दोपहर का वक्त था. वंदना नहा कर बाथरूम से निकली तभी ‘भाभीभाभी’ कहता हुआ गणेश उस के घर आ पहुंचा. उस समय वंदना के शरीर पर मात्र पेटीकोटब्लाउज था. उस के जुल्फों से पानी की बूंदें टपक रही थीं. गणेश की निगाहें वंदना के मखमली बदन पर जैसे पानी की बूंदों की तरह चिपक कर रह गई थीं. गणेश की इस हरकत को वंदना समझ रही थी. वह न तो शरमाई और न ही वहां से भाग कर दूसरे कमरे में गई. बल्कि वह नजाकत से चलते हुए उस के और करीब आ गई. गणेश रिश्ते से उस का देवर लगता था. उन के बीच अकसर मजाक भी होता रहता था. वंदना उस के एकदम करीब आ कर बोली, ‘‘गणेश, खड़े क्यों हो, बैठ जाओ न.’’
वंदना के कहने के बावजूद गणेश चारपाई पर नहीं बैठा, बल्कि खड़ेखड़े उसे अपलक निहारता रहा. उस के मन में कोई तूफान मचल रहा था. वंदना मादक मुसकान बिखेरती हुई मुड़ी और अंदर वाले कमरे में चली गई. गणेश तब भी अपनी जगह जमा रहा. वंदना कुछ देर बाद बाहर आई तो गणेश की आंखें फिर उस के चेहरे पर टिक गईं. आखिर वंदना से रहा नहीं गया तो उस ने पूछ ही लिया, ‘‘क्या बात है गणेश, तुम आज मुझे इस तरह से क्यों देख रहे हो?’’
‘‘बता दूं?’’ गणेश ने वंदना की आंखों में झांकते हुए कहा, ‘‘भाभी, तुम मुझे बहुत खूबसूरत लगती हो. तुम्हारी अदाएं मेरे अंदर बेचैनी पैदा कर रही हैं.’’
गणेश की बात सुन कर वंदना के मन में भी हलचल सी मच गई. वह आगे बढ़ी और गणेश का हाथ थाम कर बोली, ‘‘सच कहूं गणेश, तुम भी मुझे बहुत अच्छे लगते हो. मैं तो तुम्हारे लिए ही सजतीसंवरती हूं. राजू को तो मेरी कद्र ही नहीं है.’’
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