Hindi Family Story: जीवन और नाटक

Hindi Family Story: ‘‘माहिका बेटे, देख तो कौन आया है. जल्दी से गरम पकौड़े और चाय बना ला. चाय बढि़या मसालेदार बनाना.’’ जूही ने अपनी बेटी को पुकारा और फिर से अपनी सहेली नीलम के साथ बातचीत में व्यस्त हो गई.

‘‘रहने दे न. परीक्षा सिर पर है, पढ़ रही होगी बेचारी. मैं तुम्हें लड़कियों के फोटो दिखाने आई हूं. पंकज अगले माह 25 का हो जाएगा. जितनी जल्दी शादी हो जाए अच्छा है. उस के बाद उस की छोटी बहन नीना का विवाह भी करना है. ले यह फोटो देख और बता तुझे कौन सी पसंद है,’’ नीलम ने हाथ में पकड़ा लिफाफा जूही की ओर बढ़ाया. देर तक दोनों बारीबारी से फोटो देख कर मीनमेख निकालती रहीं.

कुछ देर बाद जूही ने 2 फोटो निकाल कर नीलम को थमा दिए.

‘‘दोनों ही अच्छी लग रही हैं. वैसे भी हमारेतुम्हारे पसंद करने से क्या होता है. पसंद तो पंकज की पूछो. महत्त्व तो पंकज की पसंद का है. है कि नहीं? हमारीतुम्हारी पसंद को कौन पूछता है. यों भी फोटो से किसी के बारे में कितना पता लग सकता है. असली परख तो आमनेसामने बैठ कर ही हो सकती है.’’

तब तक माहिका पकौड़े और चाय ले कर आ गई थी.

‘‘सच कहूं जूही, तेरी बेटी बड़ी गुणवान है, जिस घर में जाएगी उस का तो जीवन सफल हो जाएगा,’’ नीलम ने गरमगरम पकौड़े मुंह में रखते हुए प्रशंसा की झड़ी लगा दी.

‘‘माहिका तू भी तो बता अपनी पसंद,’’ नीलम ने माहिका की ओर फोटो बढ़ाए.

‘‘आंटी मैं भला क्या बताऊंगी. यह तो आप बड़े लोगों का काम है.’’ माहिका धीमे स्वर में बोल कर मुड़ गई.

‘‘ठीक ही तो कह रही है, बच्चों को इन सब बातों की समझ कहां. वैसे भी परीक्षा की तैयारी में जुटी है.’’ जूही बोली.

‘‘तुझे नहीं लगता कि आजकल माहिका बहुत गुमसुम सी रहने लगी है. पहले तो अकसर आ जाती थी, दुनिया भर की बातें करती थी, घर के काम में भी हाथ बंटा देती थी, पर अब तो सामने पड़ने पर भी कतरा कर निकल जाती है.’’

‘‘इस उम्र में ऐसा ही होता है. मुझ से भी कहां बात करती है. किसी काम को कहो तो कर देगी. दिन भर लैपटौप या फोन से चिपकी रहेगी. इन सब चीजों ने तो हमारे बच्चों को ही हम से छीन लिया है.’’

‘‘सो तो है पर हमारा भी तो अधिकतर समय फोन पर ही गुजरता है,’’ जूही ऐसी अदा से बोली कि दोनों सहेलियां खिलखिला कर हंसीं.

नीलम को विदा करते ही जूही काम में जुट गई.

‘‘नीलम आती है तो जाने का नाम ही नहीं लेती. रजत के आने का समय हो गया है. अभी तक खाना भी नहीं बना है. रजत का कुछ भरोसा नहीं. कभी चाय पीते हैं, तो कभी सीधे खाना मांग लेते हैं,’’ जूही स्वयं से ही बातें कर रही थी.

‘‘माहिका तुम अब तक फोन से ही चिपकी हुई हो. यह क्या तुम तो रो रही हो. क्या हुआ?’’ माहिका का स्वर सुन कर जूही उस के कमरे में पहुंची थी.

‘‘कुछ नहीं अपनी सहेली स्नेहा से बात कर रही थी, तो आंखों में आंसू आ गए.’’

‘‘क्यों क्या हुआ? सब ठीक तो है.’’

‘‘कहां ठीक है. बेचारी बड़ी मुसीबत में है.’’

‘‘कैसी मुसीबत?’’

‘‘लगभग 4 वर्ष पहले उस ने सब से छिप कर मंदिर में विवाह कर लिया था. पर अब उस का पति दूसरी शादी कर रहा है.’’

‘‘क्या कह रही है? स्नेहा ने 4 वर्ष पहले ही विवाह कर लिया था? उस के मातापिता को पता है या नहीं?’’

‘‘किसी को पता नहीं है.’’

‘‘दोनों साथ रहते हैं क्या?’’

‘‘नहीं विवाह होते ही दोनों अपने घर लौट कर पढ़ाई में व्यस्त हो गए.’’

‘‘दोनों के बीच संबंध बने हैं क्या?’’

‘‘नहीं, इसीलिए तो दूसरा विवाह कर रहा है.’’

‘‘इस तरह छिप कर विवाह करने की क्या आवश्यकता थी. आजकल की लड़कियां भी बिना सोचेसमझे कुछ भी करती हैं. स्नेहा के मातापिता को पता लगा तो उन पर क्या बीतेगी?’’ जूही चिंतित स्वर में बोली.

‘‘पता नहीं आप ही बताओ अब वह

क्या करे?’’

‘‘चुल्लू भर पानी में डूब मरे और क्या. उस ने तो अपने मातापिता को कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा.’’

‘‘थोड़ी ही देर में यहां आ रही है स्नेहा. आप ही उसे समझा देना.’’

‘‘यहां क्या करने आ रही है? उस से कहो अपने मातापिता से बात करे. वे ही कोई रास्ता निकालेंगे.’’ मांबेटी का वार्तालाप शायद कुछ और देर चलता कि तभी दरवाजे की घंटी बजी और स्नेहा ने प्रवेश किया.

दोनों सहेलियां एकदूसरे के गले लिपट कर खूब रोईं. जूही सब कुछ चुपचाप देखती रहीं. समझ में नहीं आया कि क्या करे.

‘‘अब रोनेधोने से क्या होगा. अपने कमरे में चल कर बैठो मैं चाय बना कर लाती हूं.’’

‘‘नहीं आंटी, कुछ नहीं चाहिए. मेरी चिंता तो केवल यही है कि इस समस्या का समाधान कैसे निकलेगा?’’ स्नेहा गंभीर स्वर में बोली.

‘‘सच कहूं, स्नेहा मुझे तुम से यह आशा नहीं थी.’’

‘‘पर मैं ने किया क्या है?’’

‘‘लो और करने को रह क्या गया है. तुम्हें छिप कर विवाह करने की क्या जरूरत थी.’’

‘‘मैं ने छिप कर विवाह नहीं किया आंटी? आप को अवश्य कोई गलतफहमी हुई है.’’

‘‘समझती हूं मैं. पर मेरी मानो और जो हो गया सो हो गया, अब सब कुछ अपने मातापिता को बता दो.’’

‘‘मेरे मातापिता का इस से कोई लेनादेना नहीं है. वैसे भी मैं उन से कोई बात नहीं छिपाती. इस समय तो मुझे माहिका की चिंता सता रही है. आप को ही कोई राह निकालनी पड़ेगी जिस से सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.’’

‘‘साफसाफ कहो न पहेलियां क्यों बुझा रही हो.’’

‘‘आंटी माहिका ने जो कुछ किया वह निरा बचपना था. जब तक उसे अपनी गलती समझ में आई, देर हो चुकी थी. मुझे भी लगा कि देरसबेर पंकज इसे स्वीकार कर लेगा पर यहां तो उल्टी गंगा बह रही है. माहिका बेचारी हर साल पंकज के लिए करवाचौथ का व्रत करती रही पर वह नहीं पसीजा. अब बेचारी माहिका करे भी तो क्या?’’

‘‘तुम कहना क्या चाहती हो? विवाह तुम ने नहीं माहिका ने किया था?’’

‘‘वही तो. चलिए आप की समझ में तो आया. अभी तक तो आप मुझे ही दोष दिए जा रही थीं.’’ स्नेहा हंस दी.

‘‘यह मैं क्या सुन रही हूं. माहिका इतनी बड़ी बात छिपा गईं तुम? हम ने क्याक्या आशाएं लगा रखी थीं और तुम ने हमें कहीं का नहीं छोड़ा. अब यह और बता दो कि किस से रचाया था तुम ने यह अद्भुत विवाह.’’

‘‘पंकज से.’’

‘‘कौन पंकज? नीलम का बेटा?’’

‘‘जी हां.’’

‘‘नीलम जानती है यह सब?’’

‘‘मुझे नहीं पता.’’

‘‘पता क्या है तुझे कमबख्त. राखी बांधती थी तू उस को. मुझे अब सब समझ में आ रहा है इसीलिए तू करवाचौथ का व्रत करने का नाटक करती थी. तेरे पापा को पता चला तो हम दोनों को जान से ही मार देंगे. उन्हें तो वैसे भी उस परिवार से मेरा मेलजोल बिलकुल पसंद नहीं है,’’ वे क्रोध में बोलीं और माहिका को बुरी तरह धुन डाला.

‘‘आंटी क्या कर रही हो? माना उस से गलती हुई है पर उस के लिए आप उस की जान तो नहीं ले सकतीं.’’ स्नेहा चीखी.

जूही कोई उत्तर दे पातीं उस से पहले ही माहिका के पापा रजत ने घर में प्रवेश किया. उन के आते ही घर में सन्नाटा छा गया. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि बात कहां से शुरू करें.

‘‘स्नेहा बेटे, कब आईं तुम और बताओ पढ़ाई कैसी चल रही है?’’ बात रजत ने ही शुरू की.

‘‘जी ठीक चल रही है.’’

‘‘आज बड़ी शांति है घर में. जूही एक कप चाय पिला दो, बहुत थक गया हूं.’’ उत्तर में जूही सिसक उठीं.

‘‘क्या हुआ? इस तरह रो क्यों रही हो. कुछ तो कहो.’’

‘‘कहनेसुनने को बचा ही क्या है, माहिका ने तो हमें कहीं का नहीं छोड़ा.’’

‘‘क्या किया है उस ने?’’

‘‘उस ने विवाह कर लिया है.’’

‘‘क्यों मजाक करती हो. कब किया उस ने विवाह?’’

‘‘4 साल पहले किसी मंदिर में.’’

‘‘और हम से पूछा तक नहीं?’’ रजत हैरानपरेशान स्वर में बोले.

‘‘हम हैं कौन उस के जो हम से पूछती?’’

‘‘तो ठीक है, हम उस के विवाह को मानते ही नहीं. 4 साल पहले वह मात्र 15 वर्ष की थी. हमारी आज्ञा के बिना विवाह कर कैसे सकती थी. हम ने उस के उज्ज्वल भविष्य के सपने देखे हैं. उन का क्या?’’ रजत बाबू नाराज स्वर में बोले. कुछ देर तक सब सकते में थे. कोई कुछ नहीं बोला. फिर अचानक माहिका जोर से रो पड़ी.

‘‘अब क्या हुआ?’’

‘‘पापा, मैं पंकज के बिना नहीं रह सकती. भारतीय नारी का विवाह जीवन में एकबार ही होता है.’’

‘‘किस भारतीय नारी की बात कर रही हो तुम? आजकल रोज विवाह और तलाक हो रहे हैं. जिस तरह पंकज के बिना 19 साल से रह रही हो, आगे भी रहोगी.’’

‘‘देखा स्नेहा मैं न कहती थी. पापा भी बिलकुल पंकज की भाषा बोल रहे हैं. पर मेरे पास अपने विवाह के पक्के सबूत हैं.’’

‘‘कौन से सुबूत हैं तुम्हारे पास,’’ रजत ने प्रश्न किया.

‘‘विवाह का फोटो है. गवाह के रूप में स्नेहा है और पंकज के कुछ मित्र भी विवाह के समय मंदिर में थे.’’

‘‘अच्छा फोटो भी है? बड़ा पक्का काम किया है तुम ने. ले कर तो आओ वह फोटो.’’ माहिका लपक कर गई और फोटो ले आई. रजत ने फोटो के टुकड़ेटुकड़े कर के रद्दी की टोकरी में डाल दिए.

‘‘कहां है अब सुबूत और स्नेहा बेटे बुरा मत मानना. तुम माहिका की बड़ी अच्छी मित्र हो जो उस के साथ खड़ी हो. पर इस समय अपने घर जाओ. जब हम यह समस्या सुलझा लें तब आना. केवल एक विनती है तुम से कि इन बातों का जिक्र किसी से मत करना.’’

‘‘जी, अंकल.’’ स्नेहा चुपचाप उठ कर बाहर निकल गई.

‘‘यह क्या किया आप ने? मैं तो सोच रही थी स्नेहा के साथ पंकज के घर जाएंगे. वही तो जीताजागत सुबूत है.’’ जूही जो अब तक इस सदमे से उबर नहीं पाई थीं आंसू पोंछते हुए बोलीं.

‘‘मुझे शर्म आती है कि इतना बड़ा कांड हो गया और हम दोनों को इस की भनक तक नहीं लगी. हमारा मुख्य उद्देश्य है माहिका को इस भंवर से निकालना वह भी इस तरह कि किसी को इस संबंध में कुछ पता न चले. हम कहीं किसी के घर नहीं जा रहे, न कोई सुबूत पेश करेंगे. माहिका जब तक अपनी पढ़ाई पूरी कर के अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो जाती, विवाह का प्रश्न ही नहीं उठता.’’

‘‘मुझे नहीं लगता पंकज का परिवार इतने लंबे समय तक प्रतीक्षा करेगा. नीलम तो आज ही बहुत सारे फोटो ले कर आई थी मुझे दिखाने.’’

‘‘समझा, तो यह खेल खेल रहे हैं वे लोग. तुम ने यह सोच भी कैसे लिया कि माहिका का विवाह पंकज से संभव है. मैं ने उसे दसियों बार नशे में चूर पब से बाहर निकलते देखा है. पढ़ाईलिखाई में जीरो पर गुंडागर्दी में सब से आगे.’’

‘‘पर इन का विवाह तो 4 वर्ष पहले ही हो चुका है.’’

‘‘फिल्मों और नाटकों में अभिनेता अलगअलग पात्रों से कई विवाह करते हैं, तो क्या यह जीवन भर का नाता हो जाता है. समझ लो माहिका ने भी ऐसे ही किसी नाटक के पात्र का अभिनय किया था और एक चेतावनी तुम दोनों के लिए, उस परिवार से आप दोनों कोई संबंध नहीं रखेंगे. फोन पर भी नहीं. माहिका जैसी मेधावी लड़की का भविष्य बहुत उज्ज्वल है. मैं नहीं चाहता कि वह बेकार के पचड़ों में पड़ कर अपना जीवन तबाह कर ले,’’ रजत दोनों से कठोर स्वर में बोले. मृदुभाषी रजत का वह रूप न तो कभी जूही ने देखा था और न ही कभी माहिका ने. दोनों ने सिर हिला कर स्वीकृति दे दी.

कुछ माह ही बीते होंगे कि एक दिन रजत ने सारे परिवार को यह कह कर चौंका दिया कि वे सिंगापुर जा रहे हैं. वहां उन्हें नौकरी मिल गई है. जूही और माहिका चुप रह गईं पर उन का 15 वर्षीय पुत्र विपिन प्रसन्नता से उछल पड़ा.

‘‘मैं अभी अपने मित्रों को फोन करता हूं.’’ वह चहका.

‘‘नहीं, मैं नहीं चाहता कि किसी को पता चले कि हम कहां गए हैं.’’ रजत सख्ती से बोले.

‘‘क्यों पापा?’’

‘‘बेटे हमारे सामने एक बड़ी समस्या आ खड़ी हुई है. जब तक उस का हल नहीं मिल जाता हमें सावधानी से काम लेना पड़ेगा. इसीलिए हम चुपचाप जाएंगे बिना किसी को बताए.’’

तभी उन्हें पास ही माहिका के सुबकने का स्वर सुनाई पड़ा. जूही उसे शांत करने का प्रयत्न कर रही थी.

‘‘माहिका, इधर तो आओ. क्या हुआ बेटे?’’

‘‘कुछ नहीं पापा, आप की बात सुन कर लगा आप अब भी मुझ पर विश्वास नहीं करते,’’ माहिका आंसुओं के बीच बोली.

‘‘तुम ने जो किया उस के बाद विश्वास करना क्या इतना सरल है माहिका? विश्वास जमने में सदियां लग जाती हैं पर टूटने में कुछ क्षण. बस एक बात पर सदा विश्वास रखना कि तुम्हारे पापा तुम्हें इतना प्यार करते हैं कि तुम्हारे हितों की रक्षा के लिए किसी सीमा तक भी जा सकते हैं.’’

‘‘पापा मुझे माफ कर दीजिए मैं ने आप को बहुत दुख पहुंचाया है,’’ माहिका फूटफूट कर रो पड़ी. सारे गिलेशिकवे उस के आंसुओं में बह गए. Hindi Family Story

Hindi Romantic Story: दिल के पुल – समीक्षा की शादी में क्या थी रुकावट

Hindi Romantic Story: आज अल्लसुबह इतना कुहरा न था जितना अब दिन चढ़ते छाया जा रहा था. मौसम को भी अनुमान हो चला था कि आज साफगोई की आवश्यकता नहीं है. दिल की उदासी मौसम पर छाई थी और मौसम की उदासी दिल पर. समीक्षा खामोशी से तैयार होती जा रही थी. न मन में कोई उमंग, न कोईर् स्वप्न. आज फिर उसे नुमाइश करनी थी, अपनी. 33 श्रावण पार कर चुकी समीक्षा अब थक चुकी थी इस परेड से. पर क्या करे, न चाहते हुए भी परिवार वालों की जागती उम्मीद हेतु वह हर बार तैयार हो जाती. शुरूशुरू में अच्छी नौकरी के कारण उस ने कई रिश्ते टाले, फिर स्वयं उच्च पदासीन होने के कारण कई रिश्ते निम्न श्रेणी कह कर ठुकराए. 30 पार करतेकरते रिश्ते आने कम होने लगे. अब हर 6 माह बीतने बाद रिश्तों के परिमाण के साथ उन की गुणवत्ता में भी भारी कमी दिखने लगी थी.

समीक्षा ने प्रोफैशनल जगत में बहुत नाम कमाया. आज वह अपनी कंपनी की वाइस प्रैसीडैंट है. बड़ा कैबिन है, कई मातहत हैं, विदेश आनाजाना लगा रहता है. सभी वरिष्ठ अधिकारियों की चहेती है. पर यह कैसी विडंबना है कि जहां एक तरफ उस की कैरियर संबंधी उपलब्धी को इतनी छोटी आयु की श्रेणी में रख सराहा जाता है, वहीं दूसरी तरफ शादी के लिए उस की उम्र निकल चुकी है. यही विडंबना है लड़कियों की. कैरियर में आगे बढ़ना चाहती हैं तो शादी पीछे रखनी पड़ती है और यदि समय रहते शादी कर लें तो पति, गृहस्थी, बालबच्चों के चक्कर में अपनी जिम्मेदारियां निभाते हुए कैरियर होम करना पड़ता है. क्या हर वह स्त्री जो नौकरी में आगे बढ़ना चाहती है और गृहस्थी का स्वप्न भी संजोती है, उसे सुपर वूमन बननागा?

‘‘समीक्षा तैयार हो गई? लड़के वाले आते होंगे,’’ मां की पुरजोर पुकार से उस के विचारों की तंद्रा भंग हुई. वर्तमान में लौट कर वह पुन: आईने में स्वयं को देख कमरे से बाहर चली गई.

‘‘हमारी बेटी ने बहुत जल्दी बहुत ऊंचा पद हासिल किया है जनाब,’’ महेशजी ने कहा.

यह सुनते ही लड़के की मां ने बिना देर किए प्रश्न दागा, ‘‘घर के कामकाज भी आते हैं या सिर्फ दफ्तरी आती है?’’

‘हम सोच कर बताएंगे,’ वही पुराना राग अलाप कर लड़के वाले चले गए. समय बीतने के साथ रिश्ता पाने की लालसा में समीक्षा के घर वाले उस से कम तनख्वाह वाले लड़कों को भी हामी भर रहे थे. लेकिन अब बात उलट चुकी थी. अकसर सुनने में आता कि लड़के वाले इतनी ऊंची पदासीन लड़की का रिश्ता लेने में सहज नहीं हैं. कहते हैं घर में भी मैनेजरी करेगी.

शाम ढलने तक बिचौलिए के द्वारा पता चल गया कि अन्य रिश्तों की भांति यह रिश्ता भी आगे नहीं बढ़ पाएगा. एक और कुठाराघात. कड़ाके की ठंड में भी उस के माथे पर पसीना उग गया. सोफे पर बैठेबैठे ही उस के पैर कंपकंपा उठे तो उस ने शाल से ढक लिए. ऐसा लग रहा था कि उस के मन की कमजोरी उस के तन पर भी उतर आई है. पता नहीं उठ कर चल पाएगी या नहीं. उस का मन काफी कुछ ठंडा हो चला था, किंतु आंखों का रोष अब भी बरकरार था.

‘‘पापा, प्लीज अब रहने दीजिए न,’’ पता नहीं समीक्षा की आवाज में कंपन मौसम के कारण था या मनोस्थिति के कारण. इस बेवजह के तिरस्कार से वह थक चुकी थी, ‘‘जो भी आता है मेरी खूबियों को कसौटी पर कसने की फिराक में नजर आता है. हमेशा शीर्ष पर रहने के बाद हाशिए पर सरकाए जाने की पीड़ा असहनीय लगने लगी है मुझे,’’ उस ने भावुक बातों से पिता को सोच में डाल दिया.

समय का चक्र चलता रहा. समीक्षा के जिद करने पर उस के भाई की शादी करवा दी गई. उस ने शादी का विचार त्याग दिया था. सब कुछ समय पर छोड़ नौकरी के साथसाथ सामाजिक कार्य करती संस्था से भी जुड़ गई. मजदूर वर्ग के बच्चों को शिक्षा देने में उसे सच्चे संतोष की प्राप्ति होती. वहीं उस की मुलाकात दीपक से हुई. दीपक भी अपने दफ्तर के बाद सामाजिक कार्य करने हेतु इस संस्था से जुड़ा था. उस की उम्र करीब 45 साल होगी. ऐसा बालों में सफेदी और बातचीत में परिपक्वता से प्रतीत होता था. दोनों की उम्र में इतना फासला होने के कारण समीक्षा बेझिझक उस से घुलनेमिलने लगी. उस की बातों, अनुभव से वह कुछ न कुछ सीखती रहती.

एक दिन दोनों काम के बाद कौफी पी रहे थे. तभी अचानक दीपक ने पूछा, ‘‘बुरा न मानो तो एक बात पूछूं? अभी तक शादी क्यों नहीं की समीक्षा?’’

‘‘रिश्ते तो आते रहे, किंतु कोई मुझे पसंद नहीं आया तो किसी को मैं. अब मैं ने यह फैसला समय पर छोड़ दिया है. मैं ने सुना है आप ने शादी की थी, लेकिन आप की पत्नी…’’ कहते हुए समीक्षा बीच में ही रुक गई.

‘‘उफ, तो कहानी सुन चुकी हो तुम? सब के हिस्से यह नहीं होता कि उन का जीवनसाथी आजीवन उन का साथ निभाए,’’ फिर कुछ पल की खामोशी के बाद दीपक बोले, ‘‘मैं ने सब से झूठ कह रखा है कि मेरी पत्नी की मृत्यु हो गई. दरअसल, वह मुझे छोड़ कर चली गई. उसे जिन सुखसुविधाओं की तलाश थी, वे मैं उसे 30 वर्ष की आयु में नहीं दे सकता था…

‘‘एक दिन मैं दूसरी कंपनी में प्रैजेंटेशन दे कर जल्दी फ्री हो गया और सीधा अपने घर आ गया. अचानक घर लौटने पर मैं अपने एहाते में अपने बौस की कार को खड़ा पाया. मैं अचरज में आ गया कि बौस मेरे घर क्यों आए होंगे. फटाफट घंटी बजा कर मैं पत्नी की प्रतीक्षा करने लगा. दरवाजा खोलने में उसे काफी समय लगा. 3 बार घंटी बजाने पर वह आई. मुझे देखते ही वह अचकचा गई और उलटे पांव कमरे में दौड़ी. इस अप्रत्याशित व्यवहार के कारण मैं भी उस के पीछेपीछे कमरे में गया तो पाया कि मेरा बौस मेरे बिस्तर पर शर्ट पहने…’’

दीपक का गला भर्रा गया. कुछ क्षण वह चुप नीचे सिर किए बैठा रहा. फिर आगे बोला, ‘‘पिछले 4 महीनों से मेरी पत्नी और मेरे बौस का अफेयर चल रहा था… मुझ से तलाक लेने के बाद उस ने मेरे बौस से शादी कर ली.’’

समीक्षा ने दीपक के कंधे पर हाथ रख सांत्वना दी, ‘‘एक बात पूछूं? आप ने मुझे ये सब बातें क्यों बताईं?’’

कुछ न बोल दीपक चुपचाप समीक्षा को देखता रहा. आज उस की नजरों में एक अजीब सा आकर्षण था, एक खिंचाव था जिस ने समीक्षा को अपनी नजरें झुकाने पर विवश कर दिया. फिर बात को सहज बनाने हेतु वह बोली, ‘‘दीपकजी, इतने सालों में आप ने पुन: विवाह क्यों नहीं किया?’’

‘‘तुम्हारे जैसी कोई मिली ही नहीं.’’

यह सुनते ही समीक्षा अचकचा कर खड़ी हो गई. ऐसा नहीं था कि उसे दीपक के प्रति कोई आकर्षण नहीं था. ऐसी बात शायद उस का मन दीपक से सुनना भी चाहता था पर यों अचानक दीपक के मुंह से ऐसी बात सुनने की अपेक्षा नहीं थी. खैर, मन की बात कब तक छिप सकती है भला. दोनों की नजरों ने एकदूसरे को न्योता दे दिया था.

समीक्षा की रजामंदी मिलने के बाद दीपक ने कहा, ‘‘समीक्षा, मुझे तुम से कुछ कहना है, जो मेरे लिए इतना मूल्यवान नहीं है, लेकिन हो सकता है कि तुम्हारे लिए वह महत्त्वपूर्ण हो. मैं धर्म से ईसाई हूं. किंतु मेरे लिए धर्म बाद में आता है और कर्म पहले. हम इस जीवन में क्या करते हैं, किसे अपनाते हैं, किस से सीखते हैं, इन सब बातों में धर्म का कोई स्थान नहीं है. हमारे गुरु, हमारे मित्र, हमारे अनुभव, हमारे सहकर्मी जब सभी अलगअलग धर्म का पालन करने वाले हो सकते हैं, तो हमारा जीवनसाथी क्यों नहीं? मैं तुम्हारे गुण, व्यक्तित्व के कारण आकर्षित हुआ हूं और धर्म के कारण मैं एक अच्छी संगिनी को खोना नहीं चाहता. आगे तुम्हारी इच्छा.’’

हालांकि समीक्षा भी दीपक के व्यक्तित्व, उस के आचारविचार से बहुत प्रभावित थी, किंतु धर्म एक बड़ा प्रश्न था. वह दीपक को खोना नहीं चाहती थी, खासकर यह जानने के बाद कि वह भी उसे पसंद करता है मगर इतना अहम फैसला वह अकेली नहीं ले सकती थी. लड़कियों को शुरू से ही ऐसे संस्कार दिए जाते हैं, जो उन की शक्ति कम और बेडि़यां अधिक बनते हैं. आत्मनिर्भर सोच रखने वाली लड़की भी कठोर कदम उठाने से पहले परिवार तथा समाज की प्रतिक्रिया सोचने पर विवश हो उठती है. एक ओर जहां पुरुष पूरे आत्मविश्वास के साथ अपनी राय देता है, पूरी बेबाकी से आगे कदम बढ़ाने की हिम्मत रखता है, वहीं दूसरी ओर एक स्त्री छोटे से छोटे कार्य से पहले भी अपने परिवार की मंजूरी चाहती है, क्योंकि इसी का समाज संस्कार का नाम देता है. आज रात खाने में क्या बनाऊं से ले कर नौकरी करूं या गृहस्थी संभालू तक मानो संस्कारों को जीवित रखने का सारा बोझ स्त्री के कंधों पर ही है.

समीक्षा ने यह बात अपनी मां के साथ बांटी, ‘‘आप क्या सोचती हैं इस विषय पर मां?’’

मां ने प्रतिउत्तर प्रश्न किया, ‘‘क्या तुम दीपक से प्यार करती हो?’’

समीक्षा की चुप्पी ने मां को उत्तर दे दिया. वे बोलीं, ‘‘देखो समीक्षा, तुम्हारी उम्र मुझे भी पता है और तुम्हें भी. मैं चाहती हूं कि तुम्हारा घर बसे, तुम्हारा जीवन प्रेम से सराबोर हो, तुम भी अपनी गृहस्थी का सुख भोगो. मगर अब तुम्हें यह सोचना है कि क्या तुम दूसरे धर्म के परिवार में तालमेल बैठा पाओगी… यह निर्णय तुम्हें ही लेना है.’’

समीक्षा की मां से हामी मिलने पर दीपक उसे अपने घर अपने परिवार वालों से मिलाने ले गया. दीपक  के पिता का देहांत हो चुका था. घर में मां व छोटा भाई थे. समीक्षा को दीपक की मां पसंद आई. मां की परिभाषा पर सटीक उतरतीं सीधी, सरल औरत.

‘‘विवाहोपरांत कौन क्या करेगा, अभी इस का केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है. दीपक की पहली शादी हम ने अपनी बिरादरी में की थी, लेकिन… अब इतने वर्षों के बाद यह किसी को पसंद कर रहा है तो जरूर उस में कुछ खास होगा,’’ मां खुश थीं.

लेकिन समीक्षा हिंदू है यह जान कर दीपक के भाई का मुंह बन गया.

कुछ ही देर में दीपक की बड़ी विवाहित बहन आ पहुंची. उसे दीपक के छोटे भाई ने फोन कर बुलाया था. बहन ने आ कर काफी हंगामा किया, ‘‘तेरे को शादी करनी है तो मुझ से बोल. मैं लाऊंगी तेरे लिए एक से एक बढि़या लड़की… यह तो सोच कि एक हिंदू लड़की, एक तलाकशुदा ईसाई लड़के से, जो उस से उम्र में भी बड़ी है, शादी क्यों करना चाहती है. तूने अपना पास्ट इसे बता दिया, पर कभी सोचा कि जरूर इस का भी कोई लफड़ा रहा होगा? इस ने तुझे कुछ बताया? क्या तू हम से छिपा रहा है?’’

लेकिन दीपक अडिग था. उस ने सोच लिया था कि जब दिल ने पुल बना लिया है तो वह उस पर चल कर अपने प्यार की मंजिल तक पहुंचेगा.

समीक्षा प्रसन्न थी कि दीपक व उस की मां को यह रिश्ता मंजूर है, साथ ही थोड़ी खिन्नता भी मन में थी कि उस के भाई व बहन को इस रिश्ते पर ऐतराज है. अब समीक्षा ने अपने घर में पिता और भाई को इस रिश्ते के बारे में बताने का निश्चय किया और फिर वही हुआ जिस की आशा भी थी और आशंका भी.

‘‘डायन भी 7 घर छोड़ देती है पर तुम ने अपने ही घर वालों को नहीं बख्शा, शर्म नहीं आई अपनी ही शादी की बात करते और वह भी एक अधर्मी से?’’ उस का छोटा भाई गरज रहा था. वह भाई जिस की शादी की चिंता समीक्षा ने अपनी शादी से पहले की थी.

‘‘मैं क्या मुंह दिखाऊंगी अपने समाज में? मेरे मायके में मेरी छोटी बहन कुंआरी है अभी, उस की शादी कैसे होगी यह बात खुलने पर?’’ उस की पत्नी भी कहां पीछे थी.

‘‘सौ बात की एक बात समीक्षा, यह शादी होगी तो मेरी लाश के ऊपर से होगी.

अब तेरी इच्छा है अपनी डोली चाहती है या अपनी मां की मांग का सिंदूर,’’ पिता की दोटूक बात पर समीक्षा सिर झुकाए, रोती रही.

वह रात बहुत भारी बीती. बेटी की इस स्थिति पर मां अपने बिस्तर पर रो रही थीं और समीक्षा अपने बिस्तर पर. आगे क्या होगा, इस से दोनों अनजान डर पाले थीं.

अगले दिन पिता ने बूआ का बुला लिया. समीक्षा अपनी बूआ से हिलीमिली थी. अत: पिता ने बूआ को मुहरा बनाया उसे समझा कर शादी से हटाने हेतु. बूआ ने हर तरह के तर्कवितर्क दिए, उसे इमोशनल ब्लैकमेल किया.

उन की बातें जब पूरी हो गईं तो समीक्षा ने बस एक ही वाक्य कहा, ‘‘बूआ, मैं बस इतना कहूंगी कि यदि मैं दीपक से शादी नहीं करूंगी तो किसी से भी नहीं करूंगी.’’

किंतु अपेक्षा के विपरीत समीक्षा का शादी न करने का निर्णय उस के पिता व भाई को स्वीकार्य था. लेकिन दूसरे धर्म के नेक, प्यार करने वाले लड़के से शादी नहीं.

अगली सुबह नाश्ते की टेबल पर पिता बोले, ‘‘समीक्षा की शादी के लिए मैं ने एक लड़का देखा है. हमारे गोपीजी का भतीजा. देखाभाला परिवार है. उन्हें भी शादी की जल्दी और हमें भी,’’ उन्होंने घृणाभरी दृष्टि समीक्षा पर डाली.

समीक्षा का मन हुआ कि वह इसी क्षण वहां से कहीं लुप्त हो जाए. उसी शाम से हिंदुत्व प्रचारक सोना के प्रमुख गोपीजी के भतीजे के गुंडे समीक्षा के पीछे लग गए. उस के दफ्तर के बाहर खड़े रहते. रास्ते भर उस का पीछा करते ताकि वह दीपक से न मिल सके. 3 दिनों की लुकाछिपी से समीक्षा काफी परेशान हो गई.

क्या हम इसीलिए अपनी बेटियों को शिक्षित करते हैं, उन्हें आगे बढ़ने, प्रगति करने की प्रेरणा देते हैं कि यदि उन के एक फैसले से हम असहमत हों तो उन का जीना दूभर कर दें? यह संकुचित सोच उस की मां को कुंठित कर गई. उन के मन में फांस सी उठी. क्या लड़की समाज के लिए अपनी खुशियों का, अपने जीवन का बलिदान दे दे तो महान तथा संस्कारी और यदि अपनी खुशी के लिए अपने ही परिवार से कुछ मांगे तो निर्लज्ज… परिवार का अर्थ ही क्या रह गया यदि वह अपने बच्चों की तकलीफ, उन का भला न देख सके…

रात के भोजन पर समीक्षा के मन पर छाए चिंताओं के बादल से या तो वह स्वयं परिचित थी या उस की मां. अन्य सदस्य बेखबर थे. वे तो समस्या का हल खोज लेने पर भोजन का रोज की भांति स्वाद उठा रहे थे, हंसीमजाक से माहौल हलका बनाए हुए थे.

अचानक मां ने अपना निर्णय सुना दिया, ‘‘समीक्षा, तुम मन में कोई चिंता न रख. तुम आज तक बहुत अच्छी बेटी, बहुत अच्छी बहन बन कर रहो. अब हमारी बारी है. आज यदि तुम्हें कोई ऐसा मिला है जिस से तुम्हारा मन मिला है तो हम तुम्हारी खुशी में रोड़े नहीं अटकाएंगे.’’

इस से पहले कि पिता टोकते वे उन्हें रोकती हुई आगे बोलीं, ‘‘कर्तव्य केवल बेटियों के नहीं होते, परिवारों के भी होते हैं. दीपक के परिवार से मैं मिलूंगी और शादी की बात आगे बढ़ाऊंगी.’’

मां के अडिगअटल निर्णय के आगे सब चुप थे. शादी के दौरान भी तनाव कुछ कम नहीं हुआ. दोनों परिवारों में शादी को ले कर न तो रौनक थी और न ही उल्लास. समीक्षा के पिता और भाई ने शादी का कार्ड इसलिए नहीं अपनाया था, क्योंकि उस पर बाइबिल की पंक्तियां लिखी जाती थीं. और दीपक के रिश्तेदारों को उस पर गणेश की तसवीर से आपत्ति थी. केवल दोनों की मांओं ने ही आगे बढ़चढ़ कर शादी की तैयारी की थी. बेचारे दूल्हादुलहन दोनों डरे थे कि शादी में कोई विघ्न न आ जाए.

शादी हो गई तब भी समीक्षा थोड़ी दुखी थी. बोली, ‘‘कितना अच्छा होता यदि हमारे परिवार वाले भी सहर्ष हमें आशीर्वाद देते.’’

मगर दीपक की बात ने उस की सारी शंका दूर कर दी. बोलीं, ‘‘कई बार हमें चुनना होता है कि हम किसे प्यार करते हैं. हम दोनों ने जिसे प्यार किया, उसे चुन लिया. यदि वे हम से प्यार करते होंगे, हमारी खुशी में खुश होंगे तो हमें चुन लेंगे.’’

अब मन में बिना कोई दुविधा लिए दोनों की आंखों में सुनहरे भविष्य के उज्जवल सपने थे. Hindi Romantic Story

Short Story: भयानक सपना – क्या मनोहर जानता था कि आगे क्या होने वाला है

Short Story: हमेशा की तरह इस बार फिर धुंध गहरी होने लगी और चारों ओर सन्नाटा छा गया. मनोहर अच्छी तरह जानता था कि आगे क्या होने वाला है, पर फिर भी न जाने किस डर के कारण उस के दिल की धड़कन तेज होने लगी. धुंध के साथसाथ ठंड भी बढ़ने लगी और मनोहर कांपने लगा. लगता था कि सारी दुनिया एक सफेद बर्फीली चादर से ढक गई है. कोहरे के बीच में अचानक एक काला साया नजर आया, जो मनोहर की ओर धीरेधीरे बढ़ने लगा. यह जानते हुए भी कि उसे कोई खतरा नहीं है, मनोहर वहां से घूम कर भागना चाहता था, पर उसे लगा कि उस के पैर वहां जम ही गए थे.

साया मनोहर के पास आया और उस का चेहरा साफ दिखाई देने लगा. यह वही चेहरा था जो उस ने पहली बार कभी न भूलने वाली रात को देखा था. मासूम सा चेहरा था. एक 16-17 साल के लड़के का. मनोहर की तरफ उस ने उंगली से इशारा किया. ठंड के बावजूद मनोहर पसीनापसीना हो गया. 

‘तुम ने मुझे मारा. तुम ही मेरी मौत के जिम्मेदार हो. तुम्हें इस का प्रायश्चित्त करना पड़ेगा. तुम्हें मेरी मौत की कीमत चुकानी पड़ेगी,’ लड़के ने मनोहर पर इलजाम लगाया.

‘पर गलती मेरी नहीं थी,’ मनोहर ने अपने ऊपर लगे अभियोग का विरोध किया.

‘गलती चाहे जिस की भी थी पर मारा तो तुम ने ही मुझे,’ लड़के ने दबाव डालना जारी रखा.

‘मैं क्या करता. तुम अचानक बिना कोई चेतावनी दिए…’ मनोहर ने जवाब देना शुरू किया, पर हमेशा की तरह उस की बात पूरी तरह बिना सुने लड़का धुंध में गायब हो गया. मनोहर चौंक कर उठा. पसीने से उस का बदन गीला था. वह जानता था कि अब कम से कम डेढ़दो घंटे तक वह सो नहीं पाएगा. यही सपना उसे हफ्ते में 2 या 3 बार आता था, उस हादसे के बाद से. मनोहर ने सोचा कि वह उस रात को कभी भूल नहीं सकेगा. धीरेधीरे वह गहरी सोच में डूबता गया…हौल खचाखच भरा था. पार्टी खूब जोरशोर से चल रही थी. लोग विदेशी संगीत पर नृत्य कर रहे थे पर बातचीत के शोर के कारण ठीक से कुछ भी सुनाई नहीं पड़ रहा था. जितने लोग मौजूद थे, चाहे मर्द हों या औरत, तकरीबन सब ने हाथ में गिलास पकड़ रखा था. शराब पानी की तरह बह रही थी. एक कोने में खड़ा मनोहर बिना कोई खास रुचि के तमाशा देख रहा था. मनोहर का दोस्त अशोक उस के पास आया और उस ने उसे एक गिलास पकड़ाने की कोशिश की.

‘तुझे अकेले खड़े बोर होते हुए देख कर मुझे बहुत दुख होता है,’ उस ने कहा, ‘यह ले व्हिस्की, पी. शायद यह तुझे किसी लड़की से बात करने की हिम्मत दे.’ मनोहर ने सिर हिलाया, ‘तुम जानते हो कि मैं शराब बहुत कम पीता हूं. और पार्टी के बाद, जब कार खुद चला कर घर जाना होता है, जैसाकि आज, तब तो मैं शराब की तरफ देखता भी नहीं हूं.’

‘छोड़ यार,’ अशोक ने फिर गिलास मनोहर की ओर बढ़ाया, ‘एक पैग से क्या होता है. मैं तो हर पार्टी में 5-6 पैग पी कर भी कार चला कर सहीसलामत घर पहुंचता हूं.’ मनोहर मना करता गया, पर अशोक नहीं माना. आखिर में तंग आ कर मनोहर ने काफी अनिच्छा से गिलास ले लिया. शामभर मनोहर ने बस वही एक पैग धीरेधीरे पिया, जिस का असर उस पर तकरीबन न के बराबर था. रात काफी हो चुकी थी. जब मनोहर ने होटल की पार्किंग से अपनी गाड़ी निकाली और घर की तरफ चला, हलका कोहरा छाया हुआ था, पर सड़क साफ दिखाई दे रही थी. वाहनों की भीड़ कम थी. मनोहर ने अपनी कार की रफ्तार 50 और 60 किलोमीटर प्रति घंटे के बीच में ही रखी थी. उसे सामने चौराहे पर बत्ती हरी दिखाई दी. इसलिए मनोहर ने रफ्तार कम नहीं की. अचानक उस के बिलकुल सामने सैलफोन पर बात करता एक युवक सड़क पार करने लगा.

मनोहर ने ब्रैकपैडल जोर से दबाया पर तब तक देर हो चुकी थी. कार युवक से टकराई और वह तकरीबन 5 मीटर आगे जा कर गिरा. मनोहर ने कार रोकी और युवक के पास दौड़ कर पहुंचा. मनोहर ने उस का चेहरा गौर से देखा. उस की आंखें बंद थीं और वह बेहोश लग रहा था. मनोहर ने उसे उठा कर कार में रखा और नजदीक वाले अस्पताल की ओर चला. पर तब उसे खयाल आया कि अगर वह स्वीकार कर ले, और पुलिस को उस की सांस में शराब मिले, तो उसे शायद जेल जाना पड़े, यह सोचते हुए मनोहर ने अस्पताल के एमरजैंसी वार्ड से कुछ दूरी पर कार रोकी और युवक को उठा कर अंदर ले गया. वहां एक वार्ड बौय को सौंप कर बोला, ‘ऐक्सिडैंट हुआ है. मैं इस की मां को लेने जा रहा हूं,’ और वहां से भाग गया. 2 दिन के बाद अखबार के अंदर के कोने में उस ने पढ़ा कि उस रात, किसी अज्ञात व्यक्ति ने एक अधमरे युवक का शव अस्पताल में छोड़ा था और फिर वहां से लापता हो गया था. उसी रात से मनोहर को धुंध वाला सपना आने लगा. मनोहर अपनी विधवा मां के साथ रहता था. इन सपनों के कारण उस की रोजमर्रा की जिंदगी में थोड़ाबहुत बदलाव जो आया, वह उस की मां की नजरों से छिप तो नहीं सकता था, पर जब भी वे इस मामले में कोई सवाल करती थीं, तो मनोहर बात टाल जाता था.

मनोहर 28 साल का हो चुका था. अच्छी नौकरी कर रहा था. उस की मां चाहती थीं कि वे जल्दी से जल्दी मनोहर की शादी कर दें, ताकि दिनभर बात करने के लिए उन्हें एक बहू मिल जाए और साल के अंदर वंश चलाने के लिए एक पोता. मनोहर भी शादी करने की सोच रहा था, पर हादसे के बाद से उस का मिजाज बदल गया. शादी की बात उस के दिमाग से निकल सी गई. बस, एक बात बारबार उस के मन में आती, ‘मेरी लापरवाही के कारण किसी ने अपना बेटा खो दिया था.’ अपने दोष को भुलाने के लिए मनोहर दिनरात काम में जुटा रहने लगा. दिन में तो दफ्तर की चहलपहल में उस का ध्यान बंट जाता था पर रात को, खासकर धुंध वाला सपना आने के बाद, उस पर उदासी छा जाती थी. उस रात के बाद उस ने कभी शराब को हाथ न लगाया और कंपनी की पार्टियों में भी शराब परोसना बंद कर दिया. हादसे के 6 महीने बाद मनोहर के दफ्तर में एक नई लड़की भरती हुई. उस का नाम मीना था और वह सीधे कालेज से बीए करने के बाद नौकरी करने आई थी. मीना को उस का काम समझाने की जिम्मेदारी मनोहर को सौंपी गई. मीना काफी बुद्धिमान थी और उस में काम सीखने का जोश भी था. मनोहर उस की लगन से बहुत खुश था. धीरेधीरे मनोहर मीना की ओर आकर्षित होने लगा और उसे लगने लगा कि मीना उस के लिए एक आदर्श जीवनसाथी बन सकती है. उस के साथ शादी कर के जिंदगी काफी मजे में कट सकेगी. पर शराफत के भी कुछ नियम होते हैं. मनोहर ने अपनी भावनाओं के बारे में मीना को तनिक भी ज्ञान होने नहीं दिया.

एक दिन सुबह मीना मनोहर के केबिन में आई.

‘‘गुड मौर्निंग, सर.’’

‘‘गुड मौर्निंग, मीना,’’ मनोहर ने जवाब दिया.

‘‘जन्मदिन मुबारक हो, सर. हैप्पी बर्थडे.’’

‘‘धन्यवाद,’’ मनोहर बोला, ‘‘पर मैं हैरान हूं. आज तक तो इस दफ्तर में किसी ने मुझे जन्मदिन की बधाई नहीं दी. तुम्हें कैसे पता चला कि आज मेरा बर्थडे है?’’ मीना पहले थोड़ा शरमाई और फिर उस ने जवाब दिया, ‘‘आप को याद होगा कि पिछले हफ्ते आप ने मुझे अपना ड्राइविंग लाइसैंस दिया था उस की फोटोकौपी बनवाने के लिए. मैं ने उसी में देख लिया था कि आप का जन्मदिन कब है.’’ उस की बात सुन कर मनोहर को बहुत अच्छा लगा. वह सोचने लगा कि शायद मीना उसे पसंद करने लगी है. उसी दिन दोपहर को बारिश हुई और फिर लगातार काफी तेज होती ही रही. मनोहर जानता था कि मीना लोकल बस से घर जाती थी. उस ने मीना को बुलाया और पूछा, ‘‘तुम्हारे पास छतरी है?’’

‘‘नहीं, सर,’’ मीना ने जवाब दिया, ‘‘आज सुबह तो आसमान बिलकुल साफ था, इसलिए मैं अपनी छतरी घर पर ही छोड़ आई.’’

‘‘तब तो तुम घर जातेजाते बिलकुल भीग जाओगी.’’

‘‘कोई बात नहीं, सर. मैं बारिश में कई दफे भीगी हूं.’’

‘‘पर तुम बीमार पड़ सकती हो,’’ मनोहर के स्वर में चिंता भरी हुई थी, ‘‘तुम रहती कहां हो?’’

‘‘बापूनगर में, सर,’’ मीना ने बताया.

‘‘वह मेरे घर जाने के रास्ते से कोई खास दूरी पर नहीं है. आज मैं तुम्हें कार से तुम्हारे घर पर छोड़ूंगा.’’

‘‘नहीं, सर, इस की जरूरत नहीं है,’’ मीना ने मनोहर की बात का विरोध किया, ‘‘आप को खामखां दिक्कत होगी. मैं खुद चली जाऊंगी रोज की तरह.’’ पर मनोहर ने मीना की एक न सुनी, और उसे अपनी कार से घर पहुंचाया. अगले दिन मीना ने मनोहर से कहा, ‘‘सर, मैं ने आप के बारे में अपने मातापिता को बताया. वे बहुत खुश थे कि आप जैसे बड़े अफसर ने मुझ पर एहसान किया और मुझे भीगने से बचाया. वे आप से मिलना चाहते हैं. हमारे यहां किसी दिन चाय पीने आइए.’’

‘‘जरूर आऊंगा,’’ मनोहर ने जवाब दिया. मन ही मन उस ने सोचा कि यह अच्छा मौका होगा, यह तय करने के लिए कि मीना से मेरी शादी करने की कितनी संभावना है. कुछ दिन बाद मनोहर को मीना के साथ चाय पीने का मौका मिला. उन के दफ्तर में यह ऐलान हुआ कि अगले दिन शाम को शहर में बड़े जुलूस के कारण सड़कें बंद कर दी जाएंगी, इसलिए दफ्तर में 2 घंटे पहले छुट्टी होगी. मनोहर ने मौके का फायदा उठा कर मीना को सूचित कर दिया कि अगले दिन वह मीना के साथ उस के घर जाएगा. अगली शाम 4 बजे जब छुट्टी मिली तो मनोहर मीना को ले कर उस के घर की ओर चला. रास्ते में उस ने मीना के बारे में उस से जानकारी हासिल करने की कोशिश की.

‘‘तुम्हें किस तरह की फिल्में पसंद आती हैं?’’ उस ने पूछा.

‘‘जो टीवी में आ जाएं, वही देखती हूं, सर,’’ मीना ने जवाब दिया, ‘‘सिनेमाहौल में जाने का मौका सिर्फ वीकेंड पर मिलता है और तब भीड़ के कारण टिकट नहीं मिलता.’’

‘‘तुम्हारे कितने भाईबहन हैं?’’ मनोहर ने आगे बढ़ कर सवाल किया.

‘‘मेरा एक भाई था, पर पिछले साल एक हादसे में उस का देहांत हो गया,’’ यह कहतेकहते मीना की आवाज कुछ टूट सी गई. मनोहर को लगा कि जैसे उस ने कोई पुराना घाव कुरेद दिया है. उस ने ‘आई एम सौरी’ कहा और बाकी रास्तेभर चुप ही रहा. मीना का घर एक मिडल क्लास दो बैडरूम का अपार्टमैंट था. उस के मातापिता बड़े प्यार से मनोहर से मिले. मीना के पिता ने तकरीबन 35 साल नौकरी करने के बाद भारतीय रेलवे से अवकाश प्राप्त किया था. बैठक में बैठ कर वे और मनोहर आने वाले चुनाव के बारे में बात करने लगे. मीना और उस की मां अंदर जा कर चाय का बंदोबस्त करने लगीं. बात करतेकरते मनोहर की नजर इधरउधर घूम रही थी. अचानक उसे बड़े जोर का झटका लगा और वह हैरान रह गया. सामने दीवार पर एक बड़ी सी तसवीर लगी हुई थी, जिस पर पुष्पमाला पड़ी हुई थी. और तसवीर उसी नौजवान की थी जो मनोहर की कार के नीचे आ गया था. मनोहर अपनी आंखों पर विश्वास खो बैठा.

‘‘आज के नेता अपनी कुरसी की ज्यादा और जनता की खुशहाली की चिंता कुछ कम ही करते हैं…’’

‘‘माफ करना सर,’’ मनोहर ने उन की बात काटी, ‘‘पर क्या मैं पूछ सकता हूं कि दीवार पर लगी यह फोटो किस की है?’’

मीना के पिता एकदम चुप हो गए. फिर कुछ रुक कर बोले, ‘‘यह हमारा इकलौता बेटा प्रशांत था, मीना का भाई. पिछले साल एक दुर्घटना में इस का देहांत हो गया. पर इस के बारे में तुम मीना या उस की मां के सामने कुछ नहीं पूछना. वे दोनों अपना गम अभी तक भुला नहीं पाई हैं. इस के बारे में सोच कर वे आज भी बहुत भावुक हो जाती हैं.’’

मनोहर का सिर चकराने लगा. उस ने सोचा, ‘जिस लड़की से मैं शादी करना चाहता हूं, उसी के इकलौते भाई की मौत का जिम्मेदार मैं ही हूं.’ बाकी शाम कैसे कटी, मनोहर को ठीक से याद नहीं. कुछ खाया, कुछ बोला, सबकुछ स्वचालित था. मीना की मां ने उस की फैमिली के बारे में पूछा. जब उस ने यह बताया कि उस की शादी अभी तक नहीं हुई है, तो मीना के मांबाप ने नजरें मिलाईं. पर खयालों में डूबे हुए मनोहर ने कुछ नहीं देखा. मीना के साथ एक आनंदमय जिंदगी बिताने के उस के सपने चूरचूर हो गए थे. तकरीबन 1 महीना बीत गया. एक दिन, बातचीत के दौरान, मीना ने मनोहर से कहा, ‘‘सर, मेरे मातापिता मेरी शादी कराना चाहते हैं. वे मेरे लिए दूल्हा ढूंढ़ रहे हैं. अगर आप की नजर में कोई योग्य लड़का हो तो उन्हें सूचित कर दें. वे जातिपांति को नहीं मानते हैं, न ही कुंडली मिलवाना जरूरी समझते हैं, पर लड़का कामकाजी होना चाहिए. और यह भी खयाल रखें कि हम कोई खास दहेज नहीं दे सकेंगे.’’

‘‘मैं देखता हूं. अगर कोई मिल गया तो अवश्य उन्हें बता दूंगा,’’ मनोहर ने जवाब दिया, पर मन ही मन वह अपनेआप को कोसने लगा. वह जानता था कि वह मीना के लिए लड़का कभी नहीं ढूंढ़ेगा. कुछ दिन बाद मीना ने अपनी शादी की बात फिर छेड़ी. उस ने कहा, ‘‘मेरी शादी के दौरान मुझे बस एक ही गम रहेगा.’’

‘‘वह क्या?’’ मनोहर ने पूछा.

‘‘वह यह कि मेरा प्यारा भाई प्रशांत मुझे दुलहन के रूप में देखने के लिए वहां नहीं होगा. वह हमेशा कहता था कि मेरी शादी में वह खूब नाचेगा,’’ मीना की आवाज में निराशा थी.

‘‘यह तो उचित है,’’ मनोहर ने माना.

‘‘काश, वह उस दिन दोपहर के खाने के तुरंत बाद अपने दोस्तों के साथ स्विमिंग पूल नहीं गया होता.’’

‘‘क्या मतलब?’’ मनोहर ने पूछा.

‘‘आप को पता नहीं कि प्रशांत की मौत कैसे हुई?’’ मीना ने पूछा. और बात को आगे बढ़ाते हुए बोली, ‘‘वह लंच के फौरन बाद तैरने गया. पूल में अचानक उस के पेट में मरोड़ उठने लगी और वह डूब कर मर गया. उस के दोस्तों ने और वहां मौजूद लाइफगार्ड ने उसे बचाने की बहुत कोशिश की, पर शायद उस की मौत का वक्त आ चुका था. एक हफ्ते पहले ही वह सैलफोन पर बात में व्यस्त हालत में एक कार के रास्ते में आ गया था. पर लगता है कार कोई शरीफ आदमी चला रहा था क्योंकि उस की गलती नहीं होने पर भी उस ने प्रशांत को अस्पताल पहुंचाया. और फिर गायब हो गया. उस हादसे में तो वह बच गया लेकिन…’’ मनोहर को लगा कि जैसे एक पहाड़ उस के सिर पर से उठ गया हो. मन ही मन उस ने अपनेआप से वादा किया कि अगले ही दिन वह मीना के घर जा कर उस के मांबाप से मिल कर मीना का हाथ मांगेगा. और उस को यकीन था कि उस दिन के बाद वह डरावना सपना उसे फिर कभी नहीं आएगा. Short Story

Romantic Story In Hindi: दिल पे न जोर कोई

Romantic Story In Hindi: रीमा जल्दी से जूस दे दो, बहुत थकान हो रही है, आशीष ने अपना पसीना पोंछते हुए कहा.

‘‘हां, अभी लाई,’’ कह रीमा रसोई में चली गई.

यह आशीष का रोज का काम था. अगले दिन आशीष बोला, ‘‘सुनो रीमा, मेरा कालेज का दोस्त मनीष अपने अपार्टमैंट में शिफ्ट हो गया है… वही जिस के बेटे के जन्मदिन पर हम गए नहीं थे… आज मिला, जब मैं जिम से आ रहा था. वह तो झल्ला सा है, लेकिन उस की बीवी गजब की खूबसूरत है, आशीष बोला.

‘‘हमें क्या वह जाने और उस की बीवी,’’ रीमा बोली.

‘‘तुम जल्दी से नहा लो मैं नाश्ता तैयार करती हूं.’’

रीमा नोट कर रही थी कि आजकल आशीष जिम में ज्यादा देर लगा रहा है. अत: एक दिन उस ने पूछ ही लिया, ‘‘क्या बात है देर कैसे हो गई? आज क्या खास बात है… जिम से पसीनापसीना हो कर आए, फिर भी चेहरे पर अलग ही खुशी झलक रही है? रोज की तरह अपनी थकान का रोना नहीं?’’ रीमा ने चुटकी लेते हुए आशीष से कहा.

‘‘क्या मैं रोज थकान का रोना रोता हूं?

अरे अपनेआप को फिट रखना क्या इतना आसान है? कभी जिम जा कर देख आओ कि अपनेआप को मैंटेन करने के लिए कितनी मशक्कत करनी पड़ती है. लो हो गए शुरू…. मेरी तरह 2 बच्चे पैदा करो पहले, फिर फिटनैस की बात करो मुझ से,’’ रीमा ने कहा.

‘‘पर आज तुम देर से आए… कोई खास बात?’’

‘‘नहीं कुछ खास नहीं,’’ आशीष बोला.

‘‘अरे वह मेरे दोस्त की पत्नी जिया जिम आती है आजकल, तो बस बातों में टाइम लग गया. क्या ऐक्सरसाइज करती है. तभी इतनी फिट है… कोई उस की उम्र का अंदाजा भी नहीं लगा सकता,’’ कह आशीष नहाने चला गया.

रीमा को आशीष के इरादे नेक न लगे. अब यह रोज का काम हो गया था.

आशीष रोज अपनी बेटी को स्कूल बस में छोड़ने जाता. उधर से जिया अपने बेटे को ले कर आती. दोनों बातें करते और देर हो जाती. कभी आशीष स्विमिंग पूल जाता तो जिया वहां मिल जाती… जब रीमा उन्हें आते बालकनी से देखती तो कुढ़ जाती.

कुछ दिन पहले अपार्टमैंट में न्यू ईयर पार्टी थी. दोनों दोस्त अपने परिवारों के साथ पार्टी हौल में आए. जिया को देख आशीष के चेहरे की मुसकराहट दोगुनी हो गई और रीमा उन्हें देख कर अपनी सहेलियों की तरफ बढ़ने लगी. ये मेरी सब से अच्छी सहेलियां हैं. हम इन्हीं के साथ रहेंगे. तुम्हारा दोस्त तो झल्ला सा है पर ये लोग तो बहुत अच्छी हैं.’’

आशीष बोला, ‘‘बस दोस्त ही झल्ला है, जिया को देखो… आज भी कितनी सुंदर ड्रैस पहन कर आई है. पूरी फिगर निखर कर आ रही है और उस लंगूर को देखो… वही कपड़े जो औफिस में पहन कर जाता है.’’

रीमा आशीष को वहां से खींच कर ले गई. आशीष था तो रीमा के साथ, लेकिन नजरें जिया पर ही टिकी थीं. जिया भी आशीष की प्लैंजेंट पर्सनैलिटी से बहुत प्रभावित थी सो जब आशीष उसे देखता तो मुसकरा देती. उस का अपना पति तो किसी चीज का शौकीन नहीं था. उसे तो पार्टी में भी खींच कर लाना पड़ता. न तो वह कपड़े ढंग से पहनता न ही जूते. जबकि जिया हर वक्त मौसम के हिसाब से बनीठनी रहती. तभी तो आशीष मनीष के लिए लंगूर के हाथ में अंगूर बोलता.

एक दिन आशीष ने मनीष की फैमिली को डिनर पर बुलाया. रीमा कहने लगी,

‘‘जब तुम्हें अपना दोस्त पसंद ही नहीं तो क्यों बुलाते हो उसे?’’

आशीष बोला, ‘‘अच्छा नहीं लगता… इतने दिन हुए यहां आए उन्हें… हम ने एक बार भी अपने घर नहीं बुलाया?’’

‘‘तो उन्होंने कौन सा बुलाया?’’ रीमा चिढ़ कर बोली.

संडे को जिया पूरे परिवार के साथ आशीष के घर थी. जब आशीष ने उस से औैर बातें कीं तो वह उस के नौलेज को देखता ही रह गया. उसे मन ही मन लगने लगा कि कहां मनीष कहां जिया. उस ने जिया की बहुत तारीफ  की. रीमा को यह सब फूटी आंख नहीं सुहा रहा था.

मनीष का परिवार खाना खा कर चला गया. उन के जाने के बाद आशीष बोला, ‘‘जिया ने अपने बच्चों की परवरिश बहुत सही तरीके से की है. कितने सलीके से बात करते हैं और पढ़ाई में भी अच्छे हैं.’’

‘‘तो हमारे कौन से कम हैं?’’ रीमा का जवाब सुन आशीष ने चुप्पी लगा ली.

अब आशीष के घर अकसर जिया की बात होती जो रीमा को जरा भी न सुहाती. उसे ऐसा लगता जैसे आशीष के दिलोदिमाग में जिया रचबस गई है.

उधर जिया भी मनीष से अकसर आशीष की ही बातें करती. कहती, कितना शौकीन है तुम्हारा दोस्त आशीष. हर वक्त हंसीठहाके लगाता रहता है… सोसायटी के कार्यक्रमों में भी कितना आगे रहता है… हर प्रोग्राम में उस का नाम अनाउंस होता है, स्पोर्ट्स में, कल्चरल्स में.

शायद जिया और आशीष एकदूसरे को मन ही मन चाहने लगे थे. इसीलिए दोनों अपनेअपने परिवार में एकदूसरे की बात किया करते. मनीष का तो इस तरफ ध्यान नहीं पड़ा क्योंकि वह अपनी ही दुनिया में मस्त रहता, लेकिन रीमा मन ही मन जिया से जलने लगी थी. यहां तक कि अपने बच्चों से भी कहती कि जिया के बच्चों के साथ न खेलें.

जिया के बच्चे जब उन से खेलने को कहते तो रीमा की बेटी कहती, ‘‘नहीं मम्मी डांटेंगी.’’ जब यह बात जिया को पता चली तो उसे बहुत बुरा लगा.

एक दिन स्कूल बस जल्दी आ गई और जिया व आशीष दोनों के बच्चों की बस छूट गई. आशीष बोला, ‘‘मैं कार से ड्रौप कर आता हूं.’’

‘‘ओके,’’ जिया बोली लेकिन जिया का बेटा नए अंकल के साथ जाने को तैयार नहीं. अत: जिया भी उस के साथ कार में पीछे की सीट पर बैठ गई.

आशीष ने कहा,‘‘ जिया, यू कैन कम टू फ्रंट सीट.’’

‘‘आई डौंट माइंड,’’ जिया ने कहा और कार की अगली सीट पर आ कर बैठ गई.

रीमा की सहेली ने जब यह बात रीमा को बताई तो उस के तो जैसे होश उड़ गए. अत: अगले दिन वह आशीष से बोली, ‘‘बच्चों को स्कूल बस तक मैं ही छोड़ जाऊंगी. तुम्हें वहां बहुत समय लग जाता है.’’

आशीष को कुछ समझ न आया कि रीमा क्या कहना चाहती है. लेकिन जब वह बस स्टौप पर गई तो उसे जिया फूटी आंख न सुहाई. दूसरी सहेलियों के साथ खड़ी बातों ही बातों में वह जिया को ताने मारने लगीं. जिया को भी समझते देर न लगी. लेकिन क्या करती. पहले दिन वही तो उस के पति के साथ कार की आगे की सीट पर बैठ कर गई थी. वह चुपचाप अपने बेटे को बस में बैठा कर वहां से चली गई.

रीमा जब लौट कर आई तो देखा आशीष बालकनी में खड़ा जिया से जोरजोर से बातें कर रहा था.

रीमा जिया के पास पहुंच कर बोली, ‘‘जिया के घर में ही आ जाओ न… ऐसे जोरजोर से बातें करना अच्छा नहीं लगता न.’’

कहने को तो रीमा घर आने का आग्रह कर रही थी, लेकिन उस के चेहरे की कुटिल मुसकान देख जिया समझ गई थी कि रीमा क्या कहना चाह रही है. अत: वह वहां से चुपचाप चल दी. पीछे मुड़ कर देखा तो आशीष बालकनी से उसे हाथ हिला कर बायबाय कर रहा था.

घर आ कर जिया बहुत उदास थी. मन ही मन सोच रही थी कि रीमा की गलती भी तो नहीं… आखिर उस का पति है आशीष… पर स्वयं भी क्या करे? बस बात ही तो कर रही थी उस से… अगर उसे आशीष से बात करना अच्छा लगता है तो उस में बुराई भी क्या है? क्या किसी के पति से बात करना गुनाह है? रीमा इतनी चिढ़ क्यों गई?

एक दिन जब आशीष औफिस चला गया तो जिया ने रीमा को इंटरकौम किया, ‘‘रीमा, इस रविवार तुम सपरिवार हमारे घर आओ, डिनर साथ ही करेंगे.

रीमा ने बहाना बनाते हुए कहा, ‘‘दरअसल, उस दिन के हमारे मूवी टिकट आए हैं. हम पिक्चर देखने जाएंगे, इसलिए नहीं आ पाएंगे.’’

‘‘ओके, नो प्रौब्लम… फिर कभी,’’ औैर इंटरकौम रख दिया.

शाम के समय जब जिया अपने बेटे के साथ स्विमिंग के लिए गई तो आशीष नीचे ही मिल गया. जिया ने पूछा, ‘‘गए नहीं मूवी के लिए?’’

आशीष बोला, ‘‘कौन सी मूवी?’’

जिया बोली, ‘‘रीमा ने कहा था कि तुम लोग आज मूवी देखने जा रहे हो.’’

आशीष को कुछ समझ न आया कि ऐसा क्यों बोला रीमा ने. लेकिन जिया सब समझ गई थी कि रीमा उसे पसंद नहीं करती. आशीष ने

घर आ कर रीमा से पूछा तो बोली, ‘‘हां कह दिया ऐसे ही… जब वह मुझे पसंद नहीं, तो क्यों दोस्ती बढ़ाऊं?’’

आशीष मन ही मन तड़प उठा कि यह जिया के लिए कितना इनसल्टिंग है? पर क्या करता.

अब रोज रीमा ही बच्चों को स्कूल बस तक छोड़ने जाती. जिया आशीष से मिलने को तरस गई थी. कभी नीचे मिलती तो रीमा की घूरती नजरें देख वह बात न कर पाती. बस अपना रास्ता बदल लेती. आखिर रीमा आशीष की पत्नी है, सो आशीष पर हक तो उसी का है. अब जिया को आशीष को देखे बगैर चैन न मिलता. रीमा को जब भी मौका मिलता जिया को ताना मार ही देती. एक बार तो किट्टी पार्टी में जब सब महिलाएं बोलीं कि बच्चों को संभालने में ही सारा वक्त बीत जाता है. तो रीमा ने जिया की तरफ आंखें मटकाते हुए कहा, ‘‘बच्चों को ही नहीं पति को भी तो संभालना पड़ता है… बहुत शूर्पणखा हैं यहां जो डोरे डालने आ जाती हैं.’’

अपने लिए शूर्पणखा शब्द सुन जिया को बहुत बुरा लगा. उस की आंखें भर आईं. लेकिन दिल से मजबूर थी. सो पलट कर कुछ न बोली. आखिर रीमा पत्नी का हक रखती है. इसीलिए बोल रही है. फिर क्या पता उस के दिल में बसी यह चाहत एकतरफा हो… पता नहीं आशीष उसे चाहता भी है या नहीं? फिर मन ही मन सोचने लगी काश, मुझे आशीष जैसा पति मिला होता तो शायद यह न होता. कहने को तो मनीष बहुत ठीक है, लेकिन इतना पढ़ाकू , कैरियर कौंशस, न ही कोई शौक न इच्छाएं. पर उस में मनीष का दोष भी तो नहीं. सब देखभाल कर ही तो जिया ने इस विवाह के लिए हामी भरी थी. मनीष तो घर के लिए अपनी जिम्मेदारी पूरी तरह निभा ही रहा है. बस उस का ही दिल है कि न जाने क्यों आशीष की तरफ खिंचा जाता है.

अब जिम ही बस एकमात्र ठिकाना था जहां दोनों मिल सकते थे. सो वहीं थोड़ी देर मिल कर बात कर लेते. लेकिन कहते हैं न इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते सो जिम में आसपास वर्कआउट करते लोग उन्हें बातें करते चोर नजरों से देखते और कभीकभी तो कोई टौंट भी मार देते.

अब जिया को लगने लगा कि पानी सिर से ऊपर जा रहा है. अत: उस ने अपने जिम का टाइम चेंज करा लिया. आशीष से बात न करने की ठान ली.

कई दिन जब जिया दिखाई न दी तो आशीष अनमना सा हो गया. फिर एक दिन अपने दोस्त से मिलने के बहाने जिया के घर चला गया. घर में जिया अकेली थी. आशीष ने जिया से अपने दिल की बात कह डाली. सुन कर जिया खिल उठी. अब दोनों ने तय किया कि अपार्टमैंट के बाहर मिला करेंगे. रीमा ने अपार्टमैंट की सभी महिलाओं को भी बता दिया था कि जिया कैसे उस के पति पर डोरे डाल रही है. अत: सभी महिलाओं ने उस से दूरी बना ली थी.

एक दिन आशीष औफिस से जल्दी निकल गया और फिर जिया को फोन कर पास ही की कौफी शौप में बुला लिया. जिया भी झट से बनठन कर उस से मिलने चली आई. कहने को तो कौफी शौप खचाखच भरा था, लेकिन उन दोनों के लिए तो जैसे पूरा एकांत था. दोनों आंखों में आंखें डाले मुसकरा कर बातें कर रहे थे कि तभी जिया की नजर रीमा की सहेली पर पड़ी.

वह वहां अपने पति के साथ आई थी. दोनों को साथ देख कर बोली, ‘‘हैलो, आप दोनों यहां?

नो प्रौब्लम ऐंजौय. ऐंजौय पर उस ने जो जोर डाला जिया समझ गई कि टौंट मार कर गई है. आशीष और जिया भी शीघ्र ही अपने घर रवाना हो गए. अगले दिन बच्चों को स्कूल बस में छोड़ने बस स्टौप पर जिया नहीं गईर् और मनीष को भेजा. वह जानती थी कि आज रीमा उसे नहीं छोड़ने वाली. मनीष जब घर आए तो कुछ उखड़े हुए दिखाई दिए.

जिया ने पूछा, ‘‘क्या हो गया?’’

‘‘रीमा तुम्हारी शिकायत कर रही थी. सब लोगों के सामने मुझे बहुत बुराभला कहा.’’

जिया के तो मानो पैरों तले की जमीन खिसक गई हो. झट से नहाने का बहाना कर बाथरूम में चली गई. क्या करती बेचारी. एक तरफ पति तो दूसरी तरफ प्यार. वहीं खड़े कुछ आंसू बहा आई.

उस दिन मनीष दफ्तर नहीं गया. बोला, ‘‘ हम घर बदल लेते हैं जिया.’’

अगले ही महीने वे नए अपार्टमैंट में शिफ्ट हो गए. इतना ही नहीं मनीष ने दूसरे शहर में ट्रांसफर के लिए दफ्तर में रिक्वैस्ट भी दे दी. शहर तो बदल गया, लेकिन जिया के मन में आशीष की याद सदा के लिए रह गई. कोशिश करती कि भूल जाए, किंतु भुलाए न भूलती. दिल के हाथों मजबूर थी. उस ने तो सोचा भी न था कि कभी प्यार इतने दबे कदमों आएगा और उस के दिल पर सदा के लिए अपना राज कर लेगा.  बरस बीते, किंतु चंद लमहे जो आशीष के साथ बिताए थे, उस के मन को तरोताजा कर जाते. वह मुसकरा उठती और मन ही मन कहती दिल पे न जोर कोई. Romantic Story In Hindi

Short Story In Hindi: ठीक हो गए समीकरण

Short Story In Hindi: ‘‘प्रैक्टिकल होने का क्या फायदा? लौजिक बेकार की बात है. प्रिंसिपल जीवन में क्या दे पाते हैं? सिद्धांत केवल खोखले लोगों की डिक्शनरी के शब्द होते हैं, जो हमेशा डरडर कर जीवन जीते हैं. सचाई, ईमानदारी सब किताबी बातें हैं. आखिर इन का पालन कर के तुम ने कौन से झंडे गाड़ लिए,’’ सुकांत लगातार बोले जा रहा था और उसे लगा जैसे वह किसी कठघरे में खड़ी है. उस के जीवन यहां तक कि उस के वजूद की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं. सारे समीकरण गलत व बेमानी साबित करने की कोशिश की जा रही है.

‘‘जो तुम कमिटमैंट की बात करती हो वह किस चिडि़या का नाम है… आज के जमाने में कमिटमैंट मात्र एक खोखले शब्द से ज्यादा और कुछ नहीं है. कौन टिकता है अपनी बात पर? अपने हित की न सोचो तो अपने सगे भी धोखा देते हैं और तुम हो कि सारी जिंदगी यही राग अलापती रहीं कि जो कहो, उसे पूरा करो.’’

‘‘तुम कहना चाहते हो कि झूठ और बेईमान ही केवल सफल होते हैं,’’ सुकांत की

इतनी कड़वी बातें सुनने के बावजूद वह उस की संकीर्ण मानसिकता के आगे झुकने को तैयार नहीं थी. आखिर कैसे वह उस की जिंदगी के सारे फलसफे को झुठला सकता है? जिस आदमी को उस ने अपनी जिंदगी के 25 साल दिए हैं, वही आज उस का मजाक उड़ा रहा है, उस की मेहनत, उस के काम और कबिलीयत सब को इस तरह से जोड़घटा रहा है मानो इन सब चीजों का आकलन कैलकुलेटर पर किया जाता हो. हालांकि जिस तरह से सुकांत की कनविंस व मैनीपुलेट करने की क्षमता है, उस के सामने कुछ पल के लिए तो उस ने भी स्वयं को एक फेल्योर के दर्जे में ला खड़ा किया था.

‘‘अगर तुम ने यह ईमानदारी और मेहनत का जामा पहनने के बजाय चापलूसी और डिप्लोमैसी से काम लिया होता तो आज अपने कैरियर की बुलंदियों को छू रही होती. सोचो तो उम्र के इस पड़ाव पर तुम कहां हो और तुम से जूनियर कहां निकल गए हैं. अचार डालोगी अपनी काबिलीयत का जब कोई पूछने वाला ही नहीं होगा,’’ सुकांत के चेहरे पर एक बीभत्सता छा गई थी. लग रहा था कि आज वह उस का अपमान करने को पूरी तरह से तैयार था. अपनी हीनता को छिपाने का इस से अच्छा तरीका और हो भी क्या सकता था उस के लिए कि वह उस के सम्मान के चीथड़े कर दे.

‘‘फिर तो तुम्हारे हिसाब से मैं ने जो ईमानदारी और पूर्ण समर्पण के साथ तुम्हारे साथ अपना रिश्ता निभाया, वह भी बेमानी है. मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था,’’ उस ने थोड़ी तलखी से कहा.

‘‘मैं रिश्ते की बात नहीं कर रहा. दोनों चीजों को साथ न जोड़ो. मैं तुम्हारे कैरियर के बारे में बात कर रहा हूं,’’ सुकांत जैसे हर तरह से मोरचा संभाले था.

‘‘क्यों, यह बात तो हर चीज पर लागू होनी चाहिए. तुम अपने हिसाब से जब चाहो मानदंड तय नहीं कर सकते… और जहां तक मेरी बात है तो मैं अपने से संतुष्ट हूं खासकर अपने कैरियर से. तुम ने कभी न तो मुझे मान दिया है और न ही दे सकते हो, क्योंकि तुम्हारी मानसिकता में ऐसा करना है ही नहीं. किसे बरदाश्त कर सकते हो तुम,’’ न जाने कब का दबा आक्रोश मानो उस समय फूट पड़ा था. वह खुद हैरान थी कि आखिर उस में इतनी हिम्मत आ कहां से गई.

‘‘ज्यादा बकवास मत करो नीला, कहीं मेरा धैर्य न चुक जाए,’’ बौखला गया था सुकांत. इतना सीधा प्रहार इस से पहले नीला ने उस पर कभी नहीं किया था.

‘‘तुम्हारा धैर्य तो हमेशा बुलबुलों की तरह धधकता रहा है… मारोगे? गालियां दोगे? इस के सिवा तुम कर भी क्या सकते हो? अच्छा यही होगा हम इस बारे में और बात न करें,’’ नीला बात को आगे नहीं बढ़ाना चाहती थी. फायदा भी कुछ नहीं था. सुकांत जब पिछले 24 सालों में नहीं बदला तो अब क्या बदलेगा. जो अपनी पत्नी की इज्जत करना न जानता हो, उस से बहस करने से कुछ हासिल नहीं होने वाला था.

नीला को बस इसी बात का अफसोस था कि वह अपने बेटे को सुकांत के इन्फलुएंस से बचा नहीं पाई थी. पता नहीं क्यों नीरव को हमेशा लगता था कि पापा ही ठीक हैं. संस्कारों की जो पोटली उस ने बचपन में नीरव को सौंपी थी वह उस ने बड़े होने के साथ ही कहीं दुछती पर पटक दी थी. उस के बाद उसे कभी खोलने की कोशिश नहीं की. वह बहुत समझाती कि नीरव खुद अपनी आंखों से दुनिया देखो, पापा के चश्मे से नहीं. पर वह भी उस की बेइज्जती कर देता. उस की बात अनसुनी कर पापा के खेमे में शामिल हो जाता. वह मनमसोस कर रह जाती. स्कूलकालेज और उस के बाद अब नौकरी में भी वह पापा के बताए रास्ते पर ही चल रहा है.

अपने बेटे को गलत रास्ते पर जाते देखने के बावजूद वह कुछ नहीं कर पा रही थी.

उस पीड़ा को वह दिनरात सह रही थी और नीरव की जिंदगी को ले कर ही वह उस समय सुकांत से लड़ पड़ी थी. विडंबना तो यह थी कि नीरव की बात करने के बजाय सुकांत उस की जिंदगी के पन्नों को ही उलटनेपलटने लगा था. यह सच था कि वह डिप्लोमैसी से सदा दूर रही और सिर्फ काम पर ही उस ने ध्यान दिया और इस वजह से वह बहुत तेजी से उन लोगों की तुलना में कामयाबी की सीढि़यां नहीं चढ़ पाई जो खुशामद और चालाकी की फास्ट स्पीड ट्रेन में बैठ आगे निकल गए थे. लेकिन उसे अफसोस नहीं था, क्योंकि उस की ईमानदारी ने उसे सम्मान दिलाया था.

कई बार सुकांत के रवैए को देख कर उस का भी विश्वास डगमगा जाता था पर वह संभल जाती थी या शायद उस की प्रवृत्ति में ही नहीं था किसी को धोखा देना.

‘‘और जो तुम नीरव को ले कर मुझे हमेशा ताना मारती रहती हो न, देखना एक दिन वह बहुत तरक्की करेगा. सही राह पर चल रहा है वह. बिलकुल वैसे ही जैसे आज के जमाने की जरूरत है. लोगों को धक्का न दो तो वे आप को धकेल कर आगे निकल जाते हैं.’’

नीला का मन कर रहा था कि वह जोरजोर से रोए और उस से कहे कि वह नीरव को मुहरा न बनाए. नीला को परास्त करने का मुहरा. सुकांत उसे देख रहा था मानो उस का उपहास उड़ा रहा हो.

कितनी देर हो गई है, नीरव क्यों नहीं आया अब तक. परेशान सी नीला बरामदे के चक्कर लगाने लगी. रात के 10 बज रहे थे. मोबाइल भी कनैक्ट नहीं हो रहा था उस का. मन में अनगिनत बुरे विचार चक्कर काटने लगे. कहीं कुछ हो तो नहीं गया… औफिस में भी कोई फोन नहीं उठा रहा था. सुकांत को तो शराब पीने के बाद होश ही नहीं रहता था. वह सो चुका था.

अचानक नीला का मोबाइल बजा. कोई अंजान नंबर था. फोन रिसीव करते हुए उस के हाथ थरथराए.

‘‘नीरव के घर से बोल रहे हैं?’’

नीला के मन की बुरी आशंकाएं फिर से सिर उठाने लगीं, ‘‘क्या हुआ उसे, वह ठीक तो है न? आप कौन बोल रहे हैं?’’ उस का स्वर कांप रहा था.

‘‘वैसे तो वे ठीक हैं, पर फिलहाल जेल में हैं, उन्हें अरैस्ट किया गया है. अपनी कंपनी में कोई घोटाला किया है उन्होंने. कंपनी के मालिक के कहने पर उन्हें हिरासत में ले लिया गया है.’’

तभी लाइन पर नीरव के दोस्त समर की आवाज सुनाई दी, ‘‘आंटी मैं हूं नीरव के साथ. बस आप अंकल को भेज दीजिए. उस की जमानत हो जाएगी.’’

पूरी रात जेल में बीती उन तीनों की. नीला को नीरव को सलाखों के पीछे खड़ा देख लग रहा था कि वह सचमुच एक फेल्योर है. हैरानी की बात थी कि सुकांत एकदम चुप थे. न नीरव से, न ही नीला से कुछ कहा, बस उस की जमानत कराने की कोशिश में लगे रहे.

नीला को लगा नीरव को कुछ भलाबुरा कहना ठीक नहीं होगा. उस के चेहरे पर पछतावा और शर्मिंदगी साफ झलक रही थी. शायद मां ने उसे जो ईमानदारी का पाठ बचपन में सिखाया था, उसे ही वह आज मन ही मन दोहरा रहा था.

शाम हो गई थी उन्हें लौटतेलौटते. अपने को घसीटते हुए, अपनी सोच के दायरों में

चक्कर काटते हुए तीनों ही इतने थक चुके थे कि उन के शब्द भी मौन हो गए थे या शायद कभीकभी चुप्पी ही सब से बड़ा मरहम बन जाती है.

‘‘मुझे माफ कर दो मां,’’ नीरव उस की गोद में सिर रख कर सुबक उठा.

‘‘तू क्यों माफी मांग रहा है? गलती तो मेरी है. मैं ने ही तेरे मन में बेईमानी के बीज बोए, तुझे तरक्की करने के गलत रास्ते पर डाला. आज जो भी कुछ हुआ उस का जिम्मेदार मैं ही हूं और नीला मैं तुम्हारा भी गुनहगार हूं. सारी उम्र तुम्हें तिरस्कृत करता रहा, तुम्हारा उपहास उड़ाता रहा. सारे समीकरण गलत साबित कर दिए थे मैं ने. प्रिंसिपल ही जीवन में सब कुछ होते हैं, सिद्धांत खोखले लोगों की डिक्शनरी के शब्द नहीं वरन जीवन जीने का तरीका है. सचाई, ईमानदारी किताबी बातें नहीं हैं,’’ सुकांत लगातार बोले जा रहा था और नीला की आंखों से आंसू बहते जा रहे थे.

नीरव को जब उस ने सीने से लगाया तो लगा सच में आज उस की ममता जीत गई है. उस का खोया बेटा उसे मिल गया है. सारे समीकरण ठीक हो गए थे उस की जिंदगी के. Short Story In Hindi

Romantic Story In Hindi: दिल धड़कने दो

Romantic Story In Hindi: सुबह 6 बजे का अलार्म बजा तो तन्वी उठ कर हमारे 10 साल के बेटे राहुल को स्कूल भेजने की तैयारी में व्यस्त हो गई. मैं भी साथ ही उठ गया. फ्रैश हो कर रोज की तरह 5वीं मंजिल पर स्थित अपने फ्लैट में राहुल के बैडरूम की खिड़की के पास आ कर खड़ा हो गया. कुछ दूर वाली बिल्डिंग की तीसरी मंजिल के फ्लैट में उस के बैडरूम की भी लाइट जल रही थी.

इस का मतलब वह भी आज जल्दी उठ गई है. कल तो उस के बैडरूम की खिड़की का परदा 7 बजे के बाद ही हटा था. उस की जलती लाइट देख कर मेरा दिल धड़का, अब वह किसी भी पल दिखाई दे जाएगी. मेरे फ्लैट की बस इसी खिड़की से उस के बैडरूम की खिड़की, उस की किचन का थोड़ा सा हिस्सा और उस के फ्लैट का वाशिंग ऐरिया दिखता है.

तभी वह खिड़की के पास आ खड़ी हुई. अब वह अपने बाल ऊपर बांधेगी, कुछ पल खड़ी रहेगी और फिर तार से सूखे कपड़े उतारेगी. उस के बाद किचन में जलती लाइट से मुझे अंदाजा होता है कि वह किचन में है. 10 साल से मैं उसे ऐसे ही देख रहा हूं. इस सोसायटी में उस से पहले मैं ही आया था. वह शाम को गार्डन में नियमित रूप से जाती है. वहीं से मेरी उस से हायहैलो शुरू हुई थी. अब तो कहीं भी मिलती है, तो मुसकराहट और हायहैलो का आदानप्रदान जरूर होता है. मैं कोई 20-25 साल का नवयुवक तो हूं नहीं जो मुझे उस से प्यारव्यार का चक्कर हो. मेरा दिल तो बस यों ही उसे देख कर धड़क उठता है. अच्छी लगती है वह मुझे, बस. उस के 2 युवा बच्चे हैं. वह उम्र में मुझ से बड़ी ही होगी. मैं उस के पति औरबच्चों को अच्छी तरह पहचानने लगा हूं. मुझे उस का नाम भी नहीं पता और न उसे मेरा पता होगा. बस सालों से यही रूटीन चल रहा है. अभी औफिस जाऊंगा तो वह खिड़की के पास खड़ी होगी. हमारी नजरें मिलेंगी और फिर हम दोनों मुसकरा देंगे.

औफिस से आने पर रात के सोने तक मैं इस खिड़की के चक्कर काटता रहता हूं. वह दिखती रहती है, तो अच्छा लगता है वरना जीवन तो एक ताल पर चल ही रहा है. कभी वह कहीं जाती है तो मुझे समझ आ जाता है वह घर पर नहीं है… सन्नाटा सा दिखता है उस फ्लैट में फिर. कई बार सोचता हूं किसी की पत्नी, किसी की मां को चोरीछिपे देखना, उस के हर क्रियाकलाप को निहारना गलत है. पर क्या करूं, अच्छा लगता है उसे देखना. तन्वी मुझ से पहले औफिस निकलती है और मेरे बाद ही घर लौटती है. राहुल स्कूल से सीधे सोसायटी के डे केयर सैंटर में चला जाता है. मैं शाम को उसे लेते हुए घर आता हूं. कई बार जब वह मुझ से सोसायटी की मार्केट में या नीचे किसी काम से आतीजाती दिखती है तो सामान्य अभिवादन के साथ कुछ और भी होता है हमारी आंखों में अब. शायद अपने पति और बच्चों में व्यस्त रह कर भी उस के दिल में मेरे लिए भी कुछ तो है, क्योंकि रोज यह इत्तेफाक तो नहीं कि जब मैं औफिस के लिए निकलता हूं, वह खिड़की के पास खड़ी मुझे देख रही होती है.

वैसे कई बार सोचता हूं कि मुझे अपने ऊपर नियंत्रण रखना चाहिए. क्यों रोज मैं उसे सुबह देखने यहां खड़ा होता हूं  फिर सोचता हूं कुछ गलत तो नहीं कर रहा हूं… उसे देख कर कुछ पल चैन मिलता है तो इस में क्या बुरा है  किसी का क्या नुकसान हो रहा है. तभी वह सूखे कपड़े उतारने आ गई. उस ने ब्लैक गाउन पहना है. बहुत अच्छी लगती है वह इस में. मन करता है वह अचानक मेरी तरफ देख ले तो मैं हाथ हिला दूं पर उस ने कभी नहीं देखा. पता नहीं उसे पता भी है या नहीं… यह खिड़की मेरी है और मैं यहां खड़ा होता हूं. नीचे लगे पेड़ की कुछ टहनियां आजकल मेरी इस खिड़की तक पहुंच गई हैं. उन्हीं के झुरमुट से उसे देखा करता हूं.

कई बार सोचता हूं हाथ बढ़ा कर टहनियां तोड़ दूं पर फिर मैं उसे शायद साफसाफ दिख जाऊंगा… सोचेगी… हर समय यहीं खड़ा रहता है… नहीं, इन्हें रहने ही देता हूं. वह कपड़े उतार कर किचन में चली गई तो मैं भी औफिस जाने की तैयारी करने लगा. बीचबीच में मैं उसे अपने पति और बच्चों को ‘बाय’ करने के लिए भी खड़ा देखता हूं. यह उस का रोज का नियम है. कुल मिला कर उस का सारा रूटीन देख कर मुझे अंदाजा होता है कि वह एक अच्छी पत्नी और एक अच्छी मां है.

औफिस में भी कभीकभी उस का यों ही खयाल आ जाता है कि वह क्या कर रही होगी. दोपहर में सोई होगी… अब उठ गई होगी… अब उस सोफे पर बैठ कर चाय पी रही होगी, जो मेरी खिड़की से दिखता है.

औफिस से आ कर मैं फ्रैश हो कर सीधा खिड़की के पास पहुंचा. राहुल कार्टून देखने बैठ गया था. मेरा दिल जोर से धड़का. वह खिड़की में खड़ी थी. मन किया उसे हाथ हिला दूं… कई बार मन होता है उस से कुछ बातें करने का, कुछ कहने का, कुछसुनने का, पर जीवन में कई इच्छाओं को, एक मर्यादा में, एक सीमा में रखना ही पड़ता है… कुछ सामाजिक दायित्व भी तो होते हैं… फिर सोचता हूं दिल का क्या है, धड़कने दो.

सुबह 6 बजे का अलार्म बजा. मैं ने तेजी से उठ कर फ्रैश हो कर अपने बैडरूम की लाइट जला दी. समीर भी साथ ही उठ गए थे. वे सुबह की सैर पर जाते हैं. मैं ने बैडरूम की खिड़की का परदा हटाया. अपने बाल बांधे. जानती हूं वह सामने अपने फ्लैट की खिड़की में खड़ा होगा, आजकल नीचे लगे पेड़ की कुछ टहनियां उस की खिड़की तक जा पहुंची हैं. कई बार सोचती हूं वह हाथ बढ़ा कर उन्हें तोड़ क्यों नहीं देता पर नहीं, यह ठीक नहीं होगा. फिर वह साफसाफ देख लेगा कि मैं उसे चोरीचोरी देखती रहती हूं. नहीं, ऐसे ही ठीक है. तार से कपड़े उतारते हुए मैं कई बार उसे देखती हूं, कपड़े तो मैं दिन में कभी भी उतार सकती हूं, कोई जल्दी नहीं होती इन की पर इस समय वह खड़ा होता है न, न चाहते हुए भी उसे देखने का लोभ संवरण नहीं कर पाती हूं.

मैं ने कपड़े उतारते हुए कनखियों से उसे देखा. हां, वह खड़ा था. मन हुआ हाथ हिला कर हैलो कर दूं पर नहीं, एक विवाहिता की कुछ अपनी मर्यादाएं होती हैं. मेरा दिल जोर से धड़कता है जब मैं महसूस करती हूं वह अपनी खिड़की में खड़ा हो कर मेरी तरफ देख रहा है. स्त्री हूं न, बहुत कुछ महसूस कर लेती हूं, बिना किसी के कुछ कहेसुने. मैं समीर और अपने बच्चों के नाश्ते और टिफिन की तैयारी मैं व्यस्त हो गई.

तीनों शाम तक ही वापस आते हैं. मेरी किचन के एक हिस्से से उस की खिड़की का थोड़ा सा हिस्सा दिखता है, जिस खिड़की के पास वह खड़ा होता है वह शायद बैडरूम की है. किचन में काम करतेकरते मैं उस पर नजर डालती रहती हूं. सब समझ आता रहता है, वह अब तैयार हो रहा है. मुझे अंदाजा है उस के कमरे की किस दीवार पर शीशा है. मैं ने उसे वहां कई बार बाल ठीक करते देखा है.

जानती हूं किसी के पति को, किसी के पिता को ऐसे देखना मर्यादासंगत नहीं है पर क्या करूं, कुछ है, जो दिल धड़कता है उस के सामने होने पर. 10 साल से कुछ है जो उसे कहीं देखने पर, नजरें मिलने पर, हायहैलो होने पर दिल धड़क उठता है. वह अपनी कामकाजी पत्नी की घर के काम में काफी मदद करता है, बेटे को ले कर आता है, घर का सामान लाता है, कभी अपनी पत्नी को छोड़ने और लेने भी जाता है… सब दिखता है मुझे अपने घर की खिड़की से. कुल मिला कर वह एक अच्छा पति और अच्छा पिता है. कई बार तो मैं ने उसे कपड़े सुखाते भी देखा है… न मुझे उस का नाम पता है न उसे मेरा पता होगा. बस, उसे देखना मुझे अच्छा लगता है. मैं कोई युवा लड़की तो हूं नहीं जो प्यारव्यार का चक्कर हो. बस, यों ही तो देख लेती हूं उसे. वैसे दिन में कई बार खयाल आ जाता है कि क्या काम करता है वह  कहां है उस का औफिस  वह औफिस से आते ही अपनी खिड़की खोल देता है. मुझे अंदाजा हो जाता है वह आ गया है, फिर वह कई बार खिड़की के पास आताजाता रहता है. वह कई बारछुट्टियों में बाहर चला जाता है तो बड़ा खालीखाली लगता है.

10 साल से यों ही देखते रहना एक आदत सी बन गई है. वह दिखता रहता है पेड़ की पत्तियों के बीच से. दिल करता है उस से कुछ बातें करूं, कुछ कहूं, कुछ सुनूं पर नहीं जीवन में कई इच्छाओं को एक मर्यादा में रखना ही पड़ता है… कुछ सामाजिक उसूल भी तो हैं, फिर सोचती हूं दिल का क्या है, धड़कने दो. Romantic Story In Hindi

Hindi Romantic Story: अलौकिक प्रेम – सुषमा ने गौरव से दूरी क्यों बना ली

Hindi Romantic Story: कुछ दिनों से सुषमा के मन में उथलपुथल मची हुई थी. अपने आत्मीय से नाता तोड़ लेना उस के अंतर्मन को छलनी कर गया था. उस के बाद उस ने मौन धारण कर लिया था. हालांकि वह जानती थी यह मौन बहुत घातक होगा उस के लिए, लेकिन वह गहरे अवसाद में घिर गई थी. उस के डाक्टर ने कह दिया था जब तक वह नहीं चाहेगी वे उसे ठीक नहीं कर पाएंगे. सुषमा को देख कर लगता था वह ठीक होना ही नहीं चाहती है. उस का मन आज बेहद उदास था. उस की आंखों से नींद गायब थी. अचानक जाने क्या हुआ उस ने अपने 4 साल से बंद याहू मेल को खोला.

एक के बाद एक मेल वह पढ़ती गई, तो उस की यादों की परतें खुलती गईं. उसे ऐसा लग रहा था जैसे कल की बात हो जब उस ने सोशल नैटवर्किंग जौइन किया था. उस वक्त बड़ा उत्साह था उस में. रोज नएनए चेहरे जुड़ते. उन से बातें होतीं फिर वह उन्हें बाहर कर देती. लेकिन कुछ दिनों से एक चेहरा ऐसा था जो अकसर उस के साथ चैट पर होता. पहला परिचय ही काफी दमदार था उस का. ‘‘हे, आई एम डाक्टर गौरव. 28 इयर्स ओल्ड, जानवरों का डाक्टर हूं. 2 बार आईएएस का प्री और मेन निकाला है, लेकिन इंटरव्यू में रह गया. पर अभी हारा नहीं हूं. पीसीएस बन कर रहूंगा. फिलहाल एक कोचिंग सैंटर में आईएएस की कोचिंग में पढ़ाता हूं और जल्दी ही अपना कोचिंग सैंटर खोलने वाला हूं.’’

अवाक सी रह गई थी सुषमा. उस ने बस यह लिखा, ‘‘आई एम सुषमा.’’

‘‘बड़ा खूबसूरत है आप का नाम. आप जानती हैं सुषमा का क्या मीनिंग होता है?’’

‘‘मालूम है मीनिंग. आप को बताने की जरूरत नहीं है.’’

‘‘हाहाहा, बड़ी खतरनाक हैं आप. आई लाइक इट. वैसे क्या पसंद है आप को?’’

‘‘पढ़नालिखना और आप को?’’

‘‘पढ़नालिखना मुझे भी बहुत पसंद है. नहीं पढ़ूंगा तो 2 वक्त की रोटी नहीं मिलेगी. कोचिंग सैंटर में स्टूडैंट बहुत दिमाग खाते हैं. उन्हें समझाने के लिए खुद भी बहुत पढ़ना पड़ता है, यार.’’

‘‘हे, यार किसे कहा?’’

‘‘तुम्हें और किसे.’’

‘‘तुम नहीं आप कहिए मिस्टर गौरव.’’

‘‘ओके झांसी की रानी, इतना गुस्सा.’’

मन ही मन हंस पड़ी थी सुषमा. उस के बाद कुछ दिनों तक वह व्यस्त रही. फिर एक दिन जैसे ही औनलाइन हुई, उधर से मैसेज मिला, ‘‘हे, गौरव हियर, हाऊ आर यू?’’

‘‘आप को और कुछ काम नहीं है क्या? वहीं खाते, पीते और सोते हैं क्या आप?’’

‘‘हाहाहा, सारा काम नैट से ही होता है मेरा और आप ने कितना इंतजार करवाया. कहां थीं आप इतने दिन?’’

‘‘आप से मतलब और भी काम हैं हमारे.’’

‘‘ओकेओके झांसी की रानी. कोई बात नहीं, लेकिन कभीकभार आ जाया कीजिए. आप से 2 बातें कर के मन को सुकून मिलता है.’’ जाने क्यों आज सुषमा ने उस की बातों में संजीदगी महसूस की.

‘‘गौरव, क्या हुआ है. आज आप कुछ उदास हैं?’’

‘‘हां सुषमा, कुछ दिनों से घर में टैंशन चल रही है.’’

‘‘ओह किस बात पर?’’

‘‘घर के लोग चाहते हैं कि मैं कोई जौब कर लूं या अपना क्लिनिक खोल लूं. जबकि मेरा सपना है प्रशासनिक अधिकारी बनने का. रोजरोज इस बात पर घर में कलह होता है. समझ में नहीं आता कि हम क्या करें?’’

‘‘इतना परेशान मत होइए आप. सब ठीक हो जाएगा. खुद पर भरोसा रखिए. आप का सपना जरूर पूरा होगा.’’

‘‘सुषमा, आप की इन बातों से हमें बहुत बल मिलता है. आप हमारी अच्छी दोस्त बनोगी? हम बुरे इंसान नहीं हैं.’’

‘‘हम दोस्त तो हैं गौरव. यह अच्छा और बुरा क्या होता है?’’

‘‘हाहाहा, कैसे समझाऊं आप को. अच्छा, एक छोटा सा फेवर चाहिए मुझे.’’

‘‘क्या?’’

‘‘डरो नहीं आप, जान नहीं मांग रहे हैं हम आप से.’’

‘‘फिर भी बताओ क्या चाहिए आप को मुझ से?’’

‘‘बस इतना कि आप हमारी बात सुन लिया कीजिए. बड़े अकेले हैं हम. घर में मौमडैड हैं जिन्हें सिर्फ पैसा चाहिए. जबकि घर में पैसे की कमी नहीं है. बड़ा भाई अपनी पसंद से शादी कर के हैदराबाद में सैटल्ड है. उस का घर आना वर्जित कर दिया गया है. किसी को फुरसत नहीं है मेरी बात सुनने की.’’ ‘‘ठीक है गौरव, लेकिन दोस्ती में कभी मर्यादा तोड़ने की कोशिश मत करना.’’ ‘‘ओके, कभी शिकायत का मौका नहीं दूंगा आप को. अब तो तुम कह सकता हूं न?’’

‘‘तुम भी न गौरव, ठीक है कह सकते हो.’’ उस दिन से दोस्ती और गहरी होने लगी थी. जब भी वक्त मिलता सुषमा औनलाइन आती और गौरव से ढेरों बातें करती. हफ्ते में 1 दिन संडे को वे जरूर बात करते. गौरव बड़ा होनहार था. पढ़नेपढ़ाने वाला. उस की बातों में हमेशा शालीनता बनी रहती. और अब वह उसे सुषमा नहीं सु कह कर बुलाने लगा था. कहता था, ‘‘बड़ा लंबा नाम है, मैं तो सु कहूंगा तुम्हें.’’ ‘‘ओके गौरव.’’

एक दिन सुषमा ने कहा, ‘‘गौरव, तुम मेरे बारे में क्या जानते हो?’’

‘‘तुम ने कभी बताया ही नहीं.’’

‘‘और तुम ने पूछा भी नहीं.’’ ‘‘हां नहीं पूछा क्योंकि तुम मेरी दोस्त हो और दोस्ती किसी बात की मुहताज नहीं होती. सच कुछ भी हो दोस्ती हमेशा बनी रहेगी.’’ नाज हो आया था सुषमा को गौरव की दोस्ती पर. लेकिन आज वह यह सोच कर आई थी कि गौरव को अपने जीवन का हर सच बता देगी.

‘‘गौरव…’’

‘‘हां सु.’’

‘‘गौरव…’’

‘‘बोलो न सु, किस बात से परेशान हो आज? जो मन में हो कह दो.’’

‘‘सच जान कर दोस्ती तो नहीं तोड़ोगे?’’

‘‘हाहाहा, मैं प्राण जाए पर वचन न जाए वाला आदमी हूं, अब बताओ.’’

‘‘गौरव, आई एम मैरिड.’’

‘‘हाहाहा, बस इतनी सी बात. मैरिड होना कोई पाप नहीं है. सु, जब तुम मेरी दोस्त बनी थीं तब तुम भी कुछ नहीं जानती थीं मेरे बारे में. आज तुम्हारा मान और बढ़ गया है मेरी नजरों में.’’ सच में आज सुषमा को भी अभिमान हो आया था खुद पर. अब गौरव उस का सब से अच्छा दोस्त था. हफ्ते में 1 दिन वे चैट पर मिलते और उस दिन गौरव के पास बातों का खजाना होता. गौरव का जन्मदिन आने वाले था. सुषमा ने अपने हाथ से उस के लिए कार्ड डिजाइन किया और 19 जुलाई को रात 12 बजे उसे कार्ड मेल किया. गौरव उस वक्त औनलाइन था. बहुत खुश हुआ और अचानक बोला, ‘‘सु, एक बात बोलूं?’’

‘‘नहीं, मत बोलो गौरव.’’

‘‘हाहाहा, अरे मुझे कहनी है यार.’’

‘‘तो कहो न, मुझ से पूछा क्यों? मेरे मना करने से क्या नहीं कहोगे?’’

‘‘सु, मुझे आज एक गिफ्ट चाहिए तुम से.’’

‘‘क्या गिफ्ट गौरव? पहले कहते तो भेज देती तुम्हें.’’

‘‘अरे वह गिफ्ट नहीं.’’

‘‘साफसाफ बोलो गौरव, क्या कहना चाहते हो?’’

‘‘सु, हमारी दोस्ती को पूरा 1 साल हो चुका है. तुम्हारी आवाज नहीं सुनी अब तक. प्लीज, आज अपनी आवाज सुना दो मुझे.’’

‘‘ठीक है गौरव, अपना नंबर दो. कल शाम को काल करूंगी तुम्हें.’’

‘‘थैंक्स सु. कल मैं शाम होने का इंतजार करूंगा.’’ बड़े असमंजस में थी सुषमा कि काल करे या नहीं. गौरव इंतजार करता होगा. अंत में मन की जीत हुई. शाम को उस ने गौरव को काल किया तो वह बहुत खुश हुआ. ‘‘सु, तुम ने आज मुझे जिंदगी का सब से बड़ा गिफ्ट दिया है. तुम्हारी आवाज को मैं ने अपने मनमस्तिष्क में सहेज लिया है.’’

‘‘गौरव, क्या बोलते रहते हो तुम?’’

‘‘सच कह रहा हूं, सु.’’

उस दिन के बाद उन की फोन पर भी बातें होने लगीं. एक दिन शाम को 8 बजे गौरव का फोन आया, ‘‘सु, सुनो न.’’

‘‘हां गौरव, क्या हुआ? ये तुम्हारी आवाज क्यों लड़खड़ा रही है?’’

‘‘सु. मैं शराब पी रहा हूं अपने दोस्तों के साथ.’’

‘‘गौरव, तुम पागल हो गए हो क्या? घर जाओ अपने.’’ ‘‘ओके. अब कल सुबह बात करना मुझ से,’’ फिर फोन काट दिया था. वह जानती थी कि सुबह तक गौरव का गुस्सा शांत हो जाएगा और वह खुद ही अपने घर चला जाएगा. और ऐसा ही हुआ.

उन की दोस्ती को पूरे 2 साल होने वाले थे. दोनों को एकदूसरे का इंतजार रहता.

एक दिन गौरव ने कहा, ‘‘सु, एक बात कहूं?’’

‘‘नहीं गौरव.’’

‘‘मुझे कहनी है, सु.’’

‘‘फिर पूछते क्यों हो?’’

‘‘ऐसे ही. अच्छा लगता है जब तुम मना करती हो और मैं फिर भी पूछता हूं.’’

‘‘पूछो क्या पूछना है?’’

‘‘सु, इन दिनों मैं तुम्हारे बारे में बहुत सोचने लगा हूं. हैरान हूं इस बात से कि मुझे क्या हो रहा है?’’ ‘‘कुछ नहीं हुआ है गौरव, हम बहुत बातें करते हैं न, इसलिए तुम्हें ऐसा लगता है.’’

‘‘नहीं सु, एक बात कहूं, बुरा तो नहीं मानोगी?’’

‘‘कह दो, मना करने पर भी कहोगे ही न?’’

‘‘सु.’’

‘‘हां गौरव बोलो.’’

‘‘मुझे प्यार हो गया है.’’

‘‘बधाई हो गौरव. कौन है वह?’’

‘‘सु, तुम नाराज हो जाओगी.’’

‘‘ओके मत बताओ, मैं जा रही हूं.’’

‘‘सु रुको न, मुझे तुम से प्यार हो गया है. जानता हूं तुम बुरा मान जाओगी, लेकिन एक बात बताओ क्या तुम मुझे रोक सकती हो प्यार करने से? नहीं न? मेरा मन है तुम मत करना मुझ से प्यार.’’ ‘‘गौरव, तुम पागल हो गए हो. तुम जानते हो मेरी सीमाओं को. तुम्हें यह सोचना भी नहीं चाहिए था. यह तो पाप है गौरव.’’ ‘‘मेरा प्यार पाप नहीं है, सु. मैं ने कभी तुम्हें गलत नजर से नहीं देखा है. यह प्यार पवित्र व निस्वार्थ है. सु, तुम से नहीं कहूंगा अपना प्यार स्वीकार करने को.’’

‘‘गौरव, प्लीज मुझे कमजोर मत बनाओ.’’

‘‘सु, तुम कमजोर नहीं हो. तुम्हारा गौरव तुम्हें कभी कमजोर नहीं बनने देगा.’’ एक लंबी चुप्पी के बाद सुषमा ने बात वहीं खत्म कर दी और इस के बाद कई दिनों तक उस ने गौरव से बात नहीं की. लेकिन कब तक? मन ही मन तो वह भी गौरव से प्यार करने लगी थी. एक दिन उस ने खुद गौरव को फोन किया, ‘‘गौरव कैसे हो?’’

‘‘जिंदा हूं सु. मरूंगा नहीं इतनी जल्दी.’’

‘‘मरें तुम्हारे दुश्मन.’’

‘‘हाहाहा सु, मुझे विश्वास था कि तुम लौट आओगी मेरे पास.’’ ‘‘हां गौरव लौट आई हूं अपनी सीमाएं तोड़ कर, लेकिन कभी गलत काम न हो हम से.’’ ‘‘मुझ पर यकीन रखो मैं तुम्हें कभी शर्मिंदा नहीं होने दूंगा.’’ प्रेम की मौन स्वीकृति पर दोनों बहुत खुश थे. एक दिन बातों ही बातों में सुषमा ने पूछ लिया, ‘‘गौरव, तुम्हारी लाइफ में कोई और भी है क्या?’’ ‘‘अब सिर्फ तुम हो सु. मैडिकल कालेज, हैदराबाद में थी एक लड़की. हम दोनों एकदूसरे से बहुत प्यार करते थे. लेकिन पढ़ाई पूरी होने के बाद जब मैं दिल्ली वापस आ गया तो उस के मांबाप ने उस की शादी कर दी.’’ उस दिन बात यहीं खत्म हो गई. एक दिन गौरव बड़ा परेशान था.

‘‘क्या हुआ गौरव?’’ सुषमा ने पूछा.

‘‘सु, घर वाले शादी की जिद कर रहे हैं. आज शाम को लड़की देखने जाना है.’’

‘‘अरे तो जाओ न गौरव, इस में परेशान होने की क्या बात है?’’

‘‘मेरे घर वालों को दहेज चाहिए सु और इस के लिए वे कोई भी लड़की मेरे पल्ले बांध देंगे.’’ ‘‘तुम जाओ तो सही फिर बताना कैसी है लड़की?’’

‘‘तुम कह रही हो तो जाता हूं.’’ शाम को गौरव का गुस्से से भरा फोन आया, ‘‘तुम ने ही जिद की वरना मैं नहीं जाता. लड़की कंपनी सेक्रेटरी है. खुद को जाने क्या समझ रही थी. मना कर आया हूं मैं.’’

‘‘शांत हो जाओ गौरव, कोई और अच्छी लड़की मिल जाएगी.’’ गौरव के घर वाले शादी के लिए जोर डाल रहे थे. सुषमा जानती थी गौरव की परेशानी को, लेकिन चुप रही. एक दिन वह बोली, ‘‘गौरव, सुनो न.’’

‘‘हां कहो, सु.’’

‘‘राधा और किशन का प्रेम कैसा था?’’

‘‘सु, वह अलौकिक प्रेम था. राधाकिशन का दैहिक नहीं आत्मिक मिलन हुआ था.’’ ‘‘गौरव, मुझे राधाकिशन का प्रेम आकर्षित करता है.’’

‘‘तो आज से तुम मेरी राधा हुईं, सु.’’

सुषमा थोड़ी देर चुप रही फिर बोली, ‘‘गौरव…’’

‘‘हां सु, क्या मैं ने कुछ गलत कहा? तुम चुप क्यों हो गई हो?’’

सुषमा चुप ही रही. 19 जुलाई आने वाली थी. वह इस बार भी गौरव को कुछ खास तोहफा देना चाहती थी. उस ने राधाकिशन का एक कार्ड बनाया और गौरव को अपनी शुभकामनाएं दीं. अपने नाम की जगह उस ने लिखा राधागौरव. कार्ड देख कर पागल हो गया गौरव. बहुत खुश था वह इसलिए फोन पर रोता रहा फिर बोला, ‘‘राधे, आज तुम ने मेरे नाम के साथ अपना नाम जोड़ कर मुझे सब से अनमोल गिफ्ट दिया है. अब कुछ नहीं चाहिए मुझे. यह किशन सिर्फ तुम्हारा है.’’ गौरव के लिए लड़की पसंद कर ली गई थी. जैसेजैसे गौरव की शादी का दिन पास आ रहा था, सुषमा बहुत परेशान रहने लगी थी. उसे डर था उन का रिश्ता कहीं गौरव की नई जिंदगी में दुख न घोल दे.

‘‘गौरव, शादी के बाद तुम मुझ से बात मत करना,’’ एक दिन वह बोली.

‘‘क्यों नहीं करूंगा सु, तुम से बात नहीं हुई तो मैं मर जाऊंगा.’’ नहीं गौरव, ऐसा मत कहो. तुम अपनी पत्नी को बहुत प्यार देना. कभी कोई दुख न देना. तुम चिंता मत करो सु, तुम्हारा गौरव कभी तुम्हें शर्मिंदा नहीं करेगा. गौरव की शादी हो गई. गौरव के घर वालों को खूब सारा दहेज और गौरव को एक अच्छी पत्नी मिल गई. गौरव ने अपनी पत्नी को सुषमा के बारे में सब कुछ बता दिया, तो वह इस बात से खफा रहने लगी. जब भी गौरव चैट पर होता, वह गुस्सा हो जाती. गौरव ने सुषमा को सब बताया. सुषमा का मन बड़ा दुखी हुआ. अब वह खुद भी गौरव से कटने लगी.

‘‘सु, क्या हो गया है तुम्हें, मुझ से बात क्यों नहीं करती हो?’’ एक दिन गौरव बोला.

‘‘गौरव, मैं व्यस्त थी.’’

‘‘नहीं, तुम झूठ बोल रही हो, तुम्हारी आवाज से मैं समझता हूं.’’ गौरव की जिंदगी में खुशियां लाने के लिए सुषमा ने मन ही मन एक फैसला कर लिया. उस ने गौरव को एक मेल किया और कहा, ‘‘गौरव वक्त आ गया है हमारे अलग होने का. किशन भी तो गए थे राधा से दूर, लेकिन उन का प्रेम जन्मजन्मांतर के लिए अमर हो गया. आज यह राधा भी दूर जाने का फैसला कर बैठी है. कोई सवाल मत करना तुम, तुम्हें कसम है मेरे प्यार की. और हां, काल मत करना. मैं ने अपना नंबर बदल दिया है. आज से ये मेल भी बंद हो जाएगी. अब तुम्हें अपनी पत्नी के साथ अपना घरसंसार बसाना है.

-तुम्हारी राधा.’’

मन पर पत्थर रख कर सुषमा ने गौरव से बना ली थीं. आज 3 साल बाद याहू मेल को खोला तो देखा, गौरव ने हर हफ्ते उसे मेल किया था.

‘‘सु, मैं बाप बनने वाला हूं, तुम खुश हो न?’’ ‘‘सु, मैं ने राजस्थान पीसीएस क्लियर कर लिया है. मेरी आंखों से तुम ने जो सपना देखा था वह पूरा हो गया, सु.’’ ‘‘आज मैं बहुत खुश हूं सु, मेरा बेटा हुआ है. मैं ने उस का नाम मोहित रखा है. तुम्हें पसंद था न मोहित नाम?’’

सु…ये..सु वो.. इन 3 सालों में जाने कितने मेल किए थे गौरव ने. सुषमा यह देख कर हैरान रह गई. 2 दिन पहले का मेल था, ‘‘सु, याद है तुम ने कहा था कि जब तुम्हारी जिम्मेदारियां पूरी हो जाएंगी, तुम मेरे साथ ताजमहल देखने जाओगी. मैं उस दिन का इंतजार कर रहा हूं.’’ होंठों पर मीठी सी मुसकराहट आ गई सुषमा के आंखों के आगे. कौंध गया 30 साल बाद का वह दृश्य. वह जर्जर बूढ़ी काया वाली हो गई है और गौरव का हाथ थामे ताजमहल के सामने खड़ी है. और, गौरव सु, ‘देखो ये है ताजमहल. प्रेम की अनमोल धरोहर, प्रेम की शाश्वत तसवीर,’ कह रहा है. वह मजबूती से गौरव का हाथ थामे अलौकिक प्रेम को आत्मसात होते देख रही है. Hindi Romantic Story

Romantic Story: प्रेरणा – एक अंग्रेज लड़की के मुख से शुद्ध हिंदी सुनकर सभी चौक क्यों गए

Romantic Story: पिछले हफ्ते मैं जब ब्रिटेन से घर लौटा तो मुझे महसूस हुआ जैसे मैं आधा अधूरा हो कर लौटा हूं. मन में कहीं यह अपराधबोध था कि मैं ने यौवन और सौंदर्य से भरपूर नारी के आमंत्रण को ठुकरा कर उस की भावनाओं को आहत किया था. इस में उस औरत का क्या दोष? हर किसी के भीतर स्थायी व संचारी भाव होते हैं. कभी कोई भाव इनसान पर हावी रहता है तो कभी कोई. उस समय उस के रति भाव का मुझे मान रखना चाहिए था.

ब्रिटेन के लंदन, बर्मिंघम, मैनचेस्टर, यार्कशायर, नाटिंघम आदि शहरों में स्थित यू.के. हिंदी समिति, गीतांजलि, हिंदी भाषा समिति, भारतीय भाषा संगम आदि संस्थाओं ने मुझे हिंदी दिवस के अवसर पर अलगअलग समारोहों के लिए आमंत्रित किया था.

लंदन में मेरी मुलाकात मैगी से हुई थी. वह छरहरे बदन की युवती थी. समारोह समापन के बाद वह मेरे पास आई और बोली, ‘‘आप के व्याख्यान और व्यक्तित्व ने मुझे बेहद प्रभावित किया है. मैं आप के दिशानिर्देशन में एक पुस्तक लिखना चाहती हूं. मुझे हिंदी भाषा से बेहद लगाव है.’’

एक अंगरेज लड़की के मुख से इतनी शुद्ध हिंदी सुन कर मैं भौचक रह गया. मुझे इस स्थिति में देख कर उस ने बताया था कि उस के पिता ब्रिटेन के हैं और मां भारत की. मैं मां के साथ भारत जाती रहती हूं. वह मुझ से हिंदी में ही बात करती हैं और सच कहूं तो हिंदी में बोलना मुझे अंगरेजी से ज्यादा सहज लगता है. आप भारत से आए हैं और हिंदी के प्रखर विद्वान हैं यह जान कर मैं खुद को आप से मिलने के लिए रोक न सकी.

मैगी से मिल कर मुझे भी बहुत खुशी हुई. वह लंदन में किसी कंपनी में नौकरी करती थी. उस के मातापिता यार्कशायर में रहते थे.

लंदन में मेरा 3 दिन का कार्यक्रम था. इन 3 दिन में हमारे बीच खासी मित्रता हो गई. उस ने मुझे पूरा लंदन घुमा दिया. आखिरी दिन मुझे रात्रिभोज के लिए उस ने अपने घर पर आमंत्रित किया तो मैं उस के स्नेहिल निमंत्रण को ठुकरा न सका.

शाम को 7 बजे मैं उस के बताए पते पर पहुंच गया. उस ने मुसकरा कर मेरा स्वागत किया. कौफी के लिए जब वह रसोई में गई तो मैं ने कमरे में चारों तरफ नजर दौड़ाई. कमरा छोटा जरूर था पर था पूरी तरह व्यवस्थित. अलमारी में ढेरों हिंदी की किताबें रखी थीं. मेज पर जयशंकर प्रसाद की ‘कामायनी’ रखी थी. शायद वह उसे पढ़ रही थी.

‘लीजिए, प्रो. पल्लवजी, कौफी,’ कहते हुए उस ने मुझे कप थमाया तो मैं मुसकरा कर बोला, ‘यहां आ कर तो मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं किसी पुस्तकालय में आ गया हूं.’

कौफी पीने के थोड़ी देर बाद मैगी ने खाना लगा दिया. खाना खाने के बाद वह बोली, ‘पल्लवजी, जिस तरह कालिदास के ‘मेघदूत’ में प्रेमिका का रूप वर्णन है उसी तरह मैं भी अपनी पुस्तक में अपने काल्पनिक प्रेमी के अनोखे रूप का वर्णन करना चाहती हूं.’

यह सुन कर मुझे हंसी आ गई, ‘तो तुम कालिदास बनना चाहती हो.’

‘मैं कालिदास तो नहीं बन सकती लेकिन अपनी पुस्तक में अपने काल्पनिक प्रेमी का रूप तो उतार सकती हूं,’ कहती हुई वह मेरे नजदीक कुछ ज्यादा ही खिसक आई थी. उस के इरादे भांप कर मैं उसे अपने से दूर करता हुआ बोला, ‘इस में मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूं?’

मेरे गालों पर हाथ फेरते हुए मैगी रोमांटिक अंदाज में बोली, ‘इस में आप ही मेरी मदद कर सकते हैं. मैं आप को अपना प्रेमी मान कर, आप के रूप को निहार कर, हर भाव को पढ़ कर ही तो कुछ लिख सकूंगी,’ कहते हुए मैगी मुझ पर पूरी तरह झुक गई थी.

मैं जानता था कि मैगी उस समय होश में नहीं थी क्योंकि खाने के बाद उस ने बीयर का एक बड़ा पैग लिया था. उन नाजुक क्षणों में मैं ने अपनी भावनाओं को पूरी तरह नियंत्रण में रखते हुए उसे परे धकेल दिया और जोर से चीखा, ‘तुम होश में तो हो, मैगी.’

मैगी अपनी ही रौ में बोली, ‘बिना अनुभव और सत्यता के कोई भी एक शब्द नहीं लिख सकता. चाहे वह कितना ही महान कवि और लेखक क्यों न हो,’ कहते हुए वह मेरे गले में अपनी बांहें डाल कर झूल गई.

मैं बड़ी बेरहमी से मैगी को अपने से अलग करते हुए बोला, ‘क्या तुम ने अश्विनी दत्त की ‘भक्तियोग’ नहीं पढ़ी, जिस में लिखा है कि ब्रह्मचारी को नारी से दूर रहना चाहिए. मैं ने तब तक ब्रह्मचर्य का व्रत ले रखा है जब तक मैं अपने लक्ष्य को प्राप्त न कर लूं. तुम्हारे उन्माद में साथ दे कर मैं अपने त्याग को व्यर्थ नहीं करना चाहता.’

‘लेकिन पल्लवजी, मैं ने भी किसी पुस्तक में पढ़ा है कि भोग के बिना त्याग की स्थिति तक नहीं पहुंचा जा सकता.’

उस का जवाब दिए बगैर मैं वापस अपने होटल आ गया था. फिर कार्यक्रमों को पूरा कर मैं वापस भारत आ गया.

मेरा लक्ष्य था एक पुस्तक लिखने का, जोकि बहुत ही जटिल विषय पर आधारित थी और जिस के लिए मैं ने ब्रह्मचर्य धारण किया था. पिछले 2 सालों से वह अधूरी पड़ी थी. उसे पूरा कर के ही मैं अपने व्रत को तोड़ना चाहता था. यद्यपि इस प्रतिज्ञा से मेरे मातापिता खासे नाराज थे. उन का मानना था कि विवाह किसी कार्यविशेष में बाधक नहीं बल्कि सहायक है क्योंकि जीवनसाथी की प्रेरणा से ही ऊर्जा और प्रेम प्राप्त होता है.

मैंजब भी लिखने बैठता मैगी का रूपयौवन मुझे उद्वेलित कर जाता और मैं लिखना भूल कर उस के खयालों में डूब जाता. कभी न कभी तो मुझे खुद झुरझुरी आ जाती कि आखिर मुझे हो क्या गया है. कहां मैं हिंदी का इतना बड़ा विद्वान जो पचासों पुस्तकें और सैकड़ों कहानियां लिख चुका हूं, आज एक लाइन तक नहीं लिख पा रहा हूं. जिस उद्देश्य के लिए मैं ने मैगी को ठुकराया था अब उसी को पाने को मन क्यों बारबार मचल उठता है. जितना ही मैं उसे अपने खयालों से दूर करने की कोशिश करता उतना ही वह अपने पूरे वजूद के साथ मेरे पास आ कर मुझे बेचैन करती. ऐसी स्थिति में एक साल बीत गया और मेरी पुस्तक अधूरी ही पड़ी रही.

अचानक एक दिन लंदन की एक हिंदी संस्था ने मुझे पुस्तक विमोचन के लिए आमंत्रित किया. यह निमंत्रण पा कर मैं खुशी से उछल पड़ा. मैगी से मिलन की अनुभूति मात्र से मैं रोमांचित हो उठा था.

हवाई अड्डे पर संस्था के सदस्यों ने मेरा स्वागत किया तथा मुझे होटल पहुंचाया. पुस्तक का विमोचन शाम को था इसलिए सोचा कि विमोचन के बाद होटल से अपना सामान ले कर सीधा मैगी के घर जाऊंगा और अपनी पूर्व की गलती की क्षमा भी मांग लूंगा.

शाम को मेरा मन पुस्तक विमोचन में कम और मैगी में अधिक था. विमोचन की गई पुस्तक का शीर्षक था ‘प्रेरणा.’ लेखिका के रूप में मैगी का नाम पढ़ कर पूरे शरीर में सनसनी फैल गई.

मैगी मुसकरा कर मेरे सामने आई तो मैं उसे एकटक देखता ही रह गया. संस्था के अध्यक्ष बोले, ‘पल्लवजी, मैगी का विशेष आग्रह था कि इस पुस्तक के विमोचन के लिए भारत से सिर्फ आप को ही बुलाया जाए.’

मैं वहीं मंच पर बैठ कर पुस्तक पढ़ने लगा. भूमिका में लिखा था, ‘मेरी प्रेरणा के प्रेरणास्रोत को सादर समर्पित  —मैगी.’

पुस्तक विमोचन के बाद मैं सीधा होटल गया. अब मैं मैगी की पुस्तक को पढ़ने के बाद ही उस के घर जाने की सोच रहा था. मैगी की इस ‘प्रेरणा’ नामक पुस्तक में हृदय से उपजी कविताओं का संग्रह था जो बेहद मार्मिक था. कविता की एकएक पंक्ति मेरे मन को छू गई.

अचानक दरवाजा खुला. सामने मैगी खड़ी पूछ रही थी, ‘क्या मैं अंदर आ सकती हूं?’

‘हांहां, क्यों नहीं. मैं तुम्हारी ही कविताएं पढ़ रहा था. वाकई जवाब नहीं इन का. कितने सुंदर, सहज और मधुर भावों को समेट कर तुम ने इन कविताओं का सृजन किया है. कहां से मिली तुम्हें प्रेरणा? आखिर कौन है तुम्हारा प्रेरणास्रोत?’

मैगी मुसकरा कर निरुत्तर सी बस, मुझे देखती रही.

मैं भावावेश में बोला, ‘मैगी, मैं तो तुम से मिलने के बाद से ही कुछ बेचैनी सी अनुभव करने लगा हूं. इस वजह से मैं 3 साल से अधूरी पड़ी अपनी पुस्तक को भी पूरी नहीं कर पाया. प्लीज, तुम मेरी मदद करो, मुझे संभालो और सहारा दो,’ कहते हुए मैं ने उसे अपने बाहुपाश में बांध लिया.

मैगी फुरती दिखाते हुए एक झटके से मुझ से अलग हो गई और तेज स्वर मैं बोली, ‘आप को शरम नहीं आती एक औरत के साथ जबरदस्ती करते हुए.’

उस के इस अप्रत्याशित रूप और व्यवहार को देख कर मैं हतप्रभ रह गया. मेरा जोश बर्फ की तरह ठंडा पड़ गया. मैं सोचने लगा, पहले तो खुद को समर्पित करने के लिए आतुर थी, आज सती होने का ढोंग रच रही है. लगता है इसे अपनी ‘प्रेरणा’ पर बहुत गर्व हो रहा है और खुद को बहुत बड़ी लेखिका समझने लगी है. अब मैं भी अपनी वर्षों से अधूरी पड़ी पुस्तक को पूरा कर के साहित्याकाश में तहलका मचा दूंगा.

भारत आने के बाद मैं अपनी पुस्तक को पूरा करने में एकाग्र हो कर जुट गया. मुझे ताज्जुब हुआ कि जो काम मैं पिछले 3 वर्षों से नहीं कर पा रहा था वह मात्र 3 माह में हो गया. पुस्तक का विमोचन शहर के प्रसिद्ध प्रेक्षागृह में होना था. इस अवसर पर मैं ने लंदन से मैगी को भी आमंत्रित किया.

पुस्तक विमोचन के अवसर पर हिंदी जगत की सैकड़ों जानीमानी हस्तियां मौजूद थीं लेकिन मैगी नहीं आई तो मुझे अत्यधिक निराशा हुई.

मेरी इस पुस्तक ने देशविदेश में तहलका मचा दिया. अपनी इस उपलब्धि पर मैं इतरा उठा. अचानक एक दिन मैगी का पत्र देख कर मुझे आश्चर्य हुआ.

‘‘मेरी ‘प्रेरणा’ के प्रेरणास्रोत

प्रो. पल्लवजी, आप को  सादर नमस्कार.

स्वास्थ्य अच्छा न होने की वजह से आप के पुस्तक विमोचन के अवसर पर न आ सकी, इस के लिए क्षमा मांगती हूं. आप ने मुझ से पूछा था कि मेरी ‘प्रेरणा’ का पे्ररणास्रोत कौन है? अब मैं बताती हूं, वह आप हैं, सिर्फ आप. अगर आप उस रात मुझे न संभालते तो शायद इस ‘प्रेरणा’ का जन्म ही नहीं होता. आप के ठुकराने से मैं अंदर तक आहत अवश्य हुई थी लेकिन मैं ने अपने भीतर कुछ नया सा महसूस किया था, शायद वह आप की प्रेरणा थी, जिस के फलस्वरूप मेरी ‘प्रेरणा’ का सृजन हुआ.

आप की 3 वर्षों से पुस्तक अधूरी पड़ी थी तो इसलिए कि आप का मन भटक गया था. आप के प्रस्ताव को मैं ने इतनी बेरहमी और बेरुखी से इसीलिए ठुकराया ताकि आप भी मेरी तरह एकाग्र हो कर अपने उद्देश्य को मछली की आंख की तरह निशाना बनाएं.

अगर उस रात मैं आप के प्रति समर्पित हो जाती तो शायद आप जिंदगी भर अपनी इस पुस्तक को पूरी न कर पाते क्योंकि मनुष्य जो वस्तु एक बार सहजता से प्राप्त कर लेता है उसे बारबार पाने के लिए अपनी राह से भटक कर उसी के खयालों में डूबा रहता है.

आप की पुस्तक पूरी हो गई इस बात की मुझे बेहद खुशी है. मेरी ‘प्रेरणा’ के प्रेरणास्रोत के कदमों को सफलताएं जिंदगी भर इसी तरह चूमती रहें यही कामना है मेरी.   मैगी.’’

पत्र पढ़ कर मैं इस सोच में डूब गया कि आखिर कौन किस की प्रेरणा है. मैं मैगी की प्रेरणा हूं या मैगी मेरी. अंदर से आवाज आई, ‘मैगी मेरी प्रेरणा है क्योंकि उस में त्याग की भावना निहित है.’

मैं तो मैगी की प्रेरणा हो ही नहीं सकता क्योंकि उस में मेरे त्याग की नहीं बल्कि स्वार्थ की भावना निहित थी. Romantic Story

Family Story In Hindi: सोने का हिरण – रजनी को आगाह क्यों नहीं कर पा रही थी मोनिका

Family Story In Hindi, लेखिका – डा. सुनीता जाजदिया 

लिफ्ट से उतरते हुए मोनिका सोच रही थी कि इस बार भी वह रजनी से वे सब नहीं कह पाई जिसे कहने के लिए वह आज दूसरी बार आई थी. 8वीं क्लास से रजनी उस की दोस्त है. तेल चुपड़े बालों की कानों के ऊपर काले रिबन से बंधी चोटियां, कपड़े का बस्ता, बिना प्रैस की स्कूल ड्रैस, सहमी आंखें क्लास में उस के छोटे शहर और मध्यवर्गीय होने की घोषणा कर रहे थे.

मोनिका को आज भी याद है कैसे क्लास की अभिजात्य वर्ग की लड़कियां उस से सवाल पर सवाल करती थीं. कोई उस की चोटी का रिबन खोल देती थी तो कोई उस का बैग कंधे से हटा देती थी. रजनी को तंग कर वे मजा लेती थीं.

ये वे लड़कियां थीं जो रिबन की जगह बड़ेबड़े बैंड लगाती थीं, जिन के सिर क्रीम और शैंपू की खुशबू से महका करते, जो कपड़े के बस्ते की जगह फैशनेबल बैग लाती थीं और पाबंदी होने के बावजूद उन के नाखून नित नई नेलपौलिश से रंगे होते थे. टीचर्स भी जिन्हें डांटनेडपटने के बदले उन से नए फैशन ट्रैंड्स की चर्चा किया करती थीं.

रजनी की सहमी आंखों में सरलता का ऐसा सम्मोहन था कि मोनिका हर बार उस की मदद के लिए आगे बढ़ जाती थी. किशोरावस्था की उन की यह दोस्ती गहराने लगी. देह की पहेलियां, जीवन के अनसुलझे प्रश्न, भविष्य के सपने, महत्त्वाकांक्षाएं आदि पर घंटों बातें होती थीं उन की. समय ऐसे ही सरकता गया और डिग्री के बाद एमबीए की पढ़ाई के लिए मोनिका विदेश चली गई.

लौटने पर पता चला कि बैंक मैनेजर वसंत से विवाह रचा कर रजनी गृहस्थी में रम गई है. यह रजनी का स्वभाव था कि अपने आसपास जो और जितना भी मिला वह उस में खुश रहती थी. उस से आगे बढ़ कर कुछ और अधिक पाने की मृगतृष्णा में वह हाथ आई खुशियों को खोना नहीं चाहती थी. किंतु इस के विपरीत मोनिका अपनी महत्त्वाकांक्षाओं के आकाश की ऊंचाई और विस्तार की सीमा को आगे बढ़ कर स्वयं तय करने में विश्वास करती थी.

मोनिका ने बड़ी आईटी कंपनी जौइन कर ली थी. अब दोनों सखियां कम मिलती थीं पर फोन पर उन की बातों का सिलसिला जारी था. मोनिका कभी अपने मन का गुबार निकालने के लिए तो कभी कोई सलाहमशवरा लेने के लिए रजनी के घर का रुख करती थी.

हर परिस्थिति से तालमेल बैठा कर खुश रहने वाली रजनी अपने 2 बच्चों के साथ पूरी तरह गृहस्थी में रम गई थी. वसंत भी तो उस का पूरा खयाल रखता था. जन्मदिन हो या वर्षगांठ, वह कभी तोहफा देना नहीं भूलता था.

महंगी साडि़यां, परफ्यूम, नैकलैस, जड़ाऊ गहनों के तोहफों को बड़े उत्साह से रजनी मोनिका को दिखाती. घूमनाफिरना, छुट्टी मनाने के लिए नई जगहों में घूमना सब कुछ तो हासिल था रजनी को. हर माने में वह एक सुखी जीवन जी रही थी.

पर उस दिन वसंत को मोनिका ने शौपिंग मौल में किसी और के साथ देखा था. मीडियम हाइट और घुंघराले बालों वाले वसंत को पहचानने में उस की आंखें धोखा नहीं खा सकती थीं. एक झोंके की तरह दोनों उस के पास से निकल गए थे.

‘‘नहीं, ऐसा नहीं हो सकता. जरूर उसे धोखा हुआ है,’’ यह कह कर उस ने इस बात को अपने मन से निकाल दिया था.

इस बात को अभी महीना भर भी नहीं हुआ था कि वसंत उसे कौफी शौप में मिल गया. शौपिंग मौल वाली उसी लड़की के साथ. नजरें टकराने पर कसी हुई कुरती और जींस पहने, छोटे बालों वाली 25-26 वर्षीय युवती का परिचय करवाया, ‘‘यह नीना है, मेरे बैंक में कैशियर…’’

एक ठंडा सा ‘हाय’ उछाल कर मोनिका वहां से खिसक गई. उस के दिमाग में कहीं कुछ खटक गया था पर जमाना तेजी से बढ़ रहा है…एक ही प्रोफैशन के लोग अकसर साथसाथ घूमते हैं. यह सोच उस ने इस बात को भी भुलाना चाहा, पर रजनी का मासूम चेहरा और सरल आंखें उस के सामने आ जातीं.

मोनिका के मन में आया कि वह रजनी से बात करे. फोन भी मिलाया उस ने, पर नंबर मिलते ही लाइन काट दी. उस ने अपने मन को मजबूत किया कि नहीं वह अपने दिमाग में कुलबुलाते वहम के कीड़े को नहीं पालेगी. उसे कुचलना ही होगा वरना वह काला नाग बन खुशियों को न डस ले.

फोन पर रजनी से अब भी बातचीत होती. उस के स्वर में झलकने वाली खुशी से मोनिका अपनेआप को धिक्कारती कि वसंत के लिए उस ने न जाने क्याक्या सोच लिया.

गरमी के दिन थे. औफिस से निकलतेनिकलते आइसक्रीम खाने और समंदर के किनारे टहलने का प्रोग्राम बना. समंदर की ठंडी हवाओं की थपथपाहट से दिन भर की थकान उतर गई. आइसक्रीम का लुत्फ उठाते, गपियाते हुए मोनिका संजना के साथ एक ओर बैठ गई.

संजना को अचानक शरारत सूझी और थोड़ी दूर झाडि़यों के झुरमुट में बैठे जोड़े पर मोबाइल टौर्च से रोशनी फेंकी. मोनिका की आइसक्रीम कोन से पिघल कर उस की कुहनी तक बहने लगी. एकदूजे की बांहों में लिपटे वसंत और नीना का ही था वह जोड़ा.

‘अपनी खास सहेली के घर को वह अपनी आंखों के आगे उजड़ते नहीं देख सकती,’ यह सोच कर औफिस से छुट्टी ले कर वह दूसरे ही दिन रजनी के घर पहुंच गई. वह किचन में रजनी के पास खड़ी अपनी बात कहने का सिरा तलाश रही थी जबकि रजनी बड़े प्यार से वसंत की मनपसंद भिंडी फ्राई, दालमक्खनी, रायता और फुलके तैयार कर रही थी.

मातृत्वसुख और वसंत के प्रेम में पगी रजनी की बातों के आगे मोनिका की बात का सिरा हर बार छूट जाता और आखिर बिना कुछ कहे ही वह उस दिन लौट गई.

आज दूसरी बार भी बिना कुछ बताए रजनी के घर से लौटते हुए वह सोच रही थी कि  वसंत एक पति और पिता की भूमिका बखूबी निभा रहा है. गृहस्थी की लक्ष्मणरेखा के दायरे में मिलने वाले सुख से रजनी खुश और संतुष्ट है. लक्ष्मणरेखा के दूसरी ओर वाले वसंत के बारे में जानना रजनी के लिए सोने के हिरण को पाने जैसा होगा.

मोनिका भलीभांति जानती है कि मरीचिका के पीछे दौड़ कर उसे हासिल करने का साहस रजनी में नहीं और अपनी प्यारी सखी की सरल आंखों और उस के मासूम बच्चों की हंसी को उदासी में बदलने का साहस तो मोनिका में भी नहीं है. Family Story In Hindi

Family Story In Hindi: दीप जल उठे – प्रतिमा ने सासूमां का दिल कैसे जीता?

Family Story In Hindi, लेखिका – डा. सुरेखा शर्मा 

दफ्तर से आतेआते रात के 8 बज गए थे. घर में घुसते ही प्रतिमा के बिगड़ते तेवर देख श्रवण भांप गया कि जरूर आज घर में कुछ हुआ है वरना मुसकरा कर स्वागत करने वाली का चेहरा उतरा न होता.

सारे दिन महल्ले में होने वाली गतिविधियों की रिपोर्ट जब तक मुझे सुना न देती उसे चैन नहीं मिलता था. जलपान के साथसाथ बतरस पान भी करना पड़ता था. अखबार पढ़े बिना पासपड़ोस के सुखदुख के समाचार मिल जाते थे. शायद देरी से आने के कारण ही प्रतिमा का मूड बिगड़ा हुआ है.

प्रतिमा से माफी मांगते हुए बोला, ‘‘सौरी, मैं तुम्हें फोन नहीं कर पाया. महीने का अंतिम दिन होने के कारण बैंक में ज्यादा काम था.’’

‘‘तुम्हारी देरी का कारण मैं समझ सकती हूं, पर मैं इस कारण दुखी नहीं हूं,’’ प्रतिमा बोली.

‘‘फिर हमें भी तो बताओ इस चांद से मुखड़े पर चिंता की कालिमा क्यों?’’ श्रवण ने पूछा.

‘‘दोपहर को अमेरिका से बड़ी भाभी का फोन आया था कि कल माताजी हमारे पास पहुंच रही हैं,’’ प्रतिमा चिंतित होते हुए बोली.

‘‘इस में इतना उदास व चिंतित होने कि क्या बात है? उन का अपना घर है वे जब चाहें आ सकती हैं.’’ श्रवण हैरानी से बोला.

‘‘आप नहीं समझ रहे. अमेरिका में मांजी का मन नहीं लगा. अब वे हमारे ही साथ रहना चाहती हैं.’’ प्रतिमा ने कहा.

‘‘अरे मेरी चंद्रमुखी, अच्छा है न, घर में रौनक बढ़ेगी, बरतनों की उठापटक रहेगी, एकता कपूर के सीरियलों की चर्चा तुम मुझ से न कर के मां से कर सकोगी. सासबहू मिल कर महल्ले की चर्चाओं में बढ़चढ़ कर भाग लेना,’’ श्रवण चटखारे लेते हुए बोला.

‘‘तुम्हें मजाक सूझ रहा है और मेरी जान सूख रही है,’’ प्रतिमा बोली.

‘‘चिंता तो मुझे होनी चाहिए, तुम सासबहू के शीतयुद्ध में मुझे शहीद होना पड़ता है. मेरी स्थिति चक्की के 2 पाटों के बीच में पिसने वाली हो जाती है. न मां को कुछ कह सकता हूं, न तुम्हें.’’

कुछ सोचते हुए श्रवण फिर बोला, ‘‘मैं तुम्हें कुछ टिप्स देना चाहता हूं. यदि तुम उन्हें अपनाओगी तो तुम्हारी सारी परेशानियां एक झटके में उड़नछू हो जाएंगी.’’

‘‘यदि ऐसा है तो आप जो कहेंगे मैं करूंगी. मैं चाहती हूं मांजी खुश रहें. आप को याद है पिछली बार छोटी सी बात से मांजी नाराज हो गई थीं.’’

‘‘देखो प्रतिमा, जब तक पिताजी जीवित थे तब तक हमें उन की कोई चिंता नहीं

थी. जब से वे अकेली हो गई हैं उन का स्वभाव बदल गया है. उन में असुरक्षा की भावना ने घर कर लिया है. अब तुम ही बताओ, जिस घर में उन का एकछत्र राज था वो अब नहीं रहा. बेटों को तो बहुओं ने छीन लिया. जिस घर को तिनकातिनका जोड़ कर मां ने अपने हाथों से संवारा, उसे पिताजी के जाने के बाद बंद करना पड़ा.

‘‘उन्हें कभी अमेरिका तो कभी यहां हमारे पास आ कर रहना पड़ता है. वे खुद को बंधन में महसूस करती हैं. इसलिए हमें कुछ ऐसा करना चाहिए जिस में उन्हें अपनापन लगे. उन को हम से पैसा नहीं चाहिए. उन के लिए तो पिताजी की पैंशन ही बहुत है. उन्हें खुश रखने के लिए तुम्हें थोड़ी सी समझदारी दिखानी होगी, चाहे नाटकीयता से ही सही,’’ श्रवण प्रतिमा को समझाते हुए बोला.

‘‘आप जैसा कहेंगे मैं वैसा ही करने को तैयार हूं,’’ प्रतिमा ने आश्वासन दिया.

‘‘तो सुनो प्रतिमा, हमारे बुजुर्गों में एक ‘अहं’ नाम का प्राणी होता है. यदि किसी वजह से उसे चोट पहुंचती है, तो पारिवारिक वातावरण प्रदूषित हो जाता है यानी परिवार में तनाव अपना स्थान ले लेता है. इसलिए हमें ध्यान रखना होगा कि मां के अहं को चोट न लगे बस… फिर देखो…’’ श्रवण बोला.

‘‘इस का उपाय भी बता दीजिए आप,’’ प्रतिमा ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘हां… हां… क्यों नहीं, सब से पहले तो जब मां आए तो सिर पर पल्लू रख कर चरणस्पर्श कर लेना. रात को सोते समय कुछ देर उन के पास बैठ कर हाथपांव दबा देना. सुबह उठ कर चरणस्पर्श के साथ प्रणाम कर देना,’’ श्रवण ने समझाया.

‘‘यदि मांजी इस तरह से खुश होती हैं, तो यह कोई कठिन काम नहीं है,’’ प्रतिमा ने कहा.

‘‘एक बात और, कोई भी काम करने से पहले मां से एक बार पूछ लेना. होगा तो वही जो मैं चाहूंगा. जो बात मनवानी हो उस बात के विपरीत कहना, क्योंकि घर के बुजुर्ग लोग अपना महत्त्व जताने के लिए अपनी बात मनवाना चाहते हैं. हर बात में ‘जी मांजी’ का मंत्र जपती रहना. फिर देखना मां की चहेती बहू बनते देर नहीं लगेगी,’’ श्रवण ने अपने तर्कों से प्रतिमा को समझाया.

‘‘आप देखना, इस बार मैं मां को शिकायत का कोई मौका नहीं दूंगी.’’

‘‘बस… बस… उन को ऐसा लगे जैसे घर में उन की ही चलती है. तुम मेरा इशारा समझ जाना. आखिर मां तो मेरी ही है. मैं जानता हूं उन्हें क्या चाहिए,’’ कहते हुए श्रवण सोने के लिए चला गया.

प्रतिमा ने सुबह जल्दी उठ कर मांजी के कमरे की अच्छी तरह सफाई करवा दी. साथ ही उन की जरूरत की सभी चीजें भी वहां रख दीं.

हम दोनों समय पर एयरपोर्ट पहुंच गए. हमें देखते ही मांजी की आंखें खुशी से चमक उठीं. सिर ढक कर प्रतिमा ने मां के पैर छुए तो मां ने सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया.

पोते को न देख कर मां ने पूछा, ‘‘अरे तुम मेरे गुड्डू को नहीं लाए?’’

‘‘मांजी वह सो रहा था.’’ प्रतिमा बोली.

‘‘बहू… आजकल बच्चों को नौकरों के भरोसे छोड़ने का समय नहीं है. आएदिन अखबारों में छपता रहता है,’’ मांजी ने समझाते हुए कहा.

‘‘जी मांजी, आगे से ध्यान रखूंगी,’’ प्रतिमा ने मांजी को आश्वासन दिया.

रास्ते भर भैयाभाभी व बच्चों की बातें होती रहीं.

घर पहुंच कर मां ने देखा जिस कमरे में उन का सामान रखा गया है उस में उन की

जरूरत का सारा सामान कायदे से रखा था. 4 वर्षीय पोता गुड्डू दौड़ता हुआ आया और दादी के पांव छू कर गले लग गया.

‘‘मांजी, आप पहले फ्रैश हो लीजिए, तब तक मैं चाय बनाती हूं,’’ कहते हुए प्रतिमा किचन की ओर चली गई.

रात के खाने में सब्जी मां से पूछ कर बनाई गई.

खाना खातेखाते श्रवण बोला, ‘‘प्रतिमा कल आलू के परांठे बनाना, पर मां से सीख लेना तुम बहुत मोटे बनाती हो,’’ प्रतिमा की आंखों में आंखें डाल कर श्रवण बोला.

‘‘ठीक है, मांजी से पूछ कर ही बनाऊंगी.’’ प्रतिमा बोली.

मांजी के कमरे की सफाई भी प्रतिमा कामवाली से न करवा कर खुद करती थी, क्योंकि पिछली बार कामवाली से कोई चीज छू गई थी, तो मांजी ने पूरा घर सिर पर उठा लिया था.

अगले दिन औफिस जाते समय श्रवण को एक फाइल न मिलने के कारण वह बारबार प्रतिमा को आवाज लगा रहा था. प्रतिमा थी कि सुन कर भी अनसुना कर मां के कमरे में काम करती रही. तभी मांजी बोलीं, ‘‘बहू तू जा, श्रवण क्या कह रहा सुन ले.’’

‘‘जी मांजी.’’

दोपहर के समय मांजी ने तेल मालिश के लिए शीशी खोली तो प्रतिमा ने शीशी हाथ में लेते हुए कहा, ‘‘लाओ मांजी मैं लगाती हूं.’’

‘‘बहू रहने दे. तुझे घर के और भी बहुत काम हैं, थक जाएगी.’’

‘‘नहीं मांजी, काम तो बाद में भी होते रहेंगे. तेल लगातेलगाते प्रतिमा बोली, ‘‘मांजी, आप अपने समय में कितनी सुंदर दिखती होंगी और आप के बाल तो और भी सुंदर दिखते होंगे, जो अब भी कितने सुंदर और मुलायम हैं.’’

‘‘अरे नहीं, ऐसी कोई बात नहीं, हां तुम्हारे बाबूजी जरूर कभीकभी छेड़ दिया करते थे. कहते थे कि यदि मैं तुम्हारे कालेज में होता तो तुम्हें भगा ले जाता.’’ बात करतेकरते उन के मुख की लालिमा बता रही थी जैसे वे अपने अतीत में पहुंच गई हैं.

प्रतिमा ने चुटकी लेते हुए मांजी को फिर छेड़ा, ‘‘मांजी गुड्डू के पापा बताते हैं कि आप नानाजी के घर भी कभीकभी ही जाती थीं, बाबूजी का मन आप के बिना लगता ही नहीं था. क्या ऐसा ही था मांजी?’’

‘‘चल हट… शरारती कहीं की… कैसी बातें करती है… देख गुड्डू स्कूल से आता होगा,’’ बनावटी गुस्सा दिखाते हुए मांजी नवयौवना की तरह शरमा गईं. शाम को प्रतिमा को सब्जी काटते देख मांजी बोलीं, ‘‘बहू तुम कुछ और काम कर लो, सब्जी मैं काट देती हूं.’’

मांजी रसोईघर में गईं तो प्रतिमा ने मनुहार करते हुए कहा, ‘‘मांजी, मुझे भरवां शिमलामिर्च की सब्जी बनानी नहीं आती, आप सिखा देंगी? ये कहते हैं, जो स्वाद मां के हाथ के बने खाने में है, वह तुम्हारे में नहीं.’’

‘‘हां… हां… क्यों नहीं, मुझे मसाले दे मैं बना देती हूं. धीरेधीरे रसोई की जिम्मेदारी मां ने अपने ऊपर ले ली थी. और तो और गुड्डू की मालिश करना, उसे नहलाना, उसे खिलानापिलाना सब मांजी ने संभाल लिया. अब प्रतिमा को गुड्डू को पढ़ाने के लिए बहुत समय मिलने लगा. इस तरह प्रतिमा के सिर से काम का भार कम हो गया था.’’

साथसाथ घर का वातावरण भी खुशनुमा रहने लगा. श्रवण को प्रतिमा के साथ कहीं घूमने जाना होता तो वह यही कहती कि मां से पूछ लो, मैं उन के बिना नहीं जाऊंगी. एक दिन पिक्चर देखने का मूड बना. औफिस से आते हुए श्रवण 2 पास ले आया. जब प्रतिमा को चलने के लिए कहा तो वह झट से ऊंचे स्वर में बोल पड़ी, ‘‘मांजी चलेंगी तो मैं चलूंगी अन्यथा नहीं.’’ वह जानती थी कि मां को पिक्चर देखने में कोई रुचि नहीं है. उन की तूतू, मैंमैं सुन कर मांजी बोलीं, ‘‘बहू, क्यों जिद कर रही हो? श्रवण का मन है तो चली जा. गुड्डू को मैं देख लूंगी.’’ मांजी ने शांत स्वर में कहा.

‘अंधा क्या चाहे दो आंखें’ वे दोनों पिक्चर देख कर वापस आए तो उन्हें खाना तैयार मिला. मांजी को पता था श्रवण को कटहल पसंद है, इसलिए फ्रिज से कटहल निकाल कर बना दिया. चपातियां बनाने के लिए प्रतिमा ने गैस जलाई तो मांजी बोलीं, ‘‘प्रतिमा तुम खाना लगा लो रोटियां मैं सेंकती हूं.’’

‘‘नहीं मांजी, आप थक गई होंगी, आप बैठिए, मैं गरमगरम रोटियां बना कर लाती हूं.’’ प्रतिमा बोली. ‘‘सभी एकसाथ बैठ कर खाएंगे, तुम बना लो प्रतिमा,’’ श्रवण बोला.

एकसाथ सभी को खाना खाते देख मांजी की आंखें नम हो गईं. श्रवण ने पूछा तो मां बोलीं, ‘‘आज तुम्हारे बाबूजी की याद आ गई. आज वे होते तो तुम सब को देख कर बहुत खुश होते.’’

‘‘मां मन दुखी मत करो,’’ श्रवण बोला.

प्रतिमा की ओर देख कर श्रवण बोला, ‘‘कटहल की सब्जी ऐसे बनती है. सच में मां… बहुत दिनों बाद इतनी स्वादिष्ठ सब्जी खाई है. मां से कुछ सीख लो प्रतिमा…’’

‘‘मांजी सच में सब्जी बहुत स्वादिष्ठ है… मुझे भी सिखाना…’’

‘‘बहू… खाना तो तुम भी स्वादिष्ठ बनाती हो.’’

‘‘नहीं मांजी, जो स्वाद आप के हाथ के बनाए खाने में है वह मेरे में कहां?’’ प्रतिमा बोली.

श्रवण को दीवाली पर बोनस के पैसे मिले तो देने के लिए उस ने प्रतिमा को आवाज लगाई. प्रतिमा ने आ कर कहा, ‘‘मांजी को ही दीजिए न…’’ श्रवण ने लिफाफा मां के हाथ में रख दिया. मांजी लिफाफे को उलटपलट कर देखते हुए रोमांचित हो उठीं. आज वे खुद को घर की बुजुर्ग व सम्मानित सदस्य अनुभव कर रही थीं. श्रवण व प्रतिमा जानते थे कि मां को पैसों से कुछ लेनादेना नहीं है. न ही उन की कोई विशेष जरूरतें थीं. बस उन्हें तो अपना मानसम्मान चाहिए था.

अब घर में कोई भी खर्चा होता या कहीं जाना होता तो प्रतिमा मां से जरूर पूछती. मांजी भी उसे कहीं घूमने जाने के लिए मना नहीं करतीं. अब हर समय मां के मुख से प्रतिमा की प्रशंसा के फूल ही झरते. दीवाली पर घर की सफाई करतेकरते प्रतिमा स्टूल से जैसे ही नीचे गिरी तो उस के पांव में मोच आ गई. मां ने उसे उठाया और पकड़ कर पलंग पर बैठा कर पांव में मरहम लगाया और गरम पट्टी बांध कर उसे आराम करने को कहा.

यह सब देख कर श्रवण बोला, ‘‘मां मैं ने तो सुना था बहू सेवा करती है सास की, पर यहां तो उलटी गंगा बह रही है.’’

‘‘चुप कर, ज्यादा बकबक मत कर, प्रतिमा मेरी बेटी जैसी है. क्या मैं इस का ध्यान नहीं रख सकती,’’ प्यार से डांटते हुए मां बोली.

‘‘मांजी, बेटी जैसी नहीं, बल्कि बेटी कहो. मैं आप की बेटी ही तो हूं.’’ प्रतिमा की बात सुनते ही मांजी ने उस के सिर पर हाथ रखा और बोलीं, ‘‘तुम सही कह रही हो बहू, तुम ने बेटी की कमी पूरी कर दी.’’

घर में होता वही जो श्रवण चाहता, पर एक बार मां की अनुमति जरूर ली जाती. बेटा चाहे कुछ भी कह दे, पर बहू की छोटी सी भूल भी सास को सहन नहीं होती. इस से सास को अपना अपमान लगता है. यह हमारी परंपरा सी बन चुकी है. जो धीरेधीरे खत्म भी हो रही है. मांजी को थोड़ा सा मानसम्मान देने के बदले में उसे अच्छी बहू का दर्जा व बेटी का स्नेह मिलेगा, इस की तो उस ने कल्पना ही नहीं कीथी. प्रतिमा के घर में हर समय प्यार का, खुशी का वातावरण रहने लगा. दीवाली नजदीक आ गई थी. मां व प्रतिमा ने मिल कर पकवान बनाए. लगता है इस बार की दीवाली एक विशेष दीवाली रहेगी, सोचतेसोचते श्रवण बिस्तर पर लेटा ही था कि अमेरिका से भैया का फोन आ गया. उन्होंने मां के स्वास्थ्य के बारे में पूछा और बताया कि इस बार मां उन के पास से नाराज हो कर गई हैं. तब से मन बहुत विचलित है.

यह तो हम सभी जानते हैं कि नंदिनी भाभी और मां के विचार कभी नहीं मिले, पर अमेरिका में भी उन का झगड़ा होगा, इस की तो कल्पना भी नहीं की थी. भैया ने बताया कि वे माफी मांग कर प्रायश्चित करना चाहते हैं अन्यथा हमेशा उन के मन में एक ज्वाला सी दहकती रहेगी. आगे उन्होंने जो बताया वह सुन कर तो मैं खुशी से उछल ही पड़ा. बस अब 2 दिन का इंतजार था, क्योंकि 2 दिन बाद दीवाली थी.

इस बार दीवाली पर प्रतिमा ने घर कुछ विशेष प्रकार से सजाया था. मुझे उत्साहित देख कर प्रतिमा ने पूछा, ‘‘क्या बात है, आप बहुत खुश नजर आ रहे हैं?’’

अपनी खुशी को छिपाते हुए मैं ने कहा, ‘‘तुम सासबहू का प्यार हमेशा ऐसे ही बना रहे बस… इसलिए खुश हूं.’’

‘‘नजर मत लगा देना हमारे प्यार को,’’ प्रतिमा खुश होते हुए बोली. दीवाली वाले दिन मां ने अपने बक्से की चाबी देते हुए कहा, ‘‘बहू लाल रंग का एक डब्बा है उसे ले आ.’’ प्रतिमा ने जी मांजी कह कर डब्बा ला कर दे दिया. मां ने डब्बा खोला और उस में से खानदानी हार निकाला.  हार प्रतिमा को देते हुए बोलीं, ‘‘लो बहू,

ये हमारा खानदानी हार है, इसे संभालो. दीवाली इसे पहन कर मनाओ, तुम्हारे पिताजी की यही इच्छा थी.’’  हार देते हुए मां की आंखें खुशी से नम हो गईं.

प्रतिमा ने हार ले कर माथे से लगाया और मां के पैर छू कर आशीर्वाद लिया. मुझे बारबार घड़ी की ओर देखते हुए प्रतिमा ने पूछा तो मैं ने टाल दिया. दीप जलाने की तैयारी हो रही थी तभी मां ने आवाज लगा कर कहा, ‘‘श्रवण जल्दी आओ, गुड्डू के साथ फुलझडि़यां भी तो चलानी हैं. मैं साढ़े सात बजने का इंतजार कर रहा था, तभी बाहर टैक्सी रुकने की आवाज आई. मैं समझ गया मेरे इंतजार की घडि़यां खत्म हो गईं.

मैं ने अनजान बनते हुए कहा, ‘‘चलो मां सैलिब्रेशन शुरू करें.’’

‘‘हां… हां… चलो, प्रतिमा… आवाज लगाते हुए कुरसी से उठने लगीं तो नंदिनी भाभी ने मां के चरणस्पर्श किए… आदत के अनुसार मां के मुख से आशीर्वाद की झड़ी लग गई, सिर पर हाथ रखे बोले ही जा रही थीं… खुश रहो, आनंद करो… आदिआदि.’’

भाभी जैसे ही पांव छू कर उठीं तो मां आश्चर्य से देखती रह गईं. आश्चर्य  के कारण पलक झपकाना ही भूल गईं. हैरानी से मां ने एक बार भैया की ओर एक बार मेरी ओर देखा. तभी भैया ने मां के पैर छुए तो खुश हो कर भाभी के साथसाथ मुझे व प्रतिमा को भी गले लगा लिया. मां ने भैयाभाभी की आंखों को पढ़ लिया था. पुन: आशीर्वचन देते हुए दीवाली की शुभकामनाएं दीं मां की आंखों में खुशी की चमक देख कर लग रहा था दीवाली के शुभ अवसर पर अन्य दीपों के साथ मां के हृदयरूपी दीप भी जल उठे. जिन की ज्योति ने सारे घर को जगमग कर दिया. Family Story In Hindi

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