बंटी ने उस से आंखें खोलने को कहा, मगर सुखदेवी हिम्मत नहीं कर सकी. उस के दोबारा कहने पर सुखदेवी ने अपनी पलकें उठाईं और तुरंत झुका लीं. तभी बंटी ने उस की आंखों को चूम लिया. सुखदेवी घबरा गई. उस ने वहां से उठना चाहा. मगर बंटी ने उसे उठने नहीं दिया. वह शर्म के मारे कांपने लगी. उस के होंठों की कंपकंपाहट से बंटी अच्छी तरह वाकिफ था. मगर वह उसी समय अपने प्यार का इजहार कर देना चाहता था.
तभी उस ने सुखदेवी की कलाई पकड़ कर कहा, ‘‘मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं, मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता, मैं सचमुच तुम से बहुत प्यार करता हूं.’’
बंटी की बात सुन कर सुखदेवी आश्चर्यचकित रह गई. उस ने बंटी को समझाना चाहा, मगर बंटी अपनी जिद पर ही अड़ा रहा. सुखदेवी ने कहा, ‘‘बंटी, मैं तुम्हारी बहन हूं. हमारा प्यार कोई कैसे स्वीकार करेगा.’’
मगर बंटी ने इन सब बातों को खारिज करते हुए सुखदेवी को अपनी बांहों में समेट लिया और प्यार से उस के होंठों पर अपने प्यार की मोहर लगा दी.
सुखदेवी के लिए यह किसी पुरुष का पहला स्पर्श था, जिस ने उसे मदहोश कर दिया और वह बंटी की बांहों में कसमसाने लगी. सुखदेवी चाह कर भी अपने आप को उस से अलग नहीं कर पा रही थी. कुछ क्षणों तक चले इस प्रेमालाप से सुखदेवी मदमस्त हो गई, तभी अचानक बंटी उस से अलग हो गया. सुखदेवी तड़प उठी. बंटी के स्पर्श से छाया खुमार जल्दी ही उतरने लगा. वह बिना कुछ कहे घर के दरवाजे की तरफ बढ़ी तो पीछे से बंटी ने उसे कई आवाजें लगाईं, मगर सुखदेवी नजरें झुकाए चुपचाप बाहर चली गई.
बंटी घबरा सा गया. उस के दिल में हजारों सवाल सिर उठाने लगे. वह इस दुविधा में फंसा रहा कि सुखदेवी उस का प्यार ठुकरा न दे या फिर ताऊताई से उस की इस हरकत के बारे में न बता दे. इसी सोच में बंटी परेशान रहा, वह पूरी रात सो न सका, बस बिस्तर पर करवटें बदलता रहा.
उधर सुखदेवी का हाल भी बंटी से जुदा न था. वह भी पूरे रास्ते बंटी द्वारा कहे हर लफ्ज के बारे में सोचती रही. घर पहुंच कर वह बिना कुछ खाएपीए अपने बिस्तर पर लेट गई. मगर उस की आंखों में नींद कहां थी.
बंटी का प्यार दस्तक दे चुका था. वह बिस्तर पर पड़ीपड़ी करवटें बदल रही थी. सुखदेवी भी अपनी भावनाओं पर काबू न रख पाई और वह भी बंटी से प्यार कर बैठी. अपने इस फैसले को दिल में लिए सुखदेवी बहुत बेकरारी से सुबह का इंतजार करने में लगी रही.
पूरी रात आंखोंआंखों में कटने के बाद सुखदेवी ने सुबह जल्दीजल्दी घर का सारा काम निपटाया. फिर मां को बता कर बंटी के घर चली गई. सुखदेवी के कदम खुदबखुद आगे बढ़ते जा रहे थे. कभी वह बंटी के प्रेम के बारे में सोचती तो कभी समाज व लोकलाज के बारे में, जाते वक्त कई बार उस ने वापस लौटने की सोची, मगर हिम्मत न जुटा सकी.
वह बंटी के उस जुनून को भी नहीं भुला पा रही थी. क्योंकि कहीं न कहीं उस के दिल में भी बंटी के लिए प्रेम की भावना उछाल मार रही थी. इसी सोचविचार में वह बंटी के घर के दरवाजे पर पहुंच गई लेकिन अंदर जाने की हिम्मत न जुटा सकी. तभी बंटी की नजर उस पर पड़ गई और उसे अंदर जाना ही पड़ा.
उधर बंटी का चेहरा एकदम पीला पड़ा हुआ था. एक रात में ही ऐसा लग रहा था जैसे उस ने कई दिनों से कुछ खायापीया न हो. उस की आंखें लाल थीं, जिस से साफ पता चल रहा था कि वह न तो रात भर सोया है और न ही कुछ खायापीया है.
उस की आंखों को देख कर सुखदेवी समझ गई कि वह बहुत रोया है. सुखदेवी को आभास हो चुका था कि बंटी उस से अटूट प्रेम करता है.
उस ने आते ही बंटी से पूछा कि वह रोया क्यों था? बस फिर क्या था, इतना सुनते ही बंटी की आंखें फिर छलक आईं. उस की आंखों से छलके आसुंओं ने सुखदेवी को इस दुविधा में डाल दिया कि अब उस के मन से समाज की सोच और घर वालों का डर निकल चुका था. वह उस से लिपट गई और उस के चेहरे को चूमने लगी.
उस ने अपने हाथों से बंटी को खाना खिलाया. फिर दोनों एकांत कमरे में बैठ गए. तन्हाई के आलम में बंटी से रहा न गया और उस ने सुखदेवी को अपनी बांहों में भर लिया, सुखदेवी ने विरोध नहीं किया.
सुखदेवी को इस से पहले कभी ऐसे एहसास का अनुभव नहीं हुआ था. बंटी का हर स्पर्श उस की मादकता को और भड़का रहा था. उस दिन बंटी ने सुखदेवी को पूरी तरह पा लिया.
सुखदेवी को भी यह अनुभव आनंदमई लगा. उसे वह सुख प्राप्त हुआ जो पहले कभी नहीं हुआ था. उस दिन के बाद सुखदेवी के मन में भी बंटी के लिए प्यार और बढ़ गया. अब उस के लिए बंटी ही सब कुछ था.
एक बार जिस्मानी ताल्लुकात कायम हुआ तो यह सिलसिला चलता रहा. दोनों घंटोंघंटों बातें करते. दोनों के लिए एकदूसरे के बगैर रहना मुश्किल होता जा रहा था.
एक दिन उन के प्यार का भेद उन के परिजनों के सामने खुला तो कोहराम सा मच गया. दोनों को समझाया गया कि उन के बीच खून का संबंध होने के कारण उन की शादी नहीं हो सकती, लेकिन वे प्रेम दीवाने कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे.
परिजनों के विरोध से दोनों परेशान रहने लगे. इसी बीच बंटी के घर वालों ने उस की शादी बदायूं जनपद के गांव तिमरुवा निवासी एक युवती से तय कर दी. शादी की तारीख तय हुई 26 जून, 2020. इस से सुखदेवी तो परेशान हुई ही बंटी भी बेचैन हो उठा. बेचैनी में वह काफी देर तक सोचता रहा, फिर उस ने फैसला कर लिया कि वह अब अपने प्यार को ले कर कहीं और चला जाएगा, जहां प्यार के दुश्मन उन को रोक न सकें.
अपने फैसले से उस ने सुखदेवी को भी अवगत करा दिया. सुखदेवी भी उस के साथ घर छोड़ कर दूर जाने को तैयार हो गई.
शादी की तारीख से एक दिन पहले 25 जून, 2020 को बंटी सुखदेवी को घर से ले भाग गया. उन के भाग जाने की भनक दोनों के घर वालों को लग गई. उन्होंने तलाशा लेकिन कोई पता नहीं चला.
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