"ओ ओ ऊषा, उठ जा बेटी. देख तेरे भाई ने गोबर और मिट्टी की पतली गार बना दी है. अब बस घर लीपना रह गया है. त्योहार पर गलीज घर अच्छा नहीं लगता है.’’

मां का इतना कहना था कि ऊषा झट से उठ बैठी. इस बार उस ने अपनी मां से कह रखा था कि पूरे घर को वही लीपेगी और दीवाली से पहले उसे एकदम नया चमचमाता कर देगी.

ऊषा ने अपना कहा पूरा भी किया. अपने भाई की मदद से उस ने पूरा दिन घर की साफसफाई में लगाया और उस की काया ही पलट दी, वह भी बहुत कम खर्च में. एक झाड़ू, एक बालटी, मग, पानी, पोंछा और दोनों भाईबहन की मेहनत.

त्योहार की उमंग ही ऐसी होती है. अगर धार्मिक कर्मकांड से अलग कर दो तो त्योहार घर, महल्ले, गली, गांवशहर को चमकाने के मकसद से बनाए गए हैं. पूरे साल में कुछ दिन ऐसे चुन लिए जाते हैं, जब हम अपनों से मिलते हैं, पकवान बनाते हैं, मेले में जाते हैं, खरीदारी करते हैं और उन का मजा ले कर तरोताजा हो जाते हैं.

गांव में कच्चा घर हो या कच्ची बस्ती में झोंपड़ी या फिर छोटा मकान, दीवाली जैसे बड़े त्योहार पर हर कोई साफसफाई पर खास ध्यान देता है.

फरीदाबाद की राजीव कालोनी में रहने वाला सूरज कुमार दीवाली पर खुद अपने घर की साफसफाई करता है. घर छोटा है, पर समय तो लगता है.

सूरज ने बताया, ‘‘सफाई करने से पहले थोड़ी प्लानिंग कर लेनी चाहिए. अगर सफेदी नहीं करानी है तो अच्छी बात है, पर इस के बावजूद दीवारों की सफाई जरूर करनी चाहिए. एक बड़े कटोरे में ब्लीच पाउडर घोल लें. इस से जहांजहां मकड़ी के जाले दिखें, उन्हें साफ कर दीजिए.

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