आम तौर पर माना जाता है कि हर देश की पहचान उसकी सभ्यता संस्कृति और बोलचाल की भाषा से होती है. भारत की पहचान हिंदी भाषा है. लेकिन पश्चिमी सभ्यता व संस्कृति तथा विदेशी भाषा अंग्रेजी के दीवाने मानकर चलते हैं कि भारत देश व भारत के हर गांव का विकास अंग्रेजी भाषा से ही संभव है. क्या वास्तव में गांव के विकास के लिए हर गांव वासी का अपनी मातृभाषा को भुलाकर अंग्रेजी भाषा में निपुण होना आवश्यक है? इसी सवाल को हास्य व्यंग के साथ निर्माता संजीत कुमार ठाकुर व शिवप्रसाद शर्मा और निर्देशक शैलेन्द्र सिंह राजपूत ने ‘‘सिद्धिका सिने क्राफ्ट’ के बैनर तले बनी मनोरंजक फिल्म ‘इंग्लिश की टांय टांय फिस्स’ में उठाया है.
मीनल म्हात्रे राजपूत लिखित फिल्म ‘‘इंग्लिश की टांय टांय फिस्स’’ की कहानी के केंद्र में एक प्रगतिशील गांव है, जहां का सरपंच गांव को आदर्श रूप देने में कोई कमी नही छोड़ना चाहता. उसका बेटा विदेश रहता है, जो एक दिन अपने दो विदेशी दोस्तों के साथ गांव आता हैं. इनमें एक लड़की भी है. इनका आमना सामना जब अंग्रेजी भाषा में अनपढ़ गांव वासियों से होता है, तो हास्य की दिलचस्प स्थितियां पैदा होने के साथ ही कई सवाल उठाती है. फिल्म में अहम सवाल यही है कि क्या अंग्रेजी भाषा का जानकार होने पर ही गांव का कायाकल्प हो सकता है?
14 दिसंबर को ‘पेन एन कैमरा इंटरनेशनल’ के महमूद अली द्वारा पूरे देश में प्रदर्शित की जाने वाली फिल्म ‘‘इंग्लिश की टांय टांय फिस्स’’ से अभिनेता रोहित कुमार बौलीवुड में कदम रख रहे हैं. इसमें उनके साथ रूसी अभिनेत्री लिजन करिमोवा, मनोज जोशी, सुनील पाल, गोविंद नामदेव, विजू खोटे व मुश्ताक खान अहम किरदार में हैं. फिल्म के सह निर्माता मनोज खंडेलवाल व संगीतकार संदीप श्री हैं.