गीता की शादी शिवराज पाल से हो जरूर गई थी, लेकिन वह उस की जवानी की आग को बुझा नहीं पाता था. जब यह आग शोला बन कर भड़की तो…
उस दिन तारीख थी 10 मई, 2021. सुबह के 8 बज रहे थे. जालौन जिले के थाना रामपुरा प्रभारी इंसपेक्टर जे.पी. पाल थाने में ही मौजूद थे. उसी समय एक युवक ने थाने में प्रवेश किया. उस के बाल बिखरे थे और चेहरा तमतमाया हुआ था. हाथ भी खून से सने थे. उसे उस हालत में देख कर जे.पी. पाल ने पूछा, ‘‘कहां से आए हो और तुम्हारे हाथ में यह खून कैसा?’’
‘‘ साहब, मैं रामपुरा कस्बा के सुभाष नगर में रहता हूं. मेरा नाम शिवराज पाल है. मैं ने अपनी पत्नी गीता का कत्ल कर दिया है. उस की लाश घर में पड़ी है. मैं अपना गुनाह कुबूल करने थाने आया हूं. आप मुझे गिरफ्तार कर लें.’’
कत्ल का नाम सुनते ही थानाप्रभारी चौंक पड़े. उन्होंने तत्काल उसे कस्टडी में ले लिया. फिर उस से पूछा, ‘‘तुम ने अपनी पत्नी का कत्ल क्यों किया?’’
‘‘साहब, वह बदचलन थी. हवस का भूत उस पर सवार रहता था. उस ने घर की इज्जत को दांव पर लगा दिया था. बीती शाम मैं पड़ोस के गांव में गया था. वहां रिश्तेदार के घर शादी थी. सुबह 4 बजे घर आया तो घर का दरवाजा अंदर से बंद था. कुंडी खटखटाई और आवाज लगाई. लेकिन पत्नी ने दरवाजा नहीं खोला.
‘‘बारबार कुंडी खटखटाने पर भी जब उस ने दरवाजा नहीं खोला तो मुझे उस पर शक हुआ. आधे घंटे बाद उस ने दरवाजा खोला, तो उस के चेहरे की रंगत उड़ी हुई थी. उस के बाल बिखरे थे. मैं समझ गया कि यार के साथ रंगरलियां मना रही थी. मैं ने उस से सवालजवाब किया तो वह मुझ से ही भिड़ गई. तब गुस्से में मैं ने उसे चापड़ से काट डाला.’’
चूंकि मामला जवान महिला की हत्या का था, अत: थानाप्रभारी जे.पी. पाल ने कत्ल की सूचना पुलिस अधिकारियों को दी. उस के बाद कातिल शिवराज पाल को साथ ले कर उस के सुभाष नगर स्थित घर पहुंचे. उस समय वहां भीड़ जुटी थी. घर के बाहर निर्माणाधीन मकान में मृतका गीता की लाश पड़ी थी. उस का कत्ल बड़ी बेरहमी से किया गया था. गरदन, पेट व पीठ पर 3 जख्म थे, जिस से खून रिस रहा था. मृतका की उम्र 33 साल के आसपास थी और उस का शरीर स्वस्थ था. शव के पास ही खून सना चापड़ पड़ा था, जिस से गीता की हत्या की गई थी. पुलिस ने आलाकत्ल चापड़ सुरक्षित कर लिया.
इंसपेक्टर जे.पी. पाल घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर जालौन के एसपी यशवीर सिंह, एएसपी राकेश सिंह तथा डीएसपी विजय आनंद आ गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया तथा कातिल शिवराज से पूछताछ की. इस के अलावा पड़ोसियों तथा घर के अन्य लोगों से भी जानकारी ली. निरीक्षण तथा पूछताछ के बाद पुलिस अधिकारियों ने थानाप्रभारी जे.पी. पाल को आदेश दिया कि वह शव का पंचनामा भर कर तत्काल पोस्टमार्टम भेजें तथा कातिल के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर जेल भेजें.
आदेश पाते ही थानाप्रभारी ने मृतका गीता के शव का पंचनामा भरा, खून आलूदा मिट्टी का नमूना रासायनिक परीक्षण हेतु सुरक्षित किया और फिर शव को पोस्टमार्टम हेतु जालौन के जिला अस्पताल भिजवा दिया. चूंकि पत्नी के कातिल शिवराज पाल ने हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया था और आला कत्ल चापड़ भी बरामद हो गया था. अत: थानाप्रभारी जे.पी. पाल ने स्वयं वादी बन कर भादंवि की धारा 302 के तहत शिवराज पाल के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली तथा उसे न्याय सम्मत गिरफ्तार कर लिया. पुलिस जांच में पति द्वारा बदचलन पत्नी की हत्या करने की सनसनीखेज घटना प्रकाश में आई.
उत्तर प्रदेश के जनपद जालौन के कालपी कस्बा निवासी राजेश पाल की सब से छोटी बेटी थी गीता. गीता से बड़ी 2 बहनें थीं, उन का ब्याह हो चुका था. गीता अपनी दोनों बहनों से ज्यादा खूबसूरत थी. युवावस्था में कदम रखते ही उस की सुंदरता में गजब का निखार आ गया था. यौवन के बोझ से लदी जब वह घर से गुजरती तो युवक उस की अदाओं पर मर मिट जाते थे.
18 बसंत पार करने के बाद राजेश पाल ने गीता की शादी जालौन जिले के कस्बा रामपुरा के मोहल्ला सुभाषनगर निवासी सूरज पाल के बेटे शिवराज पाल के साथ कर दी. शिवराज पाल औसत कदकाठी का सामान्य युवक था. शिवराज भी पिता के साथ खेतीबाड़ी करता था. सामान्य युवक को अगर चांद सी खूबसूरत बीवी मिल जाए तो उस के पैर जमीन पर नहीं पड़ते. गीता को पा कर शिवराज भी फूला नहीं समा रहा था. सुहागरात को उस ने बीवी का घूंघट उठाया तो गीता का हसीन चेहरा अपलक निहारता रह गया.
सांचे में ढला गीता का शरीर इतना मादक था कि शिवराज सब्र न रख सका. वह बीवी के नाजुक अंगों को इस तरह चूमने लगा, जैसे अंधे के हाथ बटेर लग गई हो. फिर वह बिना बीवी की भावनाओं को जगाए उस के शबाब के सागर में उतर गया. जल्दबाजी का परिणाम यह हुआ कि गीता को अभी कामना के झोंकों ने छुआ ही था कि शिवराज के यौवन के पेड़ से झरझरा कर पत्ते गिर गए. गीता के सारे सपने रेत के महल की तरह ढह गए. शिवराज तो तृप्त हो गया, लेकिन गीता अतृप्त ही रह गई.
आने वाली अगली रातों में भी ऐसा ही होता रहा. गीता का बदन शीतल ही पड़ा रहता और शिवराज तब तक हांफ चुका होता. इस से गीता समझ गई कि पति उस के तन की प्यास बुझाने के काबिल नहीं है. समय धीरेधीरे आगे बढ़ने लगा. शिवराज की बांहों में गीता खुद को आधाअधूरा ही पाती थी. इसी तरह दिन बीतने लगे. इस बीच एक के बाद एक गीता ने 2 बेटों अनुज और वरुण को जन्म दिया. बच्चों के जन्म के बाद घर का खर्च बढ़ा तो शिवराज को उन के पालनपोषण की चिंता सताने लगी. वह कस्बे में रह कर वह खेतीबाड़ी करता था. उस की आमदनी बहुत कम थी. खेतीकिसानी के बलबूते वह मनचाही जिंदगी नहीं जी सकता था. वह चाहता था कि कस्बे के अन्य युवकों की तरह वह भी शहर जा कर पैसा कमाए.
शिवराज पाल का एक रिश्तेदार राजू दिल्ली स्थित मदर डेयरी में काम करता था. एक बार राजू जब घर आया तो शिवराज ने उस से अपनी नौकरी लगवाने की बात कही. राजू अपने साथ उसे ले गया और मदर डेयरी में मजदूर के तौर पर उस की नौकरी लगवा दी.
शिवराज 10 हजार रुपए महीने में कमा लेता था. अपना खर्चा निकाल कर 5 हजार रुपए हर महीने बचा लेता था. यह पैसा वह गीता के हाथ पर रख देता था. इन पैसों से गीता बच्चों की पढ़ाई तथा घर का खर्च चलाती थी. गीता भी अब खुश थी. लेकिन उसे यह आधीअधूरी खुशी महीने 2 महीने में सिर्फ 2-3 दिन ही मिलती थी. शिवराज महीने 2 महीने में 2-3 दिन के लिए ही घर आता था. वे 2-3 रातें ही गीता को पति की बांहों में मचलने को मिलती थी. उन रातों में भी शिवराज ठीक से उस के शरीर को शीतल नहीं कर पाता था.
एक तो पति से मिलने वाला आधाअधूरा सुख, दूसरा लंबी जुदाई. गीता का मन बहकने लगा. वह अपनी देह की ख्वाहिशें पूरी करना चाहती थी. उस ने इस बारे में गहराई से विचार किया तो यह निर्णय लिया कि उसे अपनी कामनाओं का साथी किसी ऐसे युवक को बनाना चाहिए, जो एक तो उम्र में उस से छोटा हो, दूसरा उन के रिश्ते पर कोई शक न कर सके. गीता ने इधरउधर नजर दौड़ाई तो अजय उस की नजरों में चढ़ गया.
अजय शिवराज का चचेरा भाई था. पड़ोस में ही रहता था. वह अविवाहित होने के साथ शरीर से हृष्टपुष्ट था. अजय गीता का बहुत सम्मान करता था और उस का कोई भी काम बिन कहे ही कर देता था. शिवराज के घर उस का बेधड़क आनाजाना था. 25 वर्षीय अजय दूध का व्यवसाय करता था. वह दूध डेयरी पर बैठता था और दूध की खरीदफरोख्त करता था. इस व्यवसाय से उसे अच्छी कमाई थी. वह बनसंवर कर रहता था और खूब खर्च करता था. गीता के बच्चे भी उस के साथ हिलमिल गए थे.
गीता की नजरों में देवर चढ़ा तो वह उस के साथ खूब हंसीमजाक करने लगी. अजय भी चंचल भाभी की बातों में खूब रस लेता. कभीकभी गीता हंसीमजाक में ऐसी बात कह देती, जिस से अजय झेंप जाता. गीता के मन में पाप समाया तो वह अजय से कुछ ज्यादा ही खुलती चली गई. भाभी की आंखों में एक अजीब सी प्यास देख अजय भी समझ गया कि वह उस से कुछ चाहती है.
गीता ने उस की नजरों की भाषा पढ़ी तो नारी तन के गूढ़ रहस्य को जानने को उतावले अजय को बहाने से वह अपने शबाब की झलक दिखाने लगी. कभी आंचल गिरा कर वक्षों की दूधिया घाटियां दिखा देती तो कभी गोरीगोरी रानें. जवानी का पहला फल चखने को उत्साहित अजय भाभी के शबाब की झलक देखता तो उस की आंखें सुलग उठतीं. गीता यही तो चाहती थी कि देवर की देह में आग भड़के.
जब गीता को लगा कि देवर भाभी की वासना का चूल्हा फूंकने को तैयार है तो उस ने एक प्लान बनाया. एक दोपहर जब बच्चे बुआ के घर गए थे और वह घर में अकेली थी तो उस ने अजय को फोन कर के घर बुलाया. अजय भाभी के घर पहुंचा तो पाया वह चादर ओढ़े बैड पर लेटी है. अजय के अंदर आते ही गीता ने कहा, ‘‘अजय दरवाजा अंदर से बन्द कर दो.’’
अजय ने दरवाजा बंद किया और धड़कते दिल से भाभी के बगल में बैठ गया. गीता ने प्यार से अजय का हाथ पकड़ा और फिर प्यासे स्वर में बोली, ‘‘अजय, तुम्हारे भाई ने मेरी जिंदगी बरबाद कर दी. जमीन की प्यास तभी बुझती है, जब उस पर हल चले और बरसात की तेज फुहारें पड़ें. तुम्हारे भाई से कुछ नहीं होता. मैं ब्याहता हो कर भी आधीअधूरी ही हूं. वह आग तो लगा देते हैं, लेकिन बुझा नहीं पाते. इसलिए तुम्हारी मदद मांग रही हूं.’’
अजय हतप्रभ था. भाभी इस अंदाज में पेश आएगी, उसे उम्मीद न थी. वह कुछ सोच पाता उस के पहले ही गीता फुसफुसाई, ‘‘देखो तो मेरे पास क्या नहीं है. लेकिन तुम्हारे भैया कभी भी मेरी प्यास नहीं बुझा सके. बताओ, मैं कहां जाऊं. घर की बात घर में ही रहेगी. इसलिए अपना दर्द तुम्हें सुना रही हूं.’’ कहने के साथ गीता अजय से लिपट गई.
जवानी के पायदान पर कदम रख चुके अजय के लिए तो यह सुनहरा मौका था. वह उस वक्त कुछ भी सोचने की स्थिति में नहीं था. एक प्यासी जवान देह उस से लिपटी हुई थी और कामनाओं की भीख मांग रही थी. उस से भी रहा नहीं गया. अजय ने भी उसे बांहों में भर लिया. फिर तो कमरे में सीत्कार की आवाजें गूंजने लगीं और पूर्ण तृप्ति के बाद ही दोनों एकदूसरे से अलग हुए.
उस रोज के बाद देवरभाभी पाप की राह पर चलने लगे. गीता खेलीखाई थी तो अजय नौजवान. बिस्तर पर वह उसे जैसे नचाती थी, वह वैसा ही नाचता था. लगभग 2 साल तक दोनों का वासना का खेल बिना बाधा के चलते रहा. कहते हैं पाप ज्यादा दिन छिपता नहीं है. गीता और अजय के साथ भी ऐसा ही हुआ. गीता को दिन में अजय का साथ पाने का मौका कम मिलता था, अत: वह रात को उसे घर बुला लेती थी.
एक रोज जेठानी सरला ने रात में अपनी छत से गीता और अजय को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया. उस ने यह बात अपने पति मनोज तथा घर की अन्य महिलाओं को बताई. औरतों में कानाफूसी हुई तो कलयुगी भाभी की पापलीला की चर्चा पूरे मोहल्ले में होने लगी. शिवराज पाल को जब बीवी की बेहयाई पता चली तो उस ने गीता से जवाब तलब किया. उस ने त्रिया चरित्र का सहारा लिया, ‘‘जिन के पति परदेश में होते हैं, उन की पत्नियों को इसी तरह बदनाम किया जाता है. अजय घर आताजाता है, हमारा छोटामोटा काम कर देता है, मुझ से हंसबोल लेता है. बस जलने वालों के दिल पर सांप लोट गया और तुम्हारे कान भर दिए. वह मेरा रिश्ते में देवर है. क्या मुझे रिश्तों की समझ नही है?’’
शिवराज के पास कोई ठोस प्रमाण नहीं था. उसे बीवी की बात सुन कर चुप रह जाना पड़ा. लेकिन शक ऐसी चीज है, जो एक बार पैदा हो गई तो फिर मन को मथती रहती है. शिवराज ने भी बीवी और चचेरे भाई के रिश्ते की असलियत जानने की ठान ली. वह बीवी पर निगरानी रखने लगा. वह दोनों को रंगेहाथ पकड़ना चाहता था. इसलिए जल्दीजल्दी घर आने लगा. घर आने की सूचना वह बीवी को नहीं देता था.
एक रोज शिवराज पाल ने गीता और अजय को अमर्यादित स्थिति में पकड़ लिया. शिवराज ने दोनों की खूब पिटाई की और उन्हें धमकी दी कि भविष्य में यदि दोनों ने यह दोहराया तो वह दोनों को चापड़ से काट देगा. उस वक्त जान बचाने के लिए दोनों ने माफी मांगते हुए शिवराज को वचन दिया कि वे आइंदा गलती नहीं करेंगे. वासना की लत ऐसी लत है जिस के लिए इंसान किसी अंजाम की परवाह नहीं करता. शिवराज पाल की इस धमकी का न तो गीता पर असर पड़ा और न ही अजय पर. हां, इतना जरूर हुआ कि अब दोनों मिलन में सावधानी बरतने लगे.
दिन के वक्त अजय ने गीता के घर जाना बंद कर दिया था, ताकि पासपड़ोस के लोगों को शक न हो. रात में जब सब सो जाते, तब गीता अजय के मोबाइल पर मिस्ड काल दे देती, जो इस बात का संकेत होता कि आज की रात मस्ती का मौका मिस नहीं करना है. अजय दबे पांव भाभी के घर में पहुंच जाता, फिर सारी रात भाभी की वासना का चूल्हा फूंकता रहता.
इसी बीच गीता के जेठ मनोज को भी उस की बदचलनी की जानकारी हो गई. उस ने अजय के पिता को समझाया कि वह बेटे पर नजर रखे. अपने छोटे भाई शिवराज से भी कहा कि अगर बीवी को सुधारना है तो वह नौकरी छोड़ कर घर आ जाए या गीता को अपने साथ दिल्ली ले जाए. आग और फूस साथ रहेंगे तो अनीति की आग लगेगी ही. लेकिन शिवराज की मजबूरी यह थी कि न वह नौकरी छोड़ सकता था, न बीवी को साथ ले जा सकता था. वह समझ चुका था कि गीता ने देवर से अपनी यारी नहीं छोड़ी है.
अत: जब भी वह घर आता, बीवी का मोबाइल चैक करता. उस में उसे अजय की काल या मैसेज नजर आ जाते. गुस्से में आ कर एक रोज शिवराज ने बीवी का मोबाइल ही तोड़ कर फेंक दिया. फिर उसे साफ शब्दों में चेतावनी भी दे डाली, ‘‘सुधर जा, वरना अंजाम अच्छा न होगा.’’ जेठ तथा पति की पाबंदियां बढ़ीं तो गीता का प्रेमी से मिलना बंद हो गया. वह मिलन के लिए छटपटाने लगी. उधर अजय भी भाभी की बांहों में बंधने को तरसने लगा था. वह भी तड़प रहा था.
अब तक शिवराज के दोनों बेटे 8 और 10 साल के हो चुके थे. शिवराज बच्चों को बेहद प्यार करता था. दोनों बेटे कस्बे के स्कूल में पढ़ने भी लगे थे. बड़ा बेटा तेज दिमाग का था. वह पिता को घर में आनेजाने वालों के बारे में जानकारी देता रहता था. बड़े बेटे ने शिवराज को जानकारी दी थी कि अजय चाचा अकसर घर आते हैं. आते ही वह हमें घर के बाहर भेज देते हैं. जाने से वह इनकार करता है तो पैसों का लालच दे कर घर के बाहर कर देते हैं और दरवाजा बंद कर लेते हैं. बच्चे तो अनजान थे. लेकिन शिवराज जानता था कि बंद दरवाजे के भीतर गीता और अजय क्या गुल खिलाते थे.
2 मई, 2021 को शिवराज पाल एक हफ्ते की छुट्टी ले कर दिल्ली से अपने घर आ गया. दरअसल पड़ोसी गांव रैपुरा में शिवराज पाल के रिश्तेदार संजय पाल की बेटी रोशनी की 9 मई को बारात आनी थी. इसी शादी में उसे शामिल होना था. वह छुट्टी ले कर घर आ गया था. शिवराज के आ जाने से गीता और अजय का मिलन बंद हो गया था. यहां तक कि उन की मोबाइल फोन पर भी बात नहीं हो पाती थी. गीता पति की सेवा में ऐसी जुटी रहती थी, जैसे वह बहुत बड़ी पतिव्रता हो. हालांकि मन ही मन वह पति से कुढ़ती थी. उसे शादी के एक सप्ताह पहले पति का घर आना अच्छा नहीं लगा था.
9 मई, 2021 की शाम 5 बजे शिवराज पाल सजधज कर शादी में शामिल होने पड़ोसी गांव रैपुरा चला गया. पति के जाने के बाद गीता ने घर का काम निपटाया फिर रगड़रगड़ कर स्नान किया. इस के बाद सजसंवर कर उस ने अजय को फोन किया, ‘‘देवरजी, आज मौजमस्ती करने का अच्छा मौका है. तुम्हारे भैया शादी में शामिल होने रैपुरा गांव गए हैं. अब वह कल ही आ पाएंगे. आज की पूरी रात हमारी है. हम दोनों बिस्तर पर खूब धमाल मचाएंगे. रात 10 बजे तक घर जरूर आ जाना.’’
‘‘ठीक है भाभी. मैं जरूर आ जाऊंगा. तुम्हारी बांहों में मचलने के लिए मैं कई हफ्तों से तड़प रहा था.’’
गीता की ननद शिवानी सुभाष नगर मोहल्ले में ही अपने पति के साथ रहती थी. बच्चे मिलन में बाधा न बनें, इसलिए वह अनुज व वरुण को उन की बुआ के घर छोड़ आई. बहाना बनाया कि उस की तबियत खराब है. उस ने खाना नहीं बनाया और बच्चे भूखेप्यासे हैं.
रात 10 बजे अजय बनसंवर कर गीता के घर पहुंच गया. गीता उस का ही इंतजार कर रही थी. मौका अच्छा देख कर अजय गीता से छेड़खानी करने लगा फिर उसे कमरे में ले आया. दोनों के पास अच्छा मौका था. अजय ने दरवाजा बंद किया फिर गीता को बांहों में भर लिया. दोनों कई सप्ताह से मिलन नहीं कर पाए थे. अत: गीता लता की भांति अजय से लिपट गई. चरम सुख प्राप्त कर दोनों निढाल हो कर सो गए.
इधर शिवराज पाल को सवारी का साधन मिल गया तो वह उस से सुबह 4 बजे ही घर आ गया. उस ने दरवाजे की कुंडी खटखटाई तो गीता ने दरवाजा नहीं खोला. कई बार कुंडी खटखटाने के बाद भी जब दरवाजा नहीं खुला तो शिवराज समझ गया कि गीता अपने यार के साथ रंगरलियां मना रही है.
वह दरवाजा तोड़ने ही जा रहा था कि भड़ाक से दरवाजा खुला. सामने पति को देख कर गीता का चेहरा पीला पड़ गया. वह बोली, ‘‘आप कुंडी खटखटा रहे थे. मैं तो गहरी नींद में थी.’’
‘‘गहरी नींद सो रही थी या फिर यार के साथ रंगरलियां मना रही थी.’’ शिवराज ने गुस्से से पूछा.
‘‘कैसी बात कर रहे हो. शक का कीड़ा तुम्हारे दिमाग में हर समय कुलबुलाता है.’’ गीता भी ऊंची आवाज में बोली. शिवराज गीता को परे ढकेल कर घर के अंदर पहुंचा. उस ने घर का कोनाकोना छान मारा, लेकिन घर में कोई दूसरा न था. शिवराज समझ गया कि गीता ने पहले अजय को भगाया, उस के बाद ही दरवाजा खोला है. वैसे भी गीता की घबराहट, उस के बिखरे बाल और तख्त के बिस्तर की सिलवटें चुगली कर रही थीं कि रात में बिस्तर पर वासना का खेल खेला गया था. बच्चों के विषय में पूछा तो गीता ने बताया कि बच्चे बुआ के घर हैं.
इस के बाद तो शिवराज को समझते देर नहीं लगी कि गीता ने मिलन में बाधा न पडे़, इसलिए बच्चों को बुआ के घर भेज दिया था. शिवराज गीता से सच्चाई कुबूलवाना चाहता था, लेकिन गीता सच्चाई पर परदा डाल रही थी. इसी बात को ले कर दोनों में झगड़ा होने लगा. झगड़े के दौरान गीता ने शिवराज से ऐसी बात कह दी, जिसे वह बरदाश्त न कर सका. गुस्से में कमरे में रखा चापड़ उठा लिया और गीता की ओर लपका.
पति के रूप में साक्षात मौत को देख कर गीता दरवाजे की ओर भागी. लेकिन शिवराज ने उसे बरामदे में ही पकड़ लिया और चापड़ के वार से उसे वहीं ढेर कर दिया. कुछ देर तक शिवराज बीवी के शव के पास ही बैठा रहा. फिर वह थाना रामपुरा पहुंचा और थानाप्रभारी जे.पी. पाल के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. पुलिस जब घटनास्थल पर पहुंची तब मोहल्ले के लोग वहां जुटे थे.
11 मई, 2021 को पुलिस ने शिवराज पाल को जालौन कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया. मां की मौत और पिता के जेल जाने से उस के दोनों बच्चे गुमसुम हैं. वह अपनी बुआ रोशनी के संरक्षण में थे.
—कथा पुलिस सूत्रोंं पर आधारित