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बंटी की अजीब सी स्थिति थी. उस का दिमाग चेतनाशून्य हो चला था. मन में तूफान सा मचा हुआ था. यही तूफान सा चल रहा था. बेचैनी का आलम यह था कि कभी बैठ जाता तो कभी उठ कर चहलकदमी करने लगता. अचानक उस का चेहरा कठोर हो गया, जैसे किसीफैसले पर पहुंच गया हो, लगा जैसे उस फैसले के अलावा कुछ हो ही न सकता हो.

बंटी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के संभल जिले के थाना धनारी के गांव गढ़ा में रहता था. उस के पिता का नाम बिन्नामी और माता का नाम शीला था. बिन्नामी खेतीकिसानी का काम करते थे.

22 वर्षीय बंटी इंटर पास था. उस के बड़े भाई संदीप का विवाह हो चुका था. बंटी से छोटे 2 भाई तेजपाल और भोलेशंकर के अलावा छोटी बहनें कश्मीरा, सोमवती और राजवती थीं.

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उस के पड़ोस में उस के ताऊ तुलसीदास रहते थे. परिवार में उन की पत्नी रमा देवी और 8 बेटे थे. बेटी एक ही थी सुखदेवी, जो सब भाइयों से छोटी थी.

रिश्ते में बंटी और सुखदेवी तहेरे भाईबहन थे. बचपन से दोनों साथ खेलेघूमे थे. दोनों को एकदूसरे का साथ खूब भाता था. समय के साथ बचपन कब जवानी के प्यार की तरफ बढ़ने लगा, उन को एहसास भी नहीं हुआ.

जवान होती सुखदेवी के सौंदर्य को देखदेख कर बंटी आश्चर्यचकित था. सुखदेवी पर छाए यौवन ने उसे आकर्षक युवती बना दिया था. उस के नयननक्श में अब गजब का आकर्षण पैदा हो गया था.

उस के गालों पर उतरी लाली ने उसे इतना आकर्षक बना दिया था कि बंटी खुद पर काबू न रख सका और उसे पाने को लालायित हो उठा. उस के छरहरे बदन में यौवन की ताजगी, कसक और मादकता थी.

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