‘साड्डा चिडि़यां दा चंबा वे… बाबुल, असां उड़ जाना…’ यानी हे पिता, हम लड़कियों का अपने पिता के घर में रहना चिडि़यों के घोंसले में पल रहे नन्हे चूजों के समान होता है, जो जल्द ही बड़े हो कर उड़ जाते हैं. हे पिता, हमें तो बिछुड़ जाना है.
लोग कहते हैं कि हमारे लोकगीतों में जिंदगी के दुखदर्द की सचाई बयान होती है, मगर गीता के लिए इस लोकगीत का मतलब गलत साबित हुआ था. आसपास की सभी लड़कियां ससुराल जा कर अपनेअपने परिवार में रम गई थीं, मगर गीता ने यों ही सारी जिंदगी निकाल दी. इस तनहा जिंदगी का बोझ ढोतेढोते गीता के सारे एहसास मर चुके थे. कोई अरमान नहीं था. अपनी अधेड़ उम्र तक उसे अपने सपनों के राजकुमार का इंतजार रहा, मगर अब तो उस के बालों में पूरी सफेदी उतर चुकी थी. आसपड़ोस के लोगों के सहारे ही अब उस के दिन कट रहे थे.
एक वक्त था, जब इसी हवेली में गीता का हंसताखेलता भरापूरा परिवार था. अब तो यहां केवल गीता है और उस की पकी हुई गम से भरी जवानी व लगातार खंडहर होती जा रही यह पुरानी हवेली. गीता की कहानी इसी खस्ताहाल हवेली से शुरू होती है और उस का खात्मा भी यहीं होना तय है.
‘साड्डी लंबी उडारी वे… बाबुल, असां उड़ जाना…’ यानी हमारी उड़ान बहुत लंबी है. ससुराल का घर बहुत दूर लगता है, चाहे वह कुछ कोस की दूरी पर ही क्यों न हो. हे पिता, हमें बिछुड़ जाना है.
गीता की शादी बहुत धूमधाम से हुई थी. बड़ेबड़े पंडाल लगाए गए थे. हजारों की तादाद में घराती और बराती इकट्ठा हुए थे. ऐसेऐसे पकवान बनाए गए थे, जो फाइवस्टार होटलों में भी कभी न बने हों. 10 किस्म के पुलाव थे, 5 किस्म के चिकन, बेहिसाब फलजूस, विलायती शराब की हजारों बोतलें पीपी कर लोग सारी रात झूमते रहे थे.
एक हफ्ते तक समारोह चलता रहा था. दनादन फोटो और वीडियो रीलें बनी थीं, जिन में गर्व से इतराते जवान दूल्हे और शरमाई दुलहन के साथ सभी रिश्तेदार खुशी से चिपक कर खड़े थे. गीता को तब पता नहीं था कि एक साल के अंदर ही उस की बदनामी होने वाली है.
‘कित्ती रोरो तैयारी वे… बाबुल, असां उड़ जाना…’ यानी शादी होने के बाद मैं ने बिलखबिलख कर ससुराल जाने की तैयारी कर ली है. हर किसी की आंखों में आंसू हैं. हे पिता, हमें बिछुड़ जाना है.
गीता का चेहरा शर्म से लाल सुर्ख हुआ जा रहा था और वह अंदर से इतनी ज्यादा खुश थी कि एक बहुत बड़े रईस परिवार से अब जुड़ गई थी. 2 महीने बाद उसे अपने पति के साथ लंदन जाना था. लड़के के परिवार वाले भी बेहद खुश दिख रहे थे. दूल्हा बड़ी शान से एक सजे हुए विशाल हाथी पर बैठ कर आया था. फूलों से लदी एक काली सुंदर चमचमाती लंबी लिमोजिन कार गीता की डोली ले जाने के लिए सजीसंवरी उस के पीछेपीछे आई थी.
लड़के का पिता अपने इलाके का बहुत बड़ा जमींदार था. उस ने भारी रोबदार लहजे में गीता के पिता से कहा था, ‘मेरे लिए कोई खास माने नहीं रखता कि तुम अपनी बेटी को दहेज में क्या देते हो. हमारे पास सबकुछ है. हमारी बरात का स्वागत कुछ ऐसे तरीके से कीजिएगा कि सदियों तक लोग याद रखें कि चौधरी धर्मदेव के बेटे की शादी में गए थे.’ लोग तो उस शानदार शादी को आसानी से भूल गए थे. आजकल तकरीबन सभी शादियां ऐसी ही सजधज से होती हैं. पर गीता को कुछ नहीं भूला था. उस के दूल्हे ने पहली रात को उसे हजारों सब्जबाग दिखाए थे.
शादी के बाद एक महीना कैसे बीता, पता ही नहीं चला. गीता के तो पैर जमीन पर नहीं पड़ते थे. वह पगलाई सी उस रस के लोभी भंवरे के साथ भारत के हर हिल स्टेशन पर घूमती रही, शादी को बिना रजिस्टर कराए. गीता के पति को एक दिन अचानक लंदन जाना पड़ा. कुछ महीनों बाद तक यह सारा माजरा गीता के परिवार वालों की समझ में नहीं आया. गीता तो कुछ ज्यादा ही हवा में थी कि विदेश जा कर यह कोर्स करेगी, वह काम करेगी.
कुछ दिनों तक गीता मायके में रही. ससुराल से कोई खोजखबर नहीं मिल पा रही थी. गीता का पति जो फोन नंबर उसे दे गया था, वह फर्जी था. लोगों को दो और दो जोड़ कर पांच बनाते देर नहीं लगती. अखबारों को भनक लगी, तो उन्होंने मिर्चमसाला लगा कर गीता के नाम पर बहुत कीचड़ उछाला. पत्रकारों को भी मौका मिल गया था अपनी भड़ास निकालने का. कहने लगे कि लालच के मारे ये
मिडिल क्लास लोग बिना कोई पूछताछ किए विदेशी दूल्हों के साथ अपनी लड़कियां बांध देते हैं. ये एनआरआई रईस 2-3 महीने जवान लड़की का जिस्मानी शोषण कर के फुर्र हो जाते हैं, फिर सारी उम्र ये लड़कियां विधवाओं से भी गईगुजरी जिंदगी बसर करती हैं. आने वाले समय में जिंदगी ने जो कड़वे अनुभव गीता को दिए थे, वे उस के लिए पलपल मौत की तरफ ले जाने वाले कदम थे. उस के मातापिता ने शादी में 25 लाख रुपए खर्च कर दिए थे और क्याकुछ नहीं दिया था. एक बड़ी कार भी उसे दहेज में दी थी.
खैर, 2-3 महीने बाद एक नया नाटक सामने आया. गीता के बैंक खाते में पति ने कुछ पैसे जमा किए. अब वह उसे हर महीने कुछ रुपए भेजने लगा था, ताकि पैसे के लिए ही सही गीता उस के खिलाफ कोई होहल्ला न करे. गीता के पिता ने कुछ रिश्तेदारों को साथ ले कर उस की ससुराल जा कर खोजबीन की.
पता चला कि लड़का तो लंदन में पहले से ही शादीशुदा है. यह बात उस ने अपने मांबाप से भी छिपाई थी. कुछ अरसा पहले उस ने अपनी मकान मालकिन से ही शादी कर ली थी, ताकि वहां का परमानैंट वीजा लग जाए. बाद में उस से पीछा छुड़वा कर वह गीता से शादी करने से 7 महीने पहले एक और रूसी गोरी मेम से कोर्ट में शादी रचा चुका था. गीता के साथ तो उस ने अपने मांबाप को खुश रखने के लिए शादी की थी, ताकि वह सारी उम्र उन की ही सेवा में लगी रहे.
इस मामले में गीता के घर वाले उस की ससुराल वालों को फंसा सकते थे, मगर यह इतना आसान नहीं था. गीता के मांबाप ने उस के ससुराल पक्ष पर सामाजिक दबाव बढ़ाना शुरू किया और अदालत का डर दिखाया, तो वे 5 लाख रुपए दे कर गीता से पीछा छुड़ाने का औफर ले कर आ गए. गीता की शादी भारत में रजिस्टर नहीं हुई थी और इंगलैंड में उस की कोई कानूनी मंजूरी नहीं थी, इसलिए गीता के घर वाले उस के पति का कुछ नहीं बिगाड़ सकते थे, जिस ने गीता के साथ यह घिनौना मजाक किया था.
गीता के ससुराल वाले चाहते थे कि एक महीने तक उन के बेटे को जो गीता ने सैक्स सर्विस दी थी, उस का बिल 5 लाख रुपए बनता है. वह ले कर गीता दूसरी शादी करने को आजाद थी. वे बाकायदा तलाक दिलाने का वादा कर रहे थे. अब गीता का पति उन के हाथ आने वाला नहीं था.
तब गीता की ससुराल वालों ने उस के परिवार को एक दूसरी योजना बताई. गीता का देवर अभी कुंआरा ही था. उन्होंने सुझाया कि गीता चाहे तो उस के साथ शादी कर सकती है. ऐसा खासतौर पर तब किया जाता है, जब पति की मौत हो जाए. गीता की मरजी के बिना ही उस की जिंदगी को ले कर अजीबअजीब किस्म के करार किए जा रहे थे और वह हर बार मना कर देती. कोई उस के दिल के भीतर टटोल कर नहीं देख रहा था कि उसे क्या चाहिए.
फिर कुछ महीनों बाद गीता की ससुराल वालों का यह प्रस्ताव आया कि गीता के परिवार वाले 10 लाख रुपए का इंतजाम करें और गीता को उस के पति के पास लंदन भेज दें. शायद गीता के पति का मन अपनी विदेशी मेम से भर चुका था और वह गीता को बीवी बना कर रखने को तैयार हो गया था. गीता के सामने हर बार इतने अटपटे प्रस्ताव रखे जाते थे कि उस का खून खौल उठता था. शुरू में तो गीता को लगता था कि उस के परिवार वाले उस के लिए कितने चिंतित हैं और वे उस की पटरी से उतरी हुई गाड़ी को ठीक चढ़ा ही देंगे, मगर फिर उन की पिछड़ी सोच पर गीता को खीज भरी झुंझलाहट होने लगी थी.
गीता अपने दुखों का पक्का इलाज चाहती थी. समझौते वाली जिंदगी उसे पसंद नहीं थी. वह हाड़मांस की बनी एक औरत थी और इस तरह का कोई समझौता उस की खराब शादी को ठीक नहीं कर सकता था. अब गीता के मांबाप के पास इतना पैसा नहीं था कि वे उसे लंदन भेज सकें, ताकि गीता उस आदमी को पा सके. मगर पिछले 3 साल से वह भारत नहीं आया था और ऐसा कोई कानून नहीं था कि गीता के परिवार वाले उसे कोई कानूनी नोटिस भिजवा सकें.
गीता के मांबाप ने कोर्ट में केस दायर कर दिया था. वे अपने 25 लाख रुपए वापस चाहते थे, जो उन्होंने गीता की शादी में खर्च किए थे. गीता के लिए तो यह सब एक खौफनाक सपने की तरह था. वह पैसा नहीं चाहती थी. वह अपने बेवफा पति को भी वापस नहीं चाहती थी.
गीता क्या चाहती थी, यह उस की कच्ची समझ में तब नहीं आ रहा था. हर कोई अपनी लड़ाई लड़ने में मसरूफ था. किसी ने यह नहीं सोचा था कि गीता की उम्र निकलती जा रही है, उस के मांबाप बूढ़े होते जा रहे हैं. कोई सगा भाई भी नहीं है, जो बुढ़ापे में गीता की देखभाल करेगा.
अदालत के केस में फंसे गीता के पिता की सारी जमापूंजी खत्म हो गई. गीता की ससुराल वालों के पास खूब पैसा था. केस लटकता जा रहा था और एक दिन गीता के पिता ने तंग आ कर खेत में पेड़ से लटक कर जान दे दी. मां ने 3-4 साल तक गीता के साथ कचहरी की तारीखें भुगतीं, मगर एक दिन वे भी नहीं रहीं.
अब अपनी लड़ाई लड़ने को अकेली रह गई थी अधेड़ गीता. खेतों से जो पैदावार आती थी, वह इतनी ज्यादा नहीं थी कि लालची वकीलों को मोटी फीस दी जा सके. थकहार कर गीता ने कचहरी जाना ही छोड़ दिया. वह अपनी ससुराल वालों की दी गई हर पेशकश या समझौते को मना करती रही. एकएक कर के गीता के साथ के सभी लोग मरखप गए.
हवेली का रंगरूप बिगड़ता गया. अब इस कसबे में नए बाशिंदे आ कर बसने लगे थे. सरकार ने जब इस क्षेत्र को स्पैशल इकोनौमिक जोन बनाया, तो आसपास के खेतों में कारखाने खुलने लगे. उन में काम करने वालों के लिए गीता की हवेली सब से सस्ती जगह थी. गीता किराए के सहारे ही हवेली का थोड़ाबहुत रखरखाव कर रही थी. अपने बारे में तो उस ने कब से सोचना छोड़ दिया था.
ऐसा लग रहा था कि गीता और हवेली में एक प्रतियोगिता चल रही थी कि कौन पहले मिट्टी में मिलेगी.