लेखक- अंजुम फारुख
शेख मजीद थाने से चला गया. फोन पर बात करने के बाद इंसपेक्टर जावेद ने सबइंसपेक्टर जाकिर से कहा, ‘‘आप तत्काल रौयल होटल चले जाएं. वह मोटा आदमी अफजाल बेग होटल की लौबी में बैठा हुआ है. आप उसे यहां ले आएं. अभीअभी मेरी उस होटल के मैनेजर से बात हुई है.’’
आधे घंटे बाद सबइंसपेक्टर जाकिर, अफजाल बेग नाम के उस आदमी को अपने साथ ले आया, जो देखने में मोटा और गोलमटोल सा था. उस ने स्टील के फ्रेम वाला चश्मा लगा रखा था. उस के शरीर पर कीमती कपड़े थे, जो बहुत ढीलेढाले थे.
इंसपेक्टर जावेद ने उसे कुरसी पर बैठने का इशारा किया. उस ने कुरसी पर बैठने से पहले अपनी पतलून की दोनों मोरी ऊपर खींची ताकि आराम से बैठ सके. अफजाल बेग ने इंसपेक्टर जावेद से पूछा कि उसे यहां क्यों बुलाया गया है.
इंसपेक्टर जावेद, शेख मजीद द्वारा दिए गए पत्रों से तिथिवार उन स्थानों की सूची बना चुका था, जहांजहां मजीद गया था. वह अफजाल बेग से बोला कि आप इन तिथियों को क्वेटा, कराची, हैदराबाद, मुलतान और लाहौर गए थे.
‘‘जी हां,’’ अफजाल बेग की आंखें आश्चर्य से फैल गईं.
‘‘क्या आप बता सकते हैं कि आप ने ये सफर किस उद्देश्य से किए?’’ सबइंसपेक्टर सलीम ने उस से पूछा.
अफजाल बेग के दोनों हाथ उस की तोंद पर थे. वह बिलकुल शांत भाव से कुरसी पर बैठा था. लेकिन जब वह बोला तो उस के स्वर में थोड़ी सी लड़खड़ाहट थी, ‘‘सर, मैं इसलामाबाद की अफजाल ऐंड कंपनी का मालिक हूं. यह फर्म मेरे सहयोगी अच्छी तरह चला रहे हैं. मैं ने शादी नहीं की है, इसलिए मुझ पर परिवार की कोई जिम्मेदारी नहीं है. अत: मैं आजकल अपने देश की सैर करने के लिए निकला हूं. क्या अपने देश की सैर करना कोई अपराध है?’’
‘‘बिलकुल नहीं जी. लेकिन हमें शिकायत मिली है कि आप एक युवक का पीछा कर रहे हैं.’’ सबइंसपेक्टर सलीम, जोकि एक जासूस भी था, ने उस का चेहरा गौर से देखते हुए पूछा.
‘‘पीछा..? नहीं सर, मैं किसी का पीछा नहीं कर रहा हूं. क्या उस युवक ने कोई वजह बताई है कि मैं उस का पीछा क्यों कर रहा हूं. मेरे पास रुपएपैसे की कोई कमी नहीं है. मुझे किसी का पीछा करने की क्या जरूरत है?’’ वह हलकी सी नाराजगी के साथ बोला.
सबइंसपेक्टर जावेद भी अफजाल बेग का बारीकी से निरीक्षण कर रहा था. उस ने शेख मजीद द्वारा दिए गए पत्रों में से एक पत्र निकाल कर उस की ओर बढ़ा दिया और उस के चश्मे के शीशों को घूरता हुआ बोला, ‘‘आप ने यह पत्र उसे क्यों भेजा था?’’
‘‘यह पत्र मैं ने नहीं भेजा, आप को गलतफहमी हुई है.’’ अफजाल बेग के स्वर में आत्मविश्वास था.
वह खड़ा हो कर थोड़ा सा आगे झुका, फिर बोला, ‘‘आप ने बेवजह मेरा समय बरबाद किया. अब मुझे इजाजत दीजिए.’’
इंसपेक्टर जावेद ने उसे रोकने की कोशिश नहीं की. वह दरवाजे की तरफ बढ़ गया.
अफजाल बेग के जाने के बाद इंसपेक्टर जावेद, सबइंसपेक्टर सलीम से बोला, ‘‘आप इस मामले में क्या कहते हैं?’’
‘‘मैं इसे इत्तफाक समझने के लिए तैयार नहीं हूं. कोई आदमी मात्र इत्तफाकन पूरे देश में किसी का पीछा नहीं कर सकता.’’ सबइंसपेक्टर सलीम ने कहा.
‘‘पत्रों की धमकियों से स्पष्ट होता है कि यह कत्ल आदि का मामला है.’’ सबइंसपेक्टर जाकिर बोला.
‘‘मेरा भी यही खयाल है.’’ इंसपेक्टर जावेद ने कहा, ‘‘मैं इसलामाबाद पुलिस को ईमेल कर रहा हूं. संभव है, हमें वहां से शेख मजीद या अफजाल के बारे में कोई अच्छी सूचना मिल जाए.’’
‘‘एक बात खासतौर से मालूम करना.’’ सबइंसपेक्टर सलीम ने मेज पर पड़े पत्रों की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘20 अगस्त को इसलामाबाद की किसी गली में कोई कत्ल तो नहीं हुआ था.’’
ईमेल का जवाब 2 घंटे बाद ही आ गया. उस में लिखा था— अफजाल बेग एक बहुत बड़ी व्यापारिक कंपनी का मालिक है. उस की उम्र 53 साल है. वह स्टील के फ्रेम वाला चश्मा लगाता है और अविवाहित है. उस की कंपनी काफी उन्नति कर चुकी है. कारोबार की देखभाल अब उस के कर्मचारी करते हैं. आजकल वह देश भ्रमण पर निकला है. पुलिस के पास उस के खिलाफ कोई शिकायत नहीं है.
शेख मजीद का इसलामाबाद में टेक्सटाइल्स का कारोबार है. वह अकसर अपने कारोबार के सिलसिले में एक जगह से दूसरी जगह आताजाता रहता है. उस की उम्र 27 साल है. उस के पास काफी पैसा है. वह इधरउधर पैसे खर्च करता रहता है. मजीद के खिलाफ भी इसलामाबाद पुलिस के पास कोई शिकायत नहीं है.
20 अगस्त को दोपहर ढाई बजे स्ट्रीट लेन में साफिया नामक एक लड़की का कत्ल कर दिया गया था. उस घटना का न तो कोई चश्मदीद गवाह मिला और न ही कातिल का पता चल पाया.
अफजाल बेग और शेख मजीद का इस मामले से कोई संबंध नजर नहीं आता. अगर आप को कुछ पता चला हो तो सूचना दें.
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तभी शेख मजीद का फोन आ गया. उस की आवाज लरज रही थी, ‘‘मुझे अभीअभी एक पत्र और मिला है. उस में सिर्फ इतना लिखा है ‘आखिर तुम ने पुलिस को बता ही दिया.’ अब बताइए, क्या करूं?’’
‘‘मजीद साहब, आप वह पत्र संभाल कर रखिए और यह बताइए कि आप ने इसलामाबाद में स्ट्रीट लेन का नाम सुना है?’’ इंसपेक्टर जावेद ने पूछा.
‘‘जी हां, स्ट्रीट लेन वहां की एक गली है. वहीं के एक गैराज में मैं अपनी कार खड़ी करता हूं. स्ट्रीट लेन से तो मैं रोजाना गुजरता हूं.’’ शेख मजीद ने फोन पर कहा.
‘‘क्या 20 अगस्त को भी आप वहां से गुजरे थे? याद कर के बताइए.’’
‘‘एक मिनट…हां, याद आया. पहला पत्र मिलने से एक दिन पहले की बात है. मैं उधर से ढाई बजे के करीब गुजरा था.’’
इंसपेक्टर जावेद ने कहा, ‘‘ओह! अब समझ में आया कि अफजाल बेग आप का पीछा क्यों कर रहा है. आप होटल के कमरे से बाहर मत निकलिएगा. मैं आ रहा हूं.’’
रौयल होटल के अहाते में कार मोड़ते ही इंसपेक्टर जावेद और सबइंसपेक्टर सलीम को किसी गड़बड़ का अहसास हो गया. होटल के अंदर से किसी की चीखें सुनाई दे रही थीं. बहुत से लोग होटल के प्रवेशद्वार पर एकत्र हो गए थे. वेटर आदि कर्मचारी भी भीड़ में शामिल थे. होटल के मैनेजर ने इंसपेक्टर जावेद से कहा, ‘‘अच्छा हुआ, आप आ गए इंसपेक्टर साहब. कमरा नंबर 77 में एक आदमी का कत्ल कर दिया गया है.’’
पुलिस इंसपेक्टर जावेद, होटल का मैनेजर और सबइंसपेक्टर सलीम लोगों को एक तरफ हटाते हुए आगे बढ़ गए.
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कमरा नंबर 77 में शेख मजीद मौजूद था. वह उन्हें देखते ही उठ खड़ा हुआ. उस के चेहरे से बदहवासी झलक रही थी. मजीद के ठीक सामने कालीन पर अफजाल बेग औंधा पड़ा हुआ था. उस की पतलून की दोनों मोरी ऊपर उठी हुई थी.