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सौजन्य: सत्यकथा

ममता ने एक सरसरी नजर देवरानी के चेहरे पर डाली फिर उत्सुकता से पूछा, ‘‘रीता, कई दिनों से देवरजी नहीं दिखरहे हैं, क्या वह कहीं बाहर गए हैं?’’

‘‘हां दीदी, वह शायद दिल्ली गए हैं काम की तलाश में.’’ रीता ने जवाब दिया.

‘‘तुम ने परिवार में किसी को बताया क्यों नहीं कि शिवगोविंद दिल्ली गया है?’’

‘‘दीदी वह मुझ से लड़झगड़ कर कर गए हैं. जेवरजट्टा भी साथ ले गए हैं. गुस्से में मैं ने किसी को कुछ नहीं बताया. लेकिन दीदी, मुझे उन की चिंता सता रही है.’’

‘‘तुम्हारी शिवगोविंद से फोन पर बात हुई?’’ ममता ने पूछा.

‘‘नहीं दीदी, उन से फोन पर बात तो नहीं हुई?’’ रीता नजरें चुरा कर बोली.

‘‘तुम अपना फोन मुझे दो. मैं अभी शिवगोविंद से बात करती हूं.’’ ममता झुंझला कर बोली.

‘‘दीदी मेरा फोन पानी में गिर गया था, जिस से वह बंद हो गया है.’’ रीता ने जवाब दिया.

ममता पढ़ीलिखी सभ्य महिला थी. वह समझ गई कि रीता बात न कराने के लिए बहाने पर बहाने बना रही है. वह यह भी जान गई कि शिवगोविंद के गायब होने का रहस्य रीता के पेट में छिपा है, लेकिन वह बाहर नहीं लाना चाहती है.

अब ममता के मन में अनेक आशंकाएं उमड़नेघुमड़ने लगीं. वह सोचने लगी, ‘कहीं रीता ने देवर के साथ कोई षडयंत्र तो नहीं रच डाला.’

ममता ने अपनी आशंकाओं से पति बालगोविंद को अवगत कराया तो उन का कलेजा कांप उठा. बालगोविंद ने भाई की खोज हर संभावित स्थान पर की, लेकिन उस का कहीं कुछ पता नहीं चल पा रहा था. फोन भी उस का बंद था. उस के यारदोस्त भी कुछ नहीं बता पा रहे थे.

ममता व उस के पति बालगोविंद की समझ में नहीं आ रहा था कि शिवगोविंद को जमीन निगल गई या आसमान.

आखिरकार जब शिवगोविंद का कुछ भी पता नहीं चला तो उस ने 10 जून, 2021 की सुबह 9 बजे गुमशुदगी दर्ज कराने अकबरपुर कोतवाली जा पहुंचा.

थानाप्रभारी तुलसीराम पांडेय उस समय थाने पर मौजूद थे. बालगोविंद ने उन्हें अपना परिचय दिया, ‘‘सर, मेरा नाम बालगोविंद यादव है. मैं बलिहारा गांव में रहता हूं. मेरा छोटा भाई शिवगोविंद 6 जून से घर से लापता है. मैं ने उस की खोज हर जगह की. लेकिन कुछ भी पता नहीं चल पा रहा है. आप गुमशुदगी दर्ज कर भाई की खोज में मदद करें.’’

कोतवाल तुलसीराम पांडेय ने बालगोविंद की बात को गौर से सुना और फिर गुमशुदगी दर्ज कर ली. इस के बाद उन्होंने पूछा, ‘‘तुम्हारे भाई शिवगोविंद की गांव में किसी से रंजिश या लेनदेन का झगड़ा तो नहीं था.’’

‘‘सर, शिवगोविंद सीधासादा इंसान है. उस की गांव में किसी से रंजिश नहीं है और न ही किसी से लेनदेन का कोई झगड़ा है.’’ बालगोविंद ने जवाब दिया.

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‘‘तुम्हें किसी पर शक है?’’ थानाप्रभारी तुलसीराम पांडेय ने पूछा.

‘‘हां सर, रीता पर शक है.’’ बालगोविंद ने बताया.

‘‘ये रीता कौन है?’’ थानाप्रभारी बोले.

‘‘सर, रीता शिवगोविंद की ही पत्नी है. वह रंगीनमिजाज औरत है. मुझे शक है कि भाई के लापता होने का रहस्य उसी के पेट में छिपा है.’’

तुलसीराम पांडेय समझ गए कि मामला अवैध संबंधों का है और ऐसे रिश्तों में कुछ भी घटित हो सकता है. उन्होंने इस मामले को बेहद गंभीरता से लिया और सच्चाई जानने के लिए खास खबरियों को लगा दिया.

दूसरे दिन ही एक खबरी ने उन्हें बताया कि रीता रंगीनमिजाज औरत है. उस का चालचलन ठीक नहीं है. गांव के दीपक उर्फ लल्ला का उस के घर आनाजाना है. दोनों के बीच नाजायज रिश्ता है.

इस रिश्ते का रीता का पति शिवगोविंद विरोध करता था. शिवगोविंद के लापता होने का रहस्य इन्हीं दोनों से पता चल सकता है.

यह पता चलते ही कोतवाल तुलसीराम पांडेय ने आवश्यक पुलिस बल साथ लिया और बलिहारा गांव पहुंच कर रीता यादव को उस के घर से हिरासत में ले लिया. उसे थाने लाया गया. महिला पुलिस की मौजूदगी में रीता से पूछताछ शुरू की गई.

थानाप्रभारी ने उस से पूछा, ‘‘रीता सचसच बताओ, शिवगोविंद कहां है?’’

‘‘सर, मुझे पता नहीं, वह कहां हैं. वह मुझ से लड़झगड़ कर साथ में जेवर ले कर घर से दिल्ली जाने को निकले थे.’’ रीता ने जवाब दिया.

‘‘देखो, मुझे गुमराह करने की कोशिश मत करो. वरना सच्चाई उगलवाना मुझे आता है.’’

‘‘सर, मैं सच ही कह रही हूं.’’ वह बोली.

‘‘फिर झूठ. लगता है, तुम सीधी तरह मुंह नहीं खोलोगी.’’ थानाप्रभारी ने धमकाया.

इसी के साथ उन्होंने एक महिला कांस्टेबल को इशारा किया. इशारा पाते ही महिला पुलिस ने रीता से सख्ती की तो उसे मुंह खोलते ज्यादा वक्त नहीं लगा.

रीता ने कुबूला जुर्म

रीता ने मुंह खोला तो थानाप्रभारी के आश्चर्य का ठिकाना न रहा. रीता ने बताया, ‘‘सर, शिवगोविंद अब इस दुनिया में नहीं है. दीपक उर्फ लल्ला और उस के दोस्त अमन व निखिल ने मेरे कहने पर उस की हत्या कर दी है.’’

इस के बाद ताबड़तोड़ छापा मार कर तुलसीराम पांडेय ने 12 जून की सुबह दीपक उर्फ लल्ला तथा उस के साथी अमन को भी बाराजोड़ से गिरफ्तार कर लिया. उन्हें कोतवाली अकबरपुर लाया गया. वहां दोनों का सामना रीता से हुआ तो वे समझ गए कि हत्या का परदाफाश हो गया है. अत: उन दोनों ने सहज ही जुर्म कुबूल कर लिया. निखिल फरार हो गया.

थानाप्रभारी तुलसीराम पांडेय ने इस सनसनीखेज मामले की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी. फिर शिवगोविंद का शव बरामद करने बलिहारा गांव के पास नोन नदी के किनारे पहुंचे.

उन्होंने खुदाई के लिए जेसीबी भी मंगवा ली. इस के बाद अमन व दीपक की निशानदेही पर खुदाई की गई तो गहरे गड्ढे से शिवगोविंद का सड़ागला शव बरामद हो गया, जिस से तेज दुर्गंध आ रही थी.

शिवगोविंद की लाश बरामद होने की सूचना बलिहारा गांव पहुंची तो पूरे गांव में सनसनी फैल गई. बालगोविंद, उस की पत्नी ममता व परिवार के अन्य लोग घटनास्थल पहुंचे और शव देख कर फफक पड़े.

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इसी बीच खबर पा कर एसपी केशव कुमार चौधरी, एएसपी घनश्याम तथा डीएसपी (अकबरपुर) अरुण कुमार सिंह घटनास्थल आ गए. उन्होंने शव का निरीक्षण किया तथा मृतक के घर वालों से पूछताछ की. पुलिस अधिकारियों ने आरोपी अमन व दीपक से भी विस्तृत पूछताछ की.

पूछताछ के बाद आरोपियों ने हत्या में प्रयुक्त आलाकत्ल साबड़ तथा फावड़ा भी बरामद करा दिया, जिसे उन्होंने छिपा दिया था. पूछताछ के बाद अधिकारियों ने शिवगोविंद के शव को माती स्थित पोस्टमार्टम हाउस भिजवा दिया.

चूंकि आरोपियों ने जुर्म कुबूल कर लिया था और आलाकत्ल भी बरामद करा दिया था, अत: थानाप्रभारी तुलसीराम पांडेय ने मृतक के भाई बालगोविंद की तरफ से भादंवि की धारा 302, 201, 120बी तथा 34 के तहत रीता, दीपक उर्फ लल्ला, अमन तथा निखिल के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और रीता, अमन व दीपक को न्यायसम्मत गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस जांच में एक ऐसी औरत की कहानी प्रकाश में आई, जिस ने स्वयं ही अपना सिंदूर मिटा दिया.

कानपुर (देहात) जनपद के अकबरपुर थाना क्षेत्र में एक गांव है बलिहारा. रामसिंह यादव अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटे थे— हरगोविंद, बालगोविंद तथा शिवगोविंद. रामसिंह किसान था. खेती की आय से ही घरपरिवार चलाता था. उस की आर्थिक स्थिति तो मजबूत नहीं थी, लेकिन बिरादरी में मानसम्मान था.

भाइयों में हरगोविंद सब से बड़ा था. उस का विवाह रीता से हुआ था. खूबसूरत रीता को पत्नी के रूप में पा कर हरगोविंद बहुत खुश था. लेकिन आर्थिक अभाव उस की चाहत के बीच दीवार बने हुए थे.

पति की मौत के बाद रीता देवर के साथ रहने लगी थी

हरगोविंद पिता के साथ खेती में हाथ बंटाता था. वह इतना नहीं कमा पाता था कि मौजमजे से गुजर होती रहती. फिर भी हालात से उबरने की जद्दोजहद चलती रही.

समय के साथ जब हालात नहीं सुधरे, तब रीता ने पति को कोई और काम करने की सलाह दी. लेकिन हरगोविंद तो अपनी खेतीकिसानी में ही खुश था.

सहयोगी : जय कुमार मिश्र

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