वहशी प्रेमी से बचें

पूर्वी अफ्रीका का देश केन्या अपनी जंगल सफारी के लिए जाना जाता है. यहां के मशहूर केन्या पर्वत पर ही इस देश का नाम पड़ा है, पर हालिया कुछ घटनाओं ने इस देश को शर्मसार कर दिया है. दरअसल, यहां पर पिछले कुछ समय से लड़कियों और औरतों के प्रति जिस तरह से हिंसा के मामले बढ़े हैं, वे चिंता की बात है.

केन्या के ब्यूरो औफ नैशनल स्टैटिस्टिक्स में साल 2023 के जनवरी महीने में जारी एक रिपोर्ट में बताया गया था कि केन्या में लड़कियों और औरतों के खिलाफ हिंसा बहुत ज्यादा बढ़ी है. 15 साल की उम्र से ही वे शारीरिक हिंसा की शिकार होती हैं.

हाल में एक और दर्दनाक मामला इस काली लिस्ट में शामिल हो गया है. हैवानियत की शिकार कोई और नहीं, बल्कि पैरिस ओलिंपिक खेलों में हिस्सा लेने वाली एथलीट रेबेका चेपटेगई थीं, जिन्हें उन के बौयफ्रैंड ने आग लगा कर जला दिया था.

वैसे तो रेबेका चेपटेगई मूल रूप से युगांडा की थीं, पर फिलहाल वे केन्या में रहती थीं.

रेबेका चेपटेगई वैस्टर्न नजोए काउंटी इलाके में रहती थीं और वारदात के समय अपने घर में थीं. आसपास के लोगों ने बताया कि रविवार, 1 सितंबर, 2024 को उन का अपने बौयफ्रैंड डिकसन डिमा के बीच ?ागड़ा हो रहा था. जिस जमीन पर वह घर बना है, उसी को ले कर बहस

हो रही थी. दोनों का ?ागड़ा इतना गंभीर था कि उन की आवाजें घर से बाहर आ रही थीं.

इसी बीच गुस्साए प्रेमी ने रेबेका पर पैट्रोल डाल कर आग लगा दी, जिस से वे बुरी तरह झूलस गई. इस वारदात के 3 दिन बाद इलाज के दौरान रेबेका की मौत हो गई.

अब जरा भारत के आशिकों का वहशीपन भी देख लें. मामला उत्तर प्रदेश के उन्नाव का है. बेहटा मुजावर थाना क्षेत्र के एक गांव की रहने वाली 20 साल की एक लड़की की शादी 19 मार्च, 2024 को होनी थी. पर उस लड़की का प्रेम संबंध अपने ही गांव के रहने वाले एक लड़के से चल रहा था.

पुलिस के मुताबिक, प्रेमिका की शादी तय होने से प्रेमी बेहद नाराज था. उस ने अपनी प्रेमिका को मिलने के

लिए खेत पर बुलाया. प्रेमिका खेत पर पहुंची, जहां उन दोनों में झगड़ा हो गया. गुस्साए प्रेमी ने अपनी प्रेमिका का हाथ (पंजा) धारदार खुरपी से काट कर अलग कर दिया.

इसी तरह उत्तर प्रदेश के अयोध्या के गोसाईंगंज इलाके के रेलवे स्टेशन के पास एक खंडहर में प्रेमी ने अपनी प्रेमिका की हत्या कर उस की लाश पर कैमिकल डाल कर जला दिया था.

यह मामला अगस्त, 2024 का है. पुलिस ने प्रेमी को पकड़ लिया था. आरोपी प्रेमी ने पूछताछ में बताया कि वह और उस की प्रेमिका दोनों एकसाथ मुंबई गए थे. बाद में लड़की किसी और लड़के से बात करने लगी थी, जो आरोपी को पसंद नहीं आ रहा था. इसी वजह से उन दोनों का झगड़ा होता था.

आरोपी ने पुलिस को आगे बताया कि उस ने अपनी प्रेमिका को पहले पत्थर से सिर कुचल कर मार डाला, फिर उस की लाश को कैमिकल डाल कर जलाने की कोशिश की, ताकि लाश जल्दी गल जाए और हत्या का सुबूत मिट जाए.

साल 2022 के मई महीने में हुआ श्रद्धा हत्याकांड ऐसा ही एक और मामला था, जिस ने पूरे देश को झकझोर दिया था. शादी का दबाव बनाने के लिए और प्रेमिका पर शक होने के चलते आफताब पूनावाला ने दिल्ली में श्रद्धा वालकर की हत्या कर दी थी. हत्या के बाद उस ने श्रद्धा की लाश के 35 टुकड़े किए थे और उन्हें फ्रिज में रख दिया था. फिर इन टुकड़ों को वह धीरेधीरे अगले कुछ महीनों में महरौली के जंगलों में फेंकता रहा था.

दिल्ली में ही साहिल नाम के एक प्रेमी (बाद में खुलासा हुआ कि पति था) ने अपनी प्रेमिका निक्की की कार के अंदर हत्या कर दी थी और फिर उस  की लाश अपने रैस्टोरैंट के फ्रिज में रख दी थी.

दरअसल, साहिल ने किसी दूसरी लड़की के साथ सगाई कर ली थी और  फिर वह निक्की से मिलने उस के फ्लैट पर गया था. इस दौरान उस की शादी को ले कर कहासुनी हुई, जिस के बाद उसे गुस्सा आ गया और उस ने मोबाइल के केबल से पीडि़ता का गला घोंट दिया था.

पूरी दुनिया में ऐसे मामलों की भरमार है, जहां गुस्साए किसी प्रेमी ने अपनी प्रेमिका पर जानलेवा हमला किया और अपने प्यार को ही शर्मसार कर दिया.

भारत में तो हमेशा से लड़की को दोयम दर्जे का समझ जाता है. वे घर के बाहर ही क्या, भीतर भी खुद को महफूज नहीं मानती हैं और जब उन का प्रेमी ही वहशीपन पर उतर आए तो फिर वे किस से गुहार लगाएं, क्योंकि प्रेमी के साथ

तो वे अच्छी जिंदगी बिताने के सपने देखती हैं.

पर गुस्सैल प्रेमी का क्या किया जाए और उसे कैसे कंट्रोल में रखा जाए, यह बहुत बड़ा सवाल बन जाता है, जबकि गुस्से का जवाब गुस्सा तो बिलकुल नहीं होता है और यहीं से हर मुसीबत की शुरुआत होती है.

अमूमन तो यही कहा जाता है कि अगर प्यार में तकरार न हो तो फिर कैसा प्यार, पर यही तकरार जब गुस्से में बदल जाता है, तो प्रेमी का असली रूप सामने आ जाता है और फिर केन्या हो या भारत, वह वही वहशीपन दिखाता है, जो किसी मासूम लड़की की जान आफत में डाल देता है.

फिर भी कुछ बातें ऐसी होती हैं, जिन पर अमल करने से प्रेमीप्रेमिका के बीच की तल्खी को कम किया जा सकता है, जैसे :

* जब भी लड़की को यह लगे कि उस का प्रेमी अब गुस्से में फट पड़ने वाला है, तो वह सब्र से काम ले. उस की बात का तुरंत जवाब न दे और कड़वे शब्द तो बिलकुल न कहें.

* अगर आप का प्रेमी सच में आप से प्यार करता है, लेकिन गुस्सैल भी है, तो उस की दुखती रग पर हाथ न रखें और माहौल को हलका बनाने के लिए बात को नया रुख दे दें.

* अगर आप को शक है कि प्रेमी किसी तरह की बेवफाई कर रहा है, तो बिना किसी ठोस वजह के नतीजे पर न पहुंचें. अपनी बात को उस के सामने रखें और उस के नजरिए को भी समझे.

* अगर आप को यह डर लगता है कि प्रेमी गुस्से में कुछ भी कर सकता है, तो अकेले में मिलने से बचें और धीरेधीरे उस से दूरी बना लें.

* अगर बात बहुत ज्यादा बिगड़ रही है, तो किसी अपने से मन की बात कहें. ज्यादा ही गंभीर मसला है, तो पुलिस की मदद लेने से भी न झिझकें.

बलि का अपराध और जेल, हैवानियत का गंदा खेल

हमारे देश में सैकड़ों सालों से अंधविश्वास चला आ रहा है. दिमाग में कहीं न कहीं यह झूठ घर करा दिया गया है कि अगर अगर गड़ा हुआ धन हासिल करना है, तो किसी मासूम की बलि देनी होगी, जबकि हकीकत यह है कि यह एक ऐसा झूठा है, जो न जाने कितने किताबों में लिखा गया है और अब सोशल मीडिया में भी फैलता चला जा रहा है. ऐसे में कमअक्ल लोग किसी की जान ले कर रातोंरात अमीर बनना चाहते हैं. मगर पुलिस की पकड़ में आ कर जेल की चक्की पीसते हैं और ऐसा अपराध कर बैठते हैं, जिस की सजा तो मिलनी ही है.

सचाई यह है कि आज विज्ञान का युग है. अंधविश्वास की छाई धुंध को विज्ञान के सहारे साफ किया जा सकता है, मगर फिर अंधविश्वास के चलते एक मासूम बच्चे की जान ले ली गई.

देश के सब से बड़े धार्मिक प्रदेश कहलाने वाले उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में एक तथाकथित तांत्रिक ने 2 नौजवानों के साथ मिल कर एक 8 साल के मासूम बच्चे की गला रेत कर हत्या कर दी गई थी और तंत्रमंत्र का कर्मकांड किया गया था. उस बच्चे की लाश को गड्डा खोद कर छिपा दिया गया था.

ऐसे लोगों को यह लगता है कि अंधविश्वास के चलते किसी की जान ले कर के वे बच जाएंगे और कोई उन्हें पकड़ नहीं सकता, मगर ऐसे लोग पकड़ ही लिए जाते हैं. इस मामले में भी ऐसा ही हुआ.

अंधविश्वास के मारे इन बेवकूफों को लगता है कि ऐसा करने से जंगल में कहीं गड़ा ‘खजाना’ मिल जाएगा, मगर आज भी ऐसे अनपढ़ लोग हैं, जिन्हें लगता है कि जादूटोना, तंत्रमंत्र या कर्मकांड के सहारे गड़ा धन मिल सकता है.

समाज विज्ञानी डाक्टर संजय गुप्ता के मुताबिक, आज तकनीक दूरदराज के इलाकों तक पहुंच चुकी है और इस के जरीए ज्यादातर लोगों तक कई भ्रामक जानकारियां पहुंच पाती हैं. मगर जिस विज्ञान और तकनीक के सहारे अज्ञानता पर पड़े परदे को हटाने में मदद मिल सकती है, उसी के सहारे कुछ लोग अंधविश्वास और लालच में बलि प्रथा जैसे भयावाह कांड कर जाते हैं जो कमअक्ल और पढ़ाईलिखाई की कमी का नतीजा है.

डाक्टर जीआर पंजवानी के मुताबिक, कोई भी इनसान इंटरनैट पर अपनी दिलचस्पी से जो सामग्री देखतापढ़ता है, उसे उसी से संबंधित चीजें दिखाई देने लगती हैं फिर पढ़ाईलिखाई की कमी और अंधश्रद्धा के चलते, जिस का मूल है लालच के चलते अंधविश्वास के जाल में लोग उलझ जाते हैं और अपराध कर बैठते हैं.

सामाजिक कार्यकर्ता सनद दास दीवान के मुताबिक, अपराध होने पर कानूनी कार्यवाही होगी, मगर इस से पहले हमारा समाज और कानून सोया रहता है, जबकि आदिवासी अंचल में इस तरह की घटनाएं होती रहती हैं, लिहाजा इस के लिए सरकार को सजक हो कर जागरूकता अभियान चलाना चाहिए.

हाईकोर्ट के एडवोकेट बीके शुक्ला ने बताया कि एक मामला उन की निगाह में ऐसा आया था, जिस में एक मासूम की बलि दी गई थी. कोर्ट ने अपराधियों को सजा दी थी.

दरअसल, इस की मूल वजह पैसा हासिल करना होता है. सच तो यह है कि लालच में आ कर पढ़ाईलिखाई की कमी के चलते यह अपराथ हो जाता है. लोगों को यह समझना चाहिए कि किसी भी अपराध की सजा से वे किसी भी हालत में बच नहीं सकते और सब से बड़ी बात यह है कि ऐसे अपराध करने वालों को समाज को भी बताना चाहिए कि उन के हाथों से ऐसा कांड हो गया और उन्हें कुछ भी नहीं मिला, उन के हाथ खाली के खाली रह गए.

तलाकशुदा पत्नी से दोबारा शादी

शायद ही कभी किसी ने देखासुना हो कि तलाक के 4 साल और अलगाव व खटपट के 12 वर्षों बाद पतिपत्नी ने दोबारा शादी कर ली. मामला कुछ कुछ विचित्र किंतु सत्य है जिस के बारे में जान कर महसूस होने लगा है कि तलाक के बाद पति पत्नियों की हालत या मानसिकता पर कोई एजेंसी अगर सर्वे व काउंसलिंग करे तो पति पत्नी का दोबारा मिल कर उजड़ी गृहस्थी को संवार लेना एक संभव काम है.

तलाक व्यक्तिगत, कानूनी, सामाजिक, पारिवारिक हर लिहाज से एक तकलीफदेह प्रक्रिया है जिस की मानसिक यंत्रणा के बारे में शायद भुक्तभोगी भी ठीक से न बता पाएं. इस के बाद भी तलाक के मामले दिनोंदिन बढ़ रहे हैं. इस से यही उजागर होता है कि अकसर पति पत्नी या तो गलतफहमी का शिकार रहते हैं या फिर मारे गुस्से के अपना भलाबुरा नहीं सोच पाते. तलाक में नजदीकी लोगों की भूमिका कहीं ज्यादा अहम हो जाती है जो बजाय बात संभालने के, बिगाड़ते ज्यादा हैं.

यह ठीक है कि कुछ मामलों में तलाक अनिवार्य सा हो जाता है पर अधिकांश मामलों में यह जिद व अहं का नतीजा होता है जो खासतौर से पत्नी के हक में अच्छा नहीं होता. समाज के लिहाज से यह दौर बदलाव का है जिस में महिलाएं पहले सी दोयम दरजे की नहीं रह गई हैं. वे हर स्तर पर समर्थ, सक्षम और जागरूक हुई हैं लेकिन तलाक के बाद ये सभी बातें हवा हो जाती हैं जब उन्हें अपने अकेलेपन का एहसास होता है और वे एक स्थायी असुरक्षा में जीने को मजबूर हो जाती हैं.

मुमकिन है कभी कभी उन्हें लगता हो कि तलाक बेहद जरूरी भी नहीं था. इस से बच कर तलाक के बाद की दुश्वारियों से भी बचा जा सकता था लेकिन बात ‘अब पछताए होत का जब चिडि़या चुग गई खेत’ सरीखी हो जाती है. तलाक का कागज उन्हें नए माहौल और हालत में जीना सिखा देता है, इसलिए चाह कर भी वापस नहीं मुड़ा जा सकता क्योंकि तलाक के बाद पति दूसरी शादी कर नई पत्नी के साथ शान से गुजर कर रहा होता है. वहीं, अधिकांश पत्नियां, जो भारतीय संस्कारों से ग्रस्त ही कही जाएंगी, किसी दूसरे को सहज तरीके से पति मानने या स्वीकारने के लिए खुद को तैयार या सहमत नहीं कर पातीं और जब तक खुद को तैयार कर पाती हैं तब तक उम्र का सुनहरा हिस्सा उन के हाथों से फिसल चुका होता है.

शशिकांत संग वंदना

मध्य प्रदेश के भिंड जिले के इस दिलचस्प मामले को बतौर मिसाल लिया जाए तो तलाकशुदाओं के लिहाज से यह एक अच्छी पहल सिद्ध हो सकती है. वंदना और शशिकांत की शादी साल 2001 में हुई थी. ये दोनों साधारण खातेपीते कायस्थ परिवार के हैं और दोनों के ही पिता पुलिस विभाग में नौकरी करते हैं. शादी के बाद वंदना ससुराल आई तो उसे नया कुछ खास नहीं लगा क्योंकि उस का मायका भी भिंड में ही है. संयुक्त परिवार से संयुक्त परिवार में आने से उसे तालमेल बैठाने में कोई दिक्कत पेश नहीं आई.

शशिकांत प्राइवेट नौकरी करता था. उस की कोई खास आमदनी नहीं थी. संयुक्त परिवारों में खर्चे का पता नहीं चलता, न ही कोई कमी महसूस होती. देखते ही देखते एक साल गुजर गया और वंदना ने एक बच्ची को जन्म दिया जिस का नाम घर वालों ने प्रिया रखा.

शायद आपसी समझ का अभाव था या फिर संयुक्त परिवार की बंदिशें थीं कि दोनों एकदूसरे से असंतुष्ट रहने लगे और जल्द ही आरोपों प्रत्यारोपों का सिलसिला शुरू हो गया जिन में कोई खास दम नहीं था. यह बात वक्त रहते दोनों समझ नहीं पाए, लिहाजा रोज रोज की खटपट शुरू हो गई. पतिपत्नी के बीच का तनाव और विवाद उजागर हुए तो दोनों के घर वालों ने दखल देते समझाया पर बजाय समझने के दोनों भड़कने लगे और आखिरकार अपना फैसला भी सुना दिया कि अब हम साथ नहीं रह सकते. लिहाजा, हमारा तलाक करा दिया जाए.

दोनों ही परिवारों की भिंड में इज्जत है, इसलिए घर वाले कतराए, लेकिन तमाम समझाइशें बेकार साबित हो चुकी थीं. दोनों कुछ समझने को तैयार नहीं थे. एक दिन वंदना प्रिया को ले कर अपने मायके चली गई तो शशिकांत ने भी आपा खो दिया और तलाक का मुकदमा दायर कर दिया.

8 साल मुकदमा चला. तारीखें पड़ीं, पेशियां हुईं और आखिरकार 2012 में तलाक यानी कानूनन विवाह विच्छेद इस शर्त पर हुआ कि पत्नी व बेटी को गुजारे के एवज शशिकांत 2 हजार रुपए महीने देगा जो कि कुछ साल उस ने दिए भी.

2014 में शशिकांत ने अदालत में एक अर्जी दाखिल कर अपनी आर्थिक स्थिति का हवाला देते भरणपोषण राशि देने में असमर्थता जताई तो अदालत ने भरणपोषण का आदेश रद्द कर दिया. अब तक घर और समाज वालों की दिलचस्पी इन दोनों से खत्म हो गई थी. वंदना मायके में थी लेकिन सहज तरीके से नहीं रह पा रही थी. उधर, शशिकांत को भी लग रहा था कि जो कुछ भी हुआ वह ठीक नहीं हुआ.

शशिकांत और वंदना दोनों कशमकश की जिंदगी जी रहे थे. बेटी प्रिया का भी कोई भविष्य नहीं था और सब से ज्यादा तकलीफदेह बात दोनों का एकदूसरे को न भूल पाना थी. झूठा अहं, गुस्सा और ठसक दम तोड़ रहे थे. दोनों को ही बराबर से समझ आ रहा था कि वे जाने अनजाने  जिंदगी की सब से बड़ी गलती या बेवकूफी कर चुके हैं, पर अब कुछ हो नहीं सकता था, इसलिए कसमसा कर रह जाते थे.

जब सब्र टूटा

बीती 9 अक्तूबर को वंदना बेटी प्रिया को ले कर भिंड के एएसपी अमृत मीणा के दफ्तर पहुंची और बगैर किसी हिचक के उन से कहा कि अब उस के सामने खुदकुशी करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है. अमृत मीणा ने सब्र से उस की पूरी बात सुनी और तुरंत शशिकांत को तलब किया. थाने में ही उन्होंने दोनों को साथ बैठा कर चर्चा की. 14 साल की होने जा रही प्रिया का हवाला दिया और जमाने भर की ऊंच नीच समझाई तो वंदना और शशिकांत हद से ज्यादा जज्बाती हो उठे और फिर से साथ रहने को तैयार हो गए.

अमृत मीणा भी अपनी पहल और समझाइश का वाजिब असर देखते उत्साहित थे. लिहाजा, उन्होंने इन दोनों की हिचक दूर करते तुरंत दफ्तर में ही उन की दोबारा शादी का इंतजाम कर डाला. दोनों 14 साल का गुबार और भड़ास निकाल चुके थे, इसलिए दोनों शादी के लिए तैयार हो गए ताकि तलाक और अलगाव का एहसास खत्म हो जाए.

एएसपी के रीडर रविशंकर मिश्रा ने पंडित की भूमिका निभाई और मंत्र पढ़ते हुए दोनों की शादी करा दी. 14 साल बाद इन पतिपत्नी ने दोबारा एकदूसरे को जयमाला पहनाई और शशिकांत वंदना को घर ले कर आ गया. बाकायदा विदाई भी हुई, अमृत मीणा अपनी गाड़ी से दोनों को घर छोड़ कर आए. बहुत कम मौकों और मामलों पर पुलिस वालों का मानवीय पहलू देखने में आता है, जो इस मामले में दिखा. दोबारा विवाह का यह अनूठा मामला था. इस प्रतिनिधि ने बीती 25 नवंबर को वंदना और शशिकांत से बात की. दोनों खुश थे. वे बीती बातें नहीं करना चाहते थे जिन में उन्होंने बेहद तनाव झेला था. वंदना की चहक और शशिकांत की परिपक्वता बता रही थी कि वे इस नई जिंदगी से खुश हैं और चाहते हैं कि दूसरे तलाकशुदा पतिपत्नी भी गुस्सा और पूर्वाग्रह छोड़ कर शादी करें. अगर वे ऐसा करते हैं तो पहले जो खो चुके हैं उसे वे मय ब्याज के हासिल कर सकते हैं.

जल्दबाजी, गुस्सा, अहं, जिद और अपनों के ही भड़काने पर पतिपत्नी तलाक तो ले लेते हैं पर इन में से अधिकांश बाद में पछताते हैं. वजह, दूसरी शादी आसान नहीं होती और अगर हो भी जाए तो तलाक का धब्बा सहज तरीके से जीने नहीं देता और इस पर भी, दूसरे जीवनसाथी के मनमाफिक होने की गारंटी नहीं रहती.

तो फिर तलाक के बाद क्यों न पहले जीवनसाथी की तरफ सुलह का हाथ बढ़ाया जाए, इस अहम सवाल पर वंदना और शशिकांत के मामले से सोचा जाए तो बात बन सकती है.

तलाक के बाद अधिकांश पतिपत्नी अवसाद में ही जीते नजर आते हैं खासतौर से उस सूरत में जब तलाक की कोई ठोस वजह न हो. ज्यादातर तलाकों की वजह बेहद हलकी होती है. ऐसा आएदिन के मामलों से उजागर भी होता रहता है. अगर शादी के बाद एक साल या उस से भी ज्यादा का वक्त पतिपत्नी ने एकसाथ गुजारा है तो एकदूसरे को भुला देना उन के लिए आसान नहीं होता.

तलाक के पहले परिवार परामर्श केंद्र, अदालत और काउंसलर सोचने के लिए वक्त देते हैं लेकिन उस वक्त पतिपत्नी दोनों के दिलोदिमाग में इतना गुस्सा व नफरत का गुबार भरा होता है कि वे सोचते कम, झल्लाते ज्यादा हैं.

तलाक के बाद की दुश्वारियां, अकेलापन, अपनों की अनदेखी वगैरा उन्हें समझ आने लगती हैं. पर चूंकि तलाकशुदा पतिपत्नी की दोबारा शादी की पहल किसी भी स्तर पर नहीं होती, इसलिए सुलह की गुंजाइशें होते हुए भी बात नहीं बन पाती. ऐसे में जरूरत इस बात की है कि भिंड के इस प्रयोग को दोहराया जाए क्योंकि संभव है पति और पत्नी अपनी गलतियां महसूस करते हुए दोबारा साथ रहना चाहते हों.

राजस्थान : लड़कियों से जबरदस्ती, शर्मसार बार बार

24 दिसंबर, 2016 की रात. राजस्थान के चूरू जिले के एक गांव में एक नाबालिग लड़की को अगवा कर गैंगरेप किया गया. इतने पर भी जी नहीं भरा, तो उस पर मोटरसाइकिल चढ़ा दी गई. इस से उस की रीढ़ की हड्डी टूट गई. उस लड़की की एक आंख फोड़ दी गई. बेंगलुरु, कनार्टक के एमजी रोड पर नए साल की पूर्व संध्या के मौके पर कुछ मर्दों ने लड़कियों के साथ हाथापाई की, जबकि वहां पुलिस मौजूद थी.

जयपुर में वहशीपन

राजस्थान की राजधानी जयपुर में भी वहशीपन की सारी हदें पार कर देने वाले 2 ऐसे मामले सामने आए, जो शर्मसार कर देने वाले हैं. पहले मामले में अलवर से जयपुर आई एक लड़की से 3 लड़कों के साथसाथ एक आटोरिकशा ड्राइवर ने रेप किया और उस के बाद बिना कपड़ों के उसे एमएनआईटी के बाहर फेंक कर फरार हो गए. लड़की ने खुद ही कंट्रोल रूम में फोन पर पुलिस को बताया.

डीसीपी ईस्ट कुंवर राष्ट्रदीप ने बताया कि उत्तर प्रदेश की रहने वाली पीडि़त लड़की जगतपुरा में अपने भाई के साथ रह कर सरकारी नौकरी के इम्तिहान की तैयारी कर रही थी. सुबह वह रेलवे स्टेशन पर उतरी और जगतपुरा में अपने भाई के कमरे तक जाने के लिए आटोरिकशे में बैठ गई. इस दौरान आटोरिकशे में 3 और लड़के भी थे.

लड़की को अकेला पा कर आरोपी लड़कों ने आटोरिकशा को सुनसान जगह पर रुकवाया और लड़की के मुंह पर कपड़ा बांध कर उस के साथ बारीबारी से रेप किया. रेप के बाद तीनों लड़के वहां से फरार हो गए, उस के बाद आटोरिकशा ड्राइवर ने भी उस के साथ रेप किया.

इस वारदात के बाद पुलिस ने शहरभर में नाकाबंदी कराई और लड़की को ले कर सिंधी कैंप बसस्टैंड और रेलवे स्टेशन पहुंची, जहां पीडि़ता से संदिग्ध आटोरिकशा ड्राइवर की शिनाख्त कराई गई. पीड़िता ने पुलिस को बताया कि वे तीनों लड़के हिंदी में बातें कर रहे थे और उस से पूछा कि कहां की रहने वाली हो और यहां क्या करती हो. उस पीडि़ता ने बताया वे तीनों आटोरिकशे में पहले से ही बैठे हुए थे. उन्हें कहां जाना था, इस बारे में वह नहीं जानती.

दूसरा मामला जयपुर के ही सांगानेर थाना इलाके का है. यहां 57 साल के एक टीचर ने अपनी ट्यूशन छात्रा, जिस की उम्र 16 साल बताई जा रही है, के साथ रेप कर दिया. पुलिस ने इस मामले में आरोपी टीचर को गिरफ्तार किया है. सांगानेर थाना पुलिस ने बताया कि नागरिक नगर, सांगानेर की पीडि़त लड़की के परिवार वालों ने मामला दर्ज कराया कि विरेंद्र सारस्वत नाम के टीचर ने यह करतूत की थी.

दरिंदगी की हदें पार

राजस्थान के चूरू जिले में भी दरिंदगी का एक मामला सामने आया.    2 लड़कों ने एक लड़की का रेप कर उस की रीढ़ की हड्डी व पसलियां तोड़ दीं. उन दरिंदों ने पीडि़ता की एक आंख भी फोड़ दी. इस के बाद वह लड़की जयपुर के एसएमएस अस्पताल में कई दिनों तक जिंदगी और मौत से जूझती रही.

यह वारदात बीदासर थाना इलाके के गांव सांरगसर की है. बीदासर थानाधिकारी प्रहलाद राय के मुताबिक, पीडि़ता के पिता ने रिपोर्ट दी है कि 24 दिसंबर, 2016 को 15 साला पीडि़ता अपने घर पर पढ़ाई कर रही थी. रात 11 बजे गांव भोमपुरा का एक बाशिंदा राकेश भार्गव अपने रिश्तेदार के एक लड़के के साथ मोटरसाइकिल पर आया और वे दोनों पीडि़ता को जबरदस्ती मोटरसाइकिल पर बिठा कर ले गए. आरोपियों ने गांव से एक किलोमीटर दूर चरला रोड पर ले जा कर उस के साथ ज्यादती की.

उस के बाद आरोपियों ने उसे किसी को बताने पर जान से मारने की धमकी दी और मोटरसाइकिल चढ़ा कर उस की रीढ़ की हड्डी व पसलियां तोड़ दीं. उस की एक आंख भी फोड़ दी. शरीर के कई हिस्सों पर गहरे घाव कर के उसे लहूलुहान हालत में मौके पर छोड़ कर भाग गए.

25 दिसंबर, 2016 की दोपहर 3 बजे पीडि़ता की मां के पास राकेश के मातापिता आए और उन्होंने लड़की के घायल होने की जानकारी दी. तब घर वालों को पता चला.

परिवार वालों ने पीडि़ता को सुजानगढ़ के अस्पताल में भरती कराया, जहां से उसे गंभीर हालत में पहले बीकानेर और फिर जयपुर भेज दिया गया. पीडि़ता का पिता गुजरात में मजदूरी करता है. घटना का पता चलने पर वह वहां आया और मामला दर्ज कराया.

राजस्थान पुलिस के मुताबिक, साल 2008 में रेप के 568 मामले दर्ज हुए थे. पिछले साल 2016 में यह तादाद बढ़ कर 3,769 हो गई. ये आंकड़े भयावह इसलिए भी हैं, क्योंकि 75 फीसदी आरोपी सुबूतों की कमी में बाइज्जत बरी हो जाते हैं. वैसे, साल 2015 में देशभर में दुष्कर्म के कुल 37,413 मामले हुए. इन में सब से ऊपर मध्य प्रदेश (5,076), राजस्थान (3769), उत्तर प्रदेश (3,467), महाराष्ट्र (3,438) जैसे राज्य ही थे. महानगरों की बात हो, तो दिल्ली (1,813), मुंबई (607), चेन्नई (65), बेंगलुरु (104) और कोलकाता (36) सब से आगे थे.

जयपुर की एक लीगल फर्म के मुताबिक, लापरवाही से की गई जांच, एफआईआर में देरी, आरोपियों के वकील का पीडि़ता के प्रति आक्रामक रुख और अदालतों में संवेदनशीलता की कमी इस की अहम वजह रही हैं. सजा की दर भी इसलिए कम है, क्योंकि ज्यादातर पीडि़ता चुपचाप ज्यादती सह जाती हैं. अगर पीडि़ता समाज के तानों की परवाह न करे, तो उसे पुलिस और कानून से इंसाफ मिलने की उम्मीद कम रहती है. साल 2015 में हुई एक स्टडी के मुताबिक, भारत में पति द्वारा जबरन सैक्स के सिर्फ 0.6 फीसदी यानी 167 में से महज एक केस ही दर्ज होता है.

दिखाया जज्बा

बेंगलुरु में 2 शोहदे एक लड़की से बेशर्मी के साथ छेड़छाड़ करते रहे और आसपास के लोग तमाशबीन और चुप ही रहे, लेकिन राजस्थान के चूरू जिले के राजगढ़ कसबे में जो घटा, वह सजगता की एक मिसाल बन गया है. यह किस्सा महशूर ओलिंपियन एथलीट कृष्णा पूनिया की बहादुरी की भी एक नजीर है.

कृष्णा पूनिया ने बताया कि रविवार की दोपहर दिन के डेढ़ बजे जब वे  सादुलपुर कसबे की कृष्णा बहल रोड से गुजर रही थीं, तो पिलानी रेलवे फाटक बंद था. वहां 3 बदमाश 2 किशोरियों पर फब्तियां कस रहे थे और छेड़खानी कर रहे थे. छेड़छाड़ करते हुए उन बदमाशों ने लड़कियों को जमीन पर गिरा दिया और मोटरसाइकिल से भागने लगे. इस घटना को बहुत से लोग देख रहे थे, लेकिन कोई भी अपनी जगह से नहीं हिला. सभी तमाशबीन खडे़ थे.

लड़कियां छेड़छाड़ से परेशान थीं और रो रही थीं. कृष्णा पूनिया अचानक कार से उतरीं और उन तीनों बदमाश लड़कों के पीछे दौड़ पड़ीं. उन्होंने 50 मीटर दौड़ने के बाद एक लड़के को धर दबोचा और पुलिस को फोन किया.

लड़कियां कह रही थीं कि अगर उन के घर वालों को इस घटना का पता लगा, तो वे आइंदा उन्हें घर से बाहर नहीं निकलने देंगे. लेकिन कृष्णा पूनिया ने किशोरियों को हौसला दिया और उन्हें उन के घर पर छोड़ कर आईं. वे पुलिस स्टेशन भी गईं और पुलिस अफसरों को नसीहत दी कि आखिर थाने के ठीक पास ही बदमाश इस तरह लड़कियों से कैसे छेड़छाड़ कर रहे हैं.

बीजिंग और लंदन ओलिंपिक में भारत की नुमाइंदगी कर चुकी कृष्णा पूनिया हरियाणा से हैं और चूरू जिले में उन की ससुराल है. इन दिनों वे राजनीति में हैं, लेकिन उन में एक बहादुर खिलाड़ी का जज्बा आज भी बरकरार है.

बेंगलुरु और राजगढ़ की ये दोनों घटनाएं एक ही समय में घटित हुई हैं, लेकिन एक में भीड़ के बीच खड़ी एक हिम्मती खिलाड़ी कृष्णा पूनिया ने पूरे हालात को ही बदल दिया और दूसरी में एक आधुनिक कसबे की जनता का वह तबका शर्मसार है, जो घटना के समय चुप्पी साधे रहा.

हद तो यह है कि बेंगलुरु की इस घटना के बाद कर्नाटक के गृह मंत्री डाक्टर जी. परमेश्वरा ने यह तक कह दिया कि नए साल और दूसरे ऐसे मौकों पर ऐसी घटनाएं होती रहती हैं, लेकिन सोशल मीडिया पर सवाल उठ रहा है कि राजस्थान का भी एक पक्ष है, जहां गृह मंत्री गुलाबचंद कटारिया ने अभी तक कृष्णा पूनिया की तारीफ नहीं की है, क्योंकि वे कांग्रेस से जुड़ी हैं.

सवाल यह उठता है कि क्या यह देश औरतों व लड़कियों के लिए महफूज नहीं है  क्या वे हमेशा यह डर साथ ले कर घर से बाहर निकलें कि कोई न कोई उन के साथ कुछ बुरा सोच कर तैयार बैठा है और वे हमेशा डरती रहें

आखिर हमारी सरकार, पुलिस और समाज का पूरा तबका अपनी सोच कब बदलेगा  ऐसे में यही बेहतर है कि हर लड़की कृष्णा पूनिया की तरह बन जाए और छेड़छाड़ करने वालों को गरदन से दबोच कर पुलिस के हवाले कर दे.

धर्म की बेड़ियों में फंसी औरत

सभी धर्मों, धार्मिक ग्रन्थों और वेदों में, स्त्री के रूप और व्यवहार की जो चर्चा की गई है वह औरत की व्यथा का बयान ही है. कोई भी धर्म महिलाओं के प्रति संवेदनशील नहीं रहा है, तो क्यों कर हम इन धार्मिक पाखंडों का लबादा ओढ़े रखें. अब हम उन धार्मिक नारियों (सीता, द्रौपदी, सावित्री, मेनका आदि) को अपना रोल मौडल मानने से भी इनकार करते हैं जो आजीवन मूक और बधिर बनी रहीं क्योंकि उन्होंने अशिक्षा के कारण पंडों की नजर से देखा, पर आज की महिलाएं शिक्षित हैं, तो अपना भलाबुरा धर्म और इन पंडों की नजरों से क्यों देखें. अपना भलाबुरा पहचानने की हम में अब समझ भी है और परखने की हिम्मत और हौसला भी है.

‘धर्म की बेड़ियां खोल रही है औरत’ पुस्तक में अस्मिता के इन्हीं उद्देश्यों के अनुसार ही धर्म में स्त्री की छवि को दर्शाते हुए उसे धार्मिक आडंबरों से बाहर लाने की कोशिश शब्दों द्वारा की गई है. हमेशा औरत को धर्म का अनुगमन करने पर क्यों विवश किया जाता है. वह आज इस धर्म का पल्ला छोड़ना चाहती है तो ये पंडे, पुजारी, मौलवी क्यों उसे उसी ओर धकेलते हैं. समाज में स्त्री की इस दुर्दशा का कारण धर्म ही है.

इस पुस्तक में पौराणिक और साहित्यिक कथाओं के स्त्रियोचित व्यवहार और विशेष रूप से स्त्रीप्रधान चरित्रों को उजागर करने की संकल्पना की है, जिस से नारी जीवन में प्रेरणा और एक नई सोच की नियति पैदा होती है.

आधुनिक नारी की परिभाषा देते हुए नीलम आधुनिक नारी के विचारों को इस तरह बयां करती हैं : ‘रामायण व महाभारत की स्तुति सैकड़ों वर्षों से इस समाज में इसलिए हो रही है कि स्त्रियां द्रौपदी, गांधारी बनी आंसू बहाती रहें, इन पुरुषों की सत्ता ऐसे ही निर्बाध बनी रहे.’ फिर लड़कियों के स्वर को ऊंचा करती हैं, ‘हमें अपने ये रोल मौडल स्वीकार्य नहीं हैं.’

धर्मों की बात करते हुए हिंदू धर्म में सब से पहले वर्णन सीता का आता है. इस पर डा. उमा देशपांडे सीता को जहां अमर्यादित पुरुष राम की पत्नी बताती हैं वहीं उर्मिला को मौन व खोखली सामाजिक मान्यता का दर्जा डा. नलिनी पुरोहित अपनी कविता ‘उर्मिला का टूटता मौन’ में देती हैं.

इसी तरह हिंदू धर्म की अन्य नारियों जैसे द्रौपदी, सावित्री, सती, तारामती, कुंती, गांधारी, मेनका आदि के उदाहरणों से भी नारी के चरित्र का तार्किक चित्रण उकेरा गया है. इस बात की स्पष्टता इन शब्दों में झलकती है :

‘‘क्यों रहूं घेरे में बंद खींची गई लक्ष्मण रेखा के मध्य मैं भी हूं मजबूत इतनी कि खींच सकती हूं रेखा किसी को रखने के लिए.’’

नीलम कुलश्रेष्ठ (संपादक) अपनी कथा ‘सति इतिकथा’ में सती को चरितार्थ करती हैं कि क्या सती अपने लंबे सुहाग के लिए ही सबकुछ नहीं कर रही थी, तो उस में इस का ही भला निहित था? लेकिन यह भी गलत नहीं है कि धर्मगुरुओं ने ही पति को श्रेष्ठ मानने के लिए एक स्त्री को आमादा किया है और यही धर्मगुरु एक स्त्री के साए से भी घृणा करते हैं. यह स्पष्ट है नीलम के ही आलेख ‘स्वामीनारायण धर्म की शिक्षापत्री और स्त्री’ के शब्दों में :

‘‘स्वामीनारायण धर्म के धार्मिक गुरुओं की संकीर्ण मानसिकता का परिचय मुझे तब मिला जब एक विवाह समारोह में हम स्त्रियों से यह कहा गया कि हम सब स्टेज की तरफ जाने वाले रास्ते की तरफ से मुंह फेर कर खड़ी हो जाएं क्योंकि वरपक्ष के स्वामीनारायण मत के गुरु वरवधू को आशीर्वाद देने आ रहे हैं.’’

स्त्री से इतनी घृणा करने वाले ये धर्मगुरु किस प्रकार समाज का भला कर सकते हैं क्योंकि स्त्री भी समाज का ही एक हिस्सा है. इस पर ये धर्मगुरु भी इन धार्मिक ग्रंथों को गलत मानते हैं. ‘क्या धर्म का प्रचार जरूरी है’ आलेख में गीताबेन शाह के शब्द भी यही स्वीकारते हैं, ‘रामायण, महाभारत व गीता सब राजनीति ही है. यदि हम राम व कृष्ण को भगवान का अवतार मानते हैं तो उन्होंने भी तो राजकुटुंब में जन्म लिया था, किसी राजकुटुंब का काम राजनीति के बिना चल नहीं सकता तो धर्म व राजनीति अलग कहां हुए?’

स्वामीनारायण धर्म की शिक्षापत्री में तो विधवा स्त्री को संक्रामक रोग का दर्जा दिया जाता है तो इस धर्म का लोग, खासकर औरतें क्यों अनुगमन करें.

हर धर्म में स्त्री की तुलना या तो जानवर से की गई है या फिर किसी रोग से. और यह दर्जा देने वाले ये धार्मिक गुरु इन्हीं महिलाओं के कंधों पर धर्म की बंदूक रख कर चला रहे हैं. इन धर्मग्रंथों में अपनी इतनी बुरी स्थिति पाते हुए भी महिलाएं अभी तक क्यों धर्म के भंवर में फंसी हुई हैं? यह सवाल बारबार जेहन को मथता है. अगर इस भंवर से औरतें निकलना चाहती हैं तो सब से पहले खुद को अबला कहना व समझना छोड़ें और फिर अबला बनाने वाले इन पंडों- मौलवियों को इस समाज से बहिष्कृत करें.

इस पुस्तक में कई जगह पर ऐसे धार्मिक पहलुओं पर प्रश्नचिह्न लगाए गए हैं, जिन से धर्म में स्त्री की क्षतविक्षत दशा का बोध होता है. पुस्तक में खास बात यह भी है कि इस में सभी कुछ (एक कविता को छोड़ कर) स्त्रियों द्वारा ही लिखा गया है. ऐसे में एक पुरुष (कार्तिक साराभाई) का अपनी कविता के माध्यम से पुरुषों पर ही आक्षेप सचमुच सराहनीय है. साथ ही इस में मल्लिका साराभाई, किरण बेदी, मृदुला गर्ग, उमा देशपांडे जैसी हस्तियों ने अपने शाब्दिक हस्ताक्षर दे कर इसे और भी सशक्त बना दिया है.

भिखारी बनाते धर्म के ठेकेदार, अपना भरते घरबार

अगर आप इन दिनों बिहार और झारखंड में होली (या दीपावली के बाद) आएंगे, तो कुछ औरतें और मर्द हाथ में सूप लिए गलीमहल्ले, दुकान, हाटबाजार, बसस्टैंड, रेलवे स्टेशन, भीड़भाड़ वाली दूसरी जगहों पर घूमते दिख जाएंगे, जो छठ व्रत करने के नाम पर भीख मांग रहे होते हैं. वैसे, स्थानीय लोगों को मालूम रहता है कि ये सब भीख मांगने वाले लोग छठ व्रत बिलकुल भी नहीं करते हैं.

दरअसल, ऐसे लोग छठ व्रत के नाम पर अपनी कमाई करने के लिए भीख मांग रहे होते हैं, क्योंकि साल में 2 बार छठ व्रत होता है, एक तो दीवाली के बाद कार्तिक महीने में और दूसरा होली के बाद चैत महीने में.

हिंदू धर्म के पंडेपुजारियों और ब्राह्मणों द्वारा सदियों से ऐसी बातों को बढ़ावा दिया गया है कि जिन के पास छठ व्रत करने के लिए रुपएपैसे नहीं हैं, तो वे छठ व्रत के दिनों में भीख मांग कर जमा किए गए पैसे से छठ व्रत मना सकते हैं.

पर अब बहुत से लोग इस धार्मिक पाखंड का फायदा उठा रहे हैं और धड़ल्ले से इस व्रत के कुछ दिन पहले से पीले रंग की धोती पहन कर हाथ में सूप ले कर बाजार व गली में घूम कर भीख मांगते देखे जा सकते हैं.

लेकिन सवाल यह उठता है कि धर्म के नाम पर पंडेपुजारियों और पाखंडियों ने भीख मांगने की कुप्रथा क्यों शुरू की है? इस की वजह यह है कि उन की पाखंड की दुकानें बिना रुकावट के चलती रहें.

भीख देने वालों के मन में भी ये बातें भरने की कोशिश की गई हैं कि भीख देने वाले को भी पुण्य मिलता है. बहुत से लोग धर्म के डर के चलते भीख दे देते हैं.

हालांकि, इस से मन में यह सवाल जरूर पैदा होता है कि भीख लेने वाला छठ व्रत करेगा या नहीं करेगा? लेकिन इस से समाज में भीख मांगने की नई कुप्रथा जरूर शुरू होती है, इसलिए कुछ लोगों के लिए यह कमाई का सब से आसान जरीया बनता जा रहा है.

कुछ लोग इस धार्मिक ढकोसले के नाम पर अपना धंधा शुरू कर देते हैं, तभी तो वे बाजारहाट, सड़क के किनारे, रेलवे स्टेशनों पर, यहां तक कि रेल के डब्बों, ट्रैफिक में भी घुस कर सूप ले कर भीख मांगते नजर आ जाते हैं.

छठ व्रत के दिनों में कुछ दानदाता छठ का सामान भी पूरे अंधविश्वासों के साथ बांटते दिखते हैं और जिन के पास छठ करने की हैसियत नहीं होती है, वे उन से सामान ले कर छठ व्रत करते भी हैं. दूसरों की मदद से पूजा करने वालों की तादाद बहुत थोड़ी ही है, जबकि भीख मांगने वालों की तादाद बहुत ज्यादा बढ़ती जा रही है.

सभी धर्मों के लोगों को यह सीख भी फोकट में दे दी जाती है कि पूजापाठ करने के बाद जरूरतमंदों को भीख देने से पुण्य मिलता है.

यह इसलिए किया जाता है कि लगे दानपुण्य करना साथ रहते लोगों की बुरे वक्त में सहायता करना होता है, इसीलिए काफी तादाद में भीख मांगने वाले लोग मंदिर, मसजिद और गुरुद्वारों के आगे हाथपैर से सलामत और हट्टेकट्टे होने के बावजूद भिखारियों की लाइन में बैठे होते हैं. इस से दानपुण्य का बाजार बढ़ता है.

रमजान के दिनों में भी भीख मांगने वालों की तादाद में एकाएक इजाफा हो जाता है. कुछ लोग सड़क पर मक्कमदीना जाने के लिए और चादर चढ़ाने के नाम पर भीख मांगते देखे जा सकते हैं.

जिन के पास खुद मक्कामदीना जाने की हैसियत और समय नहीं होता है, वे भीख मांगने वाले को कुछ सहयोग दे कर पुण्य का फायदा उठाना चाहते हैं.

भीख मांगने वाले धर्म के नाम पर बेवकूफ बनाते हैं. कई लोग साधुमहात्मा का रूप धारण कर भीख मांगते फिरते हैं. ऐसे ढोंगी बाबाओं का तो असल मकसद भीख मांगना ही होता है, लेकिन लोगों को चमत्कार करने या आशीर्वाद देने का स्वांग भी वे भरते हैं. कई बार तो वे सीधेसादे लोगों को लूट भी लेते हैं.

कुछ ढोंगी और शातिर लोग बेजबान जानवरों का इस्तेमाल कर के भी भीख मांगते फिरते हैं, जो कहीं से भी सही नहीं कहा जा सकता है. भीख मांगने के नाम पर विकलांग जानवरों को ‘ईश्वर की कृपा’ बता कर और उन्हें सजासंवार कर गाड़ी में भजन और गाने बजा कर जगहजगह पैसे ऐंठने का धंधा फलफूल रहा है.

इतना ही नहीं, हाथी जैसे बेजबान जानवर को भी गलीगली घुमा कर और बीच सड़क पर आनेजाने वालों को रोक कर लोग भीख मांगते देखे जा सकते हैं.

रोहतास जिले के रहने वाले अजय कुमार का इस धार्मिक बुराई पर कहना है, ‘‘दरअसल, हिंदू धर्म में ब्राह्मणों और पंडेपुजारियों ने एक नया हथकंडा अपनाना शुरू कर दिया है, ताकि उन का धंधा दिनोंदिन फलताफूलता रहे. उन्होंने समाज में एक गलत बात फैला दी है कि जिन की छठ व्रत करने की हैसियत न हो, वे भीख मांग कर भी व्रत कर सकते हैं.

‘‘इस का नतीजा यह हुआ कि भीख मांग कर ज्यादा से ज्यादा लोग छठ व्रत करने लगें और पंडेपुजारियों को पूजापाठ कराने में अच्छी आमदनी होने लगे.’’

सब से ज्यादा बुरा तो तब लगता है, जब लोग राह चलते राहगीरों के आगे सूप और थाली फैला कर भीख लेने के लिए गिड़गिड़ाने लगते हैं. कुछ लोग ट्रैफिक में घुस कर सूप ले कर छठ व्रत के नाम पर भीख मांगने लगते हैं.

कई बार दूसरे देशों से भी लोग यहां की संस्कृति से प्रभावित हो कर घूमनेफिरने आते हैं और इस तरह के लोगों को भीख मांगते देख कर यहां के लोगों के प्रति मन में गलत सोच बना लेते हैं, इसीलिए इस प्रदेश के लोगों को गरीब या पिछड़ा मान लेते हैं, जबकि ऐसा नहीं है.

लिहाजा, जरूरी है कि आम लोगों को भी इस तरह की गलत प्रथा का विरोध करना चाहिए. ऐसे लोगों को भीख देने से बचना चाहिए, ताकि अपने देश प्रदेश की पहचान तरक्की और खुशहाली के लिए बने, न कि भीख मांगने के लिए. दानपुण्य भी भीख ही है, पर दान ठसके और रोब जमा कर वसूला जाता है.

जब घर का ही कोई करे छेड़छाड़

तकरीबन रोजाना ही अखबारों में आने वाली रेप की घटनाएं हम सभी को परेशान करती हैं. कोई बड़ी घटना घट जाती है, तो बरसाती मेंढक की तरह कैंडल मार्च और रेपिस्ट को सजा देने की मांग तेजी से उठने लगती है, पर समय के साथ सब शांत हो जाता है और ‘जैसे थे’ उसी तरह हम सभी अपनी आदत के मुताबिक सबकुछ भूल कर अपनेअपने काम में लग जाते हैं.

खैर, अखबारों में आए रेप के मामलों में कम से कम रेपिस्ट पकड़ा तो जाता है, बाकी इस तरह की न जाने कितनी घटनाएं घर की चारदीवारी में ही घटती हैं, जिन के बारे में किसी को कुछ पता ही नहीं चल पाता. पता चलता भी हो तो अपना होने की आड़ ले कर इस तरह के लोग छूट जाते हैं.

घर में ही छेड़छाड़ और बदसलूकी के मामलों में ज्यादातर टीनएजर्स या कम उम्र के बच्चे शिकार होते हैं. अब तो ऐसे मामलों में लड़के भी महफूज नहीं हैं.

छोटे बच्चों के साथ घर का कोई सदस्य इस तरह का बरताव करता है, तो बच्चा किसी से कहने से डरता है. उस के अंदर ‘मेरी बात कोई नहीं मानेगा तो…? मुझे मारेगा तो…?’ इस तरह का डर ज्यादा होता है.
घर में ही सगेसंबंधियों द्वारा की जाने वाली छेड़छाड़ की घटना में जब कम उम्र के बच्चे शिकार होते हैं, तो उन के अंदर इतनी समझ नहीं होती कि उन के साथ उन के अपने ही यह कैसा बरताव कर
रहे हैं.

उन छोटे बच्चों को कुछ गलत होने का अनुभव तो होता है, पर यह गलत क्या है और इस बरताव के बारे में किस से कहा जाए, इस की समझ नहीं होती.

उन्हें इस बात का भी डर होता है कि मांबाप से कहेंगे तो वे नहीं मानेंगे और उलटा उन्हें ही डांट पड़ेगी. कुछ मामलों में यह भी होता है कि खराब बरताव करने वाला ही मांबाप से न कहने के लिए डराताधमकाता है.

ऐसे मामलों में बच्चों के साथ खराब बरताव करने वाले आदमी को जब पता चलता है कि उस के द्वारा किए गए खराब बरताव की शिकायत बच्चे ने मांबाप से नहीं की है, तो उस का हौसला बढ़ जाता है.
यहां केवल रेप की ही बात नहीं है, गलत तरीके से छूना या खराब इशारे भी इस में शामिल होते हैं. मांबाप इस तरह की शिकायत पुलिस से करने से डरते हैं.

एक एनजीओ के मुताबिक, वैसे तो घरेलू छेड़छाड़ के मामलों में ज्यादातर मांबाप ही ढकने का काम करते हैं. कभीकभी इस तरह के मामले में बच्चा बहुत डर जाता है, जिस की वजह से उस के बरताव में काफी बदलाव आ जाता है. तब मांबाप को साइकोलौजिस्ट की मदद लेनी पड़ती है. दूसरी ओर थाने में इस तरह की शिकायतें कम ही पहुंचती हैं. घर की इज्जत बचाने के चक्कर में घरेलू छेड़छाड़ की शिकायतें मात्र 15 फीसदी ही हो पाती हैं.

इस बारे में पुलिस अफसरों का कहना है कि जब मांबाप अपने बच्चों के साथ खराब बरताव करने वाले से कुछ कहने में खुद को काफी असहज महसूस करते हैं, तो थाने आ कर कहने या शिकायत करने की बात तो बहुत दूर है.

जिस तरह घरेलू हिंसा में थोड़ीबहुत हिंसा होती है, तो ‘औरत को थोड़ा सहन तो करना ही पड़ता है’ यह सोच कर लोग शिकायत नहीं करते, उसी तरह छेड़खानी के मामले में भी ‘ठीक है, अब इस बात को ले कर फजीहत नहीं करवानी, संभल कर चलना चाहिए’ यह सोचने वाले लोग ज्यादा हैं. इस बात को बढ़ाने से कोई फायदा नहीं है, इस तरह की सोच वाले लोग पुलिस तक बात को पहुंचने नहीं देते.

ज्यादातर मामलों में तो यह भी होता है कि लोग जानते ही नहीं कि इस तरह के मामलों में सारी पहचान पूरी तरह गुप्त रखी जाती है, जिस से आगे चल कर कोई परेशानी न हो.

छेड़छाड़ को छिपाने से छेड़छाड़ करने वाले को बढ़ावा ही मिलता है. बच्चे के साथ जब भी कोई घर का आदमी गलत बरताव करता है और बच्चा इस बारे में मांबाप को बताता है, तो उन्हें उस आदमी के खिलाफ कोई न कोई कदम जरूर उठाना चाहिए. उस आदमी को टोकना चाहिए और अगर इस पर भी वह न माने, तो पुलिस में शिकायत करने की धमकी देनी चाहिए.

ऐसा करने पर छेड़छाड़ करने वाला आदमी बदनामी के डर से अपने कदम पीछे खींच लेगा, जबकि मांबाप ऐसे मामलों में बच्चे को छेड़छाड़ करने वाले आदमी से दूर रहने और जो हुआ उसे भूल जाने की सलाह देते हैं.

छेड़छाड़ करने वाला सगा होने की वजह से संबंध बिगड़ेंगे और घर के दूसरे लोगों को पता चल गया तो बात का बतंगड़ बनेगा, इस डर से लोग कुछ कहते नहीं हैं.

मांबाप का यह बरताव बच्चे के दिमाग पर बुरा असर डालता है. बच्चे का अपने मांबाप के ऊपर से विश्वास उठ जाता है, क्योंकि बच्चे को भरोसा होता है कि कम उम्र में अपने साथ होने वाले गलत बरताव से वे उसे बचा लेंगे. अगर ऐसे समय में मांबाप कुछ नहीं करते, तो बच्चा निराश हो जाता है और उस का मांबाप के ऊपर से भरोसा उठ जाता है.

बच्चे के बदले बरताव को समझें. अकसर ऐसा होता है कि बच्चे के साथ जो हो रहा होता है, बच्चा उस बारे में मांबाप से कह नहीं पाता, पर उस के बरताव में यह बात आ जाती है. ऐसे बरताव के बाद बच्चा डराडरा सा रहने लगता है. उस का स्वभाव बदल जाता है. जो आदमी बच्चे के साथ गलत बरताव कर रहा होता है, उस के पास जाने से डरता है. बच्चे के इस बरताव को मांबाप को समझना चाहिए.

टीनएज लड़की या लड़का है, तो उस का भी बरताव बदल जाता है. मातापिता के रूप में अगर आप को अपने बच्चे के बरताव में बदलाव नजर आए, तो उस से प्यार से बात कर के बदलाव की वजह जानने की कोशिश करेंगे, तो यकीनन वह बता देगा.

याद रखिए, घरेलू छेड़छाड़ में बच्चे को अपने मांबाप पर भरोसा होगा तो वह यकीनन उस के साथ क्या गलत हो रहा है, जरूर बताएगा. पर अगर उसे इस बात का डर हुआ कि मांबाप उसे
ही गलत समझेंगे तो वह नहीं बताएगा, इसलिए बच्चे को इस बारे में सही सीख दें.

मोबाइल जेल की गिरफ्त युवाओं की दुनिया

युवाओं की दुनिया आजकल ऐसे आइडल ढूंढ़ने लगी है जो कुछ करतेधरते नहीं हैं. मोबाइल पर रील्स, चुटकुले, गौसिप, एआई जेनरेटड हाफबेक्ड मोटिवेशनल मैसेज, पौर्न या सैमिपौर्न क्लिप्स ने इन्फ्लुएंसर्स की एक नई खेप तैयार कर दी जो राजनीति के लीडरों जैसे हैं जिन में कोई सौलिड बात कहने की न कैपेसिटी है और न ही कोई उन्हें सीरियसली लेता है.

जिन के लाखों फौलोअर्स हैं, वे पैसे तो कमा रहे हैं लेकिन फिल्मस्टारों से भी ज्यादा गए गुजरे हैं क्योंकि उन्होंने मोबाइल डिवाइस पर जो भी भेजा वह आम व्यूअर्स की जिंदगी को संवारने लायक है ही नहीं. कुछ मिनट बीत जाएं, मैट्रो या बस की जर्नी पूरी हो जाए, रैस्तरां में बैठे किसी के इंतजार में 10-15 मिनट बीत जाएं, इन रील्स की बस यही कीमत रह गई है. इन्फ्लुएंसर्स से ज्यादा इर्रिस्पौंसिबल तो वे व्यूअर्स हैं जो अपने समय की कीमत नहीं समझ रहे.

मोबाइल ने आज हर तरह की इन्फौर्मेशन को आप के हाथ में लाना पौसिबल कर दिया है. यह तो उन युवाओं की गलती है जो इस इंटैलिजैंट इन्वैंशन का इस्तेमाल बेवकूफी के कृत्यों में कर रहे हैं. आजकल जिंदगी कौंप्लैक्स होती जा रही है. सरकारों और कौर्पोरेटों का दखल आम जिंदगी में बढ़ रहा है. औनलाइन फैसिलिटीज के चक्कर में हरेक की प्राइवेसी पर बुरी तरह हमले हो रहे हैं.

मोबाइल में आप क्या देखें, यह कुछ लोगों की कंपनियों के हाथ में है. रील्स या मोटिवेशनल मैसेज आप देखते नहीं हैं, ये आप को दिखाए जाते हैं. यह देखने की आप की इच्छा नहीं जो आप देख रहे हैं बल्कि यह दिखाने की उन कंपनियों की इच्छा है जो इन प्लेटफौर्मों को चला रही हैं. हर मोबाइल ऐप आप के बारे में हरेक छोटी सी बात को भी जानना चाहती है.

अगर कभी आप से कोई गलती हो जाए तो आप की पूरी जिंदगी आप की उस गलती को पकड़ने वालों के हाथों में होगी. तब आप कहीं से भी छूट न सकेंगे. आज कुछ भी छिपाना आसान नहीं है. हैकर्स आप की जानकारी जमा कर आप को कभी भी ब्लैकमेल कर सकते हैं. सब से बड़ी बात यह है कि इस औनलाइन इन्फौर्मेशन, एंटरटेनमैंट, मैसेजिंग के पीछे आप को लूटने की साजिश रची गई है.

पहले आप को काफीकुछ मुफ्त में परोस कर मोबाइल पर बने रहने की लत डाली गई, ऐप्स ने लुभावने सपने दिखाए. फिर आप से पैसे मांगे जाने लगे. कुछ पैसों से शुरू कर ये लोग आप से अब सैकड़ों रुपए सालाना लेने लगे हैं. इन प्लेटफौर्मों पर सरकारों का कड़ा कंट्रोल है.

सरकार जब चाहे जिस प्लेटफौर्म की बांह मरोड़ सकती है. इन प्लेटफौर्मों को पैसा कमाना है, उन्हें व्यूअर्स के राइट्स से कोई मतलब नहीं है. वे सरकारों की हर बात मान रहे हैं. मोबाइलों की वजह से 10 साल पहले इजिप्ट में तख्ता पलट गया था. आज दुनियाभर की सरकारें अपने मतलब के लिए मोबाइल तकनीक का मिसयूज कर रही हैं. ओटीपी के चक्करों में आप को फंसा कर आप के समय को बरबाद किया जा रहा है. मोबाइल रिवोल्यूशन की अभी तो शुरुआत है.

एआई यानी आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस के बाद इन्फ्लुएंसर्स भी कंपनियों के नकली लोग होंगे और व्यूअर्स अपनी असली कमाई देने को मजबूर हो रहे होंगे. टैक्नोलौजी कौर्पोरेट्स की तानाशाही शुरू हो चुकी है और उन की बनाई ‘मोबाइल जेलों’ में करोड़ों लोग पहले से ही फंस चुके हैं. आप किस खेत की मूली हैं.

आजादी का अमृतकाल : दलितों पर जुल्मोसितम की हद

देश में जातिवाद का जहर किस तरह ऊंची जाति वालों की नसनस में भरा है, उस के लिए 27 दिसंबर, 2023 का एक मामला देखिए. उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में एक 18 साल की दलित लड़की को सिर्फ इस बात के लिए गरम कड़ाही में धकेल दिया था, क्योंकि वह अपनी इज्जत से खिलवाड़ करने वालों की खिलाफत कर रही थी.

यह घटना बागपत जिले के बिनौली थाना क्षेत्र के एक गांव की है. पीडि़ता बुधवार, 27 दिसंबर, 2023 को गांव के ही एक कोल्हू की कड़ाही पर काम कर रही थी. तभी तीनों आरोपी प्रमोद, राजू और संदीप वहां आए और उस के साथ छेड़छाड़ करने लगे. इस का विरोध करने पर उन्होंने जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल करते हुए उस लड़की के साथ गलत बरताव किया. इतना ही नहीं, उन के अंदर इतना गुस्सा भर गया कि पीडि़ता को जान से मारने के इरादे से उसे गरम कड़ाही में फेंक दिया. इस के बाद वे तीनों वहां से भाग गए.

पीड़िता के भाई की शिकायत पर उन तीनों आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 354 (महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने के इरादे से हमला), 504 (शील भंग करने के इरादे से अपमान), 307 (हत्या का प्रयास) और अनुसूचित जाति और जनजाति अधिनियम के तहत केस दर्ज किया गया.

दूसरे मामले ने तो दिल ही दहला दिया. वहां तो एक दलित लड़के से शादी करने पर एक लड़की का बेरहमी से खून कर दिया गया और ऐसा करने का इलजाम लगा दिया लड़की के मांबाप पर.

दरअसल, तमिलनाडु के तंजावुर जिले में पट्टुकोट्टाई के पास पूवालुर का रहने वाला एक दलित लड़का नवीन अपने पड़ोस के नेवाविदुति गांव की 19 साल की एक लड़की ऐश्वर्या से प्यार करता था.

नवीन और ऐश्वर्या बीते 5 सालों से एकदूसरे को जानते थे और पिछले 2 सालों से तिरुपुर जिले में काम कर रहे थे. उन्होंने आवरापलयम के विनयागर मंदिर में 31 दिसंबर, 2023 को शादी भी कर ली थी.

2 जनवरी, 2024 को इस शादी से गुस्साए ऐश्वर्या के मांबाप अपने रिश्तेदारों के साथ तिरुपुर जिले के पल्लाडम पुलिस स्टेशन पहुंचे और पुलिस से इस मामले में दखल देने की मांग की. थाने में मामला दर्ज कर लिया गया और पुलिस ने ऐश्वर्या को उस के मांबाप को सौंप दिया.

7 जनवरी, 2024 को नवीन ने पुलिस में एक शिकायत दर्ज कराई, जिस में कहा गया कि ‘वह अनुसूचित जाति से आता है और ऐश्वर्या पिछड़ी जाति से. दोनों के बीच कई साल से प्रेम चल रहा था.’

नवीन की शिकायत के मुताबिक, ‘ऐश्वर्या के पिता अपने रिश्तेदारों के साथ पुलिस स्टेशन गए. आधे घंटे बाद ही पल्लाडम पुलिस स्टेशन से ऐश्वर्या को उस के पिता और रिश्तेदारों ने अपने साथ लिया और पुलिस स्टेशन के बाहर खड़ी एक कार में बैठ कर चले गए.’

नवीन की शिकायत पर पुलिस द्वारा दर्ज की गई एफआईआर में कहा गया कि ‘नवीन को सूचना मिली थी कि 3 जनवरी की सुबह ऐश्वर्या की हत्या कर दी गई थी और स्थानीय लोगों से छिपा कर शव को तत्काल श्मशान में जला दिया गया था.’

पुलिस ने भी अपनी जांच में कहा कि ऐश्वर्या को उस के अभिभावकों ने नेवाविदुति गांव में इमली के पेड़ से लटका दिया था.

अगस्त, 2023. मध्य प्रदेश के सागर जिले में एक दलित नौजवान की पीटपीट कर हत्या कर दी गई थी. आरोपियों ने उस नौजवान को बचाने पहुंची उस की मां को भी पीटा और उन के कपड़े भी फाड़ डाले.

दरअसल, मारे गए उस नौजवान की बहन के साथ कुछ दिनों पहले आरोपियों ने छेड़छाड़ की थी, जिस का केस दर्ज हुआ था. वे आरोपी पीडि़त परिवार पर राजीनामा करने का दबाव बना रहे थे.

यह घटना सामने आने के बाद पुलिस ने 9 नामजद और 4 दूसरे आरोपियों के खिलाफ हत्या समेत दूसरी धाराओं में केस दर्ज किया. पुलिस ने मुख्य आरोपी समेत 8 आरोपियों को गिरफ्तार भी किया.

मारे गए उस नौजवान की बहन ने कहा, ‘गांव के विक्रम सिंह, कोमल सिंह और आजाद सिंह घर पर आए थे. मां से कहने लगे कि राजीनामा कर लो. मां ने कहा कि जब पेशी होगी, तो उसी दिन राजीनामा कर लेंगे, तो उन्होंने कहा कि क्या आप को अपने बच्चों की जान प्यारी नहीं है? ऐसा बोल कर वे धमकी दे गए कि जो हमें जहां मिलेगा, उस को निबटा देंगे.

‘मेरा छोटा भाई बसस्टैंड के पास सब्जी लेने गया था. वह वहां से लौट रहा था. रास्ते में आरोपी उस के साथ मारपीट करने लगे. वह भागने लगा, तो कुछ लोगों ने उसे पकड़ लिया.

‘मम्मी जब बाजार की तरफ गईं तो देखा कि वे भाई के साथ मारपीट कर रहे हैं. मम्मी उस को बचाने पहुंचीं. आरोपियों ने मम्मी को भी पीटा. जब मैं वहां गई और मोबाइल फोन से पुलिस को काल करने लगी, तो उन लोगों ने मेरे साथ भी मारपीट शुरू कर दी. मैं ने हाथ जोड़े, पैर पड़ कर कहा कि मेरे भाई को छोड़ दो, पर उन्होंने नहीं छोड़ा.’

इस मुद्दे पर कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, ‘मध्य प्रदेश के सागर में एक दलित नौजवान की पीटपीट कर हत्या कर दी गई. गुंडों ने उस की मां को भी नहीं बख्शा. सागर में संत रविदास मंदिर बनवाने का ढोंग रचने वाले प्रधानमंत्री मध्य प्रदेश में लगातार होते दलित व आदिवासी उत्पीड़न और अन्याय पर चूं तक नहीं करते. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री केवल कैमरे के सामने वंचितों के पैर धो कर अपना गुनाह छिपाने की कोशिश करते हैं.’

मल्लिकार्जुन खड़गे का कहना सही है कि प्रधानमंत्री एक तरफ तो संत रविदास का मंदिर बनवाने का ढोंग करते हैं, पर दूसरी तरफ वे उन पर होने वाले जुल्म पर चुप्पी साध लेते हैं. क्या दलितों के पैर धोने से समाज में उन्हें बराबरी का दर्जा मिल जाएगा? बिलकुल नहीं, क्योंकि जब तक हर दलित को पढ़ने का हक नहीं मिलेगा, तब तक समाज में जातिवाद की खाई और गहरी होती जाएगी.

एक फिल्म से दलित समाज की हकीकत सम झते हैं, जिस का नाम है ‘गुठली लड्डू’. इस फिल्म में दिखाया गया है कि किस तरह भारतीय समाज में फैली जातिवाद की सड़ांध नाक के बाल जलाती हुई सीधा दिमाग की नसों में बजबजाने लगती है.

‘अस्पृश्यता अपराध है’ और ‘शिक्षा पर सब का समान अधिकार’ के मुद्दे पर बुनी गई यह फिल्म समाज के उस तबके की जहालत, बेबसी और गरीबी को उजागर करती है, जिसे गलीज सम झा जाता है. वह तबका जो दूसरों की गंदगी साफ करता है और जिस के घर का पानी पीना भी बड़ी जाति के लोगों के लिए हराम है.

साल 2023 में आई इस फिल्म की कहानी के 2 मासूम और मेन किरदार हैं गुठली (धनय सेठ) और लड्डू (हीत शर्मा). ये दोनों दोस्त हैं और छोटी जाति के 2 हमउम्र बच्चे भी. गुठली को पढ़ने का शौक है. या यों कहें कि जुनून है, पर चूंकि वह दलित समाज से है तो उसे स्कूल में घुसने तक नहीं दिया जाता है.

इस फिल्म की कहानी तब अचानक मोड़ लेती है, जब लड्डू अपने बापदादा का पुश्तैनी काम मतलब साफसफाई करने की हामी भर देता है और एक दिन गटर में गिरने से उस की मौत हो जाती है. यह देख कर गुठली का बापू उसी दिन से ठान लेता है कि कुछ भी हो जाए, वह अपने बेटे को स्कूल भेजेगा और इस गटर जैसी गंदी जिंदगी से बाहर निकालेगा.

गुठली के बापू की इसी जद्दोजेहद में फिल्म की कहानी आगे बढ़ती है और इस हकीकत से रूबरू कराती है कि आज भी अनपढ़ दलित की जिंदगी किस नरक में कट रही है और अगर वह अपने हक की बात करता है, तो उसे लतिया दिया जाता है.

गरीब, अनपढ़ दलितों और साफसफाई करने वालों की असली जिंदगी में  झांकें तो उन की हालत भी गुठली और लड्डू से ज्यादा अच्छी नहीं है. भले ही संविधान ने सब को बराबरी का हक दिया है, पर आज भी न जाने कितने गुठली और लड्डू पढ़ाईलिखाई से कोसों दूर हैं और न चाहते हुए भी छोटी जाति का होने की सजा दूसरों की गंदगी साफ कर के पाते हैं.

‘स्वच्छ भारत’ के हल्ले के बीच साल 2023 के मार्च महीने में हरियाणा के पानीपत में नगरनिगम के गटर की सफाई करते हुए 2 मुलाजिमों की मौत हो गई थी. ऐसा पूरे देश में होता है, पर हैरत की बात तो यह है कि हर साल सीवर और सैप्टिक टैंकों की सफाई करते हुए मरने वालों का आंकड़ा कम होने

के बजाय बढ़ता ही जा रहा है. सरकार खुद मानती है कि साल 2019 में पूरे देश में सीवर और सैप्टिक टैंकों की सफाई करते हुए 110 लोगों की जानें चली गई थीं.

ऊपर से बड़ी जाति वालों का उन्हें नाली का कीड़ा सम झना. उन के हाथ से पैसे तो वे ले लेंगे, पर अगर गलती से वे बड़ी जाति वाले की साइकिल छू देंगे, तो उस साइकिल को कई बार धोने का रोना रोएंगे.

जुल्म की खास वजहें

सब से बड़ी वजह तो यह है कि दलितों को सभ्य समाज का हिस्सा ही नहीं सम झा जाता है. उन्हें धर्म ने अछूत माना है और हर तथाकथित बड़ी जाति वाले के मन में यह गहरे तक पैठ चुका है कि अनुसूचित जाति के लोगों को नीचा दिखाने और उन पर अपना रोब जमाना उन का जन्मजात हक है. तभी तो कोई दलित मूंछ रख ले तो उसे लतिया दिया जाता है. कोई दलित दूल्हा घोड़ी पर चढ़ जाए, तो उसे सबक सिखा दिया जाता है.

अनुसूचित जाति की औरतों और लड़कियों को तो सरेआम शर्मिंदा करने की खबरें आएदिन सुर्खियों में बनी रहती हैं. स्कूलकालेज में धमकाया जाता है. छात्रों को ही नहीं, बल्कि दलित समाज के टीचरों और प्रोफैसरों को भी जाति के आधार पर सताया जाता है. दलित समाज पर जोरजुल्म की घटनाओं के पीछे लोगों की छोटी सोच और इंसाफ में देरी की वजह से लोगों में कानून का डर कम हो रहा है.

कोढ़ पर खाज यह कि लाखों मामले ऐसे होते हैं, जिन में केस दर्ज नहीं किया जाता है या मामले दबा दिए जाते हैं. सागर वाले मामले में नौजवान की हत्या इसीलिए हुई थी कि उस का परिवार राजीनामा नहीं कर रहा था.

आजादी के अमृतकाल में समाज का यह घिनौना रूप उन लोगों पर तमाचा है, जो देश के हर जने की भलाई की बात तो करते हैं, पर हकीकत में उन से होता जाता कुछ नहीं.

तीन फूट का दूल्हा और ……!

सचमुच यह दुनिया अजब गजब है, अनेक देश हैं, अनेक अनेक लोग हैं, कुछ लंबे हैं तो कुछ नाटे और कुछ बौने . आइए आपको आज ले चलते हैं विजय मरावी के पास जो कद काठी से बौना ही रह गया . होश संभाला सोचा नत्थू दादा की तरह फिल्मों में काम करेगा और नाम कमाएगा.

नत्थू दादा छत्तीसगढ़ के थे और हिंदी की खोटे सिक्के सहित कई फिल्मों में उन्होंने अभिनय करके नाम और पैसा कमाया . विजय विवाह योग्य हुआ तो सोच रहा था कि मेरा विवाह क्या कभी होगा. आखिर एक दिन उसका विवाह हो ही गया.

छत्तीसगढ़ के औद्योगिक तीर्थ कहे जाने वाले कोरबा नगर में विगत दिनों 32 परिवारों का सामूहिक विवाह का आयोजन किया गया. यह अब चर्चा का विषय बन गया है. क्योंकि इस सामूहिक विवाह में इस विवाह में 3 फीट के दूल्हे ने ढाई फीट की दुल्हन से शादी रचाई है.

हमारे संवाददाता के अनुसार दोनों एक-दूसरे से पहले ही से परिचित थे. महत्वपूर्ण तथ्य है कि आदिवासी आंचल छत्तीसगढ़ के जनजातीय समुदाय को बिलांग करने वाले विजय मरावी जिला कोरबा के पाली विकासखण्ड के दर्राभाठा ग्राम के निवासी हैं और टेलरिंग का व्यवसाय करते हैं.

उनके कद काठी के संदर्भ में जब हमने डॉक्टर जी आर पंजवानी से बातचीत की दोनों ने बताया विजय मरावी जैसे लोग जैसे लोग बहुत कम होते हैं इसलिए आकर्षण का विषय बन जाते हैं दरअसल ऐसे लोग का शारीरिक विकास कई कारणों से नही हो पाता और ऊंचाई 3 फीट से ज्यादा बढ़ नहीं पाती हैं.

यह कोई अनुवांशिक बीमारी नहीं मानी जाती है. महत्वपूर्ण तथ्य है कि विजय के लिए कुछ उनके ही कद काठी के जीवनसाथी की तलाश परिवार के लोग कर रहे थे. यह सिलसिला लंबे समय से चल रहा था. संयोग से नजदीकी गांव में रहने वाली दुर्गा विजय के आदिवासी समुदाय से ही थी और उसकी ऊंचाई भी ढाई फीट से ज्यादा नहीं थी.

मजे की बात यह है कि सोशल मीडिया से दोनों जुड़े और बातचीत शुरू हुई. फिर दोनों की मुलाकात आमने-सामने हुई, और विवाह की बातचीत परिजनों ने की और रिश्ता पक्का हो गया. आखिरकार 2 मार्च 2024 नमः सामूहिक विवाह के आयोजन की जानकारी मिलने पर दोनों परिणय सूत्र में बंध गए.

पाठकों को बताते चलें कि दुर्गा मरावी ने हायर सेकेंडरी तक की पढ़ाई की है, जबकि उसके पति की शिक्षा हाई स्कूल की है. दोनों ने कहा कि वह आगे शिक्षा प्राप्त करने में रुचि रखते है. दुर्गा मरावी के मुताबिक विजय से सोशल मीडिया फेसबुक से पहली दोस्ती हुई और जो धीरे-धीरे प्यार में बदल गई. अंततः दोनों ने परिवार जनों की सहमति से शादी करने की सोची.

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