भोजपुरी गायकी में देवी एक ऐसा नाम हैं, जिन्होंने भोजपुरी के पारंपरिक व आधुनिक गीतों को गाने में एक अलग ही मुकाम हासिल किया है. उन के पहले भोजपुरी अलबम ‘पुरवा बयार’ ने लोकप्रियता के सारे रिकौर्ड तोड़ दिए थे.
बिहार के छपरा जिले की रहने वाली देवी के मांबाप दोनों ही प्रोफैसर हैं. उन्होंने देवी के हुनर को पहचाना और उन्हें इस क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए बढ़ावा दिया. पेश हैं, देवी से हुई बातचीत के खास अंश:
आप ने 5 साल की उम्र में गाना शुरू कर दिया था. आप का पहला अलबम कब आया था?
जब मैं ने 5 साल की उम्र में घर में पहली बार गीत गाया था, तब मेरे मांबाप को लगा था कि मैं गायकी में अपना कैरियर बना सकती हूं. मेरे पापा ने मुझे बचपन से ही शास्त्रीय संगीत की तालीम घर पर दिलवाई. जब मैं गाती थी, तो आसपास और स्कूल के लोग अपनी सुधबुध खो कर मेरे गीत सुनते थे. नतीजतन, मेरे मांबाप ने मुझे अपना अलबम निकालने के लिए कहा.
मैं पहली बार साल 2002 में दिल्ली आई थी. वहां मैं ने सैकड़ों म्यूजिक कंपनियों में अपना अलबम निकलवाने के लिए बात की थी, लेकिन मेरे गीतों की सादगी के चलते कोई भी म्यूजिक कंपनी रिस्क नहीं लेना चाहती थी.
आजकल एक चलन है कि बिकना जरूरी है. इस के लिए लोग भोजपुरी की मिठास को बेहूदगी की हद से भी आगे ले जाने में गुरेज नहीं कर रहे हैं. ऐसे हालात में एलटीटी नाम की एक म्यूजिक कंपनी ने बहुत ही छोटे बजट में मेरे पहले अलबम ‘पुरवा बयार’ के लिए हामी भरी. इस अलबम ने बाजार में आते ही लोकप्रियता के सारे रिकौर्ड तोड़े थे.
आप के सुपरहिट गीत कौनकौन से रहे हैं?
वैसे तो मेरे गाए सभी गीतों को मेरे श्रोताओं और प्रशंसकों ने हाथोंहाथ लिया है, पर मेरे कुछ गीत बेहद लोकप्रिय रहे, जिन में ‘अईले मोर राजा’, ‘यारा’, ‘बावरिया’, ‘अंखियां से अंखियां मिला के’ खास हैं.
आप ने भिखारी ठाकुर और महेंद्र मिश्रा के गीतों को भी अपनी आवाज दी है. आप को कैसा महसूस हुआ?
भोजपुरी गीतों के लिए भिखारी ठाकुर और महेंद्र मिश्रा ने जो योगदान दिया है, वह आज तक किसी भी गीतकार ने नहीं दिया है. उन्होंने पारंपरिक व सामाजिक मुद्दों पर गीत लिखे, जो आज भी सब से ज्यादा पसंद किए जाते हैं. मेरे लिए उन के लिखे गीत गाना गर्व की बात है.
भोजपुरी गायन में गायक से नायक बनने की परंपरा रही है, फिर भी आप ने भोजपुरी फिल्मों से दूरी बनाए रखी. क्यों?
मेरे पास भोजपुरी फिल्मों के बहुत से औफर आए, लेकिन भोजपुरी फिल्मों में शब्दों के चयन के चलते मैं ने काम करने से मना कर दिया. इस के बावजूद मैं अच्छे गाने गा कर लोगों के दिलों पर राज कर रही हूं.
आप ने एक हिंदी फिल्म भी बनाई, साथ ही कई हिंदी फिल्मों में गाने भी गाए. क्या आगे भी किसी हिंदी फिल्म को बनाने पर विचार चल रहा है?
मैं ने ‘जलसाघर की देवी’ नाम से फिल्म बनाई, जिस में गाए गीतों को मैं ने अपनी आवाज भी दी और खुद ही ऐक्टिंग भी की है. इस फिल्म में रवींद्र जैन ने संगीत दिया था, जिसे दर्शकों ने काफी पसंद किया.
सामाजिक बुराइयों को ले कर भी आप ने कई गीत गाए हैं. इस का विचार कहां से आया?
हमारे समाज में बाल विवाह, दहेज प्रथा, अशिक्षा जैसी कई बुराइयां हैं. ऐसे में गीतसंगीत इन बुराइयों को दूर करने का एक अच्छा जरीया भी माना जा सकता है. इसीलिए मैं ने भिखारी ठाकुर और महेंद्र मिश्रा के लिखे गीतों को गाया.
सुना है कि आप ने एक म्यूजिक आश्रम भी बनाया है?
जी हां, आप ने बिलकुल ठीक सुना है. मैं ने शास्त्रीय गीतसंगीत के साथसाथ भारतीय परंपराओं, लोक गायन और साफसुथरे भोजपुरी गायन के लिए ऋषिकेश में देवी म्यूजिक आश्रम बनाया है, जहां देशविदेश से लोग संगीत सीखने आते हैं.
‘सरस सलिल’ पत्रिका को ले कर आप के क्या विचार हैं?
‘सरस सलिल’ एक अच्छी पत्रिका है और यह सामाजिक कुरीतियों, अंधविश्वासों का विरोध करने के साथसाथ अच्छी जानकारियों का खजाना समेटे हुए है. मौका मिलने पर मैं इसे जरूर पढ़ती हूं.