सुगंध: भाग 3

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लेखक- सुधीर शर्मा

भाग- 3

चोपड़ा ने मेरे घर आना बंद कर दिया. कभी किसी समारोह में हमारा आमनासामना हो जाता तो वह बड़ा खिंचाखिंचा सा हो जाता. मैं संबंधों को सामान्य व सहज बनाने का प्रयास शुरू करता, तो वह कोई भी बहाना बना कर मेरे पास से हट जाता.

अब उसे दिल का दौरा पड़ गया था. शराब, सिगरेट, मानसिक तनाव व बेटेबहू के साथ मनमुटाव के चलते ऐसा हो जाना आश्चर्य की बात नहीं थी.

उसे अपने व्यवहार व मानसिकता को बदलना चाहिए, कुछ ऐसा ही समझाने के लिए मैं अगले दिन दोपहर के वक्त उस से मिलने पहुंचा था.

उस दिन चोपड़ा मुझे थकाटूटा सा नजर आया, ‘‘यार अशोक, मुझे अपनी जिंदगी बेकार सी लगने लगी है. आज किसी चीज की कमी नहीं है मेरे पास, फिर भी जीने का उत्साह क्यों नहीं महसूस करता हूं मैं अपने अंदर?’’

उस का बोलने का अंदाज ऐसा था मानो मुझ से सहानुभूति प्राप्त करने का इच्छुक हो.

‘‘इस का कारण जानना चाहता है तो मेरी बात ध्यान से सुन, दोस्त. तेरी दौलत सुखसुविधाएं तो पैदा कर सकती है, पर उस से अकेलापन दूर नहीं हो सकता.

‘‘अपनों के साथ प्रेमपूर्वक रहने से अकेलापन दूर होता है, यार. अपने बहूबेटे के साथ प्रेमपूर्ण संबंध कायम कर लेगा तो जीने का उत्साह जरूर लौट आएगा. यही तेरी उदासी और अकेलेपन का टौनिक है,’’ मैं ने भावुक हो कर उसे समझाया.

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कुछ देर खामोश रहने के बाद उस ने उदास लहजे में जवाब दिया, ‘‘दिलों पर लगे कुछ जख्म आसानी से नहीं भरते हैं, डाक्टर. शिखा के साथ मेरे संबंध शुरू से ही बिगड़ गए. अपने बेटे की आंखों में झांकता हूं तो वहां अपने लिए आदर या प्यार नजर नहीं आता. अपने किए की माफी मांगने को मेरा मन तैयार नहीं. हम बापबेटे में से कोई झुकने को तैयार नहीं तो संबंध सुधरेंगे कैसे?’’

उस रात उस के इस सवाल का जवाब मुझे सूझ गया था. वह समाधान मेरी पत्नी को भी पसंद आया था.

सप्ताह भर बाद चोपड़ा को नर्सिंग होम से छुट्टी मिली तो मैं उसे अपने घर ले आया. सविता भाभी भी साथ में थीं.

‘‘तेरे भतीजे विवेक की शादी हफ्ते भर बाद है. मेरे साथ रह कर हमारा मार्गदर्शन कर, यार,’’ ऐसी इच्छा जाहिर कर मैं उसे अपने घर लाया था.

‘‘अरे, अपने बेटे की शादी का मेरे पास कोई अनुभव होता तो मार्गदर्शन करने वाली बात समझ में आती. अपने घर में दम घुटेगा, यह सोच कर शादीब्याह वाले घर में चल रहा हूं,’’ उस का निराश, उदास सा स्वर मेरे दिल को चीरता चला गया था.

नवीन और शिखा रोज ही हमारे घर आते. मेरी सलाह पर शिखा अपने ससुर के साथ संबंध सुधारने का प्रयास करने लगी. वह उन्हें खाना खिलाती. उन के कमरे की साफसफाई कर देती. दवा देने की जिम्मेदारी भी उसी को दे दी गई थी.

चोपड़ा मुंह से तो कुछ नहीं कहता, पर अपनी बहू की ऐसी देखभाल से वह खुश था लेकिन नवीन और उस के बीच खिंचाव बरकरार रहा. दोनों औपचारिक बातों के अलावा कोई अन्य बात कर ही नहीं पाते थे.

शादी के दिन तक चोपड़ा का स्वास्थ्य काफी सुधर गया था. चेहरे पर चिंता, नाराजगी व बीमारी के बजाय खुशी और मुसकराहट के भाव झलकते.

वह बरात में भी शामिल हुआ. मेरे समधी ने उस के आराम के लिए अलग से एक कमरे में इंतजाम कर दिया था. फेरों के वक्त वह पंडाल में फिर आ गया था.

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हम दोनों की नजरें जब भी मिलतीं, तो एक उदास सी मुसकान चोपड़ा के चेहरे पर उभर आती. मैं उस के मनोभावों को समझ रहा था. अपने बेटे की शादी को इन सब रीतिरिवाजों के साथ न कर पाने का अफसोस उस का दिल इस वक्त जरूर महसूस कर रहा होगा.

बहू को विदा करा कर जब हम चले, तब चोपड़ा और मैं साथसाथ अगली कार में बैठे हुए थे. सविता भाभी, मेरी पत्नी, शिखा और नवीन पहले ही चले गए थे नई बहू का स्वागत करने के लिए.

हमारी कार जब चोपड़ा की कोठी के सामने रुकी तो वह बहुत जोर से चौंका था.

सारी कोठी रंगबिरंगे बल्बों की रोशनी में जगमगा रही थी. जब चोपड़ा मेरी तरफ घूमा तो उस की आंखों में एक सवाल साफ चमक रहा था, ‘यह सब क्या है, डाक्टर?’

मैं ने उस का हाथ थाम कर उस के अनबुझे सवाल का जवाब मुसकराते हुए दिया, ‘‘तेरी कोठी में भी एक नई बहू का स्वागत होना चाहिए. अब उतर कर अपनी बहू का स्वागत कर और आशीर्वाद दे. रोनेधोने का काम हम दोनों यार बाद में अकेले में कर लेंगे.’’

चोपड़ा की आंखों में सचमुच आंसू झलक रहे थे. वह भरे गले से इतना ही कह सका, ‘‘डाक्टर, बहू को यहां ला कर तू ने मुझे हमेशा के लिए अपना कर्जदार बना लिया… थैंक यू… थैंक यू वेरी मच, मेरे भाई.’’

चोपड़ा में अचानक नई जान पड़ गई थी. उसे अपनी अधूरी इच्छाएं पूरी करने का मौका जो मिल गया था. बडे़ उत्साह से उस ने सारी काररवाई में हिस्सा लिया.

विवेक और नई दुलहन को आशीर्वाद देने के बाद अचानक ही चोपड़ा ने नवीन और शिखा को भी एक साथ अपनी छाती से लगाया और फिर किसी छोटे बच्चे की तरह बिलख कर रो पड़ा था.

ऐसे भावुक अवसर पर हर किसी की आंखों से आंसू बह निकले और इन के साथ हर तरह की शिकायतें, नाराजगी, दुख, तनाव और मनमुटाव का कूड़ा बह गया.

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‘‘तू ने सच कहा था डाक्टर कि रिश्तों के रंगबिरंगे फूल ही जिंदगी में हंसीखुशी और सुखशांति की सुगंध पैदा करते हैं, न कि रंगीन हीरों की जगमगाहट. आज मैं बहुत खुश हूं क्योंकि मुझे एकसाथ 2 बहुओं का ससुर बनने का सुअवसर मिला है. थैंक यू, भाई,’’ चोपड़ा ने हाथ फैलाए तो मैं आगे बढ़ कर उस के गले लग गया.

मेरे दोस्त के इस हृदय परिवर्तन का वहां उपस्थित हर व्यक्ति ने तालियां बजा कर स्वागत किया.

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