Short Story : मोम की गुड़िया

Short Story : जिंदगी में सबकुछ तयशुदा नहीं होता. कभी कुछ ऐसा भी हो जाता है, जिस की आप ने ख्वाब में भी उम्मीद नहीं की होती है. हालांकि अब मैं उस बुरे ख्वाब से जाग गई हूं. राशिद ने मेरी तकदीर को बदलना चाहा था. मु झे मोम की गुडि़या समझ कर अपने सांचे में ढालना चाहा था.

यों तो राशिद मेरी जिंदगी में दबे पैर चला आया था. वह मेरी बड़ी खाला का बेटा था. पहली बार वह तरहतरह के सांचे में ढली मोमबत्तियां ले कर आया था और एक दिन मु झ से कहा था, ‘‘इनसान को मोम की तरह होना चाहिए. वक्त जब जिस सांचे में ढालना चाहे, इनसान को उसी आकार में ढल जाना चाहिए.’’

राशिद का मोमबत्ती बनाने का बहुत पुराना कारोबार था. हमारे शहर में भी राशिद की बनाई मोमबत्तियों की काफी मांग बढ़ गई थी. अब वह दिल्ली से कुछ नए सांचे ले कर आया, तो हमारे ही घर पर रुका.

राशिद ने मेरे सामने मोम पिघला कर सांचे से मोमबत्तियां बनाईं. तब मु झे भी अपना वजूद मोम की तरह पिघला महसूस हुआ. मैं सोचने लगी, ‘काश, मु झे भी कोई पसंदीदा सांचा मिल जाता, जिस में मैं मनमुताबिक ढल जाती.’

एक दिन तपती दोपहर में राशिद ने मेरे दोनों बाजुओं को अपने हाथों से ऐसे जकड़ लिया मानो मैं मोम हूं और वह जैसे चाहेगा, मुझे सांचे में ढाल देगा.

राशिद बड़ी मासूमियत भरे अंदाज में फुसफुसाया, ‘‘मैं तुम से बेहद मुहब्बत करता हूं.’’

वह मेरे जवाब के इंतजार में था और मैं सोच में पड़ गई. उस ने फिर फुसफुसाना शुरू किया, ‘‘जेबा, तुम्हारे बगैर सुबह सूनी, दोपहर वीरान और शाम उदास नजर आती है.’’

मैं इतना सुनते ही न जाने क्यों बेतहाशा हंसने लगी और हंसतेहंसते मेरी आंखें भर आईं. राशिद हैरान सा मेरी ओर देखने लगा.

मैं ने अपनी बांहें छुड़ा कर राशिद से कहा, ‘‘मर्द की फितरत अजीब होती है. जब तक वह किसी चीज को पा नहीं लेता, उस पर जान छिड़कता है. मगर उसे पा लेने के बाद वह उसे भूल जाता है. मर्द हमेशा उस पहाड़ की चोटी पर चढ़ना चाहता है, जिसे अभी तक किसी ने छुआ न हो, मगर चोटी पर चढ़ने के बाद वह आगे बढ़ जाता है दूसरी अजेय पहाड़ की चोटी को जीतने के लिए.’’

राशिद न तो स्कूली तालीम ज्यादा ले पाया था और न ही जिंदगी की पाठशाला में होनहार था, जबकि मैं जिंदगी की पाठशाला में काफीकुछ सीख चुकी थी.

मर्द के सामने पूरी तरह खुल जाना औरत की बेवकूफी होती है. उसे हमेशा राज का परदा सा बनाए रखना चाहिए. ऐसी औरत मर्द को ज्यादा अपनी तरफ खींचती है. यह बात जिंदगी की पाठशाला में मैं सीख चुकी थी.

2 साल पहले मैं 12वीं जमात पास करने के बाद घर बैठ गई थी. मेरा आगे पढ़ने का मन ही नहीं हुआ. दुनिया बेरौनक सी लगती थी. कहीं किसी काम में मन नहीं लगता था. जी चाहता था कि दुनिया से छिप कर किसी अंधेरी कोठरी में बैठ जाऊं, जहां मु झे कोई देख न पाए.

फिर पता नहीं क्यों मेरे दिल ने एक करवट सी ली. मैं ने एक दिन अम्मी से आगे पढ़ने की बात की. वे खुश हो गईं. औरत ही औरत के दर्द को पहचान पाती है. वे चाहती थीं कि मैं पढ़ने में मन लगाऊं और खुश रहूं. मैं भी अब खुशीखुशी स्कूल से कालेज में पहुंची. बीएससी में जीव विज्ञान मेरा पसंदीदा विषय रहा. इनसान के भीतर देखने की चाह ने इस विषय में मेरी और दिलचस्पी पैदा कर दी थी. अब विषय के साथसाथ और भी बहुतकुछ बदल गया था.

जमात बढ़ने के साथसाथ स्टूडैंट में भी काफीकुछ बढ़ोतरी हो जाती है. दिमाग के जाले साफ हो जाते हैं. पुराने दोस्त काफी पीछे रह जाते हैं. नया माहौल, नए दोस्त हवा में नई खुशबू सी घोल देते हैं.

एक दिन मैं बायोलौजी का प्रैक्टिकल कर के घर पहुंची, तो घर में कुछ ज्यादा ही चहलपहल नजर आई. बड़ी खाला, खालू और राशिद घर पर दिखाई दिए. खाला, खालू को सलाम कर मैं अंदर अपने कमरे में चली गई.

रात का खाना खाने के वक्त मैं ने एक बात नोट की कि राशिद मु झे एक अलग तरह की मुसकान से देख रहा था.

खाना खाने के बाद मौका मिलने पर राशिद मेरे पास आया और बोला, ‘‘जेबा, अब वक्त आ गया है तुम्हें मेरे सांचे में ढलना होगा. तुम्हें तो मालूम है कि मेरे पास कितने सांचे हैं. मैं जब जिस सांचे में चाहूं, मोम पिघला कर नई शक्ल दे देता हूं.’’

मैं राशिद की सोच से काफी आगे बढ़ चुकी थी. उसे जवाब देना मैं ने मुनासिब नहीं सम झा.

सुबह कालेज जाते वक्त अम्मी मेरे पास आईं. कुछ देर तक वे मु झे देखती रहीं, फिर धीरे से बोलीं, ‘‘जेबा, बाजी तेरा रिश्ता मांगने आई हैं. तेरे अब्बा तो खामोश हैं, तू ही कि बता क्या जवाब दूं?’’

मैं ने अम्मी की तरफ देखा. वे अजीब से हालात में थीं. एक तरफ उन की बहन थी, तो वहीं दूसरी तरफ बेटी.

मैं ने अब अपनी जबान खोलना वक्त का तकाजा सम झा. मैं ने कहा, ‘‘अम्मी, अब वक्त काफी आगे बढ़ चुका है और ये लोग पुराने वक्त पर ही ठहरे हुए हैं. आप खुद बताइए कि क्या राशिद मेरे लायक है? वैसे भी मु झे आगे पढ़ना है, काफी आगे जाना है. मेरे अपने सपने हैं, जो मु झे पूरे करने हैं.

‘‘मैं पिंजरे में बंद मजबूर बेसहारा पक्षी की तरह नहीं हूं, जिस का कोई भी मोलभाव कर ले. मैं खुले आसमान में उड़ने वाला वह पक्षी हूं, जो अपनी मंजिल खुद तय करता है.’’

मेरे इनकार के बाद मुझ पर मेरे ही घर में राशिद ने तेजाब का एक भरा हुआ मग फेंका था. वह तो मैं समय पर पलट गई थी और सारा तेजाब मेरी पीठ और हाथ पर ही गिर सका था.

घर में कुहराम मच गया था. अब्बा घर पर नहीं थे. अम्मी ही फौरन मुझे अस्पताल ले गई थीं. एक महीने के इलाज के बाद मैं बेहतर हो सकी थी. मैं अपने विचारों में, इरादों में पहले से भी ज्यादा मजबूत हो गई थी.

राशिद को तो उस के किए की सजा मिली ही, मगर मैं ने भी अपनी जीने की इच्छा को जिंदा रखा और आज एक कामयाब टीचर के तौर पर अपने पैरों पर खड़ी हूं.

Family Story : महक वापस लौटी

Family Story : सुमि को रोज 1-2 किलोमीटर पैदल चलना बेहद पसंद था. वह आज भी बस न ले कर दफ्तर के बाद अपने ही अंदाज में मजेमजे से चहलकदमी करते हुए, तो कभी जरा सा तेज चलती हुई दफ्तर से लौट रही थी कि सामने से मनोज को देख कर एकदम चौंक पड़ी.

सुमि सकपका कर पूछना चाहती थी, ‘अरे, तुम यहां इस कसबे में कब वापस आए?’

पर यह सब सुमि के मन में ही कहीं रह गया. उस से पहले मनोज ने जोश में आ कर उस का हाथ पकड़ा और फिर तुरंत खुद ही छोड़ भी दिया.

मनोज की छुअन पा कर सुमि के बदन में जैसे कोई जादू सा छा गया हो. सुमि को लगा कि उस के दिल में जरा सी झन झनाहट हुई है, कोई गुदगुदी मची है.

ऐसा लगा जैसे सुमि बिना कुछ बोले ही मनोज से कह उठी, ‘और मनु, कैसे हो? बोलो मनु, कितने सालों के बाद मिले हो…’

मनोज भी जैसे सुमि के मन की बात को साफसाफ पढ़ रहा था. वह आंखों से बोला था, ‘हां सुमि, मेरी जान. बस अब जहां था, जैसा था, वहां से लौट आया, अब तुम्हारे पास ही रहूंगा.’

अब सुमि भी मन ही मन मंदमंद मुसकराने लगी. दिल ने दिल से हालचाल पूछ लिए थे. आज तो यह गुफ्तगू भी बस कमाल की हो रही थी.

पर एक सच और भी था कि मनोज को देखने की खुशी सुमि के अंगअंग में छलक रही थी. उस के गाल तक लाल हो गए थे.

मनोज में कोई कमाल का आकर्षण था. उस के पास जो भी होता उस के चुंबकीय असर में मंत्रमुग्ध हो जाता था.

सुमि को मनोज की यह आदत कालेज के जमाने से पता थी. हर कोई उस का दीवाना हुआ करता था. वह कुछ भी कहां भूली थी.

अब सुमि भी मनोज के साथ कदम से कदम मिला कर चलने लगी. दोनों चुपचाप चल रहे थे.

बस सौ कदम चले होंगे कि एक ढाबे जैसी जगह पर मनोज रुका, तो सुमि भी ठहर गई. दोनों बैंच पर आराम से बैठ गए और मनोज ने ‘2 कौफी लाना’ ऐसा कह कर सुमि से बातचीत शुरू कर दी.

‘‘सुमि, अब मैं तुम से अलग नहीं रहना चाहता. तुम तो जानती ही हो, मेरे बौस की बरखा बेटी कैसे मुझे फंसा कर ले गई थी. मैं गरीब था और उस के जाल में ऐसा फंसा कि अब 3 साल बाद यह मान लो कि वह जाल काट कर आ गया हूं.’

यह सुन कर तो सुमि मन ही मन हंस पड़ी थी कि मनोज और किसी जाल में फंसने वाला. वह उस की नसनस से वाकिफ थी.

इसी मनोज ने कैसे अपने एक अजीज दोस्त को उस की झगड़ालू पत्नी से छुटकारा दिलाया था, वह पूरी दास्तान जानती थी. तब कितना प्रपंच किया था इस भोले से मनोज ने.

दोस्त की पत्नी बरखा बहुत खूबसूरत थी. उसे अपने मायके की दौलत और पिता के रुतबे पर ऐश करना पसंद था. वह हर समय पति को मायके के ठाठबाट और महान पिता की बातें बढ़ाचढ़ा कर सुनाया करती थी.

मनोज का दोस्त 5 साल तक यह सहन करता रहा था, पर बरखा के इस जहर से उस के कान पक गए थे. फिर एक दिन उस ने रोरो कर मनोज को आपबीती सुनाई कि वह अपने ही घर में हर रोज ताने सुनता है. बरखा को बातबात पर पिता का ओहदा, उन की दौलत, उन के कारनामों में ही सारा बह्मांड नजर आता है.
तब मनोज ने उस को एक तरकीब बताई थी और कहा था, ‘यार, तू इस जिंदगी को ऐश कर के जीना सीख. पत्नी अगर रोज तु झे रोने पर मजबूर कर रही है, तो यह ले मेरा आइडिया…’

फिर मनोज के दोस्त ने वही किया. बरखा को मनोज के बताए हुए एक शिक्षा संस्थान में नौकरी करने का सु झाव दिया और पत्नी को उकसाया कि वह अपनी कमाई उड़ा कर जी सकती है. उस को यह प्रस्ताव भी दिया कि वह घर पर नौकर रख ले और बस आराम करे.

दोस्त की मनमौजी पत्नी बरखा यही चाहती थी. वह मगन हो कर घर की चारदीवारी से बाहर क्या निकली कि उस मस्ती में डूब ही गई.

वह दुष्ट अपने पति को ताने देना ही भूल गई. अब मनोज की साजिश एक महीने में ही काम कर गई. उस संस्थान का डायरैक्टर एक नंबर का चालू था. बरखा जैसी को उस ने आसानी से फुसला लिया. बस 4 महीने लगे और मनोज की करामात काम कर गई.

दोस्त ने अपनी पत्नी को उस के बौस के साथ पकड़ लिया और उस के पिता को वीडियो बना कर भेज दिया.

कहां तो दोस्त को पत्नी से 3 साल अपने अमीर पिता के किस्सों के ताने सुनने पड़े और कहां अब वह बदनामी नहीं करने के नाम पर उन से लाखों रुपए महीना ले रहा था.

ऐसा था यह धमाली मनोज. सुमि मन ही मन यह अतीत याद कर के अपने होंठ काटने लगी. उस समय वह मनोज के साथ ही नौकरी कर रही थी. हर घटना उस को पता थी.

ऐसा महातिकड़मी मनोज किसी की चतुराई का शिकार बनेगा, सुमि मान नहीं पा रही थी.

मगर मनोज कहता रहा, ‘‘सुमि, पता है मुंबई मे ऐश की जिंदगी के नाम पर बौस ने नई कंपनी में मु झे रखा जरूर, मगर वे बापबेटी तो मु झे नौकर सम झने लगे.’’

सुमि ने तो खुद ही उस बौस की यहां कसबे की नौकरी को तिलांजलि दे दी थी. वह यों भी कुछ सुनना नहीं चाहती थी, मगर मजबूर हो कर सुनती रही. मनोज बोलता रहा, ‘‘सुमि, जानती हो मु झ से शादी तो कर ली, पद भी दिया, मगर मेरा हाथ हमेशा खाली ही रहता था. पर्स बेचारा शरमाता रहता था. खाना पकाने, बरतन मांजने वाले नौकरों के पास भी मु झ से ज्यादा रुपया होता था.

‘‘मुझे न तो कोई हक मिला, न कोई इज्जत. मेरे नाम पर करोड़ों रुपया जमा कर दिया, एक कंपनी खोल दी, पर मैं ठनठन गोपाल.

‘‘फिर तो एक दिन इन की दुश्मन कंपनी को इन के राज बता कर एक करोड़ रुपया इनाम में लिया और यहां आ गया.’’

‘‘पर, वे तुम को खोज ही लेंगे,’’ सुमि ने चिंता जाहिर की.

यह सुन कर मनोज हंसने लगा, ‘‘सुमि, दोनों बापबेटी लंदन भाग गए हैं. उन का धंधा खत्म हो गया है. अरबों रुपए का कर्ज है उन पर. अब तो वे मु झ को नहीं पुलिस उन को खोज रही है. शायद तुम ने अखबार नहीं पढ़ा.’’

मनोज ने ऐसा कहा, तो सुमि हक्कीबक्की रह गई. उस के बाद तो मनोज ने उस को उन बापबेटी के जोरजुल्म की ऐसीऐसी कहानियां सुनाईं कि सुमि को मनोज पर दया आ गई.

घर लौटने के बाद सुमि को उस रात नींद ही नहीं आई. बारबार मनोज ही खयालों में आ जाता. वह बेचैन हो जाती.

आजकल अपने भैयाभाभी के साथ रहने वाली सुमि यों भी मस्तमौला जिंदगी ही जी रही थी. कालेज के जमाने से मनोज उस का सब से प्यारा दोस्त था, जो सौम्य और संकोची सुमि के शांत मन में शरारत के कंकड़ गिरा कर उस को खुश कर देता था.

कालेज पूरा कर के दोनों ने साथसाथ नौकरी भी शुरू कर दी. अब तो सुमि के मातापिता और भाईभाभी सब यही मानने लगे थे कि दोनों जीवनसाथी बनने का फैसला ले चुके हैं.

मगर, एक दिन मनोज अपने उसी बौस के साथ मुंबई चला गया. सुमि को अंदेशा तो हो गया था, पर कहीं उस का मन कहता जरूर कि मनोज लौट आएगा. शायद उसी के लिए आया होगा.

अब सुमि खुश थी, वरना तो उस को यही लगने लगा था कि उस की जिंदगी जंगल में खिल रहे चमेली के फूल जैसी हो गई है, जो कब खिला, कैसा खिला, उस की खुशबू कहां गई, कोई नहीं जान पाएगा.

अगले दिन सुमि को अचानक बरखा दिख गई. वह उस की तरफ गई.

‘‘अरे बरखा… तुम यहां? पहचाना कि नहीं?’’

‘‘कैसी हो? पूरे 7 साल हो गए.’’ कहां बिजी रहती हो.

‘‘तुम बताओ सुमि, तुम भी तो नहीं मिलतीं,’’ बरखा ने सवाल का जवाब सवाल से दिया.

दोनों में बहुत सारी बातें हुईं. बरखा ने बताया कि मनोज आजकल मुंबई से यहां वापस लौट आया है और उस की सहेली की बहन से शादी करने वाला है.

‘‘क्या…? किस से…?’’ यह सुन कर सुमि की आवाज कांप गई. उस को लगा कि पैरों तले जमीन खिसक गई.

‘‘अरे, वह थी न रीमा… उस की बहन… याद आया?’’

‘‘मगर, मनोज तो…’’ कहतेकहते सुमि रुक गई.

‘‘हां सुमि, वह मनोज से तकरीबन 12 साल छोटी है. पर तुम जानती हो न मनोज का जादुई अंदाज. जो भी उस से मिला, उसी का हो गया.

‘‘मेरे स्कूल के मालिक, जो आज पूरा स्कूल मु झ पर ही छोड़ कर विदेश जा बसे हैं, वे तक मनोज के खास दोस्त हैं.’’

‘‘अच्छा?’’

‘‘हांहां… सुमि पता है, मैं अपने मालिक को पसंद करने लगी थी, मगर मनोज ने ही मु झे बचाया. हां, एक बार मेरी वीडियो क्लिप भी बना दी.

‘‘मनोज ने चुप रहने के लाखों रुपए लिए, लेकिन आज मैं बहुत ही खुश हूं. पति ने दूसरी शादी रचा ली है. मैं अब आजाद हूं.’’

‘‘अच्छा…’’ सुमि न जाने कैसे यह सब सुन पा रही थी. वह तो मनोज की शादी की बात पर हैरान थी. यह मनोज फिर उस के साथ कौन सा खेल खेल रहा था.

सुमि रीमा का घर जानती थी. पास में ही था. उस के पैर रुके नहीं. चलती गई. रीमा का घर आ गया.

वहां जा कर देखा, तो रीमा की मां मिलीं. बताया कि मनोज और खुशी तो कहीं घूमने चले गए हैं.

यह सुन कर सुमि को सदमा लगा. खैर, उस को पता तो लगाना ही था कि मनोज आखिर कर क्या रहा है.

सुमि ने बरखा से दोबारा मिल कर पूरी कहानी सुना दी. बरखा यह सुन कर खुद भौंचक सी रह गई.

सुमि की यह मजबूरी उस को करुणा से भर गई थी. वह अभी इस समय तो बिलकुल सम झ नहीं पा रही थी कि कैसे होगा.

खैर, उस ने फिर भी सुमि से यह वादा किया कि वह 1-2 दिन में जरूर कोई ठोस सुबूत ला कर देगी.

बरखा ने 2 दिन बाद ही एक मोबाइल संदेश भेजा, जिस में दोनों की बातचीत चल रही थी. यह आडियो था. आवाज साफसाफ सम झ में आ रही थी.

मनोज अपनी प्रेमिका से कह रहा था कि उस को पागल करार देंगे. उस के घर पर रहेंगे.

सुमि यह सुन कर कांपने लगी. फिर भी सुमि दम साध कर सुन रही थी. वह छबीली लड़की कह रही थी कि ‘मगर, उस को पागल कैसे साबित करोगे?’

‘अरे, बहुत आसान है. डाक्टर का सर्टिफिकेट ले कर?’

‘और डाक्टर आप को यह सर्टिफिकेट क्यों देंगे?’

‘अरे, बिलकुल देंगे.’ फिक्र मत करो.

‘महिला और वह भी 33 साल की, सोचो है, न आसान उस को उल्लू बनाना, बातबात पर चिड़चिड़ापन पैदा करना कोई मुहिम तो है नहीं, बस जरा माहौल बनाना पड़ेगा.

‘बारबार डाक्टर को दिखाना पड़ेगा. कुछ ऐसा करूंगा कि 2-4 पड़ोसियों के सामने शोर मचा देगी या बरतन तोड़ेगी पागलपन के लक्षण यही तो होते हैं. मेरे लिए बहुत आसान है. वह बेचारी पागलखाने मत भेजो कह कर रोज गिड़गिड़ा कर दासी बनी रहेगी और यहां तुम आराम से रहना.’

‘मगर ऐसा धोखा आखिर क्यों? उस को कोई नुकसान पहुंचाए बगैर, इस प्रपंच के बगैर भी हम एक हो सकते हैं न.’

‘हांहां बिलकुल, मगर कमाई के साधन तो चाहिए न मेरी जान. उस के नाम पर मकान और दुकान है. यह मान लो कि 2-3 करोड़ का इंतजाम है.

‘सुमि ने खुद ही बताया है कि शादी करते ही यह सब और कुछ गहने उस के नाम पर हो जाएंगे. अब सोचो, यह इतनी आसानी से आज के जमाने में कहां मिल पाता है.

‘यह देखो, उस की 4 दिन पहले की तसवीर, कितनी भद्दी. अब सुमि तो बूढ़ी हो रही है. उस को सहारा चाहिए. मातापिता चल बसे हैं. भाईभाभी की अपनी गृहस्थी है.

‘मैं ही तो हूं उस की दौलत का सच्चा रखवाला और उस का भरोसेमंद हमदर्द. मैं नहीं करूंगा तो वह कहीं और जाएगी, किसी न किसी को खोजेगी.

‘मैं तो उस को तब से जानता हूं, जब वह 17 साल की थी. सोचो, किसी और को पति बना लेगी तो मैं ही कौन सा खराब हूं.’

रिकौर्डिंग पूरी हो गई थी. सुमि को बहुत दुख हुआ, पर वह इतनी भी कमजोर नहीं थी कि फूटफूट कर रोने लगती.

सुमि का मन हुआ कि वह मनोज का गला दबा दे, उस को पत्थर मार कर घायल कर दे. लेकिन कुछ पल बाद ही सुमि ने सोचा कि वह तो पहले से ही ऐसा था. अच्छा हुआ पहले ही पता लग गया.

कुछ देर में ही सुमि सामान्य हो गई. वह जानती थी कि उस को आगे क्या करना है. मनोज का नाम मिटा कर अपना हौसला समेट कर के एक स्वाभिमानी जिद का भरपूर मजा उठाना है.

Love Story : वो भूली दास्तां लो फिर याद आ गई

Love Story : कभी कभी जिंदगी में कुछ घटनाएं ऐसी भी घटती हैं, जो अपनेआप में अजीब होती हैं. ऐसा ही वाकिआ एक बार मेरे साथ घटा था, जब मैं दिल्ली से हैदराबाद जा रहा था. उस दिन बारिश हो रही थी, जिस की वजह से मुझे एयरपोर्ट पहुंचने में 10 मिनट की देरी हो गई थी और काउंटर बंद हो चुका था. आज पूरे 2 साल बाद जब मैं दिल्ली एयरपोर्ट पर उतरा और बारिश को उसी दिन की तरह मदमस्त बरसते देखा, तो अचानक से वह भूला हुआ किस्सा न जाने कैसे मेरे जेहन में ताजा हो गया.

मैं खुद हैरान था, क्योंकि पिछले 2 सालों में शायद ही मैं ने इस किस्से को कभी याद किया होगा.

एक बड़ी कंपनी में ऊंचे पद पर होने के चलते काम की जिम्मेदारियां इतनी ज्यादा हैं कि कब सुबह से शाम और शाम से रात हो जाती है, इस का हिसाब रखने की फुरसत नहीं मिलती. यहां तक कि मैं इनसान हूं रोबोट नहीं, यह भी खुद को याद दिलाना पड़ता है.

लेकिन आज हवाईजहाज से उतरते ही उस दिन की एकएक बात आंखों के सामने ऐसे आ गई, जैसे किसी ने मेरी जिंदगी को पीछे कर उस दिन के उसी वक्त पर आ कर रोक दिया हो. चैकआउट करने के बाद भी मैं एयरपोर्ट से बाहर नहीं निकला या यों कहें कि मैं जा ही नहीं पाया और वहीं उसी जगह पर जा कर बैठ गया, जहां 2 साल पहले बैठा था.

मेरी नजरें भीड़ में उसे ही तलाशने लगीं, यह जानते हुए भी कि यह सिर्फ मेरा पागलपन है. मेन गेट की तरफ देखतेदेखते मैं हर एक बात फिर से याद करने लगा.

टिकट काउंटर बंद होने की वजह से उस दिन मेरे टिकट को 6 घंटे बाद वाली फ्लाइट में ट्रांसफर कर दिया गया था. मेरा उसी दिन हैदराबाद पहुंचना बहुत जरूरी था. कोई और औप्शन मौजूद न होने की वजह से मैं वहीं इंतजार करने लगा.

बारिश इतनी तेज थी कि कहीं बाहर भी नहीं जा सकता था. बोर्डिंग पास था नहीं, तो अंदर जाने की भी इजाजत नहीं थी और बाहर ज्यादा कुछ था नहीं देखने को, तो मैं अपने आईपैड पर किताब पढ़ने लगा.

अभी 5 मिनट ही बीते होंगे कि एक लड़की मेन गेट से भागती हुई आई और सीधा टिकट काउंटर पर आ कर रुकी. उस की सांसें बहुत जोरों से चल रही थीं. उसे देख कर लग रहा था कि वह बहुत दूर से भागती हुई आ रही है, शायद बारिश से बचने के लिए. लेकिन अगर ऐसा ही था तो भी उस की कोशिश कहीं से भी कामयाब होती नजर नहीं आ रही थी. वह सिर से पैर तक भीगी हुई थी.

यों तो देखने में वह बहुत खूबसूरत नहीं थी, लेकिन उस के बाल कमर से 2 इंच नीचे तक पहुंच रहे थे और बड़ीबड़ी आंखें उस के सांवले रंग को संवारते हुए उस की शख्सीयत को आकर्षक बना रही थीं.

तेज बारिश की वजह से उस लड़की की फ्लाइट लेट हो गई थी और वह भी मेरी तरह मायूस हो कर सामने वाली कुरसी पर आ कर बैठ गई. मैं कब किताब छोड़ उसे पढ़ने लगा था, इस का एहसास मुझे तब हुआ, जब मेरे मोबाइल फोन की घंटी बजी.

ठीक उसी वक्त उस ने मेरी तरफ देखा और तब तक मैं भी उसे ही देख रहा था. उस के चेहरे पर कोई भाव नहीं था. मैं सकपका गया और उस पल की नजर से बचते हुए फोन को उठा लिया.

फोन मेरी मंगेतर का था. मैं अभी उसे अपनी फ्लाइट मिस होने की कहानी बता ही रहा था कि मेरी नजर मेरे सामने बैठी उस लड़की पर फिर से पड़ी. वह थोड़ी घबराई हुई सी लग रही थी. वह बारबार अपने मोबाइल फोन पर कुछ चैक करती, तो कभी अपने बैग में.

मैं जल्दीजल्दी फोन पर बात खत्म कर उसे देखने लगा. उस ने भी मेरी ओर देखा और इशारे में खीज कर पूछा कि क्या बात है? मैं ने अपनी हरकत पर शर्मिंदा होते हुए उसे इशारे में ही जवाब दिया कि कुछ नहीं.

उस के बाद वह उठ कर टहलने लगी. मैं ने फिर से अपनी किताब पढ़ने में ध्यान लगाने की कोशिश की, पर न चाहते हुए भी मेरा मन उस को पढ़ना चाहता था. पता नहीं, उस लड़की के बारे में जानने की इच्छा हो रही थी.

कुछ मिनट ही बीते होंगे कि वह लड़की मेरे पास आई और बोली, ‘सुनिए, क्या आप कुछ देर मेरे बैग का ध्यान रखेंगे? मैं अभी 5 मिनट में चेंज कर के वापस आ जाऊंगी.’

‘जी जरूर. आप जाइए, मैं ध्यान रख लूंगा,’ मैं ने मुसकराते हुए कहा.

‘थैंक यू. सिर्फ 5 मिनट… इस से ज्यादा टाइम नहीं लूंगी आप का,’ यह कह कर वह बिना मेरे जवाब का इंतजार किए वाशरूम की ओर चली गई.

10-15 मिनट बीतने के बाद भी जब वह नहीं आई, तो मुझे उस की चिंता होने लगी. सोचा जा कर देख आऊं, पर यह सोच कर कि कहीं वह मुझे गलत न समझ ले. मैं रुक गया. वैसे भी मैं जानता ही कितना था उसे. और 10 मिनट बीते. पर वह नहीं आई.

अब मुझे सच में घबराहट होने लगी थी कि कहीं उसे कुछ हो तो नहीं गया. वैसे, वह थोड़ी बेचैन सी लग रही थी. मैं उसे देखने जाने के लिए उठने ही वाला था कि वह मुझे सामने से आती हुई नजर आई. उसे देख कर मेरी जान में जान आई. वह ब्लैक जींस और ह्वाइट टौप में बहुत अच्छी लग रही थी. उस के खुले बाल, जो शायद उस ने सुखाने के लिए खोले थे, किसी को भी उस की तरफ खींचने के लिए काफी थे.

वह अपना बैग उठाते हुए एक फीकी सी हंसी के साथ मुझ से बोली, ‘सौरी, मुझे कुछ ज्यादा ही टाइम लग गया. थैंक यू सो मच.’

मैं ने उस की तरफ देखा. उस की आंखें लाल लग रही थीं, जैसे रोने के बाद हो जाती हैं. आंखों की उदासी छिपाने के लिए उस ने मेकअप का सहारा लिया था, लेकिन उस की आंखों पर बेतरतीबी से लगा काजल बता रहा था कि उसे लगाते वक्त वह अपने आपे में नहीं थी. शायद उस समय भी वह रो रही हो.

यह सोच कर पता नहीं क्यों मुझे दर्द हुआ. मैं जानने को और ज्यादा बेचैन हो गया कि आखिर बात क्या है.

मैं ने अपनी उलझन को छिपाते हुए उस से सिर्फ इतना कहा, ‘यू आर वैलकम’.

कुछ देर बाद देखा तो वह अपने बैग में कुछ ढूंढ़ रही थी और उस की आंखों से आंसू बह रहे थे. शायद उसे अपना रूमाल नहीं मिल रहा था.

उस के पास जा कर मैं ने अपना रूमाल उस के सामने कर दिया. उस ने बिना मेरी तरफ देखे मुझ से रूमाल लिया और उस में अपना चेहरा छिपा कर जोरजोर से रोने लगी.

वह कुरसी पर बैठी थी. मैं उस के सामने खड़ा था. उसे रोते देख जैसे ही मैं ने उस के कंधे पर हाथ रखा, वह मुझ से चिपक गई और जोरजोर से रोने लगी. मैं ने भी उसे रोने दिया और वे कुछ पल खामोश अफसानों की तरह गुजर गए.

कुछ देर बाद जब उस के आंसू थमे, तो उस ने खुद को मुझ से अलग कर लिया, लेकिन कुछ बोली नहीं. मैं ने उसे पीने को पानी दिया, जो उस ने बिना किसी झिझक के ले लिया.

फिर मैं ने हिम्मत कर के उस से सवाल किया, ‘अगर आप को बुरा न लगे, तो एक सवाल पूछं?’

उस ने हां में अपना सिर हिला कर अपनी सहमति दी.

‘आप की परेशानी का सबब पूछ सकता हूं? सब ठीक है न?’ मैं ने डरतेडरते पूछा.

‘सब सोचते हैं कि मैं ने गलत किया, पर कोई यह समझने की कोशिश नहीं करता कि मैं ने वह क्यों किया?’ यह कहतेकहते उस की आंखों में फिर से आंसू आ गए.

‘क्या तुम्हें लगता है कि तुम से गलती हुई, फिर चाहे उस के पीछे की वजह कोई भी रही हो?’ मैं ने उस की आंखों में आंखें डालते हुए पूछा.

‘मुझे नहीं पता कि क्या सही है

और क्या गलत. बस, जो मन में आया वह किया?’ यह कह कर वह मुझ से अपनी नजरें चुराने लगी.

‘अगर खुद जब समझ न आए, तो किसी ऐसे बंदे से बात कर लेनी चाहिए, जो आप को नहीं जानता हो, क्योंकि वह आप को बिना जज किए समझने की कोशिश करेगा?’ मैं ने भी हलकी मुसकराहट के साथ कहा.

‘तुम भी यही कहोगे कि मैं ने गलत किया?’

‘नहीं, मैं यह समझने की कोशिश करूंगा कि तुम ने जो किया, वह क्यों किया?’

मेरे ऐसा कहते ही उस की नजरें मेरे चेहरे पर आ कर ठहर गईं. उन में शक तो नहीं था, पर उलझन के बादलजरूर थे कि क्या इस आदमी पर यकीन किया जा सकता है? फिर उस ने अपनी नजरें हटा लीं और कुछ पल सोचने के बाद फिर मुझे देखा.

मैं समझ गया कि मैं ने उस का यकीन जीत लिया है. फिर उस ने अपनी परेशानी की वजह बतानी शुरू की.

दरअसल, वह एक मल्टीनैशनल कंपनी में बड़ी अफसर थी. वहां उस के 2 खास दोस्त थे रवीश और अमित. रवीश से वह प्यार करती थी. तीनों एकसाथ बहुत मजे करते. साथ ही, आउटस्टेशन ट्रिप पर भी जाते. वे दोनों इस का बहुत खयाल रखते थे.

एक दिन उस ने रवीश से अपने प्यार का इजहार कर दिया. उस ने यह कह कर मना कर दिया कि उस ने कभी उसे दोस्त से ज्यादा कुछ नहीं माना. रवीश ने उसे यह भी बताया कि अमित उस से बहुत प्यार करता है और उसे उस के बारे में एक बार सोच लेना चाहिए.

उसे लगता था कि रवीश अमित की वजह से उस के प्यार को स्वीकार नहीं कर रहा, क्योंकि रवीश और अमित में बहुत गहरी दोस्ती थी. वह अमित से जा कर लड़ पड़ी कि उस की वजह से ही रवीश ने उसे ठुकरा दिया है और साथ में यह भी इलजाम लगाया कि कैसा दोस्त है वह, अपने ही दोस्त की गर्लफ्रैंड पर नजर रखे हुए है.

इस बात पर अमित को गुस्सा आ गया और उस के मुंह से गाली निकल गई. बात इतनी बढ़ गई कि वह किसी और के कहने पर, जो इन तीनों की दोस्ती से जला करता था, उस ने अमित के औफिस में शिकायत कर दी कि उस ने मुझे परेशान किया. इस वजह से अमित की नौकरी भी खतरे में पड़ गई.

इस बात से रवीश बहुत नाराज हुआ और अपनी दोस्ती तोड़ ली. यह बात उस से सही नहीं गई और वह शहर से कुछ दिन दूर चले जाने का मन बना लेती है, जिस की वजह से वह आज यहां है.

यह सब बता कर उस ने मुझ से पूछा, ‘अब बताओ, मैं ने क्या गलत किया?’

‘गलत तो अमित और रवीश भी नहीं थे. वह थे क्या?’ मैं ने उस के सवाल के बदले सवाल किया.

‘लेकिन, रवीश मुझ से प्यार करता था. जिस तरह से वह मेरी केयर करता था और हर रात पार्टी के बाद मुझे महफूज घर पहुंचाता था, उस से तो यही लगता था कि वह भी मेरी तरह प्यार में है.’

‘क्या उस ने कभी तुम से कहा कि वह तुम से प्यार करता है?’

‘नहीं.’

‘क्या उस ने कभी अकेले में तुम से बाहर चलने को कहा?’

‘नहीं. पर उस की हर हरकत से

मुझे यही लगता था कि वह मुझे प्यार करता है.’

‘ऐसा तुम्हें लगता था. वह सिर्फ तुम्हें अच्छा दोस्त समझ कर तुम्हारा खयाल रखता था.’

‘मुझे पता था कि तुम भी मुझे ही गलत कहोगे,’ उस ने थोड़ा गुस्से से बोला.

‘नहीं, मैं सिर्फ यही कह रहा हूं कि अकसर हम से भूल हो जाती है यह समझने में कि जिसे हम प्यार कह रहे हैं, वो असल में दोस्ती है, क्योंकि प्यार और दोस्ती में ज्यादा फर्क नहीं होता.’

‘लेकिन, उस की न की वजह अमित भी तो सकता है न?’

‘हो सकता है, लेकिन तुम ने यह जानने की कोशिश ही कहां की. अच्छा, यह बताओ कि तुम ने अमित की शिकायत क्यों की?’

‘उस ने मुझे गाली दी थी.’

‘क्या सिर्फ यही वजह थी? तुम ने सिर्फ एक गाली की वजह से अपने दोस्त का कैरियर दांव पर लगा दिया?’

‘मुझे नहीं पता था कि बात इतनी बढ़ जाएगी. मैं सिर्फ उस से माफी मंगवाना चाहती थी?

‘बस, इतनी सी ही बात थी?’ मैं ने उस की आंखों में झांक कर पूछा.

‘नहीं, मैं अमित को हर्ट कर के रवीश से बदला लेना चाहती थी, क्योंकि उस की वजह से ही रवीश ने मुझे इनकार किया था.’

‘क्या तुम सचमुच रवीश से प्यार करती हो?’

मेरे इस सवाल से वह चिढ़ गई और गुस्से में खड़ी हो गई.

‘यह कैसा सवाल है? हां, मैं उस से प्यार करती हूं, तभी तो उस के यह कहने पर कि मैं उस के प्यार के तो क्या दोस्ती के भी लायक नहीं. यह सुन कर मुझे बहुत हर्ट हुआ और मैं घर क्या अपना शहर छोड़ कर जा रही हूं.’

‘पर जिस समय तुम ने रवीश से अपना बदला लेने की सोची, प्यार तो तुम्हारा उसी वक्त खत्म हो गया था, प्यार में सिर्फ प्यार किया जाता है, बदले नहीं लिए जाते और वह दोनों तो तुम्हारे सब से अच्छे दोस्त थे?’

मेरी बात सुन कर वह सोचती हुई फिर से कुरसी पर बैठ गई. कुछ देर तक तो हम दोनों में से कोई कुछ नहीं बोला. कुछ देर बाद उस ने ही चुप्पी तोड़ी और बोली, ‘मुझ में क्या कमी थी, जो उसे मुझ से प्यार नहीं हुआ?’ और यह कहतेकहते वह मेरे कंधे पर सिर रख कर रोने लगी.

‘हर बार इनकार करने की वजह किसी कमी का होना नहीं होता. हमारे लाख चाहने पर भी हम खुद को किसी से प्यार करने के लिए मना नहीं सकते. अगर ऐसा होता तो रवीश जरूर ऐसा करता,’ मैं ने भी उस के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.

‘सब मुझे बुरा समझते हैं,’ उस ने बच्चे की तरह रोते हुए कहा.

‘नहीं, तुम बुरी नहीं हो. बस टाइम थोड़ा खराब है. तुम अपनी शिकायत वापस क्यों नहीं ले लेतीं?’

‘इस से मेरी औफिस में बहुत बदनामी होगी. कोई भी मुझ से बात तक नहीं करेगा?’

‘हो सकता है कि ऐसा करने से तुम अपनी दोस्ती को बचा लो और क्या पता, रवीश तुम से सचमुच प्यार करता हो और वह तुम्हें माफ कर के अपने प्यार का इजहार कर दे,’ मैं ने उस का मूड ठीक करने के लिए हंसते हुए कहा.

यह सुन कर वह हंस पड़ी. बातों ही बातों में वक्त कब गुजर गया, पता ही नहीं चला. मेरी फ्लाइट जाने में अभी 2 घंटे बाकी थे और उस की में एक घंटा.

मैं ने उस से कहा, ‘बहुत भूख लगी है. मैं कुछ खाने को लाता हूं,’ कह कर मैं वहां से चला गया.

थोड़ी देर बाद मैं जब वापस आया, तो वह वहां नहीं थी. लेकिन मेरी सीट पर मेरे बैग के नीचे एक लैटर था, जो उस ने लिखा था:

‘डियर,

‘आज तुम ने मुझे दूसरी गलती करने से बचा लिया, नहीं तो मैं सबकुछ छोड़ कर चली जाती और फिर कभी कुछ ठीक नहीं हो पाता. अब मुझे पता है कि मुझे क्या करना है. तुम अजनबी नहीं होते, तो शायद मैं कभी तुम्हारी बात नहीं सुनती और मुझे अपनी गलती का कभी एहसास नहीं होता. अजनबी ही रहो, इसलिए अपनी पहचान बताए बिना जा रही हूं. शुक्रिया, सहीगलत का फर्क समझाने के लिए. जिंदगी ने चाहा, तो फिर कभी तुम से मुलाकात होगी.’

मैं खत पढ़ कर मुसकरा दिया. कितना अजीब था यह सब. हम ने घंटों बातें कीं, लेकिन एकदूसरे का नाम तक नहीं पूछा. उस ने भी मुझ अजनबी को अपने दिल का पूरा हाल बता दिया. बात करते हुए ऐसा कुछ लगा ही नहीं कि हम एकदूसरे को नहीं जानते और मैं बर्गर खाते हुए यही सोचने लगा कि वह वापस जा कर करेगी क्या?

फोन की घंटी ने मुझे मेरे अतीत से जगाया. मैं अपना बैग उठा कर एयरपोर्ट से बाहर निकल गया. लेकिन निकलने से पहले मैं ने एक बार फिर चारों तरफ इस उम्मीद से देखा कि शायद वह मुझे नजर आ जाए. मुझे लगा कि शायद जिंदगी चाहती हो मेरी उस से फिर मुलाकात हो. यह सोच कर मैं पागलपन पर खुद ही हंस दिया और अपने रास्ते निकल पड़ा.

अच्छा ही हुआ, जो उस दिन हम ने अपने फोन नंबर ऐक्सचेंज नहीं किए और एकदूसरे का नाम नहीं पूछा. एकदूसरे को जान जाते, तो वह याद आम हो जाती या वह याद ही नहीं रहती.

अकसर ऐसा होता है कि हम जब किसी को अच्छी तरह जानने लगते हैं, तो वो लोग याद आना बंद हो जाते हैं. कुछ रिश्ते अजनबी भी तो रहने चाहिए, बिना कोई नाम के.

Funny Story : लव के लिए कुछ भी करेगा

Funny Story : न जाने क्यों लड़कियां हमेशा से मेरी बड़ी कमजोरी रही हैं. ऐसा नहीं है कि मैं ऐश्वर्या राय, माधुरी दीक्षित या करीना कपूर जैसी परियों की बात कर रहा हूं, मेरे दिल की धड़कनें तो बरतन मांजने वाली धन्नो भी तेज कर दिया करती थी. लेकिन मेरी बीवी ने फौरन उसे हटा दिया. बात तब की है, जब मैं जोरू का गुलाम नहीं बना था. मुझे मनचले लड़कों का गुरु ही समझ लीजिए. लड़कियों को अपनी ओर घुमाने में मुझे महारत हासिल थी. चाहे वे खा जाने वाली नजरों से घूरते हुए घूमें या फिर गाली देने के इरादे से, आखिर घूमती तो थीं.

हालात आज भी कुछ वैसे ही चल रहे हैं. लड़कियों को भी यह अच्छी तरह मालूम है कि वे मेरी कमजोरी हैं.

‘‘लड्डू, मेरे दीवाने…’’

‘‘ओह, मधु तुम…’’

मेरी तो बांछें खिल गईं. आज तक किसी लड़की ने मुझे इतने प्यार से नहीं पुकारा था. शादी जरूर हो गई थी, मगर आज तक लव करने की लालसा मन में ही मचल रही थी.

‘‘ओह लड्डू… क्या तुम मेरा एक काम करोगे?’’

‘‘हांहां, तुम्हारे लिए तो मैं सूली पर चढ़ सकता हूं, जान दे सकता हूं, आसमान से तारे तोड़ कर तेरे कदमों में डाल सकता हूं, सारी दुनिया से लड़…’’

‘‘बसबस, मैं समझ गई. तुम बस बातें ही बनाओगे, काम नहीं करोगे,’’ उस ने रूठने का नाटक किया.

‘‘तुम्हारे लिए तो मैं जमीनआसमान एक कर सकता हूं मधु…’’ मैं ने उसी अंदाज में बोला.

‘‘मुझे स्टेशन जाना है. वहां पहुंचाने के लिए कोई भी 20-30 रुपए मांग ही लेगा. करीब 30-40 किलो की पोटली जो है. क्या तुम मेरी मदद करोगे? यहां से स्टेशन केवल 3 किलोमीटर ही तो है.’’

मेरे तो होश ही उड़ गए. 30-40 किलो वजन और 3 किलोमीटर की दूरी.

मैं ने मधु से कहा, ‘‘मैं दुबलापतला आदमी, भला इतनी दूर कैसे इतना वजन ले जा सकता हूं?’’

‘‘तुम मर्द के नाम पर कलंक हो. देखा नहीं था कि ‘गदर…’ फिल्म में कैसे सनी देओल अपनी हीरोइन के लिए पूरे पाकिस्तान से लड़ गया था. जाओ, तुम मेरे प्यार के काबिल नहीं,’’ मधु ने ताना देते हुए कहा.

‘‘मधु, मेरे कहने का यह मतलब नहीं था. मैं तो वाकई तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकता हूं,’’ मैं ने दीवानगी जताते हुए कहा.

‘‘ऐ मिस्टर…’’ तभी मधु ने टोका, ‘‘ट्रेन छुड़वाने का विचार है क्या? मैं ने औरत होने के नाते कहा, वरना मैं खुद काफी थी.’’

मर्द वाली बात सुनते ही मेरी छाती गर्व से फूल गई और आननफानन पोटली मेरे सिर पर थी.

मेरे बदन से पसीना टपकने लगा था. लग रहा था, जैसे मेरी जान बाहर ही निकलने वाली है और वह अपनी कमर को लचकाती हुई बेरहम की तरह आगेआगे चल रही थी.

‘‘लड्डू, दिक्कत हो रही हो, तो बोल दो. बाद में कुछ न कहना,’’ मधु ने हाथ मटका कर पूछा.

मेरा तो सिर फटा जा रहा था. मन कर रहा था कि पोटली पटक दूं, मगर प्यार के लिए तो कुछ भी करना पड़ता है न. स्टेशन तक कैसे पहुंचा, यह तो मुझे ही पता है.स्टेशन पहुंचते ही मैं लड़खड़ा गया. एक पत्थर से टकरा जाने की वजह से मैं मुंह के बल जा गिरा. पोटली दूर छिटक गई और खनखन कर के कुछ टूटने की आवाज आई.

मधु दहाड़ें मार कर रोने लगी.

‘‘मैं ने कहा था, दिक्कत है तो बोल दो… पर तुम ने कहा कि यह तो मेरे बाएं हाथ का खेल है…’’ कहते हुए मधु का रोना जारी रहा.

तभी किसी ने मेरा कौलर पकड़ कर मुझे धरती से ऊपर उठा लिया. मेरे तो होश ही उड़ गए. वह बड़ीबड़ी मूंछों वाला सिपाही किसी शेर की तरह खा जाने वाली नजरों से मुझे घूरे जा रहा था.

‘‘क्यों बे, कितने का नुकसान किया है मैडम का?’’

‘‘साहब, मैं ने इस से पहले ही पूछ लिया था कि दम है तो चलो, मगर इस ने मेरा 4 सौ रुपए का सामान तोड़ दिया,’’ मधु ने रोतेरोते कहा.

सिपाही गरजा, ‘‘जल्दी से 4 सौ रुपए दो और मैडम से माफी मांगो.’’

भीड़ ने भी हां में हां मिलाई.

मुझे काटो तो खून नहीं. बीवी ने जो पैसे सामान लाने के लिए दिए थे, वे मैं ने हालात को देखते हुए मधु को दे देने में ही भलाई समझी. मधु ने रोतेरोते रुपए अपने हवाले कर लिए और गाड़ी में चढ़ गई. फिर अचानक ही वह धीरे से मुसकराते हुए बोली, ‘‘तू अपना 30 रुपया भाड़ा तो लेता जा. जरा सौ रुपए के छुट्टे भी कर ला.’’

भीड़ खिलखिला कर हंस पड़ी और मैं शर्म से पानीपानी हो गया.

‘‘लाइसैंस है तुम्हारे पास?’’ तभी सिपाही गुर्राया.

मैं चौंका, ‘‘लाइसैंस… किस चीज का लाइसैंस?’’

‘‘स्टेशन पर कुली का काम करने का…’’

‘‘पर, मैं कुली नहीं हूं. मैं ने तो अपनेपन की खातिर मधु का सामान ला दिया था.’’

‘‘कुली न होने का कोई गवाह?’’

‘‘वह मधु से पूछ लीजिए.’’

‘‘मधु के बच्चे. वह अभी तुझे भाड़ा दे रही थी. चल, अभी मैं तेरे होश ठिकाने लगाता हूं,’’ सिपाही भड़क उठा.

गिड़गिड़ाने के अलावा मुझे कोई चारा नजर नहीं आया.

‘‘चल, 5 सौ रुपए दे दे, मैं तुझे छोड़ दूंगा,’’ सिपाही तरस खाते हुए बोला.

‘‘5 सौ रुपए, पर मेरे पास तो एक रुपया भी नहीं बचा.’’

‘‘तो क्या हुआ?’’ उस की नजर मेरी घड़ी पर थी, ‘‘समय नहीं है मेरे पास, पैसे नहीं हैं, तो अपनी घड़ी ला या फिर अंदर जाने की तैयारी कर.’’

‘‘नहीं, यह घड़ी तो ससुराल की है. मैं इसे नहीं दे सकता,’’ मुझे रोना आने लगा.

‘‘तो फिर चल, तुझे ससुराल की ही सैर करा देता हूं.’’

मैं भी अब अजीब मुसीबत में फंस गया था.

‘किस सौतन को अपनी घड़ी और रुपए दे आए?’ बीवी द्वारा पूछे जाने वाला यह सवाल मेरे दिमाग में घूमने लगा.

‘‘क्यों बे, तू ऐसे नहीं मानेगा,’’ सिपाही चिल्लाया.

तभी उस सिपाही ने मुझे किसी चूहे की तरह दबोचा और दूसरे ही पल मेरी घड़ी उस की हो गई. मैं तड़प कर रह गया. घर पहुंचने पर मेरी बीवी ने क्या खातिरदारी की, यह मत पूछिए..

Family Story : टकराती जिंदगी

Family Story

लेखक- एच. भीष्मपाल

जिंदगी कई बार ऐसे दौर से गुजर जाती है कि अपने को संभालना भी मुश्किल हो जाता है. रहरह कर शकीला की आंखों से आंसू बह रहे थे. वह सोच भी नहीं पा रही थी कि अब उस को क्या करना चाहिए. सोफे पर निढाल सी पड़ी थी. अपने गम को भुलाने के लिए सिगरेट के धुएं को उड़ाती हुई भविष्य की कल्पनाओं में खो जाती. आज वह जिस स्थिति में थी, इस के लिए वह 2 व्यक्तियों पर दोष डाल रही थी. एक थी उस की छोटी बहन बानो और दूसरा था उस का पति याकूब.

‘मैं क्या करती? मुझे उन्होंने पागल बना दिया था. यह वही व्यक्ति था जो शादी से पहले मुझ से कहा करता था कि अगर मैं ने उस से शादी नहीं की तो वह खुदकुशी कर लेगा. आज उस ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी है कि मैं अपना शौहर, घर और छोटी बच्ची को छोड़ने को मजबूर हो गई हूं. मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा कि मैं अब क्या करूं,’ शकीला मन ही मन बोली.

‘मैं ने याकूब को क्या नहीं दिया. वह आज भूल गया कि शादी से पहले वह तपेदिक से पीडि़त था. मैं ने उस की हर खुशी को पूरा करने की कोशिश की. मैं ने उस के लिए हर चीज निछावर कर दी. अपना धन, अपनी भावनाएं, हर चीज मैं ने उस को अर्पण कर दी. सड़कों पर घूमने वाले बेरोजगार याकूब को मैं ने सब सुख दिए. उस ने गाड़ी की इच्छा व्यक्त की और मैं ने कहीं से भी धन जुटा कर उस की इच्छा पूरी कर दी. मुझे अफसोस इस बात का है कि उस ने मेरे साथ यह क्यों किया. मुझे इस तरह जलील करने की उसे क्या जरूरत थी? अगर वह एक बार भी कह देता कि वह मेरे से ऊब गया है तो मैं खुद ही उस के रास्ते से हट जाती. जब मेरे पास अच्छी नौकरी और घर है ही तो मैं उस के बिना भी तो जिंदगी काट सकती हूं.

‘बानो मेरी छोटी बहन है. मैं ने उसे अपनी बेटी की तरह पाला है, पर उसे मैं कभी माफ नहीं कर सकती. उस ने सांप की तरह मुझे डंस लिया. पता नहीं मेरा घर उजाड़ कर उसे क्या मिला? मुझे उस के कुकर्मों का ध्यान आते ही उस पर क्रोध आता है.’ बुदबुदाते हुए शकीला सोफे से उठी और बाहर अपने बंगले के बाग में घूमने लगी.

20 साल पहले की बात है. शकीला एक सरकारी कार्यालय में अधिकारी थी. गोरा रंग, गोल चेहरा, मोटीमोटी आंखें और छरहरा बदन. खूबसूरती उस के अंगअंग से टपकती थी. कार्यालय के साथी अधिकारी उस के संपर्क को तरसते थे. गाने और शायरी का उसे बेहद शौक था. महफिलों में उस की तारीफ के पुल बांधे जाते थे.

याकूब उत्तर प्रदेश की एक छोटी सी रियासत के नवाब का बिगड़ा शहजादा था. नवाब साहब अपने समय के माने हुए विद्वान और खिलाड़ी थे. याकूब को पहले फिल्म में हीरो बनने का शौक हुआ. वह मुंबई गया पर वहां सफल न हो सका. फिर पेंटिंग का शौक हुआ परंतु इस में भी सफलता नहीं मिली. उस के पिता ने काफी समझाया पर वह कुछ समझ न सका. गुस्से में उस ने घर छोड़ दिया. दिल्ली में रेडियो स्टेशन पर छोटी सी नौकरी कर ली. कुछ दिन के बाद वह भी छोड़ दी. फिर शायरी और पत्रकारिता के चक्कर में पड़ गया. न कोई खाने का ठिकाना न कोई रहने का बंदोबस्त. यारदोस्तों के सहारे किसी तरह से अपना जीवन निर्वाह कर रहा था. शरीर, डीलडौल अवश्य आकर्षक था. खानदानी तहजीब और बोलने का लहजा हर किसी को मोह लेता था.

और फिर एक दिन इत्तेफाक से उसे शकीला से मिलने का मौका मिला. एक इंटरव्यू लेने के सिलसिले में वह शकीला के कार्यालय में गया. उस के कमरे में घुसते ही उस ने ज्यों ही शकीला को देखा, उस के तनबदन में सनसनी सी फैल गई. कुछ देर के लिए वह उसे खड़ाखड़ा देखता रहा. इस से पहले कि वह कुछ कहे, शकीला ने उस से सामने वाली कुरसी पर बैठने का अनुरोध किया. बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ. शकीला भी उस की तहजीब और बोलने के अंदाज से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकी. इंटरव्यू का कार्य खत्म हुआ और उस से फिर मिलने की इजाजत ले कर याकूब वहां से चला गया.

याकूब के वहां से चले जाने के बाद शकीला काफी देर तक कुछ सोच में पड़ गई. यह पहला मौका था जब किसी के व्यक्तित्व ने उसे प्रभावित किया था. कल्पनाओं के समुद्र में वह थोड़ी देर के लिए डूब गई. और फिर उस ने अपनेआप को झटक दिया और अपने काम में लग गई. ज्यादा देर तक उस का काम में मन नहीं लगा. आधे दिन की छुट्टी ले कर वह घर चली गई.

शकीला उत्तर प्रदेश के जौनपुर कसबे के मध्य-वर्गीय मुसलिम परिवार की कन्या थी. उस की 3 बहनें और 2 भाई थे. पिता का साया उस पर से उठ गया था. 2 भाइयों और 2 बहनों का विवाह हो चुका था और वे अपने परिवार में मस्त थे. विधवा मां और 7 वर्षीय छोटी बहन बानो के जीवननिर्वाह की जिम्मेदारी उस ने अपने ऊपर ले रखी थी. उस की मां को अपने घर से विशेष लगाव था. वह किसी भी शर्त पर जौनपुर छोड़ना नहीं चाहती थी. उस की गुजर के लिए उस का पिता काफी रुपयापैसा छोड़ गया था. घरों का किराया आता था व थोड़ी सी कृषि भूमि की आय भी थी.

शकीला के सामने समस्या बानो की पढ़ाई की थी. शकीला की इच्छा थी कि वह अच्छी और उच्च शिक्षा प्राप्त करे. वह उसे पब्लिक स्कूल में डालना चाहती थी जो जौनपुर में नहीं था. आखिरकार बड़ी मुश्किल से उस ने अपनी मां को रजामंद कर लिया और वह बानो को दिल्ली ले आई. शकीला बानो से बेहद प्यार करती थी. बानो को भी अपनी बड़ी बहन से बहुत प्यार था.

याकूब और शकीला के परस्पर मिलने का सिलसिला जारी रहा. कुछ दिन कार्यालय में औपचारिक मिलन के बाद गेलार्ड में कौफी के कार्यक्रम बनने लगे. शकीला ने न चाह कर भी हां कर दी. बानो के प्रति अपनी जिम्मेदारी महसूस करते हुए भी वह याकूब से मिलने के लिए और उस से बातचीत करने के लिए लालायित रहने लगी. उन दोनों को इस प्रकार मिलते हुए एक साल हो गया. प्यार की पवित्रता और मनों की भावनाओं पर दोनों का ही नियंत्रण था. परस्पर वे एकदूसरे के व्यवहार, आदतों और इच्छाओं को पहचानने लगे थे.

एक दिन याकूब ने उस के सामने हिचकतेहिचकते विवाह का प्रस्ताव रखा. यह सुन कर शकीला एकदम बौखला उठी. वह परस्पर मिलन से आगे नहीं बढ़ना चाहती थी. यह सुन कर वह उठी और ‘ना’ कह कर गेलार्ड से चली गई. घर जा कर वह अपने लिहाफ में काफी देर तक रोती रही. वह समझ नहीं पा रही थी कि वह जिंदगी के किस दौर से गुजर रही है. वह क्या करे, क्या न करे, कुछ सोच नहीं पा रही थी.

इस घटना का याकूब पर बहुत बुरा असर पड़ा. वह शकीला की ‘ना’ को सुन कर तिलमिला उठा. इस गम को भुलाने के लिए उस ने शराब का सहारा लिया. अब वह रोज शराब पीता और गुमसुम रहने लगा. खाने का उसे कोई होश न रहा. उस ने शकीला से मिलना बिलकुल बंद कर दिया. शकीला के इस व्यवहार ने उस के आत्मसम्मान को बहुत ठेस पहुंचाई.

उधर शकीला की हालत भी ठीक न थी. बानो के प्रति अपने कर्तव्य को ध्यान में रखते हुए वह याकूब को ‘ना’ तो कह बैठी, परंतु वह अपनी जिंदगी में कुछ कमी महसूस करने लगी. याकूब के संपर्क ने थोडे़ समय के लिए जो खुशी ला दी थी वह लगभग खत्म हो गई थी. वह खोईखोई सी रहने लगी. रात को करवटें बदलती और अंगड़ाइयां लेती परंतु नींद न आती. शकीला ने सोने के लिए नींद की गोलियों का सहारा लेना शुरू किया. चेहरे की रौनक और शरीर की स्फूर्ति पर असर पड़ने लगा. वह कुछ समझ नहीं पा रही थी कि वह क्या करे. वह इसी सोच में डूबी रहती कि बानो की परवरिश कैसे हो. यदि वह शादी कर लेगी तो बानो का क्या होगा?

अत्यधिक शराब पीने से याकूब की सेहत पर असर पड़ने लगा. उस का जिगर ठीक से काम नहीं करता था. खाने की लापरवाही से उस के शरीर में और कई बीमारियां पैदा होने लगीं. याकूब इस मानसिक आघात को चुपचाप सहे जा रहा था. धीरेधीरे शकीला को याकूब की इस हालत का पता चला तो वह घबरा गई. उसे डर था कि कहीं कोई अप्रिय घटना न घट जाए. वह याकूब से मिलने के लिए तड़पने लगी. एक दिन हिम्मत कर के वह उस के घर गई. याकूब की हालत देख कर उस की आंखों से आंसू बहने लगे. याकूब ने फीकी हंसी से उस का स्वागत किया. कुछ शिकवेशिकायतों के बाद फिर से मिलनाजुलना शुरू हो गया. अब जब याकूब ने उस से प्रार्थना की तो शकीला से न रहा गया और उस ने हां कर दी.

शादी हो गई. शकीला और याकूब दोनों ही मजे से रहने लगे. हर दम, हर पल वे साथ रहते, आनंद उठाते. 3 वर्ष देखते ही देखते बीत गए. बानो भी अब जवान हो गई थी. उस ने एम.ए. कर लिया था और एक अच्छी फर्म में नौकरी करने लगी थी.

शकीला ने बानो को हमेशा अपनी बेटी ही समझा था. शादी से पहले शकीला और याकूब ने आपस में फैसला किया था कि जब तक बानो की शादी नहीं हो जाती वह उन के साथ ही रहेगी. याकूब ने उसे बेटी के समान मानने का वचन शकीला को दिया था. शकीला ने कभी अपनी संतान के बारे में सोचा भी नहीं था. वह तो बानो को ही अपनी आशा और अपने जीवन का लक्ष्य समझती थी.

याकूब कुछ दिनों के बाद उदास रहने लगा. यद्यपि बानो से वह बेहद प्यार करता था परंतु उसे अपनी संतान की लालसा होने लगी. वह शकीला से केवल एक बच्चे के लिए प्रार्थना करने लगा. न जाने क्यों शकीला मां बनने से बचना चाहती थी परंतु याकूब के इकरार ने उसे मां बनने पर मजबूर कर दिया. फिर साल भर बाद शकीला की कोख से एक सुंदर बेटी ने जन्म लिया. प्यार से उन्होंने उस का नाम जाहिरा रखा.

शकीला और याकूब अपनी जिंदगी से बेहद खुश थे. जाहिरा ने उन की खुशियों को और भी बढ़ा दिया था. जाहिरा जब 3 वर्ष की हुई तो याकूब के पिता नवाब साहब आए और उसे अपने साथ ले गए. जाहिरा को उन्होंने लखनऊ के प्रसिद्ध कानवेंट में भरती कर दिया. याकूब और शकीला दोनों ही इस व्यवस्था से प्रसन्न थे.

कार्यालय की ओर से शकीला को अमेरिका में अध्ययन के लिए भेजने का प्रस्ताव था. वह बहुत प्रसन्न हुई परंतु बारबार उसे यही चिंता सताती कि बानो के रहने की व्यवस्था क्या की जाए. उस ने याकूब केसामने इस समस्या को रखा. उस ने आश्वासन दिया कि वह बानो की चिंता न करे. वह उस का पूरा ध्यान रखेगा. इन शब्दों से आश्वस्त हो कर शकीला अमेरिका के लिए रवाना हो गई.

शकीला एक साल तक अमेरिका में रही और जब वापस दिल्ली के हवाई अड्डे पर उतरी तो याकूब और बानो ने उस का स्वागत किया. कुछ दिन बाद शकीला ने महसूस किया कि याकूब कुछ बदलाबदला सा नजर आता है. वह अब पहले की तरह खुले दिल से बात नहीं करता था. उस के व्यवहार में उसे रूखापन नजर आने लगा. उधर बानो भी अब शकीला से आंख मिलाने में कतराने लगी थी. शकीला को काफी दिन तक इस का कोई भान नहीं हुआ परंतु इन हरकतों से वह कुछ असमंजस में पड़ गई. याकूब को अब छोटीछोटी बातों पर गुस्सा आ जाता था. अब वह शकीला के साथ बाहर पार्टियों में भी न जाने का कोई न कोई बहाना ढूंढ़ लेता. वह ज्यादा से ज्यादा समय तक बानो के साथ बातें करता.

एक दिन शकीला को कार्यालय में देर तक रुकना पड़ा. जब वह रात को अपने बंगले में पहुंची तो दरवाजा खुला था. वह बिना खटखटाए ही अंदर चली आई. वहां उस ने जो कुछ देखा तो एकदम सकपका गई. बानो का सिर याकूब की गोदी में और याकूब के होंठ बानो के होंठों से सटे हुए थे. शकीला को अचानक अपने सामने देख कर वे एकदम हड़बड़ा कर उठ गए. उन्हें तब ध्यान आया कि वे अपनी प्रेम क्रीड़ाओं में इतने व्यस्त थे कि उन्हें दरवाजा बंद करना भी याद न रहा.

शकीला पर इस हादसे का बहुत बुरा असर पड़ा. वह एकदम गुमसुम और चुप रहने लगी. याकूब और बानो भी शकीला से बात नहीं करते थे. शकीला को बुखार रहने लगा. उस का स्वास्थ्य खराब होना शुरू हो गया. उधर याकूब और बानो खुल कर मिलने लगे. नौबत यहां तक पहुंची कि अब बानो ने शकीला के कमरे में सोना बंद कर दिया. वह अब याकूब के कमरे में सोने लगी. दफ्तर से याकूब और बानो अब देर से साथसाथ आते. कभीकभी इकट्ठे पार्टियों में जाते और रात को बहुत देर से लौटते. शकीला को उन्होंने बिलकुल अलगथलग कर दिया था. शकीला उन की रंगरेलियों को देखती और चुपचाप अंदर ही अंदर घुटती रहती. 1-2 बार उस ने बानो को टोका भी परंतु बानो ने उस की परवा नहीं की.

शकीला की सहनशक्ति खत्म होती जा रही थी. रहरह कर उस को अपनी मां की बातें याद आ रही थीं. उस ने कहा था, ‘बानो अब बड़ी हो गई है. वह उसे अपने पास न रखे. कहीं ऐसा न हो कि वह उस की सौत बन जाए. मर्द जात का कोई भरोसा नहीं. वह कब, कहां फिसल जाए, कोई नहीं कह सकता.’

इस बात पर शकीला ने अपनी मां को भी फटकार दिया था, पर वह स्वप्न में भी नहीं सोच सकती थी कि याकूब इस तरह की हरकत कर सकता है. वह तो उसे बेटी के समान समझता था. शकीला को बड़ा मानसिक कष्ट  था, पर समाज में अपनी इज्जत की खातिर वह चुप रहती और मन मसोस कर सब कुछ सहे जा रही थी.

बानो के विवाह के लिए कई रिश्तों के प्रस्ताव आए. शकीला की दिली इच्छा थी कि बानो के हाथ पीले कर दे परंतु जब भी लड़के वाले आते, याकूब कोई न कोई कमी निकाल देता और बानो उस प्रस्ताव को ठुकरा देती. आखिर शकीला ने एक दिन याकूब से साफसाफ पूछ लिया. यह उन की पहली टकराहट थी. तूतू मैंमैं हुई. याकूब को भी गुस्सा आ गया. गुस्से के आवेश में याकूब ने शकीला को बीते दिनों की याद दिलाते हुए कहा, ‘‘शकीला, मैं यह जानता था कि तुम ने पहले रिजवी से निकाह किया था. जब वह तुम्हारे नाजनखरे और खर्चे बरदाश्त नहीं कर सका तो वह बेचारा बदनामी के डर से कई साल तक इस गम को सहता रहा. तुम ने मुझे कभी यह नहीं बताया कि तुम्हारे एक लड़के को वह पालता रहा. आज वह लड़का जवान हो गया है. तुम ने उस के साथ जैसा क्रूर व्यवहार किया उस को वह बरदाश्त नहीं कर सका. कुछ अरसे बाद सदा के लिए उस ने आंखें मूंद लीं.

‘‘तुम्हें याद है जब मैं ने तुम्हें उस की मौत की खबर सुनाई थी तो तुम केवल मुसकरा दी थीं और कहा था कि यह अच्छा ही हुआ कि वह अपनी मौत खुद ही मर गया, नहीं तो शायद मुझे ही उसे मारना पड़ता.’’

शकीला की आंखों से आंसू बहने लगे. फिर वह तमतमा कर बोली, ‘‘यह झूठ है, बिलकुल झूठ है. उस ने मुझे कभी प्यार नहीं किया. वह निकाह मांबाप द्वारा किया गया एक बंधन मात्र था. वह हैवान था, इनसान नहीं, इसीलिए आज तक मैं ने किसी से इस का जिक्र तक नहीं किया. फिर इस की तुम्हें जरूरत भी क्या थी? तुम ने मुझ से, मेरे शरीर से प्यार किया था न कि मेरे अतीत से.’’

‘‘शकीला, जब से मैं ने तुम्हें देखा, तुम से प्यार किया और इसीलिए विवाह भी किया. तुम्हारे अतीत को जानते हुए भी मैं ने कभी उस की छाया अपने और तुम्हारे बीच नहीं आने दी. आज तुम मेरे ऊपर लांछन लगा रही हो पर यह कहां तक ठीक है? तुम एक दोस्त हो सकती हो परंतु बीवी बनने के बिलकुल काबिल नहीं. मैं तुम्हारे व्यवहार और तानों से तंग आ चुका हूं. तुम्हारे साथ एक पल भी गुजारना अब मेरे बस का नहीं.’’

याकूब और शकीला में यह चखचख हो ही रही थी कि बानो भी वहां आ गई. बानो को देखते ही शकीला बिफर गई और रोतेरोते बोली, ‘‘मुझे क्या मालूम था कि जिसे मैं ने बच्ची के समान पाला, आज वही मेरी सौत की जगह ले लेगी. मां ने ठीक ही कहा था कि मैं जिसे इतनी आजादी दे रही हूं वह कहीं मेरा घर ही न उजाड़ दे. आज वही सबकुछ हो रहा है. अब इस घर में मेरे लिए कोई जगह नहीं.’’

बानो से चुप नहीं रहा गया. वह भी बोल पड़ी, ‘‘आपा, मैं तुम्हारी इज्जत करती हूं. तुम ने मुझे पालापोसा है पर अब मैं अपना भलाबुरा खुद समझ सकती हूं. छोटी बहन होने के नाते मैं तुम्हारे भूत और वर्तमान से अच्छी तरह वाकिफ हूं. तुम्हारे पास समय ही कहां है कि तुम याकूब की जिंदगी को खुशियों से भर सको. तुम ने तो कभी अपनी कोख से जन्मी बच्ची की ओर भी ध्यान नहीं दिया. आराम और ऐयाशी की जिंदगी हर एक गुजारना चाहता है परंतु तुम्हारी तरह खुदगर्जी की जिंदगी नहीं. याकूब परेशान और बीमार रहते हैं. उन्हें मेरे सहारे की जरूरत है.’’

बानो के इस उत्तर को सुन कर शकीला सकपका गई. अब तक वह याकूब को ही दोषी समझती थी परंतु आज तो उस की बेटी समान छोटी बहन भी बेशर्मी से जबान चला रही थी. अगले दिन ही उस ने उन के जीवन से निकल जाने का निर्णय कर लिया.

शकीला जब अगले दिन अपने कार्यालय में पहुंची तो उस की मेज पर एक कार्ड पड़ा था. लिखा  था, ‘शकीला, हम साथ नहीं रह सकते.

Social Story : मुनमुन ने कैसे दिखाई हिम्मत

Social Story : ‘मैं यह क्या सुन रहा हूं मां… मुनमुन पति का घर छोड़ कर आ गई है. फौरन उसे वापस भेजो, वरना हमारी बहुत बदनामी होगी,’ पवन की गुस्से में भरी तेज आवाज रामेश्वरी के कानों से टकराई.

‘‘फोन पर क्यों इतना चिल्ला रहा है. थोड़ा शांत हो जा. तुझे कौन सी सचाई का पता है… और देखा जाए, तो तुझे इस बात में कोई दिलचस्पी भी नहीं है. तुझे तो गांव छोड़े बरसों हो गए हैं. तू क्यों बदनामी की चिंता कर रहा है. जब से गया है, तू ने और तेरे बड़े भाई ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा.

‘‘ठीक भी है, आखिर अब तुम ऊंचे ओहदे पर हो, बड़े आदमी बन गए हो. शहरी चमकदमक तुम्हें इतनी रास आ गई है कि तुम दोनों ने मांबाप और गांव को ही भुला दिया है,’’ रामेश्वरी की आवाज में कड़वाहट थी.

‘मां, हम शहर में रह रहे हैं तो क्या… मुनमुन की शादी करने में तो हम ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी…’ पवन फिर भड़का, ‘इतनी सी बात पर कोई घर छोड़ कर आता है भला. थोड़ा सहना भी चाहिए. पति का हाथ तो उठ ही जाता है. इस में कौन सी नई बात है. इतना हक तो होता ही है पति का. मारपीट, लड़ाईझगड़ा किस पतिपत्नी में नहीं होता. लेकिन वह तो घर ही छोड़ कर आ गई.

‘क्या पता, अब मुनमुन कौन सा गुल खिलाएगी. सच तो यह है कि ऐसी बहन को चौराहे पर खड़ा कर के गोली मार देनी चाहिए. नाक कटवा दी उस ने हम सब की,’ पवन के शब्दों से कड़वाहट टपक रही थी.

‘‘वाह, मेरे काबिल बेटे. पढ़लिख कर भी तू ऐसी सोच रखता है. तुम दोनों भाइयों को न पढ़ा कर मैं ने मुनमुन की पढ़ाई पर ध्यान दिया होता, तो कम से कम आज वह अपने पैरों पर तो खड़ी हो जाती.

‘‘और बेटा, तू सही कह रहा है कि शादी में कोई कसर नहीं छोड़ी थी तुम दोनों भाइयों ने. मैं ने और तेरे बाबूजी ने कितना कहा था कि लड़के के बारे में पहले ठीक से जांच कर लो, पर तुम दोनों भाइयों को तो जल्दी थी उस की शादी करने की, ताकि जल्दी से शहर लौट सको.

‘‘तुम ने न घरपरिवार के बारे में पड़ताल की, न लड़के के बारे में. गाय की तरह मुनमुन को उस से बांध दिया और एहसान भी जताया कि देखो बहन की शादी कितनी धूमधाम से कर दी, कितने जिम्मेदार बेटे हैं हम तो…’’ लगातार बोलने से रामेश्वरी की सांस फूलने लगी थी.

‘‘मां, रहने भी दो अब. तुम्हारी तबीयत खराब हो जाएगी,’’ मुनमुन ने मां के हाथों से फोन लेने की कोशिश की.

‘‘बोलने दे मुझे आज…’’ रामेश्वरी ने फोन को कस कर पकड़े रखा, ‘‘सुन पवन, मैं नहीं भेजूंगी मुनमुन को वापस उस नरक में. शराबी पति की मार कब तक खाएगी वह. वह हमारे ऊपर बोझ नहीं है, जो रोटी की जगह मार और प्यार की जगह दुत्कार सहती रहे.

‘‘शर्म आनी चाहिए तुम्हें. बहन का साथ देने के बजाय तुम्हें बदनामी का डर सता रहा है. अपने ही जब कीचड़ उछालने से नहीं चूकते, तो समाज को उंगलियां उठाने से कैसे रोक सकते हैं,’’ रोते हुए रामेश्वरी ने खुद ही फोन काट दिया था.

‘‘मां, तुम किसकिस का मुंह बंद करोगी… यह लखीमपुर खीरी जिले का एक छोटा सा गांव है. घरघर में मेरे मायके आ जाने की बात फैल गई है. बाबूजी तो 2 दिनों से खेत पर भी नहीं गए हैं.

‘‘अच्छा यही होगा कि मैं ससुराल चली जाऊं. जो मेरी किस्मत में लिखा है, उसे सह लूंगी,’’ मुनमुन से मां की पीड़ा देखी नहीं जा रही थी.

‘‘तू क्या समझती है, मैं नहीं जानती कि तेरे साथ वहां और क्याक्या होता होगा. मां हूं तेरी. पति की मार से तू ससुराल छोड़ कर आने वाली नहीं है. सच बता, बात क्या है?’’ रामेश्वरी की अनुभवी आंखें मानो भांप गई थीं कि बात कुछ और ही है.

‘‘मां…’’ मुनमुन सुबकते हुए बोली, ‘‘शादी को डेढ़ बरस हो गया है और मैं उन्हें बच्चा न दे सकी. मुझे बांझ कह कर वे डाक्टर के पास ले गए, पर जांच में सब ठीक आया. मैं ने पति से बोला कि तुम अपनी जांच करा लो, तो वह भड़क गया.

‘‘एक दिन सास और पति दूसरे गांव में गए हुए थे किसी के ब्याह में. रात को ससुर ने मेरे साथ जबरदस्ती करनी चाही. वह बोला, ‘मेरा बेटा तुझे बच्चा नहीं दे सकता तो क्या, मैं तो हूं.’

‘‘पति को बताया, तो सास और पति दोनों ही मुझे कोसने लगे कि मैं बदचलन हूं और ससुर पर झूठा इलजाम लगा रही हूं.

‘‘ससुर हाथ जोड़े ऐसे बैठा था, जैसे उस का कुसूर न हो. उस के बाद तो ससुर की हिम्मत बढ़ गई और वह जबतब मेरा हाथ पकड़ने लगा. सास ने कई बार देखा भी, पर चुप रही.

‘‘बता मां, मैं कैसे रहती वहां? जहां हर समय यही डर लगा रहता था कि न जाने कब ससुर मेरे ऊपर झपट्टा मार लेगा.’’

रामेश्वरी कुछ कहती कि तभी बिसेसर वहां आ गए.

‘‘समझ नहीं आता कि क्या करें मेरी बच्ची. तुझे घर में रखते हैं, तो गांव वाले ताने देते रहेंगे और ससुराल भेजते हैं, तो तुझे घुटघुट कर जीना होगा. वैसे भी हमारे गांव की आबोहवा लड़कियों के लिए ठीक नहीं है,’’ बिसेसर की आवाज में छिपा बाप का दर्द मुनमुन को दर्द दे गया.

‘‘बाबूजी, आप बिलकुल भी परेशान मत हों. मैं लौट जाऊंगी. सच तो यह है कि औरत चाहे जिस कोने में चली जाए, उस के लिए सारे समाज की हवा ही ठीक नहीं है. कहां महफूज है वह?’’

‘‘क्या कहूं मेरी बच्ची. देखो, आज हमारे बेटे ही हमें दोष दे रहे हैं. हमारा कुसूर यह है कि दिनरात शराब पी कर पत्नी को पीटने वाले पति के घर बेटी को झोंटा पकड़ कर क्यों नहीं ठेल देते,’’ बिसेसर सिर पकड़ कर वहीं बैठ गया.

‘‘तेरे दोनों भाइयों को पढ़ाने की खातिर तेरी पढ़ाई बीच में ही छुड़ानी पड़ी और देखो, वही तेरे लायक भाई तेरे दुश्मन बन बैठे हैं,’’ रामेश्वरी के आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे.

‘‘मां, तुम जरा भी चिंता मत करो. मैं तुम पर बोझ नहीं बनूंगी. मैं कुछ न कुछ काम जरूर ढूंढ़ लूंगी,’’ मुनमुन ने कहा.

मुनमुन ने ठान लिया था कि वह बेबसी और लाचारी का दामन नहीं थामेगी, वह जीएगी और अपने मांबाबू का सहारा भी बनेगी. सफर आसान न था, क्योंकि उस के पास कोई ऐसी डिगरी नहीं थी, जिस के बल पर नौकरी कर लेती और न ही उस के पास पैसा था, जो कोई कारोबार शुरू कर पाती.

मुनमुन गांव में काम ढूंढ़ने निकलती, तो मर्दों की गंदी नजरें और फिकरे उस का पीछा करते, ‘अरे, पति को छोड़ आई, तो किसी के साथ तो बिस्तर पर सोएगी. तो हम ही क्या बुरे हैं…’

कोई कहता, ‘‘इस में ही दोष होगा, तभी तो पति मारता था. हमारी औरतें भी तो मार खाती हैं, तो क्या वे घर छोड़ कर चली गईं. आदमी अपनी जोरू को न मारे, ऐसा कभी हुआ है…’’

मुनमुन खून का घूंट पी कर रह जाती. बिना किसी कुसूर के उसे सजा मिल रही थी. लड़की हो कर कोई काम मिलना और वह भी एक पति का घर छोड़ कर आई लड़की के लिए… कोई आसान बात न थी.

तभी मुनमुन को एक सामाजिक संस्था ‘श्रमिक भारती’ के बारे में पता चला, जो केंद्र सरकार की टेरी योजना के तहत गांवों में सोलर लाइट का कार्यक्रम चलाती थी. वह उस से जुड़ गई. तब भी समाज उस पर हंसा कि देखो, एक लड़की हो कर कैसा काम कर रही है. पर मुनमुन ने किसी की परवाह नहीं की.

मां ने जब मुनमुन के इस फैसले पर सवालिया नजरों से उसे देखा, तो वह बोली, ‘‘मां, किस ने कहा कि यह काम केवल मर्द ही कर सकते हैं. अब औरतें भी किसी काम में मर्दों से कम नहीं हैं. फिर मां, कभी न कभी तो किसी को इस सोच को तोड़ना होगा. औरत क्या सिर्फ पिटने के लिए ही होती है?’’

ससुराल वालों ने जब यह सुना, तो वे बहुत बिगड़े और फौरन उसे वापस ले जाने के लिए पति आ पहुंचा.

वह बोला, ‘‘बहुत पर निकल आए हैं तेरे मायके आ कर. चल वापस, वरना मुझ से बुरा कोई नहीं होगा,’’

वह उस पर हाथ उठाने ही वाला था कि रामेश्वरी ने उस का हाथ पकड़ लिया, ‘‘खबरदार, जो मेरी बेटी को मारने की कोशिश की, तो सीधे थाने पहुंचा दूंगी.’’

मांबेटी का यह भयानक रूप देख पति वहां से भाग गया.

धीरेधीरे मुनमुन ने सोलर लाइट से जुड़ा हर काम सीख लिया और उसे यह काम करने की धुन सवार हो गई.

बस, इसी धुन में उस ने सोलर लाइट का कार्यक्रम शुरू कर दिया. वह गांवगांव जा कर सोलर लाइट, सोलर चूल्हे, सोलर पंखे लगाने लगी. उस की लगन और मेहनत देख कर गांव वालों के ताने तो बंद हो ही गए, साथ ही उस की जैसी सताई हुई और भी लड़कियां उस के साथ जुड़ गईं.

गांव की औरतों में अपने हक के लिए लड़ने की जैसे एक क्रांति सी आ गई. गांव के लोग जो उसे बुरी नजरों से देखते थे, उन्होंने उसे ‘सोलर दीदी’ के नाम से बुलाना शुरू कर दिया. गांव में सोलर लाइट खराब हो, पंखा खराब हो या कुछ और, बस लोग ‘सोलर दीदी’ को फोन मिलाते और वह पूरे जोश से अपने बैग में औजार रख अपनी स्कूटी पर दौड़ी चली जाती.

‘‘मैं बहुत खुश हूं मुनमुन कि तू अपने पैरों पर खड़ी हो गई है, लेकिन बेटी, अकेले जिंदगी काटना आसान नहीं है. तू कहे तो मैं कहीं और तेरे लिए रिश्ते की बात चलाऊं. तेरा तलाक हुए भी 3 साल हो गए हैं,’’ मां की आंखों में अपने लिए गर्व देख मुनमुन की आंखें भर आईं.

‘‘मां, तुम ने और बाबूजी ने मेरा साथ दे कर ही मुझे इस मुकाम पर पहुंचाया है. अगर तुम दोनों ही मुझे घर से निकाल देते, तो मैं कुछ भी नहीं कर पाती. बस, किसी दिन कहीं कुएं या तालाब में मरी मिलती.

‘‘और मां, एक बार शादी कर के देख तो लिया. अभी भी हमारे समाज में औरत या तो बिस्तर पर ले जाने के लिए होती है या फिर बच्चा पैदा करने के लिए. मुझे ऐसी जिंदगी नहीं चाहिए.

‘‘अब तो मैं बस तुम दोनों की सेवा करूंगी और अपनी शर्तों पर जिंदगी जीऊंगी. अभी तो मुझे काफी काम करना है. अपनी जैसी कितनी मुनमुन को राह दिखानी है,’’ मुनमुन के चेहरे पर आत्मविश्वास की जलती लौ को देख रामेश्वरी ने उसे सीने से लगा लिया.

बिसेसर पीछे खड़े उसे मन ही मन कामयाब होने का आशीर्वाद दे रहे थे.

Special Story : दादी की अनमोल नसीहत

Special Story : बचपन में मेरी दादी मुझे कहानियां सुनाया करती थीं. वे कहती थीं, ‘वक्त पड़ने पर अगर गधे को भी बाप कहना पड़े तो कोई बात नहीं.’ जब मैं थोड़ा बड़ा हुआ, तो दादी की नसीहत मुझे बकवास लगने लगी. लेकिन बाद में जबजब सरकारी बाबुओं, पुलिस वालों, छुटभैए नेताओं से अपना काम निकलवाने के लिए मुझे उन्हें ‘बाप’ कहना पड़ा, तो दादी की नसीहतों का मतलब समझ आने लगा.

दादी कहती थीं, ‘वफादारी कुत्ते से सीखो, चालाकी लोमड़ी से. याद करना तोते से, मेहनत करना चींटी से और लक्ष्य पर झपटना बाज से…’

यानी हर अच्छे काम के लिए दादी पशुपक्षियों की ही मिसाल दिया करती थीं. उन्होंने कभी आदमी की मिसाल नहीं दी. कभी यह नहीं कहा कि ईमानदारी खान साहब से सीखो, फर्ज की अहमियत तिवारीजी से, वक्त की पाबंदी वर्माजी से और सच बोलना यादवजी से.

दादी ने एक बार मुझे बताया था कि सभी प्राणियों में आदमी को सब से अच्छा कहा गया है. मैं ने जब उन से पूछा कि आदमी को किस ने और क्यों अच्छा कहा, तो वे इस बात का कोई जवाब नहीं दे सकीं.

दादी द्वारा दी गई इस जानकारी के लिए उन का पशुपक्षियों की मिसाल देना मुझे खटकने लगा था. मैं चक्कर में पड़ गया कि अगर आदमी सब प्राणियों में बेहतर है, तो उसे नसीहत करने के लिए पशुपक्षियों की मिसाल क्यों दी जा रही है?

मासूम बच्चियों को अपनी हवस का शिकार बनाना, दूसरों का माल हड़पना, दूसरों को नुकसान पहुंचाने की ताक में रहना, जो है, उस में संतोष करने के बजाय और ज्यादा की लालसा करना जैसे (अव) गुण पशु वर्ग की खूबी हो सकते हैं, तथाकथित सर्वश्रेष्ठ प्राणी के बिलकुल नहीं. लेकिन कानूनों और संविधानों के बावजूद हमारी पशुता बरकरार है.

कुदरत ने इनसान यानी आदमी को एक बना कर भेजा है, लेकिन मामला अब सिर्फ आदमी का नहीं, आदमी बनाम आदमी का हो गया है. एक वह, जो गुंडों द्वारा बहन को तंग किए जाने की शिकायत करने थाने जाते हुए भी डरता है और एक वह, जो थाने आने वाले हर आदमी को मोटा बकरा समझता है.

एक वह, जिसे तपती धूप में चौराहे पर सिर्फ इसलिए खड़ा कर दिया गया है, क्योंकि चौक से मंत्री के काफिले को गुजरना है. और एक वह, जो इस रुतबे को हासिल करने के लिए एक वोट की खातिर कभी आप के दरवाजे पर भिखारी की तरह हाथ जोड़े खड़ा था.

एक वह, जो लेदे कर धरती का भगवान बना बैठा है और एक वह, जो खाली जेब में एंडोस्कोपी, ईसीजी, यूरिन, ब्लड और स्टूल टैस्ट की रिपोर्ट धरे घर लौटते हुए इस उधेड़बुन में खोया रहता है कि साधारण बुखार की यह कौन सी पैथी है?

Short Story : इस की टोपी उस के सिर

Short Story : अपनी सासूजी और पत्नीजी के साथ सुबह का नाश्ता कर रहे थे. सासूजी अर्थशास्त्री चाणक्य की चर्चा कर रही थीं कि हमारे एक मित्र मनोजजी मुंह लटकाए आते दिखलाई दिए. सासूजी ने उस का पिचका, उतरा चेहरा देखा तो आश्चर्य हुआ क्योंकि हमेशा हंसनेबोलने वाला मनोज का चेहरा ऐसा कैसे हो रहा था. पत्नीजी ने उस से नाश्ता करने को कहा तो उस ने थोड़ी नानुकुर करने के बाद सपाटे से फकाफक खाना शुरू कर दिया. लगा, मानो महीनेभर से वह भूखा हो. खा लेने के बाद उस के चेहरे पर थोड़ी राहत दिखाई दी. उस ने मुंह पोंछते हुए कहा, ‘‘इन दिनों बहुत मंदी का दौर चल रहा है.’’

‘‘किस का?’’ पत्नीजी ने प्रश्न किया.

‘‘देश का भी और मेरा भी,’’ उस ने कहा.

सासूजी ने एक कटीली, जहरीली मुसकान बिखेरते हुए कहा, ‘‘जब तक मूर्ख जिंदा है, बुद्धिमान भूखे नहीं मर सकते.’’

‘‘क्या मतलब मम्मीजी?’’ मनोज ने आश्चर्य से प्रश्न किया.

‘‘मैं कह रही थी अगर आप के पास बुद्धि है तो केवल आप ही क्या, आप का पूरा परिवार भी भूखा नहीं मर सकता है,’’ सासूजी ने रहस्यमय ढंग से अपनी बात कही.

‘‘वह कैसे मम्मीजी?’’

‘‘अरे बेटा, इस देश में आप फटे कपड़े पहने हो और तिलक लगा लो तो भूखे नहीं मर सकते. यहां पत्थर को एक रुपए का सिंदूर पोत कर भगवान बनाया जा सकता है. ऐसे में दक्षिणा से पूरा परिवार बिना काम के पेट भर सकता है और तुम कह रहे हो कि मंदी का दौर चल रहा है?’’

‘‘आप ने कहा तो बिलकुल सच है लेकिन मैं इस मंदी से कैसे उबरूं?’’ मनोज का दीनहीन स्वर गूंजा.

पत्नीजी ने भी मोरचा संभाला, कहा, ‘‘देवरजी, मम्मी सच कह रही हैं. आप फुटपाथ पर तोता ले कर या हाथ से लिखा साइनबोर्ड लगा कर हस्तरेखा देखने का काम करने लगो तो मूर्खों की भीड़ लग जाएगी, क्योंकि सब से अधिक समाज में गरीब लोग ही मूर्ख बनते हैं.’’

‘‘तो क्या हाथ देखने लग जाऊं?’’

‘‘देवरजी, मैं बिलकुल नहीं कह रही हूं कि आप यह करें, लेकिन मंदी से उबरने का एक उपाय यह भी है. 10 बातें बताएंगे तो 3 तो सच निकलेंगी ही. यह जनता, जो सच निकला उस की अफवाह अधिक फैलाती है. और बस, आप फेमस हो जाएंगे,’’ पत्नीजी ने अपने ज्ञान का बखान किया तो मनोज बहुत खुश हो गया. हम ने रायता फैलाते हुए कहा, ‘‘दोस्त मनोज, कभी एक भी बात सच नहीं निकली तो बहुत जूते पड़ेंगे.’’

मनोज ने सुना, तो घबरा गया. पत्नीजी कहां हार मानने वाली थीं, उन्होंने तर्क दिया, ‘‘क्या आप जानते हैं कि हम एक रात में 3 से 5 हजार सपने देखते हैं, यानी एक माह में 9 लाख सपने. लेकिन कोई एक गलती से सच हो जाता है तो हम उसे ही आधार बना कर कहते हैं कि सपने सच होते हैं जबकि प्रतिशत निकाला जाए तो वह .0001 प्रतिशत सच भी नहीं होता और हम इस कम प्रतिशत का ही बखान करते रहते हैं. ठीक उसी तरह हम लोग, जो एक भविष्यवाणी सच होगी, उस का गुणगान करते रहेंगे.’’

‘‘अरे, हमें तो यह सपनों वाली बात मालूम ही नहीं थी. यदि ऐसा है तो हस्तरेखा देख कर भविष्य बताने वाली बात उत्तम और उचित है,’’ हम ने भी उस का पक्ष लिया.

सासूजी ने कहा, ‘‘मनोज पढ़ालिखा है, वह यदि फुटपाथ पर बैठ कर भविष्यवाणी करेगा तो यह क्या अच्छा लगेगा? हमें कुछ और उपाय सोचना चाहिए. यह कह कर सासूजी चिंतन की मुद्रा में आ गईं. पूरे कमरे में अजीब सी गंभीरता छा गई. थोड़ी देर बाद सासूजी ने कहा, ‘‘मनोज, तुम्हारे पास कितने रुपए हैं व्यापार करने को?’’

‘‘मम्मीजी, नाश्ते को मैं मुहताज हूं, रुपए कहां से लाऊंगा?’’

‘‘ठीक है, हम तुम्हें 1 हजार रुपए व्यापार के लिए कर्ज में देंगे,’’ सासूजी ने कहा तो मैं जोरों से हंस दिया. मैं ने कहा, ‘‘हजार रुपए में जहर नहीं आता, व्यापार कहां से शुरू होगा?’’

‘‘दामादजी, यह सब दिमाग का खेल है.’’

‘‘कैसे?’’ हम ने प्रश्न किया.

‘देखो मनोज, कुछ पैंफ्लेट छपवाने होंगे, एक बोर्ड लगाना होगा और एक कंपनी का नाम खोजना होगा.’’

‘‘जी,’’ मनोज ने आज्ञाकारी बच्चे की तरह हुंकार भरी.

‘‘तुम 1 रुपए के 10 रुपए एक महीने में दोगे, इस का विज्ञापन करना होगा,’’ सासूजी ने बताया.

‘‘मतलब, मम्मीजी?’’

‘‘तुम 4-5 युवा लड़कों को काम पर रख लो और रसीदें छपवा लो. एक कंपनी का बोर्ड अपने किराए के मकान पर लगा दो और एक टेबल व कुरसी लगा कर कार्यालय खोल लो- मनोज ऐंड कंपनी.’’

‘‘लेकिन किस की कंपनी?’’

‘‘यदि आप 1 रुपए एक माह के लिए देंगे तो हम अगले माह 10 रुपए देंगे और 10 रुपए जमा करेंगे तो 100 रुपए देंगे,’’ सासूजी ने बोलना जारी रखा हुआ था लेकिन मनोज ने बात काट कर कहा, ‘‘और 1 हजार रुपए जमा किया तो पूरे 10 हजार रुपए देंगे.’’

‘‘शटअप, मरना है क्या?’’ नाराजगी से सासूजी ने कहा.

‘‘क्या मतलब, मम्मीजी?’’

‘‘अरे पगले, जो भी हजार रुपए ले कर आए उसे समझाओ कि आप अभी इतना रुपया इन्वैस्ट मत करो, क्योंकि कंपनी नई है, कहीं भाग गई तो? आप 1 रुपया, 10 रुपया ही लगाओ. सामने वाला व्यक्ति आप की ऐसी ईमानदारी की बातें सुन कर खुश हो जाएगा. वह कम ही लगाएगा. बस, हो गया काम.’’ सासूजी ने ताली बजा कर कहा.

‘‘क्या मतलब?’’ हम तीनों की एक जैसी आवाज बाहर निकली.

‘‘अरे बेटी, सिंपल, 1 रुपए और

10 रुपए वाले को 1 महीने बाद जो हम 1 हजार रुपए दे रहे हैं उस में से पेमैंट कर देना. बस, विश्वास जम जाएगा, जो अभी हमारी बिटिया ने कहा कि नौ लाख सपनों में से एक सच होने पर लोग उस का ही विज्ञापन करते हैं, बस, यह 10-20 जमाकर्ता दूरदूर आप का प्रचार करेंगे और अगले माह हजारों ग्राहक आ जाएंगे.’’

‘‘फिर?’’

‘‘अपनी साख 3-4 माह में जमा लो और इस की टोपी, उस के सिर पर रखो और सब का भुगतान करते रहना.’’

‘‘लेकिन अंत में क्या होगा?’’

‘‘अंत में क्या होगा,’’ कुछ देर ठहर कर सासूजी ने कहा, ‘‘3 माह बाद तुम्हारे पास मूर्ख लोग 1 लाख से ले कर 10 लाख रुपए ले कर आएंगे. और 1 करोड़ रुपए होने पर तुम…’’ सासूजी ने बात अधूरी छोड़ दी.

‘‘वाह मम्मीजी, यह आइडिया तो बहुत ही बढि़या है,’’ मनोज ने खुश हो कर कहा.

कमरे में अजीब सी खुशी व्याप्त हो गई थी. परिणामस्वरूप मनोज पूरी तैयारी कर चुका था कंपनी खोलने की. सासूजी उठीं, एक हजार रुपए उसे दिए और गंभीर स्वर में कहा, ‘‘बेटा मनोज, इस तरह का लालच गरीबों को दिया जाता है. और वे बेचारे फंस जाते हैं. इस तरह का लालच मंदी के दौर में तुम जैसे ऐसे विज्ञापन देख कर पत्नी के गहने बेच कर रुपया लगा देते हैं और वह कंपनी भाग जाती है.

बेटा, तुम ऐसे पचड़े में मत पड़ना. मैं ने तो तुम्हें साजिश से अवगत कराया है. ये हजार रुपए मैं ने तुम्हें नौकरी खोजने के लिए दिए हैं. दामाद ही मेरा बेटा नहीं है, बल्कि तुम भी मेरे बेटे जैसे हो. कभी भी गलत रास्ते पर मत जाना.’’ यह कह कर सासूजी ने स्नेह से मनोज के सिर पर हाथ फेरा. सासूजी का चेहरा अचानक सास की जगह ममतामयी मां जैसा हो गया था.

Family Story : नैकसा नाई

Family Story

लेखक- ध्रूव कुमार ‘निर्भीक’

नैकसा दुखी मन से अपने गांव लौट रहा था. जुगल के बुरे बरताव ने उसे तोड़ दिया था. वह मन ही मन सोच रहा था कि वह उस के पास क्यों गया?  ऐसी क्या मजबूरी थी उस की? उस ने तो उस के घर की खैरखबर तक नहीं पूछी. मां कैसी हैं? बहन वीरो कैसी है? छोटा काकू कैसा है? कुछ भी तो नहीं पूछा जुगल ने.

उसे पता होता कि जुगल ऐसा बरताव करेगा, तो वह वहां कभी नहीं जाता. वीरो मर जाए तो मर जाए, जुगल का क्या?

नैकसा ने सोचा नहीं था कि जुगल इतना बदल जाएगा. जुगल को कितनी गरीबी में पढ़ाया, तन काटा, पेट काटा और उसे पढ़ायालिखाया, बड़ा किया. सोचा कि बड़ा बेटा है, कुछ बन गया तो घर की काया पलट जाएगी, लेकिन…

भला हो नैकसा की पत्नी नन्ही का, जो साहब से कहसुन कर जुगल को सरकारी मुलाजिम बनवा दिया. भला हो सरकार का कि उस ने रिजर्वेशन का इंतजाम कर दिया है, जिस का फायदा दिलाते हुए साहब ने भी देर नहीं की और पुलिस में सिपाही लगवा दिया.

नन्ही साहब के घर पर रोटी न बनाती, तो साहब से जानपहचान न होती. साहब नन्ही से खुश थे. उन्होंने जुगल को सरकारी नौकरी दिलवा दी थी. अब उसी जुगल को उसे मां कहने में शर्म आती है.

सरकार ने गरीब, दबेकुचले लोगों की जिंदगी के लिए ऊंचनीच, छुआछूत, भेदभाव, गरीबअमीर की खाई पाटने के लिए अनेक सुविधाएं मुहैया कराई हैं, लेकिन छुआछूत, भेदभाव, जातपांत और ऊंचनीच की खाई पटने के बजाय और भी गहरी होती जा रही है. पहले अमीर गरीब से छुआछूत, भेदभाव का बरताव करते थे, आज न जाने कितने जुगल अपने मांबाप, भाईबहन, चाचाताऊ के बीच भेदभाव शुरू कर चुके हैं.

रिजर्वेशन की सीढ़ी पर चढ़ कर सरकारी मुलाजिम बना बेटा अपने बाप को बाप, मां को मां, बहन को बहन, भाई को भाई कहने में शरमाता है. उन के पहनावे से, उन की चालढाल से, उठनेबैठने से, उन के आचारविचार से, भाषाबोली से नफरत करता है.

नैकसा ने सपने में भी नहीं सोचा था कि सरकारी मुलाजिम बनने के बाद बेटा जुगल उसे बाप मानने से इनकार करते हुए घर का नौकर बता देगा.

नैकसा ने तो सोचा था कि जब जुगल सरकारी मुलाजिम बन जाएगा तो घर की गरीबी दूर हो जाएगी और बुढ़ापे में चैन की जिंदगी गुजरेगी, लेकिन उस ने तो वीरो के बारे में भी नहीं पूछा.

वही वीरो जो हर साल भाईदूज और रक्षाबंधन पर भाई जुगल को राखी बांध कर, माथे पर तिलक कर के ही कुछ खातीपीती है. वह उसे ‘दादादादा’ कहती फिरती है. उस के आने का इंतजार करती है. लेकिन जुगल ने उस बेचारी को  झूठे मुंह पूछा तक नहीं कि कैसी है? आज वह गंभीर बीमार है. उसे इलाज की सख्त जरूरत है. वह भी ठीक होना चाहती है, लेकिन क्या वह ठीक हो कर अपनी खुशहाल जिंदगी जी पाएगी?

नैकसा दुखी और भारी मन से घर लौट आया, तो नन्ही ने पूछा, ‘‘कैसा है अपना जुगल… बहुत खुश हुआ होगा वह… बहुत सेवा की होगी उस ने…’’

नैकसा बोला, ‘‘अरी, बहुत बड़ा आदमी बन गया है वह… अब वह जुगल नाई नहीं, ठाकुर जुगल प्रताप सिंह है. अब उसे जुगल नाई मत कहना… अब तो उसे मुझे अपना बाप कहने में भी शर्म आती है.’’

‘‘क्या…?’’ चौंक कर नन्ही बोली.

‘‘मेरी बहुत बेइज्जती की है उस ने…’’ नैकसा ने कहा, ‘‘कहता था, यह हमारा नौकर है. खेत में गेहूं बो दिया है. खादपानी के लिए पैसे लेने आया है…’’

‘‘क्या…? ऐसा बोला वह? इतना बदल गया है जुगल…’’ नन्ही ने चौंक कर कहा, फिर बोली,’’ क्या इसलिए पैदा किया था उस नाशपीटे को?’’

3 भाइयों में सब से छोटा था नैकसा. 3 बच्चे थे और पत्नी नन्ही. जुगल सब से बड़ा बेटा था, वीरो म झली और काकू छोटा. जमीनजायदाद तो थी नहीं, लोगों की हजामत बना कर ही घर का खर्च चलता था.

नैकसा गांव में लोगों के बाल काटता और जब फसल आती तो खेतखेत जा कर गेहूं वगैरह अनाज के पूले इकट्ठा करता, फिर तिमाहीछमाही धड़ी लेता. धड़ी में पक्की तोल का 5 सेर अनाज आता. गांव में एक हजार परिवार थे. हर परिवार से 5 सेर तो एक हजार परिवारों से 5 क्ंिवटल अनाज जमा हो जाता. खाने के लिए तो अनाज मिल जाता, लेकिन दूसरे घरेलू खर्च के लिए पैसा नहीं था. अनाज बेच कर ही वह दूसरे खर्च चलाता था.

नैकसा की पत्नी नन्ही शहर में रहती थी और दूसरों का खाना बना कर घर चलाने में उस का सहयोग करती थी.

नन्ही शहर में एक पुलिस अफसर रमाशंकर तिवारी की कोठी में भी खाना बनाने जाती थी. वह खाना अच्छा बनाती थी, जिस से रमाशंकर खुश थे. एक दिन उस ने रमाशंकर से जुगल की नौकरी लगवाने की गुजारिश की. उन्होंने हां कह दी और मौका मिलते ही उन्होंने जुगल की सिपाही के पद पर भरती करा दी.

पुलिस में नौकरी लगते ही जुगल की शादी भी हो गई. शादी के बाद जुगल शहर में रहने लगा. उस ने अपना नाम जुगल नाई से बदल कर ठाकुर जुगल प्रताप सिंह प्रचारित कर दिया था. अब सब उसे ठाकुर साहब के नाम से बुलाते थे.

जब जुगल गांव आता तो खुद को दारोगा बताता था. नैकसा नाई भी उसे दारोगाजी कह कर और छाती फुला कर बात करता था. अब वह साधारण आदमी नहीं था. उस का बेटा दारोगा जो बन गया था. वह मन ही मन सोचता कि उस का बेटा थाने में दारोगा है. अब वह किसी के दबाव में नहीं आएगा. किसी के सामने अब वह पैसे के लिए नहीं गिड़गिड़ाएगा.

बेटे से सौ मांगेगा, तो वह हजार देगा. फिर क्यों मांगेगा किसी से? मांगने पर उस के बेटे की बेइज्जती होगी. नहीं… नहीं, वह ऐसा कोई काम नहीं करेगा, जिस से उस के बेटे की बेइज्जती हो.

एक दिन बेटी वीरो बीमार हो गई. पहले तो गांव में इलाज कराया, लेकिन जब वह ठीक नहीं हुई तो गांव वालों ने शहर ले जाने की सलाह दी. शहर ले जाने के लिए पैसों का बंदोबस्त नहीं था.

नैकसा गांव में किसी से उधार नहीं लेना चाहता था. उधार मांगेगा तो लोग क्या कहेंगे? बेटा दारोगा है और बाप कर्ज मांगता फिर रहा है, बेटी के इलाज के लिए. बेटे के पास पैसों की कमी नहीं है. हजारपांच सौ तो मिनटों में वह कमा लेता होगा. वह उस के पास जाएगा और 5-10 हजार रुपए ले आएगा.

अगले दिन ही नैकसा उस थाने में पहुंचा, जिस में जुगल तैनात था. एक पुलिस वाले ने उस से पूछा, ‘‘किस से मिलना है?’’

नैकसा ने कहा ‘‘दारोगाजी से…’’

‘‘कौन से दारोगाजी से?’’ पुलिस वाले ने सवाल किया.

नैकसा ने सरल स्वभाव में जवाब दिया, ‘‘जुगल दारोगाजी से…’’

पुलिस वालों ने एकदूसरे को देखा, फिर दूसरा पुलिस वाला बोला, ‘‘यहां तो कोई जुगल दारोगा नहीं है. हां… सिपाही जरूर है.’’

नैकसा बोला, ‘‘हांहां, वही…’’

पहले पुलिस वाले ने हंसी के लहजे में जुगल को बुलाया, ‘‘अरे दारोगाजी, आप को ये बाबा याद कर रहे हैं.’’

जुगल आया और नैकसा को देखते ही आगबबूला हो गया. उस ने नैकसा को अकेले में खूब डांटा, ‘‘यहां क्यों आ गए? करा दी न बेइज्जती. जाओ यहां से. चले आए. तमीज नहीं है जरा भी,’’ कहता हुआ जुगल नैकसा को थाने से बाहर ले जाने लगा, तो एक पुलिस वाले ने पूछा, ‘‘कौन हैं ये? क्यों डांट रहे हो ठाकुर साहब?’’

जुगल ने कहा, ‘‘नौकर है घर का. पैसा लेने आया है. खेत में गेहूं बो दिया है. अब खादपानी को पैसा चाहिए. मैं मनीऔडर भेजने वाला था, पर यह चला आया मुंह उठाए…’’

नैकसा को यह सुन कर बहुत दुख हुआ. वह तुरंत बोला, ‘‘साहब, मैं नाई हूं. कौम का खानदानी हूं.  झूठ नहीं बोलूंगा. जो बात कहूंगा सोलह आने सच कहूंगा. मैं इस का तो नौकर नहीं हूं, इस की मां का नौकर जरूर हूं. मेरी बात का यकीन न हो, तो गांव में चल कर जांच कर लो.’’

नैकसा की बात सुन कर पुलिस वाले हैरान रह गए और जुगल को नफरत से देखने लगे.

थके कदमों और हताश मन से नैकसा गांव की तरफ चल दिया.

देखतेदेखते नैकसा और जुगल की बातें पूरे थाने में फैल गईं. थाने में तैनात हर पुलिस वाले को जुगल की असलियत पता चल गई. अब उस के साथी पुलिस वालों का बरताव पहले जैसा नहीं रहा था. ठाकुर साहब का संबोधन जुगल में बदल गया था. जो पहले उस की इज्जत करते थे, पर अब आगेपीछे उस का मजाक उड़ाते थे.

एक दिन जुगल सोच में डूबा हुआ था. वह साथी पुलिस वालों के बदले बरताव के लिए खुद को कुसूरवार मान रहा था. काश, उस दिन पिताजी के साथ अच्छा बरताव करता, तो आज उस की यह हालत नहीं होती.

अगले दिन जुगल ने दारोगाजी को 15 दिन की छुट्टी की अर्जी दी, तो उन्होंने मंजूर कर ली. जुगल ने सोचा कि वह गांव जाएगा, पिताजी से माफी मांगेगा. छुट्टियों के दौरान अपना तबादला किसी दूसरे थाने में करा लेगा, फिर भविष्य में कभी ऐसी गलती नहीं करेगा.

गांव में वीरो की बीमारी बढ़ती गई. पैसे की कमी के चलते नैकसा वीरो का इलाज नहीं करा सका. उस ने इलाज के लिए किसी से उधार इसलिए नहीं मांगा कि लोग क्या कहेंगे, बेटा थानेदार है और बाप बेटी के इलाज के लिए उधार मांग रहा है.

इलाज की कमी में एक दिन वीरो ने तड़पतड़प कर दम तोड़ दिया.

वीरो की मौत की खबर रुई की तरह गांवभर में फैल गई. लोगों को पैसे की कमी के चलते वीरो की मौत का पता चला तो सभी हमदर्दी जताने लगे.

नैकसा के पास वीरो के अंतिम संस्कार के लिए पैसे का इंतजाम नहीं था. जब गांव के लोगों को पता चला तो घंटेभर में अंतिम संस्कार की तैयारी हो गई. वीरो का शव अर्थी पर कसा जाने लगा. उसी समय सेवाराम बोला, ‘‘दारोगाजी भी आ गए.’’

‘‘कौन दारोगा?’’ नैकसा ने पूछा.

‘‘अरे वही अपने जुगल…’’ सेवाराम ने बताया.

अर्थी पर वीरो के शव को कस रहे नैकसा ने शव कसना रोक दिया. जुगल वीरो के शव को देख कर हैरान रह गया. मां का रोरो कर बुरा हाल था.

अगले पल लोगों ने वीरो की अर्थी उठाने की तैयारी की तो एक ओर जुगल दूसरी ओर नैकसा ने कंधा दिया.

वीरो का अंतिम संस्कार कर के लोग लौट आए. इस बीच जुगल को वीरो की बीमारी, घर की माली हालत और नैकसा की मजबूरी का पता चला तो वह धम्म से जमीन पर गिर कर बेहोश हो गया.

जुगल के बेहोश होते ही लोगों में खलबली मच गई. बाद में किसी तरह जुगल होश में आया, तो लोगों को राहत महसूस हुई.

नैकसा को पता चला, तो लोगों की भीड़ को चीरते हुए आगे आ कर बोला, ‘‘बेटा, मु झे पता है. जिस दिन से मैं तेरे पास आया हूं, उसी दिन से तू परेशान है, लेकिन एक दिन सचाई सामने आ ही जाती है. बनावटी बातों से खून के रिश्ते नहीं मिटाए जा सकते.

‘‘जो हुआ सो हुआ बेटा. अफसोस मत कर बेटा. तू मु झे पिता माने न माने, लेकिन तू मेरा बेटा है और हमेशा रहेगा. मेरा तुझ पर कोई हक नहीं, लेकिन तेरा मुझ पर हक कोई नहीं छीन सकता. तू मेरा बेटा था और रहेगा.’’

नैकसा की बात सुन कर जुगल रोते हुए माफी मांगने लगा. नैकसा आगे बढ़ा और जुगल को सीने से लगा कर बोला, ‘‘पगले, जो हुआ सो हुआ. गलतियां बच्चों से ही होती हैं और बच्चे गलतियां नहीं करेंगे तो क्या बूढ़े करेंगे.’’

लोगों की भीड़ जा चुकी थी. जुगल को ले कर नैकसा भी अपने घर में चला गया.

Social Story : ये ईलूईलू क्या है

Social Story

लेखक- प्रिंस सईद

छेड़छाड़ की बढ़ती घटनाओं से परेशान पुलिस विभाग ने पिछले हफ्ते ‘आपरेशन मजनू पकड़’ नाम से एक खास मुहिम छेड़ी थी. स्कूलकालेज और चौकचौराहों पर सादा वरदी में पुलिस के जवान पूरी मुस्तैदी के साथ ड्यूटी दे रहे थे.

इस मुहिम को कामयाब बनाने के लिए महिला पुलिस वालों की भी मदद ली गई थी. उन के जिम्मे यह काम था कि वे तितली बन इधरउधर मंडराती फिरें, ताकि जैसे ही छेड़छाड़ करने वाले आदतन उन्हें छेड़ें, वे उन्हें धर दबोचें.

मुहिम के तहत जिन महिला पुलिस वालों की मदद ली जा रही थी, उन्हें छिड़ने लायक बनाने के लिए हफ्ते में 2 बार ब्यूटी पार्लर ले जाने का इंतजाम भी पुलिस विभाग के जिम्मे था.

इस की सूचना जैसे ही महिला पुलिस वालों को लगी, वे इस काम के लिए फौरन तैयार हो गईं. उन का उतावलापन देख कर मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि मां बनने के सुख से ज्यादा मजा शायद छिड़ने के सुख में है.

‘आपरेशन मजनू पकड़’ के दौरान पुलिस वालों की मसरूफियत बढ़ गई थी. हर आधे एक घंटे में किसी मजनू को अपनी गिरफ्त में लिए कोई सिपाही थाने पहुंच रहा था, तो मजनुओं के मातापिता का गिरतेपड़ते थाने पहुंचने और ‘लेदे’ कर अपने लाल को थाने से बाहर निकालने का सिलसिला भी जारी था.

कल की ही बात है. मेरे सामने एक सिपाही मरियल से एक लड़के को पकडे़ थाने पहुंचा और उसे दारोगा के सामने करते हुए बोला, ‘‘देखो साहब, इस ने ईयरफोन लगाया हुआ है.’’

मैं ने देखा, वह हियरिंग एड यानी सुनने की मशीन थी. मैं बोला, ‘‘यह तो हियरिंग एड है.’’

लेकिन दारोगा कहां मेरी मानने वाला था. मु झे  िझड़कते हुए बोला, ‘‘तुम नहीं सम झोगे. यह ईयरफोन ही है. अपने इंडिया में भी आजकल ऐसे ईयरफोन बनने लगे हैं, जो दिखते हियरिंग एड जैसे हैं, लेकिन होते ईयरफोन हैं.’’

इस के जवाब में मैं कुछ कहने ही जा रहा था कि तभी एक दूसरा सिपाही एक और मजनू को लिए हाजिर हुआ. आते ही वह बोला, ‘‘साहब, इसे ईलूईलू और ओएओए एकसाथ हुआ है.’’

‘‘अच्छा…’’ कहते हुए दारोगा उठा और उठते ही उस नौजवान को एक  झापड़ रसीद कर दिया. बाद में पता चला कि वह गूंगा था. उस के मुंह से  ‘आबू… आबू’ निकला, जो शायद सिपाही को ‘ओएओए’ या ‘ईलूईलू’ सुनाई दिया था.

एक सिपाही ने तो हद ही कर दी. उसे कोई और नहीं मिला, तो वह एक बूढे़ को ही पकड़ लाया था. मेरे यह पूछने पर कि इस ने क्या किया है? वह बोला, ‘‘इसे ‘ईलूईलू’ का बाप हो गया है. लोग तो हाथों में मेहंदी लगाते हैं, यह बालों में मेहंदी चुपड़ कर गर्ल्स कालेज के सामने से गुजर रहा था.’’

यह सब चल ही रहा था कि अचानक एक ऐसी घटना घटी, जिस से थाने का पूरा माहौल ही बदल गया था. एक नौजवान एक जवान लड़की को पकड़े थाने में घुसा.

वह गुस्से में बुरी तरह तमतमाया हुआ था. लड़की को दारोगा के सामने करते हुए वह गुस्से में बोला, ‘‘साहब, यह लड़की मेरे साथ जबरदस्ती कर रही थी.’’

‘‘क्या…?’’ दारोगा समेत वहां मौजूद सभी लोग चौंक गए.

‘‘जी हां साहब,’’ वह कहने लगा, ‘‘बाजार में एक पान के ठेले पर मैं रुक गया. पान वाले से मैं कुछ मांग ही रहा था कि अचानक मेरी नजर इस पर पड़ी.

‘‘यह मु झ से थोड़ी दूर खड़ी अजीब सी नजरों से मु झे घूर रही थी. मैं सकपका गया और दूसरी ओर देखने लगा. तभी यह मेरे करीब आई और आसपास मंडराने लगी.

‘‘मैं ने फिर भी इस की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया, तो यह मु झे आंख मार कर इशारे करने लगी.

‘‘मैं ने सोचा कि यह ऐसे नहीं मानेगी. इसे तो सबक सिखाना ही पड़ेगा. सो, मैं इसे यहां ले आया.’’

‘‘गुड…’’ दारोगा बोला, ‘‘लेकिन, यह तो बताओ, जब यह खुद छिड़ना चाह रही थी तो तुम ने इसे छेड़ा क्यों नहीं? क्या वजह थी?’’

‘‘मैं कोई ऐसावैसा लड़का नहीं हूं साहब,’’ वह बोला, ‘‘खानदानी हूं. अगर यह जरा ढंग की होती तो कोई बात भी होती.’’

‘‘अच्छा, खैर…’’ दारोगा उस से बोला, ‘‘तुम जाओ. हम इस की खबर लेते हैं,’’ कह कर दारोगा ने उस लड़के को चलता कर दिया. जब वह चला गया, तो दारोगा उस लड़की से बोला, ‘‘मैं ने कहा था न कि मुहिम पर जाने से पहले ब्यूटी पार्लर जरूर जाना, लेकिन तुम नहीं मानी…’’

मैं हैरान हो कर बोला, ‘‘यह ब्यूटी पार्लर का क्या चक्कर है?’’

‘‘ऐ मिस्टर…’’ दारोगा को जब एहसास हुआ कि मैं उस की बातें सुन रहा हूं, तो मु झे घुड़क कर बोला, ‘‘तुम अभी तक यहीं खड़े हो? भागोे यहां से.’’

दारोगा की घुड़की सुन कर मैं ने थाने से निकल जाने में ही भलाई सम झी. क्या पता, दारोगा मु झ पर ही इस लड़की को छेड़ने का इलजाम लगा दे.

थाने से निकल कर मैं सीधा घर पहुंचा. लिखने के लिए मुझे कहीं से कोई मसाला नहीं मिल पाया था, इसलिए खुद पर गुस्सा आ रहा था. बीवी चुन्नू को नहला कर बाहर निकली थी और उस के बाल पोंछ रही थी. मैं वहीं एक कुरसी पर पसर गया.

बीवी और चुन्नू की नजर अब तक मु झ पर नहीं पड़ी थी. मैं आंखें बंद किए सोच में डूबा हुआ था कि तभी चुन्नू के एक वाक्य से मु झे हजार वाट का करंट सा लगा. वह अपनी मां से पूछ रहा था, ‘‘मम्मी, ये ईलूईलू क्या है?’’

उस की मम्मी एक पल चुप रही, फिर बोली, ‘‘बेटा, ये ईलूईलू एक तरह की इल्ली का नाम है. जिस तरह इल्लियां सागसब्जियों को खा कर खराब कर देती हैं, उसी तरह यह बीमारी भी आदमी को खोखला कर देती है.’’

यह सुन कर चुन्नू बोला, ‘‘मम्मी, जब आप को ईलूईलू का मतलब मालूम है और यह इतनी खतरनाक बीमारी है, तो आप पापा को इस के बारे में क्यों नहीं बता देतीं?’’

‘‘तेरे पापा जानते हैं बेटा कि ईलूईलू क्या होता है,’’ बीवी ने यह वाक्य पूरे यकीन से कहा था.

‘‘नहीं मम्मी…’’ चुन्नू कह उठा, ‘‘पापा को नहीं मालूम कि ईलूईलू क्या होता है? अगर उन्हें मालूम होता, तो वे रूबी आंटी से क्यों पूछते कि ये ईलूईलू क्या है?’’

‘‘रूबी आंटी से?’’ बीवी समेत मेरे कान भी खड़े हो गए थे.

‘‘हां, मम्मी. कल पापा जब मु झे ले कर स्कूल जा रहे थे, तो रास्ते में रूबी आंटी मिली थीं. जब वे मु झ से प्यार कर रही थीं, तो पापा उन से पूछ रहे थे कि ये ईलईलू क्या है, ये ईलूईलू…’’

चुन्नू का वाक्य पूरा होने से पहले ही मैं वहां से गायब हो चुका था.

थोड़े दिनों बाद ही जब ‘आपरेशन मजनू पकड़’ पूरी तरह खत्म हो गया, यहां तक कि उस मुहिम का कोई जिक्र भी अब कहीं सुनाई नहीं दे रहा था, तब एक दिन अचानक अपने शहर की बदली हुई रंगत देख कर मेरे होश गुम हो गए.

मैं दौड़तेभागते सीधा थाने पहुंचा. दारोगा अपनी कुरसी पर आंखें बंद किए पड़ा था. मैं ने उस का हाथ पकड़ा और तकरीबन अपनी ओर खींचते हुए बोला, ‘‘साहब, जल्दी चलिए. आज तो गजब हो गया है.’’

‘‘यह तो बताओ कि आखिर हुआ क्या है?’’ दारोगा अपना हाथ छुड़ाते हुए बोला, ‘‘इतने हड़बड़ाए हुए क्यों हो?’’

‘‘बात ही कुछ ऐसी है साहब…’’ मैं बोला, ‘‘आज पता नहीं शहर के लड़केलड़कियों को क्या हो गया है? जिसे देखो, वही अपने हाथ में गुलाब लिए एकदूसरे के पीछे भाग रहा है.

‘‘इतना ही नहीं, कुछ लोग जुलूस की शक्ल में  झंडाबैनर लिए जोशीले नारे लगाते हुए घूम रहे हैं. वे नारा लगा रहे थे कि हम अपनी संस्कृति के साथ खिलवाड़ नहीं करने देंगे.

‘‘साहब, मुझे तो ऐसा लगता है कि किसी ने कहीं किसी को जबरदस्त तरीके से छेड़ दिया है. कहीं बलवा न हो जाए…’’

मु झे लग रहा था कि मेरी बातें सुन कर दारोगा हड़बड़ा कर उठेगा, सिपाही से जीप निकालने के लिए कहेगा और मुझे साथ ले कर जाएगा.

लेकिन मेरी उम्मीद के उलट वह अपनी जगह पर शांत बैठा मुसकरा रहा था. उस के चेहरे पर ठीक वैसे ही भाव थे, जैसे आमतौर पर हर उस आदमी के चेहरे पर होते हैं, जो अपने सामने वाले को बेवकूफ सम झता है.

यह देख कर मैं सकपका गया. मेरी हालत देख कर दारोगा बोला, ‘‘बेवकूफ, आज 14 फरवरी है. आज तो किसी पर भी हम छेड़छाड़ का आरोप नहीं लगा सकते. यह सम झ लो कि आज के दिन छेड़छाड़ को अघोषित सरकारी छूट मिली हुई है.’’

‘‘और वह जूलूस… वह नारा कि ‘हम अपनी संस्कृति के साथ खिलवाड़ नहीं होने देंगे’ क्या था?’’ मैं दबी जबान में बोला.

‘‘तुम्हारी तरह के ही बेवकूफ हैं वे लोग भी…’’ दारोगा दोटूक लहजे में बोला, ‘‘जिन्हें अपने मांबाप और घरपरिवार की मानमर्यादा की चिंता नहीं, उन्हें देश की, संस्कृति की दुहाई दे रहे हैं. इस से भला आज के लोग क्या सबक लेंगे?’’

मैं चुपचाप थाने से बाहर निकल आया… और करता भी क्या?

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