अपना घर: भाग 2

एक रात विजय ने शराब के नशे में मदहोश हो कर सुरेखा का मोबाइल नंबर मिला कर कहा, ‘‘तुम ने मुझे जो धोखा दिया है, उस की सजा जल्दी ही मिलेगी. मुझे तुम से और तुम्हारे परिवार से नफरत है. मैं तुम्हें तलाक दे दूंगा. मुझे नहीं चाहिए एक चरित्रहीन और धोखेबाज पत्नी. अब तुम सारी उम्र विकास के गम में रोती रहना.’’

उधर से कोई जवाब नहीं मिला.

‘‘सुन रही हो या बहरी हो गई हो?’’ विजय ने नशे में बहकते हुए कहा.

‘यह क्या आप ने शराब पी रखी है?’ वहां से आवाज आई.

‘‘हां, पी रखी है. मैं रोज पीता हूं. मेरी मरजी है. तू कौन होती है मुझ से पूछने वाली? धोखेबाज कहीं की.’’

उधर से फोन बंद हो गया.

विजय ने फोन एक तरफ फेंक दिया और देर तक बड़बड़ाता रहा.

औफिस और पासपड़ोस के कुछ साथियों ने विजय को समझाया कि शराब के नशे में डूब कर अपनी जिंदगी बरबाद मत करो. इस परेशानी का हल शराब नहीं है, पर विजय पर कोई असर नहीं पड़ा. वह शराब के नशे में डूबता चला गया.

एक शाम विजय घर पर ही शराब पीने की तैयारी कर रहा था कि तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. विजय ने बुरा सा मुंह बना कर कहा, ‘‘इस समय कौन आ गया मेरा मूड खराब करने को?’’

विजय ने उठ कर दरवाजा खोला तो चौंक उठा. सामने उस का पुराना दोस्त अनिल अपनी पत्नी सीमा के साथ था.

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‘‘आओ अनिल, अरे यार, आज इधर का रास्ता कैसे भूल गए? सीधे दिल्ली से आ रहे हो क्या?’’ विजय ने पूछा.

‘‘हां, आज ही आने का प्रोग्राम बना था. तुम्हें 2-3 बार फोन भी मिलाया, पर बात नहीं हो सकी.’’

‘‘आओ, अंदर आओ,’’ विजय ने मुसकराते हुए कहा.

विजय ने मेज पर रखी शराब की बोतल, गिलास व खाने का सामान वगैरह उठा कर एक तरफ रख दिया.

अनिल और सीमा सोफे पर बैठ गए. अनिल और विजय अच्छे दोस्त थे, पर वह अनिल की शादी में नहीं जा पाया था. आज पहली बार दोनों उस के पास आए थे.

विजय ने सीमा की ओर देखा तो चौंक गया. 3 साल पहले वह सीमा से मिला था अगरा में, जब अनिल और विजय लालकिला में घूम रहे थे. एक बूढ़ा आदमी उन के पास आ कर बोला था, ‘‘बाबूजी, आगरा घूमने आए हो?’’

‘‘हां,’’ अनिल ने कहा था.

‘‘कुछ शौक रखते हो?’’ बूढ़े ने कहा.

वे दोनों चुपचाप एकदूसरे की तरफ देख रहे थे.

‘‘बाबूजी, आप मेरे साथ चलो. बहुत खूबसूरत है. उम्र भी ज्यादा नहीं है. बस, कभीकभी आप जैसे बाहर के लोगों को खुश कर देती है,’’ बूढ़े ने कहा था.

वे दोनों उस बूढ़े के साथ एक पुराने से मकान पर पहुंच गए. वहां तीखे नैननक्श वाली सांवली सी एक खूबसूरत लड़की बैठी थी. अनिल उस लड़की के साथ कमरे में गया था, पर वह नहीं.

वह लड़की सीमा थी, अब अनिल की पत्नी. क्या अनिल ने देह बेचने वाली उस लड़की से शादी कर ली? पर क्यों? ऐसी क्या मजबूरी हो गई थी जो अनिल को ऐसी लड़की से शादी करनी पड़ी?

‘‘भाभीजी दिखाई नहीं दे रही हैं?’’ अनिल ने विजय से पूछा.

‘‘वह मायके गई है,’’ विजय के चेहरे पर नफरत और गुस्से की रेखाएं फैलने लगीं.

‘‘तभी तो जाम की महफिल सजाए बैठे हो, यार. तुम तो शराब से दूर भागते थे, फिर ऐसी क्या बात हो गई कि…?’’

‘‘ऐसी कोई खास बात नहीं. बस, वैसे ही पीने का मन कर रहा था. सोचा कि 2 पैग ले लूं…’’ विजय उठता हुआ बोला, ‘‘मैं तुम्हारे लिए खाने का इंतजाम करता हूं.’’

‘‘अरे भाई, खाने की तुम चिंता न करो. खाना सीमा बना लेगी और खाने से पहले चाय भी बना लेगी. रसोई के काम में बहुत कुशल है यह,’’ अनिल ने कहा.

विजय चुप रहा, पर उस के दिमाग में यह सवाल घूम रहा था कि आखिर अनिल ने सीमा से शादी क्यों की?

सीमा उठ कर रसोईघर में चली गई. विजय ने अनिल को सबकुछ सच बता दिया कि उस ने सुरेखा को घर से क्यों निकाला है.

अनिल ने कहा, ‘‘पहचानते हो अपनी भाभी सीमा को?’’

‘‘हां, पहचान तो रहा हूं, पर क्या यह वही है… जब आगरा में हम दोनों घूमने गए थे?’’

‘‘हां विजय, यह वही सीमा है. उस दिन आगरा के उस मकान में वह बूढ़ा ले गया था. मैं ने सीमा में पता नहीं कौन सा खिंचाव व भोलापन पाया कि मेरा मन उस से बातें करने को बेचैन हो उठा था. मैं ने कमरे में पलंग पर बैठते हुए पूछा था, ‘‘तुम्हारा नाम?’’

‘‘यह सुन कर वह बोली थी, ‘क्या करोगे जान कर? आप जिस काम से आए हो, वह करो और जाओ.’

‘‘तब मैं ने कहा था, ‘नहीं, मुझे उस काम में इतनी दिलचस्पी नहीं है. मैं तुम्हारे बारे में जानना चाहता हूं.’

‘‘वह बोली थी, ‘मेरे बारे में जानना चाहते हो? मुझ से शादी करोगे क्या?’

‘‘उस ने मेरी ओर देख कर कहा तो मैं एकदम सकपका गया था. मैं ने उस से पूछा था, ‘पहले तुम अपने बारे में बताओ न.’

‘‘उस ने बताया था, ‘मेरा नाम सीमा है. वह मेरा चाचा है जो आप को यहां ले कर आया है. आगरा में एक कसबा फतेहाबाद है, हम वहीं के रहने वाले हैं. मेरे मातापिता की एक बस हादसे में मौत हो गई थी. उस के बाद मैं चाचाचाची के घर रहने लगी. मैं 12वीं में पढ़ रही थी तो एक दिन चाचा ने आगरा ला कर मुझे इस काम में धकेल दिया.

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‘‘चाचा के पास थोड़ी सी जमीन है जिस में सालभर के गुजारे लायक ही अनाज होता है. कभीकभार चाचा मुझे यहां ले कर आ जाता है.’

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‘‘मैं ने उस से पूछा, ‘जब चाचा ने इस काम में तुम्हें धकेला तो तुम ने विरोध नहीं किया?’

‘‘वह बोली थी, ‘किया था विरोध. बहुत किया था. एक दिन तो मैं ने यमुना में डूब जाना चाहा था. तब किसी ने मुझे बचा लिया था. मैं क्या करती? अकेली कहां जाती? कटी पतंग को लूटने को हजारों हाथ होते हैं. बस, मजबूर हो गई थी चाचा के सामने.’

‘‘फिर मैं ने उस से पूछा था, ‘इस दलदल में धकेलने के बजाय चाचा ने तुम्हारी शादी क्यों नहीं की?’

‘‘वह बोली, ‘मुझे नहीं मालूम…’

‘‘यह सुन कर मैं कुछ सोचने लगा था. तब उस ने पूछा था, ‘क्या सोचने लगे? आप मेरी चिंता मत करो और…’

‘‘कुछ सोच कर मैं ने कहा था, ‘सीमा, मैं तुम्हें इस दलदल से निकाल लूंगा.’

‘‘तो वह बोली थी, ‘रहने दो आप बाबूजी, क्यों मजाक करते हो?’

‘‘लेकिन मैं ने ठान लिया था. मैं ने उस से कहा था, ‘यह मजाक नहीं है. मैं तुम्हें यह सब नहीं करने दूंगा. मैं तुम से शादी करूंगा.’

‘‘सीमा के चेहरे पर अविश्वास भरी मुसकान थी. एक दिन मैं ने सीमा के चाचा से बात की. एक मंदिर में हम दोनों की शादी हो गई.

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काली स्याही – सुजाता के गुमान को कैसे किया बेटी ने चकनाचूर

 लेखिका- Shalini Gupta

क्लब में ताश खेलने में व्यस्त थी सु यानी सुजाता और उधर उस का मोबाइल लगातार बज रहा था.

‘‘सु, कितनी देर से तुम्हारा मोबाइल बज रहा है. हम डिस्टर्ब हो रहे हैं,’’ रे यानी रेवती ताश में नजरें गड़ाए ही बोली.

‘‘मैं इस नौनसैंस मोबाइल से तंग आ चुकी हूं,’’ सु गुस्से से बोली, ‘‘मैं जब भी बिजी होती हूं, यह तभी बजता है,’’ और फिर अपना मुलायम स्नैक लैदर वाला गुलाबी पर्स खोला, जो तरहतरह के सामान से भरा गोदाम बना था, उस में अपना मोबाइल ढूंढ़ने लगी.

थोड़ी मशक्कत के बाद उसे अपना मोबाइल मिल गया.

‘‘हैलो, कौन बोल रहा है,’’ सु ने मोबाइल पर बात करते हुए सिगरेट सुलगा ली.

‘‘जी, मैं आप की बेटी सोनाक्षी की क्लासटीचर बोल रही हूं. आजकल वह स्कूल बहुत बंक मार रही है.’’

‘‘व्हाट नौनसैंस, मेरी सो यानी सोनाक्षी ऐसी नहीं है,’’ सु अपनी सिगरेट की राख ऐशटे्र में डालते हुए बोली, ‘‘देखिए, आप तो जानती ही हैं कि आजकल बच्चों पर कितना बर्डन रहता है… वह तो स्कूल खत्म होने के बाद सीधे कोचिंग क्लास में चली जाती है… अगर कभी बच्चे स्कूल से बंक कर के थोड़ीबहुत मौजमस्ती कर लें, तो उस में क्या बुराई है?’’ और फिर सु ने फोन काट दिया और ताश खेलने में व्यस्त हो गई.

वह जब रात को घर पहुंची तब तक सो घर नहीं आई थी.

‘‘मारिया, सो कहां है?’’ सु सोफे पर ढहती हुई बोली.

‘‘मैम, बेबी तो अब तक नहीं आया है,’’ मारिया नीबूपानी से भरा गिलास सु को थमाते हुए बोली, ‘‘बेबी, बोला था कि रात को 8 बजे तक आ जाएगा, पर अब तो 10 बज रहे हैं.’’

‘‘आ जाएगी, तुम चिंता मत करो,’’ सु अपने केशों को संवारती हुई बोली, ‘‘विवेक तो बाहर से ही खा कर आएंगे और शायद सो भी. इसलिए तुम मेरे लिए कुछ लो फैट बना दो.’’

‘‘मैम, हम कुछ कहना चाहते थे, आप को. बेबी का व्यवहार और उन के फ्रैंड्स…’’

‘‘व्हाट, तुम जिस थाली में खाती हो, उसी में छेद करती हो. चली जाओ यहां से. अपने काम से काम रखा करो,’’ सु गुस्से में बोली.

‘सभी लोग मेरी फूल सी बच्ची के दुश्मन बन गए हैं. पता नहीं मेरी सो सभी की आंखों में क्यों खटकने लगी है, यह सोचते हुए उस ने कपड़े बदले. झीनी गुलाबी नाइटी में वह पलंग पर लेट गई.

‘‘क्या हुआ जान? बहुत थकी लग रही हो,’’ विवेक शराब का भरा गिलास लिए उस के पास बैठते हुए बोला.

‘‘हां, आज ताश खेलते हुए कुछ ज्यादा पी ली थी और फिर पता नहीं, रे ने किस नए ब्रैंड की सिगरेट थमा दी थी. कमबख्त ने मजा तो बहुत दिया पर शायद थोड़ी ज्यादा स्ट्रौंग थी,’’ सु करवट लेते हुए बोली, ‘‘पर तुम इस समय क्यों पी रहे हो?’’

‘‘अरे भई, माइंड रिलैक्स करने के लिए शराब से अच्छा कोई विकल्प नहीं और फिर सामने शबाब तैयार हो तो शराब की क्या बिसात?’’ कहते हुए विवेक ने अपना गिलास सु के होंठों से लगा दिया.

‘‘यू नौटी,’’ सु ने विवेक को गहरा किस किया और फिर कंधे से लगी शराब पीने लगी.

‘‘सोनाक्षी कहां है?’’ विवेक सु के केशों में उंगलियां फिराते हुए बोला.

‘‘होगी अपने दोस्तों के साथ. अब बच्चे इतने प्रैशर में रहते हैं तो थोड़ीबहुत मौजमस्ती तो जायज है,’’ और सु ने अपनी बांहें विवेक के गले में डाल दीं. धीरेधीरे दोनों एकदूसरे में समाने लगे.

तभी सु का मोबाइल बज उठा, ‘‘व्हाट नौनसैंस, मैं जब भी अपनी जिंदगी के मजे लूटना शुरू करती हूं, यह तभी बज उठता है,’’

सु विवेक को अपने से अलग कर मोबाइल उठाते हुए बोली. फोन पर सो की सहेली प्रज्ञा का नाम हाईलाइट हो रहा था.

पहले तो सु का मन किया कि वह अपना मोबाइल ही बंद कर दे और फिर से अपनी कामक्रीडा में लिप्त हो जाए, पर फिर उस का मन नहीं माना और अपना फोन औन कर दिया.

‘‘आंटी, सो ठीक नहीं है. वह मेरे सामने बेहोश पड़ी है,’’ प्रज्ञा रोते हुए बोली.

‘‘तुम मुझे जगह बताओ, मैं अभी वहां पहुंचती हूं,’’ कह कर सु ने तुरंत अपने कपड़े बदले और गाड़ी ले कर वहां चल दी.

वैसे वह विवेक को भी अपने साथ ले जाना चाहती थी, लेकिन वह सो चुका था. उसे ज्यादा चढ़ गई थी.

जब सु प्रज्ञा के बताए पते पर पहुंची तो हैरान रह गई. सारा हौल शराब की बदबू और सिगरेट के धुएं से भरा था. सो सामने बैठी नीबूपानी पी रही थी.

‘‘क्या हुआ तुम्हें?’’ सु के स्वर में चिंता थी.

‘‘ममा, अब तो ठीक हूं, बस आज कुछ ज्यादा हो गई थी,’’ सो अपना सिर हिलाते हुए बोली.

‘‘तुम ने ड्रिंक ली है?’’ सु ने चौंककर पूछा.

‘‘तो क्या हुआ ममा?’’

‘‘तुम ऐसा कैसे कर सकती हो?’’ सु परेशान हो उठी.

‘‘मैं तो पिछले 6 महीनों से ड्रिंक कर रही हूं, इस में क्या बुरा है?’’ सो लापरवाही से एक अश्लील गाना गुनगुनाते हुए बोली.

‘‘पर तुम तो कोचिंग क्लास जाने की बात कहती थीं और कहती थीं कि माइंड रिलैक्स करने के लिए तुम थोड़ाबहुत हंसीमजाक और डांस वगैरह कर लेती हो, पर यह शराब…’’

‘‘व्हाट नौनसैंस, अगर आप से कहती कि मैं शराब पीती हूं तो क्या आप इजाजत दे देतीं?’’

सु ने तब एक जोरदार थप्पड़ सो के गाल पर दे मारा.

‘‘ममा, मुझे टोकने से पहले खुद को कंट्रोल कीजिए. आप तो खुद रोज ढेरों गिलास गटक जाती हैं. अगर मैं ने थोड़ी सी पी ली तो क्या बुरा किया?’’ सो सिगरेट सुलगाती हुई बोली, ‘‘माइंड रिलैक्स करने के लिए बहुत बढि़या चीज है यह.’’

सो को सिगरेट पीते देख सु को इतना गुस्सा आया कि उस का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा और तब गुस्से के अतिरेक में उठा उस का हाथ सो ने हवा में ही लपक लिया और हंसते हुए बोली, ‘‘ममा, मुझे सुधारने से पहले खुद को सुधारो. खुद तो क्लब की शान बनी बैठी हो और मुझ से किताबी कीड़ा बनने की उम्मीद रखती हो. ममा, मांबाप तो बच्चों के लिए सब से बड़े आदर्श होते हैं और फिर मैं तो आप के द्वारा अपनाए गए रास्ते पर चल कर आप का ही नाम रोशन कर रही हूं,’’ कह कर सिगरेट की राख ऐशट्रे में डाली और अपने दोस्तों के साथ विदेशी गाने की धुन पर थिरकने लगी.

तभी बाहर से हवा का एक तेज झोंका आया और उस से ऐशट्रे में पड़ी राख उड़ कर सु के मुंह पर आ गिरी. तब सु का सारा मुंह ऐसा काला हुआ मानो किसी ने अचानक आधुनिकता की काली स्याही उस के मुख पर पोत दी हो.

कासे कहूं

रिमझिम झा

डाइनिंग टेबल पर साजिया, उस के अब्बू जुनैद सिद्दीकी और अम्मी जरीना खाना खा रहे थे. टैलीविजन पर कोई कार्यक्रम चल रहा था. सभी उस का लुत्फ उठा रहे थे.

उस कार्यक्रम के बीच में सैनेटरी पैड वाला इश्तिहार आया तो 14 साल की साजिया के अब्बू ने चैनल बदल दिया, जिसे वह बड़े गौर से देख रही थी. जिस दूसरे चैनल पर कार्यक्रम चल रहा था, वहां एक प्रेमी जोड़ा एकदूसरे के हाथों में हाथ डाल कर प्यारमुहब्बत की बातें कर रहा था.

साजिया हाथ में निवाला लिए ही वह सीन देखने में लगी रही. जुनैद सिद्दीकी अपनी बेटी की इस हरकत पर खासा नाराज हुए.

जुनैद सिद्दीकी काकीनाड़ा के मुसलिम समाज के नामचीन लोगों में से एक थे. उन के रैस्टोरैंट की बिरियानी बड़ी खास थी. अपनी शानोशौकत में कोई आंच न आए, इस की खातिर अपनी एकलौती बेटी साजिया के हर फैसले खुद लेते थे. उन्होंने साजिया के लिए हर सुखसुविधा का इंतजाम घर में ही कर दिया था.

साजिया को वह सीन गौर से देखते हुए देख कर जल्दी से चैनल बदल दिया गया, लेकिन इस बार जिस चैनल पर उन्होंने ट्यून किया उस के बाद उन्होंने टैलीविजन ही बंद कर दिया और ऊंची आवाज में बोले, ‘‘जरीना, तुम्हें कितनी बार कहा है कि बच्ची के सामने इस तरह के कार्यक्रम मत चलाया करो, उस के नाजुक दिमाग पर बुरा असर पड़ता है. तुम्हें जितना देखना है देखो न, पर

कम से कम साजिया का तो खयाल रखो… यह कच्ची मिट्टी है…’’

और फिर जुनैद सिद्दीकी बोलते चले गए, लेकिन जवानी की दहलीज पर खड़ी साजिया का ध्यान अभी भी उस आखिरी वाले सीन पर ही अटका था जहां हीरो हीरोइन का हाथ पकड़ कर उसे करीब लाने की कोशिश कर रहा था.

साजिया ने किसी तरह खाना खत्म किया और अंगरेजी परंपरा का पालन करते हुए ‘गुड नाइट’ बोल कर अपने कमरे में आ गई. वह कमरे में आ तो गई थी, लेकिन उस के कानों में अभी भी बाहर से कुछ आवाज आ रही थी, ‘‘क्यों? तुम्हें सचमुच ऐसे सीन अच्छे नहीं लगते?’’ यह जरीना की आवाज थी.

‘‘नहीं, मु झे सिर्फ तुम अच्छी लगती हो,’’ अब्बू ने फुसफुसाती आवाज में कहा था. और उस के बाद आवाज और धीमी होती चली गई. आखिरी फुसफुसाती आवाज थी, ‘‘कमरे में तो चलो फिर बताता हूं.’’

साजिया टैलीविजन वाले सीन को आंखों में लिए तकिए को अपने से लिपटा अपनेआप को स्थिर कर सोने की कोशिश करने लगी.

साजिया आजकल क्लास के छात्रों की अपनी ओर खींचती निगाहों को भी महसूस करने लगी थी. अपने अंदर और बाहर हो रहे बदलाव से वह नावाकिफ नहीं थी. अकसर अपनी शारीरिक बनावट में हो रहे बदलाव को निहारा करती थी. साथ ही लड़कों के प्रति आकर्षण के भाव उस के अंदर पनपने लगे थे.

ऐसे में अम्मीअब्बू द्वारा कही गई बातें बीच में बाधक बन जाती थीं. अब्बू द्वारा समयसमय पर कुरानेपाक की आयतों की बात कही जाती थी, उन पर भी ध्यान चला जाता था. जहां नेकनीयती, पाक परवरदिगार की बातें थीं. वहां इन सब बातों की कोई गुंजाइश नहीं थी.

समय बदल रहा था और समय के साथ साजिया की सोच भी. उस की सहेली शुभ्रा अपने जन्मदिन की पार्टी दे रही थी. उस ने अपने करीबी दोस्तों को बुलाया था, जिन में साजिया भी थी.

वैसे साजिया ने मना कर दिया था, क्योंकि वह जानती थी उस के अम्मीअब्बू देर रात तक बाहर रहने के लिए उसे कभी इजाजत नहीं देंगे. वह मन मार कर उन सब की बातें सुन रही थी.

प्रियंका के पापा तो उसे छोड़ने के लिए आने वाले थे. निहाल के मातापिता तो उन के पारिवारिक दोस्त थे, तो उस का आना भी लाजिमी था. और इसी तरह कई मातापिता शुभ्रा के जन्मदिन पर अपने बच्चों के जाने की इजाजत पहले ही दे चुके थे. केवल साजिया ही रह गई थी जिसे देर रात गए बाहर रहने की मनाही थी.

स्कूल से घर आते समय 9वीं क्लास की छात्रा साजिया इसी आंतरिक लड़ाई से जू झ रही थी, जहां एक तरफ मातापिता की पाबंदी और दूसरी तरफ दूसरे साथियों की आजादी थी.

घर का दरवाजा खुलते ही साजिया का बगावती मन बाहर आ गया. उस ने कंधे से बैग उतार कर जोर से सोफे पर पटक दिया, जूतेजुराबें सब उतार कर इधरउधर बिखेरने लगी. उस का चेहरा उतरा हुआ था.

‘‘साजिया, यह सब क्या है… अभीअभी मैं ने पूरा घर ठीक किया है. तुम अपने अब्बू को जानती हो न उन्हें सफाई कितनी पसंद है…’’

अम्मी अभी कुछ और कहने ही वाली थीं कि साजिया फट पड़ी, ‘‘सारी बातें बस मु झे ही सम झनी हैं. दुनिया कहां जा रही है, पर मुझे इतनी सी इजाजत नहीं है कि मैं अपने सहेली के जन्मदिन पर जा सकूं, मु झे तो जीने का हक ही नहीं है, क्योंकि मैं ‘द ग्रेट सिद्दीकी’ की बेटी हूं…’’

साजिया बोले जा रही थी. वह अपने शरीर में मच रही हलचल जिसे वह निकाल नहीं पा रही थी, वह अब कुंठा का रूप ले रही थी और उसी को वह शब्दों के रूप में निकाल रही थी.

जरीना अपनी बेटी को अवाक नजरों से निहारने लगीं. पिंजरे में बंद मैना अब उड़ान भरने के लिए पंख फड़फड़ाने लगी थी. वह उम्र की उस दहलीज पर खड़ी थी जहां से शारीरिक बदलाव आना लाजिमी था.

‘‘क्या हुआ है? क्यों इतनी नाराज है हम से हमारी लाड़ो?’’ अम्मी ने हाथ पकड़ कर साजिया को अपने पास बिठाने की कोशिश की.

साजिया जानती थी कि अम्मी हमेशा ऐसा ही करती हैं. अपने पास बिठाती हैं, सम झाती हैं और फिर साजिया भी उन की बताई बातों को सम झ कर उन की हां में हां मिला कर मान जाती है. जिंदगी की गाड़ी फिर से उसी पुरानी पटरी पर आ जाती है. लेकिन इस बार साजिया उम्र की जिस दहलीज पर खड़ी थी, वहां कुछ भी सामान्य नहीं था.

शाम को साजिया की अम्मी ने अब्बू से सारा हाल बयां कर दिया. सारी बातें सुनने के बाद अब्बू के कदम साजिया के कमरे की तरफ बढ़े ही थे कि जरीना ने उन्हें रोकने की कोशिश की.

‘‘तुम चिंता न करो, मैं उसे सम झा देता हूं. अपनी बच्ची है सम झ जाएगी,’’ जुनैद ने जरीना को भरोसा दिलाया, लेकिन वही हुआ जिस का डर था. साजिया को न सम झना था, न वह सम झी. घर का माहौल बिलकुल बिगड़ चुका था. अब साजिया वही सबकुछ करने लगी थी जो उसे अच्छा लगता था.

साजिया के शरीर के अंदर हो रही उथलपुथल ने पूरी बगावत कर दी थी. इन दिनों उस का मन विज्ञान के रिप्रोडक्शन चैप्टर में कुछ ज्यादा ही  लगने लगा था. इंटरनैट पर आ रहे उन इश्तिहारों पर उस का ध्यान जाने लगा था, जिन में अंगों के आकारप्रकार बढ़ाने की बात होती थी. ऐसे इश्तिहार उसे लुभाने लगे थे. अकसर आईने के आगे खड़े हो कर अपने अंगों को देखना उसे अब अच्छा लगने लगा था.

फरवरी का महीना था. साजिया की मौसी यासमीन अपने 15 साल के बेटे साहिल के साथ आने वाली थीं. साजिया पिछली बार जब उस से मिली थी तब वे दोनों तकरीबन 5 साल के थे. 2 बैडरूम वाले फ्लैट में मौसी के लिए साजिया का कमरा रिजर्व्ड किया गया था.

मौसी अपने बेटे साहिल और पति के साथ आ चुकी थीं. वे जब आए तो साजिया अपनी सहेली के घर गई थी. दोपहर के तकरीबन 3 बज रहे थे. उस समय साजिया की अम्मी, अब्बू, मौसी और उन के पति छत पर बैठ कर बातें कर रहे थे. साजिया आते ही अपने कमरे में चली गई, जहां साहिल उस के बिस्तर पर सो रहा था.

साजिया को अपने कमरे में साहिल के होने का एहसास बिलकुल न हुआ. जैसे वह पहले आती थी और कपड़े बदलने लगती थी उस दिन भी वही हुआ. वह अपनेआप को निहारने लगती. उस के कमरे में आने की आहट से साहिल की नींद टूट चुकी थी, लेकिन वह कंबल के नीचे से साजिया की सारी हरकतों पर नजर दौड़ाता रहा.

जैसे ही साजिया को साहिल की घूरती आंखों का पता चला तो वह चीख पड़ी और कमरे से बाहर आ गई. खूब होहल्ला हुआ, लेकिन धीरेधीरे मामला शांत किया गया.

अब माहौल ऐसा हो गया कि साजिया साहिल के सामने पड़ते ही उस की आंखों के घेरे में खुद को महसूस करने लगी थी.

यह उम्र ही ऐसी थी जो साहिल भी अनकहे एहसास को सम झने लगा था. धीरेधीरे उन दोनों में दोस्ती होने लगी थी. शुरुआती बातों में किताबों के साथसाथ पसंदनपसंद के गाने और कपड़े भी शामिल थे. धीरेधीरे किस कपड़े में वह कितनी अच्छी लगती है, ऐसी बातें भी शामिल होने लगीं. बातों ही बातों में साहिल की गर्लफ्रैंड है, यह बात सामने आई और उसे परेशान कर गई.

अपनी गर्लफ्रैंड के साथ बिताए कुछ असहज पलों का जिक्र करने में साहिल तनिक भी न सकुचाया. इन सब बातों ने उसे बेकाबू कर दिया था. अब वह साहिल से नजदीकियां बनाने की कोशिश करने लगी, ताकि सहेलियों के बीच में बोल सके कि उसे भी कोई पसंद करता है. लेकिन अम्मीअब्बू द्वारा बनाए घेरे को तोड़ कर अपने मन की सुनना मुश्किल हो रहा था.

अगले ही दिन मौसी ने वापस जाने का ऐलान कर दिया. अब साजिया को लगने लगा कि कुछ अधूरा रह गया है. वह ऐसा क्या करे कि मन शांत हो जाए. उसे अब किसी की परवाह नहीं रह गई थी. आखिरकार उस ने अपने मन की सुन ली.

साजिया ऐक्स्ट्रा क्लास का बहाना बना कर कर घर से निकली. साहिल को उस ने पहले ही बता दिया था कि उसे कहां आना है. फिर क्या था, शाम को उस ने साहिल के साथ फिल्म देखी, विदाई भोज के नाम पर खाना खाया. इस बीच घर पर सभी परेशान थे, क्योंकि कभी भी साजिया इतनी देर घर से बाहर नहीं रुकी थी. कई सहेलियों के घर फोन किया गया. कहीं से ऐक्स्ट्रा क्लास की कोई खबर नहीं मिली. अब तक जुनैद साहब का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच चुका था.

तकरीबन घंटेभर बाद वे दोनों हाथों में हाथ डाल कर मुसकरातेइठलाते मेन दरवाजे से अंदर आए. आगे क्या कुछ होने वाला है, साजिया जानती थी, पर वह खुश थी. उस ने अपने मन की सुन ली थी.

यही वजह थी कि पिता की दहकती आंखों का सामना करते हुए वह तनिक भी न सकुचाई. मौसी तो अवाक नजरों से उसे देखती ही रह गईं.

सरप्राइज – क्या खुद खुश रह पाई सबका जीवन संवारने वाली सीमा?

लेखिका-Anita Jain

रविवार को सुबह 10 बजे जब सीमा के मोबाइल की घंटी बजी तो उस ने उसे लपक कर उठा लिया. स्क्रीन पर अपने बचपन की सहेली नीता का नाम पढ़ा तो वह भावुक हो गई और खुद से ही बोली कि चलो किसी को तो याद है आज का दिन.

लेकिन अपनी सहेली से बातें कर उसे निराशा ही हाथ लगी. नीता ने उसे कहीं घूमने चले का निमंत्रण भर ही दिया. उसे भी शायद आज के दिन की विशेषता याद नहीं थी.

‘‘मैं घंटे भर में तेरे पास पहुंच जाऊंगी,’’ यह कह कर सीमा ने फोन काट दिया.

‘सब अपनीअपनी जिंदगियों में मस्त हैं. अब न मेरी किसी को फिक्र है और न जरूरत. क्या आगे सारी जिंदगी मुझे इसी तरह की उपेक्षा व अपमान का सामना करना पड़ेगा?’ यह सोच उस की आंखों में आंसू भर आए.

कुछ देर बाद वह तैयार हो कर अपने कमरे से बाहर निकली और रसोई में काम कर रही अपनी मां को बताया, ‘‘मां, मैं नीता के पास जा रही हूं.’’

‘‘कब तक लौट आएगी?’’ मां ने पूछा.

‘‘जब दिल करेगा,’’ ऐसा रूखा सा जवाब दे कर उस ने अपनी नाराजगी प्रकट की.

‘‘ठीक है,’’ मां का लापरवाही भरा जवाब सुन कर उदास हो गई.

सीमा का भाई नवीन ड्राइंगरूम में अखबार पढ़ रहा था. वह उस की तरफ देख कर मुसकराया जरूर पर उस के बाहर जाने के बारे में कोई पूछताछ नहीं की.

नवीन से छोटा भाई नीरज बरामदे में अपने बेटे के साथ खेल रहा था.

‘‘कहां जा रही हो, दीदी?’’ उस ने अपना गाल अपने बेटे के गाल से रगड़ते हुए सवाल किया.

‘‘नीता के घर जा रही हूं,’’ सीमा ने शुष्क लहजे में जवाब दिया.

‘‘मैं कार से छोड़ दूं उस के घर तक?’’

‘‘नहीं, मैं रिकशा से चली जाऊंगी.’’

‘‘आप को सुबहसुबह किस ने गुस्सा दिला दिया है?’’

‘‘यह मत पूछो…’’ ऐसा तीखा जवाब दे कर वह गेट की तरफ तेज चाल से बढ़ गई.

कुछ देर बाद नीता के घर में प्रवेश करते ही सीमा गुस्से से फट पड़ी, ‘‘अपने भैयाभाभियों की मैं क्या शिकायत करूं, अब तो मां को भी मेरे सुखदुख की कोई चिंता नहीं रही.’’

‘‘हुआ क्या है, यह तो बता?’’ नीता ने कहा.

‘‘मैं अब अपनी मां और भैयाभाभियों की नजरों में चुभने लगी हूं… उन्हें बोझ लगती हूं.’’

‘‘मैं ने तो तुम्हारे घर वालों के व्यवहार में कोई बदलाव महसूस नहीं किया है. हां, कुछ दिनों से तू जरूर चिड़चिड़ी और गुस्सैल हो गई है.’’

‘‘रातदिन की उपेक्षा और अपमान किसी भी इंसान को चिड़चिड़ा और गुस्सैल बना देता है.’’

‘‘देख, हम बाहर घूमने जा रहे हैं, इसलिए फालतू का शोर मचा कर न अपना मूड खराब कर, न मेरा,’’ नीता ने उसे प्यार से डपट दिया.

‘‘तुझे भी सिर्फ अपनी ही चिंता सता रही है. मैं ने नोट किया है कि तुझे अब मेरी याद तभी आती है, जब तेरे मियांजी टूर पर बाहर गए हुए होते हैं. नीता, अब तू भी बदल गई है,’’ सीमा का गुस्सा और बढ़ गया.

‘‘अब मैं ने ऐसा क्या कह दिया है, जो तू मेरे पीछे पड़ गई है?’’ नीता नाराज होने के बजाय मुसकरा उठी.

‘‘किसी ने भी कुछ नहीं किया है… बस, मैं ही बोझ बन गई हूं सब पर,’’ सीमा रोंआसी हो उठी.

‘‘तुम्हें कोई बोझ नहीं मानता है, जानेमन. किसी ने कुछ उलटासीधा कहा है तो मुझे बता. मैं इसी वक्त उस कमअक्ल इंसान को ऐसा डांटूंगी कि वह जिंदगी भर तेरी शान में गुस्ताखी करने की हिम्मत नहीं करेगा,’’ नीता ने उस का हाथ पकड़ा और पलंग पर बैठ गई.

‘‘किसकिस को डांटेगी तू. जब मतलब निकल जाता है तो लोग आंखें फेर लेते हैं. अब मेरे साथ ऐसा ही व्यवहार मेरे दोनों भाई और उन की पत्नियां कर रही हैं तो इस में हैरानी की कोई बात नहीं है. मैं बेवकूफ पता नहीं क्यों आंसू बहाने पर तुली हुई हूं,’’ सीमा की आंखों से सचमुच आंसू बहने लगे थे.

‘‘क्या नवीन से कुछ कहासुनी हो गई है?’’

‘‘उसे आजकल अपने बिजनैस के कामों से फुरसत ही कहां है. वह भूल चुका है कि कभी मैं ने अपने सहयोगियों के सामने हाथ फैला कर कर्ज मांगा था उस का बिजनैस शुरू करवाने के लिए.’’

‘‘अगर वह कुसूरवार नहीं है तब क्या नीरज ने कुछ कहा है?’’

‘‘उसे अपने बेटे के साथ खेलने और पत्नी की जीहुजूरी करने से फुरसत ही नहीं मिलती. पहले बहन की याद उसे तब आती थी, जब जेब में पैसे नहीं होते थे. अब इंजीनियर बन जाने के बाद वह खुद तो खूब कमा ही रहा है, उस के सासससुर भी उस की जेबें भरते हैं. उस के पास अब अपनी बहन से झगड़ने तक का वक्त नहीं है.’’

‘‘अगर दोनों भाइयों ने कुछ गलत नहीं कहा है तो क्या अंजु या निशा ने कोई गुस्ताखी की है?’’

‘‘मैं अब अपने ही घर में बोझ हूं, ऐसा दिखाने के लिए किसी को अपनी जबान से कड़वे या तीखे शब्द निकालने की जरूरतनहीं है. लेकिन सब के बदले व्यवहार की वजह से आजकल मैं अपने कमरे में बंद हो कर खून के आंसू बहाती हूं. जिन छोटे भाइयों को मैं ने अपने दिवंगत पिता की जगह ले कर सहारा दिया, आज उन्होंने मुझे पूरी तरह से भुला दिया है. पूरे घर में किसी को भी ध्यान नहीं है कि मैं आज 32 साल की हो गई हूं…

तू भी तो मेरा जन्मदिन भूल गई… अपने दोनों भाइयों का जीवन संवारते और उन की घरगृहस्थी बसातेबसाते मैं कितनी अकेली रह गई हूं.’’

नीता ने उसे गले से लगाया और बड़े अपनेपन से बोली, ‘‘इंसान से कभीकभी ऐसी भूल हो जाती है कि वह अपने किसी बहुत खास का जन्मदिन याद नहीं रख पाता. मैं तुम्हें शुभकामनाएं देती हूं.’’

उस के गले से लगेलगे सीमा सुबकती हुई बोली, ‘‘मेरा घर नहीं बसा, मैं इस बात की शिकायत नहीं कर रही हूं, नीता. मैं शादी कर लेती तो मेरे दोनों छोटे भाई कभी अच्छी तरह से अपने पैरों पर खड़े नहीं हो पाते. शादी न होने का मुझे कोई दुख नहीं है.

‘‘अपने दोनों छोटे भाइयों के परिवार का हिस्सा बन कर मैं खुशीखुशी जिंदगी गुजार लूंगी, मैं तो ऐसा ही सोचती थी. लेकिन आजकल मैं खुद को बिलकुल अलगथलग व अकेला महसूस करती हूं. कैसे काटूंगी मैं इस घर में अपनी बाकी जिंदगी?’’

‘‘इतनी दुखी और मायूस मत हो, प्लीज. तू ने नवीन और नीरज के लिए जो कुरबानियां दी हैं, उन का बहुत अच्छा फल तुझे मिलेगा, तू देखना.’’

‘‘मैं इन सब के साथ घुलमिल कर जीना…’’

‘‘बस, अब अगर और ज्यादा आंसू बहाएगी तो घर से बाहर निकलने पर तेरी लाल, सूजी आंखें तुझे तमाशा बना देंगी.

तू उठ कर मुंह धो ले फिर हम घूमने चलते हैं,’’ नीता ने उसे हाथ पकड़ कर जबरदस्ती खड़ा कर दिया.

‘‘मैं घर वापस जाती हूं. कहीं घूमने जाने का अब मेरा बिलकुल मूड नहीं है.’’

‘‘बेकार की बात मत कर,’’ नीता उसे खींचते हुए गुसलखाने के अंदर धकेल आई.

जब वह 15 मिनट बाद बाहर आई, तो नीता ने उस के एक हाथ में एक नई काली साड़ी, मैचिंग ब्लाउज वगैरह पकड़ा दिया.

‘‘हैप्पी बर्थडे, ये तेरा गिफ्ट है, जो मैं कुछ दिन पहले खरीद लाई थी,’’ नीता की आंखों में शरारत भरी चमक साफ नजर आ रही थी.

‘‘अगर तुझे मेरा गिफ्ट खरीदना याद रहा, तो मुझे जन्मदिन की मुबारकबाद देना कैसे भूल गई?’’ सीमा की आंखों में उलझन के भाव उभरे.

‘‘अरे, मैं भूली नहीं थी. बात यह है कि आज हम सब तुझे एक के बाद एक सरप्राइज देने के मूड में हैं.’’

‘‘इस हम सब में और कौनकौन शामिल है?’’

‘‘उन के नाम सीक्रेट हैं. अब तू फटाफट तैयार हो जा. ठीक 1 बजे हमें कहीं पहुंचना है.’’

‘‘कहां?’’

‘‘उस जगह का नाम भी सीके्रट है.’’

सीमा ने काफी जोर डाला पर नीता ने उसे इन सीक्रेट्स के बारे में और कुछ भी

नहीं बताया. सीमा को अच्छी तरह से तैयार करने में नीता ने उस की पूरी सहायता की. फिर वे दोनों नीता की कार से अप्सरा बैंक्वेट हौल पहुंचे.

‘‘हम यहां क्यों आए हैं?’’

‘‘मुझ से ऐसे सवाल मत पूछ और सरप्राइज का मजा ले, यार,’’ नीता बहुत खुश और उत्तेजित सी नजर आ रही थी.

उलझन से भरी सीमा ने जब बैंक्वेट हौल में कदम रखा, तो अपने स्वागत में बजी तालियों की तेज आवाज सुन कर वह चौंक पड़ी. पूरा हौल ‘हैप्पी बर्थडे’ के शोर से गूंज उठा.

मेहमानों की भीड़ में उस के औफिस की खास सहेलियां, नजदीकी रिश्तेदार और परिचित शामिल थे. उन सब की नजरों का केंद्र बन कर वह बहुत खुश होने के साथसाथ शरमा भी उठी.

सब से आगे खड़े दोनों भाई व भाभियों को देख कर सीमा की आंखों में आंसू छलक आए. अपनी मां के गले से लग कर उस के मन ने गहरी शांति महसूस की.

‘‘ये सब क्या है? इतना खर्चा करने की क्या जरूरत थी?’’ उस की डांट को सुन कर नवीन और नीरज हंस पड़े.

दोनों भाइयों ने उस का एकएक बाजू पकड़ा और मेहमानों की भीड़ में से गुजरते हुए उसे हौल के ठीक बीच में ले आए.

नवीन ने हाथ हवा में उठा कर सब से खामोश होने की अपील की. जब सब चुप हो गए तो वह ऊंची आवाज में बोला,

‘‘सीमा दीदी सुबह से बहुत खफा हैं. ये सोच रही थीं कि हम इन के जन्मदिन की तारीख भूल गए हैं, लेकिन ऐसा नहीं था. आज हम इन्हें बहुत सारे सरप्राइज देना चाहते हैं.’’

सरप्राइज शब्द सुन कर सीमा की नजरों ने एक तरफ खड़ी नीता को ढूंढ़ निकाला. उस को दूर से घूंसा दिखाते हुए वह हंस पड़ी.

अब ये उसे भलीभांति समझ में आ गया था कि नीता भी इस पार्टी को सरप्राइज बनाने की साजिश में उस के घर वालों के साथ मिली हुई थी.

नवीन रुका तो नीरज ने सीमा का हाथ प्यार से पकड़ कर बोलना शुरू कर दिया, ‘‘हमारी दीदी ने पापा की आकस्मिक मौत के बाद उन की जगह संभाली और हम दोनों भाइयों की जिंदगी संवारने के लिए अपनी खुशियां व इच्छाएं इन के एहसानों का बदला हम कभी नहीं भूल गईं.’’

‘‘लेकिन हम इन के एहसानों व कुरबानियों को भूले नहीं हैं,’’ नवीन ने फिर

से बोलना शुरू कर दिया, ‘‘कभी ऐसा वक्त था जब पैसे की तंगी के चलते हमारी आदरणीय दीदी को हमारे सुखद भविष्य की खातिर अपने मन को मार कर जीना पड़ रहा था. आज दीदी के कारण हमारे पास बहुत कुछ है.

‘‘और अपनी आज की सुखसमृद्धि को अब हम अपनी दीदी के साथ बांटेंगे.

‘‘मैं ने अपना राजनगर वाला फ्लैट दीदी के नाम कर दिया है,’’ ऊंची आवाज में ये घोषणा करते हुए नवीन ने रजिस्ट्री के कागजों का लिफाफा सीमा के हाथ में पकड़ा दिया.

‘‘और ये दीदी की नई कार की चाबी है. दीदी को उन के जन्मदिन का ये जगमगाता हुआ उपहार निशा और मेरी तरफ से.’’

‘‘और ये 2 लाख रुपए का चैक फ्लैट की जरूरत व सुखसुविधा की चीजें खरीदने

के लिए.

‘‘और ये 2 लाख का चैक दीदी को अपनी व्यक्तिगत खरीदारी करने के लिए.’’

‘‘और ये 5 लाख का चैक हम सब की तरफ से बरात की आवभगत के लिए.

‘‘अब आप लोग ये सोच कर हैरान हो रहे होंगे कि दीदी की शादी कहीं पक्की होने की कोई खबर है नहीं और यहां बरात के स्वागत की बातें हो रही हैं. तो आप सब लोग हमारी एक निवेदन ध्यान से सुन लें. अपनी दीदी का घर इसी साल बसवाने का संकल्प लिया है हम दोनों भाइयों ने. हमारे इस संकल्प को पूरा कराने में आप सब दिल से पूरा सहयोग करें, प्लीज.’’

बहुत भावुक नजर आ रहे नवीन और नीरज ने जब एकसाथ झुक कर सीमा के पैर छुए, तो पूरा हौल एक बार फिर तालियों की आवाज से गूंज उठा.

सीमा की मां अपनी दोनों बहुओं व पोतों के साथ उन के पास आ गईं. अब पूरा परिवार एकदूसरे का मजबूत सहारा बन कर एकसाथ खड़ा हुआ था. सभी की आंखों में खुशी के आंसू झिलमिला रहे थे.

बहुत दिनों से चली आ रही सीमा के मन की व्याकुलता गायब हो गई. अपने दोनों छोटे भाइयों के बीच खड़ी वह इस वक्त अपने सुखद, सुरक्षित भविष्य के प्रति पूरी तरह से आश्वस्त नजर आ रही थी.

प्रतिदिन: भाग 3

‘‘‘सुमित्रा मेरी सलाह लिए बिना भाभी को चाबी दे आई. आ कर भाभी की बड़ी तारीफ करने लगी. चूंकि इस का अभी तक चालाक लोगों से वास्ता नहीं पड़ा था इसलिए भाभी इसे बहुत अच्छी लगी थीं. पर भाभी क्या बला है यह तो मैं ही जानता हूं. वैसे मैं ने इसे पिछली बार जब इंडिया भेजा था तो वहां जा कर इस का पागलपन का दौरा ठीक हो गया था. लेकिन इस बार रिश्तेदारों से मिल कर 1 महीने में ही वापस आ गई. पूछा तो बोली, ‘रहती कहां? बड़ी भाभी ने किसी को घर की चाबी दे रखी थी. कोई बैंक का कर्मचारी वहां रहने लगा था.’

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‘‘सुमित्रा आगे बताने लगी कि भाभी यह जान कर कि हम अब यहीं आ कर रहेंगे, खुश नहीं हुईं बल्कि कहने लगीं, ‘जानती हो कितनी महंगाई हो गई है. एक मेहमान के चायपानी पर ही 100 रुपए खर्च हो जाते हैं.’ फिर वह उठीं और अंदर से कुछ कागज ले आईं. सुमित्रा के हाथ में पकड़ाते हुए कहने लगीं कि यह तुम्हारे मकान की रिपेयरिंग का बिल है जो किराएदार दे गया है. मैं ने उस से कहा था कि जब मकानमालिक आएंगे तो सारा हिसाब करवा दूंगी. 14-15 हजार का खर्चा था जो मैं ने भर दिया.

‘‘‘रात खानेपीने के बाद देवरानी व जेठानी एकसाथ बैठीं तो यहांवहां की बातें छिड़ गईं. सुमित्रा कहने लगी कि दीदी, यहां भी तो लोग अच्छा कमातेखाते हैं, नौकरचाकर रखते हैं और बडे़ मजे से जिंदगी जीते हैं. वहां तो सब काम हमें अपने हाथ से करना पड़ता है. दुख- तकलीफ में भी कोई मदद करने वाला नहीं मिलता. किसी के पास इतना समय ही नहीं होता कि किसी बीमार की जा कर खबर ले आए.’

‘‘भाभी का जला दिल और जल उठा. वह बोलीं कि सुमित्रा, हमें भरमाने की बातें तो मत करो. एक तुम्हीं तो विलायत हो कर नहीं आई हो…और भी बहुत लोग आते हैं. और वहां का जो यशोगान करते हैं उसे सुन कर दिल में टीस सी उठती है कि आप ने विलायत रह कर भी अपने भाई के लिए कुछ नहीं किया.

‘‘सुमित्रा ने बात बदलते हुए पूछा कि दीदी, उस सुनंदा का क्या हाल है जो यहां स्कूल में प्रिंसिपल थी. इस पर बड़ी भाभी बोलीं, ‘अरे, मजे में है. बच्चों की शादी बडे़ अमीर घरों में कर दी है. खुद रिटायर हो चुकी है. धन कमाने का उस का नशा अभी भी नहीं गया है. घर में बच्चों को पढ़ा कर दौलत कमा रही है. पूछती तो रहती है तेरे बारे में. कल मिल आना.’

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‘‘अगले दिन सुमित्रा से सुनंदा बड़ी खुश हो कर मिली. उलाहना भी दिया कि इतने दिनों बाद गांव आई हो पर आज मिलने का मौका मिला है. आज भी मत आतीं.

‘‘सुनंदा के उलाहने के जवाब में सुमित्रा ने कहा, ‘लो चली जाती हूं. यह तो समझती नहीं कि बाहर वालों के पास समय की कितनी कमी होती है. रिश्तेदारों से मिलने जाना, उन के संदेश पहुंचाना. घर में कोई मिलने आ जाए तो उस के पास बैठना. वह उठ कर जाए तो व्यक्ति कोई दूसरा काम सोचे.’

‘‘‘बसबस, रहने दे अपनी सफाई,’ सुनंदा बोली, ‘इतने दिनों बाद आई है, कुछ मेरी सुन कुछ अपनी कह.’

‘‘आवभगत के बाद सुनंदा ने सुमित्रा को बताया तुम्हारी जेठानी ने तुम्हारा घर अपना कह कर किराए पर चढ़ाया है. 1,200 रुपए महीना किराया लेती है और गांवमहल्ले में सब से कहती फिरती है कि सुमित्रा और देवरजी तो इधर आने से रहे. अब मुझे ही उन के घर की देखभाल करनी पड़ रही है. सुमित्रा पिछली बार खुद ही मुझे चाबी दे गई थी,’ फिर आगे बोली, ‘मुझे लगता है कि उस की निगाह तुम्हारे घर पर है.’

‘‘‘तभी भाभी मुझ से कह रही थीं कि जिस विलायत में जाने को हम यहां गलतसही तरीके अपनाते हैं, उसी को तुम ठुकरा कर आना चाहती हो. तेरे भले की कहती हूं ऐसी गलती मत करना, सुमित्रा.’

‘‘सुनंदा बोली, ‘मैं ने अपनी बहन समझ कर जो हकीकत है, बता दी. जो भी निर्णय लेना, ठंडे दिमाग से सोच कर लेना. मुझे तो खुशी होगी अगर तुम लोग यहां आ कर रहो. बीते दिनों को याद कर के खूब आनंद लेंगे.’

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‘‘सुनंदा से मिल कर सुमित्रा आई तो घर में उस का दम घुटने लगा. वह 2 महीने की जगह 1 महीने में ही वापस लंदन चली आई.

‘‘‘विनोद भाई, तुम्हीं कोई रास्ता सुझाओ कि क्या करूं. इधर से सब बेच कर इंडिया रहने की सोचूं तो पहले तो घर से किराएदार नहीं उठेंगे. दूसरे, कोई जगह ले कर घर बनाना चाहूं तो वहां कितने दिन रह पाएंगे. बच्चों ने तो उधर जाना नहीं. यहां अपने घर में तो बैठे हैं. किसी से कुछ लेनादेना नहीं. वहां तो किसी काम से भी बाहर निकलो तो जासूस पीछे लग लेंगे. तुम जान ही नहीं पाओगे कि कब मौका मिलते ही तुम पर कोई अटैक कर दे. यहां का कानून तो सुनता है. कमी तो बस, इतनी ही है कि अपनों का प्यार, उन के दो मीठे बोल सुनने को नहीं मिलते.’’

‘‘‘बात तो तुम्हारी सही है. थोडे़ सुख के लिए ज्यादा दुख उठाना तो समझदारी नहीं. यहीं अपने को व्यस्त रखने की कोशिश करो,’’ विनोद ने उन्हें सुझाया था.

‘‘अब जब सारी उम्र खूनपसीना बहा कर यहीं गुजार दी, टैक्स दे कर रानी का घर भर दिया. अब पेंशन का सुख भी इधर ही रह कर भोगेंगे. जिस देश की मिट्टीपानी ने आधी सदी तक हमारे शरीर का पोषण किया उसी मिट्टी को हक है हमारे मरने के बाद इस शरीर की मिट्टी को अपने में समेटने का. और फिर अब तो यहां की सरकार ने भारतीयों के लिए अस्थिविसर्जन की सुविधा भी शुरू कर दी है.

‘‘विनोद, मैं तो सुमित्रा को समझासमझा कर हार गया पर उस के दिमाग में कुछ घुसता ही नहीं. एक बार बडे़ बेटे ने फोन क्या कर दिया कि मम्मी, आप दादी बन गई हैं और एक बार अपने पोते को देखने आओ न. बस, कनाडा जाने की रट लगा बैठी है. वह नहीं समझती कि बेटा ऐसा कर के अपने किए का प्रायश्चित करना चाहता है. मैं कहता हूं कि उसे पोते को तुम से मिलाने को इतना ही शौक है तो खुद क्यों नहीं यहां आ जाता.

‘‘तुम्हीं बताओ दोस्त, जिस ने हमारी इज्जत की तनिक परवा नहीं की, अच्छेभले रिश्ते को ठुकरा कर गोरी चमड़ी वाली से शादी कर ली, वह क्या जीवन के अनोखे सुख दे देगी इसे जो अपनी बिरादरी वाली लड़की न दे पाती. देखना, एक दिन ऐसा धत्ता बता कर जाएगी कि दिन में तारे नजर आएंगे.’’

‘‘यार मैं ने सुना है कि तुम भाभी को बुराभला भी कहते रहते हो. क्या इस उम्र में यह सब तुम्हें शोभा देता है?’’ एक दिन विनोद ने शर्माजी से पूछा था.

‘‘क्या करूं, जब वह सुनती ही नहीं, घर में सब सामान होते हुए भी फिर वही उठा लाती है. शाम होते ही खाना खा ऊपर जा कर जो एक बार बैठ गई तो फिर कुछ नहीं सुनेगी. कितना पुकारूं, सिर खपाऊं पर जवाब नहीं देती, जैसे बहरी हो गई हो. फिर एक पैग पीने के बाद मुझे भी होश नहीं रहता कि मैं क्या बोल रहा हूं.’’

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पूरी कहानी सुनातेसुनाते दीप्ति को लंच की छुट्टी का भी ध्यान न रहा. घड़ी देखी तो 5 मिनट ऊपर हो गए थे. दोनों ने भागते हुए जा कर बस पकड़ी.

घर पहुंचतेपहुंचते मेरे मन में पड़ोसिन आंटी के प्रति जो क्रोध और घृणा के भाव थे सब गायब हो चुके थे. धीरेधीरे हम भी उन के नित्य का ‘शबद कीर्तन’ सुनने के आदी होने लगे.

हिमशैल: भाग 2

रायबहादुर घर में आए इस बदलाव को महसूस तो कर रहे थे पर कारण समझने में असमर्थ थे इसलिए केवल मूकदर्शक ही बन कर रह गए थे. इनसान बाहर के दुश्मनों से तो लड़ सकता है किंतु जब घर में ही कोई विभीषण हो तो कोई क्या करे. अपनों से धोखा खाना बेहद सरल है. कहते हैं कि औरत ही घर बनाती है और वही बिगाड़ती भी है. यदि परिवार में एक भी स्त्री गलत मंतव्य की आ जाए तो विनाश अवश्यंभावी है.

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उम्र बढ़ने के साथसाथ आरती की चचिया सास के निरंकुश शासन का साम्राज्य भी बढ़ता रहा. इस बात का तकलीफदेह अनुभव तब हुआ जब चाचीजी के सौतेले भाई ने अपने बेटे के विवाह में बहन की नाराजगी के डर से अजय व रायबहादुर को विवाह का आमंत्रणपत्र ही नहीं भेजा. लोगों द्वारा उन के न आने का कारण पूछने पर उन का पैसों का अहंकार प्रचारित कर दिया गया. हालांकि चाचाजी ने इस का विरोध किया था किंतु तेजतर्रार चाची के सामने उन की आवाज नक्कारखाने में तूती बन कर रह गई थी.

मृतप्राय रिश्तों के ताबूत में आखिरी कील उन्होंने तब ठोंक दी जब अजय के बेटे अंशुल के जन्मदिन की पार्टी में रायबहादुर द्वारा सानुरोध सपरिवार आमंत्रित होेने के बाद भी केवल चाचाजी थोड़ी देर के लिए आ कर रस्म अदायगी कर गए. केवल लोकलाज के लिए रिश्तों को ढोते रहने का कोई अर्थ नहीं रह गया था. इसीलिए सगी भतीजी नेहा के विवाह आमंत्रण पर अजय ने साफ कह दिया कि यदि चाचाजी के परिवार को बुलाया गया तो हमारा परिवार नहीं जाएगा.

हमेशा की तरह बिना कारण पूछे विजय छूटते ही बोला, ‘अजय, तुम तो लड़ने का बहाना ढूंढ़ते रहते हो, इसीलिए सब तुम से दूर होते जा रहे हैं.’

‘अपने दूर क्यों हो रहे हैं, यह आप नहीं समझ सकते क्योंकि समझना ही नहीं चाहते. मैं न किसी से लड़ने जाता हूं और न अहंकारी हूं. हां, साफ कहने का माद्दा रखता हूं और गलत बात बरदाश्त नहीं करता. मुझे तो भाई आश्चर्य इस बात का है कि जब वे आप को गलत नहीं लगे तो मैं क्यों लग रहा हूं या तो आप को पूरी बातें पता ही नहीं हैं या मेरी इज्जत आप के लिए कोई माने नहीं रखती है. कोई हो या न हो पर पिताजी मेरे साथ हैं और यही मेरे लिए काफी है,’ अजय एक सांस में बोल गया.

‘तुम्हीं लोगों को शिकायतें रहती हैं. पिताजी तो मेरे यहां हर फंक्शन पर आते हैं और चाचाजी व अन्य सब से ठीक से बोलते भी हैं.’

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‘संतान का मोह ही उन्हें खींच कर ले जाता है. संतान चाहे कितना भी दुख दे मांबाप का प्यार तो निस्वार्थ होता है. आप ने कभी उन का दर्द महसूस ही नहीं किया. रही बात चाचाजी से पिताजी के बोलने की, तो हम लोग उस स्तर तक असभ्य नहीं हो सकते कि कोई बात करे तो जवाब न दें या अपने घर फंक्शन पर बुला कर खाने तक के लिए न पूछें. क्या आप के लिए चाचाजी, सगे भाई व पिता की खुशी से भी ज्यादा बढ़ कर हैं?’

‘जो भी हो…पर अजय…अब केवल तुम्हारे लिए मैं चाचाजी के पूरे परिवार को तो नहीं छोड़ सकता. उन्हें तो अपनी बेटी नेहा के विवाह में बुलाऊंगा ही,’ विजय जैसे कुछ सुननेसमझने को तैयार ही न था.

‘तो ठीक है, हमें ही छोड़ दीजिए,’ भारी मन से कह अजय सब के बीच से उठ कर चला गया था. पर इस एक पल में अंदर कितना कुछ टूट गया, कौन जान सका. एक क्षण को विजय अपने ही शब्दों की चुभन से आहत हो उठा था. किंतु बंदूक से निकली गोली और मुंह से निकली बोली तो वापस नहीं हो सकती.

उस दिन का व्याप्त सन्नाटा आज तक नहीं टूट पाया था. तभी महरी की आवाज से आरती की तंद्रा भंग हो गई.

‘‘बीबीजी, आप नहीं जाएंगी नेहा बिटिया की गोदभराई पर?’’ आंखों में कुटिल भाव लिए पल्लू से हाथ पोंछती महरी ने पूछा था.

‘‘तुम्हें इस से क्या मतलब है…जाओ, अपना काम करो,’’ उस की चुगलखोरी की आदत से अच्छी तरह परिचित आरती ने उसे झिड़क दिया. वह मुंह बनाती हुई चली गई. आरती ने जा कर दरवाजा बंद कर लिया. मन की थकान से तन भी क्लांत हो उठा था. वह कुरसी पर अधलेटी सी आंखें बंद कर बैठ गई.

घर में फैले तनाव को भांप कर दोनों बच्चे अंशुल व आकांक्षा स्कूल से आ कर चुपचाप खाना खा कर अपने कमरे में पढ़ने का उपक्रम कर रहे थे. अजय के आने में देर थी. विजय का बेटा शिशिर जब बुलाने आया तो पिताजी न चाहते हुए भी उस के साथ नेहा की गोदभराई में चले गए थे. घर के एकांत में लाउडस्पीकर पर गानों की आवाज से ज्यादा पुरानी यादों की गूंज थीं.

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आपसी रिश्तों में ख्ंिचाव व नया मकान बन जाने पर अजय अपने परिवार व पिता के साथ पुश्तैनी मकान, जिस में विजय का परिवार भी रहता था, छोड़ कर पास ही बने अपने नए बंगले में शिफ्ट हो गया था. दिलों में एकदूसरे के प्रति प्यार होते हुए भी न जाने कौन सी अदृश्य शक्ति उन के संबंधों को पुन: मधुर बनने से रोकती रही. स्थान की दूरी तो इनसान तय कर सकता है पर दिलों के फासले दूर करना इतना आसान नहीं है.

तभी दरवाजे की घंटी बज उठी. अन्यमनस्क सी आरती ने उठ कर द्वार खोला तो सगे देवर कमल व उस की पत्नी पूजा को आया देख सुखद आश्चर्य से भर उठीं.

‘‘आइए, अंदर आइए, कमल भैया. पूजा…कब आए लंदन से?’’ अपनों से मिलने की प्रसन्नता आंखें नम कर गई.

‘‘भाभी, बस, अभी 2 घंटे पहले ही पहुंचे हैं. पर यह सब हम क्या सुन रहे हैं. आप लोग सगाई में शरीक नहीं होंगे?’’

अंदर आ कर कमल और पूजा ने आरती को पेर छूते हुए पूछा तो अनायास ही उस की आंखें भर आईं. पूजा को उठा कर गले से लगाती हुई बोली, ‘‘लोग तो अपने देश में रह कर भी आपसी सभ्यता व संस्कार याद नहीं रखते. तुम लोग विदेश जा कर भी भूले नहीं हो.’’

‘‘हां, भाभी, विदेश में सबकुछ मिलता है. हर चीज पैसों से खरीदी जा सकती है पर बड़ों का आशीर्वाद और प्यार बाजार में नहीं बिकता. सच, आप सब की वहां बहुत याद आती है. चलिए, तैयार हो जाइए. ऐसा भी कहीं हो सकता है, घर में शादी है और आप लोग यहां अकेले बैठे हैं,’’ पूजा मनुहार करती सी बोली.

आरती के चेहरे पर कई रंग आ कर चले गए. तभी अजय भी आ गए. बरसों बाद मिले सब एकदूसरे का सुखदुख बांटते रहे. आखिर, कमल के बहुत पूछने पर अजय ने उन को अपने न जाने की वजह बता दी.

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‘‘यहां इतना कुछ हो गया और आप लोगों ने हमें कुछ बताया ही नहीं. उन सब की ज्यादतियों का हिसाब तो हम लोग ले ही लेंगे पर अभी तो आप लोग चलिए वरना हम भी नहीं जाएंगे और आप खुद को अकेला न समझें भैया. मैं हूं न आप के साथ,’’ कमल उत्तेजित हो कर बोला.

‘‘जहां इज्जत न हो वहां न जाना ही बेहतर है. यह हमारा अहंकार या जिद नहीं स्वाभिमान है. हद तो यह है कि चाचीजी के भाई सौतेले हो कर भी उन की गलत बात मान लेते हैं और हम अपने सगे भाइयों से सही बात मानने की आशा न रखें. वे मुझे ही गलत समझते हैं. और तो और पिताजी की इच्छा का भी उन के लिए कोई महत्त्व नहीं है,’’ उदासी अजय की आवाज से साफ झलक उठी थी. एक नजर सब पर डाल वह फिर कहने लगे, ‘‘इस निर्णय तक मुझे पहुंचने में तकलीफ तो बहुत हुई पर अब कोई दुख नहीं है. इसी बहाने मुझे अपने और बेगानों की पहचान तो हो गई.’’

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ईस्टर्न डिलाइट : आखिर क्यों उड़े समीर के होश?

लखिका -Sakshi Sharma

सीमा रविवार की सुबह देर तक सोना चाहती थी, लेकिन उस के दोनों बच्चों ने उस की यह इच्छा पूरी नहीं होने दी.

‘‘आज हम सब घूमने चल रहे हैं. मुझे तो याद ही नहीं आता कि हम सब ने छुट्टी का कोई दिन कब एकसाथ गुजारा था,’’ उस के बेटे समीर ने ऊंची आवाज में शिकायत की.

‘‘बच्चो, इतवार आराम करने के लिए बना है और…’’

‘‘और बच्चो, हमें घूमनेफिरने के लिए अपने मम्मी पापा को औफिस से छुट्टी दिलानी चाहिए,’’ शिखा ने अपने पिता राकेशजी की आवाज की बढि़या नकल उतारी तो तीनों ठहाका मार कर हंस पड़े.

‘‘पापा, आप भी एक नंबर के आलसी हो. मम्मी और हम सब को घुमा कर लाने की पहल आप को ही करनी चाहिए. क्या आप को पता नहीं कि जिस परिवार के सदस्य मिल कर मनोरंजन में हिस्सा नहीं लेते, वह परिवार टूट कर बिखर भी सकता है,’’ समीर ने अपने पिता को यह चेतावनी मजाकिया लहजे में दी.

‘‘यार, तू जो कहना चाहता है, साफसाफ कह. हम में से कौन टूट कर परिवार से अलग हो रहा है?’’ राकेशजी ने माथे पर बल डाल कर सवाल किया.

‘‘मैं ने तो अपने कहे में वजन पैदा करने के लिए यों ही एक बात कही है. चलो, आज मैं आप को मम्मी से ज्यादा स्मार्ट ढंग से तैयार करवाता हूं,’’ समीर अपने पिता का हाथ पकड़ कर उन के शयनकक्ष की तरफ चल पड़ा.

सीमा को आकर्षक ढंग से तैयार करने में शिखा ने बहुत मेहनत की थी. समीर ने अपने पिता के पीछे पड़ कर उन्हें इतनी अच्छी तरह से तैयार कराया मानो किसी दावत में जाने की तैयारी हो.

‘‘आज खूब जम रही है आप दोनों की जोड़ी,’’ शिखा ने उन्हें साथसाथ खड़ा देख कर कहा और फिर किसी छोटी बच्ची की तरह खुश हो कर तालियां बजाईं.

‘‘तुम्हारी मां तो सचमुच बहुत सुंदर लग रही है,’’ राकेशजी ने अपनी पत्नी की तरफ प्यार भरी नजरों से देखा.

‘‘अगर ढंग से कपड़े पहनना शुरू कर दो तो आप भी इतना ही जंचो. अब गले में मफलर मत लपेट लेना,’’ सीमा की इस टिप्पणी को सुन कर राकेशजी ही सब से ज्यादा जोर से हंसे थे.

कार में बैठने के बाद सीमा ने पूछा, ‘‘हम जा कहां रहे हैं?’’

‘‘पहले लंच होगा और फिर फिल्म देखने के बाद शौपिंग करेंगे,’’ समीर ने प्रसन्न लहजे में उन्हें जानकारी दी.

‘‘हम सागर रत्ना में चल रहे हैं न?’’ दक्षिण भारतीय खाने के शौकीन राकेशजी ने आंखों में चमक ला कर पूछा.

‘‘नो पापा, आज हम मम्मी की पसंद का चाइनीज खाने जा रहे हैं,’’ समीर ने अपनी मां की तरफ मुसकराते हुए देखा.

‘‘बहुत अच्छा, किस रेस्तरां में चल रहे हो?’’ सीमा एकदम से प्रसन्न हो गई.

‘‘नए रेस्तरां ईस्टर्न डिलाइट में.’’

‘‘वह तो बहुत दूर है,’’ सीमा झटके में उन्हें यह जानकारी दे तो गई, पर फौरन ही उसे यों मुंह खोलने का अफसोस भी हुआ.

‘‘तो क्या हुआ? मम्मी, आप को खुश रखने के लिए हम कितनी भी दूर चल सकते हैं.’’

‘‘तुम कब हो आईं इस रेस्तरां में?’’ राकेशजी ने उस से पूछा.

‘‘मेरे औफिस में कोई बता रहा था कि रेस्तरां अच्छा तो है, पर बहुत दूर भी है,’’ यों झूठ बोलते हुए सीमा के दिल की धड़कनें बढ़ गई थीं.

‘‘वहां खाना ज्यादा महंगा तो नहीं होगा?’’ राकेशजी का स्वर चिंता से भर उठा था.

‘‘पापा, हमारी खुशियों और मनोरंजन की खातिर आप खर्च करने से हमेशा बचते हैं, लेकिन अब यह नहीं चलेगा,’’ समीर ने अपने दिल की बात साफसाफ कह दी.

‘‘भैया ठीक कह रहे हैं. हम लोग साथसाथ कहीं घूमने जाते ही कहां हैं,’’ शिखा एकदम से भावुक हो उठी, ‘‘आप दोनों हफ्ते में 6 दिन औफिस जाते हो और हम कालेज. पर अब हम भाईबहन ने फैसला कर लिया है कि हर संडे हम सब इकट्ठे कहीं न कहीं घूमनेफिरने जरूर जाया करेंगे. अगर हम ने ऐसा करना नहीं शुरू किया तो एक ही छत के नीचे रहते हुए भी अजनबी से हो जाएंगे.’’

‘‘ऐसा कुछ नहीं होगा. तुम सब समझते क्यों नहीं हो कि यों बेकार की बातों पर ज्यादा खर्च करना ठीक नहीं है. अभी तुम दोनों की पढ़ाई बाकी है. फिर शादीब्याह भी होने हैं. इंसान को पैसा बचा कर रखना चाहिए,’’ राकेशजी ने कुछ नाराजगी भरे अंदाज में उन्हें समझाने की कोशिश की.

‘‘पापा, ज्यादा मन मार कर जीना भी ठीक नहीं है. क्या मैं गलत कह रहा हूं, मम्मी?’’ समीर बोला.

‘‘ये बातें तुम्हारे पापा को कभी समझ में नहीं आएंगी और न ही वे अपनी कंजूसी की आदत बदलेंगे,’’ सीमा ने शिकायत की और फिर इस चर्चा में हिस्सा न लेने का भाव दर्शाने के लिए अपनी आंखें मूंद लीं.

‘‘प्यार से समझाने पर इंसान जरूर बदल जाता है, मौम. हम बदलेंगे पापा को,’’ समीर ने उन को आश्वस्त करना चाहा.

‘‘बस, आप हमारी हैल्प करती रहोगी तो देखना कितनी जल्दी हमारे घर का माहौल हंसीखुशी और मौजमस्ती से भर जाएगा,’’ शिखा भावुक हो कर अपनी मां की छाती से लग गई.

‘‘अरे, मैं क्या कोई छोटा बच्चा हूं, जो तुम सब मुझे बदलने की बातें मेरे ही सामने कर रहे हो?’’ राकेशजी नाराज हो उठे.

‘‘पापा, आप घर में सब से बड़े हो पर अब हम छोटों की बातें आप को जरूर माननी पड़ेंगी. भैया और मैं चाहते हैं कि हमारे बीच प्यार का रिश्ता बहुतबहुत मजबूत हो जाए.’’

‘‘यह बात कुछकुछ मेरी समझ में आ रही है. मेरी गुडि़या, मुझे बता कि ऐसा करने के लिए मुझे क्या करना होगा?’’

उन के इस सकारात्मक नजरिए को देख कर शिखा ने अपने पापा का हाथ प्यार से पकड़ कर चूम लिया.

इस पल के बाद सीमा तो कुछ चुपचुप सी रही पर वे तीनों खूब खुल कर हंसनेबोलने लगे थे. ईस्टर्न डिलाइट में समीर ने कोने की टेबल को बैठने के लिए चुना. अगर कोई वहां बैठी सीमा के चेहरे के भावों को पढ़ सकता, तो जरूर ही उस के मन की बेचैनी को भांप जाता.

वेटर के आने पर समीर ने सब के लिए और्डर दे दिया, ‘‘हम सब के लिए पहले चिकन कौर्न सूप ले आओ, फिर मंचूरियन और फिर फ्राइड राइस लाना. मम्मी, हैं न ये आप की पसंद की चीजें?’’

‘‘हांहां, तुम ने जो और्डर दे दिया, वह ठीक है,’’ सीमा ने परेशान से अंदाज में अपनी रजामंदी व्यक्त की और फिर इधरउधर देखने लगी.

सीमा ने भी सब की तरह भरपेट खाना खाया, लेकिन उस ने महसूस किया कि वह जबरदस्ती व नकली ढंग से मुसकरा रही थी और यह बात उसे देर तक चुभती रही.

रेस्तरां से बाहर आए तो समीर ने मुसकराते हुए सब को बताया, ‘‘आप सब को याद होगा कि फिल्म ‘ब्लैक’ मम्मी को बहुत पसंद आई थी. इन के मुंह से इसे दोबारा देखने की बात मैं ने कई बार सुनी तो इसी फिल्म के टिकट कल शाम मैं ने अपने दोस्त मयंक से मंगवा लिए, जो यहां घूमने आया हुआ था. मम्मी, आप यह फिल्म दोबारा देख लेंगी न?’’

‘‘हांहां, जरूर देख लूंगी. यह फिल्म है भी बहुत बढि़या,’’ अपने मन की बेचैनी व तनाव को छिपाने के लिए सीमा को अब बहुत कोशिश करनी पड़ रही थी.

फिल्म देखते हुए अगर सीमा चाहती तो लगभग हर आने वाले सीन की जानकारी उन्हें पहले से दे सकती थी. अगर कोई 24 घंटों के अंदर किसी फिल्म को फिर से देखे तो उसे सारी फिल्म अच्छी तरह से याद तो रहती ही है.

फिल्म देख लेने के बाद वे सब बाजार में घूमने निकले. सब ने आइसक्रीम खाई, लेकिन सीमा ने इनकार कर दिया. उस का अब घूमने में मन नहीं लग रहा था.

‘‘चलो, अब घर चलते हैं. मेरे सिर में अचानक दर्द होने लगा है,’’ उस ने कई बार ऐसी इच्छा प्रकट की पर कोई इतनी जल्दी घर लौटने को तैयार नहीं था.

समीर और शिखा ने अपने पापा के ऊपर दबाव बनाया और उन से सीमा को उस का मनपसंद सैंट, लिपस्टिक और नेलपौलिश दिलवाए.

घर पहुंचने तक चिंतित नजर आ रही सीमा का सिर दर्द से फटने लगा था. उस ने कपड़े बदले और सिर पर चुन्नी बांध कर पलंग पर लेट गई. कोई उसे डिस्टर्ब न करे, इस के लिए उस ने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया.

उसे पता भी नहीं लगा कि कब उस की आंखों से आंसू बहने लगे. फिर अचानक ही उस की रुलाई फूट पड़ी और वह तकिए में मुंह छिपा कर रोने लगी.

तभी बाहर से समीर ने दरवाजा खटखटाया तो सीमा ने धीमी आवाज में कहा, ‘‘मेरी तबीयत ठीक नहीं है. मुझे आराम करने दो.’’

‘‘मम्मी, आप कुछ देर जरूर आराम कर लो. शिखा पुलाव बना रही है, तैयार हो जाने पर मैं आप को बुलाने आ जाऊंगा,’’ समीर ने कोमल स्वर में कहा.

‘‘मैं सो जाऊं तो मुझे उठाना मत,’’ सीमा ने उसे रोआंसी आवाज में हिदायत दी.

कुछ पलों की खामोशी के बाद समीर का जवाब सीमा के कानों तक पहुंचा, ‘‘मम्मी, हम सब आप को बहुत प्यार करते हैं. पापा में लाख कमियां होंगी पर यह भी सच है कि उन्हें आप के सुखदुख की पूरी फिक्र रहती है. मैं आप को यह विश्वास भी दिलाता हूं कि हम कभी कोई ऐसा काम नहीं करेंगे, जिस के कारण आप का मन दुखे या कभी आप को शर्म से आंखें झुका कर समाज में जीना पड़े. अब आप कुछ देर आराम कर लो पर भूखे पेट सोना ठीक नहीं. मैं कुछ देर बाद आप को जगाने जरूर आऊंगा.’’

‘तू ने मुझे जगा तो दिया ही है, मेरे लाल,’ उस के दूर जा रहे कदमों की आवाज सुनते हुए सीमा होंठों ही होंठों में बुदबुदाई और फिर उस ने झटके से उठ कर उसी वक्त मोबाइल फोन निकाल कर अपने सहयोगी नीरज का नंबर मिलाया.

‘‘स्वीटहार्ट, इस वक्त मुझे कैसे याद किया है?’’ नीरज चहकती आवाज में बोला.

‘‘तुम से इसी समय एक जरूरी बात कहनी है,’’ सीमा ने संजीदा लहजे में कहा.

‘‘कहो.’’

‘‘समीर को उस के दोस्त मयंक से पता लग गया है कि कल दिन में मैं तुम्हारे साथ घूमने गई थी.’’

‘‘ओह.’’

‘‘आज वह हमें उसी रेस्तरां में ले कर गया, जहां कल हम गए थे और खाने में वही चीजें मंगवाईं, जो कल तुम ने मंगवाई थीं. वही फिल्म दिखाई, जो हम ने देखी थी और उसी दुकान से वही चीजें खरीदवाईं, जो कल दिन में तुम ने मेरे लिए खरीदवाई थीं.’’

‘‘क्या उस ने तुम से इस बात को ले कर झगड़ा किया है?’’

‘‘नहीं, बल्कि आज तो सब ने मुझे खुश रखने की पूरी कोशिश की है.’’

‘‘तुम कोई बहाना सोच कर उस के सवालों के जवाब देने की तैयारी कर लो, स्वीटहार्ट. हम आगे से कहीं भी साथसाथ घूमने जाने में और ज्यादा एहतियात बरतेंगे.’’

कुछ पलों की खामोशी के बाद सीमा ने गहरी सांस खींची और फिर दृढ़ लहजे में बोली, ‘‘नीरज, मैं अकेले में काफी देर रोने के बाद तुम्हें फोन कर रही हूं. जिस पल से आज मुझे एहसास हुआ है कि समीर को हमारे प्रेम संबंध के बारे में मालूम पड़ गया है, उसी पल से मैं अपनेआप को शर्म के मारे जमीन में गड़ता हुआ महसूस कर रही हूं.

‘‘मैं अपने बेटे से आंखें नहीं मिला पा रही हूं. मुझे हंसनाबोलना, खानापीना कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा है. बारबार यह सोच कर मन कांप उठता है कि अगर तुम्हारे साथ मेरे प्रेम संबंध होने की बात मेरी बेटी और पति को भी मालूम पड़ गई, तो मुझे जिंदगी भर के लिए सब के सामने शर्मिंदा हो कर जीना पड़ेगा.

‘‘आज एक झटके में ही मुझे यह बात अच्छी तरह से समझ आ गई है कि अपने बड़े होते बच्चों की नजरों में गिर कर जीने से और दुखद बात मेरे लिए क्या हो सकती है नीरज. मैं कभी नहीं चाहूंगी कि मेरे गलत, अनैतिक व्यवहार के कारण वे समाज में शर्मिंदा हो कर जिएं.

‘‘यह सोचसोच कर मेरा दिल खून के आंसू रो रहा है कि जब समीर के दोस्त मयंक ने उसे यह बताया होगा कि उस की मां किसी गैरमर्द के साथ गुलछर्रे उड़ाती घूम रही थी, तो वह कितना शर्मिंदा हुआ होगा. नहीं, अपने बड़े हो रहे बच्चों के मानसम्मान की खातिर आज से मेरे और तुम्हारे बीच चल रहे अवैध प्रेम संबंधों को मैं हमेशाहमेशा के लिए खत्म कर रही हूं.’’

‘‘मेरी बात तो…’’

‘‘मुझे कुछ नहीं सुनना है, क्योंकि मैं ने इस मामले में अपना अंतिम फैसला तुम्हें बता दिया है,’’ सीमा ने यह फैसला सुना कर झटके से फोन का स्विच औफकर दिया.

सीमा का परेशान मन उसे और ज्यादा रुलाना चाहता था, पर उस ने एक गहरी सांस खींची और फ्रैश होने के लिए गुसलखाने में घुस गई.

हाथमुंह धो कर वह समीर के कमरे में गई. अपने बेटे के सामने वह मुंह से एक शब्द भी नहीं निकाल पाई. बस, अपने समझदार बेटे की छाती से लग कर खूब रोई. इन आंसुओं के साथ सीमा के मन का सारा अपराधबोध और दुखदर्द बह गया.

जब रो कर मन कुछ हलका हो गया, तो उस ने समीर का माथा प्यार से चूमा और सहज मुसकान होंठों पर सजा कर बोली, ‘‘देखूं, शिखा रसोई में क्या कर रही है… मैं तेरे पापा के लिए चाय बना देती हूं. मेरे हाथों की बनी चाय हम दोनों को एकसाथ पिए एक जमाना बीत गया है.’’

‘‘जो बीत गया सो बीत गया, मम्मी. अब हम सब को अपनेआप से यह वादा जरूर करना है कि एकदूसरे के साथ प्यार का मजबूत रिश्ता बनाने में हम कोई कसर नहीं छोड़ेंगे,’’ समीर ने उन का माथा प्यार से चूम कर अपने मन की इच्छा जाहिर की.

‘‘हां, जब सुबह का भूला शाम को घर आ जाए, तो उसे भूला नहीं कहते हैं,’’ सीमा ने मजबूत स्वर में उस की बात का समर्थन किया और फिर अपने पति के साथ अपने संबंध सुधारने का मजबूत इरादा मन में लिए ड्राइंगरूम की तरफ चल पड़ी.

भीतर का दर्द: क्यों सानिया घर से भाग गई थी?

Writer-  रमेश मनोहरा

रमजान मियां का आज पूरा कुनबा खुश था. उन का छोटा 2 कमरे का मकान खाने की खुशबू से महक रहा था. 20 साल बाद उन की सब से छोटी बेटी सानिया जो आ रही?थी.

सानिया ने खिलाफत कर के हिंदू लड़के से शादी की थी, तभी से उन्होंने बेटी से रिश्ता तोड़ दिया था. न तो कभी बुलाने की कोशिश की और न ही कभी मिलने गए.

रमजान मियां की 4 बेटियों के बाद सानिया पैदा हुई थी. मतलब, वह उन की 5वीं बेटी थी. आखिर में लड़का पैदा हुआ था.

रमजान मियां सरकारी मुलाजिम रहे थे. आज उन्हें रिटायर हुए 20 साल हो गए थे. वे जब सरकारी नौकरी में थे, तब 1-1 कर के 4 बेटियों की शादी कर चुके थे. जब वे रिटायर हुए, तब सानिया की शादी की जिम्मेदारी रह गई थी.

सानिया काफी खूबसूरत थी. वह सब से ज्यादा पढ़ीलिखी भी थी. जब वह निकाह के लायक हुई, उस के लिए दूल्हे की खोज शुरू हो गई थी.

कई लड़के देखने के बाद फिरोज खान से बात चल रही थी. इसी बीच सानिया और सुरेश शर्मा में इश्क परवान चढ़ गया था.

सुरेश शर्मा उस के कालेज में ही था.  जब उन्हें पता चला, तब फिरोज खान के घर वाले सानिया को देखने आने वाले थे.

फिरोज खान के साथ उस के अब्बा, अम्मी और परिवार के दूसरे लोग आए थे, मगर सानिया उस समय घर में नहीं थी.

मेहमान बैठकखाने में थे. जिस बेटी को देखने आ रहे थे, वही बेटी सुबह सहेली के यहां न्योता देने की कह कर गई थी. अभी तक आने का ठिकाना नहीं. जिस सहेली की कह कर गई थी, उस ने भी इनकार कर दिया था कि वह यहां नहीं आई.

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21 साल की सानिया कोई दूध पीती बच्ची नहीं थी. मगर कहां गई, उन की चिंता को बढ़ा दिया, जबकि होने वाले समधी कई बार कह चुके थे कि रमजान मियां लड़की को बुलाओ, मगर उस का कहीं पता नहीं चला. महल्ले के लड़के भी गाड़ी ले कर ढूंढ़ने निकल पड़े. सानिया के न आने से कई तरह के डर जन्म ले रहे थे.

अभी दोपहर के 12 बज रहे थे. महल्ले के कुछ लड़कों ने आ कर कहा कि सानिया आ रही है. यह सुनते ही सब के मुरझाए चेहरे खिल उठे.

पलभर बाद जब सानिया ने बैठक में प्रवेश किया, तब हमेशा सलवारकमीज पहनने वाली उस लड़की ने साड़ी पहन रखी थी और मांग में सिंदूर था. साथ में सुरेश शर्मा भी था.

रमजान मियां बोले, ‘‘सानिया बेटी कहां चली गई थी? हम ने तुम्हें कहांकहां नहीं ढूंढ़ा, कहांकहां नहीं फोन लगाया और तुम ने यह क्या हुलिया बना रखा है… और यह मांग में…’’

‘‘माफ करें अब्बा…’’ बीच में ही बात काटते हुए सानिया बोली, ‘‘मैं ने सुरेश से कोर्ट में जा कर शादी कर ली है. एक महीने पहले ही अर्जी दे दी थी. उन की बहन और मेरा कजिन दोनों गवाह भी हैं.’’

‘‘क्या कहा…? मेरे पूछे बिना शादी कर ली,’’ गुस्से से रमजान मियां बोले.

‘‘हां अब्बा, अगर मैं आप से पूछती, तब क्या आप यह शादी करने देते…?’’ सानिया ने पूछा.

‘‘अरे, होने वाले समधीजी…’’ उठते हुए फिरोज खान के अब्बा बोले, ‘‘हमें यहां बुला कर हमारी बेइज्जती की. चलो फिरोज, अच्छा हुआ, सगाई के पहले ही लड़की के चालचलन का पता चल गया.

‘‘ऐसी लड़की को जन्म दे कर आप ने मुसलिम कौम की बेइज्जती की है. मेरी लड़की अगर किसी हिंदू लड़के के साथ शादी करती, तब मैं उसे काट कर फेंक देता. क्या आप ने अपनी बेटी को यही तालीम दी है…’’ कह कर फिरोज खान के अब्बा समेत पूरा कुनबा गुस्से में उठ कर चल दिया.

कुछ पल के लिए वहां सन्नाटा रहा, फिर रमजान मियां बोले, ‘‘कटा दी न तुम ने हमारी नाक. अरे, मुझे कहीं का नहीं रखा… अब यहां क्या लेने आई हो?’’

‘‘आप का आशीर्वाद लेने अब्बा,’’ सानिया ने कहा.

‘‘अब्बा की नाक काट कर अब आशीर्वाद लेने आई हो…’’ रमजान मियां गुस्से से उफन पड़े थे, ‘‘चली जा… अब मुझे अपनी सूरत भी मत दिखाना.’’

‘‘बिना आशीर्वाद लिए कैसे जाऊं अब्बा?’’ सानिया बोली.

‘‘किस मुंह से आशीर्वाद लेने आई हो? अपने अब्बा की टोपी तो तुम ने उछाल दी. अरे, तू पैदा होते ही मर गई होती तो आज मुझे यह दिन नहीं देखना पड़ता. चली जा, मुझे तेरी सूरत से भी नफरत है.

‘‘तुम अपनी अम्मां को देख रही हो, जिस की आंखों से आंसू बह रहे हैं. इस का भी खयाल तुझे नहीं आया.

‘‘अरे, तेरे रिश्ते के लिए जो लोग आए थे, उन की नजर में तू ने मेरी इज्जत गिरा दी. क्या कह कर गए हैं वे, सुना तुम ने. अब आ गई आशीर्वाद लेने.

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‘‘चले जाओ तुम दोनों. अब कभी अपनी मनहूस सूरत मत दिखाना. मेरे लिए अब तुम मर चुकी हो. सुना कि नहीं, चले जाओ तुम दोनों…’’

तब सानिया और सुरेश शर्मा बाहर निकल गए. सारा घर और महल्ला उन्हें जाते हुए देखता रहा.

कुछ गुस्साए नौजवानों ने ‘सानिया मुरदाबाद’ के नारे लगाए. कुछ उग्र लड़के सुरेश शर्मा को मारना चाहते थे, मगर कुछ समझदार बुजुर्गों ने समझाया कि कानून को हाथ में मत लो.

इस घटना को घटे 20 साल हो गए. उस दिन के बाद से उन्होंने न बेटी से रिश्ता रखा और न बेटी यहां आई. वे उसे तकरीबन भूल चुके थे.

इन 20 सालों में रिश्तों के दरिया से न जाने कितना पानी बह चुका था. बेटीबाप का रिश्ता खत्म हो चुका था. सानिया को उस के एकलौते भाई की शादी में भी नहीं बुलाया गया.

मगर सानिया उन की सब से समझदार बेटी थी. उस से रिश्ता तोड़ना उन को पछतावा दे रहा है. मगर गैरकौम में शादी कर के खुद हिंदू बन जाना यही उन्हें अंदर ही अंदर कचोट रहा था. वह अपनी ही बिरादरी में शादी कर लेती, तब उन्हें कोई पछतावा नहीं होता.

इन 20 सालों में माहौल भी बदलने लगा था. हिंदूमुसलिम को अपना जानी दुश्मन बनाने में टैलीविजन कोई कसर नहीं छोड़ रहा था. रमजान मियां ने कभी यह नहीं पूछा कि कैसी है, क्या तकलीफ है, मगर उस की तरफ से भी कोई खबर नहीं आती. वह कैसे देती, उस को तो उन्होंने बेइज्जत कर के सिर्फ इसलिए निकाल दिया था कि वह मुसलमान से हिंदू बन गई है.

चलो बन गई तब कोई बात नहीं, मगर उसे तो सब सच बता देना था. उस ने भी सबकुछ छिपा कर रखा. उस की याद में कितनी रातें उन्हें ठीक से नींद नहीं आई. कई बार उन की इच्छा हुई थी कि सानिया को बुला लें, मगर अंदर के कठोर चेहरे ने हर बार इनकार कर दिया.

ऐसे में उन के एक रिश्तेदार आबिद हुसैन आ कर बोले, ‘‘तुम्हारी चारों बेटियों में से सानिया ही अपने घर में सुखी है. पैसों की बचत भी हो जाती है और वह जिस हिंदू परिवार में गई है, वह परिवार दकियानूसी नहीं है और न ही उस पर किसी तरह की रोकटोक है. आजादी से घूमती है. उस के प्रति अभी इतने कठोर मत बनो.

‘‘माना कि उस ने जवानी में आ कर अपनी मरजी का कदम उठा लिया. यह उम्र ही ऐसी होती है. वह मर चुकी?है, कह देने से बापबेटी का रिश्ता खत्म नहीं हो जाता है. उसे एक बार बुला कर तो देखो.’’

‘‘मेरे बुलाने से क्या वह आ जाएगी?’’ रमजान मियां ने पूछा.

‘‘वह तो आने के लिए तैयार बैठी थी, मगर जब तक आप नहीं बुलाएंगे, वह नहीं आएगी.’’

‘‘मगर, आप यह कैसे कह सकते हो आबिद हुसैन भाई?’’

‘‘मेरी उन से बात हुई है. उसी ने यह कहा है कि अब्बा जब तक आने को नहीं कहेंगे, तब तक नहीं आएगी…’’ आबिद हुसैन ने अपनी बात कह दी, ‘‘ठीक है, चलता हूं. मेरा काम था समझाने का मैं ने समझा दिया. अब तुम जानो. तुम उसे बुलाओ या मरी हुई समझो.’’

सानिया के प्रति उस के अब्बा ने अब तक नफरत पाल रखी थी. आबिद हुसैन उन के भीतर एक बाप का प्यार डाल गए. सचमुच सानिया को देखे 20 साल हो गए थे. बाप और बेटी का रिश्ता भी उन्होंने खत्म कर दिया था. उन की चारों बेटियों को दुखी देख कर उन का मन कितना पिघल जाता था. जब भी वे अपनी ससुराल से पीहर में आती हैं, अपना दुखड़ा सुना कर उन का मन और पिघल उठता था.

उन की बड़ी बेटी नसीम बानो ने तो यहां तक कह दिया था, ‘‘अब्बा, किस खानदान में मेरा निकाह कर दिया. रोकटोक इतनी कि खुली हवा में सांस भी न ले सकें. हर चीज के लिए तरसो. हर साल बच्चे पैदा करो, जैसे औरत को मशीन समझ रखा है.’’

जब चारों बेटियां घर में आती हैं, सब आपस में अपनी ससुराल का दुखड़ा रोया करती हैं. उन के दुखड़ों से वे खुद परेशान तो रहते ही हैं, साथ में उन की बेगम रजिया भी दुखी रहती हैं. मगर वे सब जैसेतैसे जिंदगी की गाड़ी घसीट रही हैं.

उन की चारों लड़कियों का एक ही मत है कि सानिया ने अपनी मरजी से शादी की, इसलिए आज वह सुखी है. दोनों कमा रहे हैं और बचत भी हो रही है. बच्चे भी 2 हैं, एक लड़का और एक लड़की. सानिया के सुखी परिवार को देख कर उन चारों बहनों को जलन होने लगती है.

तभी बेगम रजिया आ कर बोलीं, ‘‘आबिद हुसैन क्या कह कर गए हैं?’’

‘‘कह गए हैं कि सानिया को

बुला लो.’’

‘‘बुला लीजिए न, उसे देखने के लिए आंखें तरस गई?हैं,’’ रजिया की ममता एकदम जाग उठी.

तब नाराजगी से रमजान मियां बोले, ‘‘अरे बेगम, सानिया तो उस दिन से ही मेरे लिए मर गई, जिस दिन उस ने…’’

‘‘यह आप नहीं, बाप का कट्टर दिल बोल रहा?है…’’ बीच में ही बात काट कर रजिया बोलीं, ‘‘एक मां का दिल क्या होता है, आप क्या जानें? फिर वह हमारी बेटी है. मर गई कह देने से क्या रिश्ता खत्म हो जाएगा.’’

‘‘बेगम, तुम भी वही भाषा बोल रही हो, जो आबिद मियां बोल गए हैं…’’ नाराज हो कर रमजान मियां बोले, ‘‘मैं नहीं बुला सकता हूं. भरी बिरादरी में उस ने मेरी नाक कटा दी. आज तक बिरादरी वाले ताने मार रहे हैं.’’

‘‘हां, उस समय उस ने आप की नाक कटा दी…’’ रजिया भी जरा नाराज हो कर बोलीं, ‘‘मगर सोचो, रजिया से भले ही हम ने रिश्ते खत्म कर लिए हैं, उस ने हिंदू धर्म अपना लिया है, मगर जातबिरादरी में सुनने को मिलता है कि वह अपनी चारों बहनों से ज्यादा सुखी है…

‘‘मैं ने आप का अब तक हर कहना माना है. जैसा आप ने कहा, वैसा मैं ने किया है. आप के हर सुखदुख में मैं ने साथ दिया है. आज आप की चारों बेटियां किस कदर दुखी हैं. उन के दुख में हम कितने दुखी होते हैं. उन का दुख हमारा दुख होता है. मगर, सानिया ने हमारी मरजी के खिलाफ शादी की, पर आज वह सुखी तो है.

‘‘हम अपने भीतर का दर्द किसी को बयां नहीं कर सकते हैं. मगर सानिया को सुखी देख कर खुशियां तो मना सकते हैं कि उस ने अच्छे खानदान में निकाह किया है. अब यह अलग बात है कि कौम अलग है. कौम अलग होने से क्या इनसानियत मर जाती है? मैं कहती हूं कि जोकुछ हुआ, उसे भूल जाओ और सानिया को बुला लो.’’

रमजान मियां ने सानिया घर फोन

कर दिया. उधर से आने की रजामंदी भी मिल गई.

‘‘अब्बा,’’ रमजान मियां की सारी सोच टूट गई. सामने सानिया खड़ी थी, साथ में सुरेश और उन के दोनों बच्चे. रमजान मियां का चेहरा खुशी से खिल उठा. उन की आंखों में खुशी के आंसू छलक आए.

इन 20 सालों में सानिया कितनी बदल गई. साड़ी पहन रखी थी. बदन भरा था. गले में सोने का हार था. हाथ में 4-4 सोने की चूडि़यां, महंगी साड़ी और महंगी जूती उस की अमीरी बयां कर बना रही थी. अनजान आदमी कोई मिल जाता तो उसे मुसलिम नहीं हिंदू कहेगा.

रमजान मियां अंदर आवाज देते हुए बोले, ‘‘बेगम बाहर आओ. हमारी सानिया आई है.’’

रजिया, उन की बहू आयशा बाहर आ गए. सानिया को देख कर उस की भी आंखों में खुशी के आंसू झिलमिला पड़े.

सानिया ने अपने बच्चों से कहा, ‘प्रभात और कुसुम, ये तुम्हारे नाना और नानी हैं… और ये तुम्हारी मामी हैं. इन के पैर छुओ.’

उन्होंने बारीबारी से पैर छुए. इस समय घर का गमगीन माहौल ऐसा हो गया कि बहुत दिनों के बाद खुशियां लौटी हैं. रजिया तो खुश थीं.

‘‘कैसी हो बेटी, तुझे तो बहुत सालों के बाद देखा है…’’ अम्मी अपने आंसू पोंछते हुई बोलीं, ‘‘क्या तुम्हें हमारी याद नहीं आई?’’

‘‘मैं तो एकदम ठीक हूं अम्मी…’’ चहक कर सानिया बोली, ‘‘जब आप लोगों ने मुझ से संबंध ही तोड़ लिए, तब मैं कैसे आती? फिर भी आप लोगों की याद मुझे आती रही.’’

‘‘अरे ओ बेगम, सालों बाद तो बेटी आई है और उलट इस से शिकायत करने बैठ गई,’’ रमजान मियां ने टोका.

‘‘हां बेटी, मैं भी कैसी मां हूं, जो आते ही शिकायत करने बैठ गई,’’ अपनी गलती स्वीकार करती हुई रजिया बोलीं, ‘‘आज तुझे पास पा कर बहुत खुश हूं. बहुत खुश हूं और तुझे खुश देख कर तो और भी खुश हूं.

‘‘बता बेटी, तेरे सासससुर कैसे हैं?

वे तुझे…’’

‘‘अम्मी, मेरे सासससुर एकदम ठीक हैं…’’ बीच में ही बात काट कर सानिया बोली, ‘‘वे मुझे बहू नहीं बेटी मानते हैं. सच अम्मी मैं वहां बहुत सुखी हूं. वहां हम न हिंदू त्योहार मनाते हैं, न मुसलिम. सिर्फ हर बार बड़ा सा खर्चा होता है. सारे रिश्तेदार मिलते हैं. कोई मुझ से भेदभाव नहीं करता है.’’

मां की ममता एक बार फिर जाग उठी. उस की आंखों से फिर आंसू

बह निकले.

पलभर के सन्नाटे के बाद सानिया बोली, ‘‘अम्मी, चारों बहनों की हालत देख कर और उन का दकिनानूसी परिवार देख कर ही मैं ने फैसला लिया था कि मैं शादी अपनी इच्छा से करूंगी. तभी तो आप से खिलाफत कर के मैं ने सुरेश से शादी करने का फैसला लिया था. आज मैं वहां बहुत सुखी हूं अब्बा. मैं वहां रोरो कर जिंदगी नहीं गुजार रही हूं,’’ सानिया ने कहा.

सानिया की इस बात से रमजान मियां और रजिया की आंखों से कितनी ही गंगाजमाना बह चुकी थीं. उन के भीतर का जो दर्द था, वह मर चुका था.      द्य

गंगासागर: सपना अपनी बुआ से क्यों नाराज थी?

Writer- माला वर्मा

‘सब तीर्थ बारबार, गंगासागर एकबार,’ इस वाक्य को रटते हुए गांव से हर साल कुछ परिचित टपक ही पड़ते. जैसेजैसे गंगासागर स्नान की तारीख नजदीक आती जाती, वैसेवैसे सपना को बुखार चढ़ने लगता.

विकास का छोटा सा घर गंगासागर स्नान के दिनों में गुलजार हो जाता. बबुआ, भैया व बचवा  कह कर बाबूजी या दादाजी का कोई न कोई परिचित कलकत्ता धमक ही पड़ता. गंगासागर का मेला तो 14 जनवरी को लगता, पर लोग 10-11 तारीख को ही आ जाते. हफ्तेभर पहले से घर की काया बदल देनी पड़ती, ताकि जितने लोग हों, उसी हिसाब से बिस्तरों का इंतजाम किया जा सके.

इस दौरान बच्चों की पढ़ाई का नुकसान होता. वैसे उन की तो मौज हो जाती, इतने लोगों के बीच जोर से डांटना भी संभव न होता.

फिर सब के जाने के बाद एक दिन की खटनी होती, नए सिरे से घर को व्यवस्थित करना पड़ता था. यह सारा तामझाम सपना को ही निबटाना पड़ता, सो उस की भृकुटि तनी रहती. पर इस से बचने का कोई उपाय भी न था. पिछले लगातार 5 वर्षों से जब से उन का तबादला पटना से कलकत्ता हुआ, गंगासागर के तीर्थयात्री उन के घर जुटते रहते.

विकास के लिए आनाकानी करने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता था. साल में जब भी वे एक बार छुट्टियों में गांव जाते, सभी लोग आत्मीयता से मिलते थे. जितने दिन भी वे गांव में रहते, कहीं से दूध आ जाता तो कहीं से दही, कोई मुरगा भिजवाता तो कोई तालाब से ताजा मछली लिए पहुंच जाता.

‘अब जहां से इतना मानसम्मान, स्नेह मिलता है, वहां से कोई गंगासागर के नाम पर उस के घर पहुंचता हो तो कैसे इनकार किया जा सकता है?’ विकास सपना को समझाने की बहुत कोशिश करते थे.

पर सपना को हर साल नए सिरे से समझाना पड़ता. वह भुनभुनाती रहती, ‘थोड़ा सा दूधदही खिला दिया और बापदादा का नाम ले कर कलकत्ता आ गए. आखिर जब हम कलकत्ता में नहीं थे, तब कैसे गंगासागर का पुण्य कमाया जाता था? इतनी दूर से लोग गठरियां उठाए हमारे भरोसे आ पहुंचते हैं. हमारी परेशानियों का तो किसी को ध्यान ही नहीं. क्या कलकत्ता में होटल और धर्मशाला नहीं, वे वहां नहीं ठहर सकते? न जाने तुम्हें क्या सुख मिलता है उन बूढ़ेबूढि़यों से बातचीत कर के. अगले साल से देखना, मैं इन्हीं दिनों मायके चली जाऊंगी, अकेले संभालना पड़ेगा, तब नानी याद आएगी.’

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एक दिन पत्नी की भाषणबाजी पर विराम लगाते हुए विकास कह उठे, ‘‘क्या बच्चों जैसी बातें करती हो. हमें अपना समझते हैं तभी तो अधिकार सहित पहुंचते हैं. उन के पास पैसों की कमी नहीं है, चाहें तो होटल या धर्मशाला में ठहर सकते हैं. पर जब हम यहां मौजूद हैं तो उन्हें ऐसा करने की क्या जरूरत है. फिर वे कभी खाली हाथ नहीं आते, गांव का शुद्ध घी, सत्तू, बेसन, दाल, मसाले वगैरा ले कर आते हैं. अब तुम्हीं बताओ, ऐसी शुद्ध चीजें यहां कलकत्ता में मिल सकती हैं?

‘‘तुम तो सब भूल जाती हो. लौटते वक्त वे बच्चों को रुपए भी पकड़ा जाते हैं. आखिर वे हमारे बुजुर्ग हैं, 2-4 दिनों की सेवा से हम छोटे तो नहीं हो जाएंगे. गांव लौट कर वे हमारी कितनी तारीफ करते हैं तब माई व बाबूजी को कितनी खुशी होती होगी.’’

सपना मुंह बिचकाती हुई कह उठी, ‘‘ठीक है भई, हर साल यह झमेला मुझे ही सहना है तो सहूंगी. तुम से कहने का कोई फायदा नहीं. अब गंगासागर स्नान का समय फिर नजदीक आ गया है. देखें, इस बार कितने लोग आते हैं.’’

विकास ने जेब में हाथ डाला और एक पत्र निकालते हुए कह उठे, ‘‘अरे हां, मैं भूल गया था. आज ही सरस्वती बूआ की चिट्ठी आई है. वे भी गंगासागर के लिए आ रही हैं. तुम जरा उन का विशेष खयाल रखना. बेचारी ने सारा जीवन दुख ही सहा है. वे मुझे बहुत चाहती हैं. शायद मेरे ही कारण उन की गंगासागर स्नान की इच्छा पूर्ण होने जा रही है.’’

सपना, जो थोड़ी देर पहले समझौते वाले मूड में आ गई थी, फिर बिफर पड़ी, ‘‘वे तो न जाने कहां से तुम्हारी बूआ बन बैठीं. हर कोई चाची, बूआ बन कर पहुंचता रहता है और तुम उन्हें अपना करीबी कहते रहते हो. इन बूढ़ी विधवाओं के खानेपीने में और झंझट है. जरा कहीं भी लहसुन व प्याज की गंध मिली नहीं कि खाना नहीं खाएंगी. मैं ने तो तुम्हारी इस बूआ को कभी देखा नहीं. बिना पूछे कैसे लोग मुंह उठाए चले आते हैं, जैसे हम ने पुण्य कमाने का ठेका ले रखा हो.’’

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विकास शांत स्वर में बोले, ‘‘उस बेचारी के लिए कुछ न कहो. उस दुखियारी ने घरगृहस्थी का सुख देखा ही नहीं. बचपन में शादी हो गई थी. गौना हुआ भी नहीं था कि पति की मृत्यु हो गई. शादी का अर्थ भी नहीं समझा और विधवा का खिताब मिल गया. अपने ही गांव की बेटी थी. ससुराल में स्थान नहीं मिला. सब उन्हें अभागी और मनहूस समझने लगे. मायके में भी इज्जत कम हो गई.

‘‘जब भाइयों ने दुत्कारना शुरू कर दिया तो एक दिन रोतीकलपती हमारे दरवाजे आ पहुंचीं. बाबूजी से उन का दुख न देखा गया. उसी क्षण उन्होंने फैसला किया कि सरस्वती मुंहबोली बहन बन कर इस घर में अपना जीवन गुजार सकती है. उन के इस फैसले से थोड़ी देर के लिए घर में हंगामा मच गया कि एक जवान लड़की को सारा जीवन ढोना पड़ेगा, पर बाबूजी के दृढ़ व्यक्तित्व के सामने फिर किसी की जबान न हिली.

‘‘दादादादी ने भी सहर्ष सरस्वती को अपनी बेटी मान लिया और इस तरह एक दुखी, लाचार लड़की अपना परिवार रहते दूसरे के घर में रहने को बाध्य हुई. हमारी शादी में उन्होंने बहुत काम किया था. तुम ने देखा होगा, पर शायद अभी याद नहीं आ रहा. करीब 10 साल वे हमारे घर में रहीं. फिर एक दिन उन के भाईभतीजों ने आ कर क्षमा मांगी. पंचायत बैठी और सब के सामने आदरसहित सरस्वती बूआ को वे लोग अपने घर ले गए.

‘‘सरस्वती बूआ इज्जत के साथ अपने मायके में रहने लगीं. पर खास मौकों पर वे जरूर हमारे घर आतीं. इस तरह भाईबहन का अटूट बंधन अभी तक निभता चला आ रहा है. सो, सरस्वती बूआ को यहां किसी बात की तकलीफ नहीं होनी चाहिए.’’

सपना का गुस्सा फिर भी कम न हुआ था. वह भुनभुनाती हुई रसोई की तरफ चली गई.

12 जनवरी को सुबह वाली गाड़ी से सरस्वती बूआ के साथ 2 अन्य बुजुर्ग भी आ पहुंचे. नहानाधोना, खानापीना हुआ और विकास बैठ गए गांव का हालचाल पूछने. सरस्वती बूआ सपना के साथ रसोई में चली गईं तथा खाना बनाने में कुछ मदद करने का इरादा जाहिर किया.

सपना रूखे स्वर में कह उठी, ‘‘आप आराम कीजिए, थकीहारी आई हैं. मेरे साथ महरी है. हम दोनों मिल कर सब काम कर लेंगी. आप से काम करवाऊंगी तो ये नाराज हो जाएंगे. वैसे भी यह तो हर साल का नियम है. आखिर सब अकेले ही करती हूं. आप आज मदद कर देंगी, अगले साल कौन करेगा?’’

सरस्वती बूआ को सपना का लहजा कड़वा लगा. वे बड़े शौक से आई थीं, पर मुंह लटका कर वापस बैठक में चली गईं. एक कोने में उन की खाट लगी थी. खाट की बगल में छोटा स्टूल रखा था, जिस पर उन की गठरी रखी थी. वे चुपचाप गईं और अपने बिस्तर पर लेट गईं. विकास की घरगृहस्थी देखने की उन की बड़ी साध थी. बचपन में विकास ज्यादातर उन के पास ही सोता था. बूआ की भतीजे से खूब पटती थी.

बूआ की इच्छा थी, गंगासागर घूमने के बाद कुछ दिन यहां और रहेंगी. जीवन में गांव से कभी बाहर कदम नहीं रखा था. कलकत्ता का नाम बचपन से सुनती आई थीं, पूरा शहर घूमने का मन था. परंतु बहू की बातों से उन का मन बुझ गया था.

पर विकास ताड़ गए कि सपना ने जरूर कुछ गलत कहा होगा. बात को तूल न देते हुए वे खुद बूआ की खातिरदारी में लगे रहे. शाम को उन्होंने टैक्सी ली तथा बूआ को घुमाने ले गए. दूसरे दोनों बुजुर्गों को भी कहा, पर उन्होंने अनिच्छा दिखाई.

विकास बूआ को घुमाफिरा कर रात 10 बजे तक लौटे. बूआ का मन अत्यधिक प्रसन्न था. बिना कहे विकास ने उन के मन की साध पूरी कर दी थी. महानगर कलकत्ता की भव्यता देख कर वे चकित थीं.

इधर सपना कुढ़ रही थी. बूआ को इतनी तरजीह देना और घुमानाफिराना उसे रत्तीभर नहीं सुहा रहा था. वह क्रोधित थी, पर चुप्पी लगाए थी. मौका मिलते ही पति को आड़ेहाथों लिया, ‘‘अब तुम ने सब के सैरसपाटे का ठेका भी ले लिया? टैक्सी के पैसे किस ने दिए थे? जरूर तुम ने ही खर्च किए होंगे.’’

विकास खामोश ही रहे. इतनी रात को बहस करने का उन का मूड नहीं था. वे समझ रहे थे कि बूआ को घुमाफिरा कर उन्होंने कोई गलती नहीं की है, आखिर पत्नी उस त्यागमयी औरत को कितना जानती है. मैं जितना बूआ के करीब हूं, पत्नी उतनी ही दूर है. बस, 2-4 दिनों की बात है, बूआ वापस चली जाएंगी. न जाने फिर कभी उन का दोबारा कलकत्ता आना हो या नहीं.

खैर, 3-4 दिन गुजर गए. गांव से आए सभी लोगों का गंगासागर तीर्थ पूरा हुआ. शाम की गाड़ी से सब को लौटना था. रास्ते के लिए पूड़ी, सब्जी के पैकेट बनाए गए.

बूआ का मन बड़ा उदास हो रहा था. बारबार उन की आंखों से आंसू छलक पड़ते. विकास और उस के बच्चों से उन का मन खूब हिलमिल गया था. बहू अंदर ही अंदर नाखुश है, इस का एहसास उन्हें पलपल हो रहा था, पर उसे भी वह यह सोच कर आसानी से पचा गई कि नई उम्र है, घरगृहस्थी के बोझ के अलावा मेहमानों का अलग से इंतजाम करना,  इसी सब से चिड़चिड़ी हो गई है. वैसे, सपना दिल की बुरी नहीं है.

बूआ के कारण सपना को भी स्टेशन जाना पड़ा. निश्चित समय पर प्लेटफौर्म पर गाड़ी आ कर लग गई. चूंकि गाड़ी को हावड़ा से ही बन कर चलना था, इसलिए हड़बड़ी नहीं थी. विकास ने आराम से आरक्षण वाले डब्बे में सब को पहुंचा दिया. सामान वगैरा भी सब खुद ही संभाल कर रखवा दिया ताकि उन बुजुर्गों को सफर में कोईर् तकलीफ न हो.

गाड़ी चलने में थोड़ा वक्त रह गया था. विकास और उन की पत्नी डब्बे से नीचे उतरने लगे. बूआ को अंतिम बार प्रणाम करने के लिए सपना आगे बढ़ी और उन के पैरों पर झुक गई. जब उठी तो बूआ ने एक रूमाल उस के हाथों में थमा दिया. कहा, ‘‘बहू, इसे तू घर जा कर खोलना, गरीब बूआ की तरफ से एक छोटी सी भेंट है.’’

सिगनल हो गया था. दोनों पतिपत्नी नीचे उतर पड़े. गाड़ी चल पड़ी और धीरेधीरे उस ने गति पकड़ ली.

सपना को बेचैनी हो रही थी कि आखिर बूआ ने अंतिम समय में क्या पकड़ाया है? वे टैक्सी से घर लौट रहे थे. रास्ते में सपना ने रूमाल खोला तो उस की आंखें फटी की फटी रह गईं. अंदर सोने का सीताहार अपनी पूरी आभा के साथ चमचमा रहा था.

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सपना उस हार को देख कर सुखद आश्चर्य से भर उठी, ‘बूआ ने यह क्या किया? इतना कीमती हार इतनी आसानी से पकड़ा कर चली गईं. क्या अपनी सगी बूआ भी ऐसा उपहार दे सकती हैं? धिक्कार है मुझ पर, सिर्फ एक बार ही सही, बूआ को कहा होता… ‘कुछ दिन यहां और ठहर जाइए,’ यह सोचते हुए सपना की आंखों से आंसू बहने लगे.

मृदुभाषिणी: सामने आया मामी का चरित्र

सुहागरात को दुलहन बनी शुभा से पति ने प्रथम शब्द यही कहे थे, ‘मेरी एक मामी हैं. वे बहुत अच्छी हैं. हमारे घर में सभी उन की प्रशंसा करते हैं. मैं चाहता हूं, भविष्य में तुम उन का स्थान लो. सब कहें कि बहू हो तो शुभा जैसी. मैं चाहता हूं जैसे वे सब को पसंद हैं, वैसे ही तुम भी सब की पसंद बन जाओ.’

पति ने अपनी धुन में बोलतेबोलते एक आदर्श उस के सामने प्रस्तुत कर दिया था. वास्तव में शुभा को भी पति की मामी बहुत पसंद आई थीं, मृदुभाषिणी व धीरगंभीर. वे बहुत स्नेह से शुभा को खाना खिलाती रही थीं. उस का खयाल रखती रही थीं. नई वधू को क्याक्या चाहिए, सब उन के ध्यान में था. सत्य है, अच्छे लोग सदा अच्छे ही लगते हैं, उन्होंने सब का मन मोह रखा था.

वक्त बीतता गया और शुभा 2 बच्चों की मां बन गई. मामी से मुलाकात होती रहती थी, कभी शादीब्याह पर तो कभी मातम पर. शुभा की सास अकसर कहतीं, ‘‘देखा मेरी भाभी को, कभी ऊंची आवाज में बात नहीं करतीं.’’

शुभा अकसर सोचती, ‘2-3 वर्ष के अंतराल के उपरांत जब कोई मनुष्य किसी सगेसंबंधी से मिलता है, तब भला उसे ऊंचे स्वर में बात करने की जरूरत भी क्या होगी?’ कभीकभी वह इस प्रशंसा पर जरा सा चिढ़ भी जाती थी.

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एक शाम बच्चों को पढ़ाते पढ़ाते उस ने जरा डांट दिया तो सास ने कहा, ‘‘कभी अपनी मामी को ऊंचे स्वर में बात करते सुना है?’’

‘‘अरे, बच्चों को पढ़ाऊंगी तो क्या चुप रह कर पढ़ाऊंगी? क्या सदा आप मामीमामी की रट लगाए रखती हैं. अपने घर में भी क्या वे ऊंची आवाज में बात नहीं करती होंगी?’’ बरसों की कड़वाहट सहसा निकली तो बस निकल ही गई, ‘‘अपने घर में भी मुझे कोई आजादी नहीं है. आप लोग क्या जानें कि अपने घर में वे क्याक्या करती होंगी. दूसरी जगह जा कर तो हर इंसान अनुशासित ही रहता है.’’

‘‘शुभा,’’ पति ने बुरी तरह डांट दिया. वह प्रथम अवसर था जब उस की मामी के विषय में शुभा ने कुछ अनचाहा कह दिया था.

कुछ दिन सास का मुंह भी चढ़ा रहा था. उन के मायके की सदस्य का अपमान उन से सहा न गया. लेदे कर वही तो थीं, जिन से सासुमां की पटती थी.

धीरेधीरे समय बीता और मामाजी के दोनों बच्चों की शादियां हो गईं. शुभा उन के शहर न जा पाई क्योंकि उसे घर पर ही रहना था. सासुमां ने महंगे उपहार दे कर अपना दायित्व निभाया था.

ससुरजी की मृत्यु के बाद परिवार की पूरी जिम्मेदारी शुभा के कंधों पर आ गई थी. सीमित आय में हर किसी से निभाना अति विकट था, फिर भी जोड़जोड़ कर शुभा सब निभाने में जुटी रहती.

पति श्रीनगर गए तो उस के लिए महंगी शौल ले आए. इस पर शुभा बोली, ‘‘इतनी महंगी शौल की क्या जरूरत थी. अम्मा के लिए क्यों नहीं लाए?’’

‘‘अरे भई, इस पर किसी का नाम लिखा है क्या. दोनों मिलजुल कर इस्तेमाल कर लिया करना.’’

शुभा ने शौल सास को थमा दी.

कुछ दिनों बाद कहीं जाना पड़ा तो शुभा ने शौल मांगी तो पता चला कि अम्मा ने मामी को पार्सल करवा दी.

यह सुन शुभा अवाक रह गई, ‘‘इतनी महंगी शौल आप ने…’’

‘‘अरे, मेरे बेटे की कमाई की थी, तुझे क्यों पेट में दर्द हो रहा है?’’

‘‘अम्मा, ऐसी बात नहीं है. इतनी महंगी शौल आप ने बेवजह ही भेज दी. हजार रुपए कम तो नहीं होते. ये इतने चाव से लाए थे.’’

‘‘बसबस, मुझे हिसाबकिताब मत सुना. अरे, मैं ने अपने बेटे पर हजारों खर्च किए हैं. क्या मुझे इतना भी अधिकार नहीं, जो अपने किसी रिश्तेदार को कोई भेंट दे सकूं?’’

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अम्मा ने बहू की नाराजगी जब बेटे के सामने प्रकट की, तब वह भी हैरान रह गया और बोला, ‘‘अम्मा, मैं पेट काटकाट कर इतनी महंगी शौल लाया था. पर तुम ने बिना वजह उठा कर मामी को भेज दी. कम से कम हम से पूछ तो लेतीं.’’

इस पर अम्मा ने इतना होहल्ला मचाया कि घर की दीवारें तक दहल गईं. शुभा और उस के पति मन मसोस कर रह गए.

‘‘पता नहीं अम्मा को क्या हो गया है, सदा ऐसी जलीकटी सुनाती रहती हैं. इतनी महंगाई में अपना खर्च चलाना मुश्किल है, उस पर घर लुटाने की तुक मेरे तो पल्ले नहीं पड़ती,’’ शौल का कांटा शुभा के पति के मन में गहरा उतर गया था.

कुछ समय बीता और एक शाम मामा की मृत्यु का समाचार मिला. रोतीपीटती अम्मा को साथ ले कर शुभा और उस के पति ने गाड़ी पकड़ी. बच्चों को ननिहाल छोड़ना पड़ा था.

क्रियाकर्म के बाद रिश्तेदार विदा होने लगे. मामी चुप थीं, शांत और गंभीर. सदा की भांति रो भी रही थीं तो चुपचाप. शुभा को पति के शब्द याद आने लगे, ‘हमारी मामी जैसी बन कर दिखाना, वे बहुत अच्छी हैं.’

शुभा के पति और मामा का बेटा अजय अस्थियां विसर्जित कर के लौटे तो अम्मा फिर बिलखबिलख कर रोने लगीं, ‘‘कहां छोड़ आए रे, मेरे भाई को…’’

शुभा खामोशी से सबकुछ देखसुन रही थी. मामी का आदर्श परिवार पिछले 20 वर्षों से कांटे की शक्ल में उस के हलक में अटका था. उन के विषय में जानने की मन में गहरी जिज्ञासा थी. मामी की बहू मेहमाननवाजी में व्यस्त थी और बेटी उस का हाथ बंटाती नजर आ रही थी. एक नौकर भी उन की मदद कर रहा था.

बहू का सालभर का बच्चा बारबार रसोई में चला जाता, जिस के कारण उसे असुविधा हो रही थी. शुभा बच्चा लेना चाहती, मगर अपरिचित चेहरों में घिरा बच्चा चीखचीख कर रोने लगता.

‘‘बहू, तुम कुछ देर के लिए बच्चे को ले लो, नाश्ता मैं बना लेती हूं,’’ शुभा के अनुरोध पर बीना बच्चे को गोद में ले कर बैठ गई.

जब शुभा रसोई में जाने लगी तो बीना ने रोक लिया, ‘‘आप बैठिए, छोटू है न रसोई में.’’

मामी की बहू अत्यंत प्यारी सी, गुडि़या जैसी थी. वह धीरेधीरे बच्चे को सहला रही थी कि तभी कहीं से मामी का बेटा अजय चला आया और गुस्से में बोला, ‘‘तुम्हारे मांबाप कहां हैं? वे मुझ से मिले बिना वापस चल गए? उन्हें इतनी भी तहजीब नहीं है क्या?’’

‘‘आप हरिद्वार से 2 दिनों बाद लौटे हैं. वे भला आप से मिलने का इंतजार कैसेकर सकते थे.’’

‘‘उन्हें मुझ से मिल कर जाना चाहिए था.’’

‘‘वे 2 दिन और यहां कैसे रुक जाते? आप तो जानते हैं न, वे बेटी के घर का नहीं खाते. बात को खींचने की क्या जरूरत है. कोई शादी वाला घर तो था नहीं जो वे आप का इंतजार करते रहते.’’

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‘‘बकवास बंद करो, अपने बाप की ज्यादा वकालत मत करो,’’ अजय तिलमिला गया.

‘‘तो आप क्यों उन्हें ले कर इतना हंगामा मचा रहे हैं? क्या आप को बात करने की तमीज नहीं है? क्या मेरा बाप आप का कुछ नहीं लगता?’’

‘‘चुप…’’

‘‘आप भी चुप रहिए और जाइए यहां से.’’

शुभा अवाक रह गई. उस के सामने  ही पतिपत्नी भिड़ गए थे. ज्यादा  दोषी उसे अजय ही नजर आ रहा था. खैर, अपमानित हो कर वह बाहर चला गया और बहू रोने लगी.

‘‘जब देखो, मेरे मांबाप को अपमानित करते रहते हैं. मेरे भाई की शादी में भी यही सब करते रहे, वहां से रूठ कर ही चले आए. एक ही भाई है मेरा, मुझे वहां भी खुशी की सांस नहीं लेने दी. सब के सामने ही बोलना शुरू कर देंगे. कोई इन्हें मना भी नहीं करता. कोई समझाता ही नहीं.’’

शुभा क्या कहती. फिर जरा सा मौका मिलते ही शुभा ने मामी की समझदार बेटी से कहा, ‘‘जया, जरा अपने भाई को समझाओ, क्यों बिना वजह सब के सामने पत्नी का और उस के मांबाप का अपमान कर रहा है. तुम उस की बड़ी बहन हो न, डांट कर भी समझा सकती हो. कोई भी लड़की अपने मांबाप का अपमान नहीं सह सकती.’’

‘‘उस के मांबाप को भी तो अपने दामाद से मिल कर जाना चाहिए था. बीना को भी समझ से काम लेना चाहिए. क्या उसे पति का खयाल नहीं रखना चाहिए. वह भी तो हमेशा अजय को जलीकटी सुनाती रहती है?’’

शुभा चुप रह गई और देखती रही कि बीना रोतेरोते हर काम कर रही है. किसी ने उस के पक्ष में दो शब्द भी नहीं कहे.

खाने के समय सारा परिवार इकट्ठा हुआ तो फिर अजय भड़क उठा, ‘‘अपने बाप को फोन कर के बता देना कि मैं उन लोगों से नाराज हूं. आइंदा कभी उन की सूरत नहीं देखूंगा.’’

तभी शुभा के पति ने उसे बुरी तरह डपट दिया, ‘‘तेरा दिमाग ठीक है कि नहीं? पत्नी से कैसा सुलूक करना चाहिए, यह क्या तुझे किसी ने नहीं सिखाया? मामी, क्या आप ने भी नहीं?’’

लेकिन मामी सदा की तरह चुप थीं. शुभा के पति बोलते रहे, ‘‘हर इंसान की इज्जत उस के अपने हाथ में होती है. पत्नी का हर पल अपमान कर के, वह भी 10 लोगों के बीच में, भला तुम अपनी मर्दानगी का कौन सा प्रमाण देना चाहते हो? आज तुम उस का अपमान कर रहे हो, कल को वह भी करेगी, फिर कहां चेहरा छिपाओगे? अरे, इतनी संस्कारी मां का बेटा ऐसा बदतमीज.’’

वहां से लौटने के बाद भी शुभा मामी के अजीबोगरीब व्यवहार के बारे में ही सोचती रही कि अजय की गलती पर वे क्यों खामोश बैठी रहीं? गलत को गलत न कहना कहां तक उचित है?

एक दिन शुभा ने गंभीर स्वर में पति से कहा, ‘‘मैं आप की मामी जैसी नहीं बनना चाहती. जो औरत पुत्रमोह में फंसी, उसे सही रास्ता न दिखा सके, वह भला कैसी मृदुभाषिणी? क्या बहू के पक्ष में वे कुछ नहीं कह सकती थीं, ऐसी भी क्या खामोशी, जो गूंगेपन की सीमा तक पहुंच जाए.’’

यह सुन कर भी शुभा के पति और सास दोनों ही खामोश रहे. उन्हें इस समय शायद कोई जवाब सूझ ही नहीं रहा था.

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