सांवली लड़कियों की सफलता

समाज में यह सोच बनी हुई है कि सांवले रंग के लोग कामयाब नहीं होते हैं. इस रंग की लड़कियों के शादीब्याह में भी परेशानियां आती हैं. गांवदेहात में तो इस तरह की परेशानियां ज्यादा आती हैं.

यह पूरा सच नहीं है. सांवला रंग अब तरक्की की राह में रोड़ा नहीं है. तमाम ऐसी लड़कियां हैं जो सांवले रंग की होने के बाद भी कामयाब हैं.

केवल नौकरी में ही नहीं, बल्कि फिल्म और टैलीविजन पर वे अपनी ऐक्टिंग या गायकी से कमाल दिखा रही हैं. इन में केवल शहरी लड़कियां ही नहीं, बल्कि छोटे शहरों और गांवदेहात की लड़कियां भी शामिल हैं.

बड़े शहरों में रहने वाली लड़कियों के लिए बहुत तरह के मौके आते हैं और उन्हें अपने परिवार से भी सपोर्ट मिलता है. छोटे शहरों और गांवदेहात की रहने वाली लड़कियों के साथ सब से बड़ी परेशानी वहां का माहौल होता है.

छोटे शहरों और गांवदेहात में आज भी सांवले रंग की लड़कियों को अलग नजर से देखा जाता है. लोगों को लगता है कि सांवले रंग की लड़कियां उतनी कामयाब नहीं होती हैं.

बचपन से ही ऐसी लड़कियों को अलग निगाह से देखा जाता है. ऐसे में सांवले रंग की लड़कियों के खुद पर यकीन में कमी होने लगती है.

समाज में बहुत सारी ऐसी लड़कियां भी हैं जो सांवले रंग को दरकिनार कर आगे बढ़ी हैं और कामयाब हुई हैं. अब इन लड़कियों की कामयाबी को देख कर कहा जा सकता है कि जमाना सांवली लड़कियों का है. जरूरत इस बात की है कि इन को सही बढ़ावा मिले और इन के रंग को ले कर बचपन से यह बात समझाई जाए कि सांवला रंग किसी भी तरह से कामयाबी में रुकावट नहीं है.

मीठी आवाज से दी मात

कल्पना और खुशबू उत्तम जैसी लड़कियों ने अपनी मीठी आवाज से सांवलेपन को मात दी है. असम की रहने वाली कल्पना कहती हैं कि सांवले रंग का अंदाज सब से जुदा होता है. अच्छे रंग के बजाय अच्छी सेहत ज्यादा अहम होती है.

कल्पना फिल्मों की बड़ी कलाकार हैं. हिंदी के साथसाथ वे कई भाषाओं में गाने गाती हैं. कई फिल्मों में दर्शकों ने उन की अच्छी ऐक्टिंग को भी देखा है.

कल्पना ने हिंदी फिल्म ‘मेम साहब’, ‘चांद के पार चलो’, ‘अब बस’ और ‘सोनियो आई लव यू’ में अपनी आवाज का जादू दिखाया है. उन्होंने भोजपुरी फिल्म ‘चलत मुसाफिर मोह लियो रे’, ‘गब्बर सिंह’, ‘यूपी बिहार मुंबई ऐक्सप्रैस’ और ‘दुलहनिया नाच नचाए’ में काम किया है. वे देश की बहुत सी बोलियों में गाने गा चुकी हैं. एमटीवी पर उन के बिरहा गायन ने जबरदस्त धमाल मचाया है.

कल्पना ने वैस्टर्न गानों से अपना कैरियर शुरू किया था. आज वे 18 बोलियों में गाने गा रही हैं. उन्हें स्कूलकालेज के दौरान ही गानों के लिए इनाम दिया जाता था. इस से उन्होंने गायकी में ही कैरियर बनाने के बारे में विचार किया. इस के बाद वे मुंबई आ गईं.

कल्पना कहती हैं कि सांवले रंग का अपना अलग आकर्षण होता है. फैशन जगत के तमाम जानकार मानते हैं कि सांवले रंग में सहज आकर्षण होता है. शायद इसीलिए जमाना आज सांवले लोगों का है. हर क्षेत्र में ये लोग कामयाब हो रहे हैं.

बिहार की राजधानी पटना की रहने वाली भोजपुरी की मशहूर सांवलीसलोनी गायिका खुशबू उत्तम का मानना है, ‘‘रंगरूप से पहचान नहीं बनती है, बल्कि अच्छे काम और पढ़ाई से पहचान बनती है. मैं ने जब फिल्मों में कैरियर बनाने की योजना बनाई तो लोगों ने काफी मजाक बनाया. कुछ लोगों ने कहा कि गाना अलग बात है लेकिन परदे पर दिखने के लिए सुंदर होना जरूरी होता है.

‘‘मैं ने लोगों की बातों को चुनौती के रूप में लिया. मेरे गानों के औडियो कैसेट तो धूम मचा ही चुके थे, इस के बाद वीडियो में और यूट्यूब पर भी मेरे गाने सुने और देखे जाने लगे.

‘‘आज मेरे लिए मेरा रंग कोई बाधा नहीं रह गया है. मैं दूसरी लड़कियों से भी यही कहती हूं कि वे सांवले रंग को ले कर परेशान न हों.’’

खुशबू उत्तम आगे कहती हैं, ‘‘मैं बचपन से ही यह सोचती थी कि जो भी काम करूं वह ऐसा करूं जो सब से अच्छा हो. मैं ने न्यूज रीडिंग, मौडलिंग, ड्रामा जैसे तमाम कामों में भाग लिया. मेरी मौडलिंग को बहुत पसंद किया था.’’

खुशबू उत्तम को म्यूजिक बहुत पसंद है और उन्होंने इस को ही अपना कैरियर बना लिया. वे कहती हैं, ‘‘मुझे कभी इस बात का एहसास नहीं हुआ कि किसी ने सांवले रंग का होने के चलते मुझे कोई काम न करने दिया हो. अपने सांवलेपन के बाद भी मैं घरघर पहुंच गई. आज मुझे अपने रंग पर फख्र है.

‘‘मैं दूसरी लड़कियों को भी कहती हूं कि केवल मैं ही नहीं, बल्कि फिल्मों में तमाम ऐसी लड़कियां हैं जो मुझ से भी ज्यादा कामयाब हैं.

‘‘बिपाशा बसु के अलावा बहुत से ऐसे नाम हैं जिन का रंग कभी उन की कामयाबी में बाधा नहीं बना. ऐसे में रंग की फिक्र छोड़ कर अपने काम पर फोकस करें, तब कामयाब होने से कोई रोक नहीं पाएगा.’’

खुद पर करें यकीन

उत्तर प्रदेश के बहाराइच जिले की गिनती पिछड़े शहरों में की जाती है. वहां की रहने वाली सामान्य परिवार की देवयानी अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी, बैंगलुरु में ‘मास्टर इन डवलपमैंट’ में रिसर्च कर रही हैं.

देवयानी ने 5वीं जमात के बाद 12वीं जमात तक नवोदय स्कूल में पढ़ाई की है. वहां से उन का चयन दिल्ली यूनिवर्सिटी के दयाल सिंह कालेज में हो गया. वहां से राजनीति शास्त्र में बीए करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए वे अंबेडकर यूनिवर्सिटी चली गईं.

देवयानी ने आगे की पढ़ाई के पहले सोशल वर्क करने की दिशा में काम किया. ‘देहात’ संस्था के साथ श्रावस्ती जिले के भिनगा इलाके के सब से खराब हालात वाले 129 सरकारी स्कूलों में काम किया. वहां पर वनवासी लड़कियों को स्कूल तक लाने की दिशा में भी काम किया.

देवयानी ने अपने स्कूल के समय से डांस, कोरियोग्राफी और गायकी पर भी फोकस किया था. इस के साथ ही एनसीसी के साथ रायफल शूटिंग में भी कामयाबी हासिल की थी.

देवयानी भारत की उन 2 लड़कियों में से एक हैं जिन का चयन संयुक्त राष्ट्र संघ के ‘ग्लोबल एशिया अफ्रीका’ प्रोग्राम में हुआ. इस में पूरी दुनिया से केवल 20 लड़कियों को शामिल किया गया था.

देवयानी का मानना है कि रंग नहीं बल्कि आत्मविश्वास जिंदगी को कामयाब बनाता है. रंग से कोई सुंदर नहीं दिखता. समय के साथ लोगों को पता चल गया है कि सांवले रंग वाले लोग भी बहुत कामयाब होते हैं.

फैशन के क्षेत्र में जहां रंगरूप पर खास ध्यान दिया जाता?है, वहां पर भी सांवले रंग के लोगों ने अपना कमाल हमेशा दिखाया है. बिपाशा बसु हो या काजोल, सभी ने अपने ग्लैमर का लोहा मनवाया है. पढ़ाईलिखाई के क्षेत्र में छोटे शहरों की सांवली लड़कियों के आगे बढ़ने से वे दूसरों के लिए मिसाल बन रही हैं.

ऐसे निखर जाता है रंग

फिटनैस मौडल के रूप में अपने कैरियर को संवार रही आरती पाल का कहना है, ‘‘समय के हिसाब से जैसेजैसे आप कामयाबी की सीढि़यां चढ़ते जाते हैं, वैसेवैसे आप में निखार आता जाता है. जब आप कामयाब नहीं होते हैं तो आप का रंगरूप कितना ही अच्छा क्यों न हो, कोई आप से प्रभावित नहीं होता है. जब आप कामयाब हो जाते हैं तो कोई यह नहीं देखता कि आप का रंग कैसा है.

‘‘जब मैं ने मौडलिग करने का फैसला किया तो लोग कहते थे कि सांवले रंग की वजह से यह कामयाब नहीं होगी. मैं ने इन आलोचनाओं की चिंता नहीं की और खुद को आगे बढ़ाने का काम किया. ऐसे में मौडलिंग की कई प्रतियोगिताएं जीतीं. शो में हिस्सा लिया. फैशन शूट किए.

‘‘अब मैं अपनी ही कंपनी ‘एपी इवैंट’ के साथ काम कर रही हूं. खुद के साथसाथ दूसरी लड़कियों को भी फैशन की फील्ड में आगे बढ़ने का मौका दे रही हूं.’’

सांवले रंग के लोग हर क्षेत्र में कामयाब होते हैं. राजनीति में देखें तो मायावती, उमा भारती और ममता बनर्जी जैसे लोग बहुत कामयाब हुए हैं.

कामयाब शख्स में रंग को ले कर किसी तरह का कोई तनाव नहीं रहता है. समाज भी कामयाब लोगों के साथ चलना शुरू कर देता है. उस के रंगरूप को नहीं देखता है.

झारखंड की राजधानी रांची की रहने वाली लकी सुरीन बताती हैं, ‘‘मुझे मौडलिंग में रैंप शो करने बहुत पसंद थे. मेरी लंबाई बहुत अच्छी है. ऐसे में रैंप शो के लिए मुझे लोग पसंद करते थे.

‘‘मेरा रंग सांवला होने के चलते कई बार अनफिट कर दिया जाता था. लोगों के इस बरताव से दुखी हो कर कई बार मुझे लगा कि क्या मुझे मौडलिंग छोड़ देनी चाहिए? पर मैं ने हिम्मत से काम लिया और रैंप शो मौडलिंग में काम करती रही.

‘‘रांची में मौके कम थे, फिर मैं लखनऊ आ गई. यहां पर भी मुझे काम और तारीफ दोनों मिलनी शुरू हुई तो मेरा खुद पर यकीन लौट आया.

‘‘अब मैं अपनी इवैंट कंपनी ‘ब्लू बर्ड’ फैशन एजेंसी के जरीए कई शो करती हूं. मुझे कई तरह के अवार्ड मिल चुके हैं. अब मुझे नहीं लगता कि सांवला होने के चलते किसी को अपने मन का काम करने से समझौता करना चाहिए.’’

सोच बदलने की जरूरत

ऐस्थैटिक ऐंड लेजर कंसल्टैंट डाक्टर प्रभा सिंह कहती हैं, ‘‘सांवलापन कभी भी कामयाबी में बाधा नहीं बन सकता. जरूरत इस बात की होती है कि खुद पर भरोसा करें. यह बात जरूर है कि बचपन से ही बच्चे के मन में ऐसे भाव भर दिए जाते हैं कि रंग का असर उस के खुद पर यकीन को खत्म कर देता है.

‘‘हम देखते हैं कि बचपन में जो बच्चा गोरा होता है उस की लोग तारीफ ज्यादा करते हैं. ऐसे में सांवला बच्चा हीनभावना का शिकार हो जाता है. अब इस हीनभावना से निकलने के लिए वह कई तरह के उपाय करने लगता है.

‘‘ऐसे उपाय उस के 30 साल से 35 साल की उम्र तक और कभीकभी तो उस के बाद भी जारी रहते हैं. यह सोच गोरेपन को बढ़ाने का सब से बड़ा कारोबार हो गई है. बहुत सारी कोशिशों और जागरूकता के बाद भी सांवलेपन के शिकार लोग हीनभावना में रहते हैं.

‘‘इन की इस भावना को दूर करने के लिए हर लैवल पर कोशिश होनी चाहिए खासकर समाज को ऐसे लोगों का साथ देना चाहिए.’’

डाक्टर प्रभा सिंह आगे कहती हैं, ‘‘सुंदरता के लिए रंग नहीं आत्मविश्वास और फिटनैस की जरूरत होती है. आजकल के मौडल भी अब इस बात के समर्थक हैं. अब तो जिंदगी के तमाम मौकों की खूबसूरती को ले कर भी सामने लाने की कोशिशें हो रही हैं.

‘‘कई मौडलों ने शादी के बाद गर्भावस्था के समय पूरा काम किया. पहले इन बातों को छिपाने का रिवाज था. ऐसे में सांवलापन किसी को कामयाबी में रुकावट नहीं लगना चाहिए. इस दिशा

में काम होना चाहिए. स्कूल में भी ऐसे प्रोग्राम हों जो लड़कियों के मन में सांवलेपन की गलतफहमी को निकाल सकें, तभी लड़कियां और उन के परिवार इस सोच से बाहर आ सकेंगे.

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