बेड़ियां तोड़ कर आसमान चूमती मुस्लिम लड़कियां

मुस्लिम कौम की लड़कियों और औरतों के हिस्से खबरों की सुर्खियां तो बहुत आती हैं, लेकिन वे या तो तीन तलाक जैसे मसलों को ले कर होती हैं या फिर उन के प्रति मौलवियों के विवादास्पद बयानों से जुड़ी होती हैं.

जो इसलाम तालीम हासिल करने के लिए सुदूर पूर्व जाने की वकालत करता हो, उसी इसलाम के तथाकथित मठाधीश लड़कियों और औरतों को घर की दहलीज पार करने की इजाजत तक नहीं देना चाहते हैं. उन की नजर में महिला होने मतलब परदा, पति की सेवा और घर की चारदीवारी में रहने से है.

मजे की बात तो यह है कि घर के माली मसलों में उन की हिस्सेदारी की उम्मीद भी की जाती है, लेकिन उन उसूलों पर चल कर जो मौलवियों ने उन के लिए तय किए हैं. शायद इसीलिए अकसर घर के भीतर बीड़ी बनाती या जरदोजी का काम करती मुस्लिम महिलाओं की तसवीर सामने आती थी.

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लेकिन जब समय करवट बदलता है, तो अंगड़ाई भी लेता है. अब बदलते समय की अंगड़ाइयां ही बरसों पुराने बंधन की बेड़ियों को तोड़ रही हैं. मध्यम वर्ग और निम्न मध्यम वर्ग की मुस्लिम महिलाएं अपने दम पर रोजगार और शिक्षा के क्षेत्र में तो कामयाब हो ही रही हैं, अब खेल के मैदान से भी मुस्लिम महिलाओं की कामयाबी की कहानी सामने आने लगी है.

खेल के मैदान की उपलब्धियां इसलिए अहम हैं कि जिस समाज में मर्दों के साथ बैठ कर मैच देखने पर मुल्लामौलवियों ने अकसर विवादास्पद बयानों से असहज स्थितियां पैदा की हों, वहां बिना हिजाब के और गैरपरंपरागत कपड़ों के साथ मैदान में अपनी खेल प्रतिभा दिखाना बड़ी बात है.

दरअसल, पिछले कुछ सालों में यह देखा गया है कि मुस्लिम महिलाएं प्रतियोगी परीक्षाओं में तमाम मुश्किलों के सामने खुद चुनौती बन कर कामयाबी के झंडे गाड़ रही हैं. अब केवल मजहबी शिक्षा ही उन का लक्ष्य नहीं रहा है, बल्कि आईएएस, पीसीएस, पीसीएसजे के साथ दूसरी प्रतियोगी परीक्षाओं के जरीए देशसेवा करना उन का लक्ष्य बन गया है.

जाहिर है कि जो सपने देखता है, वही सपनों को हकीकत में भी बदलता है या कोशिश करता है. संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में अपनी प्रतिभा का लोहा तो कई दर्जन मुस्लिम महिलाओं ने मनवाया है और हर साल यह सूची लंबी हो रही है. हर साल संघ लोक सेवा आयोग परीक्षा में सफल प्रतियोगियों की सूची में मुस्लिम महिलाओं का नाम दिखता है, लेकिन इलाहाबाद की सीरत फातिमा, पूर्वांचल की हसीन जहरा रिजवी जैसी प्रतिभाएं उन की मिसाल भी बनती हैं. रेहाना बशीर, बुशरा बानो, बुशरा अंसारी, जमील फातिमा जेबा और इल्मा अफरोज की कामयाबी इस सूची को और लंबा बनाती है.

दरअसल, बात यहां क्रिकेटर नुजहत परवीन की करनी थी, जो देश में ‘महिला क्रिकेट की धौनी’ कही जाती हैं. नुजहत परवीन एक सामान्य मुस्लिम परिवार से आती हैं. वे मध्य प्रदेश के रीवा संभाग के छोटे शहर सिंगरौली में पलीबढ़ी हैं. जाहिर है कि महानगरीय चकाचौंध और क्रिकेट जैसे खेल में राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने के लिए वहां जरूरी संसाधन नहीं हैं, लेकिन नुजहत परवीन ने इन सब बातों को नकारते हुए खुद सफलता का पाठ पढ़ कर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है.

नुजहत परवीन अपने खेल जीवन के शुरुआती दिनों में न तो क्रिकेट खेलती थीं और न ही उस के बारे मे कुछ जानती थीं. क्रिकेट के प्रति उन का रुझान भी नहीं था. स्कूली स्तर पर वे फुटबाल की आक्रामक खिलाड़ी रही थीं और एमपी अंडर-16 फुटबाल टीम की कप्तान बनाई गई थीं और उन्होंने राज्य का प्रतिनिधित्व भी किया था. यही नहीं, वे 100 मीटर दौड़ की फर्राटा घावक भी थीं, लेकिन सिंगरौली क्रिकेट संघ के अध्यक्ष रहे राजमोहन श्रीवास्तव को उन में एक अलग प्रतिभा दिखी और उन की साथी खिलाड़ी की समझाइश पर नुजहत परवीन ने बल्ला थामा और विकेटकीपिंग के दस्ताने पहन लिए.

विकेटकीपर बनने के पीछे भी एक कहानी है कि सिंगरौली की जिला टीम में विकेटकीपर की जगह ही खाली थी. आप को याद होगा कि महेंद्र सिंह धौनी भी पहले फुटबाल खेलते थे. नुजहत परवीन एक आक्रामक बल्लेबाज और विकेट के पीछे चपल भी हैं, इसीलिए उन को ‘महिला क्रिकेट की धौनी’ कहा जाने लगा है.

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अंतर संभागीय स्पर्धा में रीवा संभाग स्तर पर कमल श्रीवास्तव और एमआरएफ पेस फाउंडेशन में आस्ट्रेलिया के डेनिस लिली की निगरानी में निखरे कोच एरिल एंथनी की पारखी नजरों ने नुजहत परवीन के अंदर छिपी प्रतिभा को पहचाना और उन के लिए आगे का रास्ता बनाया. विजयानंद ने उन को क्रिकेट की बारीकियां सिखाईं.

नुजहत परवीन की प्रतिभा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि क्रिकेट बल्ला थामने के 4 साल बाद ही सीनियर इंटर जोनल टूर्नामैंट में उन्होंने 2 शतक जड़ दिए थे. यह प्रदर्शन उन का मध्य प्रदेश की अंडर 19 टीम में चयन के लिए काफी था.

मध्य प्रदेश की जूनियर टीम की तरफ से खेलते हुए उन्होंने भारतीय चयनकर्ताओं का ध्यान अपनी तरफ खींचा. प्रदेश की सीनियर टीम में आने के बाद वे सैंट्रल जोन के लिए चुनी गईं, लेकिन उन को बड़ी सफलता साल 2016 में तब मिली जब वे भारत और वैस्टइंडीज के बीच होने वाली 3 टी 20 मैचों की सीरीज और उस के बाद होने वाले एशिया कप में भी बतौर विकेटकीपर चुनी गईं. बस, यहीं से वे देश के लिए खेलने लगीं यानी महज 5 साल में वे जिला स्तर से राष्ट्रीय फलक पर छा गईं. फिर महिला विश्वकप के लिए भी वे बतौर विकेटकीपर चुनी गईं.

नुजहत परवीन आजकल फिर सुर्खियों में हैं. भारतीय क्रिकेट बोर्ड ने इस साल आईपीएल चैलेंज मे महिलाओं को भी शामिल किया है. इस के लिए महिला खिलाड़ियों की 3 टीमें बनाई हैं, जिन में से एक टीम स्मृति मंधाना के नेतृत्व में बनाई गई है. उस टीम में नुजहत परवीन को बतौर विकेटकीपर बल्लेबाज शामिल किया गया है.

नुजहत परवीन देश के लिए खेलने वाली मध्य प्रदेश की पहली मुस्लिम महिला खिलाड़ी हैं. यहां यह भी काबिलेगौर है कि नुजहत देश के महिला क्रिकेट इतिहास में देश के लिए खेलने वाली चौथी मुस्लिम महिला खिलाड़ी हैं. मद्रास (अब चेन्नई) में जनमी फौजिया खलील भारत के लिए खेलने वाली पहली मुस्लिम खिलाड़ी रहीं. वे साल 1976 से साल 1982 तक देश के लिए खेलती रहीं. कर्नाटक की नौशीन अलकादिर अब तक सब से ज्यादा दिनों तक खेलीं और 78 वनडे मैचों में 100 विकेट ले कर सफल भी रहीं. हैदराबाद की गौहर सुलताना ने भी देश के लिए 50 वनडे मैच खेल कर 66 विकेट लिए.

आज जब संचार क्रांति का दौर है, तब भी ज्यादातर घरों के मांबाप बेटियों को घर से बाहर भेजने की मनाही करते हैं. मुस्लिम समाज में तो ये बंदिशें और ज्यादा रहती हैं. जिला स्तर से ले कर राष्ट्रीय स्तर तक किसी भी खेल में देखा जा सकता है कि मुस्लिम खिलाड़ी इक्कादुक्का ही मिलती हैं.

मुस्लिम मांबाप लड़कियों को खेलों से दूर रखते हैं. स्कूलकालेज जाने वाली मुस्लिम लड़कियां अकसर हिजाब में ही दिखती हैं और कई बार उन की पढ़ाई भी आगे नहीं बढ़ पाती है. मुल्लामौलवियों की तरफ से तय की गई पहनावे की बंदिशों के चलते, सामाजिक बंधनों में मुस्लिम लड़कियों का खेल के मैदान की तरफ रुख करना दूर की कौड़ी लगता है, लेकिन नुजहत परवीन के परिवार वालों ने इस सब की परवाह किए बिना उन को खेल के मैदान में खुद अपनी पहचान बनाने के लिए भेजा. 8-9 साल पहले तो हालात और मुश्किल थे.

कोल माइन में मशीन आपरेटर उन के पिता मसीह आलम ने अपनी 5 औलादों में तीसरे नंबर की नुजहत परवीन को हमेशा खेलने के लिए बढ़ावा किया और हमेशा उन के हौसले को बल दिया. मां नसीमा बेगम गृहिणी हैं और भाई आमिर ने भी उन को खेल के प्रति ध्यान लगाने के लिए प्रेरित किया.

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नुजहत परवीन भी इस समय भरतीय रेलवे में हैं. रेलवे में जाने का अवसर उन को खेल के मैदान ने ही दिया है. वे उन मुस्लिम लड़कियों के लिए एक मिसाल हैं जो बंधनों को तोड़ कर आसमान चूमने की तमन्ना रखती हैं. उन के पिता मसीह आलम भी उन मुस्लिम मांबाप के लिए सबक हैं जो अपनी बेटियों को माहौल के आईने में सिर्फ डर दिखाते हैं, उन में हिम्मत और अपनी प्रतिभा को निखारने का जज्बा नहीं पैदा करते हैं.

प्राध्यापक और पूर्व संभागीय क्रिकेट खिलाड़ी अजय मिश्रा कहते हैं कि कुछ ऐसे मंच हैं जहां खिलाड़ी अपनी पहचान अपनी प्रतिभा के दम पर बनाता है. यहां कौम माने नहीं रखती और खिलाड़ी इन सब धरातलों से ऊपर उठ कर पहचाना जाता है.

नुजहत परवीन अब तक महिला विश्व कप, दक्षिण अफ्रीका, आयरलैंड और वैस्टइंडीज के खिलाफ भारतीय जर्सी पहन चुकी हैं. अब पहली बार आईपीएल के लिए बनी महिलाओं की 3 टीमों में से एक टीम में वे भी शामिल हैं. उम्मीद है कि वे इस मंच पर भी बल्ले से अपने अंदाज में धमाल जरूर मचाएंगी.

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