Valentine’s Special: हम तुम कुछ और बनेंगे

बगल के कमरे से अब फुसफुसाहट सुनाई दे रही थी. कुछ देर पहले तक उन की आवाजें लगभग स्पष्ट आ रही थीं. बात कुछ ऐसी भी नहीं थी. फिर दोनों इतने ठहाके क्योंकर लगा रहे? जाने क्या चल रहा है दोनों के बीच. वार्त्तालाप और ठहाकों का सामंजस्य उस की सोच के परे जा रहा था. उफ, तीर से चुभ रहे हैं, बिलकुल निशाना बैठा कर नश्तर चुभो रही है उन की हंसी. रमण का मन किया कि वह कोने वाले कमरे में चला जाए और दरवाजा बंद कर तेज संगीत चला दुनिया की सारी आवाजों से खुद को काट ले. परंतु एक कीड़ा था जो कुलबुला रहा था, काट रहा था, हृदय क्षतविक्षत कर भेद रहा था, पर कदमों में बेडि़यां भी उसी ने डाल रखी थीं. वह कीड़ा बारबार विवश कर रहा था कि वह ध्यान से सुने कि बगल के कमरे से क्या आवाजें आ रही हैं:

‘‘जीवन की बगिया महकेगी, लहकेगी, चहकेगी,

खुशियों की कलियां झूमेंगी,

झूलेंगी, फूलेंगी,

जीवन की बगिया…’’ काजल इन पंक्तियों को गुनगुना रही थी.

‘रोहन को अब सीटियां बजाने की क्या जरूरत है इस पर? बेशर्म कहीं का,’ सोफे पर अधलेटे रमण ने सोचा. उस का सर्वांग सुलग रहा था. अब जाने उस ने क्या कहा जो काजल को इतनी हंसी आ रही है. रमण अनुमान लगाने की कोशिश कर ही रहा था कि रोहन के ठहाकों ने उस के सब्र के पैमाने को छलका ही दिया. रमण ने कुशन को गुस्से से पटका और सोफे से उठ खड़ा हुआ.

‘‘क्या हो रहा है ये सब? कितनी देर से तुम दोनों की खीखी सुन रहा हूं. आदमी अपने घर में भी कुछ पल चैनसुकून से नहीं रह सकता है,’’ रमण के गुस्से ने मानो खौलते दूध में नीबू निचोड़ दिया.

रोहन, सौरीसौरी बोलता हुआ उठ कर चला गया. पर काजल अभी भी कुछ गुनगुना रही थी. रोहन के जाने के बाद काजल का गुनगुनाना उस की रूह को मानो ठंडक पहुंचाने लगा. उस ने भरपूर नजरों से काजल को देखा. 7वां महीना लग गया है. इतनी खूबसूरत उस ने अपनी ब्याहता को पहले कभी नहीं देखा था. गालों पर एक हलकी सी ललाई और गोलाई प्रत्यक्ष परिलक्षित थी. रंगत निखर कर एक सुनहरी आभा से मानो आलोकित हो दिल को रूहानी सुकून पहुंचा रही थी. सदा की दुबलीपतली छरहरी काजल आज अंग भर जाने के पश्चात अपूर्व व्यक्तित्व की स्वामिनी लग रही थी.

कोई स्त्री गर्भावस्था में ही शायद सर्वाधिक रूपवती होती है. रोमरोम से छलकती मातृत्व से परिपूर्ण सुंदरता अतुलनीय है. रमण अपने दोनों चक्षुओं सहित सभी ज्ञानेंद्रियों से अपनी ही बीवी के इस अद्भुत नवरूप का रसास्वादन कर ही रहा था कि रोहन फिर आ गया और रमण हकीकत की विकृत सचाई से आंखें चुराता हुआ झट कमरे से निकल गया. रोहन के हाथ में विभिन्न फलों को काट कर बनाया गया फ्रूट सलाद था.

इस बार रमण सच में कोने वाले कमरे में चला गया और तेज संगीत बजा वहीं पलंग पर लेट गया. म्यूजिक भले ही कानफोड़ू हो गया, परंतु उस कमरे से आती फुसफुसाहट को रोकने में अभी भी असमर्थ ही था. रोहन की 1-1 सीटी इस संगीत को मध्यम किए जा रही थी, साथ ही साथ बीचबीच में काजल की दबीदबी खिलखिलाहट भी. ऐसा लग रहा था कि दोनों कर्ण मार्ग से प्रवेश कर उस के मानस को क्षतविक्षत कर के ही दम लेंगे.

इसी बीच स्मृति कपाट पर विगत की दस्तक शुरू हो गई. इस नवआगंतुक ने मानो उस की सुधबुध को ही हर लिया. बगल के कमरे की फुसफुसाहट, तेज संगीत और अब स्मृतियों की थाप. इस स्वर मिश्रण ने उसे आभास दिला दिया कि शायद जहन्नुम यही है.

सच इन दिनों उसे आभास होने लगा है कि वह मानो जहन्नुम की अग्नि में झुलस रहा हो. जिस उत्कंठा से उस ने इस खुशी को पाने की तमन्ना की थी, वह इस अग्नि कुंड से हो कर निकलेगी, यह उस के लिए कल्पनातीत थी.

‘कुछ महीने पहले तक सब कितना मधुर था,’ रमण ने सोचा, ‘पर कैसे कहा जाए कि मधुर था तब तो कुछ और ही शूल चुभ रहे थे,’ चेतना की बखिया उधड़ने लगीं.

विवाह के 10 वर्ष होने को थे. शुरू के वर्षों में नौकरी, कैरियर, पदोन्नति और घर की जिम्मेदारियों के चलते रमण और काजल परिवार बढ़ाने की अपनी योजना को टालते रहे. आदर्श जोड़ी रही है दोनों की. कितना दबाव था सब का कि उन के बच्चे होने चाहिए. काजल के मातापिता, रमण के मातापिता, नातेरिश्तेदार यहां तक कि दोस्त भी टोकने लगे थे. रमण के सासससुर उस की शादी की 7वीं वर्षगांठ परआए थे.

‘‘तुम लोगों ने बड़ा ही अच्छा आयोजन किया अपनी 7वीं वर्षगांठ पर. इस से पहले तो तुम लोग वर्षगांठ मनाने के ही विरुद्ध होते थे. बहुत खुशी हो रही है.’’

रमण के ससुरजी ने ऐसा कहा तो काजल झट से बोल पड़ी, ‘‘हां पापा, इस बार बात ही कुछ ऐसी थी. मेरे देवर ने अपनी पढ़ाई बहुत हद तक पूरी कर ली है. अपने आगे की पढ़ाई का खर्च अब वह खुद वहन कर सकता है. मेरा देवर डाक्टर बन गया, हमारी तपस्या सफल हुई. वर्षगांठ तो बस एक बहाना है अपनी खुशियों को सैलिब्रेट करने का.’’

‘‘बहनजी, अब आप ही रमण और काजल को समझाएं कि ये जल्दी से हमें खुशखबरी सुनाएं. मेरी तो आंखें तरस गई हैं कि कोई शिशु मेरे आंगन में खेले. ऐसा न हो कि कहीं देर हो जाए,’’ रमण की मां ने अपनी समधिन से कहा.

‘‘हां बहनजी, आप सही कह रही हैं. हर चीज का एक वक्त होता है, जो सही वक्त पर पूरी हो जानी चाहिए. हम भी तो बूढ़े हो चले हैं,’’ रमण की सास ने कहा.

कुछ ही महीनों में काजल को यह भान होने लगा कि कहीं तो कुछ गड़बड़ है. फिर शुरू हुआ जांचरिपोर्ट का अंतहीन सिलसिला. जब तक चाह नहीं थी तब तक इतनी बेसब्री और संवेदनाएं भी जाग्रत नहीं थीं. अब जब असफलता और अनचाहे परिणाम मिलने लगे तो दोनों की बच्चे के प्रति उत्कंठा भी उतनी ही तीव्र हो गई. घर के बुजुर्गों की आशंकाएं मूर्त हो रही थीं. रमण की प्रजनन क्षमता ही संदेह के दायरे में आ गई थी. किसी ने कभी सोचा भी नहीं था कि हर तरह से स्वस्थ दिखने वाले और स्वस्थ जीवनशैली जीने वाले रमण को यह समस्या होगी.

‘‘अब जब विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है, तो हर चीज का समाधान है. हम किसी अच्छे क्लिनिक या अस्पताल से बात करने की सोच रहे हैं, जहां से शुक्राणु ले कर मेरे गर्भ में निषेचित किया जाएगा,’’ पूरे परिवार के सामने काजल ने रमण के हाथ को थामे हुए रहस्योद्घाटन किया.

‘‘आप कहीं और जाने की क्यों सोच रहे हैं? मेरे ही हौस्पिटल में कृत्रिम शुक्राणु निषेचन का अच्छा डिपार्टमैंट है. मैं संबंधित डाक्टर से बात कर लूंगा. सब अच्छी तरह निष्पादित हो जाएगा,’’ रोहन ने कहा.

फिर तो दोनों के मातापिता सिर जोड़े इस समस्या के निदान में जुट गए. वहीं काजल और रमण ने बालकनी से नीचे पार्क में खेलते छोटे बच्चों को देख ख्वाबों का एक लिहाफ बुन लिया.

उन दिनों काजल उस का हाथ मानो एक क्षण को भी नहीं छोड़ती थी. रमण को उस ने यह एहसास ही नहीं होने दिया कि कमी उस में है. दोनों ने इस आती रुकावट को पार करने हेतु जमीनआसमान एक कर दिया. दोनों दो शरीर एक जान हो गए थे.

‘‘लेकिन…पर…’’ अपनी सास की बनतीबिगड़ती माथे की लकीरों को काजल भांप रही थी.

‘‘उस तरीके से जन्मा बच्चा क्या पूरी तरह स्वस्थ होगा?’’ रमण के पिताजी ने पूछा था.

‘‘फिर जाने किस कुल या गोत्र का होगा वह?’’ रमण की सास ने बुझी वाणी में कहा.

‘‘देर तक एक लंबी चुप्पी छाई रही. जब चुप्पी के नुकीले नख रक्तवाहिनियों से खून टपकाने की हद तक पहुंच गए तो रमण ने ही चुप्पी तोड़ी, हमारे पास और कोई रास्ता नहीं है. हम चाहते तो किसी को कुछ नहीं बताते पर आप सब को जानने का हक है.’’

‘‘एक रास्ता है. यदि घर का ही कोई स्वस्थ पुरुष अपने शुक्राणु दान करे इस हेतु तो वह अनजाना कुलपरिवार की भांति नहीं रहेगा,’’ काजल के पिताजी ने कहा.

‘‘आप सब निश्चिंत रहें, बहुत लोग इस विधि से बच्चे प्राप्त कर रहे हैं. हर नए आविष्कार को संशय और अविश्वास की दृष्टि से देखा ही जाता है. मैं खुद ध्यान रखूंगा कि सब अच्छे से संपन्न हो,’’ रोहन के इस आश्वासन ने उन्हें फौरी तौर पर थोड़ी राहत दे दी.

आखिर वर्षों बाद वह दिन आया जब काजल के गर्भवती होने की डाक्टर ने पुष्टि की. काजल ने अपनी नौकरी से अनिश्चितकालीन छुट्टी ले ली. एक बच्चे की आहट से परिवार में हर्ष की लहर दौड़ गई. आंगन में घुटनों के बल चलते शिशु की कल्पना से ओतप्रोत हरेक सदस्य अपनी तरह से खुशियां जाहिर कर रहा था. अचानक घर में काजल सब से महत्त्वपूर्ण हो गई. आखिर क्यों न होती? आती खुशियों को तो उसी ने अपने में सहेज रखा था.

रमण देखता उस की प्रिया उस से ज्यादा उस के मातापिता के साथ वक्त गुजार रही है. आजकल उस के सासससुर भी जल्दीजल्दी आते. रमण भी एक विजयी भाव से हर जाते पल को महसूस कर रहा था. पापापापा सुनने को बेचैन उस के दिल को कुछ ही दिनों में सुकून जो मिलने वाला था.

सब ठीक चल रहा था. डाक्टर हर चैकअप के बाद संतुष्टि जाहिर करते. माह दर माह बीत रहे थे. इस दौरान रमण महसूस कर रहा था कि आजकल रोहन भी कुछ ज्यादा ही जल्दीजल्दी आने लगा है. जल्दी आना तो तब भी चलता, आखिर उस का भी घर है, ऊपर से डाक्टर. सब को उस की जरूरत रहती. कभी मां को, कभी पिताजी को. बूढ़े जो हो चले थे. पर देखता जब रोहन आता, वह काजल की कुछ अधिक ही देखभाल करता. यह बात रमण को अब चुभने लगी थी. शक का बुलबुला उस के मानस में आकार पाने लगा था कि कहीं यह वीर्यदान रोहन ने तो नहीं किया है?

हालांकि उस के पास इस बात का कोई सुबूत नहीं था पर जब कमी खुद में होती है तो शायद ऐसे विचार उठने स्वाभाविक हैं.

रोहन को देखते ही उसे अपनी कमी और बड़ेबड़े स्पष्ट अक्षरों में परिलक्षित होने लगती. रोहन का काजल के साथ वक्त गुजारना उसे बड़ा ही नागवार गुजरता. धीरेधीरे उसे महसूस हो रहा था कि जब तक वह कुछ करने की सोचता है काजल के लिए, रोहन तब तक वह कर गुजरता है. रोहन सहित घर के सभी सदस्य जब आपस में हंसीमजाक कर रहे होते, रमण कोई न कोई बहाना बना वहां से खिसक लेता. धीरेधीरे रमण अपने पलकपांवड़े समेटने लगा जो बिछा रखे थे नव अंकुरण के लिए. एक अजीब सी विरक्ति हो चली उसे जिंदगी से. रमण खुद को बिलकुल अनचाहा सा महसूस कर रहा था. काजल बुलाती रह जाती. वह उस के पास नहीं जाता.

रोहन और काजल की घनिष्ठता उसे बेहद नागवार गुजर रही थी. रमण सोचता, ‘यदि बच्चे का पिता रोहन ही है तो मैं क्यों दालभात में मूसलचंद बनूं?’

इस सोच ने उस की दुनिया पलट दी थी. वह अपना ज्यादा वक्त दफ्तर में गुजारता. कभीकभी तो टूअर का बहाना कर कईकई दिनों तक घर भी नहीं आता था. गर्भावस्था के आखिर के दिन बड़े ही तकलीफदेह थे. काजल को बैठानाउठाना सब रोहन करता. रिश्ते बेहद उलझ गए थे. सिरा अदृश्य था और उलझनों का मकड़जाल पूरे शबाब पर. रमण को याद आता, जब उस की शादी हुई थी तब रोहन छोटा ही था. काजल को भाभी मां कहता था. काजल कितनी फिक्रमंद रहती थी उस की पढ़ाई के लिए.

‘छि: सब गडमड हो गया… इस से अच्छा बेऔलाद रहता.’ बेसिरपैर के खयालात रमण के सहभागी बन उस की मतिभ्रष्ट किए जा रहे थे. तभी रोहन की आवाज आई, ‘‘भैया जल्दी आइए भाभी की तबीयत खराब हो रही है. हौस्पिटल ले जाना होगा तुरंत.’’

‘‘तुम ले जाओ… मैं भला जा कर क्या करूंगा. कोई डाक्टर तो हूं नहीं. मुझे आज ही 15 दिनों के लिए हैदराबाद जाना है,’’ रमण ने उचटती हुई आवाज में कहा.

काजल को लग रहा था कि रमण की यह उदासीनता उस के अपराधभाव के कारण है कि वह होने वाले बच्चे का जैविक पिता नहीं है. डाक्टर ने पहले ही काजल को सचेत कर दिया था कि बहुत से पिता इस तरह का व्यवहार करते हैं और नकारात्मक रवैया अपनाते हैं. उस ने जानबूझ कर बखेड़ा नहीं खड़ा किया.

करीब 10 दिनों के बाद काजल भरी गोद वापस आई. इस बीच रमण एक बार भी हौस्पिटल नहीं गया. 15वें दिन वापस आया था.

मां से उसे पता चला. पहले दिन तो बच्चे को छुआ भी नहीं. काजल से बेहतर उस के मनोभावों को कौन समझता पर उस ने भी शायद अब वही रुख इख्तियार कर लिया था जो रमण ने. उस दिन उसी कोने वाले कमरे में तेज संगीत को चीरती एक मधुर सी रुनझुन संगीतमय लहरी रमण को बेचैन किए जा रही थी.

‘हां, यह तो बच्चे की आवाज है,’ रमण ने कानफोड़ू म्यूजिक औफ किया और ध्यानमग्न हो शिशु की स्वरलहरियों को सुनने लगा. जाने लड़का है या लड़की? उफ कोई चुप क्यों नहीं करा रहा. मन उद्वेलित होने लगा. एक क्षण को चुप्पी छाई फिर रुदन…

रमण कमरे में चहलकदमी करने लगा. अब तो लग रहा था जैसे बच्चे का कंठ सूख रहा हो. इस आरोहअवरोह ने शीत शिला को धीमी आंच पर पिघलाना आरंभ कर दिया. मां भी न जाने क्यों उन्हें छोड़ कर चली गईं. अभी कुछ दिन तो रहना चाहिए था.

इसी बीच उस का मोबाइल बजने लगा. जाने कौन है. नया नंबर है… सोचते उस ने कान से लगाया.

‘‘भैया, मैं रोहन बोल रहा हूं, प्लीज, फोन मत काटिएगा. मैं आज सुबह ही सिडनी, आस्ट्रेलिया आ गया हूं. यहां के एक अस्पताल में मुझे काम मिल गया है. साथ ही मैं कुछ कोर्स भी करूंगा. आप और भाभी मां ने जीवन में मेरे लिए बहुत कुछ किया है. भैया, पिछले कुछ महीनों में भाभी मां बेहद मानसिक संत्रास से गुजरी हैं. आप की बेरुखी उन्हें जीने नहीं दे रही. छोटा मुंह बड़ी बात हो जाएगी पर मैं कहना चाहूंगा कि आप ने भाभी मां को उस वक्त छोड़ दिया जब उन को सर्वाधिक आप की जरूरत थी,’’ इतना कह रोहन फूटफूट कर रोने लगा. एक लंबी सी चुप्पी पसरी रही कुछ क्षण रिसीवर के दोनों तरफ…

‘‘कितना बड़ा और समझदार हो गया है रोहन. मैं ने ही खुद को अदृश्य उलझनों और विकारों में कैद कर लिया था.’’

रमण शायद कुछ और भी कहता कि तभी रोहन बोल पड़ा, ‘‘भैया बच्चे क्यों रो रहे हैं? मुझे उन के रोने की आवाजें आ रही हैं.’’

‘‘बच्चे क्या जुड़वा हैं?’’ रमण उछल पड़ा और दौड़ पड़ा उन की तरफ. 2 नर्मनर्म गुलाबी रुई के फाहे हाथपैर फेंकते समवेत स्वर में आसमान सिर पर उठाए थे.

‘‘धन्यवाद रोहन, धन्यवाद भाई. घर जल्दीजल्दी आते रहना,’’ कह उस ने यह सोचते हुए बच्चों को छाती से लगा लिया कि क्या फर्क पड़ता है कि बच्चे रोहन के स्पर्म से पैदा हुए हैं या किसी और के. अब ये बच्चे उस के हैं. वही उन का पिता है. रोहन के होते तो शायद वह उन्हें छोड़ कर नहीं जाता. यह तसल्ली कम नही है.

Valentine’s Special- समर्पण: बेमेल प्रेम संबंध की अनोखी कहानी

नौकरी से सेवानिवृत्ति के बाद मैं नियमित रूप से सुबह की सैर करने का आदी हो गया था. एक दिन जब मैं सैर कर घर लौट रहा था तो लगभग 26-27 साल की एक लड़की मेरे साथसाथ घर आ गई. वह देखने में बहुत सुंदर थी. मैं ने झट से पूछ लिया, ‘‘हां, बोलो, किस काम से मेरे पास आई हो?’’ उस ने कहा, ‘‘हम लोगों का एक आर्केस्ट्रा गु्रप है. मैं रिहर्सल के बाद रोज इधर होते हुए अपने घर जाती हूं.

आज इधर से गुजरते हुए  आप दिखाई दिए तो मैं ने सोचा, आप से मिल ही लूं.’’ मैं ने बताया नहीं कि मैं भी उसे नोटिस कर चुका हूं और मेरा मन भी था कि उस से मुलाकात हो. ‘‘थोड़ा और बताओगी अपने कार्यक्रमों और ग्रुप में अपनी भूमिका के बारे में.’’ ‘‘यहीं खडे़खडे़ बातें होंगी या आप मुझे घर के अंदर भी ले जाएंगे.’’

‘‘यू आर वेलकम. चलो, अंदर चल कर बात करते हैं.’’ ड्राइंग रूम में बैठने के बाद उस ने अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘मेरा नाम सुधा है, वैसे हम कलाकार लोग स्टेज पर किसी और नाम से जाने जाते हैं. मेरा स्टेज का नाम है नताशा. हमारे कार्यक्रम या तो बिजनेस हाउस करवाते हैं या हम लोग शादियों में प्रोग्राम देते हैं. मैं फिल्मी गानों पर डांस करती हूं.’’

मैं ने उस से पूछा, ‘‘कार्यक्रमों के अलावा और क्या करती हो?’’ ‘‘मैं एम.ए. अंगरेजी से प्राइवेट कर रही हूं,’’ सुधा ने बताया, ‘‘मेरे पापा का नाम पी.एल. सेठी है और वह पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट में काम करते हैं.’’ सुधा ने खुल कर अपने परिवार के बारे में बताया, ‘‘मेरी 3 बहनें हैं. बड़ी बहन की शादी की उम्र निकलती जा रही है. मुझ से छोटी बहनें पढ़ाई कर रही हैं.

मां एक प्राइवेट स्कूल की टीचर हैं. घर का खर्च मुश्किल से चलता है. प्रोफेसर साहब, मैं ने आप की नेमप्लेट पढ़ ली थी कि आप रिटायर्ड प्रोफेसर हैं, इसलिए आप को प्रोफेसर साहब कह कर संबोधित कर रही हूं. हां, तो मैं आप को अपने बारे में बता रही थी कि मुझे हर महीने कार्यक्रम से साढ़े 3 हजार रुपए की आमदनी हो जाती है, जो मैं बैंक में जमा करवा देती हूं.’’

मैं ने सुधा के पूरे शरीर पर नजर डाली. गोरा रंग, यौवन से भरपूर बदन और उस पर गजब की मुसकराहट. सुधा ने पूछा, ‘‘आप के घर पर कोई दिखाई नहीं दे रहा है. लोग कहीं बाहर गए हैं क्या?’’  मैं ने सुधा को बताया, ‘‘मेरे घर पर कोई नहीं है. मैं ने शादी नहीं की है. मेरा एक भाई और एक बहन है. दोनों अपने परिवार के साथ इसी शहर में रहते हैं. वैसे सुधा, मैं शाम को इंगलिश विषय की एम.ए. की छात्राओं को ट्यूशन पढ़ाता हूं. तुम आना चाहो तो ट्यूशन के लिए आ सकती हो.’’ सुधा ने हामी भर दी और बोली, ‘‘मैं शीघ्र ही आप के पास ट्यूशन के लिए आ जाया करूंगी.

आप समय बता दीजिए.’’ सुधा के निमंत्रण पर मैं ने एक दिन उस का कार्यक्रम भी देखा. निमंत्रणपत्र देते हुए उस ने कहा, ‘‘प्रोफेसर साहब, आप से एक निवेदन है कि मेरे पापा भी कार्यक्रम को देखने आएंगे. आप अपना परिचय मत दीजिएगा. मैं सामने आ जाऊं तो यह मत जाहिर कीजिएगा कि आप मुझे जानते हैं. कुछ कारण है, जिस की वजह से मैं फिलहाल यह जानपहचान गुप्त रखना चाहती हूं.’’ ट्यूशन पर आने से पहले सुधा ने पूछा, ‘‘सर, कोचिंग के लिए आप कितनी फीस लेंगे?’’

मैं ने उत्तर दिया, ‘‘तुम से फीस नहीं लेनी है. तुम जब भी मेरे घर आओ किचन में चाय या कौफी बना कर पिला दिया करना. हम दोनों साथसाथ चाय पीने का आनंद लेंगे तो समझो फीस चुकता हो गई.’’ ‘‘सर, चाय तो मुझे भी बहुत अच्छी लगती है,’’ सुधा बोली, ‘‘एक बात पूछ सकती हूं, आप ने शादी क्यों नहीं की?’’ मैं इस प्रश्न के लिए तैयार नहीं था किंतु अब तक हम एकदूसरे के इतने निकट आ चुके थे कि बडे़ ही सहज भाव से मैं ने उस से कहा, ‘‘पहले तो मातापिता की जिम्मेदारी मुझ पर थी, फिर उन के देहांत के बाद मैं मन नहीं बना पाया. मातापिता के जीवन काल  में एक लड़की मुझे पसंद आई थी, लेकिन वह उन्हें नहीं अच्छी लगी. बस, इस के बाद शादी का विचार छोड़ दिया.’’

सुधा अकसर सुबह रिहर्सल के बाद सीधे मेरे घर आती और ट्यूशन का समय मैं ने उसे साढे़ 5 बजे शाम का अकेले पढ़ने के लिए दे दिया था.  उस का मेरे घर आना इतना अधिक हो गया था कि महल्ले वाले भी रुचि दिखाने लगे. कब वह मेरे घर आती है, कितनी देर रुकती है, यह बात उन की चर्चा का विषय बन गई थी. जब मैं ने उन के इस आचरण पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई तो वे खुदबखुद ठंडे पड़ गए. हां, इस चर्चा का इतना असर जरूर पड़ा कि जो छात्राएं 4-5 बजे शाम को ग्रुप में आती थीं वे एकएक कर ट्यूशन छोड़ कर चली गईं. इस बात की परवा न तो मैं ने की और न ही सुधा पर इन बातों का कोई असर था. मेरे भाई और बहन ने भी मुझे इस बारे में व्यंग्य भरे लहजे में बताया था, किंतु उन्होंने ज्यादा पूछताछ नहीं की. सुधा को साउथइंडियन डिशेज अच्छी लगती थीं.

अत: उसे साथ ले कर मैं एक रेस्तरां में भी जाने लगा था. वहां के वेटर भी हमें पहचानने लगे थे. एक दिन जब देर रात सुधा रेस्तरां पहुंची तो वेटर ने उस से कहा, ‘‘मैडम, आप के पापा का फोन आया था. वह थोड़ी देर से आएंगे. आप बैठिए, मैं आप के लिए पानी और चाय ले कर आता हूं.’’ मैं जब रेस्तरां में पहुंचा तो सुधा ने हंसते हुए बताया, ‘‘प्रोफेसर, आज बड़ा मजा आया. वेटर कह रहा था आप के पापा लेट आएंगे. यहां के वेटर्स मुझे आप की बेटी समझते हैं.’’ इस पर मैं ने भी चुटकी ले कर कहा, ‘‘मेरी उम्र ही ऐसी है, इन की कोई गलती नहीं है. यह भ्रम बना रहने दो.’’

डिनर से पहले सुधा ने कहा, ‘‘प्रोफेसर, आप का मेरे जीवन में आना एक मुबारक घटना है.’’ वह बहुत ही भावुक हो कर कह रही थी. मुझे लगा जैसे किसी बहुत ही घनिष्ठ संबंध के लिए मुझे मानसिक रूप से तैयार कर रही हो. मैं अकसर उस के डांस की तारीफ किया करता था और उसे यह बहुत अच्छा लगता था. एक दिन शाम को हम दोनों चाय पी रहे थे तो बडे़ प्यार से उस की पीठ सहलाते हुए मैं ने कहा, ‘‘सुधा, तुम्हें तो पता ही है कि रिटायरमेंट होने पर मुझे काफी अच्छी रकम मिली है. मेरी जरूरतें भी बहुत सीमित हैं. मेरा एक योगदान अपने परिवार के लिए स्वीकार करो. हर महीने तुम्हें मैं 1 हजार रुपए दिया करूंगा. वह तुम अपने एकाउंट में जमा करवाती रहना.’’

मेरी यह योजना सुधा को बेहद पसंद आई. उस की आंखों में खुशी के आंसू भर आए. वह बोली, ‘‘अब मैं पूरी तरह से आप को समर्पित हूं. आप जो भी मुझे प्यार से देंगे उसे मैं अपना हक समझ कर खुशी से स्वीकार करूंगी,’’ और फिर एकाएक आगे बढ़ कर उस ने  मेरा माथा चूमलिया. कहने लगी, ‘‘प्रोफेसर, आप से मिलने के बाद मेरी कई मुश्किलें हल होती दिखाई देती हैं.’’ मैं ने महसूस किया कि एकदूसरे का सामीप्य तनमन को प्यार के रंग में भिगो देता है. हमारे जीवन मेें वे कुछ अनमोल क्षण होते हैं जिन से हमें जीवन भर ऊर्जा और जीने का मकसद मिलता है. जवानी की दहलीज पर खड़ी सुधा पूरी उमंग और जोश में थी. उसे प्रेम के प्रथम अनुभव की तलाश थी, उसे चाहिए था जी भर कर प्यार करने वाला एक प्रौढ़ और पुरुषार्थी प्रेमी, जो शायद उस ने मुझ में ढूंढ़ लिया था.

नाजुक और व्यावहारिक क्षणों में कभीकभी नैतिकता बहुत पीछे रह जाती है. घनिष्ठता के अंतरंग क्षणों में, चाय की चुस्कियां लेते हुए साहस कर सुधा ने पूछ ही लिया, ‘‘प्रोफेसर, कौन थी वह भाग्यशाली लड़की जो आप को पसंद आई थी. उस का नाम क्या था. देखने में कैसी लगती थी?’’ उस की रुचि देख कर मैं ने अपनी अलबम के पृष्ठ पलट कर, उसे कृष्णा की फोटो दिखाते हुए कहा, ‘‘उस का नाम कृष्णा था. बहुत सुंदर और अच्छी लड़की थी.’’ फोटो देख कर उसे झटका सा लगा लेकिन स्पष्टतौर पर उस ने जाहिर नहीं होने दिया. ‘‘इस से अधिक मुझ से कुछ मत पूछना, सुधा,’’ मैं ने कहा. उस दिन मेरा मन हुआ काश, सुधा आज देर तक मेरे घर रुके और हम लोग प्यार भरी बातें करें, पर देर होने के कारण वह जल्दी ही चली गई. सुधा के निमंत्रण पर एक शाम मैं प्रोग्राम देख रहा था.

फिल्मी कलाकार की तरह सुधा नृत्य पेश कर रही थी. हाल खचाखच भरा हुआ था. ‘बीड़ी जलाइ ले’ और ‘कजरारे कजरारे’ जैसे मशहूर गानों पर सुधा अपने हर स्टेप पर दर्शकों की वाहवाही बटोर रही थी. तालियों की गड़गड़ाहट से बारबार हाल गूंज उठता था. प्रोग्राम के अंत में मेरे पास से गुजरते हुए सुधा ने मुझ से धीमे स्वर में पूछा, ‘‘प्रोफेसर, कैसा लगा मेरा डांस?’’ मैं ने धीमे स्वर में सराहना करते हुए कहा, ‘‘तुम वाकई बहुत अच्छा डांस करती हो.’’ दूसरे दिन सुधा शाम को 5 बजे मेरे घर पहुंची. घर में प्रवेश करते ही बोली, ‘‘प्रोफेसर, चाय बना कर लाती हूं, फिर ढेर सारी बातें करेंगे.’’ वह चाय ले कर आई और मेरे पास बैठ गई. ‘‘प्रोफेसर, आप ने ‘निशब्द’ फिल्म देखी है?’’

सुधा ने पूछा. ‘‘हां, देखी है, मुझे अच्छी भी लगी थी,’’ मैं ने बताया. सुधा मेरे इतने पास बैठी थी कि मन हुआ मैं उस के नरम गालों को स्पर्श कर अपने हाथों से उसे प्यार करूं. कृष्णा की याद आज ताजा हो उठी थी. उसे मैं इसी तरह प्यार किया करता था. उस दिन ट्यूशन का कोई काम नहीं हो पाया. बस, नजदीकियां बढ़ा कर, हम दोनों एकदूसरे को प्यार करते रहे.

जाते समय सुधा ने बडे़ प्यार से मेरा हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, ‘‘‘निशब्द’ में अमिताभ बच्चन ने जिया से कितना जीजान से प्यार किया है. उम्र को भूल जाइए प्रोफेसर, मुझे आप से वैसा ही बेबाक प्यार चाहिए. अपने स्वाभिमान को भी बनाए रखिए और मुझ से प्रेम करते रहिए, मेरा दिल कभी नहीं तोडि़एगा.’’ मेरे भीतर कुछ ऐसा परिवर्तन हो चुका था कि उम्र की सीमा को लांघ कर मैं ने सुधा को अपनी बांहों में कस लिया और प्यार करने लगा, ‘‘नैतिकता की बात मत सोचना सुधा. मेरे साथ आज आनंद में डूब जाओ,’’ मैं बोलता रहा, ‘‘कुदरत ने शायद हम दोनों को इसीलिए मिलाया है कि हम प्रेम की ऐसी मिसाल कायम करें जिस का अनुभव अपनेआप में अद्भुत हो.’’ एक झटके में मुझ से अलग होते हुए सुधा बोली, ‘‘प्रोफेसर, हम ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे. ‘निशब्द’ में भी ऐसा कुछ नहीं दिखाया गया है. अमिताभ ने जिया से कोई यौन संपर्क नहीं किया. चलो, वह तो कहानी थी.

हम वास्तव में प्यार करते रहेंगे. बस, एक यौन संपर्क को छोड़ कर,’’ एक पल रुक कर वह फिर बोली, ‘‘मैं एक बात और आप को बताना चाहती हूं कि जो फोटो कृष्णा की आप ने दिखाई थी वह मेरी मां की है. मेरी मां का नाम कृष्णा है. प्यार तो किया है आप से मैं ने और जिंदगी भर करती रहूंगी.’’ यह जान कर मेरे पैरों तले जमीन सरक गई. आश्चर्यचकित मैं सुधा के चेहरे की ओर देखता रहा. झील सी गहरी आंखों में अब भी मेरे लिए प्यार उमड़ रहा था. होंठों पर मधुर मुसकान थी. सुधा मेरी निगाहों में इतने ऊंचे  स्तर तक उठ चुकी थी, जिस महानता को मेरा निस्वार्थ प्रेम छू तक नहीं सकता था.

क्षण भर को मुझे लगा था, शायद तकदीर ने सुधा के रूप में मेरा पहला प्यार मुझे लौटा दिया है. दूसरे ही क्षण मैं अपने विचार पर मन ही मन हंस दिया कि अगर कृष्णा से विवाह भी हो गया होता तो सुधा जैसी ही सुंदर लड़की होती… मैं अपने विचारों में खोया था, इतने में सुधा ने अपना फैसला सुना दिया, ‘‘प्रोफेसर, यह मत सोचना कि मैं आप के पास आना बंद कर दूंगी. मैं एक बोल्ड लड़की हूं. आप को अपने मन की बात बता रही हूं. मां को बता चुकी हूं, अब मैं शादी नहीं करूंगी. आज के माहौल में जहां दहेज के लोभी लोग लड़कियों को तंग करते हैं, जला देते हैं या तलाक जैसे नर्क में ढकेल देते हैं, मैं शादी के चक्कर में नहीं पड़ूंगी. मैं अपनी मर्जी की मालिक हूं.

आप चाहोगे तो आप के पास आ कर रहने लगूंगी. नहीं चाहोगे तो भी आप के पास आती रहूंगी. ‘‘प्यार में चिर सुख की चाह होती है. यौन संबंध और विवाह की आवश्यकता से ऊपर उठ चुकी है आप की सुधा. आप के संरक्षण में  बहुत सुरक्षित रहूंगी,’’ मेरा हाथ अपने हाथ में ले कर शेक हैंड करते हुए उस ने कहा. मेरी आंखों में आंसू छलक उठे थे. मैं उस को जाते हुए देखता रहा, बोझिल मन लिए और निशब्द. लेकिन वह गई नहीं, वापस लौट आई. ‘‘तुम क्या सोचते थे, मैं तुम्हें आंसुओं के साथ छोड़ जाऊंगी. तुम्हें आश्चर्य हो रहा होगा. आप से तुम संबोधन पर आ गई हूं. ‘तुम’ में अपनापन लगता है. तुम रिटायर तो हो ही नहीं सकते. रिटायर काम से हुए हो जिंदगी से नहीं. हम दोनों आज से नई जिंदगी शुरू कर रहे हैं. कल सुबह सामान के साथ आ रही हूं,’’ हंसते हुए उस ने कहा, ‘‘अब तो मुसकरा दो…अब की सामान ले कर आ रही हूं. अच्छा…जाती हूं वापस आने के लिए.’’

Valentine’s Special- लव गेम: क्या शीना जीत पाई प्यार का खेल?

जिंदगी मौसम की तरह होती है. कभी गरमी की तरह गरम तो कभी सर्दी की तरह सर्द तो कभी बारिश के मौसम की तरह रिमझिमरिमझिम बरसती बूंदों सी सुहानी. जैसे मौसम रंग बदलता है, वैसे ही जिंदगी भी वक्तबेवक्त रंग बदलती रहती है. लेकिन जिंदगी में कभीकभी कुछ सवालों का जवाब देना बड़ा मुश्किल हो जाता है.

यह कहानी भी कुछ ऐसी ही है. बदलते मौसम की तरह रंग बदलती हुई भी और उन रंगों में से चटख रंगों को चुराती हुई भी. आइए देखें, इस कहानी के पलपल बदलते रंगों को, जो खुदबखुद फीके पड़ कर गायब होते जाते हैं.

कंट्री क्लब में एक पार्टी का आयोजन किया गया था, जिस में आयोजकों ने अपने मैंबर्स में से कुछ ऐसे यंग कपल्स के लिए पार्टी रखी थी, जिन की शादी को अभी ज्यादा से ज्यादा 5 साल हुए थे

 

इस पार्टी में करीब 50 यंग कपल्स शामिल हुए. सभी बहुत खूबसूरत थे, जो सजधज कर पार्टी में आए थे. उन सभी के छोटेछोटे बच्चे भी थे. लेकिन आर्गनाइजर्स ने बच्चों को पार्टी में लाने की परमिशन नहीं दी थी, इसलिए सब लोग अपने बच्चे घर पर ही छोड़ कर आए थे.

कई यंग कपल्स ऐसे भी थे, जो एकदूसरे को अच्छी तरह जानतेपहचानते थे, इसलिए पार्टी में आते ही वे बड़ी गर्मजोशी के साथ मिले और एकदूसरे से घुलमिल गए. पार्टी के शुरुआती दौर में स्टार्टर, कौकटेल, मौकटेल, वाइन और सौफ्ट ड्रिंक वगैरह का जम कर दौर चला. इस के बाद सब ने खाना खाया. खाना बहुत लजीज था.

खाने के बाद पार्टी में कपल्स के साथ कई तरह के गेम खेले गए. हर गेम के अपने नियम थे. बहुत ही सख्त. गेम का संचालन एक एंकर कर रहा था. जिस हौल में पार्टी चल रही थी, वहीं एक फुट ऊंचा बड़ा सा पोडियम बना था. उसी पोडियम पर गेम खेले जा रहे थे. आखिर में एक गेम और खेला गया.

एंकर ने एक यंग ब्यूटीफुल लेडी को पोडियम पर इनवाइट किया, जिस की शादी को अभी सिर्फ 4 साल हुए थे और उस का 2 साल का एक बेटा भी था. उस लेडी का नाम शीना था.

शीना पोडियम पर जा कर वहां रखी एक चेयर पर बैठ गई. पोडियम पर वाइट कलर का बड़ा सा एक बोर्ड लगा था. एंकर ने शीना से कहा, ‘‘आप बोर्ड पर ऐसे 40 नाम लिखिए, जिन से आप सब से ज्यादा प्यार करती हैं.’’

हौल में जितने भी कपल्स थे, वे सभी पोडियम के आसपास एकत्र हो गए और बड़ी बेचैनी से यह सोच कर एंकर तथा उस महिला की तरफ देखने लगे कि आखिर अब कौन सा गेम होने वाला है. गेम के बारे में किसी को कुछ नहीं मालूम था.

यहां तक कि वह महिला भी नहीं जानती थी कि वह किस तरह के गेम का हिस्सा बनने जा रही है. वह तो मस्तीमस्ती में पोडियम पर आ कर बैठ गई थी.

लेकिन एंकर की बात सुनते ही वह अनईजी हो गई.

‘‘च…चालीस ऐसे लोगों के नाम…’’ शीना कंफ्यूज्ड हो कर बोली, ‘‘जिन से मैं सब से ज्यादा प्यार करती हूं?’’

‘‘यस.’’ एंकर के होठों पर उस समय एक शरारती मुसकराहट खिल रही थी, ‘‘क्या आप की जिंदगी में 40 ऐसे इंसान नहीं हैं, जिन से आप बेहद प्यार करती हों?’’

‘‘नहीं…नहीं.’’ शीना जल्दी से हड़बड़ा कर बोली, ‘‘म…मेरे कहने का मतलब यह नहीं है. 40 क्या, मेरी लाइफ में तो ऐसे बहुत से लोग हैं, जिन से मैं बेहद प्यार करती हूं और वे सब भी मुझ से बहुत प्यार करते हैं.’’

‘‘गुड.’’ एंकर उत्साहित हो कर बोला, ‘‘आप को सब के नाम नहीं लिखने हैं, जो आप की लिस्ट में सब से ऊपर हों, सिर्फ वही नाम लिखिए. इस गेम का नाम लव गेम है.’’

‘‘लव गेम.’’ पोडियम के चारों तरफ एकत्र लोगों के चेहरे पर मुसकराहट दौड़ी, ‘‘इंटरेस्टिंग.’’

शीना भी अब चेयर छोड़ कर खड़ी हो गई थी. उस ने बड़े उत्साह से मार्कर पैन उठा लिया और वाइट बोर्ड के पास जा कर उस पर जल्दीजल्दी नाम लिखने लगी. शीना ने सच कहा था. उस की जिंदगी में वाकई ऐसे काफी लोग थे, जिन से वह बहुत प्यार करती थी. यह बात उस के नाम लिखने की स्पीड से पता चल रही थी. उसे इस बारे में ज्यादा सोचना नहीं पड़ा.

कुछ ही मिनट में उस ने 40 नाम लिख दिए. उस लिस्ट में उस के रिलेटिव, फ्रैंड्स, ब्रदर, सिस्टर, मदर, फादर, हसबैंड और उस का 2 साल का बेटा भी था. नाम लिख कर वह विक्ट्री स्माइल बिखेरती हुई एंकर की तरफ मुड़ी.

‘‘क्यों, लिख दिए न मैं ने 40 नाम.’’ वह इस अंदाज में बोली, जैसे उस ने गेम जीत लिया हो.

‘‘यस.’’ एंकर मुसकराया, ‘‘लेकिन गेम अभी खत्म नहीं हुआ मैम. गेम तो अभी शुरू हुआ है.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘मतलब अभी आप को इन में से 20 ऐसे नाम कट करने हैं, जिन से आप कम प्यार करती हैं. मान लीजिए, आप इन 40 लोगों के साथ बीच समुद्र में किसी ऐसी बोट में सवार हों, जो डूबने वाली हो. अगर 40 में से 20 लोगों को बीच समुद्र में फेंक दिया जाए तो बोट बच सकती है. ऐसी हालत में वह 20 लोग कौन होंगे, जिन्हें आप बीच समुद्र में फेंक कर बाकी के 20 लोगों की जान बचाएंगी?’’

शीना अब कंफ्यूज्ड नजर आने लगी.

फिर भी वह दोबारा वाइट बोर्ड के पास पहुंची और उस ने ऐसे 20 लोगों के नाम काट दिए, जिन्हें बीच समुद्र में फेंक कर वह बाकी के अपने 20 लोगों की जान बचा सकती थी. अब वाइट बोर्ड पर जो नाम बचे, उन में उस के बहुत करीबी, रिलेटिव, ब्रदर, सिस्टर, मदर, फादर, हसबैंड और उस का 2 साल का बेटा था.

‘गुड.’’ एंकर मुसकराया, ‘‘अब इन में से 10 नाम और काट दीजिए.’’

‘‘म…मतलब?’’ हक्कीबक्की शीना ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘सिंपल है,’’ एंकर बोला, ‘‘अब सिर्फ 10 ऐसे नाम चुनें, जिन्हें आप सब से ज्यादा प्यार करती हों और उन 10 लोगों को बचाने के लिए आप बाकी के 10 को बीच समुद्र में फेंक सकती हैं. याद रहे, आप सब बोट पर सवार हैं और वहां जिंदगी और मौत की फाइट चल रही है.’’

शीना वापस वाइट बोर्ड के पास पहुंची और उस ने 10 और नाम काट दिए. लेकिन वे 10 नाम काटना उस के लिए पहले जितना आसान नहीं था. उस ने बहुत सोचसमझ कर 10 नाम काट दिए. पोडियम के आसपास एकत्र लोग भी अब बड़ी बेचैनी से शीना की तरफ देखने लगे. सब जानना चाहते थे कि शीना अब किस के नाम काटेगी.

वाइट बोर्ड पर जो बाकी 10 नाम बचे थे, उन में उस के कुछ खास रिलेटिव, ब्रदर, सिस्टर, मदर, फादर, हसबैंड और बेटा था.

‘‘हूं.’’ एंकर ने गहरी सांस ली.

शीना 10 नाम काट कर के अभी टर्न भी नहीं हुई थी कि उस से पहले ही एंकर बोल पड़ा, ‘‘अब इन में से 6 नाम और काट दो. सिर्फ 4 रहने दो. बोट इतने लोगों का वजन भी नहीं संभाल पा रही है. अभी तुरंत 6 लोगों को और समुद्र में फेंकना पड़ेगा, वरना बोट डूब जाएगी.’’

शीना ने वाइट बोर्ड पर लिखे नाम देखे. वह अब इमोशनल होने लगी. बहरहाल उस ने 6 नाम और काट दिए. बोर्ड पर अब सिर्फ शीना के मदर, फादर, हसबैंड और उस के 2 साल के बेटे का नाम बचा था. दूसरी ओर उसे अपने ब्रदर, सिस्टर के नाम भी काटने पड़े. पूरे हौल में सन्नाटा पसर गया था. सभी लोग इमोशनल हो गए.

‘‘अब अगर इन में से भी 2 नाम और काटने पड़ें…’’ एंकर बहुत धीमी आवाज में बोला, ‘‘तो वे कौन से नाम होंगे, जो आप काटेंगी. किन 2 लोगों को बचाएंगी आप?’’

अब वाकई शीना की हालत बहुत बुरी हो गई. मस्तीमस्ती में शुरू हुआ गेम अचानक बहुत इमोशनल हो गया था. शीना किसी गहरी सोच में डूब गई.

पोडियम के चारों तरफ जमे कपल्स भी यह जानने के लिए बेचैन हो उठे कि आखिर अब शीना कौन से 2 नाम काटेगी? मदर फादर का या फिर हसबैंड और बेटे का?

हौल में सन्नाटा और गहरा गया. शीना की आंखों में भी आंसू आ गए. पोडियम के नीचे खड़ा शीना का हसबैंड उसी तरफ देख रहा था. उसे खुद भी मालूम नहीं था कि शीना अब कौन से 2 नाम काटने वाली है.

शीना ने कांपते हाथों से अपने मातापिता का नाम बोर्ड से मिटा दिया. देख कर सब सन्न रह गए. किसी को उम्मीद नहीं थी कि शीना अपने मातापिता का नाम बोर्ड से मिटा देगी. मातापिता तो जीवन देने वाले होते हैं, वह उन का नाम कैसे काट सकती थी? अब वाइट बोर्ड पर सिर्फ 2 नाम चमक रहे थे, हसबैंड और उस के बेटे का नाम.

‘‘प्लीज…’’ शीना रो पड़ी, ‘‘अब मुझ से कोई और नाम काटने के लिए मत कहना.’’

‘‘बस अब यह गेम खत्म होने वाला है.’’ एंकर बोला, ‘‘बिलकुल लास्ट है. अगर आप से कहा जाए कि इन दोनों में से भी आप किस से ज्यादा प्यार करती हैं तो आप किसे चुनेंगी? वह एक कौन होगा, जिसे बचाने के लिए आप दूसरे को बीच समुद्र में फेंक देंगी, हसबैंड या बेटा?’’

‘‘मैं खुद समुद्र में कूदना पसंद करूंगी.’’ शीना भावविह्वल हो कर बोली, ‘‘लेकिन इन दोनों में से किसी को भी अपने से अलग नहीं करूंगी.’’

‘‘नहीं…आप नहीं,’’ एंकर बोला, ‘‘आप को इन दोनों में से कोई एक नाम काटना है.’’

अब शीना की हालत बहुत बुरी हो गई थी. हौल में मौजूद हर आंख शीना पर ही टिकी थी. हर कोई यह जानना चाहता था कि अब वह किस का नाम काटेगी? हसबैंड या बेटे में से वह किसे चुनेगी?

शीना ने कांपते हाथों से वाइट बोर्ड पर लिखा अपने बेटे का नाम मिटा दिया. सब सन्न रह गए. हर कोई सोच रहा था कि वह अपने हसबैंड का नाम मिटाएगी, क्योंकि हम दुनिया में सब से ज्यादा अपने बच्चों से ही प्यार करते हैं.

‘‘क्यों?’’ एंकर ने बेचैनी के साथ पूछ ही लिया, ‘‘आप ने अपने हसबैंड को ही क्यों चुना?’’

‘‘जानते हो…’’ शीना पोडियम पर खड़ीखड़ी बहुत इमोशनल हो कर बोली, ‘‘जिस दिन मेरी शादी हुई, उस दिन मम्मीपापा ने मेरे हसबैंड के हाथ में मेरा हाथ देते हुए कहा था, ‘आज से यही आदमी जिंदगी के आखिरी सांस तक तुम्हारा साथ देगा. तुम कभी इस का साथ न छोड़ना. जिस तरह सुखदुख में वह तुम्हारा साथ दे, उसी तरह तुम भी हर सुखदुख में उस का साथ देना.’ मैं ने अपने मम्मीपापा की बात मानी.

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‘‘अपने हसबैंड के लिए मैं ने अपने उन्हीं मम्मीपापा तक को त्याग दिया. यहां तक कि जब अपने बेटे और हसबैंड में से भी किसी एक को चुनने का समय आया तो मैं ने अपने हसबैंड को ही चुना. मैं अपने बेटे से बहुत प्यार करती हूं. लेकिन हसबैंड के रहते मुझे बेटा तो दूसरा मिल सकता है, पर हसबैंड दूसरा नहीं मिल सकता. पतिपत्नी का यह रिश्ता अनमोल है, अटूट है. हमें हमेशा इस रिश्ते का सम्मान करना चाहिए.’’

शीना की बातें सुन कर पूरा हौल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. सभी की आंखों में आंसू थे. शीना का हसबैंड भी बेहद इमोशनल हो गया था. एकाएक वह शाम बेहद खास हो गई. लव गेम ने सभी हसबैंड वाइफ के रिलेशन को और मजबूत कर दिया था.

Valentine’s Special- ताज बोले तो: उन दोनों के लिए क्या थे प्यार के मायने

एक दवा कंपनी में समीर रीजनल मैनेजर था. वैसे तो वह देहरादून में रहता था मगर कंपनी के काम से उसे अकसर बिजनौर, मुरादाबाद और बरेली जाना पड़ता था. उस की कंपनी का मुख्यालय दिल्ली में था अत: जबतब वहां का भी उसे चक्कर लगाना पड़ता था. घर पर तो समीर महीने में मुश्किल से 10 दिन ही रुक पाता था. देहरादून में समीर की पत्नी सौम्या अकेली रहती थी. वह शांत, सुशील, सुंदर एवं सुशिक्षित महिला थी. उस की शादी को 2 साल हो गए थे पर उन के घर का आंगन अभी किलकारियों से सूना था. इन दिनों सौम्या पीएच.डी. कर रही थी. उस का विषय था, ‘इतिहास की पे्रम कथाएं.’

सौम्या का ज्यादा समय पढ़ने- लिखने में ही गुजरता था. वैसे समीर देहरादून में होता तो पोथीपुस्तकें कुछ दिनों के लिए बंद हो जातीं. उस के टूर पर जाते ही वह इतिहास के बिखरे पन्नों को जोड़ने बैठ जाती थी. सौम्या के गाइड डी.ए.वी. कालिज के सीनियर प्रोफेसर डा. माथुर थे. पर अपनी व्यस्तता के चलते उन्होंने

डा. विनय को सौम्या का सहगाइड बना दिया था. डा. विनय को मध्यकालीन इतिहास में महारत हासिल थी. वह बोलते भी बहुत मधुर थे. जब वह पढ़ाते तो इतिहास साकार हो उठता था. सौम्या डा. विनय से बहुत प्रभावित थी.

अपनी पीएच.डी. जल्द से जल्द पूरा करने के लिए सौम्या बुधवार और रविवार को डा. विनय के घर गाइडेंस के लिए जाने लगी. कभीकभार वह फोन पर भी उन से सलाहमशवरा कर लेती थी. डा. विनय अपने घर में अकेले रहते थे, इसलिए सौम्या जब भी उन के घर जाती तो घर के कामकाज में थोड़ाबहुत उन का हाथ बंटा देती थी. समय के साथ दोनों अच्छे दोस्त बन गए थे.

सौम्या डा. विनय को गाइड कम दोस्त ज्यादा मानती थी. उम्र में भी 2-3 बरस का ही अंतर था. एक दिन सौम्या ने समीर को भी डा. विनय से मिलवाया था. दोनों काफी देर तक बातचीत करते रहे. विनय पहली बार सौम्या के घर आए थे. सौम्या ने अपने हाथों से बना गाजर का हलवा और गरमागरम पकौडि़यां उन्हें खिलाईं. समीर, विनय के बोलचाल के ढंग से जीवन के प्रति उस के दृष्टिकोण से बहुत प्रभावित हुआ था और मुसकराते हुए बोला था, ‘डाक्टर साहब, अपने इस मुरीद को भी जल्दी से डाक्टर बनवा दीजिए, फिर इन के लिए कोई कालिज ढूंढ़ते हैं.’ ‘जी हां, थोड़ा इंतजार कीजिए,’

डा. विनय बोले, ‘अभी 1 साल लग जाएगा. वैसे सौम्या बहुत मेहनती और लगनशील है. अपना शोध कार्य 30 महीने में पूरा कर दिखाएगी, मुझे पूरा भरोसा है.’ डा. विनय का विवाह बरेली की जया वर्मा के साथ हुआ था. जया एम.बी.ए. कर के मार्केटिंग मैनेजर बन गई थी. उस की लाइफ बड़ी बिजी थी. डा. विनय छुट्टियों में उस के पास आ जाते थे. जया कामकाज में व्यस्त रहती थी. उस के लिए पैसा और कामयाबी ही जीवन के उद्देश्य थे. यह इत्तफाक ही था कि जया, समीर वाली कंपनी की बरेली शाखा में कार्यरत थी.

समीर अकसर बरेली आफिस आता- जाता रहता था. कंपनी की मार्केटिंग बढ़ाने के लिए वह जया से मिलता, उस के साथ पास के कसबों में जाता और नई शाखाएं खोलने की तैयारी करता.

जया अपने अधिकारी समीर के साथ घुलमिल गई थी. जब भी समीर बरेली में होता तो जया ही उस की देखभाल करती थी. होटल में कमरा बुक करा दिया जाता और आफिस की गाड़ी दे दी जाती. जया का व्यक्तित्व बड़ा आकर्षक था. तीखे नयननक्श, गोल गुलाबी गाल, सपाट माथा, दूधिया रंग लिए चेहरे पर कानों तक लहराते बाल. सचमुच देखने में परी सी लगती थी वह. उस पर खुद को सजानेसंवारने में भी कोई कोरकसर नहीं छोड़ती थी.

समीर तो उस की एक झलक पाते ही दीवाना हो गया. वह जया को पाना चाहता था, मगर सदा के लिए नहीं. वह तो उस खूबसूरत खिलौने की तलाश में था जिस से जब चाहा खेल लिया और फिर सजा कर अलमारी में रख दिया. जया अपनी मनभावन अदाओं, मनमौजी बातों और मदमाते यौवन से समीर को मदमस्त बना रही थी. बदले में वह उसे महंगेमहंगे तोहफों से निहाल कर रहा था. जया समझती, बौस उस पर बड़ा मेहरबान है. प्रेम दोनों ओर पल रहा था, मगर विशुद्ध व्यावसायिक, समीर को खिलौने की चाहत थी और जया को कामयाबी की, इसलिए अपनेपन का स्वांग दोनों खूब करते थे.

दोस्ती परवान चढ़ने लगी. समीर, जया को एरिया मैनेजर बनाने के स्वप्न दिखा रहा था. जया की गोलगोल आंखों में सुनहरा भविष्य घूम रहा था. वह समीर को हर कीमत पर खुश रखना चाहती थी. दोनों एकदूसरे के वर्तमान से इतने खुश और संतुष्ट थे कि उन्होंने कभी भी अतीत को कुरेदने की गलती नहीं की. एक दिन समीर होटल में बैठा चाय की चुस्कियां ले रहा था. जया ने चहकते हुए कहा, ‘‘सर, आप तो हमेशा टूर पर होते हैं, हमें भी कभी बरेली से बाहर ले चलिए न.’’

समीर ने सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘क्यों नहीं, बोलो कहां चलोगी? मनाली, मसूरी या आगरा.’’ जया ने अपने गुलाबी अधरों पर मुसकान लाते हुए कहा, ‘‘परसों पूर्णिमा है, क्यों न आगरा चला जाए? पे्रम की अनूठी मिसाल, पत्थर में रोमांस, दूधिया चांदनी में नहाया ताज, मुमताज को पुकारता सा लगता है. सर, आप पहले कभी ताज देखने आगरा गए हैं?’’

समीर बनावटी चिढ़न के साथ बोला, ‘‘जया, मैं तुम से नाराज हो जाऊंगा. क्या सर, सर लगा रखी है. यह आफिस नहीं है. तुम मुझे समीर बुला सकती हो.’’ जया ने नजरें झुकाते हुए कहा, ‘‘ठीक है.’’

‘‘जया, आगरा तो मैं कई बार गया हूं मगर इतनी फुरसत कहां जो चांदनी रात में ताज का दीदार कर सकूं. बस, आगरा पहुंचा, लोगों से मिला, बिजनेस का हाल पूछा और चलता बना. मैं तो ठहरा रमता जोगी, बहता पानी,’’ समीर रोमांटिक हो रहा था. उस ने जया की तारीफ करते हुए कहा, ‘‘ताज भी तुम्हें देख कर ताजा हो जाएगा.’’ जया शरम से लाल हो गई. मुसकराते हुए बोली, ‘‘तारीफ करना तो कोई आप से सीखे.’’

‘‘थैंक्यू, जा कर अपनी तैयारी करो, कल रात को निकल पड़ते हैं. मैं अभी 2 टिकट बुक करा देता हूं,’’ समीर ने मुसकराते हुए कहा. जया कृतज्ञ भाव से बोली, ‘‘थैंक्यू, समीर, कल मिलते हैं और आगरा चलते हैं.’’

उधर सौम्या को अपने बहुत करीब पा कर डा. विनय जया को भूल से गए थे. दोनों रात में कभीकभी फोन पर बातें कर लेते थे. सौम्या ने भी डा. विनय की तन्हाई को दूर कर दिया था. घर से दूर एक अच्छा दोस्त किसे खुशी नहीं देता. विनय फैशन के इस दौर में अतीत की अप्सरा को अपने सुघड़ हाथों से तराश रहा था. इतिहास की प्रेम कथाओं में डूबी सौम्या उन्हें कभी वैशाली की नगरवधू आम्रपाली लगती, कभी हाथ में वरमाला लिए संयोगिता बन जाती और कभी गुलाब सी खिलखिलाती नूरजहां, तो कभी हुस्न की मलिका मुमताज नजर आती थी. सौम्या अपने शोध को प्रामाणिक बनाने के लिए लाइबे्ररियों की सीढि़यां चढ़तीउतरती, ऐतिहासिक प्रणय स्थलों की खाक छानती और दिन भर पढ़तीलिखती. उस की इस शोध यात्रा में एक शख्स हमेशा साये के समान उस के साथ रहता, वह कोई और नहीं, डा. विनय थे.

एक दिन डा. विनय ने सौम्या से पूछा, ‘‘भारत का सर्वश्रेष्ठ पे्रमस्मारक कौन सा है?’’ सौम्या ने तपाक से उत्तर दिया, ‘‘ताजमहल.’’

‘‘क्या कभी चांदनी रात में ताज के दीदार किए हैं?’’ ‘‘नहीं, सर.’’

‘‘पूर्णिमा की रात में ताज का खास महत्त्व है,’’ डा. विनय बोले. ‘‘वह क्यों? उस रात उसे देखने से क्या मिलता है?’’

‘‘आंखों को सुख, मन को शांति और हृदय को अपूर्व आनंद. चांदनी रात में ताज की खूबसूरती सिर चढ़ कर बोलती है. ऐसा लगता है कि शाहजहां और मुमताज अपनीअपनी कब्रों से निकल कर एकटक एकदूसरे को निहार रहे हों.’’ ‘‘आप सच कह रहे हैं?’’

‘‘इस में झूठ बोल कर क्या मिलेगा.’’ ‘‘फिर तो मैं पूनम की रात में ताज अवश्य देखने जाऊंगी. आप मेरे साथ चलेंगे न?’’ सौम्या ने आग्रह से कहा तो डा. विनय चाह कर भी मना नहीं कर पाए.

समीर और जया सुबह ही आगरा पहुंच गए थे. दोनों एक होटल में ठहर गए. सफर की थकान दूर करने के लिए कड़क काफी का सहारा लिया. कुछ देर बाद बे्रकफास्ट किया और फिर अपनेअपने बिस्तर पर पसर गए. जया के मन में समीर को ले कर कोई घबराहट नहीं थी. उसे समीर पर पूरा भरोसा था. समीर भी खाने को ठंडा कर के खाना चाहता था. उसे कोई उतावलापन नहीं था. वह तो जया के समर्पण की प्रतीक्षा कर रहा था. उसे भरोसा था कि जया कटी पतंग सी उस की बांहों में गिरेगी और वह जैसे चाहेगा, उस के साथ खेलेगा. वक्त ने भी उसे क्या खूब मौका दिया था. पूर्णिमा की रात, चांदनी में चमकता ताज और उस पर हंसतीखिलखिलाती कामिनी का साथ. समीर को इस से अधिक और क्या चाहिए?

जया की आंख खुली तो उस की नजर घड़ी पर पड़ी. शाम के 5 बज चुके थे. उस ने समीर को जगाया, तो समीर ने अंगड़ाई लेते हुए कहा, ‘‘अभी क्या जल्दी है, आज तो चांद भी देर से निकलेगा.’’

‘‘अब उठो भी,’’ जया बोली, ‘‘तैयार होना है, कुछ खानापीना है और फिर ताज भी तो चलना है.’’ ‘‘अरे, उठता हूं बाबा, जाओ, पहले तुम तो तरोताजा हो लो, बस, 5 मिनट में उठता हूं. थोड़ी देर और सोने दो.’’

जया ने अकेले बालकनी में खड़े हो कर चाय पी और फिर नहाने चली गई. जया ने नारंगी रंग की साड़ी पहनी. हलका मेकअप किया, और फिर आईने में खुद को तिरछी नजरों से निहारा तो आईने के किसी कोने में उसे विनय घूरता नजर आया. पल भर के लिए वह ठिठक गई. यह उस के मन का भ्रम था. अगले पल चेहरे पर व्यंग्यात्मक मुसकान लाते हुए बुदबुदाने लगी, ‘अरे, डा. साहब…आप दून घाटी में इतिहास पढ़ाओ, हम तो खुद अपना इतिहास लिख रहे हैं. वैसे भी तुम कब मेरी पसंद रहे हो. घरपरिवार की मानमर्यादा का खयाल रखते हुए मैं ने हां कर दी थी.’

समीर ने आज सफेद रंग का सूट नेवी ब्लू टाई के साथ पहना. काले चमचमाते जूते. सिर के काले घने घुंघराले बाल उसे हैंडसम बना रहे थे. गठीला बदन, सुंदर, सुदर्शन गोल चेहरा और चेहरे पर मृदुल मुसकान किसी भी औरत का दिल जीतने के लिए काफी थे. समीर ने पहली बार जया को साड़ी में देखा तो बरबस उस के मुंह से निकल पड़ा, ‘‘ओह, नाइस, वेरी ब्यूटीफुल.’’ जया ने अपनी तारीफ सुन कर धीरे से हाथ मिलाया तो उस ने जया के हाथ को चूम लिया.

जया ने धीरे से अपना हाथ हटा लिया, तो समीर दिल की बात जबान पर लाते हुए बोला, ‘‘जया, कयामत लग रही हो.’’ ‘‘और आप हैंडसम.’’

‘‘कहीं तूफान न आ जाए.’’ ‘‘मुझे उस की परवा कब है?’’

समीर ने जया को अपनी बांहों में भर लिया. जया के शरीर में बिजली सी दौड़ गई. उस ने समीर के गाल पर किस करते हुए बडे़ प्यार से कहा, ‘‘पहले ताज को देख लो, मुमताज को फिर गले लगाना. चलो, देर हो रही है.’’

सौम्या और डा. विनय भी दोपहर बाद आगरा पहुंच गए थे. उन्होंने एक गेस्ट हाउस में कमरा बुक कराया था. शाम ढलने के साथ ही उन दोनों ने भी ताज देखने की तैयारियां शुरू कर दी थीं. सौम्या के लिए यह उत्सुकता और कौतूहल का विषय था और विनय के लिए इतिहास से वर्तमान में आने का सुनहरा अवसर. दोनों को लगता था कि ताज के सम्मुख बैठ कर कुछ दिल के अध्याय खोलेंगे. दोनों जब गेस्ट हाउस से निकले तो ऐसा लगा कि आज के शाहजहां और मुमताज मध्यकालीन प्रणय स्मारक पर प्रेम की नई इबारत लिखने जा रहे हों. ठीक 9 बजे डा. विनय, सौम्या को अपने साथ लिए ताज परिसर में पहुंच गए. अपनी सोलह कलाओं के साथ चांद आकाश में निकला तो चांदनी ने मुसकरा कर उस का स्वागत किया. चांदनी में नहाया ताज सचमुच बेजोड़ था. लोग ठगे से इस अनुपम दृश्य का आनंद ले रहे थे.

डा. विनय सौम्या को ताज के सामने वाली बेंच पर ले गए और बोले, ‘‘सौम्या, यहां बैठ कर ताज की सुंदरता का अवलोकन करो.’’ ‘‘वाह, कितना अपूर्व, कितना स्वच्छ, कितना निर्मल, कितना कोमल, इस के जैसा कोई नहीं. प्रेम की अद्भुत मिसाल,’’ सौम्या के मुख से निकल पड़ा.

‘‘इस का इतिहास नहीं जानोगी?’’ डा. विनय बोले. ‘‘सर, वह मैं ने पढ़ रखा है.’’

‘‘एक तथ्य मैं बता देता हूं. जब शाहजहां को उस के बेटे औरंगजेब ने कैदखाने में डाल दिया, तब वह घंटों तक इस इमारत को देख कर रोता रहता था.’’ ‘‘शाहजहां इतना प्यार करते थे मुमताज को?’’ सौम्या आश्चर्य से बोली.

‘‘हां, शाहजहां का प्यार इतिहास में अमर है.’’ इस तरह दोनों अपनी इतिहास चर्चा में इतने मग्न थे कि उन्हें पता ही न चला कि कब उन के बगल वाली बेंच पर एक खूबसूरत जोड़ा आ बैठा है, जो अपनी प्रेमकथा का इतिहास स्वयं लिख रहा है. दोनों एकदूसरे की आंखों में आंखें डाले खुल कर प्रेम का इजहार कर रहे थे.

अचानक सौम्या की नजर पीछे पड़ी तो उस ने समीर को पहचान लिया. एक अनजान औरत को समीर के साथ देख कर उस का चेहरा तमतमा उठा. मुट्ठियां भिंचने लगीं. वह पैर पटकते हुए बगल वाली बेंच के सामने जा खड़ी हुई. समीर अपनी प्रेमलीला में इतना मस्त था कि उसे सौम्या के आने की आहट का भी पता नहीं चला. सौम्या ने झुंझलाते हुए पूछा, ‘‘कौन है यह औरत? और यह सब क्या है, समीर? तो यहां है, तुम्हारी बरेली. झूठ, मुझे धोखा दे कर रंगरेलियां मना रहे हो.’’

समीर को झटका सा लगा. वह सकपका गया. जया से पल्ला झाड़ते हुए बोला, ‘‘सौम्या, तुम यहां, वह भी अकेली, मुझे बताया तक नहीं.’’ ‘‘तो तुम ने क्या मुझे बताया कि तुम आगरा में पराई औरत के साथ गुलछर्रे उड़ा रहे हो.’’

जया की स्थिति काटो तो खून नहीं वाली हो गई थी. सौम्या ने बड़बड़ाना जारी रखा, ‘‘मैं अकेली नहीं आई हूं, मेरे साथ मेरे गाइड डा. विनय आए हैं.’’ विनय का नाम सुनते ही जया के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. वह अपना मुंह छिपा कर वहां से भागना चाहती थी. तभी शोरगुल सुन कर विनय भी वहां पहुंच गए. बनीठनी जया को समीर के साथ देख कर विनय खुद को ठगा सा महसूस करने लगे. उन्होंने तो सपने में भी यह नहीं सोचा था कि जया इस हद तक गिर जाएगी.

आज डा. विनय का एक नए इतिहास से परिचय हो रहा था, जिस में न प्रेम था न त्याग और न समर्पण. यदि था तो केवल फरेब, शरीर का आकर्षण, वासना की भूख और महत्त्वाकांक्षा की अंधी गली. समीर दूसरे के घर चोरी करने चला था, लेकिन उस के अपने घर भी डाका पड़ने वाला था. हमाम में सभी नंगे थे. चारों एकदूसरे को भूखे भेडि़यों की नजर से देख रहे थे. समीर विनय को घूर रहा था तो जया, सौम्या को. इतिहास ने उन्हें चौराहे पर ला खड़ा किया.

चांद वही था, ताज वही था और चांदनी भी वही थी मगर चेहरों से हंसीखुशी की रंगत गायब थी. माहौल एकदम बदल गया था. शृंगार रस का स्थान अब रौद्र एवं करुण रस ने ले लिया था. बेंचों पर बैठे दोनों जोड़े भी बदल गए थे. पल भर पहले की मुसकान, उत्साह, उमंग और हर्ष अब आरोपप्रत्यारोप, मानमनुहार और पश्चाताप में बदल चुके थे, चारों को अपने किए पर ग्लानि थी. पतिपत्नी के बीच भरोसे का बंधन खिसक रहा था.

प्रेम तो पावन और निर्मल होता है, प्रेम का प्रतीक ताज यही बयां कर रहा था. मंदमंद मुसकरा रहा था और शायद यही कह रहा था, ‘ताज बोले तो…’ .

Valentine’s Special-भाग -3-अब और नहीं : आखिर क्या करना चाहती थी दीपमाला

समाज में पत्नी का दर्जा क्या होता है, भूपेश और दीपमाला के साथ रहते हुए उसे इस बात का अंदाजा हो गया था. दीपमाला की जो जगह उस घर में थी वह जगह अब उपासना लेना चाहती थी. वह सोचने लगी आखिर कब तक वह भूपेश की खेलने की चीज बन कर रहेगी. कभी न कभी तो भूपेश इस खिलौने से ऊब जाएगा. उपासना को अब अपने भविष्य की चिंता होने लगी.

भूपेश के पास ओहदा और पैसा दोनों थे. उस के साथ रह कर उपासना को अपना भविष्य सुनहरा लग रहा था. उस ने अब अपना दांव फेंकना शुरू किया. वह भूपेश पर दीपमाला को तलाक देने का दबाव डालने लगी. शातिर दिमाग भूपेश को घरवाली और बाहरवाली दोनों का सुख मिल रहा था. वह शादी के पचड़े में नहीं पड़ना चाहता था. उस ने उपासना को कई तरीकों से समझाने की कोशिश की तो वह जिद पर अड़ गई. उस ने भूपेश के सामने शर्त रख दी कि या तो वह दीपमाला को तलाक दे कर उस से शादी करे या फिर वह सदा के लिए उस से अपना रिश्ता तोड़ लेगी.

कंटीली चितवन और मदमस्त हुस्न की मालकिन उपासना को भूपेश कतई नहीं छोड़ना चाहता था. उस ने उपासना से कुछ दिन की मोहलत मांगी.

एक रात दीपमाला की नींद अचानक खुली तो उस ने पाया भूपेश बिस्तर से नदारद है. दीपमाला को बातचीत की आवाजें सुनाई दीं तो वह कमरे से बाहर आई. आवाजें उपासना के कमरे से आ रही थीं. दरवाजा पूरी तरह बंद नहीं था. एक झिरी से दीपमाला ने अंदर झांका. बिस्तर पर उपासना और भूपेश सिर्फ एक चादर लपेटे हमबिस्तर थे. दोनों इतने बेखबर थे कि उन्हें दीपमाला के वहां होने का भी पता नहीं चला.

उस दृश्य ने दीपमाला को जड़ कर दिया. उस की हिम्मत नहीं हुई कुछ देर और वहां रुकने की. जैसे गई थी वैसे ही उलटे पांव कमरे में लौट आई. आंखों से लगातार आंसू बहते जा रहे थे. उस की नाक के नीचे ये सब हो रहा था और वह बेखबर रही. वह यकीन नहीं कर पा रही थी कि इतना बड़ा विश्वासघात किया दोनों ने उस के साथ.

दीपमाला के दिल में नफरत का ज्वारभाटा उछाल मार रहा था. उस के आंसू पोंछने वाला वहां कोई नहीं था. दिमाग में बहुत से विचार कुलबुलाने लगे. अगर अभी कमरे में जा कर दोनों को जलील करे तो उस का मन शांत हो और फिर वह हमेशा के लिए यह घर छोड़ कर चली जाए. फिर उसे खयाल आया कि वह क्यों अपना घर छोड़ कर जाए. यहां से जाएगी तो उपासना जिस ने उस के सुहाग पर डाका डाला. अपने सोते हुए बच्चे पर नजर डाल दीपमाला ने खुद को किसी तरह सयंत किया और फिर एक फैसला ले लिया.

दीपमाला को नींद में बेखबर समझ बड़ी देर बाद भूपेश अपने कमरे में लौट आया और चुपचाप बिस्तर पर लेट गया मानो कुछ हुआ ही नहीं.

दूसरी सुबह जब उपासना औफिस के लिए निकली रही थी तभी दीपमाला ने उस का रास्ता रोक लिया. बोली, ‘‘सुनो उपासना अब तुम यहां नहीं रह सकती. इसलिए आज ही अपना सामान उठा कर चली जाओ,’’ दीपमाला की आंखों में उस के लिए नफरत के शोले धधक रहे थे.

‘‘यह क्या कह रही हो तुम? उपासना कहीं नहीं जाएगी,’’ भूपेश ने बीच में आते हुए कहा.

‘‘मैं ने बोल दिया है. इसे जाना ही होगा.’’

भूपेश की शह पा कर उपासना भूपेश के साथ खड़ी हो गई तो दीपमाला के तनबदन में आग लग गई.

एक तो चोरी ऊपर से सीनाजोरी, उपासना की ढिठाई देख कर दीपमाला से रहा नहीं गया. गुस्से की ज्वाला में उबलती दीपमाला ने उपासना की बांह पकड़ कर उसे लगभग धकेल दिया.

तभी एक जोरदार तमाचा दीपमाला के गाल पर पड़ा. वह सन्न रह गई. एक दूसरी औरत के लिए भूपेश उस पर हाथ उठा सकता है, वह सोच भी नहीं सकती थी. उस की आंखें भर आईं. भूपेश के रूप में एक अजनबी वहां खड़ा था उस का पति नहीं.

किसी जख्मी शेरनी सी गुर्रा कर दीपमाला बोली, ‘‘सब समझती हूं मैं. तुम इसे यहां क्यों रखना चाहते हो… कल रात अपनी आंखों से देख चुकी हूं तुम दोनों की घिनौनी करतूत.’’

मर्यादा की सारी हदें तोड़ते हुए भूपेश ने दीपमाला के सामने ही उपासना की कमर में हाथ डाल दिया और एक कुटिल मुसकान उस के होंठों पर आ गई.

‘‘चलो अच्छा हुआ जो तुम सब जान गई, तो अब यह भी सुन लो मैं उपासना से शादी करने वाला हूं और यह मेरा अंतिम फैसला है.’’

दीपमाला अवाक रह गई. उसे यकीन हो गया भूपेश अपने होशोहवास में नहीं है. जो कुछ कियाधरा है उपासना का किया है.

‘‘तुम अपने होश में नहीं हो भूपेश… यह हम दोनों के बीच नहीं आ सकती… मैं तुम्हारी बीवी हूं.’’

‘‘तुम हम दोनों के बीच आ रही हो. मैं अब तुम्हारे साथ एक पल भी नहीं रहना चाहता,’’ भूपेश ने बिना किसी लागलपेट के दोटूक जवाब दिया.

दीपमाला अपने ही घर में अपराधी की तरह खड़ी थी. भूपेश और उपासना एक पलड़े में थे और उन का पलड़ा भारी था.

जिस आदमी के साथ ब्याह कर वह इस घर में आई थी, वही अब उस का नहीं रहा तो उस घर में उस का हक ही क्या रह जाता है.

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Valentine’s Special-अब और नहीं : आखिर क्या करना चाहती थी दीपमाला

Valentine’s Special-भाग -2-अब और नहीं : आखिर क्या करना चाहती थी दीपमाला

दीपमाला की डिलीवरी का समय नजदीक था. भूपेश ने उस के जाने का इंतजाम कर दिया. दीपमाला अपनी मां के घर चली आई. अपने मायके पहुंचने के कुछ दिन बाद ही दीपमाला ने एक बेटे को जन्म दिया. उस की खुशी का ठिकाना नहीं था. उस के दिनरात नन्हे अंशुल के साथ बीतने लगे. 4 दिन दीपमाला और बच्चे के साथ रह कर भूपेश औफिस में जरूरी काम की बात कह कर लौट आया. दीपमाला के न रहने पर वह अब बिलकुल आजाद पंछी था. उस की और उपासना की प्रेमलीला परवान चढ़ रही थी. औफिस में लोग उन के बारे में दबीछिपी बातें करने लगे थे, मगर भूपेश को अब किसी की परवाह नहीं थी. वह हर हालत में उपासना का साथ चाहता था.

कुछ महीने बीते तो दीपमाला ने भूपेश को फोन कर के बताया कि वह अब घर आना चाहती है. जवाब में भूपेश ने दीपमाला को कुछ दिन और आराम करने की बात कही. दीपमाला को भूपेश की बात कुछ जंची नहीं, मगर उस के कहने पर वह कुछ दिन और रुक गई. 3 महीने बीतने को आए, मगर भूपेश उसे लेने नहीं आया तो उस ने भूपेश को बताए बिना खुद ही आने का फैसला कर लिया.

दरवाजे की घंटी पर बड़ी देर तक हाथ रखने पर भी जब दरवाजा नहीं खुला तो दीपमाला को फिक्र होने लगी. ‘आज इतवार है. औफिस नहीं गया होगा. दरवाजे पर ताला भी नहीं है. इस का मतलब कहीं बाहर भी नहीं गया है. तो फिर इतनी देर क्यों लग रही है उसे दरवाजा खोलने में?’ वह सोचने लगी.

कंधे पर बैग उठाए और एक हाथ से बच्चे को गोद में संभाले वह अनमनी सी खड़ी थी कि खटाक से दरवाजा खुला.

एक बिलकुल अनजान लड़की को अपने घर में देख दीपमाला हैरान रह गई. वह कुछ पूछ पाती उस से पहले ही उपासना बिजली की तेजी से वापस अंदर चली गई. भूपेश ने दीपमाला को यों इस तरह अचानक देखा तो उस की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. उस के माथे पर पसीना आ गया.

उस का घबराया चेहरा और घर में एक पराई औरत को अपनी गैरमौजूदगी में देख दीपमाला का माथा ठनका. गुस्से में दीपमाला की त्योरियां चढ़ गईं. पूछा, ‘‘कौन है यह और यहां क्या कर रही है तुम्हारे साथ?’’

भूपेश अपने शातिर दिमाग के घोड़े दौड़ाने लगा. उपासना उस के मातहत काम करती है, यह बताने के साथ ही उस ने दीपमाला को एक झूठी कहानी सुना डाली कि किस तरह उपासना इस शहर में नई आई है. रहने की कोई ढंग की जगह न मिलने की वजह से वह उस की मदद इंसानियत के नाते कर रहा है.

‘‘तो तुम ने यह मुझे फोन पर क्यों नहीं बताया? तुम ने मुझ से पूछना भी जरूरी नहीं समझा कि हमारे साथ कोई रह सकता है या नहीं?’’

‘‘यह आज ही तो आई है और मैं तुम्हें बताने ही वाला था कि तुम ने आ कर मुझे चौंका दिया. और देखो न मुझे तुम्हारी और मुन्ने की कितनी याद आ रही थी,’’ भूपेश ने उस की गोद से ले कर अंशुल को सीने से लगा लिया. दीपमाला का शक अभी भी दूर नहीं हुआ कि तभी उपासना बेहद मासूम चेहरा बना कर उस के पास आई.

‘‘मुझे माफ कर दीजिए, मेरी वजह से आप लोगों को तकलीफ हो रही है. वैसे इस में इन की कोई गलती नहीं है. मेरी मजबूरी देख कर इन्होंने मुझे यहां रहने को कहा. मैं आज ही किसी होटल में चली जाती हूं.’’

‘‘इस शहर में बहुत से वूमन हौस्टल भी तो हैं, तुम ने वहां पता नहीं किया?’’ दीपमाला बोली.

‘‘जी, हैं तो सही, लेकिन सब जगह किसी जानपहचान वाले की गारंटी चाहिए और यहां मैं किसी को नहीं जानती.’’

भूपेश और उपासना अपनी मक्कारी से दीपमाला को शीशे में उतारने में कामयाब हो गए. दीपमाला उन दोनों की तरह चालाक नहीं थी. उपासना के अकेली औरत होने की बात से उस के दिल में थोड़ी सी हमदर्दी जाग उठी. उन का गैस्टरूम खाली था तो उस ने उपासना को कुछ दिन रहने की इजाजत दे दी.

भूपेश की तो जैसे बांछें खिल गईं. एक ही छत के नीचे पत्नी और प्रेमिका दोनों का साथ उसे मिल रहा था. वह अपने को दुनिया का सब से खुशनसीब मर्द समझने लगा.

दीपमाला के आने के बाद भूपेश और उपासना की प्रेमलीला में थोड़ी रुकावट तो आई पर दोनों अब होशियारी से मिलतेजुलते. कोशिश होती कि औफिस से भी अलगअलग समय पर निकलें ताकि किसी को शक न हो. दीपमाला के सामने दोनों ऐसे पेश आते जैसे उन का रिश्ता सिर्फ औफिस तक ही सीमित हो.

दीपमाला घर की मालकिन थी तो हर काम उस की मरजी से होता था. थोड़े ही अंतराल बाद उपासना उस की स्थिति की तुलना खुद से करने लगी थी. उस के तनमन पर भूपेश अपना हक जताता था, मगर उन का रिश्ता कानून और समाज की नजरों में नाजायज था. औफिस में वह सब के मनोरंजन का साधन थी, सब उस से चुहल भरे लहजे में बात करते, उन की आंखों में उपासना को अपने लिए इज्जत कम और हवस ज्यादा दिखती थी.

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Valentine’s Special-भाग -4-अब और नहीं : आखिर क्या करना चाहती थी दीपमाला

बसीबसाई गृहस्थी उजड़ चुकी थी. भूपेश ने जब तलाक का नोटिस भिजवाया तो दीपमाला की मां और भाई का खून खौल उठा. वे किसी भी कीमत पर भूपेश को सबक सिखाना चाहते थे, जिस ने दीपमाला की जिंदगी से खिलवाड़ किया. रहरह कर दीपमाला को वह थप्पड़ याद आता जो भूपेश ने उसे उपासना की खातिर मारा था.

दीपमाला के दिल में भूपेश की याद तक मर चुकी थी. उस ने ठंडे लहजे में घर वालों को समझाबुझा लिया और तलाकनामे पर हां की मुहर लगा दी. जिस रिश्ते की मौत हो चुकी थी उसे कफन पहनाना बाकी था.

वक्त ने गम का बोझ कुछ कम किया तो दीपमाला अपने आपे में लौटी. अपने घर वालों पर मुहताज होने के बजाय उस ने फिर से नौकरी करने का फैसला लिया. दीपमाला दिल कड़ा कर चुकी थी. नन्ही जान को अपनी मां की देखरेख में छोड़ वह उसी शहर में चली आई, जिस ने उस का सब कुछ छीन लिया था. सीने में धधकती आग ले कर दीपमाला ने अपने को काम के प्रति समर्पित कर दिया. जिंदगी की गाड़ी एक बार फिर पटरी पर आने लगी.

ब्यूटी सैलून में उस के हाथों के हुनर के ग्राहक कायल थे. उसे अपने काम में महारत हासिल हो चुकी थी. कुछ समय बाद ही दीपमाला ने नौकरी छोड़ दी. अब वह खुद का काम शुरू करना चाहती थी. अपने बेटे की याद आते ही तड़प उठती. वह उसे अपने पास रखना चाहती थी, मगर फिलहाल उसे किसी ढंग की जगह की जरूरत थी जहां वह अपना सैलून खोल सके.

तलाक के बाद कोर्ट के आदेश पर दीपमाला को भूपेश से जो रुपए मिले उन में अपनी कुछ जमापूंजी मिला कर उस के पास इतना पैसा हो गया कि वह अपना सपना पूरा कर सकती थी.

अपने सैलून के लिए जगह तलाश करने की दौड़धूप में उस की मुलाकात प्रौपर्टी डीलर अमित से हुई, जिस ने दीपमाला को शहर के कुछ इलाकों में कुछ जगहें दिखाईं. असमंजस में पड़ी दीपमाला जब कुछ तय नहीं कर पाई तो अमित ने खुद ही उस की परेशानी दूर करते हुए एक अच्छी रिहायशी जगह में उसे जगह दिलवा दी. अपना कमीशन भी थोड़ा कम कर दिया तो दीपमाला अमित की एहसानमंद हो गई.

अमित के प्रौपर्टी डीलिंग के औफिस के पास ही दीपमाला का सैलून खुल गया. आतेजाते दोनों की अकसर मुलाकात हो जाती. कुछ समय बाद उन का साथ उठनाबैठना भी हो गया.

अमित दीपमाला के अतीत से वाकिफ था, बावजूद इस के वह कभी भूल से भी दीपमाला को पुरानी बातें याद नहीं करने देता. उस की हमदर्दी भरी बातें दीपमाला के टूटे मन को सुकून देतीं. जिंदगी ने मानो हंसनेमुसकराने का बहाना दे दिया था.

दोस्ती कुछ गहरी हुई तो दोनों की शामें साथ गुजरने लगीं. शहर में अकेली रह रही दीपमाला पर कोई बंदिश नहीं थी. वह जब चाहती तब अमित की बांहों में चली आती.

एक सुहानी शाम दीपमाला की गोद में सिर रख कर उस के महकते आंचल से आंखें मूंदे लेटे अमित से दीपमाला ने पूछा, ‘‘अमित हम कब तक यों ही मिलते रहेंगे. क्या कोई भविष्य है इस रिश्ते का?’’

रोमानी खयालों में डूबा अमित एकाएक पूछे गए इस सवाल से चौंक गया. बोला, ‘‘जब तक तुम चाहो दीप, मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगा.’’

दीपमाला खुद तय नहीं कर पा रही थी कि इस रिश्ते का कोई अंजाम भी है या नहीं. किसी की प्रेमिका बन कर प्यार का मीठा फल चखने में उसे आनंद आने लगा था, पर यह साथ न जाने कब छूट जाए, इस बात से उस का दिल डरता था.

जब अमित ने उसे बताया कि उस के घर वाले पुराने विचारों के हैं तो दीपमाला को यकीन हो गया कि उस के तलाकशुदा होने की बात जान कर वे अमित के साथ उस की शादी को कभी स्वीकार नहीं करेंगे. आने वाले कल का डर मन में छिपा था, मगर अपने वर्तमान में वह अमित के साथ खुश थी.

अमित की बाइक पर उस के साथ सट कर बैठी दीपमाला को एक दिन जब भूपेश ने बाजार में देखा तो वह नाग की तरह फुफकार उठा. दीपमाला अब उस की पत्नी नहीं थी, यह बात जानते हुए भी दीपमाला का किसी और मर्द के साथ इस तरह घूमनाफिरना उसे नागवार गुजरा. उस की कुंठित मानसिकता यह बात हजम नहीं कर पा रही थी कि उस की छोड़ी हुई औरत किसी और मर्द के साथ गुलछर्रे उड़ाए.

घर आ कर भूपेश बहुत देर तक उत्तेजित होता रहा. दीपमाला उस आदमी के साथ कितनी खुश लग रही थी, उसे यह बात रहरह कर दंश मार रही थी. उपासना से शादी कर के उस के अहं को संतुष्टि तो मिली, लेकिन उपासना दीपमाला नहीं थी. शादी के बाद भी उपासना पत्नी न हो कर प्रेमिका की तरह रहती थी. घर के कामों में बिलकुल फूहड़ थी.

उस की फजूलखर्ची से भूपेश अब परेशान रहने लगा था. कभी उस पर झुंझला उठता तो उपासना उस का जीना हराम कर देती, तलाक और पुलिस की धमकी देती.

जो शारीरिक सुख उपासना से प्रेमिका के रूप में मिल रहा था वह उस के पत्नी बनते ही नीरस लगने लगा. इश्क का भूत जल्दी ही सिर से उतर गया.

दीपमाला के साथ शादी के शुरुआती दिनों की कल्पना कर के भूपेश के मन में बहुत से विचार आने लगे. वह एक बार फिर दीपमाला के संग के लिए उत्सुक होने लगा. खाने की थाली की तरह जिस्म की भूख भी स्वाद बदलना चाहती थी.

किसी तरह दीपमाला के घर और सैलून का पता लगा कर एक दिन वह दीपमाला के फ्लैट पर आ धमका. एक अरसे बाद अचानक उसे सामने देख दीपमाला चौंक उठी कि भूपेश को आखिर उस का पता कैसे मिला और अब यहां क्या करने आया है?

‘‘कैसी हो दीपमाला? बिलकुल बदल गई हो… पहचान में ही नहीं आ रही,’’ भूपेश ने उसे भरपूर नजरों से घूरा.

दीपमाला संजसंवर कर रहती थी ताकि उस के सैलून में ग्राहकों का आना बना रहे. अब वह आधुनिक फैशन के कपड़े भी पहनने लगी थी. सलीके से कटे बाल और आत्मनिर्भरता के भाव उस के चेहरे की रौनक बढ़ा रहे थे. उस का रंगरूप भी पहले की तुलना में निखर आया था.

कांच के मानिंद टूटे दिल के टुकड़े बटोरते उस के हाथ लहूलुहान भी हुए थे, मगर उस ने अपनी हिम्मत कभी नहीं टूटने दी. वह अब जीवन की हर मुश्किल का सामना कर सकती थी तो फिर भूपेश क्या चीज थी.

‘‘किस काम से आए हो?’’ उस ने बेहद उपेक्षा भरे लहजे में पूछा. उस की बेखौफी देख भूपेश जलभुन गया, लेकिन फौरन उस ने पलटवार किया, ‘‘मैं अपने बेटे से मिलने आया हूं. तुम ने मुझे मेरे ही बेटे से अलग कर दिया है.’’

‘‘आज अचानक तुम्हें बेटे पर प्यार कैसे आ गया? इतने दिनों में तो एक बार भी खबर नहीं ली उस की,’’ एक व्यंग्य भरी मुसकराहट दीपमाला के अधरों पर आ गई.

‘‘तुम्हें क्या लगता है मैं अंशुल से प्यार नहीं करता? बाप हूं उस का, जितना हक तुम्हारा है उतना मेरा भी है.’’

‘‘तो तुम अब हक जताने आए हो? कानून ने तुम्हें बेशक हक दिया है, मगर वह मेरा बेटा है,’’ दीपमाला ने कहा.

बेटे से मिलना बस एक बहाना था भूपेश के लिए. उसे तो दीपमाला के साथ की प्यास थी. बोला, ‘‘सुनो दीपमाला, मैं तुम्हारा गुनाहगार हूं. मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई… हो सके तो मुझे माफ कर दो.’’

भूपेश के तेवर अचानक नर्म पड़ गए. उस ने दीपमाला का हाथ पकड़ लिया.

तभी एक झन्नाटेदार तमाचा भूपेश के गाल पर पड़ा. दीपमाला ने बिजली की फुरती से फौरन अपना हाथ छुड़ा लिया.

भूपेश का चेहरा तमतमा गया. इस खातिरदारी की तो उसे उम्मीद ही नहीं थी. वह कुछ बोलता उस से पहले ही दीपमाला गुर्राई, ‘‘आज के बाद दोबारा मुझे छूने की हिम्मत की तो अंजाम इस से भी बुरा होगा. यह मत भूलो कि तुम अब मेरे पति नहीं हो और एक गैरमर्द मेरा हाथ इस तरह नहीं पकड़ सकता, समझे तुम? अब दफा हो जाओ यहां से.’’

उसे एक भद्दी सी गाली दे कर भूपेश बोला, ‘‘सतीसावित्री बनने का नाटक कर रही हो. किसकिस के साथ ऐयाशी करती हो सब जानता हूं, अगर उन के साथ तुम खुश रह सकती हो तो मुझ में क्या कमी है? मैं अगर चाहूं तो तुम्हारी इज्जत सारे शहर में उछाल सकता हूं… इस थप्पड़ का बदला तो मैं ले कर रहूंगा और फिर दीपमाला को बदनाम करने की धमकी दे कर भूपेश वहां से चला गया.

कितना नीच और कू्रर हो चुका है भूपेश… दीपमाला की सहनशक्ति जवाब दे गई. वह तकिए पर सिर रख कर खुद पर रोती रही, जुल्म उस पर हुआ था, लेकिन कुसूरवार उसे ठहराया जा रहा था.

इस मुश्किल की घड़ी में उसे अमित की जरूरत होने लगी. उस के प्यार का मरहम उस के दिल को सुकून दे सकता था. उस ने अपने फोन पर अमित का नंबर मिलाया. कई बार कोशिश करने पर भी जब उस ने फोन नहीं उठाया तो वह अपना पर्स उठा कर उस से मिलने चल पड़ी.

भूपेश किसी भी हद तक जा सकता है, यह दीपमाला को यकीन था. वह चुप नहीं बैठेगा. अगर उस की बदनामी हई तो उस के सैलून के बिजनैस पर असर पड़ सकता है. वह अमित से मिल कर इस मुश्किल का कोई हल ढूंढ़ना चाहती थी. क्या पता उसे पुलिस की भी मदद लेनी पड़े.

अमित के औफिस में ताला लगा देख कर वह निराश हो गई. अमित उस के एक बार बुलाने पर दौड़ा चला आता था, फिर आज उस का फोन क्यों नहीं उठा रहा? उसे याद आया जब वह पहली बार अमित से मिली थी तो उसे अपना विजिटिंग कार्ड दिया था. उस ने पर्स टटोला, कार्ड मिल गया. औफिस और घर का पता उस में मौजूद था. उस ने पास से गुजरते औटो को हाथ दे कर रोका और पता बताया. धड़कते दिल से दीपमाला ने फ्लैट की घंटी बजाई. एक आदमी ने दरवाजा खोला. दीपमाला ने उस से अमित के बारे में पूछा तो वह अंदर चला गया. थोड़ी देर बाद एक औरत बाहर आई. बोली, ‘‘जी कहिए, किस से मिलना है? लगभग उस की ही उम्र की दिखने वाली उस औरत ने दीपमाला से पूछा.’’

‘‘मैं अमित से मिलने आई हूं. क्या यह उन का घर है?’’ पूछते हुए उसे थोड़ा अटपटा लगा कि पता नहीं यह सही पता है भी या नहीं.

‘‘मैं अमित की पत्नी हूं. क्या काम है आप को? आप अंदर आ जाइए,’’ अमित की पत्नी विनम्रता से बोली.

दीपमाला ने उस औरत को करीब से देखा. वह सुंदर और मासूम थी, मांग में सिंदूर दमक रहा था और चेहरे पर एक पत्नी का विश्वास.

कुछ रुक कर अपनी लड़खड़ाती जबान पर काबू पा कर दीपमाला बोली, ‘‘कोई खास बात नहीं थी. मुझे एक मकान किराए पर चाहिए था. उसी सिलसिले में बात करनी थी.’’

‘‘मगर आप ने अपना नाम तो बताया नहीं… मैं अपने पति को कैसे आप का संदेश दूंगी.’’

‘‘वे खुद समझ जाएंगे,’’ और दीपमाला पलट कर तेज कदमों से मकान की सीढि़यां उतर सड़क पर आ गई.

अजीब मजाक किया था कुदरत ने उस के साथ. उस ने शुक्र मनाया कि उस की आंखें समय रहते खुल गईं.

अमित ने भी वही दोहराया था जो भूपेश ने उस के साथ किया था. एक बार फिर से वह ठगी गई थी. मगर इस बार वह मजबूती से अपने पैरों पर खड़ी थी. जिस जगह पर कभी उपासना खड़ी थी, उसी जगह उस ने आज खुद को पाया. क्या फर्क था भला उस में और उपासना में? दीपमाला ने सोचा.

नहीं, बहुत फर्क है, उस का जमीर अभी मरा नहीं, वह इतनी खुदगर्ज नहीं हो सकती कि किसी का बसेरा उजाड़े. जो गलती उस से हो गई है उसे अब वह दोहराएगी नहीं. उस ने तय कर लिया अब वह किसी को अपने दिल से खेलने नहीं देगी. बस अब और नहीं.

Valentine’s Special-भाग -1-अब और नहीं : आखिर क्या करना चाहती थी दीपमाला

नन्हीगौरैया ने बड़ी कोशिश से अपना घोंसला बनाया था. घास के तिनके फुरती से बटोर कर लाती गौरैया को देख कर दीपमाला के होंठों पर मुसकान आ गई. हाथ सहज ही अपने पेट पर चला गया. पेट के उभार को सहलाते हुए वह ममता से भर उठी. कुछ ही दिनों में एक नन्हा मेहमान उस के आंगन में किलकारियां मारेगा. तार पर सूख रहे कपड़े बटोर वह कमरे में आ गई. कपड़े रख कर रसोई की तरफ मुड़ी ही थी कि तभी डोरबैल बजी.

‘‘आज तुम इतनी जल्दी कैसे आ गई?’’ घर में घुसते ही भूपेश ने पूछा.

‘‘आज मन नहीं किया काम पर जाने का. तबीयत कुछ ठीक नहीं है,’’ दीपमाला ने जवाब दिया.

दीपमाला इस आस से भूपेश के पास खड़ी रही कि तबीयत खराब होने की बात जान कर वह परेशान हो उठेगा. गले से लगा कर प्यार से उस का हाल पूछेगा, मगर बिना कुछ कहेसुने जब वह हाथमुंह धोने बाथरूम में चला गया तो बुझी सी दीपमाला रसोई की ओर चल पड़ी.

शादी के 4 साल बाद दीपमाला मां बनने जा रही थी. उस की खुशी 7वें आसमान पर थी, मगर भूपेश कुछ खास खुश नहीं था. दीपमाला अकेली ही डाक्टर के पास जाती, अपने खानेपीने का ध्यान रखती और अगर कभी भूपेश को कुछ कहती तो काम की व्यस्तता का रोना रो कर वह अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ लेता. वह बड़ी बेसब्री से दिन गिन रही थी. बच्चे के आने से भूपेश को शायद कुछ जिम्मेदारी का एहसास हो जाए, शायद उस के अंदर भी नन्ही जान के लिए प्यार उपजे, इसी उम्मीद से वह सब कुछ अपने कंधों पर संभाले बैठी थी.

कुछ ही दिनों की तो बात है. बच्चे के आने से सब ठीक हो जाएगा, यही सोच कर उस ने काम पर जाना नहीं छोड़ा. जरूरत भी नहीं थी, क्योंकि उस की और भूपेश की कमाई से घर मजे से चल रहा था. पार्लर की मालकिन दीपमाला के हुनर की कायल थी. एक तरह से दीपमाला के हाथों का ही कमाल था जो ग्राहकों की संख्या में बढ़ोतरी हुई थी. दीपमाला के इस नाजुक वक्त में सैलून की मालकिन और बाकी लड़कियां उसे पूरा सहयोग देतीं. उस का जब कभी जी मिचलाता या तबीयत खराब लगती तो वह काम से छुट्टी ले लेती.

एक प्राइवेट कंपनी में मैनेजर भूपेश स्वभाव से रूखा था. उस के अधीन 2-4 लोग काम करते थे. उस के औफिस में एक पोस्ट खाली थी, जिस के लिए विज्ञापन दिया गया था. कंपनी में ग्राहक सेवा के लिए योग्यता के साथसाथ किसी मिलनसार और आकर्षक व्यक्तित्व की जरूरत थी.

एक दिन तीखे नैननक्शों वाली उपासना नौकरी के आवेदन के लिए आई. उस की मधुर आवाज और व्यक्तित्व से प्रभावित हो कर और कुछ उस के पिछले अनुभव के आधार पर उस का चयन कर लिया गया. भूपेश के अधीनस्थ होने के कारण उसे काम सिखाने की जिम्मेदारी भूपेश पर थी.

उपासना उन लड़कियों में से थी जिन्हें योग्यता से ज्यादा अपनी सुंदरता पर भरोसा होता है. अब तक के अपने अनुभवों से वह जान चुकी थी कि किस तरह अदाओं के जलवे दिखा कर आसानी से सब कुछ हासिल किया जा सकता है. छोटे शहर से आई उपासना कामयाबी की मंजिल छूना चाहती थी. कुछ ही दिनों बाद वह समझ गई कि भूपेश उस पर फिदा है. फिर इस बात का वह भरपूर फायदा उठाने लगी.

उपासना का जादू भूपेश पर चला तो वह उस पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान रहने लगा. उपासना बहाने बना कर औफिस के कामों को टाल देती जिन्हें भूपेश दूसरे लोगों से करवाता. अकसर बेवजह छुट्टी ले कर मौजमस्ती करने निकल पड़ती. उसे बस उस पैसे से मतलब था जो उसे नौकरी से मिलते थे. साथ में काम करने वाले भूपेश के दबदबे की वजह से उपासना की हरकतों को नजरंदाज कर देते.

अपने यौवन और शोख अदाओं के बल पर उपासना भूपेश के दिलोदिमाग में पूरी तरह उतर गई. उस की और भूपेश की नजदीकियां बढ़ने लगीं. काम के बाद दोनों कहीं घूमने निकल जाते. उसे खुश करने के लिए भूपेश उसे महंगे तोहफे देता. आए दिन किसी पांचसितारा होटल में लंच या डिनर पर ले जाता. भूपेश का मकसद उपासना को पूरी तरह से हासिल करना था और उपासना भी खूब समझती थी कि क्यों भूपेश उस के आगेपीछे भंवरे की तरह मंडरा रहा है.

पहले भूपेश औफिस से घर जल्दी आता था तो दोनों साथ में खाना खाते, अब देर रात तक दीपमाला उस का इंतजार करती रहती और फिर अकेली ही खा कर सो जाती. कुछ दिनों से भूपेश के रंगढंग बदल गए थे. औफिस में भी सजधज कर जाता. उधर इन सब बातों से बेखबर दीपमाला नन्हें मेहमान की कल्पना में डूबी रहती. उस की दुनिया सिमट कर छोटी हो गई थी.

एक रोज धोने के लिए कपड़े निकालते वक्त उसे भूपेश की पैंट की जेब से फिल्म के 2 टिकट मिले. उसे थोड़ी हैरानी हुई. भूपेश फिल्मों का शौकीन नहीं था. कभी कोई अच्छी फिल्म लगी होती तो दीपमाला ही जबरदस्ती उसे खींच ले जाती.

उस ने भूपेश से इस बारे में पूछा. टिकट की बात सुन कर वह कुछ सकपका गया. फिर तुरंत संभल कर उस ने बताया कि औफिस के एक सहकर्मी के कहने पर वह चला गया था. बात आईगई हो गई.

इस बात को कुछ ही दिन बीते थे कि एक दिन भूपेश के बटुए में दीपमाला को सुनार की दुकान की एक परची मिली. शंकित दीपमाला ने भूपेश के घर लौटते ही उस पर सवालों की बौछार कर दी.

उपासना को जन्मदिन में देने के लिए भूपेश ने एक गोल्ड रिंग बुक करवाई थी, लेकिन किसी शातिर अपराधी की तरह भूपेश उस दिन सफेद झूठ बोल गया. अपने होने वाले बच्चे का वास्ता दे कर.

उस ने दीपमाला को यकीन दिला दिया कि उस के दोस्त ने अपनी पत्नी को सरप्राइज देने के लिए ही परची उस के पास रखवाई है. इस घटना के बाद से भूपेश कुछ सतर्क रहने लगा. अपनी जेब में कोई सुबूत नहीं छोड़ता था.

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Valentine’s Special- भाग-1: वैलेंटाइन के फूल

‘‘जब तुम्हारी नेतागीरी चल नहीं पा रही है तो तुम और कोई काम क्यों नहीं करते? अब तो घर चलाना कितना मुश्किल हो रहा है…’’ मानसी ने अपने पति हितेश से कहा.

‘‘नेतागीरी नहीं चल रही होती तो लोग मेरी पार्टी को चंदा नहीं भेजते… और अब तो मैं सोशल मीडिया पर भी अपने भाषण के वीडियो डालता हूं… कितने ढेर सारे कमैंट आते हैं… पर तुम भला क्या जानो… तुम्हारी तो सोच ही छोटी है, तुम्हारी जाति की तरह,’’ आखिरी के शब्द हितेश ने धीमी आवाज में कहे थे कि मानसी के कान उन्हें सुन नहीं पाए, वह बस हितेश का मुंह देखती रह गई.

हितेश एक कर्मकांडी ब्राह्मण का बेटा था और कालेज के समय से ही नेतागीरी में अपना कैरियर बनाना चाहता था. वह जानता था कि उत्तर प्रदेश में सिर्फ जातिवाद पर ही राजनीति की जा सकती है, इसीलिए उस ने जानबू झ कर एक छोटी जाति की लड़की से शादी की थी, ताकि पिछड़ी जाति वालों को अपनी ओर ला कर सके. पर एक छोटी जाति की लड़की से शादी करने से हितेश के घर वालों ने उस से नाता तोड़ लिया था और उस के पिता ने उसे अपनी जायदाद से बेदखल भी कर दिया था.

शादी के बाद वे दोनों लखनऊ के हजरतगंज इलाके में एक फ्लैट किराए पर ले कर रहने लगे थे. हितेश कुछ कामवाम नहीं करता था और राजनीति में भी जो पैसा वह कमा पा रहा था, वह पार्टी के प्रचारप्रसार में और लोगों को अपनी पार्टी में जोड़ने में खर्च कर देता था, लिहाजा घर चलाने के लिए मानसी को घर से बाहर निकलना पड़ा और नौकरी करनी पड़ी.

मानसी की नौकरी से ही इन दोनों का घर का खर्चा चल रहा था, पर आज मानसी के बौस ने उसे औफिस में बुला कर उस की पीठ पर हाथ फेर कर जो बदतमीजी दिखाई तो मानसी ने बौस को न सिर्फ थप्पड़ रसीद किया, बल्कि नौकरी से इस्तीफा भी दे दिया था.

बौस को लगा था कि छोटी जाति की लड़की सब सहन कर लेगी, पर मानसी एक स्वाभिमानी लड़की थी और ऐसे लुच्चों को जवाब देना उसे अच्छी तरह से आता था.

मानसी ने जोश में आ कर नौकरी तो छोड़ दी थी, पर घर वापस आ कर 1-2 दिन के बाद ही अहसास हुआ कि हितेश ने घर का खर्चा चलाने की जिम्मेदारी अघोषित रूप से मानसी को ही सौंप दी थी. शायद हितेश के मन में कहीं न कहीं मानसी के लिए उस की छोटी जाति को ले कर यह भाव था कि सेवा और नौकरी करना तो मानसी की जातिगत विशेषता है और वह अगड़ी जाति वालों की सेवा करने के लिए ही बनी है.

और वैसे भी हितेश के अंदर नौकरी करने की कोई लालसा ही नहीं बची थी. वह तो एक बड़ा नेता बनना चाहता था और इसीलिए लोकल नेतागीरी में दांव भी आजमाता आया था और इसी चक्कर में घर की जिम्मेदारियों से वह कट चुका था.

कालेज के दिनों से ही मानसी एक मेधावी छात्रा रही थी और उस के पास एचआर का डिप्लोमा भी था, इसलिए नई नौकरी ढूंढ़ने के लिए उस ने अपना बायोडाटा अलगअलग तरह की नौकरी  देने वाली साइटों पर अपलोड कर दिया था.

कुछ दिनों के बाद ही मानसी की पढ़ाईलिखाई और अनुभव के मुताबिक उस के इंटरव्यू के लिए बुलावा आने लगा, पर कई औफिसों के चक्कर लगाने के बाद भी मानसी को नौकरी न मिल सकी. कहीं पर नाइट शिफ्ट में काम करने की शर्त थी, तो कहीं पर मनमुताबिक सैलरी न मिल पाई.

पति घर में बैठा हो और कामकाजी पत्नी की लगीलगाई नौकरी भी छूट जाए तो गृहस्थी चलाना एक बड़ा मुश्किल काम होता है… इसी अनुभव से गुजर रही थी मानसी कि एक दिन सुबहसुबह ही इंटरव्यू के एक बुलावे ने मानसी के मन में फिर से उमंग भर दी थी. ठीक 11 बजे इंटरव्यू के लिए पहुंचना था उसे.

औफिस में पहुंच कर मानसी ने देखा कि तकरीबन 15 लोग पहले से बैठे हुए अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे. एक घंटे के बाद मानसी का नंबर भी आ गया था.

‘‘मे आई कम इन सर?’’ केबिन का दरवाजा खोल कर मानसी ने बोला और बौस के चेहरे पर नजर पड़ते ही उस के चेहरे पर एक हैरानी भरी खुशी दौड़ गई थी, ‘‘अरे नैतिक, तुम…’’ मानसी चहक पड़ी थी. केबिन में बैठा हुआ बौस भी खुश हुए बिना न रह सका और वह अपनी कुरसी से उठ कर मानसी की तरफ लपका, ‘‘ओह, मानसी तुम… आओ, आओ… आज तुम से कितने सालों बाद मिलना हो रहा है…’’

‘‘हां, नैतिक, तो तुम यहां के बौस हो… काफी पैसा कमा लिया है तुम ने…’’

‘‘कुछ नहीं बस थोड़ाबहुत काम चल जाता है,’’ नैतिक ने मुसकराते हुए कहा.

मानसी और नैतिक एक ही कालेज में पड़ते थे. नैतिक मानसी से एकतरफा प्यार करता था और उसे प्रपोज करना चाहता था, पर मानसी उसी कालेज में पड़ने वाले हितेश से प्यार करती थी.

कालेज में वैलेंटाइन डे वाली शाम को हितेश ने मानसी को प्रपोज कर दिया  था. मानसी हितेश से प्रभावित थी, इसलिए उन दोनों ने प्रेम विवाह कर लिया था.

नैतिक एक हारा हुआ प्रेमी था, पर मानसी के लिए उस के मन में प्यार अब भी बाकी था. कालेज में भी दोस्तों ने नैतिक का खूब मजाक बनाया था और उसे ‘देवदास’ कह कर पुकारने लगे थे, पर अब नैतिक के हाथ में कुछ बचा नहीं था.

आज पूरे 5 साल के बाद मानसी और नैतिक एकदूसरे से मिल रहे थे. अब मानसी को एक नौकरी की जरूरत थी और नैतिक एक कंपनी का मालिक था. मानसी और नैतिक ने खूब बातें कीं, कालेज की बातों को ताजा किया और नैतिक ने हितेश के बारे मे भी पूछताछ की, फिर उस ने मानसी को अपनी सैक्रेटरी का पद औफर कर दिया.

जल्दी ही मानसी ने औफिस की जिम्मेदारियां उठा ली थीं और आज मानसी को पूरा एक महीना हो गया था. अभी थोड़ी देर पहले ही उस के बैंक अकाउंट में सैलरी क्रेडिट होने का मैसेज आया था.

खुशीखुशी थैंक्स कहने मानसी नैतिक के केबिन के अंदर गई तो नैतिक ने उसे फूलों का गुलदस्ता भी दिया.

‘‘पर यह क्यों?’’ मानसी ने पूछा.

‘‘बस ऐसे ही, नई दोस्ती की शुरुआत के लिए सम झो,’’ नैतिक ने मुसकरा कर कहा.

मानसी ने घर आ कर गुलदस्ता एक तरफ रख दिया और देखा कि हितेश उस की तरफ सवालिया निगाहों से देख रहा था.

‘‘नैतिक ने दिया है,’’ मानसी ने सफाई दी, पर फिर भी सवाल उस की नजरों में अब भी था.

मानसी ने तुरंत ही हितेश से कहा, ‘‘नैतिक कह रहा था कि औफिस में एक जगह खाली हो गई है, अगर तुम चाहो तो औफिस जौइन कर सकते हो.’’

‘‘अच्छा… पर तुम्हारे होते हुए मु झे नौकरी करने की क्या जरूरत है और फिर मेरे जैसे नेतागीरी करने वाले को भी कोई जौब पर रख सकता है क्या?’’

‘‘हांहां, आखिर नैतिक हम दोनों का कौमन दोस्त था न,’’ मानसी ने कहा.

‘‘तो ठीक है, कल की कल सोचेंगे, पर पहले आज तो मेरी बांहों में आओ न,’’ कहते हुए हितेश ने मानसी को अपनी बांहों में भर लिया और उस को चूमने लगा. इसी दौरान वह अपना और मानसी के प्रेम संबंध का वीडियो भी बनाने लगा.

‘‘तुम यह सब इस मोबाइल में क्यों शूट करते रहते हो, मु झे बिलकुल पसंद नहीं है,’’ मानसी ने हितेश के हाथों से मोबाइल छीनते हुए कहा.

‘‘अरे मेरी जान, जब तुम औफिस चली जाती हो और मु झे तुम्हारी याद आती है, तो मैं तुम्हारे साथ किए गए सैक्स को दोबारा मोबाइल में देख कर दोगुना मजा लेता हूं,’’ हितेश ने बेशर्मी से कहा.

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