सौजन्य- मनोहर कहानियां
उस समय चांदी 70-75 हजार रुपए किलो से गिर कर 40-45 हजार रुपए प्रति किलोग्राम के आसपास आ गई थी. शेखर का जयपुर में सोनेचांदी का बड़ा काम था. उस ने उन्हें बताया कि अब चांदी ज्यादा सस्ती नहीं होगी. इसलिए अगर खरीद कर रख ली जाए, तो कुछ महीनों में ही अच्छा रिटर्न दे देगी. डाक्टर सोनी को शेखर की बात जंच गई.
डा. सोनी ने शेखर की मदद से करोड़ों रुपए की चांदी की सिल्लियां खरीद लीं. चांदी की ये सिल्लियां शेखर ने उन्हें अपनी फर्मों से दिलवाईं. अब सवाल आया कि चांदी को रखा कहां जाए? बढ़ते हुए अपराधों को देखते हुए घर में ज्यादा सोनाचांदी रखना जोखिम का काम था.
शेखर ने डाक्टर सोनी को ऐसी तरकीब बताई कि चोरों को पता नहीं चल सके. शेखर ने डा. सोनी से कहा कि यह चांदी बक्सों में रख कर बेसमेंट में फर्श खुदवा कर जमीन में गाड़ दें.
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डा. सोनी को पसंद आया आइडिया
डा. सोनी को शेखर का यह बुलेटप्रूफ आइडिया पसंद आ गया, लेकिन उन्होंने शंका जताई कि जमीन खोद कर बक्से रखने वाले को तो इस राज का पता चल जाएगा. इस पर शेखर ने उन से यह काम अपने भरोसे के लोगों से कराने की बात कही. पूरी तरह आश्वस्त हो कर डा. सोनी ने चांदी जमीन में गाड़ने की जिम्मेदारी शेखर को ही सौंप दी.
शेखर ने अपने भांजे जतिन जैन को भी डा. सोनी के इस जिम्मेदारी वाले काम में राजदार बना लिया. शेखर व जतिन ने चांदी रखने के लिए लोहे के आधा फुट ऊंचे, 3 फुट चौड़े और 3 फुट लंबे 3-4 बक्से बनवाए. इन बक्सों में चांदी की सिल्लियां भर दी गईं. शेखर ने अपने ड्राइवर केदार जाट और अपने शोरूम के नौकर कालूराम सैनी से डा. सोनी के मकान के बेसमेंट में गड्ढा खुदवाया.
इस गड्ढे में डा. सुनीत सोनी की मौजूदगी में चांदी की सिल्लियों के बक्से रख दिए गए. केदार जाट और कालूराम सैनी ने बक्से रखने के बाद उन पर मिट्टी की मोटी परत बिछा दी. बाद में डा. सोनी ने उस जगह टाइल्स लगवा दी थीं.
इस तरह डा. सोनी के मकान के बेसमेंट में जमीन में दबाई गई चांदी की सिल्लियों का केवल डाक्टर दंपति, शेखर और उस के भांजे जतिन को ही पता था. गड्ढा खोदने और बक्से रखने वाले केदार जाट तथा कालूराम सैनी को चांदी होने का पता नहीं था. यह राज ज्यादा से ज्यादा केवल 6 लोगों को मालूम था.
बाद में शेखर ने डा. सोनी को फूलप्रूफ आइडिया बताने और उस पर अमल कराने के साथ ही अपने शातिर दिमाग से बड़ा षडयंत्र रचना शुरू कर दिया. पहले उस ने डा. सोनी के आसपास के मकानों का पता किया. पता चला कि डाक्टर के ठीक पीछे मुंबई की रहने वाली उगंती देवी का एक खाली प्लौट है. इस प्लौट में एक कमरा बना हुआ था.
उस ने बनवारी जांगिड़ के माध्यम से उगंती देवी से संपर्क किया. पहले तो उगंती देवी ने प्लौट बेचने से इनकार कर दिया, लेकिन शेखर ने हिम्मत नहीं हारी.
वह बनवारी के जरिए उगंती देवी के पीछे लगा रहा और उसे प्लौट बेचने के लिए राजी कर लिया. प्लौट का सौदा 97 लाख रुपए में हुआ. इसी साल 4 जनवरी को इस प्लौट की रजिस्ट्री बनवारी लाल जांगिड़ के नाम से करा दी गई.
दरअसल, बनवारी तो शेखर का मोहरा था. प्लौट की सारी रकम शेखर ने ही दी. यह प्लौट शेखर ने अपनी योजना को मूर्तरूप देने के लिए खरीदा था. प्लौट खरीदने के बाद कुछ दिन वहां सालों से उगी झाडि़यों और घासफूस की सफाई होती रही.
इस के बाद वहां बनवारी के अलावा शेखर अग्रवाल और उस का भांजा जतिन जैन के साथ कुछ और लोग भी गाडि़यों से आनेजाने लगे. प्लौट के चारों ओर लोहे की चादरें और ग्रीन नेट लगा दी गई ताकि आनेजाने वालों और अड़ोसपड़ोस के लोगों को कुछ नजर ना आए. बिजली का कनेक्शन भी ले लिया गया.
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योजनाबद्ध तरीके से उस प्लौट में बने कमरे का फर्श तोड़ कर सुरंग की खुदाई शुरू कराई गई. बनवारी की देखरेख में सुरंग की खुदाई के लिए शेखर ने टोंक जिले के रहने वाले 2 भाइयों मनराज मीणा और दिलखुश मीणा को बुलाया.
दोनों भाई पहले से ही शेखर के जानकार थे और उस के कहने पर उन्होंने एक बार डा. सोनी के फार्महाउस की तारबंदी का काम किया था.
सारा इंतजाम शेखर का
शेखर के बताए अनुसार दोनों भाइयों ने हैमर, ग्राइंडर, ड्रिल मशीन, गैंती, फावड़े और दूसरे औजारों से उस प्लौट से डा. सोनी के मकान के तहखाने तक सुरंग खोद ली. सुरंग खुदाई के काम में बीचबीच में शेखर, जतिन, बनवारी, केदार और कालूराम भी उन की मदद करते रहे. इस काम में उन्हें कई दिन लगे.
सुरंग तो खुद गई थी, लेकिन तहखाने में गड़े चांदी के बक्सों तक नहीं पहुंच पाई. बीच में पानी का टैंक बना हुआ था. दोनों भाइयों को जमीन धंसने और खुद के दबने का डर लगा, तो उन्होंने आगे खोदने से इनकार कर दिया.
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पूरी सुरंग खुदे बिना शेखर का सपना पूरा नहीं हो सकता था. उस ने बनवारी से किसी आदमी का इंतजाम करने को कहा. बनवारी ने अपने पड़ोसी रामकरण जांगिड़ से बात की. रामकरण पड़ोसी जिले सवाई माधोपुर के रहने वाले मोहम्मद नईमुद्दीन को अच्छी तरह जानता था. वह पहले शेखर के यहां कारपेंटर का काम कर चुका था. रामकरण ने नईमुद्दीन से बात की तो लालच में वह तैयार हो गया.
नईमुद्दीन ने अधूरी सुरंग की खुदाई का काम आगे बढ़ाया. उस ने लोहे के बक्सों तक सुरंग खोद दी. इस के बाद कटर और ग्राइंडर की मदद से बौक्स काट कर चांदी की सिल्लियां निकाल ली गईं.
पुलिस की जांच और आरोपियों से पूछताछ में सामने आया कि डा. सुनीत सोनी के मकान से सुरंग के जरिए चांदी की 540 किलो वजन की 18 सिल्लियां चुराई गईं. एक सिल्ली का वजन 30 किलो था. मौजूदा बाजार भाव से इस चांदी की कीमत 3 करोड़ रुपए से ज्यादा थी. पुलिस का कहना है कि डा. सोनी के मकान से चुराई चांदी की सिल्लियां शेखर अग्रवाल और उस के भांजे ने बाजार में जौहरियों को बेच दी थीं.
पूछताछ में पता चला कि नईमुद्दीन ने अपने मेहनताने के रूप में चांदी की एक सिल्ली ली थी. चांदी की यह सिल्ली 2 दिन बाद शेखर ने उसे 20 लाख 73 हजार रुपए नकद दे कर वापस ले ली. पुलिस ने नईमुद्दीन से 18 लाख रुपए बरामद किए हैं.
अगले भाग में पढ़ें- पुलिस को जांच में एक कटा हुआ बक्सा मिला