romantic story in hindi
romantic story in hindi
पहली नजर में वह मुझे कोई खास आकर्षक नहीं लगी थी. एक तरह से इतने दिनों का इंतजार खत्म हुआ था.
2 महीने से हमारे ऊपर वाला फ्लैट खाली पड़ा था. उस में किराए पर रहने के लिए नया परिवार आ रहा है, इस की खबर हमें काफी पहले मिल चुकी थी. उस परिवार में एक लड़की भी है, यह जान कर मुझे बड़ी खुशी हुई थी, पर जब देखा तो उस में कोई विशेष रुचि नहीं जागी थी मेरी.
उन्हें रहते हुए 1 महीना हो गया था, पर मेरी उस से कभी कोई बात नहीं हुई थी, न ही मैं ने कभी ऐसी कोशिश की थी.
एक दिन अप्रत्याशित रूप से उस से बातचीत करने का मौका मिला था. मेरे एक दोस्त की शादी में वे लोग भी आमंत्रित थे. उस ने गुलाबी रंग का सलवारकुरता पहन रखा था. माथे पर साधारण सी बिंदी थी और बाल कंधों पर झूल रहे थे. चेहरे पर कोई खास मेकअप नहीं था. न जाने क्यों उस का नाम जानने की इच्छा हुई तो मैं ने पूछा, ‘‘मैं आप के नीचे वाले फ्लैट में रहता हूं. क्या आप का नाम जान सकता हूं?’’
‘‘अनु. और आप का?’’ उस ने मुसकराते हुए पूछा.
‘‘अंकित,’’ मैं ने धीरे से कहा.
‘‘अंकित? मेरे चाचा के लड़के का भी यही नाम है, मुझे बहुत पसंद है यह नाम,’’ उस ने हंसते हुए कहा.
उस के खुले व्यवहार को देख कर उस से बातें करने की इच्छा हुई, पर तभी उस की सहेलियों का बुलावा आ गया और वह दूसरी ओर चली गई.
पहली मुलाकात के बाद ऐसा नहीं लगा कि मैं उसे पसंद कर सकता हूं.
दूसरे दिन जब मैं दफ्तर जाने के लिए घर से बाहर आया तो देखा कि वह सीढि़यां उतर रही है. वह मुसकराई, ‘‘हैलो.’’
‘‘हैलो,’’ मैं ने भी उस के अभिवादन का संक्षिप्त सा उत्तर दिया. बस, इस से अधिक कोई बात नहीं हुई थी.
इस के बाद बहुत दिनों तक हमारा आमनासामना ही नहीं हुआ. इस बीच मैं ने उस के बारे में सोचा भी नहीं. मैं सुबह 9 बजे ही दफ्तर चला जाता और शाम को 7 बजे तक घर आता था.
एक ही इमारत में रहने के कारण धीरेधीरे मेरे और उस के परिवार वालों का एकदूसरे के यहां आनाजाना शुरू हो गया. खानेपीने की चीजों का आदानप्रदान भी होने लगा, पर मैं ने किसी बहाने से कभी भी उस के घर जाने की कोशिश नहीं की थी.
एक दिन मां को तेज बुखार था. पिताजी दौरे पर गए हुए थे. मेरे दफ्तर में एक जरूरी मीटिंग थी इसलिए छुट्टी लेना असंभव था. मैं परेशान हो गया कि क्या करूं, मां को किस के हवाले छोड़ कर जाऊं? तभी मुझे अनु की मां का ध्यान आया. शायद वे मेरी कुछ मदद कर सकें. यह सोच कर मैं उन के घर पहुंचा.
दरवाजा अनु ने ही खोला. वह शायद कालेज के लिए निकलने ही वाली थी. उस के चेहरे पर खुशी व आश्चर्य के भाव दिखाई दिए, ‘‘आप, आइएआइए. आज सूरज पश्चिम से कैसे निकल आया है? बैठिए न.’’
‘‘नहीं, अभी बैठूंगा नहीं, जल्दी में हूं, चाचीजी कहां हैं?’’
‘‘मां? वे तो दफ्तर चली गईं.’’
‘‘ओह, तो वे नौकरी करती हैं?’’
‘‘हां, आप को कुछ काम था?’’
‘‘असल में मां को तेज बुखार है और मैं छुट्टी ले नहीं सकता क्योंकि आज मेरी बहुत जरूरी मीटिंग है. मैं सोच रहा था कि अगर चाचीजी होतीं तो मैं उन से थोड़ी देर मां के पास बैठने के लिए निवेदन करता, फिर मैं दफ्तर से जल्दी आता. खैर, मैं चलता हूं.’’
अनु कुछ सोच कर बोली, ‘‘ऐसा है तो मैं बैठती हूं चाचीजी के पास, आप दफ्तर चले जाइए.’’
‘‘पर, आप को तो कालेज जाना होगा?’’
‘‘कोई बात नहीं, एक दिन नहीं जाऊंगी तो कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा.’’
‘‘लेकिन…’’
‘‘आप निश्चिंत हो कर जाइए. मैं 2 मिनट में ताला लगा कर आती हूं.’’
मैं आश्वस्त हो कर दफ्तर चला गया. 3 बजे मैं घर आ गया. अनु मां के पास बैठी एक पत्रिका में डूबी हुई थी. मां उस समय सो रही थीं.
‘‘मां कैसी हैं अब?’’ मैं ने धीरे से पूछा.
‘‘ठीक हैं, बुखार नहीं है, उन से पूछ कर मैं ने दवा दे दी थी.’’
‘‘मैं आप का शुक्रिया किन शब्दों में अदा करूं,’’ मैं ने औपचारिकता निभाते हुए कहा.
‘‘अब वे शब्द भी मैं ही आप को बताऊं?’’ वह हंसते हुए बोली, ‘‘देखिए, मुझे कोई फिल्मी संवाद सुनाने की जरूरत नहीं है. कोई बहुत बड़ा काम नहीं किया है मैं ने,’’ कह कर वह खड़ी हो गई.
लेकिन मैं ने उसे जबरदस्ती बैठा दिया, ‘‘नहीं, ऐसे नहीं, चाय पी कर जाइएगा.’’
मैं चाय बनाने रसोई में चला गया. तब तक मां भी जाग गई थीं. हम तीनों ने एकसाथ चाय पी.
उस दिन अनु मुझे बहुत अच्छी लगी थी. अनु के जाने के बाद मैं देर तक उसी के बारे में सोचता रहा.
हमारा आनाजाना अब बढ़ गया था. वह भी कभीकभी आती. मैं भी उस के घर जाने लगा था.
फिर यह कभीकभी का आनाजाना रोज में तबदील होने लगा. जिस दिन वह नहीं मिलती थी, कुछ अधूरा सा लगता था.
धीरेधीरे मेरे मन में अनु के प्रति आकर्षण बढ़ता जा रहा था. क्या मैं वास्तव में उसे चाहने लगा था? इस का निश्चय मैं स्वयं नहीं कर पा रहा था. उस का आना, उसे देखना, उस से बातें करना आदि अच्छा लगता था. पर एक बात जो मेरे मन में शुरू से ही बैठ गई थी कि वह बहुत सुंदर नहीं है, हमेशा मेरा निश्चय डगमगा देती.
अपनी कल्पना में शादी के लिए जैसी लड़की मैं ने सोच रखी थी, वह बहुत ही सुंदर होनी चाहिए थी. लंबा कद, दुबलीपतली, गोरी, तीखे नैननक्श. मेरे खींचे गए काल्पनिक खाके में अनु फिट नहीं बैठती थी. केवल यही बात उस से मुझे कुछ भी कहने से रोक लेती थी.
अनु ने भी कभी कुछ नहीं कहा मुझ से पर उसे भी मेरी मौजूदगी पसंद थी, इस का एहसास मुझे कभीकभी होता था. पर मैं ने कभी आजमाना नहीं चाहा. मैं स्वयं ही इस संबंध में कोई निर्णय नहीं ले पा रहा था और न ही मैं कुछ कह पाया था.
एक दिन अनु पिकनिक से लौट कर मुझे वहां के किस्से सुनाने लगी. बातों ही बातों में उस ने बताया, ‘‘आज हम लोग पिकनिक पर गए थे. वहां एक ज्योतिषी बाबा थे. सब लड़कियां उन्हें हाथ दिखा रही थीं. मैं ने भी अपना हाथ दिखा दिया. वैसे मुझे इन बातों पर कोई विश्वास नहीं है, फिर भी न जाने क्यों दिखा ही दिया. जानते हैं उस ने क्या कहा?’’
‘‘क्या?’’ मैं ने उत्सुकतावश पूछा.
आगे पढ़ें- बचपन से ही दादादादी, मां और…
अनु ज्योतिषी की नकल करते हुए बोली, ‘‘बेटी, तुम्हारे भाग्य में 2 शादियां लिखी हैं. पहली शादी के 2 महीने बाद तुम्हारा पति मर जाएगा लेकिन दूसरी शादी के बाद तुम्हारा जीवन सुखी हो जाएगा.’’
कह कर अनु खिलखिला कर हंस पड़ी लेकिन मैं सन्न रह गया. इस बात को कोई तूल न देते हुए वह आगे भी कई बातें बताती गई, पर मैं कुछ न सुन सका.
बचपन से ही दादादादी, मां और पिताजी को ज्योतिषियों पर विश्वास करते देखा था. हमारे घर सुखेश्वर स्वामी हर महीने आया करते थे. वे ग्रहों व नक्षत्रों की स्थिति देख कर जैसा करने को कहते थे, हम वैसा ही करते. ज्योतिष पर मेरा दृढ़ विश्वास था.
अनु की कही बात इतनी गहराई से मेरे मन में उतर गई कि उस रात मैं सो नहीं सका. करवटें बदलते हुए सोचता रहा कि मैं तो अनु के साथ जीना चाहता हूं, मरना नहीं. फिर क्या उस की दूसरी शादी मुझ से होगी? मगर मैं तो शादी ही नहीं करना चाहता था. फिर कैसा तनाव हो गया था, मेरे मस्तिष्क में.
मैं अगले कई दिनों तक अनु का सामना नहीं कर सका. किसी न किसी बहाने उस से दूर रहने की कोशिश करने लगा. मगर 2-3 दिनों में ही वह सबकुछ समझ गई.
एक शाम मैं अपनी बालकनी में बैठा था कि तभी अनु आई और मेरे पास ही चुपचाप खड़ी हो गई. मैं कुछ नहीं बोल पाया. वह काफी देर तक खड़ी रही. फिर पलट कर वापस जाने लगी तो मैं ने पुकारा, ‘‘अनु.’’
‘‘हूं,’’ वह मेरी ओर मुड़ी. उस की भीगी पलकें देख कर मैं भावविह्वल हो उठा, ‘‘अनु, क्या हुआ? तुम…?’’
‘‘मुझ से ऐसी क्या गलती हो गई जो आप मुझ से नाराज हो गए. ये 3 दिन बरसों के समान भारी थे मुझ पर. यों तो एक पल भी आप के बिना…’’ वाक्य पूरा करने से पहले ही उस की आवाज रुंध गई और वह भाग कर बाहर चली गई.
मैं अवाक् सा कुरसी पर बैठा रह गया. मेरे हाथपैरों में इतनी हिम्मत नहीं रह गई थी कि उठ कर उसे रोकता और उस से कह देता, ‘हां अनु, मैं भी तुम्हारे बिना नहीं रह सकता.’
अनु चली गई थी. उस की बातें सुन कर मैं बेचैन हो उठा. वह वास्तव में मुझे चाहती थी, इस बात का मुझे यकीन नहीं हो रहा था.
मैं खानापीना, सोना सब भूल गया. निर्णय लेने की शक्ति जैसे समाप्त हो चुकी थी. अनु के इजहार के बाद मैं भी उस से मिलने का साहस नहीं कर पा रहा था.
इस के बाद अनु मुझे बहुत दिनों तक दिखाई नहीं दी. एक दिन अचानक पता चला कि उसे कुछ लोग देखने आ रहे हैं. एकाएक मैं बहुत परेशान हो गया. इस बारे में तो मैं ने सोचा ही नहीं था. लड़का खुद भी अनु को देखने आ रहा था. अनु बहुत गंभीर थी. मेरा उस से सामना हुआ, पर वह कुछ नहीं बोली.
दूसरे दिन पता चला कि उन्होंने अनु को पसंद कर लिया है. अब सगाई की तारीख पक्की करने फिर आएंगे.
सुन कर मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी कोई बहुत प्रिय चीज मुझ से छीनी जा रही हो, लेकिन उस वक्त मैं बिलकुल बेजान सा हो गया था, जैसे कुछ सोचने और करने की हिम्मत ही न रह गई हो. सारा दिन अकेले बैठ कर सोचता कि अगर अनु सचमुच मुझे पसंद करती है तो उस ने किसी और से शादी के लिए हां क्यों कर दी. फिर वह इतनी सुंदर भी नहीं जितनी कि मैं चाहता हूं. उस से ज्यादा खूबसूरत लड़की भी मुझे मिल सकती है. फिर अनु ही क्यों? और वह ज्योतिषी वाली बात… 2 शादियां… विधवा…यह सब सोचसोच कर मैं पागल सा हो जाता.
एक हफ्ता यों ही बीत गया. इस बीच अनु जब भी दिखती मैं उस से नजरें चुरा लेता. 7-8 दिन बाद लड़के वाले फिर आए और आगामी माह को सगाई की कोई तारीख पक्की कर के चले गए.
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मैं खोयाखोया सा रहने लगा. सगाई की तारीख पक्की होने के बाद अनु फिर मेरे घर आनेजाने लगी. जब भी आती, मुझ से पहले की तरह बातें करती, पर मैं असामान्य हो चला था. शादी के विषय में न मैं ने उस से कोई बात की थी और न ही बधाई दी थी.
अनु के घर सगाई की तैयारियां शुरू हो गई थीं. सगाई व शादी में
10 दिनों का अंतर था. मैं अपना मानसिक तनाव कम करने के लिए दूसरे शहर अपनी बूआ के घर चला गया था. वहीं पर 20-25 दिनों तक रुका रहा क्योंकि अनु की शादी देख पाना असह्य था मेरे लिए.
जब मैं वापस आया, अनु ससुराल जा चुकी थी. मैं अपना मन काम में लगाने लगा. मगर मेरे दिलोदिमाग पर अनु का खयाल इस कदर हावी था कि उस के अलावा मैं कुछ सोच ही नहीं पाता था.
कुछ दिनों के बाद मेरे घर में भी मेरी शादी की बात छिड़ गई. मां ने कहा, ‘‘अब तेरे लिए लड़की देखनी शुरू कर दी है मैं ने.’’
‘‘नहींनहीं, अभी रुक जाइए. 2-3 महीने…’’ मैं ने मां से कहा.
‘‘क्यों? 27 वर्ष का तो हो गया है. अधेड़ हो कर शादी करेगा क्या? फिर यह 2-3 महीने का क्या चक्कर है? मैं यह सब नहीं जानती. यह देख 3 फोटो हैं. इन में से कोई पसंद हो तो बता दे.’’
मां का मन रखने के लिए मैं ने तीनों फोटो देखी थीं.
‘‘देख, इस के नैननक्श काफी आकर्षक लग रहे हैं. रंग भी गोरा है. कद 5 फुट 4 इंच है.’’
पर मुझे उस में कोई सुंदरता नजर नहीं आ रही थी. फोटो में मुझे अनु ही दिखाई दे रही थी. मैं ने मां से कहा, ‘‘नहीं मां, अभी थोड़ा रुक जाओ.’’
‘‘क्यों? क्या तू ने कोई लड़की पसंद कर रखी है? देर करने का कोई कारण भी तो होना चाहिए?’’
मैं चुप रह गया. क्या जवाब देता, पर मैं सचमुच इंतजार कर रहा था कि कब अनु विधवा हो और कब मैं अपने मन की बात उस से कहूं.
शादी के 2 महीने बाद अनु पहली बार मायके आई तो हमारे घर भी आई. शादी के बाद वह बहुत बदल गई थी. साड़ी में उसे देख कर मन में हूक सी उठी कि अनु तो मेरी थी, मैं ने इसे किसी और की कैसे हो जाने दिया.
‘‘कैसी हो, अनु?’’ मैं ने पूछा था.
‘‘अच्छी हूं.’’
‘‘खुश हो?’’
‘‘हां, बहुत खुश हूं. आप कैसे हैं?’’
‘‘ठीक हूं. तुम्हारे पति का स्वास्थ्य कैसा है?’’ अचानक ही मैं यह अटपटा सा प्रश्न कर बैठा था.
वह आश्चर्य से मेरी ओर देखते
हुए बोली, ‘‘क्यों, क्या हुआ है,
उन्हें?’’
‘‘नहीं, यों ही पूछा था,’’ मैं ने हड़बड़ा कर बात को संभाला, ‘‘वे तुम्हारे साथ नहीं दिखे. इसलिए…’’
‘‘ओह, लेकिन वे तो मेरे साथ ही आए हैं. घर पर आराम कर रहे हैं.’’
‘‘अच्छा.’’
अनु चली गई. उसे खुश देख कर मेरा मन बुझ गया. मुझ से दूर जा कर जब उसे कुछ महसूस नहीं हुआ तो मैं ही क्यों पागलों के समान उस की राह देखता हूं. अनु के खयाल को मैं ने दिमाग से झटक देना चाहा.
आगे पढ़ें- वक्त धीरेधीरे सरकता रहा. देखते ही देखते…
इस बीच मां रोज ही किसी न किसी लड़की का जिक्र मेरे सामने छेड़ देतीं, लेकिन मैं टालता रहता क्योंकि मन में एक आशा बंधी थी कि शायद ज्योतिषी की बात सच हो जाए.
वक्त धीरेधीरे सरकता रहा. देखते ही देखते 4 साल बीत गए. मैं इंतजार करता रहा, पर ज्योतिषी की भविष्यवाणी सत्य सिद्ध नहीं हुई. अनु अपने पति के साथ हंसीखुशी जीवन व्यतीत कर रही थी.
मैं अपना सबकुछ खो चुका था. ये
4 साल मुझ पर एक सदी से भी भारी थे. एकएक पल मैं ने किसी मनचाही खबर के इंतजार में गुजारा था. लेकिन वह समाचार मुझ तक कभी नहीं पहुंचा. मैं बहुत स्थायी हो गया था. स्वार्थ इंसान को इस कदर नीचे गिरा देता है, आज सोचता हूं तो आत्मग्लानि से भर उठता हूं.
मां बहुत बीमार थीं. उस दिन वे मुझ से रोते हुए बोलीं, ‘‘अंकित, तू मुझे चैन से मरने भी देगा या नहीं?’’
एक दिन उन्होंने मुझे शादी के लिए मजबूर कर दिया. मैं मन से अनु का था, यह बात मैं उन्हें कैसे बताता. मां से तो क्या, यह बात मैं किसी से भी नहीं कह पाया था, अनु से भी नहीं. काश, मैं ने उस से इस संबंध में कुछ कह दिया होता.
मैं ने मां की बात मान ली. वक्त का महत्त्व मुझे अच्छी तरह समझ आ चुका था कि जो लोग वक्त के साथ नहीं चलते, वक्त भी उन का साथ छोड़ देता है.
अकसर मैं सोचता कि अनु की शादी तय होने के वक्त मैं कहां था. सड़क के किनारे धूनी रमाए किसी ज्योतिषी ने अनु से यों ही कुछ कह दिया और मैं ने आंखें मूंद कर उस पर विश्वास कर लिया, जबकि अनु ने खुद उस का विश्वास कभी नहीं किया.
न जाने क्यों उस वक्त मैं अपार सुंदरता को पाना चाहता था. आत्मविश्वास की कमी या निर्णय ले पाने की अक्षमता में मैं ने खुद ही वह सुनहरा अवसर खो दिया था. कुछ अनोखा पाने की चाह में जो कुछ सामने था, उसे स्वीकार नहीं कर सका और भटकता रहा. मगर मेरी तलाश कभी खत्म नहीं हुई क्योंकि मन का रिश्ता सुंदरता के सारे आयामों से ऊपर होता है और मन ने जो कुछ कहा मैं ने उसे कभी नहीं सुना. महज एक ज्योतिषी की बात मान कर अपनी जिंदगी की सब से अनमोल चीज खो दी थी.
मां की बात मान कर मैं ने उन्हें लड़की पसंद करने के लिए कहा क्योंकि पसंदनापसंद करने की और दोष निकालने की मेरी उम्र बीत चुकी थी.
पर मां बोलीं, ‘‘नहीं, ऐसे नहीं, तू खुद ही पहले लड़की देख ले. बाद का झंझट मुझे पसंद नहीं.’’
‘‘नहीं मां, मैं वादा करता हूं, ऐसा कभी नहीं होगा,’’ मैं ने धीरे से कहा.
मां ने श्रद्धा को पसंद किया. एक साधारण सा सगाई समारोह हुआ. श्रद्धा को उसी दिन देखा था. एक उड़ती सी दृष्टि डाली थी मैं ने उस पर, पर उस ने मुझे कुछ ऐसे देखा था जैसे बरसों से जानती हो.
एक पल में अनु की तुलना मैं ने श्रद्धा से कर डाली. सगाई की अंगूठी पहनाते वक्त भी मैं अनु के बारे में ही सोच रहा था. श्रद्धा से मेरी कोई बात ही नहीं हो पाई.
फिर हमारी शादी हो गई. शादी में अनु भी अपने पति के साथ आई थी. उसे देख कर जख्म फिर ताजा हो गया. फेरों से पहले तक मन में एक उम्मीद बंधी थी.
मां से वादा किया था. फिर श्रद्धा अब मेरी पत्नी थी. अनु को अब मुझे भूलना ही होगा, यह सोच कर मैं ने श्रद्धा से कहा था, ‘‘आज हमारी शादी की पहली रात है. वादा करो कि हर कदम पर मेरा साथ दोगी. अगर कभी मैं कहीं कमजोर पड़ गया तो सहारा दे कर मुझे संभाल लोगी.’’
‘‘आप जैसा चाहेंगे मैं वैसे ही बन कर रहूंगी. अब तो मेरा जीवन ही आप का है. पर यह कमजोर पड़ने वाली बात आप ने क्यों कही?’’
‘‘ऐसे ही. कभीकभी जीवन में कुछ पल ऐसे आते हैं जब इंसान किसी गलत इच्छा या गलत भावना के वशीभूत हो कर कोई गलत काम कर बैठता है. बस, उस समय तुम मुझे संभाल लेना.’’
अनु के बारे में कुछ बताने की मैं ने आवश्यकता नहीं समझी. मैं नए सिरे से जिंदगी शुरू करना चाहता था.
श्रद्धा मेरे लिए बहुत ही अच्छी पत्नी साबित हुई. उस के आते ही मां के स्वास्थ्य में भी सुधार होने लगा. वह मेरा पूरा खयाल रखती थी. दूसरी ओर, मैं भी अपनी ओर से कोई कमी न रखता.
दीवाली नजदीक आ रही थी. अनु मायके आई हुई थी. उस के घर में पुताई हो रही थी. सारा सामान इधरउधर फैला हुआ था. श्रद्धा और मैं अनु से मिलने उस के घर गए. श्रद्धा काम में अनु की मदद कराने लगी, मैं भी मदद कराने के उद्देश्य से इधरउधर फैली हुई किताबें समेटने लगा. अचानक एक डायरी मेरे हाथों से गिर कर खुल गई.
अनु की लिखावट थी, ‘अंकित को…’ मैं अपना नाम पढ़ कर चौंक गया. मैं ने इधरउधर देखा. अनु की पीठ मेरी ओर थी.
मैं ने झुक कर डायरी उठा ली और पढ़ने लगा.
‘जितना मैं अंकित को चाहती हूं. काश, वह भी मुझे उतना ही चाहता. कल मेरी शादी है. मैं किसी और की हो जाऊंगी. काश, मैं अंकित की हो पाती…’
इस के आगे मैं नहीं पढ़ सका. मेरी आंखें नम हो उठीं. अचानक अनु मेरी ओर मुड़ी. फिर चौंक कर बोली, ‘‘अरे, यह तो मेरी डायरी है, आप ने पढ़ी तो नहीं?’’
‘‘नहीं अनु, मैं ने कुछ भी नहीं पढ़ा. यह लो अपनी डायरी.’’
अनु ने मेरे हाथों से डायरी खींच ली. वह पलट कर अंदर जाने लगी तो मैं ने उसे पुकारा, ‘‘अनु.’’
‘‘जी.’’
‘‘सुनो.’’
‘‘क्या बात है?’’
‘‘कुछ नहीं.’’
फिर न जाने क्यों उस के सिर पर हाथ रख कर बोला, ‘‘सदा सुखी रहो.’’
अनु मेरी ओर देखती रह गई. श्रद्धा भी बाहर आ गई थी. मैं उस से बोला, ‘‘चलो श्रद्धा, घर चलें. मां इंतजार कर रही होंगी.’’
फिर अनु की ओर देखे बिना मैं श्रद्धा को साथ ले कर अपने घर वापस आ गया.
काफी लंबी खामोशी के बाद नीरजा ने धीमे स्वर में उसे अपने मन की चिंता बताई, ‘‘बात तो तुम्हारी ठीक है पर मेरा दिल बहुत दुखेगा उसे होस्टल भेज कर.’’
‘‘मैं तुम्हें उस से मिलाने के लिए जल्दीजल्दी ले जाया करूंगा.’’
‘‘पक्का वादा करते हो?’’
‘‘बिलकुल पक्का.’’
कुछ लमहों की खामोशी के बाद नीरजा ने कहा, ‘‘मम्मी की तबीयत ठीक नहीं रहती, नहीं तो एक रास्ता यह भी था कि हमारी शादी होने के बाद कुछ दिनों के लिए महक को उन के पास छोड़ देते. तब उसे होस्टल भेजने की जरूरत भी नहीं रहती.’’
‘‘नहीं, ऐसा करने से यह समस्या हल नहीं होगी, नीरजा. वह आसपास होगी तो उस का रोनाचिल्लाना तुम से सहन नहीं होगा.
शादी के बाद जो एकांत हमें चाहिए, वह नहीं मिल पाएगा, क्योंकि तुम महक को अपने पास बुला लोगी,’’ रोहित को उस का प्रस्ताव जंचा नहीं.
‘‘मुझे लगता है कि मम्मीपापा भी महक को होस्टल भेजने को राजी नहीं होंगे, रोहित,’’ नीरजा और ज्यादा सुस्त हो गई.
‘‘तुम यह क्या कह रही हो,’’ रोहित कुछ नाराज हो उठा, ‘‘उन्हें तुम्हारी बात माननी पड़ेगी. जब मैं भी उन्हें ऐसा करने के फायदे समझाऊंगा तो वे जरूर राजी
हो जाएंगे.’’
‘‘अगर वे फिर भी नहीं माने तो?’’
‘‘बेकार की बात मत करो, नीरजा. अरे, उन्हें तुम्हारी बात माननी ही पड़ेगी. वे तुम्हें नाराज नहीं कर सकते, क्योंकि अपनी देखभाल के लिए वे तुम पर निर्भर करते हैं न कि तुम उन के ऊपर.’’
‘‘उन की देखभाल से याद आया कि हमारी शादी हो जाने के बाद उन की देखभाल करने वाला कोई नहीं रहेगा. उन्हें डाक्टर के पास दिखा लाने का काम मैं ही करती हूं. घर का सामान और दवाएं वगैरह मैं ही खरीदती हूं. इस समस्या का भी कोई हल ढूंढ़ना पड़ेगा.’’
‘‘नो प्रौब्लम, माई डियर. उन दोनों की देखभाल करने वाली सिर्फ एक काबिल मेड हमें ढूंढ़नी पड़ेगी. उस मेड की पगार हम दिया करेंगे तो तुम्हारे पापा की पैंशन भी उन्हें पूरी मिलती रहेगी. कहो, कैसा लगा मेरा सुझाव?’’
‘‘हम दोनों के हिसाब से तो अच्छा है, पर…’’
‘‘परवर के चक्कर में ज्यादा मत घुसो. सिर्फ औरों की ही नहीं, तुम्हें अपनी खुशियों के बारे में भी सोचना चाहिए, नीरजा,’’ उसे टोकते हुए रोहित ने सलाह दी.
‘‘क्या अपनी खुशियों के बारे में सोचना स्वार्थीपन नहीं कहलाएगा?’’
‘‘बिलकुल भी नहीं, अरे, जब मैं खुश नहीं हूं तो किसी अपने की जिंदगी में मैं क्या खाक खुशियां भर सकूंगा?’’ रोहित ने तैश में आ कर यह सवाल पूछा.
‘‘खुशियों के मामले में क्या इतना ज्यादा कुशल हिसाबीकिताबी बनना ठीक रहता है, रोहित?’’
‘‘यार, तुम तो बेकार में बहस किए जा रही हो,’’ रोहित अचानक चिढ़ उठा.
‘‘लो, मैं चुप हो गई,’’ नीरजा ने अपने होंठों पर उंगली रखी और एकाएक ही तनावमुक्त हो कर मुसकराने लगी.
‘‘मेरी बात सुनोगी और मेरे सुझावों पर चलोगी तो हमेशा खुश ही रहोगी.’’
‘‘अब विदा लें?’’
‘‘मैं सब से मिल तो लूं.’’
‘‘आज रहने दो.’’
‘‘ओ.के. गुडनाइट, डियर.’’
‘‘गुडनाइट.’’
नीरजा से हाथ मिलाने के बाद रोहित अपनी कार की तरफ बढ़ गया.
वह उसे विदा कर घर के अंदर आई तो महक उस की छाती से लिपट कर जोरजोर
से रो पड़ी. नीरजा को उसे चुप कराने में काफी देर लगी.
महक के सो जाने के बाद उस ने अपने मम्मीपापा को अपना निर्णय गंभीर स्वर में बता दिया, ‘‘मैं ने रोहित से शादी न करने का फैसला किया है.’’
‘‘क्यों?’’ उस के मम्मी व पापा दोनों ने एकसाथ पूछा.
‘‘क्योंकि पिछले दिनों जैसे उस ने अपने अच्छे व्यवहार से हम सब का मन जीता था, वह मुझे पाने के लिए किया गया अभिनय भर था. वह अपनी भावनाओं के स्विच को अपने फायदेनुकसान को ध्यान में रख कर खोलने व बंद करने में माहिर है.
‘‘मुझ से शादी हो जाने के बाद वह निश्चित रूप से बदल जाता. तब उसे महक
व आप दोनों बोझ लगने लगते. मैं ने परख लिया है कि हर समस्या को ‘नो प्रौब्लम’
बनाने की कुशलता रोहित के दिमाग को हासिल है. जिस इनसान का दिल उस के दिमाग का पूरी तरह गुलाम हो, मुझे वैसा जीवनसाथी कभी नहीं चाहिए. अब आप दोनों भी उस के साथ मेरी शादी होने के सपने देखना बंद कर देना, प्लीज,’’ अपना यह फैसला सुनाते हुए नीरजा पूरी तरह से तनावमुक्त और शांत नजर आई.
उस ने अपने मम्मीपापा के गले से लग कर प्यार किया. फिर सोफे पर सो रही महक का माथा कई बार प्यार से चूमने के बाद उस ने उसे गोद में उठाया और अपने कमरे की तरफ चल पड़ी.
‘‘किसी दिन तुम्हारी मम्मी को छोड़ कर यहां आएंगे और खूब सारी चीजें खरीदेंगे,’’ रोहित के इस प्रस्ताव का महक ने तालियां बजा कर स्वागत किया था.
शाम को विदा होने के समय सावित्री और उमाकांत ने रोहित को ढेर सारा प्यार और आशीर्वाद दिए.
‘‘रोहित अंकल, आप बहुत अच्छे हो. मेरे साथ खेलने के लिए आप जल्दी से फिर आना,’’ महक से ऐसा निमंत्रण पाने के बाद रोहित ने जब विजयी भाव से नीरजा की तरफ देखा तो वह प्रसन्न अंदाज में मुसकरा उठी.
आगामी 3 रविवारों को लगातार रोहित इन सब से मिलने आया. उस ने बहुत कम समय में सभी के साथ मधुर संबंध बनाने में अच्छी सफलता प्राप्त की.
‘‘महक बेटे, अगर हम सब साथ रहने लगें तो कैसा रहेगा?’’ रोहित ने खेलखेल में महक से यह सवाल सब के सामने पूछा.
‘‘बहुत मजा आएगा, अंकल,’’ महक की आंखों की खुशी देख कर कोई भी यह कह सकता था कि उसे रोहित अंकल का साथ बहुत अच्छा लगने लगा है. उस दिन जब रोहित अपने घर जाने लगा तो नीरजा ने उस की तारीफ की,
‘‘मुझे उम्मीद नहीं थी कि तुम इतनी अच्छी तरह से इन तीनों के साथ घुलमिल जाओगे. महक तो तुम्हारी बहुत बड़ी प्रशंसक बन गई है.’’
‘‘अब तुम्हारे मन की सारी चिंताएं खत्म हो गईं न?’’ रोहित ने उस का हाथ अपने हाथों में ले कर पूछा. ‘‘काफी हद तक.’’
‘‘रहीसही कसर भी मैं जल्दी पूरी कर दूंगा, माई डियर. आज मैं बहुत खुश हूं. तुम्हारे साथ ढेर सारी बातें करने का मन कर रहा है. चलो, कहीं घूमने चलें.’’
‘‘कहां?’’
‘‘महत्त्व तुम्हारे साथ का है, जगह का नहीं. जहां तुम कहोगी, वहीं चलेंगे.’’
‘‘मैं तैयार हो कर आती हूं,’’ बड़े अपनेपन से रोहित का हाथ दबाने के बाद नीरजा अपने कमरे की तरफ चली गई. अपनी मां को बाहर जाने के लिए तैयार होते देख महक साथ चलने के लिए मचल उठी. इस मामले में उस ने न अपने नानानानी की सुनी, न अपनी मां की.
‘‘महक, चलो मैं तुम्हें पहले बाहर घुमा लाता हूं. फिर तो मम्मी को मेरे साथ जाने दोगी न?’’ रोहित ने उसे लालच दिया पर वह नहीं मानी और साथ चलने की अपनी जिद पर अड़ी रही.
‘‘अच्छा, चल. तेरे अंकल ने तुझे जो इतना ज्यादा सिर चढ़ाया हुआ है, तेरा यह जिद्दीपन उसी का नतीजा है,’’ साथ चलने के लिए नीरजा की इजाजत पा कर महक तो खुश हुई पर रोहित का चेहरा यह कह रहा था कि उस का मूड खराब हो गया.
‘‘आई एम सौरी, रोहित. अगली बार मैं पक्का तुम्हारे साथ अकेली घूमने चलूंगी,’’ ऐसा वादा कर नीरजा ने उस का मूड ठीक करने की कोशिश की.
‘‘अगली बार भी महक ऐसे ही झंझट खड़ा करेगी, नीरजा. तुम्हें आज ही उस के साथ सख्ती दिखानी थी,’’ रोहित अभी तक नाखुश नजर आ रहा था.
‘‘सख्ती तो मैं अभी भी दिखा सकती हूं, पर वह रोरो कर सारा घर सिर पर उठा लेगी.’’
‘‘तो क्या हुआ? बच्चे के रोने के डर से उसे अनुशासनहीन नहीं बनने दिया जा सकता है.’’
‘‘ओ.के. मैं ऐसा ही करती हूं,’’ नीरजा का स्वर सख्त हो गया और उस ने महक को पास बुला कर घर बैठने का हुक्म सुना दिया.
नीरजा का अंदाजा ठीक ही निकला. महक ने खूब जोरजोर से रोना शुरू कर दिया.
‘‘तुम मन कड़ा कर के निकल चलो. हम जल्द ही लौट आएंगे, पर एक बार बाहर जाना महक की सही टे्रनिंग के लिए जरूरी है,’’ रोहित की इस सलाह पर चलते हुए नीरजा अपनी बेटी को रोता छोड़ कर घर से बाहर निकल आई.
इस वक्त शाम के 5 बज रहे थे. रोहित ने किसी रेस्तरां में चल कर कौफी पीने का प्रस्ताव रखा पर बुझीबुझी सी नजर आ रही नीरजा ने इनकार कर दिया.
‘‘अभी कुछ खानेपीने का दिल नहीं कर रहा है. चलो, किसी पार्क में कुछ देर बैठते हैं,’’ नीरजा की इच्छा का आदर करते हुए रोहित ने कार एक सुंदर से पार्क के सामने रोक दी.
कुछ देर बाद खामोश और सुस्त नजर आ रही नीरजा ने परेशान लहजे में महक का जिक्र छेड़ा, ‘‘महक मुझ से बहुत ज्यादा अटैच है, रोहित. देखा, आज कितना ज्यादा
रोई है वह साथ आने के लिए. समझ में नहीं आता कि आने वाले समय में यह समस्या कैसे हल होगी?’’
‘‘माई डियर, हर समस्या का समाधान मौजूद है पर इस वक्त तुम महक के बारे में सोचना बंद करो और मुझ से गप्पें मारो,’’
रोहित ने मुसकरा कर अपनी इच्छा बताई तो नीरजा के होंठों पर भी छोटी सी मुसकान उभर आई.
कुछ ही देर में रोहित नीरजा का मूड ठीक करने में सफल हो गया. पार्क में कुछ देर घूमने के बाद वे बाजार आ गए. वहां रोहित ने उसे पसंदीदा सैंट का उपहार दिया. बाद में उन्होंने एक रेस्तरां में कौफी पी. फिर घूमतेटहलते वे बातें करते रहे. उस के साथ बातें करते हुए रोहित का दिल भर ही नहीं रहा था. तब देर होने लगी तो वे वापस चल पड़े और 9 बजे के बाद घर पहुंचे.
‘‘अब देखना, महक तुम से कितना लड़ेगी,’’ घर में घुसने से पहले तनावग्रस्त नजर आ रही नीरजा ने रोहित को आगाह किया तो वह एकदम से गंभीर हो गया.
‘‘तुम ने शाम को मुझ से जो महक वाली समस्या का हल पूछा था, उस के बारे में मेरे पास एक सुझाव है,’’ रोहित ने गेट के पास नीरजा को रोक कर यह बात कही.
‘‘किस समस्या की बात कर रहे हो?’’ नीरजा ने अपना पूरा ध्यान उसी की तरफ लगा दिया.
‘‘महक जो तुम से बहुत ज्यादा अटैच है, मैं उसी के बारे में बात कर रहा हूं.’’
‘‘हां, हां, प्लीज बताओ न कि यह समस्या कैसे हल हो सकती है. आज उसे बुरी तरह रोता देख मैं तो बहुत दुखी हो गई थी.’’
‘‘समस्या का हल तो सीधासादा है पर वह शायद तुम्हें पसंद नहीं आएगा,’’ रोहित ने गंभीर लहजे में जवाब दिया, ‘‘अगर तुम महक को सचमुच स्वावलंबी बनाना चाहती हो तो उसे होस्टल भेज दो.’’
‘‘वह तो अभी सिर्फ 7 साल की ही है, रोहित,’’ नीरजा चौंक पड़ी.
‘‘तो क्या हुआ? उस से छोटे बच्चे भी होस्टल में जा कर रहते हैं, नीरजा. वहां उसके व्यक्तित्व का संतुलित विकास होगा और इधर तुम और मैं भी फ्री हो कर हमारी शादी के साथ होने वाली जिंदगी की नई शुरुआत का भरपूर आनंद ले सकेंगे, आपसी संबंधों को मधुर और मजबूत बना सकेंगे,’’ रोहित ने कोमल लहजे में उसे समझाया.
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लंच टाइम होते ही रोहित नीरजा के कक्ष में उस से मिलने आ पहुंचा. सामने पड़ी कुरसी पर बैठते ही उस ने अपना फैसला नीरजा को सुना दिया, ‘‘शादी की बात करने मैं कल इतवार की सुबह तुम्हारे मम्मीपापा से मिलने आ रहा हूं.’’
‘‘लेकिन…’’
‘‘कोशिश मत करो मेरा मन बदलने की, नीरजा. अगर मैं तुम्हारे भरोसे रहा तो दूल्हा बनने का इंतजार करतेकरते बूढ़ा हो जाऊंगा,’’ रोहित ने उसे अपने फैसले के विरोध में कुछ कहने नहीं दिया.
‘‘रोहित, जरा शांत हो कर मेरी बात सुनो. तुम से शादी करने का फैसला अभी मैं ने ही नहीं किया है. मेरे मम्मीपापा इस मामले में जब किसी तरह की रुकावट नहीं डाल रहे हैं तो फिर तुम उन दोनों से मिल कर क्या करोगे?’’
‘‘हम सब मिल कर तुम्हें समझाएंगे कि अकेले जिंदगी काटना न तुम्हारी बेटी महक के लिए अच्छा है, न तुम्हारे लिए. देखो, तुम मुझे एक बात साफसाफ बताओ, मैं जीवनसाथी के रूप में तुम्हें पसंद हूं या नहीं?’’
‘‘मैं तुम्हें पसंद करती हूं पर मेरे लिए दूसरी शादी करने का फैसला करना इतना आसान और सीधा मामला नहीं है.’’
‘‘तुम्हें ‘हां’ कहने में प्रौब्लम क्या है?’’
‘‘मैं कई बार तो तुम्हें समझा चुकी हूं. मेरे ऊपर एक तो अपने मम्मीपापा की देखभाल करने की जिम्मेदारी है, क्योंकि मैं उन की इकलौती संतान हूं. दूसरी बात यह कि महक की खुशियों के ऊपर… उस के समुचित मानसिक व भावनात्मक विकास पर मेरी शादी से कोई विपरीत प्रभाव पड़े, यह मुझे कभी स्वीकार नहीं होगा.’’
‘‘ये दोनों बातें तो कोई प्रौब्लम हैं ही नहीं, नीरजा. देखो, मैं तुम्हें दिल से चाहता हूं तो जो भी मेरे दिल के करीब है, उस को मैं कैसे कोई दुखतकलीफ उठाते देख सकता हूं. तीनों का दिल जीत लेना मेरे लिए आसान काम है, मैडम.’’
‘‘रियली?’’
‘‘यस,’’ रोहित ने आत्मविश्वास भरे लहजे में जवाब दिया.
‘‘मेरे मन की इन 2 चिंताओं को अगर तुम दूर कर दो तो…’’ नीरजा ने जानबूझ कर अपनी बात अधूरी छोड़ी और उस का हौसला बढ़ाने वाले अंदाज में मुसकराई.
‘‘नो प्रौब्लम, लेकिन जब ये तीनों मुझे तुम्हारे जीवनसाथी के रूप में स्वीकार करने को खुशी से तैयार हो जाएंगे, तब तो ‘हां’ कह दोगी न?’’
‘‘श्योर,’’ नीरजा का जवाब सुन कर रोहित खुश हो गया.
शाम को घर लौट कर नीरजा ने अपने मम्मीपापा को अगले दिन सुबह रोहित के घर आने की खबर दी तो उन दोनों की आंखों में आशा भरी चमक उभर आई.
‘‘यह लड़का सचमुच अच्छा है, नीरजा. उस के हावभाव से साफ जाहिर होता है कि वह तुम्हें और महक को खुश और सुखी रखेगा. अब की बार ‘हां’ कह कर हमारे मन की चिंता दूर कर दे, बेटी,’’ अपनी इच्छा जाहिर करते हुए उस की मां सावित्री की आंखें भर आईं.
‘‘मां, मुझे दोबारा शादी करने से कोई ऐतराज नहीं है, पर सिर्फ शादीशुदा कहलाने भर के लिए मैं किसी के साथ सात फेरे नहीं लूंगी. मैं अपने पैरों पर अच्छी तरह से खड़ी हूं और तुम दोनों व महक की बढि़या देखभाल करने में पूरी तरह से सक्षम हूं. अगर मेरा दिल ‘हां’ बोलेगा तो ही मेरी शादी होगी. किसी तरह के दबाव में आ कर मैं दुलहन नहीं बनूंगी,’’ नीरजा का यह जवाब सुन कर सावित्री आगे कोई दलील नहीं दे पाई थीं.
‘‘बेटी, तुम्हारे दिल में महक के दिवंगत पापा की जगह कोई नहीं ले सकता है, यह मैं समझता हूं. लेकिन यह भी ठीक नहीं है कि तुम बिना जीवनसाथी के बाकी की जिंदगी काटो. विवेक जैसे सीधेसच्चे इनसान बारबार नहीं मिलते. अगर तुम रोहित की तुलना विवेक से नहीं करोगी, तो अच्छा रहेगा. बाकी तुम खुद बहुत समझदार हो,’’ नीरजा के पापा उमाकांतजी गला भर आने के कारण आगे नहीं बोल सके थे.
‘‘पापा, आप टैंशन न लो. रोहित ने अगर यह साबित कर दिया कि वह हम सब की देखभाल की जिम्मेदारियां अच्छी तरह से उठा सकता है तो मैं इस शादी के लिए खुशी से ‘हां’ कह दूंगी,’’ नीरजा के इस जवाब से उस के मातापिता काफी हद तक संतुष्ट नजर आए.
अगले दिन रविवार को रोहित सुबह 10 बजे के करीब उन के यहां आ गया. सावित्री, उमाकांत और महक के ऊपर अच्छा प्रभाव जमाने के लिए वह काफी तैयारी के साथ आया था.
वह फल और मिठाई के अलावा महक के लिए उस की मनपसंद ढेर सारी चौकलेट भी ले कर आया था. नीरजा को उस ने फूलों का सुंदर गुलदस्ता भेंट किया. इस में कोई शक नहीं कि उस के आने से घर का माहौल खुशगवार हो उठा था.
‘‘इस प्यारी सी गुडि़या के लिए मैं एक प्यारी सी गुडि़या भी लाया हूं,’’ ऐसा कहते हुए रोहित ने जब महक को जापानी गुडि़या पकड़ाई तो वह खुशी के मारे उछलने लगी.
‘‘नीरजा को आप दोनों की व महक की बहुत फिक्र रहती है. इस मामले में मैं आप दोनों को विश्वास दिलाता हूं कि नीरजा की हर जिम्मेदारी को पूरा करने में मैं उस का पूरा साथ निभाऊंगा,’’ रोहित की ऐसी बातों को सुन कर सावित्री और उमाकांत के दिल खुशी व राहत से भर उठे.
महक के साथ रोहित ने काफी देर तक कैरमबोर्ड खेला. दोनों खेलते हुए बहुत शोर मचा रहे थे. रोहित ने महक के साथ अच्छी दोस्ती करने में ज्यादा वक्त बिलकुल नहीं लिया.
‘‘मेरे आज के प्रदर्शन के लिए मुझे 10 में से कितने नंबर दोगी?’’ बहुत खुश व संतुष्ट नजर आ रहे रोहित ने अकेले में नीरजा से यह सवाल पूछा था.
‘‘20 नंबर,’’ नीरजा ने हंस कर सवाल का सीधा जवाब देना टाल दिया.
‘‘मुझे तुम्हारे मम्मीपापा के साथ निभाने में कभी कोई प्रौब्लम नहीं आएगी. वे दोनों बहुत सीधेसच्चे इनसान हैं, नीरजा.’’
‘‘मुझे यह बात सुन कर खुशी हुई, रोहित.’’
‘‘और मैं दावे के साथ कह रहा हूं कि महक के साथ मैं अपने संबंध कुछ ही दिनों में इतने अच्छे कर लूंगा कि वह मुझे तुम से ज्यादा पसंद करने लगेगी.’’
‘‘तुम्हारे इस दावे ने मेरी खुशियों को और ज्यादा बढ़ा दिया है.’’
‘‘तो फिर मुहूर्त निकलवाने के लिए पंडित से मिल लूं?’’
‘‘जल्दी का काम शैतान का,’’ नीरजा के इस जवाब पर रोहित जोर से हंसा, लेकिन उस की आंखों में उभरे हलकी मायूसी के भाव नीरजा की नजरों से छिपे नहीं रहे.
सावित्री ने खाने में कई चीजें बड़ी मेहनत से बनाई थीं. रोहित ने भरपेट खाना खाया और दिल खोल कर भोजन की तारीफ भी की.
शाम को वह सब को अपनी कार में बाजार घुमाने ले गया. वहां महक की फरमाइश पूरी करते हुए उस ने सब को आइसक्रीम खिलाई. वहां एक शो केस में लगी सुंदर सी फ्राक खरीद कर वह महक को गिफ्ट करना चाहता था, पर नीरजा ने उसे ऐसा नहीं करने दिया.
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कहते हैं इंसान को जब किसी से प्यार होता है तो जिंदगी बदल जाती है. खयालों का मौसम आबाद हो जाता है और दिल का साम्राज्य कोई लुटेरा लूट कर ले जाता है.
प्यार के सुनहरे धागों से जकड़ा इंसान कुछ भी करने की हालत में नहीं होता सिवाए अपने दिलबर की यादों में गुम रहने के. कुछ ऐसा ही होने लगा था मेरे साथ भी. हालांकि मैं सिर्फ अपने एहसासों के बारे में जानती थी.
इत्सिंग क्या सोचता है इस बारे में मुझे जानकारी नहीं थी. इत्सिंग से परिचय हुए ज्यादा दिन भी तो नहीं हुए थे. 3 माह कोई लंबा वक्त नहीं होता.
मैं कैसे भूल सकती हूं 2009 के उस दिसंबर महीने को जब दिल्ली की ठंड ने मुझे रजाई में दुबके रहने को विवश किया हुआ था. कभी बिस्तर पर, कभी रजाई के अंदर तो कभी बाहर अपने लैपटौप पर चैटिंग और ब्राउजिंग करना मेरा मनपसंद काम था.
हाल ही में मैं ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से चाइनीज लैंग्वेज में ग्रैजुएशन कंप्लीट किया था.
आप सोचेंगे मैं ने चाइनीज भाषा ही क्यों चुनी? दरअसल, यह दुनिया की सब से कठिन भाषा मानी जाती है और इसी वजह से यह पिक्टोग्राफिक भाषा मुझे काफी रोचक लगी. इसलिए मैं ने इसे चुना. मैं कुछ चीनी लोगों से बातचीत कर इस भाषा में महारत हासिल करना चाहती थी ताकि मुझे इस के आधार पर कोई अच्छी नौकरी मिल सके.
मैं ने इंटरनैट पर लोगों से संपर्क साधने का प्रयास किया तो मेरे आगे इत्सिंग का प्रोफाइल खुला. वह बीजिंग की किसी माइन कंपनी में नौकरी करता था और खाली समय में इंटरनैट सर्फिंग किया करता.
मैं ने उस के बारे में पढ़ना शुरू किया तो कई रोचक बातें पता चलीं. वह काफी शर्मीला इंसान था. उसे लौंग ड्राइव पर जाना और पेड़पौधों से बातें करना पसंद था. उस की हौबी पैंटिंग और सर्फिंग थी. वह जिंदगी में कुछ ऐसा करना चाहता था जो दुनिया में हमेशा के लिए रह जाए. यह सब पढ़ कर मुझे उस से बात करने की इच्छा जगी. वैसे भी मुझे चाइनीस लैंग्वेज के अभ्यास के लिए उस की जरूरत थी.
काफी सोचविचार कर मैं ने उस से बातचीत की शुरुआत करते हुए लिखा, “हैलो इत्सिंग.”
हैलो का जवाब हैलो में दे कर वह गायब हो गया. मुझे कुछकुछ अजीब सा लगा लेकिन मैं ने उस का पीछा नहीं छोड़ा और फिर से लिखा,” कैन आई टौक टू यू?”
उस का एक शब्द का जवाब आया, “यस”
“आई लाइक्ड योर प्रोफाइल,” कह कर मैं ने बात आगे बढ़ाई.
“थैंक्स,” कह कर वह फिर खामोश हो गया.
उस ने मुझ से मेरा परिचय भी नहीं पूछा. फिर भी मैं ने उसे अपना नाम बताते हुए लिखा,” माय सैल्फ रिद्धिमा फ्रौम दिल्ली. आई हैव डन माई ग्रैजुएशन इन चाइनीज लैंग्वेज. आई नीड योर हैल्प टू इंप्रूव इट. विल यू प्लीज टीच मी चाइनीज लैंग्वेज?”
इस का जवाब भी इत्सिंग ने बहुत संक्षेप में दिया,” ओके बट व्हाई मी? यू कैन टौक टू ऐनी अदर पीपल आलसो.”
“बिकौज आई लाइक योर थिंकिंग. यू आर वेरी डिफरैंट. प्लीज हैल्प मी.”
“ओके,” कह कर वह खामोश हो गया पर मैं ने हिम्मत नहीं हारी. उस से बातें करना जारी रखा. धीरेधीरे वह भी मुझ से बातें करने लगा. शुरुआत में काफी दिन हम चाइनीज लैंग्वेज में नहीं बल्कि इंग्लिश में ही चैटिंग करते रहे. बाद में उस ने मुझे चाइनीज सिखानी भी शुरू की. पहले हम ईमेल के द्वारा संवाद स्थापित करते थे. पर अब तक व्हाट्सएप आ गया था सो हम व्हाट्सएप पर चैटिंग करने लगे.
व्हाट्सएप पर बातें करतेकरते हम एकदूसरे के बारे में काफी कुछ जाननेसमझने लगे. मुझे इत्सिंग का सीधासाधा स्वभाव और ईमानदार रवैया बहुत पसंद आ रहा था. उस की सोच बिलकुल मेरे जैसी थी. वह भी अन्याय बरदाश्त नहीं कर सकता था. शोशेबाजी से से दूर रहता और महिलाओं का सम्मान करता. उसे भी मेरी तरह फ्लर्टिंग और बटरिंग पसंद नहीं थी.
आज हमें बातें करतेकरते 3-4 महीने से ज्यादा समय गुजर चुका था. इतने कम समय में ही मुझे उस की आदत सी हो गई थी. वह मेरी भाषा नहीं जानता था पर मुझे बहुत अच्छी तरह समझने लगा था. उस की बातों से लगता जैसे वह भी मुझे पसंद करने लगा है. मैं इस बारे में अभी पूरी तरह से आश्वस्त नहीं थी. पर मेरा दिल उसे अपनाने की वकालत कर चुका था. मैं उस के खयालों में खोई रहने लगी थी. मैं समझ नहीं पा रही थी कि उस से अपनी फीलिंग्स शेयर करूं या नहीं.
एक दिन मेरी एक सहेली मुझ से मिलने आई. उस वक्त मैं इत्सिंग के बारे में ही सोच रही थी. सहेली के पूछने पर मैं ने उसे सब कुछ सचसच बता दिया.
वह चौंक पड़ी,”तुझे चाइनीज लड़के से प्यार हो गया? जानती भी है कितनी मुश्किलें आएंगी? इंडियन लड़की और चाइनीज लड़का…. पता है न उन का कल्चर कितना अलग होता है? रहने का तरीका, खानापीना, वेशभूषा सब अलग.”
“तो क्या हुआ? मैं उन का कल्चर स्वीकार कर लूंगी.”
“और तुम्हारे बच्चे? वे क्या कहलाएंगे इंडियन या चाइनीज?”
“वे इंसान कहलाएंगे और हम उन्हें इंडियन कल्चर के साथसाथ चाइनीज कल्चर भी सिखाएंगे.”
मेरा विश्वास देख कर मेरी सहेली भी मुसकरा पड़ी और बोली,” यदि ऐसा है तो एक बार उस से दिल की बात कह कर देख.”
मुझे सहेली की बात उचित लगी. अगले ही दिन मैं ने इत्सिंग को एक मैसेज भेजा जिस का मजमून कुछ इस प्रकार था,”इत्सिंग क्यों न हम एक ऐसा प्यारा सा घर बनाएं जिस में खेलने वाले बच्चे थोड़े इंडियन हों तो थोड़े चाइनीज.”
“यह क्या कह रही हैं आप रिद्धिमा? यह घर कहां होगा इंडिया में या चाइना में?” इत्सिंग ने भोलेपन से पूछा तो मैं हंस पड़ी,”घर कहीं भी हो पर होगा हम दोनों का. बच्चे भी हम दोनों के ही होंगे. हम उन्हें दोनों कल्चर सिखाएंगे. कितना अच्छा लगेगा न इत्सिंग.”
मेरी बात सुन कर वह अचकचा गया था. उसे बात समझ में आ गई थी पर फिर भी क्लियर करना चाहता था.
“मतलब क्या है तुम्हारा? आई मीन क्या सचमुच?”
“हां इत्सिंग, सचमुच मैं तुम से प्यार करने लगी हूं. आई लव यू.”
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