Family Story In Hindi: मिजाज

Family Story In Hindi: तेजतर्रार माधवी बचपन से ही बड़ी उत्साही थी. पढ़ाई के अलावा वह दूसरी तमाम गतिविधियों में भी अव्वल रहती थी. उस की बड़ी बहन मनीषा थी. मनीषा उस से 5 साल बड़ी थी, जो पढ़ाई के साथसाथ बरताव में भी बेहद संजीदा थी.

घर का छोटा बच्चा अकसर चंचल स्वभाव का होता है और लापरवाह भी, सो माधवी भी वैसी ही थी. खूब शरारती और झगड़ालू, पर अपने तेज दिमाग और मनीषा की छोटी बहन होने के चलते वह सजा पाने से बची रहती थी. इस वजह से उस के भीतर एक अलग ही तरह का अहंकार जन्म ले कर फलताफूलता जा रहा था.

यह सब माधवी के शुभचिंतक देख तो रहे थे, पर उस को थाम पाने में नाकाम थे. कालेज में दाखिला लेते समय तक वह एक बिंदास और बेखौफ लड़की बन चुकी थी.

माधवी की बड़ी बहन मनीषा मैडिकल की पढ़ाई करने दूसरे शहर चली गई थी और माधवी प्रशासनिक सेवा में जाने की मंशा से एक नामी कालेज की आर्ट्स फैकल्टी में दाखिला ले चुकी थी.

पहले साल से ही कालेज के खुले माहौल ने माधवी को कालेज की राजनीति की तरफ खींच लिया था. कालेज के गुंडा टाइप छात्र भी उस के खतरनाक बरताव का सामना करने से डरते थे.

दूसरे साल में ही माधवी अपने कालेज छात्र संघ की अध्यक्ष बन गई. उस को अपने इस काम में इतना मजा आने लगा कि वह अपने दूसरे मकसद को तो बिलकुल भुला ही बैठी. अहंकार उस के दिमाग में इस कदर जम कर बैठ गया कि जो उसे सही सलाह देने की कोशिश करता, वह उस के गुस्से का सामना करता.

ग्रेजुएशन की डिगरी हाथ में आने तक माधवी का पढ़ाई से पूरी तरह मोह भंग हो चुका था. पर पूरे कालेज में वह एक जानापहचाना नाम बन चुकी थी. उस से डरने वाले लोग काफी थे, पर चाहने वाले भी इतने तो थे ही जो उस के अहंकार को सींच कर उस का पोषण बराबर करने में कमी न रखते.

ऐसे में माधवी के ब्याह के लिए प्रस्ताव घर पर आने लगे और एक बड़े नेता के बेटे मोहन के साथ बड़ी जद्दोजेहद के बाद उस के मातापिता ने उसे शादी करने के लिए राजी कर लिया था.

माधवी की बड़ी बहन मनीषा पिछले साल ही ब्याह की डोर में बंध चुकी थी और उस के समझाने पर ही माधवी ने भी शादी के बंधन में बंधने की बात मान ली.

माधवी समेत घर वालों ने यह बात स्वीकार कर ली थी कि प्रशासनिक सेवा में चयन होने का रास्ता अब बहुत दूर जा चुका है. शादी होने के बाद मायके से 500 किलोमीटर दूर ससुराल में माहौल पूरी तरह अलग था.

यह एक संयुक्त परिवार था, जहां माधवी से उम्र और रिश्ते में बड़े लोग काफी थे. मोहन नाम की वकालत करता था, पर कारोबार व राजनीति में रसूख रखने वाले परिवार से संबंधित होने से सभी लोग अमीर थे.

गांठ के पूरे थे, मगर आदत से वही पुरातनपंथी.

इस परिवार को रूढि़वाद ने अभी तक अपने शिकंजे से छुटकारा नहीं दिया था खासकर माधवी की सास की बहू से उम्मीदें उस की ज्यादातर इच्छाओं के उलट थीं.

थोड़े महीनों में ही परिवारिक खटपट ने कलह का रूप लेना शुरू कर दिया. बोलने में तेजी और खुले विचारों वाली माधवी को एक खराब और बेहया बहू का खिताब दिलवा दिया.

एक साल जैसेतैसे कटा, पर उस के बाद अलग घर में रहना मजबूरी हो गई. तब तक माधवी पेट से भी हो चुकी थी. मोहन उस का ध्यान तो रखता था, पर उस के दूसरी औरतों से भी नाजायज रिश्ते थे.

तेज नजर रखने वाली माधवी से यह बात कब तक छिपती. अपने हक से समझौता करना उस ने कभी सीखा ही नहीं था. लिहाजा, मोहन से ?ागड़े विकराल रूप लेने लगे.

जैसेतैसे 2 साल बीत गए और माधवी मां की जिम्मेदारी निभाती कुछ बिजी हो गई और मोहन घर के बजाय बाहर ज्यादा वक्त बिताने लगा.

मोहन का एक कुंआरा दोस्त सागर अकसर घर आया करता था, जिस से माधवी भी बेझिझक काम करवा लेती थी. भरोसे का होने से मोहन ने भी कभी रोकटोक नहीं की, पर सास जो पहले से ही उस की बदजबानी से गुस्सा थी, उस ने इस बात पर तूफान मचाना शुरू कर दिया.

माधवी ने भी जम कर खिलाफत की और बिना बात का लांछन अपने ऊपर लगाने से सास को खूब खरीखोटी सुना दी.

सास के अहम को इतनी ठेस पहुंची कि उस ने माधवी को उस के ही घर से जबरन बेदखल करवा दिया. बीचबचाव में मोहन की कोशिश धरी रह गई.

9 महीने का बच्चा गोद में और एक महीने का गर्भ पेट लिए गुस्साई माधवी मायके जाने के लिए बसस्टैंड आ गई, पर वह बस में चढ़ने के बजाय मोहन के उसी दोस्त सागर के घर चली गई.

सागर अकेला ही रहता था. उस के धर्मसंकट में आखिर एक आसरे की इच्छा रखने वाली औरत की पुकार की जीत हुई. उस ने माधवी को शरण दी.

माधवी को भरोसा था कि आज नहीं तो कल मोहन उसे समझ जाएगा और लेने आएगा, पर हफ्ता गुजर गया और मोहन को खबर भिजवाने के बावजूद वह माधवी से मिलने तक नहीं आया.

सागर ने भी मोहन को सम?ाने की पूरी कोशिश की, पर उलटा उस को भी लांछन के तीरों से बुरी तरह घायल होना पड़ा.

माधवी के मातापिता को भी पता चलते ही वे दौड़े आए. बेटी, दामाद और समधन से बातचीत कर समझाने की भरपूर कोशिश की, पर टूटी डोर को जोड़ने में कामयाबी न मिल सकी.

गुस्से ने अब बदले का रूप ले लिया था. माधवी ने सागर के सामने शादी का प्रस्ताव रखा. पहले तो वह कुछ अटका, मगर फिर हालात और माहौल को देख कर उस ने स्वीकार कर लिया.

कुछ महीनों पहले ही मोहन से तलाक और सागर से माधवी की कोर्टमैरिज हो गई. बेटे की कस्टडी भी पहले पति को मिल गई. जिंदगी में पहली बार माधवी अपनेआप को लाचार महसूस कर रही थी. एक बेटे को खोने का गम और दूसरे बच्चे का कुछ महीने में इस दुनिया में आने का संघर्ष उस के मन को तोड़ रहे थे, पर नए पति ने उस को बेहतर ढंग से समझाते हुए पूरा हौसला दिया और उस ने एक और बेटे को जन्म दिया.

राजसी ठाटबाट अब नहीं थे. एक स्कूल में टीचर पति अपने सीमित साधनों से माधवी की पूरी देखरेख कर रहा था. माधवी भी अब नौकरी तलाशने लगी और एक प्राइवेट स्कूल में उस ने पढ़ाना शुरू कर दिया. साथ ही, उस ने अपने आसपास के लोगों से मेलजोल बढ़ाना शुरू कर दिया.

आसपास ज्यादातर लोग गरीब थे. माधवी सब की मदद करने लगी. उस का तेज दिमाग लोगों की समस्याओं को सुलझाता और बेबाक बोली अपना असर छोड़ती.

दरअसल, वह सच का ही पक्ष लेती. समाज भी सच की फुसफुसाहट को जान और पहचान तो लेता ही है. वह एक मुहावरा बनती गई. कोई ‘शेरनी’ कहता था, कोई ‘झांसी की रानी’.

कुछ सालों में ही माधवी पूरे महल्ले में मशहूर हो गई. अपने स्कूल की भी वह अहम किरदार बन गई. उसे स्कूल का वाइस प्रिंसिपल बना दिया गया था.

अब नगरनिगम के चुनाव होने वाले थे और माधवी के महल्ले के कई लोग उसे अपने वार्ड में निर्दलीय पार्षद खड़ा होने के लिए कह रहे थे.

माधवी ने राजनीति में कदम रखने का फैसला कर लिया. लोगों से खूब समर्थन मिला और वह जीत गई.
अब माधवी अपने बच्चे के साथ अपने क्षेत्र के लोगों का भी ध्यान रखने लगी. अगले चुनाव में एक राष्ट्रीय पार्टी से उसे मेयर का टिकट औफर हुआ, जिसे उस ने स्वीकार कर लिया.

विरोधी पार्टी ने भी माधवी के पहले पति मोहन को मेयर का टिकट दिया था. चुनाव प्रचार में एक बार फिर उस पर लांछन लगा और बदनाम कर हराने के हथकंडे अपनाए गए. पर वह अपने किए गए कामों से लोगों के दिलों में जगह बना चुकी थी. उस की टीम ने दिल लगा कर पूरे जोश से प्रचार किया और अब वह शहर की मेयर थी.

शायद समय ने माधवी की जीवनधारा को इसी तरह बहाने का तय किया था. Family Story In Hindi

News Story In Hindi: जहाज बना आग का गोला

News Story In Hindi: 20 जून, 2025 की शाम. विजय और अनामिका आज 2 नाइट के लिए द्वारका के रैडिसन ब्लू होटल में रुके हुए थे. अनामिका के जन्मदिन पर तो विजय के साथ खतरनाक प्रैंक खेला गया था, जिस में अनामिका के दोस्तों ने उस की धुलाई कर दी थी. तब भी विजय अनामिका के साथ होटल में रात बिताना चाहता था, पर ऐसा हो नहीं पाया था.

फिलहाल तो विजय और अनामिका अपने रूम में थे. अनामिका अभीअभी नहा कर बाहर आई थी. गीले खुले बाल उस की खूबसूरती को बढ़ा रहे थे. सफेद रंग की शौर्ट ढीली टीशर्ट के अंदर उस ने कुछ नहीं पहना था. नीचे हलके गुलाबी रंग का पाजामा था.

विजय बालकनी में खड़ा था.

उसे बाथरूम का दरवाजा खुलने की आवाज आई, तो वह कमरे में आ गया. अनामिका को इस सैक्सी रूप में देख कर उस का मन मचल गया.

अनामिका समझ गई कि अब विजय के दिल में खुराफात ने जन्म ले लिया है, तो वह वहीं से बोली, ‘‘कोई भी फालतू की हरकत मत करना. मैं दोबारा नहाने के मूड में नहीं हूं. मुझ से दूर ही रहना.’’

‘‘पर यह तो सरासर चीटिंग है. तुम अकेलेअकेले नहा ली और अब मुझे करीब आने से मना कर रही हो. अब कहीं कली खिल रही हो तो भंवरा तो उस का रस चूसने के लिए आएगा ही न,’’ विजय ने इतना कहा और अनामिका को अपनी बांहों में जकड़ लिया.

अनामिका कुछ देर के लिए छटपटाई, पर विजय की मजबूत गिरफ्त से छूट न सकी.

विजय ने अनामिका को अपनी गोद में उठा लिया और बिस्तर पर पटक दिया. अनामिका समझ गई कि अब विजय नहीं मानेगा, तो उस ने भी ज्यादा नानुकर नहीं की.

थोड़ी देर में ही वे दोनों बिस्तर में थे और एकदूसरे के जिस्म से खेल रहे थे. रात के 9 बजे तक उन्होंने एकदूसरे का 2 बार बिस्तर पर साथ दिया और निढाल हो कर पड़ गए.

विजय की आंखों में शरारत थी, तो अनामिका बारबार उसे घड़ी दिखा रही थी कि डिनर का टाइम होने वाला है.

विजय ने कहा, ‘‘हम दोनों शानदार डिनर करेंगे, पर उस से पहले एकसाथ शावर लेंगे.’’

अनामिका समझ गई कि अभी भी विजय उस के जिस्म से खेलना चाहता है. वह जल्दी से उठ कर वाशरूम की तरफ भागी, पर दरवाजा बंद करने से पहले ही विजय भी उस के साथ वाशरूम में जा घुसा.

वे दोनों आधा घंटे के बाद वाशरूम से निकले. फिर 15 मिनट के बाद दोनों रैस्टोरैंट में बैठे थे. अभी डिनर सर्व नहीं हुआ था कि अनामिका का मोबाइल फोन बज उठा.

उधर से किसी लड़की की आवाज आई, ‘नमस्ते दीदी.’

अनामिका वह आवाज नहीं पहचान पाई. उस ने कहा, ‘‘नमस्ते. पर आप हैं कौन? मैं ने आप को पहचाना नहीं?’’

‘अरे दीदी, मैं डाक बाबू की बेटी देविका बोल रही हूं,’ उधर से दोबारा आवाज आई.

‘‘अरे देविका. अब पहचान लिया. कैसी हो? अपनी दीदी को कैसे याद कर लिया?’’ अनामिका ने कहा.

‘दीदी, मैं नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से बोल रही हूं. अभी उतरी हूं. आप मुझे अपना पता बता दो. मुझे आप के पास आना है,’ देविका ने कहा.

‘‘पर देविका, अभी तो मैं अपने दोस्त के साथ होटल में हूं…’’ अनामिका ने इतना कहा, तो तभी विजय ने धीरे से कहा कि देविका को यहीं बुला लो. इतनी रात को कहां जाएगी. मैं होटल के मैनेजर से बात कर लूंगा. वह मेरे दोस्त का खास दोस्त है. वह कुछ न कुछ इंतजाम कर देगा.

अनामिका देविका से बोली, ‘‘तुम ऐसा करो कि मैट्रो ट्रेन से द्वारका सैक्टर 13 आ जाओ. यहां से हम तुम्हें ले लेंगे.’’

‘पर दीदी, मैं अकेली कैसे आऊंगी?’ देविका ने झिझकते हुए कहा.

‘‘बड़ा आसान है. किसी भी पुलिस वाले से पूछ लेना. वे लोग सही तरीका बता देंगे द्वारका आने का. वैसे, तुम नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से पहले राजीव चौक की मैट्रो लेना और वहां से द्वारका सैक्टर 21 वाली मैट्रो में बैठ जाना. वहां तुम्हें हम मिल जाएंगे,’’ अनामिका ने समझाया.

‘ठीक है दीदी, मैं कोशिश करती हूं,’ देविका ने कहा.

‘‘कहीं भी किसी तरह की कोई दिक्कत हो, तो तुम फोन कर लेना. और हां, जब तुम उत्तम नगर पहुंच जाओ, तो मुझे फोन कर लेना. हम द्वारका सैक्टर 13 के मैट्रो स्टेशन पर तुम्हें लेने आ जाएंगे,’’ अनामिका ने देविका का हौसला बढ़ाया.

फोन काटने पर विजय ने अनामिका से पूछा, ‘‘यह देविका है कौन? पहले तो कभी तुम्हारे मुंह से इस का जिक्र नहीं सुना.’’

‘‘यह हमारे पड़ोस के डाक बाबू की बेटी है. अब यह अचानक दिल्ली क्यों आई है, यह तो मुझे भी नहीं पता,’’ अनामिका ने थोड़ा चिंतित होते हुए कहा.

रात के 11 बजे विजय, अनामिका और देविका होटल के कमरे में थे. दरमियाने कद की सांवले रंग की देविका फ्रैश हो चुकी थी. डिनर वह ट्रेन में ही कर चुकी थी, तो उस ने कहा, ‘‘दीदी, मुझे तो बड़ी तेज नींद आ रही है. कहां सोना है?’’

अनामिका बोली, ‘‘तुम सोफे पर सो जाओ.’’

‘‘आप कहां सोएंगी?’’ देविका ने पूरे कमरे पर नजर दौड़ाते हुए कहा. वहां डबल बैड के अलावा और कुछ नहीं था.

‘‘मैं और विजय इस डबल बैड पर सोएंगे,’’ अनामिका ने कहा.

यह सुन कर देविका हैरान रह गई. उसे पता था कि अनामिका दीदी ने अभी शादी नहीं की है, फिर शादी से पहले वे किसी लड़के के साथ एक ही बिस्तर पर सोएंगी…

पर फिलहाल देविका को गहरी नींद आ रही थी, तो वह सोफे पर सो गई.

देर रात हो गई थी, तो विजय और अनामिका भी सो गए.

अगली सुबह विजय, अनामिका और देविका रैस्टोरैंट में नाश्ता करने बैठे थे. वहां कई विदेशी भी बैठे हुए थे. देविका बड़े होटल का माहौल देख कर हैरान थी और उसे समझ नहीं आ रहा था कि विजय और अनामिका शादी से पहले ही शादीशुदा जोड़े की तरह क्यों रह रहे हैं.

‘‘दीदी, मुझे तो दिल्ली का माहौल बिलकुल भी समझ नहीं आया. आप का और इन साहब का रिश्ता क्या है, जो शादी से पहले ही…’’ देविका ने अपने मन की बात रखी.

यह सुन कर अनामिका हंस दी और बोली, ‘‘इन साहब का नाम विजय है और ये मेरे बौयफ्रैंड हैं. हम दोनों यहां होटल में मेरा जन्मदिन मनाने आए हैं.’’

‘‘लेकिन तुम यहां अचानक दिल्ली में कैसे?’’ विजय ने सवाल किया.

‘‘विजय साहब, मुझे मुंबई से एक सिंगिंग कंपीटिशन में गाने के लिए बुलाया है. मेरा सिलैक्शन हो गया है. मेरे साथ कोई एक और जना वहां जा सकता है, तो मैं ने दीदी का नाम लिखवा दिया. ये पढ़ीलिखी हैं और मुंबई में मेरा साथ देंगी,’’ देविका ने कहा.

‘‘अरे, तुम ने पहले क्यों नहीं बताया… बधाई हो. कब जाना है वहां?’’ अनामिका खुश हो कर बोली.

‘‘दीदी, परसों चलेंगे. आप हवाईजहाज की टिकट करवा देना. वे लोग हम दोनों का हवाईजहाज से आनेजाने और वहां रहनेखाने का पूरा इंतजाम करेंगे,’’ देविका ने बताया.

‘‘ठीक है. मैं तुम्हारे साथ चलूंगी,’’ अनामिका ने कहा.

‘‘हवाईजहाज से… दिमाग तो नहीं खराब हो गया है. 12 जून का हादसा भूल गई. ट्रेन की टिकट करा लो,’’ विजय ने कहा.

‘‘12 जून को क्या हुआ था?’’ देविका ने पूछा.

‘‘अरे, तुम्हें पता ही नहीं…’’ विजय हैरान था.

‘‘गांव में रहने की वजह से ज्यादा तो नहीं पता. आप ही बता दो कि ऐसा क्या हुआ था, जो आप इतना बौखला गए,’’ देविका बोली.

विजय ने बताया, ‘‘गुजरात के अहमदाबाद में गुरुवार, 12 जून को एयर इंडिया का एक हवाईजहाज क्रैश हो गया. यह बोइंग हवाईजहाज अहमदाबाद से लंदन जा रहा था और उड़ान भरने के 2 मिनट बाद ही एयरपोर्ट से सटे मेघानीनगर इलाके में हादसे का शिकार हुआ.

‘‘इस हवाईजहाज में 12 क्रू मैंबरों (2 पायलट भी) और 230 सवारियों समेत कुल 242 लोग सवार थे. इस हवाईजहाज में गुजरात के मुख्यमंत्री रह चुके विजय रुपाणी भी सवार थे.’’

‘‘ओह, यह तो बहुत बड़ी अनहोनी हो गई,’’ देविका के मुंह से निकला.

‘‘खबरों के मुताबिक, हवाईजहाज में उस समय 169 भारतीय, 53 ब्रिटिश, 7 पुर्तगाली और एक कनाडाई नागरिक सवार थे. हवाईजहाज का एक हिस्सा मेघानीनगर में बने रैजिडैंट डाक्टर्स के होस्टल पर जा कर गिरा और वहीं अटक गया. इस के बाद होस्टल में अफरातफरी मच गई.

‘‘हवाईजहाज का हिस्सा टकराने से बिल्डिंग में आग लग गई और पूरी इमारत खंडहर में बदल चुकी है. इमारत में मौजूद कई लोग घायल हुए, जिन्हें अस्पताल पहुंचाया गया. कुछ की तो जान भी चली गई,’’ विजय ने आगे बताया.

‘‘इस के बाद सरकार ने क्या कदम उठाए?’’ देविका ने पूछा.

‘‘इस हादसे के तुरंत बाद इमरजैंसी रिस्पौंस टीम की तैनाती मौके पर कर दी गई थी. दमकल, बीएसएफ और एनडीआरएफ की टीमों ने पहले दुर्घटनास्थल पर आग बुझाने का काम किया और हवाईजहाज के मलबे को हटाया गया. क्रैश प्लेन बोइंग का 787-8 ड्रीमलाइनर था, जो तकरीबन 11 साल पुराना बताया गया.’’

‘‘फिर तो बहुत सारे लोग मर गए होंगे,’’ देविका ने चिंता जताई.

विजय ने कहा, ‘‘इस हादसे के बाद अहमदाबाद पहुंचे गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, ‘‘सवा लाख लिटर ईंधन होने के चलते तापमान इतना ज्यादा था कि किसी को बचाए जाने की कोई उम्मीद नहीं थी.’’

‘‘क्या कोई भी जिंदा नहीं बचा?’’ देविका ने पूछा.

‘‘बस एक आदमी ही जिंदा बच पाया. समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, अहमदाबाद के पुलिस कमिश्नर जीएस मलिक ने फोन पर बताया कि एक शख्स विश्वास कुमार रमेश जिंदा बचा है, जो बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर हवाईजहाज की सीट 11ए पर था.’’

‘‘जिस होस्टल पर वह हवाईजहाज गिरा था, क्या वहां भी लोग मरे?’’ देविका ने चिंतित हो कर पूछा.

‘‘जो पहली सूचना मिली थी, उस के मुताबिक, बीजे मैडिकल कालेज और सिविल अस्पताल की डीन मीनाक्षी पारिख ने बताया कि इस हादसे में 4 छात्रों और छात्रों के 4 परिजनों की मौत हुई थी,’’ विजय बोला.
‘‘वहां तो बड़ा ही भयावह मंजर रहा होगा,’’ देविका ने कहा.

‘‘मैं ने बीबीसी पर खबर पढ़ी थी. उस के मुताबिक, सब से पहले छत को हवाईजहाज के पंख ने चीर दिया, उस के बाद फ्यूसलेज (हवाईजहाज का मुख्य हिस्सा) गिरा. जब मुख्य हिस्सा गिरा, तो उस से सब से ज्यादा नुकसान हुआ.

‘‘इस अफरातफरी में छात्र जान बचाने के लिए इमारत से कूदने लगे. यहां तक कि इमारत के दूसरे और तीसरे माले से भी. बाद में छात्रों ने बताया कि होस्टल की एकमात्र सीढ़ी का रास्ता मलबे की वजह से बंद हो गया था.’’

‘‘उफ, बड़ा ही भयावह मंजर रहा होगा,’’ देविका अपने दिल पर हाथ रख कर बोली.

‘‘अरे, सोचो न कि लोग इतनी बुरी तरह से जल गए कि उन के शवों की पहचान डीएनए टैस्ट के जरीए शुरू की गई. हवाईजहाज के हादसों में कोई नहीं बचता है. मैं इसलिए तो बोल रहा हूं कि तुम दोनों रेल से मुंबई चली जाओ,’’ विजय ने अपनी बात रखी.

‘‘यह क्या बात हुई… एक हादसे के बाद क्या लोग हवाईजहाज में बैठना छोड़ तो नहीं देंगे,’’ अनामिका ने कहा.

‘‘लेकिन रेल से जाने में क्या बुराई है?’’ विजय ने अपनी बात रखी.

‘‘बात रेल या बस से जाने की नहीं है. हादसा तो घर से बाहर निकलते ही हो सकता है. इस हादसे में उन होस्टल वालों का क्या कुसूर था, जो कैंटीन में बैठे खाना खा रहे थे? वे तो हवाईजहाज से सफर भी नहीं कर रहे थे,’’ अनामिका बोली.

थोड़ा रुक कर अनामिका ने दोबारा कहा, ‘‘तुम जानते हो कि रेल हादसों में भी लोग अपनी जान गंवा देते हैं. एक खबर के मुताबिक, 2023-24 में 40 रेल हादसों में कम से कम 313 लोगों की मौत हुई थी. ऐसा ही कुछ सड़क हादसों में भी होता है. देशभर में हर घंटे 53 सड़क हादसे हो रहे हैं और हर 4 मिनट में एक मौत होती है.’’

‘‘अरे, विजय साहब… इतना भी मत डरिए. मुझे और दीदी को हवाईजहाज से मुंबई जाने दीजिए. मेरी जैसी गांवदेहात की लड़की को दोबारा हवाईजहाज में बैठने का मौका कब मिलेगा, कोई नहीं जानता. फिर कौन सा हम अपने खर्च पर जा रही हैं. इतना भी अनहोनी से मत डरिए. चलो, अब नाश्ता करते हैं, मुजे बहुत तेज भूख लगी है,’’ देविका ने कहा. यह बात सुन कर उन तीनों के चेहरों पर मुसकान खिल उठी. News Story In Hindi

Family Story In Hindi: झूठी शान

Family Story In Hindi: अपने फ्लैट की बालकनी में दीपा खड़ी दिखाई दी. वह वहीं से आवाज देती हाथ के इशारे से बुला रही थी, ‘‘दीदी, ओ दीदी. कहां जा रही हो? आओ न… बगल से आने की सीढ़ी है.’’

रेखा चंद पलों तक दीपा को देखती रह गई. पहले से उस का रंग साफ हो गया था. जिस्म पर मांस भी चढ़ आया था. गाल भर आए थे. बाल भी ढंग से संवार रखे थे. कत्थई रंग की साड़ी और नीले ब्लाउज में वह खिल रही थी.

पहले दीपा गंवारों की तरह रहती थी. बातें भी बेवकूफों की तरह करती थी. चेहरा हमेशा तना रहता. अपने को ‘किराएदार’ समझ कर दुखी रहती. कभीकभार ऐंठ कर कह भी देती, ‘‘भाड़ा दे कर रहती हूं मुफ्त में नहीं…’’ तब वह रेखा के मकान में ही किराएदार की हैसियत से रहती थी.

तब रेखा ने दीपा को मकान देने से पहले सोचा था कि दोनों सहेलियों की तरह रहेंगी. उस ने कभी मकान मालकिन होने का रोब भी नहीं गांठा था. पर न जाने क्यों दीपा हमेशा दबीदबी रहती थी. अपने पति रमेश को डब्बा थमा कर कारखाने भेजती और कमरे में कैद हो जाती, टैलीविजन से दिल बहलाती.

कभीकभी दीपा सुनाती, ‘‘मेरा अपना मकान होता तो उसे सलीके से सजाती, कीमती साजसामान रखती.’’
रेखा कह देती, ‘‘हम ने तो मकान बनाने में ही इतने रुपए खर्च कर दिए कि नया और कीमती सामान खरीद ही नहीं पाए. प्रशांत की नौकरी से मकान बन गया, यही काफी है. अब आधा हिस्सा भाड़े पर उठा दिया है कि हाथ तंग न रहे.’’

भाड़े का नाम सुनते ही दीपा भड़क उठती. मुंह टेढ़ा कर लेती. तब रेखा कहती, ‘‘दीपा, मैं ने तुम्हें भाड़े के लिए नहीं, साथ हंसनेबोलने और अकेलापन दूर करने के लिए रखा है. प्रशांत दफ्तर जाते हैं तो मैं अकेली घर में रहती हूं. कोई दूसरा तो है नहीं कि गपशप मारूंगी. तुम्हारे पति भी दिन में काम पर जाते हैं. क्यों नहीं आ जाती मेरे पास… या अपने दरवाजे खुले रखो, मैं ही आ बैठूंगी.’’

‘‘मैं बंद कमरे में किसी दूसरे को ले कर पड़ी तो नहीं रहती न दीदी. कामकाज से थकी रहती हूं बस, आंख लग जाती है.’’

‘‘हंसनेबोलने से भी थकान दूर हो जाती है.’’

‘‘तुम अपने को बड़ी गुणी और तेज समझती हो दीदी… यही मुझे अच्छा नहीं लगता,’’ दीपा की बातों से रेखा झुंझला जाती.

‘‘दीपा, तुम्हें अगर मैं अच्छी नहीं लगती और तुम सहेली बन कर नहीं रह सकती तो कहीं और मकान ढूंढ़ लो.’’

तब दीपा ऐंठ कर बोलती, ‘‘दिखाने लगी न मालिकाना रुख.’’

फिर कुछ महीने बाद दीपा दूसरे मकान में चली गई. उस की जगह सुधा आ गई. वह बातबात में हंसनेहंसाने वाली और सलीकेदार औरत थी.

रेखा सुधा के साथ सीढि़यां चढ़ कर ऊपर आई. दीपा ने मुसकराते हुए पूछा, ‘‘आप कौन?’’ उस ने सुधा के बारे में जानना चाहा.

सुधा बोली, ‘‘मैं दीदी की किराएदारिन हूं. बड़ा सुखचैन है इन के यहां…’’

‘‘सुखचैन?’’ दीपा हंस पड़ी, ‘‘यहां जैसा तो नहीं होगा. यहां कंपनी की बिजली और पानी है. वहां की तरह बारबार बिजली गायब नहीं हो जाती कि अंधेरे में रहो और गरमी सहो. फिर वहां तो कुएं का पानी पीना पड़ता है.’’

रेखा को दीपा की बात तीर सी लगी. उसे महसूस हुआ जैसे दीपा ने शायद उसे जलील करने के लिए बुलाया है. सच ही उस का मकान कंपनी के इलाके से बाहर था, इसलिए सरकारी बिजली लेनी पड़ी थी, जो आतीजाती रहती थी.

दीपा ने दोनों को सोफे पर बैठाया. पहले सोफा नहीं था. शायद फ्लैट में आने के बाद नया ले लिया था.

फिर दीपा दूसरे कमरे में गई और 2 गिलासों में फ्रिज का ठंडा पानी ले आई. 2 प्लेटों में बिसकुट और नमकीन भी थी.

‘‘दीदी, चाय बनाऊं या कौफी? कहो तो शरबत…?’’

‘‘नहींनहीं… यही काफी?है,’’ रेखा जल्दी से बोली.

‘‘मेरी बचत की न सोचो दीदी, भले ही खुद बचत कर के कोठी बना लो,’’ दीपा हंस कर बोली. रेखा भला क्या बोलती, वह सुधा की ओर देखने लगी.

पानी पीते हुए रेखा पूछ बैठी, ‘‘दीपा, क्या कंपनी की ओर से यह फ्लैट मिला है?’’

‘‘नहीं, भाड़े पर लिया है. इन के एक दोस्त को मिला था. पर उस का अपना मकान है, बस्ती में. वह फ्लैट में आना नहीं चाहता था, सो हमें भाड़े पर दे दिया. 1 लाख रुपए ‘पगड़ी’ दे कर 5,000 देने पड़ते हैं हर महीने.

‘‘बड़ा आराम है यहां. न कोई झिकझिक न कोई दबाव और न ही कोई ‘किराएदार’ कहने वाला. हम तो अपने रहनसहन को ऊंचा उठाने में लगे हुए हैं.’’

फिर वह ताना सा देती हुई बोली, ‘‘दीदी, हमारे ठाटबाट देख कर जलन तो तुम्हें हो ही रही होगी. तुम भी न जाने क्यों बस्ती में रहने पर तुली हो. अरे, अपना मकान है तो क्या हुआ ऐसा सुख तो नहीं है न वहां? देखो, चारों ओर कितना खुलाखुला है.’’

रेखा भी थोड़ी देर के लिए उदास दिल से सोचने लगी, ‘सच, अब तक मकान बनाने में रुपए फेंकती रही, कभी बढि़या सामान से घर भरने के लिए सोचा ही नहीं. सिर्फ टैलीविजन, पंखा, कुरसी, मेज होने से क्या होता है, फ्रिज, कूलर, सोफा वगैरह भी होना चाहिए.

‘पता नहीं क्यों, प्रशांत के सिर पर शानदार मकान बनाने का भूत सवार है. अब तो दूसरी मंजिल की तैयारी चल रही है.’

‘‘दीपा, अब मैं चलती हूं,’’ थोड़ी देर बाद रेखा बोली.

‘‘क्यों, सिरदर्द होने लगा है क्या?’’

‘‘नहीं, बाजार जाना है.’’

‘‘क्यों दीदी, तुम्हारे पति को कंपनी की ओर से कब तक फ्लैट मिलेगा?’’

‘‘अभी कुछ पता नहीं.’’

रेखा मन पर ढेर सारा बोझ ले कर बाहर आ गई. सुधा पर भी शायद असर हुआ था. वह बोली, ‘‘दीदी, मेरे पति को भी क्वार्टर मिलेगा तो चली जाऊंगी.’’

‘‘चली जाना, रोकूंगी नहीं.’’

‘‘बुरा तो नहीं मान गईं?’’

‘‘नहीं, जो सच है, उसे मानना ही होगा न.’’

रेखा का दिल दुखी सा हो गया. वह थोड़ी सी सब्जी ले कर घर लौट आई.

प्रशांत घर में ही था. वह मिस्तरी से ऊपरी मंजिल के बारे में बात कर रहा था.

‘‘क्या बात है रेखा? उदासउदास सी क्यों लग रही हो?’’ प्रशांत उस के पास आ खड़ा हुआ.

‘‘दीपा मिली थी… अरे वही, पहले वाली किराएदारिन.’’

‘‘तो क्या हुआ?’’

‘‘उस के ठाट देखते ही बनते हैं. क्या नहीं है उस के घर में? फ्लैट में रहती है. फ्रिज, कूलर, सोफा, अलमारी, मिक्सी सब है. अपने यहां क्या है? तुम तो सिर्फ घर बनाने में लगे हो.’’

प्रशांत हंस पड़ा, ‘‘रेखा, कहो तो काम बंद कर दूं और कल ही उठा लाऊं सब सामान. पर सोचता हूं कि पहले शानदार मकान पूरा हो जाए. इस से हमारी शान बढ़ेगी, दोस्तों और रिश्तेदारों में इज्जत होगी.’’

रेखा ने प्रशांत से बहस न की. वह महसूस करने लगी कि वह अपनी जगह सही है पर दीपा के ताने उसे अब भी कांटों से चुभ रहे थे.

रेखा यह भी सोच रही थी, ‘प्रशांत को जब कंपनी की ओर से फ्लैट या क्वार्टर मिलेगा तो उस में जा कर रहनसहन को ऊंचा उठाने की कोशिश करेगी.’

उस ने एक दिन प्रशांत से पूछा, ‘‘तुम्हें कब क्वार्टर मिलने वाला है?’’

‘‘क्या तुम यहां से भागना चाहती हो? दीपा ने शायद तुम्हें दुखी कर दिया है?’’ प्रशांत बोला.

अपनी कमजोरी पकड़ी जाती देख वह उठ कर पानी पीने लगी. फिर बोली, ‘‘कुएं का पानी कुछ खारा लगता है. साफ करा देना या ब्लीचिंग पाउडर डलवा देना.’’

‘‘4 महीने पहले ही तो कुआं साफ कराया था.’’

‘‘एक फ्रिज लेना ठीक रहेगा.’’

‘‘ले लेंगे. वैसे कुएं का पानी गरमी में ठंडा और जाड़े में गरम रहता है.’’

एक दिन सुधा बोली, ‘‘दीदी, एक अच्छी सी साड़ी खरीदनी है… बाजार चलो न.’’

सुधा की जिद पर रेखा तैयार होने लगी. उसे कीमती साड़ी में देख सुधा पूछ बैठी, ‘‘दीदी, हम किसी बरात में तो नहीं जा रहे हैं?’’

‘‘अरे दीपा मिल गई तो मुझे टोक देगी. साधारण साड़ी में देख फब्ती कसेगी. उस का ठिकाना नहीं कि कब क्या बोल दे.’’

दोनों चल पड़ीं. दीपा का फ्लैट निकट आता जा रहा था.

‘‘दीदी, दीपा के घर के सामने औरतों की भीड़ क्यों है? चलो देखें तो,’’ सुधा बोली. फिर दोनों उधर बढ़ गई.

कुछ औरतें एक सब्जी बेचने वाले को घेर कर खड़ी थीं. उन के बीच दीपा का चेहरा लाल हो रहा था.

रेखा और सुधा को देख कर दीपा झल्ला कर बोली, ‘‘अरे सब्जी वाले, मैं भाग तो नहीं रही हूं. सिर्फ 300 के लिए मेरी बेइज्जती पर उतर आए हो. तनख्वाह मिलते ही पूरा चुकता कर दूंगी.’’

‘‘आप तो हर महीने यही कहती हैं बहनजी. पर देती नहीं… उलटे उधार लेती जाती हैं,’’ सब्जी वाला भुनभुनाता हुआ चला गया. दूसरी औरतें भी हंसती हुई चली गईं.

दीपा रेखा और सुधा को ऊपर ले गई. उन के बैठते ही बोली, ‘‘देखा न दीदी, बेइज्जती कर गया वह. ठीक
ही कहा गया है कि छोटों के मुंह नहीं लगना चाहिए.’’

‘‘तुम कौन सी बड़ी हो? बड़ी होती तो उधार नहीं लेती,’’ रेखा की बात से दीपा तिलमिला उठी. वह बोली, ‘‘तंगी तो हर किसी को होती है. सरकार भी उधार लेतीदेती है.’’

फिर दीपा ट्रे में 2 गिलास ठंडा पानी ले आई और बोली, ‘‘उन को बिसकुट लाने के लिए बोला था, पर नहीं लाए. रुकोगी तो शरबत बना दूंगी.’’

‘‘चलो, मैं तुम्हें बाजार में आइसक्रीम खिलाऊंगी,’’ रेखा ने कहा तो दीपा साथ चलने को तैयार हो गई. उस ने भी कीमती साड़ी पहन ली.

दुकान में घुसते ही मालिक दीपा की ओर देख कर बोला, ‘‘बहनजी, हम उधार देने से रहे… पहले ही 2,000 चढ़े हैं.’’

दीपा का चेहरा लाल हो उठा.

रेखा बोल उठी, ‘‘भाई साहब, हम नकद लेने आई हैं.’’

दीपा बीचबीच में रेखा को देख लेती थी. उस से नजर मिलाने की उस की हिम्मत नहीं हो रही थी.

आइसक्रीम खाते वक्त रेखा ने पूछ लिया, ‘‘क्यों दीपा, ज्यादा कर्ज तो नहीं चढ़ा लिया है, तू ने?’’

‘‘इस की परवाह मुझे नहीं. धीरेधीरे दूंगी. अपने को रुपयों की कमी नहीं. अभी हाथ तंग है. पिछले महीने मैं ने प्रेमलाल का उधार चुकता किया था.’’

‘‘प्रेमलाल को किसी प्यारेलाल से ले कर दिया होगा, यही हेराफेरी है न?’’ रेखा हंस पड़ी. दीपा का चेहरा देखते ही बनता था.

सुधा को भी हंसी आ गई, पर मुंह पर पल्लू रख लिया.

‘‘दीदी, इस में छिपाना क्या… तुम तो अपनी हो. एक बात कहूं?’’ दीपा बोली.

‘‘कहो,’’ रेखा ने कहा.

‘‘तुम मुझे 10,000 दे दो तो दूसरों के सारे कर्ज उतार दूं. उन लोगों से बातें तो नहीं सुननी पड़ेंगी. तुम्हारा कर्ज धीरेधीरे उतार दूंगी.’’

‘‘कहीं रुपए ले कर कीमती साड़ी खरीद लाई तो कर्जे रह जाएंगे. वैसे भी मैं मकान की दूसरी मंजिल बनाने में लगी हूं.’’

दीपा झुंझला गई, ‘‘तुम तो हमेशा मकान में ही रुपए लगाती रहती हो कि भाड़ा आता रहे. किसी की मदद करने से पहले भी तुम दूर रहती थीं. यह ठीक नहीं कि देखसुन कर भी बहाना बनाया जाए. अपना तो वह, जो दुख में साथ दे.’’

दीपा का साथ छूटते ही रेखा हंसने लगी. सुधा ने भी उस का साथ दिया.

घर में प्रशांत ने भी सुना तो हंस पड़ा. वह बोला, ‘‘रेखा, तुम्हारी बुनियाद मजबूत है और उन की खोखली.’’

मकान का काम पूरा हो गया तो रेखा ऊपरी मंजिल में रहने लगी. नीचे का हिस्सा किराए पर देने की सोच ही रही थी कि एक दिन दीपा आ गई.

रेखा ने पूछा, ‘‘कहो, कैसे आना हुआ?’’

‘‘तुम्हारे कुएं का पानी मीठा लग रहा है न, सो मेरा मन यहां आने को करने लगा है.’’ दीपा बोली.

‘‘मजाक मत करो.’’ रेखा बोली.

‘‘दीदी, तुम नीचे के 2 कमरे हमें ही किराए पर दे दो न… आधे में सुधा है ही. हम तीनों सहेलियों की तरह रह लेंगी. मजा भी आएगा.’’

‘‘बात क्या है, साफसाफ कहो?’’ रेखा ने पूछा.

‘‘फ्लैट मालिक हमें वह घर खाली करने को कह रहा है.’’

‘‘तुम्हारा दिल यहां नहीं लगेगा. फिर रहनसहन में भी फर्क आ जाएगा.’’

‘‘यह कहो न कि देने का मन नहीं. सोचती हूं कि तुम ही ठीक हो. तुम्हारा अपना मकान है, किसी का रोबदाब नहीं. भाड़े का झंझट नहीं… कहीं भाड़े का मकान खोजने की भागदौड़ नहीं.’’ दीपा बोली.

रेखा समझ न सकी कि क्या जवाब दे. वह उस की आदतें अच्छी तरह जानती थी.

प्रशांत ने ही हल ढूंढ़ निकाला. वह बोला, ‘‘4-5 महीने में मुझे कंपनी की ओर से क्वार्टर मिल जाएगा. तुम उसे ही ले लेना. इस से तुम्हारा रहनसहन भी ऊंचा रहेगा.’’

‘‘कितनी पगड़ी देनी होगी?’’ दीपा ने पूछा

ढाई लाख का रेट चल रहा है, ऊपर से भाड़े के 6,000 रुपए.’’

‘‘मैं पगड़ी तो नहीं दे सकूंगी. वैसे आप सब अपने हैं… और अपनों से क्या लेना. हां, भाड़े के दे दूंगी.’’

‘‘अगर रहनसहन ऊंचा बनाए रखना है तो खर्च से डर क्यों? क्वार्टर लेने के लिए लोग पगड़ी और भाड़ा ले कर पीछे घूमते रहते हैं,’’ प्रशांत मुसकराया.

फिर एक दिन पता चला कि दीपा पर ढेर सारा कर्ज है. उस ने कर्ज चुकाने के लिए फ्रिज, अलमारी और सोफा बेच दिया है.

एक बार रेखा सुधा के साथ दीपा के फ्लैट पर गई तो पता चला कि वह वहां से एक बस्ती में रहने चली गई है. वहां अब वह एक कमरे में ही रह रही है, 2,000 रुपए किराया दे कर.

रहनसहन ऊंचा करने के चक्कर में कर्जदार हो कर वह नीचे ही गिरी थी. Family Story In Hindi

Social Story In Hindi: जाति क्यों नहीं जाती

Social Story In Hindi, लेखक – शकील प्रेम

रघुराम छोटी जाति का था. उस का बेटा सिपाही भरती हुआ, तो उस ने भोज कराया, पर ऊंची जाति का जानकीदास भोज में नहीं आया. उसे निराशा हुई. इसी बीच जानकीदास और एक ठेकेदार गंगू में घर की बिजली का ठेका हुआ, पर जानकीदास ने उसे कम पैसे दिए. यह मामला डीएम तक गया. क्या मामला सुलझ पाया?

रघुराम के बेटे का सिपाही पद के लिए सिलैक्शन हुआ था. घर वाले बहुत खुश थे. उन्हें अपने होनहार लड़के पर गर्व था. दौड़ में वह पूरे राज्य में 9वें नंबर पर आया था. 2 दिन पहले लड़के का जौइनिंग लैटर भी आ चुका था. तब से रघुराम के परिवार में खुशी का माहौल था. यह अलग बात थी कि घूस देने में जमीन चली गई थी, लेकिन अब रघुराम को इस का कोई मलाल नहीं था.

गांव की जिस बस्ती में रघुराम रहता था, वहां के लिए यह बहुत बड़ी बात थी, क्योंकि उन लोगों की पूरी बस्ती में एक भी सरकारी नौकरी वाला नहीं था. पहली बार उन की जाति का कोई लड़का सिपाही बनने वाला था.

हालांकि, उसी गांव के कई दबंग परिवारों में बड़ीबड़ी नौकरियां थीं. कोई प्रोफैसर, तो कोई दारोगा. टीचर तो कई थे. कुछ रेलवे में भी थे, लेकिन इस दलित बस्ती में यह पहली सरकारी नौकरी थी.

रघुराम ने इस खुशी में भोज का आयोजन किया, जिस में उस ने बड़े लोगों को भी न्योता दिया. जानकीदास को भी न्योता दिया गया, लेकिन उस के घर से कोई नहीं आया, तो रघुराम को इस बात से बहुत दुख पहुंचा.

रघुराम अगले कई दिनों तक अपनी बस्ती के लोगों से कहता रहा, ‘‘अरे, ये बड़े लोग जब भी कोई काम कहते हैं हम बिना मोलभाव किए कर देते हैं, लेकिन आज मेरे बेटे की नौकरी से इन की छाती सुलग गई है.

‘‘अब देखते हैं, इन बड़े लोगों का काम कौन करता है? अब सब से पहले दिहाड़ी तय होगी, उस के बाद ही कोई काम होगा.’’

रघुराम ने पूरी बस्ती को चेता दिया था कि उन लोगों का कोई भी काम हो तो नहीं करना है. अगर करना ही पड़ जाए तो पहले मजदूरी तय कर के ही करना है. किसी से अब कोई लागलपेट नहीं रखना है.

रघुराम अपनी बस्ती में पहले से ही रोबदाब रखता था. अब तो वह एक सिपाही बेटे का बाप हो चुका था, इसलिए बस्ती पर उस का रोब सीधे डबल हो गया था.

एक महीने के बाद एक सुबह रघुराम हाथ में थैला लिए घर का सामान लेने पास की किराना की दुकान की ओर जा रहा था कि तभी उस के कानों में आवाज आई, ‘‘रघु चाचा…’’

रघुराम ने मुड़ कर देखा तो वह गंगू था जो उस की ओर साइकिल लिए चला आ रहा था.

‘‘चाचा, तुम से एक जरूरी काम है,’’ गंगू बोला.

‘‘इतना भी क्या जरूरी काम है? मैं दुकान से कुछ सामान लेने जा रहा हूं,’’ रघुराम बोला.

‘‘चाचा, तुम सामान ले कर आ जाओ, मैं तुम्हारे घर बैठा हूं,’’ गंगू ने कहा.

‘‘ठीक है, तू घर चल. मैं 10 मिनट में आ रहा हूं,’’ रघुराम बोला.

एक घंटे के बाद रघुराम हाथमुंह धो कर घर की चारपाई पर गंगू के साथ बैठा चाय पी रहा था.

‘‘हां गंगू, अब बोल कि तुझे क्या परेशानी है?’’ रघुराम ने पूछा.

‘‘चाचा, जानकीदास का जो नया मकान बना है न, मैं ने उस मकान में बिजली का ठेका लिया था, जो 20,000 रुपए में तय हुआ था. लेकिन अब काम पूरा हो गया तो जानकीदास ने 6,000 रुपए थमाए और बोला कि इस से ज्यादा की मेरी औकात नहीं है.’’

गंगू के मुंह से इतना सुनते ही रघुराम को गुस्सा आ गया और वह बोला, ‘‘मैं ने पहले ही तुम लोगों से कहा था कि इन ऊंचे लोगों का कोई भी काम मेरे बिना पूछे नहीं करना है, लेकिन अब मेरी सुनता कौन है. अब जाओ रोओ, मरो मैं क्या कर सकता हूं…

‘‘अगर तुम ने मुझे पहले बताया होता तो जानकीदास की इतनी मजाल नहीं होती…’’ रघुराम ने कहा.

गंगू ने कहा, ‘‘चाचा, मुझ से गलती हो गई. मुझे माफ कर दो और मेरा बकाया पैसा दिलवा दो. पूरा नहीं तो 6,000 रुपए और मिल जाएंगे, तो मेरा काम बन जाएगा.’’

‘‘ठीक है, पहले तू चाय पी ले, उस के बाद चल मेरे साथ,’’ रघुराम ने कुछ सोचते हुए कहा.

जानकीदास के घर पर रघु ने काफी हंगामा खड़ा किया.

जानकीदास बोला, ‘‘इस गंगू ने मेरे पूरे मकान का सत्यानाश कर दिया. जब इस को बिजली का काम आता ही नहीं तो क्यों जिम्मेदारी ली. बल्ब का बटन दबाओ तो पंखा चलता है. बाथरूम में भी ठीक से वायरिंग नहीं की. बाकी सारा काम भी उलटासीधा किया है. सब दोबारा करवाना पड़ेगा.’’

गंगू बोला, ‘‘नहीं रघु चाचा. यह सरासर ?ाठ है. मैं पिछले 5 साल से यही काम कर रहा हूं. गुजरात, दिल्ली और पंजाब तक में मैं ने काम किया है. पिछले महीने ही महाराष्ट्र से काम खत्म कर के आया हूं.

‘‘मैं गांव आया तो इन्होंने ही मु?ा से कहा कि बिजली की फिटिंग का काम बाकी है. चलो, तुम कर दो. 20,000 रुपए में ठेका हुआ. काम पूरा हो गया तो इन्होंने खुद ही कनैक्शन उलटासीधा कर दिया, ताकि मेरे काम में गलती निकाल कर पूरे पैसे न देने पड़ें.’’

रघुराम ने गंगू की ओर से जानकीदास पर अपनी सारी भड़ास निकाल दी. बात बनने के बजाय और बिगड़ गई. मामला बातचीत से शुरू हो कर हाथापाई तक पहुंच गया. किसी तरह मास्टरजी के बीचबचाव के बाद दोनों अलग हुए.

इस के बाद जानकीदास ने एक फूटी कौड़ी और देने से इनकार कर दिया और बोला, ‘‘तेरा बेटा सिपाही बना है तो इतना घमंड और अगर वह ससुरा कलक्टर बन गया होता तब तू न जाने क्या करता. जा, तुझे जो करना है कर ले, अब एक फूटी कौड़ी भी मैं इस गंगू को नहीं दूंगा.’’

रघुराम के लिए अब बात महज चंद रुपयों की नहीं रह गई थी, बल्कि उस की इज्जत का सवाल बन गया था. उसे अब हर हाल में जानकीदास को सबक सिखाना था.

रघुराम अपनी बस्ती के कुछ लोगों को ले कर थाने पहुंचा और हरिजन ऐक्ट में मारपीट का मामला दर्ज कराने की कोशिश की, लेकिन दारोगा को पहले ही खबर मिल चुकी थी. उस ने रघुराम को समझाया और किसी तरह उसे वापस घर भेज दिया.

घर पहुंच कर रघुराम को लगा कि दारोगा और जानकीदास की जाति एक होने की वजह से दारोगा ने उस की नहीं सुनी.

अगले दिन रघुराम अपने साथ कुछ लोगों को ले कर सीधे डीएम के यहां पहुंचा. डीएम से मुलाकात होने पर रघुराम ने कहा, ‘‘हमारे गांव के कुछ ऊंची जाति के लोगों ने हमारा जीना दूभर किया हुआ है. वे हम से छुआछूत करते हैं और काम करवा कर पूरा पैसा नहीं देते हैं. पैसा मांगने जाओ तो मारते हैं.’’

डीएम ने कहा, ‘‘कल हमारा उस तरफ का दौरा भी है, इसलिए हम कल 12 बजे तक तुम्हारे गांव आएंगे. तुम अभी जाओ.’’

रघुराम घर लौट आया, लेकिन उसे डीएम की बात पर रत्तीभर भी यकीन नहीं था. उसे लगा कि उस ने उसे बेवकूफ बना कर भगा दिया है.

अगले दिन रघुराम अपनी चारपाई पर बैठा बस्ती के कुछ लोगों के साथ बात कर रहा था कि तभी गंगू हड़बड़ाता हुआ उस के दरवाजे पर पहुंचा और चिल्ला कर बोला, ‘‘डीएम साहब आए हैं. प्रधान के यहां बैठे हैं. तुम्हें बुला रहे है. दारोगा भी हैं साथ में और डीएम साहब ने जानकीदास को भी बुलाया है.’’

थोड़ी देर में प्रधान के घर लोगों का मजमा लगा हुआ था. बाहर डीएम की गाड़ी के साथ 4-5 गाडि़यां और लगी हुई थीं. डीएम साहब सामने कुरसी पर बैठे थे. दारोगा और प्रधान दोनों चारपाई पर बैठे थे. सामने वाली चारपाई पर जानकीदास और कुछ और लोग थे.

रघुराम ने दारोगा की ओर देखे बिना सीधे डीएम साहब को नमस्कार किया और खाली पड़ी कुरसी पर बैठ गया.

डीएम साहब की फटकार के बाद जानकीदास ने गंगू के बकाया पैसे दे दिए. डीएम साहब ने रघुराम से कहा, ‘‘अब से कोई भी मजदूरी रोके तो सीधे डीएम औफिस चले आना, सब को ठीक कर दूंगा. अब तो तुम्हें कोई शिकायत नहीं होनी चाहिए, फिर भी और कोई शिकायत है, तो अभी बता दो.’’

रघुराम ने कहा, ‘‘ये लोग हम से छुआछूत करते हैं. हमारे यहां भोज नहीं करते, क्योंकि हम निचली जाति के हैं. इस जानकीदास से पूछो. मेरे बेटे की नौकरी लगने की खुशी में मैं ने भोज किया था. जानकीदास को न्योता भेजा था, लेकिन यह नहीं आया, क्योंकि मैं छोटी जाति से हूं न.’’

डीएम साहब ने पूछा, ‘‘तुम किस जाति से हो?’’

रघुराम ने जवाब दिया, ‘‘मल्लाह.’’

डीएम ने फिर पूछा, ‘‘तुम्हारी बस्ती में और कौनकौन सी जातियां हैं?’’

रघुराम बोला, ‘‘हमारी बस्ती में केवल हमारी जाति के ही लोग रहते हैं. दूसरी छोटी जाति के लोगों का टोला अलग है.’’

डीएम ने बाल्मीकि टोले से एक आदमी को बुलाया और उस से पूछा, ‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘जी हुजूर, मेरा नाम भुवन है,’’ उस आदमी ने हाथ जोड़ कर कहा.

डीएम साहब ने कहा, ‘‘भुवन, जाओ और अपने घर से एक थाली में खिचड़ी बनवा लाओ.’’

भुवन ने आदेश का पालन किया. थोड़ी देर में वह थाली हाथ में लिए हाजिर था, जो अब भी थोड़ी गरम थी. सब लोग इस नजारे को हैरत भरी निगाहों से देख रहे थे.

डीएम ने प्रधान के यहां से चम्मच मंगवाया और पहले खुद 2-3 चम्मच खिचड़ी खाई, फिर दारोगा को बोला
कि खाओ तो दारोगा ने भी 2 चम्मच खिचड़ी निगल ली. उस के बाद डीएम ने जानकीदास से कहा, ‘‘लो भई, तुम भी खाओ.’’

न चाहते हुए जानकीदास ने भी एक चम्मच खिचड़ी खा ही ली. अब बारी रघुराम की थी. डीएम ने थाली उस के आगे बढ़ा दी और बोले, ‘‘लो, तुम भी खाओ. भुवन ने बड़ी स्वाद खिचड़ी बनाई है.’’

भुवन ने कहा, ‘‘नहीं सरकार, मैं ने नहीं बनाई, बल्कि मेरी बीवी ने बनाई है. जल्दबाजी में शायद थोड़ी कच्ची रह गई है.’’

डीएम साहब ने कहा, ‘‘अरे नहीं भुवन, ऐसी खिचड़ी तो मैं ने जिंदगी में पहली बार खाई है. लाजवाब है.’’

डीएम साहब ने थाली रघुराम के सामने रख दी, लेकिन उसे तो जैसे सांप सूंघ गया था. उस के सामने खिचड़ी पड़ी रही, लेकिन उस ने उसे हाथ तक नहीं लगाया.

थोड़ी देर इंतजार करने के बाद डीएम साहब ने रघुराम के सामने से थाली उठा ली और प्रधान के यहां से थोड़ा अचार मंगा कर खुद ही बची हुई खिचड़ी डकार गए.

डीएम साहब जाने लगे तो उन्होंने जानकीदास से कहा, ‘‘जातिवाद हमारे समाज की काली सचाई है. जब तक तुम जैसे लोग अपने श्रेष्ठ होने का भरम पाले रखोगे, तब तक यह सामाजिक कलंक बना रहेगा, इसलिए जितनी जल्दी हो सके अपना जातीय दंभ छोड़ कर इनसान बन जाओ.’’

जातेजाते डीएम साहब ने रघुराम से भी कहा, ‘‘जातिवाद खुद को दूसरों से श्रेष्ठ समझने की एक दिमागी बीमारी भी है, जिस से पूरा समाज ग्रसित है. तुम दूसरों के बदलने की उम्मीद तब तक नहीं कर सकते, जब तक तुम खुद इस बीमारी से न निकल जाओ, इसलिए आज के बाद कभी भी किसी से भी जातिवाद या छुआछूत की शिकायत मत करना.

‘‘पहले तुम खुद इस बीमारी से नजात पा जाओ, उस के बाद ही किसी और से इस की उम्मीद करना. जब तक तुम्हारा बरताव तुम से नीचे के लोगों के प्रति जायज नहीं है, तब तक तुम्हें अपने से ऊपर के लोगों पर उंगली उठाने का कोई हक नहीं है.’’

शर्मिंदा रघुराम नजरें नीची किए वहीं खड़ा रहा. Social Story In Hindi

Funny Story In Hindi: नाक के नीचे

Funny Story In Hindi: दुनिया में बहुत तरह की नाक होती हैं. लंबी नाक, मोटी नाक, पतली नाक वगैरह. नाक की बनावट भौगोलिक हालात और आबोहवा के असर के चलते भी अलगअलग होती है.

हमारे देश में बहुत सी बातें कहीं गई हैं, जो मुहावरों में देखीसुनी और पढ़ी जाती हैं. नाक का बाल होना. मतलब बहुत ही खास शख्स होना. नाकों चने चबवाना. मतलब बहुत ज्यादा परेशान करना. क्रिकेट और दूसरे खेलों में लोग देश की इज्जत बचाने की बात को नाक बचाना कह लेते हैं.

अजीब बात है कि जिस नाक को हम जिंदगीभर बहुत देर तक देख भी नहीं पाते, उस को ले कर जान दिए रहते हैं. दिनभर में एक बार अगर गलती से भी अपनी नाक को कभी ढंग से हम देख पाएं, तो शायद यह बहुत बड़ी बात होगी. ऐसा सब के साथ होता है.

कभी आप रोजमर्रा की जिंदगी से समय निकाल कर देखिएगा. आप अपनी नाक को एक मिनट भी ठीक से नहीं देख पाते. जिस नाक को हम अपनी दोनों आंखों की पुतलियों को बहुत सीधा कर के भी नहीं देख पाते, उसी नाक के लिए हम जिंदगीभर लड़ते रहते हैं.

यह आखिर है क्या? यकीनन हमारी खीझ. इसी को हम नाक कहते हैं. जब हम बेबस हो जाते हैं और अपनी खीझ को नहीं मिटा पाते हैं, तो नाक का सवाल बना लेते हैं. अपनों से, खासकर रिश्तेदारों से हम मनमुटाव कर लेते हैं. उन के जैसा मकान, उन के जैसी कार, उन के जितनी पगार, उन के जितना बैंक बैलेंस जब तक नहीं हो जाता, तब तक हम नाक उठा कर नहीं चल सकते. हमारे सामने भला उन की औकात ही क्या है?

इसी नाक के लिए आदमी तीन की जगह तेरह देने को तैयार हो जाता है. टैंडर मुझे मिलना चाहिए. नुकसान होगा तो होगा. बहुत कमाया है. इस बार घर से घाटा देंगे, लेकिन तुम को खत्म कर देंगे. बच्चू, तुम को यह टैंडर नहीं लेने देंगे. तुम को नाकों चने चबवा देंगे. हो किस फेर में. अपना माल खरीद के दाम पर बचेंगे, लेकिन तुम को नहीं बेचने देंगे.

लोग आन में कान कटाने को तैयार रहते हैं, लेकिन आन में कान नहीं कटता, बल्कि नाक कट जाती है और उन को पता भी नहीं चलता.

खापों में नाक बहुत ऊंची है. उन के फैसले नाक के लिए किए जाते हैं. वहां औनर किलिंग आम बात है. नाक के लिए जिंदा लोग टांग दिए जाते हैं, नहीं तो टंग जाते हैं. हुक्कापानी बंद होने का खतरा है. समाज से खदेड़े जाने का डर. रोटीपानी, दियासलाई न मिल पाने का दुख.

कहते हैं कि कुत्ते की नाक बहुत तेज होती है, लेकिन कुत्तों में नाक के लिए लड़ाई नहीं होती. कुत्ते नाक के लिए नहीं लड़ते. आदमी नाक के लिए लड़ता है. इतना लड़ता है कि लड़तेलड़ते वह आदमी से कब जानवर बन जाता है, उस को पता ही नहीं चलता. इस मामले में कुत्ते आदमी से ज्यादा समझदार हैं. कम से कम बेअक्ल हो कर अक्ल वालों को मात दे रहे हैं.

औरतों की नाक बहुत तेज होती है. वे गांवसमाज में सूंघ लेती हैं कि किस का किस से चक्कर चल रहा है. किस का पेट कितने महीने का है. किस के घर में बाप और बेटे की नहीं बन रही है. किस घर में सासबहू में अनबन है. गांवसमाज की औरतों के नाक के सूंघने की ताकत सब से ज्यादा होती है.

सत्तासीन या सरकार में बैठे लोग बड़ेबड़े घोटालों को अंजाम दे देते हैं और यह उसी नाक का कमाल है कि जिन प्रशासनिक अमलों की नाक के नीचे यह सब होता है, उन को कुछ पता ही नहीं होता है. Funny Story In Hindi

Story In Hindi: घुसपैठिए

Story In Hindi: सरहद पर पहुंचते ही सरगना ने कहा, ‘‘देखो, तुम सब घुसपैठिए हो. सामने हिंदुस्तान नाम की बहुत बड़ी सराय है. एक बार किसी तरह सीमा सुरक्षा बल से बच कर दाखिल हो जाएं, उस के बाद उस भीड़ भरे देश में कहीं भी समा जाओ. शासन और प्रशासन भ्रष्ट हैं ही. पैसा फेंको और अपने सारे कागजात बनवा लो.

राशनकार्ड, वोटरकार्ड और इस देश की नागरिकता हासिल.’’

एक घुसपैठिए ने पूछा, ‘‘आप तो कह रहे थे कि सरहद पार करवाने के लिए भारतीय सेना में हमारे कुछ मददगार हैं?’’

सरगना बोला, ‘‘हां हैं, लेकिन अभी उन की ड्यूटी नहीं है. मुझे दूसरी घुसपैठिया खेप भी भेजनी है. बहुत ज्यादा लोगों को एकसाथ नहीं भेज सकते. मेरा रोज का काम है. हर पड़ोसी देश से घुसपैठिए घुसते हैं.

कभी मीडिया वाले ज्यादा हल्ला मचाते हैं, तो कुछ सख्ती हो जाती है.’’

‘‘लेकिन अगर हम पकड़े गए तो?’’ घुसपैठिए ने पूछा.

‘‘कुछ नहीं होगा. तुम्हें वापस भेज दिया जाएगा. वैसे ऐसा होगा नहीं. कब, किस समय सरहद पार करनी है, मुझे सारी जानकारी है. एक बार घुस गए तो बात खत्म.

‘‘हां, अगर वहां पहुंच कर पहचानपत्र बनवाने में कोई समस्या हो तो फोन करना. अपने एजेंट हैं. सब हो जाएगा. चिंता करने की जरूरत नहीं.’’

यह नजारा भारतबंगलादेश की सरहद का है. यह नजारा भारत और पाकिस्तान की सरहद का भी हो सकता है. भारतश्रीलंका, भारतनेपाल की सरहद का भी. नेपालियों को तो वैसे भी खुली छूट है. इस देश में कोई भी कहीं से भी आ कर बस सकता है. घुसपैठिया बन कर घुसता है, फिर मूल निवासी बन कर अपने लोगों को बुलाता है, बसाता है और बसनेबसाने का यह सिलसिला लगातार जारी रहता है.

अचानक सरगना ने इशारा किया और घुसपैठिए भारत की सरहद में दाखिल हो गए. यहां काम दिलाने, बसाने के लिए उन के धर्म, जाति, भाषा वाले पहले से ही थे. फिर दलाल तो हैं ही. उन की आमदनी का जरीया है. उन का धंधा है.

न जाने कितने पाकिस्तानी, बंगलादेशी, नेपाली, श्रीलंकाई भारत के मूल निवासी बन कर यहां की आबादी बढ़ा रहे हैं. मूल निवासी की भूख और बेकारी पहले से ही है. उन की अपनी समस्याएं तो हैं ही, उस पर ये घुसपैठिए जो पूरा बैलेंस बिगाड़ कर रख देते हैं.

शरणार्थी आ ही रहे हैं. जो नियम से चलते हैं. कानून का पालन करते हैं, सो आज सालों बाद भी शरणार्थी बने हुए हैं. उन का अपना निजी कुछ भी नहीं है. जो गैरकानूनी तरीका अपनाते हैं वे मूल निवासी बन जाते हैं.

17 लाख शरणार्थी अकेले जम्मू में हैं. घुसपैठिए भी अपने देश की भूख बेकारी से दुखी हो कर रोटी, छत
की तलाश में घुसते हैं, वरना किसे पड़ी है अपनी जमीन, अपना देश छोड़ कर जाने की.

पूर्वोत्तर के इस राज्य में लाखों घुसपैठिए यहां की नागरिकता ले कर पूरे का पूरा शहर बसा चुके थे. इन्हें
20 सालों से ज्यादा हो गए यहां रहते हुए. इस धरती पर उन्होंने मकान बनाया. खेतीबारी की. जमीन खरीद कर किसान बने. उन के बच्चे यहीं की आबोहवा में पल कर बड़े हुए. यहीं उन की शादी हुई. उन के बच्चे हुए.

नेताओं को यह बात मालूम थी. वे इन्हें अपने वोट बैंक के रूप में भुनाते रहे और यह भरोसा देते रहे कि उन की सरकार बनी तो उन्हें यहीं का निवासी माना जाएगा. हर पार्टी यही कहती और सरकार बनने के बाद चुप्पी साध लेती.

40 साल के आसपास हो चुके थे, जब अहमद खान पूर्वोत्तर के इस राज्य में बसे थे. जब वे आए थे तो अपने कुछ रिश्तेदारों और साथियों के साथ यहां आ कर मजदूरी करना शुरू किया था. धीरेधीरे अपनी मेहनत से उन्होंने जमीन खरीदी. मकान खरीदा.

उस समय यहां के स्थानीय निवासियों ने भी उन की मदद की. यहीं उन की शादी हुई, फिर उन के बच्चों की शादियां हुईं. अब भरापूरा परिवार था. बंगलादेश को तो वे भूल चुके थे. उन का वहां कोई था भी नहीं.

जो थे उन्हें खोने में 40 साल का समय बहुत होता है. इसी धरती को वे अपना मानते थे. इसी को सलाम करते थे.

अब जबकि राजनीति दलों का दलदल बन चुकी थी. केंद्र और राज्य सरकार से ज्यादा क्षेत्रीय भाषा, जाति की राजनीति होने लगी थी. आबादी बढ़ने से क्षेत्रीय लोग पिछड़े और गरीब रह गए थे. उन के पास न जमीन थी, न रोजगार. वे दिल्ली में बैठी सरकार को कोसते रहते थे कि दूर पड़े किनारे के राज्यों के लिए सरकार ने कुछ नहीं किया.

यह कोसना उन्हें वहां के स्थानीय नेताओं ने सिखाया था. स्थानीय नेताओं के पास पड़ोसी देश से हासिल हथियार थे और बेरोजगार की फौज उन के पास थी. जो असंतुष्ट हो कर हथियार भी उठा चुके थे. जो हथियार उठाने की हिम्मत नहीं कर पाए, वे उन हथियारधारियों के समर्थन में थे. अपना विरोध वे अहिंसक तरीके से करते थे. नारा था भूमिपुत्र का.

भूमिपुत्र वे जो इस प्रांत, क्षेत्र का स्थायी निवासी है. भाषा, बोली, संस्कार, उस का है. जो उस जाति, धर्म से संबंधित है. यह ठीक वैसा ही नारा था जो आंध प्रदेश और महाराष्ट्र में उठता रहा है. बाहरियों को खदेड़ो. जो इसी देश के दूसरे क्षेत्रों से आए थे. रोजगार के लिए वे तो चले गए. मजदूर बन कर आए थे.

लेकिन अहमद खान जैसे लोग कहा जाएं? उन के पास तो यही जमीन, यही मकान, दुकान उन का मुल्क था. फिर उन्हें क्या पता था कि 40 साल बाद स्थानीय लोग ही जो कभी उन के मददगार थे, भाषा, भूमिपुत्र आंदोलन के नाम पर उन के दुश्मन बन जाएंगे.

हत्याओं, बम, धमाकों की खबर पूरे राज्य में फैल रही थी. दहशत का माहौल छाया हुआ था. अहमद खान खुद को बेवतन महसूस कर रहे थे. न जाने कब वे इस हिंसक आंदोलन की बलि चढ़ जाएं. वे करें तो क्या करें. जाएं तो कहां जाएं. उन के पास कोई रास्ता भी नहीं था. आखिर उन के पास संदेशा आ ही गया. वे उल्फा के कमांडर के सामने हाथ जोड़े खड़े थे.

कमांडर ने कहा, ‘‘यह धरती भूमिपुत्रों की है. खाली करो.’’

‘‘मैं 40 साल से यहां रह रहा हूं. यह धरती मेरी भी है. मैं भी भूमिपुत्र हुआ.’’

‘‘नहीं, न तो तुम असमिया हो, न तुम्हारे पूर्वज यहां के हैं. तुम्हारे रहने से हमारे हितों पर असर पड़ता है. यहां केवल यहां के लोग रहेंगे.’’

‘‘मैं नहीं जाऊंगा. पूरी जिंदगी यहीं गुजर गई.’’

‘‘नहीं जाओगे तो मरोगे,’’ कमांडर ने अपनी बात खत्म कर दी.

अहमद खान सोचते रहे कि उन का मुल्क कौन सा है? कुछ सालों में तो किसी भी देश की नागरिकता मिल जाती है, फिर उन्हें तो पूरे 40 साल हो गए. इस जगह के अलावा उन का कहीं कुछ भी नहीं है. वे अपना घरद्वार छोड़ कर जाएं तो कहां जाएं? क्या करेंगे? कहां रहेंगे?

टैलीविजन, रेडियो पर सरकार की तसल्ली आती रही कि सब ठीक हो जाएगा. डरने की कोई बात नहीं. आपसी बातचीत जारी है. पर सरकार की तसल्ली हर बार की तरह झूठी और खोखली रही.

एक रात भूमिपुत्र, विद्रोही अपने लावलश्कर के साथ उन की बस्ती में घुस आए. गोलियों, बमों की आवाजों के साथ चीखों की आवाज भी माहौल में गूंजने लगी.

अहमद खान अपनी जगह से टस से मस नहीं हुए. उन्होंने तय कर लिया था कि जहां 40 साल, सुख, परिवार के साथ गुजारे. वहां मौत आती है तो मौत ही सही. कोई माने या न माने, वे भी इस भूमि के पुत्र हैं. वे कहीं नहीं जाएंगे.

माहौल में बारूद की गंध फैलने लगी. मकान धूंधूं कर जलने लगे. औरतों और बच्चों की चीखें गूंजने लगीं.

चारों ओर खून ही खून बहने लगा. तभी 2-3 गोलियां अहमद खान के सीने में लगीं. एक लंबी कराह के साथ उन्होंने दम तोड़ दिया. Story In Hindi

Romantic Story: तुम्हारी रोजी – क्यों पति को छोड़कर अमेरिका लौट गई वो?

Romantic Story: उस का नाम रोजी था. लंबा शरीर, नीली आंखें और सांचे में ढला हुआ शरीर. चेहरे का रंग तो ऐसा जैसे मैदे में सिंदूर मिला दिया गया हो.

रोजी को भारत की संस्कृति से बहुत प्यार था और इसलिए उस ने अमेरिका में रहते हुए भी हिंदी भाषा की पढ़ाई की थी और हिंदी बोलना भी सीखा.

उस ने किताबों में भारत के लोगों की शौर्यगाथाएं खूब सुनी थीं और इसलिए भारत को और नजदीक से जानने के लिए वह राजस्थान के एक छोटे से गांव में घूमने आई थी.

अभी उस की यात्रा ठीक से शुरू भी नहीं हो पाई थी कि कुछ लोगों ने एक विदेशी महिला को देख कर आदतानुसार अपनी लार गिरानी शुरू कर दी और रोजी को पकड़ कर उस का बलात्कार करने की कोशिश की. पर इस से पहले कि वे अपने इस मकसद में कामयाब हो पाते, एक सजीले से युवक रूप ने रोजी को उन लड़कों से बचाया और उस के तन को ढंकने के लिए अपनी शर्ट उतार कर दे दी.

रूप की मर्दानगी और उदारता से रोजी इतना मोहित हुई कि उस ने रूप से चंद मुलाकातों के बाद ही शादी का प्रस्ताव रख दिया.

रोजी पढ़ीलिखी थी व सुंदर युवती थी. पैसेवाली भी थी इसलिए रूप को उस से शादी करने के लिए हां कहने मे कोई परेशानी नहीं हुई पर थोड़ाबहुत प्रतिरोध आया भी तो वह रूप के रिश्तेदारों की तरफ से कि एक विदेशी क्रिस्चियन लड़की से शादी कैसे होगी? न जात की न पात की और न देशकोस की…इस से कैसे निभ पाएगी?

पर रूप अपना दिल और जबान तो रोजी को दे ही चुका था इसलिए उस की ठान को काटने की हिम्मत किसी में नहीं हुई पर पीठ पीछे सब ने बातें जरूर बनाईं.

अंगरेजन बहू की पूरे गांव में चर्चा थी.

“भाई देखने में तो सुंदर है. पतली नाक और लंबा शरीर,” एक ने कहा.

“पर भाई, दोनों लोगों में संबंध भारतीय तरीके से बनते होंगे या फिर अंगरेजी तरीके से? या फिर दोनों लोग इशारोंइशारों मे ही सब काम करते होंगे,” दूसरे ने चुटकी ली.

“कुछ भी कहो, यार पर मुझे तो सारी अंगरेजन लड़कियों को देख कर तो बस एक ही फीलिंग आती है कि ये सब वैसी वाली फिल्मों की ही हीरोइनें हैं.”

इस पर सभी जोर के ठहाके लगाते हुए हंसते.

उधर औरतों की जमात में भी आजकल बातचीत का मुद्दा रोजी ही थी.

“सुना है रूप की बहू मुंह उघाड़ कर घूमती है,” पहली औरत बोली.

“न जी न कोई झूठ न बुलवाए. अभी कल ही उस से मिल कर आई हूं, बड़ी गुणवान सी लगी मुझे और कल तो उस ने घाघराचोली पहना था और अपने सिर को भी ढंकने की कोशिश कर रही थी पर अभी नईनई है न इसलिए पल्लू बारबार खिसक जा रहा था,”दूसरी औरत ने कहा.

“पर जरा यह तो बताओ कि दोनों में बातचीत किस भाषा में होती होगी ? रूप इंग्लिश सीखे या फिर अंगरेजन बहू को हिंदी सीखनी पड़ेगी,” तीसरी औरत ने कहा.

और उन की बात सच ही साबित हुई. रोजी को नया काम सीखने का इतना चाव था कि काफी हद तक घर का कामकाज भी सीखने लगी थी.

रोजी के गांव में आने से जवान तो जवान बल्कि बूढ़े भी उस की खूबसूरती के दीवाने हो गए थे और आहें भरा करते थे. कुछ युवक तो रोजी की एक झलक पाने के लिए रूप से बहाने से मिलने भी आ धमकते.

गांव के पुरुषों को लगता था कि एक विलायती बहू के लिए तो किसी से भी शारीरिक संबंध बना लेना बहुत ही सहज होता है.

रोजी के सासससुर को शुरुआत में तो अपनी विलायती बहू के साथ आंकड़ा बैठाने में समस्या हुई पर मन से न सही ऊपर मन से ही सास रोजी को मानने का नाटक करने ही लगी थीं.
दूसरों की क्या कही जाए रूप का चचेरा भाई शेरू भी अपनी रिश्ते की भाभी पर बुरी नजर लगाए हुए था.

रूप और शेरू का घर एकदूसरे से कुछ ही दूरी पर था इसलिए शेरू दिन में कई बार आता और बहाने से रोजी के आसपास मंडराता. ऐसा करने के पीछे भी उस की यही मानसिकता थी कि अंगरेजन तो कई मर्दों से संबंध  बना लेती हैं और इन के लिए
पति बदलना माने चादर बदलना होता है.

क्या पता कब दांव लग जाए और अपने पति की गैरमौजूदगी में कब रोजी का मूड बन जाए और शेरू को उस के साथ अपने जिस्म की आग निकालने का मौका मिल जाए.

पर रोजी बेचारी इन सब बातों से अनजान भारत में ही रह कर यहां के लोगों को समझ रही थी और रीतिरिवाज सीख रही थी.

इस सीखने में एक बड़ी बाधा तब आई जब रोजी को शादी के बाद माहवारीचक्र से गुजरना था. रोजी ने पढ़ रखा था कि इन दिनों में गांव में बहुत ही नियमों का पालन किया जाता है इसलिए उस ने इस बारे में अपनी सास को बता दिया.

रोजी की सास ने उसे कुछ नसीहतें दीं और यह भी बताया कि अभी वे लोग पास के गांव में एक समारोह में जा रहे हैं और चूंकि उसे अभी किचन में प्रवेश नहीं करना है इसलिए सासूमां ने उसे बाहर ही नाश्ता भी दे दिया और घर के लोग चले गए.

रोजी घर में अकेली रह गई. उस ने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया. नाश्ता शुरू करने से पहले रोजी की चाय ठंडी हो गई थी और चाय को गरम करने के लिए उसे किचन में जाना था.

‘सासूमां तो किचन में जाने को मना कर गई हैं. कोई बात नहीं बाहर से किसी बच्चे को बुला कर उसे किचन में भेज कर चाय गरम करवा लेती हूं,’ ऐसा सोच कर रोजी ने दरवाजा खोल कर बाहर की ओर झांका तो सामने ही आसपड़ोस के कुछ किशोर लड़के बैठेबैठे गाना सुन रहे थे.

“भैयाजी, जरा इधर आना तो… मेरा एक छोटा सा काम कर देना,” रोजी ने एक लड़के को उंगली से इशारा कर के बुलाया और खुद अंदर चली गई.

रोजी घर में अकेली है, यह उन बाहर बैठे हुए लड़कों को पता था हालांकि रोजी की नजर में वे लड़के अभी बच्चे ही थे पर उसे क्या पता कि ये बच्चे उस के बारे में क्या सोचे बैठे हैं…

“अबे भाई तेरी तो लौटरी लग गई. विलायती माल घर में अकेली है और तुझे इशारे से बुला रही है. जा मजे लूट.”

“हां, एक काम जरूर करना दोस्त, उस की वीडियो जरूर बना लेना,” एक ने कहा.

मन में ढेर सारी कामुक कल्पनाएं ले कर वह किशोर लड़का अंदर आया तो रोजी ने निश्छल भाव से उस से चाय गरम कर देने को कहा.

लड़का मन ही मन खुश हुआ और उस ने सोचा कि य. तो हंसीनाओं के अंदाज होते हैं. उस ने चाय गरम कर के रोजी को प्याली पकड़ाई और उस की उंगलियों को छूने का उपक्रम करते हुए उस के सीने को जोर से भींच लिया.

इस बदतमीजी से रोजी चौंक उठी और गुस्से में भर उठी. एक जोरदार तमाचा उस ने उस लड़के के गाल पर रसीद दिए. गाल सहलाता रह गया वह लड़का मगर फिर भी रोजी से जबरदस्ती करने लगा. रोजी ने उसे
धक्का दे दिया. तभी इतने में रूप खेतों पर से वापस आ गया. रोजी जा कर उस से लिपट गई और कहने लगी कि यह लड़का उसे छेड़ रहा है.

इस से पहले कि सारा माजरा रूप की समझ में आ पाता नीचे गिरा हुआ लड़का जोर से रोजी की तरफ मुंह कर के चिल्लाने लगा,”पहले तो इशारे से बुलवाती हो और जब कोई पीछे से आ जाता है तो छेड़ने का आरोप लगाती हो. अरे वाह रे त्रियाचरित्र…” वह लड़का चीखते हुए बोला.

“रूप इस का भरोसा नहीं करना. यह गंदी नीयत डाल रहा था मुझ पर. मेरा भरोसा करो.”

रोजी की बात पर रूप को पूरा भरोसा था इसलिए उस ने तुरंत ही उस लड़के के कालर पकङे और धक्का देते हुए दरवाजे तक ले आया.

तब घर के बाहर उस के पड़ोसियों की भीड़ जमा होते देख कर उस ने खुद ही मामला रफादफा कर दिया और उस लड़के को डांट कर भगा दिया.

उस दिन की घटना के बारे में भले ही लोग पीठ पीछे बातें करते रहे पर सामने कोई कुछ नहीं कह सका.

यह पहली दफा था जब रोजी को गांव में शादी कर के आना खटक रहा था. वह इस घटना से अंदर तक हिल गई थी पर जब रात को रूप ने उसे अपनी बांहों में भर लिया और जीभर कर प्यार किया तो उस के मन का भारीपन थोड़ा कम हुआ.

एक दिन की बात है. रूप किसी काम से शहर गया हुआ था तब मौका देखकर शेरू रोजी की सास के पास आया और आवाज में लाचारी भर कर बोला,”ताईजी, दरअसल बात यह है कि आप की बहू की तबीयत अचानक खराब हो गई है और मुझे शाम होने से पहले शहर
जा कर दवाई लानी है और अब आनेजाने का कोई साधन नहीं है, जो मुझे शाम से पहले शहर पहुंचा दे.”

“हां तो उस में क्या है शेरू, तू रूप की गाड़ी ले कर चला जा. खाली ही तो खड़ी है,”रोज़ी की सासूमां ने कहा.

“हां सो तो है ताईजी, पर आप तो जानती हो कि मैं गाड़ी चलाना नहीं जानता. अगर आप इजाजत दो तो मैं भाभी को अपने साथ लिए जाऊं? वे तो विदेशी हैं और गाड़ी तो चला ही लेती हैं. हम बस यों जाएंगे और बस यों आएंगे.”

शेरू की बात सुन कर रोजी की सास हिचकी, पर उस ने इतनी लाचारी से यह बात कही थी कि वे चाह कर भी मना नहीं कर पाईं.

“अरे बहू, जरा गाड़ी निकाल कर शेरू के साथ चली जा. शहर से कोई दवा लानी है इसे,” रोजी की सास ने कहा.

“जी मांजी, चली जाती हूं.”

“और सुन, जरा धीरे गाड़ी चलाना. यह गांव है हमारा, तेरा विदेश नहीं,” सासूमां ने मुस्कराते हुए कहा.

रोजी को क्या पता था कि शेरू की नीयत में ही खोट है. उस ने गाड़ी निकाली और शेरू कृतज्ञता से हाथ जोड़ कर बैठ गया. रोजी ने गाड़ी बढ़ा दी.

गांव से कुछ दूर निकल आने के बाद एक सुनसान जगह पर शेरू दांत चियारते हुए बोला,”भाभी, थोडा गाड़ी रोको… जरा पेशाब कर आएं.”

गाड़ी रुकी तो शेरू झाड़ियों के पीछे चल गया और उस के जाते ही शेरू के 3 दोस्त कहीं से आ गए और शेरू से बातचीत करने लगे और बातें करतेकरते गाड़ी मैं बैठ गए.

इससे पहले कि रोजी कुछ समझ पाती शेरू ने उस का मुंह तेजी से दबा दिया और एक दोस्त ने रोजी के हाथों को रस्सी से बांध दिया और शेरू गाड़ी के अंदर ही रोजी के कपड़े फाड़ने लगा.

रोजी अब तक उन लोगों की गंदी नीयत समझ गई थी. उस के हाथ जरूर बंधे हुए थे पर पैर अभी मुक्त थे. उस ने एक जोर की लात शेरू के मरदाना अंग पर मारी.

दर्द से बिलबिला उठा था शेरू. अपना अंग अपने हाथों से पकड़ कर वहीं जमीन पर लौटने लगा.

इस दौरान उस के एक दोस्त ने रोजी के पैरों को भी रस्सी से बांध दिया और रोजी के नाजुक अंगों से खेलने लगा.

“रुक जाओ, पहले इस विदेशी कुतिया को मैं नोचूंगा. कमीनी ने बहुत तेज मार दिया है. अब इसे मैं बताता हूं कि दर्द क्या होता है.”

एक दरिंदा की तरह वह टूट पङा रोजी पर. रिश्ते की मर्यादा को भी उस ने तारतार कर दिया था. उस के बाद उस के तीनों दोस्तों ने रोजी के साथ बलात्कार किया. चीख भी नहीं सकी थी वह.

बलात्कार करने के बाद उस के हाथपैरों को खोल दिया उन लोगों ने.
जब रोजी की चेतना लौटी तो पोरपोर दर्द कर रहा था. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? पुलिस में रिपोर्ट करे या अपना जीवन ही खत्म कर दे?

पर भला वह जीवन को क्यों खत्म करे? आखिर उस ने क्या गलत क्या किया है? बस इतना कि किसी झूठ बोल कर सहायता मांगने वाले की सहायता की है और फिर किसी के चेहरे को देख कर उस की
नीयत का अंदाजा तो नहीं लगाया जा सकता है न…

‘अगर मैं इसी तरह मर गई तो रूप क्या सोचेगा?’ परेशान रोजी ने पहले यह बात रूप को बताने के लिए सोची और उस के बाद ही कोई फैसला लेने का मन बनाया.

रोजी किसी तरह घर वापस पहुंची तो रूप वहां पहले से ही बैठा हुआ उस की राह देख रहा था. रोजी रूप से लिपट गई और रोने लगी.

“क्या हुआ रोजी? तुम्हारे बदन पर इतने निशान कैसे आए? क्या कोई दुर्घटना हुई है तुम्हारे साथ?” रूप ने रोजी के हाथों और चेहरे को देखते हुए कहा.

“हां, दुर्घटना ही तो हुई है. ऐसी दुर्घटना जिस के घाव मेरे जिस्म पर ही नहीं आत्मा पर भी पहुंचे हैं…”

“पर हुआ क्या है?” सब्र का बाँध टूट रहा था रूप का.

“शेरू ने अपने दोस्तों के साथ मिल कर मेरे साथ बलात्कार किया है…” फफक पङी थी रोजी.

“क्या… उस ने तुम्हारे साथ ऐसा किया? मैं शेरू को ऐसी सजा दूंगा कि उस की पुश्तें भी कांप उठेंगी. मैं उस को जिंदा नहीं छोडूंगा.”

रूप ने रिवाल्वर पर मुट्ठी कसी, कुछ कदम तेजी से बढ़ाए और फिर अचानक रोजी की तरफ पलटा और बोला,”वैसे, एक बात मुझे समझ नहीं आती कि जब से मैं ने तुम्हें जाना है तब से तुम्हारे साथ कोई न कोई छेड़छाड़ होती ही रहती है. कहीं कोई तुम्हें देख कर घर में घुसता है और कहीं कोई तुम्हारे साथ गैंगरेप करता है. आखिर अपनी गाड़ी चला कर तुम
क्यों गई थीं शेरू को ले कर? सवाल तो तुम पर भी उठ सकते हैं न?”

शेरू के मुंह से निकले ये शब्द उसे बाणों की तरह लग रहे थे. कुछ भी न कह सकी रोजी. आंसुओं में टूट गई थी वह और अपने कमरे की तरफ भाग गई थी.

अगले दिन रोजी पूरे घर में कहीं नहीं थी. अलबत्ता, उस के बिस्तर पर एक कागज रखा जरूर मिला.

कागज में लिखा था-

मेरे रूप,

मैं जब से भारत आई, सब ने मेरी देह को ही देखा और सब ने मेरी देह को ही भोगना चाहा. कहीं किसी ने कुहनी मारी तो किसी ने पीछे से धक्का मारा. तुम्हारी आंखों में पहली बार मुझे सच्चा प्रेम दिखा तो मैं ने तुम से ब्याह रचाया पर अब मुझ पर तुम्हारा विश्वास भी डगमगा रहा है.

माना कि मैं यहां के लिए विदेशी हूं, मगर इस का मतलब यह तो नहीं कि मैं सब के साथ सो सकती हूं. क्या सब लोग मुझे एक वेश्या भर समझते हैं?

मेरे जाने के बाद मुझे ढूंढ़ने की कोशिश मत करना, क्योंकि मैं अपने घर वापस जा रही हूं. मैं तो यहां की संस्कृति के बारे में जानने और समझने आई थी, पर अब मन भर गया है. अफसोस यह वह भारत नहीं जिस के बारे में मैं ने किताबों में पढ़ा था… Romantic Story

Romantic Story: एक झूठ – इकबाल से शादी करने के लिए क्या था निभा का झूठ?

Romantic Story: इकबाल जल्दीजल्दी निभा के लिए केक बना रहा था. दरअसल, आज निभा का बर्थडे था. इकबाल ने अपने औफिस से छुट्टी ले ली थी. वह निभा को सरप्राइज देना चाहता था.

उस ने निभा की पसंद का खाना बनाया था, पूरा घर सजाया था और निभा के लिए एक खूबसूरत सी ड्रैस भी खरीदी थी. आज की शाम वह निभा के लिए यादगार बना देना चाहता था.

शाम में जब निभा घर लौटी तो इकबाल ने दरवाजा खोला. निभा के अंदर कदम रखते ही इकबाल ने पंखा चला दिया और रंगबिरंगे फूल निभा के ऊपर गिरने लगे. निभा को बांहों में भर कर इकबाल ने धीरे से कहा,”जन्मदिन मुबारक हो मेरी जान.”

इकबाल का हाथ थाम कर निभा ने कहा,”सच इकबाल, तुम मेरी जिंदगी की सच्ची खुशी हो. कितना प्यार करते हो मुझे. ख्वाहिशों का आसमान छू लिया है मैं ने तुम्हारे दम पर… अब तमन्ना यही है मेरा दम निकले तुम्हारे दर पर…”

इकबाल ने उस के होंठों पर उंगली रख दी,”दम निकलने की बात दोबारा मत करना निभा. तुम ने मेरी जिंदगी हो. तुम्हारे बिना मैं अधूरा हूं.”

केक काट कर और गिफ्ट दे कर जब इकबाल ने अपने हाथों से तैयार किया हुआ खाना डाइनिंग टेबल फर सजाया तो निभा की आंखों में आंसू आ गए,”इतना प्यार मत करो मुझ से इकबाल. हम लिवइन में रहते हैं मगर तुम तो मुझे पत्नी से ज्यादा मान देते हो. हमारा धर्म एक नहीं पर तुम ने प्यार को ही धर्म बना दिया. मेरे त्योहार तुम मनाते हो. मेरे रिवाज तुम निभाते हो. मेरा दिल हर बार तुम चुराते हो. कब तक चलेगा ऐसा?”

“जब तक धरती पर मैं हूं और आसमान में चांद है…”

दोनों एकदूसरे की बांहों में खो गए थे. धर्म, जाति, ऊंचनीच, भाषा, संस्कृति जैसे हर बंधन से आजाद उन का प्यार पिछले 5 सालों से परवान चढ़ रहा था.

5 साल पहले एक कौमन फ्रैंड की पार्टी में दोनों मिले थे. उस वक्त दोनों ही दिल्ली में नए थे और जौब भी नईनई थी. समय के साथसाथ दोनों के बीच अच्छी दोस्ती हो गई. एकदूसरे के विचार और व्यवहार से प्रभावित इकबाल और निभा धीरेधीरे करीब आने लगे थे. दोनों के बीच दूरियां सिमटने लगीं और फिर दोनों अलगअलग घर छोड़ कर एक ही घर में शिफ्ट हो गए. किराया तो बचा ही जीवन को नई खुशियां भी मिलीं.

जल्दी ही दोनों ने मिल कर एक फ्लैट किस्तों पर ले लिया. दोनों मिल कर मकान की किस्त भी देते और घर के दूसरे खर्चे भी करते. दोनों के बीच प्यार गहरा होता गया. रिश्ता गहरा हुआ तो दोनों ने घर वालों को बताने की सोची.

इकबाल के घर वालों में केवल मां थीं जो बहुत सीधी थीं. वह तुरंत मान गई थीं. मगर निभा के यहां स्थिति विपरीत थी. उस के पिता इलाहाबाद के जानेमाने उद्योगपति थे. शहर में अपनी कोठी थी. 3-4 फैक्ट्रियां थीं. 100 से ज्यादा मजदूर काम करते थे. उन की शानोशौकत ही अलग थी. पैसों की कोई कमी नहीं थी पर पतिपत्नी दोनों ही अव्वल दरजे के धार्मिक और कट्टरमिजाज थे. मां अकसर ही धार्मिक कार्यक्रमों में शरीक हुआ करती थीं.

धर्म की तो बात ही अलग है. यहां तो जाति के साथसाथ गोत्र, वर्ण, कुंडली सब कुछ देखा जाता था. ऐसे में निभा को हिम्मत ही नहीं हो रही थी कि वह घर वालों से कुछ कहे.

एक बार दीवाली की छुट्टियों में जब वह घर गई तो उसे शादी के लिए योग्य लड़कों की तसवीरें दिखाई गईं. निभा ने तब पिता से सवाल किया,”पापा क्या मैं अपनी पसंद के लड़के से शादी नहीं कर सकती?”

पापा ने गुस्से से उस की तरफ देखा. तब तक मां ने उन्हें चुप रहने का इशारा किया और बोलीं,” देख बेटा, तू अपनी पसंद की शादी करने को तो कर सकती है, पर इतना ध्यान रखना कि लड़का अपने धर्म, अपनी जाति और अपनी हैसियत का होना चाहिए. थोड़ा भी इधरउधर हम स्वीकार नहीं करेंगे. इसलिए प्यार करना भी है तो आंखें खोल कर. वरना तू तो जानती ही है गोलियां चल जाएंगी.”

“जी मां,” कह कर निभा खामोश हो गई.

उसे पता था कि इकबाल के बारे में बता कर वह खुद ही अपने पैर पर कुल्हाड़ी दे मारेगी. इसलिए उस ने रिश्ते का सच छिपाए रखना ही उचित समझा. वक्त इसी तरह बीतता रहा.

एक दिन सुबह निभा बड़ी परेशान सी बालकनी में खड़ी थी. इकबाल ने पीछे से उसे बांहों में भरते हुए पूछा,”हमारी बेगम के चेहरे पर उदासी के बादल क्यों छाए हुए हैं?”

निभा ने खुद को छुड़ाते हुए परेशान स्वर में कहा,”क्योंकि आप के शहजादे दुनिया में आने के लिए निकल चुके हैं.”

“क्या?”

“हां इकबाल. मैं मां बनने वाली हूं और यह जिम्मेदारी मैं अभी उठा नहीं सकती. एक तरफ घर वालों को कुछ पता नहीं और दूसरी तरफ मेरा कैरियर भी पीक पर है. मैं यह रिस्क अभी नहीं ले सकती.”

“तो ठीक है निभा गर्भपात करा लो. मुझे भी यही सही लग रहा है.”

“पर क्या यह इतना आसान होगा?”

“आसान तो नहीं होगा बट डोंट वरी, हम पतिपत्नी की तरह व्यवहार करेंगे और कहेंगे कि एक बच्चा पहले से है और इसलिए अभी दूसरा बच्चा इतनी जल्दी नहीं चाहते.”

“देखो क्या होता है. शाम को आ जाना मेरे औफिस में. वहीं से लैडी डाक्टर के पास चलेंगे. ”

और फिर निभा ने वह बच्चा गिरा दिया. इस के 5-6 महीने बाद एक बार फिर गर्भपात कराना पड़ा. निभा को काफी अपराधबोध हो रहा था. शरीर भी कमजोर हो गया था. पर वह करती क्या…. उसे कोई और रास्ता ही समझ नहीं आया था. पर अब इस बात को ले कर वह काफी सतर्क हो गई थी और जरूरी ऐहतियात भी लेने लगी थी.

एक दिन औफिस में ही उस के पास खबर आई कि उस के पिता का ऐक्सीडैंट हो गया है और वे काफी गंभीर अवस्था में हैं. निभा एकदम बदहवाश सी घर लौटी और जरूरी सामान बैग में डाल कर निकल पड़ी. अगली सुबह वह हौस्पिटल में थी. उस के पापा आखिरी सांसें ले रहे थे.

उसे देखते ही पापा ने कुछ बोलने की कोशिश की तो वह करीब खिसक आई और हाथ पकड़ कर कहने लगी,” बोलो पापा, आप क्या कहना चाहते हैं?”

“बेटा मैं चाहता हूं कि मेरा सारा काम तुम्हारा चचेरा भाई नहीं बल्कि तुम संभालो. वादा कर बेटा…”

निभा ने उन के हाथों पर अपना हाथ रख कर वादा किया. फिर कुछ ही देर बाद उन का देहांत हो गया. अंतिम संस्कार की पूरी प्रक्रिया कर वह 14 दिनों बाद दिल्ली लौटी. इकबाल भी औफिस से जल्दी आ गया था. निभा उस के गले लग कर बहुत रोई और फिर अपना सामान पैक करने लगी.

इकबाल चौंकता हुआ बोला,”यह क्या कर रही हो निभा?”

“मुझे हमेशा के लिए घर लौटना पड़ेगा इकबाल. पापा ने वादा लिया है मुझ से. उन का सारा कारोबार मुझे संभालना है.”

“वह तो ठीक है मगर एक बार मेरी तरफ भी तो देखो. मैं यहां अकेला तुम्हारे बिना कैसे रहूंगा? मकान की किस्तें, अकेलापन और तुम्हारे बिना जीने का दर्द कैसे उठा पाऊंगा? नहीं निभा नहीं. मैं नहीं रह पाऊंगा ऐसे…”

“रहना तो पड़ेगा ही इकबाल. अब मैं क्या करूं?”

“मत जाओ निभा. यहीं से संभालो अपना काम. कोई मैनेजर नियुक्त कर लो जो तुम्हें जरूरी जानकारी देता रहेगा.”

“इकबाल लाखोंकरोड़ों का कारोबार ऐसे नहीं संभलता. पापा अपने कारोबार के प्रति बहुत जनूनी थे. उन्होंने कोई भी काम मातहतों पर नहीं छोड़ा. हर काम में खुद आगे रहते थे. तभी आज इस मुकाम तक पहुंचे. उन्हें मेरे चचेरे भाई पर भी यकीन नहीं. मेरे भरोसे छोड़ कर गए हैं सब कुछ और मैं उन को दिया गया अंतिम वचन कभी तोड़ नहीं सकती.”

“और मुझ से किए गए प्यार के वादे? उन का क्या? उन्हें ऐसे ही तोड़ दोगी? नहीं निभा, तुम्हारे बिना मैं यहां 2 दिन भी नहीं रह सकता.”

“तो फिर चले आओ न…” आंखों में चमक लिए निभा ने कहा.

“मतलब?”

“देखो इकबाल, तुम एक बार मेरे पास इलाहाबाद आ जाओ. हमें एकदूसरे की कंपनी मिल जाएगी और फिर देखेंगे…कोई न कोई रास्ता भी निकाल ही लेंगे.”

फिर क्या था 10 दिन के अंदर ही इकबाल इलाहाबाद पहुंच गया. दोनों ने एक होटल में मुलाकात कर आगे की योजना तैयार की.

अगली सुबह इकबाल मैनेजर बन कर निभा के घर में खड़ा था. निभा ने अपनी मां से इकबाल का परिचय कराया,” मां यह बाला हैं. हमारे नए मैनेजर.”

इकबाल ने बढ़ कर मां के पैर छू लिए तो मां एकदम से अलग होती हुई बोलीं,”अरे नहीं बेटा. तुम मैनेजर हो. मेरे पैर क्यों छू रहे हो?”

“क्योंकि बड़ों के आशीर्वाद से ही सफलता के रास्ते खुलते हैं मां.”

“बेटा अब तुम ने मुझे मां कहा है तो यही आशीष देती हूं कि तुम्हारी हर इच्छा पूरी हो.”

बाला यानी इकबाल ने हाथ जोड़ कर आशीर्वाद लिया और अपने काम में लग गया. निभा ने मां को बताया, “मां, दरअसल बाला कालेज में मेरा क्लासमैट था. इस ने एमबीए की पढ़ाई की हुई है. पढ़ाई के बाद कुछ समय से दिल्ली में काम कर रहा था. यहां मुझे अकेले इतना बड़ा कारोबार संभालना था तो मेरी हैल्प के लिए आया है. वैसे इस का घर तो जमशेदपुर में है. यहां बिलकुल अकेला है यह. मां, क्या हम इसे अपने बड़े से घर में रहने के लिए एक छोटा सा कमरा दे सकते हैं?”

“क्यों नहीं बेटा? इसे गैस्टरूम में ठहरा दो. कुछ दिनों में यह खुद अपने लिए कोई घर ढूंढ़ लेगा.”

“जी मां…” कह कर निभा अपने कैबिन में चली गई. योजना का पहला चरण सफलतापूर्वक संपन्न हुआ था. इकबाल घर में आ भी गया था और मां को कोई शक भी नहीं हुआ था. मैनेजर के रूप इकबाल बाला बन कर निभा के साथ काम करने लगा.

धीरेधीरे समय बीतने लगा. इकबाल और निभा ने मिल कर कारोबार अच्छी तरह संभाल लिया था. मां भी खुश रहने लगी थीं. इकबाल समय के साथ मां के संग काफी घुलमिल गया. वह मां की हरसंभव सहायता करता. हर मुश्किल का हल निकालता. बेटे की तरह अपनी जिम्मेदारियां निभाता. यही नहीं, कई बार उस ने अपने हाथों से बना कर मां को स्वादिष्ठ खाना भी खिलाया. उस के बातव्यवहार से मां बहुत खुश रहती थीं.

इस बीच दीवाली आई तो इकबाल ने उन के साथ मिल कर त्योहार मनाया. किसी को कभी एहसास ही नहीं हुआ कि वह हिंदू नहीं है.

एक बार कारोबार के किसी काम के सिलसिले में निभा को दिल्ली जाना था. इकबाल भी साथ जा रहा था. तभी मां ने कहा कि वे भी दिल्ली घूमना चाहती हैं. बस फिर क्या था, तीनों ने काम के साथसाथ घूमने का भी कार्यक्रम बना लिया.

तीनों अपनी गाड़ी से दिल्ली के लिए निकले. लेकिन नोएडा के पास हाईवे पर अचानक निभा की गाड़ी का ऐक्सीडैंट हो गया. उस वक्त निभा गाड़ी चला रही थी और मां बगल में बैठी थीं. ऐक्सीडैंट इतना भयंकर हुआ कि गाड़ी पूरी तरह डैमेज हो गई. निभा को गहरी चोटें लगीं पर उतनी नहीं जितनी मां को लगीं. मां के सिर में कांच घुस गए थे और खून बह रहा था. वह बीचबीच में होश में आ रही थीं और फिर बेहोश हो जा रही थीं.

करीब 2 किलोमीटर की दूरी पर एक बड़ा अस्पताल था. निभा ने मां को वहीं ऐडमिट करने का फैसला लिया.

रात का समय था. हाईवे का वह इलाका थोड़ा सुनसान था. हाथ देने पर भी कोई भी गाड़ी रुकने का नाम नहीं ले रही थी. कोई और उपाय न देख कर इकबाल ने मां को गोद में उठाया और तेजी से अस्पताल की तरफ भागा. पीछेपीछे निभा भी भाग रही थी.

निभा ने ऐंबुलैंस वाले को काल किया मगर ऐंबुलैंस को आने में वक्त लग रहा था. इतनी देर में इकबाल खुद ही मां को गोद में उठाए अस्पताल पहुंच गया.

मां को तुरंत आईसीयू में ऐडमिट किया गया. उन्हें खून की जरूरत थी. संयोग था कि इकबाल का ब्लड ग्रुप ओ पौजिटिव था. उस ने मां को अपना खून दे दिया. मां को बचा लिया गया था. इस दौरान इकबाल लगातार दौड़धूप करता रहा.

इस घटना ने मां के दिल में इकबाल की जगह बहुत ऊंची कर दी थी. वापस घर लौट कर एक दिन मां ने इकबाल को सामने बैठाया और प्यार से उस के बारे में सब कुछ पूछने लगीं. पास ही निभा भी बैठी हुई थी.

निभा ने मां का हाथ पकड़ कर कहा,”मां मैं आज आप से एक हकीकत बताना चाहती हूं.”

“वह क्या बेटा?”

“मां यह बाला नहीं इकबाल है. हम ने झूठ कहा था आप से.”

इतना कह कर वह खामोश हो गई और मां की तरफ देखने लगी. मां ने गौर से इकबाल की तरफ देखा और वहां से उठ कर अपने कमरे में चली गईं. दरवाजा बंद कर लिया. निभा और इकबाल का चेहरा फक्क पड़ गया. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि अब इस परिस्थिति से कैसे निबटें.

अगले दिन तक मां ने दरवाजा नहीं खोला तो निभा को बहुत चिंता हुई. वह दरवाजा पीटती हुई रोतीरोती बोली,”मां, माफ कर दो हमें. तुम नहीं चाहती हो तो मैं इकबाल को वापस भेज दूंगी. गलती मैं ने की है इकबाल ने नहीं. मैं ने ही उसे बाला बन कर आने को कहा था. प्लीज मां, माफ कर दो.”

मां ने दरवाजा खोल दिया और मुंह घुमा कर बोलीं,”गलती तुम्हारी नहीं. गलती बाला की भी नहीं. गलती तो मेरी है जो मैं उसे पहचान न सकी.”

निभा और इकबाल परेशान से एकदूसरे की तरफ देखने लगे. तभी पलटते हुए मां ने हंस कर कहा,”बेटा, मैं ही पहचान न सकी कि तुम दोनों के बीच कितना गहरा प्यार है. इकबाल कितना अच्छा इंसान है. धर्म या जाति से क्या होता है? यदि सोचो तो समझ आएगा. बेटा, पलभर में मेरा धर्म भी तो बदल गया न जब इकबाल ने मुझे अपना खून दिया. मेरे शरीर में उसी का खून तो बह रहा है. फिर क्या अंतर है हम में या उस में. इतने दिनों में जितना मैं ने समझा है इकबाल मुझे एक शरीफ, ईमानदार और साथ निभाने वाले लड़का लगा है. इस से बेहतर जीवनसाथी तुम्हें और कौन मिलेगा?”

“सच मां, आप मान गईं…” कह कर खुशी से निभा मां के गले लग गई. आज उसे जिंदगी की सब से बड़ी खुशी मिल गई थी. पास ही इकबाल भी मुसकराता हुआ अपने आंसू पोंछ रहा था. Romantic Story

Hindi Romantic Story: देह से परे – मोनिका ने आरव से कैसे बदला लिया?

Hindi Romantic Story, लेखिका- निहारिका

लिफ्ट बंद है फिर भी मोनिका उत्साह से पांचवीं मंजिल तक सीढि़यां चढ़ती चली गई. वह आज ही अभी अपने निर्धारित कार्यक्रम से 1 दिन पहले न्यूयार्क से लौटी है. बहुत ज्यादा उत्साह में है, इसीलिए तो उस ने आरव को बताया भी नहीं कि वह लौट रही है. उसे चौंका देगी. वह जानती है कि आरव उसे बांहों में उठा लेगा और गोलगोल चक्कर लगाता चिल्ला उठेगा, ‘इतनी जल्दी आ गईं तुम?’ उस की नीलीभूरी आंखें मारे प्रसन्नता के चमक उठेंगी.

इन्हीं आंखों की चमक में अपनेआप को डुबो देना चाहती है मोनिका और इसीलिए उस ने आरव को बताया नहीं कि वह लौट रही है. उसे मालूम है कि आरव की नाइट शिफ्ट चल रही है, इसलिए वह अभी घर पर ही होगा और इसीलिए वह एयरपोर्ट से सीधे उस के घर ही चली आई है. डुप्लीकेट चाबी उस के पास है ही. एकदम से अंदर जा कर चौंका देगी आरव को. मोनिका के होंठों पर मुसकराहट आ गई.

वह धीरे से लौक खोल कर अंदर घुसी तो घर में सन्नाटा पसरा हुआ था. जरूर आरव सो रहा होगा. वह उस के बैडरूम की ओर बढ़ी. सचमुच ही आरव चादर ताने सो रहा था. मोनिका ने झुक कर उस का माथा चूम लिया.

‘‘ओ डियर अलीशा, आई लव यू,’’ कहते हुए आंखें बंद किए ही आरव ने उसे अपने ऊपर खींच लिया. लेकिन अलीशा सुनते ही मोनिका को जैसे बिजली का करैंट सा लगा. वह छिटक पड़ी.

‘‘मैं हूं, मोनिका,’’ कहते हुए उस ने लाइट जला दी. लेकिन लाइट जलते हो वह स्तब्ध हो गई. आरव की सचाई बेहद घृणित रूप में उस के सामने थी. जिस रूप में आरव और अलीशा वहां थे, उस से यह समझना तनिक भी मुश्किल नहीं था कि उस कमरे में क्या हो रहा था. मोनिका भौचक्की रह गई. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उसे अपने जीवन में ऐसा दृश्य देखना पड़ेगा. आरव को दिलोजान से चाहा है उस ने. उस के साथ जीवन बिताने और एक सुंदर प्यारी सी गृहस्थी का सपना देखा है, जहां सिर्फ और सिर्फ खुशियां ही होंगी, प्यार ही होगा. लेकिन आरव ऐसा कुछ भी कर सकता है यह तो वह सपने में भी नहीं सोच पाई थी. पर सचाई उस के सामने थी.

इस आदमी से उस ने प्यार किया. इस गंदे आदमी से. घृणा से उस की देह कंपकंपा उठी. अपने नीचे गिरे पर्स को उठा कर और आरव के फ्लैट की चाबी वहीं पटक कर वह बाहर निकल आई. खुली हवा में आ कर उसे लगा कि बहुत देर से उस की सांस रुकी हुई थी. उस का सिर घूम रहा था, उसे मितली सी आ रही थी, लेकिन उस ने अपनेआप को संभाला. लंबीलंबी सांसें लीं. तभी आरव के फ्लैट का दरवाजा खुला और आरव की धीमी सी आवाज आई, ‘‘मोनिका, प्लीज मेरी बात सुनो. आई एम सौरी यार.’’

लेकिन जब तक वह मोनिका के पास पहुंचता वह लिफ्ट में अंदर जा चुकी थी. इत्तफाक से नीचे वही टैक्सी वाला खड़ा था जिस से वह एयरपोर्ट से यहां आई थी. टैक्सी में बैठ कर उस ने संयत होते हुए अपने घर का पता बता दिया. टैक्सी ड्राइवर बातूनी टाइप का था. पूछ बैठा, ‘‘क्या हुआ मैडम, आप इतनी जल्दी वापस आ गईं? मैं तो अभी अपनी गाड़ी साफ ही कर रहा था.’’

‘‘जिस से मिलना था वह घर पर नहीं था,’’ मोनिका ने कहा, लेकिन आवाज कहीं उस के गले में ही फंसी रह गई. ड्राइवर ने रियर व्यू मिरर से उस को देखा फिर खामोश रह गया. अच्छा हुआ कि वह खामोश रह गया वरना पता नहीं मोनिका कैसे रिऐक्ट करती. उस की आंखों में आंसू थे, लेकिन दिमाग गुस्से से फटा जा रहा था. क्या करे, क्या करे वह?

आरव ने कई बार उस से कहा था कि आजकल सच्चा प्यार कहां होता है? प्यार की तो परिभाषा ही बदल चुकी है आज. सब कुछ  ‘फिजिकल’ हो चुका है. लेकिन मोनिका ने कभी स्वीकार नहीं किया इस बात को. वह कहती थी कि जो ‘फिजिकल’ होता है वह प्यार नहीं होता. कम से कम सच्चा प्यार तो नहीं ही होता. प्यार तो हर दुनियावी चीज से परे होता है. आरव उस की बातों पर ठहाका लगा कर हंस देता था और कहता था कि कम औन यार, किस जमाने की बातें कर रही हो तुम? अब शरतचंद के उपन्यास के देवदास टाइप का प्यार कहां होता है?

आरव के तर्कों को वह मजाक समझती थी, सोचती थी कि वह उसे चिढ़ा रहा है, छेड़ रहा है. लेकिन वह तो अपने दिल की बात बता रहा होता था. अपनी सोच को उस के सामने रख रहा होता था और वह समझी ही नहीं. उस की सोच, उस के सिद्धांत इस रूप में उस के सामने आएंगे इस की तो कभी कल्पना भी नहीं की थी उस ने. लेकिन वास्तविकता तो यही है कि सचाई उस के सामने थी और अब हर हाल में उसे इस सचाई का सामना करना था.

मोनिका का यों गुमसुम रहना और सारे वक्त घर में ही पड़े रहना उस के डैडी शशिकांत से छिपा तो नहीं था. आज उन्होंने ठान लिया था कि मोनिका से सचाई जान ही लेनी है कि आखिर उसे हुआ क्या है और कुछ भी कर के उसे जीवन की रफ्तार में लाना ही है.

वे, ‘‘मोनिका, माई डार्लिंग चाइल्ड,’’ आवाज देते उस के कमरे में घुसे तो हमेशा की तरह गुडमौर्निंग डैडी कहते हुए मोनिका उन के गले से नहीं झूली. सिर्फ एक बुझी सी आवाज  में बोली, ‘‘गुडमौर्निंग डैडी.’’

‘‘गुडमौर्निंग डियर, कैसा है मेरा बच्चा?’’ शशिकांत बोले.

‘‘ओ.के डैडी,’’ मोनिका ने जवाब दिया. शशिकांत और उन की दुलारी बिटिया के बीच हमेशा ऐसी ही बातें नहीं होती थीं. जोश, उत्साह से बापबेटी खूब मस्ती करते थे, लेकिन आज वैसा कुछ भी नहीं है. शशिकांत जानबूझ कर हाथ में पकड़े सिगार से लंबा कश लगाते रहे, लेकिन मोनिका की ओर से कोई रिऐक्शन नहीं आया. हमेशा की तरह ‘डैडी, नो स्मोकिंग प्लीज,’ चिल्ला कर नहीं बोली वह. शशिकांत ने खुद ही सिगार बुझा कर साइड टेबल पर रख दिया. मोनिका अब भी चुप थी.

‘‘आर यू ओ.के. बेटा?’’ शशिकांत ने फिर पूछा.

‘‘यस डैडी,’’ कहती मोनिका उन के कंधे से लग गई. मन में कुछ तय करते शशिकांत बोले, ‘‘ठीक है, फिर तुझे एक असाइनमैंट के लिए परसों टोरैंटो जाना है. तैयारी कर ले.’’

‘‘लेकिन डैडी…,’’ मोनिका हकलाई.

‘‘लेकिन वेकिन कुछ नहीं, जाना है तो जाना है. मैं यहां बिजी हूं. तू नहीं जाएगी तो कैसे चलेगा?’’ फिर दुलार से बोले, ‘‘जाएगा न मेरा बच्चा? मुझे नहीं मालूम तुझे क्या हुआ है. मैं पूछूंगा भी नहीं. जब ठीक समझना मुझे बता देना. लेकिन बेटा, वक्त से अच्छा डाक्टर कोई नहीं होता. न उस से बेहतर कोई मरहम होता है. सब ठीक हो जाएगा. बस तू हिम्मत नहीं छोड़ना. खुद से मत हारना. फिर तू दुनिया जीत लेगी. करेगी न तू ऐसा, मेरी बहादुर बेटी?’’

कुछ निश्चय सा कर मोनिका ने हां में सिर हिलाया. शशिकांत का लंबाचौड़ा रेडीमेड गारमैंट्स का बिजनैस है जो देशविदेश में फैला हुआ है. उस के लिए आएदिन ही उन्हें या मोनिका को विदेश जाना पड़ता है. मोनिका की उम्र अभी काफी कम है फिर भी अपने डैडी के काम को बखूबी संभालती है वह. इसलिए मोनिका के हां कहते ही शशिकांत निश्चिंत हो गए. वे जानते हैं कि उन की बेटी कितना भी बिखरी हो, लेकिन उस में खुद को संभालने की क्षमता है. वह खुद को और अपने डैड के बिजनैस को बखूबी संभाल लेगी.

निश्चित दिन मोनिका टोरैंटो रवाना हो गई. मन में दृढ़ निश्चय सा कर लिया उस ने कि आरव जैसे किसी के लिए भी वह अपना जीवन चौपट नहीं करेगी. अपने प्यारे डैड को निराश नहीं करेगी. सारा दिन खूब व्यस्त रही वह. आरव क्या, आरव की परछाईं भी याद नहीं आई. लेकिन शाम के गहरातेगहराते जब उस की व्यस्तता खत्म हो गई, तो आरव याद आने लगा. आदत सी पड़ी हुई है कि खाली होते ही आरव से बातें करती है वह. दिन भर का हालचाल बताना तो एक बहाना होता है. असली मकसद तो होता है आरव को अपने पास महसूस करना लेकिन आज? आज आरव की याद आते ही उस से अंतिम मुलाकात ही याद आई. थोड़ी देर बाद मोनिका जैसे अपने आपे में नहीं थी. वह कहां है, क्या कर रही है, उसे कुछ भी होश नहीं था. सिर्फ और सिर्फ आरव और अलीशा की तसवीर

उस की आंखों के सामने घूम रही थी. उसे अपनी हालत का तनिक भी भान नहीं था कि वह होटल के बार में बैठी क्या कर रही है और यह स्मार्ट सा कनाडाई लड़का उसी के बगल में बैठा उसे क्यों घूर रहा है? फिर अचानक ही उस ने मोनिका का हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘मे आई हैल्प यू? ऐनी प्रौब्लम?’’

मोनिका जैसे होश में आई. अरे, उस की आंखों से तो आंसू झर रहे हैं. शायद इसीलिए उस लड़के ने मदद की पेशकश कर दी होगी. फिर उस ने अपना गिलास मोनिका की ओर बढ़ा दिया जिसे बिना कुछ सोचेसमझे मोनिका पी गई.

बदला…बदला लेना है उसे आरव से. उस ने जो किया उस से सौ गुना बेवफाई कर के दिखा देगी वह. कनाडाई लड़का एक के बाद एक भरे गिलास उस की ओर बढ़ाता रहा और वह गटागट पीती रही और फिर उसे कोई होश नहीं रहा. थोड़ी देर बाद वह संभली तो अपने रूम में लौटी. फिर दिन गुजरते गए और  मोनिका जैसे विक्षिप्त सी होती गई. अपने डैडी के काम को वह जनून की तरह करती रही. आएदिन विदेश जाना फिर लौटना. इसी भागदौड़ भरी जिंदगी में 6-7 महीने पहले यहीं इंडिया में वह अदीप से मिली और न जाने क्यों धीरेधीरे अदीप बहुत अपना सा लगने लगा.

आरव के बाद वह किसी और से नहीं जुड़ना चाहती थी, लेकिन अदीप उस के दिल से जुड़ता ही जा रहा था. किसी के साथ न जुड़ने की अपनी जिद के ही कारण वह हर बार विदेश से लौट कर सीधेसपाट शब्दों में अपनी वहां बिताई दिनचर्या के बारे में अदीप को बताती रहती थी. कभी न्यूयार्क कभी टोरैंटो, कभी पेरिस तो कभी न्यूजर्सी.

नई जगह, नया पुरुष या वही जगह लेकिन नया पुरुष. ‘मैं किसी को रिपीट नहीं करती’ कहती मोनिका किस को बेवकूफ बनाने की कोशिश कर रही थी, खुद को ही न? और ऐसे में अदीप के चेहरे पर आई दुख और पीड़ा की भावना को क्या सचमुच ही नहीं समझ पाती थी वह या समझना नहीं चाहती थी? लेकिन यह भी सच था कि दिन पर दिन अदीप के साथ उस का जुड़ाव बढ़ता ही जा रहा था.

उस की इस तरह की बातों पर अदीप कोई प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त करता था, लेकिन एक दिन उस ने मोनिका से पूछा, ‘‘आरव से बदला लेने की बात करतेकरते कहीं तुम खुद भी आरव तो नहीं बन गईं मोनिका?’’

‘‘नहीं…’’ कह कर, चीख उठी मोनिका, ‘‘आरव का नाम भी न लेना मेरे सामने.’’

‘‘नाम न भी लूं, लेकिन तुम खुद से पूछो क्या तुम वही नहीं बनती जा रहीं, बल्कि शायद बन चुकी हो?’’ अदीप फिर बोला.

‘‘नहीं, मैं आरव से बदला लेना चाहती हूं. उसे बताना चाहती हूं कि फिजिकल रिलेशन सिर्फ वही नहीं बना सकता मैं भी बना सकती हूं और उस से कहीं ज्यादा. मैं उसे दिखा दूंगी.’’ मुट्ठियां भींचती वह बोली. लेकिन न जाने क्यों उस की आंखें भीग गईं. अदीप की गोद में सिर रख कर वह यह कहते रो दी, ‘‘मैं सच्चा प्यार पाना चाहती थी. ऐसा प्यार जो देह से परे होता है और जिसे मन से महसूस किया जाता है. पर मुझे मिला क्या? मेरे साथ तो कुछ हुआ वह तुम काफी हद तक जानते हो. अगर ऐसा न होता तो मैं उस से कभी बेवफाई न करती.’’ मोनिका की हिचकियां बंध गई थीं. अदीप कुछ नहीं बोला सिर्फ उस के बालों में उंगलियां फिराता उसे सांत्वना देता रहा.

कुछ देर रो लेने के बाद मोनिका सामान्य हो गई. सीधी बैठ कर वह अदीप से बोली, ‘‘मुझे कल न्यूयार्क जाना है. 3 दिन वहां रुकंगी. फिर वहां से पेरिस चली जाऊंगी और 4 हफ्ते बाद लौटूंगी.’’ अदीप कुछ नहीं बोला. दोनों के बीच एक सन्नाटा सा पसरा रहा. कुछ देर बाद मोनिका उठी और बोली, ‘‘मैं चलूं.? मुझे तैयारी भी करनी है.’’

मोनिका आरव से बहुत प्यार करती थी. मगर उस ने ही उसे धोखा दिया. फिर आरव से बदला लेने के लिए मोनिका ने कौन सा रास्ता चुना…

‘‘मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा,’’ हर बार की तरह इस बार भी अदीप का छोटा सा जवाब था.

एकाएक तड़प उठी मोनिका, ‘‘क्यों मेरा इंतजार करते हो तुम अदीप? और सब कुछ जानने के बाद भी. हर बार विदेश से लौट कर मैं सब कुछ सचसच बता देती हूं. फिर भी तुम क्यों मेरा इंतजार करते हो?’’

अदीप सीधे उस की आंखों में झांकता हुआ बोला, ‘‘क्या तुम सचमुच नहीं जानतीं मोनिका कि मैं तुम्हारा इंतजार क्यों करता हूं? मेरे इस प्रेम को जब तक तुम नहीं पहचान लेतीं, जब तक स्वीकार नहीं कर लेतीं, मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा.’’

मोनिका की हिचकियां सी बंध गईं. अदीप के कंधे से लगी वह सुबक रही थी और अदीप उस की पीठ थपक रहा था. देह परे, मोनिका और अदीप का निश्छल प्रेम दोनों के मन को भिगो रहा था. Hindi Romantic Story

Romantic Story In Hindi: रिस्क – क्यों रवि ने मानसी को छोड़ने का रिस्क लिया

Romantic Story In Hindi: इस नए औफिस में काम करते हुए मुझे 3 महीने ही हुए हैं और अब तक मेरे सभी सहयोगी जान चुके हैं कि मैं औफिस की ब्यूटी क्वीन मानसी को बहुत चाहता हूं. मुझे इस बात की चिंता अकसर सताती है कि जहां मैं उस से शादी करने को मरा जा रहा हूं, वहीं वह मुझे सिर्फ अच्छा दोस्त ही बनाए रखना चाहती है.

मानसी और मेरे प्रेम संबंध में और ज्यादा जटिलता पैदा करने वाली शख्सीयत का नाम है, शिखा. साथ वाले औफिस में कार्यरत शोख, चंचल स्वभाव वाली शिखा अकेले में ही नहीं बल्कि सब के सामने भी मेरे साथ फ्लर्ट करने का कोई मौका नहीं चूकती है.

‘‘दुनिया की कोई लड़की तुम्हें उतनी खुशी नहीं दे सकती, जितनी मैं दूंगी. खासकर बैडरूम में तुम्हारे हर सपने को पूरा करने की गारंटी देती हूं,’’ शादी के लिए मेरी ‘हां’ सुनने को शिखा अकेले में मुझे अकसर ऐसे प्रलोभन देती.

‘‘तुम पागल हो क्या? अरे, किसी ने कभी तुम्हारी ऐसी बातों को सुन लिया, तो लोग तुम्हें बदनाम कर देंगे,’’ उस की बिंदास बातें सुन कर मैं सचमुच हैरान हो उठता.

‘‘मुझे लोगों की कतई परवा नहीं और यह साबित करना मेरे लिए बहुत आसान है कि मैं गलत लड़की नहीं हूं.’’

‘‘तुम यह कैसे साबित कर सकती हो?’’

‘‘तुम मुझ से शादी करो और अगर सुहागरात को तुम्हें मेरे वर्जिन होने का सुबूत न मिले तो अगले दिन ही मुझ से तलाक ले लेना.’’

‘‘ओ, पागलों की लीडर, तू मेरा पीछा छोड़ और कोई नया शिकार ढूंढ़,’’ मैं ने नाटकीय अंदाज में उस के सामने हाथ जोड़े, तो हंसतेहंसते उस के पेट में दर्द हो गया.

मानसी को शिखा फूटी आंख नहीं सुहाती है. मेरी उस पागल लड़की में कोई दिलचस्पी नहीं है, बारबार ऐसा समझाने पर भी मानसी आएदिन शिखा को ले कर मुझ से झगड़ा कर ही लेती.

उस ने पिछले हफ्ते से जिद पकड़ ली थी कि मैं शिखा को जोर से डांट कर सब के बीच एक बार अपमानित करूं, जिस से कि वह मेरे साथ बातचीत करना बिलकुल बंद कर दे.

‘‘मेरी समझ से वह हलकेफुलके मनोरंजन के लिए मेरे साथ फ्लर्ट करने का नाटक करती है. उसे सब के बीच अपमानित करना गलत होगा, क्योंकि वह दिल की बुरी नहीं है, मानसी,’’ मेरे इस जवाब को सुन मानसी ने 2 दिन तक मुझ से सीधे मुंह बात नहीं की थी.

मैं ने तंग आ कर दूसरे दिन शिखा को लंच टाइम में सख्ती से समझाया, ‘‘मैं बहुत सीरियसली कह रहा हूं कि तुम मुझ से दूर रहा करो.’’

‘‘क्यों,’’ उस ने आंखें मटकाते हुए कारण जानना चाहा.

‘‘क्योंकि तुम्हारा मेरे आगेपीछे घूमना मानसी को अच्छा नहीं लगता है.’’

‘‘उसे अच्छा नहीं लगता है तो मेरी बला से.’’

‘‘बेवकूफ, मैं उस से शादी करना चाहता हूं.’’

‘‘मुझ से बड़े बेवकूफ, मानसी मुझ से जरा सी ज्यादा सुंदर जरूर है, पर मैं दावे से कह रही हूं कि मेरी जैसी शानदार लड़की तुम्हें पूरे संसार में नहीं मिलेगी.’’

‘‘देवी, तू मेरे ऊपर लाइन मारना छोड़ दे.’’

‘‘मैं अपने पापी दिल के हाथों मजबूर होने के कारण तुम से दूर नहीं रह सकती हूं, लव.’’

‘‘मुहावरा तो कम से कम ठीक बोल, मेरी जान की दुश्मन. पापी पेट होता है, दिल नहीं.’’

‘‘तुम्हें क्या पता कि मेरा पापी दिल सपनों में तुम्हारे साथ कैसेकैसे गुल खिलाता है,’’ इस डायलौग को बोलते हुए उस के जो सैक्सी हावभाव थे, उन्हें देख कर मैं ऐसा शरमाया कि उस से आगे कुछ कहते नहीं बना.

पिछले हफ्ते मानसी ने अब तक मुझ से शादी के लिए ‘हां’ ‘ना’ कहने के पीछे छिपे कारण बता दिए, ‘‘मेरे मम्मीपापा की आपस में कभी नहीं बनी. पापा अभी भी मम्मी पर हाथ उठा देते हैं. भाभी घर में बहुत क्लेश करती हैं. मेरी बड़ी बहन अपने 3 साल के बेटे के साथ मायके आई हुई है, क्योंकि जीजाजी किसी दूसरी के चक्कर में पड़ गए हैं, समाज में नीचा दिखाने वाले इन कारणों के चलते मुझे लगता था कि अपनी शादी हो जाने के बाद मैं अपने पति और ससुराल वालों से कभी आंखें ऊंची कर के बात नहीं कर पाऊंगी. अब अगर तुम्हें इन बातों से फर्क न पड़ता हो तो मैं तुम से शादी करने के लिए ‘हां’  कह सकती हूं.’’

‘‘मुझे इन सब बातों से बिलकुल भी फर्क नहीं पड़ता है. आई एम सो हैप्पी,’’ मानसी की ‘हां’ सुन कर मेरी खुशी का सचमुच कोई ठिकाना नहीं रहा था.

उस दिन के बाद मानसी ने बड़े हक के साथ मुझे शिखा से कोई संबंध न रखने की चेतावनी दिन में कईकई बार देनी शुरू कर दी थी. उसे किसी से भी खबर मिलती कि शिखा मुझ से कहीं बातें कर रही थी, तो वह मुझ से झगड़ा जरूर करती.

मैं ने परेशान हो कर एक दिन शिखा की सीट पर जा कर विनती की, ‘‘मानसी मुझ से शादी करने को राजी हो गई है और उसे हमारा ‘हैलोहाय’ करना तक पसंद नहीं है. तुम मुझ से दूर रहा करो, प्लीज.’’

‘‘जब तक मानसी के साथ तुम्हारी शादी के कार्ड नहीं छप जाते, मैं तो तुम से मिलती रहूंगी,’’ उस पागल लड़की ने मेरी विनती को तुरंत ठुकरा दिया था.

‘‘तुम मेरी प्रौब्लम को समझने की कोशिश करो, प्लीज.’’

‘‘और तुम मेरी प्रौब्लम को समझो. देखो, मैं तुम्हें प्यार करती हूं और इसीलिए आखिरी वक्त तक याद दिलाती रहूंगी कि मुझ से बेहतर पत्नी तुम्हें…’’ उस पर अपनी बात का कोई असर न होते देख मैं उस का डायलौग पूरा सुने बिना ही वहां से चला आया था.

किसी झंझट में न फंसने के लिए मैं ने अगले हफ्ते छोटे से बैंकटहौल में हुई अपने जन्मदिन की पार्टी में शिखा को नहीं बुलाया, पर उसे न बुलाने का मेरा फैसला उसे पार्टी से दूर रखने में सफल नहीं हुआ था. वह लाल गुलाब के फूलों का सुंदर गुलदस्ता ले कर बिना बुलाए ही पार्टी में शामिल होने आ गई थी.

‘‘रवि डियर, मुझे यहां देख कर टैंशन मत लो, मैं ने तुम्हें फूल भेंट कर दिए, शुभकामनाएं दे दीं और अब अगर तुम हुक्म दोगे, तो मैं उलटे पैर यहां से चली जाऊंगी,’’ अपनी बात कहते हुए वह बिलकुल भी टैंशन में नजर नहीं आ रही थी.

‘‘अब आ ही गई हो तो कुछ खापी कर जाओ,’’ मुझ से पार्टी में रुकने का निमंत्रण पा कर उस का चेहरा गुलाब की तरह खिल उठा था.

अचानक मानसी हौल में आई उसी दौरान शिखा मेरा हाथ पकड़ कर मुझे डांस फ्लोर की तरफ ले जाने की कोशिश कर रही थी.

मुझे उस के आने का तब पता चला जब उस ने पास आ कर शिखा को मेरे पास से दूर धकेला और अपमानित करते हुए बोली, ‘‘जब तुम्हें रवि ने पार्टी में बुलाया ही नहीं था, तो क्यों आई हो?’’

‘‘मेरी मरजी, वैसे तुम होती कौन हो मुझ से यह सवाल पूछने वाली,’’ शिखा उस से दबने को बिलकुल तैयार नहीं थी.

‘‘तुझे मालूम नहीं कि हमारी शादी होने वाली है, घटिया लड़की.’’

‘‘तुम मुझ से तमीज से बात करो,’’ शिखा को भी गुस्सा आ गया, ‘‘रवि से तुम्हारी शादी होने वाली बात मैं उसी दिन मानूंगी जिस दिन शादी का कार्ड अपनी आंखों से देख लूंगी.’’

‘‘तुम्हारे जैसी जबरदस्ती गले पड़ने वाली बेशर्म लड़की मैं ने दूसरी नहीं देखी. कहीं तुम किसी वेश्या की बेटी तो नहीं हो?’’

‘‘मेरी मां के लिए अपशब्द निकालने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई,’’ वह मानसी की तरफ झपटने को तैयार हुई, तो मैं ने फौरन उस का हाथ मजबूती से पकड़ कर उसे रोका.

‘‘इसे इसी वक्त यहां से जाने को कहो, रवि,’’ मानसी ऊंची आवाज में कह कर उसे बेइज्जत कर रही थी.

‘‘तुम जरा चुप करो,’’ मैं ने मानसी को जोर से डांटा और फिर हाथ छुड़ाने को मचल रही शिखा से कहा, ‘‘तुम अपने गुस्से को काबू में करो. क्या तुम दोनों ही मेरी पार्टी का मजा खराब करना चाहती हो?’’

शिखा ने फौरन अपने गुस्से को पी कर कुछ शांत लहजे में जवाब दिया, ‘‘नहीं, और तभी मैं इस बेवकूफ को अपने साथ बदतमीजी करने के लिए माफ करती हूं.’’

मेरे द्वारा डांटे जाने से बेइज्जती महसूस कर रही मानसी ने मुझे अल्टीमेटम दे दिया, ‘‘रवि, तुम इसे अभी पार्टी से चले जाने को कहो, नहीं तो मैं इसी पल यहां से चली जाऊंगी.’’

‘‘मानसी, छोटे बच्चे की तरह जिद मत करो.’’

उस ने मुझे टोक कर अपनी धमकी दोहरा दी, ‘‘अगर तुम ने ऐसा नहीं किया, तो तुम मेरे साथ घर बसाने के सपने देखना भूल जाना.’’

‘‘तुम अपना घर बसने की फिक्र न करो, माई लव, क्योंकि मैं तुम से शादी करने को तैयार हूं,’’ शिखा ने बीच में ही यह डायलौग बोल कर बात को और बिगाड़ दिया था.

‘‘तुझ जैसी कई थालियों में मुंह मारने की शौकीन लड़की से कोई इज्जतदार युवक शादी नहीं करेगा,’’ मानसी उसे अपमानित करने वाले लहजे में बोली, ‘‘तुम जैसी आवारा लड़कियों को आदमी अपनी रखैल बनाता है, पत्नी नहीं.’’

अपने गुस्से को काबू में रखने की कोशिश करते हुए शिखा ने मुझे सलाह दी, ‘‘रवि, तुम इस कमअक्ल से तो शादी मत ही करना. इस का चेहरा जरूर खूबसूरत है, पर मन के अंदर बहुत ज्यादा जहर भरा हुआ है.’’

‘‘तुम इसे फौरन पार्टी से चले जाने को कह रहे हो या नहीं,’’ मानसी ने चिल्ला कर अपना अल्टीमेटम एक बार फिर दोहराया, तो मेरी परेशानी व उलझन बहुत ज्यादा बढ़ गई.

मेरी समस्या सुलझाने की पहल शिखा ने की.

‘‘रवि, तुम टैंशन मत लो. पार्टी में हंसीखुशी का माहौल बना रहे, इस के लिए मैं यहां से चली जाती हूं. हैप्पी बर्थडे वन्स अगेन,’’ मेरे कंधे को दोस्ताना अंदाज में दबाने के बाद वह दरवाजे की तरफ बढ़ने को तैयार हो गई थी.

‘‘मैं तुम्हें बाहर तक छोड़ने चलूंगा. जरा 2 मिनट के लिए रुक जाओ, प्लीज.’’

’’तुम इसे बिलकुल भी बाहर तक छोड़ने नहीं जाओगे,’’ मानसी के चहरे की खूबसूरती को गुस्से के हावभावों ने विकृत कर दिया था.

मैं ने गहरी सांस ली और मानसी के पास जा कर बोला, ’’मेरी जिंदगी से निकल जाने की तुम्हारी धमकी को नजरअंदाज करते हुए मैं अपने इस पल दिल में पैदा हुए ताजा भाव तुम से जरूर शेयर करूंगा. सच यही है कि आजकल मेरी जिंदगी में सारी टैंशन तुम्हारे और सारा हंसनामुसकराना शिखा के कारण हो  रहा है. तुम्हारी खूबसूरती के सम्मोहन से निकल कर अगर मैं निष्पक्ष भाव से देखूं, तो मुझे साफ महसूस होता है कि यह जिंदादिल लड़की मेरी जिंदगी की रौनक बन गई है.’’

’’गो, टू हैल,’’ मेरी बात सुन कर आगबबूला  हो उठी मानसी को जन्मदिन की बिना शुभकामनाएं दिए दरवाजे की तरफ जाता देख कर भी मैं ने उसे रोकने की कोई कोशिश नहीं की.

मैं शिखा का हाथ पकड़ कर मुसकराते हुए बोला, ’’ओ, पगली लड़की, मुझे साफ नजर आ रहा है कि अगर तुम मेरी जिंदगी से निकल गई, तो वह रसहीन हो जाएगी. तुम अगर मुझे आश्वासन दो कि तुम अपने जिंदादिल व्यक्तित्व को कभी नहीं मुरझाने दोगी, तो मैं तुम से एक महत्त्वपूर्ण सवाल पूछना चाहूंगा?’’

’’माई डियर रवि, मैं तुम्हारे प्यार में हमेशा ऐसी ही पागल बनी रहूंगी. प्लीज जल्दी से वह खास सवाल पूछो न,’’ वह उस छोटी बच्ची की तरह खुश नजर आ रही थी, जिसे अपना मनपसंद उपहार मिलने की आशा हो.

’’अपने बहुत से शुभचिंतकों की चेतावनी को नजरअंदाज कर मैं तुम्हारे जैसी बिंदास लड़की को अपनी जीवनसंगिनी बनाने का रिस्क लेने को तैयार हूं. क्या तुम मुझ से शादी करोगी?’’

’’हुर्रे, मैं तुम से शादी करने को बिलकुल तैयार हूं, माई लव,’’ जीत का जोरदार नारा लगाते हुए उस ने सब के सामने मेरे होंठों पर चुंबन अंकित कर हमारे नए रिश्ते पर स्वीकृति की मुहर लगा दी थी. Romantic Story In Hindi

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