज्ञासा प्रकट की.

‘‘हां, बोलूंगी कि मेरी सगी बहन के सगे भाई के जीजाजी आए हैं?’’

‘‘मतलब?’’ शेखर ने आश्चर्यचकित हो कर पूछा.

‘‘मतलब तुम समझो, मैं चली डाक्टर से मिलने.’’

संगीता फौरन डाक्टर से इजाजत ले कर आ गई और अपना सब सामान समेटने लगी. फिर शेखर ने बैग उठाया और दोनों हौस्पिटल से बाहर निकल पड़े.

रिकशा बुलाने से पहले ही संगीता ने पूछा, ‘‘कहां चल रहे हैं?’’

‘‘तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ दूंगा और मैं उसी रिकशे से वापस आ जाऊंगा,’’ शेखर ने सहज भाव से कहा.

‘‘नहीं, कहीं घूमने चलो न,’’ संगीता का आग्रह भरा स्वर था.

‘‘अभी तुम्हारी तबीयत नाजुक है. चुपचाप घर चलो,’’ शेखर ने समझाते हुए कहा.

‘‘अच्छा, चलो लस्सी पिला दो,’’ संगीता बच्चे की तरह जिद करती हुई बोली.

शेखर तब भड़क गया, ‘‘तुम्हारा दिमाग तो ठीक है न, अभी फीवर से उठी हो और ठंडा?’’

संगीता तपाक से बोली, ‘‘जब तक तुम नहीं मिलते दिमाग ठीक रहता है.’’

‘‘अगर मैं कभी न मिलूं तब तो तुम बिलकुल ठीक रहोगी?’’ शेखर ने जानबूझ कर ऐसा सवाल किया.

तब संगीता घबराते हुए बोली, ‘‘अरे, ऐसा सोचना भी मत वरना तुम आगरा में मुमताज का ताजमहल निहारते रहोगे और मैं आगरा के पागलखाने में रहूंगी. वैसे भी आजीवन साथ रहना मुश्किल है, मेरे डैडी बहुत ही सख्त हैं, कुछ लमहे तो जी लूं.’’

शेखर उस की बकबक से तंग आ कर बोला, ‘‘प्लीज, अब रिकशे में बैठो. रास्ते में थोड़ी देर जूली पार्क में बैठेंगे फिर तुम्हें घर छोड़ दूंगा.’’

थोड़ी देर बाद दोनों जूली पार्क में थे. शाम गहरा गई थी. सूरज की लालिमा अंतिम चरण में थी, अत: अंधकार गहराता जा रहा था. शेखर पेड़ से टिक कर बैठा और संगीता उस की गोद में सिर रख लेट गई.

शेखर की उंगलियां संगीता की कालीघनी जुल्फों से अठखेलियां करने लगीं. शेखर बिना बोले अपनी नई रचना सुनाता रहा और संगीता उस की गोद में सुकून से सोती रही. वह वाकई में सो जाती लेकिन शेखर ने उसे जगाते हुए चलने को कहा.

दोनों दोबारा रिकशे में बैठ गए. आज संगीता काफी खुश थी. उस का सारा रोग ही काफूर हो गया था. शेखर भी संगीता से मिलने के बाद खुद को काफी तरोताजा महसूस करने लगा था.

शेखर ने संगीता को उस के घर के सामने ड्रौप करने के लिए रिकशा रुकवाया. उसे सामने संगीता के मम्मीपापा दिखे. उन की आंखों में उसे भरपूर आक्रोश और नफरत दिखी. कुछ कहने से पहले ही संगीता के पापा आगे बढ़ने लगे, पर उस की मां ने उन्हें रोक लिया. संगीता भी माहौल को देखते हुए बिलकुल खामोश रही और रिकशे से उतर कर चुपचाप घर के अंदर चली गई.

शेखर का रिकशा आगे बढ़ गया. रास्ते में मजाक में कही संगीता की बात शेखर को बारबार कचोटती रही कि कहीं दोनों का प्यार धर्म की भेंट न चढ़ जाए?

दूसरे दिन शेखर डरतेडरते संगीता के घर के सामने गया. संगीता के पड़ोसियों से पता चला कि सभी लोग पंजाब चले गए हैं. शेखर बस ठगा सा रह गया.

शेखर उन्हीं खूबसूरत लमहों के सहारे जी रहा था, पर आज अचानक संगीता से मुलाकात, उस के पति का सामीप्य, उस की उपेक्षा. थोड़ी देर के लिए वह उदास हो गया, लेकिन गुजरे हुए खूबसूरत लमहों के संग जीने की उस की चाह कम न हुई. उस के पास अब रह गई थीं बस, संगीता की यादें और कुछ खूबसूरत लमहे.

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