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लेखक- अंजुम फारुख

इंसपेक्टर जावेद पेशावर के एक थाने में अपने 2 सहयोगियों सबइंसपेक्टर सलीम और सबइंसपेक्टर जाकिर के साथ बैठा किसी केस पर बातें कर रहा था, तभी एक युवक थाने में दाखिल हुआ. उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. वह बहुत परेशान दिखाई दे रहा था. इंसपेक्टर जावेद ने युवक से पूछा, ‘‘कहिए जनाब, मैं आप की क्या सेवा कर सकता हूं.’’

युवक बोला, ‘‘जी, मेरा नाम शेख मजीद है. मैं इसलामाबाद में रहता हूं और मेरा टेक्सटाइल्स का कारोबार है. मैं अपने कारोबार के सिलसिले में अकसर एक जगह से दूसरी जगह आताजाता हूं.’’

‘‘वो तो ठीक है, मजीब साहब. आप पहले अपनी समस्या बताएं.’’ सबइंसपेक्टर जाकिर ने शेख मजीद से पूछा.

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शेख मजीद कुरसी पर बैठते हुए बोला, ‘‘मैं इसी पौइंट पर आ रहा हूं. मैं जहां कहीं भी आताजाता हूं, एक आदमी मेरा पीछा करता रहता है.’’

सबइंसपेक्टर सलीम ने कागजकलम संभाल लिया था, वह शेख मजीद से बोला, ‘‘उस का हुलिया बताइए?’’

‘‘वह छोटे कद का गोलमटोल सा आदमी है और स्टील के फ्रेम का चश्मा लगाता है. वह पिछले 2 महीने से किसी भूत की तरह मेरा पीछा कर रहा है. मुझे उस से बचा लीजिए इंसपेक्टर साहब.’’

शेख मजीद की बातें सुन कर इंसपेक्टर जावेद ने कहा, ‘‘आप बिलकुल परेशान मत होइए. सब ठीक हो जाएगा. आप अपनी बात जारी रखें.’’

शेख मजीद बोला, ‘‘इंसपेक्टर साहब, अगर वह आदमी सिर्फ मेरा पीछा कर रहा होता, तो मुझे ज्यादा परेशानी नहीं होती. लेकिन मेरा पीछा करने के साथसाथ उस के पत्रों का सिलसिला भी जारी है. मेरा खयाल है, वह कोई बहुत खतरनाक आदमी है और कभी भी मौका पा कर मुझे नुकसान पहुंचा सकता है.’’

‘‘आप शुरू से पूरी बात बताएं.’’

‘‘सर, इस मामले की शुरुआत तब हुई, जब मैं एक दिन अपने मकान की दूसरी मंजिल पर बैठा मोबाइल फोन पर किसी से बात कर रहा था. अचानक एक पत्थर खिड़की का शीशा तोड़ता हुआ मेरी मेज के निकट आ गिरा. मैं ने घबरा कर पत्थर की ओर देखा, तो मेरी नजरें उस से चिपक कर रह गईं. क्योंकि पत्थर के साथ कागज की एक पर्ची भी बंधी थी.’’ फिर शेख मजीद ने अपनी जेब से वह पर्ची निकाल कर इंसपेक्टर जावेद की ओर बढ़ा दी.

इंसपेक्टर जावेद ने पर्ची को बहुत गौर से देखा. पर्ची किसी सस्ती नोटबुक से फाड़ी गई थी और उस के अक्षरों को किसी समाचार पत्र से काटकाट कर शब्दों का रूप दिया गया था. पर्ची में सिलवटें पड़ी हुई थीं. उस पर्ची पर दिनांक 20 अगस्त भी अंकित था, जो समाचार पत्र से काट कर चिपकाया गया था.

पर्ची पर लिखा था ‘कल तुम ने गली में जो कुछ देखा है, उसे भूल जाओ. तुम्हारी याद्दाश्त तुम्हारे लिए हानि की वजह बन सकती है. मैं तुम्हारी निगरानी करता रहूंगा.’

उस पर्ची को देखने के बाद इंसपेक्टर जावेद ने उसे दोनों सबइंसपेक्टरों की ओर बढ़ा दिया.

सबइंसपेक्टरों ने पूछा, ‘‘मजीद साहब, आप ने गली में क्या देखा था?’’

‘‘कुछ नहीं, मैं ने कुछ देखा हो तभी न. इसीलिए पत्र का मतलब मेरी समझ में नहीं आया.’’ शेख मजीद बोला, ‘‘पहले मुझे लगा था कि किसी बच्चे की शरारत होगी. मगर जब मैं ने खिड़की से झांक कर बाहर देखा तो कोई बच्चा नजर नहीं आया. हां, गली में एक युवक और युवती जरूर आपस में बातें कर रहे थे.

‘‘उन से कुछ ही दूरी पर एक पुलिस वाला टहलता हुआ जा रहा था और एक खंभे के पास छोटे कद का एक गोलमटोल सा आदमी खड़ा था. उस ने स्टील के फ्रेम का चश्मा लगा रखा था. उस के हाथ में चहलकदमी करने वाली छड़ी थी. मेरी निगाहें उसी आदमी पर जम कर रह गईं.’’

शेख मजीद कुछ देर के लिए रुका, फिर बोला, ‘‘उस आदमी का चेहरा मेरे दिलोदिमाग में इस तरह बैठ गया कि मुझे घबराहट होने लगी. मुझे लगा कि मैं खतरे में हूं, इसलिए मुझे यह शहर छोड़ देना चाहिए. इसी के मद्देनजर मैं ने हवाई जहाज से क्वेटा जाने की सीट बुक करवा ली.

‘‘अगले दिन मैं हवाई जहाज में सवार हुआ और अपनी सीट पर सो गया. एयरपोर्ट पर हवाई जहाज से उतरते समय मैं ने देखा कि वह गोलमटोल सा आदमी भी उतर रहा है. यह देखते ही मेरी सांस रुक गई. पहले तो मैं ने समझा कि यह इत्तफाक हो सकता है, लेकिन जब दूसरे दिन होटल के कमरे में दरवाजे के नीचे से एक पत्र फेंका गया तो मुझे कुछ सोचना पड़ा.’’

शेख मजीद ने वह पत्र इंसपेक्टर जावेद की ओर बढ़ा दिया. यह पत्र भी अखबार से अक्षरों को काट कर, फिर कागज पर चिपका कर तैयार किया गया था. पत्र में लिखा था ‘खामोशी में ही भलाई है.’

इंसपेक्टर जावेद उस पत्र को मेज पर रख कर बोला, ‘‘आप अपनी बात जारी रखें, मजीद साहब.’’

‘‘इस वाक्य ने मुझे बुरी तरह डरा दिया था.’’ शेख मजीद बोला, ‘‘मैं जल्दीजल्दी होटल बदलता रहा. क्या बताऊं कहांकहां भटकता फिरा. मैं ने कराची के एक होटल में कमरा ले लिया. वहां एक हफ्ता आराम से रहा. मैं ने समझा था कि मुझे उस आदमी से छुटकारा मिल गया.

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‘‘लेकिन यह मेरी गलतफहमी थी. जल्द ही मुझे कुरियर से एक पत्र मिला. यह पत्र भी पहले के 2 पत्रों जैसा था. उस में लिखा था ‘याद रखो, तुम्हें वह सब भूलना है.’ उस पत्र से मैं दहल गया.’’

शेख मजीद कुछ क्षण के लिए रुका, फिर इंसपेक्टर जावेद की ओर देखते हुए आगे बोला, ‘‘उसी दिन डाइनिंग हाल में नाश्ते के समय वह आदमी मुझे फिर दिखाई दिया. वह मेरी मेज से 10 फुट दूर एक मेज पर बैठा था. मेरे बैठते ही वह उठ कर बाहर जाने लगा. मैं ने उस आदमी के बारे में पूछा कि वह कौन है तो पता चला कि उस का नाम अफजाल है और वह कमरा नंबर 402 में ठहरा हुआ है.

‘‘नाश्ता करने के बाद मैं रिसैप्शन पर गया और कस्टमर्स का रजिस्टर देखा. मुझे पता चला कि उस ने 10 मिनट पहले होटल छोड़ दिया है.’’ शेख मजीद अपनी कहानी सुना रहा था या दर्द बयां कर रहा था, उस के चेहरे से समझना मुश्किल था.

‘‘मजीद साहब, इन पत्रों को ले कर आप ने पुलिस से संपर्क तो किया होगा.’’ इंसपेक्टर जावेद ने पूछा.

‘‘नहीं.’’ शेख मजीद ने कहा.

‘‘क्यों?’’ सबइंसपेक्टर सलीम ने उस के चेहरे पर नजरें गड़ा दीं.

‘‘मैं इन पत्रों को उस आदमी का पागलपन समझ रहा था. मैं सोच रहा था कि वह एक दिलचस्प खेल खेल रहा है कि क्या मैं उस से पीछा छुड़ा पाता हूं या नहीं. इसलिए मैं ने तब पुलिस से संपर्क नहीं किया. लेकिन जब देखा कि मामला गंभीर हो रहा है तो मैं ने आज थाने की शरण ली.’’

शेख मजीद ने आगे बताया, ‘‘उस के बाद मैं हैदराबाद, मुलतान और लाहौर गया. हर जगह हर शहर में उस आदमी की शक्ल दिखाई दी. कई बार तो मैं जिस होटल में ठहरता था, वह वहां भी नजर आ जाता था. यही नहीं, उस के द्वारा भेजे जाने वाले पत्रों का सिलसिला भी जारी रहा.

‘‘कई पत्रों में सिर्फ उस दिन की तारीख लिखी होती. मैं चाहता था कि उस आदमी से मिल कर साफसाफ बात कर लूं. लेकिन फिर मैं ने सोचा कि अगर उस ने पत्रों के बारे में इनकार कर दिया तो मैं क्या कर लूंगा. इसी तरह अगर उस ने पीछा करने की बात भी नकार दी तो क्या होगा. शेख मजीद की बात जारी थी.

उस ने कहा, ‘‘कल मैं यहां (पेशावर) के रौयल होटल में ठहरा. मुझे यहां भी अपने कमरे में पहले जैसा एक पत्र मिला, जिस में लिखा था, ‘तुम दुनिया के किसी भी कोने में चले जाओ, मेरी नजरों से छिप नहीं सकते.’ ऐसी स्थिति में मुझे आप के पास आना पड़ा.’’

‘‘क्या तुम्हें अफजाल बेग होटल में दिखाई दिया?’’ सबइंसपेक्टर जाकिर ने शेख मजीद से पूछा.

‘‘अभी तक मैं ने उसे रौयल होटल में नहीं देखा है, लेकिन मैं ने एक वेटर से मालूम किया है कि अफजाल बेग नाम का आदमी वहीं ठहरा है. आप मेहरबानी कर के मुझे उस आदमी से बचाएं.’’ शेख मजीद ने अपने दोनों हाथ जोड़ते हुए निवेदन किया.

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‘‘ठीक है, हम देखते हैं, आप की क्या मदद की जा सकती है.’’ इंसपेक्टर जावेद ने कहा और फोन उठा कर कहीं बात करने लगा.

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