Hindi Story: रत्नमाया – क्यों ठुकराया रत्नमाया ने रत्नसेन का निवेदन

Hindi Story : स्वर्ण रेखा नदी के तट पर स्थित एक मंदिर के द्वार पर एक असहाय तरुणी ने आश्रय की भीख मांगी. उसे आश्रय मिल गया, किंतु वह यह नहीं जानती थी कि मंदिर का वह द्वार नारी देह का व्यापार करने वालों का एक विशाल गृह है.

कल क्या होने वाला है कौन जानता है. तरुणी अपने को समय के हाल पर छोड़ चुकी थी. वह जहां थी जिस हाल में थी अपने को महफूज समझ रही थी.

तभी एक दिन गोधूली की बेला में, मंदिर में होने वाली आरती के समय एक युवक ने वहां प्रवेश किया. एकत्रित भक्त मंडली की भीड़ को चीरता हुआ वह अग्रिम पंक्ति में जा खड़ा हुआ.

आरती खत्म होने पर जब अपने पायलों की रुनझुन बजाती हुई, थाल को हाथों में लिए हुए, देव मंदिर की वह नवयुवती सीढि़यों से उतरी और स्वर्ण रेखा नदी के तट पर आ दीपों को एकएक कर के जल में प्रवाहित करने लगी, तभी पीछे से उस युवक ने पुकारा, ‘‘रत्नमाया.’’

युवती चौंक गई. पीछे मुड़ कर उस ने बलिष्ट कंधों वाले उस गौरांग सुंदर युवक को देखा तो उस के कपोल लाज की गरिमा से आरक्त हो उठे. साड़ी का आंचल धीरे से सिर पर खींच उस ने कहा, ‘‘रत्नसेन, तुम यहां कैसे?’’

‘‘होनी ले आई,’’ युवक ने उत्तर दिया.

‘‘किंतु मैं ने तो समझा था कि हूणों से मेरी रक्षा करने में उस दिन तुम ने अपने जीवन की इति ही कर दी,’’ तरुणी बोली.

युवक हंसा और बोला, ‘‘नहीं,  जीवन अभी शेष था, इसलिए बच गया. तुम कौन हो नहीं जानता, किंतु ऐसा लगता है कि युगोंयुगों से मैं तुम्हें पहचानता हूं. एक लहर ने हमें परिचय के बंधन में पुन: उस दिन बंधने का आयोजन किया था. क्या तुम मुझ पर विश्वास करोगी और मेरे साथ चल सकोगी?’’

युवती कटाक्ष करती हुई बोली, ‘‘मुझ पर इतना अखंडित विश्वास हो गया तुम्हें.’’

युवक बोला, ‘‘मन जो कहता है.’’

‘‘उसे कभी बुद्धि की आधारतुला पर भी तौल कर तुम ने देखा है. एक असहाय नारी की जीवन रक्षा करने का प्रतिफल ही आज तुम मुझ से मांग रहे हो.’’

युवक यह सुन कर हतप्रभ रह गया. उसे लगा नारी के इस उत्तर ने उसे बहुत प्रताडि़त किया है. वह सहमा घूमा और सीढि़यों पर पग रखता हुआ, आगे चल दिया. तभी युवती ने फि र से पुकारा, किंतु उसे पीछे लौटते न देख वह स्वयं उस के निकट आ गई और बोली, ‘‘रत्नसेन, तुम तो बुरा मान गए. काश, तुम समझ सकते कि मैं एक दुर्बल नारी हूं, जो खुल कर अपनी बात नहीं कह सकती.

‘‘हृदय में क्या है और होंठों पर क्या शब्द आ जाते हैं, या मेरे चेहरे पर क्या भाव आते हैं? यह मैं स्वयं नहीं जानती,’’  यह कहतेकहते उस युवती की आंखों में आंसू आ गए, किंतु रत्नसेन पाषाण शिला सा खड़ा रहा. रत्नमाया ने अपने दोनों हाथ उस की भुजा पर रख दिए और बोली, ‘‘एक प्रार्थना है, मानोगे, कल गोधूलि की इसी बेला में आरती के समय तुम आ जाना और मैं नदी के तट पर तुम्हारी प्रतीक्षा करूंगी. तभी तुम्हारे प्रश्न का उत्तर भी दे दूंगी. अब मैं चलती हूं.’’

इतना कह कर रत्नमाया जाने लगी तो रत्नसेन ने कहा, ‘‘सुनो, रत्नमाया, मेरा कर्तव्य पथ कठिन है. मैं एक साधकमात्र हूं. आज जहां हूं, उस स्थान से मैं परिचित नहीं. अपने उद्देश्य पूर्ति के निमित्त मगध जाने के रास्ते में आज यहां रुका. मेरे भरोसे ने मुझ से कहा था कि तुम यहीं कहीं इसी नगरी में होगी और वही आस की प्रबल डोर मुझे बांधेबांधे यहां इसी नदी के तट तक तुम्हारे समीप ले आई.’’

उस ने आगे कहा, ‘‘किंतु तुम मुझे समझने में भूल कर गईं. तुम्हारी जीवन रक्षा कर के उस के प्रतिदान रूप में तुम्हें उपहारस्वरूप मांगने का मेरा कोई  विचार न था,’’ यह कहते हुए रत्नसेन तेजी से आगे बढ़ गया.

उस के जाने के बाद पीछे से रत्नमाया ने अपना सुंदर चेहरा उस पाषाण शिला पर वहीं रख दिया जहां अभीअभी रत्नसेन के चरण पडे़ थे. उसे अपने आंसुओं से धो कर रत्नमाया अपने कक्ष की ओर चल पड़ी.

वहां उन देवदासियों की भीड़ में देवबाला ही इकलौती उस की प्रिय थी. उस से ही रत्नमाया अपनी विरहव्यथा कहती थी. देवबाला उस के अतीत को जानती थी. इसीलिए जब उस दिन स्वर्णनदी में द्वीप प्रवाहित कर वह लौटी तो सहसा देवबाला बोली थी, ‘‘रत्नमाया, यह क्यों भूलती है कि तू एक देवदासी है? उस युवक की शब्द छलना में फंस कर अपनी सुंदर देह को मत गला. भला नारी की छविमाया के सामने पुरुष द्वारा दिए हुए विश्वासों का मूल्य ही क्या है? तू उसे भूल जा. तेरा यह जीवन चक्र तुझे जिस पथ पर ले आया है, उसे ही अब ग्रहण कर.’’

किंतु सब सुनते और समझते हुए भी रत्नमाया ने अपने चेहरे को न उठाया. वह पहले की तरह ही देवबाला के सामने सुबकती रही. बाहर मंदिर में घंटों के बजने का स्वर चारों ओर गूंजने लगा था.

तभी पुजारी ने आ कर पुकारा तो देवबाला ने उठ कर कक्ष के कपाट खोल दिए.

आगंतुक पुजारी ने कहा, ‘‘देवबाला, मंगल रात की इस बेला में रत्नमाया को लंकृत कर दो. रसिक जनों के आगमन का समय हो गया है. शीघ्र ही उसे भीतर विलास कक्ष में भेजा जाएगा.’’

‘‘नहीं,’’  देवबाला बोली. उस के स्वर में दृढ़ता साफ झलक रही थी और आंखों से प्रतिशोध की भावना. उस ने कहा, ‘‘रत्नमाया तो अस्वस्थ है इसलिए विलास नृत्य में वह भाग नहीं ले सकेगी.’’

‘‘अस्वस्थता का कारण मैं खूब जानता हूं,’’ पुजारी बोला, ‘‘एक दिन जब तुम भी इस द्वार पर देवदासी बन कर आई थीं तब भी तुम ने ऐसा ही कुछ कहा था. किंतु मेरे दंड के विधान की कठोरता तुम्हें याद है न.’’

यह कहतेकहते पुजारी की पैशाचिक भंगिमा कठोर हो गई. देवबाला उन्हें देख कर सिहर उठी. खिन्न मन बिना कुछ उत्तर दिए हुए, वापस लौट आई.

‘‘रत्नमाया,’’ देवबाला आ कर बोली, ‘‘औरत की बेबसी ही उस का सब से बड़ा अभिशाप है. तू तो जानती ही है अत: अपने मन को स्वस्थ कर और देख तेरा वह अनोखा भक्त मंदिर में पुन: आया है, जिस ने एक दिन आरती की बेला में तुझे अपने प्रेम विश्वासों की सुरभि से मतवाला किया था.’’

‘‘सच, कौन रत्नसेन?’’ चकित सी वह पूछ बैठी.

‘‘हां, तेरा ही रत्नसेन,’’ देवबाला ने उत्तर दिया.

‘‘आह, बहन एक बार फिर कहो,’’ रत्नमाया कह उठी और तत्काल ही देवबाला को उस ने अपनी बांहों में कस कर बांध लिया. भावनाओं के उद्वेग में हाथ ढीले हुए तो सरकती हुई वह देवबाला के सहारे धरती पर बैठ गई.

कुछ क्षणों के लिए आत्मविभोर देवबाला ठिठकी खड़ी रह गई. फिर उस ने कहा, ‘‘रत्नमाया, तू अब जा और अपनी देह को अलंकृत कर…शीघ्र ही मंदिर में आ जा, आज देवनृत्य का आयोजन है.’’

रत्नमाया तुरंत उठी. उस दिन फिर उस ने अपने अद्भुत रूप को आभूषणों का पुट दे सजाया. गोरे रंग की अपनी देह पर लहराते हुए केशों की एक वेणी गूंथी. केतकी के सुवासित फूलों को उस में पिरो कर गले में देवबाला के दिए हुए हीरक हार को पहना.

रात्रि की उस बेला में ऊपर नीले आकाश में अनेक तारे टिमटिमा रहे थे. उन की छाया के तले अपने हाथों में आरती के थाल को सजाए वह पायलों को रुनझुन बजाती हुई चल दी.

‘‘ठहरो,’’ सहसा देवबाला ने उसे रोक कर कहा, ‘‘रत्नमाया, सुन दुर्भाग्य मुझे एक दिन देवदासी बना कर यहां लाया था किंतु रूप के इतने विपुल भार को लिए हुए अभागिन तेरा समय तुझे यहां क्यों लाया है?’’

रत्नमाया विस्मित रह गई. धीमे से उस ने उत्तर दिया, ‘‘बहन, रूप की बात तो मैं जानती नहीं, किंतु समय के चक्र को मैं अवश्य पहचानती हूं. बर्बर हूणों के आक्रमण में राज्य लुटा, वैभव और सम्मान गया. परिवार का अब कुछ पता नहीं. सबकुछ खो कर जिस प्रकार तुम्हारे द्वार तक आई हूं, वह तुम से छिपा है कुछ क्या?’’

देवबाला ने उत्तर नहीं दिया. किन्हीं विचारों में वह कहीं गहरे तक खो गई. फिर बोली, ‘‘रत्नमाया, क्या रत्नसेन का पता तू जानती है?’’

‘‘नहीं, केवल इतना कि वह एक दिन हठात कहीं से आया और अपने जीवन को दांव पर लगा कर मेरी रक्षा की थी.’’

‘‘और तू ने अपना हृदय इतनी सी बात पर न्योछावर कर दिया,’’ देवबाला बोली.

किंतु उत्तर में रत्नमाया का गोरा चेहरा बस, लाज से आरक्त हो उठा.

देवबाला बोली, ‘‘सुन, रत्नसेन यहां नहीं है और वह मंदिर भी भगवान का उपासना गृह नहीं बल्कि नारी के रूप का विक्रय घर है. आज की इस रात को तू विलास कक्ष में मत जा. यदि तुझे जीवन का मोह नहीं है तो वहां जा, जो इस रूप का मोल कर ले. हां, नहीं तो जीवन की सारी मोहममता त्याग कर तू जहां भी आज जा सकती है…वहां इसी पल इस द्वार को छोड़ कर चली जा.’’

उस समय सामने मंदिर की सीढि़यों से टकराती हुई बरसाती स्वर्णरेखा नदी बही चली जा रही थी. एक असहाय तरुणी के क्लांत हृदय सी चीत्कार करती हुई उस की लहरें वातावरण को क्षुब्ध कर रही थीं.

रत्नमाया ने देवबाला की बात को पूरी तरह सुना अथवा नहीं, किंतु उसी क्षण उस ने अपनी सुंदर देह से स्वर्ण आभूषणों को निकाल कर फेंक दिया. केशों की वेणी में गुथे हुए केतकी के फूलों को नोच कर चारों ओर छितरा दिया और सत की ज्वाला सी धधकती हुई वह रूपवती अद्भुत नारी देवबाला को देखतेदेखते ही क्षणों में वहां से विलीन हो गई. दिन बीतते गए…समय का चक्र अपनी गति से चलता रहा.

…और फिर एक दिन रात्रि के आगमन पर एक छोटे से गांव के मंदिर में किसी सुंदरी ने दीप जलाया. बाहर आकाश में बादल घिरे थे और हवा के एक ही झोंके में सुंदरी के हाथों में टिमटिमाते हुए उस दीपक की लौ बुझ गई.

तभी मंदिर के बाहरी द्वार पर किसी अश्वारोही के रुकने का शब्द सुनाई पड़ा. एकएक कर बडे़ यत्न से वह अश्वारोही मंदिर की सीढि़यों से ऊपर चढ़ा. मानो शक्ति का उस की देह में सर्वथा अभाव हो. किसी प्रकार आगे बढ़ कर वह देवालय के उस द्वार पर आ कर खड़ा हो गया, जहां 2 क्षण पहले ही, उस ने एक छोटा दीपक जलते हुए देखा था.

लेकिन उस के पैरों की आहट सुन कर भी कक्ष की वह नारी मूर्ति हिली नहीं. मन और देह से ध्यान की तंद्रा में तल्लीन वह देव प्रतिमा के समक्ष पुन: दीप जला, पहले की तरह अचल बैठी रही.

युवक के धैर्य का बांध टूट गया. उस ने कहा, ‘‘हे विधाता, जीवन का अंत क्या आज यहीं होने को है?’’

इस बार युवती मुड़ी और पूछा, ‘‘बटोही, तुम कौन हो?’’

‘‘मैं एक सैनिक हूं,’’ उस ने उत्तर दिया और कहा, ‘‘हूणों द्वारा शिप्रा पार कर इस ओर आक्रमण करने के प्रयास को आज सर्वथा विफल किया है, किंतु लगता है कि देह में जीवन शक्ति अब शेष नहीं है. किंतु इस गहन रात्रि में मुझे आज यहां क्या अभय मिल सकेगा?’’

युवती उठ खड़ी हुई. वह द्वार तक आई तभी आकाश में बिजली चमकी और उस के क्षणिक प्रकाश में उस ने रक्त में भीगे युवक के काले केश, उस के गीले वस्त्र और खून में लिपटे चेहरे को देखा. वह चीख उठी अैर अचानक ही उस के मुख से निकला गया, ‘‘कौन? रत्नसेन?’’\ हर्ष और विस्मय से रत्नसेन का हृदय स्पंदित होने लगा. सम्मुख ही गौरांगिनी रत्नमाया खड़ी थी.

उस दिन रत्नमाया फिर रत्नसेन को अपने कक्ष में ले गई और अपने मृदुल हाथों से उस बटोही के घावों को धोया, स्नेह के अमृत रस को ढुलका कर उसे स्वस्थ और चेतनयुक्त बनाया.

बाहर गहन अंधकार अभी भी व्याप्त था. कक्ष में जलते दीपक की धीमी रोशनी में रत्नसेन ने कहा, ‘‘रत्नमाया, वक्त की मुसकान और उस के आंसू विचित्र हैं. कब ये हंसाएगी और कब ये रुला जाएंगी, कोई नहीं जानता? एक दिन बर्बर हूणों से तुम्हारी रक्षा कर सकने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ और फिर अचानक ही उस दिन स्वर्णरेखा नदी के तट पर तुम से पुन: भेंट हो गई.’’

रत्नमाया शांत बैठी सुनती रही. उस ने…अपने कोमल हाथों को उठा कर रत्नसेन के उन्नत माथे पर मृदुलता के साथ रख दिया.

रत्नसेन ने फिर कहा, ‘‘रत्नमाया, तुम्हारी इस रूपशिखा के सतरंगी प्रकाश को अपने से दूर न हटने दूं, मेरा यह दिवास्वप्न अब तुम्हारी कृपा से पूरा होगा.’’

‘‘मन की इच्छापूर्ण कर सकने का सामर्थ्य आप में भला कब नहीं रहा,’’ यह कह रत्नमाया वहां से उठी और अंदर के प्रकोष्ठ में चली गई.

दूसरे दिन जब ऊषा अपने स्वर्णिम रथ पर बैठी सुनहरी चादर को खुले नीलाकाश में फहराती चली आ रही थी, तभी रत्नसेन की खोज में अनेक सैनिकों ने उस गांव में प्रवेश किया. रत्नसेन बाहर मंदिर के प्रांगण में आ कर खड़ा हो गया और एक वृद्ध सैनिक को संकेत से पुकारा, ‘‘सिंहरण, इधर इस ओर मंदिर के समीप.’’

अगले पल में वह देवालय सैनिकों की चहलपहल और कोलाहल से भर गया. वहां का आकाश भी वीर सामंत रत्नसेन की जयजयकार से निनादित हो उठा.

निकट के उद्यान से तभी संचित किए हुए पुष्पों को ले कर, रत्नमाया उस ओर आई. कनकछरी सी कमनीय काया युक्त शुभ्रवसना, उस सुंदरी को देखते ही सहसा सिंहरण विस्मित रह गया. उस ने पुकारा, ‘‘कौन राजकुमारी, रत्नमाया.’’

रत्नमाया ठिठकी. घूम कर उस ने सिंहरण की ओर देखा और बोली, ‘‘सेनापति सिंहरण, अरे, तुम यहां कैसे?’’ फिर जैसे उसे ध्यान हो आया. वह बोली, ‘‘तो बर्बर विदेशियों से आर्यावर्त को मुक्त करने का संकल्प लिए हुए तुम अभी जीवित हो?’’

‘‘हां, राजकुमारी,’’ सिंहरण ने कहा, ‘‘वृद्ध सिंहरण ही जीवित रह गया. तात तुल्य जिस राजा ने सदैव पाला और  मेरे कंधों पर राज्य की रक्षा का भार सौंपा था, यह अभागा तो न उन की ही रक्षा कर सका, न उस धरती की ही. आज भी यह जीवित है, इस दिन को देखने के लिए. आह, स्वर्ण पालने और फूलों की सेज पर जिस राजकुमारी को मैं ने कभी झुलाया था, उस की असहाय बनी इस दीन कुटिया में आज अपने दिन बिताते देखने को यह अभागा अभी जीवित ही है.’’

सिंहरण ने पुन: सामंत रत्नसेन को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘तात, शूरसेन प्रदेश के वीर राजा घुमत्सेन की पुत्री यही राजकुमारी रत्नमाया है.’’

मन की किसी रहस्यमयी अज्ञात प्रेरणावश उस ने रत्नमाया को प्रणाम किया. उत्तर में उस की प्रेमरस से अभिसिंचित शुक्रतारे सी उज्ज्वल मोहक मुसकान को पा, वह आत्मविभोर हो उठा.

किंतु उस दिन अति आग्रह पर भी रत्नमाया रत्नसेन के साथ नहीं गई. उस के अभावों और कष्टों के पीडि़त दिनों में ग्रामीणजनों ने निश्चल, निस्वार्थ भाव से एक दिन उसे आश्रय प्रदान किया था. वह उन्हीं की सेवा में पूर्ववत तनमन से ही संलग्न रही.

गुप्तकाल के यशस्वी मानध्वज के नीचे सामूहिक रूप से संगठित हो एक दिन आर्य वीरों ने जब भारत भूमि को हूणों की पैशाचिक सत्ता से मुक्त कर लिया, तभी प्रभात की एक बेला में एक स्वर्णमंडित रथ रत्नमाया के उस छोटे से गांव में आया. उस पर से पराक्रमी मालव सामंत वीर रत्नसेन उतरे. उन के साथ ही फूल सी कोमल कुंदकली सुंदर राजवधू रत्नमाया को ग्रामीण जनों ने स्नेह के आंसू दे विदा कर दिया.

उस दिन ग्रामवधुओं ने रथ को घेर लिया था और उस के पथ को अपने मोहक प्रेमफूलों से पूरी तरह सजा दिया. उस रास्ते पर से जाते समय अपने दुख के दिनों में भी जिस रत्नमाया के नयन आंसुओं से कभी इतने आर्द न हो सके थे, जितने आज हुए.

Hindi Story : मिसेज चोपड़ा, मीडिया और न्यूज

Hindi Story : लंबा कद, गोरा रंग, सलीके से   बंधा हुआ जूड़ा, कलफ लगी बढि़या सूती साड़ी और साड़ी के रंग से मेल खाते गहने पहने मिसेज चोपड़ा पूरे दफ्तर में अलग ही दिखती थीं. मैं जिस दफ्तर में काम करती थी वहां काम कम ही होता था. यों समझ लीजिए, अकसर लोग गरमगरम चाय और गरमागरम बहस से टाइम पास करते थे. कुछ ही दिनों में दफ्तर का यह माहौल देखदेख कर मेरा धैर्य जवाब दे गया.

मैं ने अपने एन.जी.ओ. के कोआर्डिनेटर से एक दिन बातों ही बातों में पूछ लिया, ‘‘यह मिसेज चोपड़ा मुझे आफिस में सब से अलग दिखती हैं, यह कैसा काम करती हैं. मैं अभी नई हूं इसलिए इन के बारे में ज्यादा जानती नहीं हूं.’’

सामने बैठे मिस्टर शर्मा बोले, ‘‘यह यहां पी.आर.ओ. के पद पर हैं. पब्लिक और प्रेस से डीलिंग करना ही इन का काम है. यह किसी मजबूरी में नौकरी नहीं कर रही हैं. मिसेज चोपड़ा जैसी हाइक्लास सोसाइटी की औरतें जब अपनी किटी पार्टियों से बोर हो जाती हैं और उन्हें अपना समय बिताना होता है तो वे किसी एन.जी.ओ. से जुड़ जाती हैं. समय भी बीत जाता है, नाम भी मिल जाता है. मिसेज चोपड़ा भी इसी रंग में रंगी हैं.’’

मैं थोड़ी देर में अपनी जगह पर वापस आ कर काम में जुट गई. चूंकि मेरे ऊपर अपनी विधवा मां की जिम्मेदारी थी इसलिए मैं अपना काम बड़ी ईमानदारी से करती थी. मैं कुछ दिनों से यह भी अनुभव कर रही थी कि मिसेज चोपड़ा मुझे पसंद नहीं करती हैं. मेरे हर काम में उन्हें सिर्फ कमी ही नजर आती थी.

मिसेज चोपड़ा ने धीरेधीरे मुझे सताना शुरू कर दिया. मेरी किसी भी रिपोर्ट को रद्द कर देतीं और फिर से नए ढंग से बनाने को कहतीं. कभी आफिस के काम से हटा कर फील्ड वर्क पर लगा देतीं तो कभी अचानक फील्ड वर्क से आफिस भेज देतीं.

एक दिन उन्होंने मुझ से पूछ ही लिया, ‘‘मिस बेला, आप इतना कम क्यों बोलती हैं?’’

मैं ने कहा, ‘‘मैडम, ऐसा तो नहीं है. बस, मैं बोलने से ज्यादा काम करना पसंद करती हूं. फिर हम जो काम कर रहे हैं अगर उस में हम अपने बारे में ही सोचेंगे तो दूसरों के दुख कब शेयर करेंगे.’’

वह अचानक बौस के ढंग में बोलीं, ‘‘मिस बेला, इस केस की डिटेल्स पढि़ए. नेहा के घर वालों का बयान लीजिए और गवाहों से बात कीजिए. पुलिस से भी मिलिए. आजकल बहुत कंपीटीशन है. मैं मीडिया से बात कर के रखती हूं. हम पहले केस सुलझा लेंगे तो हमारा नाम होगा. हमारी बढि़या न्यूज तैयार होगी.’’

मैं सिर झुकाए बोली, ‘‘किसी के दुख पर सफलता की सीढ़ी लगाना अच्छा तो नहीं लगता, मैडम.’’

उन की नजरें मुझ पर जम गईं. अच्छा स्टेटस, पैसा और अच्छे संबंध यही दुनिया में जीने के उन के सिद्धांत थे.

मैं अपने गु्रप के साथ घटनास्थल पर जाने को निकल गई. वह एक बौस की तरह मेरे साथ थीं. मैं ने नेहा के घर वालों से बहुत से सवाल पूछे. नेहा को उस के ससुराल वालों ने जला कर मार दिया था. नशे की हालत में उस के पति ने उस पर तेल छिड़क कर आग लगा दी थी. मिसेज चोपड़ा बहुत खुश थीं कि अगर मीडिया यह न्यूज अच्छी तरह से पेश करता है तो उन का बहुत नाम होगा. उन्होंने प्रेस कान्फ्रेंस बुला कर मीडिया में इस मामले पर हलचल मचा दी.

उन की इस हरकत से मैं बहुत बेचैन थी. अपनी उस बेचैनी को कम करने के लिए मैं उन के केबिन में जा कर फट पड़ी, ‘‘मैडम, इस प्रेस कान्फ्रेंस से नेहा को क्या फायदा पहुंच रहा है? उस की मौत को भुना कर हमें क्या मिलेगा?’’

मेरे अंदर सवालों का ढेर लगा था. उन्हें मुझ पर गुस्सा आ गया, ‘‘मिस बेला, आप को क्या लगता है कि हमारी संस्था सिर्फ नाम कमाने के लिए दूसरों के दुख अपने पास जमा करती है? क्या हम उन के लिए कुछ नहीं करते? अगर किसी की मदद के साथ मीडिया वाले हमें भी कैमरे के सामने ला कर न्यूज बना देते हैं तो इस में बुरा क्या है?’’

मैं ने अपनी आवाज को संतुलित करते हुए जवाब दिया, ‘‘मैडम, हम क्या करते रहे हैं महिलाओं के लिए? जो बात सिर्फ घर वाले जानते हैं हम उन्हें सब के सामने ला कर दुखी लोगों को और दुखी कर देते हैं. थोड़ी सी जबानी सहानुभूति या कभीकभी कुछ आर्थिक सहायता. हमारी संस्था औरत को कभीकभी एक तमाशा बना देती है. मीडिया को तो खबरें ही चाहिए. मैडम, मैं यहां नौकरी नहीं कर पाऊंगी.’’

‘‘हां, यही अच्छा रहेगा. जहां काम में रुचि न हो वहां इनसान को काम नहीं करना चाहिए. आप जा सकती हैं.’’

मैं अपना बैग उठा कर आफिस से बाहर आ गई. मैं हर उस नौकरी को बुरा समझती हूं जिस में किसी के दुख को भुनाया जाता है.

मैं ने कुछ दिन बाद एक स्कूल में नौकरी ज्वाइन कर ली लेकिन मिसेज चोपड़ा और उन की संस्था के बारे में मुझे खबर मिलती रहती थी. नेहा का केस उन्होंने सुलझा लिया था, उन की संस्था की धूम मची हुई थी.

जीवन अपने ढर्रे पर चल रहा था कि एक दिन अचानक सुबह उठने पर पेपर पढ़ा तो रोंगटे खडे़ हो गए. मिसेज चोपड़ा की बेटी आकृति के साथ कुछ दरिंदों ने रेप किया था. वह अपने कालिज से घर आ रही थी कि सुनसान सड़क पर कुछ लड़के कार में उसे उठा कर ले गए थे.

इस खबर को पढ़ने के बाद मैं अपने को वहां जा कर उन से मिलने से रोक नहीं पाई. उन के घर पहुंची तो वह मासूम सी लड़की कमरे में बंद थी और बारबार बेहोश हो रही थी. बहुत ही हृदयविदारक दृश्य था. पूरा स्टाफ वहां था. सब को आकृति पर तरस आ रहा था. मिसेज चोपड़ा का विलाप दिल को चीर रहा था. चोपड़ा साहब विदेश में थे. उन मांबेटी से सब को सहानुभूति हो रही थी. कुछ देर वहां ठहर कर मैं वापस घर आ गई लेकिन अगले दिन भी उन दुखियारी मांबेटी के पास कुछ देर बैठने के लिए मैं गई. फिर कई दिनों तक रोज ही जाती रही. सब को आकृति के सामान्य होने का इंतजार था.

एक दिन अचानक एक प्रसिद्ध एन.जी.ओ. की महिलाएं मीडिया के साथ मिसेज चोपड़ा के घर पहुंच गईं. हर तरफ कैमरे की रोशनियां और उन की बेटी का रोना, मिसेज चोपड़ा बारबार उन लोगों से जाने की प्रार्थना करते हुए सिसक उठीं, लेकिन संस्था की महिलाएं, हाथ में पेपर, पैन लिए मीडिया के लोग, मांबेटी से सवाल पर सवाल पूछे जा रहे थे और अपनी संस्था की शान में कमेंट भी किए जा रहे थे कि हम आप की बेटी को न्याय दिलवाएंगे. मैडम, आप तो खुद एक संस्था चलाती थीं. आज आप आम आदमी की जगह खड़ी हैं. आप को कैसा लग रहा है? मैडम, आप कुछ जवाब दें. आप इस केस में क्या कहना चाहेंगी.

मिसेज चोपड़ा ने कुछ कहने की कोशिश की लेकिन उन के शब्द अंदर ही रह गए और वे गिर पड़ीं.

आफिस के कुछ लोगों के साथ मैं उन को अस्पताल ले गई. आकृति को मैं ने अपनी मां के पास भेज दिया. मिसेज चोपड़ा को हार्टअटैक पड़ा था. उन की देखरेख मैं ने एक दोस्त की तरह की, क्योंकि मेरी मां ने मुझे यही सिखाया था. उन के दिए गए संस्कार मेरे अंदर खून बन कर बहते थे. स्कूल से मैं ने छुट्टियां ली हुई थीं. मिसेज चोपड़ा जब तक अस्पताल से घर आने लायक हुईं हम एक अच्छे दोस्त बन चुके थे.

घर आ कर वह अपने काम में व्यस्त हो गईं और मैं अपने में. जीवन निर्बाध गति से चल रहा था. एक दिन मैं ने टेलीविजन चलाया तो मिसेज चोपड़ा अपने साक्षात्कार में कह रही थीं, ‘‘अगर हम किसी बहन या बेटी की इज्जत करते हैं तो क्या हमें उस को हजारों लोगों के सामने खड़ा कर देना चाहिए. हमें यदि किसी की मदद करनी है तो क्या हम चुपचाप नहीं कर सकते. मैं एक नई संस्था बना रही हूं जिस का मीडिया से बहुत ही कम लेनादेना होगा. हम चुपचाप दुखी जनता के आंसू पोंछेंगे.’’

आज मुझे लगा कि मिसेज चोपड़ा ने अब जो रास्ता चुना है वह सही है. मुझे उन की इस बदली हुई सोच पर खुशी हुई और मैं उन को इस नए कदम के लिए शुभकामनाएं देने को फोन मिलाने लगी, साथ ही मुझे उन को यह भी बताना था कि मैं उन की नई संस्था में काम करने आ रही हूं.

Social Story : हिंदुस्तान जिंदा है – दंगाइयों की कैसी थी मानसिकता

Social Story : यह एक इत्तफाक ही था कि मौलवी रशीद की पत्नी जिस दिन मरी थी उसी दिन मीना का पति भी मरा था. मौलवी रशीद की पत्नी को दंगाइयों ने पहले नंगा किया फिर अपना मुंह काला किया और अंत में उसे गोली मार दी. अब वह कहां जिंदा थी कि किसी का नाम बताती. बस, सड़क के किनारे एक नंगी लाश के रूप में पड़ी मिली थी.

मीना के पति को बाजार में छुरा मारा गया था, मर्द को दंगाई नंगा नहीं करते क्योंकि दंगाई भी मर्द होते हैं.

मीना और मौलवी रशीद दोनों ने अपनीअपनी लाशें उठा कर उन का अंतिम संस्कार किया था. ये दोनों जिस शहर के थे वहां की फितरत में ही दंगा था और वह भी धर्म के नाम पर.

इस शहर के लोग पढ़ेलिखे जरूर थे पर नेताओं की भड़काऊ बातों को सुन कर सड़कों पर उतर आना, छतों से पत्थरों की वर्षा करना और फिर गोली चलाना इन की आदत हो गई थी. कोई तो था जो निरंतर इस दंगा कल्चर को बढ़ावा दे रहा था ताकि जनता बंटी रहे और उन का मकसद पूरा होता रहे.

मौलवी रशीद और मीना दोनों एकसाथ पढ़े थे. दोनों का बचपन भी साथसाथ ही गुजरा था. दोनों आपस में प्रेम भी करते थे, लेकिन इन की आपस में शादी इसलिए नहीं हुई कि दोनों का धर्म अलगअलग था और ऐसे कट्टर धार्मिक, सोच वाले शहर में एक हिंदू लड़की किसी मुसलमान लड़के से शादी कर ले तो शहर में हंगामा बरपा हो जाए.

मीना ने तो चाहा था कि वह रशीद से शादी कर ले लेकिन खुद रशीद ने यह कह कर मना कर दिया था कि यदि तुम चाहती हो कि 4-5 मुसलमान मरें तो मैं यह शादी करने के लिए तैयार हूं. और फिर मीना अपने दिल पर पत्थर रख कर बैठ गई थी.

इसी के बाद दोनों के जीवन की धारा बदल गई. रशीद ने अपने संप्रदाय में एक नेक लड़की से शादी कर अपनी गृहस्थी बसा ली तो मीना ने अपनी ही जाति के एक लड़के के साथ शादी कर ली. फिर तो दोनों एक ही शहर में रहते हुए एकदूसरे के लिए अजनबी बन गए.

इधर धर्म का बाजार सजता रहा, धर्म का व्यापार होता रहा और इस धर्म ने देश को 2 टुकड़ों में बांट दिया. इनसान के लिए धर्म एक ऐसा रास्ता है जिसे केवल मन में रखा जाए और खामोशी के साथ उस पर विश्वास करता चला जाए न कि उस के लिए बेबस औरतों को नंगा किया जाए, संपत्तियों को जलाया जाए और बेगुनाह लोगों की जानें ली जाएं.

मौलवी रशीद की कोई संतान नहीं थी पर मीना के 2 बच्चे थे. एक 3 साल का और दूसरा 3 मास का. पति के मरने के बाद मीना बिलकुल बेसहारा हो गई थी. अब उस शहर में उस का दर्द, उस की जरूरतों को समझने वाला मौलवी रशीद के अलावा दूसरा कोई भी नहीं था.

सांप्रदायिक दंगों का सिलसिला शहर से खत्म नहीं हो रहा था. कभी दिन का कर्फ्यू तो कभी रात का कर्फ्यू. इनसान तो क्या जानवर भी इस से तंग हो गए थे. मौलवी रशीद ने टेलीविजन खोला तो एक खबर आई कि प्रशासन ने शाम को कर्फ्यू में 2 घंटे की ढील दी है ताकि लोग घरों से बाहर निकल कर अपनी दैनिक जरूरतों की वस्तुओं को खरीद सकें. मौलवी रशीद को मीना के 3 माह के बच्चे की चिंता थी क्योंकि पति की मौत के बाद मीना की छाती का दूध सूख गया था. उस बच्चे के लिए उसे दूध लेना था और ले जा कर हिंदू इलाके में मीना के घर देना था.

रशीद जब घर से स्कूटर पर चला तो उसे थोड़ा डर सा लगा था. वह सआदत हसन मंटो (उर्दू का प्रसिद्ध कथाकार) तो था नहीं कि अपनी जेब में 2 टोपियां रखे और हिंदू महल्ले से गुजरते समय सिर पर गांधी टोपी तथा मुसलमान महल्ले से गुजरते समय गोल टोपी लगा ले.

खैर, रशीद किसी तरह हिम्मत कर के मीना के बच्चे के लिए दूध का पैकेट ले कर चला तो रास्ते भर लोगों की तरहतरह की बातें सुनता रहा.

किसी एक ने कहा, ‘‘इस का मीना के साथ चक्कर है. मीना को कोई हिंदू नहीं मिलता क्या?’’

दूसरे के मुंह से निकला, ‘‘लगता है इस का संपर्क अलकायदा से है. हिंदू इलाके में बम रखने जा रहा है. इस मौलवी का हिंदू महल्ले में आने का क्या मतलब?’’

दूसरे की कही बातें सुन कर तीसरे ने कहा, ‘‘यदि अलकायदा का नहीं तो इस का संबंध आई.एस.आई. से जरूर है. तभी तो इस की औरत को नंगा कर के गोली मारी गई.

रशीद ने मीना के घर पहुंच कर उसे आवाज लगाई और दूध का पैकेट दे कर वापस आ गया. एक सेना का अधिकारी, जो मीना के घर के सामने अपने जवानों के साथ ड्यूटी दे रहा था, उस ने रशीद को दूध देते देखा. मौलवी रशीद उसे देख कर डर के मारे थरथर कांपने लगा. वह आर्मी अफसर आगे बढ़ा और रशीद की पीठ को थपथपाते हुए बोला, ‘‘शाबाश.’’

रशीद जब अपने महल्ले में पहुंचा तो देखा कि लोग उस के घर को घेर कर खड़े थे. वह स्कूटर से उतरा तो महल्ले के मुसलमान लड़के उस की पिटाई करते हुए कहने लगे, ‘‘तू कौम का गद्दार है. एक हिंदू लड़की के घर गया था. तू देख नहीं रहा है कि वे हमें जिंदा जला रहे हैं? हमारी बहनबेटियों की इज्जत के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं. क्या उस महल्ले के हिंदू मर गए थे जो तू उस के बच्चे को दूध पिलाने गया था.’’

एक बूढ़े मौलाना ने कहा, ‘‘रशीद, तू महल्ला खाली कर फौरन यहां से चला जा नहीं तो तेरी वजह से इस महल्ले पर हिंदू कभी भी हमला कर सकते हैं. तेरा मीना के साथ यह अनैतिक संबंध हम को बरबाद कर देगा.’’

इस बीच पुलिस की एक जीप वहां आई और पुलिस वाले यह कह कर चले गए कि यहां तो मुसलमानों ने ही मुसलमान को मारा है, खतरे की कोई बात नहीं है. लगता है कोई पुरानी रंजिश होगी.

मार खाने के बाद रशीद अपने घर चला गया और बिस्तर पर लेट कर कराहने लगा. कुछ देर के बाद फोन की घंटी बजी. फोन मीना का था. वह कह रही थी, ‘‘रशीद, तुम्हारे जाने के बाद महल्ले के कुछ हिंदू लड़के मेरे घर में घुस आए थे और उन्होेंने दूध के साथ घर का सारा सामान सड़क पर फेंक दिया. अब मैं क्या करूं. तुम जब तक माहौल सामान्य नहीं हो जाता मेरे घर मत आना. बच्चे तो जैसेतैसे जी ही लेंगे.’’

रशीद फोन पर हूं हां कर के चुप हो गया क्योंकि उसे चोट बहुत लगी थी. वह लेटेलेटे सोच रहा था कि हिंदूमुसलिम फसाद में एक तरफ से कुछ भी नहीं होता है. दोनों तरफ से लड़ाई होती है और कौम के नेता इस जलती हुई आग पर घी डालते हैं. यदि हिंदू मुसलमान को मारता है तो वही उस को सड़क से उठाता भी है. अस्पताल भी वही ले जाता है, वही पुलिस की वर्दी पहन कर उस का रक्षक भी बनता है और वही जज की कुरसी पर बैठ कर इंसाफ भी करता है, कहीं तो कुछ है जो टूटता नहीं.

4 दिन बाद कुछ हालात संभले थे. इस दौरान समाचारपत्रों ने बहुत सी घटनाओं को अपनी सुर्खियां बनाया था. इन्हीं में एक खबर रशीद और मीना को ले कर छपी थी कि ‘हिंदू इलाके में एक मुसलमान अपनी प्रेमिका से मिलने आता है.’

ऐसे माहौल में समाचारपत्रों का काम है खबर बेचना. अगर सच्ची खबर न हो तो झूठी खबर ही सही, उन के अखबार की बिक्री बढ़नी चाहिए. अब तो राजनीतिक पार्टियां भी अपना अखबार निकाल रही हैं ताकि पार्टी की पालिसी के अनुसार समाचार को प्रकाशित किया जाए. आजादी के बाद हम कितने बदल गए हैं. अब नेताओं को देश की जगह अपनी पार्टी से प्रेम अधिक है.

शहर में कर्फ्यू समाप्त हो गया था. रशीद भी अब पूरी तरह से ठीक हो गया था. उस ने फैसला किया कि अब यह शहर उस के रहने के लायक नहीं रहा पर शहर छोड़ने से पहले वह मीना से मिलना चाहता था.

वह घर से निकला और सीधा मीना के घर पहुंचा. उसे घर के दरवाजे पर बुलाया और हमेशाहमेशा के लिए उसे एक नजर देख कर मुड़ना ही चाहता था कि कुछ लोग उस को चारों ओर से घेर कर खड़े हो गए.

रशीद ने मीना से सब्जी काटने वाला चाकू मांगा और सब को संबोधित कर के बोला, ‘‘आप लोगों को मुझे मारने की आवश्यकता नहीं है. मैं अपने पेट में चाकू मार कर आत्महत्या करने जा रहा हूं. अब यह शहर जीने लायक नहीं रह गया.’’

उस भीड़ ने रशीद को पकड़ लिया और एक सम्मिलित स्वर में आवाज आई, ‘‘भाई साहब, हम आप को मारने नहीं बल्कि देखने आए हैं. आप की पत्नी को हिंदुओं ने नंगा कर के गोली मारी थी और आप एक हिंदू विधवा के बच्चों के लिए दूध लाते रहे. अब आप जैसे इनसान को देखने के बाद यकीन हो गया है कि हिंदुस्तान जिंदा है और हमेशा जिंदा रहेगा.

सुहागरात पर मसाज का मजा लिया क्या?

अमूमन यह माना जाता है कि सुहागरात पर जिस्मानी रिश्ता तो हर कीमत पर बनना ही चाहिए. दूल्हे के दिमाग में तो यह भर दिया जाता है कि पहली रात को ही अपनी दुलहन को अपने जिस्म से मसल देना. बहुत सी लड़कियां भी सुहागरात पर ऐसा ही कुछ चाहती हैं कि उन का दूल्हा बादाम का दूध पीने के बाद उस की पूरी कीमत वसूले.

लेकिन एक बड़ा सच यह भी होता है कि अपनी शादी की रस्मों की थकावट के बाद दूल्हा और दुलहन इस कदर परेशान हो चुके होते हैं कि वे सुहारागत पर सेक्स से ज्यादा मसाज की चाहत रखते हैं. लिहाजा, जब दूल्हा-दुलहन अपने कमरे में बंद होते हैं तो वे एकदूसरे को मसाज दे कर शुरू होने वाले रिश्ते को नई गरमाहट दे सकते हैं.

उत्तर प्रदेश के एक नौजवान ने यही तरीका अपनाया था. उस की बरात बहुत दूर किसी ठेठ देहात में गई थी. शादी हुई और दुलहन चल पड़ी अपने ससुराल. हालांकि वह नौजवान कार से अपनी दुलहन को घर ला रहा था, पर रास्तेभर उस ने देखा कि उस की नई नवेली दुल्हन अपने भारी लहंगे और नींद की खुमारी में हद से ज्यादा परेशान थी.

ससुराल में भी रस्मों के नाम पर दुलहन की चकरघिन्नी बना दी गई. रात हुई तो उसे सुहाग सेज के लिए सजा दिया गया, पर असल में तो यह उस के लिए बहुत बड़ी सजा थी.

रात को जब पति कमरे में आया तो दुल्हन की सांसें ऊपर-नीचे होने लगीं, पर वह नौजवान बड़ा समझदार निकला. उस ने चंद बातें करने के बाद अपनी दुलहन को एक नाइटी गिफ्ट की और खुद भी कपड़े बदल कर बिस्तर पर एक तरफ लेट गया.

जब दुलहन नाइटी पहन कर कमरे में आई तो उस का हाथ पकड़ कर अपने पास लिटा लिया. थोड़ी देर में ही उस नौजवान के हाथ अपनी पत्नी के बदन से ऐसे खेलने लगे जैसे कोई मसाज करता है. पत्नी को थोड़ा आराम मिला तो पति ने लाइट बंद कर के उस की अपने मजबूत हाथों से इस तरह अच्छी मसाज की कि पत्नी उस के आगोश में ही सो गई. पत्नी की सारी थकावट जो उतर गई थी.

इस के बाद तो पत्नी की नींद सुबह 5 बजे ही टूटी. पति बगल में सो रहा था. पत्नी ने उसे प्यार से चूम लिया. पति की नींद खुल गई. उस ने दोबारा अपनी पत्नी को गले से लगा लिया.

पत्नी ने कहा, ‘‘अब मेरी बारी. आप भी तो बहुत थके हुए लग रहे हैं.’’

रात को पति से जो मसाज करने का गुर सीखा था, पत्नी ने वही अपनाया. कुछ देर बाद ही पति की नींद काफूर हो गई. अब तो वे दोनों पूरी तरह खुल चुके थे और बड़े तरोताजा लग रहे थे. पति ने इसी बात का फायदा उठाते हुए अपनी पत्नी को चूम लिया. इस के बाद उन दोनों के बीच वही हुआ जिस की सुहागरात पर उन से उम्मीद की जा रही थी और हुआ भी बड़े अच्छे तरीके से.

अंग का आकार : क्या बड़ा है तो बेहतर है?

काफी समय पहले की बात है. करन जौहर अपने इंगलिश टेलीविजन शो ‘कौफी विद करन’ में अक्षय कुमार और उन की पत्नी ट्विंकल खन्ना से सवालजवाब कर रहे थे.

करन जौहर ने ट्विंकल खन्ना से पूछा कि अक्षय में ऐसा क्या है जो खान (शाहरुख, आमिर और सलमान वगैरह) में नहीं है?

इस पर ट्विंकल खन्ना ने तपाक से कहा, “कुछ इंच ज्यादा का फर्क है.”

यह सुन कर अक्षय शरमा से गए और करन अपने चिरपरिचित अंदाज में खीसें निपोरने लगे.

उस समय बाद में चाहे ट्विंकल खन्ना ने कहा कि वे अक्षय के पैरों (जूते) के साइज का जिक्र कर रही थीं, पर उन की इस डबल मीनिंग वाली बात ने दर्शकों को हैरान के साथसाथ हंसने पर भी मजबूर कर दिया था.

आम जिंदगी की बात करें तो जवानी फूटते ही लड़कों को यह बात ज्यादा हैरानपरेशान करती है कि क्या उन के अंग का साइज इतना है कि वे अपनी पत्नी या प्रेमिका को जिस्मानी तौर पर संतुष्ट कर पाएंगे?

कभीकभी तो अपने अंग के साइज को ले कर नौजवान इतने आतंकित हो जाते हैं कि सार्वजनिक शौचालयों में चिपके नीमहकीमों के अंग के फौलादी और लंबे होने के इश्तिहारों पर इतने मुग्ध हो जाते हैं कि बिना सोचेसमझे उन से अधकचरी जानकारी ले लेते हैं और अपना पैसा लुटवा देते हैं.

रमेश के साथ ऐसा ही हुआ. शादी से पहले उस के दोस्तों ने उसे एक ब्लू फिल्म दिखा दी. उस फिल्म के मर्द कलाकार का अंग बहुत बड़ा था और इस वजह से औरत कलाकार को खूब मजे आए थे.

चूंकि रमेश का अंग उतना बड़ा नहीं था तो वह तनाव में आ गया. सुहागरात पर उस के मन में डर बैठ गया कि वह अपनी पत्नी को बड़े अंग का सुख नहीं दे पाएगा और उस की शादी शुरुआत में ही नरक बन जाएगी.

इस का नतीजा यह हुआ कि रमेश सुहागरात पर पत्नी के नजदीक जाने से कतराने लगा. उस रात तो पत्नी ने ज्यादा कुछ नहीं सोचा, पर जब हर रात रमेश उस से दूर रहने लगा तो उस का माथा ठनका.

ज्यादा जोर देने पर रमेश ने इस समस्या की तरफ इशारा किया. पत्नी पढ़ीलिखी और बहुत समझदार थी तो उस ने रमेश का यह वहम दूर करने के लिए एक काबिल सैक्स डाक्टर का सहारा लिया.

जब डाक्टर को यह बात पता चली तो उस ने रमेश को समझाते हुए कहा, “रमेश, यह अकेले तुम्हारी ही समस्या नहीं है, बल्कि बहुत से लोग इस छोटी सी बात का बड़ा बना कर अपनी शादीशुदा जिंदगी को खराब कर लेते हैं.

“दुनिया में हर मर्द के अंग का साइज, उस का मोटापन अलगअलग हो सकता है. अमूमन यह सख्त होने पर औसतन 5 से 6 इंच का होता है. किसी का अंग इस से छोटा या बड़ा भी हो सकता है. वैसे, अगर किसी का सख्त अंग, अगर वह 2 इंच का भी हो तो, औरत को संतुष्ट करने के लिए काफी होता है.”

यह सुन कर रमेश के कान खड़े हुए और उस ने पूछा, “वह कैसे?”

इस पर डाक्टर ने बताया, “किसी औरत का उस के अंग का अगला डेढ़ से 2 इंच का हिस्सा ही संवेदनशील होता है, जहां मरदाना अंग की रगड़ से उसे मजा आता है. बात अंग के साइज की नहीं रगड़ की होती है कि वह आप ने कितनी बार किया है.”

“मतलब?” रमेश ने पूछा.

मतलब यह कि तुम अपनी पत्नी के साथ कितनी देर तक जिस्मानी रिश्ता बनाते हो, वह ज्यादा जरूरी है न कि तुम्हारा अंग कितना बड़ा है. इस में फोरप्ले और आफ्टरप्ले का रोल भी बड़ा अहम होता है.”

“फोरप्ले और आफ्टरप्ले क्या बला है?

रमेश के यह पूछने पर डाक्टर ने कहा, “जिस्मानी रिश्ता बनाने से पहले और बाद का प्यार. फोरप्ले में पत्नी के अंगों को चूमना, मसलना, उन्हें सहलाना, प्यार भरी बातें करना होता है, जिस से तुम्हारे अंग में पूरा तनाव आ जाएगा और पत्नी को जोश. बहुत सी औरतों को यह फोरप्ले इतना पसंद आता है कि वे इस में पति का भरपूर साथ देती हैं और रात को रंगीन बना देती हैं. इस से जिस्मानी रिश्ता भी काफी देर तक टिक पाता है.

“जब पतिपत्नी जिस्मानी रिश्ता बना कर संतुष्ट हो चुके होते हैं, तब बहुत से थकेहारे मर्द मुंह फेर कर सो जाते हैं और पत्नी बेचारी सिसकती रहती है. यहां पर आफ्टरप्ले काम आता है. इस में भी पतिपत्नी का एकदूसरे की बांहों में समाना, बालों को सहलाना, चूमना और नींद के आगोश में ले जाना शामिल होता है.

“जब यह सब पूरा होता है तो इस से पतिपत्नी का प्यार ज्यादा बढ़ जाता है और वे जिस्मानी रिश्ता बनाने का भरपूर मजा लेते हैं.”

“इस का मतलब मेरे अंग के साइज में कोई दिक्कत नहीं है?”

बिलकुल नही, बल्कि कभीकभार तो ज्यादा बड़े और मोटे साइज का अंग औरत को दर्द दे सकता है और जिस्मानी सुख को फीका कर सकता है.”

यह सुन कर रमेश को बड़ी राहत मिली. उस ने उसी रात अपनी सुहागरात मनाई और फोरप्ले और आफ्टरप्ले का भी ध्यान रखा. इस का बड़ा ही सुखद नतीजा रहा, पति और पत्नी दोनों के लिए.

शादी से पहले सैक्स, क्या रोमांस बढ़ाएगा दोगुना

आजकल लगभग सभी समाचारपत्रों और पत्रिकाओं में पाठकों की समस्याओं वाले स्तंभ में युवकयुवतियों के पत्र छपते हैं, जिस में वे विवाहपूर्व शारीरिक संबंध बना लेने के बाद उत्पन्न हुई समस्याओं का समाधान पूछते हैं.

विवाहपूर्व प्रेम करना या स्वेच्छा से शारीरिक संबंध बनाना कोई अपराध नहीं है, मगर इस से उत्पन्न होने वाली समस्याओं पर विचार अवश्य करना चाहिए. इन बातों पर युवकों से ज्यादा युवतियों को ध्यान देने की आवश्यकता है, ताकि भविष्य में उन्हें दिक्कतों का सामना न करना पड़े :

विवाहपूर्व शारीरिक संबंध भले ही कानूनन अपराध न हो, मगर आज भी ऐसे संबंधों को सामाजिक मान्यता नहीं है. विशेष कर यदि किसी लड़की के बारे में समाज को यह पता चल जाए कि उस के विवाहपूर्व शारीरिक संबंध हैं तो समाज उस के माथे पर बदचलन का टीका लगा देता है, साथ ही गलीमहल्ले के आवारा लड़के लड़की का न सिर्फ जीना दूभर कर देते हैं, बल्कि खुद भी उस से अवैध संबंध बनाने की कोशिश करते हैं.

युवती के मांबाप और भाइयों को इन संबंधों का पता चलने पर घोर मानसिक आघात लगता है. वृद्ध मातापिता कई बार इस की वजह से बीमार पड़ जाते हैं और उन्हें दिल का दौरा तक पड़ जाता है. लड़की के भाइयों द्वारा प्रेमी के साथ मारपीट और यहां तक कि प्रेमी की जान लेने के समाचार लगभग रोज ही सुर्खियों में रहते हैं. युवकों को तो अकसर मांबाप समझा कर सुधरने की हिदायत देते हैं, मगर लड़की के प्रति घर वालों का व्यवहार कई बार बड़ा क्रूर हो जाता है. प्रेमी के साथ मारपीट के कारण लड़की के परिवार को पुलिस और कानूनी कार्यवाही तक का सामना करना पड़ता है.

अधिकतर युवतियों की समस्या रहती है कि उन्हें शादीशुदा व्यक्ति से प्यार हो गया है व उन्होंने उस से शारीरिक संबंध भी कायम कर लिए हैं. शादीशुदा व्यक्ति आश्वासन देता है कि वह जल्दी ही अपनी पहली पत्नी से तलाक ले कर युवती से शादी कर लेगा, मगर वर्षों बीत जाने पर भी वह व्यक्ति युवती से या तो शादी नहीं करता या धीरेधीरे किनारा कर लेता है. ऐसे किस्से आजकल आम हो गए हैं.

इस तरह के हादसों के बाद युवतियां डिप्रेशन में आ जाती हैं व नौकरी छोड़ देती हैं. इस से उबरने में उन्हें वर्षों लग जाते हैं. कई बार युवक पहली पत्नी के होते हुए भी दूसरी शादी कर लेते हैं. मगर याद रखें, ऐसी शादी को कानूनी मान्यता नहीं है और बाद में बच्चों के अधिकार के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ सकती है जिस का फैसला युवती के पक्ष में आएगा, इस की संभावना बहुत कम रहती है.

शारीरिक संबंध होने पर गर्भधारण एक सामान्य बात है. विवाहित युवती द्वारा गर्भधारण करने पर दोनों परिवारों में खुशियां मनाई जाती हैं वहीं अविवाहित युवती द्वारा गर्भधारण उस की बदनामी के साथसाथ मौत का कारण भी बनता है.

अभी हाल ही में मेरी बेटी की एक परिचित के किराएदार के घर उन के भाई की लड़की गांव से 11वीं कक्षा में पढ़ने के लिए आई. अचानक एक शाम उस ने ट्रेन से कट कर अपनी जान दे दी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि लड़की गर्भवती थी. उसे एक अन्य धर्म के लड़के से प्यार हो गया और दोनों ने शारीरिक संबंध कायम कर लिए, मगर जब लड़के को लड़की के गर्भवती होने का पता चला तो वह युवती को छोड़ कर भाग गया. अब युवती ने आत्महत्या का रास्ता चुन लिया. ऐसे मामलों में अधिकतर युवतियां गर्भपात का रास्ता अपनाती हैं, लेकिन कोई भी योग्य चिकित्सक पहली बार गर्भधारण को गर्भपात कराने की सलाह नहीं देगा.

अधिकतर अविवाहित युवतियां गर्भपात चोरीछिपे किसी घटिया अस्पताल या क्लिनिक में नौसिखिया चिकित्सकों से करवाती हैं, जिस में गर्भपात के बाद संक्रमण और कई अन्य समस्याओं की आशंका बनी रहती है. दोबारा गर्भधारण में भी कठिनाई हो सकती है. अनाड़ी चिकित्सक द्वारा गर्भपात करने से जान तक जाने का खतरा रहता है.

युवती का विवाह यदि प्रेमी से हो जाता है तब तो विवाहोपरांत जीवन ठीकठाक चलता है, मगर किसी और से शादी होने पर यदि भविष्य में पति को किसी तरह से पत्नी के विवाहपूर्व संबंधों की जानकारी हो गई तो वैवाहिक जीवन न सिर्फ तबाह हो सकता है, बल्कि तलाक तक की नौबत आ सकती है.

विवाहपूर्व शारीरिक संबंधों में मुख्य खतरा यौन रोगों का रहता है. कई बार एड्स जैसा जानलेवा रोग भी हो जाता है. खास बात यह है कि इस रोग के लक्षण काफी समय तक दिखाई नहीं देते हैं, लेकिन बाद में यह रोग उन के पति और होने वाले बच्चे को हो जाता है. प्रेमी और उस के दोस्तों द्वारा ब्लैकमेल की घटनाएं भी अकसर होती रहती हैं. उन के द्वारा शारीरिक यौन शोषण व अन्य तरह के शोषण की आशंकाएं हमेशा बनी रहती हैं.

युवती का विवाह यदि अन्यत्र हो जाता है और वैवाहिक जीवन ठीकठाक चलता रहता है, घर में बच्चे भी आ जाते हैं, लेकिन यदि भविष्य में बच्चों को अपनी मां के किसी दूसरे पुरुष से संबंधों के बारे में पता चले तो उन्हें गंभीर मानसिक आघात पहुंचेगा, खासकर तब जब बच्चे टीनएज में हों. मां के प्रति उन के मन में घृणा व उन के बौद्धिक विकास पर भी इस का असर पड़ता है.

इन संबंधों के कारण कई बार पारिवारिक, सामाजिक व धार्मिक विवाद व लड़ाईझगड़े भी हो जाते हैं, जिन में युवकयुवती के अलावा कई और लोगों की जानें जाती हैं. इस के बावजूद यदि युवकयुवती शारीरिक संबंध बना लेने का निर्णय कर ही लेते हैं, तो गर्भनिरोधक विशेषकर कंडोम का प्रयोग अवश्य करें, क्योंकि इस से गर्भधारण व यौन संक्रमण का खतरा काफी हद तक खत्म हो जाता है.

अधूरी है सैक्स नौलेज, तो ले पूरी जानकारी

प्रेमिका को खुश रखने की युवा हर संभव कोशिश करते हैं, लेकिन जब सेक्स संबंधी समस्या हो तो उसे भी दूर करना होगा. युवा प्रेमियों को लगता है कि सेक्स का अधूरा ज्ञान उन्हें मंझधार में ले जा सकता है. सेक्स संबंधों के दौरान सेक्स क्षमता का बहुत महत्त्व है. सहवास करने की क्षमता ही व्यक्ति को पूर्ण पुरुष के रूप में स्थापित करती है.

कई ऐसे कारण हैं जिन पर हम खुल कर चर्चा नहीं करते न ही उन्हें दूर करने का उपाय खोजते हैं. नतीजतन, सेक्स लाइफ का मजा काफूर हो जाता है. ऐसी  कई समस्याएं हैं जिन्हें दूर कर हम वैवाहिक जिंदगी जी सकते हैं.

1. झिझक 

सहवास की पूर्ण जानकारी न होना, सेक्स के बारे में झिझक, संबंध बनाने से पहले ही घबराना, यौन दुर्बलता से सेक्स इच्छा की कमी, मानसिकरूप से खुद को सेक्स के प्रति तैयार न कर पाना, शीघ्रपतन, स्वप्नदोष, मोबाइल सेक्स आदि समस्याओं से युवावर्ग पीडित है. सेक्स में मंझधार में न रहें, समस्याओं को समझें व इन्हें दूर करें और सेक्स का भरपूर आनंद उठाएं.

2. सैक्स इच्छा में मानसिक कारणों को दूर करें

आज की भागदौड़भरी जिंदगी में धनपदयश पाने की उलझन में फंसे युवा एक खास मुकाम तक पहुंचने के चक्कर में सहवास के बारे में अंत में सोचते हैं. वे इस तनाव से ऐसे ग्रस्त हो गए हैं कि उन का वैवाहिक जीवन इस से प्रभावित हुआ है.

3. सैक्स में डरें नहीं

डर यौनसुख को सब से ज्यादा प्रभावित करता है. इस की वजह से शीघ्र स्खलित होना, कोई देख लेगा, कमरे के बाहर आवाज सुनाई देने का डर, पार्टनर द्वारा उपहास, गर्भ ठहरने का खतरा आदि युवाओं की यौनक्षमता पर प्रश्नचिह्न लगा देते हैं. युवावस्था में यौन इच्छा चरम पर होती है इसलिए सेक्स संबंध जल्दीजल्दी बना लेते हैं, लेकिन धीरेधीरे समय में ठहराव कम हो जाता है, क्योंकि विवाह से पहले प्रेमिका से संबंध बनाना उसे अपराधबोध लगता है और वह शीघ्र स्खलित हो जाता है. इन सभी बातों को नजरअंदाज करते हुए सेक्स संबंध बनाएं.

4. मोबाइल सैक्स

इंटरनैट के परिवेश में आज का युवा मोबाइल पर सैक्सी फिल्में देखता है और खुद को भी सेक्स में लिप्त कर लेता है. यही कारण है कि वह वास्तविक जीवन में सेक्स का भरपूर आनंद नहीं उठा पाता.

5. स्वयं पर विश्वास करें

कुछ युवा स्वस्थ होते हुए भी सेक्स के प्रति आत्मविश्वासी नहीं होते. सहवास के दौरान वे धैर्य खो बैठते हैं. ऐसे युवाओं में कोई कुंठा छिपी होती है, जो उन्हें पूर्ण सेक्स करने से रोकती है. खुद पर विश्वास रखें, अन्यथा किसी अच्छे सैक्सोलौजिस्ट एवं मनोचिकित्सक को दिखाएं.

6. यौनांग पर चोट

किसी ऐक्सिडैंट या अत्यंत तेजी से शारीरिक संबंध बनाते हुए या कष्टप्रद आसनों से यौनांग को चोट पहुंचती है. इस से युवती का सेक्स से मन हटने लगता है. अत: यौनांग पर चोट न पहुंचे, ऐसा प्रयास करें.

7. शारीरिक कारण

आज युवाओं का सेक्स में सफल न हो पाना दवाओं का दुष्प्रभाव है. बीटा रिसेप्टार्स, प्रोपेनोलोल, मिथाइल डोपा, सिमेटिडिन आदि दवाएं सेक्स इच्छा में कमी लाती हैं. खुद को बीमारी से दूर रखने का प्रयास करें. यौनांग में कसावट होने (फिमोसिस) के फलस्वरूप दर्द, जलन होना, तनाव व स्खलन के कारण सहवास में कमी आ जाती है. अत: शल्यक्रिया द्वारा इसे दूर किया जा सकता है.

8. गुप्तांग में तनाव न आना

सहवास के दौरान तनाव न आना और यदि  तनाव आता भी है तो कम समय के लिए आता है. युवावस्था में ऐसा होने के कई कारण हैं, जैसे मातापिता का व्यवहार व मानसिक तनाव सेक्स क्रिया में असफलता की मुख्य वजह है.

9. सीमेन की मात्रा कम होना

कई बार स्खलन का समय सामान्य होता है, लेकिन सीमेन काफी कम मात्रा में निकलने से सेक्स के दौरान पूर्णआनंद नहीं आता. युवा यदि इस समस्या से पीडि़त हों तो चरमोत्कर्ष तक नहीं पहुंच पाते. ऐसे में सैक्सोलौजिस्ट से मिलें. मानसिक रूप से खुद को तैयार कर के सहवास करें, समस्या अवश्य दूर होगी.

10. इजाक्युलेशन

जब युवा अपने पार्टनर को संतुष्ट किए बिना ही स्खलित हो जाते हैं तो इसे इजाक्यूलेशन कहा जाता है. सैक्सुअल संबंधों के दौरान ऐसा होने से वैवाहिक जीवन में कड़वाहट आती है.

11. प्रीमैच्योर इजाक्युलेशन

युवाओं में सेक्स में और्गेज्म की अनुभूति इजाक्युलेशन से पूरी होती है. सहवास शुरू करने के 30 सैकंड से 1 मिनट पहले स्खलित होने पर उसे प्रीमैच्योर इजाक्युलेशन कहते हैं. गुप्तांग की कठोरता खत्म हो जाती है और इस वजह से पार्टनर की इच्छा पूरी नहीं हो पाती है. यह वास्तव में समस्या नहीं बल्कि चिंता, संतुष्ट न कर पाने का डर, मानसिक अशांति, मानसिक तनाव, डायबिटीज या यूरोलौजिकल डिसऔर्डर के कारण होता है. इस के लिए ऐंटीडिप्रैंसेट दवाओं का सेवन डाक्टर की सलाह ले कर करें.

12. ड्राइ इजाक्युलेशन

इस में पुरुषों की ब्लैडर मसल्स ठीक से काम नहीं करतीं, जिस कारण सीमेन बाहर नहीं निकल पाता. इस से फर्टिलिटी प्रभावित होती है, लेकिन आर्गेज्म या सेक्स संतुष्टि पर कोई असर नहीं पड़ता.

13. पौष्टिक आहार व पर्याप्त नींद लें

संतुलित व पर्याप्त पौष्टिक भोजन के अभाव में शरीर परिपुष्ट नहीं हो पाता. ऐसे में सीमेन का पतलापन और इजाक्युलेशन जैसी समस्या का सामना करना पड़ता है. पर्याप्त नींद और भोजन से शरीर में सेक्स हारमोन का स्तर काफी बढ़ जाता है, जो सफल सहवास के लिए जरूरी है.

14. तनाव से दूर रहें

तनाव के दौरान कभी भी सेक्स संबंध न बनाएं. तनाव सेक्स प्रक्रिया को पूरी तरह प्रभावित करता है और इंसान को कई बीमारियों से ग्रसित कर देता है. मुंबई की मशहूर मनोचिकित्सक डा. यदुवीर पावसकर का मानना है कि युवाओं के एक बहुत बडे़ वर्ग, जिसे तनाव ने अपने घेरे में ले लिया है, को सेक्स से अरुचि होने लगी है. इस का मुख्य कारण भागदौड़ भरी दिनचर्या है.

15. फोरप्ले को समझें

शारीरिक संबंध बनाने से पहले पूर्ण शारीरिक स्पर्श, मुखस्पर्श, नख, दंत क्रीड़ा करने के बाद ही सहवास शुरू करें. सेक्स प्रक्रिया का पहला चरण फोरप्ले है. बिना फोरप्ले युवकों को उतनी समस्या नहीं आती लेकिन ज्यादा नोचनेखसोटने से युवती को पीड़ा हो सकती है. उस का सहवास से मन हट सकता है. इसलिए शारीरिक संबंध बनाते समय पार्टनर की भावनाओं की भी कद्र करें और अगर उसे इस दौरान दर्द हो रहा है तो अपने ऐक्शंस पर थोड़ा कंट्रोल करें.

16. सैक्स ऐंजौय करने के कुछ उपाय

–       पूरी नींद लें.

–       पौष्टिक आहार लें.

–       नियमित व्यायाम करें.

–       शराब या तंबाकू का सेवन न करें.

–       नियमित रूप से हैल्थ चैकअप करवाएं.

–       साल में 1-2 बार किसी हिल स्टेशन पर जाएं.

–       शारीरिक संबंध तभी बनाएं जब पार्टनर भी तैयार हो.

युवाओं के लिए बेहद जरूरी है सेक्स एजुकेशन

आज जिस तेजी से युवाओं की सोच बदल रही है, उन में जो खुलापन आया है वह मानसिक विकास के लिए तो जरूरी है, लेकिन खुलापन शारीरिक स्तर तक बढ़ जाए, यह गलत है. गलत इसलिए है क्योंकि हर कार्य को करने का समय होता है. किसी काम को समय से पहले ही अंजाम दिया जाए, तो उस का परिणाम भी गलत ही होता है. आज युवाओं में सेक्स के प्रति बढ़ती रुचि का ही नतीजा है कि युवतियां प्रैग्नैंट हो जाती हैं और अपनी जान तक गंवा देती हैं.

किशोरों के शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ विकास के लिए सब से जरूरी है, उन्हें सेक्स से संबंधित हर तरह की जानकारी से अवगत कराया जाए. खासकर पेरैंट्स को अपने जवान होते बच्चों को सेक्स से संबंधित जानकारी देने में जरा भी संकोच नहीं करना चाहिए, लेकिन अपने देश में बहुत कम ऐसे पेरैंट्स होते होंगे, जो अपने बच्चों को इस बारे में जागरूक और सचेत करने की पहल करते हों. यही कारण है कि हमारे देश में अधिकतर बच्चे सेक्स ऐजुकेशन से संबंधित जानकारी दोस्तों, किताबों, पत्रिकाओं, पौर्नोग्राफिक वैबसाइट्स और अन्य कई साधनों के जरिए चोरीछिपे हासिल करते हैं. उन्हें यह नहीं मालूम कि सेक्स से संबंधित ऐसी अधकचरी जानकारी मिलने से नुकसान भी होता है.

दरअसल, किशोर या युवा इन स्रोतों के जरिए सेक्स के प्रति अपने मन में गलत धारणाएं विकसित कर लेते हैं. उन्हें लगता है कि सेक्स मात्र ऐंजौय करने की चीज है, जिस से उन्हें कोई नुकसान नहीं होगा.

एशिया के तमाम देशों जैसे भारत में सेक्स ऐजुकेशन को पाठ्यक्रम में शामिल करने के सफल प्रयास किए गए हैं, लेकिन यह आज भी एक बहस का मुद्दा बना हुआ है. यदि ऐसा संभव हुआ तो सेक्स ऐजुकेशन के जरिए बच्चों को इस की पूरी जानकारी दी जा सकेगी, जिस से किशोरों का विकास सही रूप में हो सकेगा.

1. सेक्स ऐजुकेशन क्यों जरूरी

सेक्स के प्रति युवाओं की अधूरी जानकारी न केवल सेक्स के प्रति धारणाओं को बदल रही है बल्कि इन पर शारीरिक और मानसिक रूप से नकारात्मक असर को भी उन्हें झेलना पड़ता है.

साइकोलौजिस्ट अरुणा ब्रूटा कहती हैं, ‘‘सेक्स ऐजुकेशन किशोरों को सब से पहले घर से ही मिलनी चाहिए, लेकिन पेरैंट्स आज भी इस विषय पर बात करना पसंद नहीं करते. उन्हें इस बारे में बात करने पर शर्म महसूस होती है, लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि युवाओं को सेक्स की पूरी जानकारी न होने से उन का भविष्य खराब भी हो सकता है.

‘‘आज बच्चे लैपटौप, टैलीफोन, कंप्यूटर आदि पर निर्भर हो गए हैं और इस का कहीं न कहीं वे गलत इस्तेमाल भी कर रहे हैं. मुझे याद है कि एक बार मेरे पास एक 8वीं कक्षा में पढ़ने वाले लड़के का केस आया था. वह लड़का प्रौस्टीट्यूट एरिया में पकड़ा गया था.

‘‘जब मैं ने उस से पूछताछ की कि तुम वहां कैसे पहुंचे, तो उस का कहना था कि वह 11वीं क्लास के एक छात्र के कहने पर वहां चला गया था. उस बच्चे का कहना था कि वह औरत का शरीर देखना चाहता था. इस तरह की जिज्ञासा किशोर में तभी संभव है, जब वह दोस्तों की गलत संगत में रह कर चोरीछिपे उन की बातें सुनता है.

‘‘यदि किशोर ऐसा करता है, तो युवा होतेहोते सेक्स के प्रति उस का ऐटीट्यूड वल्गर होता चला जाएगा. हालांकि सेक्स कोई वल्गर चीज नहीं है. यह एक नैचुरल प्रोसैस है, जो स्त्रीपुरुष के जीवन का एक अहम हिस्सा है.

‘‘यह सिर्फ मीडिया का ही नतीजा है कि बच्चे सेक्स को गलत रूप में लेते हैं. ऐसे में पेरैंट्स को चाहिए कि वे युवा होते बच्चों को सही और पूरी जानकारी दें. किशोरों को भी ऐसी वर्कशौप अटैंड करनी चाहिए, जिस में 10-15 किशोरों का समूह हो और जहां खुल कर सेक्स से संबंधित मुद्दों पर चर्चा होती हो. इस से बच्चे भी शांत माहौल में सब कुछ समझ सकेंगे.’’

‘‘किशोरावस्था के दौरान खासकर यौनांगों का विकास होता है और साथ ही शरीर में हारमोनल बदलाव भी होते हैं, जो किशोरों को यह जानने के लिए उत्तेजित करते हैं कि वे इन बदलावों को ऐक्सप्लोर कर सकें. जो उन्होंने मीडिया के जरिए ऐक्सपीरियंस किया है, उसे वे सही में ट्राई कर बैठते हैं. ऐसे किशोरों के बीच ‘सैक्सुअल ऐरेना’ हौट टौपिक होता है. सही जानकारी न होने से इस से किशोरों को शारीरिक और मानसिक रूप से नुकसान पहुंचता है.’’

2. पेरैंट्स की भूमिका

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, सेक्स ऐजुकेशन उन सभी बच्चों को देनी चाहिए, जो 12 वर्ष और इस से ऊपर के हैं. खासकर जिस तरह से देश में टीनएज प्रैग्नैंसी और एचआईवी के मामले सामने आ रहे हैं, ऐसे में यह काफी गंभीर विषय बनता जा रहा है.

लगातार स्कूलों या आसपास के इलाकों में बलात्कार, यौन शोषण, स्कूली छात्रछात्राओं को डराधमका कर उन के साथ जबरदस्ती करना, उन्हें अश्लील वीडियो, पिक्चर्स देखने पर मजबूर किया जाता है. इसलिए पेरैंट्स की भूमिका काफी बढ़ जाती है कि वे अपनी युवा होती बेटी को उस के शरीर के बदलावों के बारे में समय रहते ही जानकारी दें ताकि वह खुद को सुरक्षित रख सके, अच्छेबुरे लोगों की पहचान कर सके, सेक्स और प्यार में फर्क समझ सके.

यह बताना भी जरूरी है कि सेक्स जैसे विषय पर शर्म नहीं बल्कि खुल कर बात करें. इस तरह की शर्म और भय को अपने मन से निकाल दें कि कहीं आप का युवा होता बच्चा असमय ही इस ज्ञान का अनुचित लाभ न उठा ले.

ऐसी स्थिति को पैदा ही न होने दें कि जब उस की शादी हो तो उसे अपने हसबैंड के पास जाने में घबराहट हो. मां की सही भूमिका निभाते हुए आप बेटेबेटियों को शरीर से संबंधित ज्ञान, विकास, काम से संबंधित थोड़ीबहुत जानकारी, प्रैग्नैंसी, कौंट्रासैप्टिव पिल्स, ऐबौर्शन आदि के नकारात्मक असर के बारे में जरूर बता दें. इस से वे जिंदगी में कई तरह की परेशानियों से बच सकते हैं. वह अपनी शारीरिक सुरक्षा और जीवन के सभी सुखों को प्राप्त कर सकते हैं.

3. स्कूलों में शामिल हो सेक्स ऐजुकेशन

कई अध्ययनों से पता चला है कि प्रभावकारी ढंग से जब किशोरों को सेक्स ऐजुकेशन के बारे में जानकारी दी गई, तो उन्होंने सही उम्र में ही सेक्स का आनंद लेना ठीक समझा. हालांकि देश में आज भी स्कूलों में सेक्स ऐजुकेशन को पाठ्यक्रम के रूप में स्वीकार नहीं किया गया है. आज भी हमारी शिक्षा प्रणाली स्कूलों में सेक्स ऐजुकेशन से संबंधित वर्कशौप और प्रोग्राम्स आयोजित करने में असहमति दिखाती है. इस की मुख्य वजह पेरैंट्स, समाज के कुछ रूढि़वादी तत्त्वों और स्कूल के शिक्षकों का मानना है कि सेक्स ऐजुकेशन से किशोर लड़केलड़कियां और भी ज्यादा आजाद खयालों के हो जाएंगे, जिस से वे सैक्सुअल इंटरकोर्स में ज्यादा फ्री हो कर लिप्त होंगे.

4. सेक्स ऐजुकेशन का फायदा

द्य इस से टीनएज प्रैग्नैंसी में बहुत हद तक कमी आएगी. युवतियां हैल्थ, शिक्षा, भविष्य यहां तक कि गर्भ में पलने वाले भू्रण पर होने वाले अप्रत्यक्ष परिणामों से भी बच सकती हैं. उन में सेक्स के प्रति जागरूकता आएगी.

समय पर सेक्स ऐजुकेशन की जानकारी होने से आगे चल कर बहुत हद तक तनाव से बचा जा सकता है.

यहां तक कि यदि कोई किशोर सैक्सुअल इंटरकोर्स में शामिल होता है, तो भी कौंट्रासैप्टिव मैथड्स जैसे कंडोम का इस्तेमाल, कौंट्रासैप्टिव पिल्स की जानकारी होने पर सैक्सुअल ट्रांसमिटेड डिसीज और टीनएज प्रैग्नैंसी से बचा जा सकता है.

सैक्सुअली ट्रांसमिटेड डिसीज जैसे गौनोरिया, पैल्विक इंफ्लैमैटरी डिसीज और सिफिलिस से बचाव होता है.

युवाओं और किशोरों में सेक्स ऐजुकेशन की जानकारी इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि उन्हें गर्भनिरोधक और मौर्निंग पिल्स, कंडोम और ऐबौर्शन के बारे में जानकारी मिल सकती है.

सुखदायक सेक्स लाइफ चाहते हैं तो इन चीजों को कहें अलविदा

डा. कुंदरा के मुताबिक, सेक्स सफल दांपत्य जीवन का महत्त्वपूर्ण आधार है. इस की कमी पतिपत्नी के रिश्ते को प्रभावित करती है. पतिपत्नी की एकदूसरे के प्रति चाहत, लगाव, आकर्षण खत्म होने के कई कारण होते हैं जैसे शारीरिक, मानसिक, लाइफस्टाइल. ये सेक्स ड्राइव को कमजोर बनाते हैं.

  • तनाव: औफिस, घर का वर्कलोड, आर्थिक समस्या, असमय खानपान आदि का सीधा असर तनाव के रूप में नजर आता है, जो हैल्थ के साथसाथ सेक्स लाइफ को भी प्रभावित करता है.
  • डिप्रैशन: यह सेक्स का सब से बड़ा दुश्मन है. यह पतिपत्नी के संबंधों को प्रभावित करने के साथसाथ परिवार में कलह को भी जन्म देता है. डिप्रैशन के कारण वैसे ही सेक्स की इच्छा में कमी आ जाती है. ऊपर से डिप्रैशन की दवा का सेवन भी कामेच्छा को खत्म करने लगता है.
  • नींद पूरी न होना: 4-5 घंटे की नींद से हम फ्रैश फील नहीं कर पाते, जिस से धीरेधीरे हमारा स्टैमिना कम होने लगता है. इतना ही नहीं सेक्स में भी हमारा इंट्रैस्ट नहीं रहता है.
  • गलत खानपान: वक्तबेवक्त खाना और जंक फूड व प्रोसैस्ड फूड का सेवन भी सेक्स ड्राइव को खत्म करता है.
  • टेस्टोस्टेरौन की कमी: शरीर में मौजूद यह हारमोन हमारी सेक्स इच्छा को कंट्रोल करता है. इस की कमी से पतिपत्नी दोनों ही प्रभावित होते हैं.
  • बर्थ कंट्रोल पिल्स: बर्थ पिल्स महिलाओं में टेस्टोस्टेरौन लैवल को कम करती हैं, जिस से महिलाओं में सेक्स संबंधों को ले कर विरक्ति हो जाती है. पतिपत्नी का दांपत्य जीवन तभी सफल होता है, जब सेक्स में दोनों एकदूसरे को सहयोग करें. सेक्स एक दोस्त की तरह भी जीवन में रंग भर देता है. शादीशुदा जिंदगी से प्यार की कशिश और इश्क का रोमांच खत्म होने लगा है तो सावधान हो जाएं.
  • यदि आप की सेक्स लाइफ अच्छी है तो इस का सकारात्मक प्रभाव आप की सेहत पर भी पड़ता है.
  • जानिए, सेक्स के सेहत से जुड़े कुछ फायदे:
  • शारीरिक तथा मानसिक पीड़ा में राहत दिलाता है: सेक्स के समय शरीर में हारमोन पैदा होते हैं, जो दर्द की अनुभूति कम करते हैं. भले ही कुछ समय के लिए.
    10.सर्दीजुकाम के असर को कम करता है: सेक्स गरमी, सर्दीजुकाम के प्रभाव को काफी हद तक कम कर देता है. अमेरिका स्थित ओहियो यूनिवर्सिटी के अध्ययन बताते हैं कि चुंबन एवं प्यारदुलार करने से रक्त में बीमारियों से लड़ने वाले टी सैल्स की तादाद बढ़ जाती है.
  • मानसिक तनाव को कम करता है: सेक्स मन को शांति देने के साथसाथ मूड को भी बढि़या बनाने वाले हारमोन ऐंडोर्फिंस के उत्पादन में वृद्धि करता है. इस के मानसिक तनाव कम हो जाता है.
  • मासिकधर्म के पूर्व की कमी को कम करता है: सेक्स में लगातार गरमी के चलते ऐस्ट्रोजन स्तर काफी हद तक कम होता है. इस दौरान शरीर में थकान कम महसूस होती है.
  • दिल के रोग और दौरों की आशंका कम होती है: अकसर दिल के मरीजों को सेक्स संबंध बनाने से दूर रहने की सलाह दी जाती है. मगर अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ हृदयरोग विशेषज्ञ,  डा. के.के. सक्सेना के अनुसार, पत्नी के साथ सेक्स संबंध बनाने से पूरे शरीर का समुचित व्यायाम होता है, जिस से दिमाग तनावरहित हो जाता है. दिल के दौरों की आशंका कम हो जाती है. सेक्स संबंध बनाने से धमनियों में रक्त का प्रवाह और हृदय की मांसपेशियों की क्षमता बढ़ती है.

5 टिप्स: सिंगल सेक्स को लेकर युवतियों के बदलते विचार

परिवर्तन के इस दौर में न सिर्फ युवतियों के विचार बदले हैं बल्कि उस से कई कदम आगे वे दैहिक स्वतंत्रता की बोल्ड परिभाषा को नए कलेवर में गढ़ती और बुनती नजर आ रही हैं.

1. सेक्सुअलल बोल्डनैस का बोलबाला

आज युवतियों ने सेक्स को अपने बोल्ड व बिंदास अंदाज से बदल दिया है. युवतियां न केवल सोशल फोरम में व सार्वजनिक जगहों पर सेक्स जैसे बोल्ड इश्यू को सरेआम उठा रही हैं बल्कि उस के पक्ष में अपना मजबूत तर्क भी पेश कर रही हैं. वे कैरियर ओरिऐंटिड होने के साथसाथ सेक्स ओरिऐंटिड भी हैं. सेक्स के टैबू होने के मिथक को वे काफी पीछे छोड़ चुकी हैं. वे सेक्स को बुराई नहीं समझतीं बल्कि उस का भरपूर लुत्फ उठाना चाहती हैं.

2. सिंगल सेक्स की पैरोकार आज की युवतियां

कुछ समय पहले तक युवतियों के अकेले रहने या सफर करने पर सवाल उठाए जाते थे, पर जवान होती युवापीढ़ी ने वर्षों से चली आ रही नैतिक व सेक्स से जुड़े सामाजिक मूल्यों की अपनी तरह से व्याख्या की है. सहशिक्षा व बौद्धिक विकास ने इसे बदलने में काफी सहायता की है. शिक्षित स्वतंत्र कम्युनिटी के इस बोल्ड अंदाज ने आम मध्यवर्गीय सोच में भी अपनी पैठ बना ली है. निम्न वर्गों में तो पहले से ही स्वतंत्रता थी. बगावती सुरों ने आजादी पाने की राह आसान कर दी है. युवतियों की आर्थिक स्वतंत्रता ने भी इस में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है.  सिंगल रहने वाली अधिकतर युवतियां इस सेक्सुअलल फ्रीडम का बेबाकी से फायदा उठाती नजर आती हैं. वे सेक्स को ऐंजौय करने में हिचकिचाती नहीं हैं. यह भी शरीर की एक आवश्यकता है.

3. सेफ सेक्स, सेफ लाइफ का फंडा

आधी आबादी का एक बड़ा वर्ग सेफ सेक्स को तरजीह देता है. सेक्स अब इंटरकोर्स का माध्यम मात्र नहीं बल्कि सुरक्षित व आनंददाई बन गया है. युवतियां अलर्ट हैं, जागरूक हैं और अपनी सेहत को ले कर सजग भी हैं. सेक्सुअलल इंटरकोर्स के दौरान वे दुनियाभर के उपाय जैसे पिल्स, कंडोम आदि का बेहतर तरीके से इस्तेमाल कर रही हैं. सिंगल रहने वाली युवतियां अब सेक्स का भी मजा ले रही हैं और फिटनैस भी बरकरार रख रही हैं.

4. सिंगल सेक्स के फायदे

वर्जनाएं अब टूट रही हैं. पढ़ाई, नौकरी या कामकाज के सिलसिले में युवतियां अपनी जद की सीमाएं लांघ रही हैं. ऐसे में बेरोकटोक वाली एकाकी जिंदगी उन्हें ज्यादा रास आ रही है. माना कि आम भारतीय परिवारों में विवाहपूर्व सेक्स को अभी भी वर्जित समझा जाता है और इसे चोरीछिपे ही अंजाम दिया जाता है, लेकिन यही रोकटोक युवाओं को सेक्स के और अधिक करीब खींच कर ला रही है. वैसे तो सिंगल सेक्स अपनेआप में एक फ्रीडम का एहसास कराता है, पर इस के कुछ फायदे भी हैं जैसे :

  •    इस से बोल्डनैस का एहसास होता है.
  •    यह कथित वर्जनाओं को तोड़ने का चरम एहसास कराता है.

माना कि सिंगल सेक्स आप को रियल सेक्सुअलल फन दे सकता है, पर अपनी सेक्सुअलल प्राइवेसी को ले कर सतर्क भी रहें. सेक्सुअलल फ्रीडम की भी लिमिट तय करें तभी आप इस के आनंद के चरम पर पहुंच सकती हैं और इस के बिंदास अंदाज में रंग सकती हैं. सेक्सुअलल इंडिपैंडैंसी जहां आप को बेबाक व बोल्ड बनाती है वहीं मोरल पुलिसिंग का शिकार भी इसलिए फन के साथ केयर का भी खयाल रखें.

5. सिंगल सेक्स के नुकसान

भले ही सिंगल रहने वाली युवतियां सेक्स को ले कर मुखरित हों पर इस के अपने कुछ नुकसान भी हैं:

  •   मल्टी पार्टनर्स से संक्रमण के खतरे बढ़ जाते हैं.
  •  चीटिंग का खतरा हमेशा बना रहता है.
  •  लंबे समय तक ऐसी फ्रीडम आप को फिजिकल प्रौब्लम्स भी दे सकती है.
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