Hindi Story: चक्रव्यूह – सायरा को मुल्क अलग होने का क्यों हुआ फर्क

Hindi Story: सुबह का अखबार देखते ही मंसूर चौंक पड़ा. धूधू कर जलता ताज होटल और शहीद हुए जांबाज अफसरों की तसवीरें. उस ने लपक कर टीवी चालू किया. तब तक सायरा भी आ गई.

‘‘किस ने किया यह सब?’’ उस ने सहमे स्वर में पूछा.

‘‘वहशी दरिंदों ने.’’

तभी सायरा का मोबाइल बजा. उस की मां का फोन था.

‘‘जी अम्मी, हम ने भी अभी टीवी खोला है…मालूम नहीं लेकिन पुणे तो मुंबई से दूर है…वह तो कहीं भी कभी भी हो सकता है अम्मी…मैं कह दूंगी अम्मी… हां, नाम तो उन्हीं का लगेगा, चाहे हरकत किसी की हो…’’

‘‘सायरा, फोन बंद करो और चाय बनाओ,’’ मंसूर ने तल्ख स्वर में पुकारा, ‘‘किस की हरकत है…यह फोन पर अटकल लगाने का मुद्दा नहीं है.’’

सायरा सिहर उठी. मंसूर ने पहली बार उसे फोन करते हुए टोका था और वह भी सख्ती से.

‘‘जी…अच्छा, मैं कुछ देर बाद फोन करूंगी आप को…जी अम्मी जरूर,’’ कह कर सायरा ने मोबाइल बंद कर दिया और चाय बनाने चली गई.

टीवी देखते हुए सायरा भी चुपचाप चाय पीने लगी. पूछने या कहने को कुछ था ही नहीं. कहीं अटकलें थीं और कहीं साफ कहा जा रहा था कि विभिन्न जगहों पर हमले करने वाले पाकिस्तानी आतंकवादी थे.

‘‘आप आज आफिस मत जाओ.’’

इस से पहले कि मंसूर जवाब देता दरवाजे की घंटी बजी. उस का पड़ोसी और सहकर्मी सेसिल अपनी बीवी जेनेट के साथ खड़ा था.

‘‘लगता है तुम दोनों भी उसी बहस में उलझ कर आए हो जिस में सायरा मुझे उलझाना चाह रही है,’’ मंसूर हंसा, ‘‘कहर मुंबई में बरस रहा है और हमें पुणे में, बिल में यानी घर में दुबक कर बैठने को कहा जा रहा है.’’

‘‘वह इसलिए बड़े भाई कि अगला निशाना पुणे हो सकता है,’’ जेनेट ने कहा, ‘‘वैसे भी आज आफिस में कुछ काम नहीं होगा, सब लोग इसी खबर को ले कर ताव खाते रहेंगे.’’

‘‘खबर है ही ताव खाने वाली, मगर जेनी की यह बात तो सही है मंसूर कि आज कुछ काम होगा नहीं.’’

‘‘यह तो है सेसिल, शिंदे साहब का बड़ा भाई ओबेराय में काम करता है और बौस का तो घर ही कोलाबा में है. इसलिए वे लोग तो आज शायद ही आएं. और लोगों को फोन कर के पूछते हैं,’’ मंसूर बोला.

‘‘जब तक आप लोग फोन करते हैं मैं और जेनी नाश्ता बना लेते हैं, इकट्ठे ही नाश्ता करते हुए तय करना कि जाना है या नहीं,’’ कह कर सायरा उठ खड़ी हुई.

‘‘यह ठीक रहेगा. मेरे यहां जो कुछ अधबना है वह यहीं ले आती हूं,’’ कह कर जेनेट अपने घर चली गई. यह कोई नई बात नहीं थी. दोनों परिवार अकसर इकट्ठे खातेपीते थे लेकिन आज टीवी के दृश्यों से माहौल भारी था. सेसिल और मंसूर बीचबीच में उत्तेजित हो कर आपत्तिजनक शब्द कह उठते थे, जेनी और सायरा अपनी भरी आंखें पोंछ लेती थीं तभी फिर मोबाइल बजा. सायरा की मां का फोन था.

‘‘जी अम्मी…अभी वही बात चल रही है…दोस्तों से पूछ रहे हैं…हो सकता है हो, अभी तो कुछ सुना नहीं…कुछ मालूम पड़ा तो जरूर बताऊंगी.’’

‘‘फोन मुझे दो, सायरा,’’ मंसूर ने लपक कर मोबाइल ले लिया, ‘‘देखिए अम्मीजान, जो आप टीवी पर देख रही हैं वही हम भी देख रहे हैं इसलिए क्या हो रहा है उस बारे में फोन पर तबसरा करना इस माहौल में सरासर हिमाकत है. बेहतर रहे यहां फोन करने के बजाय आप हकीकत मालूम करने को टीवी देखती रहिए.’’

मोबाइल बंद कर के मंसूर सायरा की ओर मुड़ा, ‘‘टीवी पर जो अटकलें लगाई जा रही हैं वह फोन पर दोहराने वाली नहीं हैं खासकर लाहौर की लाइन पर.’’

‘‘आज के जो हालात हैं उन में लाहौर से तो लाइन मिलानी ही नहीं चाहिए. माना कि तुम कोई गलत बात नहीं करोगी सायरा, लेकिन देखने वाले सिर्फ यह देखेंगे कि तुम्हारी कितनी बार लाहौर से बात हुई है, यह नहीं कि क्या बात हुई है,’’ सेसिल ने कहा.

‘‘सायरा, अपनी अम्मी को दोबारा यहां फोन करने से मना कर दो,’’ मंसूर ने हिदायत के अंदाज में कहा.

‘‘आप जानते हैं इस से अम्मी को कितनी तकलीफ होगी.’’

‘‘उस से कम जितनी उन्हें यह सुन कर होगी कि पुलिस ने हमारे लाहौर फोन के ताल्लुकात की वजह से हमें हिरासत में ले लिया है,’’ मंसूर चिढ़े स्वर में बोला.

‘‘आप भी न बड़े भाई बात को कहां से कहां ले जाते हैं,’’ जेनेट बोली, ‘‘ऐसा कुछ नहीं होगा लेकिन फिर भी एहतियात रखनी तो जरूरी है सायरा. अब जब अम्मी का फोन आए तो उन्हें भी यह समझा देना.’’

दूसरे सहकर्मियों को फोन करने के बाद सेसिल और मंसूर ने भी आफिस जाने का फैसला कर लिया.

‘‘मोबाइल पर नंबर देख कर ही फोन उठाना सायरा, खुद फोन मत करना, खासकर पाकिस्तान में किसी को भी,’’ मंसूर ने जातेजाते कहा.

मंसूर ने रोज की तरह अपना खयाल रखने को नहीं कहा. वैसे आज जेनी और सेसिल ने भी ‘फिर मिलते हैं’ नहीं कहा था.

सायरा फूटफूट कर रो पड़ी. क्या चंद लोगों की वहशियाना हरकत की वजह से सब की प्यारी सायरा भी नफरत के घेरे में आ गई?

नौकरानी न आती तो सायरा न जाने कब तक सिसकती रहती. उस ने आंखें पोंछ कर दरवाजा खोला. सक्कू बाई ने उस से तो कुछ नहीं पूछा मगर श्रीमती साहनी को न जाने क्या कहा कि वह कुछ देर बाद सायरा का हाल पूछने आ गईं. सायरा तब तक नहा कर तैयार हो चुकी थी लेकिन चेहरे की उदासी और आंसुओं के निशान धुलने के बावजूद मिटे नहीं थे.

‘‘सायरा बेटी, मुंबई में कोई अपना तो परेशानी में नहीं है न?’’

‘‘मुंबई में तो हमारा कोई है ही नहीं, आंटी.’’

‘‘तो फिर इतनी परेशान क्यों लग रही हो?’’

साहनी आंटी से सायरा को वैसे भी लगाव था. उन के हमदर्दी भरे लफ्ज सुनते ही वह फफक कर रो पड़ी. रोतेरोते ही उस ने बताया कि सब ने कैसे उसे लाहौर बात करने से मना किया है. मंसूर ने अम्मी से तल्ख लफ्जों में क्या कहा, यह भी नहीं सोचा कि उन्हें मेरी कितनी फिक्र हो रही होगी. ऐसे हालात में वह बगैर मेरी खैरियत जाने कैसे जी सकेंगी?

‘‘हालात को समझो बेटा, किसी ने आप से कुछ गलत करने को नहीं कहा है. अगर किसी को शक हो गया तो आप की ही नहीं पूरी बिल्ंिडग की शामत आ सकती है. लंदन में तेरा भाई सरवर है न इसलिए अपनी खैरखबर उस के जरिए मम्मी को भेज दिया कर.’’

‘‘पता नहीं आंटी, उस से भी बात करने देंगे या नहीं?’’

‘‘हालात को देखते हुए न करो तो बेहतर है. रंजीत ने तुझे बताया था न कि वह सरवर को जानता है.’’

‘‘हां, आंटी दोनों एक ही आफिस में काम करते हैं,’’ सायरा ने उम्मीद से आंटी की ओर देखा, ‘‘क्या आप मेरी खैरखबर रंजीत भाई के जरिए सरवर को भेजा करेंगी?’’

‘‘खैरखबर ही नहीं भेजूंगी बल्कि पूरी बात भी समझा दूंगी,’’ श्रीमती साहनी ने घड़ी देखी, ‘‘अभी तो रंजीत सो रहा होगा, थोड़ी देर के बाद फोन करूंगी. देखो बेटाजी, हो सकता है हमेशा की तरह चंद दिनों में सब ठीक हो जाए और हो सकता है और भी खराब हो जाए, इसलिए हालात को देखते हुए अपने जज्बात पर काबू रखो. आतंकवादी और उन के आकाओं की लानतमलामत को अपने लिए मत समझो और न ही यह समझो कि तुम्हें तंग करने को तुम से रोकटोक की जा रही…’’ श्रीमती साहनी का मोबाइल बजा. बेटे का लंदन से फोन था.

‘‘बस, टीवी देख रहे हैं…फिलहाल तो पुणे में सब ठीक ही है. पापा काम पर गए. मैं सायरा के पास आई हुई हूं. परेशान है बेचारी…उस की मां का यहां फोन करना मुनासिब नहीं है न…हां, तू सरवर को यह बात समझा देना…वह भी ठीक रहेगा. वैसे तू उसे बता देना कि हमारे यहां तो कसूरवार को भी तंग नहीं करते तो बेकसूर को क्यों परेशान करेंगे, उसे सायरा की फिक्र करने की जरूरत नहीं है.’’

श्रीमती साहनी मोबाइल बंद कर के सायरा की ओर मुड़ीं, ‘‘रंजीत सरवर को बता देगा कि वह मेरे मोबाइल पर तुम से बात करे. वीडियो कानफें्रस कर तुम दोनों बहनभाइयों की मुलाकात करवा देंगे.’’

‘‘शुक्रिया, आंटीजी…’’

‘‘यह तो हमारा फर्ज है बेटाजी,’’ श्रीमती साहनी उठ खड़ी हुईं.

उन के जाने के बाद सायरा ने राहत की सांस ली. हालांकि सरवर के जरिए अम्मी को उस की खैरखबर भिजवाने की जिम्मेदारी और सरवर के साथ वीडियो कानफें्रसिंग करवाने की बात कर के आंटी ने उसे बहुत राहत दी थी मगर उन का यह कहना ‘हमारे यहां तो कसूरवार को भी तंग नहीं करते तो बेकसूर को क्यों परेशान करेंगे’ या ‘यह तो हमारा फर्ज है’ उसे खुद और अपने मुल्क पर कटाक्ष लगा. वह कहना चाहती थी कि आप लोगों की अपने मुंह मिया मिट्ठू बनने और एहसान चढ़ाने की आदत से चिढ़ कर ही तो लोग आप को मजा चखाने की सोचते हैं.

सायरा को लंदन स्कूल औफ इकनोमिक्स के वे दिन याद आ गए जब पढ़ाई के दबाव के बावजूद वह और मंसूर एकदूसरे के साथ वहां के धुंधले सर्द दिनों में इश्क की गरमाहट में रंगीन सपने देखते थे. सुनने वालों को तो यकीन नहीं होता था लेकिन पहली नजर में ही एकदूसरे पर मर मिटने वाले मंसूर और सायरा को एकदूसरे के बारे में सिवा नाम के और कुछ मालूम नहीं था.

अंतिम वर्ष में एक रोज जिक्र छिड़ने पर कि नौकरी की तलाश के लिए कौन क्या कर रहा है, सायरा ने मुंह बिचका कर कहा था, ‘नौकरी की तलाश और वह भी यहां? यहां रह कर पढ़ाई कर ली वही बहुत है.’

‘तुम ने तो मेरे खयालात को जबान दे दी, सायरा,’ मंसूर फड़क कर बोला, ‘मैं भी डिगरी मिलते ही अपने वतन लौट जाऊंगा.’

‘वहां जा कर करोगे क्या?’

‘सब से पहले तो सायरा से शादी, फिर हनीमून और उस के बाद रोजीरोटी का जुगाड़,’ मंसूर सायरा की ओर मुड़ा, ‘क्यों सायरा, ठीक है न?’

‘ठीक कैसे हो सकता है यार?’ हरभजन ने बात काटी, ‘वतन लौट कर सायरा से शादी कैसे करेगा?’

‘क्यों नहीं कर सकता? मेरे घर वाले शियासुन्नी मजहब में यकीन नहीं करते और वैसे भी हम दोनों पठान यानी खान हैं.’

‘लेकिन हो तो हिंदुस्तानी- पाकिस्तानी. दोनों मुल्कों के बाशिंदों को नागरिकता या लंबा वीसा आसानी से नहीं मिलता,’ हरभजन ने कहा.

सायरा और मंसूर ने चौंक कर एकदूसरे को देखा.

‘क्या कह रहा है हरभजन? सायरा भी पंजाब से है…’

‘बंटवारे के बाद पंजाब के 2 हिस्से हो गए जिन में से एक में तुम रहते हो और एक में सायरा यानी अलगअलग मुल्कों में.’

‘क्या यह ठीक कह रहा है सायरा?’ मंसूर की आवाज कांप गई.

‘हां, मैं पंजाब यानी लाहौर से हूं.’

‘और मैं लुधियाना से,’ मंसूर ने भर्राए स्वर में कहा, ‘माना कि हम से गलती हुई है, हम ने एकदूसरे को अपने शहर या मुल्क के बारे में नहीं बताया लेकिन अगर बता भी देते तो फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि फिदा तो हम एकदूसरे पर नाम जानने से पहले ही हो चुके थे.’

‘जो हो गया सो हो गया लेकिन अब क्या करोगे?’ दिव्या ने पूछा.

‘मरेंगे और क्या?’ मंसूर बोला.

‘मरना तो हर हाल ही में है क्योंकि अलग हो कर तो जी नहीं सकते सो बेहतर है इकट्ठे मर जाएं,’ सायरा बोली.

‘बुजदिली और जज्बातों की बातें करने के बजाय अक्ल से काम लो,’ अब तक चुप बैठा राजीव बोला, ‘तुम यहां रहते हुए आसानी से शादी कर सकते हो.’

‘शादी के बाद मैं इसे लुधियाना ले कर जा सकता हूं?’ मंसूर ने उतावली से पूछा.

‘शायद.’

‘तब तो बात नहीं बनी. मैं अपना देश नहीं छोड़ सकता.’

‘मैं भी नहीं,’ सायरा बोली.

‘न मुल्क छोड़ सकते हो न एकदूसरे को और मरना भी एकसाथ चाहते हो तो वह तो यहीं मुमकिन होगा इसलिए जब यहीं मरना है तो क्यों नहीं शादी कर के एकसाथ जीने के बाद मरते,’ हरभजन ने सलाह दी.

‘हालात को देखते हुए यह सही सुझाव है,’ राजीव बोला.

‘घर वालों को बता देते हैं कि परीक्षा के बाद यहां आ कर हमारी शादी करवा दें,’ मंसूर ने कहा.

‘मेरी अम्मी तो आजकल यहीं हैं, अब्बू भी अगले महीने आ जाएंगे,’ सायरा बोली, ‘तब मैं उन से बात करूंगी. तुम्हें अगर अपने घर वालों को बुलाना है तो अभी बात करनी होगी.’

‘ठीक है, आज ही तफसील से सब लिख कर ईमेल कर देता हूं.’

‘तुम भी सायरा आज ही अपनी अम्मी से बात करो, उन लोगों की रजामंदी मिलनी इतनी आसान नहीं है,’ राजीव ने कहा.

राजीव का कहना ठीक था. दोनों के घर वालों ने सुनते ही कहा कि यह शादी नहीं सियासी खुदकुशी है. खतरा रिश्तेदारों से नहीं मुल्क के आम लोगों से था, दोनों मुल्कों में तनातनी तो चलती रहती थी और दोनों मुल्कों के अवाम खुनस में उन्हें नुकसान पहुंचा सकते थे.

सायरा की अम्मी ने तो साफ कहा कि शादी के बाद हरेक लड़की को दूसरे घर का रहनसहन और तौरतरीके अपनाने पड़ते हैं लेकिन सायरा को तो दूसरे मुल्क और पूरी कौम की तहजीब अपनानी पड़ेगी.

‘तुम्हारी इस हरकत से हमारी शहर में जो इज्जत और साख है वह मिट्टी में मिल जाएगी. लोग हमें शक की निगाहों से देखने लगेंगे और इस का असर कारोबार पर भी पड़ेगा,’ मंसूर के अब्बा बशीर खान का कहना था.

घर वालों ने जो कहा था उसे नकारा नहीं जा सकता था लेकिन एकदूसरे से अलग होना भी मंजूर नहीं था इसलिए दोनों ने घर वालों को यह कह कर मना लिया कि वे शादी के बाद लंदन में ही रहेंगे और उन लोगों को सिवा उन के नाम के किसी और को कुछ बताने की जरूरत नहीं है. उन की जिद के आगे घर वाले भी बेदिली से मान गए. वैसे दोनों ही पंजाबी बोलते थे और तौरतरीके भी एक से थे. शादी हंसीखुशी से हो गई.

कुछ रोज मजे में गुजरे लेकिन दोनों को ही लंदन पसंद नहीं था. दोस्तों का कहना था कि दुबई या सिंगापुर चले जाओ लेकिन मंसूर लुधियाना में अपने पुश्तैनी कारोबार को बढ़ाना चाहता था. भारतीय उच्चायोग से संपर्क करने पर पता चला कि उस की ब्याहता की हैसियत से सायरा अपने पाकिस्तानी पासपोर्ट पर उस के साथ भारत जा सकती थी. सायरा को भी एतराज नहीं था, वह खुश थी कि समझौता एक्सप्रेस से लाहौर जा सकती थी, अपने घर वालों को भी बुला सकती थी लेकिन बशीर खान को एतराज था. उन का कहना था कि सायरा की असलियत छिपाना आसान नहीं था और पंजाब में उस की जान को खतरा हो सकता था.

उन्होंने मंसूर को सलाह दी कि वह पंजाब के बजाय पहले किसी और शहर में नौकरी कर के तजरबा हासिल करे और फिर वहीं अपना व्यापार जमा ले. बशीर खान ने एक दोस्त के रसूक से मंसूर को पुणे में एक अच्छी नौकरी दिलवा दी. काम और जगह दोनों ही मंसूर को पसंद थे, दोस्त भी बन गए थे लेकिन उसे हमेशा अपने घर का सुख और बचपन के दोस्त याद आते थे और वह बड़ी हसरत से सोचता था कि कब दोनों मुल्कों के बीच हालात सुधरेंगे और वह सायरा को ले कर अपनों के बीच जा सकेगा.

सब की सलाह पर सायरा ने नौकरी नहीं की थी. हालांकि पैसे की कोई कमी नहीं थी लेकिन घर बैठ कर तालीम को जाया करना उसे अच्छा नहीं लगता था और वैसे भी घर में उस का दम घुटता था. अच्छी सहेलियां जरूर बनी थीं पर कब तक आप किसी से फोन पर बात कर सकती थीं या उन के घर जा सकती थीं.

मंसूर के प्यार में कोई कमी नहीं थी, फिर भी पुणे आने के बाद सायरा को एक अजीब से अजनबीपन का एहसास होने लगा था लेकिन उसे इस बात का कतई गिला नहीं था कि उस ने क्यों मंसूर से प्यार किया या क्यों सब को छोड़ कर उस के साथ चली आई. Hindi Story

Hindi Story: ठंडक का एहसास – चाचा को वकील लड़के क्यों नहीं पसंद थे

Hindi Story: हमारे चाचाजी अपनी लड़की के लिए वर खोज रहे थे. लड़की कालेज में पढ़ाती थी. अपने विषय में शोध भी कर रही थी. जाहिर है लड़की को पढ़ालिखा कर चाचाजी किसी ढोरडंगर के साथ तो नहीं बांध सकते. वर ऐसा हो जिस का दिमागी स्तर लड़की से मेल तो खाए. हर रोज अखबार पलटते, लाल पैन से निशान लगाते. बातचीत होती, नतीजा फिर भी शून्य.

‘‘वकीलों के रिश्ते आज ज्यादा थे अखबार में…’’ चाचाजी ने कहा.

‘‘वकील भी अच्छे होते हैं, चाचाजी.’’

‘‘नहीं बेटा, हमारे साथ वे फिट नहीं हो सकते.’’

‘‘क्यों, चाचाजी? अच्छाखासा कमाते हैं…’’

‘‘कमाई का तो मैं ने उल्लेख ही नहीं किया. जरूर कमाते होंगे और हम से कहीं ज्यादा समझदार भी होंगे. सवाल यह है कि हमें भी उतना ही चुस्तचालाक होना चाहिए न…हम जैसों को तो एक अदना सा वकील बेच कर खा जाए. ऐसा है कि एक वकील का पेशा साफसुथरा नहीं हो सकता न. उस का अपना कोई जमीर हो सकता है या नहीं, मेरी तो यही समझ में नहीं आता. उस की सारी की सारी निष्ठा इतनी लचर होती है कि जिस का खाता है उस के साथ भी नहीं होती. एक विषधर नाग पर भरोसा किया जा सकता है लेकिन इस काले कोट पर नहीं. नहीं भाई, मुझे अपने घर में एक वकील तो कभी नहीं चाहिए.’’

चाचाजी के शब्द कहीं भी गलत नहीं थे. वे सच कह रहे थे. इस पेशे में सचझूठ का तो कोई अर्थ है ही नहीं. सच है कहां? वह तो बेचारा कहीं दम तोड़ चुका नजर आता है. एक ‘नोबल प्रोफैशन’ माना जाने वाला पेशा भी आज के युग में ‘नोबल’ नहीं रह गया तो इस पेशे से तो उम्मीद भी क्या की जा सकती है.

दोपहर को हम धूप सेंक रहे थे तभी पुराने कपड़ों के बदले नए बरतन देने वाली चली आई. उम्रदराज औरत है. साल में 2-3 बार ही आती है. कह सकती हूं अपनी सी लगती है. बरतन देखतेदेखते मैं ने हालचाल पूछा. पिछली बार मैं ने 2 जरी की साडि़यां उसे दे दी थीं. उस की बेटी की शादी जो थी.

‘‘शादी अच्छे से हो गई न रमिया… लड़की खुश है न अपने घर में?’’

‘‘जी, बीबीजी, खुश है…कृपा है आप लोगों की.’’

‘‘साडि़यां उसे पसंद आई थीं कि नहीं?’’

फीकी सी हंसी हंस गरदन हिला दी उस ने.

‘‘साडि़यां तो थानेदार ने निकाल ली थीं बीबीजी. आदमी को अफीम का इलजाम लगा कर पकड़ लिया था. छुड़ाने गई तो टोकरा खुलवा कर बरतन भी निकाल लिए और सारे कपड़े भी. पुलिस वालों ने आपस में बांट लिए. तब हमारा बड़ा नुकसान हो गया था. चलो, हो गया किसी तरह लड़की का ब्याह, यह सब तो हम गरीबों के साथ होता ही रहता है.’’

उस की बातें सुन कर मैं अवाक् रह गई थी. लोगों की उतरन क्या पुलिस वालों ने आपस में बांट ली. इतने गएगुजरे होते हैं क्या ये पुलिस वाले?

सहसा मेरे मन में कुछ कौंधा. कुछ दिन पहले मेरी एक मित्र के घर कोई उत्सव था और उस के घर हूबहू मेरी वही जरी की साड़ी पहने एक महिला आई थी. मित्र ने मुझे उस से मिलाया भी था. उस ने बताया था कि उस के पति पुलिस में हैं. तो क्या वह मेरी साड़ी थी? कितनी ठसक थी उस औरत में. क्या वह जानती होगी कि उस ने जिस की उतरन पहन रखी है, उसी के सामने ही वह इतरा रही है.

‘‘कौन से थाने में गई थी तू अपने आदमी को छुड़ाने?’’

‘‘बीबीजी, यही जो रेलवे फाटक के पीछे पड़ता है. वहां तो आएदिन किसी न किसी को पकड़ कर ले जाते हैं. जहान के कुत्ते भरे पड़े हैं उस थाने में. कपड़ा, बरतन न निकले तो बोटियां चबाने को रोक लेते हैं. मां पसंद आ जाए तो मां, बेटी पसंद आ जाए तो बेटी…’’

‘‘कोई कुछ कहता नहीं क्या?’’

‘‘कौन कहेगा और किसे कहेगा. उस से ऊपर वाला उस से बड़ा चोर होगा. कहां जाएं हम…बस, उस मालिक का ही भरोसा है. वही न्याय करेगा. इनसान से तो कोई उम्मीद है नहीं.’’

आसमान की तरफ देखा रमिया ने तो मन अजीब सा होने लगा मेरा. क्या कोई इतना भी नीचे गिर सकता है. थाली की रोटी तोड़ने से पहले इनसान यह तो देखता ही है कि थाली साफसुथरी है कि नहीं. लाख भूखा हो कोई पर नाली की गंदगी तो उठा कर नहीं खाई जा सकती.

रमिया से ऐसा कहा तो उस की आंखें भर आईं.

‘‘पेट की भूख और तन की भूख मैलीउजली थाली नहीं देखती बीबीजी. हम लोगों की हाय उन्हें दिनरात लगती है. अब देखना है कि उन्हें अपने किए की सजा कब मिलती है.’’

उस थानेदारनी के प्रति एक जिज्ञासा भाव मेरे मन में जाग उठा. एक दिन मैं अपनी उसी मित्र से मिलने गई. बातोंबातों में किसी बहाने उस का जिक्र छेड़ दिया.

‘‘उस की साड़ी बड़ी सुंदर थी. मेरी मां के पास भी ऐसी ही जरी की साड़ी थी. पीछे से उसे देख कर लग रहा था कि मेरी मां ही खड़ी हैं. कैसे लोग हैं…इस इलाके में नएनए आए हैं…वे कोई नई किट्टी शुरू कर रही थीं और कह रही थीं कि मैंबर बनना चाहें तो…तुम कैसे जानती हो उन्हें?’’

‘‘उन का बेटा मेरे राजू की क्लास में है. ज्यादा जानपहचान नहीं करना चाहती हूं मैं…इन पुलिस वालों के मुंह कौन लगे. अब राजू ने बुला लिया तो मैं क्या कहती. तुम किट्टी के चक्कर में उसे मत डालना. ऐसा न हो कि उस की किट्टी निकल आए और बाकी की सारी तुम्हें भरनी पड़े. उस की हवा अच्छी नहीं है. शरीफ आदमी नहीं हैं वे लोग. औरत आदमी से भी दो कदम आगे है. मुंह पर तो कोई कुछ नहीं कहता पर इज्जत कोई नहीं करता.’’

अपनी मित्र का बड़बड़ाना मैं देर तक सुनती रही. अपने राजू की उन के बेटे के साथ दोस्ती से वे परेशान थीं.

‘‘कापीकिताब लेने अकसर उस का लड़का आता रहता है. एक दिन राजू ने मना किया तो कहने लगा कि शराफत से दे दो, नहीं तो पापा से कह कर अंदर करवा दूंगा.’’

‘‘क्या सच में ऐसा…?’’

मेरी हैरानी का एक और कारण था.

‘‘इन पुलिस वालों की न दोस्ती अच्छी न दुश्मनी. मैं तो परेशान हूं उस के लड़के से. अपनी कुरसी का ऐसा नाजायज फायदा…समझ में नहीं आता कि राजू को कैसे समझाऊं. बच्चा है कहीं कह देगा कि मेरी मां ने मना किया है तो…’’

एक बेईमान इनसान अपने आसपास कितने लोगों को प्रभावित करता है, यह मुझे शीशे की तरह साफ नजर आ रहा था. एक चरित्रहीन इनसान अपनी वजह से क्याक्या बटोर रहा है. बदनामी और गंदगी भी. क्या डर नहीं लगता है आने वाले कल से? सब से ज्यादा विकार तो वह अपने ही लिए संजो रहा है. कहांकहां क्याक्या होगा, जब यही सब प्रश्नचिह्न बन कर सामने खड़ा होगा तब उत्तर कहां से लाएगा.

सच है, अपने दंभ में मनुष्य क्याक्या कर जाता है. पता तो तब चलता है जब कोई उत्तर ही नहीं सूझता. वक्त की लाठी में आवाज नहीं होती और जब पड़ती है तब सूद समेत सब वापस भी कर देती है.

कहने को तो हम सभ्य समाज में रहते हैं और सभ्यता का ही कहांकहां रक्त बह रहा है, हमें समझ में ही नहीं आता. अगर दिखाई दे भी जाए तो हम उस से आंखें फेर लेते हैं. बुराई को पचा जाने की कितनी अच्छी तरह सीख मिल चुकी है हमें.

गरीब बरतन वाली की पीड़ा और उस जैसी औरों पर गिरती थानेदार की गाज ने कई दिन सोने नहीं दिया मुझे. क्या हम पढ़ेलिखे लोग उन के लिए कुछ नहीं कर सकते? क्या हमारी मानसिकता इतनी नपुंसक है कि किसी का दुख, किसी की पीड़ा हमें जरा सा भी नहीं रुलाती? अगर ऊंचनीच का भेद मिटा दें तो एक मानवीय भाव तो जागना ही चाहिए हमारे मन में. अपने पति से इस बारे में बात की तो उन्होंने गरदन हिला दी.

समाज इतना गंदा हो चुका है कि अपनी चादर को ही बचा पाना आज आसान नहीं रहा. दिन निकलता है तो उम्मीद ही नहीं कर सकते कि रात सहीसलामत आएगी कि नहीं. फूंकफूंक कर पैर रखो तो भी कीचड़ की छींटों से बचाव नहीं हो पाता. क्या करें हम? अपना मानसम्मान ही बचाना भारी पड़ता है और किसी को कोई कैसे बचाए.

मेरे पति जिस विभाग में कार्यरत हैं वहां हर पल पैसों का ही लेनदेन होता है. पैसा लेना और पैसा देना ही उन का काम है. एक ऐसा इनसान जिसे दिनरात रुपयों में ही जीना है, वही रुपए कब गले में फांसी का फंदा बन कर सूली पर लटका दें पता ही नहीं चल सकता. कार्यालय में आने वाला चोर है या साधु…समझ ही नहीं पाते. कैसे कोई काम कर पाए और कैसे कोई अपनी चादर दागदार होने से बचाए?

आज ईमानदारी और बेईमानी का अर्थ बदल चुका है. आप लाख चोरी करें, जी भर कर अपना और सामने वाले का चरित्रहनन करें. बस, इतना खयाल रखिए कि कोई सुबूत न छोड़ें. पकड़े न जाएं. यहीं पर आप की महानता और समझदारी प्रमाणित होती है. कच्चे चोर मत बनिए. जो पकड़ा गया वही बेईमान, जो कभी पकड़ा ही न जाए वह तो है ही ईमानदार, उस पर कैसा दोष?

इसी कुलबुलाहट में कितने दिन बीत गए. ‘कबिरा तेरी झोपड़ी गल कटियन के पास, करन गे सो भरन गे तू क्यों भेया उदास’ की तर्ज पर अपने मन को समझाने का मैं प्रयास करती रही. बुराई का अंत कब होगा…कौन करेगा…किसी भी प्रश्न का उत्तर नहीं मिल रहा था मुझे.

एक शाम मुझे जम्मू से फोन आया :

‘‘आप के शहर में कर्फ्यू लग गया है. क्या हुआ…आप ठीक हैं न?’’ मेरी बहन का फोन था.

‘‘नहीं तो, मुझे तो नहीं पता.’’

‘‘टीवी पर तो खबर आ रही है,’’ बहन बोली, ‘‘आप देखिए न.’’

मैं ने झट से टीवी खोला. शहर का एक कोना वास्तव में जल रहा था. वाहन और सरकारी इमारतें धूधू कर जल रही थीं. रेलवे स्टेशन पर भीड़ थी. रेलों की आवाजाही ठप थी.

एक विशेष वर्ग पर ही सारा आरोप आ रहा था. शहर के बाहर से आया मजदूर तबका ही मारकाट और आगजनी कर रहा था. एसएसपी सहित 12-15 पुलिसकर्मी भी घायल अवस्था में अस्पताल पहुंच चुके थे. मजदूरों के एक संगठन ने पुलिस पर हमला कर दिया था. मैं ने झट से पति को फोन किया. पता चला, उस तरफ भी बहुत तनाव है. अपना कार्यालय बंद कर के वे लोग बैठे हैं. कब हालात शांत होेंगे, कब वे घर आ पाएंगे, पता नहीं. बच्चों  के स्कूल फोन किया, पता चला वे भी डी.सी. के और्डर पर अभी छुट्टी नहीं कर पा रहे क्योंकि सड़कों पर बच्चे सुरक्षित नहीं हैं. दम घुटने लगा मेरा. क्या सभी दुबके रहेंगे अपनेअपने डेरों में. पुलिस खुद मार खा रही है, वह बचाएगी क्या?

अपनी सहेली को फोन किया. कुछ तो रास्ता निकले. उस का बेटा राजू भी अभी स्कूल में ही है क्या?

‘‘क्या तुम्हें कुछ भी पता नहीं है? कहां रहती हो तुम? मैं ने तो राजू को स्कूल जाने ही नहीं दिया था.’’

‘‘क्यों, तुम्हें कैसे पता था कि आज कर्फ्यू लगने वाला है?’’

‘‘उस थानेदार की खबर नहीं सुनी क्या तुम ने? सुबह उस की पत्नी और बेटे का अधकटा शव पटरी पर से मिला है. थानेदार के भी दोनों हाथ काट दिए गए हैं. भीड़ ने पुलिस चौकी पर हमला कर दिया था.’’

काटो तो खून नहीं रहा मुझ में. यह क्या सुना रही है मेरी मित्र? वह बहुत कुछ और भी कहतीसुनती रही. सब जैसे मेरे कानों से टकराटकरा कर लौट गया. जो सुना उसे तो आज नहीं कल होना ही था. सच कहा है किसी ने, अपनी लड़ाई सदा खुद ही लड़नी पड़ती है.

रमिया की सारी बातें याद आने लगीं मुझे. हम तो उस के लिए कुछ नहीं कर पाए. हम जैसा एक सफेदपोश आदमी जो अपनी ही पगड़ी बड़ी मुश्किल से बचा पाता है किसी की इज्जत कैसे बचा सकता है. यह पुलिस और मजदूर वर्ग की लड़ाई सामान्य लड़ाई कहां है, यह तो मानसम्मान की लड़ाई है. सब को फैलती आग दिखाई दे रही है पर किसी को वह आग क्यों नहीं दिखती जिस ने न जाने कितनों के घर का मानसम्मान जला दिया?

थानेदारनी और उस के बच्चे का अधकटा शव तो अखबार के पन्नों पर भी आ जाएगा, उन का क्या, जिन की पीड़ा अनसुनी रह गई. क्या करते गरीब लोग? तरीका गलत सही, सही तरीका है कहां? कानून हाथ में ले लिया, कानून है कहां? सुलगती आग एक न एक दिन तो ज्वाला बन कर जलाती ही.

‘‘शुभा, तू सुन रही है न, मैं क्या कह रही हूं. घर के दरवाजे बंद रखना, सुना है वे घरों में घुस कर सब को मारने वाले हैं. अपना बचाव खुद ही करना पड़ेगा.’’

फोन रख दिया मैं ने. अपना बचाव खुद करने के लिए सारे दरवाजेखिड़कियां तो बंद कर लीं मैं ने लेकिन मन की गहराई में कहीं विचित्र सी मुक्ति का भाव जागा. सच कहा है उस ने, अपना बचाव खुद ही करना पड़ता है. अपनी लड़ाई हमेशा खुद ही लड़नी पड़ती है. यह आग कब थमेगी, मुझे पता नहीं, मगर वास्तव में मेरी छाती में ठंडक का एहसास हो रहा था. Hindi Story

Story In Hindi: एक चुटकी मिट्टी की कीमत

Story In Hindi: पहले जब लोगों के दिल बड़े हुआ करते थे, तब घर भी बड़े व हवादार हुआ करते थे, भरेपूरे संयुक्त परिवार हुआ करते थे. जब से लोगों के दिल छोटे हुए, घर भी छोटे व बेकार होने लगे डब्बेनुमा. अब जब कोरोना जैसी महामारी आई तो लोगों को पूर्वजों की बड़ी व खुली सोच और बड़े व खुलेखुले घर की अहमियत समझ में आई.

बात पिछले साल की है. बिहार के अपने लंबेचौड़े, संयुक्त पुश्तैनी घर से दिल्ली के 2 कमरों के सिकुड़ेसिमटे फ्लैट में शिफ्ट हुए एक महीना भी नहीं हुआ था कि कोरोना महामारी ने समूचे विश्व पर अपने भयावह पंजे फैला दिए. लौकडाउन और कर्फ्यू के बीच घर में कैद हम बेबसी में नीरस व बेरंग दिन काट रहे थे, फोन पर प्रियजनों के साथ दूरियों को पाट रहे थे. मन ही मन प्रकृति से दिनरात मिन्नतें कर रहे थे कि, हे प्रकृति, इस विदेशी वायरस को जल्दी से जल्दी इस के मायके भेज दे.

एक दिन मुंह पर मास्कवास्क बांध कर मन ही मन कोरोना के उदगम स्थल को हम अपनी बालकनी में बैठे कोस रहे थे कि अथाह भीड़ वाली दिल्ली की कोरोनाकालीन सूनी सड़क से फूलों का एक ठेले वाला अपनी बेसुरी आवाज में चीखते हुए फूल खरीदने की गुहार मचाता गुजरा. देखते ही देखते महामारी को ठेंगा दिखाते लोगों की भीड़ ठेले के पास जमा हो गई.

हम भारतीयों की ख़ासीयत है कि हम लौकडाउन, कर्फ्यू या मास्कवास्क को अपनी सुविधानुसार ही अहमियत देते हैं. भावताव के साथ संपन्न हो रही थी सौदेबाजी, कोरोना ने कहीं महंगे कर दिए थे फूल तो कहीं सस्ते में भाजी मिल रही थी. थोड़ी ही देर बाद मैं ने देखा कि सामने वाले घर की बालकनी गुलाब के गमलों से सज गई है और गमले में लगे यौवन से उन्मत्त लालपीले सुकुमार गुलाब मेरी ओर बड़ी अदा से देख कर मुसकरा रहे हैं. अकेलेपन से व्यथित मेरे ह्रदय को अपनी ख़ूबसूरती से चुरा रहे हैं. अगलबगल के घरों की बालकनी का भी यही नज़ारा था.

गुलाबों का बेहिसाब हुस्न मेरे दिल को बरबस ही भा चुका था. पर करें क्या, फूल वाला तो अपने सारे गुलाब बेचकर जा चुका था. अब हर दिन मैं फूलवाले के इंतज़ार में बालकनी में बैठी रहती. किसी भी बेसुरी आवाज पर मेरी सारी चेतना कानों में समा जाती. पर सूनी सड़क पर यदाकदा भीख मांगने वाले या फिर शौकिया सड़कों की ख़ाक छानने वाले ही नज़र आते. न जाने फूलवाला कहां लुप्त हो गया था.

आखिरकार, एक हफ्ते बाद फूलवाला दोबारा से सड़क पर प्रकट हुआ. भीड़ का जत्था ठेले तक पहुंचे, इस के पहले ही मैं तेज गति से ठेले के पास जा पहुंची. अलगअलग रंगों के 10 गुलाब पसंद कर के मैं ने फूलवाले से उन्हें गमले में लगा देने को कहा.

“फूल लगाने के पैसे अलग से लगेंगे, मैडम जी,” भीड़ देख कर वह वाला भाव खा रहा था.

मैं बोली, “अरे, तो ले लेना अलग से पैसे, फूल तो लगा दो.”

वह बोला, “फूल कैसे लगा दूं, मैडम जी, मिट्टी किधर है?”

मैं सोच में पड़ गई, मिट्टी कहां है. मुझे पसोपेश में देख वह फूलवाला वाला बोला, “ मिट्टी लेनी है?”

मैं ने झट से हामी भरी तो उस ने एक छोटा सा पैकेट निकाला और बोला, “यह 5 किलो मिट्टी है, 375 रुपए लगेंगे. लेना है, तो बोलो.”

मिट्टी इतनी कम थी कि एक गमला भी ठीक से नहीं भर सकता था. पर फूल वाले ने बड़ी कुशलता से 4 गमलों में जराजरा सी मिट्टी डाल कर गुलाब के पौधे लगा दिए और बाकी मिट्टी कल लाने की बात कह कर चला गया.

6 गुलाब के पौधे बेचारे यों ही बालकनी के फर्श पर गिरे पड़े से थे. अपने अंजाम को सोच कर मानो डरेडरे से थे. मैं ने फोन पर अपनी मित्रमंडली में अपनी परेशानी बताई, तो सब ने औनलाइन मिट्टी खरीदने का सुझाव दिया. मैं झटपट औनलाइन मिट्टी सर्च करने लगी. यहां तो तरहतरह की मिट्टियों की भरमार थी. हम तो एक ही मिट्टी समझते थे. यहां मिट्टी की हजारों किस्में उपलब्ध थीं.

गुलाब के लिए अलग मिट्टी तो सिताब के लिए अलग, गुलबहार के लिए अलग तो गुलनार के लिए अलग, मनीप्लांट के लिए अलग जबकि हनी प्लांट के लिए अलग, आम के लिए अलग तो एरिका पाम के लिए अलग. साथ ही कोरोना की वजह से ‘भारी’ डिस्काउंट भी मिल रहा था. 300 रुपए किलो से 1100 रुपए किलो के बीच हजारों तरह की मिट्टियां औनलाइन बेची जा रही थीं. जैसे रेड सोयल, येलो सोयल, और्गेनिक सोयल, इनआर्गेनिक सोयल, पृथ्वी सोयल, आकाश सोयल, गोबर वाली सोयल, खाद वाली सोयल आदि. और तो और, जरा ज्यादा दाम पर यहां मिट्टी के बिस्कुट भी उपलब्ध थे.

सोने के बिस्कुट, खाने के बिस्कुट तो सुने थे पर ये मिट्टी के बिस्कुट पहली बार सुन रही थी. कई घंटे दिमाग खपाने के बाद मैं ने 15 किलो खाद वाली मिट्टी और 10 मिट्टी के बिस्कुट और्डर किए, जो कि सुबहसुबह एक छोटे से पैकेट में डिलीवरी बौय दे गया.

बड़े बुजुर्ग कह गए थे कि एक समय ऐसा आएगा जब पानी भी पैकेट में बिकेगा. पर मिट्टी भी पैकेट में बिकेगी, यह तो किसी ने सोचा ही न होगा. खैर, बिस्कुट समेत पूरी मिट्टी बमुश्किल 5 से 7 किलो होगी. अभी औनलाइन मिट्टी खरीदने का दुख कम भी नहीं हुआ था कि दोपहर को फूलवाला भी 5 किलो कह कर दोचार मुट्ठी मिट्टी दे गया. बदले में वह पेटीएम के पूरे पैसे ले गया. औनलाइन मिट्टी खरीदने के जख्म को फूलवाला हरा कर गया और जराजरा सी मिट्टी में किसी तरह से गुलाबों को खड़ा कर गया.

ऐसी अज़ीबोगरीब मिट्टी को देख कर बेचारे गुलाब बेहद डरे हुए थे. बड़ी मुश्किल से मुट्ठीभर मिट्टी में झुकेझुके से पड़े हुए थे वे. गुलाबों की दशा देख कर मेरा मन दिल्ली के प्रदूषित आसमान की तरह धुंधवारा सा होने लगा. हाय री मिट्टी, तू तो सोने से भी कीमती निकली. मन किया कि बिहार जा कर एक बोरी मिट्टी ही ले आऊं, पर कोरोना माई की वजह से यह मंसूबा भी पूरा नहीं हो सका. भरेमन से आखिरकार मैं ने गुलाबों को उन के हाल पर छोड़ देने का फैसला किया. एक लंबी सांस के साथ मेरे मुंह से निकला- एक चुटकी मिट्टी की कीमत तुम क्या जानो… Story In Hindi

Hindi Story: मेरे ससुर का श्राद्ध – पत्नी के स्वभाव में अचानक परिवर्तन क्यों आया

Hindi Story: जब थकहार कर मैं अपने घर पहुंचा तो पत्नीजी ने गरमागरम पकौड़ों के साथ कौफी का प्याला हाथ में रख दिया. मुझे उन गरम पकौड़ों में कोई साजिश और चाय की जगह दी जा रही कौफी में स्लो पौयजन का अनुभव हुआ. शादी के 10 बरसों में जिस ने कभी पति के घर लौटने पर हंस कर स्वागत नहीं किया हो वह यदि नाश्ते के साथ सवा सेर की मुसकान चेहरे पर ले आए तो यकीन मानिए कि कोई न कोई साजिश रची होनी चाहिए. मैं ने कांपते मन से पकौड़ा उठाया, कौफी के साथ मुंह में डाला और विचार कर ही रहा था कि पत्नीजी अब अणु बम के रूप में कोई मांग हमारे ऊपर फेंकने वाली हैं, लेकिन हमारा अंदाज गलत साबित हुआ. उन्होंने कुछ भी मांग नहीं रखी और पास बैठी किसी नवयौवना चिडि़या की तरह फुदकती रहीं. हमारा मन अभी भी शंकाकुशंका से दूर नहीं हो पाया था.

रात भोजन में 3 तरह का मीठा और 4 तरह की सब्जियां बनी थीं. चावलदाल अतिरिक्त थे. शायद अब कुछ कहे, लेकिन उन्होंने कुछ भी नहीं मांगा. हमारे जीवन में ऐसा पहली बार हुआ था. रात हमें नींद नहीं आ रही थी, न जाने पत्नीजी के व्यवहार में ऐसा परिवर्तन क्यों और कहां से आ गया? मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि किसी के व्यवहार में अचानक परिवर्तन आ जाने का मतलब है कि उस की मृत्यु निकट है. तो क्या हमारी एकमात्र पत्नी जाने वाली है? सोच कर हमारी आंखें भर आईं. हम ने सोचा, उन्हें गले लगा कर जी भर कर रो लें लेकिन उन का साइज ऐसा था कि हिम्मत नहीं पड़ी.

वे किचन का काम निबटा कर हमारे बगल में आ कर बैठ गईं और तोप छोड़ती हुई बोलीं, ‘‘मैं ने तुम्हारा सामान भी जमा दिया है.’’

‘‘मेरा सामान जमा दिया है? मैं कहां जा रहा हूं?’’ हम ने किसी उल्लू की तरह देखते हुए प्रश्न किया.

‘‘तुम्हें मालूम नहीं क्या? बरस भर से कह रही हूं…’’ उन्होंने तनिक नाराजगी से कहा.

‘‘भूल गया हूं. दोबारा बता दो भाई,’’ हम ने विनम्रता से निवेदन किया.

‘‘बापू का श्राद्ध है. पूरा बरस बीत गया है,’’ कहतेकहते उन की आंखों से घडि़याली आंसू बहने लगे.

‘‘ओह, बापूजी का श्राद्ध है. हम तो भूल ही गए थे. कब निकलना है?’’

‘‘सुबह 6 बजे की बस है, फिर थोड़ा गांव तक पैदल भी जाना होगा,’’ उन्होंने बताया.

‘‘मैं औफिस में अभी फोन कर के छुट्टी को कह देता हूं,’’ पत्नीजी को खुश करने के उद्देश्य से मैं ने कहा.

वे खुश हो गईं. उन्होंने प्यार से हमारे सिर पर चुंबन लिया. उन्हें कोई दिक्कत भी नहीं हुई होगी क्योंकि वहां बाल बचे ही कहां थे. हवाई पट्टी की तरह चिकनी खोपड़ी जो हो चुकी थी.

सुबह वे जल्दी उठ गईं. हमें भी उठाया. हम आटोरिकशा ले आए. बस स्टैंड पर पहुंचे और बस में बैठ कर ससुराल के लिए निकल पड़े. पूरे रास्ते हम सोचते रहे कि क्यों इतने सुदूर गांव में हमारे ससुरजी ने इस कुकन्या को जन्म दिया? मरने के बाद भी हमें चैन से नहीं जीने दे रहे हैं. इतनी बेकार सड़क पर गाड़ी हिचकोले लेते चल रही थी, पता नहीं कब हम से साक्षात बातें करने के लिए ससुरजी ड्राइवर से साजिश कर के हमें बुला लें.

आखिर दोपहर तक हम ससुराल पहुंच गए. एकमात्र सास ने हमारी ओर कम अपनी कन्या की ओर अधिक ध्यान दिया. हमें एक कमरे में बैठा दिया गया था.

अगले दिन श्राद्ध का कार्यक्रम था. गांव से कुछ लोग अगले दिन आ गए थे. वहीं रिश्तेदार भी माल खाने के लिए आ धमके थे. भोजन की लिस्ट 7 दिन पूर्व बन चुकी थी. रात में ही बनाने वाले आ गए थे. पत्नीजी और दोनों साले खाना बनवाने के लिए निर्देश दे रहे थे. श्राद्ध कम, किसी की शादी का आयोजन अधिक लग रहा था. पकवानों की महक चारों ओर फैल रही थी. हम भी श्राद्ध के चलते बड़े गंभीर बने हुए थे.

उधर पत्नी और उन की भाभियां सोलहशृंगार कर के स्वर्ण आभूषणों से लदी थीं. ऐसा लग रहा था जैसे वहां श्राद्ध न हो कर फैशन शो हो रहा हो. सास ने भी रेशम की सफेद साड़ी और असली सफेद मोती की माला व उसी से मेल खाते अन्य जेवर धारण कर रखे थे. आईब्रो और फेशियल, हेयर कलर वे 2-3 दिन पूर्व ही करा चुकी थीं. सच कहूं, हमें अपनी पत्नीजी सास के सामने बूढ़ी लग रही थीं और सास को ससुरजी देख लेते तो पुन:विवाह का प्रस्ताव रख देते.

कार्यक्रम स्थल पर ससुरजी का फोटो रखा था. गांव, महल्ले वाले बेशर्म, गेंदे के फूलों को ला कर उन की तसवीर पर चढ़ा रहे थे. थोड़ी देर बाद पंडितजी आ गए. उन्होंने न जाने क्याक्या मंगाई गई सामग्रियों को रखा, होमहवन के बाद पूजा की. पूजा की थाली में सब ने चंदा डाला. इस सब क्रियाकर्म को करतेकरते 1 बज गया था. सब को भूख लग आई थी. पंडितजी ने सास को आदेश दिया कि कौए, गाय, कुत्ते के लिए भोजन की थालियां सजाओ, पितृपक्ष में सब आ कर प्रसाद ग्रहण करेंगे. पत्नीजी ने 3 थालियों को सजा दिया था. पंडितजी ने थालियों की पूजा की और आदेश दिया कि इसे बाहर रख दिया जाए, जब कौआ प्रसाद ग्रहण कर लेगा तब भोजन प्रारंभ होगा.

थाली सजा कर रखी गई थी. कौए को आने में समय भी नहीं लगा क्योंकि दूर एक मरा हुआ जानवर पड़ा था, जिस के मांसचमड़ी का भोजन करतेकरते वह थक गया था, शायद इसीलिए टैस्ट बदलने के लिए आ गया. हम ने वहां खड़े एक व्यक्ति से प्रश्न किया, ‘‘यह कौआ कौन है?’’

‘‘मृत आत्मा इस में रहती है.’’

‘‘यानी पहलवान सिंह ठामरूलाल की आत्मा इस में है?’’ हम ने ससुरजी का नाम ले कर प्रश्न किया.

‘‘बिलकुल, 100 प्रतिशत,’’ उस ने समर्थन किया.

‘‘तो क्या भैया, यह कुछ देर पहले मरा जानवर खाने वाला कौआ हमारे ससुरजी हैं?’’ उस ने क्रोध से हमें देखा और चुप रहने का इशारा किया.

दूसरी थाली कुत्ते के लिए थी. वहां कुत्ता तो नहीं आया, एक कुतिया जरूर आई. हम ने मन ही मन विचार किया, ‘ससुरजी का लिंग परिवर्तन हो गया जो कुतिया का रूप धारण कर लिया.’ सब रिश्तेदार खुश थे कि मृत आत्मा धड़ाधड़ प्रसाद ग्रहण कर रही है.

तीसरा चढ़ावा गाय का था. थाली रख दी गई, गाय को खोजा जाने लगा. गाय न थी, न आ रही थी. सब रिश्तेदार प्रतीक्षा कर रहे थे. बाहर थाली परोस कर रख दी गई थी. थोड़ी देर में छोटा साला दौड़ता हुआ अंदर आया, ‘‘मम्मीजीमम्मीजी.’’

‘‘क्या हुआ?’’ हम ने प्रश्न किया.

‘‘बाहर, थाली के पास…’’

‘‘क्या हुआ? क्या गाय ने भी प्रसाद ग्रहण कर लिया?’’ हम ने प्रश्न किया.

‘‘नहीं, जीजाजी,’’ उस ने ठहर कर कहा.

‘‘फिर क्या हुआ?’’

‘‘वहां गाय की जगह एक गधा आ कर थाली का प्रसाद ग्रहण कर रहा है.’’

‘‘ऐं,’’ बरबस हमारे मुंह से निकला. बाहर दौड़ लगाई, सच में थाली में रखे गुलाबजामुन, रसगुल्लों को गधा फटाफट निबटा रहा था. पंडितजी ने घड़ी देखी और कहा, ‘‘कोई बात नहीं यजमान,

चार पांव वाला कोई भी जीव ग्रहण कर सकता है.’’

सासूजी बड़ी लजाते, शर्माते हुए जवान गधे को देख रही थीं.

हम समझ गए थे, हमारे ससुरजी गधा बन कर आए हुए हैं. अगर वे गधे नहीं होते तो ऐसी बुद्धिहंता स्त्री से विवाह कर के कन्या को जनम नहीं देते जो हमारे गले पड़ी हुई है. हम ने कहा कुछ नहीं. शर्माती, अपनी सास को देख रहे थे जो गधे को थाली खाली करते हुए देख रही थीं.

गधे कभी एहसानफरामोश नहीं होते हैं. भरपेट खा कर उस ने तत्काल वहीं लीद भी कर दी. हमारी सास और पत्नीजी लीद देख कर धन्यधन्य हो गईं.

हिंदू संस्कृति के प्रति हमारे मन में जो थोड़ीबहुत श्रद्धा थी वह भी समाप्त हो गई थी. गधे के भोजनोपरांत सब को भोजन करने की परमिशन पंडितजी ने दे दी और सब खाने पर टूट पड़े. पंडितजी बहुत सा खाना, पैसे, कपड़े बांध कर चलते बने. इस तरह हमारी पत्नीजी प्रेम, श्रद्धा के साथ पिताश्री का श्राद्ध कर हमारे साथ लौटीं. हम आज तक सोच नहीं पाए कि हमारे ससुरजी क्या थे, कौआ, कुतिया या गधा?

इस का उत्तर तो उन की पत्नी यानी हमारी सास ही बता सकती हैं. हम तो कुछ बोल कर घर की शांति बरबाद करना नहीं चाहते हैं. Hindi Story

Story In Hindi: कोयले की लकीर – सुगंधा की आंखों में क्यों खुशी के आंसू थें?

Story In Hindi: विनी ने सोचा न था जिस पितातुल्य इंसान पर वह विश्वास कर रही है वह इंसान उस विश्वास और सम्मान को एक झटके में समाप्त कर देगा. तो क्या वह अपने छलनी तनमन के साथ हार मान बैठ गई? विनी की प्रसन्नता की सीमा नहीं थी. एमए का रिजल्ट निकल आया था. 80 प्रतिशत मार्क्स आए थे. अपनी मम्मी सुगंधा के लिए उस ने उन की पसंद की मिठाई खरीदी और घर की तरफ उत्साह से कदम बढ़ा दिए. सुगंधा अपनी बेटी की सफलता से अभिभूत हो गईं.

खुशी से आंखें झिलमिला गईं. दोनों मांबेटी एकदूसरे के गले लग गईं. एकदूसरे का मुंह मीठा करवाया. घर में 2 ही तो लोग थे. विनी के पिता आलोक का देहांत हो गया था. सुगंधा सीधीसरल हाउसवाइफ थीं. पति की पैंशन और दुकानों के किराए से घर का खर्च चल जाता था. शाम को वे कुछ ट्यूशंस भी पढ़ाती थीं. विनी ने ड्राइंग ऐंड पेंटिंग में एमए किया था. आलोक को आर्ट्स में विशेष रुचि थी. विनी की ड्राइंग में रुचि देख कर उन्होंने उसे भी इसी क्षेत्र में आगे बढ़ने को प्रोत्साहित किया था.

विनी शाम को कुछ बच्चों को ड्राइंग सिखाया करती थी. पेंटिंग के सामान का खर्च वह इन्हीं ट्यूशंस से निकाल लेती थी. सुगंधा ने बेटी को गर्वभरी नजरों से देखते हुए उस से पूछा, ‘‘अब आगे क्या इरादा है?’’ फिर विनी के जवाब देने से पहले ही उसे छेड़ने लगी, ‘‘लड़का ढूंढ़ा जाए?’’ विनी ने आंखें तरेरीं, ‘‘नहीं, अभी नहीं, अभी मुझे बहुतकुछ करना है.’’ ‘‘क्या सोचा है?’’ ‘‘पीएचडी करनी है. सोच रही हूं आज ही शेखर सर से मिल आती हूं. उन्हें ही अपना गाइड बनाना चाहती हूं. मां, आप को पता है, उन में मुझे पापा की छवि दिखती है. बस, वे मुझे अपने अंडर में काम करने दें.’’ ‘‘मैं तुम्हारे भविष्य में कोई बाधा नहीं बनूंगी, खूब पढ़ाई करो, आगे बढ़ो.’’ विनी अपनी मां की बांहों में छोटी बच्ची की तरह समा गई. सुगंधा ने भी उसे खूब प्यार किया. सुगंधा को अपनी मेहनती, मेधावी बेटी पर नाज था.

रुड़की के आरपी कालेज में एमए करने के बाद वह अपने प्रोफैसर शेखर के अधीन ही पीएचडी करना चाहती थी. शेखर का बेटा रजत विनी का बहुत अच्छा दोस्त था. बचपन से दोनों साथ पढ़े थे. पर रजत को आर्ट्स में रुचि नहीं थी, वह इंजीनियरिंग कर अब जौब की तलाश में था. दोनों हर सुखदुख बांटते थे, एकदूसरे के घर भी आनाजाना लगा रहता था. इन दोनों की दोस्ती के कारण दोनों परिवारों में भी कभीकभी मुलाकात होती रहती थी. विनी ने रजत को फोन कर अपना रिजल्ट और आगे की इच्छा बताई. रजत बहुत खुश हुआ, ‘‘अरे, यह तो बहुत अच्छा रहेगा. पापा बिलकुल सही गाइड रहेंगे. किसी अंजान प्रोफैसर के साथ काम करने से अच्छा यही रहेगा कि तुम पापा के अंडर में ही काम करो. आज ही आ जाओ घर, पापा से बात कर लो.’’ शाम को ही विनी मिठाई ले कर रजत के घर गई. शेखर के पास कुछ स्टूडैंट्स बैठे थे. विनी का बचपन से ही घर में आनाजाना था. वह निसंकोच अंदर चली गई.

शेखर की पत्नी राधा विनी पर खूब स्नेह लुटाती थी. रजत और राधा के साथ बैठ कर विनी गप्पें मारने लगी. थोड़ी देर में शेखर भी उन के साथ शामिल हो गए. दोनों ने उस की सफलता पर शुभाशीष दिए. उस की पीएचडी की इच्छा जान कर शेखर ने कहा, ‘‘ठीक है, अभी कुछ दिन लाइब्रेरी में सभी बुक्स देखो. किसकिस टौपिक पर काम हो चुका है, किस टौपिक पर रिसर्च होनी चाहिए, पहले वह डिसाइड करेंगे. फिर उस पर काम करेंगे. अभी कालेज की लाइब्रेरी में काफी नई बुक्स आई हैं, उन पर एक नजर डाल लो. देखो, क्या आइडिया आता है तुम्हें.’’ विनी उत्साहपूर्वक बोली, ‘‘सर, कल से ही लाइब्रेरी जाऊंगी. शेखर कालेज में विनी का पीरियड लेते थे. विनी उन्हें सर कहने लगी थी. रजत ने हमेशा की तरह टोका, ‘‘अरे, घर में तो पापा को सर मत कहो, विनी, अंकल कहो.’’ विनी हंस पड़ी, ‘‘नहीं, सर ही ठीक है, कहीं अंकल कहने की आदत हो गई और क्लास में मुंह से अंकल निकल गया तो क्या होगा, यह सोचो.

’’ सब विनी की इस बात पर हंस पड़े. विनी ने जातेजाते शेखर के रूम में नजर डाली. शेखर की पेंटिंग्स की प्रदर्शनी लगती रहती थी. वह शेखर का बहुत सम्मान करती थी. हर पेंटिंग में स्त्री के अलगअलग भाव मुखर हो उठे थे. कहीं शक्ति बनी स्त्री, कहीं मातृत्व में डूबी स्त्री आकृति, कहीं प्रेयसी का रूप धरे मनोहारी आकृति, कहीं आराध्य का रूप लिए ओजपूर्ण स्त्री आकृति. शेखर के काम की मन ही मन सराहना करती हुई विनी घर लौट आई और सुगंधा को शेखर की सलाह बताई. अगले दिन से ही विनी लाइब्रेरी में किताबें पढ़ने में बिजी रहने लगी. 15 दिनों की खोजबीन के बाद उसे एक विषय सूझा. वह उत्साहित सी शेखर के घर की तरफ बढ़ गई. उसे पता था, रजत अपने दोस्तों के साथ कहीं गया हुआ था.

राधा तो अकसर घर में ही रहती थी. पर शाम को जिस समय विनी शेखर के घर पहुंची, राधा किसी काम से कहीं गई हुई थीं. शेखर घर में अकेले थे. विनी ने उन्हें विश किया. उन के हालचाल पूछे. पूछा, ‘‘आंटी नहीं हैं?’’ उन्होंने कहा, ‘‘अभी आ जाएंगी.’’ ‘‘आज बाकी स्टूडैंट्स नहीं हैं?’’ ‘‘नहीं आजकल उन्हें कुछ काम दिया हुआ है, पूरा कर के आएंगे.’’ ‘‘सर, मैं ने लाइब्रेरी में काफीकुछ देखा, ‘भारतीय गुफाओं में भित्ति चित्रण’ इस पर कुछ काम कर सकते हैं?’’ ‘‘हां, शाबाश, कुछ विषय और देख लो, फिर फाइनल करेंगे,’’ शेखर आज उस के सामने बैठ कर जिस तरह उसे देख रहे थे, विनी कुछ असहज सी हुई. वह जाने के लिए उठती हुई बोली, ‘‘ठीक है, सर, मैं अभी और पढ़ कर आऊंगी.’’

सच है, गृहस्थ हो या संन्यासी, सभी पुरुषों के अंदर एक आदिम पाश्विक वृत्ति छिपी रहती है. किस रूप में, किस उम्र में वह पशु जाग कर अपना वीभत्स रूप दिखाएगा, कुछ कहा नहीं जा सकता. ‘‘रुको जरा, विनी मेरे लिए एक कप चाय बना दो. कुछ सिरदर्द है,’’ विनी धर्मसंकट में फंस गई. उस का दिमाग कह रहा था, फौरन चली जा, पर पिता की सी छवि वाले गुरु की बात टालने की हिम्मत भी नहीं हो रही थी. फिर अपने दिल को ही समझा लिया, नहीं, उस का वहम ही होगा. आजकल माहौल ही ऐसा है न, डर लगा ही रहता है. ‘जी, सर’ कहती हुई वह किचन की तरफ बढ़ गई.

उसे अपने पीछे दरवाजा बंद करने की आहट मिली तो वह चौंक गई. शेखर उस की तरफ आ रहे थे. चेहरे पर न पिता की सी छवि दिखी, न गुरु के से भाव, विनी को उन के चेहरे पर कुटिल मुसकान दिखी. उसे महसूस हुआ जैसे वह किसी खतरे में है. शेखर एकदम उस के पास आ कर खड़े हो गए. उस के कंधों पर हाथ रखा तो विनी पीछे हटने लगी. नारी हर उम्र में पुरुष के अनुचित स्पर्श को भांप लेती है. शेखर बोले, ‘‘घबराओ मत, यह तो अब चलता ही रहेगा. थोड़े और करीब आ जाएं हम दोनों, तो रिसर्च करने में तुम्हें आसानी होगी. तुम्हारी हर मदद करूंगा मैं.’’ नागिन सी फुंफकार उठी विनी, ‘‘शर्म नहीं आती आप को? आप की बेटी जैसी हूं मैं. आप में हमेशा पिता की छवि दिखी है मुझे.’’ ‘‘मैं ने तो तुम्हें कभी बेटी नहीं समझा. तुम अपने मन में मेरे बारे में क्या सोचती हो, उस से मुझे जरा भी मतलब नहीं. आओ मेरे साथ.’’ विनी ने पीछे हटते हुए कहा, ‘‘मैं आंटी, रजत सब को बताऊंगी, आप की यह गिरी हुई हरकत छिपी नहीं रहेगी.’’ ‘‘बाद में बताती रहना, मेरा कुछ नहीं बिगड़ेगा,’’

कहते हुए उस का हाथ पकड़ कर बलिष्ठ शेखर उसे बैडरूम तक ले गए. विनी ने अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश में उन्हें काफी धक्के दिए. उन का हाथ दांतों से काट भी लिया. पर उन के सिर पर ऐसा शैतान सवार था कि विनी के रोके न रुका और दुर्घटना घट गई. सालों का आदर, विश्वास सब रेत की तरह ढहता चला गया. विनी ने रोरो कर चीखचीख कर शोर मचाया. तो शेखर ने कहा, ‘‘चुपचाप चली जाओ यहां से और जो हुआ उसे भूल जाओ. इसी में तुम्हारी भलाई है. किसी को बताओगी भी, तो जानती हो न, कितने सवालों के घेरे में फंस जाओगी. परिवार, समाज में मेरी इमेज का अंदाजा तो है ही तुम्हें.’’ ‘‘कहीं नहीं जाऊंगी मैं,’’ विनी चिल्लाई, ‘‘आने दो आंटी को, उन्हें और रजत को आप की करतूत बताए बिना मैं कहीं नहीं जाने वाली,’’ शेखर को अब हैरानी हुई, ‘‘बेवकूफी मत करो बदनाम हो जाओगी, कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहोगी, समाज रोज तुम पर ही नएनए ढंग से कीचड़ उछालेगा, पुरुष का कुछ बिगड़ा है कभी?’’ विनी नफरतभरे स्वर में गुर्राई, ‘‘आप ने मेरा रेप किया है,

आप मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे.’’ शेखर ने तो सोचा था विनी रोधो कर चुपचाप चली जाएगी पर वह तो अभी वैसी की वैसी बैठी हुई उन्हें गालियां दिए जा रही थी. हिली भी नहीं थी. इस स्थिति की तो उन्होंने कल्पना ही नहीं की थी. डोरबेल बजी तो उन के पसीने छूट गए, बोले, ‘‘भागो यहां से, जल्दी.’’ ‘‘मैं कहीं नहीं जा रही.’’ डोरबेल दोबारा बजी तो शेखर के हाथपैर फूल गए, दरवाजा खोला, राधा थीं. शेखर का उड़ा चेहरा देख चौंकी, ‘‘क्या हुआ?’’ शेखर इतना ही बोले, ‘‘सौरी, राधा.’’ ‘‘क्या हुआ, शेखर?’’ तभी बैडरूम से ‘आंटी’ कह कर विनी के तेजी से रोने की आवाज आई. राधा भागीं. बैड पर अर्धनग्न, बेहाल, रोने से फैले काजल की गालों पर सबकुछ स्पष्ट करती रेखा, बिखरे बाल, कराहतीरोती विनी राधा की बांहों में निढाल हो गईं. राधा जैसे पत्थर की बुत बन गई. विनी की हालत देख कर सबकुछ समझ गईं. फूटफूट कर रो पड़ीं. शेखर को धिक्कार उठीं, ‘‘यह क्या किया, हमारी बच्ची जैसी है यह. यह कुकर्म क्यों कर दिया? नफरत हो रही है तुम से.’’ राधा का रौद्र रूप देख कर शेखर सकपकाए. राधा ने उन की तरफ थूक दिया. तनमन में ऐसी आग लगी थी कि विनी को एक तरफ कर पास के कमरे में अगले हफ्ते होने वाली प्रदर्शनी के लिए रखी शेखर की तैयार 10-15 पेंटिंग्स पर वहीं रखे काले रंग से स्त्री के महान रूपों की तस्वीरों में कालिख भरती चली गईं. विनी को फिर अपने से चिपटा लिया. शेखर चुपचाप वहीं रखी एक चेयर पर बैठ गए थे. दोनों रोती रहीं, राधा और सुगंधा के अच्छे संबंध थे.

राधा ने सुगंधा को फोन किया और फौरन आने के लिए कहा. घर थोड़ी ही दूर था. सुगंधा और रजत लगभग साथसाथ ही घर में घुसे. सब स्थिति समझ कर सुगंधा तो विनी को, अपनी मृगछौने सी प्यारी बेटी को, गले से लगा कर बिलख उठी. रजत ने उन्हें संभाला. रजत ने रोते हुए विनी के आगे हाथ जोड़ दिए, ‘‘बहुत शर्मिंदा हूं, विनी, अब इस आदमी से मेरा कोई संबंध नहीं है.’’ राधा भी दृढ़ स्वर में बोल उठीं, ‘‘और मेरा भी कोई संबंध नहीं. रजत, मैं इस आदमी के साथ अब नहीं रहूंगी,’’ रजत विनी की हालत देख कर फूटफूट कर रो रहा था. बचपन की प्यारी सी दोस्त का यह हाल. वह भी उस के पिता ने, घिन्न आ रही थी उसे. सुगंधा का विलाप भी थमने का नाम नहीं ले रहा था. राधा कभी सुगंधा से माफी मांगती, कभी विनी से. शेखर को छोड़ कर सब गहरे दुख में डूबे थे. वे सोच रहे थे, सब रोधो कर अभी शांत हो जाएंगे. राधा कह रही थी, ‘‘काश, मैं विधवा होती, ऐसे पशु पति का साथ तो न होता. अपरिचितों से तो ये परिचित अधिक खतरनाक होते हैं. ये कुछ भी करें, इन्हें पता है, कोई कुछ बोलेगा नहीं. पर ऐसा नहीं होगा.’’ विनी के मुंह से जैसे ही निकला, ‘‘मेरा जीवन तो बरबाद हो गया,’’ राधा ने तुरंत कहा, ‘‘तुम्हारा क्यों बरबाद होगा, बेटी, तुम ने क्या किया है. तुम्हारा तो कोई दोष नहीं है.

अपने दिल पर यह बोझ मत रखना. इस दुष्कर्म को याद ही नहीं रखना. दुखी नहीं रहना है तुम्हें. पाप कोई और करे, दुखी कोई और हो, यह कहां का न्याय है?’’ राधा के शब्दों से जैसे सुगंधा भी होश में आई. यह समय उस के रोने का कहां था. यह तो बेटी को मानसिक संबल देने की घड़ी थी. अपने आंसू पोंछती हुई बोली, ‘‘नहीं विनी, इस घृणित इंसान का दिया घाव जल्दी नहीं भरेगा, जानती हूं, पर भरेगा जरूर, यह भी भरोसा रखो. समझ लेना बेटा, सड़क पर चलते हुए किसी कुत्ते ने काट खाया है. इस दुष्कर्मी का कुकर्म मेरी बेटी के आत्मविश्वास की मजबूत चट्टान को भरभरा कर गिरा नहीं सकता.’’ विनी फिर रोने लगी, सिसकते हुए बोली, ‘‘मेरे सारे वजूद पर कालिख सी पोत दी गई है, कैसे जिऊंगी,’’ रजत उस के पास ही जमीन पर बैठते हुए बोला, ‘‘विनी, ताजमहल की सुंदरता ऐसे दुष्कर्मियों की खींची कोयले की लकीरों से खराब नहीं होती. इस लकीर पर पानी डालते हुए सिर ऊंचा रख कर आगे बढ़ना है तुम्हें. हम सब तुम्हारे साथ हैं. तुम्हारा जीवन यहां रुकेगा नहीं. बहुत आगे बढ़ेगा,’’

और फिर शेखर की तरफ देखता हुआ बोला, ‘‘और आप को तो मैं सजा दिलवा कर रहूंगा.’’ बात इस हद तक पहुंच जाएगी, इस की तो शेखर ने कल्पना भी नहीं की थी. अपने अधीन पीएचडी करने वाली अन्य छात्राओं का भी वे शारीरिक शोषण करते आए थे. किसी ने उन के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत नहीं की थी. उन्हें किसी का डर नहीं था. इस तरह के किसी भी आदमी को समाज, परिवार या कानून का डर नहीं होता क्योंकि उन के पास इज्जत, पद का ऐसा लबादा होता है जिस से नीचे की गंदगी कोई चाह कर भी नहीं देख सकता. वे कमजोर सी, आम परिवार की छात्राओं को अपना शिकार बनाया करते थे. विनी के बारे में भी यही सोचा था कि मांबेटी रोधो कर इज्जत के डर से चुप ही रह जाएंगी. पर उन की पत्नी और पुत्र ने स्थिति बदल दी थी. अब जो हो रहा था, वे हैरान थे. अकल्पनीय था. पत्नी और पुत्र के सामने शर्मिंदा होना पड़ गया था. राधा उठ कर खड़ी हो गई थी, ‘‘रजत, मैं इस घर में नहीं रहूंगी.’’ ‘‘हां, मां, मैं भी नहीं रह सकता.’’ शेखर ने उपहासपूर्वक पूछा, ‘‘कहां जाओगे दोनों? बड़ीबड़ी बातें तो कर रहे हो, कोई और ठिकाना है?’’ अपमान की पीड़ा से राधा तड़प उठी, ‘‘तुम्हारे जैसे बलात्कारी पुरुष के साथ रह कर सुविधाओं वाला जीवन नहीं चाहिए मुझे, मांबेटा कहीं भी रह लेंगे.

तुम से संबंध नहीं रखेंगे. तुम्हें सजा मिल कर रहेगी. ‘‘आज अपने बेटे के साथ मिल कर एक निर्दोष लड़की को एक साहस, एक सुरक्षा का एहसास सौंपना है. धरोहर के रूप में अपनी आने वाली पीढि़यों को भी यही सौंपना होगा.’’ राधा आगे बोली, ‘‘चलो रजत, मैं यह टूटन, यह शोषण स्वीकार नहीं करूंगी. अपने घर के अंदर अगर इस घिनौनी करतूत का विरोध नहीं किया तो बाहर भी औरत कैसे लड़ पाएगी और हमेशा रिश्तों की आड़ में शोषित ही होती रहेगी. परिवार की इज्जत, रिश्तेदारी और समाज के खयाल से मैं चुप नहीं रहूंगी.’’ सुगंधा भी विनी को संभालते हुए उस का हाथ पकड़ कर जाने के लिए खड़ी हो गईं. अचानक कुछ सोच कर बोली, ‘‘राधा, चाहो तो आज से तुम दोनों हमारे घर में रह सकते हो.’’ रजत उन के पैरों में झुक गया, ‘‘हां, आंटी, मैं भी आ रहा हूं आप के घर. चलो मां, अभी बहुत लंबी लड़ाई लड़नी है. साथ रहेंगे तो अच्छा रहेगा. और विनी, तुम एक दिन भी इस कुकर्मी के कुकर्म को याद कर दुखी नहीं होगी. तुम्हें बहुत काम है. नया गाइड ढूढ़ंना है. पीएचडी करनी है.

इस आदमी की रिपोर्ट करनी है. इसे कोर्ट में घसीटना है. सजा दिलवानी है. बहुत काम है. विनी, चलो,’’ चारों उन के ऊपर नफरतभरी नजर डाल कर निकल गए. अब शेखर को साफसाफ दिख रहा था कि अब उन के किए की सजा उन्हें मिल कर रहेगी. अगर विनी और सुगंधा अकेले होते तो कमजोर पड़ सकते थे. पर अब चारों साथ थे, तो उन की हार तय थी. कितनी ही छात्राओं के साथ किया बलात्कार उन की आंखों के आगे घूम गया. वे सिर पकड़ कर बैठे रह गए थे. वे चारों गंभीर, चुपचाप चले जा रहे थे. ऐसे समाज से निबटना था जो बलात्कार की शिकार लड़की को ही सवालों के कठघरे में खड़ा कर देता है. उस के साथ ऐसा व्यवहार करता है जैसे उस ने कोई गुनाह किया हो. शारीरिक और मानसिक रूप से पहले से ही आहत लड़की को और सताया जाता है. लेकिन, इन चारों के इरादे, हौसले मजबूत थे. समाज की चिंता नहीं थी. लड़ाई मुश्किल, लंबी थी पर चारों के दिलों में इस लड़ाई में जीत का एहसास अपनी जगह बना चुका था. हार का संशय भी नहीं था. जीत निश्चित थी.

द्य ऐसा भी होता है मनोहरजी का बेटा अपनी मां को लेने गांव आया था. उन की बहू का बच्चा होने वाला था. इसलिए बेटा मां को मुंबई ले जा रहा था. वह मनोहरजी के लिए पैंटकमीज का कपड़ा मुंबई से लाया था. बेटे ने कपड़ा मनोहरजी को देते हुए कहा, ‘‘इसे सिलवा लीजिएगा, आप पर बहुत अच्छा लगेगा.’’ पिताजी ने कहा, ‘‘इस की क्या जरूरत थी, मुझे धोतीकुरते में ही आराम मिलता है.’’ मनोहरजी कपड़े पा कर बहुत प्रसन्न थे. उन्होंने दर्जी को दे कर अपनी नाप की पैंटशर्ट सिलवा ली. कपड़े उन्होंने पहन कर नापे, वे खुद को बहुत सुंदर महसूस कर रहे थे. एक महीने बाद खबर आई कि बहू ने एक बेटे को जन्म दिया है. बेटे के जन्मोत्सव के लिए बेटे ने उन्हें भी मुंबई बुलाया था. वे मुंबई जाने की तैयारी करने लगे. नियत समय पर वे मुंबई पहुंचे. बेटा उन्हें लेने के लिए आया हुआ था. जब वे बेटे के घर पहुंचे तो बहुत प्रसन्न थे कि उस का रहनसहन कितना ऊंचा है. उन का बेटा कितना बड़ा अफसर है, उस के कितने ठाटबाट हैं. बेटे के जन्मोत्सव की पार्टी रखी गई. घर में तैयारी चल रही थी.

शाम को सभी लोग पार्टी के लिए तैयार हो रहे थे. मनोहरजी अपनी वही पैंटशर्ट पहने तैयार हुए जो उन का बेटा उन्हें गांव में दे गया था. बेटे ने जब उन्हें उन कपड़ों में देखा, तो चीखते हुए बोला, ‘‘आप के पास यही कपड़े पहनने को हैं.’’ बहू भी दौड़ती हुई आई कि क्या हो गया. तब बहू पिताजी को ले कर कमरे में आई और पिताजी से बोली, ‘‘आप दूसरे कपड़े पहन लीजिए. ये कपड़े यहां के इंजीनियरों की यूनिफौर्म के हैं. इंजीनियर को साल में 2 जोड़ी कपड़े मिलते हैं. वे उन्हें स्वयं न सिलवा कर अपने रिश्तेदारों में बांट देते हैं या दान कर देते हैं. आप को इन कपड़ों में देख कर लोग क्या सोचेंगे.’’ मनोहरजी बहू की बात सुन कर सकते में आ गए. उन्हें बड़ा दुख हो रहा था कि बेटे ने उन्हें कपड़ा देने के पहले यह बात क्यों नहीं बता दी थी. Story In Hindi

Story In Hindi: गलतफहमी – व्यापारी एक दूसरे को शक की निगाह से क्यों देख रहे थे

Story In Hindi: जब देशभर में कोरोना महामारी फैल रही थीतब लोग काफी एहतियात बरत रहे थे. ऐसे समय में किसी को सर्दीबुखार हो जा रहा थातो उस से बचने की कोशिश कर रहे थे और सब से बुरी बात यह थी कि ऐसे पीडि़त इनसान से दूरी बना ले रहे थे. लोग एकदूसरे को शक की निगाह से देख रहे थे.

कपड़े के कारोबारी जमनालाल के यहां काम करने वाली रजनी को भी यही सब झेलना पड़ा था. जब उसे सर्दीबुखार के लक्षण दिखाई देने लगेतो उस के मालिक ने उसे अपने घर से चले जाने के लिए कह दिया था. हालांकि वह उन के घर पर सालों से काम कर रही थी.

रजनी के सामने समस्या पैदा हो गई थी कि वह जाए तो कहां जाएउस का अपना घर ही कहां था. जब से उस ने होश संभाला थावह यही जान पाई थी कि वह अनाथ है.

विधवा बूआ ने उस का लालनपालन किया था और दूसरे के घरों में काम करना सिखाया था. तब से वह दूसरे के घरों में काम करते हुए जवानी की दहलीज पर पहुंच गई थी.

उत्तर प्रदेश का रहने वाला विमल उस के मालिक के पुराने घर को मरम्मत करने के लिए आ रहा था. मालिक के दुकान चले जाने के बाद रजनी को ही विमल को बताना पड़ता था कि कौन सा सामान कहां रखा है. इस दौरान उस से बातें होने लगी थीं.

विमल रजनी के खूबसूरत जोबन और चेहरे को देख कर उस की तरफ खिंचने लगा थाजिस का अनुभव उसे भी होने लगा था. वह एक ही सामान के बारे में कई बार जानबूझ कर पूछता था,

ताकि रजनी को अपने इर्दगिर्द रख सके.

रजनी भी धीरेधीरे विमल की ओर खिंचती चली गई थी. इस की सब से बड़ी वजह थी कि मालिक के घर में कभी कोई उस से प्यार से बातें नहीं करता था. वह मालिक के घर के लोगों के जरूरत के लिए इधर से उधर एक आवाज पर भागती फिरती थी. कभीकभी छोटीमोटी गलतियां होने पर कई बातें सुननी पड़ती थीं.

इन वजहों से उस का मन कभीकभी दुखी हो जाता था. उसे एहसास होता था कि उस की जिंदगी में अपना कोई नहीं है. वह हमेशा प्यार और अपनेपन के लिए तरसती रहती थी.

विमल ने 1-2 बार सामान पकड़ाते समय हौले से रजनी का हाथ दबा दिया था. जब वह विरोध नहीं कर सकीतो उस की हिम्मत बढ़ती गई और एक दिन मौका देख कर वह बोल गया, ‘‘रजनीतुम मुझे अच्छी लगती हो.’’

‘‘तो…?’’ रजनी ने पूछा.

‘‘मैं तुम से प्यार करने लगा हूं.

तुम मेरी इतनी भी बात नहीं समझ पा रही हो?’’

रजनी समझ तो सब रही थीपर न समझने का नाटक कर रही थी. भला प्यार की समझ किस को नहीं होती है.

फिर भी वह अपना मुंह बनाते हुए बोली थी, ‘‘तुम काम करने आए हो या लड़की पटाने?’’

विमल सकपका गया था. वह रजनी से ऐसे बरताव की उम्मीद नहीं कर रहा था. वह डर से चुप हो गया था. रजनी कुछ देर बाद अपनी जीत देख कर मुसकराने लगी थीलेकिन जल्द ही उसे अपनी गलती का एहसास भी होने लगा थाइसलिए वह अगले दिन बोली, ‘‘तू मेरी बात का बुरा मान गया?’’

‘‘नहीं तो. ऐसी बात नहीं है.’’

‘‘बस थोड़ी सी डांट में ही प्यार का भूत उतर गया?’’

‘‘नहींनहीं… तुम कहो तो अभी…’’

यह सुन कर रजनी विमल को देख कर मुसकरा दी थी. विमल भी मुसकराने लगा था.

अगर आसपास और मजदूर नहीं होतेतो विमल रजनी को प्यार से चूम लेता या अपनी बांहों में उठा लेता.

एक दिन दोपहर के समय बाकी मजदूर खाना खाने चले गए थे. विमल खाना खा कर दूसरी मंजिल के खाली कमरे में आराम करने की कोशिश कर रहा थातभी रजनी के आने की आहट मिली.

रजनी नहाधो कर छत पर गीले कपड़े डालने जा रही थी. वह गुलाबी रंग के सलवारकुरते में खिलीखिली सी लग रही थी. काले लंबे बाल खुले हुए थे. उस ने अपने दुपट्टे को सीने पर घुमा कर बांध रखा थाजिस से विमल को उस के उभारों की गोलाइयां अपनी ओर खींच रही थीं.

रजनी को अकेली देख कर विमल के जिस्म में सनसनी सी पैदा होने लगी थीइसलिए वह मौके का फायदा उठाना चाहता था.

रजनी ने जैसे ही सीढि़यों से उतरने की कोशिश कीविमल ने उस का हाथ पकड़ कर खाली कमरे की ओर खींच लिया था.

थोड़ी सी नानुकर के बाद रजनी विमल के आगोश में आ चुकी थी. उस के लिए वह पल ऐसा था कि वह किसी बेल की तरह न चाहते हुए भी अपनेआप उस से लिपटती चली गई थी.

जब विमल उस के कोमल अंगों से खेलने लगातो वह दूर हटाते हुए बोली, ‘‘अरेकोई देख लेगा.’’

‘‘अभी कोई नहीं आएगा,’’ विमल रजनी को अपनी ओर खींचते हुए बोला और उस के होंठों को चूमने लगा. फिर रजनी भी अपनेआप को रोक नहीं पाई. कुछ देर में ही उन दोनों के बीच उपजा तूफान थम गया था.

रजनी शारीरिक सुख से सराबोर हो गई थीक्योंकि दूसरों के घरों में चाकरी करने के चलते वह ऐसे सुखों से अनजान रही थी. अचानक हुए इस प्रेम मिलन के चलते वह सुख के सागर में समा गई थी.

फिर तो सिलसिला ही चल पड़ा था. जब भी मौका मिलतावे एकदूसरे की बांहों में समाने के लिए उतावले हो जाते थेलेकिन जब कोरोना वायरस का प्रकोप बढ़ने लगातो रजनी के मालिक ने अचानक काम बंद करवा दिया. उस दिन से विमल के लिए उस घर के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो गए.

विमल ने अगले दिन से ही न चाहते हुए भी आना बंद कर दिया था. यह सब इतना जल्दी हुआ था कि वे एकदूसरे का मोबाइल नंबर भी नहीं ले पाए थे.

आज जब रजनी को सर्दीबुखार की वजह से अचानक उस के मालिक ने जाने के लिए कह दियातो उस के सामने विकट समस्या पैदा हो गई. आखिर वह जाए तो कहां जाएविमल ही उस का एकलौता सहारा दिख रहा था.

विमल ने बातचीत के दौरान एक बार बताया था कि वह नौबतपुर में रहता हैजो यहां से 5 किलोमीटर दूर है. रजनी इतना ही याद रख पाई थी. लेकिन उस के मन में इस बात का भी डर था कि कहीं विमल कोरोना महामारी की वजह से अपना गांव न चला गया होअगर वह गांव नहीं भी गया हो और कहीं मिल भी गया तो इस बात की क्या गारंटी है कि वह अपने साथ रखने के लिए तैयार हो ही जाएगा?

रजनी जानती थी विमल अकेला नहीं रहता हैबल्कि 3 लोगों के साथ रहता है. अगर विमल तैयार भी हो गया तो क्या बाकी लोग उसे अपने कमरे में पनाह देंगेइस तरह के कई सवाल रजनी के दिमाग में हलचल मचा रहे थेलेकिन फिर भी वह विमल से मिलने जा रही थी.

रजनी ने मैडिकल स्टोर से ही सर्दीबुखार की दवा खरीद कर खा ली थी और अनजान मंजिल की ओर निकल पड़ी थी. वह सड़क पर पैदल ही चल रही थी. वह आनेजाने वाले लोगों को देख रही थी. विमल को खोजने की कोशिश कर रही थी. उसे रास्ते में विमल कहीं भी नहीं मिल पाया था.

रजनी के मन में कई तरह के सवाल उथलपुथल मचा रहे थे. आखिर में वह थोड़ी सी मशक्कत के बाद विमल के कमरे तक पहुंच ही गई थी.

विमल रजनी को एकाएक आया देख कर हैरान था. उस के आने की मजबूरी जान कर विमल ने अपने दोस्तों को राजी कर लिया था. वैसे भी उन लोगों के पास 2 कमरे थे. हालात देख कर बाकी तीनों लोग एक कमरे में शिफ्ट हो गए. विमल दूसरे कमरे में रजनी के साथ रहने लगा था.

रजनी विमल के साथ बिना रोकटोक कई महीने से रह रही थी. विमल सुबह 8 बजे काम पर जाता और शाम 6 बजे घर वापस आता. रजनी उस का बेसब्री से इंतजार करती और उस के लिए खाना पकाती. उस के घर को ठीक रखती. बिना शादी के ही वे एकदूसरे का खयाल रखते थे.

ऐसे ही जिंदगी गुजर रही थी कि एक दिन रजनी की मालकिन का फोन आया. शायद उन के घर में रजनी के बिना परेशानी होने लगी थीइसलिए वे बुलाना चाह रही थीं.

जब मालकिन ने हालचाल जानने के बाद आने के लिए कहातो रजनी तपाक से बोली, ‘‘मालकिनमैं अभी नहीं आ सकती हूं. जब आप के घर से निकली थीतो मुझे सर्दीबुखार कोरोना की वजह से नहीं हुआ थाबल्कि मैं पेट से थी.

‘‘मैं बताना तो चाहती थीलेकिन मालिक ने इतनी जल्दी जाने के लिए कह दिया कि मेरा दिमाग काम नहीं किया और आप ने भी मुझे नहीं रोका तो मैं कुछ नहीं कह पाई थी.

‘‘अब मैं कुछ दिन में ही अपने बच्चे को जन्म देने वाली हूं. डाक्टर ने मुझे आराम करने की सलाह दी है. अगर सबकुछ सही रहातो आप के घर आशीर्वाद लेने जरूर आऊंगी,’’ इतना कह कर रजनी ने फोन काट दिया.

रजनी की बातें सुन कर मालकिन पछता रही थीं कि गलतफहमी की वजह से उसे घर से बाहर तो निकाल दिया थाजबकि होना तो यह चाहिए था कि उस के साथ हमदर्दी का बरताव करना चाहिए था और उस का इलाज भी कराना चाहिए था. अब उस के बिना घर में कितनी परेशानी हो रही हैयह वे ही जानती थीं. Story In Hindi

Hindi Story: जिओ जमाई राजा – अभय प्रताप के घर चोर कैसे घूस गया था

Hindi Story: साल भर होने को आया लेकिन अब भी जब पुरवा हवा चलती है तो चरनदास की नाक की हड्डी में दर्द होने लगता है.

इंस्पेक्टर इसरार खान अपनी खिजाब लगी दाढ़ी खुजलाते हुए लखनवी अंदाज व अदब के साथ अम्मांजी की मातमपुर्सी कर रहे थे, ‘‘खुदा जन्नत बख्शे मरहूम को. क्या नायाब मोहतरमा थीं जनाब, अल्ला को भी न जाने क्या सूझी कि ऐसी पाकीजा और शीरीं जबान खातून को हम से छीन लिया.’’

पिछले 5 सालों से आमों की फसल पर मलीहाबादी दशहरी आमों की पेटियों का नजराना पेश करने की जिम्मेदारी खान साहब पर ही थी. अम्मांजी एकएक पेटी गिन कर अंदर रखवातीं. 2 साल पहले जब कीड़े के प्रकोप से मलीहाबादी आमों की पूरी फसल ही चौपट हो गई थी तब बेचारे खान साहब कहां से आम लाते. फिर भी बाजार से ऊंचे दामों में 2 पेटियां खरीद कर अम्मांजी की खिदमत में पेश कीं.

‘‘पूरे सीजन में सिर्फ 2 पेटियां?’’ यह कहते हुए अम्मांजी आगबबूला हो उठीं और फिर तो अपनी निमकौड़ी जैसी जबान से ऐसीऐसी परंपरागत तामसिक गालियों की बौछार की कि बेचारे खान साहब की रूह फना हो गई. लोग खामखाह पुलिस मकहमे को गालियों की टकसाल कहा करते हैं.

धीरेधीरे एक हफ्ता बीत गया. जख्म भरने लगा और ठाकुर अभयप्रताप भी आफिस जाने लगे. इस बीच उन्हें यह खबर लग चुकी थी कि उन के चोरी हुए सामान समेत चोर पकड़ा जा चुका है. सामान की शिनाख्त भी उन के मातहत कर्मचारियों ने कर ली थी. तकरीबन सारा सामान उन्हीं मातहतों के खूनपसीने की कमाई का ही तो था जिन्हें उन्होंने तोहफों की शक्ल में अम्मांजी को भेंट किया था. चोर के साथ पुलिस वाले बेहद सख्ती से पेश आए थे.

ठाकुर अभयप्रताप के सामने भी चोर की पेशी हुई. आखिर वह पुलिस के आला अफसर थे, वह भी देखना चाह रहे थे कि किस बंदे में इतनी हिम्मत थी जिस ने उन के घर में सेंध लगाई. बेडि़यों में जकड़ कर चोर को हाजिर किया गया. साहब की ओर देखते ही चोर चौंका. इन्हें तो पहले भी कहीं देखा है. कहां देखा है? वह याद कर ही रहा था कि सिपाही रामभरोसे ने एक जोरदार डंडा यह कहते हुए उस की पीठ पर जमा दिया, ‘‘ऐसे भकुआ बना क्या देख रहा है बे. यही वह साहब हैं जिन के घर घुसने की तू ने हिम्मत की थी. अब देख, साहब ही तेरी खाल में भूसा भरेंगे.’’

बेचारा चोर मार खाए कुत्ते जैसा कुंकुआने लगा. तभी उस के दिमाग में एक बिजली कौंधी. वह ठाकुर अभयप्रताप के सामने बैठ कर गिड़गिड़ाने लगा, ‘‘मुझे बचा लीजिए माई बाप, मैं तो मामूली उठाईगीर हूं. मैं ने चोरी जरूर की है माई बाप, पर आप का सब सामान तो मिल गया है हुजूर. थोड़ी सजा दे कर मुझे छोड़ दीजिए साहब.’’

‘‘अबे, तेरी तो ऐसी की तैसी,’’ और सिपाही रामभरोसे ने दूसरा डंडा ठोंका, ‘‘सवाल तेरी चोरी का नहीं है ससुरे, सवाल है तू ने हमारे साहब के घर घुसने की हिम्मत कैसे की?’’

बेचारा चोर फिर कुंकुआने लगा और तेजी से ठाकुर का पैर पकड़ कर बोला, ‘‘साहब, उस रात जब मैं आप के घर घुसा था तब आप ही थे न जो रात में जीने के ऊपर केले के छिलके बिछा रहे थे?’’

‘‘अयं, यह क्या आंयबांय बक रहा है बे. एक ही हफ्ते की मार से दिमाग फेल हो गया है क्या तेरा,’’ सिपाही रामभरोसे ने जूता उस के सिर पर जोर से ठोंका.

लेकिन अभयप्रताप सिंह का सिंहासन तो डोल गया था. फौरन सिपाही रामभरोसे को यह कहते हुए बाहर भेज दिया कि मुझे इस चोर से अकेले में कुछ बात करनी है.

फिर तो चोर ने पूरा खुलासा किया, ‘‘साहब, उस रात जीने पर जब साहब आप 3 जगह झुक कर केले के छिलके रख रहे थे तो यह खुशकिस्मत इनसान वहीं परदे के पीछे छिपा था. बाद में हवालात में ही मुझे पता चला कि साहब की सास की मौत केले के छिलके पर फिसल कर हुई थी.’’

अब क्या था. पासा पलट चुका था. साहब ने आननफानन में आदेश दे दिया कि चोरी का सामान तो मिल ही चुका है, फिर बेचारे गरीब चोर को क्यों सजा हो. पूरा का पूरा महकमा इस अजीब फैसले से सकते में आ गया. लेकिन जब साहब ने खुद ही उस का गुनाह माफ कर दिया तो फिर केस ही नहीं बनता न.

वह दिन और आज का दिन. महीने की पहली तारीख को वह चोर अपनी मूंछ पर ताव देता हुआ  ठाकुर अभयप्रताप के घर के दरवाजे के सामने खड़ा उन का इंतजार करता है. उस के हाथ में 2-4 केले रहते हैं. इंतजार करतेकरते वह पट्ठा सामने की पुलिया पर बैठ कर केले खाता जाता है और उस के छिलके पास में जमा करता जाता है. जैसे ही साहब बाहर निकलते हैं वह एक हाथ में केले का छिलका हिलाते हुए दूसरे हाथ से उन्हें सलाम ठोंकता है.

ठाकुर अभयप्रताप इधरउधर नजर दौड़ा कर धीरे से उस के पास जाते हैं और जेब से कुछ रुपए निकाल उस के हाथ पर रख कर झट से गाड़ी में बैठ जाते हैं. गेट पर खड़ा गार्ड और ड्राइवर सब उस चोर की हिमाकत और ठाकुर साहब की दरियादिली देख कर सिर खुजलाते रह जाते हैं. Hindi Story

Story In Hindi: हैप्पीनैस हार्मोन – क्यों दिल से खुश नहीं था दूर्वा

Story In Hindi: कालेज कंपाउंड में चारों दोस्त सुमति को सांत्वना दे रहे थे. अब हो भी कुछ नहीं सकता था. आज अकाउंट्स के प्रैक्टिकल जमा करने का आखिरी दिन था. सुमति को भी यह बात पता थी परंतु बूआ के लड़के की शादी में जाने के कारण उस के दिमाग से यह बात निकल गई. आज छुट्टियों के बाद कालेज आई तो मालूम पड़ा प्रैक्टिकल पूरे 20 नंबर का है.

‘‘गए 20 नंबर पानी में,’’ सुरक्षा दुखी स्वर में बोली.

‘‘20 नंबर बड़ी अहमियत रखते हैं,’’ रोनी सूरत बनाते हुए सुमति बोली.’’

‘‘मैडम बड़ी स्ट्रिक्ट हैं. आज प्रैक्टिकल सबमिट नहीं किया तो फिर लेंगी नहीं,’’ राजन बोला.

‘‘प्रैक्टिकल में जीरो मिलना मतलब कैंपस इंटरव्यू में भी अवसर खोना,’’ सुयश ने अपना पक्ष रखा.

‘‘इस का असर तो कैरियर पर पड़ेगा,’’ धीरज बोला.

‘‘लो, दूर्वा भी आ गया,’’ दूर से आते हुए देख सुयश बोला. ‘‘मतलब हम 6 में से 5 के प्रैक्टिकल कंपलीट हैं.’’

‘‘यारो, हंसो. रोनी सूरत क्यों बना रखी,’’ दूर्वा जोर से गाता हुआ गु्रप के बीच आ कर खड़ा हो गया.

‘‘क्या मस्तीमजाक करते रहते हो हर टाइम,’’ सुमति चिढ़ कर बोली, ’’यहां मेरी जान पर बनी हुई और तुम्हें मजाक सूझ रहा है.’’

‘‘क्या हुआ?’’ दूर्वा लापरवाही वाले अंदाज में बोला.

पूरा माजरा सुनने के बाद दूर्वा बोला, ‘‘अगर हम सभी आज प्रैक्टिकल जमा न करें तो.’’

‘‘तो क्या? अभी सिर्फ सुमति का नुकसान हो रहा है. फिर हम सब को जीरो नंबर मिलेंगे,’’ सुरक्षा बोली.

‘‘नहीं, मेरा मतलब है पूरी क्लास,’’ दूर्वा बोला.

‘‘मगर क्लास ऐसा करेगी क्यों?’’ सुमति आश्चर्य से बोली.

‘‘अगर मैं ऐसा करवा दूं तो मुझे क्या दोगी?’’ दूर्वा ने प्रश्न किया.

‘‘जो तुम बोलोगे, मैं दे दूंगी पर आज का यह प्रोग्राम डिले करवा दो,’’ सुमति बोली.

‘‘ठीक है अगले 3 दिनों तक बड़ा पिज्जा पार्सल करवा देना,’’ दूर्वा ने शर्त रखी.

‘‘मुझे मंजूर है. बस, तुम प्रैक्टिकल सबमिशन का प्रोग्राम रुकवा दो,’’ सुमति अनुरोध करती हुई बोली.

‘‘देखो, 2 ही कारण से प्रैक्टिकल नहीं लिया जा सकता, या तो कोईर् बड़ा नेता अचानक मर जाए या फिर क्लास में किसी का ऐक्सिडैंट हो जाए.’’

‘‘आज क्लास में एक ऐक्सिडैंट होगा,’’ दूर्वा बोला.

‘‘कैसे, कुछ उलटासीधा करोगे क्या?’’ सुमति ने पूछा.

‘‘देखो, कुल 40 मिनट का पीरियड है. अटेडैंस लेने में 5 मिनट निकल जाएंगे. 5 मिनट मैडम बताने और समझाने में निकाल देगी. बचे 30 मिनट. जैसे ही मैडम बोलेगी प्रैक्टिकल जमा कीजिए, सब से पहले मैं उठूंगा और टेबल पर कौपी रखने से पहले चक्कर खा कर गिर पड़ूंगा. मेरे गिरते ही तुम पांचों मुझे घेर लेना और जोरजोर से चिल्लाना, बेहोश हो गया, बेहोश हो गया. जल्दी पानी लाओ, और पानी लेने के लिए तुम में से ही कोई जाएगा जो कम से कम 15 मिनट बाद ही आएगा. जब पानी आए तब पानी के हलकेहलके छींटे मारना. यदि समय बचा तो मैं होश में आ कर कमजोरी की ऐक्टिंग कर के पीरियड निकाल दूंगा,’’ दूर्वा ने अपनी योजना समझाई.

‘‘इस में रिस्क है दूर्वा,’’ सुरक्षा ने आशंका जाहिर की.

‘‘कोई बात नहीं, दोस्तों के लिए जान हाजिर है. लेकिन सुमति, अपना वादा याद रखना,’’ दूर्वा ने सुमति की तरफ देख कर कहा. दूर्वा का ऐक्टिंग प्रोग्राम सफल रहा, बल्कि मैडम तो घबरा कर प्रिंसिपल के पास चली गईर् और एंबुलैंस बुलवा ली. आधे घंटे बाद एंबुलैंस आई और दूर्वा को अस्पताल ले गई. डाक्टर ने जांच की तो दूर्वा को स्वस्थ पाया.

डाक्टरों ने कहा कि कभीकभी थकान और नींद पूरी नहीं होने की वजह से ऐसा हो जाता है. चिंता की कोई बात नहीं.

‘‘थैंक्यू दूर्वा, तुम्हारे कारण मुझे प्रैक्टिकल में नंबर मिल जाएंगे,’’ सुमति कृतज्ञताभरे शब्दों में बोली.

‘‘नो इमोशनल ब्लैकमेलिंग. अपना वादा पूरा करो. पिज्जा वह भी लार्ज साइज,’’ दूर्वा अधिकारपूर्वक बोला.

‘‘अरे, पैक क्यों करवा रहे हो? यहीं बैठ कर खा लेते हैं न,’’ सुयश बोला.

‘‘नहीं, मैं तुम्हारे साथ नहीं खा सकता,’’ दूर्वा सपाट शब्दों में बोला.

‘‘क्यों? क्यों नहीं खा सकते?’’ सुयश ने फिर पूछा.

‘‘क्योंकि मेरी नाक में दांत हैं और मैं नाक से खाता हूं,’’ दूर्वा मजाक करता हुआ बोला.

‘‘चायसमोसे तो तुम हमारे साथ खा लेते हो,’’ सुरक्षा बोली.

‘‘यह लो तुम्हारा पिज्जा,’’ सुमति पैकेट बढ़ाती हुई बोली.

‘‘कल और परसों का भी तैयार रखना,’’ पिज्जा बौक्स लेते हुए दूर्वा ने कहा.

परीक्षा के रिजल्ट में सुमति ने अपनी पिछली स्थिति से बेहतर प्रदर्शन किया था और इस का पूरा श्रेय वह दूर्वा को दे रही थी.

‘‘अरे, मेरे देश की रोती प्रजा. आज क्या माजरा है, तुम लोगों के चेहरे खींचे हुए रबर की तरह क्यों लटके हुए हैं?’’ धीरज के टकले सिर पर धीमे से चपत लगाता हुआ दूर्वा बोला.

‘‘फिर मजाक दूर्वा. कभी तो सीरियस रहा करो. अभी राजन के पापा का फोन आया था. उस के चाचा का सीरियय ऐक्सिडैंट हो गया है और उन्हें तुरंत ब्लड देना है. डाक्टर्स ब्लडबैंक की जगह किसी स्वस्थ व्यक्ति के ताजे ब्लड का इंतजाम करने को बोल रहे हैं. उस के पापा कोशिश कर रहे हैं, पर टाइम तो लगेगा ही,’’ सुरक्षा ने बताया.

‘‘कौन सा ब्लड गु्रप चाहिए?’’ दूर्वा ने पूछा.

‘‘ओ नैगेटिव,’’ राजन बोला.

‘‘लो, इसे कहते हैं बगल में छोरा और गांव में ढिंढोरा. हम हैं न इस रेयर गु्रप के मालिक,’’ दूर्वा बोला.

‘‘तू सच बोल रहा है?’’ सुरक्षा ने पूछा.

‘‘हां,’’ दूर्वा हंसता हुआ बोला.

दूर्वा का ब्लड राजन के चाचा से मेल खा गया और राजन के चाचा की जान बच गई.

‘‘दूर्वा, तुम सचमुच कमाल के लड़के हो, हंसीहंसी में ही समस्या का समाधान कर देते हो,’’ राजन कृतज्ञ भाव से बोला.

‘‘तुम हम सब में खुशी का संचार करते हो. हम सब के लिए आशाजनक खुशी का माहौल बनाए रखते हो. जैसे बौडी की ग्रोथ के लिए हार्मोंस जरूरी होते हैं, उसी तरह तुम इस गु्रप के लिए जरूरी हो और तुम्हारा नाम है हैप्पीनैस हार्मोन,’’ सुमति बोली.

‘‘अरे, मक्खन लगाना छोड़ो और शर्त के मुताबिक 3 दिनों के लिए पिज्जा पार्सल करवा दो, बड़ा वाला,’’ दूर्वा अपने चिरपरिचित अंदाज में बेतक्कलुफी से बोला.

‘‘यार, तू भी कमाल करता है. अगर सब के साथ बैठ कर खाएगा तो मजा दोगुना हो जाएगा,’’ राजन बोला.

‘‘मैं पहले हाथमुंह धोता हूं. फिर पिज्जा खाता हूं, ‘‘दूर्वा अपने पुराने अंदाज में बोला. यारदोस्तों के हंसीमंजाक में यों ही दिन बीत रहे थे. पर कुछ दिनों से दूर्वा कालेज नहीं आ रहा था.

‘‘यार, अब फाइनल एग्जाम्स को सिर्फ एक महीना बचा है और ऐसे क्रूशियल पीरियड में हैप्पीनैस हार्मोन नहीं आ रहा है. क्या बात है? कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं?’’ सुरक्षा बोली.

‘‘हां, कल मैं ने फोन किया था, लेकिन कुछ ठीक से बात नहीं हो पा रही थी,’’ राजन ने बताया.

‘‘हमें उस के घर चलना चाहिए. शायद किसी मदद की जरूरत हो उसे,’’ सुमति बोली.

‘‘घर कहां है उस का? देखा है?’’ सुरक्षा ने पूछा.

‘‘देखा तो नहीं, परंतु निचली बस्ती में कहीं रहता है. वहीं जा कर पूछना पड़ेगा,’’ सुयश बोला.

‘‘ठीक है. चलो, हम सब चलते हैं,’’ धीरज बोला.

‘‘क्यों बेटा, यहां कोई दूर्वा कुमार रहता है क्या?’’ निचली बस्ती में प्रवेश करते ही सामने खेल रहे एक 12-13 वर्षीय बालक से सुयश ने पूछा.

‘‘कौन दूर्वा कुमार? वही भैया जो हमेशा जींस और नीली चप्पल पहने रहते हैं?’’ लड़के ने पूछा.

‘‘हां, हां, वही,’’ सुयश बोला.

‘‘सामने संकरी गली में पहला कमरा है उन का,’’ लड़के ने पता बताया.

गली में घुसते ही सामने एक साफसुथरा कमरा दिखाई दिया, जिस में एक पलंग रखा हुआ था और उस पर एक महिला लेटी हुईर् थी. दूर्वा महिला को पंखा झल रहा था.

‘‘दूर्वा,’’ जैसे ही सुयश ने आवाज दी, दूर्वा हड़बड़ा कर उठा.

‘‘अरे, तुम लोग? तुम लोग यहां कैसे? सब ठीक तो है न? आओ, आओ,’’ दूर्वा सभी को आश्चर्य से देखते हुए बोला.

‘‘तुम एक हफ्ते से कालेज नहीं आ रहे हो, तो देखने आए हैं, क्या कारण है?’’ सुमति बोली.

‘‘मम्मी की तबीयत ठीक नहीं है, इसी कारण नहीं आ पाया,’’ दूर्वा कुछ उदास हो कर बोला.

‘‘डाक्टर को दिखाया, क्या कहा?’’ सुमति ने पूछा.

‘‘नहीं दिखाया और दिखा भी नहीं पाऊंगा. कालेज की फीस भरने व घर का किराया देने के बाद पैसे बचे ही नहीं. मैडिकल स्टोर वाले से पूछ कर दवा दे दी है. उस दवा से या खुद की इच्छाशक्ति से धीरेधीरे ठीक हो रही हैं,’’ दूर्वा की आंखों में आंसू और आवाज में अजीब सा भारीपन था.

‘‘अरे, हमें तो कहा होता, हम कोईर् पराए हैं क्या?’’ धीरज ने कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.

अब तक रोक कर रखी गई रुलाई दूर्वा के गले से फूट पड़ी. वह बच्चों की तरह रोने लगा. कुछ देर जीभर कर रोने के बाद बोला, ‘‘पिताजी का बचपन में ही देहांत हो गया था. तभी से दिनरात लोगों के कपड़े सीसी कर मां ने मुझे पढ़ाया है. अब स्थिति यह है कि मां 5-7 मिनट से अधिक बैठ नहीं पातीं. महल्ले में सभी को पता है. सभी मां की बहुत इज्जत करते हैं. इसी कारण महल्ले के बड़े किराने वाले ने मुझे दोपहर 2 से 6 बजे तक की नौकरी पर रख लिया है.

मैं उन का दिनभर का अकाउंट्स व्यवस्थित कर देता हूं. इस से उन के सीए को भी आसानी हो जाती है. 5 हजार रुपए महीना देते हैं. फीस के लिए भी समय पर पैसे दे देते हैं. अकसर वे मुझे बिस्कुट के पैकेट या इसी तरह की कोई खाने की चीज यह कहते हुए दे देते हैं कि जल्दी ही एक्सपायर्ड होने वाली है, खापी कर खत्म करो. जबकि, मैं जानता हूं कि यदि वे चाहें तो सीधे कंपनी से भी बदलवा सकते हैं.’’

‘‘कभी हमें भी तो हिंट्स करते, कुछ मदद हम भी कर देते. तुम हमेशा हंसीमजाक करते रहते हो. कभी परिवार के बारे में कुछ बताया नहीं,’’ सुमति बोली.

‘‘समान ध्रुव वाले चुंबक प्रतिकर्षण का काम करते हैं. मैं तुम्हें अपनी परेशानियों के बारे में बताने से डरता था. मुझे लगता था शायद मैं तुम को खो दूंगा. यही कारण है कि मैं हमेशा हंसता रहता था. हंसते रहो तो समस्या का समाधान भी शीघ्र हो जाता है,’’ दूर्वा बोला.

‘‘जो हुआ उसे छोड़ो, मेरे पापा डाक्टर हैं, अभी उन्हें बुला कर दिखा देते हैं,’’ सुमति बोली.

‘‘पर मेरे पास दवा के लिए पैसे नहीं हैं,’’ दूर्वा कातर स्वर में बोला.

‘‘मेरे पापा मेरे सभी दोस्तों को बायनेम पहचानते हैं. उन्होंने ही तुम्हें हैप्पीनैस हार्मोन का नाम दिया है. उन्हें पूरी स्थिति बता कर बुलवा लेते हैं. सैंपल वाली दवा होगी तो वह भी लेते आएंगे,’’ सुमति बोली.

कुछ ही देर में सुमति के पापा आ गए. अपने पास से दवा भी दे गए. चिंता वाली कोई बात नहीं थी. जातेजाते बोले, ‘‘कमाल का जज्बा है दूर्वा तुम में, कीप इट अप. अपना हैप्पीनैस हार्मोन कभी कम मत होने देना. और हो सके तो तुम पांचों भी इस से सबक लेना. खुशियां देने से बौंडिंग बढ़ती है, समस्याओं के समाधान के नए रास्ते खुलते हैं.’’

दूर्वा की आंखों में जिंदगी की हर कठिनाई को झेलने की नई उम्मीद, जोश, आशा साफ झलक रही थी. Story In Hindi

Hindi Story: जब मैं छोटा था – केशव अपने बेटे से नाराज क्यों था

Hindi Story: केशव ने घूर कर अपने बेटे अंगद को देखा. वह सहम गया और सोचने लगा कि उस ने ऐसा क्या कह दिया जो उस के पिता को खल गया. अगर उसे कुछ चाहिए तो वह अपने पिता से नहीं मांगेगा तो और किस से मांगेगा. रानी बेटे की बात समझती है पर वह केवल उस की सिफारिश ही तो कर सकती है. निर्णय तो इस परिवार में केशव ही लेता है.

रानी ने मुसकरा कर केशव को हलकी झिड़की दी, ‘‘अब घूरना बंद करो और मुंह से कुछ बोलो.’’

केशव ने रानी को मुंह सिकोड़ कर देखा और फिर सांस छोड़ते हुए कहा, ‘‘क्या समय आ गया है.’’

‘‘क्यों, क्या तुम ने अपने पिता से कभी कुछ नहीं मांगा?’’ रानी ने हंस कर कहा, ‘‘बेकार में समय को दोष क्यों देते हो?’’

‘‘मांगा?’’ केशव ने तैश खा कर कहा, ‘‘मांगना तो दूर हमारा तो उन के सामने मुंह भी नहीं खुलता था. इतनी इज्जत करते थे उन की.’’

‘‘इज्जत करते थे या डरते थे?’’ रानी ने व्यंग्य से कहा.

केशव ने लापरवाही का नाटक किया, ‘‘एक ही बात है. अब हमारी औलाद हम से डरती कहां है?’’

अवसर का लाभ उठाते हुए अंगद ने शरारत से पूछा, ‘‘पिताजी, क्या आप के समय में आजकल की तरह जन्मदिन मनाया जाता था?’’

केशव ने व्यंग्य से हंस कर कहा, ‘‘जनाब, ऐसी फुजूलखर्ची के बारे में सोचना ही गुनाह था. ये तो आजकल के चोंचले हैं.’’

‘‘फिर भी पिताजी,’’ अंगद ने कहा, ‘‘कभी न कभी तो आप को जन्मदिन पर कुछ तो विशेष मिला होगा.’’

रानी ने हंसते हुए कहा, ‘‘मिला था, एक पाजामा. क्यों, ठीक है न?’’

केशव भी हंसा, ‘‘ठीक है, तुम्हें तो मेरा राज मालूम है.’’

‘‘पाजामा?’’ अंगद ने चकित हो कर पूछा, ‘‘क्या यह भी कोई उपहार है?’’

‘‘बहुत बड़ा उपहार था, बेटे,’’ केशव ने यादों में खोते हुए कहा, ‘‘पिताजी से तो बात करने का सवाल ही नहीं था. जब मैं ने मां से हठ की तो उन्होंने अपने हाथों से नया पाजामा सिल कर दिया था. मैं बहुत खुश था. रानी, तुम भी अंगद को एक पाजामा सिल

कर दो, पर…पर तुम्हें तो सिलना आता ही नहीं.’’

‘‘सारे दरजी मर गए क्या?’’ रानी ने चिढ़ कर कहा.

‘‘पाजामावाजामा नहीं,’’ अंगद ने जोर दे कर कहा, ‘‘अगर कुछ देना है तो मोपेड दीजिए. मेरे सारे दोस्तों के पास है. सब मोपेड पर ही स्कूल आते हैं. बस, एक मैं ही हूं, खटारा साइकिल वाला.’’

के शव ने तनिक नाराजगी से कहा, ‘‘साइकिल की इज्जत करना सीखो. उस ने 20 साल मेरी सेवा की है.’’

‘‘दहेज में जो मिली थी,’’ रानी ने टांग खींची.

‘‘क्या करता,’’ केशव चिढ़ कर बोला, ‘‘अगर स्कूटर मांगता तो तुम्हारे पिताजी को घर बेचना पड़ जाता.’’

‘‘अरे, जाओ भी,’’ रानी ने चोट खाए स्वर में कहा, ‘‘लेने वाले की हैसियत भी देखी जाती है.’’

अंगद ने महसूस किया कि बातों का रुख बदल रहा है इसीलिए बीच में पड़ कर बोला, ‘‘आप लोग तो

फिर लड़ने लगे. मेरे लिए मोपेड लेंगे या नहीं?’’

‘‘बरखुरदार,’’ केशव ने फिर से घूरते हुए कहा, ‘‘जब हम तुम्हारे बराबर थे तो पैदल स्कूल जाते थे. स्कूल भी कोई पास नहीं था. पूरे 3 मील दूर था. उन दिनों घर में बिजली भी नहीं थी इसलिए सड़क के किनारे लैंपपोस्ट के नीचे बैठ कर पढ़ते थे. जेबखर्च के पैसे भी नहीं मिलते थे. दिन भर कुछ नहीं खाते थे. घर आ कर 5 बजे तक रात का खाना निबट जाता था. समझे जनाब? आप मोपेड की बात करते हैं.’’

रानी इस भाषण को कई बार सुनसुन कर उकता चुकी थी इसलिए ताना मार कर बोली, ‘‘तो यह है आप की सफलता का रहस्य. देखो बेटे, ऐसा करोगे तो पिताजी की तरह एक दिन किसी कारखाने के महाप्रबंधक बन जाओगे.’’

अंगद मूर्खों की तरह मांबाप को देख रहा था. उस के मन में विद्रोह की आग सुलग रही थी. बड़ी बहन मानिनी जब भी कुछ मांगती थी तो उसे तुरंत मिल जाता था. एक वही है इस घर में दलित वर्ग का शोषित प्राणी.

नाश्ता समाप्त होने पर केशव कार्यालय जाने की तैयारी में लग गया और नौकरानी के आ जाने से रानी घर की सफाई कराने में व्यस्त हो गई. अंगद कब स्कूल चला गया किसी को पता ही नहीं चला.

कार निकालते समय केशव ने रोज के मुकाबले कुछ फर्क महसूस किया, पर समझ नहीं पाया. बहुत दूर निकल जाने पर उसे ध्यान आया कि आज अंगद की साइकिल अपनी जगह पर ही खड़ी थी. वैसे अकसर साइकिल खराब होने पर अंगद साइकिल घर छोड़ कर बस से चला जाता था.

घर का काम निबट जाने के बाद रानी ने देखा कि अंगद का लंच बाक्स मेज पर ही पड़ा था. वैसे आमतौर पर वह लंच बाक्स ले जाना भूलता नहीं है क्योंकि रानी हमेशा बेटे का मनपसंद खाना ही रखती थी. खैर, कोई बात नहीं, अंगद की जेब में इतने रुपए तो होते ही हैं कि वह कुछ ले कर खा ले.

शाम को रानी को च्ंिता हुई क्योंकि अंगद हमेशा 3 बजे तक घर आ जाता था, पर आज 5 बज रहे थे. केशव के फोन से वह जान चुकी थी कि आज अंगद साइकिल भी नहीं ले गया था, पर बस से भी इतनी देर नहीं लगती. उस वक्त 6 बज रहे थे जब अंगद ने घर में प्रवेश किया. उस का चेहरा लाल हो रहा था और जूते धूलधूसरित हो गए थे. थकान के लक्षण भी स्पष्ट थे.

‘‘इतनी देर कहां लगा दी?’’ रानी ने बस्ता संभालते हुए पूछा.

‘‘बस, हो गई देर, मां,’’ अंगद ने टालते हुए कहा, ‘‘जल्दी से खाना दो. बहुत भूख लगी है.’’

‘‘खाना क्यों नहीं ले गया?’’ रानी ने शिकायत की.

‘‘भूल गया था,’’ अंगद का झूठ पता चल रहा था.

‘‘भूल गया या ले नहीं गया?’’ रानी ने तनिक क्रोध से पूछा.

‘‘कहा न, भूल गया,’’ अंगद चिढ़ कर बोला.

रानी ने अधिक जोर नहीं दिया. बोली, ‘‘जा, जल्दी से कपड़े बदल और हाथमुंह धो कर आ. आलू के परांठे और गाजर का हलवा बना है.’’

अंगद के चेहरे पर झलकती प्रसन्नता से रानी को संतोष हुआ. उसे लगा कि वह वाकई बहुत भूखा है. अंगद के आने से पहले ही उस ने खाना मेज पर लगा दिया था.

अंगद ने भरपेट खाया. कुछ देर तक टीवी देखा और फिर पढ़ाई करने अपने कमरे में चला गया.

8 बजे केशव कार्यालय से आया.

आराम से बैठने के बाद केशव ने रानी से पूछा, ‘‘बच्चे कहां हैं? बहुत शांति है घर में.’’

‘‘मन्नू तो शालू के यहां गई है,’’ रानी ने सामने बैठते हुए कहा, ‘‘कोई पार्टी है. देर से आएगी.’’

‘‘अकेली आएगी क्या?’’ केशव ने चिंता से पूछा.

‘‘नहीं,’’ रानी ने उत्तर दिया, ‘‘शालू का भाई छोड़ने आएगा.’’

‘‘उफ, ये बच्चे,’’ केशव ने अप्रसन्नता से कहा, ‘‘इतनी आजादी भी ठीक नहीं. जब मैं छोटा था तो बहन को तो छोड़ो, मुझे भी देर से आने नहीं दिया जाता था. आगे से ध्यान रखना. वैसे मन्नू कब तक आएगी?’’

‘‘अब क्यों च्ंिता करते हो,’’ रानी ने कहा, पर केशव की मुद्रा देख कर बोली, ‘‘ठीक है, फोन कर के पूछ लूंगी.’’

‘‘और साहबजादे कहां हैं?’’ केशव ने पूछा.

‘‘पढ़ रहा है,’’ रानी ने उत्तर दिया.

‘‘पर मुझे तो कोई आवाज नहीं सुनाई दे रही,’’ केशव ने पुकारा, ‘‘अंगद…अंगद?’’

‘‘ओ हो, पढ़ने दो न,’’ रानी ने झिड़का, ‘‘कल परीक्षा है उस की.’’

‘‘तो जवाब नहीं देगा क्या?’’ केशव ने क्रोध से पुकारा, ‘‘अंगद?’’

अंगद का उत्तर नहीं आया. केशव अब अधिक सब्र नहीं कर सका. उठ कर अंगद के कमरे की ओर गया और झटके से अंदर घुसा.

‘‘यहां तो है नहीं,’’ केशव ने क्रोध से कहा.

‘‘नहीं है,’’ रानी को विश्वास नहीं हुआ, ‘‘थोड़ी देर पहले ही तो मैं उस के मांगने पर चाय देने गई थी.’’

केशव ने व्यंग्य से कहा, ‘‘हां, चाय का प्याला तो है, पर जनाब नहीं हैं. गया कहां?’’

‘‘मुझ से तो कुछ कह कर नहीं गया,’’ रानी ने च्ंिता से कहा, ‘‘मन्नू के कमरे में देखो.’’

‘‘मन्नू के कमरे में भी होता तो जवाब देता न,’’ केशव ने क्रोध से कहा, ‘‘बहरा तो नहीं है.’’

रानी ने तसल्ली के लिए मन्नू के कमरे में  देखा और बोली, ‘‘पता नहीं कहां गया. शायद अखिल के यहां चला गया होगा. उस के साथ ही पढ़ता है न.’’

‘‘कह कर तो जाना था,’’ केशव भी अब च्ंितित था, ‘‘अखिल का घर कहां है?’’

‘‘वह राममनोहरजी का लड़का है,’’ रानी ने कहा, ‘‘309 नंबर में रहता है.’’

‘‘ओह,’’ केशव ने कहा, ‘‘उन के यहां तो फोन भी नहीं है.’’

‘‘थोड़ी देर देख लो,’’ रानी ने अपनी चिंता छिपाते हुए कहा, ‘‘आ जाएगा.’’

‘‘और मन्नू…’’

केशव का वाक्य समाप्त होेने से पहले ही रानी ने चिढ़ कर कहा, ‘‘अब मन्नू के पीछे पड़ गए. कभी तो चैन से बैठा करो.’’

झिड़की खा कर केशव कुरसी पर बैठ कर पत्रिका पढ़ने का नाटक करने लगा.

‘‘खाना लगाऊं क्या?’’ रानी ने कुछ देर बाद पूछा.

‘‘नहीं,’’ केशव ने कहा, ‘‘बच्चों को आने दो.’’

‘‘मन्नू तो खा कर आएगी,’’ रानी ने सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘अंगद बाद में खा लेगा. स्कूल से आ कर कुछ ज्यादा ही खा लिया था.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘2 की जगह पूरे 4 परांठे खा लिए,’’ रानी ने मुसकरा कर कहा, ‘‘उसे आलू के परांठे अच्छे लगते हैं न.’’

कुछ और समय बीतने पर केशव उठ खड़ा हुआ, ‘‘मैं राममनोहरजी के घर हो कर आता हूं.’’

उसी समय घंटी बजी और मानिनी ने प्रवेश किया. वह बहुत प्रसन्न थी.

‘‘शालू की पार्टी में बहुत मजा आया,’’ मानिनी ने हंसते हुए पूछा, ‘‘यह अंगद सड़क के किनारे क्यों बैठा है? क्या आप ने सजा दी है?’’

‘‘सड़क के किनारे?’’ केशव और रानी ने एकसाथ पूछा, ‘‘कहां?’’

‘‘साधना स्टोर के सामने,’’ मानिनी ने उत्तर दिया, ‘‘क्या मैं उसे बुला कर ले आऊं?’’

इस से पहले कि रानी कुछ कहती केशव ने गंभीरता से कहा, ‘‘नहीं, रहने दो. शायद पढ़ रहा होगा.’’

‘‘क्या घर में बिजली नहीं है?’’ मानिनी ने पूछा, पर फिर ध्यान आया कि बिजली तो है.

रानी ने खाना लगा दिया. केशव हाथ धो कर बैठने ही वाला था कि अंगद ने आहिस्ताआहिस्ता घर में प्रवेश किया.

केशव ने घूरते हुए पूछा, ‘‘इतनी दूर पढ़ने क्यों गए थे?’’

‘‘क्योंकि पास में कोई लैंपपोस्ट नहीं था,’’ अंगद ने मासूमियत से कहा.

केशव को हंसी भी आई और क्रोध भी. रानी भी हंस कर रह गई.

‘‘चलो, खाने के लिए बैठो,’’ रानी ने कहा.

‘‘स्कूल से आते ही खा तो लिया था,’’ अंगद ने कहा और अपने कमरे में चला गया.

केशव और रानी को अंगद का व्यवहार अब समझ में आ रहा था. लगता था कि नाटक की शुरुआत है.

मानिनी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था. उस ने पूछा, ‘‘बात क्या है? आज अंगद के तेवर क्यों बिगड़े हुए हैं?’’

‘‘कुछ नहीं,’’ रानी हंसी, ‘‘शीत- युद्ध है.’’

‘‘क्यों?’’ मानिनी ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘मोपेड चाहिए जनाब को,’’ केशव ने कहा, ‘‘हमारे जमाने में…’’

‘‘ओ हो, पिताजी,’’ मानिनी ने चिढ़ कर कहा, ‘‘अब मैं समझ गई. न आप कभी बदलेंगे, न आप का जमाना. ठीक है, मैं चंदा इकट्ठा करती हूं.’’

एक मानिनी ही थी जो केशव से बेझिझक हो कर बात कर सकती थी.

केशव ने उसे घूर कर देखा और फिर उठ कर चला गया.

सुबह की चाय हो चुकी थी. जब नाश्ता लगा तो अंगद जा चुका था.

उस की साइकिल पर धूल जम गई थी और हवा भी निकल गई थी.

शाम को थकामांदा अंगद 6 बजे आया.

‘‘क्यों, बस नहीं मिली क्या?’’ रानी ने क्रोध से पूछा.

‘‘बसें तो आतीजाती रहती हैं.’’

‘‘तो फिर?’’ रानी ने पूछा.

‘‘तो फिर क्या? मुझे भूख लगी है. खाना तो मिलेगा न?’’

रानी को अब क्रोध नहीं आया. जानती थी कि वह भूखा होगा. उस के लिए खीर, पूडि़यां और गोभी की

सब्जी बनाई थी. अंगद ने प्रसन्न हो कर भरपेट खाया और कमरे में चला गया.

केशव जब आया तब अंगद घर में नहीं था. आते वक्त केशव ने लैंपपोस्ट के नीचे निगाह डाली थी. अंगद धुंधली रोशनी में आंखें गड़ाए पढ़ रहा था.

3 दिन तक यह नाटक चलता रहा.

आज अंगद का जन्मदिन था. हर साल इस दिन रौनक छा जाती थी. पार्टी में आने वाले मित्रों की सूची बनती थी. लजीज व्यंजन बनाए जाते थे. मानिनी कुछ दिन पहले ही से उसे छेड़ने लगती थी और इस छेड़छाड़ में लड़ाई भी हो जाती थी. वैसे अंगद को इस बात का बहुत मलाल रहता था कि मानिनी का जन्मदिन धूमधाम से मनाया जाता है.

नींद खुलते ही अंगद की नजर पास पड़े लिफाफे पर पड़ी. लिफाफे को उठाते ही उस में से एक चाबी गिरी. चाबी से लटका एक छोटा सा कार्ड था. उस पर लिखा था, ‘जन्मदिन पर छोटा सा उपहार.’

अंगद की आंखों में चमक आ गई. यह तो मोपेड की चाबी थी. आधी रात को वह एक चिट्ठी खाने की मेज पर छोड़ कर आया जिस में लिखा था :

पूज्य पिताजी और मां, क्या आप मुझे क्षमा करेंगे? मोपेड के लिए हठ करना मेरी भूल थी. मुझे सिवा आप के आशीर्वाद और प्यार के कुछ नहीं चाहिए.

आप का पुत्र अंगद.

जब अंगद नीचे पहुंचा तो पत्र मां के हाथ में था और वह पढ़ कर सुना रही थीं. केशव और मानिनी हंस रहे थे.

‘‘पिताजी, आप ने भी जल्दी कर दी. बेकार में मोपेड की चपत पड़ी,’’ मानिनी हंस कर कह रही थी.

अंगद सिर झुकाए शर्मिंदा सा खड़ा था.

‘‘तो आप को मोपेड नहीं चाहिए,’’ केशव ने नकली गंभीरता से पूछा.

‘‘नहीं,’’ अंगद ने दृढ़ता से उत्तर दिया.

‘‘क्यों?’’ केशव ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘क्योंकि,’’ अंगद ने गंभीरता से शरारती अंदाज में कहा, ‘‘अब मुझे स्कूटर चाहिए.’’

‘‘क्या?’’ केशव ने मारने के अंदाज में हाथ उठाते हुए पूछा, ‘‘क्या कहा?’’

मानिनी ने बीच में आते हुए कहा, ‘‘पिताजी, छोडि़ए भी. हमारा अंगद अब छोटा नहीं है.’’

‘‘पर जब मैं छोटा था…’’

होहल्ले में केशव अपना वाक्य पूरा न कर सका. Hindi Story

Story In Hindi: कौन है वो – क्यों किसी को अपने घर में नही आने देती थी सुधा

Story In Hindi: जैसे ही डोरबैल बजी तो अधखुले दरवाजे में से किसी ने अंदर से ही दबे स्वर में पूछा, ‘‘जी कहिए?’’

रितिका की पैनी नजर अधखुले दरवाजे में से अंदर तक झांक रही थी. शायद कुछ तलाश करने की कोशिश कर रही थी, किसी के अंदर होने की आहट ले रही थी. जब उस ने देखा पड़ोसिन तो अंदर आने के लिए आग्रह ही नहीं कर रही तो बात बनाते हुए बोली, ‘‘आज कुछ बुखार जैसा महसूस हो रहा है. क्या आप के पास थर्मामीटर है? मेरे पास है पर उस की बैटरी लो है.’’

जी अभी लाती हूं कह कर दरवाजा बंद कर सुधा अंदर गई और फिर आधे से खुले दरवाजे से बाहर झांक कर उस ने थर्मामीटर अपनी पड़ोसिन रितिका के हाथ में थमा दिया.

रितिका चाह कर भी उस के घर की टोह नहीं ले पाई. घर जाते ही उस ने अपनी सहेली को फोन किया और रस ले ले कर बताने लगी कि कुछ तो जरूर है जो सुधा हम से छिपा रही है. अंदर आने को भी नहीं कहती.

अपार्टमैंट में यह अजब सा तरीका था. महिलाएं अकसर अकेले में एकदूसरे के घर जातीं लेकिन मेजबान महिला से कह देतीं कि वह किसी को बताए नहीं कि वह उस के घर आई थी वरना लोग बहुत लड़ातेभिड़ाते हैं.

कई दिन तो यह समझ ही नहीं आया कि आखिर वे ऐसा क्यों करती हैं? सभी एकसाथ मिल कर भी तो दिन व समय निश्चित कर मिल सकती हैं, किट्टी पार्टी भी रख सकती हैं.

अकसर जब वे मिलतीं तो सुधा व उस की बेटी संध्या के बारे में जरूर चर्चा करतीं. उन्हें शक था कि कोई तीसरा जरूर है उन के घर में जिसे वह छिपा रही है.

एक महिला ने बताया ‘‘मेरी कामवाली कह रही थी कि कोई ऐक्सट्रा मेंबर है उस के घर में. पहले खाने के बरतन में 2 प्लेटें होती थीं, अब 3 लेकिन कोई मेहमान नजर नहीं आता. न ही कोई सूटकेस न कोई जूते. पर हां, हर दिन 3 कमरों में से एक कमरा बंद रहता है, जिस की साफसफाई सुधा उस से नहीं करवाती. इसलिए कोई है जरूर.’’

‘‘मुझे भी शक हुआ था एक रात. उस के घर की खिड़की का परदा आधा खुला था. मैं बालकनी में खड़ी थी. मुझे लगा कोई पुरुष है जबकि वहां तो मांबेटी ही रहती हैं.’’

‘‘कैसी बातें करती हो तुम? क्या उन के कोई रिश्तेदार नहीं आ सकते कभी?’’

‘‘तुम सही कहती हो. हमें इस तरह किसी पर शक नहीं करनी चाहिए.’’

‘‘शक तो नहीं करनी चाहिए पर फिर वह घर का दरवाजा आधा ही क्यों खोलती है? किसी को अंदर आने को क्यों नहीं कहती?’’

‘‘अरे, उन की मरजी. कोई स्वभाव से एकाकी भी तो हो सकता है.’’

‘‘तुम बड़ा पक्ष ले रही हो उन का, कहीं तुम्हारी कोई आपसी मिलीभगत तो नहीं?’’ और सब जोर से ठहाका मार कर हंस पड़ीं.

रितिका अपनी कामवाली से खोदखोद कर पूछती, ‘‘कुछ खास है उस घर में. क्यों सारे दिन दरवाजा बंद रखती है यह मैडम?’’

‘‘मुझे क्या पता मैडम, मैं थोड़े ही वहां काम करती हूं,’’ कामवाली कभीकभी खीज कर बोलती.

पर तुम्हें खबर तो होगी, ‘‘जो उधर काम करती है. क्या तुम और वह आपस में बात नहीं करतीं? तुम्हारी सहेली ही तो है वह,’’ रितिका फिर भी पूछती.

रितिका का अजीब हाल था. कभी रात के समय खिड़की से अंदर झांकने की कोशिश करती तो कभी दरवाजे के बाहर से आहट लेने की. मगर सुधा हर वक्त खिड़की के परदे को एक सिरे से दूसरे सिरे तक खींच कर रखती और टीवी का वौल्यूम तेज रहता ताकि किसी की आवाज बाहर तक न सुनाई दे.

घर की घंटी बजी तो रितिका ने देखा ग्रौसरी स्टोर से होम डिलीवरी आई है. उस का सामान दे कर जैसे ही डिलीवरी बौय ने सामने के फ्लैट में सुधा की डोरबेल बजाई रितिका ने पूछा, ‘‘शेविंग क्रीम किस के लिए लाया है?’’

‘‘मैडम ने फोन से और्डर दिया. क्या जाने किस के लिए?’’ उस ने हैरानी से जवाब दिया.

अब तो जैसे रितिका को पक्का सुराग मिल गया था. फटाफट 3-4 घरों में इंटरकौम खड़का दिए, ‘‘अरे, यह सुधा शेविंग क्रीम कब से इस्तेमाल करने लगी?’’

‘‘क्या कह रही हो तुम?’’

‘‘हां, सच कह रही हूं. ग्रौसरी स्टोर से शेविंग क्रीम डिलिवर हुआ है आज फ्लैट नंबर 105 में,’’ जोर से ठहाका लगाते हुए उस ने कहा.

‘‘वाह आज तो खबरी बहुत जबरदस्त खबर लाई है, दूसरी तरफ से आवाज आई.’’

‘‘पर देखो तुम किसी को कहना नहीं. वरना सुधा तक खबर गई तो मेरी खटिया खड़ी कर देगी.’’

लेकिन उस के स्वयं के पेट में कहां बात टिकने वाली थी. जंगल की आग की तरह पूरे अपार्टमैंट में बात फैला दी. अब तो वाचमैन भी आपस में खुसरफुसर करने लगे थे, ‘‘कल मैं ने इंटरकौम किया तो फोन किसी पुरुष ने उठाया. शायद सुधा मैडम घर में नहीं थीं. वहां तो मांबेटी ही रहती हैं. तो यह आदमी कौन है?’’ एक ने कहा.

‘‘तो तूने क्यों इंटरकौम किया 105 में?’’

अरे कूरियर आया था. फिर मैं ने कूरियर डिलिवरी वाले लड़के से भी पूछा तो वह बोला कि ‘‘हां, एक बड़ी मूछों वाले साहब थे घर में.’’

‘‘बौयफ्रैंड होगा मैडम सुधाजी का. आजकल बड़े घरों में लिवइन रिलेशन खूब चलते हैं. अपने पतियों को तो ये छोड़ देती हैं, फिर दूसरे मर्दों को घर में बुलाती हैं. फैशन है आजकल ऐसा,’’ एक ने तपाक से कहा.

अगले दिन जैसे ही सुधा ने ग्रौसरी स्टोर में फोन किया और सामान और्डर किया तो शेविंग ब्लैड सुनते ही उधर से आवाज आई ‘‘मैडम यह तो जैंट्स के लिए होता है. आप क्यों मंगा रही हैं?’’ शायद उस लड़के ने जानबूझ कर यह हरकत की थी.

सुधा घबरा गई पर हिम्मत रखते हुए बोली, ‘‘तुम से मतलब? जो सामान और्डर किया है जल्दी भिजवा दो.’’

पर इतने में कहां शांति होने वाली थी. डिलिवरी बौय अपार्टमैंट में ऐंट्री करते हुए सिक्योरिटी गार्ड्स को सब खबर देते हुए अंदर गया.

शाम को जब सुधा की बेटी संध्या अपार्टमैंट में आई तो वाचमैन उसे कुछ संदेहास्पद निगाहों से देख रहे थे. फिर क्या था वाचमैन से कामवाली बाई और उन से हर घर में फ्लैट नंबर 105 की खबर पहुंच गई थी.

अपार्टमैंट की तथाकथित महिलाओं में यह खबर बढ़चढ़ कर फैल गई. सब एकदूसरे को इंटरकौम कर के या फिर चोरीचुपके घर जा कर मिर्चमसाला लगा कर खबर दे रही थीं और हर खबर देने वाली महिला दूसरी को कहती कि देखो मैं तुम्हें अपनी क्लोज फ्रैंड मानती हूं. इसीलिए तुम्हें बता रही हूं. तुम किसी और को मत बताना. विभीषण का श्राप जो ठहरा महिलाओं को चुप कैसे कर सकती थीं. कानोकान बात बतंगड़ बनती गई. सभी ने अपनीअपनी बुद्घि के घोड़े दौड़ाए. एक ने कहा कि सुधा का प्रेमी है जरूर. अपने पति को तो छोड़ रखा है. बेटी का भी लिहाज नहीं. इस उम्र में भला कोई ऐसी हरकत करता है क्या? तो दूसरी कहने लगी कि एक दिन मेरी कामवाली बता रही थी कि उस की सहेली फ्लैट नंबर 105 में काम करती है. कोई लड़का है घर में जरूर, बेटी का बौयफ्रैंड होगा.

सभी की नजरें फ्लैट नंबर 105 पर टिकी थीं. किसी ने सुधा से आड़ेटेढ़े ढंग से छानबीन करने की कोशिश भी की पर सुधा ने बिजी होने का बहाना किया और वहां से खिसक ली.

अब जब बात चली ही थी तो ठिकाने पर भी पहुंचनी ही थी. इसलिए पहुंच गई सोसायटी के सेक्रैटरी के पास, जो एक महिला थीं. उन्हें भी सुन कर बड़ा ताज्जुब हुआ कि गंभीर और सुलझी हुई सी दिखने वाली सुधा ने अपने घर में किसे छुपा रखा है? न तो कोई दिखाई देता है और न ही कभी खिड़कीदरवाजे खुलते हैं.

कोई आताजाता भी नहीं है. उन्होंने भी सिक्युरिटी हैड को सुधा के घर आनेजाने वालों पर नजर रखने की हिदायत दे दी. ‘‘कोई भी आए तो पूरी ऐंट्री करवाओ और मैडम को इंटरकौम करो. किसी पर कुछ शक हो तो तुरंत औफिस में बताना.’’

वाचमैन को तो जैसे इशारे का इंतजार था. मौका आ भी गया जल्द ही.

एक नई महिला आई फ्लैट नंबर 105 में. देखने में पढ़ीलिखी, टाइट जींस और शौर्टटौप पहन कर, एक हाथ में लैपटौप बैग था, दूसरे में एक छोटा कैबिन साइज सूटकेस. लेकिन जब वह गई तो बैग उस के हाथ में नहीं था. जाहिर था, सुधा के घर छोड़ आई थी. मतलब कुछ सामान देने आई थी.

रात के समय सुधा कुछ कपड़े हैंगर में डाल कर सुखा रही थी वाचमैन ने अपनी पैनी नजर डाली तो देखा हैंगर में कुछ जैंट्स शर्ट्स सूख रहे हैं. तो कामवाली से क्यों नहीं सुखवाए ये कपड़े?

अगले दिन जब सुबह हुई वाचमैन ने फिर देखा शर्ट रस्सी से गायब थे. वाचमैन ने यह खबर झट सेक्रैटरी मैडम तक पहुंचा दी, ‘‘मैडम कोई तो मर्द है इस घर में पर नजर आता नहीं.’’ आप कहें तो हम उन के घर जा कर पूछताछ करें?

‘‘नहीं इस सब की आवश्यकता नहीं,’’ सेक्रैटरी महोदया ने कहा.

अगले ही दिन सोसायटी औफिस में कुछ लोग बातचीत करने आए और वे उस महिला के बारे में पूछताछ करने लगे जो सुधा के घर बैग छोड़ गई थी. औफिस मैनेजर ने वाचमैन से पूछा तो बात खुल गई कि वह महिला सुधा के घर आई थी और 1 घंटे में वापस भी चली गई थी. उन लोगों ने सुधा के बारे में मैनेजर व वाचमैन से जानकारी ली. दोनों ने बहुत बढ़चढ़ कर चटखारे लेले कर सुधा के बारे में बताया और सुधा के घर में किसी पुरुष के छिपे होने का अंदेशा जताया. आज उन्हें ऐसा महसूस हुआ जैसे उन्होंने किसी अवार्ड पाने के लिए काम किया है. उन्होंने उसी समय पुलिस को बुलवाया और सुधा के घर की तलाशी का आदेश जारी कर दिया.

वाचमैन, मैनेजर व पुलिस समेत वे लोग फ्लैट नं. 105 में पहुंच गए. जैसे ही घंटी बजी सुधा ने अधखुले दरवाजे से बाहर झांका. इतने सारे लोगों और पुलिस को साथ देख उस के होश उड़ गए. उस ने झट से दरवाजा बंद करने की कोशिश की पर पुलिस के बोलने पर दरवाजा खोलना पड़ा.

जैसे ही घर की तलाशी ली गई बड़ी मूछों वाले महाशय सामने आए. सुधा बहुत डर गई थी. उस के मुंह से घबराहट के कारण एक शब्द भी नहीं निकला. सामने के फ्लैट में रितिका को जैसे ही कुछ आवाज आई. वह बाहर निकल कर सुधा के घर में ताकझांक करने लगी. वह समझ गई थी आज कुछ तो खास होने वाला है. पुलिस भी है और अपार्टमैंट का सैक्युरिटी हैड व मैनेजर भी. वह झट से अंदर गई और कुछ खास सहेलियों को इंटरकौम पर सूचना दे दी. बाहर जो नजारा देखा उस का पूरा ब्यौरा भी दे दिया.

एक से दूसरे व दूसरे से तीसरे घर में इंटरकौम के मारफत खबर फैली और साथ में यह चर्चा भी कि वह पुरुष सुधा का प्रेमी है या उस की बेटी संध्या का बौयफ्रैंड? फिर भी अपने घर के बंद दरवाजे के आईहोल से वह देखने की कोशिश कर रही थी कि बाहर क्या चल रहा है. थोड़ी ही देर में मूछों वाले साहब पुलिस की गिरफ्त में थे और न के साथ रवाना हो गए थे.

पूरे अपार्टमैंट में सनसनी फैल गई थी और अब अगले ही दिन अखबार में खबर आई तो 3 महीनों से छिपा राज खुल गया था.

हकीकत यह थी कि बड़ी मूछों वाले साहब जिन्हें सुधा ने अपने घर में छिपा कर रखा था, वे उन के पुराने पारिवारिक मित्र थे और किसी प्राइवैट बैंक में मैनेजर के तौर पर काम कर रहे थे और अपना टारगेट पूरा करने के लिए लोगों को अंधाधुंध लोन दे रहे थे. लोन के जरूरी कागजात भी पूरी तरह से चैक नहीं कर रहे थे. सिर्फ वे ही नहीं उन के साथ बैंक के कुछ अन्य कर्मचारी भी इस घपले में लिप्त थे.

यह बात तब खुली जब उन के कुछ क्लाइंट्स लोन चुकाने में असमर्थ पाए गए. बैंक के सीनियर्स ने जब इस की जांच की तो बड़ी मूछों वाले मिस्टर कालिया और उन के कुछ साथियों को इस में शामिल पाया. जांच हुई तो पाया गया कि कागजात भी पूरे नहीं थे. बल्कि लोन लेने वालों के द्वारा ये लोग कमीशन भी लिया करते थे ताकि लोन की काररवाई जल्दी हो जाए.

मिस्टर कालिया के अन्य साथी तो पकड़े गए थे पर इन्हें तो सुधा ने दोस्ती के नाते अपने घर में पनाह दी हुई थी. वह टाईट जींस और शौर्टटौप वाली महिला इन की पत्नी हैं. बैंक वाले पुलिस की मदद से मिसेज कालिया को ट्रैक कर रहे थे और वे सुधा के घर आए तो उन्हें समझ आ गया था कि हो न हो मिस्टर कालिया जरूर इसी अपार्टमैंट में छिपे हैं.

इस बहाने एक बैंक में बैंक कर्मियों द्वारा किए गए घोटाले का परदाफाश हुआ और मजे की बात यह कि अपार्टमैंट की बातूनी महिलाओं, वाचमैन और ग्रौसरी स्टोर के लड़कों को अब चटखारे ले कर सुनाने के लिए एक नया किस्सा भी मिल गया. Story In Hindi

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