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सौजन्य- मनोहर कहानियां

अलीगढ़ में महुआखेड़ा थाने के थानाप्रभारी विनोद कुमार पिछले कुछ महीने से इलाके में बच्चा चोरी या लापता होने की घटनाओं को लेकर काफी उलझन में थे. इस तरह की घटनाओं की शिकायतें दिनप्रतिदिन बढ़ती जा रही थीं. गरीब परिवार के लोगों की अपने छोटे बच्चे के अचानक लापता होने की कई शिकायतें दर्ज थीं.

चिंता इस बात की थी कि न तो चोरी का बच्चा बरामद हो पा रहा था और न ही उस का कोई सुराग ही मिल रहा था. उन की रातों की नींद उड़ी हुई थी. हर पल आंखों के सामने बच्चे की तलाश में आने वाली रोतीबिलखती मांओं का चेहरा घूम जाता था.

आखिर कौन हैं बच्चे चुराने वाले? गायब बच्चे कहां होंगे? बच्चे की देखभाल कौन कर रहा होगा? उन की मां का क्या हाल होगा? आदि सवालों के इसी उधेड़बुन के साथ थानाप्रभारी 22 जून को अपने क्वार्टर थाने में स्थित औफिस आ रहे थे.

अभी वह औफिस के गेट तक ही पहुंचे थे कि एक औरत और एक आदमी को थाने में जमीन पर बैठे देखा. औरत की आंखों से आंसू टपक रहे थे. वह बारबार अपने दुपट्टे से आंसू पोछे जा रही थी. उस के साथ बैठा आदमी उसे ढांढस बंधा रहा था.

थानाप्रभारी विनोद कुमार ने उन्हें इशारे से अपने औफिस में बुलाया. आदर भाव से पूछा, ‘‘अरे, आप लोग जमीन पर क्यों बैठे हो, अंदर आओ.’’

बुरी तरह से बिलख रही महिला को शांत  करते हुए पूछा, ‘‘हांहां, बताइए क्या परेशानी है?’’

‘‘श्रीमान जी, मैं राजा हूं. ये मेरी घरवाली रेखा है. आज सुबह मेरी बच्ची को कोई उठा ले गया.’’ औरत के साथ बैठा आदमी बोला.

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