कर्नाटक में रिजर्वेशन एक अहम मुद्दा

रिजर्वेशन से पहले दलितों का और बाद में ओवीसी कास्यों का हाल सुथरा हो ऐसा नहीं है पर फिर भी जो थोड़ी भी सीटें उन जातियों की मिली. इन जातियों को हमारे पौराणिक ग्रंथ बारबार पाप का फल कहते रहते हैं और यही ङ्क्षहदू सोच की जड़ में है कि ये खुद अपनी बुरी हालत के लिए जिम्मेदार हैं. हालत तो यह है कि सदियों की पढ़ाई पट्टी की वजह से पिछड़ी व अछूत जातियां खुद को दोषी मान कर जोरशोर से पूजापाठ करती है ताकि अगले जन्म में वे इस जंजाल में न फंसे.

इस रिजर्वेशन के बावजूद ऊंची जातियां आज भी देश, समाज, सरकारी, व्यापारों, पढ़ाई, सेना, शासन, पुलिस, सेना में सब से ऊंचे स्थान पर बैठी है. दिक्कत यह है कि कहने को ये लोग पढ़ेलिखे हैं, मेरिट वाले हैं पर यही ऐसा भारत बना रहे हैं जो हर पैमाने पर ओवीसी देशों से भी गया गुजरा है.

कर्नाटक के चुनावों में रिजर्वेशन एक बड़ा मुद्दा रहा है क्योंकि मुसलमानों को मिलने वाला 4′ रिजर्वेशन हटा कर भारतीय जनता पार्टी कट्टर ङ्क्षहदू वोटरों को कह रही है कि लो तुम्हारे लिए 2 पुष्पक विमान उतार दिया है. उन्हें भरोसा दिलाया जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी को वोट करते रहो तो बाकि 50′ रिजर्वेशन भी एक न एक दिन खत्म हो जाएगा और पौराणिक आदेश की जन्म के हिसाब से ही पद मिलेंगे, ऊंचे घरों वाले खुद ब खुद ऋषिमुनि बन जाएंगे, राजाओं के पुत्र राजा बन जाएंगे और दासों के पुत्र दास रह जाएंगे और सब की औरतें पापों की गठरियों की तरह मानी जाती रहेंगी.

अगर मेरिट वाले 50′ लोगों ने कुछ किया होता तो यह देश हर पैमाने पर पिछड़ा न होता. आगे उन्होंने कुछ किया होा तो देश के 2 बड़े शहर दिल्ली और मुंबई झुग्गीझोपडिय़ों के यहां नहीं होते जहां न पानी है, न सीवर न वर्षा से बचाव, न गरर्मी की तड़प से बचाव.

अगर मेरिट से आए 50′ लोगों ने सरकार चलाते हुए ढंग से देश चलाया होता तो लाखों भारतीयों को भाग कर दूसरे देशों में जाना नहीं पड़ता. हालत तो यह है कि भूख और बेकारी के कारण भारत के लोग अफ्रीका के गरीबों में गरीब देश सूडान तक पहुंचा रहे हैं कि 2 रोटी का इंतजाम हो सके और आजकल सूडान के लोगों की आपसी लड़ाई में फंसे हुए हैं.

मेरिट की दुहाई की वजह से देश का मीडिया गोदी मीडिया बन कर मोदी मीडिया बना हुआ है. गोदी मीडिया को ङ्क्षहदूमुसलिम, मोदी वाह, भाजपा वाह इसलिए करना अच्छा लगता है कि शायद इस तरह वे रिजर्वेशन को खत्म कर सकें. गोदी मीडिया, चाहे टीवी वाला हो या ङ्क्षप्रट वाला कभी पिछड़ों, दलितों और मुसलमानों व सिखों के नेताओं की बात नहीं करता क्योंकि वे सब रिजर्वेशन को सही मानते हैं.

रिजर्वेशन के बावजूद जनरल कर वालों के 50′ से ज्यादा पदों पर बैठे लोग में जनरल कास्ट की आधी औरतें क्यों नहीं है. क्यों उन्होंने अपनी ही कास्ट की औरतों को मौका नहीं दिया. वे इंदिरा गांधी, सोनिया गांधी, ममता बैनर्जी, जयललिता, मायावती अपने बलबूते पर कुछ बनीं पर सरकारी पदों पर औरतों की गिनती न के बराबर है क्यों.

जो लोग मेरिट की दुहाई देते हैं वे अपने ही घरों की औरतों को जब बरावर का मौका, बरावर की इज्जत नहीं दे सकते वे भला कैसे पिछड़े शूद्रों और दलित अछूतों को ओबीसी व एएसी कोर्ट की जगह दे सकते हैं.

रिजर्वेशन पाने के बाद कुछ का हाल सुथरा पर उन के हाथ इतने बंधे हैं और रिजर्वेशन पा कर कुछ बने अपने को इतना हन समझते हैं कि वे अपने लोगों के लिए कुछ करते दिखना भी नहीं चाहते. रामनाथ कोङ्क्षवद हो, द्रौपदी मुर्मू, के.आर. नारायण, ये एक पूजापाठी रहे हैं और वर्ण व्यवस्था को मानने वाले जो दूसरे दलिलों पिछड़ों आदिवासियों के लिए कुछ भी करने को तैयार नहीं रहे या हैं. इसी वजह से रिजर्वेशन के बावजूद व दलितों, पिछड़ों का हाल सुधरा है न देश का.

रिजर्वेशन की मांग कर रहे है लोग

एक सर्वे में यह पाया गया है कि राजस्थान में 93′ लोग अपनी जाति के हिसाब सरकारी नौकरियों, स्कूलोंकालेजों में सीटों के हिसाब से रिजर्वेशन मांग रहे है और अगर यही रहा तो जिन्हें मेरिट वाली सीट कहां जाता है वे बस 7′ बचेंगी यानी 100 में से 7.

शड्यूल कास्ट जो पहले अछूत कहे जाते थे और आज भी समाज में अछूत ही हैं और हिंदू वर्ण व्यवस्था के हिस्सा भी नहीं थे राजस्थान की आबादी में 1.28 करोड़ हैं. इन्हें 16′ आरक्षण मिलता है और इसी के बल पर रिजर्व सीटों की वजह से 34 विधायक और 4 सांसद हैं.

आदिवासी आबादी का 12′ यानी 71 लाख हैं. इन के 33 विधायक और 3 सांसद हैं. ये लोग गांवों में रहने लगे है पर पहले जंगलों या रेगिस्तान में रहते थे. 75 सालों में कुछ कपड़ों और बरतनों के अलावा इन्हें कुछ ज्यादा मिला हो, ऐसा नहीं लगता. अदर बैकवर्ड कास्ट में ऊपरी जातियों की गिनती 3.5 करोड़ यानी 21′ है और ये आबादी के हिसाब से 27′ आरक्षण चाहते हैं. इन्हीं में से कट कर बनाई गई मोस्ट वैकवर्ड कास्ट को 56′ रिजर्वेशन मिला है पर इन की गिनती नहीं हुई है क्योंकि जाति जनगणना में जाति पूछी जाती है पर जनता को बताई नहीं जाती.

ईडब्लूएस को 10′ का आरक्षण मिला है जो ऊंची जातियों के लिए जिन में ज्यादातर ब्राह्मïण ही आते हैं जो पूजापाठ से दान बसूल नहीं पाते. ये लोग आबादी का शायद 3-4′ है पर 14′ रिजर्वेशन मनवां रहे हैं. लड़ाई मोटे तौर पर उन 36′ सीटों के लिए हो जो ऊंची जातियों के लिए उलटे रिजर्वेशन की शक्ल ले चुकी है और आबादी का 8-9′ होने पर भी मलाईदार पोस्टें इन्हीं के हाथों में आती हैं. ये लोग पहले 100′ पोस्टों पर होते को पर अब धीरेधीरे इन की गिनती घट रही है पर ताकत नहीं क्योंकि इन में भयंकर एकजुटता है और अपने मनमुटाव से बाहर नहीं आने देते.

3′ ब्राह्मïणों ने, 3-4′ राजपूतों ने सारी मोटी पोस्टों पर कब्जा कर रखा है क्योंकि ये कई पीढिय़ों से पढ़ेलिखे हुए है और इन के घरों में पढ़ाई पर बहुत जोर दिया जाता है. राजस्थान के बनिए आरक्षण के चक्कर में नहीं पड़ते और वे दुकानदारी में सफल हो जाते हैं और देशभर में फैले हुए हैं जहां बनिए की अकल, बचत, सूझबूझ से ये एक तरह से सब से अमीर वर्ग है बिना रिजर्वेशन के. रिजर्वेशन सिर्फ सरकारी नौकरियों के लिए मांगा जाता है क्योंकि इन में पक्की नौकरी के साथसाथ हर जगह ऊपरी रिश्वत की कमाई का मौका है. शायद ही कोई सरकारी दफ्तर होगा जहां से ऊपरी कमाई की जा सकती. बच्चों के बाल गृहों तक में खाने के टैंडर से ले कर बच्चों को सेक्स के लिए भेज कर कमाई की जाती है.

दिक्कत यह है कि सरकारी पैसे का लालच स्वर्ग पाने के लालच की तरह है. अगर मंदिरों, मसजिदों, चर्चों की स्वर्ग मिलने की कहानियां सही हैं और अगर पूजापाठियों की गिनती देखी जाए तो तर्कों में तो सन्नाटा छाया हुआ होगा क्योंकि हर कोई स्वर्ग में पूजापाठ के बल पर पहुंच रहा है. जैसे इस झूठ, फरेब से सदियों से धर्म का धंधा का चल रहा है, नेताओं का धंधा रिजर्वेशन के नाम पर चल रहा है. मुट्ठी भर सरकारी नौकरियों के लालच में पूरी जनता से वोट बसूले जाते हैं और इसीलिए राजस्थान में 93′ सीटों पर दावेदारी है. ऐसा हर राज्य में है जबकि रिजर्वेशन के बल पर फायदा थोड़ों को ही हो पाता है.

नेताओं के पास पंडेपादरियों की तरह इस से अच्छी आसान बात कहने के अलावा वैसे ही कुछ नहीं होता.

शर्मनाक दलितों को सताने का जारी है सिलसिला

लेखक- शंभू शरण सत्यार्थी

जितेंद्र ऊंची जाति वालों के सामने कुरसी पर बैठ कर खाना खा रहा था. यह बात उन लोगों को पसंद नहीं आई और उस की कुरसी पर लात मार दी. इस दौरान जितेंद्र की थाली का भोजन उन लोगों के कपड़ों पर जा गिरा. इस बात पर उस की जम कर पिटाई कर दी गई जिस से उस की मौत हो गई.

मध्य प्रदेश के भिंड जिले के एंडोरी थाने के लोहरी गांव के 60 साला दलित कप्तान की मौत के बाद उस के परिवार वाले जब श्मशान घाट ले गए तो गांव के दबंगों ने उन्हें वहां से भगा दिया. मजबूर हो कर इन लोगों ने अपने घर के सामने कप्तान का दाह संस्कार किया.

उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के कोतवाली इलाके में एक शादी समारोह में फिल्टर जार वाला पानी मंगवाया गया. जब पानी का जार देने वाला आदमी वहां पहुंचा तो मालूम हुआ कि वह तो दलित है. इस से अगड़ों में पानी के अछूत होने का भयानक डर पैदा हो गया और उस जार वाले को काफी फजीहत झेलनी पड़ी.

इसी तरह जालौन जिले के तहत गिरथान गांव में चंदा इकट्ठा कर के भंडारे का आयोजन किया गया था, जिस में सभी जाति के लोगों ने सहयोग दिया था. भोज चल रहा था कि कुछ दलित नौजवान पूरी और खाने की दूसरी चीजें बांटने लगे. ऊंची जाति वालों ने इस का विरोध किया और खाना खाने से इनकार करते हुए दलितों को अलग बिठाने की मांग करने लगे.

दलितों ने इस का विरोध किया तो उन में झगड़ा हो गया. बाद में दबंगों ने फरमान जारी कर दिया कि दलितों का बहिष्कार किया जाए. इस फरमान को तोड़ने वाले पर 1,000 रुपए जुर्माने के साथ ही सरेआम 5 जूते भी मारे जाएंगे.

ये चंद उदाहरण हैं. देशभर में दलितों के साथ आज भी तरहतरह की सताने वाली घटनाएं घटती रहती हैं. देश के नेता जब बुलंद आवाज में दलितों की बात करते हैं तो लगता है कि समाज में बदलाव की बयार चल रही?है.

तसवीर कुछ इस अंदाज में पेश की जाती?है कि लगता है कि देश में जातिगत बराबरी आ रही है, पर सच तो यह है कि जातिवाद और छुआछूत ने 21वीं सदी में भी अपने पैर पसार रखे?हैं.

मध्य प्रदेश के मालवा जिले के माना गांव के चंदेर की बेटी की शादी थी. चंदेर ने बैंड पार्टी बुलवा ली थी. यह बात ऊंची जाति के लोगों को नागवार गुजरी. उन्होंने सामाजिक बहिष्कार करने की धमकी दी, फिर भी उन लोगों ने बैंडबाजा बजवाया और खुशियां मनाईं.

इस बात से नाराज हो कर ऊंची जाति के लोगों ने दलितों के कुएं में मिट्टी का तेल डाल दिया.

दलितों की जरूरत

ऊंची जाति के लोगों को बेगारी करने के लिए, बोझा ढोने के लिए, घर की साफसफाई करने के लिए, घर बनाने के लिए इन्हीं दलितों की जरूरत पड़ती है. लेकिन जब काम निकल जाता है तो वे लोग उन्हें भूल जाते हैं. वे कभी नहीं चाहते हैं कि दलितों की जिंदगी में भी सुधार हो.

उन्हें यह डर सताता रहता है कि अगर दलित उन की बराबरी में खड़े हो गए तो फिर जीहुजूरी और चाकरी कौन करेगा? लेकिन जब काम निकल जाता है तो ऊंची जाति वाले दलितों को दूध में गिरी मक्खी की तरह निकाल कर फेंक देते हैं.

शोषण और गैरबराबरी की वजह से बहुत से दलित ईसाई और बौद्ध धर्म अपना चुके हैं. दलितों का दूसरा धर्म स्वीकार करना भी इन ऊंची जाति वालों को काफी खलता है.

इज्जत से जीने का हक नहीं

हमारे देश में एक तरफ तो दलितों में चेतना बढ़ी है तो वहीं दूसरी तरफ दलितों पर जोरजुल्म की वारदातें भी लगातार जारी हैं. दलित भी पोंगापंथ से बाहर

नहीं निकल पा रहे हैं. इस देश में आज भी 37 फीसदी दलित गरीबी रेखा से नीचे रह रहे हैं. 57 फीसदी दलित कुपोषण के शिकार हैं. हर 18 मिनट पर एक दलित के खिलाफ अपराध होता है.

दुख की बात तो यह है कि आज भी 21वीं सदी में दलितों को इज्जत से जीने का हक नहीं मिल पाता है जिस के वे हकदार हैं.

इन की भूल क्या है

दलित लोगों में से कुछ निरंकारी, राधास्वामी, ईसाई, आर्य समाजी, कुछ कट्टर हिंदू, नकली शर्मा, चौहान, सूर्यवंशी और चंद्रवंशी हैं. वे तकरीबन 1,108 जातियों में बंटे हुए हैं. ज्यादातर मामलों में दलित एकजुट हो कर आवाज नहीं उठाते हैं.

दलित भी इंसाफ मिलने की आस देवताओं से करते हैं. उन्हें पता नहीं है कि देवता खुद रिश्वतखोर हैं और ऊंची जाति वालों का यह शोषण करने का बहुत बड़ा हथियार हैं. दलित समाज अलगअलग खेमों में बंटा हुआ है और ये लोग अपनेअपने संगठन का झंडाडंडा उठा कर खुश हैं.

दलितों में भी जिन की हालत सुधर गई है, उन में से कुछ लोग अपनेआप को ऊंची जाति के बराबर का समझने की भूल कर बैठे हैं. बहुत से मामलों में ये दलित भी ऊंची जाति वालों का साथ देने लगते हैं. इन की हालत जितनी भी सुधर जाए, लेकिन ऊंची जाति के लोग उन्हें दलित और निचला ही समझते हैं.

दलितों पर हो रहे शोषण का विरोध एकजुट हो कर पूरी मुस्तैदी के साथ करना पड़ेगा, तभी उन पर हो रहा जोरजुल्म रुक पाएगा.

हैरानी की बात यह है कि अपनेआप को दलितों का नेता मानने वाले रामविलास पासवान और देश के दलित राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी इस मसले पर चुप दिखाई देते हैं.               द्य

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