Best Hindi Story: सहयात्री – क्या वह अजनबी बन पाया कनिका का सहयात्री

Best Hindi Story, लेखिका – अर्विना गहलोत

शामको 1 नंबर प्लेटफार्म की बैंच पर बैठी कनिका गाड़ी आने का इंतजार कर रही थी. तभी कंधे पर बैग टांगे एक हमउम्र लड़का बैंच पर आ कर बैठते हुए बोला, ‘‘क्षमा करें. लगता है आज गाड़ी लेट हो गई है.’’

न बोलना चाहते हुए भी कनिका ने हां में सिर हिला उस की तरफ देखा. लड़का देखने में सुंदर था. उसे भी अपनी ओर देखते हुए कनिका ने अपना ध्यान दूसरी ओर से आ रही गाड़ी को देखने में लगा दिया. उन के बीच फिर खामोशी पसर गई. इस बीच कई ट्रेनें गुजर गई. जैसे ही उन की टे्रन की घोषणा हुई कनिका उठ खड़ी हुई. गाड़ी प्लेटफार्ट पर आ कर लगी तो वह चढ़ने को हुई कि अचानक उस की चप्पल टूट गई और पैर पायदान से फिसल प्लेटफार्म के नीचे चला गया.

कनिका के पीछे खड़े उसी अनजान लड़के ने बिना देर किए झटके से उस का पैर निकाला और फिर सहारा दे कर उठाया. वह चल नहीं पा रही थी. उस ने कहा, ‘‘यदि आप को बुरा न लगे तो मेरे कंधे का सहारा ले सकती हैं… ट्रेन छूटने ही वाली है.’’

कनिका ने हां में सिर हिलाया तो अजनबी ने उसे ट्रेन में सहारा दे चढ़ा कर सीट पर बैठा दिया और खुद भी सामने की सीट पर बैठ गया. तभी ट्रेन चल दी.

उस ने अपना नाम पूरब बता कनिका से पूछा, ‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘कनिका.’’

‘‘आप को कहां जाना है?’’

‘‘अहमदाबाद.’’

‘‘क्या करती हैं?’’

‘‘मैं मैनेजमैंट की पढ़ाई कर रही हूं. वहां पीजी में रहती हूं. आप को कहां जाना है?’’

‘‘मैं भी अहमदाबाद ही जा रहा हूं.’’

‘‘क्या करते हैं वहां?’’

‘‘भाई से मिलने जा रहा हूं.’’

तभी अचानक कंपार्टमैंट में 5 लोग घुसे और फिर आपस में एकदूसरे की तरफ देख कर मुसकराते हुए 3 लोग कनिका की बगल में बैठ गए. उन के मुंह से आती शराब की दुर्गंध से कनिका का सांस लेना मुश्किल होने लगा. 2 लोग सामने पूरब की साइड में बैठ गए. उन की भाषा अश्लील थी.

पूरब ने स्थिति को भांप कनिका से कहा, ‘‘डार्लिंग, तुम्हारे पैर में चोट है. तुम इधर आ जाओ… ऊपर वाली बर्थ पर लेट जाओ… बारबार आनेजाने वालों से तुम्हें परेशानी होगी.’’

कनिका स्थिति समझ पूरब की हर बात किसी आज्ञाकारी शिष्य की तरह माने जा रही थी. पूरब ने सहारा दिया तो वह ऊपर की बर्थ पर लेट गई. इधर पैर में चोट से दर्द भी हो रहा था.

हलकी सी कराहट सुन पूरब ने मूव की ट्यूब कनिका की तरफ बढ़ाई तो उस के मुंह

से बरबस निकल गया, ‘‘ओह आप कितने

अच्छे हैं.’’

उन लोगों ने पूरब को कनिका की इस तरह सेवा करते देख फिर कोई कमैंट नहीं कसा और अगले स्टेशन पर सभी उतर गए.

कनिका ने चैन की सांस ली. पूरब तो जैसे उस की ढाल ही बन गया था.

कनिका ने कहा, ‘‘पूरब, आज तुम न होते तो मेरा क्या होता?’’ मैं

किन शब्दों में तुम्हारा धन्यवाद करूं… आज जो भी तुम ने मेरे लिए किया शुक्रिया शब्द उस के सामने छोटा पड़ रहा है.

‘‘ओह कनिका मेरी जगह कोई भी होता तो यही करता.’’

बातें करतेकरते अहमदाबाद आ गया. कनिका ने अपने बैग में रखीं स्लीपर निकाल कर पहननी चाहीं, मगर सूजन की वजह से पहन नहीं पा रही थी. पूरब ने देखा तो झट से अपनी स्लीपर निकाल कर दे दीं. कनिका ने पहन लीं.

पूरब ने कनिका का बैग अपने कंधे पर टांग लिया. सहारा दे कर ट्रेन से उतारा और फिर बोला, ‘‘मैं तुम्हें पीजी तक छोड़ देता हूं.’’

‘‘नहीं, मैं चली जाऊंगी.’’

‘‘कैसे जाओगी? अपने पैर की हालत देखी है? किसी नर्सिंग होम में दिखा लेते हैं. फिर तुम्हें छोड़ कर मैं भैया के पास चला जाऊंगा. आओ टैक्सी में बैठो.’’

कनिका के टैक्सी में बैठने पर पूरब ने टैक्सी वाले से कहा, ‘‘भैया, यहां जो भी पास में नर्सिंगहोम हो वहां ले चलो.’’

टैक्सी वाले ने कुछ ही देर में एक नर्सिंगहोम के सामने गाड़ी रोक दी.

डाक्टर को दिखाया तो उन्होंने कहा, ‘‘ज्यादा नहीं लगी है. हलकी मोच है. आराम करने से ठीक हो जाएगी. दवा लिख दी है लेने से आराम आ जाएगा.’’

नर्सिंगहोम से निकल कर दोनों टैक्सी में बैठ गए. कनिका ने अपने पीजी का पता बता दिया. टैक्सी सीधा पीजी के पास रुकी. पूरब ने कनिका को उस के कमरे तक पहुंचाया. फिर जाने लगा तो कनिका ने कहा, ‘‘बैठिए, कौफी पी कर जाइएगा.’’

‘‘अरे नहीं… मुझे देर हो जाएगी तो भैया ंिंचतित होंगे. कौफी फिर कभी पी लूंगा.’’

जाते हुए पूरब ने हाथ हिलाया तो कनिका ने भी जवाब में हाथ हिलाया और फिर दरवाजे के पास आ कर उसे जाते हुए देखती रही.

थोड़ी देर बाद बिस्तर पर लेटी तो पूरब का चेहरा आंखों के आगे घूम गया… पलभर को पूरे शरीर में सिहरन सी दौड़ गई, धड़कनें तेज हो गईं.

तभी कौल बैल बजी.

इस समय कौन हो सकता है? सोच कनिका फिर उठी और दरवाजा खोला तो सामने पूरब खड़ा था.

‘‘क्या कुछ रह गया था?’’ कनिका ने

पूछा, ‘‘हां… जल्दबाजी में मोबाइल यहीं भूल गया था.’’

‘‘अरे, मैं तो भूल ही गई कि मेरे पैरों में तुम्हारी स्लीपर हैं. इन्हें भी लेते जाना,’’ कह कौफी बनाने चली गई. अंदर जा कर कौफी मेकर से झट से 2 कप कौफी बना लाई, कनिका पूरब को कनखियों से देख रही थी.

पूरब फोन पर भाई से बातें करने में व्यस्त था. 1 कप पूरब की तरफ बढ़ाया तो पूरब की उंगलियां उस की उंगलियों से छू गईं. लगाजैसे एक तरंग सी दौड़ गई शरीर में. कनिका पूरब के सामने बैठ गई, दोनों खामोशी से कौफी पीने लगे.

कौफी खत्म होते ही पूरब जाने के लिए उठा और बोला, ‘‘कनिका, मुझे तुम्हारा मोबाइल नंबर मिल सकता है?’’

अब तक विश्वास अपनी जड़े जमाने

लगा था. अत: कनिका ने अपना मोबाइल नंबर

दे दिया.

पूरब फिर मिलेंगे कह कर चला गया. कनिका वापस बिस्तर पर आ कर कटे वृक्ष की तरह ढह गई.

खाना खाने का मन नहीं था. पीजी चलाने वाली आंटी को भी फोन पर ही अपने आने की खबर दी, साथ ही खाना खाने के लिए भी मना कर दिया.

लेटेलेटे कनिका को कब नींद आ गई,

पता ही नहीं चला. सुबह जब सूर्य की किरणें आंखों पर पड़ीं तो आंखें खोल घड़ी की तरफ देखा, 8 बज रहे थे. फिर बड़बड़ाते हुए तुरंत

उठ खड़ी हुई कि आज तो क्लास मिस हो गई. जल्दी से तैयार हो नाश्ता कर कालेज के लिए निकल गई.

एक सप्ताह कब बीत गया पता ही नहीं चला. आज कालेज की छुट्टी थी. कनिका को

बैठेबैठे पूरब का खयाल आया कि कह रहा था फोन करेगा, लेकिन उस का कोई फोन नहीं आया. एक बार मन किया खुद ही कर ले. फिर खयाल को झटक दिया, लेकिन मन आज किसी काम में नहीं लग रहा था. किताब ले कर कुछ देर यों ही पन्ने पलटती रही, रहरह कर न जाने क्यों उसे पूरब का खयाल आ रहा था. अनमनी हो खिड़की से बाहर देखने लगी.

तभी अचानक फोन बजा. देखा तो पूरब का था. कनिका ने कांपती आवाज में हैलो कहा.

‘‘कैसी हो कनिका?’’ पूरब ने पूछा.

‘‘मैं ठीक हूं, तुम कैसे हो? तुम ने कोई फोन नहीं किया?’’

पूरब ने हंसते हुए कहा, ‘‘मैं भाई के साथ व्यवसाय में व्यस्त था, हमारा हीरों का व्यापार है.’’

तुम तैयार हो जाओ मैं लेने आ रहा हूं.

कनिका के तो जैसे पंख लग गए. पहनने के लिए एक प्यारी पिंक कलर की ड्रैस निकाली. उसे पहन कानों में मैचिंग इयरिंग्स पहन आईने में निहारा तो आज एक अलग ही कनिका नजर आई. बाहर बाइक के हौर्न की आवाज सुन कर कनिका जल्दी से बाहर भागी. पूरब हलके नीले रंग की शर्ट बहुत फब रहा था. कनिका सम्मोहित सी बाइक पर बैठ गई.

पूरब ने कहा, ‘‘बहुत सुंदर लग रही हो.’’

सुन कर कनिका का दिल रोमांचित हो उठा. फिर पूछा, ‘‘कहां ले चल रहे हो?’’

‘‘कौफी हाउस चलते हैं… वहीं बैठ कर बातें करेंगे,’’ और फिर बाइक हवा से बातें करने लगी.

कनिका का दुपट्टा हवा से पूरब के चेहरे पर गिरा तो भीनी सी खुशबू से पूरब का दिल जोरजोर से धड़कने लगा.

कनिका ने अपना आंचल समेट लिया.

‘‘पूरब, एक बात कहूं… कुछ देर से एक गाड़ी हमारे पीछे आ रही है. ऐसा लग रहा है जैसे कोई हमें फौलो कर रहा है.’’

‘‘तुम्हारा वहम है… उन्हें भी इधर ही

जाना होगा.’’

‘‘अगर इधर ही जाना है तो हमारे पीछे

ही क्यों चल रहे हैं… आगे भी निकल कर जा सकते हैं.’’

‘‘ओह, शंका मत करो… देखो वह काफी हाउस आ गया. तुम टेबल नंबर 4 पर बैठो. मैं बाइक पार्क कर के आता हूं.’’

कनिका अंदर जा कर बैठ गई.

पूरब जल्दी लौट आया. बोला, ‘‘कनिका क्या लोगी? संकोच मत करो… अब तो हम मिलते ही रहेंगे.’’

‘‘पूरब ऐसी बात नहीं है. मैं फिर कभी… आज और्डर तुम ही कर दो.’’

वेटर को बुला पूरब ने 2 कौफी का और्डर दे दिया. कुछ ही पलों में कौफी आ गई.

कौफी पीने के बाद कनिका ने घड़ी की तरफ देख पूरब से कहा, ‘‘अब हमें चलना चाहिए.’’

‘‘ठीक है मैं तुम्हें छोड़ कर औफिस चला जाऊंगा. मेरी एक मीटिंग है.’’

पूरब कनिका को छोड़ कर अपने औफिस पहुंचा. भाई सौरभ के

कैबिन में पहुंचा तो उन की त्योरियां चढ़ी हुई थीं. पूछा, ‘‘पूरब कहां थे? क्लाइंट तुम्हारा इंतजार कर चला गया. तुम कहां किस के साथ घूम रहे थे… मुझे सब साफसाफ बताओ.’’

अपनी एक दोस्त कनिका के साथ था… आप को बताया तो था.’’

‘‘मुझे तुम्हारा इन साधारण परिवार के लोगों से मिलनाजुलना पसंद नहीं है… और फिर बिजनैस में ऐसे काम नहीं होता है… अब तुम घर जाओ और फोन पर क्लाइंट से अगली मीटिंग फिक्स करो.’’

‘‘जी भैया.’’

कनिका और पूरब की दोस्ती को 6 महीने बीत गए. मुलाकातें बढ़ती गईं. अब दोनों एकदूसरे के काफी नजदीक आ गए थे. एक दिन दोनों घूमने के  लिए निकले. तभी पास से एक बाइक पर सवार 3 युवक बगल से गुजरे कि अचानक सनसनाती हुई गोली चली जो कनिका की बांह को छूती हुई पूरब की बांह में जा धंसी.

कनिका चीखी, ‘‘गाड़ी रोको.’’

पूरब ने गाड़ी रोक दी. बांह से रक्त की धारा बहने लगी. कनिका घबरा गई. पूरब को सहारा दे कर वहीं सड़क के किनारे बांह पर दुपट्टा बांध दिया और फिर मदद के लिए

सड़क पर हाथ दिखा गाड़ी रोकने का प्रयास

करने लगी. कोई रुकने को तैयार नहीं. तभी कनिका को खयाल आया. उस ने 100 नंबर पर फोन किया. जल्दी पुलिस की गाड़ी पहुंच गई. सब की मदद से पूरब को अस्पताल में भरती

करा पूरब के फोन से उस के भाई को फोन पर सूचना दे दी.

डाक्टर ने कहा कि काफी खून बह चुका है. खून की जरूरत है. कनिका अपना खून देने के लिए तैयार हो गई. ब्लड ग्रुप चैक कराया तो उस का ब्लड गु्रप मैच कर गया. अत: उस का खून ले लिया गया.

तभी बदहवास से पूरब के भाई ने वहां पहुंच डाक्टर से कहा, ‘‘किसी भी हालत में मेरे भाई को बचा लीजिए.’’

‘‘आप को इस लड़की का धन्यवाद करना चाहिए जो सही समय पर अस्पताल ले आई… अब ये खतरे से बाहर हैं.’’

सौरभ की आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे. जैसे ही पूरब को होश आया सौरभ फफकफफक कर रो पड़ा, ‘‘भाई, मुझे माफ कर दे… मैं पैसे के मद में एक साधारण परिवार की लड़की को तुम्हारे साथ नहीं देख सका और उसे तुम्हारे रास्ते से हमेशा के लिए हटाना चाहा पर मैं भूल गया था कि पैसे से ऊपर इंसानियत भी कोई चीज है. कनिका मुझे माफ कर दो… पूरब ने तुम्हारे बारे में बताया था कि वह तुम्हें पसंद करता है. लेकिन मैं नहीं चाहता था कि साधारण परिवार की लड़की हमारे घर की बहू बने… आज तुम ने मेरे भाई की जान बचा कर मुझ पर बहुत बड़ा एहसान किया,’’ और फिर कनिका का हाथ पूरब के हाथों में दे कर बोला, ‘‘मैं जल्द ही तुम्हारे मातापिता से बात कर के दोनों की शादी की बात करता हूं.’’ कह बाहर निकल गया.

पूरब कनिका की ओर देख मुसकराते हुए बोला, ‘‘कनिका, अब हम सहयात्री से जीवनसाथी बनने जा रहे हैं.’’

यह सुन कनिका का चेहरा शर्म से लाल हो गया. Best Hindi Story

Hindi Story: छांव – विमला में कैसे आया इतना बड़ा बदलाव

Hindi Story: रविशंकर के रिटायर होने की तारीख जैसेजैसे पास आ रही थी, वैसेवैसे  विमला के मन की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. रविशंकर एक बड़े सरकारी ओहदे पर हैं, अब उन्हें हर महीने पैंशन की एक तयशुदा रकम मिलेगी. विमला की चिंता की वजह अपना मकान न होना था, क्योंकि रिटायर होते ही सरकारी मकान तो छोड़ना पड़ेगा.

रविशंकर अभी तक परिवार सहित सरकारी मकान में ही रहते आए हैं. एक बेटा और एक बेटी हैं. दोनों बच्चों को उन्होंने उच्चशिक्षा दिलाई है. शिक्षा पूरी करते ही बेटाबेटी अच्छी नौकरी की तलाश में विदेश चले गए. विदेश की आबोहवा दोनों को ऐसी लगी कि वे वहीं के स्थायी निवासी बन गए और दोनों अपनीअपनी गृहस्थी में खुश हैं.

सालों नौकरी करने के बावजूद रविशंकर अपना मकान नहीं खरीद पाए. गृहस्थी के तमाम झमेलों और सरकारी मकान के चलते वे घर खरीदने के विचार से लापरवाह रहे. अब विमला को एहसास हो रहा था कि वक्त रहते उन्होंने थोड़ी सी बचत कर के छोटा सा ही मकान खरीद लिया होता तो आज यह चिंता न होती. आज उन के पास इतनी जमापूंजी नहीं है कि वे कोई मकान खरीद सकें, क्योंकि दिल्ली में मकान की कीमतें अब आसमान छू रही हैं.

आज इतवार है, सुबह से ही विमला को चिड़चिड़ाहट हो रही है. ‘‘तुम चिंता क्यों करती हो, एक प्रौपर्टी डीलर से बात की है. मयूर विहार में एक जनता फ्लैट किराए के लिए उपलब्ध है, किराया भी कम है. आखिर, हम बूढ़ेबुढि़या को ही तो रहना है. हम दोनों के लिए जनता फ्लैट ही काफी है,’’ रविशंकर ने विमला को समझाते हुए कहा.

‘‘4 कमरों का फ्लैट छोड़ कर अब हम क्या एक कमरे के फ्लैट में जाएंगे? आप ने सोचा है कि इतना सामान छोटे से फ्लैट में कैसे आएगा, इतने सालों का जोड़ा हुआ सामान है.’’

‘‘हम दोनों की जरूरतें ही कितनी हैं? जरूरत का सामान ले चलेंगे, बाकी बेच देंगे. देखो विमला, घर का किराया निकालना, हमारीतुम्हारी दवाओं का खर्च, घर के दूसरे खर्चे सब हमें अब पैंशन से ही पूरे करने होंगे. ऐसे में किराए पर बड़ा फ्लैट लेना समझदारी नहीं है,’’ रविशंकर दोटूक शब्दों में पत्नी विमला से बोले.

‘‘बेटी से तो कुछ ले नहीं सकते, लेकिन बेटा तो विदेश में अच्छा कमाता है. आप उस से क्यों नहीं कुछ मदद के रूप में रुपए मांग लेते हैं जिस से हम बड़ा फ्लैट खरीद ही लें?’’ विमला धीरे से बोली.

‘‘भई, मैं किसी से कुछ नहीं मागूंगा. कभी उस ने यह पूछा है कि पापा, आप रिटायर हो जाओगे तो कहां रहोगे. आज तक उस ने अपनी कमाई का एक रुपया भी भेजा है,’’ रविशंकर पत्नी विमला पर बरस पड़े.

विमला खुद यह सचाई जानती थी. शादी के बाद बेटा जो विदेश गया तो उस ने कभी मुड़ कर भी उन की तरफ देखा नहीं. बस, कभीकभार त्योहार आदि पर सिर्फ फोन कर लेता है. विमला यह भी अच्छी तरह समझती थी कि उस के स्वाभिमानी पति कभी बेटी के आगे हाथ नहीं फैलाएंगे. विमला उन मातापिता को खुशहाल मानती है जो अपने बेटेबहू, नातीपोतों के साथ रह रहे हैं जबकि वे दोनों पतिपत्नी इस बुढ़ापे में बिलकुल अकेले हैं.

आखिर, वह दिन भी आ ही गया जब विमला को सरकारी मकान से अपनी गृहस्थी समेटनी पड़ी. रविशंकर ने सामान बंधवाने के लिए 2 मजदूर लगा लिए थे. कबाड़ी वाले को भी उन्होंने बुला लिया था जिस कोे गैरजरूरी सामान बेच सकें. केवल जरूरत का सामान ही बांधा जा रहा था.

विमला ने अपने हाथों से एकएक चीज इकट्ठा की थी, अपनी गृहस्थी को उस ने कितने जतन से संवारा था. कुछ सामान तो वास्तव में कबाड़ था पर काफी सामान सिर्फ इसलिए बेचा जा रहा था, क्योंकि नए घर में ज्यादा जगह नहीं थी. विमला साड़ी के पल्लू से बारबार अपनी गीली होती आंखों को पोंछे जा रही थी. उस के दिल का दर्द बाहर आना चाहता था पर किसी तरह वह इसे अपने अंदर समेटे हुए थी.

उस के कान पति रविशंकर की कमीज की जेब में रखे मोबाइल फोन की घंटी पर लगे थे. उसे बेटे के फोन का इंतजार था क्योंकि पिछले सप्ताह ही बेटे को रिटायर होने तथा घर बदलने की सूचना दे दी थी. आज कम से कम बेटा फोन तो करेगा ही, कुछ तो पूछेगा, ‘मां, छोटे घर में कैसे रहोगी? घर का साजोसामान कैसे वहां सैट होगा? मैं आप दोनों का यहां आने का प्रबंध करता हूं आदि.’ लेकिन मोबाइल फोन बिलकुल खामोश था. विमला के दिल में एक टीस उभर गई.

‘‘आप का फोन चार्ज तो है?’’ विमला ने धीरे से पूछा.

‘‘हां, फोन फुलचार्ज है,’’ रविशंकर ने जेब में से फोन निकाल कर देखा.

‘‘नैटवर्क तो आ रहा है?’’

‘‘हां भई, नैटवर्क भी आ रहा है. लेकिन यह सब क्यों पूछ रही हो?’’ रविशंकर झुंझलाते हुए बोले.

‘‘नहीं, कुछ नहीं,’’ कहते हुए विमला ने अपना मुंह फेर लिया और रसोईघर के अंदर चली गई. वह अपनी आंखों से बहते आंसुओं को रविशंकर को नहीं दिखाना चाहती थी.

सारा सामान ट्रक में लद चुका था. विमला की बूढ़ी गृहस्थी अब नए ठिकाने की ओर चल पड़ी. घर वाकई बहुत छोटा था. एक छोटा सा कमरा, उस से सटा रसोईघर. छोटी सी बालकनी, बालकनी से लगता बाथरूम जोकि टौयलेट से जुड़ा था. विमला का यह फ्लैट दूसरी मंजिल पर था.

विमला को इस नए मकान में आए एक हफ्ता हो गया है. घर उस ने सैट कर लिया है. आसपड़ोस में अभी खास जानपहचान नहीं हुई है. विमला के नीचे वाले फ्लैट में उसी की उम्र की एक बुजुर्ग महिला अपने बेटेबहू के साथ रहती है. विमला से अब उस की थोड़ीथोड़ी बातचीत होने लगी है. शाम को बाजार जाने के लिए विमला नीचे उतरी तो वही बुजुर्ग महिला मिल गई. उस का नाम रुक्मणी है. एकदूसरे को देख कर दोनों मुसकराईं.

‘‘कैसी हो विमला?’’ रुक्मणी ने विमला से पूछा.

‘‘ठीक हूं. घर में समय नहीं कटता. यहां कहीं घूमनेटहलने के लिए कोई अच्छी जगह नहीं है?’’ विमला ने रुक्मणी से कहा.

‘‘अरे, तुम शाम को मेरे साथ पार्क चला करो. वहां हमउम्र बहुत सी महिलाएं आती हैं. मैं तो रोज शाम को जाती हूं. शाम को 1-2 घंटे अच्छे से कट जाते हैं. पार्क यहीं नजदीक ही है,’’ रुक्मणी ने कहा.

अगले दिन शाम को विमला ने सूती चरक लगी साड़ी पहनी, बाल बनाए, गरदन पर पाउडर छिड़का. विमला को आज यों तैयार होते देख रविशंकर ने टोका, ‘‘आज कुछ खास बात है क्या? सजधज कर जा रही हो?’’

‘‘हां, आज मैं रुक्मणी के साथ पार्क जा रही हूं,’’ विमला खुश होती हुई बोली.

विमला को बहुत दिनों बाद यों चहकता देख रविशंकर को अच्छा लगा, क्योंकि विमला जब से यहां आई है, घर के अंदर ही अंदर घुट सी रही थी.

विमला और रुक्मणी दोनों पार्क की तरफ चल दीं. पार्क में कहीं बच्चे खेल रहे थे तो कहीं कुछ लोग पैदल घूम रहे थे ताकि स्वस्थ रहें. वहीं, एक तरफ बुजुर्ग महिलाओं का गु्रप था. विमला को ले कर रुक्मणी भी महिलाओं के ग्रुप में शामिल हो गई.

सभी बुजुर्ग महिलाओं की बातों में दर्द, चिंता भरी थी. कहने को तो सभी बेटेबहुओं व भरेपूरे परिवारों के साथ रहती थीं, लेकिन उन का मानसम्मान घर में ना के बराबर था. किसी को चाय समय पर नहीं मिलती तो किसी को खाना, कोई बीमारी में दवा, इलाज के लिए तरसती रहती. दो वक्त की रोटी खिलाना भी बेटेबहुओं को भारी पड़ रहा था.

इन महिलाओं की जिंदगी की शाम घोर उपेक्षा में कट रही थी. शाम के ये चंद लमहे वे आपस में बोलबतिया कर, अपने दिलों की कहानी सुना कर काट लेती थीं. अंधेरा घिरने लगा था. अब सभी घर जाने की तैयारी करने लगीं. विमला और रुक्मणी भी अपने घर की ओर बढ़ गईं.

घर पहुंच कर विमला कुरसी पर बैठ गई. पार्क में बुजुर्ग महिलाओं की बातें सुन कर उस का मन भर आया. वह सोचने लगी कि बुजुर्ग मातापिता तो उस बड़े पेड़ की तरह होते हैं जो अपना प्यार, घनी छावं अपने बच्चों को देना चाहते हैं लेकिन बच्चे तो इस छावं में बैठना ही नहीं चाहते. तभी रविशंकर रसोई से चाय बना कर ले आए.

‘‘लो भई, तुम्हारे लिए गरमागरम चाय बना दी है. बताओ, पार्क में कैसा लगा?’’

विमला पति को देख कर मुसकरा दी. जवाब में इतना ही बोली, ‘‘अच्छा लगा,’’ फिर चाय की चुस्की लेने के साथ मुसकराती हुई बोली, ‘‘सुनो, कल आप आलू की टिक्की खाने को कह रहे थे, आज रात के खाने में वही बनाऊंगी. और हां, आप कुछ छोटे गमले सीढ़ी तथा बालकनी में रखना चाहते थे, तो आप कल माली को कह दीजिए कि वह गमले दे जाए, हरीमिर्च, टमाटर के पौधे लगा लेंगे. थोड़ी बागबानी करते रहेंगे तो समय भी अच्छा कटेगा,’’ यह कहते हुए विमला खाली कप उठा कर रसोई में चली गई और सोचने लगी कि हम दोनों एकदूसरे को छावं दें और संतुष्ट रहें.

रविशंकर हैरान थे. कल तक वे विमला को कुछ खास पकवान बनाने को कहते थे तो विमला दुखी आवाज में एक ही बात कहती थी, ‘क्या करेंगे पकवान बना कर, परिवार तो है नहीं. बेटेबहू, नातीपोते साथ रहते, तो इन सब का अलग ही आनंद होता.’ गमलों के लिए भी वे कब से कह रहे थे पर विमला ने हामी नहीं भरी. विमला में यह बदलाव रविशंकर को सुखद लगा.

रसोईघर से कुकर की सीटी की आवाज आ रही थी. विमला ने टिक्की बनाने की तैयारी शुरू कर दी थी. घर में मसालों की खुशबू महकने लगी थी. रविशंकर कुरसी पर बैठेबैठे गीत गुनगुनाने लगे. आज उन्हें लग रहा था जैसे बहुत दिनों बाद उन की गृहस्थी की गाड़ी वापस पटरी पर लौट आई है… Hindi Story

Hindi Story: आखिर कहां तक – किस बात से उसका मन घबरा रहा था

Hindi Story: लेकिन बुढ़ापे में अकसर बहुतों के साथ ऐसा होता है जैसा मनमोहन के साथ हुआ. रात के लगभग साढे़ 12 बजे का समय रहा होगा. मैं सोने की कोशिश कर रहा था. शायद कुछ देर में मैं सो भी जाता तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया.

इतनी रात को कौन आया है, यह सोच कर मैं ने दरवाजा खोला तो देखा हरीश खड़ा है.

हरीश ने अंदर आ कर लाइट आन की फिर कुछ घबराया हुआ सा पास बैठ गया.

‘‘क्यों हरीश, क्या बात है इतनी रात गए?’’

हरीश ने एक दीर्घ सांस ली, फिर बोला, ‘‘नीलेश का फोन आया था. मनमोहन चाचा…’’

‘‘क्या हुआ मनमोहन को?’’ बीच में उस की बात काटते हुए मैं उठ कर बैठ गया. किसी अज्ञात आशंका से मन घबरा उठा.

‘‘आप को नीलेश ने बुलाया है?’’

‘‘लेकिन हुआ क्या? शाम को तो वह हंसबोल कर गए हैं. बीमार हो गए क्या?’’

‘‘कुछ कहा नहीं नीलेश ने.’’

मैं बिस्तर से उठा. पाजामा, बनियान पहने था, ऊपर से कुरता और डाल लिया, दरवाजे से स्लीपर पहन कर बाहर निकल आया.

हरीश ने कहा, ‘‘मैं बाइक निकालता हूं, अभी पहुंचा दूंगा.’’

मैं ने मना कर दिया, ‘‘5 मिनट का रास्ता है, टहलते हुए पहुंच जाऊंगा.’’

हरीश ने ज्यादा आग्रह भी नहीं किया.

महल्ले के छोर पर मंदिर वाली गली में ही तो मनमोहन का मकान है. गली में घुसते ही लगा कि कुछ गड़बड़ जरूर है. घर की बत्तियां जल रही थीं. दरवाजा खुला हुआ था. मैं दरवाजे पर पहुंचा ही था कि नीलेश सामने आ गया. बाहर आ कर मेरा हाथ पकड़ा.

मैं ने  हाथ छुड़ा कर कहा, ‘‘पहले यह बता कि हुआ क्या है? इतनी रात  गए क्यों बुलाया भाई?’’ मैं अपनेआप को संभाल नहीं पा रहा था इसलिए वहीं दरवाजे की सीढ़ी पर बैठ गया. गरमी के दिन थे, पसीनापसीना हो उठा था.

‘‘मुन्नी, एक गिलास पानी तो ला चाचाजी को,’’ नीलेश ने आवाज दी और उस की छोटी बहन मुन्नी तुरंत स्टील के लोटे में पानी ले कर आ गई.

हरीश ने लोटा मेरे हाथों में थमा दिया. मैं ने लोटा वहीं सीढि़यों पर रख दिया. फिर नीलेश से बोला, ‘‘आखिर माजरा क्या है? मनमोहन कहां हैं? कुछ बताओगे भी कि बस, पहेलियां ही बुझाते रहोगे?’’

‘‘वह ऊपर हैं,’’ नीलेश ने बताया.

‘‘ठीकठाक तो हैं?’’

‘‘जी हां, अब तो ठीक ही हैं.’’

‘‘अब तो का क्या मतलब? कोई अटैक वगैरा पड़ गया था क्या? डाक्टर को बुलाया कि नहीं?’’ मैं बिना पानी पिए ही उठ खड़ा हुआ और अंदर आंगन में आ गया, जहां नीलेश की पत्नी सुषमा, बंटी, पप्पी, डौली सब बैठे थे. मैं ने पूछा, ‘‘रामेश्वर कहां है?’’

‘‘ऊपर हैं, दादाजी के पास,’’ बंटी ने बताया.

आंगन के कोने से लगी सीढि़यां चढ़ कर मैं ऊपर पहुंचा. सामने वाले कमरे के बीचों- बीच एक तखत पड़ा था. कमरे में मद्धम रोशनी का बल्ब जल रहा था. एक गंदे से बिस्तर पर धब्बेदार गिलाफ वाला तकिया और एक पुराना फटा कंबल पैताने पड़ा था. तखत पर मनमोहन पैर लटकाए गरदन झुकाए बैठे थे. फिर नीचे जमीन पर बड़ा लड़का रामेश्वर बैठा था.

‘‘क्या हुआ, मनमोहन? अब क्या नाटक रचा गया है? कोई बताता ही नहीं,’’ मैं धीरेधीरे चल कर मनमोहन के करीब गया और उन्हीं के पास बगल में तखत पर बैठ गया. तखत थोड़ा चरमराया फिर उस की हिलती चूलें शांत हो गईं.

‘‘तुम बताओ, रामेश्वर? आखिर बात क्या है?’’

रामेश्वर ने छत की ओर इशारा किया. वहां कमरे के बीचोंबीच लटक रहे पुराने बंद पंखे से एक रस्सी का टुकड़ा लटक रहा था. नीचे एक तिपाई रखी थी.

‘‘फांसी लगाने को चढ़े थे. वह तो मैं ने इन की गैंगैं की घुटीघुटी आवाज सुनी और तिपाई गिरने की धड़ाम से आवाज आई तो दौड़ कर आ गया. देखा कि रस्सी से लटक रहे हैं. तुरंत ही पैर पकड़ कर कंधे पर उठा लिया. फिर नीलेश को आवाज दी. हम दोनों ने मिल कर जैसेतैसे इन्हें फंदे से अलग किया. चाचाजी, यह मेरे पिता नहीं पिछले जन्म के दुश्मन हैं.

‘‘अपनी उम्र तो भोग चुके. आज नहीं तो कल इन्हें मरना ही है, लेकिन फांसी लगा कर मरने से तो हमें भी मरवा देते. हम भी फांसी पर चढ़ जाते. पुलिस की मार खाते, पैसों का पानी करते और घरद्वार फूंक कर इन के नाम पर फंदे पर लटक जाते.

‘‘अब चाचाजी, आप ही इन से पूछिए, इन्हें क्या तकलीफ है? गरम खाना नहीं खाते, चाय, पानी समय पर नहीं मिलता, दवा भी चल ही रही है. इन्हें कष्ट क्या है? हमारे पीछे हमें बरबाद करने पर क्यों तुले हैं?’’ रामेश्वर ने कुछ खुल कर बात करनी चाही.

‘‘लेकिन यह सब हुआ क्यों? दिन में कुछ झगड़ा हुआ था क्या?’’

‘‘कोई झगड़ाटंटा नहीं हुआ. दोपहर को सब्जी लेने निकले तो रास्ते में अपने यारदोस्तों से भी मिल आए हैं. बिजली का बिल भी भरने गए थे, फिर बंटी के स्कूल जा कर साइकिल पर उसे ले आए. हम ने कहीं भी रोकटोक नहीं लगाई. अपनी इच्छा से कहीं भी जा सकते हैं. घर में इन का मन ही नहीं लगता,’’ रामेश्वर बोला.

‘‘लेकिन तुम लोगों ने इन से कुछ कहासुना क्या? कुछ बोलचाल हो गई क्या?’’ मैं ने पूछा.

‘‘अरे, नहीं चाचाजी, इन से कोई क्या कह सकता है. बात करते ही काटने को दौड़ते हैं. आज कह रहे थे कि मुझे अपना चेकअप कराना है. फुल चेकअप. वह भी डा. आकाश की पैथोलौजी लैब में. हम ने पूछा भी कि आखिर आप को परेशानी क्या है? कहने लगे कि परेशानी ही परेशानी है. मन घबरा रहा है. अकेले में दम घुटता है.

‘‘पिछले महीने ही मैं ने इन्हें सरकारी अस्पताल में डा. दिनेश सिंह को दिखाया था. जांच से पता चला कि इन्हें ब्लडप्रेशर और शुगर है…’’

तभी नीलेश पानी का गिलास ले कर आ गया. मैं ने पानी पी लिया. तब मैं ने ही पूछा, ‘‘रामेश्वर, यह तो बताओ कि पिछले महीने तुम ने इन का दोबारा चेकअप कराया था क्या?’’

‘‘नहीं, 2 महीने पहले डा. बंसल से कराया था न?’’ रामेश्वर बोला.

‘‘2 महीने पहले नहीं, जनवरी में तुम ने इन का चेकअप कराया था रामेश्वर, आज इस बात को 11 महीने हो गए. और चेकअप भी क्या था, शुगर और ब्लडप्रेशर. इसे तुम फुल चेकअप कहते हो?’’

‘‘नहीं चाचाजी, डाक्टर ने ही कहा था कि ज्यादा चेकअप कराने की जरूरत नहीं है. सब ठीकठाक है.’’

‘‘लेकिन रामेश्वर, इन का जी तो घबराता है, चक्कर तो आते हैं, दम तो घुटता है,’’ मैं ने कहा.

‘‘अब आप से क्या कहूं चाचाजी,’’ रामेश्वर कह कर हंसने लगा. फिर नीलेश को इशारा कर बोला कि तुम अपना काम करो न जा कर, यहां क्या कर रहे हो.

बेचारा नीलेश चुपचाप अंदर चला गया. फिर रामेश्वर बोला, ‘‘चाचाजी, आप मेरे कमरे में चलिए. इन की मुख्य तकलीफ आप को वहां बताऊंगा,’’ फिर धूर्ततापूर्ण मुसकान फेंक कर चुप हो गया.

मैं मनमोहन के जरा और पास आ गया. रामेश्वर से कहा, ‘‘तुम अपने कमरे में चलो. मैं वहीं आ रहा हूं.’’

रामेश्वर ने बांहें चढ़ाईं. कुछ आश्चर्य जाहिर किया, फिर ताली बजाता हुआ, गरदन हिला कर सीटी बजाता हुआ कमरे से बाहर हो गया.

मैं ने मनमोहन के कंधे पर हाथ रखा ही था कि वह फूटफूट कर रोने लगे. मैं ने उन्हें रोने दिया. उन्होंने पास रखे एक मटमैले गमछे से नाक साफ की, आंखें पोंछीं लेकिन सिर ऊपर नहीं किया. मैं ने फिर आत्मीयता से उन के सिर पर हाथ फेरा. अब की बार उन्होंने सिर उठा कर मु़झे देखा. उन की आंखें लाल हो रही थीं. बहुत भयातुर, घबराए से लग रहे थे. फिर बुदबुदाए, ‘‘भैया राजनाथ…’’ इतना कह कर किसी बच्चे की तरह मुझ से लिपट कर बेतहाशा रोने लगे, ‘‘तुम मुझे अपने साथ ले चलो. मैं यहां नहीं रह सकता. ये लोग मुझे जीने नहीं देंगे.’’

मैं ने कोई विवाद नहीं किया. कहा, ‘‘ठीक है, उठ कर हाथमुंह धो लो और अभी मेरे साथ चलो.’’

उन्होंने बड़ी कातर और याचना भरी नजरों से मेरी ओर देखा और तुरंत तैयार हो कर खड़े हो गए.

तभी रामेश्वर अंदर आ गया, ‘‘क्यों, कहां की तैयारी हो रही है?’’

‘‘इस समय इन की तबीयत खराब है. मैं इन्हें अपने साथ ले जा रहा हूं, सुबह आ जाएंगे,’’ मैं ने कहा.

‘‘सुबह क्यों? साथ ले जा रहे हैं तो हमेशा के लिए ले जाइए न. आधी रात में मेरी प्रतिष्ठा पर मिट्टी डालने के लिए जा रहे हैं ताकि सारा समाज मुझ पर थूके कि बुड्ढे को रात में ही निकाल दिया,’’ वह अपने मन का मैल निकाल रहा था.

मैं ने धैर्य से काम लिया. उस से इतना ही कहा, ‘‘देखो, रामेश्वर, इस समय इन की तबीयत ठीक नहीं है. मैं समझाबुझा कर शांत कर दूंगा. इस समय इन्हें अकेला छोड़ना ठीक नहीं है.’’

‘‘आप इन्हें नहीं जानते. यह नाटक कर रहे हैं. घरभर का जीना हराम कर रखा है. कभी पेंशन का रोना रोते हैं तो कभी अकेलेपन का. दिन भर उस मास्टरनी के घर बैठे रहते हैं. अब इस उम्र में इन की गंदी हरकतों से हम तो परेशान हो उठे हैं. न दिन देखते हैं न रात, वहां मास्टरनी के साथ ही चाय पीएंगे, समोसे खाएंगे. और वह मास्टरनी, अब छोडि़ए चाचाजी, कहने में भी शर्म आती है. अपना सारा जेबखर्च उसी पर बिगाड़ देते हैं,’’ रामेश्वर अपनी दबी हुई आग उगल रहा था.

‘‘इन्हें जेबखर्च कौन देता है?’’ मैं ने सहज ही पूछ लिया.

‘‘मैं देता हूं, और क्या वह कमजात मास्टरनी देती है? आप भी कैसी बातें कर रहे हैं चाचाजी, उस कम्बख्त ने न जाने कौन सी घुट्टी इन्हें पिला दी है कि उसी के रंग में रंग गए हैं.’’

‘‘जरा जबान संभाल कर बात करो रामेश्वर, तुम क्या अनापशनाप बोल रहे हो? प्रेमलता यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं. उन का भरापूरा परिवार है. पति एडवोकेट हैं, बेटा खाद्य निगम में डायरेक्टर है, उन्हें इन से क्या स्वार्थ है. बस, हमदर्दी के चलते पूछताछ कर लेती है. इस में इतना बिगड़ने की क्या बात है. अच्छा, यह तो बताओ कि तुम इन्हें जेबखर्च क्या देते हो?’’ मैं ने शांत भाव से पूछा.

‘‘देखो चाचाजी, आप हमारे बडे़ हैं, दिनेश के फादर हैं, इसलिए हम आप की इज्जत करते हैं, लेकिन हमारे घर के मामले में इस तरह छीछालेदर करने की, हिसाबकिताब पूछने की आप को कोई जरूरत नहीं है. इन का खानापीना, कपडे़ लत्ते, चायनाश्ता, दवा का लंबाचौड़ा खर्चा कहां से हो रहा है? अब आप इन से ही पूछिए, आज 500 रुपए मांग रहे थे उस मास्टरनी को देने के लिए. हम ने साफ मना कर दिया तो कमरा बंद कर के फांसी लगाने का नाटक करने लगे. आप इन्हें नहीं जानते. इन्होंने हमारा जीना हराम कर रखा है. एक अकेले आदमी का खर्चा घर भर से भी ज्यादा कर रहे हैं तो भी चैन नहीं है…और आप से भी हाथ जोड़ कर प्रार्थना है कि हमें हमारे हाल पर छोड़ दें. कहीं ऐसा न हो कि गुस्से में आ कर मैं आप से कुछ बदसलूकी कर बैठूं, अब आप बाइज्जत तशरीफ ले जा सकते हैं.’’

इस के बाद तो उस ने जबरदस्ती मुझे ठेलठाल कर घर से बाहर कर दिया. रामेश्वर ने बड़ा अपमान कर दिया मेरा.

मैं ने कुछ निश्चय किया. उस समय रात के 2 बज रहे थे. गली से निकल कर सीधा प्रो. प्रेमलता के घर के सामने पहुंच गया. दरवाजे की कालबेल दबा दी. कुछ देर बाद दोबारा बटन दबाया. अंदर कुछ खटरपटर हुई फिर थोड़ी देर बाद हरीमोहन ने दरवाजा खोला. मुझे सामने देख कर उन्हें कुछ आश्चर्य हुआ लेकिन औपचारिकतावश ही बोले, ‘‘आइए, आइए शर्माजी, बाहर क्यों खडे़ हैं, अंदर आइए,’’ लुंगी- बनियान पहने वह कुछ अस्तव्यस्त से लग रहे थे. एकाएक नींद खुल जाने से परेशान से थे.

मैं ने वहीं खडे़खडे़ उन्हें संक्षेप में सारी बातें बता दीं. तभी प्रो. प्रेमलता भी आ गईं. बहुत आग्रह करने पर मैं अंदर ड्राइंगरूम के सोफे पर बैठ गया.

प्रो. प्रेमलता अंदर पानी लेने चली गईं.

लौट कर आईं तो पानी का गिलास मुझे थमा कर सामने सोफे पर बैठ गईं और कहने लगीं, ‘‘यह जो रामेश्वर है न, नंबर एक का बदमाश और बदतमीज आदमी है. मनमोहनजी का सारा पी.एफ., जो लगभग 8 लाख था, अपने हाथ कर लिया. साढे़ 5 हजार पेंशन भी अपने खाते में जमा करा लेता है. इधरउधर साइन कर के 3 लाख का कर्जा भी मनमोहनजी के नाम पर ले रखा है. इन्हें हाथखर्चे के मात्र 50 रुपए देता है और दिन भर इन से मजदूरी कराता है.’’

‘‘सागसब्जी, आटापिसाना, बच्चों को स्कूल ले जानालाना, धोबी के कपडे़, बिजली का बिल सबकुछ मनमोहनजी ही करते हैं. फरवरी या मार्च में इसे पता चला कि मनमोहन का 2 लाख रुपए का बीमा भी है, शायद पहली बार स्टालमेंट पेमेंट के कागज हाथ लगे होंगे या पेंशन पेमेंट से रुपए कट गए होंगे, तभी से इन की जान के पीछे पड़ गया है, बेचारे बहुत दुखी हैं.’’

मैं ने हरीमोहनजी से कुछ विचार- विमर्श किया और फिर रात में ही हम पुलिस थाने की ओर चल दिए. उधर हरीमोहनजी ने फोन पर संपर्क कर के मीडिया को बुलवा लिया था. हम ने सोच लिया था कि रामेश्वर का पानी उतार कर ही रहेंगे, अब यह बेइंसाफी सहन नहीं होगी. Hindi Story

Hindi Story: पतझड़ के बाद – कैसे बदली सांवली काजल की जिंदगी?

Hindi Story, लेखिका- अंजु गुप्ता ‘प्रिया’

‘‘काजल बेटी, ड्राइवर गाड़ी ले कर आ गया है, बारिश थम जाने के  बाद चली जाती,’’ मां ने खिड़की के पास खड़ी काजल से कहा.

‘‘नहीं, मां, दीपक मेरा इंतजार करते होंगे. मुझे अब जाना चाहिए,’’ कह कर काजल ने मांबाबूजी से विदा ली और गाड़ी में बैठ गई.

बरसात अब थोड़ी थम गई थी और मौसम सुहावना हो चला था. कार में बैठेबैठे काजल के स्मृतिपटल पर अतीत की लकीरें फिर से खिंचने लगीं.

आज यह ड्रामा उस के साथ छठी बार हुआ था. वरपक्ष के लोग, जिन के लिए मांबाबूजी सुबह से ही तैयारी में लगे रहते, काजल से फिर वही जिद की जाती कि वह जल्दी से अच्छी तरह तैयार हो जाए. मेकअप से चेहरा थोड़ा ठीक कर ले पर काजल का कुछ करने का मन न करता. मां के तानों से दुखी हो वह बुझे मन से फिर भी एक आशा के साथ मेहमानों के लिए नाश्ते की ट्रे ले कर प्रस्तुत होती.

पिताजी कहते, ‘बड़ी सुशील व सुघड़ है हमारी काजल. बी.ए. प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया है.

मां भी काजल के बनाए व्यंजनों की तारीफ करना नहीं भूलतीं पर सब व्यर्थ. वर पक्ष के लोग काजल के गहरे काले रंग को देखते ही मुंह बिचका देते और बाद में जवाब देने का वादा कर मूक इनकार का प्रदर्शन कर ही जाते.

आज भी ऐसा ही हुआ और हमेशा की भांति फिर शुरू हुआ मां का तानाकशी का पुराण. बूआ भी काजल की बदसूरती का वर्णन अप्रत्यक्ष ढंग से करते हुए आग में घी डालने का कार्य करतीं. वैसे हमदर्दी का दिखावा करते हुए कहतीं, ‘बेचारी के भाग्य की विडंबना है. कितनी सीधी और सुघड़, हर कार्य में निपुण है, पर कुदरत ने इसे इतना कालाकलूटा तो बनाया ही अच्छे नाकनक्श भी नहीं दिए. ऐसे में भला कौन सा सुंदर नौजवान शादी के लिए इस के साथ हामी भरेगा. हां, कोई उस से उन्नीस हो तो कुछ बात बन जाए.’

काजल कुछ भी न कह पाती और अपनी किस्मत पर सिसकसिसक कर रो पड़ती. अब तो उस की आंखों के आंसू भी सूखने लगे थे. उस के साथ एक विडंबना यह भी थी कि पैदा होते ही उस की मां चिरनिद्रा में सो गईं. पिताजी ने घर वालों व बहनों के कहने पर दूसरी शादी कर ली.

नई मां जितनी खूबसूरत थी उतनी ही खूबसूरती से उस ने काजल के प्रति प्यार जताया था पर जब से उस ने सोनाली व सुंदरी जैसी खूबसूरत बेटियों को जन्म दिया था काजल के प्रति उस का प्यार लुप्त हो गया था.

काजल इस घर में मात्र काम करने वाली एक मशीन बन कर रह गई थी. छोटी बहनों को घर के काम करने से एलर्जी थी. घर की हर छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी जिम्मेदारी लदती तो सिर्फ काजल पर. वैसे मां भी जानती थी कि काजल से उसे कितना सहारा है. कभीकभी तो वह कह देती कि काजल न हो तो घर का एक पत्ता भी न हिले पर ये सब औपचारिक बातें थीं.

मां को नाज था तो सिर्फ अपनी बेटियों पर कि उन्हें तो कोई भी राजकुमार स्वयं मुंह से मांग कर ले जाएगा और ऐसा हुआ भी.

बड़ी बेटी सोनाली अपनी सखी की शादी में गई और वहां कुंवर को पसंद आ गई. पिताजी ने तो कहा कि पहले काजल के हाथ पीले हो जाएं. मां के यह कहने पर कि बड़ी के चक्कर में वे अपनी दोनों बेटियों को कुंवारी नहीं रख सकती, वे थोड़ा आहत भी हो गए थे.

बड़ी बेटी सोनाली की शादी के बाद तो मां को बस छोटी बेटी सुंदरी की चिंता थी पर हुआ यह कि जब काजल को 7वीं बार दिखाया गया उस दौरान सुंदरी के रूप की आभा ने मनोहर का मन हर लिया और वह काजल के बजाय सुंदरी को अपनी घर की शोभा बना कर ले गया.

अब रह गई तो सिर्फ काजल. बाबूजी जब कहते कि काजल के हाथ पीले हो जाते तो इस की मां की आत्मा को शांति मिलती तो मां जवाब देने से न चूकती, ‘काजल का विवाह नहीं हुआ तो इस में मेरा क्या दोष. इस का भाग्य ही खोटा है. मैं ने तो कभी कोई कसर नहीं छोड़ी. इस के चक्कर में मैं अपनी बेटियों को उम्र भर कुंवारी तो नहीं रख सकती थी. 32 की तो यह हो गई. मुझे तो 40 तक इस के आसार नजर नहीं आते.’

फिर भी पिताजी काजल के लिए सतत प्रयत्नशील रहते. काजल भी पिता की सहनशक्ति के आगे चुप थी पर जब पिताजी ने फिर से यह ड्रामा एक बार दोहराने को कहा तो काजल में न जाने कहां से पिताजी का विरोध करने की शक्ति आ गई और जोर की आवाज में कह ही दिया, ‘नहीं, अब और नहीं. पिताजी, मुझ पर दया करो. अपमान का घूंट मैं बारबार न पी सकूंगी, पिताजी. मुझ अभागिन को बोझ समझते हो तो मैं नौकरी कर अपना निर्वाह खुद करूंगी.’

काजल ने इस बार किसी की परवा न करते हुए एक बुटीक में नौकरी कर ली. अब उस की दिनचर्या और भी व्यस्त हो गई. घर के अधिकांश कार्य वह सवेरे तड़के निबटा कर नौकरी पर जाती और शाम तक व्यस्त रहती. रात को सारा काम निबटा कर ही सोती.

अब उसे उदासी के लिए समय ही न मिलता. काम में व्यस्त रह कर वह संतुष्ट रहती. उस की कोई सखीसहेली भी नहीं थी जिस के साथ अपना सुखदुख बांटती. परिवार के सदस्यों के बीच उस ने अपने को हमेशा तनहा ही पाया था पर अब उसे विदुषी जैसी एक अच्छी सहेली मिल गई थी. विदुषी ने ही काजल को अपने यहां नौकरी पर रखा था. वह काजल की कार्य- कुशलता व उस के सौम्य स्वभाव से बहुत प्रभावित थी. उस ने काजल को प्रोत्साहित किया कि वह अपने में थोड़ा परिवर्तन लाए और जमाने के साथ चले.

उस ने काजल को चुस्त, स्मार्ट और सुंदर दिखने के सभी तौरतरीके बताए. काजल पर विदुषी की बातों का गहरा प्रभाव पड़ा. उस के व्यक्तित्व में गजब का बदलाव आया था.

एक दिन विदुषी ने काजल को अपने घर डिनर पर आमंत्रित किया. शाम को जब वह उस के घर पहुंची तो  बड़ी उम्र के एक बदसूरत से युवक ने दरवाजा खोला. तभी विदुषी की आवाज कानों में पड़ी, ‘अरे, महेश, काजल को बाहर ही खड़ा रखोगे या अंदर भी लाओगे… काजल, यह मेरे पति महेश और महेश, यह काजल,’ दोनों का परिचय कराते हुए विदुषी ने चाय की ट्रे मेज पर रख दी.

काजल थोड़ा अचंभित थी, इस विपरीत जोड़े को देख कर, ‘सच विदुषी कितनी खूबसूरत, कितनी स्मार्ट है और ऊपर से अपना खुद का व्यापार करती है. कितने खूबसूरत ड्रेसेज का प्रोडक्शन करती है, औरों को भी खूबसूरत बनाती है, और कहां उस का यह पति. काला, मुंह पर चेचक के दाग…’

काजल अभी सोच ही रही थी कि फोन की घंटी बजी. महेश ने फोन रिसीव कर विदुषी और काजल से जाने की इजाजत मांगी. अर्जेंट केस होने की वजह से वह फौरन गाड़ी ले कर रवाना हो गया.

उस के जाने के बाद खाना खाते हुए काजल ने विदुषी से कहा, ‘‘दीदी, क्या आप का प्रेम विवाह…’’

विदुषी ने बात काटते हुए कहा, ‘हां, मेरा प्रेम विवाह हुआ है. मेरे पति महेश भौतिक सुंदरता के नहीं, मन की सुंदरता के मालिक हैं और मुझे ऊंचा उठाने में मेरे पति का ही श्रेय है.  उन्होंने हर पल मेरा साथ दिया.’

विदुषी ने बताया कि एक एक्सीडेंट के दौरान उन का पूरा परिवार खत्म हो गया था और उन के बचने की भी कोई उम्मीद नहीं थी. ऐसे में उन्हें डाक्टर महेश ने ही संभाला और टूटने से बचाया. जहां मन मिल जाते हैं वहां सुंदरताकुरूपता का कोई अर्थ नहीं होता.

काजल यह सुन कर द्रवित हो उठी थी. खाना खत्म कर काजल ने जाने की इजाजत मांगी. विदुषी से विदा हो कर वह कुछ दूर ही चली थी कि उस ने देखा एक स्कूटर सवार तेजी से एक रिकशे को टक्कर मार कर आगे निकल गया. रिकशे में बैठे वृद्ध दंपती अपने पर नियंत्रण न रख सके और वृद्ध पुरुष रिकशे से गिर पड़ा. उस की पत्नी घबरा कर सहायता के लिए चिल्लाने लगी.

सड़क पर ज्यादा भीड़ नहीं थी. काजल भागीभागी उन के  पास पहुंची. उस ने वृद्धा को ढाढस बंधाते हुए उन की दवाइयां जो सड़क पर गिर गई थीं, समेटीं और वृद्ध को सहारा दे कर उठाया. उस की कुहनियां छिल गई थीं और खून बह रहा था. काजल ने पास में ही एक डाक्टर के क्लिनिक पर ले जा कर उस वृद्ध की ड्रेसिंग कराई.

उस वृद्धा ने काजल को आशीर्वाद देते हुए बताया कि वे कुछ ही दूरी पर रहते हैं. तबीयत खराब होने के कारण डाक्टर को दिखा कर घर वापस जा रहे थे. काजल ने उन्हें उन के घर के पास तक छोड़ कर विदा ली.

वृद्ध पुरुष ने, जिन का नाम उमाकांत था, कहा, ‘बेटी, तुम कल आने का वादा कर के जाओ.’

उन्होंने इतने प्यार से, विनम्रता से निवेदन किया था कि काजल इनकार न कर सकी.

घर में घुसते ही मां ने उसे आड़े हाथों लिया. पिताजी ने भी देरी का कारण न पूछते हुए मौन निगाहों से काजल को देखा और बिना कुछ कहे अपने कमरे में चले गए.

सुबह जब काजल ने पिताजी को रात की घटना बताई तो पिताजी बहुत खुश हुए और आफिस से लौटते हुए उमाकांत बाबू का हालचाल पूछ कर आने को कहा. काजल ने विदुषी से दोपहर में ही छुट्टी ले ली और उमाकांत बाबू के घर की ओर चल पड़ी.

काजल को उमाकांतजी और उन की पत्नी से इतना लगाव हो गया कि वह रोज उन से मिलने जाती. उन की सेवा से  उसे एक सुखद अनुभूति होती.

उस दिन वह आफिस जाने के लिए आधा घंटा पहले घर से निकली तो उस के कदम उमाकांतजी के घर की तरफ बढ़ गए. दरवाजा मांजी की बजाय एक लंबे और आकर्षक नौजवान ने खोला. भीतर से उमाकांत बाबू की आवाज आई, ‘अरे, काजल बेटी, चली आओ. मैं बरामदे में हूं.’

उन्होंने काजल से उस नौजवान का परिचय कराते हुए कहा, ‘यह हमारा बेटा दीपक है. आईएएस की ट्रेनिंग पूरी कर के मसूरी से कल ही लौटा है.’

काजल ने धीरे से दीपक से अभिवादन किया.

दीपक ने कृतज्ञता प्रकट करते हुए कहा, ‘मैं, आप का बहुत आभारी हूं. काजलजी, मेरी अनुपस्थिति में आप ने मेरे मांबाबूजी का खयाल रखा.’

तभी मांजी चाय ले कर आ गइर्ं और बोलीं, ‘दीपक बेटा, यही है मेरी बहू, क्या तुझे पसंद है? और हां, बेटी, तू भी इनकार नहीं करना. मेरा बेटा बड़ा अफसर है, तुझे बहुत खुश रखेगा.’

काजल को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि यह क्या हो रहा है. उस की आंखों से टपटप आंसू गिरने लगे. वह रोते हुए बोली, ‘मांजी. आप यह क्या कह रही हैं? आप मेरे बारे में सब कुछ जानती हैं. कहां मैं और कहां दीपक बाबू? फिर मैं आप की पसंद हूं पर आप के बेटे की तो नहीं…’

दीपक, जो चुपचाप खड़े थे, धीमे से मुसकरा कर बोले, ‘देखिए, काजलजी, शादीविवाह की बात तो मांबाप ही तय करते हैं और मैं ने अपनी पसंद अपनी मां से कह दी. क्या आप को कोई आपत्ति है? मुझे आप जैसी ही लड़की की तलाश थी. यदि मैं आप को पसंद नहीं तो…’

‘नहीं, दीपक बाबू, दरअसल, बात यह नहीं…’

‘यह नहीं, तो कहो हां, बोलो हां.’

और फिर काजल भी सभी के साथ हंस पड़ी.

तब उमाकांत बाबू ने काजल को आदेशात्मक स्वर में कहा, ‘बेटी, आज आफिस नहीं, घर जाओ. हम सब शाम को तुम्हारे रिश्ते की बात करने आ रहे हैं.’

शाम को उमाकांत बाबू, दीपक और उस की मां के साथ आए. वे काजल की मंगनी दीपक के साथ तय कर शादी की तारीख भी पक्की कर गए. सभी तरफ खुशी का माहौल था. सभी रिश्तेदार, पासपड़ोसी काजल के भाग्य से चकित थे. मां भी इठला कर कह रही थीं कि मेरी काजल तो लाखों में एक है तभी तो दीपक जैसा उच्च पदस्थ दामाद मिला.

काजल भी सोच रही थी कि दुख के पतझड़ के बाद कभी न कभी तो सुख का वसंत आता है और यह वसंत उस के जीवन में इतने समय बाद आया….

तभी, गाड़ी का ब्रेक लगते ही काजल अतीत से निकल कर वर्तमान में लौट आई. उस ने देखा दीपक उस के इंतजार में बाहर ही खड़े हैं. Hindi Story

Hindi Story: नई शुरुआत

Hindi Story: दिशा रसोई में फटाफट काम कर रही थी. मनीष और क्रिया अपनेअपने कमरों में सो रहे थे. यहीं से उस के दिन की शुरुआत होती थी. 5 बजे उठ कर नाश्ता और दोपहर का खाना तैयार कर, मनीष और 13 वर्षीया क्रिया को जगाती थी. उन्हें जगा कर फिर अपनी सुबह की चाय के साथ 2 बिस्कुट खाती थी. उस ने घड़ी पर निगाह डाली तो 6:30 बज गए थे. वह जल्दी से जा कर क्रिया को जगाने लगी.

‘‘क्रिया उठो, 6:30 बज गए,’’ बोल कर वह वापस अपने काम में लग गई.

‘‘मम्मा, आज हम तृष्णा दीदी के मेहंदी फंक्शन में जाएंगे.’’

‘‘ओफ्फ, क्रिया, तुम्हें स्कूल के लिए तैयार होना है. देर हो गई तो स्कूल में एंट्री बंद हो जाएगी और फिर तुम्हें घर पर अकेले रहना पड़ेगा,’’ गुस्से से दिशा ने कहा, ‘‘जाओ, जल्दी से स्कूल के लिए तैयार हो जाओ, मेरा सिर न खाओ.’’ क्रिया पैर पटकती हुई बाथरूम में अपनी ड्रैस ले कर नहाने चली गई. दिशा को सब काम खत्म कर के 8 बजे तक स्कूल पहुंचना होता था, इसलिए उस का पारा रोज सुबह चढ़ा ही रहता था. 7 बज गए तो वह मनीष को जगाने गई. ‘‘कभी तो अलार्म लगा लिया करो. कितनी दिक्कत होती है मुझे, कभी इस कमरे में भागो तो कभी उस कमरे में. और एक तुम हो, जरा भी मदद नहीं करते,’’ गुस्से से भरी दिशा जल्दीजल्दी सफाई करने लगी. साथ ही बड़बड़ाती जा रही थी, ‘जिंदगी एक मशीन बन कर रह गई है. काम हैं कि खत्म ही नहीं होते और उस पर यह नौकरी. काश, मनीष अपनी जिम्मेदारी समझते तो ऐसी परेशानी न होती.’

मनीष ने क्रिया और दिशा को स्कूटर पर बैठाया और स्कूल की ओर रवाना हो गया.

दिशा की झुंझलाहट कम होने का नाम नहीं ले रही थी. जल्दीजल्दी काम निबटाते भी वह 15 मिनट देर से स्कूल पहुंची. शुक्र है प्रिंसिपल की नजर उस पर नहीं पड़ी, वरना डांट खानी पड़ती. अपनी क्लास में जा कर जैसे ही उस ने बच्चों को पढ़ाने के लिए ब्लैकबोर्ड पर तारीख डाली 04/04/16. उस का सिर घूम गया.

4 तारीख वो कैसे भूल गई, आज तो रिया का जन्मदिन है. है या था? सिर में दर्द शुरू हो गया उस के. जैसेतैसे क्लास पूरी कर वह स्टाफरूम में पहुंची. कुरसी पर बैठते ही उस का सिरदर्द तेज हो गया और वह आंखें बंद कर के कुरसी पर टेक लगा कर बैठ गई. रिया का गुस्से वाला चेहरा उस की आंखों के आगे आ गया. कितना आक्रोश था उस की आंखों में. वे आंखें आज भी दिशा को रातरात भर जगा देती हैं और एक ही सवाल करती हैं – ‘मेरा क्या कुसूर था?’ कुसूर तो किसी का भी नहीं था. पर होनी को कोई टाल नहीं सकता. कितनी मन्नतोंमुरादों से दिशा और मनीष ने रिया को पाया था. किस को पता था कि वह हमारे साथ सिर्फ 16 साल तक ही रहेगी. उस के होने के 4 साल बाद क्रिया हो गई. तब से जाने क्यों रिया के स्वभाव में बदलाव आने लगा. शायद वह दिशा के प्यार पर सिर्फ अपना अधिकार समझती थी, जो क्रिया के आने से बंट गया था.

जैसेजैसे रिया बड़ी होती रही, दिशा और मनीष से दूर होती रही. मनीष को इन सब से कुछ फर्क नहीं पड़ता था. उसे तो शराब और सिगरेट की चिंता होती थी बस, उतना भर कमा लिया. बीवीबच्चे जाएं भाड़ में. खाना बेशक न मिले पर शराब जरूर चाहिए उसे. उस के लिए वह दिशा पर हाथ उठाने से भी गुरेज नहीं करता था. अपनी बेबसी पर दिशा की आंखें भर आईं. अगर क्रिया की चिंता न होती तो कब का मनीष को तलाक दे चुकी होती. दिशा का सिर अब दर्द से फटने लगा तो वह स्कूल से छुट्टी ले कर घर आ गई. दवा खा कर वह अपने कमरे में जा कर लेट गई. आंखें बंद करते ही फिर वही रिया की गुस्से से लाल आंखें उसे घूरने लगीं. डर कर उस ने आंखें खोल लीं.

सामने दीवार पर रिया की तसवीर लगी थी जिस पर हार चढ़ा था. कितनी मासूम, कितनी भोली लग रही है. फिर कहां से उस में इतना गुस्सा भर गया था. शायद दिशा और मनीष से ही कहीं गलती हो गई. वे अपनी बड़ी होती रिया पर ध्यान नहीं दे पाए. शायद उसी दिन एक ठोस समझदारी वाला कदम उठाना चाहिए था जिस दिन पहली बार उस के स्कूल से शिकायत आई थी. तब वह छठी क्लास में थी. ‘मैम आप की बेटी रिया का ध्यान पढ़ाई में नहीं है. जाने क्या अपनेआप में बड़बड़ाती रहती है. किसी बच्चे ने अगर गलती से भी उसे छू लिया तो एकदम मारने पर उतारू हो जाती है. जितना मरजी इसे समझा लो, न कुछ समझती है और न ही होमवर्क कर के आती है. यह देखिए इस का पेपर जिस में इस को 50 में से सिर्फ 4 नंबर मिले हैं.’ रिया पर बहुत गुस्सा आया था दिशा को जब रिया की मैडम ने उसे इतना लैक्चर सुना दिया था.

‘आप इस पर ध्यान दें, हो सके तो किसी चाइल्ड काउंसलर से मिलें और कुछ समय इस के साथ बिताएं. इस के मन की बातें जानने की कोशिश करें.’

रिया की मैडम की बात सुन कर दिशा ने अपनी व्यस्त दिनचर्या पर नजर डाली. ‘कहां टाइम है मेरे पास? मरने तक की तो फुरसत नहीं है. काश, मनीष की नौकरी लग जाए या फिर वह शराब पीना छोड़ दे तो हम दोनों मिल कर बेटी पर ध्यान दे सकते हैं,’ दिशा ने सोचा लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं.

फिर तो बस आएदिन रिया की शिकायतें स्कूल से आती रहती थीं. दिशा को न फुरसत मिली उस से बात करने की, न उस की सखी बनने की. एक दिन तो हद ही हो गई जब मनीष उसे हाथ से घसीट कर घर लाया था.

‘क्या हुआ? इसे क्यों घसीट रहे हो. अब यह बड़ी हो गई है.’ दिशा ने उस का हाथ मनीष के हाथ से छुड़ाते हुए कहा.

मनीष ने दिशा को धक्का दे कर पीछे कर दिया और तड़ातड़ 3-4 चाटें रिया को लगा दिए.

दिशा एकदम सकते में आ गई. उसे समझ नहीं आया कि रिया को संभाले या मनीष को रोके.

मनीष की आंखें आग उगल रही थीं.

‘जानती हो कहां से ले कर आया हूं इसे. मुझे तो बताते हुए भी शर्म आती है.’

दिशा हैरानी से मनीष की तरफ सवालिया नजरों से देखती रही.

‘पुलिस स्टेशन से.’

‘क्या?’ दिशा का मुंह खुला का खुला रह गया.

‘इंसपैक्टर प्रवीर शिंदे ने मुझे बताया कि उन्होंने इसे एक लड़के के साथ आपत्तिजनक स्थिति में पकड़ा था.’ दिशा का चेहरा गुस्से से लाल हो गया और वह रिया को खा जाने वाली नजरों से देखने लगी. रिया की आंखों से अब भी अंगारे बरस रहे थे और फिर उस ने गुस्से से जोर से परदों को खींचा और अपने कमरे में चली गई. मनीष अपने कमरे में जा कर अपनी शराब की बोतल खोल कर पीने लग गया. दिशा रिया के कमरे की तरफ बढ़ी तो देखा कि दरवाजा अंदर से बंद था. उस ने बहुत आवाज लगाई पर रिया ने दरवाजा नहीं खोला. एक घंटे के बाद जब मनीष पर शराब का सुरूर चढ़ा तो वह बहकते कदमों से लड़खड़ाते हुए रिया के कमरे के दरवाजे के बाहर जा कर बोला, ‘रिया, मेरे बच्चे, बाहर आ जा. मुझे माफ कर दे. आगे से तुझ पर हाथ नहीं उठाऊंगा.’ दिशा जानती थी कि यह शराब का असर है, वरना प्यार से बात करना तो दूर, वह रिया को प्यारभरी नजरों से देखता भी नहीं था.

रिया ने दरवाजा खोला और पापा के गले लग कर बोली, ‘पापा, आई एम सौरी.’

दोनों बापबेटी का ड्रामा चालू था. न वह मानने वाली थी और न मनीष. दिशा कुछ समझाना चाहती तो रिया और मनीष उसे चुप करा देते. हार कर उस ने भी कुछ कहना छोड़ दिया. इस चुप्पी का असर यह हुआ कि दिशा से उस की दूरियां बढ़ती रहीं और रिया के कदम बहकने लगे.

दिशा आज अपनेआप को कोस रही थी कि अगर मैं ने उस चुप्पी को न स्वीकारा होता तो रिया आज हमारे साथ होती. बातबात पर रिया पर हाथ उठाना तो रोज की बात हो गई थी. आज उसे महसूस हो रहा था कि जब बच्चे बड़े हो जाते हैं तो उन के साथ दोस्तों सा व्यवहार करना चाहिए. कुछ पल उन के साथ बिताने चाहिए, उन के पसंद का काम करना चाहिए ताकि हम उन का विश्वास जीत सकें और वे हम से अपने दिल की बात कह सकें. पर दिशा यह सब नहीं कर पाई और अपनी सुंदर बेटी को आज के ही दिन पिछले साल खो बैठी.

आज उसे 4 अप्रैल, 2015 बहुत याद आ रहा था और उस दिन की एकएक घटना चलचित्र की भांति उस की आंखों के बंद परदों से हो कर गुजरने लगी…

कितनी उत्साहित थी रिया अपने सोलहवें जन्मदिन को ले कर. जिद कर के 4 हजार रुपए की पिंक कलर की वह ‘वन पीस’ ड्रैस उस ने खरीदी थी. कितनी मुश्किल से वह ड्रैस हम उसे दिलवा पाए थे. वह तो अनशन पर बैठी थी.

स्कूल से छुट्टी कर ली थी उस ने जन्मदिन मनाने के लिए. सुबहसवेरे तैयार होने लगी. 4 घंटे लगाए उस दिन उस ने तैयार होने में. बालों की प्रैसिंग करवाई, फिर कभी ऐसे, कभी वैसे बाल बनाते हुए उस ने दोपहर कर दी. जब दिशा उस दिन स्कूल से लौटी तो एक पल निहारती रह गई रिया को.

‘हैप्पी बर्थडे, बेटा.’

दिशा ने कहा तो रिया ने जवाब दिया, ‘रहने दो मम्मी, अगर आप को मेरे जन्मदिन की खुशी होती तो आज आप स्कूल से छुट्टी ले लेतीं और मुझे कभी मना नहीं करतीं इस ड्रैस के लिए.’ दिशा का मन बुझ गया पर वह रिया का मूड नहीं खराब करना चाहती थी. दिशा यादों में डूबी थी कि तभी क्रिया की आवाज सुन कर उस की तंद्रा भंग हुई.

‘‘मम्मा, मम्मा आप अभी तक सोए पड़े हो?’’ क्रिया ने घर में घुसते ही सवाल किया. दिशा का चेहरा पूरा आंसुओं से भीग गया था. वह अनमने मन से उठी और रसोई में जा कर क्रिया के लिए खाना गरम करने लगी. क्रिया ने फिर सुबह वाला प्रश्न दोहराया, ‘‘मम्मी, क्या हम तृष्णा दीदी के मेहंदी फंक्शन में जाएंगे?’’

दिशा ने कोई जवाब नहीं दिया. क्रिया बारबार अपना प्रश्न दोहराने लगी तो उस ने गुस्से में कहा, ‘‘नहीं, हम किसी फंक्शन में नहीं जाएंगे.’’ आज रिया की बरसी थी तो ऐसे में वह कैसे किसी फंक्शन में जाने की कल्पना कर सकती थी. क्रिया को बहुत गुस्सा आया. शायद वह इस फंक्शन में जाने के लिए अपना मन बना चुकी थी. उसे ऐसे फंक्शन पर जाना अच्छा लगता था और मां का मना करना उसे बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा था.

‘‘मम्मा, आप बहुत गंदे हो, आई हेट यू, मैं कभी आप से बात नहीं करूंगी.’’ गुस्से से बोलती हुई क्रिया अपने कमरे में चली गई और उस ने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया.

दरवाजे की तेज आवाज से मनीष का नशा टूटा तो वह कमरे से चिल्लाया, ‘‘यह क्या हो रहा है इस घर में? कोई मुझे बताएगा?’’

दिशा बेजान सी कमरे की कुरसी पर धम्म से गिर गई. उस की नजरें कभी मनीष के कमरे के दरवाजे पर जातीं, कभी क्रिया के बंद दरवाजे पर तो कभी रिया की तसवीर पर. अचानक उसे सब घूमता हुआ नजर आया, ठीक वैसे ही जब पिछले साल 4 तारीख को फोन आया था, ‘देखिए, मैं डाक्टर दत्ता बोल रहा हूं सिटी हौस्पिटल से. आप जल्द से जल्द यहां आ जाएं. एक लड़की जख्मी हालत में यहां आई है. उस के मोबाइल से ‘होम’ वाले नंबर पर मैं ने कौल किया है. शायद, यह आप के घर की ही कोई बच्ची है.’

यह सुनते ही दिल जोरजोर से धड़कने लगा, वह रिया नहीं है. अगर वह रिया नहीं हैं तो वह कहां हैं? अचानक उसे याद आया, वह तो 6 बजे अपने दोस्तों के साथ जन्मदिन मनाने गई थी. असमंजस की स्थिति में वह और मनीष हौस्पिटल पहुंचे तो डाक्टर उन्हें इमरजैंसी वार्ड में ले गया और यह जानने के बाद कि वे उस लड़की के मातापिता हैं, बोला, ‘आई एम सौरी, इस की डैथ तो औन द स्पौट ही हो गई थी.’ अचानक से आसमान फट पड़ा था दिशा पर. वह पागलों की तरह चीखने लगी और जोरजोर से रोने लगी. ‘इस के साथ एक लड़का भी था वह दूसरे कमरे में है. आप चाहें तो उस से मिल सकते हैं.’

मनीष और दिशा भाग कर दूसरे कमरे में गए. और गुस्से से बोले, ‘बोल, क्यों मारा तू ने हमारी बेटी को, उस ने तेरा क्या बिगाड़ा था?’

16 साल का हितेश घबरा गया और रोतेरोते बोला, ‘आंटी, आंटी, मैं ने कुछ नहीं किया, वह तो मेरी बहुत अच्छी दोस्त थी.’

‘फिर ये सब कैसे हुआ? बता, नहीं तो मैं अभी पुलिस को फोन करता हूं,’ मनीष ने गुस्से में कहा. ‘अंकल, हम 4 लोग थे, रिया और हम 3 लड़के. मोटरसाइकिल पर बैठ कर हम पहले हुक्का बार गए…’

मनीष और दिशा की आंखें फटी की फटी रह गईं यह जान कर कि उन की बेटी अब हुक्का और शराब भी पीने लगी थी. फिर मैं ने रिया से कहा, ‘रिया काफी देर हो गई है. चलो, मैं तुम्हें घर छोड़ देता हूं. पर अंकल, वह नहीं मानी, बोली कि आज घर जाने का मन नहीं है. ‘मेरे बहुत समझाने पर बोली कि अच्छा, थोड़ी देर बाद घर छोड़ देना तब तक लौंग ड्राइव पर चलते हैं. तभी, अंकल आप का फोन आया था जब आप ने घर जल्दी आने को कहा था. पर वह तो जैसे आजाद होना चाहती थी. इसीलिए उस ने आगे बढ़ कर चलती मोटरसाइकिल से चाबी निकालने की कोशिश की और इस सब में मोटरसाइकिल का बैलेंस बिगड़ गया और वह पीछे की ओर पलट गई. वहीं, डिवाइडर पर लोहे का सरिया सीधा उस के सिर में लग गया और उस ने वहीं दम तोड़ दिया.’

दहशत में आए हितेश ने सारी कहानी रोतेरोते बयान कर दी. दिशा और मनीष सकते में आ गए और जानेअनजाने में हुई अपनी गलतियों पर पछताने लगे. काश, हम समय रहते समझ पाते तो आज रिया हमारे बीच होती. तभी अचानक दिशा वर्तमान में लौट आई और उसे क्रिया का ध्यान आया जो अब भी बंद दरवाजे के अंदर बैठी थी. दिशा ने कुछ सोचा और उठ कर क्रिया का दरवाजा खटखटाने लगी, ‘‘क्रिया बेटा, दरवाजा खोलो.’’

अंदर से कोई आवाज नहीं आई.

‘‘अच्छा बेटा, आई एम सौरी. अच्छा ऐसा करना, वह जो पिंक वाली ड्रैस है, तुम आज रात मेहंदी फंक्शन में वही पहन लेना. वह तुम पर बहुत जंचती है.’’ दिशा का इतना बोलना था कि क्रिया झट से बाहर आ कर दिशा के गले लग गई और बोली, ‘‘सच मम्मा, हम वहां बहुत मस्ती करेंगे, यह खाएंगे, वह खाएंगे. आई लव यू, मम्मा.’’ बच्चों की खुशियां भी उन की तरह मासूम होती हैं, छोटी पर अपने आप में पूर्ण. शायद यह बात मुझे बहुत पहले समझ आ गई होती तो रिया कभी हम से जुदा नहीं होती. दिशा ने सोचा, वह अपनी एक बेटी खो चुकी थी पर दूसरी अभी इतनी दूर नहीं गई थी जो उस की आवाज पर लौट न पाती. दिशा ने कस कर क्रिया को गले से लगा लिया इस निश्चय के साथ कि वह इतिहास को नहीं दोहराएगी.

अगले दिन उस ने अपने स्कूल में इस्तीफा भेज दिया इस निश्चय के साथ कि वह अब अपनी डोलती जीवननैया की पतवार बन कर मनीष और क्रिया को संभालेगी. सब से पहले वह अपनी सेहत पर ध्यान देगी और गुस्से को काबू करने के लिए एक्सरसाइज करेगी. घर बैठे ही ट्यूशन से आमदनी का जरिया चालू करेगी. काश, ऐसा ही कुछ रिया के रहते हो गया होता तो रिया आज उस के साथ होती. इस तरह अपनी गलतियों को सुधारने का निश्चय कर के दिशा अपनी जिंदगी की नई शुरुआत कर चुकी थी. Hindi Story

Social Story: लौटते कदम – जिंदगी के खूबसूरत लम्हों को जीने का मौका

Social Story: जीवन में सुनहरे पल कब बीत जाते हैं, पता ही नहीं चलता है. वक्त तो वही याद रहता है जो बोझिल हो जाता है. वही काटे नहीं कटता, उस के पंख जो नहीं होते हैं. दर्द पंखों को काट देता है. शादी के बाद पति का प्यार, बेटे की पढ़ाई, घर की जिम्मेदारियों के बीच कब वैवाहिक जीवन के 35 साल गुजर गए, पता ही नहीं चला.

आंख तो तब खुली जब अचानक पति की मृत्यु हो गई. मेरा जीवन, जो उन के आसपास घूमता था, अब अपनी ही छाया से बात करता है. पति कहते थे, ‘सविता, तुम ने अपना पूरा वक्त घर को दे दिया, तुम्हारा अपना कुछ भी नहीं है. कल यदि अकेली हो गई तो क्या करोगी? कैसे काटोगी वो खाली वक्त?’

मैं ने हंसते हुए कहा था, ‘मैं तो सुहागिन ही मरूंगी. आप को रहना होगा मेरे बगैर. आप सोच लीजिए कि कैसे रहेंगे अकेले?’ किसे पता था कि उन की बात सच हो जाएगी. बेटा सौरभ, बहू रिया और पोते अवि के साथ जी ही लूंगी, यही सोचती थी. जिंदगी ऐसे रंग बदलेगी, इस का अंदाजा नहीं था.

बहू के साथ घर का काम करती तो वह या तो अंगरेजी गाने सुनती या कान में लीड लगा कर बातें करती रहती. मेरे साथ, मुझ से बात करने का तो जैसे समय ही खत्म हो गया था. कभी मैं ही कहती, ‘रिया, चल आज थोड़ा घूम आएं. कुछ बाजार से सामान भी लेना है और छुट्टी का दिन भी है.’

उस ने मेरे साथ बाहर न जाने की जैसे ठान ली थी. वह कहती, ‘मां, एक ही दिन तो मिलता है, बहुत सारे काम हैं, फिर शाम को बौस के घर या कहीं और जाना है.’ बेटे के पास बैठती तो ऐसा लगता जैसे बात करने को कुछ बचा ही नहीं है. एक बार उस से कहा भी था, ‘सौरभ, बहुत खालीपन लगता है. बेटा, मेरा मन नहीं लगता है,’ कहतेकहते आंखों में आंसू भी आ गए पर उन सब से अनजान वह बोला, ‘‘अभी पापा को गए 6 महीने ही तो हुए हैं न मां, धीरेधीरे आदत पड़ जाएगी. तुम घर के आसपास के पार्क क्यों नहीं जातीं. थोड़ा बाहर जाओगी, तो नए दोस्त बनेंगे, तुम को अच्छा भी लगेगा.’’

सौरभ का कहना मान कर घर से बाहर निकलने लगी. पर घर आ कर वही खालीपन. सब अपनेअपने कमरे में. किसी के पास मेरे लिए वक्त नहीं. जहां प्यार होता है वहां खुद को सुधारने की या बदलने की बात भी खयाल में नहीं आती. पर जब किसी का प्यार या साथ पाना हो तो खुद को बेहतर बनाने की सोच साथ चलती है. आज पास्ता बनाया सब के लिए. सोचा, सब खुश हो जाएंगे. पर हुआ उलटा ही. बहू बोली, ‘‘मां, यह तो नहीं खाया जाएगा.’’

यह वही बहू है, जिसे खाना बनाना तो दूर, बेलन पकड़ना भी मैं ने सिखाया. इस के हाथ की सब्जी सौरभ और उस के पिता तो खा भी नहीं पाते थे. सौरभ कहता, ‘‘मां, यह सब्जी नहीं खाई जाती है. खाना तुम ही बनाया करो. रिया के हाथ का यह खाना है या सजा?’’

जब रिया के पिता की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी तब उसे दर्द से संभलने में मैं ने उस का कितना साथ दिया था. तब मैं अपने पति से कहती, ‘रिया का ध्यान रखा करो. पिता को यों अचानक खो देना उस के लिए बहुत दर्दनाक है. अब आप ही उस के पिता हैं.’

मेरे पति भी रिया का ध्यान रखते. वे बारबार अपनी मां से मिलने जाती, तो पोते को मैं संभाल लेती. उस की पढ़ाई का भी तो ध्यान रखना था न. इतना कदम से कदम मिला कर चलने के बाद भी आज यह सूनापन…

एक दिन बहू से कहा, ‘‘रिया, कालोनी की औरतें एकदूसरे के घर इकट्ठी होती हैं. चायनाश्ता भी हो जाता है. पिछले महीने मिसेज श्वेता की बहू ने अच्छा इंतजाम किया था. इस बार हम अपने घर सब को बुला लें क्या?’’ सुनते ही रिया बोली, ‘‘मां, अब यह झमेला कौन करेगा? रहने दो न, ये सब. मैं औफिस के बाद बहुत थक जाती हूं.’’

मैं ने कहा, ‘‘आजकल तो सब की बहुएं बाहर काम पर जाती हैं, पर उन्होंने भी तो किया था न. चलो, हम नहीं बुलाते किसी को, मैं मना कर देती हूं.’’ उस दिन से मैं ने उन लोगों के बीच जाना छोड़ दिया. कल मिसेज श्वेता मिल गईं तो मैं ने उन से कहा, ‘‘मुझे वृद्धाश्रम जाना है, अब इस घर में नहीं रहा जाता है. अभी पोते के इम्तिहान चल रहे हैं, इस महीने के आखिर तक मैं चली जाऊंगी.’’

यह सुन कर मिसेज श्वेता कुछ भी नहीं कह पाई थीं. बस, मेरे हाथ को अपने हाथ में ले लिया था. कहतीं भी क्या? सबकुछ तय कर लिया था. फिर भी जाते समय हमारे बच्चे को हम से कोई तकलीफ न हो, हम यही सोचते रहे. वक्त भी बड़े खेल खेलता है. वृद्धाश्रम का फौर्म ला कर रख दिया था. सोचा, जाने से पहले बता दूंगी.

आज दोपहर को दरवाजे की घंटी बजी. ‘इस समय कौन होगा?’ सोचते हुए मैं ने दरवाजा खोला तो सामने बहू खड़ी थी. मुझे देखते ही बोली, ‘‘मां, मेरी मां को दिल का दौरा पड़ा है. वे अस्पताल में हैं. मुझे उन के पास जाना है. सौरभ पुणे में है, अवि की परीक्षा है, मां, क्या करूं?’’ कहतेकहते रिया रो पड़ी. ‘‘तू चिंता मत कर. अवि को मैं पढ़ा दूंगी. छोटी कक्षा ही तो है. सौरभ से बात कर ले वह भी वहीं आ जाएगा.’’

4 दिनों बाद जब रिया घर आई तो आते ही उस ने मुझे बांहों में भर लिया. ‘‘क्या हो गया रिया, तुम्हारी मां अब कैसी है?’’ उस के इस व्यवहार के लिए मैं कतई तैयार नहीं थी. ‘‘मां अब ठीक हैं. बस, आराम की जरूरत है. अब मां ने आप को अपने पास बुलाया है. भाभी ने कहा है, ‘‘आप दोनों साथ रहेंगी तो मां को भी अच्छा लगेगा. वे आप को बहुत याद कर रही थीं.’’

रिया ने मेरा हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, ‘‘मां, इस घर को आप ने ही संभाला है. आप के बिना ये सब असंभव था. यदि आप सबकुछ नहीं संभालतीं तो अवि के एक साल का नुकसान होता या मैं अपनी मां के पास नहीं जा पाती.’’ ‘‘अपने बच्चों का साथ नहीं दिया तो यह जीवन किस काम का. चल, अब थोड़ा आराम कर, फिर बातें करेंगे.’’

अगले दिन सुबह जब रिया मेरे साथ रसोई में काम कर रही थी, तो हम दोनों बातें कर रहे थे. दोपहर में तो घर सूना होता है पर आज हर तरफ रौनक लग रही थी. सोचा, चलो, मिसेज श्वेता से मिल कर आती हूं. उन के घर गई तो उन्होंने बड़े प्यार से पास बिठाया और बोलीं, ‘‘कल रात को रिया हमारे घर आई थी. मुझ से और मेरी बहू से पूछ रही थी कि हम ने अपने घर कितने लोगों को बुलाया और पार्टी का कैसा इंतजाम किया. इस बार तुम्हारे घर सब का मिलना तय कर के गई है. तुम्हें सरप्राइज देगी. तुम्हारे दिल का हाल जानती हूं, इसलिए तुम्हें बता दिया. बच्चे अपनी गलती समझ लें, यही काफी है. हम इन के बगैर नहीं

जी पाएंगे.’’ ‘‘यह तो सच है, हम सब को एकदूसरे की जरूरत है. सब अपनाअपना काम करें, थोड़ा वक्त प्रेम को दे दें, तो जीवन आसान लगने लगता है.’’

मिसेज श्वेता के घर से वापस आते समय मुझे धूप बहुत सुनहरी लग रही थी. लगा कि आज फिर वक्त के पंख लग गए हैं.

Hindi Story: चोट – पायल ने योगेश को कैसी सजा दी

Hindi Story: योगेश की निगाहें तो एकटक पायल पर लगी हुई थीं. उस का खूबसूरत चेहरा योगेश की आंखों से हो कर दिल में उतर गया था, जिस से उस के दिल में एक हलचल सी मच गई थी.

योगेश की क्लास के सभी छात्र अपना काम पूरा करने में लगे हुए थे और वह कुरसी पर बैठा एकटक पायल को देखे जा रहा था.

पायल कुछ ही महीने पहले योगेश के स्कूल में आई थी. उस की उम्र 16 साल थी और उस ने 10 वीं क्लास में दाखिला लिया था.

योगेश शहर के एक नामचीन स्कूल में अंगरेजी का मास्टर था. उस की उम्र तकरीबन 45 साल थी.  वह शादीशुदा और एक बच्ची का बाप था.

स्वभाव से रंगीनमिजाज योगेश की निगाहें स्कूल में पढ़ने वाली लड़कियों के बदन को टटोलती रहती थीं. ऐसे में जो लड़की उस के मन को भा जाती थी, वह उस के पीछे पड़ जाता था. प्यार से, मनुहार से या फिर इम्तिहान में फेल करने का डर दिखा कर वह उस का जिस्मानी शोषण करता था.

ऐसा करते हुए योगेश उस लड़की के मन में इतना डर भर देता था कि पीडि़त लड़की चाह कर भी उस के खिलाफ मुंह नहीं खोल पाती थी.

योगेश की निगाहें पायल पर थीं. जब भी मौका मिलता, वह उसे छूनेसहलाने की कोशिश करता. ऐसे में पायल चौंक कर उसे देखती, फिर न जाने क्यों उस के होंठों पर एक मुसकान फैल जाती. पायल की यह मुसकान योगेश की वासना को हवा देती थी.

दरअसल, पायल के रसीले होंठ जब भी मुसकराते, तो ऐसा लगता मानो उस से रस टपक पड़ेगा. ऐसे में योगेश का दिल चाहता कि वह उस के होंठों पर अपने होंठ रख कर रस को पी ले.

स्कूल में ज्यादा से ज्यादा योगेश पायल को छू सकता था, सहला सकता था, पर उस के होंठों और बदन से छलकती जवानी का पान नहीं कर सकता था. इस के लिए एकांत की जरूरत थी और यह एकांत उसे अपने घर पर ही मिल सकता था.

पर घर पर योगेश की पत्नी थी, पर उस से उसे कोई खास डर न था. वह एक सीधीसादी और घरेलू औरत थी. वह आएदिन मायके जाती रहती थी. वह इस मौके का फायदा उठा सकता था और अपनी इच्छा पूरी कर सकता था. पर इस के लिए उसे पायल को अपने जाल में फांसना जरूरी था.

‘‘पायल, तुम्हारी अंगरेजी तो बहुत ही कमजोर है,’’ एक दिन योगेश उस की कौपी देखते हुए बोला, ‘‘अगर ऐसा ही रहा, तो तुम इम्तिहान में अच्छे नंबर नहीं ला पाओगी.’’

योगेश की बातें सुन कर पायल के चेहरे पर उदासी छा गई. वह बोली, ‘‘सर, मैं कोशिश तो बहुत करती हूं, पर अंगरेजी मेरी समझ में ही नहीं आती है.’’

‘‘आ जाएगी, अगर मैं तुम्हें पढ़ाऊंगा…’’ योगेश अपने असली मकसद पर आता हुआ बोला, ‘‘ऐसा करो, तुम मेरे घर आ जाया करो, मैं तुम्हें पढ़ा दिया करूंगा.’’

‘‘पर, मैं आप की फीस नहीं दे पाऊंगी…’’ पाय ने मजबूरी जाहिर की.

‘‘कोई बात नहीं.’’

‘‘थैंक्यू सर…’’ पायल बोली, ‘‘तो मैं कब से आ जाऊं?’’

‘‘कल से ही आ जाओ.’’

‘‘ठीक है.’’

पायल योगेश के घर जा कर उस से पढ़ने लगी. शुरूशुरू में सबकुछ ठीकठाक रहा, फिर उसे थोड़ी उलझन सी होने लगी.

दरअसल, योगेश पढ़ातेपढ़ाते उस के बदन को जहांतहां छूने लगता था. वह दिखाता तो ऐसा था कि ऐसा जानेअनजाने में हो जाता है, पर धीरधीरे पायल को यह बात समझ में आने लगी थी कि वह जानबूझ कर ऐसा करता है. पर चूंकि योगेश ने कभी मर्यादा की सीमा पार करने की कोशिश न की थी, सो वह उस की इन हरकतों को नजरअंदाज करती रही.

योगेश की यह हरकत आगे चल कर उसे कितनी महंगी पड़ने वाली है, तब पायल को इस बात का एहसास न था.

उस दिन रविवार था. पायल उस शाम जब योगेश से पढ़ने घर पहुंची, तो उस के घर में सन्नाटा पसरा हुआ था. पूछने पर योगेश ने बताया कि उस की पत्नी अपनी बेटी के साथ मायके गई हुई है और 3 दिन बाद लौटेगी.

आज योगेश ने उसे अपने बैडरूम में बिठाया था. वह थोड़ी देर के लिए कमरे से बाहर निकला, फिर आ कर कमरे में बिछावन पर उस के करीब बैठ गया था.

न जाने क्यों पायल का मन किसी अनजान मुसीबत से घबरा रहा था, पर वह अपनेआप को संभालते हुए बोली, ‘‘सर, आज मुझे क्या पढ़ाएंगे?’’

‘‘आज मैं तुम्हें प्यार का सबक पढ़ाऊंगा,’’ योगेश वासना की निगाहों से पायल के उभारों को घूरता हुआ बोला.

‘‘क्या मतलब है सर?’’ पायल थोड़ा चौंकते हुए बोली.

‘‘मतलब यह कि तुम बहुत ही खूबसूरत हो और मेरा मन तुम्हारी खूबसूरती पर आ गया है.’’

‘‘आप कैसी बातें कर रहे हैं सर?’’ पायल कठोर आवाज में बोली, ‘‘यह मत भूलिए कि आप मेरे गुरु हैं.’’

‘‘आज मैं न तो तुम्हारा गुरु हूं और न तुम मेरी शिष्या. इस समय मैं प्यार की आग में झुलसता एक मर्द हूं और तुम यौवन रस से भरपूर एक औरत…

‘‘आओ, मेरी बांहों में आओ. मेरे तनमन पर प्यार की ऐसी बरसात करो कि मेरी महीनों की प्यास बुझ जाए,’’ कहते हुए योगेश ने पायल को अपनी बांहों में भींच लिया.

पायल रोई, छटपटाई, गुरुशिष्या के पवित्र रिश्ते की दुहाई दी, पर योगेश ने उस की एक न सुनी. वह वासना के मद में इतना अंधा हो चुका था कि उस ने पायल को तभी छोड़ा, जब उस की आबरू की चादर को तारतार कर दिया.

पायल कुछ देर तक तो उसे नफरत से घूरती रही, फिर अपने कपड़े संभालती हुई कमरे से निकल गई.

उस रात जब पायल अपने घर पर बिछावन पर लेटी, तो नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी.

पायल ने सोचा कि वह अपनी मां को इस हादसे के बारे में बता दे, पर अगले ही पल उसे विचार आया कि वे यह सब सुनते ही जीतेजी मर जाएंगी. वे तो इस आस में मेहनतमजदूरी कर पायल को पढ़ा रही थीं, ताकि वह पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ी हो सके. ऐसे में इस हादसे के बारे में सुन कर वे बुरी तरह टूट जाएंगी.

पायल सारी रात अपने मन में उठे विचारों से लड़ती रही और जब सुबह हुआ, तो इस बात का फैसला कर चुकी थी कि वह योगेश के किए की सजा जरूर दे कर रहेगी, चाहे इस के लिए उसे कुछ भी करना पड़े.

योगेश ने पायल को अपनी वासना का शिकार बना तो डाला था, पर अब इस बात से डरा हुआ था कि कहीं वह उस की करतूत किसी और को न बता दे.

इस घटना के बाद 2 दिन तक पायल स्कूल नहीं आई. इस बीच योगेश एक अनजाने डर से घिरा रहा. तीसरे दिन पायल स्कूल आई. उसे स्कूल आया देख योगेश के मन को थोड़ी राहत मिली.

योगेश ने उसे डरतेडरते देखा तो पाया कि वह पहले की ही तरह सामान्य दिख रही थी. उस की ऐसी हालत देख योगेश के होंठों पर मक्कारी भरी मुसकान तैर गई. उसे पक्का यकीन हो गया कि पायल पर उस की धमकी काम कर गई है.

योगेश को तेज झटका तब लगा, जब अगले दिन शाम को पायल उस से पढ़नेघर आ गई. पढ़ाने को तो वह उसे पढ़ाता रहा, पर उस के मन में एक अजीब सी हलचल मची रही.

पढ़ाई खत्म करने के बाद योगेश पायल को गौर से देखता हुआ बोला, ‘‘पायल, तुम्हें मेरे उस दिन की हरकत बुरी तो नहीं लगी?’’

‘‘लगी,’’ पायल उस की आंखों में झांकते हुए बोली, ‘‘पर एक अजीब सा मजा भी मिला,’’ कहते हुए पायल के होंठों पर एक मादक मुसकान उभरी.

‘‘सच?’’ योगेश की आंखों में हैरानी भरी चमक उभरी.

‘‘बिलकुल.’’

‘‘क्या तुम फिर से वैसा मजा पाना चाहोगी?’’

‘‘हां,’’ कह कर पायल तेजी से कमरे से निकल गई.

योगेश कई पल तक तो हैरान सा कमरे में खड़ा रहा, फिर उस के मन में वासना की तरंगें उठने लगीं. इस के बाद तो योगेश की जब इच्छा होती, पायल को बिस्तर पर लिटा लेता. यह खेल वह या तो किसी होटल के कमरे में खेलता या फिर एकांत मिलने पर अपने घर पर. वह अपनी इस कामयाबी पर बेहद खुश था.

एक शाम पायल योगेश के घर पढ़ने आई हुई थी. योगेश उसे पढ़ा कम छेड़छाड़ ज्यादा कर रहा था. जब उस ने पायल को अपनी बांहों में भर लेना चाहा, तो पायल मुसकराते हुए बोली, ‘‘सर, मैं आज आप को एक चीज दिखाना चाहती हूं. सच कहती हूं, इसे देख कर आप को बड़ा मजा आएगा.’’

‘‘क्या?’’

पायल ने अपनी किताब से कुछ फोटो निकाले और योगेश को थमा दिए. योगेश की निगाह जैसे ही उन फोटो पर पड़ी, वह ऐसे उछला, मानो किसी बिच्छु ने उसे डंक मार दिया हो.

‘‘यह क्या है?’’ योगेश ने डरते हुए पूछा.

‘‘यह उन पलों के फोटो हैं, जब आप अपनी एक शिष्या की आबरू से खेल रहे थे…’’ पायल के मुंह से नफरत भरी आवाज फूटी, ‘‘जरा सोचिए, अगर ये फोटो आप की पत्नी या पुलिस तक पहुंच गए, तो आप की क्या गत होगी?’’

‘‘नहीं,’’ योगेश के मुंह से चीख निकल गई.

‘‘मैं ऐसा नहीं करूंगी, अगर आप ने मेरी मांग पूरी कर दी तो…’’ पायल इतराते हुए अदा से बोली.

‘‘कैसी मांग?’’ योगेश पायल को यों देख रहा था, मानो वह दुनिया का आठवां अजूबा हो.

‘‘आप ने मेरी इज्जत से खिलवाड़ किया है. मुझे पत्नी की तरह भोगा है, तो मुझे सचमुच की पत्नी बना लीजिए.’’

‘‘क्या कह रही हो तुम?’’ योेगेश चीखा, ‘‘मैं पहले से ही शादीशुदा हूं और एक बच्ची का बाप भी हूं.’’

‘‘यह बात आप को मेरी इज्जत से खेलते समय सोचनी चाहिए थी.’’

‘‘पर मेरी पत्नी यह बात कभी नहीं मानेगी.’’

‘‘तो फिर उसे घर से निकाल दीजिए. वैसे भी आप जिस ढंग से प्यार का खेल खेलते हैं, वह उस के बस की बात नहीं है.’’

‘‘यह नहीं हो सकता.’’

‘‘तो फिर वह होगा, जो मैं चाहती हूं. मैं इस फोटो के साथ पुलिस के पास जाऊंगी और वहां इस बात की रिपोर्ट लिखवा दूंगी कि आप ने मेरे साथ रेप किया है. उस के बाद क्या होगा? आप समझें.’’

योगेश ने अपना सिर पीट लिया. एक तरफ कुआं था, तो दूसरी तरफ खाई. काफी देर तक वह परेशानी से अपना माथा मलता रहा, फिर बोला, ‘‘मुझे सोचने के लिए थोड़ा वक्त दो.’’

‘‘ठीक है, सोच लीजिए. पर सोचने में इतना ज्यादा समय मत लगाइएगा कि मैं पुलिस के पास पहुंच जाऊं.’’

योगेश ने इस बारे में काफी सोचा, फिर इस नतीजे पर पहुंचा कि उस की भलाई इसी में है कि वह पत्नी को घर से निकाल दे. वैसे भी पायल की खिलती जवानी के आगे अब पत्नी उसे बासी लगने लगी थी.

योगेश ने उलटेसीधे आरोप लगा कर अपनी पत्नी को घर से निकाल दिया और पायल को पत्नी की तरह अपने घर में रख लिया. पर पायल के मन में तो कुछ और था. वह योगेश को पूरी तरह बरबाद कर देना चाहती थी. वह दोनों हाथों से उस की दौलत लुटाने लगी.

पायल तो उस के घर को ऐयाशी का अड्डा बनाने पर तुल गई थी. वह यारदोस्तों को अपने साथ उस के घर में लाने लगी थी और उस की मौजूदगी में ही बंद कमरे में उन के साथ मौजमस्ती करने लगी थी.

योगेश यह सब देख कर मन ही मन कुढ़ता रहता. वह उस समय को कोसता, जब उस ने पायल की जवानी से खेलने का फैसला किया था. उस ने अपनी हंसतीखेलती दुनिया उजाड़ ली थी. उस ने अपनी पत्नी और बच्ची को घर से निकाल दिया था और अब वह पछतावे की आग में जल रहा था.

पायल ने न केवल उस के मकान पर कब्जा जमा लिया था, बल्कि योगेश की जिंदगी को नरक बना दिया था.पर एक रात योगेश का सब्र जवाब दे गया. उस रात पायल अपने एक दोस्त के साथ आई थी और आते ही कमरे में बंद हो गई थी. जब तक दरवाजा खुलता, तब तक योगेश की हालत अजीब हो गई थी.

जैसे ही पायल का दोस्त घर से बाहर निकला, योगेश पायल पर बरस पड़ा, ‘‘बहुत हुआ, अब यह सब बंद करो. मैं अपने घर को ऐयाशी का अड्डा बनते नहीं देख सकता.’’

‘‘यह सबक तो मैं ने आप से ही सीखा है सर…’’ पायल बोली, ‘‘और अब आप के लिए अच्छा यही होगा कि आप यह सब देखने की आदत डाल लें.’’ योगेश के मुंह से बोल न फूटे. वह खून के आंसू पी कर रह गया.

Hindi Story: दोस्ती – क्या एक हो पाए आकांक्षा और अनिकेत ?

Hindi Story, लेखिका – रश्मि वर्मा

आकांक्षा खुद में सिमटी हुई दुलहन बनी सेज पर पिया के इंतजार में घडि़यां गिन रही थी. अचानक दरवाजा खुला, तो उस की धड़कनें और बढ़ गईं. मगर यह क्या? अनिकेत अंदर आया.

दूल्हे के भारीभरकम कपड़े बदल नाइटसूट पहन कर बोला, ‘‘आप भी थक गई होंगी. प्लीज, कपड़े बदल कर सो जाएं. मुझे भी सुबह औफिस जाना है.’’

आकांक्षा का सिर फूलों और जूड़े से पहले ही भारी हो रहा था, यह सुन कर और झटका लगा, पर कहीं राहत की सांस भी ली. अपने सूटकेस से खूबसूरत नाइटी निकाल कर पहनी और फिर वह भी बिस्तर पर एक तरफ लुढ़क गई.

अजीब थी सुहागसेज. 2 अनजान जिस्म जिन्हें एक करने में दोनों के परिवार वालों ने इतनी जहमत उठाई थी, बिना एक हुए ही रात गुजार रहे थे. फूलों को भी अपमान महसूस हुआ. वरना उन की खुशबू अच्छेअच्छों को मदहोश कर दे.

अगले दिन नींद खुली तो देखा अनिकेत औफिस के लिए जा चुका था. आकांक्षा ने एक भरपूर अंगड़ाई ले कर घर का जायजा लिया.

2 कमरों का फ्लैट, बालकनी समेत अनिकेत को औफिस की तरफ से मिला था. अनिकेत एअरलाइंस कंपनी में काम करता है. कमर्शियल विभाग में. आकांक्षा भी एक छोटी सी एअरलाइंस कंपनी में परिचालन विभाग में काम करती है. दोनों के पिता आपस में दोस्त थे और उन का यह फैसला था कि अनिकेत और आकांक्षा एकदूसरे के लिए परफैक्ट मैच रहेंगे.

आकांक्षा को पिता के फैसले पर कोई आपत्ति नहीं थी, पर अनिकेत ने पिता के दबाव में आ कर विवाह का बंधन स्वीकार किया था. आकांक्षा ने औफिस से 1 हफ्ते की छुट्टी ली थी. सब से पहले किचन में जा कर चाय बनाई, फिर चाय की चुसकियों के साथ घर को संवारने का प्लान बनाया.

शाम को अनिकेत के लौटने पर घर का कोनाकोना दमक रहा था. जैसे ही अनिकेत ने घर में कदम रखा, करीने से सजे घर को देख कर उसे लगा क्या यह वही घर है जो रोज अस्तव्यस्त होता था? खाने की खुशबू भी उस की भूख को बढ़ा रही थी.

आकांक्षा चहकते हुए बोली, ‘‘आप का दिन कैसा रहा?’’

‘‘ठीक,’’ एक संक्षिप्त सा उत्तर दे कर अनिकेत डाइनिंग टेबल पर पहुंचा. जल्दी से खाना खाया और सीधा बिस्तर पर. औरत ज्यादा नहीं पर दो बोल तो तारीफ के चाहती ही है, पर आकांक्षा को वे भी नहीं मिले. 5 दिन तक यही दिनचर्या चलती रही.

छठे दिन आकांक्षा ने सोने से पहले अनिकेत का रास्ता रोक लिया, ‘‘आप प्लीज 5 मिनट बात करेंगे?’’

‘‘मुझे सोना है,’’ अनिकेत ने चिरपरिचित अंदाज में कहा.

‘‘प्लीज, कल से मुझे भी औफिस जाना है. आज तो 5 मिनट निकाल लीजिए.’’

‘‘बोलो, क्या कहना चाहती हो,’’ अनिकेत अनमना सा बोला.

‘‘आप मुझ से नाराज हैं या शादी से?’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘आप जानते हैं मैं क्या जानना चाहती हूं?’’

‘‘प्लीज डैडी से बात करो, जिन का फैसला था.’’

‘‘पर शादी तो आप ने की है? आकांक्षा को भी गुस्सा आ गया.’’

‘‘जानता हूं. और कुछ?’’ अनिकेत चिढ़ कर बोला.

आकांक्षा समझ गई कि अब सुलझने की जगह बात बिगड़ने वाली है. बोली, ‘‘क्या यह शादी आप की मरजी से नहीं हुई है?’’

‘‘नहीं. और कुछ?’’

‘‘अच्छा, ठीक है पर एक विनती है आप से.’’

‘‘क्या?’’

‘‘क्या हम कुछ दिन दोस्तों की तरह रह सकते हैं?’’

‘‘मतलब?’’ अनिकेत को आश्चर्य हुआ.

‘‘यही कि 1 महीने बाद मेरा इंटरव्यू है. मुझे लाइसैंस मिल जाएगा और फिर मैं आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका चली जाऊंगी 3 सालों के लिए. उस दौैरान आप को जो उचित लगे, वह फैसला ले लीजिएगा… यकीन मानिए आप को परेशानी नहीं होगी.’’

अनिकेत को इस में कोई आपत्ति नहीं लगी. फिर दोनों साथसाथ नाश्ता करने लगे. शाम को घूमने भी जाने लगे. होटल, रेस्तरां यहां तक कि सिनेमा भी. आकांक्षा कालेजगर्ल की तरह ही कपड़े पहनती थी न कि नईनवेली दुलहन की तरह. उन्हें साथ देख कर कोई प्रेमी युगल समझ सकता था, पर पतिपत्नी तो बिलकुल नहीं.

कैफे कौफीडे हो या काके दा होटल, दोस्तों के लिए हर जगह बातों का अड्डा होती है और आकांक्षा के पास तो बातों का खजाना था. धीरेधीरे अनिकेत को भी उस की बातों में रस आने लगा. उस ने भी अपने दिल की बातें खोलनी शुरू कर दी.

एक दिन रात को औफिस से अनिकेत लेट आया. उसे जोर की भूख लगी थी. घर में देखा तो आकांक्षा पढ़ाई कर रही थी. खाने का कोई अतापता नहीं था.

‘‘आज खाने का क्या हुआ?’’ उस ने पूछा.

‘‘सौरी, आज पढ़तेपढ़ते सब भूल गई.’’

‘‘वह तो ठीक है… पर अब क्या?’’

‘‘एक काम कर सकते हैं, आकांक्षा को आइडिया सूझा,’’ मैं ने सुना है मूलचंद फ्लाईओवर के नीचे आधी रात तक परांठे और चाय मिलती है. क्यों न वहीं ट्राई करें?

‘‘क्या?’’ अनिकेत का मुंह आश्चर्य से खुला रह गया.

‘‘हांहां, मेरे औफिस के काफी लोग जाते रहते हैं… आज हम भी चलते हैं.’’

‘‘ठीक है, कपड़े बदलो. चलते हैं.’’

‘‘अरे, कपड़े क्या बदलने हैं? ट्रैक सूट में ही चलती हूं. बाइक पर बढि़या रहेगा… हमें वहां कौन जानता है?’’

मूलचंद पर परांठेचाय का अनिकेत के लिए भी बिलकुल अलग अनुभव था. आखिर वह दिन भी आ ही गया जब आकांक्षा का इंटरव्यू था. सुबहसुबह घर का काम निबटा कर वह फटाफट डीजीसीए के लिए रवाना हो गई. वहां उस के और भी साथी पहले से मौजूद थे. नियत समय पर इंटरव्यू हुआ.

आकांक्षा के जवाबों ने एफआईडी को भी खुश कर दिया. उन्होंने कहा, ‘‘जाइए, अपने दोस्तों को भी बताइए कि आप सब पास हो गए हैं.’’

आकांक्षा दौड़ते हुए बाहर आई और फिल्मी अंदाज में टाई उतार कर बोली, ‘‘हे गाइज, वी औल क्लीयर्ड.’’ फिर क्या था बस, जश्न का माहौल बन गया. खुशीखुशी सब बाहर आए. आकांक्षा सोच रही थी कि बस ले या औटो तभी उस का ध्यान गया कि पेड़ के नीचे अनिकेत उस का इंतजार कर रहा है. आकांक्षा को अपने दायरे का एहसास हुआ तो पीछे हट कर बोली, ‘‘आप आज औफिस नहीं गए?’’

‘‘बधाई हो, आकांक्षा. तुम्हारी मेहनत सफल हो गई. चलो, घर चलते हैं. मैं तुम्हें लेने आया हूं,’’ अनिकेत ने मुसकराते हुए बाइक स्टार्ट की.

आकांक्षा चुपचाप पीछे बैठ गई. घर पहुंच कर खाना खा कर थोड़ी देर के लिए दोनों सो गए. शाम को आकांक्षा हड़बड़ा कर उठी और फिर किचन में जाने लगी तो अनिकेत ने रोक लिया, ‘‘परेशान होने की जरूरत नहीं है. हम आज खाना बाहर खाएंगे या मंगा लेंगे.’’

‘‘ओके,’’ आकांक्षा अपने कमरे में आ कर अपना बैग पैक करने लगी.

‘‘यह क्या? तुम कहीं जा रही हो?’’ अनिकेत ने पूछा.

‘‘जी, आप के साथ 1 महीना कैसे कट गया, पता ही नहीं चला. अब बाकी काम डैडी के पास जा कर ही कर लूंगी. और वहीं से 1 हफ्ते बाद अमेरिका चली जाऊंगी.’’

‘‘तो तुम मुझे छोड़ कर जा रही हो?’’

‘‘जी नहीं. आप से जो इजाजत मांगी थी, उस की आखिरी रात है आज, आकांक्षा मुसकराते हुए बोली.’’

‘‘जानता हूं, आकांक्षा मैं तुम्हारा दोषी हूं. पर क्या आज एक अनुरोध मैं तुम से कर सकता हूं? अनिकेत ने थोड़े भरे गले से कहा.’’

‘‘जी, बोलिए.’’

‘‘हम 1 महीना दोस्तों की तरह रहे. क्या अब यह दोस्ती प्यार में बदल सकती है? इस 1 महीने में तुम्हारे करीब रह कर मैं ने जाना कि अतीत की यादों के सहारे वर्तमान नहीं जीया जाता… अतीत ही नहीं वर्तमान भी खूबसूरत हो सकता है. क्या तुम मुझे माफ कर सकती हो?’’

उस रात आकांक्षा ने कुछ ही पलों में दोस्त से प्रेमिका और प्रेमिका से पत्नी का सफर तय कर लिया, धीरधीरे अनिकेत के आगोश में समा कर.

Hindi Story: मरीचिका – वरूण को मिला प्रकृति और मानवता की सेवा का परिणाम

Hindi Story: सुबह के सूरज की लाली आसमान पर फैल रही थी और हमेशा की तरह अदरक वाली चाय की चुस्कियों का आनंद लिया जा रहा था कि एक वाक्य गूंजा- “सुनो मीनू, आज नाश्ता कर के मुझे मोहन के साथ उन के लिए नया मकान देखने जाना है.”

वरुण ने यह कहा ही था कि मीनू उस का चेहरा देखती ही रह गई. “मतलब, मकान देखने, क्यों, उन के पास है न घर जहां वे 10 वर्षों से रह रहे हैं?” मीनू ने आश्चर्य प्रकट करते पूछ लिया.

“हां मीनू, वह मकान पुराने समय का है. तब वे एक साधारण बीमा दलाल थे. पर अब तो वे एक सफल कारोबारी हो गए हैं. खूब रुपया बरस रहा है. अब उन के परिचय में नएनए लोग जुड़ रहे हैं. अपने जैसे ऊंचेऊंचे लोगों के साथ ठाठ से रोब जमाना है तो अब उन को घर भी बड़ा चाहिए. मीनू, आर्थिक सबलता आज एक जादुई ताकत बन गई है. यह हमारे जीवन को उस के सभी सिद्धांतों से परे ले जाती है जहां हम मन के भावों में बेपरवाह भिगोना चाहते हैं और उन में अपने मन जैसे ही किसी साथी को भागीदार बनाना चाहते हैं.”

“हूं, सही कहा. बिलकुल सही.”

वरुण ने आगे बताया कि वह जाना नहीं चाहता था पर फोन कर के उन्होंने निवेदन किया है.

“अच्छा, फिर तो जाना चाहिए,” मीनू यह जवाब दे कर मन ही मन सोचने लगी कि वह मोहन के परिवार को 10 वर्षों से बखूबी जानती थी. एक छोटा सा घर और साधारण जीवन, मगर कितना आनंद था उस जीवन में. वे सब हर रविवार को पिकनिक के लिए जाते, ‘अपना बाजार’ से खरीदारी कर के खुशीखुशी लौट आते. लेकिन पिछले 2 वर्ष ऐसे निकले कि मोहन के दर्शन ही दुर्लभ हो गए थे.

वे और उन की पत्नी दोनों ने मिल कर टैंट एंड डैकोरेटर्स का काम शुरू कर दिया था. अब दोनों हर समय रूपया जमा कर रहे थे, भड़कीली, शानदार दावतों में शामिल हो रहे थे और मंहगी दावतें दे भी रहे थे कभी शहर के मेयर को कभी कमिश्नर को तो कभी रेलवे और नगर विकास प्राधिकरण के चेयरमैन को.

मीनू देख रही थी कि वे दोनों किस तरह इस कुटिल बाजार की धूर्तता का शिकार हो रहे थे. वे एक जाल में फंस रहे थे. उन का हर काम अब रुपएपैसे से जुड़ा था. उन की यही मजबूरी हो गई थी, इसीलिए अब उन के संपर्क में न तो सीधेसादे दोस्त थे न ही उन की दिनचर्या सहज व सरल थी.

वापस लौट कर वरुण ने मीनू को बताया, “बहुत ही पौश इलाके में घर फाइनल कर दिया है.” मीनू चकित थी कि वरुण का तो ऐसा रुझान ही नहीं है, तब भी उन्होंने वरुण को बुलाया. उसे और वरुण को तो महंगे घरों की जानकारी है ही नहीं. उस ने अपने मन में उठ रहा यह सवाल पूछ लिया तो वरुण ने जवाब दिया, “अरे, मुझे वे अपना लकी चार्म मानते हैं, इसलिए बुलाया. वहां पर दोचार नामचीन कारोबारी उन के साथ थे.”

“अच्छा,” मीनू को यह बात सही लगी. ऐसा पहले भी हुआ था जब मोहन ने अपना दफ्तर शुरू किया था.

“मीनू, उन का घर बिलकुल फिल्मी स्टाइल में तैयार किया गया है. एक चर्चित अभिनेत्री है न, बिलकुल उसी के घर की फोटोकौपी है.”

“अच्छा,” कह कर मीनू ने प्रतिक्रिया दी पर वह आगे और कुछ भी न बोली. बस, मन में सोचती रही कि हर इंसान की संरचना अलग है, दिमागी रसायन भी एकदूसरे से बिलकुल जुदा. ऐसे में लोकप्रिय अभिनेता का बाथरूम और बाथटब किसी अन्य के लिए कैसे मुफीद हो सकता है? अगर अभिनेत्री जैसा वार्डरोब नहीं होगा तो बाजार यह कहेगा कि आप को तो पहननेओढ़ने तक का सलीका नहीं मालूम.

वह अपनेआप से कहती रही कि घर तो हमारे सिर पर एक आशीष होता है. थके तनमन को एक कोमल सी थपकी कब पसंद नहीं. हम को बहुत सुकून देने वाले इस घर के साथ हमारी चुस्ती, खुमारी, गपशप, उपलब्धि, चहलपहल, बेचैनी, नींद, करवट, सपने आदि के खट्टेमीठे सारे ही अनुभव गूंजा करते हैं. हमारे मुंदे हुए 2 नैना और उन के सपनों का अथाह संसार हमेशा गहरी नींद में कहे गए कुछ साफ व धुंधले शब्द सब एक घर की स्मृतियों में हमेशाहमेशा सहेजे हुए रहते हैं. वहां नकल का क्या काम भला?  खैर, सब की अपनी सोच है.

“तो फिर, हम भी एक नया घर बुक करा लें?” वरुण ने उस की तरफ देख कर पूछा तो मीनू ने कहा, “वरुण, मेरे लिए तो यह घर पर्याप्त है. मुझे किसी भी तरह का कोई दिखावा या आडंबर नहीं करना है. हां, अगर तुम को यह घर असहज लगता हो तो वह अलग बात है.”

यह सुन कर वरुण जोर से हंस पड़ा और मुसकराते हुए बोला, “मीनू, इस का मतलब यह हुआ कि हम दोनों एक सी सोच रखते हैं. देखो न, तमाम कोशिश कर के, लोन जुटा कर और अपने

गाढे़पसीने की कमाई से हासिल यह घरौंदा हमारी हर रुचि को दिखाता है. तुम ने छत पर इतनी सुंदर नर्सरी बना रखी है कि बड़ेबड़े बंगले वाले तुम से प्रेरणा लेते हैं कि घर को कम जगह में भी शानदार कैसे बनाया जा सकता है. यही घर हम दोनों की वास्तविकता है.”

मीनू को यह सुन कर बहुत तसल्ली मिली और वह सीढ़ियां चढ़ कर छत पर चली गई. शाम को महाविद्यालय के कुछ शोध छात्र आ कर उस के पौधे देख अपनी रिपोर्ट तैयार करना चाहते थे.

मीनू इस तरह खूब व्यस्त रहती थी. रोजाना 4 घंटे का समय वह छत पर इन पौधों को दिया करती थी. पौधे भी ऐसे सुंदर और स्वस्थ थे कि देखते ही मन मोह लेते थे. उन्हें बारबार देख कर भी मन नहीं भरता था.

दिन यों ही सार्थक ढंग से गुजर रहे थे कि कुछ दिनों बाद मोहन ने फोन किया. उन के बेहद आग्रह पर मीनू और वरुण उन का आशियाना देखने गए. बहुत दुख हुआ कि उन के इतने अच्छे दोस्त अब एक अजीबोगरीब बनावटी घर में रहने लगे थे जो उन दोनों पर थोपा हुआ सा लगता था, उस पर तुर्रा यह कि वे दोनों, उस को मेरा आशियाना, मेरे सपनों का घर कहते हुए जरा सा भी न हिचक रहे, न अटक रहे थे.

मीनू और वरुण वहां अधिक देर तक नहीं रुके, जल्द वापस आ गए. जैसे ही घर पहुंचे, तो स्थानीय टीवी चैनल वाले गेट पर ही मिल गए. कालोनी वालों ने नई प्राकृतिक स्टोरी के लिए मीनू का नाम प्रस्तावित किया था. इसलिए वे मिलने आए थे और उस की छत पर जा कर नर्सरी का वीडियो बनाना चाहते थे.

उन की बात सुन कर मीनू दंग रह गई. उस का प्रकृतिप्रेम आज उस को कितनाकुछ दे रहा था. साथ ही, कालोनीवासियों का कितना लाड़प्यार था. वरना, वह तो ब्रेकिंग न्यूज, सनसनी खबर आदि से हमेशा दूर ही भागती थी.

मीनू ने टीवी चैनल की पूरी टीम को कुछ गमले उपहार में दिए. वे सब इतने खुश हो गए जैसे आज उन को सोनाचांदी ही मिल गया. वे जातेजाते यह बोलते गए कि “सच कहा जाए तो यह जीवन कुछ सीमित सांसों का एक खेल ही है जो कभी भी किसी समय भी खत्म हो सकता

है. इस खेल को अपने दिल की तरंगोंउमंगों के अनुसार खेला, तो शानदार है. और यही सही भी है. आप एक बेहतरीन जीवन जी रही हैं मीनू जी.”

यह सुन कर मीनू मन ही मन बहुत शरमा गई.

टीवी पर अपनी मां की स्टोरी देख कर बच्चे बहुत खुश हो गए. मीनू तो उन की नजर में एक हीरोइन हो गई थी.

वैसे भी, दोनों बच्चे अपने स्कूल में मां मीनू के कारण भी जाने जाते थे. एक बार भारी बारिश में पूरे शहर की नर्सरी बंद थीं. तब एक समारोह के लिए मीनू ने ही ताजे फूलों के गुलदस्ते बना कर दिए थे. उस दिन तो कार्यक्रम के मुख्य अतिथि भी बारबार उन फूलों को छू कर देख रहे थे.

फिर तो स्कूल प्रोजैक्ट वगैरह में उन के दोस्त भागभाग कर मीनू आंटी की छत पर आ जाते और वहां पर 200 गमलों से अपने लिए खजाना बटोर कर ले जाते. इसी तरह कुछ और दिन गुजर गए.

एक शाम मोहन सपत्नीक अचानक उन के घर पर आ गए. उन का उतरा हुआ चेहरा व उन की उदास आवाज से मीनू और वरुण चौंक गए कि आखिर माजरा क्या है? पता लगा कि उन को करोड़ों की चपत लग गई थी.

मामला यह था कि 3 अलगअलग विशाल सरकारी समारोह होने थे. उन आयोजनों मे किसी दलाल के भरोसे इन्होंने सप्ताहभर की सजावट का सामान भिजवाया और उस दलाल ने इन से बिल भी बनवा लिया यह कह कर कि भुगतान जल्दी करवा दूंगा. लंबाचौड़ा भुगतान होना था. पर अब भुगतान ले कर वह भूमिगत हो गया और इन की हालत पतली है. इन को करोड़ों की भारी चपत लग गई. उन का पिछला भी उसी दलाल के पास बहुत बकाया पड़ा था.

3 दिनों पहले ही मोहन ने मेयर की दावत में भी 2 लाख रुपए अपनी जेब से खर्च कर दिए थे यह सोच कर कि करोड़ रुपए का भुगतान आ ही रहा है. अब उन दोनों को कुछ भी समझ नहीं आ रहा कि करें तो क्या करें.

उस समय वहां मीनू के बडे़ भाई भी शिमला से आए हुए थे. वे भी यह सब कहानी सुन कर भौचक्के रह गए. मीनू ने उन को मन शांत रखने की सलाह दी और पहले ठंडा पानी व फिर कड़क चाय भी पिलाई. उस के बाद मीनू के बडे़ भाई ने उन को विस्तार से बताया कि लगभग 30 वर्षों से वे भी टैंट तथा डैकोरेशन का कारोबार कर रहे हैं पर आज तक कोई गड़बड़ी नहीं हुई.

“अच्छा,”  मोहन उन को अचंभे से देखने लगे.

“जी हां, मैं सरकारी और्डर तब लेता हूं जब सरकारी विभाग से लिखित कागज मिल जाता है. इस तरह सब काम पारदर्शी होता है. दलाल वगैरह के लालच में बंधने को तत्पर हम अपने कारोबार के सिद्धांत का मौलिक रूप मिटा रहे होते हैं. कारोबार में इस तरह साख खराब हो जाती है. लोग भरोसा नहीं करते. और फिर, अपनेअपने विचार हैं. जल्दीजल्दी खूब रुपया कमाना तो मेरा शौक नहीं रहा मगर आप को हंसी आएगी कि 30 लोगों का स्टाफ है, फिर भी 20 लाख रुपए सालाना की आय है. और यह हमारी जरूरत से ज्यादा है. खूब बचत हो जाती है. और मुझे आज तक किसी तिकड़म में नहीं फंसना पडा़.”

“अच्छा,” कह कर वे दोनों चुप सुनते रहे. मीनू को यह दिल से महसूस हुआ कि उन के घर पर कुछ देर रुक कर उन दोनों का मन काफी हलका हो गया था.

कुछ क्षण चुप रहने के बाद “अच्छा, फिर मिलते हैं,” कह कर उन्होंने विदा ली.

मीनू ने साफ देखा कि वे दोनों उस के भाई को कितने आदर व प्रेम से नमस्कार कर रहे थे.

एक महीने बाद एक और खबर मिली. जिस कालोनी में मीनू और वरुण रहते थे वहां एक छोटा सा घर बिकाऊ था. पता लगा कि मोहन वहां रहने लगे थे. मीनू और वरुण दौड़ेदौड़े उन से मिलने गए, तो देख कर दंग रह गए कि वे दोनों खुद ही सारे काम कर रहे थे. इतने सादे और शालीन सजावट वाले घर में वे रहने लगे थे और दोनों के मुखडे़ भी दमक रहे थे.

मीनू और वरुण भी उन की सहायता करने लगे. गपशप भी होती रही. बातोंबातों में उन्होंने बताया कि टैंट वाला पूरा काम उन्होंने अब किसी को बेच दिया है, साथ ही, कीमती मकान भी बेच दिया है. अब उसी पूंजी से कुछ नई शुरुआत होगी. फिर जरा सा रुक कर वे बोले कि कुछ समय तक तो वे दोनों लंबी छुट्टी मनाना चाह रहे हैं.

“ओह, तो आप विदेश जा रहे हैं न,” मीनू ने सहज ही कहा.

“नहीं मीनू, अब वह सब हम को सुकून नहीं देता. फिलहाल तो सिर्फ अच्छी किताबें पढ़ कर और घर पर रह कर चिंतनमनन करना चाहते हैं. जल्द ही कुछ अच्छा होगा, नया काम शुरू करेंगे.”

“हां, हां, बिलकुल होगा,” मीनू उन के सुर में सुर मिला कर बोली.

मीनू मन ही मन उन दोनों के लिए मंगलकामना करने लगी.

एक महीने बाद बड़ा ही सुखद समाचार मिला. वरुण ने बताया कि उन दोनों ने 20 बीघा का खेत खरीद लिया है. उस में वे एक हर्बल बगीचा विकसित कर रहे हैं. जहां गिलोय, तुलसी, नीम आदि की पैदावार होगी.

यह सचमुच एक शानदार काम था प्रकृति की और मानवता की सेवा का. मीनू और वरुण ने मिल कर उन को बधाई दी. अपने उन दोस्तों पर अब उन दोनों को गर्व था.

Hindi Story: हिम्मत वाली लड़की

Hindi Story: ‘‘अरे राशिद, आज तो चांद जमीन पर उतर आया है,’’ मीना को सफेद कपड़ों में देख कर आफताब ने फबती कसी.

मीना सिर झुका कर आगे बढ़ गई. उस पर फबतियां कसना और इस प्रकार से छेड़ना, आफताब और उस के साथियों का रोज का काम हो गया था. लेकिन मीना सिर झुका कर उन के सामने से यों ही निकल जाया करती. उसे समझ नहीं आता कि वह क्या करे? आफताब के साथ हमेशा 5-6 मुस्टंडे होते, जिन्हें देख कर मीना मन ही मन घबरा जाती थी.

मीना जब सुबह 7 बजे ट्यूशन पढ़ने जाती तो आफताब उसे अपने साथियों के साथ वहीं खड़ा मिलता और जब वह 8 बजे वापस आती तब भी आफताब और उस के मुस्टंडे दोस्त वहीं खड़े मिलते. दिनोदिन आफताब की हरकतें बढ़ती ही जा रही थीं.

एक दिन हिम्मत कर के मीना ने आफताब की शिकायत अपने पापा से की. मीना की शिकायत सुन कर उस के पापा खुद उसे ट्यूशन छोड़ने जाने लगे. उस के पापा को इन गुंडों की पुलिस में शिकायत करने या उन से उलझने के बजाय यही रास्ता बेहतर लगा.

एक दिन मीना के पापा को सवेरे कहीं जाना था इसलिए उन्होंने उस के छोटे भाई मोहन को साथ भेज दिया. जैसे ही मीना और मोहन आफताब की आवारा टोली के सामने से गुजरे तो आफताब ने फबती कसी, ‘‘अरे, यार अब्दुल्ला, आज तो बेगम साले साहब को साथ ले कर आई हैं.’’

यह सुन कर मोहन का खून खौल गया. वह आफताब और उस के साथियों से भिड़ गया, पर वह अकेला 5 गुंडों से कैसे लड़ता. उन्होंने उस की जम कर पिटाई कर दी. महल्ले वाले भी चुपचाप खड़े तमाशा देखते रहे, क्योंकि कोई भी आफताब की आवारा मित्रमंडली से पंगा नहीं लेना चाहता था.

शाम को जब मीना के पापा को इस घटना का पता चला तो उन्होंने भी चुप रहना ही बेहतर समझा. मोहन ने अपने पापा से कहा, ‘‘पापा, यह जो हमारी बदनामी और बेइज्जती हुई है इस की वजह मीना दीदी हैं. आप इन की ट्यूशन छुड़वा दीजिए.’’

मोहन के मुंह से यह बात सुन मीना हतप्रभ रह गई. उसे यह बात चुभ गई कि इस बेइज्जती की वजह वह खुद है. उसे उन गुंडों के हाथों भाई के पिटने का बहुत दुख था. लेकिन भाई के मुंह से ऐसी बातें सुन कर उस का कलेजा धक रह गया. वह सोच में पड़ गई कि वह क्या करे? सोचतेसोचते उसे लगा कि जैसे उस में हिम्मत आती जा रही है. सो, उस ने दृढ़ निश्चय कर लिया कि अब उसे क्या करना है? उस ने उन आवारा टोली से निबटने की सारी तैयारी कर ली.

अगले दिन सवेरे अकेले ही मीना ट्यूशन के लिए निकली. उस ने न अपने भाई को साथ लिया और न ही पापा को. जैसे ही मीना आफताब की आवरा टोली के सामने से गुजरी उन्होंने अपनी आदत के अनुसार फबती कसते हुए कहा, ‘‘अरे, आज तो लाल गुलाब अंगारे बरसाता हुआ आ रहा है.’’

इतना सुनते ही मीना ने पूरी ताकत से एक तमाचा आफताब के गाल पर जड़ दिया. इस झन्नाटेदार तमाचे से आफताब के होश उड़ गए. उस के साथी भी एकाएक घटी इस घटना से ठगे रह गए. इस से पहले कि आफताब संभलता मीना ने दूसरा तमाचा उस की कनपटी पर जड़ दिया. तमाचा खा कर आफताब हक्काबक्का रह गया. वह उस पर हाथ उठाने ही वाला था कि तभी पास खड़े एक आदमी ने उस का हाथ पकड़ते हुए रोबीली आवाज में कहा, ‘‘खबरदार, अगर लड़की पर हाथ उठाया.’’

यह देख आफताब के साथी वहां से भागने की तैयारी करने लगे, तभी उन सभी को उस आदमी के इशारे पर उस के साथियों ने दबोच लिया.

आफताब इन लोगों से जोरआजमाइश करना चाहता था. तभी वह आदमी बोला, ‘‘अगर तुम में से किसी ने भी जोरआजमाइश करने की कोशिश की तो तुम सब की हवालात में खबर लूंगा. इस समय तुम सब पुलिस की गिरफ्त में हो और मैं हूं इंस्पेक्टर जतिन.’’

यह सुन कर उन आवारा लड़कों की पांव तले जमीन खिसक गई. उन के हाथपैर ढीले पड़ गए. इंस्पेक्टर जतिन ने मोबाइल से फोन कर मोड़ पर जीप लिए खड़े ड्राइवर को बुला लिया. फिर उन्हें पुलिस जीप में बैठा कर थाने लाया गया.

तब तक मीना के मम्मीपापा और भाई भी थाने पहुंच गए. इंस्पेक्टर जतिन उन्हें वहां ले गए जहां मीना अपनी सहेली सरिता के साथ बैठी हंसहंस कर बातें करती हुई नाश्ता कर रही थी.

इस से पहले कि मीना के मम्मीपापा उस से कुछ पूछते, इंस्पेक्टर जतिन खुद ही बोल पड़े, ‘‘देवेश बाबू, इस के पीछे मीना की हिम्मत और समझदारी है. कल मीना ने सरिता को फोन पर सारी घटना बताई. तब मैं ने मीना को यहां बुला कर योजना बनाई और बस, आफताब की आवारा टोली पकड़ में आ गई.

‘‘देवेश बाबू, एक बात मैं जरूर कहना चाहूंगा कि इस प्रकार के मामलों में कभी चुप नहीं बैठना चाहिए. इस की शिकायत आप को पहले ही दिन थाने में करनी चाहिए थी. लेकिन आप तो मोहन की पिटाई के बाद भी बुजदिल बने खामोश बैठे रहे. तभी तो इन गुंडों और समाज विरोधी तत्त्वों की हिम्मत बढ़ती है.’’

यह सुन कर मीना के मम्मीपापा को अफसोस हुआ. मोहन धीरे से बोला, ‘‘अंकल, सौरी.’’

‘‘मोहन बेटा, तुम भी उस दिन झगड़े के बाद सीधे पुलिस थाने आ जाते तो हम तुरंत कार्यवाही करते. पुलिस तो होती ही जनता की सुरक्षा के लिए है. उसे अपना मित्र समझना चाहिए.’’

इंस्पेक्टर जतिन की बातें सुन कर मीना के मम्मीपापा व भाई की उन की आंखें खुल गईं. वे मीना को ले कर घर आ गए. इस हिम्मतपूर्ण कार्य से मीना का मानसम्मान सब की नजरों में बढ़ गया. लोग कहते, ‘‘देखो भई, यही है वह हिम्मत वाली लड़की जिस ने गुंडों की पिटाई की.’’

अब मीना को छेड़ना तो दूर, आवारा लड़के उसे देख कर भाग खड़े होते. मीना के हौसले की चर्चा सारे शहर में थी अब वह सब के लिए एक उदाहरण बन गई थी.

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