वैदेही फार्मेसी के आखिरी साल में थी. वह मोहिते परिवार की सबसे शांत और सुशील बेटी थी. घर में कोई मेहमान भी आ जाए तो गिलास का पानी ले कर बाहर नहीं आती थी. कुछ सवालों के जवाब देने के अलावा वह कभी किसी से बात नहीं करती थी.

वैदेही पढ़ाईलिखाई में होशियार थी. देखने में भी वह खूबसूरत थी इसलिए हर कोई उस के लिए एक अच्छा रिश्ता चाहता था. घर में दादादादी थे. छोटी बहन अक्षरा 8वीं जमात में पढ़ती थी. पिता की किराना की दुकान थी और मां मालिनी खुशमिजाज. इस तरह से वैदेही का एक सुंदर परिवार था.

‘‘अरे ओ मालिनी, 8 बज गए, नाश्तापानी दोगी कि ऐसे ही भूखा मारोगी?’’

‘‘हांहां लाती हूं. हम लोग मरमर के काम करते हैं, फिर भी भूख नहीं लगती है और इन्हें चारपाई पर बैठेबैठे ही भूख लग जाती है. 2 बेटों को जन्म दिया है तो दोनों के घर जा कर रहना चाहिए न. मैं ने अकेले ठेका ले रखा है क्या इन बूढ़ेबुजुर्गों का?’’

‘‘अब चुप हो जा मां, क्या सवेरेसवेरे तुम दोनों का बड़बड़ाना शुरू हो जाता है.’’

‘‘बहू, चाय रख दे. वामन काका आए हैं.’’

‘‘12 बजे तक 4 कप चाय पी कर जाएगा यह बुड्ढा. पूरी जिंदगी बीत गई यही सब करने में.’’

‘‘बहू, चाय ला रही हो न?’’

‘‘हां, ला रही हूं बाबा.’’

दादादादी के साथ मां की होने वाली किचकिच देख कर वैदेही का शादी से मन ही उठ गया था. हम पढ़ेलिखे हैं, खुद कमाखा सकते हैं, शादी कर के दूसरे के परिवार में नौकर की तरह क्यों रहना? वैदेही शाम को कालेज से आई. मातापिता कमरे में ही बैठे थे.

‘‘क्यों न हम 4-5 दिन के लिए कहीं घूम आएं? अब तो बच्चे भी बड़े हो गए हैं.’’

‘‘मालिनी, मैं ने कितनी बार कहा है कि पैसे ले लो और बच्चों को ले कर कहीं घूमने चली जाओ. मांपिताजी को छोड़ कर मैं कहीं बाहर नहीं जा सकता हूं.’’

‘‘हां, हमेशा की तरह बहाना बनाओ. उन्हें 4-5 दिन के लिए अपने छोटे भाई के पास क्यों नहीं भेज देते?’’

‘‘मैं ऐसा नहीं करूंगा और आगे से इस मुद्दे पर किसी तरह की कोई बात नहीं होगी,’’ ऐसा बोलते हुए नितिन हाथ में पकड़ा अखबार फेंकते हुए घर से बाहर निकल गया. मालिनी हमेशा की तरह रसोई में जा कर रोने लगी.

‘‘मेरा नसीब ही फूटा है. यह बंगला, गाड़ी और पैसा होने के बावजूद कोई फायदा नहीं है. कभी थिएटर में फिल्म देखने तक नहीं गई. होटल में खाना, सैरसपाटा करना किसी तरह का कोई मजा नहीं है जिंदगी में.’’

‘‘मां, मेरी शादी होने के बाद मेरे साथ भी तो ऐसा ही होगा?’’

‘‘ऐसा नहीं है बेटी. औरत का जन्म ही दूसरों के लिए हुआ है. तुम दोनों

मेरी प्यारी बेटियां हो, यही मेरा असली सुख है.’’

मेहमानों का देखने आना, सिर पर पल्लू रख कर चलना, दहेज की मांग करना, शादी के बाद सासननद के ताने सुनना और उन के छोटेछोटे बच्चों की सेवा करना, बड़ों के पैर छूना वगैरह कितनी बकवास परंपराएं हैं.

इस के अलावा किसी की मौत हो जाने के बाद 10-10 दिन तक नातेरिश्तेदारों का जमावड़ा लगने पर सभी को खाना बना कर खिलाना वगैरह.

एक बहू को लगातार घर का काम करते हुए वैदेही ने करीब से देखा. एक बार शादी हो गई तो हम इस परंपराओं में पूरी तरह से फंस जाएंगे, जिस से छुटकारा मिलना मुश्किल है. इस से बेहतर है कि मैं शादी ही न करूं.

एक दिन दूध लेने वैदेही बाहर गई. पड़ोस के ही सार्थक से उस की टक्कर हो गई. सार्थक हैंडसम था. 10वीं के बाद डिप्लोमा कर के 2 साल से वह पुणे की एक कंपनी में नौकरी करता था. इस समय वह 2 महीने की छुट्टी ले कर गांव आया था. वैदेही उसे अच्छी लगती थी, इसलिए वह अलगअलग तरीके से उस का ध्यान खींचने की कोशिश करता था.

दूसरे दिन वैदेही कालेज जाने के लिए निकली. सार्थक भी उस के पीछेपीछे मोटरसाइकिल से गया. वैदेही ने अपनी गाड़ी के शीशे में से सार्थक को आते हुए देखा और नजरअंदाज कर के चली गई.

सार्थक पूरा दिन उस के फार्मेसी कालेज में बैठा रहा. शाम को कालेज से निकलते ही उस ने वैदेही को रोक लिया, ‘‘वैदेही, तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. मुझ से शादी करोगी?’’

‘‘पागल हो क्या तुम? काम क्या करते हो?’’

‘‘पुणे की एक कंपनी में नौकरी करता हूं. 15,000 रुपए तनख्वाह है मेरी. तुम भी वहां 12,000 से 13,000 रुपए कमा सकती हो. सुखी संसार होगा हमारा.’’

‘‘चुप… घर वाले सुनेंगे तो मुझे ही मार डालेंगे.’’

‘‘क्यों मारेंगे? अभीअभी मेरे फ्रैंड की लव मैरिज हुई है. पहले रजिस्टर मैरिज करेंगे, फिर जान को खतरा है बता कर पुलिस स्टेशन में एफआईआर कर देंगे. कुछ नहीं होता है.’’

‘‘बहुत प्रैक्टिस किए लगते हो. चलो हटो रास्ते से.’’

‘‘तो क्या मैं हां समझ?’’

‘‘मैं ने हां बोला क्या?’’

‘‘लेकिन, न भी तो नहीं कहा अभी तुम ने.’’

वैदेही मन ही मन हंसते हुए अपनी गाड़ी पर बैठ के निकल गई. सार्थक अकसर अपनी खिड़की से उस के घर की तरफ देखता रहता था.

वैदेही के बाहर निकलने पर हाथ हिला कर इशारा करता था. मोबाइल फोन पर गाने बजाता था. उसे कालेज में जा कर गिफ्ट देता था. उस के बाहर जाते ही वह भी मोटरसाइकिल ले कर उस के पीछे लग जाता था.

‘‘तुम बस हां कह दो वैदेही. कुछ दिक्कत नहीं होगी. मेरा एक दोस्त पुणे में पुलिस विभाग में है. वह हमारी मदद करेगा. मैं तुम्हें जिंदगीभर खुश रखूंगा. तुम जैसा कहोगी वैसे ही होगा. तुम्हें कभी बिना खाए सोना नहीं पड़ेगा.

‘‘मुझ से ज्यादा तुम्हें कोई प्यार नहीं करेगा. मैं तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकता हूं. सिर्फ तुम हां कह दो.’’

सार्थक की रोमांटिक कविताएं, मैसेज सबकुछ वैदेही को अच्छे लगते थे. दादादादी की रोजरोज की किचकिच, मांपिता के बीच आपसी मनमुटाव देख कर वह सोचने लगी, अरैंज मैरिज करने के बाद मेरे साथ भी यही होगा. ऐसे में भाग कर सार्थक से शादी कर लेने में क्या बुराई है.

इसी विचार के साथ एक दिन वैदेही सार्थक के साथ भाग कर पुणे आ गई. इस के बाद दोनों परिवारों की खूब बदनामी हुई.

सार्थक वैदेही के साथ अपने एक दोस्त के फ्लैट में रहने लगा. 10-15 दिन अच्छे से बीते. इस के बाद वैदेही नौकरी करने की जिद करने लगी.

‘‘अभी इस की जरूरत नहीं है. पैसे की कमी होगी तो मैं खुद तुम्हारे लिए नौकरी देखूंगा स्वीट हार्ट.’’

एक दिन सार्थक कोल्डड्रिंक की बोतल ले कर आया, जिसे देखते ही वैदेही ने मुंह लगाया और आधी बोतल खाली कर दी. 5-10 मिनट बाद उसे नींद आने लगी.

‘‘सार्थक, मुझे कुछ हो रहा है यार.’’

‘‘कुछ नहीं होगा. तुम बैड पर चुपचाप सो जाओ. मैं यहीं हूं.’’

दूसरे दिन जब वैदेही उठी तो देखा कि उस की बगल में कोई दूसरा लड़का सोया हुआ है. वैदेही के साथ जो हुआ, उसे वह समझ गई. वह जल्दी से कमरे से बाहर आई.

‘‘धोखेबाज, तुम ने मुझे फंसाया है. मैं तुम्हें नहीं छोड़ूंगी. पुलिस में शिकायत करूंगी,’’ वैदेही ने सार्थक से कहा.

‘‘जा, पुलिस के पास जा. वे लोग तुम्हें खड़ा भी करेंगे क्या. 10 दिन पहले वही पुलिस तुम्हें अपने मांपिता के पास जाने की कह रही थी तो तुम ने नहीं सुना.’’

‘‘कितने गिरे हुए इनसान हो तुम. एक लड़की की जिंदगी से खेलते हुए तुम्हें जरा भी शर्म नहीं आई?’’

‘‘अरे ओ लड़की, जो अपने जन्म देने वाले मांपिता की नहीं हुई तो वह भविष्य में मेरा क्या होगी? मांपिता के चेहरे पर कालिख लगाते हुए तुम्हें जरा भी लाजशर्म नहीं आई. और अब तुम मुझ से लाजशर्म की बात करती हो?’’

वैदेही फूटफूट कर रोने लगी. पुलिस के पास जाने में उसे शर्म आ रही थी. सार्थक के अलावा जिंदगी में कभी किसी पर यकीन नहीं किया था. अब मैं यहां से कहां जाऊंगी. लेकिन यहां रहूंगी तो धंधा करना पड़ेगा.

‘‘मांपिता को दुख दे कर दुनिया में कोई खुश नहीं रह सकता, यह सच है. मुझे माफ कर दो, लेकिन किसी तरह सार्थक के चंगुल से बाहर निकालो,’’ वैदेही मन ही मन खुद को कोस रही थी.

सार्थक बाहर चला गया था. थोड़ी देर बाद ही उन्मेष बैडरूम से बाहर आया.

‘‘मैं ने सब सुन लिया है. इस लफंगे के साथ घर छोड़ कर तुम आई थी. तुम ने कभी सोचा कि तुम्हारे इस बरताव से मांपिता की समाज में कितनी बदनामी होगी. जिंदगी के 20 साल साथ रहने वाले मांपिता को छोड़ कर 2 महीने की पहचान के इस गुंडेमवाली के जाल में कैसे फंस गई तुम? ऐसे में तुम्हारी पढ़ाईलिखाई का क्या फायदा है?’’

‘‘मैं सब समझ रही हूं, लेकिन अब क्या करूं?’’

‘‘तुम्हारे लिए एक प्रस्ताव है मेरे पास. मेरी बीवी के बच्चा नहीं हो सकता है. क्या तुम मुझे बच्चा दोगी? मैं जिंदगीभर तुम्हें प्यार और इज्जत दूंगा.’’

‘‘सार्थक के साथ रहने के बजाय अगर मेरी जिंदगी किसी के काम आ जाए तो इस में क्या गलत है. मैं तैयार हूं तुम्हारे साथ रहने के लिए. लेकिन, सार्थक…?’’

‘‘उसे मैं देख लूंगा. उस के मुंह पर पैसे फेंक कर मैं तुम्हें उस से आजाद करा लूंगा.’’

‘‘ठीक है, मैं तुम्हारे साथ आने के लिए तैयार हूं.’’

वैदेही बैग ले कर उन्मेष के साथ एक नए सफर पर निकल गई.

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