Hindi Story: हीरोइन – महरी की चिंता उसे क्यों थी

Hindi Story: पहले तो सरकारी मकान की दिक्कत और दूसरे, घर पर कामकाज करने वालों की किल्लत. घर के बाकी सब काम तो जैसेतैसे हो जाते थे किंतु बरतन साफ करना, झाड़ ूपोंछा करना ऐसे काम थे जिन्हें सुन कर ही पत्नी का तापमान सामान्य से ऊपर पहुंच जाता था. पूरे घर का वातावरण तनावपूर्ण हो जाता था. दिन भर पत्नी मुझ पर, बच्चों पर और खुद पर भी झल्लाती रहती थी. बच्चों के दोचार थप्पड़ भी लग जाना स्वाभाविक ही था. इसलिए लगभग 5 वर्ष पूर्व जब मैं लखनऊ स्थानांतरित हो कर आया था तो इस आशंका से भयंकर रूप से त्रस्त था.

भागदौड़ कर के दारुलशफा (विधायक निवास) के चक्कर काट कर मुझे कालोनी में मकान मिल गया था. वह मेरे लिए कई दृष्टि से महत्त्वपूर्ण था. किराए के मकानों की दशा से कौन परिचित नहीं है. खुशामद और सामर्थ्य से परे किराया और दिनप्रतिदिन की कहासुनी. तनाव का एक छोटा हिस्सा मकान मिलने से अवश्य कम हुआ था किंतु उस का अधिकांश भाग तब तक घर पर मंडराता रहा जब तक चौकाबासन करने वाली महरी की व्यवस्था नहीं हो गई.

वास्तव में पत्नी से अधिक महरी की चिंता मुझे थी. मैं ने लखनऊ आते ही पूछताछ करनी प्रारंभ कर दी थी. आसपास के घरों में सुबहशाम आतीजाती महरीनुमा औरतों पर निगाह रखना शुरू कर दिया था. 1-2 महरियां दीख पड़ीं, लेकिन उन्होंने बात करते ही ‘खाली नहीं’ की तख्ती दिखा दी. एक सप्ताह बाद पत्नी का धैर्य तेज धूप में कच्ची दीवार सा चटखने लगा. 15 दिन बीततेबीतते उस के चेहरे पर तनाव भी परिलक्षित होना स्वाभाविक ही था.

इतनी बड़ी कालोनी में मेरे ही विभाग के अनेक अधिकारी निवास करते थे. धीरेधीरे मैं ने सभी के सामने महरी की समस्या रखी. अंतत: कमला के बारे में मुझे पता चला किंतु सहयोगी अरविंदजी ने मुझे उस की चर्चा के साथ ही सचेत करते हुए कह दिया था, ‘‘भाई, कालोनी की हीरोइन है कमला, एकदम आधुनिका. बड़ी नखरेबाज. उस की हर किसी के साथ निभ पाना संभव नहीं है.’’

मैं ने पत्नी को आ कर सब बता दिया था और कमला को बुलाने का आग्रह किया था.

कमला आई थी तो उसे देख कर मैं भी पहले दिन ही चकित रह गया था. वह देखने में 30 के आसपास थी. सांवला रंग किंतु तीखे नाकनक्श, सलीके से संवरी हुई आकृति और साफसुथरे कपड़े, अंगूठी से घिरी 2 उंगलियां, कलाई में घड़ी और साधारण एड़ी वाली चप्पलें. उसे देख कर यह विश्वास नहीं हुआ कि वह स्त्री घरों में बरतन मांजने और झाड़ ूपोंछे का काम करती थी.

प्रारंभिक वार्त्ता के बाद कमला ने कार्य प्रारंभ कर दिया था. बाद में पता चला था कि वह इत्तफाक ही था कि एक अधिकारी के स्थानांतरण के फलस्वरूप कमला अभी हाल में ही खाली हुई थी. वरना उस का नियम था कि वह एक ही समय में 5 से अधिक घरों में काम नहीं करती थी.

कमला का काम जहां एक ओर अति स्वच्छ व व्यवस्थित था वहीं दूसरी ओर उस में स्वयं एक सौम्यता व गंभीरता दीख पड़ती थी. घड़ी की सूइयों के साथ वह प्रात: सवा 8 बजे आती थी और 45 मिनट में सारे कार्यों से निवृत्त हो कर चली जाती थी. सायं ठीक सवा 5 बजे कमला घर में घुसती थी और पौने 6 बजे तक घर से निकल जाती थी. न तो वह अधिक बोलती थी और न ही उसे सुनने की कोई आदत थी.

जैसेजैसे समय बीतता गया, हम कमला के बारे में और अधिक जानते गए. उस का पति बीमा कार्यालय में चपरासी था. 3 बच्चे थे उन के. बड़ा लड़का और 2 लड़कियां. कमला को देख कर हम तो यही सोचते थे कि अभी बच्चे छोटे ही होंगे. किंतु मुझे उस दिन घोर आश्चर्य हुआ जब एक 16-17 वर्षीय लड़के ने घर आ कर पूछा था, ‘‘मां आई थीं?’’

‘‘किस की मां?’’ पत्नी ने सकपका कर पूछा था.

‘‘मेरी मां, कमलाजी.’’

‘‘कमला,’’ पत्नी हतप्रभ सी धीरे से मुसकरा दी. फिर सहजता धारण कर के बोली, ‘‘हमारे यहां तो सवा 5 बजे आती है. अभी तो देर है.’’

वह लड़का अभिवादन कर के लौट गया.

पता नहीं क्यों पत्नी के हृदय में एक कुलबुलाहट सी हुई. उस दिन कमला के आने पर पत्नी ने उस के लड़के के आने के बारे में बताते हुए बातों का सिलसिला शुरू कर दिया.

‘‘जी, बीबीजी,’’ कमला ने बताया, ‘‘घर पर अचानक कुछ मेहमान आ गए थे. जल्दी में थे. इसलिए लड़का ढूंढ़ रहा था.’’

‘‘मगर तुम्हारा लड़का और इतना बड़ा?’’ पत्नी रोक न सकी अपनी जिज्ञासा को.

कमला ने शरम से मुंह नीचे कर लिया. पहली बार उस के चेहरे पर स्मित की लहरें उभर आईं.

‘‘तुम देखने में तो इतनी बड़ी उम्र की नहीं लगती हो?’’ पत्नी ने धीरे से बात बनाई थी.

कमला हंसने लगी. फिर दबे स्वर में बोली, ‘‘बीबीजी, कुछ तो शादी ही जल्दी हो गई थी. वैसे अब 33 की तो हो ही रही हूं.’’

कमला ने आगे बताया था कि उस के पिता बरेली में एक स्कूल में अध्यापक थे. घर में पढ़नेलिखने का वातावरण भी था. कमला की 2 बहनों ने इंटर पास किया था. उन की शादी हो गई थी. छोटा भाई बी.ए. कर के कचहरी में बाबू हो गया था.

कमला जब केवल 15 वर्ष की ही थी तो पड़ोस में रह रहे नवयुवक के प्रेमजाल में फंस कर वह उस के साथ लखनऊ चली आई थी. उस समय वह 9वीं की परीक्षा दे चुकी थी. नवयुवक यानी उस के पति के मामा ने उन्हें शरण दी थी तथा कचहरी में विवाह कराया था. उस का पति हाईस्कूल पास था. मामा ने ही सिफारिश कर के उस की बीमा दफ्तर में नौकरी लगवा दी थी.

कमला के पिता और घर के अन्य सदस्य उस घटना के बाद इतने अपमानित व क्षुब्ध थे कि उन्होंने कमला से सदा के लिए अपने संबंध विच्छेद कर लिए थे. उधर पति के घर वाले भी उतने ही नाराज थे किंतु धीरेधीरे उन से संबंध सुधर गए थे.

लगभग 1 वर्ष बाद पुत्र का जन्म हुआ था और बाद में 2 लड़कियों का. अब उन में से एक 15 साल की थी और दूसरी 9 साल की.

हमें लखनऊ में आए लगभग 3 साल बीत चुके थे. अब सब व्यवस्थित हो चला था. कमला से कभीकभार खुल कर बातें भी होने लगी थीं किंतु न तो उस के नित्यक्रम में कोई अंतर आया था और न ही उस में.

कमला की कुछ और भी विशिष्टताएं थीं. वह कभी हमारे घर पर कुछ खातीपीती नहीं थी. और तो और वह कभी चाय भी नहीं लेती थी. घर से खाने का कोई सामान स्वीकार न करना और न ही तीजत्योहार पर किसी अतिरिक्त पैसे, कपड़े या वस्तु की मांग करना. प्रारंभ में हमें लगा कि संभवत: महानगर की ऐसी ही प्रथा हो, किंतु बाद में यह भ्रांति भी दूर हो गई.

उस दिन के बाद कमला का लड़का भी कभी हमारे घर नहीं आया था. पता चला था कि वह हाईस्कूल की परीक्षा में 2 बार फेल हो चुका था. अब तीसरी बार परीक्षा दी थी.

कमला की लड़कियों का हमारे घर पर आने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता था.

एक दिन जब पत्नी ने कमला से उस की 2 दिन की अनुपस्थिति में किसी लड़की को काम पर भेजने को कहा था तो पहली बार कमला रोष व खीज भरे स्वर में बोली थी, ‘‘नहीं, बीबीजी, मैं अपनी लड़की को नहीं भेज सकती. जो काम मैं उन बच्चों के लिए करती हूं वह उन को करते नहीं देख सकती हूं.’’

उस वर्ष जब हाईस्कूल बोर्ड का परीक्षाफल आया और कमला का लड़का तीसरी बार अनुत्तीर्ण हुआ तो कमला क्षोभ व यंत्रणा से टूटी सी लगती थी. पत्नी के पूछने पर उस के नेत्र छलछला उठे. फिर सिसकियां ले कर रोने लगी. साथ ही भरभराए स्वर में कहने लगी, ‘‘बीबीजी, सिर्फ इन बच्चों के लिए यह काम करना शुरू किया था, जिस से वे अच्छी तरह रह सकें, अच्छा पहनेंखाएं और पढ़लिख कर लायक बन जाएं.’’

कुछ पल शांत रही कमला. फिर बताने लगी, ‘‘बाबूजी, हमारे पूरे खानदान में यह काम किसी ने नहीं किया था, लेकिन मैं ने सिर्फ बच्चों की खातिर यह धंधा अपनाया था.’’

साड़ी का पल्लू निकाल कर कमला ने आंसू पोंछे. फिर आगे बोली, ‘‘मेरा आदमी मुझ से इस धंधे के पीछे बड़ा नाराज हुआ. दुखी भी हुआ. घर के गुजारे लायक उस को पैसा मिलता था. उस के साथ के चपरासी ऐसे ही रह रहे हैं, लेकिन मैं ने जिद कर के यह काम किया. जानती थी कि उस की आमदनी में काम तो चल जाएगा. लेकिन मैं बच्चों को पढ़ालिखा नहीं सकूंगी. उन्हें ठीक तरह नहीं रख पाऊंगी.

‘‘मैं ने मुन्ना को बड़े चाव से पढ़ाना चाहा था, लेकिन वह पढ़ता ही नहीं है. उस के पापा तो पिछले साल ही पढ़ाई बंद करा रहे थे. उसे कपड़े की दुकान पर लगवा भी दिया था, लेकिन मैं ने जिद कर के वह काम छुड़वाया और पढ़ने भेजा.

‘‘आज सुबह जब नतीजा आया तो मुन्ना को तो डांटाडपटा ही मेरे आदमी ने, मुझे भी बुराभला कहा. फिर आज ही मुन्ना काम पर चला गया उस दुकान पर.’’

कहतेकहते कमला का स्वर बोझिल हो कर टूट सा गया.

‘‘कैसी दुकान है?’’ कुछ देर शांत रह कर कुछ न सूझते हुए पत्नी ने पूछ लिया.

‘‘कपड़े की, जनपथ में है.’’

‘‘कितना देंगे?’’

‘‘यही करीब 300-350 रुपए. मगर बीबीजी, मुझे पैसे का क्या करना है. मुन्ना पढ़ लेता तो जीवन की आस पूरी हो जाती. मेरा यों दरदर ठोकरें खाना सफल हो जाता,’’ कहते हुए कमला की आंखों में एक गीली परत सी जम गई.

कमला की व्यथा सुन कर मैं भी दुखित हो चला था. सचमुच एक विडंबना ही तो थी यह उस की.

उस घटना के बाद कमला दुखी व परेशान सी रहने लगी थी. ऐसा लगता था जैसे कोई दुख उस के हृदय को लगातार बरमे की तरह सालता था. मानो काले बादलों का साया उस के अंतरंग में घुटन सी पैदा कर रहा था. सब काम नियमित रूप से करते हुए भी कमला स्फूर्तिहीन व निस्पंद सी दीख पड़ती थी. कभीकभी यह आशंका होती थी कि कहीं वह काम करना ही न छोड़ दे. किंतु जब 6 माह बीत गए तो पत्नी आश्वस्त हो गई. कमला भी धीरेधीरे सामान्य हो चली थी.

एक दिन कमला ने एक सप्ताह के अवकाश के संबंध में पत्नी से कहा तो उस का आशंकित हो उठना स्वाभाविक था, ‘‘क्या कामवाम छोड़ने का विचार है?’’ अपने संदेह व आशंका को एक धीमी मुसकान से ढांपते हुए पत्नी ने पूछा था.

‘‘नहीं, बीबीजी, ऐसी कोई बात नहीं है,’’ कमला ने सहजता से उत्तर दिया, ‘‘मेरी लड़की की शादी है.’’

‘‘सचमुच?’’ पत्नी ने अचंभे से कमला को देखा.

‘‘हां, बीबीजी. 17 पूरे कर चली है. लड़का मिल गया है सो शादी पक्की कर डाली है.’’

‘‘ठीक ही तो किया तुम ने.’’

‘‘और करती भी क्या. उस को भी पढ़ाने की लाख कोशिश की, लेकिन 9वीं से आगे नहीं पढ़ सकी. मेरी ही तरह रही,’’ कह कर हंस दी वह, ‘‘मैं ने सोचा कि कुछ और न हो इस से पहले ही उस के हाथ पीले कर दूं और छुट्टी पा लूं.’’

कमला के आग्रह पर हम दोनों विवाह में सम्मिलित हुए थे. पत्नी एक बार पहले भी उस के घर जा चुकी थी. उस ने मुझे कमला के घर के रखरखाव के बारे में बताया था. टीवी, सोफा, खाने की मेजकुरसियां, ड्रेसिंग टेबल, सबकुछ उस के घर में था.

आज उस का घर देख कर मैं भी चकित रह गया था. शादी का स्तर भी मध्यवर्गीय परिवार जैसा ही था. कहीं कोई कमी नहीं दीख पड़ी. वह सब देख कर जाने क्यों मेरे हृदय में कहीं अंदर अतीव सुख व संतोष की भावना प्रवाहित हो गई थी.

लड़की के विवाह के बाद एक बार फिर हमें ऐसा लगा कि अब कमला अवश्य काम छोड़ देगी, किंतु ऐसा कुछ नहीं हुआ.

एक दिन पत्नी ने मुझे बताया कि कमला मुझ से कोई बात करना चाहती थी. सुन कर मुझे आश्चर्य हुआ. अगले दिन मैं ने स्वयं कमला से पूछा था, ‘‘कमला, तुम्हें कुछ बात करनी थी?’’

‘‘जी, बाबूजी,’’ हाथ धो कर वह मेरे पास आ कर नीचे जमीन पर बैठ गई, ‘‘कुछ काम था.’’

‘‘बोलो?’’ आत्मीयता भरे स्वर में मैं ने इजाजत दी थी.

‘‘छोटी मुन्नी का किसी अच्छे स्कूल में दाखिला करा दीजिए.’’

‘‘किस क्लास में?’’

‘‘जी, उस ने कानवेंट से 5वीं पास की है. क्लास में दूसरे नंबर पर आई है. अब छठी में जाएगी. उस की अध्यापिका उस की बड़ी तारीफ कर रही थीं. कह रही थीं कि मैं उसे खूब पढ़ाऊं. मैं उसे किसी अच्छे अंगरेजी स्कूल या सेंट्रल स्कूल में डालना चाहती हूं. मेरी हिम्मत नहीं पड़ती थी. इसलिए आप से ही विनती करने आई हूं.’’

मैं स्तंभित सा सुनता रहा.

‘‘क्यों नहीं. आज ही ले आओ उसे. मैं ले कर चला जाऊंगा. दाखिला भी करवा दूंगा,’’ मैं ने कमला को आश्वासन दिया.

कमला मेरे पैरों को छूने लगी, ‘‘मुझ पर बड़ा एहसान होगा आप का. यह लड़की पढ़ लेगी तो जीवनभर आप को याद करूंगी.’’

‘‘लेकिन तुम ने कभी बताया ही नहीं कि तुम्हारी लड़की कानवेंट में है और पढ़ने में इतनी अच्छी है.’’

‘‘बाबूजी, क्या बताती, मेरी तो आखिरी आशा है वह. कभी लगता है उस को दूसरों से ज्यादा मेरी ही नजर न लग जाए.’’

मैं सुन कर हंसने लगा. वातावरण की गंभीरता टूट चुकी थी. इसलिए मैं ने पूछ ही लिया, ‘‘मगर तुम ने उसे दोनों बच्चों के बीच कैसे पाला?’’

‘‘बस, बाबूजी, शुरू से छोटी मुन्नी को एकदम अलग ही रखा दोनों बच्चों से. उस के लिए अध्यापक लगाए, पढ़ाने से ज्यादा उस को अलग रखने के लिए. वह जो मांगती है, उसे देती हूं,’’ कुछ क्षण रुक कर फिर धीमे से कहने लगी कमला, ‘‘उसे आज तक यह नहीं मालूम कि मैं क्या काम करती हूं. बाबूजी, हो सकता है कि वह जान कर अच्छे बच्चों में खुल कर घुलमिल न पाए.’’

कमला की आंखें डबडबा उठी थीं. मेरे दिल के तार भी जैसे झंकृत हो उठे थे.

कमला उठ कर अपने काम में लग गई.

तब से मैं भी यह मानता हूं कि कमला वास्तव में हीरोइन है. उस रूप में नहीं जिस में लोग उसे कहतेसमझते हैं बल्कि एक नए अर्थ में, एक नए संदर्भ में. Hindi Story

Story In Hindi: मेरा पिया घर आया – रवि के मन में नीरजा ने कैसे अपने प्रेम की अलख जगा दी?

Story In Hindi: रवि अपनी भाभी कविता और उन की सहेली निशा की सारी दलीलों को नजरअंदाज करते हुए शादी न करने की जिद पर कायम रहा, ‘‘मानवी से जुड़ी यादों के कारण अब किसी लड़की की तरफ देखने का मेरा मन नहीं करता,’’ शादी न करने का मुख्य कारण दोहराते हुए रवि का गला भर आया था.

‘‘पर मानवी अब जिंदा नहीं है,’’ निशा ने उत्तेजित लहजे में उसे याद दिलाया, ‘‘जिंदगी में हुए किसी एक हादसे के कारण इंसान को अपनी जीवनधारा को रोक नहीं देना चाहिए.’’

‘‘मैं मानवी की यादों के सहारे सारा जीवन गुजारने का फैसला कर चुका हूं, निशा भाभी.’’

कविता ने एकाएक नियंत्रण खो दिया और गुस्से से भरी आवाज में अपनी सहेली से कहा, ‘‘निशा, इन जनाब के साथ मगज मारने से कोई फायदा नहीं. अच्छा ही है कि ये शादी करने से इनकार कर रहे हैं. इन जैसे जिद्दी और नासमझ इंसान के साथ शादी कर के कोई लड़की खुश रह भी नहीं सकती.’’

अब तक खामोश बैठी निशा की छोटी बहन नीरजा एकाएक भावुक लहजे में बोल पड़ी, ‘‘ऐसा मत कहो कविता दीदी. इन जैसे संवेदनशील इंसान की जीवनसंगिनी बन कर कोई भी लड़की खुद पर गर्व करेगी.’’

निशा और कविता को उस का शरमातेलजाते अंदाज में अपनी बात कहने का यह ढंग हैरान कर गया. रवि भी उस के चेहरे को उलझन भरे अंदाज में पढ़ने की कोशिश कर रहा था.

‘‘नीरजा, तुम तो मानवी से जुड़ी सारी कहानी अच्छी तरह जानती हो. अगर तुम्हारे लिए इस का रिश्ता आए, तो क्या तुम हां कह दोगी?’’ कुछ देर की खामोशी के बाद कविता ने मजाकिया लहजे में नीरजा से यह सवाल पूछ ही लिया.

‘‘मैं तो फौरन हां कह दूंगी,’’ नीरजा ने भावुक लहजे में ऐसा जवाब दिया तो तीनों को यह बात एकदम समझ आ गई कि वह रवि को मन ही मन प्यार करने लगी है.

कविता ने इस बार संजीदा हो कर अगला सवाल पूछा, ‘‘यह तो बता कि तू ने ऐसा क्या खास गुण देख लिया रवि में जो इसे अपना दिल दे बैठी?’’

नीरजा भावुक लहजे में बोली, ‘‘कुछ दिन पहले जब दीदी के बेटे मोहित की तबीयत खराब हुई, तो इन से उस की पीड़ा नहीं देखी गई थी. सब के रोकने के बावजूद ये ही उसे फौरन अस्पताल ले गए थे.’’

‘‘भाभी, आप या दीदी वक्तबेवक्त इन्हें कुछ भी काम बताओ, ये उसे करने में बिलकुल नानुकर नहीं करते. गुस्सा तो जैसे इन के स्वभाव में है ही नहीं. सब से हंस कर मिलते हैं. मैं ने इन्हें गरीब लोगों से भी हमेशा प्यार और इज्जत के साथ पेश आते देखा है. इन की तो जितनी तारीफ की जाए कम है.’’

रवि ने माथे पर बल डाल कर कहा, ‘‘ऐसी बातें सोचने का कोई फायदा नहीं, क्योंकि मुझे तो कभी शादी ही नहीं करनी है.’’

‘‘इस मामले में मेरा अपने दिल पर कोई नियंत्रण नहीं रहा है,’’ नीरजा ने शरमाते हुए जवाब दिया.

‘‘तुम पागल हो क्या? क्यों इन सब की हंसी का पात्र न रही हो?’’

‘‘आप जैसा संवेदनशील और नेकदिल जीवनसाथी मुझे ढूंढ़ने पर नहीं मिलेगा,’’ वह अपनी धुन में बोली, मानो उस ने रवि की बात सुनी ही न हो.

रवि को बिलकुल नहीं सूझा कि वह नीरजा से आगे क्या कहे. उसे यों बेबस देख निशा और कविता खुल कर मुसकराए जा रही थीं.

‘‘निशा, मुझे तो तेरी छोटी बहन को अपनी देवरानी बनाने में कोई एतराज नहीं…’’

‘‘भाभी, प्लीज. हम अभी आए,’’ ऐसा कह कर रवि ने नीरजा का हाथ पकड़ा और उसे उन के बीच से उठा कर बाहर लौन में ले आया.

‘‘तुम सब के सामने ऐसी पागलपन वाली बातें कर के अपना और मेरा मजाक मत उड़वाओ,’’ रवि नाराज नजर आ रहा था.

‘‘आप इस दुनिया को छोड़ कर जा चुकी मानवी के अलावा किसी और लड़की से प्रेम नहीं करते हो न?’’ नीरजा एकदम संजीदा हो गई.

‘नहीं.’’

‘‘तो मुझ से शादी कर लो.’’

‘‘तुम मेरी मजबूरी समझो, प्लीज. मैं मानवी को प्यार करता था, करता हूं और करता रहूंगा.’’

‘‘मुझे बिलकुल आप के जैसा ही जीवनसाथी चाहिए. अपनी मृत प्रेमिका के प्रति आप अगर इतने वफादार हो तो यकीनन मेरे प्यार के प्रति भी पूरी तरह से ईमानदार और वफादार रहोगे.’’

‘‘मैं मानवी से कभी बेवफाई नहीं करूंगा,’’ नाराजगी भरे अंदाज में उठ कर रवि अपने घर की तरफ चल पड़ा.

‘‘और मेरा दिल कह रहा है कि हमारी शादी जरूर हो कर रहेगी,’’ नीरजा की इस घोषणा का कोई जवाब देने के लिए रवि रुका नहीं था.

रवि का दिल जीतने की कोशिशें नीरजा ने उसी दिन से बड़े उत्साह के साथ शुरू कर दीं. पड़ोस में घर होने के कारण वह सुबहशाम खूब सजधज कर रवि से मिलने पहुंच जाती.

‘‘मैं कैसी लग रही हूं?’’ रवि के सामने आते ही वह उस से यह सवाल तब तक पूछती रहती जब तक वह उस की तारीफ नहीं कर देता.

अपने फोन के कैमरे से वह रवि के हर किसी के साथ खूब फोटो खींचती. उस का हर काम भागभाग कर खुद करती. उस के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताने के लिए वह अकसर रात का खाना उसी के घर खाने लगी थी.

वह अकसर, ‘अपने पिया की मैं तो बनी रे दुलहनिया…’ और ‘मेरा पिया घर आया…’ जैसे गाने मस्त अंदाज में गाती हुई दोनों घरों में घूमती नजर आती, तो रवि के अलावा सब खूब दिल खोल कर हंसते.

परेशान रवि हर किसी से फरियाद करता, ‘‘कोई इस पगली को समझाओ, प्लीज. यह अपनी भावनाओं पर काबू रखे, नहीं तो बाद में इसे दुख होगा.’’

‘‘उसे समझाना हमारे बस की बात नहीं. वह तो तुम्हारे प्यार में पागल हो चुकी है, रवि,’’ हर किसी से कुछ ऐसा ही जवाब पा कर रवि की खीज निरंतर बढ़ती जाती थी.

आने वाले कुछ दिनों में नीरजा ने अपने उत्साहपूर्ण व्यवहार से रवि के पिता कैलाश, मां सावित्री और बड़े भाई राजीव के दिलों को भी जीत लिया. उन सब के मन में यह उम्मीद बंध  गई कि कभी शादी न करने के रवि के फैसले को शायद नीरजा बदलने में कामयाब हो जाएगी.

नीरजा की मां कांता ने विकास नाम के एक बिजनैसमैन के साथ नीरजा का रिश्ता पक्का करने का मन बना रखा था. जब नीरजा के रवि को दिल देने की खबर उन के कानों तक पहुंची, तो वे अपने पति रमेश के साथ अगले ही दिन मेरठ से दिल्ली आ गईं.

नीरजा को सामने बैठा कर उन्होंने सख्त लहजे में उसे समझाना शुरू किया, ‘‘शादी के बाद किसी भी लड़की की खुशियां सुनिश्चित करने में पैसा बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. तुझे तो इस बात से खुश होना चाहिए कि इतने अमीर घर की बहू बनने का मौका मिल रहा है.’’

‘‘पर मैं रवि को पसंद करती हूं… उसे दिल की गहराइयों से प्यार करती हूं,’’ नीरजा ने रोंआसे स्वर में उन्हें अपने दिल की बात बता दी.

‘‘पैसा सबकुछ नहीं होता, कांता. हमें इस की पसंद नापसंद का भी खयाल रखना चाहिए,’’ रमेश ने अपनी बेटी का पक्ष लिया.

‘‘तुम तो अपना मुंह बंद ही रखो जी,’’ कांता एकदम गुस्से से फट पड़ीं, ‘‘तुम्हारे साथ पिछले 30 साल से मैं अपने मन को मार कर कैसे जी रही हूं, यह मैं ही जानती हूं. कभी न मनचाहा पहना, न कहीं घूमीफिरी. बजट बना कर जीते हुए मेरी सारी जिंदगी बेकार हो गई.’’

रमेशजी ने आगे कुछ न बोलने में ही अपनी भलाई समझी. कांता ने उन से ध्यान हटाया और अपनी बेटी को गुस्से से घूरते हुए कहने लगीं, ‘‘अपने इस प्यार और पसंद के पागलपन को गोली मार और मुझे बता कि विकास के मुकाबले क्या है इस रवि के पास? 3 कमरों का फ्लैट, जिस में वह भैयाभाभी के साथ रहता है और खटारा सी पुरानी कार. अरे, रवि जितना सालभर में कमाता है, उतनी तो विकास की फैक्टरी एक महीने में उसे कमा कर देती है. तू जिंदगीभर ऐश करेगी उस के साथ.’’

नीरजा चिढ़ कर बोली, ‘‘मां, मेरी नजरों में विकास एक अहंकारी और रूखा इंसान है, जो अपनी तारीफ खुद कर के सब को बहुत बोर करता है.’’

‘‘उस काबिल लड़के में जबरदस्ती बेकार के नुक्स मत निकाल. देख, उन्हें सुंदर लड़की चाहिए और ऊपर से तेरी मौसी यह रिश्ता कराने के लिए खूब भागदौड़ कर रही है. तुझ में थोड़ी सी भी अक्ल है, तो फौरन विकास से शादी करने को हां कह दे.’’

‘‘शादी के मामले में किसी ने मेरे साथ जबरदस्ती की तो मैं आत्महत्या कर लूंगी,’’ ऐसी चेतावनी दे कर नीरजा उन के सामने से हट गई.

कुछ देर तक अपनी बेटी को कोसने के बाद कांता ने नीरजा पर दबाव बढ़ाने के लिए विकास को फौरन अगले दिन सुबह मेरठ से दिल्ली आने का हुक्म फोन कर के सुना दिया.

सफल बिजनैसमैन विकास बड़बोला इंसान था, जिसे अपनी अमीरी पर बहुत घमंड था. उसे पूरा विश्वास था कि नीरजा उस के साथ शादी करने से कभी इनकार नहीं करेगी.

‘‘नीरजा को मैं सारी दुनिया घुमाऊंगा… मेरी मां शादी में इतने जेवर चढ़ाएंगी कि देखने वालों की आंखें फटी की फटी रह जाएंगी… हनीमून मनाने के लिए मैं ने स्विट्जरलैंड जाने का मन बना रखा है…’’ हर वक्त ऐसी डींगें मार कर उस ने कांता के अलावा सब को परेशान कर रखा था.

रवि ने अगले ही दिन नीरजा से अकेले में कहा, ‘‘इस विकास के साथ शादी करने को तुम हां मत करना. वह बोर इंसान तुम्हें अपने ढंग से कभी जीने नहीं देगा.’’

‘‘मैं तो आप की हमसफर बनना चाहती हूं, पर आप हो कि हां…’’

‘‘वह बात मत शुरू करो, प्लीज. मैं तुम से शादी नहीं कर सकता,’’ रवि ने उसे फौरन टोक दिया.

‘‘आप मेरी आंखों में देखो और बताओ कि वहां आप को अपने लिए गहरा प्यार दिखाई दे रहा है या नहीं,’’ नीरजा एकदम से रवि के बहुत करीब आ गई थी.

‘‘वह सब तो ठीक है, पर…’’

‘‘मानवी के साथ आप ने सच्चा प्यार किया, पर अब वह इस दुनिया में नहीं है. उस की यादों से जुड़े रह कर मेरे सच्चे प्रेम को अपने दिल में जगह न देने का फैसला करना कहां की समझदारी है,’’ नीरजा का गला एकदम से भर आया.

‘‘मैं मजबूर हूं.’’

‘‘तो मैं भी मजबूर हूं. अगर आप ने हां नहीं की, तो मैं परसों शाम को होने वाली अपनी जन्मदिन पार्टी में विकास के साथ शादी करने को हां जरूर कह दूंगी,’’ नीरजा ने अपना फैसला सुनाने के बाद भावुक अंदाज में उस का हाथ चूमा और अपने कमरे की तरफ चली गई.

उस शाम को विकास के वापस मेरठ लौटने से पहले नीरजा ने सब के सामने उस से कहा, ‘‘मैं शादी को ले कर अपनी पक्की हां या ना आप को 2 दिन के अंदर जरूर बता दूंगी.’’

नीरजा की इस घोषणा के बाद सभी रवि की तरफ आशा भरी नजरों से देखने लगे. उस के गुस्से से डर कर कोई कुछ कह तो नहीं रहा था, पर उन सब की खामोशी भी रवि के ऊपर नीरजा से शादी के लिए हां कहने को जबरदस्त दबाव बना रही थी.

नीरजा की आशा के विपरीत रवि ने शादी को ले कर कोई बात नहीं की. वह तो अपने घर से सुबह से देर रात तक के लिए 2 दिन ऐसा गायब रहा कि उन दोनों की अगली मुलाकात उस की जन्मदिन पार्टी में ही हुई.

पार्टी में शामिल होने के लिए जैसे ही रवि ने ड्राइंगरूम में कदम रखा, तो उस से बेहद खफा नजर आ रही नीरजा ने ऊंची आवाज में सब को संबोधित किया, ‘‘अपने मातापिता की खुशी की खातिर मैं ने विकास से शादी करने का फैसला…’’

रवि ने ऊंची आवाज में टोक कर उसे अपना वाक्य पूरा नहीं करने दिया, ‘‘नीरजा, तुम उस घमंडी इंसान के साथ कभी खुश नहीं रह सकोगी.’’

‘‘तो आप क्यों परेशान हो रहे हैं,’’ गुस्सा करना भूल कर नीरजा एकदम से रोंआसी हो उठी.

कविता ने भी चुभते लहजे में अपने देवर को डांटा, ‘‘यह बिलकुल ठीक कह रही है. तुम्हारे प्रेम में पागल इस प्यारी सी… इस भोली सी…इस सुंदर सी लड़की के सुखदुख की तुम्हें कोई चिंता करने की जरूरत नहीं है. तुम तो जिंदगीभर अपनी मृत महबूबा को नाराज न करने की फिक्र ही करते रहना.’’

‘‘अब बस भी करो, भाभी. आप सब लोगों के ताने सुनसुन कर मैं इतना तंग आ गया हूं कि मैं ने…मुझे नीरजा से शादी करना मंजूर है,’’ रवि की इस घोषणा को सुन नीरजा के अलावा वहां उपस्थित हर इंसान तालियां बजा उठा.

सब की नजरों का केंद्र बन गई नीरजा ने उदास लहजे में अपने मन की बात कही, ‘‘शादी के मामले में मुझे इन की दया या एहसान नहीं चाहिए. ऐसी शादी करने का क्या फायदा कि इन के सामने मैं रहूं, पर ये मानवी के विचारों में खोए रहें?’’

‘‘पहले तुम ही शादी करने को मेरे पीछे हाथ धो कर पड़ी हुई थी, तो अब क्यों इनकार कर रही हो?’’ रवि ने उस के पास आ कर मुसकराते हुए पूछा.

‘‘मुझे लगता है कि मेरे साथ शादी करने का फैसला आप ने खुश हो कर नहीं किया है.’’

‘‘मेरे मन में क्या है, अब यह भी तुम बताओगी?’’

‘‘मुझे ही क्या, यह तो सब को पता है कि आप के दिलोदिमाग पर मानवी का कब्जा है.’’

‘‘तो तुम्हारे साथसाथ और सब भी कान खोल कर सुन लो कि मानवी ने ही मुझे तुम से शादी करने की इजाजत दी है,’’ रवि ने अपना पर्स खोल कर सब को दिखाया.

पर्स में अब तक मानवी का फोटो सभी ने लगा देखा था, पर इस वक्त वहां नीरजा की तसवीर लगी नजर आई.

एकाएक बेहद भावुक हो कर रवि नीरजा से बोला, ‘‘मानवी ने ही कल रात मुझे देर तक समझाया कि अब से तुम मेरे सुखदुख का खयाल रखोगी. कल रात के बाद से मैं आंखें बंद करता हूं, तो उस की जगह अब मुझे तुम नजर आती हो. मुझ से शादी न कर के क्या तुम मानवी को कष्ट पहुंचाना चाहोगी?’’

‘‘मैं भला ऐसा गलत काम क्यों करूंगी? हमारी शादी जरूर होगी,’’ नीरजा किसी छोटी बच्ची की तरह खुशी से तालियां बजाती उछली और फिर शरमाते हुए रवि की छाती से जा लगी. Short Story In Hindi

Short Story In Hindi: संदेशवाहक – क्या नीरज ने पत्नी को धोखा दिया

Short Story In Hindi: नीरज से शिखा की शादी के समय महक अमेरिका गई हुई थी. जब वह लौटी, तब तक उन की शादी को3 महीने बीत गए थे. अपनी सब से पक्की सहेली के आने की खुशी में शिखा ने अपने घर में एक छोटी सी पार्टी का आयोजन किया. शिखा ने पार्टी में नीरज के 3 खास दोस्तों और अपनी 3 पक्की सहेलियों को भी बुलाया.

जब करीब 9 बजे महक ने उन के ड्राइंगरूम में कदम रखा, तब तक सारे मेहमान आ चुके थे. शिखा और उस की सहेलियों के अलावा बाकी सब उस से पहली बार मिल रहे थे. उस पर पहली नजर डालते ही वे सब उस की सुंदरता देख कर मुग्ध हो उठे. ‘‘अति सुंदर’’, ये शब्द शिखा के पति नीरज के मुंह से निकले.

रवि, मोहित और विपिन की भी आंखें चमक उठीं और मुंह खुले के खुले रह गए. ‘‘शिखा, शादी कर के तो तू फिल्मी हीरोइन सी सुंदर हो गई है,’’ महक ने पहले शिखा को गले लगाया औैर फिर गोद में उठा कर 2 चक्कर भी लगा दिए.

फिर जब वह नीरज से भी गले लग कर मिली, तो शिखा ने उस के तीनों दोस्तों की आंखों में हैरानी के भावों को पैदा होते देखा. ‘‘जीजू, मसल्स तो बड़ी जबरदस्त बना रखी हैं,’’ महक ने बेहिचक नीरज के बाएं बाजू को दबाते हुए उस की तारीफ की, ‘‘लगता है तुम्हें भी मेरी तरह जिम जाने का शौक है. यू आर वैरी हैंडसम.’’

नीरज तो उसी पल से महक का फैन बन गया. उसे अपने सुंदर रंगरूप और मजबूत कदकाठी पर बहुत गुमान था. फिर महक रितु, गुंजन औैर नीमा से गले लग कर मिली. मोहित, रवि और विपिन से उस ने दोस्ताना अंदाज में हाथ मिलाया.

महक के पहुंचते ही पार्टी में जान पड़ गई थी. नीरज और उस के दोस्त उस की अदाओं के दीवाने हो गए थे. महक उन से यों खुल कर हंसबोल रही थी मानो उन्हें वर्षों से जानती हो. ‘‘बिना डांस के पार्टी में मजा नहीं आता,’’ उस के मुंह से इन शब्दों के निकलने की देर थी कि उन चारों ने फटाफट सोफा औैर मेज एक तरफ खिसका कर ड्राइंगरूम के बीच में डांस करने की जगह बना दी.

डांस कर रही महक का उत्साह देखते ही बनता था. उस ने नीरज और उस के तीनों दोस्तों के साथ जम कर डांस किया. ‘‘अरे, हम चारों भी इस पार्टी में शामिल हैं. हमारे साथ भी कोईर् खुशीखुशी डांस कर ले, यार,’’ गुंजन के इस मजाक पर सब ठहाका मार कर हंसे जरूर, पर उन चारों के आकर्षण का केंद्र तब भी महक ही बनी रही.

महक को किसी भी पुरुष का दिल जीतने की कला आती थी. उस की बड़ीबड़ी चंचल आंखों की चमक और दिलकश मुसकान में खो कर नीरज औैर उस के दोस्तों को समय बीतने का एहसास ही नहीं हो रहा था. ‘‘आज जीजू के पास हमारे लिए वक्त नहीं है. वैसे जब मिलते थे तो भंवरे की तरह हमारे इर्दगिर्द ही मंडराते रहते थे,’’ रितु की इस बात पर चारों सहेलियां खूब हंसीं.

‘‘आज मौका है, तो नीरज के बाकी दोस्तों से गपशप क्यों नहीं कर रही हो? ये अच्छे और काबिल लड़के फंसाने लायक हैं, सहेलियो,’’ शिखा ने उन्हें मजाकिया अंदाज में छेड़ा. ‘‘आज इन सब के पास महक के अलावा किसी और की तरफ देखने की फुरसत नहीं है,’’ अपनी बात कह कर नीमा ने ऐसा मुंह बनाया कि हंसतेहंसते उन सब के पेट में बल पड़ गए.

‘‘यह है वैसे हैरान करने वाली बात,’’ गुंजन ने सीरियस दिखने का नाटक किया, ‘‘महक से इन्हें कुछ नहीं मिलने वाला है, क्योंकि वह आज के बाद इन्हें भूल जाएगी और…’’ ‘‘किसी अगली पार्टी में होने वाली मुलाकात तक यह इन से कोई वास्ता नहीं रखेगी,’’ नीमा बोली.

‘‘हां, किसी अगली पार्टी में होने वाली मुलाकात में महक इन से फिर जम कर फ्लर्ट करेगी और पार्टी खत्म होते ही फिर इन्हें भुला देगी. लेकिन इन में से कोई भी इस के ऐसे व्यवहार से सबक नहीं सीखेगा. अगली मुलाकात होने पर ये फिर महक के इर्दगिर्द दुम हिलाते घूमने लगेंगे. है न यह हैरानी वाली बात?’’

‘‘और इधर हम इंतजार में खड़ी हैं,’’ नीमा ने नाटकीय अंदाज में गहरी सांस छोड़ी, ‘‘इन्हें अपना घर बसाना हो, तो हमारे पास आना चाहिए. इन के बच्चों की मम्मी बनने को हम तैयार हैं, पर इन बेवकूफों की दिलचस्पी हमेशा फ्लर्ट करने वाली महक जैसी औरतों में ही क्यों रहती है?’’

नीमा के अभिनय ने उस की सहेलियों को एक बार फिर जोर से हंसने पर मजबूर कर दिया. ‘‘शिखा, नीमा के इस सवाल का जवाब तू दे न. जीजू भी महक की तरह फ्लर्ट करने में ऐक्सपर्ट हैं. क्या तुझे उन की इस आदत पर कभी गुस्सा नहीं आता?’’ गुंजन ने मुसकराते हुए नीरज की शिकायत की.

‘‘मुझे तुम सब पर विश्वास है, इसीलिए मैं उन के तुम लोगों के साथ फ्लर्ट करने को अनदेखा करती हूं,’’ शिखा ने लापरवाही से कंधे उचकाते हुए जवाब दिया. ‘‘चल, हमारी बात तो अलग हो गई, लेकिन कल को जीजू किसी और फुलझड़ी के चक्कर में फंस गए, तब क्या करोगी?’’

‘‘मैं और नीरज उस फुलझड़ी का हुलिया बिगाड़ देंगे,’’ शिखा ने अपनी उंगलियां मोड़ कर पंजा बनाया और रितु का मुंह नोचने का अभिनय किया, तो उस बेचारी के मुंह से चीख ही निकल पड़़ी. ‘‘अब मैं चली खाना लगाने की तैयारी करने. तुम सब अपने जीजू और उन के दोस्तों को महक के रूपजाल से आजाद कराने की कोशिश करो,’’ शिखा हंसती हुई रसोईर्घर की तरफ बढ़ गई.

पार्र्टी का सारा खाना बाजार से आया था. सिर्फ बादामकिशमिश वाली खीर शिखा ने घर में बनाई थी. नीरज और उस के दोस्त महक का बहुत ज्यादा ध्यान रखे हुए थे. उस की प्लेट में कोईर् चीज खत्म होने से पहले ही इन के द्वारा पहुंचा दी जाती थी.

‘‘मुझे खीर नहीं आइसक्रीम खानी है,’’ खाना खत्म होने के बाद जब महक ने किसी बच्चे की तरह से मचलते हुए यह फरमाइश की, तो नीरज फौरन आइसक्रीम लाने को तैयार हो गया. ‘‘मुझे शाहजी की स्पैशल चौकोचिप्स खाने हैं,’’ महक ने उसे अपनी पसंद भी बता दी.‘‘यह शाहजी की दुकान कहां है?’’ नीरज बाहर जातेजाते ठिठक कर रुक गया.

‘‘मेरे फ्लैट के पास. किसी से भी पूछोगे, तो वह तुम्हें बता देगा.’’‘‘साली साहिबा, बहुत दूर जाना पड़ेगा पर तुम्हारी खातिर जरूर जाऊंगा. वैसे तुम गाइड बन कर मेरे साथ क्यों नहीं चलती हो?’’ ‘‘कैसे जाओगे?’’‘‘मोटरसाइकिल से.’’‘‘फास्ट ड्राइव करोगे?’’‘‘हवा से बातें करते चलूंगा.’’‘‘तो मैं चली जीजू के साथ बाइक राइड का आनंद लेने, दोस्तो,’’ महक खुशी से उछल कर खड़ी हुई और उन सब की तरफ हाथ हिलाने के बाद नीरज के साथ बाहर निकल गई.रास्ते में नीरज ने ऊंची आवाज में महक से कहा, ‘‘मेरा मन कौफी पीने को कर रहा है.’’

‘‘यहां कहीं अच्छी कौफी नहीं मिलती है,’’ महक उस के कान के पास मुंह ला कर चिल्लाई.‘‘तुम्हारे घर चलें?’’‘‘कौफी के चक्कर में ज्यादा देर हो जाएगी.’’‘‘तो हो जाने दो. कह देंगे कि पैट्रोल भरवाने चले गए थे और देर हो गई.’’महक ने कोई जवाब नहीं दिया, तो नीरज ने उस पर दबाव बनाया, ‘‘महक, मैं भी तो तुम्हारी आइसक्रीम खाने की फरमाइश को पूरा करने के लिए फौरन उठा खड़ा हुआ था. अब तुम भी 1 कप बढि़या कौफी पिला ही दो.’’

‘‘ठीक है,’’ महक का यह जवाब सुन कर नीरज के दिल की धड़कनें बढ़ती चली गईं.अपने फ्लैट में घुसते ही महक ने पहले किचन में जा कर कौफी के लिए पानी गरम होने को रखा और फिर बाथरूम में चली गई. उस के वहां से बाहर आने तक नीरज ने अपने मन की इच्छा पूरी करने की हिम्मत जुटा ली थी.

महक वापस रसोई घर में जाने लगी, तो नीरज उस का रास्ता रोक कर रोमांटिक लहजे में बोला, ‘‘तुम जैसी सुंदर और स्मार्ट लड़की के पीछे तो उस के चाहने वालों की लंबी लाइन होनी चाहिए. फिर मैं शिखा की इस बात को सच कैसे मान लूं कि तुम्हारा कोई प्रेमी नहीं है?’’‘‘जीजू, मेरे प्रेमी आतेजाते रहते हैं. मुझे शादी कभी नहीं करनी है, इसलिए स्थायी प्रेमी रखने का झंझट मैं नहीं पालती,’’ महक ने बेझिझक उस के सवाल का जवाब दे दिया.

‘‘क्या कभी इस बात से चिंतित नहीं होती हो कि जीवनसाथी के बिना भविष्य में खुद को कभी बहुत अकेली पाओगी?’’‘‘क्या अकेलेपन का एहसास जीवनसाथी पा लेने से खत्म हो जाता है, जीजू?’’‘‘शायद नहीं, पर जीवन में प्रेम के महत्त्व को तो तुम नकार नहीं सकती हो.’’

‘‘मेरा काम अस्थायी प्रेमियों से अच्छी तरह चल रहा है,’’ हंसती हुई महक रसोई में जाने लगी.नीरज ने अचानक उस का हाथ पकड़ कर पूछा, ‘‘और पहली मुलाकात में प्रेम हो जाने के बारे में क्या कहती हो?’’‘‘यह खतरनाक बीमारी किसे लग गई है?’’ महक अजीब से अंदाज में मुसकराने लगी.

‘‘मुझे.’’‘‘तब इस सवाल का जवाब तुम्हें शिखा देगी, जीजू.’’‘‘उसे बीच में क्यों ला रही हो?’’‘‘क्योंकि वह मेरी बैस्ट फ्रैंड है, सर,’’ महक ने उस की आंखों में देखते हुए कुछ भावुक हो कर जवाब दिया.‘‘मैं भी तुम्हारा बैस्ट फ्रैंड बनना चाहता हूं,’’ नीरज ने अचानक उसे खींच कर अपनी बांहों के घेरे में कैद कर लिया.‘‘क्या मुझे पाने के लिए तुम शिखा को धोखा देने को तैयार हो?’’‘‘उसे हम कुछ पता ही नहीं लगने देंगे, स्वीटहार्ट.’’

‘‘पत्नियों को देरसवेर सब मालूम पड़ जाता है, जीजू.’’‘‘हम ऐसा नहीं होने देंगे.’’‘‘देखो, शिखा को पता लग ही गया न कि तुम उस की सहेली रितु के साथ 2 बार डिनर पर जा चुके हो और 1 फिल्म भी तुम दोनों ने साथसाथ देखी है. इस जानकारी को तो तुम शिखा तक पहुंचने से नहीं रोक पाए.’’

उस की बात सुन कर नीरज फौरन परेशान नजर आने लगा और उस ने महक को अपनी बांहों की कैद से आजाद कर दिया. उसे बिलकुल अंदाजा नहीं था कि शिखा को उस के और रितु के बीच चल रहे अफेयर की जानकारी थी.‘‘न… न… सच को झुठलाने की कोशिश मत करो, जीजू. जब तक मैं कौफी बना कर लाती हूं, तब तक ड्राइंगरूम में बैठ कर तुम इस नईजानकारी की रोशनी में पूरी स्थिति पर सोचविचार करो. अगर बाद में भी तुम्हारे मन में मेरा प्रेमी बनने की चाहत रही, तो हम इस बारे में चर्चा जरूर करेंगे,’’ महक ने मुसकराते हुए उसे ड्राइंगरूम की ओर धकेल दिया.

कुछ देर बाद महक ने थर्मस और ट्रे में रखे कपों के साथ ड्राइंगरूम में प्रवेश किया, तो सोचविचार में डूबा नीरज चौंक कर सीधा बैठ गया.‘‘इतने सारे कप क्यों लाई हो?’’ उस के चेहरे का रंग उड़ गया.‘‘कौफी सब पिएंगे न, जीजू,’’ महक शरारती अंदाज में मुसकरा पड़ी.‘‘सब कौन?’’

‘‘तुम्हारे दोस्त, शिखा और हम सहेलियां.’’‘‘वे यहां आ रहे हैं?’’‘‘मुझे नीमा ने फोन किया और जब मैं ने उसे बताया कि हम कौफी पीने जा रहे हैं, तो उन सब ने भी यहां आने का कार्यक्रम बना लिया. वे बस पहुंचने ही वाले होंगे.’’‘‘तुम ने मुझे फौरन क्यों नहीं बताई यह बात?’’ नीरज को गुस्सा आ गया.

‘‘उन सब का सामना करने से डर लग रहा है, जीजू? देखो, मैं तो बिलकुल सहज हूं,’’ महक की सहज मुसकान मानो नीरज का मजाक उड़ा रही थी.

‘‘तुम कुछ पागल हो क्या? तुम ने यह क्यों बताया कि हम यहां हैं? हम फौरन यहां से निकल कर आइसक्रीम लेते हुए घर लौट जाते. तुम ने बेकार के झंझट में फंसा दिया,’’ नीरज बहुत परेशान और चिंतित नजर आ रहा था.

‘‘मैं तुम्हारे डर को समझ सकती हूं, लेकिन मैं शिखा को समझा दूंगी कि…’’‘‘तुम्हारे समझाने से वह कुछ नहीं समझेगी, औरतों से हंसनेबोलने की मेरी आदत के कारण वह तो वैसे ही मुझ पर शक करती है. तुम्हें बुद्धि का इस्तेमाल करना चाहिए था, महक.’’

‘‘इतना ज्यादा परेशान क्यों हो रहे हो, जीजू? हम जैसे फ्लर्ट करने के शौकीनों को ऐसी परिस्थितियों से नहीं डरना चाहिए. जाल फेंकते रहने से कभी न कभी तो शिकार फंसेगा ही. वह शिकार रितु हो, मैं होऊं या कोईर् और इस से क्या फर्क पड़ता है? शिखा तुम्हें छोड़ कर तो जाने से रही. जस्ट रिलैक्स, जीजू.’’

‘‘शटअप, मैं यहां से जा रहा हूं और मुझ से तुम भविष्य में कोई वास्ता मत रखना.’’नीरज उठा और हैलमेट उठा कर दरवाजे की तरफ चल पड़ा.‘‘जीजू, प्लीज रुको. मेरे हाथ की बनाई कौफी तो पीते जाओ.’’‘‘भाड़ में जाए कौफी.’’‘‘जीजू, मैं दोनों कप नहीं पी सकूंगी.’’

‘‘दोनों कप?’’ नीरज ठिठक कर पलटा तो उस ने महक को थर्मस उलटा कर के हिलाते देखा. सिर्फ 2 कपों में कौफी नजर आ रही थी. बाकी सब खाली रखे हुए थे.

‘‘तुम ने सिर्फ 2 कप कौफी बनाई है?’’ वह अचंभित नजर आ रहा था.‘‘हां जीजू, इस लाडली साली ने अपने जीजू से जो छोटा सा मजाक किया है, उस का बुरा मत मानना,’’ महक शरारती अंदाज में मुसकरा रही थी.‘‘यह छोटा मजाक था? मैं तुम्हारा गला घोंट दूंगा,’’ नीरज ने नाटकीय अंदाज में दांत पीसे.‘‘वैसा करने से पहले एक वादा तो कर लो, जीजू.’’‘‘कैसा वादा?’’

‘‘यही कि शिखा का सामना करने की बात सोच कर कुछ देर पहले तुम्हें जिस डर, चिंता और शर्मिंदगी के एहसास ने जकड़ा था, उसे तुम आजीवन याद रखोगे.’’‘‘बिलकुल याद रखूंगा, साली साहिबा. तुम ने तो आज मेरी जान ही निकाल दी थी,’’ निढाल सा नीरज सोफे पर बैठ गया.

‘‘मेरी जिंदगी में तो कोई जीवनसाथी आएगा ही नहीं, पर जीवनसाथी के होते हुए भी उस के दिल से दूर होने की पीड़ा तुम कभी नहीं भोगना चाहते हो, तो आज की रात का सबक न भूलना.’’‘‘शिखा की तरफ से एक संदेश मैं तुम्हें दे रही हूं. उसे पहले से अंदाजा था कि तुम मुझे अपने चक्कर में फंसाने की कोशिश जरूर करोगे. उस ने कहलवाया है कि वह तुम्हारी फ्लर्ट करने की आदत को तो बरदाश्त कर सकती है, लेकिन अगर तुम ने किसी दूसरी औरत से सचमुच संबंध बनाने की मूर्खता भविष्य में कभी की, तो तुम उसे हमेशा के लिए खो दोगे.’’

कुछ देर खामोश रहने के बाद नीरज ने संजीदा स्वर में पूछा, ‘‘क्या हमारे यहां आने की बात तुम शिखा को बताओगी?’’‘‘तुम ही बताओ कि उसे बताऊं या नहीं?’’‘‘बता ही देना, नहीं तो मेरा संदेश उस तक कैसे पहुंचेगा.’’‘‘तुम भी मुझे अपना संदेशवाहक बना रहे हो? वाह,’’ महक हंस पड़ी.

‘‘शिखा से कह देना कि मैं उस के विश्वास को कभी नहीं तोड़ूंगा.’’‘‘वैरी गुड, जीजू,’’ महक खुश हो गई, ‘‘तुम्हारे इस फैसले का स्वागत हम कौफी पी कर करते हैं,’’ महक ने नीरज के हाथ में कौफी का कप पकड़ा दिया.‘‘चीयर्स फौर युअर हैप्पी होम,’’ महक की इस शुभकामना ने नीरज के चेहरे को फूल सा खिला दिया था. Short Story In Hindi

Love Story In Hindi: अपने प्यार की तमन्ना

Love Story In Hindi: कालेज जाने के लिए निकल ही रही थी कि अमन ने उसे चिढ़ाते हुए कहा, ‘‘क्यों बहना, इतना सजधज कर कोई कालेज थोड़ा ही जाता है…’’ सीमा इठलाते हुए मुंह बना कर, टेढ़ी सी चाल चलते हुए बाहर निकल गई और अपनी साइकिल ले कर कालेज की ओर चल पड़ी. सीमा रास्तेभर वही जवानी वाली रवायतें, हर तरफ उड़ानों की ख्वाहिशें ले कर आगे बढ़ती गई…

कब कालेज आया, उसे पता ही नहीं चला. जैसे ही उस ने कालेज के बाहर लड़केलड़कियों की बातें करने और ठहाके लगाने की आवाजें सुनीं, तब वह अपने खयालों से बाहर आई और साइकिल स्टैंड पर अपनी साइकिल रख कर वह भी अपनी सहेलियों के साथ क्लास में दाखिल हो गई. घर में छोटे भाई अमन से मस्ती वाली लड़ाइयां और कालेज में दोस्तों की मस्ती… सीमा की जिंदगी कुछ ऐसे ही बीत रही थी. अमन के साथ की चुहलबाजी में कभी सीमा गुस्से में मां से शिकायत कर देती थी, तो मां का एक ही जवाब होता था कि जब वह ससुराल जाएगी, तो इन्हीं बातों को याद कर के रोएगी.

शायद सीमा भी यह बात जानती थी. एक ही तो भाई था उस का, लाड़ला भी तो बहुत था. फिर सीमा की जिंदगी में एक मोड़ ऐसा आया, जब उस के कालेज में रोहन आया, जो स्मार्ट और होशियार भी था. वह किसी पैसे वाले का बेटा नहीं था, लेकिन शान से जीता था, ऊपर से पढ़ाई में अव्वल भी था. वह सीमा से एक साल सीनियर था. सीमा जब भी रोहन को देखती, उस के दिल की धड़कनें बढ़ जाती थीं. उसे बारबार देखने को जी चाहता था. ये सब प्यार हो जाने की निशानियां थीं और अब वह भी समझने लगी थी कि उस की चाहत दिन ब दिन बढ़ती जा रही है. और एक दिन वह हो गया, जिस की सीमा को भी चाह थी. उसे कालेज के दफ्तर में कोई फार्म भरने के लिए बुलाया गया था.

वह दफ्तर की तरफ जा ही रही थी कि सामने से रोहन मस्ती में चलता हुआ आ रहा था. सीमा का कलेजा उछल कर गले तक आ गया. कैसे उस का सामना कर पाएगी वह… कालेज के अहाते में वे आमनेसामने आए, तो दोनों ही रुक गए. रोहन ने पहली बार उसे उसी नजर से देखा, जिस नजर से वह उसे देखती थी. वह एकदम सामने आ खड़ा हुआ, इतना पास कि सीमा उस की महकीमहकी सांसों को महसूस कर रही थी. उसे मदहोशी छाने लगी और वह कुछ बोलती, उस से पहले ही रोहन ने पूछ लिया, ‘‘कहां जा रही हो?’’ सीमा की घिग्घी बंध गई. आवाज मानो गले से निकल ही नहीं रही थी. वह इधरउधर देखने लगी, फिर एकदम से बोल पड़ी, ‘‘आप कहां से हैं?’’ एक प्यारी सी मुसकान के साथ रोहन ने बताया कि वह जयपुर से आया है.

उस के पापा एक बड़ी प्राइवेट कंपनी में काम करते हैं. यह सुन कर सीमा छोटी सी मुसकान के साथ आगे बढ़ गई. यह थी उन दोनों की पहली और छोटी सी मुलाकात, जो आगे जा कर प्यार का विराट वट वृक्ष बनने वाली थी. एक दिन जब सीमा अपनी साइकिल पर जा रही थी, तो रास्ते में रोहन मिल गया और उस से कौफी पीने के लिए बोला. सीमा भी बरबस ही हां कर के उस के पीछे चल पड़ी. वैसे, वह खुद भी शायद यही चाहती थी. वे दोनों होटल में गए और एक कोने वाली टेबल पर बैठ गए. अब सीमा शर्म छोड़ कर जी भर के रोहन को देख रही थी. रोहन भी बिना पलक झपकाए उस की आंखों में खो जाना चाहता था. जब वेटर ने उन से और्डर के बारे में पूछा,

तो हड़बड़ा कर उन दोनों ने एकसाथ मैनू कार्ड पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाए और मैनू कार्ड के बदले एकदूसरे का हाथ पकड़ लिया. इस से दोनों के जिस्म में सिहरन सी दौड़ गई. वेटर भी मुसकरा कर चला गया. थोड़ी देर बाद उन दोनों ने सैंडविच के साथ चाय मंगवाने का तय कर के वेटर को बुलाया और और्डर कर दिया. थोड़ी देर बाद चाय और सैंडविच खत्म कर उन दोनों ने फिर से मिलने का वादा किया और अपनेअपने घर की तरफ चल दिए. अब तो सीमा और रोहन की लंबीलंबी मुलाकातें शुरू हो गईं. ऐसे ही 2 साल बीत गए और दोनों को लगा कि अब घर वालों को बता कर रिश्ता तय करने की बात करनी चाहिए. एक दिन सीमा और रोहन होटल में बैठे अपनी भावी जिंदगी के बारे में सपने संजो रहे थे कि अमन अपने कुछ दोस्तों के साथ वहां आया और उन दोनों को साथ देख कर वह कुछ परेशान सा हो गया, पर दोस्तों की वजह से उन्हें अनदेखा कर वह चुप रह गया. सीमा जल्दी से होटल के बाहर निकल गई, पर उस के घर की तरफ कदम नहीं उठ रहे थे.

उस ने रोहन को नहीं बताया था कि अमन उस का भाई है. वह घर तो पहुंच गई, पर किसी से कुछ कहे बगैर ही अपने कमरे में जा कर लेट गई और बाहर की आहटें लेती रही. अमन की मोटरसाइकिल की आवाज से ही सीमा डर के मारे कांप सी गई और फिर अमन और मां की फुसफुसाहट की आवाजें आने लगीं. बस इतना समझ आया कि वे लोग पापा के घर आने का इंतजार करने की बात कर रहे थे. वह सोच रही थी कि पापा को पता चलते ही वे उसे बहुत डांटेंगे और शायद पिटाई भी कर दें. इन सब के लिए वह अपनेआप को मानसिक रूप से तैयार कर रही थी. यह सब सोचतेसोचते कब सीमा की आंख लग गई, उसे पता ही नहीं चला. जब आंखें खुलीं, तो उस के पापा पानी का गिलास ले कर सामने खड़े हुए थे. सीमा एकदम से उठ बैठी. पापा ने उसे पानी दे कर हालचाल पूछा,

लेकिन रोहन के बारे में कुछ नहीं पूछा और उस की मां से चाय बनाने की बोल कर वे सीमा का हाथ पकड़ उसे भी डाइनिंग टेबल पर ले गए. सीमा हैरान थी कि क्यों रोहन की कोई बात नहीं हुई. दूसरे दिन जब वह कालेज जाने को तैयार हुई तो उस की मां ने उसे रोका और बोलीं कि वे लोग उसी शाम को घूमने के लिए किसी हिल स्टेशन पर जा रहे हैं, तो उसे भी अपना बैग तैयार कर लेना चाहिए. सीमा हैरान थी, लेकिन वापस अपने कमरे में जा कर कुछ सोचतेसोचते अपने कुछ जोड़ी कपड़े अलमारी से निकाल कर एक अटैची में तह लगा कर रखने लगी, फिर सोचा कि रोहन को तो बताना पड़ेगा कि वह कुछ दिनों के लिए मिल नहीं पाएंगे, लेकिन बताए भी तो कैसे?

शाम को सीमा के पापा थोड़ा जल्दी ही आ गए थे. जैसे ही वे गुसलखाने से बाहर आए, मां सब के लिए चाय लाईं. चाय पी कर वे सब गाड़ी में बैठ निकल पड़े. सीमा का मन कर रहा था कि वह उड़ कर रोहन के पास चली जाए, लेकिन गाड़ी तो उसे रोहन से दूर लिए जा रही थी. कुछ ही घंटों के बाद वे लोग हिल स्टेशन पहुंच गए थे और होटल ढूंढ़ कर सामान ले कर अपने कमरों में गए. सीमा के पापा और मां एक कमरे में थे और वह अपने भाई अमन के साथ अलग कमरे में रहने वाली थी. अमन भी खुश था. उसे पापा के प्लान का पता चल चुका था. शाम की चाय पीने के बाद सब पार्क में घूम कर वापस आए, तो अमन ने ताश की गड्डी निकाली और सब खेलने लगे,

पर सीमा का मन खेलने में नहीं लग रहा था. वह बस रोहन के खयाल में ही उलझी रही थी. वह कब हार गई, पता ही नहीं चला. अगले दिन सीमा की मां ने उस से कहा कि शाम को वे लोग किसी के साथ डिनर पर जाने वाले हैं और उसे ठीक से तैयार होने के लिए भी बोला. शाम को जब सीमा उन लोगों से मिली, तो सारी बातें समझ में आ गईं. वे लड़के वाले लोग थे, जो सीमा को देखने आए थे. सीमा ने सोचा कि जब वह लड़के से अकेले में मिलेगी तो सब बता देगी, पर वह मौका भी नहीं मिला. दूसरे ही दिन उन का रोका और फिर सगाई और शादी भी हो गई. पापा ने डैस्टिनेशन वैडिंग का बहाना कर शादी निबटा दी थी. सीमा के पति का नाम तरुण था. जब वह ससुराल पहुंची, तो एकदम सामान्य सा, छोटा सा घर था और वैसा ही फर्नीचर था. पहले तो उस ने सोचा कि सुहागरात से पहले रोहन के बारे में तरुण को सबकुछ बता देगी, पर बाद में सोचा कि ये सब बातें बताने के लिए बहुत देर हो चुकी है. और आहिस्ता से कब सीमा की जिंदगी उन नई राहों पर चल पड़ी, पता ही नहीं चला.

बेटी कृति का जन्म उस के हजारों जख्मों पर मरहम लगा गया. उस की एकएक मुसकान पर वारी जाने लगी सीमा और जिंदगी कुछ संवर सी रही थी. एक दिन टैलीविजन पर किसी विचारक के इंटरव्यू को सुन कर सीमा चौंक गई. वह रोहन था. सीमा को आज शादी के इतने साल बाद भी रोहन की आवाज और बातें सुनसुन कर जो दुख हुआ, वह उस के चेहरे पर दिखने लगा था. वह रोने लगी थी, पर जल्दी ही उसे याद आया कि सास भी साथ बैठी हैं, तो वह बाथरूम में गई और मुंह धोया. इस के बाद वह जा कर बिस्तर पर लेट गई और कब सो गई, पता ही नहीं चला. अगली सुबह सीमा का थकान और दर्द से बदन टूट रहा था. वह बड़ी मुश्किल से उठ कर रसोईघर की तरफ जा रही थी,

तो चक्कर खा कर गिर पड़ी और बेहोश हो गई. जब उसे होश आया, तो वह बिस्तर पर पड़ी थी और सामने डाक्टर साहब, सास और तरुण बैठे थे. सास ने सारी बातें डाक्टर साहब को बता दी थीं. वे दवाएं दे कर चले गए और बाकी घर वाले भी अपनेअपने काम में लग गए, पर सीमा मानो बिस्तर से लग कर रह गई. उस के मन में एक टीस थी बेवफाई की. धीरेधीरे उस की सेहत और ज्यादा खराब होने लगी. दिनों के बाद हफ्ते और फिर महीने बीतने लगे, लेकिन सीमा की सेहत में कोई फर्क नहीं आया. सीमा को पहले भी कई बार रोहन की याद आती भी थी, पर वह यह सोच कर अपने मन को मना लेती थी कि वह भी शादी कर के घरगृहस्थी जमा चुका होगा, लेकिन जब से उसे यह पता चला कि वह आज भी अकेला है, तो वह भी टूट सी गई. इधर घर में सब डर रहे थे कि सीमा को कोई बड़ी बीमारी ने तो नहीं पकड़ लिया है, पर डाक्टर को भी उस की इस हालत को देख हैरानी हो रही थी,

क्योंकि उसे कोई बीमारी तो थी ही नहीं. तरुण अमन से मिला और सीमा के अतीत के बारे में जानना चाहा. पहले तो अमन ने टालमटोल की, पर जब तरुण ने जोर दे कर पूछा तो उस ने रोहन का सारा किस्सा बता दिया. तरुण को रोहन का पता ढूंढ़ने में ज्यादा तकलीफ नहीं हुई, क्योंकि वह काफी मशहूर हो चुका था. जब वह रोहन के घर पहुंचा, तो गेटकीपर और रोहन के सैक्रेटरी ने मिलवाने से मना कर दिया. तब तरुण ने कहा कि वे रोहन को बताएं कि सीमा के पति उस से मिलने आए हैं, बहुत जरूरी काम है. थोड़ी देर बाद गेटकीपर तरुण को रोहन के पास ले गया. रोहन ने तरुण का स्वागत किया और आने की वजह पूछी. जब तरुण ने पूरे हालात को बयां किया, तो रोहन के चेहरे पर चिंता की रेखाएं उभर आईं, फिर उस ने सीमा से मिलने की इच्छा जाहिर की, तो तरुण ने खुशीखुशी उसे अपने घर आने का न्योता दिया और अपने आंसू छिपाता हुआ बाहर निकल गया.

अगले दिन सुबहसुबह रोहन का फोन आया और सुबह के 10 बजने से पहले ही वह तरुण के घर जा पहुंचा. सीमा आंखें बंद किए बिस्तर पर पड़ी थी, लेकिन आहट होने पर जब उस ने अपनी आंखें खोलीं तो तरुण के साथ रोहन को खड़ा देख कर पहले तो वह सकपकाई और फिर उठ कर बैठने की कोशिश करने लगी. तरुण ने उसे लेटे रहने को कहा. पास में रखी कुरसी पर रोहन बैठ गया और सीमा की तरफ देख कर सोचने लगा कि कैसी हालत बना ली है अपनी सीमा ने. तरुण चाय लाने के बहाने वहां से बाहर चला गया. रोहन और सीमा अकेले रह गए कमरे में.

रोहन से बोलते नहीं बन रहा था. गले में से शब्द नहीं निकल रहे थे. सीमा अपने आंसुओं को रोक नहीं पाई और इतने सालों का दर्द रोहन की आंखों से भी बारिश की तरह बहने लगा, लेकिन जब तरुण चाय ले कर आया, तो उन दोनों ने अपने आंसू पोंछ लिए. रोहन ने तरुण से अगले दिन फिर आने की पूछी तो उस ने दिल खोल कर इस बात का स्वागत किया. रोहन उठा और बिना चाय पिए ही वहां से चला गया. अगले दिन सुबहसुबह ही रोहन आ गया था. तरुण की नमस्ते का जवाब दे कर वह उस के साथ सीमा के कमरे की तरफ चल पड़ा. सीमा की दुबली देह पलंग में पड़ी थी,

पर उस के चेहरे पर पहले जैसे दर्द की जगह अब शांति थी. तरुण ने सीमा के हाथ को छू कर उठाया, तो धीरे से आंखें खोल कर उस ने पहले तरुण को और फिर उस के पीछे खड़े रोहन को देखा. उस के चेहरे पर एक हलकी सी मुसकान आई, फिर धीरे से आंखें बंद हुईं और चेहरा दाईं तरफ लुढ़क गया. तरुण और रोहन दोनों अवाक से सीमा की देह से चेतना को खत्म होती देखते रहे, जो सभी दुखों से, रिश्तों से कहीं दूर चली गई थी. अपनी बेवफाई के लिए अपनी जान का बलिदान कर अनंत यात्रा पर निकल गई थी सीमा. Love Story In Hindi

Story In Hindi: कर्फ्यू – उसे बिस्तर पर लेटते ही किसकी याद आने लगी थी

Story In Hindi: बिस्तर पर लेटते ही फिर मुझे महेश की याद सताने लगी और बारबार मेरे सामने उस का चेहरा घूमने लगा. कितना समझाया था सुबह मैं ने, लेकिन मेरी एक न मानी और दोस्तों के साथ ऐसी खतरनाक सोच ले कर वह घर से बाहर निकल गया. पता नहीं, आज वह कहांकहां, क्याक्या गुल खिलाएगा और मेरी बनीबनाई इज्जत में दाग लगाएगा.

अभी मैं इन्हीं बातों में उलझा हुआ था कि मेरे खयाल गुजरे हुए कल की तरफ भागने लगे. हमारी 10 साल की शादीशुदा जिंदगी में सैकड़ों बार रानो ने मुझे दूसरी शादी करने की सलाह दी थी. लेकिन मैं हमेशा उसे तसल्ली दिया करता, ‘‘रानो, हिम्मत रखो, तुम्हारी गोद जरूर हरी होगी.’’ आखिर इतने सालों के बाद महेश की शक्ल में एक खूबसूरत लड़के ने जन्म लिया. उस वक्त हमारी खुशियों का कोई ठिकाना न था और घर वाले तो फूले न समा रहे थे. लेकिन रानो को ये खुशियां रास न आईं और वह 2 साल के महेश को हमारे बीच छोड़ कर इस जहान से कूच कर गई. इस भरीपूरी दुनिया में मैं अपनेआप को अकेला महसूस करने लगा, पर महेश ने मुझे कभी कुछ सोचने नहीं दिया. तभी तो दोस्तों के मशवरे के बावजूद मैं ने दोबारा शादी करने से इनकार कर दिया.

महेश की परवरिश करते हुए हंसतेखेलते मेरा वक्त गुजरने लगा… अभी मैं यह सोच ही रहा था कि रात के सन्नाटे में अचानक दरवाजा खटखटाने की आवाज सुनाई दी. मैं बुरी तरह चौंक गया, क्योंकि कई दिनों से शहर में दंगों के से हालात हो रहे थे. दोबारा जब दरवाजा खटखटाने की आवाज आई, तो मैं उठ कर दरवाजे तक पहुंच गया. ज्यों ही दरवाजा खोला, सामने एक औरत को देख हैरान रह गया. अभी मैं उस से कुछ पूछता कि उस ने बिना झिझक कमरे में दाखिल हो कर दरवाजा बंद कर लिया और मेरे सामने बिलखबिलख कर रोने लगी. ‘‘किसी तरह मेरे पति को बचा लीजिए. मेरी मदद कीजिए,’’ कहते हुए उस ने मेरी ओर देखा. ‘‘क्या हुआ?है आप के शौहर को? और कहां हैं वह, कुछ तो बताइए?’’ ‘‘मेरे पति जख्मी हालत में उधर झाडि़यों के पास पड़े हैं,’’

उस ने इशारे से बताया. ‘‘बैठ जाओ. घबराने की कोई बात नहीं,’’ मैं ने उसे दिलासा दिया. ‘‘चाचाजी, पहले उन्हें ले आइए. मुझे बहुत डर लग रहा है, कहीं कोई आ न जाए,’’ उस की घबराहट अपनी जगह ठीक थी और मैं भी यही सोच रहा था कि कहीं महेश आ न जाए. क्योंकि मैं जानता था कि वह भी दंगा करने वालों के साथ शामिल हो गया है. कुछ देर मैं खड़ा सोचता रहा, फिर उस के साथ दरवाजा खोल कर बाहर निकल गया और उस के शौहर को सहारा दे कर कमरे में ले आया. वह ज्यादा जख्मी नहीं था, लेकिन अपने होशोहवास खोए हुए था. मैं ने उसे बिस्तर पर लिटा दिया. फिर घर में रखी दवा निकाल कर मरहमपट्टी करने लगा. फिर मैं उस औरत से बोला, ‘‘घबराने की कोई बात नहीं है. तुम्हारा शौहर अभी ठीक हो जाएगा.’’ ‘‘सच…? मेरे खाविंद ठीक हो जाएंगे?’’

उस की आवाज के साथ पहली दफा मैं ने उस औरत का भरपूर जायजा लिया, तो पता चला कि वह ज्यादा से ज्यादा 22-23 साल की होगी. वह साड़ी में थी और पेट से थी. मैं कुछ सोचते हुए बोला, ‘‘आप ने बड़ी हिम्मत की, जो यहां आ गईं… आप ने कैसे यकीन कर लिया कि आप को यहां पनाह मिल जाएगी?’’ ‘‘मुझे मालूम है कि आप कौन हैं? कई सालों तक आप पलामू में हमारे पड़ोसी थे. पिछले हफ्ते ही मैं यहां आई हूं… तब से आप से मिलना चाह रही थी. ‘‘कल इन पर दफ्तर से आते हुए हमला हो गया, जिस से ये जख्मी हो गए. वह तो इन के आटोरिकशा के ड्राइवर की मेहरबानी थी कि उस ने किसी तरह इन्हें बचा कर अपने घर में रखा. फिर अंधेरा होते ही उस ने हमारे कहने पर यहां तक पहुंचा दिया. अब मैं आप के सामने हूं. शायद आप ने मुझे पहचाना नहीं चाचा, मैं आप के पड़ोसी रहमान की बेटी आयशा हूं.’’ इतना सुनते ही मैं ने उसे सीने से लगा लिया और भरे गले से बोला, ‘‘इतनी बड़ी हो गई बिटिया… मैं ने तो तुझे पहचाना ही नहीं. बैठोबैठो, आराम से बैठो.’’ तभी मुझे याद आया कि शायद ये लोग भूखे होंगे, इसलिए आयशा से बोला, ‘‘तुम आराम से यहां बैठो. मैं तुम्हारे लिए खाने का बंदोबस्त करता हूं… और हां, अंदर से दरवाजा बंद कर लो और जब तक मैं न कहूं, दरवाजा मत खोलना.’’

इतना सुनते ही वह घबरा कर बोली, ‘‘कोई आने वाला है क्या?’’ ‘‘नहीं, कोई नहीं. हो सकता है महेश लौट आए.’’ ‘‘अरे महेश भाई… तब तो मेरी परेशानी यों ही दूर हो जाएगी.’’ मैं दिल ही दिल में सोचने लगा कि इसे कैसे बताऊं कि मुझे इस वक्त खतरा महसूस हो रहा है तो सिर्फ महेश से ही. मैं इन्हीं खयालों में उलझा हुआ रसोई की तरफ चला गया. अभी मैं आमलेट बना ही रहा था कि दरवाजे पर स्कूटर के रुकने की आवाज सुन कर एकदम घबरा गया. इस से पहले कि महेश दरवाजा खटखटाता, मैं ने किवाड़ खोल दिए. ‘‘क्या बात है बापू, आप बहुत परेशान नजर आ रहे हैं?’’ महेश अंदर दाखिल होते ही मुझ से बोला. ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. तुम सारा दिन घर से गायब रहे, इसीलिए परेशान था.’’ ‘‘शायद यही वजह है कि आप मेरे कमरे की खिड़कियां बंद करना भूल गए? अच्छा, पहले मैं आप के कमरे की खिड़की बंद कर दूं, फिर बातें करेंगे.’’ ‘‘मैं बंद कर देता हूं.

तुम जरा रसोई में आमलेट देख लो.’’ महेश जैसे ही रसोई की तरफ गया, मैं ने धीरे से कहा, ‘‘आयशा बेटी, दरवाजा खोलो.’’ जैसे ही आयशा ने दरवाजा खोला, इस से पहले कि मैं भीतर दाखिल होता, महेश तेजी से पलट कर दरवाजे के दोनों पट खोल कर मेरे सामने खड़ा हो गया. ‘‘तो यह बात है… आप ने जालिमों की संतानों को यहां छिपा रखा है?’’ कह कर महेश मुझे घूरने लगा. अचानक आयशा बोल पड़ी, ‘‘अरे महेश भाई, आप ने मुझे पहचाना नहीं? मैं आप ही की मुंहबोली बहन आयशा हूं.’’ ‘‘मेरी कोई बहनवहन नहीं. तुम विधर्मी की औलाद मेरी बहन कैसे हो सकती हो?’’ फिर वह चीख कर मुझ से बोला, ‘‘आप ने अपने घर में एक मुसलिम को पनाह दे कर अच्छा नहीं किया. मैं इसे जिंदा नहीं छोड़ूंगा,’’

वह छुरा निकाल कर मेरे सामने खड़ा हो गया. यह देख कर आयशा के मुंह से चीख निकल गई और वह भाग कर मेरे पीछे चली आई. मैं महेश के सामने गिड़गिड़ाने लगा, ‘‘इस ने तुम्हारी मां की कोख से जन्म तो नहीं लिया, लेकिन इस का बचपन मेरी ही गोद में गुजरा था…’’ ‘‘कुछ भी हो बापू, यह है तो एक मुसलिम की औलाद ही. इन्होंने हमारे कितने ही मंदिरों को तोड़ा है, हमारी कौम का खून बहाया है. हमारे मंदिरों की दौलतों को दोनों हाथों से लूटा है. मैं इसे कैसे जिंदा छोड़ सकता हूं?’’ मैं जानता था कि यह महेश रोज ऐसे लोगों में उठताबैठता है, जो रातदिन हिंदूमुसलिम करते रहते हैं. पुलिस वाले डर के मारे उन्हें कुछ नहीं कहते. किसी से भी कुछ भी छीन लेते हैं, कभी चंदे के नाम पर, कभी गाय के नाम पर. होटलों में मुफ्त खाना खाते हैं. पैसे मांगने पर धमकी देते हैं, शोर मचा देंगे कि मीट में गौमांस मिला है. ‘‘बेकार की बातें मत करो महेश. देखते नहीं,

इस का शौहर जख्मी है और आयशा की हालत भी देखो बेटे, इसे तो मजहबी नजर से भी रहम और पनाह चाहिए. इन दोनों पर तुम रहम खाओ,’’ मैं ने उसे समझाने की कोशिश की. ‘‘नहीं बापू, इस से पहले कि इस धरती पर एक और विधर्मी जन्म ले, मेरी कौम का एक और कातिल पैदा हो, मैं इस का वजूद मिटा दूंगा. आप सामने से हट जाइए.’’ आयशा मेरे पीछे छिपी थरथर कांप रही थी. मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था. एक तरफ एकलौती औलाद थी और दूसरी तरफ मेरे उसूल थे. मेरे दिलोदिमाग में एक हलचल सी मची हुई थी. मैं ने एक बार फिर महेश को समझाने की कोशिश की, ‘‘अगर इन्हें मारना है तो पहले मुझे मारो, क्योंकि मेरे दादा ने भी आजादी की जंग में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था और इस के दादा ने भी. हिंदुस्तान के बंटवारे पर दोनों ने आंसू बहाए थे और इस के पूरे खानदान के पाकिस्तान चले जाने के बावजूद ये लोग मेरी वजह से पलामू में वतन की मिट्टी से चिपटे रहे. ‘‘महेश, इन्हें अपनी धरती मां से बहुत प्यार है रे, इन्होंने हिंदुस्तान इसीलिए नहीं छोड़ा,

क्योंकि ये मजहब की बुनियाद पर दिलों का बंटवारा नहीं चाहते थे. हिंदू और मुसलमान दोनों ही मुझे अजीज हैं. यही सोच मैं ने तुम्हें भी दी, लेकिन न जाने मेरी परवरिश में कहां कमी रह गई कि तुम्हारे जीने का नजरिया ही न जाने किन लोगों के बीच बैठ कर बदल गया.’’ मेरी इतनी बात सुन कर वह सकते में आ गया. लेकिन थोड़ी देर बाद मुझे महसूस हुआ कि उस की दीवानगी में कोई कमी नहीं आई है. फिर न जाने मुझ में कहां से अचानक ताकत सी पैदा हो गई. मैं ने लपक कर महेश के हाथ से छुरा छीन लिया और चीख कर बोला, ‘‘आयशा को अगर हाथ भी लगाया, तो मुझ से बुरा कोई न होगा.’’ मेरी बात सुन कर महेश ने एक जोरदार ठहाका लगाया, ‘‘तो क्या आप एक मुसलिम को बचाने की खातिर अपने एकलौते बेटे को मारेंगे?’’ और फिर वह हंसने लगा,

‘‘यह तो आप कभी कर ही नहीं पाएंगे. मैं इसे जिंदा नहीं छोड़ूंगा.’’ यह कहते हुए वह आहिस्ताआहिस्ता आयशा की तरफ बढ़ा, ‘‘छुरा आप के पास है तो क्या हुआ, मैं अपने हाथों से इस का गला घोंट दूंगा.’’ जैसे ही महेश आयशा की तरफ बढ़ा, मैं ने छुरा चला दिया. इस से पहले कि वह आयशा को हाथ लगाता, एक दर्दनाक चीख की आवाज गूंज उठी और दूसरे ही पल महेश चकरा कर मेरे कदमों में गिर पड़ा. कुछ पलों तक मैं वहीं खामोश खड़ा खून में लथपथ उस को देखता रहा, फिर बोला, ‘‘आयशा बेटी, ऐसी वहशी औलाद से बेऔलाद रहना बेहतर है.’’ फिर महेश की लाश पर निगाह डाल कर मैं आयशा के साथ दूसरे कमरे में चला गया. Story In Hindi

Hindi Story: दुश्मन – रिश्तों की सच्चाई का विजय ने जब सोमा को दिखाया आईना

Hindi Story: ‘‘कभी किसी की तारीफ करना भी सीखो सोम, सुनने वाले के कानों में कभी शहद भी टपकाया करो. सदा जहर ही टपकाना कोई रस्म तो नहीं है न, जिसे पीढ़ी दर पीढ़ी सदा निभाया ही जाए.’’टेढ़ी आंख से सोम मुझे देखने लगा.

‘‘50 के पास पहुंच गई तुम्हारी उम्र और अभी भी तुम ने जीवन से कुछ नहीं सीखा. हाथ से कंजूस नहीं हो तो जबान से ही कंजूसी किस लिए?’’ बड़बड़ाता हुआ क्याक्या कह गया मैं.

वह चुप रहा तो मैं फिर बोला, ‘‘अपने चारों तरफ मात्र असंतोष फैलाते हो और चाहते हो तुम्हें संतोष और चैन मिले, कभी किसी से मीठा नहीं बोलते हो और चाहते हो हर कोई तुम से मीठा बोले. सब का अपमान करते हो और चाहते हो तुम्हें सम्मान मिले…तुम तो कांटों से भरा कैक्टस हो सोम, कोई तुम से छू भर भी कैसे जाए, लहूलुहान कर देते हो तुम सब को.’’

शायद सोम को मुझ से ऐसी उम्मीद न थी. सोम मेरा छोटा भाई है और मैं उसे प्यार करता हूं. मैं चाहता हूं कि मेरा छोटा भाई सुखी रहे, खुश रहे लेकिन यह भी सत्य है कि मेरे भाई के चरित्र में ऐसा कोई कारण नहीं जिस वजह से वह खुश रहे. क्या कहूं मैं? कैसे समझाऊं, इस का क्या कारण है, वह पागल नहीं है. एक ही मां के शरीर से उपजे हैं हम मगर यह भी सच है कि अगर मुझे भाई चुनने की छूट दे दी जाती तो मैं सोम को कभी अपना भाई न चुनता. मित्र चुनने को तो मनुष्य आजाद है लेकिन भाई, बहन और रिश्तेदार चुनने में ऐसी आजादी कहां है.

मैं ने जब से होश संभाला है सोम मेरी जिम्मेदारी है. मेरी गोद से ले कर मेरे बुढ़ापे का सहारा बनने तक. मैं 60 साल का हूं, 10 साल का था मैं जब वह मेरी गोद में आया था और आज मेरे बुढ़ापे का सहारा बन कर वह मेरे साथ है मगर मेरी समझ से परे है.

मैं जानता हूं कि वह मेरे बड़बड़ाने का कारण कभी नहीं पूछेगा. किसी दूसरे को उस की वजह से दर्द या तकलीफ भी होती होगी यह उस ने कभी नहीं सोचा.

उठ कर सोम ऊपर अपने घर में चला गया. ऊपर का 3 कमरों का घर उस का बसेरा है और नीचे का 4 कमरों का हिस्सा मेरा घर है.

जिन सवालों का उत्तर न मिले उन्हें समय पर ही छोड़ देना चाहिए, यही मान कर मैं अकसर सोम के बारे में सोचना बंद कर देना चाहता हूं, मगर मुझ से होता भी तो नहीं यह कुछ न कुछ नया घट ही जाता है जो मुझे चुभ जाता है.

कितने यत्न से काकी ने गाजर का हलवा बना कर भेजा था. काकी हमारी पड़ोसिन हैं और उम्र में मुझ से जरा सी बड़ी होंगी. उस के पति को हम भाई काका कहते थे जिस वजह से वह हमारी काकी हुईं. हम दोनों भाई अपना खाना कभी खुद बनाते हैं, कभी बाजार से लाते हैं और कभीकभी टिफिन भी लगवा लेते हैं. बिना औरत का घर है न हमारा, न तो सोम की पत्नी है और न ही मेरी. कभी कुछ अच्छा बने तो काकी दे जाती हैं. यह तो उन का ममत्व और स्नेह है.

‘‘यह क्या बकवास बना कर भेज दिया है काकी ने, लगता है फेंकना पड़ेगा,’’ यह कह कर सोम ने हलवा मेरी ओर सरका दिया.

सोम का प्लेट परे हटा देना ही मुझे असहनीय लगा था. बोल पड़ा था मैं. सवाल काकी का नहीं, सवाल उन सब का भी है जो आज सोम के साथ नहीं हैं, जो सोम से दूर ही रहने में अपनी भलाई समझते हैं.

स्वादिष्ठ बना था गाजर का हलवा, लेकिन सोम को पसंद नहीं आया सो नहीं आया. सोम की पत्नी भी बहुत गुणी, समझदार और पढ़ीलिखी थी. दोषरहित चरित्र और संस्कारशील समझबूझ. हमारे परिवार ने सोम की पत्नी गीता को सिर- आंखों पर लिया था, लेकिन सोम के गले में वह लड़की सदा फांस जैसी ही रही.

‘मुझे यह लड़की पसंद नहीं आई मां. पता नहीं क्या बांध दिया आप ने मेरे गले में.’

‘क्यों, क्या हो गया?’

अवाक् रह गए थे मां और पिताजी, क्योंकि गीता उन्हीं की पसंद की थी. 2 साल की शादीशुदा जिंदगी और साल भर का बच्चा ले कर गीता सदा के लिए चली गई. पढ़ीलिखी थी ही, बच्चे की परवरिश कर ली उस ने.

उस का रिश्ता सोम से तो टूट गया लेकिन मेरे साथ नहीं टूट पाया. उस ने भी तोड़ा नहीं और हम पतिपत्नी ने भी सदा उसे निभाया. उस का घर फिर से बसाने का बीड़ा हम ने उठाया और जिस दिन उसे एक घर दिलवा दिया उसी दिन हम एक ग्लानि के बोझ से मुक्त हो पाए थे. दिन बीते और साल बीत गए. गीता आज भी मेरी बहुत कुछ है, मेरी बेटी, मेरी बहन है.

मैं ने उसे पीछे मुड़ कर कभी नहीं देखने दिया. वह मेरी अपनी बच्ची होती तो भी मैं इसी तरह करता.

कुछ देर बाद सोम ऊपर से उतर कर नीचे आया. मेरे पास बैठा रहा. फिर बोला, ‘‘तुम तो अच्छे हो न, तो फिर तुम क्यों अकेले हो…कहां है तुम्हारी पत्नी, तुम्हारे बच्चे?’’

मैं अवाक् रह गया था. मानो तलवार सीने में गहरे तक उतार दी हो सोम ने, वह तलवार जो लगातार मुझे जराजरा सी काटती रहती है. मेरी गृहस्थी के उजड़ने में मेरी तो कोई भूल नहीं थी. एक दुर्घटना में मेरी बेटीबेटा और पत्नी चल बसे तो उस में मेरा क्या दोष. कुदरत की मार को मैं सह रहा हूं लेकिन सोम के शब्दों का प्रहार भीतर तक भेद गया था मुझे.

कुछ दिन से देख रहा हूं कि सोम रोज शाम को कहीं चला जाता है. अच्छा लगा मुझे. कार्यालय के बाद कहीं और मन लगा रहा है तो अच्छा ही है. पता चला कुछ भी नया नहीं कर रहा सोम. हैरानपरेशान गीता और उस का पति संतोष मेरे सामने अपने बेटे विजय को साथ ले कर खडे़ थे.

‘‘भैया, सोम मेरा घर बरबाद करने पर तुले हैं. हर शाम विजय से मिलने लगे हैं. पता नहीं क्याक्या उस के मन में डाल रहे हैं. वह पागल सा होता जा रहा है.’’

‘‘संतान के मन में उस की मां के प्रति जहर घोल कर भला तू क्या साबित करना चाहता है?’’ मैं ने तमतमा कर कहा.

‘‘मुझे मेरा बच्चा वापस चाहिए, विजय मेरा बेटा है तो क्या उसे मेरे साथ नहीं रहना चाहिए?’’ सफाई देते सोम बोला.

‘‘आज बच्चा पल गया तो तुम्हारा हो गया. साल भर का ही था न तब, जब तुम ने मां और बच्चे का त्याग कर दिया था. तब कहां गई थी तुम्हारी ममता? अच्छे पिता नहीं बन पाए, कम से कम अच्छे इनसान तो बनो.’’

आखिर सोम अपना रूप दिखा कर ही माना. पता नहीं उस ने क्या जादू फेरा विजय पर कि एक शाम वह अपना सामान समेट मां को छोड़ ही आया. छटपटा कर रह गया मैं. गीता का क्या हाल हो रहा होगा, यही सोच कर मन घुटने लगा था. विजय की अवस्था से बेखबर एक दंभ था मेरे भाई के चेहरे पर.

मुझे हारा हुआ जुआरी समझ मानो कह रहा हो, ‘‘देखा न, खून आखिर खून होता है. आ गया न मेरा बेटा मेरे पास…आप ने क्या सोचा था कि मेरा घर सदा उजड़ा ही रहेगा. उजडे़ हुए तो आप हैं, मैं तो परिवार वाला हूं न.’’

क्या उत्तर देता मैं प्रत्यक्ष में. परोक्ष में समझ रहा था कि सोम ने अपने जीवन की एक और सब से बड़ी भूल कर दी है. जो किसी का नहीं हुआ वह इस बच्चे का होगा इस की भी क्या गारंटी है.

एक तरह से गीता के प्रति मेरी जिम्मेदारी फिर सिर उठाए खड़ी थी. उस से मिलने गया तो बावली सी मेरी छाती से आ लगी.

‘‘भैया, वह चला गया मुझे छोड़ कर…’’

‘‘जाने दे उसे, 20-22 साल का पढ़ालिखा लड़का अगर इतनी जल्दी भटक गया तो भटक जाने दे उसे, वह अगर तुम्हारा नहीं तो न सही, तुम अपने पति को संभालो जिस ने पलपल तुम्हारा साथ दिया है.’’

‘‘उन्हीं की चिंता है भैया, वही संभल नहीं पा रहे हैं. अपनी संतान से ज्यादा प्यार दिया है उन्होंने विजय को. मैं उन का सामना नहीं कर पा रही हूं.’’

वास्तव में गीता नसीब वाली है जो संतोष जैसे इनसान ने उस का हाथ पकड़ लिया था. तब जब मेरे भाई ने उसे और बच्चे को चौराहे पर ला खड़ा किया था. अपनी संतान के मुंह से निवाला छीन जिस ने विजय का मुंह भरा वह तो स्वयं को पूरी तरह ठगा हुआ महसूस कर रहा होगा न.

संतोष के आगे मात्र हाथ जोड़ कर माफी ही मांग सका मैं.

‘‘भैया, आप क्यों क्षमा मांग रहे हैं? शायद मेरे ही प्यार में कोई कमी रही जो वह…’’

‘‘अपने प्यार और ममता का तिरस्कार मत होने दो संतोष…उस पिता की संतान भला और कैसी होती, जैसा उस का पिता है बेटा भी वैसा ही निकला. जाने दो उसे…’’

‘‘विजय ने आज तक एक बार भी नहीं सोचा कि उस का बाप कहां रहा. आज ही उस की याद आई जब वह पल गया, पढ़लिख गया, फसल की रखवाली दिनरात जो करता रहा उस का कोई मोल नहीं और बीज डालने वाला मालिक हो गया.’’

‘‘बच्चे का क्या दोष भैया, वह बेचारा तो मासूम है…सोम ने जो बताया होगा उसे ही मान लिया होगा…अफसोस यह कि गीता को ही चरित्रहीन बता दिया, सोम को छोड़ वह मेरे साथ भाग गई थी ऐसा डाल दिया उस के दिमाग में…एक जवान बच्चा क्या यह सच स्वीकार कर पाता? अपनी मां तो हर बेटे के लिए अति पूज्यनीय होती है, उस का दिमाग खराब कर दिया है सोम ने और  फिर विजय का पिता सोम है, यह भी तो असत्य नहीं है न.’’

सन्नाटे में था मेरा दिलोदिमाग. संतोष के हिलते होंठों को देख रहा था मैं. यह संतोष ही मेरा भाई क्यों नहीं हुआ. अगर मुझे किसी को दंड देने का अधिकार प्राप्त होता तो सब से पहले मैं सोम को मृत्युदंड देता जिस ने अपना जीवन तो बरबाद किया ही अब अपने बेटे का भी सर्वनाश कर रहा है.

2-4 दिन बीत गए. सोम बहुत खुश था. मैं समझ सकता था इस खुशी का रहस्य.

शाम को चाय का पहला ही घूंट पिया था कि दरवाजे पर दस्तक हुई.

‘‘ताऊजी, मैं अंदर आ जाऊं?’’

विजय खड़ा था सामने. मैं ने आगेपीछे नजर दौड़ाई, क्या सोम से पूछ कर आया है. स्वागत नहीं करना चाहता था मैं उस का लेकिन वह भीतर चला ही आया.

‘‘ताऊजी, आप को मेरा आना अच्छा नहीं लगा?’’

चुप था मैं. जो इनसान अपने बाप का नहीं, मां का नहीं वह मेरा क्या होगा और क्यों होगा.

सहसा लगा, एक तूफान चला आया हो सोम खड़ा था आंगन में, बाजार से लौटा था लदाफंदा. उस ने सोचा भी नहीं होगा कि उस के पीछे विजय सीढि़यां उतर मेरे पास चला आएगा.

‘‘तुम नीचे क्यों चले आए?’’

चुप था विजय. पहली बार मैं ने गौर से विजय का चेहरा देखा.

‘‘मैं कैदी हूं क्या? यह मेरे ताऊजी हैं. मैं इन से…’’

‘‘यह कोई नहीं है तेरा. यह दुश्मन है मेरा. मेरा घर उजाड़ा है इस ने…’’

सोम का अच्छा होने का नाटक समाप्त होने लगा. एकाएक लपक कर विजय की बांह पकड़ ली सोम ने और यों घसीटा जैसे वह कोई बेजान बुत हो.

‘‘छोडि़ए मुझे,’’ बहुत जोर से चीखा विजय, ‘‘बच्चा नहीं हूं मैं. अपनेपराए और अच्छेबुरे की समझ है मुझे. सभी दुश्मन हैं आप के, आप का भाई आप का दुश्मन, मेरी मां आप की दुश्मन…’’

‘‘हांहां, तुम सभी मेरे दुश्मन हो, तुम भी दुश्मन हो मेरे, तुम मेरे बेटे हो ही नहीं…चरित्रहीन है तुम्हारी मां. संतोष के साथ भाग गई थी वह, पता नहीं कहां मुंह काला किया था जो तेरा जन्म हुआ था…तू मेरा बच्चा होता तो मेरे बारे में सोचता.’’

मेरा बांध टूट गया था. फिर से वही सब. फिर से वही सभी को लहूलुहान करने की आदत. मेरा उठा हुआ हाथ विजय ने ही रोक लिया एकाएक.

‘‘रहने दीजिए न ताऊजी, मैं किस का बेटा हूं मुझे पता है. मेरे पिता संतोष हैं जिन्होंने मुझे पालपोस कर बड़ा किया है, जो इनसान मेरी मां की इज्जत करता है वही मेरा बाप है. भला यह इनसान मेरा पिता कैसे हो सकता है, जो दिनरात मेरी मां को गाली देता है. जो जरा सी बात पर दूसरे का मानसम्मान मिट्टी में मिला दे वह मेरा पिता नहीं.’’

स्तब्ध रह गया मैं भी. ऐसा लगा, संतोष ही सामने खड़ा है, शांत, सौम्य. सोम को एकटक निहार रहा था विजय.

‘‘आप के बारे में जो सुना था वैसा ही पाया. आप को जानने के लिए आप के साथ कुछ दिन रहना बहुत जरूरी था सो चला आया था. मेरी मां आप को क्यों छोड़ कर चली गई होगीं मैं समझ गया आज…अब मैं अपने मांबाप के साथ पूरापूरा न्याय कर पाऊंगा. बहुत अच्छा किया जो आप मुझ से मिल कर यहां चले आने को कहते रहे. मेरा सारा भ्रम चला गया, अब कोई शक नहीं बचा है.

‘‘सच कहा आप ने, मैं आप का बच्चा होना भी नहीं चाहता. आप ने 20 साल पहले भी मुझे दुत्कारा था और आज भी दुत्कार दिया. मेरा इतना सा ही दोष कि मैं नीचे ताऊजी से मिलने चला आया. क्या यह इतना बड़ा अपराध है कि आप यह कह दें कि आप मेरे पिता ही नहीं… अरे, रक्त की चंद बूंदों पर ही आप को इतना अभिमान कि जब चाहा अपना नाम दे दिया, जब चाहा छीन लिया. अपने पुरुष होने पर ही इतनी अकड़, पिता तो एक जानवर भी बनता है. अपने बच्चे के लिए वह भी उतना तो करता ही है जितना आप ने कभी नहीं किया. क्या चाहते हैं आप, मैं समझ ही नहीं पाया. मेरे घर से मुझे उखाड़ दिया और यहां ला कर यह बता रहे हैं कि मैं आप का बेटा ही नहीं हूं, मेरी मां चरित्रहीन थी.’’

हाथ का सामान जमीन पर फेंक कर सोम जोरजोर से चीखने लगा, पता नहीं क्याक्या अनापशनाप बकने लगा.विजय लपक कर ऊपर गया और 5 मिनट बाद ही अपना बैग कंधे पर लटकाए नीचे उतर आया

चला गया विजय. मैं सन्नाटे में खड़ा अपनी चाय का प्याला देखने लगा. एक ही घूंट पिया था अभी. पहले और दूसरे घूंट में ही कितना सब घट गया. तरस आ रहा था मुझे विजय पर भी, पता नहीं घर पहुंचने पर उस का क्या होगा. उस का भ्रम टूट गया, यह तो अच्छा हुआ पर रिश्ते में जो गांठ पड़ जाएगी उस का निदान कैसे होगा.

‘‘रुको विजय, बेटा रुको, मैं साथ चलता हूं.’’

‘‘नहीं ताऊजी, मैं अकेला आया था न, अकेला ही जाऊंगा. मम्मी और पापा को रुला कर आया था, अभी उस का प्रायश्चित भी करना है मुझे.’’ Hindi Story

Story In Hindi: टूटते जुड़ते सपनों का दर्द

Story In Hindi: कालेज की लंबी गोष्ठी ने प्रिंसिपल गौरा को बेहद थका डाला था. मौसम भी थोड़ा गरम हो चला था, इसलिए शाम के समय भी हवा में तरावट का अभाव था. उन्होंने जल्दीजल्दी जरूरी फाइलों पर हस्ताक्षर किए और हिंदी की प्रोफेसर के साथ बाहर आईं. अनुराधा की गाड़ी नहीं आई थी, सो उन्हें भी अपनी गाड़ी में साथ ले लिया. घर आने पर अनुराधा ने बहुत आग्रह किया कि चाय पी कर ही वे जाएं, लेकिन एक तो गोष्ठी की गंभीर चर्चाओं पर बहस की थकान, दूसरे मन की खिन्नता ने वह आमंत्रण स्वीकार नहीं किया. वे एकदम अपने कमरे में जाना चाह रही थीं.

सुबह से ही मन खिन्न हो उठा था. अगर यह अति आवश्यक गोष्ठी नहीं होती तो वे कालेज जाती भी नहीं. आज की सुबह आंखों में तैर उठी. कितनी खुश थीं सुबह उठ कर. सिरहाने की लंबी खिड़की खोलते ही सिंदूरी रंग का गोला दूर उठता हुआ रोज नजर आता. आज भी वे उस रंग के नाजुक गाढ़ेपन को देख कर मुग्ध हो उठी थीं. तभी पड़ोस में रहने वाली अनुराधा के नौकर ने बंद लिफाफा ला कर दिया, जो कल शाम की डाक से आया था और भूल से उन के यहां डाकिया दे गया था.

उसी मुदित भाव से लिफाफा खोला. छोटी बहन पूर्वा का पत्र था उस में. गोल तकिए पर सिर टेक कर आराम से पढ़ने लगीं, लेकिन पढ़तेपढ़ते उन का मन पत्ते सा कांपने लगा और चेहरे से जैसे किसी ने बूंदबूंद खुशी निचोड़ ली थी. ऐसा लगा कि वे ऊंची चट्टान से लुढ़क कर खाई में गिर कर लहूलुहान हो गई हैं. जैसे कोई दर्द का नुकीला पंजा है जो धीरेधीरे उन की ओर खौफनाक तरीके से बढ़ता आ रहा है. उन की आंखों से मन का दर्द पानी बन कर बह निकला.

दरवाजे की घंटी बजी. दुर्गा आ गई थी काम करने. गौरा ने पलकों में दर्द समेट लिया और कालेज जाने की तैयारी में लग गईं. मन उजाड़ रास्तों पर दौड़ रहा था, पागल सा. आंखें खुली थीं, पर दृष्टि के सामने काली परछाइयां झूल रही थीं. कितनी कठिनाई से पूरा दिन गुजारा था उन्होंने. हंसीं भी, बोलीं भी, कई मुखौटे उतारतीचढ़ाती भी रहीं, परंतु भीतर का कोलाहल बराबर उन्हें बेरहमी से गरम रेत पर पछाड़ता रहा. क्या पूर्वा का जीवन संवारने की चेष्टा व्यर्थ गई? क्या उन के हाथों कोई अपराध हुआ है, जिस की सजा पूरी जिंदगी पूर्वा को झेलनी होगी?

अपने कमरे में आ कर वे बिस्तर पर निढाल हो कर पड़ गईं. मैले कपड़ों की खुली बिखरी गठरी की तरह जाने कितने दृश्य आंखों में तैरने लगे. विचारों का काफिला धूल भरे रास्तों में भटकने लगा.

3 भाइयों के बाद उन का जन्म हुआ था. सभी बड़े खुश हुए थे. कस्तूरी काकी और सोना बूआ बताती रहती थीं कि 7 दिन तक गीत गाए गए थे और छोटेबड़े सभी में लड्डू बांटे गए थे. बाबा ने नाम दिया, गौरा. सोचा होगा कि बेटी के बाद और लड़के होंगे. इसी पुत्र लालसा के चक्कर में 2 बहनें और हो गईं. तब न गीत गाए गए और न लड्डू ही बांटे गए.

कहते हैं न कि जब लोग अपनी स्वार्थ लिप्सा की पूर्ति मनचाहे ढंग से प्राप्त नहीं कर पाते हैं तब घर के द्वारदेहरी भी रुष्ट हो जाते हैं. वहां यदि अपनी संतान में बेटाबेटी का भेद कर के निराशा, कुंठा, निरादर और घृणा को बो दिया जाए तो घर एक सन्नाटा भरा खंडहर मात्र रह जाता है.

उस भरेपूरे घर में धीरेधीरे कष्टों के दायरे बढ़ने प्रारंभ होने लगे. बड़े भाई छुट्टी के दिन अपने साथियों के साथ नदी स्नान के लिए गए थे. तैरने की शर्त लगी. उन्हें नदी की तेज लहरें अपने चक्रवात में घेर कर ले डूबीं. लौट कर आई थी उन की फूली हुई लाश. घर भर में कुहराम मच गया था. मां और बाबूजी पागल हो उठे. बाबा की आंखें सूखे कुएं की तरह अंधेरों से अट गईं.

धीमेधीमे शब्दों में कहा जाने लगा कि तीनों लड़कियां भाई की मौत का कारण बनी हैं. न तीनों नागिनें पैदा होतीं और न हट्टाकट्टा भाई मौत का ग्रास बनता. समय ने सभी के घावों को पूरना शुरू ही किया था कि बीच वाले भाई हीरा के मोतीझरा निकला. वह ऐसा बिगड़ा कि दवाओं और डाक्टरों की सारी मेहनत पर पानी फेरता रहा.

मौत फिर दबेपांव आई और चुपचाप अपना काम कर गई. इस बार के हाहाकार ने आकाश तक हिला दिया. पिता एकदम टूट गए. 20 वर्ष आगे का बुढ़ापा एक रात में ही उन पर छा गया था. बाबा खाट से चिपक गए थे. मां चीखचीख कर अधमरी हो उठीं और बिना किसी लाजहिचक के जोरजोर से घोषणा करने लगीं कि मेरी तो लड़कियां ही साक्षात मौत बन कर पूरा कुनबा खत्म करने आई हैं. इन का तो मुंह देखना भी पाप है.

महल्ला, पड़ोस, रिश्तेदार सभी परिवार के सदस्यों के साथ तीनों बहनों को भरपूर कोसने लगे. अपने ही घर में तीनों किसी एकांत कोने में पड़ी रहतीं, अपमानित और दुत्कारी हुईं. न कोई प्यार से बोलता, न कोई आंसू पोंछता. तीनों की इच्छाएं मर कर काठ हो गईं. लाख सोचने पर भी वे यह समझ नहीं पाईं कि भाइयों की मृत्यु से उन का क्या संबंध है, वे मनहूस क्यों हैं.

तीसरा भाई बचपन से जिद्दी व दंगली किस्म का था. अब अकेला होने पर वह और बेलगाम हो गया था. सभी उसी को दुलारते रहते. उस की हर जिद पूरी होती और सभी गलतियां माफ कर दी जातीं. नतीजा यह हुआ कि वह स्कूल में नियमित नहीं गया. उलटेसीधे दोस्त बन गए. घर से बाहर सुबह से शाम तक व्यर्थ में घूमता, भटकता रहता. ऐसे ही गलत भटकाव में वह नशे का भयंकर आदी हो गया. न ढंग से खाता, न नींद भर सो पाता था. मातापिता से खूब जेबखर्च मिलता. कोई सख्ती से रोकनेटोकने वाला नहीं था. एक दिन कमरे में जो सोया तो सुबह उठा ही नहीं. उस के चारों ओर नशीली गोलियों और नशीले पाउडरों की रंग- बिरंगी शीशियां फैली पड़ी थीं और वह मुंह से निकले नीले झाग के साथ मौत की गोद में सो रहा था.

उस की ऐसी घिनौनी मौत को देख कर तो जैसे सभी गूंगेबहरे से हो उठे थे. पूरे पड़ोस में उस घर की बरबादी पर हाहाकार मच गया था. कहां तक चीखतेरोते? आंसुओं का समंदर भीतर के पहाड़ जैसे दुख ने सोख लिया था. घर भर में फैले सन्नाटे के बीच वे तीनों बहनें अपराधियों की तरह खुद को सब की नजरों से छिपाए रहती थीं. उचित देखभाल और स्नेह के अभाव में तीनों ही हर क्षण भयभीत रहतीं. अब तो उन्हें अपनी छाया से भी भय लगने लगा था. दिन भर उन्हें गालियां दे कर कोसा जाता और बातबात पर पिटाई की जाती.

जानवर की तरह उन्हें घर के कामों में जुटा दिया गया था. वे उस घर की बेटियां नहीं, जैसे खरीदी हुई गुलाम थीं, जिन्हें आधा पेट भोजन, मोटाझोटा कपड़ा और अपशब्द इनाम में मिलते थे. पढ़ाई छूट गई थी. गौरा तो किसी तरह 10वीं पास कर चुकी थी लेकिन छोटी चित्रा और पूर्वा अधिक नहीं पढ़ पाईं. जब भी सगी मां द्वारा वे दोनों जानवरों की तरह पीटी जातीं, तब भयभीत सी कांपती हुई दोनों बड़ी बहन के गले लग कर घंटों घुटीघुटी आवाज में रोती रहती थीं.

कुछ भीतरी दुख से, कुछ रातदिन रोने से पिता की आंखें कतई बैठ गई थीं. वे पूरी तरह से अंधे हो गए थे. मां को तो पहले ही रतौंधी थी. शाम हुई नहीं कि सुबह होने तक उन्हें कुछ दिखाई नहीं देता था. बाबा का स्नेह उन बहनों को चोरीचोरी मिल जाया करता था लेकिन शीघ्र ही उन की भी मृत्यु हो गई थी.

पिता की नौकरी गई तो घर खर्च का प्रश्न आया. तब बड़ी होने के नाते गौरा अपना सारा भय और अपनी सारी हिचक,  लज्जा भुला कर ट्यूशन करने लगी थी. साथ ही प्राइवेट पढ़ना शुरू कर दिया. बहनों को फिर से स्कूल में दाखिला दिलाया. तीनों बहनों में हिम्मत आई, आत्मसम्मान जागा.

तीनों मांबाबूजी की मन लगा कर सेवा करतीं और घरबाहर के काम के साथसाथ पढ़ाई चलती रही. वे ही मनहूस बेटियां अब मां और बाबूजी की आंखों की ज्योति बन उठी थीं, सभी की प्रशंसा की पात्र. महल्ले और रिश्तेदारी में उन के उदाहरण दिए जाने लगे. घर में हंसीखुशी की ताजगी लौट आई. इस ताजगी को पैदा करने में और बहनों को ऊंची शिक्षा दिलाने में वे कब अपने तनमन की ताजगी खो बैठीं, यह कहां जान सकी थीं? विवाह की उम्र बहुत पीछे छूट गई थी. छोटेबड़े स्कूलों का सफर करतेकरते इस कालेज की प्रिंसिपल बन गईं. घर में गौरा दीदी और कालेज में प्रिंसिपल डा. गौरा हो गई थीं. छोटी दोनों बहनों की शादियां उन्होंने बड़े मन से कीं. बेटियों की तरह विदा किया.

चित्रा के जब लगातार 5 लड़कियां हुईं, तब उस को ससुराल वालों से इतने ताने मिले, ऐसीऐसी यातनाएं मिलीं कि एक बार फिर उस का मन आहत हो उठा. बहुत समझाया उन लोगों को. दामाद, जो अच्छाखासा पढ़ालिखा, समझदार और अच्छी नौकरी वाला था, उसे भी भलेबुरे का ज्ञान कराया, परंतु सब व्यर्थ रहा.

चित्रा की ससुराल के पड़ोस में ही सुखराम पटवारी की लड़की सत्या की शादी हुई थी. उस ने आ कर बताया था, ‘बेकार इन पत्थरों के ढोकों से सिर फोड़ती हो, दीदी. उन पर क्या असर होने वाला है? हां, जब भी तुम्हारे खत जाते हैं या उन्हें समाज, संसार की बातें समझाती हो, तब और भी जलीकटी सुनाती हैं चित्रा की सास और जेठानी. जिस दामाद को भोलाभाला समझती हो, वह पढ़ालिखा पशु है. मारपीट करता है. हर समय विधवा ननद तानों से चित्रा को छलनी करती रहती है. चित्रा तो सूख कर हड्डियों का ढांचा भर रह गई है. बुखार, खांसी हमेशा बनी रहती है. ऊपर से धोबिया लदान, छकड़ा भर काम.’’

वे कांप उठी थीं सत्या से सारी बातें सुन कर. उस के लिए उन का मन भीगभीग उठा था. बचपन में मां से दुत्कारी जाने पर वे उसे गोदी में छिपा लेती थीं. उन की विवशता भीतर ही भीतर हाहाकार मचाए रहती थी.

एक दिन बुरी खबर आ ही गई कि क्षयरोग के कारण चित्रा चल बसी है. शुरू से ही अपमान से धुनी देह को क्षय के कीटाणु चाट गए अथवा ससुराल के लोग उस की असामयिक मौत के जिम्मेदार रहे? प्रश्नों से घिर उठीं वे हमेशा की तरह.

और इधर आज महीनों बाद मिला यह पूर्वा का पत्र. क्या बदल पाईं वे बहनों का जीवन? सोचा था कि जो कुछ उन्हें नहीं मिला वह सबकुछ बहनों के आंचल में बांध कर उन के सुखीसंपन्न जीवन को देखेगी. कितनी प्रसन्न होगी जीवन की इस उतरती धूप की गहरी छांव में. अपनी सारी महत्त्वाकांक्षाएं और मेहनत से कमाई पाईपाई उन पर न्योछावर कर दी थी. हृदय की ममता से उन्हें सराबोर कर के अपने कर्तव्यों का एकएक चरण पूरा किया परंतु…

पंखे की हवा से जैसे पूर्वा के पत्र का एकएक अक्षर उन के सामने गरम रेत के बगलों की तरह उड़ रहा था या कि जैसे पूर्वा ही सामने बैठ कर हमेशा की तरह आंसुओं में डूबी भाषा बोल रही थी. किसे सुनाएं वे मन की व्यथा? पत्र का एक- एक शब्द जैसे लावा बन कर भीतर तक झुलसाए जा रहा था :

‘दीदी, मैं रह गई थी बंजर धरती सी सूनीसपाट. कितने वर्ष काटे मैं ने ‘बंजर’ शब्द का अपमान सहते हुए और आप भी क्या कम चिंतित और बेचैन रही थीं मेरी मानसिकता देखसुन कर? फिर भी मैं अपनेआप को तब सराहने लगी थी जब आप के बारबार समझाने पर मेरे पति और ससुराल के सदस्य किसी बच्चे को गोद लेने के लिए इस शर्त पर तैयार हो गए थे कि एकदम खोजबीन कर के तुरंत जन्मा बच्चा ही लिया जाएगा और आप ने वह दुरूह कार्य भी संपन्न कराया था.

‘‘फूल सा कोमल सुंदर बच्चा पा कर सभी निहाल हो उठे थे. सास ने नाम दिया, नवजीत. ससुर प्यार से उसे पुकारते, निर्मल. बच्चे की कच्ची दूधिया निश्छल हंसी में हम सभी निहाल हो उठे. आप भी कितनी निश्ंिचत और संतुष्ट हो उठीं, लेकिन दीदी, पूत के पांव पालने में दिखने शुरू हो गए थे. मैं ने आप को कभी कुछ नहीं बताया था. सदैव उस की प्रशंसा ही लिखतीसुनाती रही. आज स्वयं को रोक नहीं पा रही हूं, सुनिए, यह शुरू से ही बेहद हठी और जिद्दी रहा. कहना न मानना, झूठ बोलना और बड़ों के साथ अशिष्ट व्यवहार करना आदि. स्कूल में मंदबुद्धि बालक माना गया.

‘क्या आप समझती हैं कि हमसब चुप रहे? नहीं दीदी, लाड़प्यार से, डराधमका कर, अच्छीअच्छी कहानियां सुना कर और पूरी जिम्मेदारी से उस पर नजर रख कर भी उस के स्वभाव को रत्ती भर नहीं बदल सके. आगे चल कर तो कपटछल से बातें करना, झूठ बोलना, धोखा देना और चोरी करना उस की पहचान हो गई. पेशेवर चोरों की तरह वह शातिर हो गया. स्कूल से भागना, सड़क पर कंचे खेलना, उधार ले कर चीजें खाना, मारनापीटना, अभद्र भाषा बोलना आदि उस की आदत हो गई. सभी परेशान हो गए. शक्लसूरत से कैसा मनोहारी, लेकिन व्यवहार में एकदम राक्षसी प्रवृत्ति वाला.

‘उम्र बढ़ने के साथसाथ उस की आवारागर्दी और उच्छृंखलता भी बढ़ने लगी. दीदी, अब वह घर से जेवर, रुपया और अपने पिता की सोने की चेन वाली घड़ी ले कर भाग गया है. 2 दिन हो चुके हैं. गलत दोस्तों के बीच क्या नहीं सीखा उस ने? जुए से ले कर नशापानी तक. सब बहुत दुखी हैं. कैसे करते पुलिस में खबर? अपनी ही बदनामी है. स्कूल से भी उस का नाम काट दिया गया था. हम क्या रपट लिखाएंगे, किसी स्कूटर की चोरी में उस की पहले से ही तलाश हो रही है.

‘दीदी, यह कैसा पुत्र लिया हम ने? इस से अच्छा तो बांझपन का दुख ही था. यों सांससांस में शर्मनाक टीसें तो नहीं उठतीं. संतानहीन रह कर इस दोहरेतिहरे बोझ तले तो न पिसती हम लोगों की जिंदगी. पढ़ेलिखे, सुरुचिपूर्ण, सुसंस्कृत परिवार के वातावरण में उस बालक के भीतर बहता लहू क्यों स्वच्छ, सुसंस्कृत नहीं हुआ, दीदी? हमारी महकती बगिया में कहां से यह धतूरे का पौधा पनप उठा? लज्जा और अपमान से सभी का सुखचैन समाप्त हो गया है. गौरा दीदी, आप के द्वारा रोपा गया सुनहरा स्वप्न इतना विषकंटक कैसे हो उठा कि जीवन पूर्णरूप से अपाहिज हो उठा है. परंतु इस में आप का भी क्या दोष?’

पत्र का अक्षरअक्षर हथौड़ा बन कर सुबह से उन पर चोट कर रहा था. टूटबिखर तो जाने कब की वे चुकी थीं, परंतु पूर्वा के खत ने तो जैसे उन के समूचे अस्तित्व को क्षतविक्षत कर डाला था. वे सोचने लगीं कि कहां कसर रह गई भला? इन बहनों को सुख देने की चाह में उन्होंने खुद को झोंक दिया. अपने लिए कभी क्षण भर को भी नहीं सोचा.

क्या लिख दें पूर्वा को कि सभी की झोली में खुशियों के फूल नहीं झरा करते पगली. ठीक है कि इस बालक को तुम्हारी सूनी, बंजर कोख की खुशी मान कर लिया था, एक तरह से उधार लिया सुख. एक बार जी तो धड़का था कि न जाने यह कैसी धरती का अंकुर होगा? जाने क्या इतिहास होगा इस का? लेकिन तसल्ली भरे विश्वास ने इन शंकालु प्रश्नों को एकदम हवा दे दी थी कि तुम्हारे यहां का सुरुचिपूर्ण, सौंदर्यबोध और सभ्यशिष्ट वातावरण इस के भीतर नए संस्कार भरने में सहायक होगा. पर हुआ क्या?

लेकिन पूर्वा, इस तरह हताश होने से काम नहीं चलेगा. इस तरह से तो वह और भी बागी, अपराधी बनेगा. अभी तो कच्ची कलम है. धीरज से खाद, पानी दे कर और बारबार कटनीछंटनी कर के क्या माली उसी कमजोर पौधे को जमीन बदलबदल कर अपने परीक्षण में सफल नहीं हो जाता? रख कर तो देखो धैर्य. बुराई काट कर ही उस में नया आदमी पैदा करना है तुम्हें. टूटे को जोड़ना ही पड़ता है. यही सार्थक भी है.

यह सोचते ही उन में एक नई शक्ति सी आ गई और वे पूर्वा को पत्र लिखने बैठ गईं. Story In Hindi

Story In Hindi: बीच की दीवार – क्यों मायके जाकर खुश नहीं थी वो

Story In Hindi: ‘‘मम्मी,आप नानी के यहां जाने के लिए पैकिंग करते हुए भी इतनी उदास क्यों लग रही हैं? आप को तो खुश होना चाहिए. नानी, मामा से मिलने जा रही हैं, पिंकी दीदी, सोनू भैया भी मिलेंगे.’’

‘‘नहींनहीं खुश तो हूं, बस जाने से पहले क्याक्या काम निबटाने हैं, यही सोच रही हूं.’’

‘‘खूब ऐंजौय करना मम्मी, हमारी पढ़ाई के कारण तो आप का जल्दी निकलना भी नहीं होता,’’ कह कर मेरे गाल पर किस कर के मेरी बेटी सुकन्या चली गई.

सही तो कह रही है, कोई मायके जाते हुए भी इतना उदास होता है? मायके जाते समय तो एक धीरगंभीर स्त्री भी चंचल तरुणी बन जाती है पर सुकन्या को क्या बताऊं, कैसे दिखाऊं उसे अपने मन पर लगे घाव. 20 साल की ही तो है. दुनिया के दांवपेचों से दूर. अभी तो उस की अपनी अलग दुनिया है, मांबाप के साए में हंसतीमुसकराती, खिलखिलाती दुनिया.

मेरे जाने के बाद अमित, सुकन्या और उस से 3 साल छोटे सौरभ को कोई परेशानी न हो, इस बात का ध्यान रखते हुए घर की साफसफाई करने वाली रमाबाई और खाना बनाने वाली कमला को अच्छी तरह निर्देश दे दिए थे. अपना बैग बंद कर मैं अमित का औफिस से आने का इंतजार कर रही थी.

सौरभ ने भी खेल कर आने पर पहला सवाल यही किया, ‘‘मम्मी, पैकिंग हो गई? आप बहुत सीरियस लग रही हैं, क्या हुआ?’’

‘‘नहीं, ठीक हूं,’’ कहते हुए मैं ने मुसकराने की कोशिश की.

इतने में अमित भी आ गए. हम चारों ने साथ डिनर किया. खाना खत्म होते ही अमित बोले, ‘‘सुजाता, आज टाइम पर सो जाना. अब किसी काम की चिंता मत करना, सुबह 5 बजे  एअरपोर्ट के लिए निकलना है.’’

सब काम निबटाने में 11 बज ही गए. सोने लेटी तो अजीब सा दुख और बेचैनी थी. किसी से कह नहीं पा रही थी कि मुझे नहीं जाना मां के घर, मुझे नहीं अच्छे लगते लड़ाईझगड़े. अकसर सोचती हूं क्या शांति और प्यार से रहना बहुत मुश्किल काम है? बस अमित मेरी मनोदशा समझते हैं, लेकिन वे भी क्या कहें, खून के रिश्तों का एक अजीब, अलग ही सच यह भी है कि अगर कोई गैर आप का दिल दुखाए तो आप उस से एक झटके में किनारा कर सकते हैं, लेकिन ये खून के अपने सगे रिश्ते मन को चाहे बारबार लहूलुहान करें आप इन से भाग नहीं सकते. कल मैं मुंबई एअरपोर्ट से फ्लाइट पकड़ूंगी, 2 घंटों में दिल्ली पहुंच कर फिर टैक्सी से मेरठ मायके पहुंच जाऊंगी. जहां फिर कोई झगड़ा देखने को मिलेगा. झगड़ा वह भी मांबेटे के बीच का, सोच कर ही शर्म आ जाती है, रिटायर्ड टीचर मां और पढ़ेलिखे मुझ से 5 साल बड़े नरेन भैया, गीता भाभी और मेरी भतीजी पिंकी व भतीजे सोनू के बीच का झगड़ा, कौन गलत है कौन सही, मैं कुछ सोचना नहीं चाहती, लेकिन दोनों मुझे फोन पर एकदूसरे की गलती बताते रहते हैं, तो मन का स्वाद कसैला हो जाता है मेरा.

मायके का यह तनाव आज का नहीं है.

5 साल पहले मां जब रिटायर हुई थीं तब से यही चल रहा है. आपस के स्नेहसूत्र कहां खो गए, पता ही नहीं चला. पिछली बार मैं 2 साल पहले गई थी. इन 2 सालों में हर फोन पर तनाव बढ़ता ही दिखा. अब तो हालत यह हो गई है कि मुझ से तो कोई यह पूछता ही नहीं है कि मैं कैसी हूं, अमित और बच्चे कैसे हैं, बस मेरे ‘नमस्ते’ कहते ही शिकायतों का पिटारा खोल देते हैं सब. ऐसे माहौल में मायके जाते समय किस बेटी का दिल खुश होगा? मैं तो अब भी न जाती पर मां ने फौरन आने के लिए कहा है तो मैं बहुत बेमन से कल जा रही हूं. काश, पापा होते. बस, इतना सोचते ही आंखें भर आती हैं मेरी.

मैं 13 वर्ष की ही थी जब उन का हार्टफेल हो गया था. उन का न रहना जीवन में एक ऐसा खालीपन दे गया जिस की कमी मुझे हमेशा महसूस हुई है. उन्हें ही याद करतेकरते मेरी आंख कब लगी, पता ही नहीं चला.

सुबह बच्चों को अच्छी तरह रहने के निर्देश देते हुए हम एअरपोर्ट के लिए निकल गए. अमित से बिदा ले कर अंदर चली गई और नियत समय पर उदास सा सफर खत्म हुआ.

जैसे ही घर पहुंची, मां गेट पर ही खड़ी थीं, टैक्सी से उतरते ही घर पर एक नजर डाली तो बाहर से ही मुझे जो बदलाव दिखा उसे देख मेरा दिल बुझ गया. अब घर के एक गेट की जगह 2 गेट दिख रहे थे और एक ही घर के बीच में दिख रही थी एक दीवार. दिल को बड़ा धक्का लगा.

मैं ने गेट के बाहर से ही पूछा, ‘‘मां, यह क्या?’’

‘‘कुछ नहीं, मेरे बस का नहीं था रोजरोज का क्लेश. अब दीवार खींचने से शांति रहती है. वे लोग उधर खुश, मैं इधर खुश.’’

खुश… एक ही आंगन के 2 हिस्से. इस में खुश कैसे रह सकता है कोई?

मां और मेरी आवाज सुन कर भैया और उन का परिवार भी अपने गेट पर आ गया.

भैया ने मेरे सिर पर हाथ रख कर कहा, ‘‘कैसी है सुजाता?’’

गीता भाभी भी मुझ से गले मिलीं. पिंकी, सोनू तो चिपट ही गए, ‘‘बूआ, हमारे घर चलो.’’

इतने में मां ने कहा, ‘‘सुजाता, चल अंदर यहां कब तक खड़ी रहेगी?’’

मैं तो कुछ समझ नहीं पा रही थी कि यह क्या हो गया, क्या करूं.

भैया ने ही कहा, ‘‘जा सुजाता, बाद में मिलते हैं.’’

मैं अपना बैग उठाए मां के पीछे चल दी. दीवार खड़ी होते ही घर का पूरा नक्शा बदल गया था. छत पर जाने वाली सीढि़यां भैया के हिस्से में चली गई थीं. अब छत पर जाने के लिए भैया के गेट से अंदर जाना था. आंगन का एक बड़ा हिस्सा भैया की तरफ था और एक छोटी गैलरी मां के हिस्से में जहां से बाहर का रास्ता था.

आंगन और गैलरी के बीच खड़ी एक दीवार जिसे देखदेख कर मेरे दिल

में हौल उठ रहे थे. मां एकदम शांत और सामान्य थीं. नहाधो कर मैं थोड़ी देर लेट गई. मां चाय ले आईं और फिर खुल गया शिकायतों का पिटारा. मैं अनमनी सी हो गई. इतनी दूर मैं क्या इसलिए आई हूं कि यह जान सकूं कि भाभी ने टाइम पर खाना क्यों नहीं बनाया, भैया भाभी के साथ उन के मायके क्यों जाते हैं बारबार, भाभी उन्हें बिना बताए पिक्चर क्यों गईं बगैराबगैरा…

मां ने पूछा, ‘‘क्या हुआ? बहुत थक गई क्या? बहुत चुप है?’’

मैं ने भर्राए गले से कहा, ‘‘मां, यह दीवार…’’

बात पूरी नहीं होने दी मां ने, ‘‘बहुत अच्छा हुआ, अब रोज की किटकिट बंद हो गई. अब शांति है. अब बोल, क्या खाएगी और इन लोगों को सिर पर मत चढ़ाना.’’

मैं अवाक मां का मुंह देखती रह गई. इतने में दीवार के उस पार से भैया की आवाज आई, ‘‘सुजाता, लंच यहीं कर लेना. तेरी पसंद का खाना बना है.’’

पिंकी की आवाज भी आई, ‘‘बूआ, जल्दी आओ न.’’

मां ने पलभर सोचा, फिर कहा, ‘‘चल, अच्छा, एक चक्कर काट आ उधर, नहीं तो कहेंगे मां ने भाईबहन को मिलने नहीं दिया.’’

मैं भैया की तरफ गई. पिंकी, सोनू की बातें शुरू हो गईं. दोनों सुकन्या और सौरभ की बातें पूछते रहे और फिर धीरेधीरे भैया और भाभी ने भी मां की शिकायतों का सिलसिला शुरू कर दिया, ‘‘मां हर बात में अपनी आर्थिक स्वतंत्रता की बात करती हैं, उन्हें पैंशन मिलती है, वे किसी पर निर्भर नहीं हैं. बातबात में गुस्सा करती हैं. समय के साथ कोई समझौता नहीं करती हैं.’’

मैं यहां क्यों आ गई, मुझे समझ नहीं आ रहा था. कैसे रहूंगी यहां. यहां सब मुझ से बड़े हैं. मैं किसी को क्या समझाऊं और आज तो पहला ही दिन था.

इतने में मां की आवाज आई, ‘‘सुजाता, खाना लग गया है, आ जा.’’

मैं फिर मां के हिस्से में आ गई. मैं ने बहुत उदास मन से मां के साथ खाना खाया. मां ने मेरी उदासी को मेरी थकान समझा और फिर मैं थोड़ी देर लेट गई. बैड की जिस तरफ मैं लेटी थी वहां से बीच की दीवार साफ दिखाई दे रही थी जिसे देख कर मेरी आंखें बारबार भीग रही थीं.

अपनेअपने अहं के टकराव में मेरी मां और मेरे भैया यह भूल चुके थे कि इस घर की बेटी को आंगन का यह बंटवारा देख कर कैसा लगेगा. मुझे तो यही लग रहा था कि मेरा तो इस घर में गुजरा बचपन, जवानी सब बंट गए हैं. आंगन का वह कोना जहां पता नहीं कितनी दोपहरें सहेलियों के साथ गुड्डेगुडि़या के खेल खेले थे, अमरूद का वह पेड़ जिस के नीचे गरमियों में चारपाई बिछा कर लेट कर पता नहीं कितने उपन्यास पढ़े थे. छत पर जाने वाली वे बीच की चौड़ी सीढि़यां जहां बैठ कर लूडोकैरम खेला था, अब वे सब दीवार के उस पार हैं जहां जाने पर मां की आंखों में नाराजगी के भाव दिखेंगे. मां के हिस्से में वह जगह थी जहां हर तीजत्योहार पर सब साथ बैठते थे, आज वह खालीखाली लग रही थी. घर का बड़ा हिस्सा भैया के पास था. मां ने अपनी जरूरत और घर की बनावट के हिसाब से दीवार खड़ी करवा दी थी.

यही चल रहा था. मैं भैया की तरफ होती तो मां बुला लेतीं और बारबार पूछतीं कि नरेन क्या कह रहा था, भैयाभाभी पूछते मां मुझे क्या बताती हैं उन के बारे में. मैं ‘कुछ खास नहीं’ का नपातुला जवाब सब को देती. मुझे महसूस होता घर भी मेरे दिल की तरह उदास है. मैं मन ही मन अपने जाने के दिन गिनती रहती. अमित और बच्चों से फोन पर बात होती रहती थी. दिनभर मेरा पूरा समय इसी कोशिश में बीतता कि सब के संबंध अच्छे हो जाएं, लेकिन शाम तक परिणाम शून्य होता.

एक दिन मैं ने मां से पूछ ही लिया, ‘‘मां, मुझे आप ने फोन पर इस दीवार के बारे में नहीं बताया और फौरन आने के लिए क्यों कहा था?’’

मां ने कहा, ‘‘ऐसे ही, गीता को दिखाना था मैं अकेली नहीं हूं… बेटी है मेरे साथ.’’

मैं ने भैया से पूछा, ‘‘आप ने फोन पर बताया नहीं कुछ?’’

जवाब भाभी ने दिया, ‘‘बस, फोन पर क्या बताते, दीवार खींच कर मां खुश हो रही हैं तो हमें भी क्या परेशानी है. हम भी आराम से हैं.’’

मेरे मन में आया ये सब खुश हैं तो मुझे ही क्यों तकलीफ हो रही है घर के आंगन में खड़ी दीवार से.

एक दिन तो हद हो गई. मां मुझे साड़ी दिलवाने मार्केट ले जा रही थीं.

मैं ने कहा, ‘‘मां, पिंकी व सोनू को भी बुला लेती हूं. उन्हें उन की पसंद का कुछ खरीद दूंगी.’’

मां ने फौरन कहा, ‘‘नहीं, हम दोनों ही जाएंगे.’’

मैं ने कहा, ‘‘मां, बच्चे हैं, उन से कैसा गुस्सा?’’

‘‘मुझे उन सब पर गुस्सा आता है.’’

मैं उस समय उन्हें नहीं ले जा पाई. उन्हें मैं अलग से ले कर गई. उन्हें उन की पसंद के कपड़े दिलवाए. फिर हम तीनों ने आइसक्रीम खाई. जब से आई थी यह पहला मौका था कि मन को कुछ अच्छा लगा था. पिंकी व सोनू के साथ समय बिता कर मन बहुत हलका हुआ.

5 दिन बीत रहे थे. मुझे अजीब सी मानसिक थकान महसूस हो रही थी. पूरा दिन दोनों तरफ की आवाजों पर कभी इधर, तो कभी उधर घूमती दौड़ती रहती. मन रोता मेरा. किसी को एक बेटी के दिल की कसक नहीं दिख रही थी. किस बेटी का मन नहीं चाहता कि कभी वह 2-3 साल में अपने मायके आए तो प्यार और अपनेपन से भरे रिश्तों की मिठास यादों में साथ ले कर जाए. मगर मैं जल्दी से जल्दी अपने घर मुंबई जाना चाहती थी, क्योंकि मेरा मायका मायका नहीं रह गया था.

वह तो ऐसा मकान था जहां दीवार की दोनों तरफ मांबेटा बुरे पड़ोसियों की तरह रह रहे थे. इस माहौल में किसी बेटी के दिल को चैन नहीं आ सकता था.

मैं ने अमित को बता दिया कि मैं 1 हफ्ते में ही आ रही हूं. अमित सब समझ गए थे. 7वें दिन मैं ने अपना बैग पैक किया. सब से कसैले मन से बिदा ली. भैया ने अपने जानपहचान की टैक्सी बुलवा दी थी. टैक्सी में बैठ कर सीट पर सिर टिका कर मैं ने अपनी आंखें बंद कर लीं. लगा बिदाईर् तो आज हुई है मायके से. शादी के बाद जो बिदाई हुई थी उस में फिर मायके आने की, सब से मिलने की एक आस, चाह और कसक थी, लेकिन अब लग रहा था कभी नहीं आ पाऊंगी. इतने प्यारे, मीठे रिश्ते में आई कड़वाहट सहन करना बहुत मुश्किल था. मायके में खड़ी बीच की दीवार रहरह कर मेरी आंखों के आगे आती रही और मेरे गाल भिगोती रही. Story In Hindi

Hindi Story: लूडो की बाजी – जब एक खेल बना दो परिवारों के बीच लड़ाई की वजह

Hindi Story: सुबीर और अनु लूडो खेल रहे थे. सुबीर की लाल गोटियां थीं और अनु की नीली. पर पता नहीं क्या बात थी कि सुबीर की गोटियां बारबार अनु की गोटियों से पिट रही थीं. जैसे ही कोई लाल गोटी जरा सा आगे बढ़ती, नीली गोटी झट से आ कर उसे काट देती. जब लगातार 5वीं बार ऐसा हुआ तो सुबीर चिढ़ गया, ‘‘तू हेराफेरी कर रहा है,’’ वह अनु से बोला.

‘‘वाह, मैं क्या कर रहा हूं…तुझे ठीक से खेलना ही नहीं आता, तभी तो हार रहा है. ले बच्चू, यह गई तेरी एक और गोटी,’’ अनु ताली बजाता हुआ बोला.

सुबीर का धैर्य अब समाप्त हो गया. लाख कोशिश करने पर भी उस की आंखों में आंसू आ ही गए.

‘‘रोंदू, रोंदू,’’ अनु उसे अंगूठा दिखाता हुआ बोला, ‘‘यह ले, मेरी दूसरी गोटी भी पार हो गई. यह ले, अब फिर से आ गए 6.’’

सुबीर उठ कर खड़ा हो गया, ‘‘मैं नहीं खेलता तेरे साथ, तू हेराफेरी करता है.’’

जीतती बाजी का ऐसा अंत होते देख कर अनु को भी क्रोध आ गया. उस ने सुबीर को एक घूंसा दे मारा.

अब घूंसा खा कर चुप रहने वाला सुबीर भी नहीं था. सो हो गई दोनों की जम कर हाथापाई. सुबीर ने अनु के बाल नोचे तो अनु ने उस की कमीज फाड़ दी. दोनों गुत्थमगुत्था होते हुए कोने में पड़ी हुई मेज से जा टकराए. सुबीर की तो पीठ थी मेज की ओर, सो उसे अधिक चोट नहीं आई, पर अनु का सिर मेज के नुकीले कोने पर जा लगा. उस के सिर में घाव हो गया और खून बहने लगा. खून देखते ही अनु चीखने लगा, ‘‘मां, मां, सुबीर मुझे मार रहा है.’

खून देख कर अनु की मां घबरा गईं, ‘‘क्या हुआ मेरे बच्चे?’’

‘‘मां, सुबीर ने मेरी लूडो फाड़ दी और मुझे मारा भी है. मां, सिर में बहुत दर्द हो रहा है,’’ अनु सिसकता हुआ बोला.

यह सब सुन कर अनु की मां सुबीर पर बरस पड़ीं, ‘‘जंगली कहीं का…मांबाप ने घर पर कुछ नहीं सिखाया क्या? खबरदार, इस ओर दोबारा कदम रखा तो…’’

सुबीर को बहुत गुस्सा आया कि अपने बेटे को तो कुछ कहा नहीं और मुझे डांट दिया. वह गुस्से से बोला, ‘‘आप का बेटा जंगली है. आप भी जंगली हैं. सारी कालोनी वाले कहते हैं कि आप झगड़ालू हैं.’’

‘‘बड़ों से बात करने तक की तमीज नहीं तुझे,’’ अनु की मां अपनी निंदा सुन कर चीखीं और उन्होंने सुबीर के गाल पर एक तमाचा दे मारा.

गाल पर हाथ रख कर सुबीर सीधा अपनी मां के पास गया. उस ने खूब बढ़ाचढ़ा कर सारा किस्सा सुनाया. सुन कर सुबीर की मां को भी क्रोध आ गया. उन्होंने भी अपने बेटे से कह दिया, ‘‘ऐसे लोगों के घर जाने की कोई आवश्यकता नहीं है.’’

इस के बाद दोनों घरों की बोलचाल बंद हो गई.

वार्षिक परीक्षाएं आने वाली थीं, सो सुबीर और अनु ने सारा समय पढ़नेलिखने में लगा दिया. पर इस के बाद जब छुट्टियां आरंभ हुईं तो दोनों ऊबने लगे. अनु अपनी मां के साथ लूडो खेलने का प्रयत्न करता, पर वैसा मजा ही नहीं आता था जो सुबीर के साथ खेलने में आता था.

सुबीर अपने पिताजी के साथ क्रिकेट खेलता तो उसे भी बिलकुल आनंद नहीं आता था. वे स्वयं ही जानबूझ कर जल्दी ‘आउट’ हो जाते, परंतु सुबीर का शतक अवश्य बनवा देते.

सुबीर और अनु दोनों ही अब पछताने लगे कि नाहक बात बढ़ाई. एक दिन अनु ने देखा कि सुबीर दोनों घरों के बीच बनी बाड़ के पास बैठ कर कंचे खेल रहा है. अनु भी चुपचाप अपने कंचे ले कर अपनी बाड़ के पास बैठ कर खेलने लगा. कुछ देर दोनों चुपचाप खेलते रहे. फिर अनु ने देखा सुबीर का एक कंचा उस के बगीचे में आ गया है. उस ने कंचा उठा कर सुबीर को देते हुए कहा, ‘‘यह तुम्हारा है.’’

सुबीर भी बात करने का बहाना ढूंढ़ रहा था, तपाक से बोला, ‘‘कंचे खेलोगे?’’

अनु ने एक क्षण इधरउधर देखा. मैदान साफ पा कर वह बाड़ में से निकल कर सुबीर के बगीचे में पहुंच गया. थोड़ी देर बाद जब सुबीर की मां ने पुकारा तो वह चुपचाप वहां से खिसक कर अपने बगीचे में आ गया.

यह तरीका दोनों को ठीक लगा. अब जब भी अवसर मिलता, दोनों एकसाथ खेलते. मित्र के साथ खेलने का आनंद ही कुछ और होता है. अब बस, एक ही परेशानी थी कि उन्हें डरडर कर खेलना पड़ता था.

‘‘कितना अच्छा हो यदि हमारे माता- पिता भी फिर से मित्र बन जाएं,’’ एक दिन अनु बोला.

‘‘पर यह कैसे संभव होगा, समझ में नहीं आता. मैं तो अपने मातापिता के सामने तेरा नाम लेने से भी डरता हूं,’’ सुबीर उदास हो कर बोला.

एक दिन सुबह का समय था. सुबीर घर पर अकेला था. वह एक पुस्तक ले कर पेड़ पर चढ़ गया और पढ़ने लगा.

अचानक ‘धड़ाम’ की आवाज हुई. अनु ने आवाज सुनी तो वह तेजी से बाहर भागा. उस ने देखा कि सुबीर जमीन पर पड़ा कराह रहा है. वह तेजी से उस के पास गया और उसे खड़ा करने का प्रयत्न करने लगा.

‘‘अनु, मेरी पीठ में जोर की चोट लगी है. बहुत दर्द हो रहा है,’’ सुबीर दर्द से परेशान हो कर बोला.

अनु ने एक क्षण इधरउधर देखा, फिर जल्दी से बोला, ‘‘तुम हिलना मत, मैं सहायता के लिए अभी किसी को बुला कर लाता हूं.’’

अनु सीधा अपनी मां के पास गया और बोला, ‘‘मां, जल्दी चलो, सुबीर को बहुत चोट लगी है. उस की मां भी घर पर नहीं हैं…उसे बहुत दर्द हो रहा है.’’

अनु की मां सुबीर को गोद में उठा कर अंदर ले गईं. फिर उस की टांगों और बांहों की खरोंचों को साफ कर उन पर दवा लगा दी. अभी वे उस की पीठ पर मरहम लगा ही रही थीं कि सुबीर की मां बाजार से लौट आईं.

सुबीर के इर्दगिर्द कई लोगों को देख कर वे घबरा गईं. अनु उन को देखते ही बोला, ‘‘चाचीजी, सुबीर को बहुत दर्द हो रहा है, इसे जल्दी से अस्पताल ले चलिए,’’ उस की आंखों में आंसू तैर रहे थे.

सुबीर की मां अनु के सिर पर प्यार से हाथ फेरती हुई बोलीं, ‘‘अरे, बेटा, रोते नहीं…सुबीर दोचार दिन में बिलकुल ठीक हो जाएगा. तुम इसे देखने आया करोगे न?’’

अनु की आंखों में चमक आ गई. वह उत्सुकता से मां की ओर देखने लगा.

‘‘हां, यह अवश्य आएगा. अनु पास रहेगा तो सुबीर भी अपना दर्द भूल जाएगा,’’ अनु की मां बोलीं.

सुबीर की मां अनु की मां की बात सुन कर बहुत प्रसन्न हुईं. फिर बोलीं, ‘‘आप ने सुबीर की इतनी देखभाल की. उस के लिए बहुतबहुत धन्यवाद.’’

‘‘सुबीर भी तो मेरा ही बेटा है…जैसा अनु वैसा सुबीर. अपने बेटे के लिए कुछ करने के लिए धन्यवाद कैसा,’’ अनु की मां ने उत्तर दिया. थोड़ी देर बाद अनु और सुबीर जब अकेले रह गए तो अनु बोला, ‘‘तू पुस्तक पढ़तापढ़ता सो गया था क्या, एकदम से गिर कैसे गया?’’

‘‘जानबूझ कर गिरा था.’’

‘‘क्या?’’ अनु की आंखें आश्चर्य से फैल गईं, ‘‘जानता है, हड्डीपसली भी टूट सकती थी.’’

‘‘जानता हूं,’’ सुबीर गंभीरता से बोला, ‘‘पर मुझे उस का भी दुख न होता. अब हम सब फिर से मित्र बन गए हैं. तेरी मां ने मुझे कितना प्यार किया…’’

‘‘और तेरी मां ने मुझे…अब हम कभी झगड़ा नहीं करेंगे,’’ अनु भी गंभीर हो कर बोला.

‘‘हां, और क्या…खेल में हारजीत तो लगी ही रहती है. वास्तव में जीतने का मजा आता ही हारने के बाद है,’’ सुबीर बोला.

अनु को अब हंसी आ गई, ‘‘बड़ी बुद्धिमानी की बातें कर रहा है. अब कभी हारने पर रोएगा तो नहीं?’’

‘‘नहीं,’’ सुबीर भी हंसने लगा, ‘‘और न ही जीतने पर तुम्हें चिढ़ाऊंगा.’’

दोनों मित्र एक बार फिर मिल कर लूडो खेलने लगे. Hindi Story

Family Story In Hindi: मेरे बेटे की गर्लफ्रैंड

Family Story In Hindi: बेटे राहुल के स्वभाव में मुझे कुछ बदलाव साफ दिखाई दे रहे थे, ये बदलाव तो प्राकृतिक थे इसलिए इस में कुछ हैरानी की बात नहीं थी और जब राहुल के 14वें जन्मदिन पर मैं ने घर पर उस के दोस्तों के लिए पार्टी रखी तो उस के ग्रुप में पहली बार 2-3 लड़कियां आईं. विजय मेरे कान में फुसफुसाए, ‘अरे वाह, बधाई हो, तुम्हारा लड़का जवान हो गया है.’ मैं ने उन्हें घूरा फिर मुसकरा दी. मुझे उन लड़कियों को देख कर अच्छा लगा. छोटी सी बच्चियां कोने में बैठ गईं, मैं ने उन्हें दिल से अटैंड किया. लड़के- लड़कियां आजकल साथ पढ़ते हैं, साथ खेलते हैं, मैं उन की दोस्ती को बुरा भी नहीं मानती.

उन तीनों में से 1 लड़की स्वाति कुछ ज्यादा ही संकोच में बैठी थी. बाकी 2 मुझे देख कर मुसकराती रहीं, दोचार बातें भी कीं, लेकिन स्वाति ने मुझ से नजरें भी नहीं मिलाईं तो मुझे बहुत अजीब सा लगा. मैं ने अपनी 17 वर्षीया बेटी स्नेहा से कहा भी, ‘‘यह लड़की इतना शरमा क्यों रही है?’’

स्नेहा बोली, ‘‘अरे मम्मी, छोड़ो भी, इतने बच्चों में 1 लड़की के व्यवहार पर इतना क्यों सोच रही हैं?’’ मेरी तसल्ली नहीं हुई. मैं ने विजय से कहा, ‘‘वह लड़की तो कुछ भी नहीं खा रही है, बहुत संकोच कर रही है, सब बच्चों को देखो, कितनी मस्ती कर रहे हैं.’’

विजय ने कहा, ‘‘हां, कुछ ज्यादा ही चुप है. खैर, छोड़ो, बाकी बच्चे तो मस्त हैं न.’’

राहुल ने केक काटा तो हमें खिलाने के बाद उस की नजरें सीधे स्वाति पर गईं तो मैं ने राहुल की मुसकराहट में एक पल के लिए कुछ नई सी बात नोट की, मां हूं उस की लेकिन किसी से कुछ कहने की बात नहीं थी. खैर, कुछ गेम्स फिर डिनर के बाद बच्चे खुशीखुशी अपने घर चले गए. मैं ने बाद में राहुल से पूछा, ‘‘सिया और रश्मि तो सब से अच्छी तरह बात कर रही थीं, यह स्वाति क्यों इतना शरमा रही थी?’’

राहुल मुसकराया, ‘‘हां, उसे शरम आ रही थी.’’

‘‘क्यों? शरमाने की क्या बात थी?’’

‘‘अरे मम्मी, हमारे सब दोस्त हम दोनों का साथ नाम ले कर खूब चिढ़ाते हैं न.’’

मैं चौंकी, ‘‘क्या? क्यों चिढ़ाते हैं?’’

‘‘अरे, आप को भी न हर बात समझा कर बतानी पड़ती है मम्मी. सब दोस्त एकदूसरे को किसी न किसी लड़की का नाम ले कर छेड़ते हैं.’’ मैं अपने युवा होते बेटे के समझाने के इतने स्पष्ट ढंग पर कुछ हैरान सी हुई, फिर मैं ने कहा, ‘‘यह कोई उम्र है इन मजाकों की, पढ़नेलिखने, खेलने की उम्र है.’’

‘‘लीव इट, मम्मी, आप हर बात को इतना सीरियसली क्यों लेती हैं…सभी ऐसी बातें करते हैं.’’

फिर मैं ने आने वाले दिनों में नोट किया कि राहुल का फोन पर बात करना बढ़ गया है. कई बार मैं उठाती तो फोन काट दिया जाता था, फिर राहुल के उठाने पर बात होती रहती थी. मेरे पूछने पर राहुल साफ बताता कि स्वाति का फोन है. मैं कहती, ‘‘इतनी क्या बात करनी होती है तुम दोनों को.’’

राहुल नाराज हो जाता, ‘‘मेरी फ्रैंड है, क्या मैं उस से बात नहीं कर सकता?’’ धीरेधीरे यह सब बढ़ता ही जा रहा था.

स्वाति हमारी ही सोसायटी में रहती थी. उस के मम्मीपापा दोनों नौकरीपेशा थे. मैं उन से कभी नहीं मिली थी. राहुल और स्वाति एक ही स्कूल में थे, एक ही बस में जाते थे. दोनों के शौक भी एक जैसे थे. राहुल अपने स्कूल की फुटबाल टीम का बहुत अच्छा प्लेयर था और स्वाति उस के हर मैच में उस का साहस बढ़ाने के लिए उपस्थित रहती. मैं विजय से कहती, ‘‘कुछ ज्यादा ही हो रहा है दोनों का.’’ विजय कहते, ‘‘तुम यह सब नहीं रोक पाओगी. अब तो उस की ऐसी उम्र भी नहीं है कि ज्यादा डांटडपट की जाए.’’

अब तक हमेशा 90 प्रतिशत से ऊपर अंक लाने वाला मेरा बेटा कहीं पढ़ाई में न पिछड़ जाए, इस बात की मुझे ज्यादा चिंता रहती. मैं रातदिन अब राहुल की हरकतों पर नजर रखती और महसूस करती कि मैं किसी भी तरह राहुल और स्वाति को एकदूसरे से मिलने से रोक ही नहीं सकती, सारा दिन तो साथ रहते थे दोनों. कुछ और समय बीता. राहुल और स्वाति दोनों ने 10वीं की बोर्ड की परीक्षाओं में 85 प्रतिशत अंक प्राप्त किए तो मेरी खुशी का ठिकाना न रहा.

विजय कहते, ‘‘देखा? इतने दिन तुम अपना खून जलाती रहीं, पढ़ाई तो दोनों ने अच्छी की.’’

मैं कुछ कह नहीं पाई. राहुल को हम ने गिफ्ट में एक मोबाइल फोन ले दिया तो वह बहुत खुश हुआ, कई दिनों से कह रहा था कि उसे फोन चाहिए. फिर मैं ने ही धीरेधीरे अपने मन को समझा लिया कि स्वाति राहुल की गर्लफ्रैंड है और मैं उसे कुछ नहीं कह सकती. सांवली सी, पतलीदुबली स्वाति महाराष्ट्रियन थी, हम उत्तर भारतीय कायस्थ. वह मुझ से अब भी कतराती थी. एक ही सोसायटी थी, कई बार सामना होता तो वह नजरें चुरा लेती. मुझे गुस्सा आता. राहुल से कहती, ‘‘और भी तो लड़कियां हैं, सब हायहलो करती हैं और इस लड़की को इतनी भी तमीज नहीं कि कभी विश कर दे.’’

राहुल तुरंत उस की साइड लेता, ‘‘वह आप से डरती है, मम्मी.’’

‘‘क्यों? क्या मैं उसे कुछ कहती हूं?’’

‘‘नहीं, मैं ने उसे बताया है कि आप को उस की और मेरी दोस्ती के बारे में पता है और आप को यह सब बिलकुल पसंद नहीं है.’’

मैं कहती, ‘‘दोस्ती को मैं थोड़े ही बुरा समझती हूं लेकिन हद से बाहर कुछ दिखता है तो गुस्सा तो आता ही है. सब खबर है मुझे.’’

राहुल पैर पटकता चला जाता. कुछ समय और बीता, दोनों की 12वीं भी हो गई. इस बार राहुल के 91 प्रतिशत और स्वाति के 93 प्रतिशत अंक आए. हम सब बहुत खुश थे. अब राहुल ने कौमर्स ली, स्वाति ने साइंस. अब तो कई मेरी करीबी सहेलियां सोसायटी के गार्डन में सैर करते हुए स्वाति को आतेजाते देख कर मुझे कोहनी मारतीं, ‘‘देख, तेरे बेटे की गर्लफैं्रड जा रही है.’’ मैं ऊपर से मुसकरा देती और दिल ही दिल में सोचती, इस का मतलब अच्छे- खासे मशहूर हैं दोनों. मुझे अच्छी तरह पता चल गया था कि दोनों एकदूसरे को बहुत सीरियसली लेते हैं. अब मैं ही विजय से कहती, ‘‘बचपन से ये दोनों साथ हैं, मुझे तो लगता है अपने पैरों पर खड़ा होने पर ये विवाह भी करेंगे.’’

विजय मेरी इतनी गंभीरता से कही गई बात को हलकेफुलके ढंग से लेते और हंस कर कहते, ‘‘वाह, क्या हमारे घर में महाराष्ट्रियन बहू आ रही है? क्या बुराई है?’’ अब तो मैं भी मानसिक रूप से उसे बहू के रूप में देखने के लिए तैयार हो गई थी. मन ही मन कई बातें उस के बारे में सोचती रहती. स्नेहा कभी अपनी टिप्पणी देती, कभी चुपचाप हमारी बात सुनती. वह भी हमें राहुल और स्वाति की कई बातें बताती रहती.

वक्त अपनी रफ्तार से चल रहा था. राहुल का यहीं मुंबई में ऐडमिशन हुआ, स्वाति का कोटा में. मैं सोचती अब तो बस फोन ही माध्यम होगा इन की बातचीत का. स्वाति कोटा चली गई. राहुल कई दिन चुप व गंभीर सा रहा. फोन पर बात कर रहा होता तो मैं समझ जाती उधर कौन है. वह कई बार फोन पर दोस्तों से बात करता लेकिन जब वह स्वाति से बात करता तो उस के बिना बताए मैं उस के चेहरे के भावों से समझ जाती कि उधर स्वाति है फोन पर.

अब राहुल बीकौम के साथसाथ सीए भी कर रहा था. मैं ने आश्चर्यजनक रूप से एक बड़ा परिवर्तन महसूस किया. अब किसी अवनि के फोन आने लगे थे. राहुल की बातों से पता चला कि उस की क्लासफैलो अवनि उस की खास दोस्त है. 1-2 बार वह उसे किसी प्रोजैक्ट की तैयारी के लिए 2-3 दोस्तों के साथ घर भी लाया. उन की दोस्ती साधारण दोस्ती से हट कर लगी. अवनि ने मुझ से पूरे कौन्फिडैंस से बात की, किचन में मेरा हाथ बंटाने भी आ गई. वह साउथइंडियन थी, स्मार्ट थी. जब तक घर में रही, राहुलराहुल करती रही. मैं चुपचाप उस की भावभंगिमाओं का निरीक्षण करती रही और इस नतीजे पर पहुंची कि जो संबंध अब तक राहुल का स्वाति से था, वही आज अवनि से है.

मुझे मन ही मन राहुल पर गुस्सा आने लगा कि यह क्या तमाशा है, कभी किसी लड़की से इतनी दोस्ती तो कभी किसी और से. वह अवनि के साथ फोन पर गप्पें मारता रहता. मैं ने 1-2 बार पूछ ही लिया, ‘‘स्वाति कैसी है?’’‘‘ठीक है, क्यों?’’‘‘उस से बात तो होती रहती होगी?’’‘‘हां, कभी फ्री होता हूं तो बात हो जाती है, वह भी बिजी है, मैं भी.’’मैं ने मन ही मन सोचा, ‘हां, मुझे पता है तुम कहां बिजी हो.’मैं ने इतना ही कहा, ‘‘तुम्हारी तो वह अच्छी फ्रैंड है न, उस के लिए तो टाइम मिल ही जाता होगा.’’

वह झुंझला गया, ‘‘तो क्या उस से रोज बात करता रहूं? और रोजरोज कोई क्या बात करे.’’मैं हैरान उस का मुंह देखती रह गई और वह पैर पटकता वहां से चला गया.अब राहुल पर मुझे हर समय गुस्सा आता रहता. अवनि कभी भी उस के दोस्तों के साथ आ जाती, लंच करती, हम सब से खूब बातें करती. रात को बैडरूम में विजय को देखते ही मेरे मन का गुबार निकलना शुरू हो जाता, ‘‘हुंह, पुरुष है न, किसी लड़की की भावनाओं से खेलना अपना हक समझता है, बचपन से जिस के साथ घूम रहा है, जिस के साथ सोसायटी में अच्छेखासे चर्चे हैं, अब इतने आराम से उसे भूल कर किसी और लड़की से दोस्ती कर ली है, आवारा कहीं का.’’

विजय कहते, ‘‘प्रीति, तुम क्यों बच्चों की बातों में अपना दिमाग खराब करती रहती हो. यह उम्र ही ऐसी है, ज्यादा ध्यान मत दिया करो.’’मैं चिढ़ जाती, ‘‘हां, आप तो उसी की साइड लेंगे, खुद भी तो एक पुरुष हो न.’’‘‘अरे, हम तो हमेशा से आप के गुलाम हैं, कभी शिकायत का मौका दिया है,’’ विजय नाटकीय स्वर में कहते तो भी मैं चुप रहती.

मेरा ध्यान स्वाति में रहता. मैं उसी के बारे में सोचती. कोई भी काम करते हुए मुझे उस का ध्यान आ जाता कि बेचारी को राहुल का व्यवहार कितना खलता होगा, उसे राहुल का बचपन का साथ याद आता होगा.

काफी समय बीतता चला गया. स्नेहा एमबीए कर रही थी, राहुल का भी सीए पूरा होने वाला था. यह पूरा समय मुझे स्वाति का ध्यान आता रहा था. राहुल के किसी फोन से मुझे अब यह न लगता कि वह स्वाति के संपर्क में भी है. अवनि से उस की घनिष्ठता बढ़ गई थी. एक दिन मुझे शौपिंग के लिए जाना था, विजय ने कहा, ‘‘तुम शाम को 6 बजे कैफे कौफी डे पहुंच जाना, वहीं कुछ खापी कर शौपिंग करने चलेंगे.’’

मैं वहां पहुंची, एक कार्नर में बैठ गई. विजय को फोन कर के पूछा कि कितनी देर में आ रहे हो. उन्होंने कहा, ‘‘तुम और्डर दे दो, मैं भी पहुंच ही रहा हूं.’’

मैं ने और्डर दे कर यों ही नजरें इधरउधर दौड़ाईं तो मैं चौंक पड़ी, स्वाति एक टेबल पर एक लड़के के साथ बैठी थी और दोनों चहकते हुए आसपास के माहौल से बेखबर अपनी बातों में व्यस्त थे. मैं गौर से स्वाति को देखती रही, वह काफी खुश लग रही थी. मेरी नजरें स्वाति से हट नहीं रही थीं, शायद उसे भी किसी की घूरती निगाहों का एहसास हुआ हो, उस ने इधरउधर देखा, चौंक कर उस लड़के को कुछ कहा, फिर उठ कर आई, मेरी टेबल के पास खड़ी हुई, मुझे नमस्ते की. मैं ने उसे बैठने का इशारा करते हुए उस के हालचाल पूछे.

वह बैठी तो नहीं लेकिन आज पहली बार वह मुझ से बात कर रही थी. मैं ने उस की पढ़ाई के बारे में पूछा. उस से बात करतेकरते मेरी नजर उस के पीछे आ कर खड़े हुए लड़के पर पड़ी. स्वाति ने उस से परिचय करवाया, ‘‘आंटी, यह आकाश है, कोटा में मेरे कालेज में ही है. यहीं मुंबई में ही रहता है.’’ मैं ने दोनों से कुछ हलकीफुलकी बात की, फिर वे दोनों ‘बाय आंटी’ कह कर चले गए.

मैं स्वाति को हंसतेमुसकराते जाते देखती रही. मैं सोच रही थी, यह लड़की कभी नहीं जान पाएगी कि यह कितने दिनों से मेरे दिमाग पर छाई थी. मैं ने मन ही मन पता नहीं क्या रिश्ता बना लिया था इस से, पता नहीं इस की कितनी भावनाओं से मेरा मन जुड़ गया था, लेकिन आज मैं स्वाति को खुश देख कर बेहद खुश थी. Family Story In Hindi

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