शादी की उम्र : शाहिदा ने क्यों फोड़े दिल के छाले

शाहिदा ने मोबाइल फोन पर फेसबुक में झांका कि कुछ नया तो नहीं और फिर कुलसुम को दिखाया कि वह अपनी डीपी में कैसी लग रही है. इस के बाद वह बोली, ‘‘हां कुलसुम, कल जो लड़का तुम्हें मैट्रीमोनियल साइट के मारफत मिला था और उस के घर वाले आए थे, उस में क्या हुआ?’’

‘‘और तो सब ठीक है शाहिदा आंटी,’’ कुलसुम बोली, ‘‘जरा एक अड़चन है.’’

‘‘कैसी अड़चन?’’ कुलसुम ने मोबाइल बंद किया और फिर गला साफ करते हुए बोली, ‘‘आंटी, यों तो लड़का खातेपीते घर का है, हैल्दी भी है और एमएनसी में नौकरी भी है, लेकिन…’’

कुलसुम कुछ कहतेकहते रुक गई, तो शाहिदा ने ही बात आगे बढ़ाई, ‘‘क्या चालचलन ठीक नहीं है?’’

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. लड़का बहुत शरीफ है. पर एक तो पापा का हाथ तंग है और लड़का तलाकशुदा है. पहली से उस का 3-4 साल का बच्चा भी है. कस्टडी तो मां के पास है, पर हर हफ्ते एक रात के लिए आता है, इसलिए जरा हिचकिचाहट हो रही है.’’

इस बार शाहिदा उठी और खिड़की के बाहर खड़ी हो कर कुछ सोचने लगी. फिर आ कर बोली, ‘‘देखो कुलसुम, तुम पैसों की परवाह मत करो. पापा को कहो कि जितनी रकम चाहिए, मुझ से ले लें. धीरेधीरे अदा कर देना. और तलाकशुदा जैसी जरा सी बात के लिए अच्छे लड़के को मत ठुकराओ. बच्चे को एक और मां का प्यार दे कर अपने पति का दिल जीतो.’’

कुलसुम ने शाहिदा की ओर देखा और बोली, ‘‘शाहिदा आंटी, एक सवाल पूछूं?’’

शाहिदा ने एक सवालिया निगाह से देखा, तो कुलसुम ने कहा, ‘‘माफ करें, मेरा सवाल आप की निजी जिंदगी से जुड़ा है. आप किसी भी लड़की की शादी कराने में बहुत ज्यादा दिलचस्पी लेती हैं, रुपएपैसों की मदद भी करती हैं. मेरी कई सहेलियों के साथ आप ने ऐसा किया है. लेकिन मालदार और अच्छी नौकरी के बावजूद भी आप कुंआरी रह गईं, ऐसा क्यों हुआ?’’

अचानक अधेड़ उम्र की शाहिदा की आंखें छलछला आईं. कुलसुम को लगा कि शायद उस ने यह सब पूछ कर अच्छा नहीं किया. वह उठते हुए बोली, ‘‘आंटी माफ करना, शायद मैं कुछ गलत पूछ गई. आप का दिल दुखाने का मेरा इरादा कतई नहीं था.’’

‘‘नहींनहीं, बैठो कुलसुम. मैं आज तुम्हें सबकुछ बताऊंगी,’’ शाहिदा एक टिशू से आंखें पोंछती हुई बोलीं, ‘‘मैं अपने अमीर मांबाप की एकलौती लड़की थी. लाड़प्यार से पलने की वजह से और अमीर घराना होने से थोड़ा गुमान मुझ में भी आ गया था.

‘‘जब मैं 15 साल की हुई, तो मैं ने पाया कि चौकीदार का जवान लड़का, जो देखने में भलाचंगा था, मेरी तरफ खिंचने लगा था और एक दिन मौका पा कर उस ने मेरा हाथ पकड़ कर कहा था, ‘शाहिदा, मैं आप को दिलोजान से चाहता हूं. मैं आप के लिए कुछ भी कर सकता हूं.’

‘‘मैं ने फुरती से अपना हाथ छुड़ा कर एक चांटा उस के गाल पर मारा और कहा, ‘तो डूब मर चुल्लू भर पानी में. अपनी औकात देखी है. हमारे टुकड़ों पर पलने वाला हम पर ही डोरे डाल रहा है.’

‘‘वह बेचारा फिर कभी दिखाई नहीं दिया. अपनी जिंदगी में आए प्यार के इस पाले इजहार को मैं बिलकुल भूल गई. जब मैं 19 साल की हुई, तो रिश्ते के एक चाचा ने अपने बेटे से मेरा निकाह करने की बात चलाई. उन के बेटे में कोई कमी नहीं थी. हां, यह बात जरूर थी कि वे हमारी बराबरी के नहीं थे. फिर लड़का मामूली किरानी था. मुझ पर उन दिनों एमबीए करने का भूत सवार था.

‘‘उन की बात सुन कर अम्मी भी भड़क उठी थीं, ‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यह कहने की. कम से कम अपनी औकात तो देखी होती. फिर आप के साहबजादे करते क्या हैं, किरानीगीरी. मेरी बेटी के 12वीं में 95 परसैंट मार्क्स आए थे. वैसे भी, ऐसी हैसियत के तो हमारे यहां नौकरचाकर हैं. जितनी तनख्वाह आप के बेटे को मिलती होगी, उतने की तो आज भी शाहिदा एक पोशाक पहन कर फाड़ डालती है. अगर अच्छी नौकरी मिल गई तो न जाने क्या होगा.’

‘‘वे लोग मुंह लटकाए वापस चले गए. अम्मी की बातें मुझे बहुत अच्छी लगी थीं. मैं ने मन में सोचा कि अच्छा फटकारा. चले आए थे मुंह उठा कर.

‘‘तीसरी बार एक अच्छे घर से रिश्ता आया. उस समय मैं 25 साल की हो चुकी थी. लड़के वाले हमारी टक्कर के तो न थे, लेकिन फिर भी अच्छे पैसे वाले थे. लड़का भी ठीक था. पर एक सरकारी कंपनी में इंजीनियर था. उस के पिता का कहना था कि हम बरात में बाजा नहीं लाएंगे. शोरशराबों से क्या होता है? वे समाज सुधारक थे और शादीब्याह सीधी तरह करने वाले थे.

‘‘इस बार मेरे अब्बा भड़क गए थे, ‘अमा लड़की ब्याहने आना चाहते हो या मातमपुर्सी करने. दुनिया के लोग बेवकूफ हैं, जो इतनी धूमधाम से शादियां करते हैं?’

‘‘मैं भी एक ग्रेट इंडियन वैडिंग चाहती थी, जिस में खूब धूमधड़ाम हो.

‘‘बहरहाल, बात बनी नहीं और वह रिश्ता भी इनकार कर दिया गया. अगला रिश्ता भी इनकार कर दिया गया. यह रिश्ता भी एक अच्छे घराने से आया था. लड़के ने मुझ से कहा कि पापा को कहो कि कोई सामान न दें. मेरी बचत, उस की बचत और दहेज के सामान की बचत से 1 करोड़ हो जाएंगे और वह स्टार्टअप शुरू करेगा. हम बराबर के पार्टनर तो होंगे ही.

‘‘अम्मी ने गाल फुलाते हुए कहा, ‘क्या हमारे पैसों की और बेटी के पैसों की उम्मीद पर ही हाथ पर हाथ धरे अभी तक लड़का बैठा हुआ है?’

‘‘इस तरह वह रिश्ता भी न हो सका. मैं अब तक एक एमएनसी में अच्छा कमाने लगी थी. मेरी खुद की चाहत अच्छे पढ़ेलिखे लड़के की होने लगी.

‘‘मेरी उम्र के 28वें साल में मौका आया. एक सांवले लड़के ने मुझे प्रपोज किया. वह एक दूसरी कंपनी में डायरैक्टर के पद पर था. वह न तो काला ही था, न साउथ इंडियनों की तरह. न मुझे पसंद था और न घर वालों को. मन ही मन मैं उसे काला बंदर कह कर हंस दी थी.

‘‘हालांकि उम्र के इस दौर में मुझे सोचना चाहिए था कि आखिर किसी न किसी को तो हमसफर बना ही लेना चाहिए. लड़की की उम्र निकल जाए तो फिर सबकुछ हाथ से निकल जाता है. और बेशुमार दौलत भी उम्र वापस नहीं ला सकती. पर, मैं अपने मांबाप की लाड़ली अपनी नौकरी और दौलत के नशे में चूर इस पर गहराई से न सोच सकी.

‘‘उम्र के 30वें साल में एक से शादी की बात चली. उस में कहीं कोई कमी न थी. लड़का डिप्टी कलक्टर था. हम कई बार मिले. एक बार रात भी बिताई. उस रात देखा कि लड़के वाले करीबकरीब हमारी टक्कर के थे. पर लड़का जरा सा लंगड़ाता था.

‘‘अम्मी को बताया तो उन्होंने कहा, ‘भई, पैसा और रसूख तो आताजाता रहता?है. लेकिन कम से कम लड़का तो ऐसा हो, जिस के साथ लड़की घूमफिर सके.’

‘‘मुझे भी लगा कि कहीं टांग में कैंसर वगैरह न हो. जब सहेलियों को बताया तो वे बोलीं, ‘चल कर ले न तैमूर लंग से शादी. अरे, उसे कहो कहीं लंगड़ीलूली लड़की देखे.’

‘‘फिर कई और रिश्ते आए. पर किसी में मुझे कमी आई, किसी में अम्मी को कमी नजर आई, तो किसी में मेरी सहेलियों को. मेरी सब सहेलियां शादीशुदा हो चुकी थीं और उन के खाविंद मुझ पर मरते थे. शायद वे लड़कियां चाहती थीं कि मेरी शादी ही न हो. फिर लड़के मिलने कम हो गए. मैं उम्र की 34वीं मंजिल पार कर गई.

‘‘उम्र का यह वह ढलान था, जब लड़की को शादी कर लेनी चाहिए. पर दौलत के नशे में मैं ने कुछ न सोचा. उम्र के इस मोड़ पर मैं भी एक मर्द साथी की कमी महसूस कर रही थी और मैं ने तय कर लिया था कि अब किसी भी रिश्ते के आने पर, चाहे वह आम आमदनी वाले का ही क्यों न हो, मैं टांग नहीं अड़ाऊंगी. 2-3 से मेलजोल भी हुआ, पर रात को पता लगा कि वे तो सब शादीशुदा हैं या आधेअधूरे.

‘‘मैं 36 साल की थी, तब एक रिश्ता आया. लड़का तलाकशुदा था. उस की घरवाली भाग गई थी. 2 बच्चे थे. मैं ने इस बार सोच लिया था कि तलाकशुदा है तो क्या हुआ? बच्चे हैं तो क्या हुआ? मैं सब संभाल लूंगी.

‘‘औरत की समझदारी से ही गृहस्थी चलती है. मैं भी बच्चों को प्यार दूंगी. घर को खुशहाल बना दूंगी. पर बात मुझ तक आने का मौका ही नहीं मिला. अम्मीजान तो मुंहफट थीं ही, सो रिश्ते लाने वाले के मुंह पर ही कह मारा, ‘तलाकशुदा है तो कहीं बेवा या तलाकशुदा को तलाशो. हमारी लड़की में कोई कमी थोड़े ही है, जो सैकंडहैंड के मत्थे मढ़ दें.’

‘‘और बस यही आखिरी रिश्ता था. फिर कोई रिश्ता नहीं आया. कुछ ही दिनों में मांबाप ढेर सी दौलत छोड़ कर मर गए. मैं नौकरी में आगे बढ़ती गई, पर मैं एक मर्द साथी के लिए बेचैन हो उठी थी. जो मिलते थे, केवल 2-4 रात बिताते. एक मिला, पर रात को बिस्तर पर हैवान होने लगा. मैं रात को सिर्फ नाइटी में उस के घर से निकल कर भागी थी.

‘‘आखिर एक दिन हिम्मत कर के अपने बूढ़े चौकीदार से पूछा, ‘बाबा, आप का लड़का था न रमजानी. कहां है वह?’

‘‘बूढ़े चौकीदार ने मुसकरा कर कहा, ‘बेटी, वह मुंबई में गोदी में मजदूरी करता है. अचानक उस की याद कैसे आ गई.’ ‘‘मैं ने अपनी आंखें बचाते हुए कहा, ‘यों ही पूछा था. शादी तो अब कर ही ली होगी.’

‘‘बूढ़ा चौकीदार हंसा और बोला, ‘शादी… अब तो उस के बच्चे भी शादी लायक हो गए हैं.’

‘‘फिर मुझे पता चला कि उन सभी लड़कों की शादियां हो चुकी हैं, जिन के लिए मेरे साथ तार जुड़ने आए थे. और अब सभी बालबच्चों में घिर कर जिंदगी गुजार रहे हैं. और मैं अपने और अपने मांबाप की झूठी शान की वजह से उन मंजिलों को पार कर गई थी, जो एक बार छूट जाने के बाद फिर कभी नहीं मिलती.

‘‘मैं इस इंतजार में रही कि अब जो भी रिश्ता आएगा, उसे फौरन मंजूर कर लूंगी, पर फिर कोई रिश्ता नहीं आया और मैं रिश्ते के इंतजार में उम्र को पीछे छोड़ने लगी.

‘‘अब आईने में खड़ी अपनेआप को देखती हूं कि मेरे सिर के बाल सफेद हो रहे हैं. चेहरा भी कुछ ढीला पड़ रहा है. मैं समझ गई हूं कि अब किसी रिश्ते का इंतजार बेकार है. एक औरत के रूप में मैं वह सबकुछ खो चुकी थी, जो उम्र के एक खास पड़ाव तक ही रहता है. बस, फिर मैं अपने अकेलेपन में कैद हो कर रह गई.’’

अपनी कहानी सुना कर शाहिदा ने अपनी आंखों को टिशू से एक बार फिर साफ किया. उन्होंने अब चाय का ठंडा होता कप उठाया. थोड़ी देर तक चुप रहने के बाद वे बोलीं,

‘‘कुलसुम, औरत बिना मर्द के बिलकुल बेजान है. मैं नहीं चाहती कि मेरी तरह कोई और लड़की वह सुख झेले, जो मैं झेल रही हूं. तुम फौरन जा कर अम्मीअब्बा को मेरे पास भेज दो. मैं उन्हें समझाऊंगी.’’

कुलसुम ने अपनी अम्मीअब्बा को शाहिदा के पास भेजा. शाहिदा ने उन्हें तलाकशुदा के साथ शादी करने के लिए राजी कर लिया. कुलसुम की शादी में शाहिदा ने उधार की रकम तो दी ही, अपनी तरफ से बहुतकुछ खर्च भी किया. कुलसुम को विदा करा कर जब वे अपने घर आई, तो उन्हें ऐसा लगा मानो उन की ही शादी हो गई है.

काली सोच : क्या शुभा खुद को माफ कर पाई

अंधविश्वास, पुरातनपंथी और कट्टरवादी सोच ने न जाने कितनों का घर उजाड़ा है. शुभा की आंखों पर भी न जाने क्यों इन्हीं सब का परदा पड़ा हुआ था, जिस का परिणाम इतना भयावह होगा, इस की वह कल्पना भी नहीं कर सकती थी.

लेखन कला मुझे नहीं आती, न ही वाक्यों के उतारचढ़ाव में मैं पारंगत हूं. यदि होती तो शायद मुझे अपनी बात आप से कहने में थोड़ी आसानी रहती. खुद को शब्दों में पिरोना सचमुच क्या इतना मुश्किल होता है?

बाहर पूनम का चांद मुसकरा रहा है. नहीं जानती कि वह मुझ पर, अपनेआप पर या किसी और पर मुस्कुरा रहा है. मैं तो बस इतना जानती हूं कि वह भी पूनम की ऐसी ही एक रात थी जब मैं अस्पताल के आईसीयू के बाहर बैठी अपने गुनाहों के लिए बेटी से माफी मांग रही थी, ‘मुझे माफ कर दे बेटी. पाप किया है मैं ने, महापाप.’

मानसी, मेरी इकलौती बेटी, भीतर आईसीयू में जीवन और मौत के बीच झूल रही है. उस ने आत्महत्या करने की कोशिश की, यह तो सभी जानते हैं पर यह कोई नहीं जानता कि उसे इस हाल तक लाने वाली मैं ही हूं. मैं ने उस मासूम के सामने कोई और रास्ता छोड़ा ही कहां था?

कहते हैं आत्महत्या करना कायरों का काम है पर क्या मैं कायर नहीं जो भविष्य की दुखद घटनाओं की आशंका से वर्तमान को ही रौंदती चली आई?

हर मां का सपना होता है कि वह अपनी नाजों से पाली बेटी को सोलहशृंगार में पति के घर विदा करे. मैं भी इस का अपवाद नहीं थी. तिनकातिनका जोड़ कर जैसे चिड़िया अपना घोंसला बनाती है. वैसे ही मैं भी मानसी की शादी के सपने संजोती गई. वह भी मेरी अपेक्षाओं पर हमेशा खरी उतरी. वह जितनी सुंदर थी उतनी ही मेधावी भी. शांत, सुसभ्य, मृदुभाषिणी मानसी घरबाहर सब की चहेती थी. एक मां को इस से ज्यादा और क्या चाहिए?

‘देखना अपनी लाडो के लिए मैं चांद सा दूल्हा लाऊंगी,’ मैं सुशांत से कहती तो वे मुसकरा देते.

उस दिन मानसी की 12वीं कक्षा का परिणाम आया था. वह पूरे स्टेट में फर्स्ट आईर् थी. नातेरिश्तेदारों की तरफ से बधाइयों का तांता लगा हुआ था. हमारे पड़ोसी व खास दोस्त विनोद भी हमारे घर आए थे मिठाई ले कर.

‘मिठाई तो हमें खिलानी चाहिए भाईसाहब, आप ने क्यों तकलीफ की,’ सुशांत ने गले मिलते हुए कहा तो वे बोले, ‘हां हां, जरूर खाएंगे. सिर्फ मिठाई ही क्यों? हम तो डिनर भी यहीं करेंगे, लेकिन पहले आप मेरी तरफ से मुंह मीठा कीजिए. रोहित का मैडिकल कालेज में दाखिला हो गया है.’

‘फिर तो आज दोहरी खुशी का दिन है. मानसी ने 12वीं में टौप किया है. मैं ने मिठाई की प्लेट उन की ओर बढ़ाई.’

‘आप चाहें तो हम यह खुशी तिहरी कर लें,’ विनोद ने कहा.

‘हम समझे नहीं,’ मैं अचकचाई.

‘अपनी बेटी मानसी को हमारे आंचल में डाल दीजिए. मेरी बेटी की कमी पूरी हो जाएगी और आप की बेटे की,’ मिसेज विनोद बड़ी मोहब्बत से बोली.

‘देखिए भाभीजी, आप के विचारों की मैं इज्जत करती हूं, लेकिन मुंह रहते कोई नाक से पानी नहीं पीता. शादीविवाह अपनी बिरादरी में ही शोभा देते हैं,’ इस से पहले कि सुशांत कुछ कहते मैं ने सपाट सा उत्तर दे दिया.

‘जानती हूं मैं. सदियों पुरानी मान्यताएं तोड़ना आसान नहीं होता. हमें भी काफी वक्त लगा है इस फैसले तक पहुंचने में. आप भी विचार कर देखिएगा,’ कहते हुए वे लोग चले गए.

‘इस में हर्ज ही क्या है शुभा? दोनों बच्चे बचपन से एकदूसरे को जानते हैं, समझते हैं. सब से बढ़ कर बौद्धिक और वैचारिक समानता है दोनों में. मेरे खयाल से तो हमें इस रिश्ते के लिए हां कह देनी चाहिए.’ सुशांत ने कहा तो मेरी त्योरियां चढ़ गईं.

‘तुम्हारा दिमाग तो नहीं फिर गया है. आलते का रंग चाहे जितना शोख हो, उस का टीका नहीं लगाते. कहां वो, कहां हम उच्चकुलीन ब्राह्मण. हमारी उन की भला क्या बराबरी? दोस्ती तक तो ठीक है, पर रिश्तेदारी अपनी बराबरी में होनी चाहिए. मुझे यह रिश्ता बिलकुल पसंद नहीं है.’

‘एक बार खुलेमन से सोच कर तो देखो. आखिर इस में बुराई ही क्या है? दीपक ले कर ढूंढ़ेंगे तो भी ऐसा दामाद हमें नहीं मिलेगा’, सुशांत ने कहा.

‘मुझे जो कहना था मैं ने कह दिया. तुम्हें इतना ही पसंद है तो कहीं से मुझे जहर ला दो. अपने जीतेजी तो मैं यह अनर्थ नहीं होने दूंगी. अरे, रिश्तेदार हैं, समाज है उन्हें क्या मुंह दिखाएंगे. दस लोग दस तरह के सवाल पूछेंगे, क्या जवाब देंगे उन्हें हम?’

मैं ने कहा तो सुशांत चुप हो गए. उस दिन मैं ने मानसी को ध्यान से देखा. वाकई मेरी गुडि़या विवाहयोग्य हो गई थी. लिहाजा, मैं ने पुरोहित को बुलावा भेजा.

‘बिटिया की कुंडली में तो घोर मंगल योग है बहूरानी. पतिसुख से यह वंचित रहेगी. पुरोहित के मुख से यह सुन कर मेरा मन अनिष्ट की आशंका से कांप उठा. मैं मध्यवर्गीय धर्मभीरू परिवार से थी और लड़की के मंगला होने के परिणाम से पूरी तरह परिचित थी. मैं ने लगभग पुरोहित के पैर पकड़ लिए, ‘कोई उपाय बताइए पुरोहितजी. पूजापाठ, यज्ञहवन, मैं सबकुछ करने को तैयार हूं. मुझे कैसे भी इस मंगल दोष से छुटकारा दिलाइए.’

‘शांत हो जाइए बहूरानी. मेरे होते हुए आप को परेशान होने की बिलकुल भी जरूरत नहीं है,’ उन्होंने रसगुल्ले को मुंह में दबाते हुए कहा, ‘ऐसा कीजिए, पहले तो बिटिया का नाम मानसी के बजाय प्रिया रख दीजिए.’

‘ऐसा कैसे हो सकता है पंडितजी. इस उम्र में नाम बदलने के लिए न तो बिटिया तैयार होगी न उस के पापा. वे कुंडली मिलान के लिए भी तैयार नहीं थे.’

‘तैयार तो बहूरानी राजा दशरथ भी नहीं थे राम वनवास के लिए.’ पंडितजी ने घोर दार्शनिक अंदाज में मुझे त्रियाहट का महत्त्व समझाया व दक्षिणा ले कर चलते बने.

‘आज से तुम्हारा नाम मानसी के बजाय प्रिया रहेगा,’ रात के खाने पर मैं ने बेटी को अपना फैसला सुना दिया.

‘लेकिन क्यों मां, इस नाम में क्या बुराई है?’

‘वह सब मैं नहीं जानती बेटा, पर मैं जो कुछ भी कर रही हूं तुम्हारे भले के लिए ही कर रही हूं. प्लीज, मुझे समझने की कोशिश करो.’

उस ने मुझे कितना समझा, कितना नहीं, यह तो मैं नहीं जानती पर मेरी बात का विरोध नहीं किया.

हर नए रिश्ते के साथ मैं उसे हिदायतों का पुलिंदा पकड़ा देती.

‘सुनो बेटा, लड़के की लंबाई थोड़ा कम है, इसलिए फ्लैटस्लीपर ही पहनना.’

‘लेकिन मां फ्लैटस्लीपर तो मुझ पर जंचते नहीं हैं.’

‘देखो प्रिया, यह लड़का 6 फुट का है. इसलिए पैंसिलहील पहनना.’

‘लेकिन मम्मी मैं पैंसिलहील पहन कर तो चल ही नहीं सकती. इस से मेरे टखनों में दर्द होता है.’

‘प्रिया, मौसी के साथ पार्लर हो आना. शाम को कुछ लोग मिलने आ रहे हैं.’

‘मैं नहीं जाऊंगी. मुझे मेकअप पसंद नहीं है.’

‘बस, एक बार तुम्हारी शादी हो जाए, फिर करती रहना अपने मन की.’

मैं सुबकने लगती तो प्रिया हथियार डाल देती.

पर मेरी सारी तैयारियां धरी की धरी रह जातीं जब लड़के वाले ‘फोन से खबर करेंगे’, कहते हुए चले जाते या फिर दहेज में मोटी रकम की मांग करते, जिसे पूरा करना किसी मध्यवर्गीय परिवार के वश की बात नहीं थी.

‘ऐसा कीजिए बहूरानी, शनिवार की सुबह 3 बजे बिटिया से पीपल के फेरे लगवा कर ग्रहशांति का पाठ करवाइए,’ पंडितजी ने दूसरी युक्ति सुझाई.

‘तुम्हें यह क्या होता जा रहा है मां, मैं ये जाहिलों वाले काम बिलकुल नहीं करूंगी,’ प्रिया गुस्से से भुनभुनाई, ‘पीपल के फेरे लगाने से कहीं रिश्ते बनते हैं.’

‘सच ही तो है, शादियां यदि पीपल के फेरे लगाने से तय होतीं तो सारी विवाहयोग्य लड़कियां पीपल के इर्दगिर्द ही घूमती नजर आतीं,’ सुशांत ने भी हां में हां मिलाई.

‘चलो, माना कि नहीं होती पर हमें यह सब करने में हर्ज ही क्या है?’

‘हर्ज है शुभा, इस से लड़कियों का मनोबल गिरता है. उन का आत्मसम्मान आहत होता है. बारबार लड़के वालों द्वारा नकारे जाने पर उन में हीनभावना घर कर जाती है. तुम ये सब समझना क्यों नहीं चाहतीं. मानसी को पहले अपनी पढ़ाई पूरी कर लेने दो. उसे जो बनना है वह बन जाने दो. फिर शादी भी हो जाएगी,’ सुशांत ने मुझे समझाने की कोशिश की.

‘तब तक सारे अच्छे रिश्ते हाथ से निकल जाएंगे, फिर सुनते रहना रिश्तेदारों और पड़ोसियों के ताने.’

‘रिश्तेदारों का क्या है, वे तो कुछ न कुछ कहते ही रहेंगे. उन की बातों से डर कर क्या हम बेटी की खुशियों, उस के सपनों का गला घोंट दें.’

‘तुम कहना क्या चाहते हो, मैं क्या इस की दुश्मन हूं. अरे, लड़कियां चाहे कितनी भी पढ़लिख जाएं, उन्हें आखिर पराए घर ही जाना होता है. घरपरिवार और बच्चे संभालने ही होते हैं और इन सब कामों की एक उम्र होती है. उम्र निकलने के बाद यही काम बोझ लगने लगते हैं.’

‘तो हमतुम मिल कर संभाल लेंगे न इन की गृहस्थी.’

‘संभालेंगे तो तब न जब ब्याह होगा इस का. लड़के वाले तो मंगला सुनते ही भाग खड़े होते हैं.’

हमारी बहस अभी और चलती अगर सुशांत ने मानसी की डबडबाई आंखों को देख न लिया होता.

सुशांत ने ही बीच का रास्ता निकाला था. वे कहीं से पीपल का बोनसाई का पौधा ले आए थे, जिस से मेरी बात भी रह जाए और प्रिया को घर से बाहर भी न जाना पड़े.

साल गुजरते जा रहे थे. मानसी की कालेज की पढ़ाई भी पूरी हो गई थी.

घर में एक अदृश्य तनाव अब हर समय पसरा रहता. जिस घर में पहले प्रिया की शरारतों व खिलखिलाहटों की धूप भरी रहती, वहीं अब सर्द खामोशी थी.

सभी अपनाअपना काम करते, लेकिन यंत्रवत. रिश्तों की गर्माहट पता नहीं कहां खो गईर् थी.

हम मांबेटी की बातें जो कभी खत्म ही नहीं होती थीं, अब हां…हूं…तक ही सिमट गई थीं.

जीवन फिर पुराने ढर्रे पर लौटने लगा था कि तभी एक रिश्ता आया. कुलीन ब्राह्मण परिवार का आईएएस लड़का दहेजमुक्त विवाह करना चाहता था. अंधा क्या चाहे, दो आंखें.

हम ने झटपट बात आगे बढ़ाई. और एक दिन उन लोगों ने मानसी को देख कर पसंद भी कर लिया. सबकुछ इतना अचानक हुआ था कि मुझे लगने लगा कि यह सब पुरोहितजी के बताए उपायोें के फलस्वरूप हो रहा है.

हंसीखुशी के बीच हम शादी की तैयारियों में व्यस्त हो गए थे कि पुरोहित दोबारा आए, ‘जयकारा हो बहूरानी.’

‘सबकुछ आप के आशीर्वाद से ही तो हो रहा है पुरोहितजी,’ मैं ने उन्हें प्रणाम करते हुए कहा.

‘इसीलिए विवाह का मुहूर्त निकालते समय आप ने हमें याद भी नहीं किया,’ वे नाराजगी दिखाते हुए बोले.

‘दरअसल, लड़के वालों का इस में विश्वास ही नहीं है, वे नास्तिक हैं. उन लोगों ने तो विवाह की तिथि भी लड़के की छुट्टियों के अनुसार रखी है, न कि कुंडली और मुहूर्त के अनुसार,’ मैं ने अपनी सफाई दी.

‘न हो लड़के वालों को विश्वास, आप को तो है न?’ पंडित ने छूटते ही पूछा.

‘लड़के वालों की नास्तिकता का परिणाम तो आप की बेटी को ही भुगतना पड़ेगा. यह मंगल दोष किसी को नहीं छोड़ता.’

‘यह तो मैं ने सोचा ही नहीं,’ जैसेतैसे मेरे मुंह से निकला. पुरोहितजी की बात से शादी की खुशी जैसे काफूर गई थी.

‘कुछ कीजिए पुरोहितजी, कुछ कीजिए. अब तक तो आप ही मेरी नैया पार लगाते आ रहे हैं,’ मैं गिड़गिड़ाई.

‘वह तो है बहूरानी, लेकिन इस बार रास्ता थोड़ा कठिन है,’ पुरोहित ने पान की गिलौरी मुंह में डालते हुए कहा.

‘बताइए तो महाराज, बिटिया की खुशी के लिए तो मैं कुछ भी करने के लिए तैयार हूं,’ मैं ने डबडबाई आंखों से कहा.

‘हर बेटी को आप जैसी मां मिले,’ कहते हुए उन्होंने हाथ के इशारे से मुझे अपने पास बुलाया, फिर मेरे कान के पास मुंह ले जा कर जो कुछ कहा उसे सुन कर तो मैं सन्न रह गई.

‘यह क्या कह रहे हैं आप? कहीं बकरे या कुत्ते से भी कोई मां अपनी बेटी की शादी कर सकती है.’

‘सोच लीजिए बहूरानी, मंगल दोष निवारण के लिए बस यही एक उपाय है. वैसे भी यह शादी तो प्रतीकात्मक होगी और आप की बेटी के सुखी दांपत्य जीवन के लिए ही होगी.’

‘लेकिन पुरोहितजी, बिटिया के पापा भी तो कुछ दिनों के लिए बाहर गए हैं. उन की सलाह के बिना…’

‘अब लेकिनवेकिन छोडि़ए बहूरानी. ऐसे काम गोपनीय तरीके से ही किए जाते हैं. अच्छा ही है जो यजमान घर पर नहीं हैं.

‘आप कल सुबह 8 बजे फेरों की तैयारी कीजिए. जमाई बाबू (बकरा) को मेरे साथी पुरोहित लेते आएंगे और बिटिया को मेरे घर की महिलाएं संभाल लेंगी.

‘और हां, 50 हजार रुपयों की भी व्यवस्था रखिएगा. ये लोग दूसरों से तो 80 हजार रुपए लेते हैं, पर आप के लिए 50 हजार रुपए पर बात तय की है.’ मैं ने कहते हुए पुरोहितजी चले गए.

अगली सुबह 7 बजे तक पुरोहित अपनी मंडली के साथ पधार चुके थे.

पुरोहिताइन के समझाने पर प्रिया बिना विरोध किए तैयार होने चली गई तो मैं ने राहत की सांस ली और बाकी कार्य निबटाने लगी.

‘मुहूर्त बीता जा रहा है बहूरानी, कन्या को बुलाइए.’ पुरोहितजी की आवाज पर मुझे ध्यान आया कि प्रिया तो अब तक तैयार हो कर आई ही नहीं.

‘प्रिया, प्रिया,’ मैं ने आवाज दी, लेकिन कोई जवाब न पा कर मैं ने उस के कमरे का दरवाजा बजाया, फिर भी कोई जवाब नहीं मिला तो मेरा मन अनजानी आशंका से कांप उठा.

‘सुनिए, कोई है? पुरोहितजी, पंडितजी, अरे, कोई मेरी मदद करो. मानसी, मानसी, दरवाजा खोल बेटा.’ लेकिन मेरी आवाज सुनने वाला वहां कोई नहीं था. मेरे हितैषी होने का दावा करने वाले पुरोहित बजाय मेरी मदद करने के, अपने दलबल के साथ नौदोग्यारह हो गए थे.

हां, आवाज सुन कर पड़ोसी जरूर आ गए थे. किसी तरह उन की मदद से मैं ने कमरे का दरवाजा तोड़ा.

अंदर का भयावह दृश्य किसी की भी कंपा देने के लिए काफी था. मानसी ने अपनी कलाई की नस काट ली थी. उस की रगों से बहता खून पूरे फर्श पर फैल चुका था और वह खुद एक कोने में अचेत पड़ी थी. मेरे ऊलजलूल फैसलों से बचने का वह यह रास्ता निकालेगी, यह मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था.

पड़ोसियों ने ही किसी तरह हमें अस्पताल तक पहुंचाया और सुशांत को खबर की.

ऐसी बातें छिपाने से भी नहीं छिपतीं. अगली ही सुबह मानसी के ससुराल वालों ने यह कह कर रिश्ता तोड़ दिया कि ऐसे रूढि़वादी परिवार से रिश्ता जोड़ना उन के आदर्शों के खिलाफ है.

‘‘यह सब मेरी वजह से हुआ है,’’ सुशांत से कहते हुए मैं फफक पड़ी.

‘‘नहीं शुभा, यह तुम्हारी वजह से नहीं, तुम्हारी धर्मभीरुता और अंधविश्वास की वजह से हुआ.’’

‘‘ये पंडेपुरोहित तो तुम जैसे लोगों की ताक में ही रहते हैं. जरा सा डराया, ग्रहनक्षत्रों का डर दिखाया और तुम फंस गईं जाल में. लेकिन यह समय इन बातों का नहीं. अभी तो बस यही कामना करो कि हमारी बेटी ठीक हो जाए,’’ कहते हुए सुशांत की आंखें भर आईं.

‘बधाई हो, मानसी अब खतरे से बाहर है,’ डा. रोहित ने आईसीयू से बाहर आते हुए कहा.

‘रोहित, विनोद का बेटा है, मानसी के लिए जिस का रिश्ता मैं ने महज विजातीय होने के कारण ठुकरा दिया था, इसी अस्पताल में डाक्टर है और पिछले 48  घंटों से मानसी को बचाने की खूब कोशिश कर रहा है. किसी अप्राप्य को प्राप्त कर लेने की खुशी मुझे उस के चेहरे पर स्पष्ट दिख रही है. ऐसे समय में उस ने मानसी को अपना खून भी दिया है.

‘क्या यह इस बात का प्रमाण नहीं कि रोहित सिर्फ व सिर्फ मेरी बेटी मानसी के लिए ही बना है?

‘मैं भी बुद्धू हूं. मैं ने पहले बहुत गलतियां की हैं. अब और नहीं करूंगी,’ यह सब वह सोच रही थी.

रोहित थोड़ी दूरी पर नर्स को कुछ दवाएं लाने को कह रहा था. उस ने हिम्मत जुटा कर रोहित से आहिस्ता से कहा, ‘‘मानसी ने तो मुझे माफ कर दिया, पर क्या तुम व तुम्हारे परिवार वाले मुझे माफ कर पाएंगे.’’

‘कैसी बातें करती हैं आंटी आप, आप तो मेरी मां जैसी है.’ रोहित ने मेरे जुड़े हुए हाथों को थाम लिया था.

आज उन की भरीपूरी गृहस्थी है. रोहित के परिवार व मेरी बेटी मानसी ने भी मुझे माफ कर दिया है. लेकिन क्या मैं कभी खुद को माफ कर पाऊंगी. शायद कभी नहीं.

इन अंधविश्वासों के चंगुल में फंसने वाली मैं अकेली नहीं हूं. ऐसी घटनाएं हर वर्ग व हर समाज में होती रहती हैं. मैं आत्मग्लानि के दलदल में आकंठ डूब चुकी थी और अपने को बेटी का जीवन बिगाड़ने के लिए कोस रही थी.

Holi 2024 सतरंगी रंग: कैसा था पायल का जीवन- भाग 4

चाची को रोता देख पायल उन्हें चुप कराते हुए बोली, ‘‘चाची प्लीज, ऐसी बातें मत करो. मौत तो जब जिस की लिखी होगी, तभी होगी. किसी के चाहने से कुछ नहीं होता. वह तो हमारे समाज में ऐसा रूढि़वाद है कि हमेशा औरत को ही कुसूरवार सम?ा जाता है, पर यह सब हमें और आप को ही बदलना होगा.’’

चाची पायल की बातें ध्यान से सुने जा रही थीं. पायल ने चाची को हिम्मत बंधाते हुए आगे कहा, ‘‘चाची, आप लोगों के कहे की फिक्र मत करना. आप तो अपने बच्चों के साथ अच्छे से रहो.’’

पायल कुछ दिन गांव में रह कर फिर वापस शहर चली गई थी. जब वह कुछ महीने बाद लौटी तो गांव में फिर से इसी बात को ले कर काफी होहल्ला मचा हुआ था. उस की चाची ने अपनेआप को एक कमरे तक सीमित कर लिया था. यही नहीं, 2 दिन से तो वे न किसी से बात कर रही थीं और न ही अपने कमरे से बाहर निकल रही थीं.

चाची की ऐसी हालत देख पायल की दादी भी काफी परेशान हो गई थीं. जब पायल को इस बात का पता चला तो वह चाची के कमरे की ओर भागी.

पायल ने चाची के कमरे का दरवाजा खटखटाया, पर उस की चाची ने दरवाजा नहीं खोला. इस से घबरा कर पायल रोते हुए चाची से दरवाजा खोलने की गुहार लगाने लगी.

काफी देर बाद चाची कुछ पसीजीं और उन्होंने दरवाजा खोल दिया.

चाची के बाल बिखरे हुए और आंखें सूजी हुई थीं. देखने से ही लग रहा था कि वे कई दिनों से सोई नहीं थीं. उन का शरीर कमजोर पड़ गया था.

पायल को सामने देख चाची भी उस से लिपट कर बिलखबिलख कर रो पड़ीं.

पायल ने चाची के आंसू पोंछते हुए और प्यार जताते हुए पूछा, ‘‘चाची, आप ने यह क्या हाल बना रखा है. इस तरह कैसे काम चलेगा. आप मु?ो बताओ कि क्या बात है? आखिर अब फिर इतना बवाल क्यों हो रहा है? अब ऐसा क्या हो गया है?’’

पायल की बातों के जवाब में चाची अपने आंसू पोंछते हुए बोलीं, ‘‘कुछ नहीं, वही किराएदार को ले कर फिर से…’’ और यह कहतेकहते वे दोबारा फफक पड़ीं.

वे तेजतेज हिचकियां लेते हुए आगे बोलीं, ‘‘मैं ने तो देखा नहीं कि उस ने क्या लिखा था उस चिट्ठी में… लेकिन सुना है कि मेरे बारे में ही कुछ लिखा था और वह चिट्ठी बगल वाली काकी के हाथ लग गई. उन्होंने तो पूरे गांव वालों को ही वह चिट्ठी दिखा दी और मु?ा पर कुलटा होने का ठप्पा भी लगा दिया.

‘‘मैं तो पहले से ही अधमरी थी, अब इन लोगों ने तो मु?ो पूरी तरह से मार डाला. मैं तो पराए मर्द के बारे में कभी सोच भी नहीं सकती.’’

इस पर पायल चाची के मुंह की ओर ताकते हुए बोली, ‘‘चाची, उस चिट्ठी में ऐसा क्या लिखा था उस ने, जो इतना बड़ा बवाल खड़ा कर दिया?’’

चाची ने कुछ गुस्सा होते हुए कहा, ‘‘उस ने लिख दिया कि वह मु?ो पसंद करता है और मु?ा से शादी करना चाहता है…’’ फिर वे बोलीं, ‘‘तुम्हीं बताओ पायल… यह आदमी सचमुच पागल हो गया है.

‘‘उस ने ऐसी चिट्ठी लिखने से पहले यह भी नहीं सोचा कि मेरे बारे में लोग क्या सोचेंगे. इस विधवा का तो जीना हराम कर दिया उस ने. मेरा तो जी करता है कि कहीं जा कर मर ही जाऊं.’’

चाची की बातें सुन कर पायल ने चाची के मुंह पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘ऐसा न कहो… चाची. आप को पता है न, खुदकुशी करना बहुत बड़ा अपराध है.’’

इस पर चाची बोलीं, ‘‘फिर क्या करूं पायल, तू ही बता? अब तू ही मु?ो सम?ा सकती है इस घर में.’’

पायल से बात कर के चाची के मन का बो?ा कुछ हलका हो गया और उन के सिर से तनाव के बादल छंट गए.

इस के बाद तो पायल के दिमाग में चाची द्वारा कही गई बात कि वह मु?ो पसंद करता है और मु?ा से शादी करना चाहता है, बैठ गई थी.

किराएदार द्वारा कही हुई वह बात पायल के दिमाग में काफी दिनों तक कौंधती रही थी. इस के बाद एक दिन पायल अपनी एक सहेली को ले कर सीधे उस किराएदार के घर जा पहुंची.

पायल उस किराएदार से बोली, ‘‘अंकलजी, मु?ो आप से कुछ बात करनी है. वैसे तो मु?ो इस तरह की बात नहीं करनी चाहिए, पर मु?ो लगा कि आप की बात और कोई तो सम?ोगा भी नहीं, इसलिए कुछ पूछने चली आई हूं.’’

पायल की बातों के जवाब में वह किराएदार कुछ घबराते हुए बोला, ‘‘बोलो बेटी, क्या पूछना है मु?ा से?’’

इस पर कुछ गंभीर होते हुए पायल ने कहा, ‘‘क्या यह सच है कि आप मेरी चाची को पसंद करते है? क्या आप उन से शादी करना चाहते हैं?’’

पायल की बातों से किराएदार की आंखों में चमक आ गई. उस ने हकलाते हुए कहा, ‘‘हांहां, बेटी. मेरी अभी

तक शादी नहीं हुई है और मैं तुम्हारी चाची से शादी करना चाहता हूं. उन की बेरंग जिंदगी में मैं नए रंग भर देना चाहता हूं.’’

किराएदार की बातों से पायल की आंखों में उम्मीद की एक किरण जाग गई. उस ने तुरंत अपनी सहेलियों के साथ घर आ कर चाची से बात की. उस ने उन से पूछा, ‘‘चाची, वह किराएदार सचमुच आप से शादी करना चाहता है. अब आप बताओ कि क्या चाहती हो?’’

पायल की बातें सुन कर चाची ने पायल को चुप कराते हुए कहा, ‘‘पायल, ऐसी बातें मत कर… देख… कोई सुन लेगा.’’

इस पर पायल ने चाची को तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘आप किसी बात की फिक्र मत करो, मैं हूं न,’’ और फिर वह चाची के जवाब के इंतजार में उन्हें पकड़ कर ?ाक?ोरने लगी थी.

पायल की बातों से चाची ?ां?ालाते हुए बोलीं, ‘‘पायल, यह तू कैसी बातें कर रही है? बिना बात के तो बतंगड़ बन रहा है, तू ऐसी बातें करेगी तो मेरा जीना भी मुश्किल हो जाएगा.’’

चाची की इस बात पर पायल ने उन्हें सम?ाते हुए कहा, ‘‘अब तो बात का बतंगड़ बन ही गया है तो आप उस किराएदार से शादी कर लो तो सब ठीक हो जाएगा. सब के मुंह बंद हो जाएंगे.’’

इतने में ही पायल की दादी भी वहां आ पहुंचीं. उन्होंने उन की सारी बातें सुन ली थीं. वे आगबबूला होते हुए बोलीं, ‘‘यह क्या कह रही है तू छोरी. तू कौन सी नई रीत निकाल रही है. विधवा की भी कोई शादी होती है.’’

इस पर पायल अपनी दादी से लाड़ में बोली थी, ‘‘क्यों नहीं दादी, जब एक मर्द की दूसरी शादी हो सकती है, तो औरत की क्यों नहीं?’’

पायल की सहेलियां भी उस की हां में हां मिलाने लगीं. अब तक उस के पापा ने भी ये सब बातें सुन ली थीं. उन्हें पायल की बात उचित लग रही थी. कुछ कोशिश के बाद उन्होंने अपनी मां को पायल की चाची की दूसरी शादी के लिए मना लिया. कुछ दिनों बाद चाची की शादी उस किराएदार से हो गई. पायल ने अपनी चाची की बेरंग जिंदगी में सतरंगी रंग भर दिए थे.

Holi 2024 सतरंगी रंग: कैसा था पायल का जीवन- भाग 3

पायल की बातों पर चाची कुछ भावुक होते हुए बोलीं, ‘‘जब मैं बाहर छत पर खड़ी होती हूं तो वह किराएदार मेरा हालचाल पूछने लगता है, मैं भी उस को कुछ जवाब दे देती हूं. पर गांव के ये लोग भी पता नहीं क्यों मेरी हर बात का बतंगड़ बना देते हैं…’’

चाची एक लंबी सांस लेती हुई बोलीं, ‘‘अच्छा… पायल तू ही बता, इस में मेरी क्या गलती है?’’

चाचा को रोता देख पायल उन्हें चुप कराते हुए बोली, ‘‘चाची प्लीज, ऐसी बातें न करो. मौत तो जब जिस की लिखी होगी, तभी होगी. किसी के चाहने से कुछ नहीं होता. वह तो हमारे समाज में ऐसा रूढि़वाद है कि हमेशा औरत को ही कुसूरवार सम झा जाता है. पर यह सब हमें और आप को ही बदलना होगा.’’

चाची पायल की बातें ध्यान से सुने जा रही थीं. पायल ने चाची को ढांढस बंधाते हुए आगे कहा, ‘‘चाची, आप लोगों के कहे की फिक्र मत करना. आप तो अपने बच्चों के साथ अच्छे से रहो.’’

पायल कुछ दिनों गांव में रह कर फिर वापस शहर चली गई थी. जब वह कुछ महीने बाद लौटी तो गांव में फिर से इसी बात को ले कर काफी होहल्ला मचा हुआ था. उस की चाची ने अपनेआप को एक कमरे तक सीमित कर लिया था. यही नहीं 2 दिन से तो वे न किसी से बात कर रही थीं और न ही अपने कमरे से बाहर निकल रही थीं.

चाची को ऐसी हालत देख कर पायल की दादी भी काफी परेशान हो गई थीं. जब पायल को इस बात का पता चला तो वह चाची के कमरे की ओर भागी. उस ने चाची के कमरे का दरवाजा खटखटाया, पर उस की चाची ने दरवाजा नहीं खोला. इस से घबरा कर पायल रोते हुए चाची से दरवाजा खोलने की गुहार लगाने लगी.

काफी देर बाद चाची कुछ पसीजीं और उन्होंने दरवाजा खोल दिया. चाची के बाल बिखरे और आंखें सूजी हुई थीं. देखने से ही लग रहा था कि वे कई दिनों से सोई नहीं थीं. उन का शरीर कमजोर पड़ गया था.

पायल को सामने देख कर चाची भी उस से लिपट कर बिलखबिलख कर रो पड़ीं.

पायल ने चाची के आंसू पोंछते हुए और प्यार जताते हुए पूछा, ‘‘चाची, आप ने यह क्या हाल बना रखा है. इस तरह कैसे काम चलेगा. आप मु झे बताओ क्या बात है? आखिर अब फिर इतना बवाल क्यों हो रहा है? अब ऐसा क्या हो रहा है?’’

पायल की बातों के जवाब में चाची अपने आंसू पोंछते हुए बोलीं, ‘‘कुछ नहीं, वही किराएदार को ले कर फिर से…’’ और यह कहतेकहते वे दोबारा फफक पड़ीं. वे तेजतेज हिचकियां लेते हुए आगे बोलीं, ‘‘मैं ने तो देखा नहीं कि उस ने क्या लिखा था उस चिट्ठी में… लेकिन सुना है कि मेरे बारे में ही कुछ लिखा था और वह चिट्ठी बगल वाली काकी के हाथ लग गई. उन्होंने तो पूरे गांव वालों को ही वह चिट्ठी दिखा दी और मु झ पर कुलटा होने का ठप्पा भी लगा दिया. मैं तो पहले से ही अधमरी थी अब इन लोगों ने तो मु झे पूरी तरह से मार डाला. मैं तो पराए मर्द के बारे में कभी सोच भ्ी नहीं सकती.’’

इस पर पायल चाची के मुंह की ओर ताकते हुए बोली, ‘‘चाची, उस चिट्ठी में ऐसा क्या लिखा था उस ने, जो इतना बड़ा बवाल खड़ा कर दिया.’’

चाची ने कुछ गुस्सा होते हुए कहा, ‘‘उस ने लिख दिया कि वह मु झे पसंद करता है और मु झ से शादी करना चाहता है…’’ फिर वे बोलीं, ‘‘तुम्हीं बताओ पायल… यह आदमी सचमुच पागल हो गया है. उस ने ऐसी चिट्ठी लिखने से पहले यह भी नहीं सोचा कि मेरे बारे में लोग क्या सोचेंगे. इस विधवा का तो जीना हराम कर दिया उस ने. मेरा तो जी करता है कि कहीं जा कर मर ही जाऊं.’’

चाची की बातें सुन कर पायल ने चाची के मुंह पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘ऐसा न कहो… चाची. पता है खुदकुशी करना बहुत बड़ा अपराध है.’’

इस पर चाची फफक कर रोते हुए बोलीं, ‘‘फिर क्या करूं पायल, तू ही बता? तू ही मु झे सम झ सकती है इस घर में.’’

पायल से बात कर के चाची के मन का बो झ कुछ हलका हो गया और उन के सिर से तनाव के बादल छंट गए.

इस के बाद तो पायल के दिमाग में चाची द्वारा कही गई बात कि वह मु झे पसंद करता है और मु झ से शादी करना चाहता है, बैठ गई थी. किराएदार द्वारा कही हुई वह बात पायल के दिमाग में काफी दिनों तक कौंधती रही थी. इसके बाद एक दिन पायल अपनी एक सहेली को ले कर सीधे उस किराएदार के घर जा पहुंची.

पायल उस किराएदार से हिचकिचाते हुए बोली, ‘‘अंकलजी. आप से मु झे कुछ बात करनी है. वैसे तो मु झे इस तरह की बात नहीं करनी चाहिए. पर मु झे लगा कि आप की बात और कोई तो सम झेगा भी नहीं, इसलिए कुछ पूछने चली आई हूं.’’

पायल की बातों के जवाब में किराएदार कुछ घबराते हुए बोला, ‘‘बोलो बेटी, क्या पूछना है तुम्हें मु झ से?’’

इस पर कुछ गंभीर होते हुए पायल ने कहा, ‘‘क्या यह सच है कि आप मेरी चाची को पसंद करते है? क्या आप उन से शादी करना चाहते है?’’

पायल की बातों से किराएदार की आंखों में चमक आ गई, उस ने हकलाते हुए कहा, ‘‘हांहां, बेटी. मेरी अभी तक शादी नहीं हुई है और मैं तुम्हारी चाची से शादी करना चाहता हूं. उन की बेरंग जिंदगी में मैं नए रंग भर देना चाहता हूं.’’

किराएदार की बातों से पायल की आंखों में उम्मीद की एक किरण जाग गई. उस ने तुरंत अपनी सहेलियों के साथ घर आ कर चाची से बात की. उस ने उन से पूछा, ‘‘चाची, वह किराएदार सचमुच आप से शादी करना चाहता है. अब आप बताओ आप क्या चाहती हो?’’

पायल की बातें सुन कर चाची ने पायल को चुप कराते हुए कहा, ‘‘पायल, ऐसी बातें मत कर… देख… कोई सुन लेगा.’’

इस पर पायल ने चाची को तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘आप किसी बात की फिक्र मत करो, मैं हूं न,’’ और फिर वह चाची के जवाब के इंतजार में उन्हें पकड़ कर  झक झोरने लगी थी.

पायल की बातों से चाची  झुं झलाते हुए बोली, ‘‘पायल, यह तू कैसी बातें कर रही है? बिना बात के तो बतंगड़ बन रहा है, तू ऐसी बातें करेगी तो मेरा जीना भी मुश्किल हो जाएगा.’’

चाची की इस बात पर पायल ने उन्हें सम झाते हुए कहा, ‘‘अब तो बात का बतंगड़ बन ही गया तो आप उस किराएदार से शादी कर लो. तो सब ठीक हो जाएगा. सब के मुंह बंद हो जाएंगे.’’

इतने में ही पायल की दादी भी वहां आ पहुंची. उन्होंने उन की सारी बातें सुन ली थीं. वे आगबबूला होते हुए बोलीं, ‘‘यह क्या कह तू छोरी. तू कौन सी नई रीत निकाल रही है. विधवा की भी कोई शादी होती है.’’

इस पर पायल अपनी दादी से लाड़ में बोली थी, ‘‘क्यों नहीं दादी. जब एक मर्द की दूसरी शादी हो सकती है, तो औरत की क्यों नहीं?’’

पायल की सहेलियां भी उस की हां में हां मिलाने लगीं. अब तक उस के पापा ने भी यह सब बातें सुन ली थीं. उन्हें पायल की बात उचित लग रही थी. कुछ कोशिश के बाद उन्होंने अपनी मां को पायल की चाची की दूसरी शादी के लिए मना लिया. कुछ दिनों के बाद चाची की शादी उस किराएदार से हो गई. पायल ने अपनी चाची की बेरंग जिंदगी में सतरंगी रंग भर दिए थे.

अपना अपना नजरिया : शुभी का क्यों था ऐसा बरताव – भाग 3

‘‘तुम्हारे पापा हर सुखदुख में तुम्हारी बूआ के काम आते हैं न. मां की एक आवाज पर भागे चले जाते हैं लेकिन जब उन की पत्नी अस्पताल में पड़ी थी तब कौन आया था उन के काम? क्या दादी या बूआ आई थीं यहां. मुझे किस ने संभाला था? कौन था मेरे पास?”

‘‘रिश्तों के होते हुए भी क्या कभी तुम ने हमारे परिवार को सुखदुख बांटते देखा है? उम्मीद करना मनुष्य की सब से बड़ी कमजोरी है, अजय. वही सुखी है जिस ने कभी किसी से कोई उम्मीद नहीं की. जीवन की लड़ाई हमेशा अकेले ही लड़नी पड़ती है और सुखदुख में काम आता है हमारा चरित्र, हमारा व्यवहार. किसी के बन जाओ या किसी को अपना बना लो.

‘‘मैं 15 दिन अस्पताल में रही… कौन हमारा खानापीना देखता रहा, क्या तुम नहीं जानते? हमारा आसपड़ोस, तुम्हारे पापा के मित्र, मेरी सहेलियां. तुम्हारे दोस्त ने तो मुझे खून भी दिया था. जो लोग हमारे काम आए क्या वे हमारे सगेसंबंधी थे? बोलो?

‘‘भाईबहन के न होने से तुम्हारा दिल छोटा कैसे रह जाएगा? रिश्तों के होते हुए हमारा कौन सा काम हो गया जो तुम्हारा नहीं होगा. किसी की तरफ प्यार भरा ईमानदार हाथ बढ़ा कर देखना अजय, वही तुम्हारा हो जाएगा. प्यार बांटोगे तो प्यार मिलेगा.’’

‘‘मुझे एक भाई चाहिए, मां,’’ रोने लगा अजय.

‘‘जिन के भाई हैं क्या उन का झगड़ा नहीं देखा तुम ने? क्या वे सुखी हैं? हर घर का आज यही झगड़ा है… भाई ही भाई को सहना नहीं चाहता. किस मृगतृष्णा में हो… कल अगर तुम्हारा भाई तुम्हारा साथ छोड़ कर चला जाएगा तो तुम्हें अकेले ही तो जीना होगा…अगर हमारी संपत्ति को ले कर ही तुम्हारा भाई तुम से झगड़ा करेगा तब कहां जाएगी रिश्तेदारी, अपनापन जिस के लिए आज तुम रो रहे हो?

‘‘अजय, तुम्हारी अपनी संतान होगी, अपनी पत्नी, अपना घर. तब तुम अपने बच्चों के लिए करोगे या भाई के लिए? तुम से 20 साल छोटा भाई तुम्हारे लिए संतान के बराबर होगा. दोनों के बीच पिस जाओगे, जिस तरह तुम्हारे पापा पिसते हैं, मां की बिना वजह की दुत्कार भी सहते हैं और बहन के ताने भी सहते हैं…अच्छा पुत्र, अच्छा भाई बनने का पूरा प्रयास करते हैं तुम्हारे पापा फिर भी उन्हें खुश नहीं कर सके. उन का दोष सिर्फ इतना है कि उन्हें अपनी पत्नी, अपने बच्चे से भी प्यार है, जो उन की मांबहन के गले नहीं उतरता.

‘‘कल यही सब तुम्हारे साथ भी होगा. जरूरत से ज्यादा प्यार भी इनसान को संकुचित और स्वार्थी बना देता है. तुम्हारी दादी और बूआ का तुम्हारे पापा के साथ हद से ज्यादा प्यार ही सारी पीड़ा की जड़ है और यह सब आज हर तीसरे घर में होता है, सदा से होता आया है. जिस दिन पराया खून प्यारा लगने लगेगा उसी दिन सारे संताप समाप्त हो पाएंगे.

‘‘शायद तुम्हारी पत्नी का खून मुझे पानी जैसा न लगे…शायद मेरी बहू की पीड़ा पर मेरी भी नसें टूटने लगें… शायद वह मुझे तुम से भी ज्यादा प्यारी लगने लगे. इसी शायद के सहारे तो मैं ने अपनी एक ही संतान रखने का निर्णय लिया था ताकि मेरी ममता इतनी स्वार्थी न हो जाए कि बहू को ही नकार दे. मैं अपनी बेटी के सामने अपनी बहू का अपमान कभी न कर पाऊं इसीलिए तो बेटी को जन्म नहीं दिया…क्या तुम मेरे इस प्रयास को नकार दोगे, अजय?’’

आंखें फाड़ कर अजय मेरा मुंह देखने लगा था. उस के पापा भी पता नहीं कब चले आए थे और चुपचाप मेरी बातें सुन कर मेरा चेहरा देख रहे थे.

‘‘जीवन इसी का नाम है, अजय. वे घर भी हैं जहां बहुएं दिनरात बुजुर्गों का अपमान करती हैं और एक हमारा घर है जहां पहले दिन से मेरी सास मेरा अपमान कर रही हैं, जहां बेटी के तो सभी शगुन मनाए जाते हैं और बहू का मानसम्मान घर की नौकरानी से भी कम. बेटी का साम्राज्य घर के चप्पेचप्पे पर है और बहू 22 साल बाद भी अपनी नहीं हो सकी.’’

आवेश में पता नहीं क्याक्या निकल गया मेरे मुंह से. अजय के पापा चुप थे. अजय भी चुप था. मैं नहीं जानती वह क्या सोच रहा है. उस की सोच कुछ ही शब्दों से बदल गई होगी ऐसी उम्मीद भी नहीं की जा सकती लेकिन यह सत्य मेरी समझ में अवश्य आ गया है कि जीवन को नापने का सब का अपनाअपना फीता होता है. जरूरी नहीं किसी के पैमाने में मेरा सच या मेरा झूठ पूरी तरह फिट बैठ जाए.

मैं ने अपने जीवन को उसी फीते से नापा है जो फीता मेरे अपनों ने मुझे दिया है. मैं यह भी नहीं कह सकती कि अगर मेरी कोई बेटी होती तो मैं बहू को उस के सामने सदा अपमानित ही करती. हो सकता है मैं दोनों रिश्तों में एक उचित तालमेल बिठा लेती. हो सकता है मैं यह सत्य पहले से ही समझ जाती कि मेरा बुढ़ापा इसी पराए खून के साथ कटने वाला है, इसलिए प्यार पाने के लिए मुझे प्यार और सम्मान देना भी पड़ेगा.

हो सकता है मैं एक अच्छी सास बन कर बहू को अपने घर और अपने मन में एक प्यारा सा मीठा सा कोना दे देती. हो सकता है मैं बेटी का स्थान बेटी को देती और बहू का लाड़प्यार बहू को. होने को तो ऐसा बहुत कुछ हो सकता था लेकिन जो वास्तव में हुआ वह यह कि मैं ने अपनी दूसरी संतान कभी नहीं चाही, क्योंकि रिश्तों की भीड़ में रह कर भी अकेला रहना कितना तकलीफदेह है यह मुझ से बेहतर कौन समझ सकता है जिस ने ताउम्र रिश्तों को जिया नहीं सिर्फ ढोया है. खून के रिश्ते सिर्फ दाहसंस्कार करने के काम ही नहीं आते जीतेजी भी जलाते हैं.

तो बुरा क्या है अगर मनुष्य खून के रिश्तों से आजाद अकेला रहे, प्यार करे, प्यार बांटे. किसी को अपना बनाए, किसी का बने. बिना किसी पर कोई अधिकार जमाए सिर्फ दोस्त ही बनाए, ऐसे दोस्त जिन से कभी कोई बंटवारा नहीं होता. जिन से कभी अधिकार का रोना नहीं रोया जाता, जो कभी दिल नहीं जलाते, जिन के प्यार और अपनत्व की चाह में जीवन एक मृगतृष्णा नहीं बन जाता.

‘‘तुम्हारे पापा हर सुखदुख में तुम्हारी बूआ के काम आते हैं न. मां की एक आवाज पर भागे चले जाते हैं लेकिन जब उन की पत्नी अस्पताल में पड़ी थी तब कौन आया था उन के काम?

वो नीली आंखों वाला: वरुण को देखकर क्यों चौंक गई मालिनी

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जिंदगी की उजली भोर- भाग 2

सीमा ने जो कल बताया कि समीर किसी खूबसूरत औरत के साथ खुशीखुशी शौपिंग कर रहा था, मुंबई के बजाय बड़ौदा में था, उस का सारा सुखचैन एक डर में बदल गया कि कहीं समीर उस खूबसूरत औरत के चक्कर में तो नहीं पड़ गया है. उसे यकीन न था कि समीर जैसा चाहने वाला शौहर ऐसा कर सकता है. सीमा ने उसे समझाया था, अभी कुछ न कहे जब तक परदा रहता है, मर्द घबराता है. बात खुलते ही वह शेर बन जाता है.

समीर दूसरे दिन लौट आया. वही प्यार, वही अपनापन. रूना का उतरा हुआ चेहरा देख कर वह परेशान हो गया. रूना ने सिरदर्द का बहाना बना कर टाला. रूना बारीकी से समीर की हरकतें देखती पर कहीं कोई बदलाव नहीं. उसे लगता कि समीर की चाहत उजली चांदनी की तरह पाक है, पर ये अंदेशे? बहरहाल, यों ही 1 माह गुजर गया.

एक दिन रात में पता नहीं किस वजह से रूना की आंख खुल गई. समीर बिस्तर पर न था. बालकनी में आहट महसूस हुई. वह चुपचाप परदे के पीछे खड़ी हो गई. वह मोबाइल पर बातें कर रहा था, इधर रूना के कानों में जैसे पिघला सीसा उतर रहा था, ‘आप परेशान न हों, मैं हर हाल में आप के साथ हूं. आप कतई परेशान न हों, यह मेरी जिम्मेदारी है. आप बेहिचक आगे बढ़ें, एक खूबसूरत भविष्य आप की राह देख रहा है. मैं हर अड़चन दूर करूंगा.’

इस से आगे रूना से सुना नहीं गया. वह लौटी और बिस्तर पर औंधेमुंह जा पड़ी. तकिए में मुंह छिपा कर वह बेआवाज घंटों रोती रही. आखिरी वाक्य ने तो उस का विश्वास ही हिला दिया. समीर ने कहा था, ‘परसों मैं होटल पैरामाउंट में आप से मिलता हूं. वहीं हम आगे की सारी बातें तय कर लेंगे.’

यह जिंदगी का कैसा मोड़ था? हर तरफ अंधेरा और बरबादी. अब क्या होगा? वह लौट कर चाचा के पास भी नहीं जा सकती. न ही इतनी पढ़ीलिखी थी कि वह नौकरी कर लेती और न ही इतनी बहादुर कि अकेले जिंदगी गुजार लेती. उस का हर रास्ता एक अंधी गली की तरह बंद था.

सुबह वह तेज बुखार से तय रही थी. समीर ने परेशान हो कर छुट्टी के लिए औफिस फोन किया.  उसे डाक्टर के पास ले गया. दिनभर उस की खिदमत करता रहा. बुखार कम होने पर समीर ने खिचड़ी बना कर उसे खिलाई. उस की चाहत व फिक्र देख कर रूना खुश हो गई पर रात की बात याद आते ही उस का दिल डूबने लगता.

दूसरे दिन तबीयत ठीक थी. समीर औफिस चला गया. शाम होने से पहले उस ने एक फैसला कर लिया, घुटघुट कर मरने से बेहतर है सच सामने आ जाए, इस पार या उस पार. अगर दुख  को उस की आखिरी हद तक जा कर झेला जाए तो तकलीफ का एहसास कम हो जाता है. डर के साए में जीने से मौत बेहतर है.

उस दिन समीर औफिस से जल्दी आ गया. चाय वगैरह पी कर, फ्रैश हुआ. वह बाहर जाने को निकलने लगा तो रूना तन कर उस के सामने खड़ी हो गई. उस की आंखों में निश्चय की ऐसी चमक थी कि समीर की निगाहें झुक गईं, ‘‘समीर, मैं आप के साथ चलूंगी उन से मिलने,’’ उस के शब्द चट्टान की मजबूती लिए हुए थे, ‘‘मैं कोई बहाना नहीं सुनूंगी,’’ उस ने आगे कहा.

समीर को अंदाजा हो गया, आंधी अब नहीं रोकी जा सकती. शायद, उस के बाद सुकून हो जाए. समीर ने निर्णयात्मक लहजे में कहा, ‘‘चलो.’’

रास्ता खामोशी से कटा. दोनों अपनीअपनी सोचों में गुम थे. होटल पहुंच कर कैबिन में दाखिल हुए. सामने एक खूबसूरत औरत, एक बच्ची को गोद में लिए बैठी थी. रूना के दिल की धड़कनें इतनी बढ़ गईं कि  उसे लगा, दिल सीना फाड़ कर बाहर आ जाएगा, गला बुरी तरह सूख रहा था. रूना को साथ देख कर उस के चेहरे पर घबराहट झलक उठी. समीर ने स्थिर स्वर में कहा, ‘‘रोशनी, इन से मिलो. ये हैं रूना, मेरी बीवी. और रूना, ये हैं रोशनी, मेरी मां.’’

रूना को सारी दुनिया घूमती हुई लगी. रोशनी ने आगे बढ़ कर उस के सिर पर हाथ रखा. रूना शर्म और पछतावे से गली जा रही थी. कौफी आतेआते उस ने अपनेआप को संभाल लिया. बच्ची बड़े मजे से समीर की गोद में बैठी थी. समीर ने अदब से पूछा, ‘‘आप कब जाना

चाहती हैं?’’

‘‘परसों सुबह.’’

‘‘कल शाम मैं और रूना आ कर बच्ची को अपने साथ ले जाएंगे,’’ समीर ने कहा.

वापसी का सफर दोनों ने खामोशी से तय किया. रूना संतुष्ट थी कि उस ने समीर पर कोई गलत इल्जाम नहीं लगाया था. अगर उस ने इस बात का बतंगड़ बनाया होता तो वह अपनी ही नजरों में गिर जाती.

घर पहुंच कर समीर ने उस का हाथ थामा और धीरेधीरे कहना शुरू किया, ‘‘रूना, मैं

बेहद खुश हूं कि तुम ने मुझे गलत नहीं समझा. मैं खुद बड़ी उलझन में था. अपने बड़ों के ऐब खोलना बड़ी हिम्मत का काम है. मैं चाह कर भी तुम्हें बता नहीं सका. करीब 4 साल पहले, पापा ने रोशनी को किसी प्रोग्राम में गाते सुना था. धीरेधीरे उन के रिश्ते गहराने लगे. उस वक्त मैं अहमदाबाद में एमबीए कर रहा था.

‘‘मेरी अम्मी हार्टपेशैंट थीं. अकसर ही बीमार रहतीं. पापा खुद को अकेला महसूस करते. घर का सारा काम हमारा पुराना नौकर बाबू ही करता. ऐसे में पापा की रोशनी से मुलाकात, फिर गहरे रिश्ते बने. रोशनी अकेली थी. रिश्तों और प्यार को तरसी हुई लड़की थी. बात शादी पर जा कर खत्म हुई. अम्मी एकदम से टूट गईं. वैसे पापा ने रोशनी को अलग घर में रखा था. लेकिन दुख को दूरी और दरवाजे कहां रोक पाते हैं.

Holi 2024 सतरंगी रंग: कैसा था पायल का जीवन- भाग 2

वहां मौजूद औरतें उस की चाची के भाग्य को कोसे जा रही थीं कि ये बेचारी कितनी अभागिन है. भरी जवानी में ही विधवा हो गई.

एक औरत चाची को उलाहना देते हुए बोली, ‘‘खा गई अपने पति को… यह चुड़ैल.’’

ये सब बातें सुन कर पायल बौखला गई. उसे इन औरतों पर बहुत गुस्सा आया था. उस ने आगे देखा न पीछे और इन औरतों पर  झुं झलाते हुए बरस पड़ी, ‘‘आप सब को इस तरह की बातें करते शर्म नहीं आती. एक तो मेरी चाची ने अपना पति खो दिया है, ऊपर से आप उन का दर्द बांटने के बजाय उन्हें पता नहीं क्याक्या बोले जा रही हैं.’’

‘‘हां… ठीक ही तो कह रही हैं वे,’’ उन में से एक औरत बोली.

पायल दोबारा उन पर बरसते हुए बोली, ‘‘हांहां, तो बताओ कि क्या मतलब है अपने पति को खा गई? मेरी चाची ने क्या मेरे चाचा का खून किया है, जो आप सब इस तरह की बातें कर रही हो? प्लीज, आप सब यहां से चली जाओ, वरना ठीक नहीं होगा.’’

पायल की इस बात पर एक औरत बोली, ‘‘चलो… चलो… यहां से सब… यह लड़की चार अक्षर क्या पढ़ गई, शहर की मैम बन गई है… अरे भाषण देना भी सीख गई है यह तो.’’

उस औरत की इस बात पर तो पायल का गुस्सा सातवें आसमान पर ही पहुंच गया. वह उन औरतों से बोली, ‘‘जब मेरी मां मरी थीं, तब आप सब ने ही तो कहा था न कि मेरी मां बड़ी सौभाग्यशाली हैं, फिर इस हिसाब से तो आज मेरे चाचा को भी सौभाग्यशाली होना चाहिए न?’’

पायल की इस बात पर उन में से एक औरत बोली, ‘‘अरे, जब औरत की अर्थी पति के कंधों पर जाती है, तो उसे बहुत सौभाग्यशाली माना जाता है, जबकि किसी औरत का पति मर जाता है, तो वह औरत विधवा हो जाती है. यह सब तो सदियों से होता रहा है. हम सब कोई नई बात तो नहीं कह रही हैं.’’

इस पर पायल  झल्लाते हुए बोली, ‘‘पर काकी, जरूरी तो नहीं जो अब तक होता रहा है, वही सही हो और वही आगे भी होता रहे. आज जो मेरी चाची के साथ हुआ है, वह किसी के साथ भी हो सकता है…’’ और फिर वह सभी औरतों की ओर उंगली दिखाते हुए बोल पड़ी, ‘‘…आप के साथ… आप के साथ… और आप के साथ भी…’’ वह बोलती चली गई.

पायल का इतना कहना था कि उन औरतों के मुंह सिल गए और सब की गरदनें नीचे लटक गईं.

बहुत देर से उन सब की बातें सुन रही दादी अचानक चिल्लाते हुए वहां आईं और बोलीं, ‘‘पायल, तू ने यह क्या लगा रखा है. तेरे चाचा को ले जा रहे हैं. आखिरी बार उन के दर्शन कर ले.’’

दादी की बातें सुन कर पायल  झट से अपने चाचा की लाश के पास जा कर बैठ गई और वहां मौजूद अपनी चाची को चुप कराने लगी.

13 दिनों तक रस्मोरिवाज चलते रहे. उन्हीं में से एक रस्म ने पायल को अंदर तक  झक झोर दिया था. उस रस्म के दौरान एक दिन नाइन को बुलाया गया और फिर उस ने चाची का पूरा सोलह शृंगार किया. उस के बाद उन्हें नहलाधुला कर सफेद साड़ी में लपेट दिया गया और इस के बाद ही चाची की जिंदगी बेरंग कर दी गई.

पायल वापस होस्टल चली गई. कुछ महीने बाद जब पायल किसी काम से गांव आई तो उस के कानों में एक अजीब सी बात सुनाई दी. उस की दादी उस की चाची की तरफ इशारा करते हुए उन के बारे में बताते हुए बोलीं, ‘‘इस कलमुंही ने तो हमारी नाक ही कटा दी है.’’इस बात पर पायल कुछ मजाकिया अंदाज में बोली, ‘‘दादी, आप की नाक तो जैसी की तैसी लगी हुई है, पर आखिर हुआ क्या है? चाची से आप की इतनी नाराजगी क्यों है?’’

इस पर दादी गुस्सा होते हुए बोलीं, ‘‘इसी कलमुंही से पूछ ले… पूरा गांव हम पर थूथू कर रहा है.’’

दादी की बातें सुन कर चाची फूटफूट कर रो पड़ीं और अपने कमरे में चली गईं.

चाची के जाते ही पायल खीजते हुए बोली, ‘‘देखा दादी, आप ने चाची को रुला दिया न. आखिर हुआ क्या है… कुछ बताओगी भी या यों ही पहेलियां बु झाती रहोगी.’’

इस पर दादी ने पायल के कान में फुसफुसाते हुए कहा, ‘‘अरे, बगल वाले ठाकुर साहब हैं न. उन के यहां कोई किराएदार आया है. उसी से नैनमटक्का करती रहती है यह कलमुंही आजकल.’’

दादी की बातों पर पायल कुछ  झुं झलाते हुए बोली, ‘‘यह तुम क्या कह रही हो दादी. तुम तो जो भी मन में आया, बोलती रहती हो चाची के बारे में.’’

जवाब में दादी ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘‘तेरी चाची रोज शाम को बाहर जा कर खड़ी हो जाती है. अरे विधवा है… विधवा की तरह रहे. इधरउधर देखने की क्या जरूरत है… किसी से बात करने की भी क्या जरूरत है. घर में दो रोटी चैन से खाए और पड़ी रहे एक कोने में.’’

दादी की बातें सुन कर पायल उन के मुंह की ओर ताकते हुए बोली, ‘‘दादी, यह आप क्या कह रही हो? यह बात आप अपनी बहू के लिए कह रही हो…’’

पायल के मन में अपनी मां के जाने बाद अपने पापा की जिंदगी की यादें घूमने लगीं. मां के जाने के बाद तो पापा की जिंदगी पर कोई फर्क नहीं पड़ा. उन का तो गांव में घूमनाफिरना, किसी से भी बातचीत करना, पहननाओढ़ना सबकुछ पहले जैसा ही रहा. उन की तो तुरंत ही दूसरी शादी भी हो गई. फिर वह मन ही मन बुदबुदाई, ‘अच्छा, वे मर्द जो ठहरे.’

उन यादों से बाहर आतेआते पायल का मन बहुत कसैला हो गया. उस की आंखों के कोरों से ढेर सारा पानी बह निकला. उस ने दादी से कहा, ‘‘दादी, आप को अपनी सोच बदलनी चाहिए. अब बहुत हो गया औरतमर्द में फर्क. चाची भी पापा की ही तरह इनसान हैं. उन्हें भी उतना ही जीने का हक है, जितना पापा को है. आप नहीं सम झती हो कि इस तरह की बातें कर के आप चाची के साथ नाइंसाफी कर रही हैं.’’

इस पर दादी  झुं झलाते हुए बोलीं, ‘‘ओए छोरी, तू पागल हो गई है क्या. औरत मर्द की बराबरी कभी नहीं कर सकती है. ये बड़ीबड़ी बातें किताबों में ही अच्छी लगती हैं.’’

पायल अपनी दादी के गालों को प्यार से पकड़ते हुए बोली, ‘‘दादी, आप चाहो तो सबकुछ बदल सकती हो. चाची को भी अपनी जिंदगी जी लेने दो. मत दो, उन्हें बिना अपराध की कोई सजा.’’

अब तक दादी थोड़ा नरम पड़ गईं. उन्हें पायल की बात कुछकुछ ठीक भी लगने लगी थी.

थोड़ी देर बाद पायल चाची के कमरे में जा कर उन के पास बैठ गई. चाची जमीन पर घुटनों के बीच सिर रख कर उदास बैठी थीं. पायल ने जब उन के कंधे पर हाथ रखा, तो वे चौंक गईं.

पायल ने हमदर्दी का मरहम लगाते हुए चाची से कहा, ‘‘चाची, इस तरह कब तक बैठी रहोगी.’’

फिर चाची का दिल बहलाने के मकसद से उस ने इधरउधर की बातें करनी शुरू कर दीं. इस के बाद पायल बात को आगे बढ़ाते हुए चाची से पूछ बैठी, ‘‘चाची, आखिर कौन किराएदार आया है ठाकुर चाचा के यहां? और गांव के लोग इतनी बातें क्यों बना रहे हैं?’’

फिर कुछ सोचते हुए पायल आगे बोली, ‘‘चाची, आप मु झे गलत मत सम झना, पर आप से इस बारे में जानना मेरी मजबूरी है.’’

अपना अपना नजरिया : शुभी का क्यों था ऐसा बरताव – भाग 2

22 साल पुरानी वह घटना आज फिर आंखों के सामने साकार हो उठी. ‘‘भाभी, यह क्या पागलपन है? आते ही बहू को अपना यह क्या रूप दिखा रही हो. बेटे ने उस की जरा सी चिंता कर के ऐसा कौन सा पाप कर दिया जो बेटा छिन जाने का रोना ले कर बैठ गई हो… घर घर मांएं हैं, घरघर बहनें हैं… तुम क्या अनोखी मांबहन हो जो बहू का घर में पैर रखना ही तुम से सहा नहीं जा रहा. हमारी मां ने भी तो अपना सब से लाड़ला बेटा तुम्हें सौंपा था. क्या उस ने कभी ऐसा सलूक किया था तुम से, जैसा तुम कर रही हो?’ ’’ पति की बूआ ने किसी तरह सब ठीक करने का प्रयास किया था.

तब का उन का वह रूप और आज का उन का यह रूप. उन की जलन त्योंत्यों बढ़ती रही ज्योंज्यों मेरे पति अपने परिवार में रमते रहे.

हम साथ कभी नहीं रहे क्योंकि पति की नौकरी सदा बाहर की रही, लेकिन यह भी सच है, यदि साथ रहना पड़ता तो रह भी न पाते. मेरी सूरत देखते ही उन का चेहरा यों बिगड़ जाता है मानो कोई कड़वी दवा मुंह में घुल गई हो. अकसर मैं सोचती हूं कि क्या मैं इतनी बुरी हूं.

मैं ने ऐसा कभी नहीं चाहा कि मैं एक बुरी बहू बनूं मगर क्या करूं, मेरी बुराई इसी कड़वे सच में है कि मैं अपने पति की पत्नी बन कर ससुराल में चली आई थी. मेरा हर गुण, मेरी सारी अच्छाई उसी पल एक काले आवरण से ढक सी गई जिस पल मैं ने ससुराल की दहलीज पर पैर रखा था. मेरा दोष सिर्फ इतना सा रहा कि अजय के पिता को अजय की दादी मानसिक रूप से कभी अपने से अलग ही नहीं कर पाईं. लाख सफल मान लूं मैं स्वयं को मगर ससुराल में मैं सफल नहीं हो पाई. न अच्छी बहू बन सकी न ही अच्छी भाभी.

‘‘दादी अकेली संतान थीं न अपने घर में…बूआ भी अकेली बहन. यही वजह है कि दादी और बूआ ने अपने खून के अलावा किसी को अपना नहीं माना. जो बेटे में हिस्सा बांटने चली आई वही दुश्मन बन गई. मैं भले ही उन का पोता हूं लेकिन तुम से प्यार करता हूं इसलिए मुझे भी अपना दुश्मन समझ लिया.

‘‘मां, दादी की मानसिकता यह है कि वह अपने प्यार का दायरा बड़ा करना तो दूर उस दायरे में जरा सा रास्ता भी बनाना नहीं चाहतीं कि हम दोनों को उस में प्रवेश मिल सके. वह न हमारी बनती हैं न हमें अपना बनाती हैं. हमतुम भला कब तक बंद दरवाजे पर सिर फोड़ते रहेंगे.

‘‘जाने दो उन्हें, मां… मत सोचो उन के बारे में. अगर हमारे नसीब में उन का प्यार नहीं है तो वह भी कम बदनसीब नहीं हैं न, जिन के नसीब में हम दोनों ही नहीं. जिसे बदला न जा सके उसे स्वीकार लेना ही उचित है. वह वहां खुश हम यहां खुश…’’

सारी कहानी का सार मेरे सामने परोस दिया अजय ने. पहली बार लगा, ससुराल में कोई साथी मिल गया है जो मेरी पीड़ा को जीता भी है और महसूस भी करता है. सब ठीक चल रहा था फिर भी अजय उदास रहता था. मैं कुरेदती तो गरदन हिला देता.

मेरी एक सहेली के पति एक शाम हमारे घर आए तो सहसा मैं ने अपने मन की बात उन से कह दी. उन के बडे़ भाई एक अच्छे मनोवैज्ञानिक हैं.

‘‘भैया, आप अजय को किसी बहाने से उन्हें दिखा देंगे क्या? मैं कहूंगी तो शायद न उसे अच्छा लगेगा न उस के पापा को. हर पल चुपचुप रहता है और उदास भी.’’

उन्होंने आश्वासन दे दिया और जल्दी ही ऐसा संयोग भी बन गया. मेरी उसी सहेली के घर पर कोई पारिवारिक समारोह था. परिवार सहित हम भी आमंत्रित थे. सभी परिवार आपस में खेल खेल रहे थे. कोई ताश, कोई कैरम.  सहेली के जेठ भी वहीं थे, जो बड़ी देर तक अजय से बतियाते रहे थे और ताश भी खेलते रहे थे. उस दिन अजय खुश था. न कहीं उदासी थी न चुप्पी.

दूसरे दिन उन का फोन आया. मेरे पति से उन की खुल कर बात हुई. मेरे पति चुप रह गए.

‘‘क्या बात है, क्या कहा डाक्टर साहब ने?’’

कुछ देर तक मेरे पति मेरा चेहरा बड़े गौर से पढ़ते रहे फिर कुछ सोच कर बोले, ‘‘अजय अकेलेपन से पीडि़त है. उस के यारदोस्त 2-2, 3-3 भाईबहन हैं. उन के भरेपूरे परिवार को देख कर अजय को ऐसा लगता है कि एक वही है जो संसार में अकेला है.’’

क्या कहती मैं? एक ही संतान रखने की जिद भी मेरी ही थी. अब जो हो गया सो हो गया. बीता वक्त लौटाया तो नहीं जा सकता न. शाम को अजय कालिज से आया तो मन हुआ उस से कुछ बात करूं…फिर सोचा, भला क्या बात करूं… माना मांबेटे दोनों काफी हद तक दोस्त बन कर रहते हैं फिर भी भाईबहन की कमी तो है ही. पति अपने काम में व्यस्त रहते हैं और मेरी अपनी सीमाएं हैं, जो नहीं है उसे पूरा कैसे करूं?

अजय की हंसी धीरेधीरे और कम होने लगी थी. मैं ने जोर दे कर कुरेदा तो सहसा बोला, ‘‘मां, क्या मेरा कोई भाईबहन नहीं हो सकता?’’

हैरान रह गई मैं. अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ मुझे. बड़े गौर से मैं ने अपने बेटे की आंखों में देखा और कहा, ‘‘तुम 20 साल के होने वाले हो, अजय. इस उम्र में अगर तुम्हारा कोई भाई आ गया तो लोग क्या कहेंगे, क्या शरम नहीं आएगी तुम्हें?’’

‘‘इस में शरम जैसा क्या है, अधूराअधूरा सा लगता है मुझे अपना जीना. कमी लगती है, घर में कोई बांटने वाला नहीं, कोई मुझ से लेने वाला नहीं… अकेले जी नहीं लगता मेरा.’’

‘‘मैं हूं न बेटा, मुझ से बात करो, मुझ से बांटो अपना सुख, अपना दुख… हम अच्छे दोस्त हैं.’’

‘‘आप तो मुझ से बड़ी हैं… आप तो सदा देती हैं मुझे, कोई ऐसा हो जो मुझ से मांगे, कोई ऐसा जिसे देख कर मुझे भी बड़े होने का एहसास हो… मैं स्वार्थी बन कर जीना नहीं चाहता… मैं अपनी दादी, अपनी बूआ की तरह इतने छोटे दिल का मालिक नहीं बनना चाहता कि रिश्तों को ले कर निपट कंगाल रह जाऊं, मेरा अपना कौन होगा मां. सुखदुख में मेरे काम कौन आएगा?’’

22 साल पुरानी वह घटना आज फिर आंखों के सामने साकार हो उठी. ‘‘ ‘भाभी, यह क्या पागलपन है? आते ही बहू को अपना यह क्या रूप दिखा रही हो.

काला दरिंदा: जब बहादुर लड़की ने किया रेपिस्ट का सामना

वह एक टैक्सी ड्राइवर था. उस का रंग जले तवे की तरह काला था, तभी तो उस के घर वालों ने सोचसमझ कर उस का नाम काला रखा था. उस ने कार के पिछले शीशे पर मोटेमोटे अक्षरों में ‘काला’ लिखवा दिया था.

19 साल की उम्र में वह माहिर ड्राइवर बन गया था. तभी से वह टैक्सी चला रहा था. अब उस की उम्र 35 साल के करीब थी.

थोड़ी देर पहले एक ऐक्सप्रैस ट्रेन प्लेटफार्म पर आ कर रुकी थी. कुछ सवारियां गेट से बाहर निकलीं, तो काला मुस्तैदी से खड़ा हो गया. कुछ सवारियों से उस ने टैक्सी के लिए पूछा भी था लेकिन सवारियों ने मना कर दिया.

कुछ सवारियों को टैक्सी की जरूरत नहीं थी और जिन्हें जरूरत थी, वे अपने परिवार के साथ थे. उन्होंने शक्ल देखते ही काला को मना कर दिया था, क्योंकि शराब के नशे में डूबा काला शक्ल से ही बदमाश लगता था.

काला ने कलाई में बंधी घड़ी की तरफ देखा. रात के 10 बज रहे थे. समता ऐक्सप्रैस ट्रेन के आने का समय हो गया था. शायद उसे कोई सवारी मिल जाए, यह सोच कर काला ने बीड़ी सुलगा ली.

काला का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था. 3 भाइयों में वह अकेला जिंदा बचा था. उस ने कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा था. उस की मां तो उसे स्कूल भेजना चाहती थी, पर उस का बाप उसे स्कूल भेजने के सख्त खिलाफ था.

काला की उम्र जब 10 साल की थी, तभी उस की मां मर गई थी और उस के बाप ने उसे एक लुहार के यहां काम पर लगा दिया था. सारा दिन भट्ठी के आगे बैठ कर वह लोहे का पंखा चलाता था. महीने में उसे मेहनत के जो पैसे मिलते थे, उन पैसों को उस का बाप शराब में उड़ा देता था.

7 साल तक काला ने लुहार की दुकान पर काम किया था. तभी उस के शराबी बाप की मौत हो गई थी. बाप के मरने का उसे जरा भी दुख नहीं हुआ था, क्योंकि अब वह पूरी तरह आजाद हो गया था.

कुछ गलत लड़कों के साथ काला का उठनाबैठना हो गया था. 20 साल का होतेहोते वह पक्का शराबीजुआरी बन चुका था. एक करीबी रिश्तेदार को उस पर दया आ गई थी. उसी ने भागदौड़ कर के उस की शादी करा दी थी. उस की औरत ज्यादा खूबसूरत तो नहीं थी, पर उस से कई गुना अच्छी थी.

काला ने हमेशा से ही अपनी बीवी को इस्तेमाल की चीज समझा था. अब वह 4 बच्चों का बाप बन चुका था. फिर भी बच्चों के लिए एक बाप की क्या जिम्मेदारियां होती हैं, इस का उसे पता नहीं था.

काला जितना शौकीन था, उस से कहीं ज्यादा मेहनती भी था. वह सुबह 7 बजे टैक्सी ले कर घर से निकल जाता था और रात 12 बजे के बाद ही लौटता था.

वह 300 से 500 रुपए तक रोजाना कमा लेता था. इतना कमाने के बाद भी उस के घर की माली हालत ठीक नहीं थी, क्योंकि उसे शराब पीने के अलावा कोठे पर जाने का भी शौक था.

रात 11 बजे समता ऐक्सप्रैस ट्रेन प्लेटफार्म पर आई. ट्रेन पूरे एक घंटा लेट थी. सवारियां जल्दीजल्दी स्टेशन के गेट से बाहर निकल रही थीं. काला सवारियों पर नजरें दौड़ाने लगा. अचानक उस की नजर एक लड़की पर पड़ी तो उस की आंखों में एक अजीब सी चमक उभर आई.

काला तेजी से उस लड़की की तरफ लपका और उस से पूछा, ‘‘मैडम क्या आप को टैक्सी चाहिए?’’

‘‘हां चाहिए,’’ लड़की ने उस की तरफ बिना देखे ही जवाब दिया.

‘‘कहां जाना है आप को?’’

‘‘विजय नगर,’’ लड़की ने बताया.

‘‘चलिए,’’ कह कर काला ने लड़की के हाथ से बैग ले लिया.

कुछ ही दूर टैक्सी स्टैंड पर काला की टैक्सी खड़ी थी.

काला ने डिक्की खोल कर बैग उस में रखा और फिर अपनी सीट पर जा कर बैठ गया. तब तक लड़की पिछली सीट पर बैठ चुकी थी.

उस लड़की की उम्र 22-23 साल के आसपास थी. वह बेहद खूबसूरत थी. पहनावे से वह अमीर और हाई सोसायटी की लग रही थी. वह शायद किसी सोच में गुम थी, तभी तो उस ने काला के ऊपर ध्यान नहीं दिया था, वरना काला का चेहरा और शराब के नशे में डूबी उस की आंखें देख कर वह उस की टैक्सी में कभी न बैठती.

लड़की पिछली सीट पर अधलेटी सी आंखें बंद किए हुए थी. काला सामने लगे शीशे में से उसे बारबार देख रहा था.

रेलवे स्टेशन से विजय नगर का रास्ता महज आधे घंटे का था. काला धीमी रफ्तार से टैक्सी चला रहा था. उस लड़की ने काला के अंदर उथलपुथल मचा रखी थी.

काला का ध्यान टैक्सी चलाने में कम, उस लड़की पर ज्यादा था. वह जितना उस लड़की को देख रहा था, उस पर उतना ही एक नशा सा छा रहा था.

काला एक नंबर का आवारा था. जवान लड़कियों को देख कर उस के खून में गरमी पैदा हो जाती थी.

एक बार स्कूटर पर जा रही एक लड़की को घूरते हुए वह अपने होश खो बैठा था. नतीजतन, उस की टैक्सी एक बस के पिछले हिस्से से जा टकराई थी. इत्तिफाक से वह बच गया था, मगर टैक्सी को काफी नुकसान पहुंचा था. लेकिन इस के बाद भी वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आया था.

काला का दिमाग और ध्यान कार में बैठी लड़की पर ही लगा था. अचानक

5 महीने पहले की एक घटना याद कर उस के अंदर धीरेधीरे वासना का शैतान जागने लगा.

हुआ यों था कि उस रात वह कुछ सवारियों को रेलवे स्टेशन छोड़ने आया था. रात के तकरीबन साढ़े 11 बज रहे थे. शायद कोई सवारी मिल जाए, इस उम्मीद के साथ वह सवारी मिलने का इंतजार करने लगा था.

कुछ ही देर में उसे एक सवारी मिल गई थी. वह एक लड़की थी और उसे अशोक नगर जाना था. उसे टैक्सी की जरूरत थी. उस ने कई टैक्सी वालों से बात की थी. रेलवे स्टेशन से अशोक नगर काफी दूर था, तकरीबन एक घंटे का रास्ता था.

ज्यादातर टैक्सी वालों ने रात को इतनी दूर जाने से मना कर दिया था. कुछ टैक्सी वाले वहां जाने के लिए तैयार हुए भी, मगर उन्होंने किराया बहुत ज्यादा मांगा.

आखिर में लड़की का सौदा काला से पट गया था. वह लड़की कम उम्र की व खूबसूरत थी. सफर में बोरियत से बचने के लिए लड़की टाइमपास करने की नीयत से काला को ‘अंकल’ पुकार कर बातें करने लगी थी.

काला उस के सवालों के जवाब देने के साथसाथ खुद भी उस के बारे में पूछताछ करने लगा था.

उस लड़की का नाम श्वेता था. वह एक अमीर घर की लड़की थी. श्वेता अपने घर से दूर एक शहर में पढ़ती थी. वहां वह होस्टल में रहती थी. कुछ दिनों की छुट्टियों में वह अपने घर चली आई थी. श्वेता ने अपने आने की खबर घर वालों को नहीं दी थी. अगर वह फोन कर देती, तो उसे स्टेशन पर लेने घर से कार आ जाती.

श्वेता ने जानबूझ नहीं बताया था, क्योंकि अगले दिन उस का जन्मदिन था और वह अचानक अपने घर पहुंच कर घर वालों को चौंका देना चाहती थी.

श्वेता अब तक अपने घर पहुंच भी चुकी होती, अगर ट्रेन 2 घंटे लेट नहीं हुई होती. रात का समय था. जाड़े का मौसम होने की वजह से सड़क पर दूरदूर तक सन्नाटा था.

श्वेता से बात करते हुए काला टैक्सी चला जरूर रहा था, मगर उस का मन कहीं और भटक रहा था. उस के साथ गोरी रंग की जवान और हसीन लड़की थी, जिस के जिस्म से भीनीभीनी मदहोश कर देने वाली खुशबू आ रही थी.

काला पर एक अजीब सा नशा हावी होता जा रहा था. काला ने एक बेहद घटिया और भयानक फैसला कर लिया.

उस रात काला ड्राइवर से दरिंदा बन गया था. उस ने टैक्सी एक सुनसान जगह पर रोक दी थी. इस से पहले कि श्वेता कुछ समझ पाती, काला कार के अंदर ही उस पर टूट पड़ा था. श्वेता तो जैसे एकदम से हैरान ही रह गई थी. उसे काला से ऐसी उम्मीद हरगिज नहीं थी.

श्वेता रोते हुए काला से छोड़ देने के लिए गिड़गिड़ाने लगी थी, पर उस के रोनेगिड़गिड़ाने का असर काला पर नहीं हुआ था. फिर श्वेता रोनागिड़गिड़ाना छोड़ काला का विरोध करने लगी थी.

अचानक काला ने सीट के नीचे रखा चाकू निकाल लिया और बोला था, ‘सुन लड़की, अगर ज्यादा फड़फड़ाएगी तो इसी चाकू से तेरी गरदन काट डालूंगा. इस सुनसान जगह पर कोई तुझे बचाने नहीं आएगा. जान प्यारी है तो जैसा मैं कहता हूं वैसा ही कर.’

श्वेता पर इस धमकी का असर फौरन हुआ था. वह मासूम लड़की मौत के डर से बुत सी बन गई थी.

अपनी इच्छा पूरी करने के बाद काला बेहोशी की हालत में श्वेता और उस के सामान को सड़क के किनारे छोड़ कर रफूचक्कर हो गया था.

आज बहुत दिनों बाद काला को सुनहरा मौका मिला था, जिसे वह हाथ से नहीं जाने देना चाहता था. उस लड़की को अपना शिकार बनाने से पहले काला उस के और उस के घरपरिवार के बारे में जानना चाहता था.

काला ने अपनी तरफ से बातचीत की शुरुआत की, पर लड़की ने उस के किसी भी सवाल का जवाब ‘हां’ या ‘न’ से ज्यादा शब्दों में नहीं दिया.

पहले वाली लड़की श्वेता हंसमुख, चंचल और मिलनसार थी, जबकि यह उस के बिलकुल उलट, गंभीर, मगरूर और नकचढ़ी थी.

काफी सोचनेसमझने के बाद काला ने फैसला किया कि लड़की का संबंध चाहे किसी भी घर से हो, वह उस के साथ मनमानी जरूर करेगा, बाद में चाहे जो कुछ भी होता रहे.

सड़क पर सन्नाटा था. काला मन ही मन लड़की की इज्जत से खेलने का तानाबाना बुनने लगा था. विजय नगर से एक किलोमीटर पहले एक दूसरे शहर को सड़क जाती थी. वह सड़क ज्यादातर सुनसान रहती थी. काला ने टैक्सी उसी सड़क पर मोड़ दी थी.

कार में बैठी लड़की को अपने रास्ते का पता था, इसलिए उस ने फौरन काला से गलत रास्ता होने की बात की, पर काला ने उस की बात अनसुनी कर दी.

खतरा महसूस कर के लड़की विरोध करने लगी, तो काला ने एक जगह टैक्सी रोक दी और सीट के नीचे से चाकू निकाल कर दहाड़ा, ‘‘सुन लड़की, अगर जरा सी भी आनाकानी की तो पेट फाड़ दूंगा.’’

काला की भयानक आंखों में वासना के लाललाल डोरे तैर रहे थे. लड़की को धमकी दे कर काला उस पर टूट पड़ा.

अगले दिन जब काला को होश आया तो अपनेआप को अस्पताल में देख कर वह चौंक पड़ा. दर्द से उस का पूरा बदन दुख रहा था. कल रात के सीन उस के जेहन में घूमे तो उस का पूरा जिस्म कांप उठा. वह 2 बार दरिंदा बना था, एक बार उस दिन जिस दिन उस ने मासूम श्वेता की इज्जत लूटी थी और दूसरी बार कल रात.

कल रात वह दरिंदा बना जरूर था, लेकिन कामयाब नहीं हो सका था, क्योंकि कल रात वाली लड़की पहले वाली लड़की की तरह कमजोर नहीं थी. वह लड़की मुक्केबाजी और कराटे में माहिर थी. उस लड़की ने काला को बहुत पीटा था.

लड़की ने एक जोरदार लात काला की दोनों टांगों के बीच मारी थी. इस के बाद उसे कुछ होश नहीं था. वह अस्पताल कैसे पहुंचा? कब पहुंचा और किस ने पहुंचाया? इस का उसे कुछ पता नहीं था.

काला ने डाक्टरों से जब यह खबर सुनी तो मानो उस की जान ही निकल गई. डाक्टरों ने उसे बताया कि उन्होंने उस की जान तो बचा ली, मगर अब वह कभी दरिंदा नहीं बन सकता था, क्योंकि टांगों के बीच चोट लग जाने से वह हमेशा के लिए नामर्द बन चुका था.

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