पिछले साल की बात है. मैं अपने गांव रत्ता खेड़ा (सफीदों, हरियाणा) गया था. दोपहर के समय वहां एक आदमी साइकिल पर गरमागरम पैटीज और बर्गर बेच रहा था. मतलब, गांव के माहौल में जंक फूड की ऐंट्री हो चुकी है. ऐसी चीजें आमतौर पर बच्चों को ज्यादा लुभाती हैं और अगर गांव की गली में आप के घर के सामने बर्गर वगैरह बिक रहे हैं, तो समझ लीजिए कि मोटापा भी कहीं आसपास ही है.

यह बड़े अफसोस और हैरत की बात है कि गांवदेहात के बच्चों में कुपोषण की समस्या तो पहले से ही फैली हुई है, अब मोटापा भी दस्तक दे चुका है. दिसंबर, 2020 में जारी नैशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 5 के आंकड़ों के मुताबिक, भारत के गांवों में मोटापे के मामलों में काफी बढ़ोतरी हुई है.

आज से तकरीबन 30-40 साल पहले गांवदेहात में बहुत कम लोग ऐसे दिखते थे, जिन के पेट बाहर हों. जो लोग खेतीबारी से जुड़े थे, वे तो मोटे हो ही नहीं पाते थे. औरतें भी इतना ज्यादा शारीरिक काम करती थीं कि मोटापा उन से कोसों दूर रहता था, पर अब वहां के मर्दऔरतों का लाइफ स्टाइल इतना ज्यादा सुस्त हो चुका है कि वे मोटापे की गिरफ्त में आ गए हैं. खेतखलिहान मशीनों के सहारे फसल पैदा कर रहे हैं और लोग घर बैठे मोटे हो रहे हैं. यही वजह है कि अब गांवदेहात में भी ब्लड प्रैशर, डायबिटीज, सर्वाइकल जैसी शहरी बीमारियों के मरीज बढ़ते जा रहे हैं.

गांवदेहात में मोटापे की वजह यह भी है कि अब लोग मोटा अनाज खाना बंद कर चुके हैं. भारत में हरित क्रांति के बाद चावल और गेहूं की इतनी ज्यादा पैदावार बढ़ी है कि लोग इन्हीं का सेवन करने लगे हैं.इस के अलावा शहरों से सटे गांवों का माहौल भी शहरों जैसा ही हो चुका है. वहां मोटा अनाज कब मोमोज में बदल गया, पता ही नहीं चला.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 महीना)
USD2
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...