रेटिंगः तीन स्टार

निर्माताः मुक्तिनाथ उपाध्याय,प्रतिभा शर्मा और राजन कोठारी

निर्देशकः राजन कोठारी व दयाल निहलानी

कलाकारः यशपाल शर्मा,प्रतिभा शर्मा, सीमा पाहवा,अलका अमीन,मनोज पाहवा,के के रैना,राजश्री देशपांडे, राजपाल यादव, रवि झंकल, प्रतीक कोठारी,जमील खान,अनुपम श्याम, ललित तिवारी, आसिफ बसरा, आएशा रजा मिश्रा,विजय कुमार,दादी पांडे,अमित जयरथ, व अन्य.

अवधिः 1 घंटा 39 मिनट

ओटीटी प्लेटफार्मः सिनेमाप्रिन्योर डॉट कॉम

पचास से अधिक सफलतम फिल्मों के कैमरामैन और ‘‘पुरूष’’ फिल्म के निर्देशक राजन कोठारी ने 2012 में अस्सी के दशक की पृष्ठभूमि में ग्रामीण भारत में उत्पीड़न और नौकरशाही के इर्द-गिर्द घूमती विचारोत्तेजक व सोचने पर मजबूर करने वाली फिल्म ‘दास कैपिटलः गुनाहों की राजधानी’का सह निर्माण व दयाल निहलापी संग सह निर्देशन किया था. फिल्म का निर्माण पूरा होते ही दुर्भाग्य से राजन कोठारी का देहांत हो गया और यह फिल्म प्रदर्शित न हो पायी.

अब आठ वर्ष बाद राज कोठारी के बेटे व फिल्म ‘दास कैपिटल’के सहायक निर्देशक व इसमें भूलेटना का किरदार निभाने वाले अभिनेता प्रतीक कोठारी के प्रयासों के चलते 20 नवंबर से यह फिल्म ‘‘सिनेमाप्रिन्योर डॉट कॉम’’ पर देखी जा सकती है. वैसे इस बीच यह फिल्म कई अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहो में अपनी धाक जमाती रही है.

कहानीः

80 के दशक की यह कथा एक निम्न-मध्यम वर्ग के दलित पुरुश पुरुषोत्तम की यात्रा है,जो जमीनी स्तर पर नौकरशाही की पृष्ठभूमि में एक ब्लॉक ऑफिस में कैशियर के रूप में काम करते हैं, जो भ्रष्ट, अक्षम और अमानवीय है.

कहानी शुरू होती है बिहार के एक गांव मरगिया से. जहां बीडीओ आफिस में पुरूषोत्तम उर्फ नजीर (यशपाल शर्मा) एकाउंटेंट है. वह छत्तीस वर्ष के होने वाले हैं. मगर पारिवारिक हालात के चलते शादी नहीं हो पायी है. बड़ी मुश्किल से उनकी शादी (प्रतिभा शर्मा) से हो पाती है. नजीर के जीवन में खुशिया आएं, उससे पहले ही उनका तबादला रंगपुर गांव में हो जाता है. जहां का बीडीओ लिद्दर राम (जमील खान) बहुत ही ज्यादा भ्रष्ट है. बीडीओ आफिस के बड़े बाबू तनुधारी (आसिफ बसरा) भी भ्रष्ट हैं. नजीर जो कुछ गलत ढंग से कमाते हैं, उस पर रिद्धिराम व बड़े बाबू की गिद्ध दृष्टि सदैव बनी रहती है, परिणामतः बेचारे नजीर के हाथ कुछ नही आता है. घर की दयनीय हालत के चलते पत्नी शुचि भी परेशान रहती है. नजीर के दोस्त शिवरतन (रवि झांकल) मुर्दा के अस्थि पंजर बेचकर धन कमाते हैं. सदा शराब व अय्याशी में डूबे रहते हैं. शिवरतन के अवैध संबंध भूलेना की मां के साथ हैं. एक दिन भूलेना के पिता दोनों को हमबिस्तर होते देख लेते हैं और आत्महत्या कर लेते हैं. यह बात भूलेना सहन नही कर पाता. शिवरतन पर वह हमला करता है, मगर शिवरतन उसके साथ इस तरह पेश आते हैं कि वह पागल सा हो जाता है. शिवरतन उसे पागल ही बताते हैं.

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