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जितेंद्र सिंह रसूख वाले इंसान थे. उन्होंने खुद पर काबू पाया और समझदारी के साथ सिर पर आ पड़ी इस मुसीबत से निकलने का फैसला किया.

अगली सुबह वह दिल्ली पुलिस में तैनात एक अधिकारी दोस्त के पास जा पहुंचे और उन्हें अपने साथ हुई घटना अक्षरश: बयान कर दी. ऐसे मामलों में जैसा होता है वैसा ही जितेंद्र सिंह के साथ भी हुआ.

पुलिस अफसर दोस्त ने उन्हें उम्र का हवाला देते हुए उन की ठरकबाजी के लिए पहले तो खूब खरीखोटी सुनाई. जितेंद्र सिंह जानते थे कि ऐसा ही होगा. लेकिन बाद में पुलिस अफसर दोस्त ने क्राइम ब्रांच में अपने एक मातहत अधिकारी को फोन किया और जितेंद्र  सिंह को उन के पास भेज दिया. साथ ही यह भी ताकीद कर दी कि जितेंद्र का नाम उन की पहचान सामने लाए बिना उन की मदद करें.

क्राइम ब्रांच इंसपेक्टर बन कर हड़काया

जितेंद्र उसी दिन जब क्राइम ब्रांच के अधिकारी से मिल कर वापस लौटे तो उन के फोन पर एक अंजान नंबर से काल आई. ट्रूकालर में विक्रम सिंह राठौर साइबर सेल लिख कर आ रहा था. जितेंद्र सिंह ने सोचा कि शायद क्राइम ब्रांच में वह जिस बडे़ अधिकारी से मिल कर आ रहे हैं, उन के मातहत किसी अधिकारी ने कोई जानकारी लेने के लिए उन्हें  फोन किया होगा.

जितेंद्र सिंह ने फोन रिसीव कर लिया.

सामने वाले ने अपना परिचय इंसपेक्टर विक्रम सिंह राठौर के रूप में दिया. जितेंद्र सिंह समझ गए कि उन की शिकायत पर क्राइम ब्राच वाले अधिकारी ने काफी तेजी से जांच का काम शुरू करा दिया है.

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