बौलीवुड के कुछ फिल्मकार बड़े कलाकारों का साथ मिलते ही दर्शकों को मनोरंजन प्रदान करने या दर्शकों को एक बेहतरीन कहानी सुनाने की बनिस्बत अपने एजेंडे को फिल्म के माध्यम से पेश करने लग जाते हैं. परिणामतः फिल्म इतनी खराब बनती है कि दर्शक फिल्म को सिरे से नकार देता है. फिल्मकार की इस हरकत का खामियाजा फिल्म से जुड़े बडे़ स्टार को झेलना पड़ता है कि दर्शक ने इस स्टार की फिल्म को स्वीकार नहीं किया. ऐसे ही फिल्मकार हैं कबीर खान. कबीर खान की फिल्म ‘‘ट्यूबलाइट ’’ उनके निहित एजेंडे वाली फिल्म है, जिसे वह बेहतर कहानी व मनोरंजन वाली फिल्म के रूप में नहीं बना सके. परिणामतः फिल्म के कलाकारों की अभिनय क्षमता, कैमरामैन का बेहतरीन काम, शाहरुख खान की मौजूदगी भी इस फिल्म को डूबने से नहीं बचा सकती.

यूं तो फिल्मकार के अनुसार ‘‘ट्यूबलाइट ’’ एक बहुत बुरी तरह से असफल रही अंग्रेजी फिल्म ‘‘लिटिल ब्वाय’’ का भारतीयकरण है. कबीर खान का दावा है कि उनकी फिल्म ‘ट्यूबलाइट ’ की वजह से ‘लिटिल ब्वाय’ को लोग जानने लगे हैं. मगर फिल्म ‘ट्यूबलाइट ’ देखकर फिल्म ‘लिटिल ब्वाय’ के निर्माता सोच रहे होंगे कि काश उन्होंने अपनी फिल्म के अधिकार कबीर खान को न दिए होते. जिन्होंने फिल्म ‘लिटिल ब्वाॅय’ देखी है, उन्हे इस बात का अहसास हो जाता है कि ‘ट्यूबलाइट ’ और ‘लिटिल ब्वाय’ दोनों ही फिल्में एजेंडे वाली हैं. फिल्म ‘लिटिल ब्वाय’ में बच्चे को बाइबल सिखाने का मसला है, तो कबीर खान ने अपनी फिल्म ‘‘ट्यूबलाइट ’’ को इस एजेंडे के साथ बनाया है कि यदि चीन यानी किसी भी देश का निवासी तीन पीढ़ियों से भारत में रह रहा है, तो वह हिंदुस्तानी ही होता है, उसके हिंदुस्तानी होने पर शक या सवाल नहीं उठाया जा सकता.

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