बोसीदा छत: क्या अजरा अपनी मां को बचा पाई?

जब जीनत इस घर में दुलहन बन कर आई थी, तब यह घर इतना बोसीदा और जर्जर नहीं था. पुराना तो था, लेकिन ठीकठाक था. उस के ससुर का गांव में बड़ा रुतबा था. वे गांव के जमींदार के लठैत हुआ करते थे, जिन से गांव के लोग खौफ खाते थे. सास नहीं थीं. शौहर तल्हा का रंग सांवला था, लेकिन वह मजबूत कदकाठी का नौजवान था, जो जीनत से बेइंतिहा मुहब्बत करता था.

एक दिन खेतों में पानी को ले कर मारपीट हुई, जिस में जीनत के ससुर मार दिए गए. तब से समय ने जो पलटा खाया, तो फिर आज तक मनमुताबिक होने का नाम नही लिया.

फिर समय के साथसाथ घर की छत भी टपकने लगी. अपने जीतेजी तल्हा से 10,000 रुपयए का इंतजाम न हो सका कि वह अपने जर्जर मकान के खस्ताहाल और बोसीदा छत की मरम्मत करा सके.

चौदह साल की अजरा ने तुनकते हुए अपनी अम्मी जीनत से कहा, “अम्मी, आलू की सब्जी और बैगन का भरता खातेखाते अब जी भर गया है. कभी गोश्तअंडे भी पकाया करें.”

इस पर जीनत बोली, “अरे नाशुक्री, अभी पिछले ही हफ्ते लगातार 3 दिनों तक कुरबानी का गोश्त खाती रही और इतनी जल्दी फिर तुम्हारी जबान चटपटाने लगी.”

अजरा ने फिर तुनकते हुए कहा, “मालूम है अम्मी… बकरीद को छोड़ कर साल में एक बार भी खस्सी का गोश्त खाने को नहीं मिलता है. काश, हर महीने बकरीद होती, तो कितना अच्छा होता.”

उस की अम्मी ने कहा, “जो भी चोखाभात मिल रहा है, उस का शुक्र अदा करो. बहुत सारे लोग भूखे पेट सोते हैं. और जो यह छत तुम्हारे सिर के ऊपर मौजूद है, इस का भी शुक्र अदा करो. इस बोसीदा छत की कीमत उन लोगों से पूछो जिन के सिरों पर छप्पर भी नहीं है. इस सेहत और तंदुरुस्ती का भी शुक्र अदा करो… जो लोग बीमारी की जद में हैं, उन से सेहत और तंदुरुस्ती की कीमत पूछो…”

अगले दिन जोरों से बारिश हो रही थी. अजरा ने अम्मी को भीगते हुए आते देखा तो दौड़ कर एक फटी हुई चादर ले आई और उन के गीले जिस्म को पोंछने लगी. जीनत पूरी तरह पानी से भीग चुकी थी. उस के कपड़े जिस्म से चिपक कर उस की बूढ़ी हड्डियों को दिखा रहे थे.

जीनत ने उस फटी चादर को सूंघा फिर अलगनी पर फेंक दिया. फिर भीगे हुए दुपट्टे से पानी निचोड़ा, उसे झटका और फिर अलगनी पर सूखने के लिए फैला दिया.

अजरा कनखियों से देख रही थी कि उस की अम्मी छत के एक कोने को बड़े गौर से देख रही हैं.

जीनत ने खुश होते हुए कहा, “देखो अजरा… इस बार उस कोने से पानी नहीं टपक रहा है. कई दिनों की बारिश के बाद भी वह हिस्सा पहले की तरह ही सूखा हुआ है.”

अजरा ने दूसरे कोने की तरफ़ इशारा करते हुए कहा, “लेकिन अम्मी, उस कोने से तो पानी चू रहा है.”

जीनत उस की बात का जवाब दिए बिना ही कमरे से निकल गई और थोड़ी देर बाद मिट्टी का एक बड़ा सा घड़ा ले कर लौटी और उसे टपक रहे पानी के नीचे रख दिया. फिर पानी बूंदबूंद कर के उस में गिरने लगा और अगलबगल की जमीन गीली होने से बच गई.

सैकड़ों साल पुराना यह मकान आहिस्ताआहिस्ता जर्जर होता जा रहा था. ईंट के चूरे, चूना वगैरह से बनी उस की छत अब अपनी उम्र पूरी कर चुकी थी.

जीनत ने 3 साल पहले छत को बड़े नुकसान से बचाने के लिए उस पर सीमेंटबालू से पलास्तर करा दिया था. मगर फिर भी बारिश का पानी किसी न किसी तरह रिसता हुआ फर्श पर टपकता ही रहता था. अलबत्ता इस बार कमरे का सिर्फ एक कोना टपक रहा था, बाकी हिस्से सहीसलामत थे.

रात में सोते समय जीनत का सारा ध्यान बस 2 बातों पर जाता था कि अजरा की शादी कैसे होगी और इस बोसीदा छत की मरम्मत कैसे होगी. अजरा की शादी से पहले छत की मरम्मत तो हर हाल में हो जानी चाहिए. शादी में लोगबाग आएंगे तो उन का ध्यान छत की तरफ जा सकता है.

रात में अजरा तो घोड़े बेच कर सो जाती, लेकिन जीनत का सारा ध्यान इसी उधेड़बुन में उलझा रहता. पानी चूने वाले जगहों पर पड़े बड़ेबड़े बोसीदा निशान जीनत को चिढ़ाते रहते. आंधीतूफान और बरसात के दिनों में तो उस का हाथ कलेजे पर ही रहता. हालांकि दीवारें तो काफी मोटी थीं, लेकिन छत खस्ताहाल हो चुकी थी.

कभीकभी शौहर तल्हा भी जीनत के खयालों में टहलता हुए आ जाता. मजदूरी कर के लौटते वक्त उस के बदन से उठ रही पसीने की खुशबू की याद से जीनत सिहर उठती. वह यादों में खो कर अजरा के माथे पर हाथ फेरने लगती.

‘अब्बू, जलेबी लाए हैं?’ सवाल करते हुए अजरा अपने अब्बू से लिपट जाती. फिर तल्हा अपने थैले से जलेबी का दोना निकाल कर अजरा को थमा देता और वह खुश हो जाती.

5 साल पहले अजरा के अब्बा तल्हा खेत में कुदाल चलाते हुए गश खा कर ऐसे गिरे कि फिर उठ नहीं सके. तब से जीनत मेहनतमजदूरी कर के अपनी एकलौती बेटी की परवरिश कर रही है और उसे पढ़ालिखा रही है. जीनत की ख्वाहिश है कि अजरा पढ़लिख कर अपने परिवार का नाम रोशन करे.

जीनत हर साल बरसात से पहले छत की मरम्मत कराने की सोचती है, लेकिन कोई न कोई ऐसा खर्च निकल आता है कि छत की मरम्मत का सपना अधूरा रह जाता है. जैसे इसी साल अजरा के फार्म भरने और इम्तिहान देने में 2,000 रुपए खर्च हो गए और छत की मरम्मत का काम आगे सरकाना पड़ा.

बरसात के बाद रमजान का महीना आ गया. अगलबगल के घरों से इफ्तार का सामान मांबेटी की जरूरतों से ज्यादा आने लगा. सेहरी व इफ्तार में लजीज पकवान खा कर अजरा बहुत खुश रहा करती.

अजरा ने कहा, “अम्मी, अगर सालभर रमजान का महीना रहता तो कितना मजा आता…”

अजरा की बात सुन कर जीनत मुसकरा कर रह गई.

इसी बीच अजरा की सहेलियों ने बताया कि हालफिलहाल ‘मस्तानी सूट’ का खूब चलन है. इस ईद पर हम सब वही सिलवाएंगे. फिर क्या था… अजरा ने भी अपनी अम्मी से ‘मस्तानी सूट’ की फरमाइश शुरू कर दी.

जीनत अपनी बेटी अजरा का दिल कभी नहीं तोड़ना चाहती है. अलबत्ता उस की ख्वाहिशों पर लगाम लगाने की भरपूर कोशिश करती है.

जीनत ने अजरा को समझाते हुए कहा, “बेटी, यह ‘मस्तानी सूट’ हम गरीबों के लिए नहीं है. उस की कीमत 1,000 रुपए है. अगर उस में 1,000 रुपए और जोड़ लें तो इस बोसीदा छत की मरम्मत हो जाएगी.”

बहरहाल, रमजान का आधा महीना गुजर गया. इस बीच मजदूरी करकर के जीनत के पास कुछ पैसे जमा हो गए थे. उस ने ईद के बाद इस बोसीदा छत से नजात पाने का इरादा कर लिया था.

जीनत ने अजरा से कहा, “मैं तो सोच रही थी कि ईद के बाद छत की मरम्मत करा ली जाए. अब तुम्हारा ‘मस्तानी सूट’ बीच में आ गया. ईद का खर्च अलग है. अगर कहीं से जकात की मोटी रकम मिल जाए तो सब काम आसानी से हो जाएं…”

गरीबों के अरमान रेत के महलों की तरह सजते हैं और फिर भरभरा कर गिर जाते हैं. जब मेहनतमजदूरी से भी अरमान पूरे नहीं होते तो इमदाद और सहारे की उम्मीद होने लगती है. अमीरों की दौलत से निकाली हुई मामूली रकम जकात के रूप में उन के बहुत काम आती है.

ईद से ठीक 4 दिन पहले स्कूल में अजरा को खबर मिली कि उस की अम्मी खेत में बेहोश हो कर गिर पड़ी हैं. वह बदहवास हो कर मां को देखने दौड़ पड़ी.

लोगों ने जीनत को चारों तरफ से घेर रखा था. लोगों की भीड़ देख कर अजरा और बदहवास हो गई. तबतक गांव के नन्हे कंपाउंडर भी वहां पहुंच चुके थे. उन्होंने नब्ज देखते हुए नाउम्मीदी में सिर हिला दिया.

लोग कहने लगे, ‘बेचारी रोजे की हालत में मरी है, सीधे जन्नत में जाएगी…’

किसी ने अजरा के सिर पर हाथ रखते हुए कहा, “बेचारी के सिर से मां का साया भी उठ गया. आखिर बाप वाला हाल मां का भी हो गया.”

लेकिन अजरा को यकीन नहीं हो रहा था कि उस की अम्मी मर चुकी हैं. वह पागलों की तरह दौड़ते हुए गांव में गई और केदार काका का ठेला खींचते हुए खेत तक ले आई.

अजरा ने रोते हुए लोगों से कहा, “मेहरबानी कर के मेरी अम्मी को जल्द से जल्द अस्पताल पहुंचाने में मेरी मदद करें.”

लोगों ने उस की दीवानगी देखी तो जीनत को ठेले पर लादा और अस्पताल के लिए दौड़ पड़े.

अस्पताल पहुंचने में एक घंटा लगा. आधे घंटे तक मुआयना करने के बाद आखिरकार डाक्टरों ने जीनत को मुरदा करार कर दे दिया.

यह सुनते ही अजरा वहीं गिर पड़ी. लोगों ने सोचा कि लड़की रोजे से है. मां की मौत का सदमा और भागदौड़ बरदाश्त नहीं कर सकी है.

डाक्टरों ने उस की नब्ज देखी और हैरत से एकदूसरे का मुंह देखने लगे.

धीरेधीरे गांव के लोग सरकने लगे. अब मांबेटी दोनों की लावारिस लाश का पंचनामा बन रहा था.

मैं पवित्र हूं

लेखक- बलविंदर ‘बालम’

‘‘साहब, लड़की बहुत ही खूबसूरत है. जिस्म की बनावट देखें. खिला हुआ ताजा गुलदाऊदी है जनाब. रंगरूप कितना चढ़ा हुआ है. जनाब, आप तो इस तरह की रसदार जिस्म वाली लड़कियां ही पसंद करते हो… जनाब उठा लें, फिर मौका नहीं मिलने वाला?’’

जीप से थोड़ी दूर ही हवलदार की नजर उस लड़की पर जा पड़ी थी. सूरज अंबर के घौंसले में जा छिपा था. रात खतरनाक रूप ले कर और गहरी होती जा रही थी.

एक नया शादीशुदा जोड़ा हाथ में एक छोटी सी अटैची उठाए, नाजुकनाजुक प्यारीप्यारी बातें करता पैदल ही अपने गांव जा रहा था. गांव की दूरी तकरीबन एक किलोमीटर ही होगी. वे दोनों बस से उतर कर थोड़ी ही दूर गए थे कि पुलिस की जीप आहिस्ता से उन के पास से गुजरी.

इंस्पैक्टर ने जोश में आ कर ड्राइवर को कहा, ‘‘जीप मोड़ ले…’’ और अपनी  बांहें ऊपर को खींच कर 2-3 अंगड़ाइयां तोड़ लीं.

ड्राइवर ने जीप उस जोड़े के आगे जा कर खड़ी कर दी. हवलदार और इंस्पैक्टर नीचे उतरे.

हवलदार ने उस लड़के से पूछा, ‘‘ओए, कहां जाना है तुझे?’’

‘‘अपनी ससुराल से आ रहा हूं जनाब और अपने गांव जा रहा हूं. जनाब, कुछ दिन पहले ही हमारी शादी हुई है?’’

‘‘ओए, तू तस्करी करता है… तू अफीम बेचता है… इतने अंधेरे में ससुराल से आ रहा है?’’

‘‘जनाब, इस अटैची में सिर्फ कपड़े हैं और कुछ भी नहीं है,’’ उस लड़के ने कहा.

‘‘ओए, तू थाने चल. वहां जा कर पता चलेगा कि इस में क्या है…’’

‘‘जनाब, मेरा कुसूर क्या है? मैं कोई अफीम नहीं बेचता, कोई तस्करी नहीं करता. जनाब, मेरी अटैची देख लें.’’

‘‘चुप कर. हमें अभीअभी वायरलैस से खबर आई है कि एक नया शादीशुदा जोड़ा आ रहा है. उस के पास अफीम है. उन्होंने सारा हुलिया तेरा बताया है कि तू अफीम बेचता है.’’

‘‘जनाब, ऐसी कोई बात नहीं है. आप को गलतफहमी हुई है. मेरे गांव से पूछ लें… मैं प्रीतम सिंह हूं जनाब. मैं रेहड़ा चलाता हूं जनाब. मेरे मातापिता, बहनभाई सब घर में हैं. आप गांव से पता कर लो.’’

‘‘यह तो थाने जा कर ही पता चलेगा. कैसे बकबक करता है. हम को गलत सूचना मिली है?’’ कहते हुए हवलदार ने 5-7 थप्पड़ प्रीतम सिंह के गाल पर जड़ दिए. उस की पगड़ी खुल कर नीचे गिर गई और वह खुद भी. उन्होंने लातोंबांहों से उस की खूब सेवा कर दी.

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प्रीतम सिंह की पत्नी राज कौर ने बहुत गुजारिश की, पर इंस्पैक्टर पर तो हवस का भूत सवार हो चुका था. उस ने राज कौर पर 3-4 थप्पड़ जड़ दिए. वह भी नीचे गिर गई.

इंस्पैक्टर ने हवलदार और सिपाही को कहा, ‘‘उठा कर जीप में फेंक दो इन  दोनों को. थाने ले चलो, देखते हैं कैसे  नहीं मानता.’’

सिपाहियों ने उन दोनों को जीप में धकेल लिया.

राज कौर रोरो कर कह रही थी कि जनाब छोड़ दो हमें, हम बेकुसूर हैं, पर सिपाही उन को गंदीगंदी गालियां निकाले जा रहे थे.

थाने में ले जा कर इंस्पैक्टर ने दोनों को हवालात में बंद कर दिया. राज कौर का जूड़ा खुल चुका था, बाल बिखर चुके थे. उन दोनों का रोरो कर बुरा हाल हो गया था.

इंस्पैक्टर ने हवलदार को तेज आवाज लगा कर कहा, ‘‘बड़ा सा पैग बना कर ला.’’

तकरीबन 55 साल के उस इंस्पैक्टर ने अपने सारे कपड़े ढीले कर लिए और गरम लहू में उबलता हुआ टांगें पसार कर कुरसी पर बैठ गया.

हवलदार बड़ा पैग बना कर ले आया और बोला, ‘‘जनाब, माल बहुत बढि़या है. ताजा गुलकंद है जनाब. खींच दो जनाब. यह मौका बारबार नहीं मिलेगा जनाब. पहले माल से यह माल अलग ही है, ताजातरीन है जनाब.’’

इंस्पैक्टर ने अपनी मूंछें अकड़ा कर एक ही सांस में पैग हलक के नीचे उतार लिया. उस की आंखों के डोरे तंदूर की तरह तपने लगे.

हवलदार ने कहा, ‘‘जनाब, एक पैग और ले आएं?’’

‘‘अभी नहीं, पहले उन की तसल्ली तो करवा दूं.’’

इंस्पैक्टर ने जाते ही प्रीतम सिंह के बाल पकड़ लिए और चिल्लाया, ‘‘कहां है तेरी अटैची ओए?’’

‘‘जनाब, आप के पास ही है. उस में कोई अफीम नहीं है.’’

हवलदार ने अटैची में अफीम रख दी थी.

‘‘जनाब, मैं बेकुसूर हूं. जाने दो जनाब. हमारे घर वाले इंतजार करते होंगे,’’ राज कौर ने इंस्पैक्टर के पैर पकड़ लिए. उस ने राज कौर का सुंदर मुखड़ा ऊपर उठा कर कामुकता से निहारा, जिस्म की गोलाइयां उस का नशा और तेज कर गईं.

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राज कौर समझ गई थी कि कोई बुरा समय आने वाला है.

इंस्पैक्टर ने प्रीतम सिंह को नंगधड़ंग कर के उलटा लिटा कर खूब पिटाई लगाई. वह बेहोश हो गया.

राज कौर रोरो कर मिन्नतें कर रही थी.

इंस्पैक्टर ने हवलदार को इशारा किया, तो वह एक बड़ा पैग और बना कर ले आया. उस ने एक सांस में ही गटागट पूरा अंदर उतार लिया.

होंठों पर लगे पैग को उलटे हाथ से साफ करते हुए हवलदार को इशारे से समझाया.

हवलदार प्रीतम सिंह को बेहोशी की हालत में खींच कर दूसरे कमरे में ले गया.

राज कौर इंस्पैक्टर के पैर पकड़ रही थी, पर उस पर हवस का भूत सवार था. उस को महकमे का कोई डर नहीं था. उस के हाथ बहुत लंबे थे मिनिस्ट्री तक. उस की लगामें खुली थीं और आंखों का फैलाव कानों को छू रहा था.

इंस्पैक्टर ने नशे में कहा, ‘‘तेरे जैसा मखमल सा माल तो कभीकभार ही मिलता है. तेरे ऊपर केस नहीं डालूंगा, चिंता मत कर. तू किसी से बात मत करना. अगर किसी से बात की तो तेरे पति को जान से मरवा दूंगा…’’

इंस्पैक्टर ने राज कौर के जबरदस्ती कपड़े उतार फेंके और अपनी हवस की आग बुझाने की कोशिश की, पर गुत्थमगुत्था से आगे न जा सका और शांत हो कर अपने कमरे में चला गया.

राज कौर अपनी इज्जत के टुकड़ेटुकड़े समेटते हुए प्रीतम सिंह के पास जा कर रोए जा रही थी.

प्रीतम सिंह को पता चल गया था, पर क्या किया जा सकता था.

अगले दिन प्रीतम सिंह हवालात में था. राज कौर को डराधमका कर छोड़ दिया गया.

इंस्पैक्टर ने राज कौर से कहा, ‘‘अगर कोई भी बात जबान से बाहर निकाली तो तेरे पति को जेल में ही मरवा दूंगा. उस पर केस बनवा कर मार दूंगा. गांव में, घरबाहर किसी से कोई बात मत करना, अगर इस की जिंदगी चाहती?है तो… गांव में जा कर कहना कि इस से अफीम पकड़ी गई थी और पुलिस ने केस डाल कर जेल भेज दिया है.’’

राज कौर पहले ही इंस्पैक्टर की गुंडागर्दी व दहशत को जानती थी. उस ने कई लड़कियों की इज्जत से खिलवाड़ किया था और कई जायजनाजायज कत्ल करवाए थे.

राज कौर ने गांव में जा कर प्रीतम सिंह के मातापिता और भाईबहनों को बताया कि प्रीतम सिंह से अफीम पकड़ी गई?है. वह जेल में बंद है.

प्रीतम सिंह के भाइयों ने उस की जमानत करवा ली. खैर, केस के दौरान उस को कुछ महीनों की सजा हो गई. वह सजा काट कर आ गया था.

प्रीतम सिंह और राज कौर दोनों घर के कमरे में बैठे चुपचाप उस दिन को सोच कर रो रहे थे.

राज कौर पढ़ाई में बहुत होशियार थी. खूबसूरत जवान भरे बदन वाली. गरीब घर की होने के चलते वह मुश्किल से 10वीं जमात तक ही पढ़ पाई थी. मैट्रिक उस ने फर्स्ट डिविजन में पास की थी.

प्रीतम सिंह ने भी बारहवीं फर्स्ट डिविजन से पास की थी. बहुत पढ़नेलिखने में होशियार था, पर घर की तंगहाली के चलते वह आगे की पढ़ाई नहीं कर पाया था.

प्रीतम सिंह अपने इलाके में घोड़े वाला रेहड़ा चलाता था. यह पुश्तैनी धंधा था उस का. वह सरल स्वभाव का लड़का था.

रात को सोते समय राज कौर ने मायूसी में प्रीतम सिंह को तसल्ली देते  हुए कहा, ‘‘मैं ने कहा जी, आप दिल छोटा मत करें. जो होना था हो गया, कौन हमारी सुनेगा?

‘‘मैं चाहती तो खुदकुशी कर सकती थी. केवल अंजू के लिए जिंदा हूं. देखो, मैं बिलकुल पवित्र हूं, पवित्र रहूंगी. पर मैं पवित्र तब ही हो सकती हूं. अगर आप मेरा एक काम करेंगे तो…’’

प्रीतम सिंह ने कहा, ‘‘राज कौर, तू बेकुसूर है. मेरे लिए तो तू पवित्र ही है. तेरा बड़ा जिगरा है, अगर और कोई लड़की होती तो कब की खुदकुशी कर गई होती, पर तेरा जिगरा देख कर मुझे और ताकत मिली है. तू मुझे बता, मैं तेरी हर एक बात मानूंगा.’’

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‘‘सरदारजी, मुझे केवल मक्खन (इंस्पैक्टर) का सिर चाहिए. जैसे भी हो कैसे भी. कोई ऐसी जुगत बनाई जाए कि हींग लगे न फिटकरी… मक्खन हम से ज्यादा नहीं पढ़ालिखा, वह सिपाही से इंस्पैक्टर बना है, बेकुसूर लड़कों को मारमार कर.’’

मैं आप को एक तरकीब बताती हूं. आप जेल में रहें. सारे गांव को पता था कि आप बेकुसूर हैं, पर किया क्या जा सकता था? मक्खन सिंह से सारा इलाका डरता है. उस की ओर कोई मुंह नहीं कर सकता.’’

दिन बीतते गए. प्रीतम सिंह ने सारा भेद अपने दिल में ही रखा. किसी से जिक्र नहीं किया.

राज कौर और प्रीतम सिंह ने कई दिनों के बाद एक योजना बना ली. इस योजना को अंजाम देने के लिए रास्ते ढूंढ़ने शुरू कर दिए.

मक्खन सिंह उन के गांव से तकरीबन 15 किलोमीटर दूर वाले गांव का रहने वाला था. वह हर शनिवार की शाम को गांव आता था और सुबह तड़के ही अकेला सैर करने जाता था. मक्खन सिंह के घरपरिवार के बारे में सारी जानकारी 1-2 महीने में जमा कर ली थी.

प्रीतम सिंह ने अब एक ईंटभट्ठे से ईंटें लाने का काम शुरू कर लिया था. वह भट्ठे के और्डर के मुताबिक ही ईंटें गांवगांव पहुंचाता था.

मक्खन सिंह के गांव की ओर भी ईंटें छोड़ने जाना शुरू कर दिया था. उस ने मक्खन सिंह के आनेजाने की पूरी जानकारी हासिल कर ली थी. उस ने देखा कि वह हर शनिवार की रात को घर आता है और रविवार को दोपहर को जाता है. सुबह 5 बजे के आसपास अकेला ही सैर करता?है.

इस तरह कुछ महीने बीत गए. एक दिन प्रीतम सिंह ने पूरी जानकारी रखी. उस ने पता किया कि आज शनिवार की शाम को मक्खन सिंह घर आ चुका है. वह सुबह सैर पर जाएगा.

प्रीतम सिंह रात को ही रेहड़े पर ईंटें लाद कर घर ले आया. रात में उन दोनों ने रेहड़े के ऊपर लादी हुई ईंटों के बीच में से ईंटें इधरउधर कर के खाली जगह बना ली. 1-2 खाली बोरे तह लगा कर रख दिए और एक लंबी तीखी तलवार नीचे छिपा कर रख ली.

यह तलवार प्रीतम सिंह ने स्पैशल बनवाई थी. तलवार इतनी तेज धार वाली थी कि पेड़ के तने में मारे, तो एक बार में पेड़ को काट दे.

वे दोनों सुबह 4 बजे रेहड़े पर बैठ कर घर से निकल पड़े. पौने 5 बजे के आसपास मक्खन सिंह की कोठी से थोड़ी दूर जा कर अंधेरे में रेहड़ा खड़ा कर दिया और प्रीतम सिंह घोड़े की लगाम कसने लगा.

पूरे 5 बजे मक्खन सिंह अकेला ही घर से बाहर निकला. चारों ओर सन्नाटा पसरा हुआ था. हाथ में स्टिक व सफेद कुरतापाजामा पहने मक्खन सिंह अपनी मस्त चाल में आराम से चलता जा  रहा था.

प्रीतम सिंह और राज कौर ने हिम्मत समेट कर रेहड़ा चला लिया. मक्खन सिंह अपनी मस्त चाल में चलता जा रहा था. गांव के बाहर थोड़ी दूर जा कर प्रीतम सिंह ने तलवार अपने दाएं हाथ की मुट्ठी में मजबूती से पकड़ ली.

राज कौर हिम्मत के साथ रेहड़े में बैठी रही. आहिस्ता से रेहड़ा नजदीक करते हुए प्रीतम सिंह ने ललकारा, ‘‘ओए, पापी तेरी ऐसी की तैसी…’’

जब मक्खन सिंह ने उस की ओर देखा, तो प्रीतम सिंह ने पूरी जान लगा कर इतनी तेजी से तलवार उस की गरदन पर दे मारी कि उस का सिर कट कर दूर जा पड़ा. उस की चीख भी निकलने नहीं दी.

प्रीतम सिंह ने जल्दीजल्दी उस का सिर बोरी में लपेट कर उठा लिया और ईंटों के बीच खाली जगह पर रख लिया.

रेहड़ा आसमान से बातें करने लगा. किसी को कोई खबर तक नहीं लगी.  5-6 किलोमीटर दूर जा कर नहर के किनारे राज कौर ने मक्खन सिंह का सिर निकाला और तलवार से उस के सिर के छोटेछोटे टुकड़े कर के नहर में फेंक दिए. इस के बाद वे दोनों घर आ गए.

राज कौर घर के अंदर चली गई और प्रीतम सिंह ईंटों का रेहड़ा ले कर किसी के घर पहुंचाने चला गया.

इलाके में खबर फैल गई कि मक्खन सिंह का कोई सिर काट कर ले गया है. उस के सिर काटने की खबर सुन कर इलाके में दहशत हो गई.

खुद पुलिस ने कोई बड़ी कार्यवाही नहीं की. केवल कानूनी दिखावे के लिए ही सारी कार्यवाही की गई.

पुलिस ने बहुत भागदौड़ की, पर कोई खोजखबर हाथ नहीं लगी. लोगों ने चैन की सांस ली.

कई लोग कहते सुने गए कि किसी मां के बहादुर बेटे ने यह काम किया है. इलाके का कलंक खत्म कर दिया. एक महाराक्षस का खात्मा कर दिया है.

शाम को प्रीतम सिंह रोजमर्रा की तरह रेहड़ा ले कर घर आता है. राज कौर नईनवेली दुलहन सी सजीसंवरी सी काम कर रही थी. उस के दिल में कोई डर नहीं था. अब बेशक उस को मौत भी आ जाए, कोई परवाह नहीं. बेशक फांसी ही क्यों न हो जाए, अब उस के चेहरे पर अलग किस्म का नूर था.

प्रीतम सिंह नहाधो कर अच्छे कपड़े पहन कर कमरे में दाखिल हुआ, तो राज कौर ने शरमा कर प्रीतम सिंह के गले में अपनी बांहें डालते हुए कहा, ‘‘सरदारजी, मैं पवित्र हूं.’’

प्रीतम सिंह ने राज कौर को जोर से छाती से लगा लिया.

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