रिलेशनशिप्स पर टिक-टोक का इंफ्लुएंस

युवाओं का रिलेशनशिप में आना आम है. कक्षा छठी या सांतवी में आते ही इन रिलेशनशिप्स का सिलसिला शुरू होता है और लगभग उम्रभर चलता ही रहता है. यह आज की बात नहीं है बल्कि हमेशा से ही लोग प्रेम में पड़ते रहे हैं और रिलेशनशिप में भी आते ही रहे हैं, लेकिन रिलेशनशिप के मायने अब बदल चुके हैं.

आज सोशल मीडिया का इंफ्लुएंस युवाओं पर इतना ज्यादा है कि उन्हें अपने रिलेशनशिप से कभी संतुष्टि मिलती ही नहीं है. इस असंतुष्टि का ही परिणाम है कि वर्तमान में बच्चे 15 साल की उम्र में खुद को हार्टब्रोकेन बता घूमते हैं. सोश्ल मीडिया खासकर टिकटोक पर 20 करोड़ से ज्यादा यूजर्स हैं जिन में 12 करोड़ एक्टिव हैं.

टिकटोक पर जिस तरह का कंटैंट इन युवाओं को परोसा जा रहा है वह न केवल अव्यव्हारिक है बल्कि अनैतिक व आपत्तिजनक भी है. टिकटोक पर वैसे तो कई अलग-अलग तरह की वीडियोज पोस्ट होते हैं, किसी में कोई डांस करता हुआ नजर आता है, किसी में लिप सिंक करता हुआ तो किसी में फिल्मी सीन जैसा दृश्य दिखाया जाता है. युवाओं व किशोरों के लिए रिलेशनशिप के मायने बदलने में टिकटोक का इंफ्लुएंस लगातार बढ़ रहा है.

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हालांकि, टिकटोक के रिलेशनशिप पर असर को ले कर अभी कोई स्टडी या रिसर्च सामने नहीं आई है लेकिन रिलेशनशिप को वैचारिक तौर पर बदलने में इस की भूमिका दिन ब दिन पैठ जमा रही है. कैसे? आइए नजर डालते हैं.

बड़ा पछताओगे’

इस फिल्मी गाने को टिकटोक पर अलगअलग कोन्सेप्ट्स में यूज किया गया है. ज्यादातर विडियोज में या तो लड़की इस गाने को गाते हुए लड़के को कह रही है कि बड़ा पछताओगे या लड़का लड़की को. ऐसी ही एक विडियो में लड़का किसी लड़की से बातें कर रहा है, फिर वह अपनी गर्लफ्रेंड को देखता है और उस के पास आने लगता है तो उस की गर्लफ्रेंड उस के सामने से दूसरे लड़के को ला निकलने लगती है. बैक्ग्राउंड में ‘मुझे छोड़ के जो तुम जाओगे बड़ा पछताओगे, बड़ा पछताओगे…’ चलता रहता है.

आई केन टेक यौर मैन

इस साउंड पर बनी विडियो में लड़कियां दूसरी लड़कियों को कहती हैं, ‘आई केन टेक यौर मैन इफ आई वांट टू, बट गुड फोर यू आई डोंट वांट टू’ यानी मैं चाहूं तो तुम्हारे बौयफ्रेंड या पति को जब चाहे पा सकती हूं पर तुम्हारे लिए अच्छा है कि मैं पाना नहीं चाहती. इस हैशटैग से टिकटोक पर 16 करोड़ से ज्यादा विडियोज मौजूद हैं.

द एक्स फैक्टर

अब लोग रिलेशनशिप में आएंगे तो ब्रेकअप तो होगा ही फिर चाहे परमानेंट हो या टेम्पोररी. अब टिकटोक पर एक्सेस को ले कर अनगिनत विडियोज हैं जिन का न कोई सिर है न पैर. जैसे, कहीं कोई अपने एक्स के लिए रो रहा है, कोई शीशे पर एक्स लिख कर उस पर मुंह से पानी उगल रहा है, कोई उसे उलाहनाएं दे रहा है तो पैरों पर गिर रहा है.

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रुला के गया इश्क तेरा

रिलेशनशिप का एक और ड्रामा जिस में अधिकतर तीन तरफा प्यार दिखाने की कोशिश की जाती है. इतना शायद असल जीवन में कोई सोचता नहीं होगा पहले जितना अब इन विडियोज के बाद लोगों ने अपनी बेस्टफ्रेंड के साथ अपने बौयफ्रेंड के अफेयर के बारे में सोचना शुरू कर दिया है. कभी पीठ के पीछे कोई बेवफाई कर रहा होता है तो कभी आंख के आगे जिसे देख लड़की कुछ कहती भी तो नहीं क्योंकि प्यार जो करती है. कैसी विकृत मानसिकता है ये.

इंफ्लुएंस्ड होना रोकें

ऊपर जिन चंद विडियोज के उदाहरण दिए गए हैं उन के कौंसेप्ट कोई बड़े राइटर तैयार नहीं करते बल्कि आम लोग करते हैं जो अपनी अजीबो-गरीब सोच को अच्छी एक्टिंग के साथ लोगों के सामने परोसते हैं और लोग उन्हें वाहवाही तक देते हैं. इस में दोराय नहीं कि यह सोच न केवल उन के अपने जीवन में वे उतारते हैं बल्कि जाने-अनजाने उनके रिलेशनशिप्स भी प्रभावित होते हैं.

जलन, बेवफाई, तीन तरफा प्यार को बढ़ावा, एक्स को गालियां देते फिरना आदि को ले कर टिकटोक को दोष दिया जाना गलत नहीं होगा. धोखा दिया किसी ने तो उस को जान से मार देने जैसी विडियोज की भरमार भी कम नहीं है. खुद रो रो कर भी रिलेशनशिप निभाना भी इन विडियोज में भरा पड़ा है. टिकटोक से इंफ्लुएंस हो लोग अपनी लवलाइफ को भी कोई कहानी समझने लगे हैं. यह गलत है, सरासर गलत है.

बौलीवुड और हिंदी सीरियल्स के इंफ्लुएंस से लोगों की सोच पहले ही संकुचित थी और अब तो संकुचित सोच छोटी उम्र में ही बच्चों के अंदर पैठ जमाने लगी है. जरूरी है कि टिकटोक को मनोरंजन की ही तरह देखें पर जरूरत से ज्यादा नहीं.

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‘भाभीजी’ ड्रग्स बेचती हैं

जीहां, ये ‘भाभीजी’ ड्रग्स, ब्राउन शुगर और अफीम बेचती हैं. पटना के जक्कनपुर इलाके की रहने वाली राधा देवी ड्रग्स के धंधेबाजों के बीच ‘भाभीजी’ के नाम से मशहूर हैं. पटना, मुजफ्फरपुर, बोधगया से ले कर रांची तक में ‘भाभीजी’ का धंधा फैला हुआ है. पटना के स्कूलकालेजों, कोचिंग सैंटरों और होस्टल वाले इलाकों के चप्पेचप्पे पर ‘भाभीजी’ के एजेंट फैले हुए हैं.

बच्चों और नौजवानों को नशे का आदी बनाने में लगी ‘भाभीजी’ और उन के गुरगे पिछले 6 सालों से इस गैरकानूनी और खतरनाक धंधे को चला रहे थे. 16 अक्तूबर, 2019 को पुलिस ने ‘भाभीजी’, उन के शौहर और 6 गुरगों को दबोच लिया.

जक्कनपुर पुलिस ने 16 अक्तूबर, 2019 को राधा देवी उर्फ ‘भाभीजी’ और उन के शौहर गुड्डू कुमार को उस समय गिरफ्तार कर लिया, जब वे आईसीआईसीआई बैंक से रुपए निकाल रहे थे. दोनों के पास से 9 लाख, 67 हजार, 790 रुपए और 20 ग्राम ब्राउन शुगर और 6 स्मार्ट फोन बरामद किए गए. उस 20 ग्राम ब्राउन शुगर की कीमत 5 लाख रुपए आंकी गई.

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पटना के सिटी एसपी जितेंद्र कुमार ने बताया कि राधा देवी उर्फ ‘भाभीजी’ और गुड्डू कुमार ब्राउन शुगर के स्टौकिस्ट हैं. पुलिस पिछले कई सालों से इन दोनों को रंगे हाथ पकड़ने की कोशिश में लगी हुई थी, पर वे हर बार पुलिस को चकमा दे कर भाग निकलते थे.

गुड्डू कुमार ने पुलिस को बताया कि ब्राउन शुगर के सप्लायर को 12 लाख रुपए देने के लिए वह बैंक से पैसे निकाल रहा था. उसी दिन सप्लायर ब्राउन शुगर की खेप ले कर आने वाला था. सप्लायर नेपाल और खाड़ी देशों से आता था.

‘भाभीजी’ और गुड्डू कुमार को आईसीआईसीआई बैंक के जिस खाते से रुपए निकालते पकड़ा गया था, उस खाते में अभी 17 लाख, 46 हजार रुपए और हैं. कंकड़बाग के आंध्रा बैंक के खाते में भी उन दोनों के 9 लाख, 94 हजार रुपए जमा हैं. इन दोनों ने ब्राउन शुगर के धंधे से करोड़ों रुपए की कमाई की है और कई मकान और फ्लैट भी खरीद रखे हैं.

राधा देवी उर्फ ‘भाभीजी’ और गुड्डू कुमार को दबोचने में लगी पुलिस की टीम 16 अक्तूबर को जक्कनपुर इलाके में ब्राउन शुगर की खरीदार बन कर पहुंची.

जक्कनपुर के इंदिरानगर इलाके के रोड नंबर-4 में शिवपार्वती कम्यूनिटी हाल से सटे किराए के मकान में जब पुलिस पहुंची, तो वहां 5 लोग ब्राउन शुगर की पुडि़या बनाने में लगे हुए थे.

पुलिस ने उन पांचों को ब्राउन शुगर के साथ गिरफ्तार कर लिया. करीमन उर्फ राजेश यादव, सोनू, गणेश कुमार, संतोष कुमार और पप्पू को पुलिस ने पकड़ा. सभी की उम्र 22 से 30 साल के बीच है.

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पिछले चंद महीनों के दौरान ड्रग्स का धंधा करने वाले 14 लोगों को पुलिस जक्कनपुर, मालसलामी, गर्दनीबाग, कंकड़बाग, रामकृष्णानगर वगैरह इलाकों से गिरफ्तार कर चुकी है. 14 सितंबर, 2019 को भी जक्कनपुर इलाके में पुलिस ने 65 लाख रुपए की ब्राउन शुगर के साथ 5 लोगों को पकड़ा था.

गिरफ्तार किए गए सभी लोग ‘भाभीजी’ के ही गुरगे थे. तब ‘भाभीजी’ और गुड्डू कुमार पुलिस की आंखों में धूल  झोंक कर भाग निकलने में कामयाब हो गए थे.

‘भाभीजी’ की देखरेख में ही ब्राउन शुगर खरीदने, उस की पुडि़या बनाने और बेचने का धंधा चलता था. एक पुडि़या 500 रुपए में बेची जाती थी. नारकोटिक ड्रग्स ऐंड साइकोट्रौपिक सब्सटैंस ऐक्ट की धारा 22 सी के तहत केस दर्ज किया गया है.

करोड़ों की दौलत होने के बाद भी ये मियांबीवी खानाबदोश की जिंदगी जीते थे. वे किसी एक जगह टिक कर नहीं रहते थे. पुलिस को चकमा देने के लिए अपना ठिकाना और मोबाइल नंबर बदलते रहते थे. पुलिस साल 2012 से ही दोनों शातिरों को पकड़ने में लगी हुई थी, पर कामयाबी नहीं मिल रही थी. साल 2012 में ही दोनों के खिलाफ गर्दनीबाग थाने में एफआईआर दर्ज हुई थी.

‘भाभीजी’ ने पुलिस को बताया कि पश्चिम बंगाल और  झारखंड से ब्राउन शुगर पटना लाई जाती है. एक किलो ब्राउन शुगर की कीमत 3 करोड़ रुपए होती है. घटिया क्वालिटी की ब्राउन शुगर एक करोड़ रुपए में एक किलो मिलती है.

गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल और  झारखंड में बड़े पैमाने पर अफीम की खेती होती है. अफीम से ही ब्राउन शुगर बनाई जाती है.

ड्रग करंसी का इस्तेमाल, खतरनाक: डीजीपी

बिहार के डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे मानते हैं कि ड्रग को करंसी के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. जिस्म के कारोबार में भी ड्रग करंसी खूब चल रही है. ड्रग्स के खिलाफ समाज को जहां जागरूक होने की जरूरत है, वहीं नशा मुक्ति मुहिम को मजबूत बनाना होगा.

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नशा दिल और दिमाग दोनों पर खतरनाक असर डालता है और उस के बाद बलात्कार, हिंसा जैसे कई अपराध करने के लिए उकसाता है.

पुलिस ड्रग्स के खिलाफ आएदिन धड़पकड़ करती रहती है, लेकिन समाज के सहयोग के बगैर ड्रग्स के धंधे को पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सकता है.

अफीम की खेती छोड़ी, गेंदा लगाया

झारखंड राज्य के नक्सली एरिया खूंटी के लोगों ने अफीम की खेती से तोबा कर गेंदा के फूल उपजाने शुरू किए हैं. तकरीबन 200 परिवार गेंदे की खेती कर मुनाफा कमा रहे हैं.

आजकल धर्म का व्यापार अफीम के व्यापार की तरह रातदिन बढ़ रहा है और वहां गेंदे के फूलों की खपत बहुत होती है.

कुछ साल पहले तक इस इलाके में पोस्त की गैरकानूनी खेती होती थी और पोस्त से ही अफीम बनाई जाती है. नक्सली बंदूक का डर दिखा कर गांव वालों से जबरन अफीम की गैरकानूनी खेती कराते थे. पिछले साल अगस्त महीने में खूंटी में 14 लाख गेंदे के पौधे लगाए गए थे. आज उन से तकरीबन सवा करोड़ रुपए मुनाफा होने का अंदाजा है. सुनीता नाम की महिला किसान ने 2,000 रुपए में गेंदे के 5,000 पौधे खरीदे थे. एक पौधे से 35 से 40 फूल निकलते हैं.

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रेव पार्टीज का बढ़ता क्रेज

आज युवाओं में पार्टी देने या लेने का शगल तेजी से बढ़ता जा रहा है. वे बातबात पर पार्टियां आयोजित करते हैं जिन में भरपूर मस्ती होती है. ये पार्टियां देर तक चलती हैं. ऐसी ही एक पार्टी है रेव पार्टी. रेव पार्टियों की शुरुआत 20वीं सदी के छठे दशक में लंदन में हुई थी. पहले इस प्रकार की पार्टियां जंगल में आयोजित की जाती थीं, लेकिन 1960 के बाद इन्हें शहर के गुमनाम पबों और गैराजों में आयोजित किया जाने लगा. इस दौरान इन पार्टियों के लिए एक विशेष संगीत तैयार किया गया जिस में इलैक्ट्रौनिक वा-यंत्रों का प्रयोग भी किया गया. जिस का 28, जनवरी 1967 को राउंड हाउस में सार्वजनिक प्रदर्शन किया गया था. 1970 के दशक में यह संगीत काफी लोकप्रिय हुआ था.

1970 में जब कुछ हिप्पी गोआ घूमने आए तो उन के द्वारा गुपचुप तरीके से इन पार्टियों की शुरुआत गोआ के पबों में भी कर दी गई.

धीरेधीरे इन पार्टियों में हिप्पियों के साथ कुछ स्थानीय युवा भी जुड़ने लगे, क्योंकि हिप्पियों द्वारा शुरू की गई इन रेव पार्टियों में शराब, ड्रग्स, म्यूजिक, नाचगाना और सैक्स का कौकटैल परोसा जाता था.

धीरेधीरे भारत के धनकुबेरों में इन पार्टियों का क्रेज बढ़ता जा रहा है. इन पार्टियों का विस्तार मैट्रो शहरों के साथ ही जयपुर, नोएडा व गुड़गांव जैसे शहरों में भी हो चुका है.

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रेव पार्टी का शाब्दिक अर्थ है मौजमस्ती की पार्टी. रेव का अर्थ मदमस्त और उत्तेजित होना भी है. मदमस्त और उत्तेजित होने के लिए अमीर अपनी गर्लफ्रैंड व बौयफ्रैंड्स के साथ एसिड, एक्सटैसी, हशीश, गांजा, हेरोइन, अफीम, चरस, साथ ही शराब का भी भरपूर प्रयोग करते हैं.

दिल्ली स्थित एक डिएडिक्शन सैंटर की वरिष्ठ डा. अनीता चौधरी का कहना था कि आधुनिक धनकुबेरों की बिगड़ी संतानें रेव पार्टियों के प्रति जनूनी बन रही हैं. यह बात दीगर है कि ड्रग्स लेने से कुछ समय के लिए उत्तेजना और शक्ति बढ़ जाती है. इसलिए वे ड्रग्स लेने के बाद काफी समय तक थिरकते और मटकते रहते हैं, लेकिन ये ड्रग्स युवाओं में आक्रामकता भी पैदा करते हैं. बचपन बचाओ आंदोलन के प्रमुख कैलाश सत्यार्थी की मानें तो हमारे देश के लगभग 19 फीसदी किशोर व युवा किसी न किसी नशे के आदी हैं.

रेव पार्टियों के शौकीन युवा फ्री सैक्स में विश्वास रखते हैं. इसलिए इन पार्टियों में सैक्स है, नशा है, खुमार है और मस्ती के नाम पर अश्लीलता है.

इस संस्कृति को दिन के उजाले से नफरत और रात के अंधेरे से बेइंतहा प्यार होता है. कमाओ, ऐश करो और मरो या मारो, इस अपसंस्कृति का मूलमंत्र है. कुछ लोग इसे निशाचर संस्कृति भी कहते हैं.

20वीं सदी के अंत तक केवल कुछ बिगड़े हुए युवा ही रात रंगीन किया करते थे, लेकिन वर्तमान में युवतियां भी ऐश व रात रंगीन करने के इस जश्न में बराबर की भागीदार हैं. रेव पार्टियों की रंगबिरंगी रोशनी और मदहोश करने वाले संगीत में ये आधुनिक युवतियां भी पूरी तरह मदमस्त हो जाती हैं. वे अपने जीवन की सार्थकता उन्मुक्त आनंद और मौजमस्ती को ही मान रही हैं. इन रेव पार्टियों का प्रवेश शुल्क 5 से 10 हजार रुपए तक होता है.

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इस प्रकार की रेव पार्टियां पांचसितारा होटल, क्लब व आधुनिक फौर्म हाउसों में आयोजित की जाती हैं, जहां पर नृत्य व संगीत के आनंद के साथ ही लेजर तकनीक के जरिए साइकेडेलिक रोशनियों से चकाचौंध पैदा की जाती है और रंगबिरंगे इस माहौल में युवा मैसमेराइज होने लगते हैं.

एक कड़वा सच यह भी है कि इन रेव पार्टियों में जबरदस्त कानफोड़ू म्यूजिक, लाइट शो के साथ ही नशीले पदार्थों का भी भरपूर प्रयोग होता है. इन नशीले पदार्थों में जो सब से फेवरिट और डिमांड वाले हैं वे हैं, एसिड और एक्टैसी. इन्हें लेने के बाद युवा लगातार 8 घंटे तक डांस कर सकते हैं.

ये ड्रग्स उन में लगातार नाचने का जनून पैदा करते हैं. इन पदार्थों को लंबे समय तक सैक्स करने के लिए भी युवाओं द्वारा उपयोग में लाया जाता है. इन रेव पार्टियों में धोखे से युवतियों को डेट रेप ड्रग दे कर उन का बलात्कार तक किया जाता है.

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